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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–41





निशांत ने भी उसे देखा और देखकर अपने मुंह पर हाथ रखते.… "वेंडिगो सुपरनैचुरल"

आर्यमणि:– इंसानी मांस के दीवाने, वेंडीगो.…

निशांत:– मुझे लगा किसी वेयरवोल्फ का अति–कुपोषित रूप है। ओओ आर्य, लगता है इनके इरादे कुछ ठीक नही...


दोनो बात कर ही रहे थे, इतने ने दोनों को कई सारे वेंडिगो ने घेर लिया।…. "निशांत, इनके पतले आकार पर मत जाना, ये एक अल्फा से ज्यादा खतरनाक होते है।"


निशांत:– हां मैंने भी पढ़ा था। मुझे तो ये बता की इसका दिल कैसे बाहर निकलेंगे...


(वेंडिगो को मारने की एकमात्र विधि, उसका दिल निकालकर नींबू की तरह निचोड़ देना)


आर्यमणि, लंबा छलांग लगाते एक वेंडिगो को पकड़कर उसकी छाती चीड़ दिया। छाती चिड़कर उसके दिल को अपने हाथ से मसलते… "फिलहाल तो इनका दिल ऐसे ही निकाल सकते हैं।"…. निशांत वह नजार देखकर... "तू दिल निकलता रह छोड़े, मैं आराम से ट्रैप वायर लगता हूं।"…. "पागल है क्या, तू मुझे तो मारना नही चाहता। कहीं तेज दौड़ते मैं फंस गया तो"…. "फिर इतने ट्रैप वायर का इस्तमाल कहां इनके पिछवाड़े में डालने के लिए करूं"….. "तू कुछ मत कर। यहां तो आमने–सामने की लड़ाई है। ट्रैप वायर आगे कहीं न कहीं काम आ ही जायेगी"…


विंडिगो की गतिसीलता, उसकी चूसती–फुर्ती और उसके तेज–धारदार क्ला, आर्यमणि को काफी परेशान कर रहे थे। जब तक वह 1 वेंडिगो की छाती चिड़ता उसके पीठ पर १००० तलवार चलने जितने क्ला के वार हो चुका होते। ऐडियाना का सेवक मानो पागलों की तरह हमला कर रहा था।


वैसे इसी क्षेत्र में अब से थोड़ी देर पहले योगी और संन्यासियों की पूरी एक टोली पहुंची थी। 2 सिद्ध पुरुष, 5 सन्यासी और 30 सहायकों के साथ ये सभी पहुंचे थे। ये सभी अपनी मंजिल के ओर बढ़ रहे थे। उस टोली के मुखिया ओमकार नारायण कुछ महसूस करते... "इस शापित जगह का दोषी पारीयान पहुंच चुका है। उसे सुरक्षित लेकर पहुुंचो। सिद्ध पुरुष के आदेश पर 1 सन्यासी अपने 20 सहायकों के साथ