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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

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भाग:–45





आर्यमणि को लौटे २ दिन हो गये थे किंतु भूमि का शोक और क्रोध कम होने का नाम ही नही ले रहा था। पहले दिन आर्यमणि ने यथा संभव समझाने की कोशिश तो किया था, लेकिन शायद भूमि कुछ सुनने को तैयार नही थी। २ दिन बाद आर्यमणि से रहा नही गया। उसके मानसिक परिस्थिति का सीधा असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी होता। कितनी ही मिन्नतें किया तब भूमि साथ आने को तैयार हुई। लेकिन इस बार आर्यमणि अकेले कोशिश नही करना चाहता था, इसलिए साथ में निशांत को ले लिया।


तीनों ही एक मंदिर में बैठे। भूमि कुछ देर तक शांत होकर मां दुर्गा की प्रतिमा को देखती रही, फिर अचानक ही उसके आंखों से आंसू निकल आये.… "रिचा और पैट्रिक ने क्या नही किया मेरे लिये और मैं यहां एक असहाय की तरह बैठी उसके मरने की खबर पर आंसू बहा रही"…


आर्यमणि, भूमि के आंखों से आंसू साफ करने लगा। इधर निशांत अपने शब्द तीर छोड़ते.… "रिचा भी तो कोई साफ प्रहरी नही थी। अपने ब्वॉयफ्रेंड मानस के साथ मिलकर वह भी तो साजिश ही कर रही थी दीदी"…


भूमि, लगभग चिल्लाती हुई... "जिसके बारे में पता नही हो, उसपर ऐसे तंज़ नही करते समझे।"…


आर्यमणि:– ऐसा क्या हो गया दीदी... निशांत पर क्यों भड़क रही हो...


भूमि खींचकर एक थप्पड़ मारती.… "तू बस अपने ही धुन में रह। सरदार खान को जाकर बस चुनौती दे, और मैं तेरे किये को अपना बताकर आज ये दिन देख रही। उन सबको यही लगता है कि तेरे पीछे से मैं ही सब कुछ करवा रही।


आर्यमणि:– आप किसके पीछे है? मेरे कुछ करने का असर आपकी टीम पर कैसे,... कभी कुछ बताया है आपने?


भूमि:– मुझे कुछ नहीं बताना केवल रीछ स्त्री चाहिये। सबको मारने के बाद कहां गयि वो?


निशांत:– यहीं नागपुर में आयि है।


भूमि आश्चर्य से.… "क्या?"


निशांत:– हां बिलकुल... रीछ स्त्री के नाम पर सरदार खान ने ही तो सबकी बलि ले ली थी। वहां जो भी बवंडर और जादुई खेला था, वह तो बस कंप्यूटराइज्ड था। जादुई हमला मंत्र से होता है। आपको आश्चर्य नही हुआ कि हवा के बवंडर से भाले और तीर निकल रहे थे....


भूमि अपना सर झुका कर निशांत की बातों पर सोच रही थी। ऊपर आर्यमणि अपनी आंखें बड़ी किये सवालिया नजरों से घूरने लगा, मानो कह रहा हो... "ये क्या गंध मचा रहा है।"…. निशांत भी उसे शांत रहने और आगे साथ देने का इशारा कर दिया। कुछ देर तक भूमि सोचती रही...


भूमि:– तुम्हारी बातों का क्या आधार है? क्या तुमने वहां सरदार खान को देखा था?


आर्यमणि:– तेनु वहां का मुखिया बना था। उसे पता है कि सरदार खान वहां था।


भूमि:– तुम दोनो को पक्का यकीन है...


दोनो एक साथ... "हां"..


भूमि, ने 2–3 कॉल किये। थोड़ा जोड़ देकर पूछी और बात सच निकली। सरदार खान को सतपुरा के जंगल में देखा गया था। भूमि गहरी श्वास लेती... "रिचा मेरी बुराई करती थी। वह हमारे परिवार के खिलाफ बोलती थी।हर जगह मुझे और भारद्वाज खानदान को कदमों में लाने की साजिश करती हुई पायि जाती थी। इसलिए वह दूसरे खेमे की चहीती हो गयि और वहां की सभी सूचना मुझ तक मिल जाती। पहले तो हम दोनो को मामला सीधा लगा, जिसमे पैसे और पावर के कारण करप्शन दिखता है। लेकिन यहां उस से भी बड़ी कुछ और बात थी।"..


आर्यमणि:– कौन सी बात दीदी...


भूमि:– मुझे बस अंदेशा है अभी। सरदार खान का नाम आ गया, मतलब इन सबके पीछे भी वही है...


आर्यमणि:– पहेलियां क्यों बुझा रही हो दीदी, पूरी बात बताओ?


भूमि:– जल्द ही बताऊंगी, तब तक अपनी जिंदगी एंजॉय कर.… वैसे भी तुझसे इस बारे में बात करती ही भले सतपुरा वाला कांड होता की नही होता।


आर्यमणि:– अधूरी बातें हां..


भूमि:– थप्पड़ खायेगा फिर से...


निशांत:– लगता है मैं यहां पर हूं इसलिए नही बता रही..


भूमि:– बेटा तुम दोनो को मैं डिलीवरी के वक्त से जानती हूं। तेरे रायते भी यहां कुछ कम नहीं है निशांत। बस एक ही बात कहूंगी अपनी जिंदगी जी, और प्रहरी से पूरा दूरी बना ले। वक्त अब बिल्कुल सही नही, आपसी मौत का खेल शुरू हो गया है। अब रीछ स्त्री के नाम से सबकी बलि ली जायेगी, जैसे रिचा और पैट्रिक के साथ हुआ। आर्य बेटा प्लीज मेरी बात मान ले। देख तुझे मैं जल्द ही पूरी बात बता दूंगी... तू मेरा प्यारा भाई है कि नही..


आर्यमणि:– ठीक है दीदी, जैसा आप कहो... आज से मैं प्रहरी से दूर ही रहूंगा...


निशांत:– दीदी आप चिंता मत करो। आज से इसे मैं अपने साथ रखूंगा..


भूमि:– हां ये ज्यादा सही है...


आर्यमणि:– क्या सही है। सबकी जान खतरे में है और शांत रहने कह रहे...


भूमि:– मैं तो पहले ही १० सालों के लिए प्रहरी से बाहर हो गयि। यदि उन्हें मुझे मारना होता तो मेरी टीम के साथ मुझे भी ले जाते। उन्हे मुझसे कोई खतरा नही। तू भी किनारे हो जा, तुम्हे भी कोई खतरा नही.. आसान है..


आर्यमणि:– जैसा आप ठीक समझो... चलो चलते हैं यहां से...


कुछ वक्त बिता। धीरे–धीरे सब कुछ सामान्य होने लगा। आर्यमणि की जिंदगी कॉलेज, दोस्त और पलक के संग प्यार से बीत रहा था। ख्यालों में भी कुछ ऐसा नहीं चल रहा था, जो प्रहरी के संग किसी तरह के तालमेल को दर्शाते हो। सबकुल जैसे पहले की तरह हो चुका था। कॉलेज के वक्त को छोड़ दिया जाय तो, निशांत के साथ 5–6 घंटे गुजर ही जाते थे। बचा समय पलक और परिवार का।


निशांत की ट्रेनिंग भी शुरू हो चुकी थी। चर्चाओं के दौरान वह अपनी ट्रेनिंग की बातें साझा किया करता था। संन्यासी शिवम, निशांत से टेलीपैथी के माध्यम से बात किया करता था। दोनो रात के २ घंटे और सुबह के २ घंटे योग और मंत्र अभ्यास करते थे। वहीं बातों के दौरान, संन्यासी शिवम द्वारा आर्यमणि को दी गयि किताब के बारे में निशांत ने पूछ लिया। किताब के विषय में चर्चा करते हुए आर्यमणि काफी खुश नजर आ रहा था। यहां तक कि उसने यह भी स्वीकार किया कि उस पुस्तक का जबसे वह अनुसरण किया है, फिर प्रहरी एक साइड लाइन स्टोरी हो गयि और वह किताब मुख्य धारा में चली आयि।


अब इतना रायता फैलाने के बाद कोई पुस्तक के कारण शांत बैठ जाए, फिर तो उस पुस्तक के बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ जाती है। निशांत ने भी जिज्ञासावश पूछ लिया और फिर तो उसके बाद जैसे आर्यमणि किसी ख्यालों की गहराई में खो गया हो...


"वह किताब नही है निशांत, जीवन जीने का तरीका है। हमारे पुरातन सभ्यता की सबसे बड़ी पूंजी। हमारे दुनिया में होने का अर्थ। बाजार में बहुत से योग और अध्यात्म की पुस्तक मिलती है लेकिन एक भी पुस्तक संन्यासी शिवम की दी हुई पुस्तक के समतुल्य नही।"


आर्यमणि की भावना सुनकर निशांत हंसते हुये कह भी दिया.… "मुझे संन्यासियों ने मंत्र शक्ति दिखाकर अपने ओर खींच लिया और तुझे उस पुस्तक के जरिए"… निशांत की बात सुनकर आर्यमणि हंसने लगा। रोज की तरह ही दोनो दोस्त बात करते हुये रूही और अलबेली से मिलने ट्रेनिंग पॉइंट तक जा रहे थे। आज दोनो को पहुंचने में शायद देर हो चुकी थी। वहां चित्रा, अलबेली के साथ बैठी थी और दोनो आपसी बातचीत के मध्य में थे... "अपने पैक के मुखिया को गर्व महसूस करवाना तो हमारा एकमात्र लक्ष्य होता है। उसमे भी जब एक अल्फा आर्य भईया जैसा हो। जिस दिन हम सतपुरा से यहां पहुंचे थे, उसी दिन हमे बस्ती से निकाल दिया गया था।".... अलबेली, चित्रा के किसी सवाल का जवाब दे रही थी शायद।


आर्यमणि:- क्या कही..


अलबेली:- हम परेशान नहीं करना चाहते थे आपको।


आर्यमणि:- मै जानता था ऐसा कुछ होने वाला है। चिंता मत करो तुम्हे तुम्हारे घर ले जाने आया हूं, लेकिन वादा करो वहां तुम कुछ गड़बड़ नहीं करोगी, वरना हम सबके लिये मुश्किलें में बढ़ जाएगी। रूही कहां है..


अलबेली:– अपनी टेंपररी ब्वॉयफ्रेंड के साथ घूमने... हिहिहिहि...


चित्रा:– अब मुझे ही चिढ़ाने लगी...


अलबेली, अपने दोनो कान पकड़कर, मासूम सा चेहरा बनाती... "सॉरी दीदी"..


निशांत:– तुम दोनो कब आयि चित्रा..


चित्रा:– आज सोची की हम चारो मिलकर कहीं धमाल करते है। इसलिए तुम दोनो को लेने यहीं चली आयि।


आर्यमणि:– ठीक है फिर जैसा तुम कहो। मैं जरा रूही और अलबेली के घर की समस्या का समाधान कर दूं, फिर वहीं से निकल चलेंगे.…


सहमति होते ही आर्यमणि ने एक धीमा संकेत दिया जिसे सुनकर रूही, माधव के साथ वापस आयी। …. "चित्रा, माधव को बहुत डारा कर रखी हो यार, एक किस्स कही देने तो लड़का 2 फिट दूर खड़ा हो गया।"….


चित्रा, माधव को आंख दिखती….. "क्या है, कहीं खुद को उसका सच का बॉयफ्रेंड तो नहीं समझ रहे थे माधव। दाल में जरूर कुछ काला है इसलिए रूही कह रही है। जरूर तुमने किस्स करने की कोशिश की होगी।


माधव:- इ तो हद हो गई। रूही ने सब साफ़ साफ़ कह दिया फिर भी तुम हमसे ही मज़े लेने पर तुल जाओ चित्रा। बेकार मे इतना सुनने से तो अच्छा था एक झन्नाटेदार चुम्मा ले ही लेते।


"तुमलोग एक मिनट जरा शांत रहो।"… कहते हुए आर्य ने कॉल उठाया… "हां दीदी"….. उधर से जो भी बात हुई हो… "ठीक है दीदी, आता हूं मै।"..


"चलो वापस। तुम दोनो (रूही और अलबेली) भी आओ मेरे साथ।"… सभी कार से निकल गये। रास्ते में आर्यमणि ने रूही और अलबेली को एक फ्लैट में ड्रॉप करते हुए कहने लगा… "फिलहाल तुम दोनो यहां एडजस्ट करो। कोई स्थाई पता ढूंढ़ता हूं। जरूरत का लगभग समान है। रूही, अलबेली का ख्याल रखना। अभी अनुभव कम है और यहां आसपास लोगो को कटने या चोट लगने से खून निकलते रहता है।"..


रूही:- अलबेली के साथ-साथ मुझे भी कंट्रोल करना होगा। फिलहाल तो हम लेथारिया वुलपिना से काम चला लेंगे।


आर्यमणि:- यहां शिकारियों का पूरा जाल बसता है रूही। एक छोटी सी गलती पूरे पैक को मुसीबत में डाल देगी, बस ये ख्याल रखना।


अलबेली:- भईया हमे ट्विन वोल्फ वाले जंगल का इलाका दे दो। वहीं कॉटेज बनाकर रह लेंगे।


आर्यमणि:- हम्मम ! मै देखता हूं क्या कर सकता हूं, फिलहाल यहां एडजस्ट करो। और ये कुछ पैसे रखो, काम आयेंगे।


आर्यमणि उन्हें समझाकर 20 हजार रूपए दिया और वहां से निकल गया। निशांत, माधव और चित्रा को लेकर अपनी मासी के घर चला आया। घर के अंदर कदम रखते ही, माणिक और मुक्ता से परिचय करवाते हुए सभी कहने लगे… "यही है आर्य।" माहोल थोड़ा तड़कता भड़कता था और यहां सरप्राइज इंजेगमेंट देखने को मिल रहा था। माणिक का रिश्ता पलक की बड़ी बहन नम्रता से और मुक्ता का रिश्ता पलक के बड़े भाई राजदीप से होने का रहा था।


आर्यमणि सबको नमस्ते करते हुए अपने साथ आये माधव का परिचय भी सबसे करवाने लगा। आर्यमणि पीछे जाकर आराम से बैठ गया। थोड़ी ही देर बाद नम्रता और राजदीप, अपने-अपने जीवन साथी को अंगूठी पहना रहे थे और 2 महीने बाद नाशिक से इन दोनो की शादी।


पूरे रिश्तेदारों का जमावड़ा था। वो लोग भी २ घंटे बाद शुरू होने वाले पार्टी का इंतजार कर रहे थे। आर्यमणि लगभग भिड़ से दूर था और अकेले बैठकर कुछ सोच रहा था।… "क्या बात है आर्यमणि, तेरे और पलक के बीच में कोई झगड़ा हुआ है क्या, तू तो इसे देख भी नहीं रहा।"… भूमि सबके बीच से आवाज़ लगाती हुई कहने लगी।


नम्रता:- मेरा लगन मेरे पूरे खानदान ने बैठकर तय किया है। मुश्किल से मै घंटा भर भी नहीं मिली होऊंगी, लेकिन जितना उसे जाना है, अब तो घरवाले ये लगन कैंसल भी कर दे तो भी मै आर्य से ही लगन करूंगी।..


प्रहरी मीटिंग में पलक द्वारा कही गई बात जो नम्रता ने तंज कसते कहा। जैसे ही नम्रता का डायलॉग खत्म हुआ पूरे घरवाले जोड़ से हंसने लगे। पलक सबसे नजरे चुराती अपनी मां अक्षरा के पास बैठ गई। अक्षरा उसके सर पर हाथ फेरती… "राजदीप फिर उस लड़के का क्या हुआ जिससे ये मिलने उस दिन सुबह निकली थी।"..


जया:- इन दोनों के बीच में कोई लड़का भी है?


मीनाक्षी:- लव ट्राइंगल।


वैदेही:- ट्राइंगल नहीं है लव स्क्वेयर है। एक शनिवार कि सुबह तो आर्य भी किसी के साथ डेट पर निकला था।


पलक:- हां समझ गयि की आप लोगो को भूमि दीदी या राजदीप दादा ने सब कुछ बता दिया है।


अक्षरा:- मतलब तुम्हारी अरेंज मैरेज नहीं हुई?


पलक:- कंप्लीट अरेंज मैरिज है। कुछ महीने पहले मुझे दादा (राजदीप) ने कहा था दोनो परिवार के रिश्ते मजबूत करने के लिए आर्य को मै इस घर का जमाई बनाऊंगा। जिस लड़के से लगन होना है, उसी से मिल रही थी। पहले तो यही कहते ना एक दूसरे से मिलकर एक दूसरे को जान लो, सो हमने जान लिया।


नम्रता:- बहुत स्यानी है ये दादा।


जया:- स्यानि नहीं समझदार है। जब पता है कि दोनो ओर से एक ही कोशिश हो रही है, तो किसी और से मिलने नहीं गयि, किसी और को देखने नहीं गयि, बल्कि उसी को जानने गयि, जिसके साथ लोग उसका लगन करवाना चाह रहे थे।


अक्षरा:- काही ही असो, दोन्ही कुटुंब एकत्र आले (जो भी हो दोनो परिवार को एक साथ ले आयी)


जहां लोग होंगे वहां महफिल भी होगी। लेकिन इस महफिल में 2 लोग बिल्कुल ही ख़ामोश थे। एक थी भूमि और दूसरा आर्यमणि। शायद दोनो के दिमाग में इस वक़्त कुछ बात चल रही थी और दोनो एक दूसरे से बात करना भी चाह रहे थे, लेकिन भिड़ की वजह से मौका नहीं मिल रहा था।


तभी भूमि कहने लगी… "आप लोग बातें करो मै डॉक्टर के पास से होकर आती हूं। चल आर्य।"..


जया:- वो क्या करेगा जाकर, मै चलती हूं।


भूमि:- माझी भोळी मासी, बस रूटीन चेकअप है। आप अपनी बहू के साथ बैठो, और दोनो बहने बस बहू की होकर रह जाना।


मीनाक्षी:- जा डॉक्टर को दिखा कर आ, अपना खून मत जला। वैसे भी हीमोग्लोबिन कम है तेरा।


भूमि:- हाव, फिक्र मत करो आपका ब्लड ग्रुप मैच नहीं करता मुझसे। अच्छा मै छाया (पर्सनल असिस्टेंट) से मिलती हुई आऊंगी, इसलिए थोड़ी देर हो जायेगी।


भूमि अपनी बात कहकर निकल गई। दोनो कार में बैठकर चलने लगे। घर से थोड़ी दूर जैसे ही कार आगे बढ़ी….. "मुसीबत आती नहीं है उसे हम खुद निमंत्रण देते है।"


आर्यमणि:- पलक की सारी गलती मेरी है और मै उसे ठीक करके दूंगा। (सतपुरा जंगल कांड जहां पलक, भूमि की पूरी टीम को लेकर गयि थी)


भूमि:- हाहाहाहा… हां मुझे तुमसे यही उम्मीद है आर्य। वैसे पलक की ग़लती तो तू नहीं ही सुधरेगा, हां लेकिन अपने लक्ष्य के ओर जरूर बढ़ेगा.…


आर्यमणि:- कैसे समझ लेती हो मेरे बारे मे इतना कुछ..


भूमि:- क्योंकि जब तू इस दुनिया मे पहली बार आया था, तब तुझे वहां घेरे बहुत से लोग खड़े थे। लेकिन पहली बार अपने नन्ही सी उंगलियों से तूने मेरी उंगली थामी थी। बच्चा है तू मेरा, और इसी मोह ने कभी ख्याल ही नहीं आने दिया कि मेरा अपना कोई बच्चा नहीं। तुझे ना समझूं...


आर्यमणि:- हम्मम !!! जानती हो दीदी जब मै यहां आने के बारे सोचता हूं तो खुद मे हंसी आ जाती है। मैं केवल एक सवाल का जवाब लेने आया था। ऐसा फंसा की वो सवाल ही याद नहीं रहता और दुनिया भर पंगे हजार...


भूमि:- हाहाहाहाहा.. छोड़ जाने दे। बस तुझे मैं बता दूं... तू जब अपना मकसद साध चुका होगा, तब मै नागपुर प्रहरी समुदाय को अलग कर लूंगी। इनके साथ रहकर बीच के लोगो का पता करना मुश्किल है, लेकिन अलग होकर बहुत कुछ किया जा सकता है। चल बाकी बहुत कुछ आराम से तुझे सामझा दूंगी, अभी पहले कुछ और काम किया जाए..


आर्यमणि:- लेकिन दीदी आप उनके पीछे हो, जिसने ३० शिकारी को तो यूं साफ कर दिया। आप प्लीज उनके पीछे मत जाओ... मुझे बहुत चिंता हो रही है।


भूमि:– मैं अकेली कहां हूं। हमे जान लेना भी आता है और खुद की जान बचाना भी। तुझे पता हो की न हो लेकिन हम जिनका पता लगा रहे वो कोई आम इंसान नही। वो कोई वेयरवोल्फ भी नहीं लेकिन जो सरदार खान जैसे बीस्ट को पालते हो, उसे मामूली इंसान समझने की भूल नही कर सकती। इसलिए पूरे सुरक्षित रहकर खेल खेलते हैं। वैसे तेरे आने का मुझे बहुत फायदा हुआ है, सबका ध्यान बस तेरी ओर है।


आर्यमणि:– २ तरह की बात आप खुद ही बोलती हो। उस दिन की मंदिर वाली बात और आज की बात में कोई मेल ही नही है।


भूमि:– उस दिन गुस्से में थी। मुझे अपने २ सागिर्द के जाने का अफसोस हो रहा था। गुस्से में निकल गया।
 

nain11ster

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Bhai ek update me kahani ke kuch suspence door hote hai to dusri me fir a jate hai. Hahaha but jo bhi hai mast ja rhi hai story. Keep writing keep posting. Aur ye to surprise update rha. Hahahah
Suspense samapt jald hi hoga ... Fir to kahani me koi ras nahi... Baki dekhiye aage kya hota hai...
 

nain11ster

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बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
लगता हैं युद्ध का नगाड़ा बज गया हैं
एक तरफ ऋषि हैं तो दूसरी तरफ विकृत मानसिकता वाले सिद्ध पुरुष
देखते हैं क्या होता हैं आगे आगे
Bilkul dekhiye aur dekhkar bataeye kaisa Raha ye yudhh
 
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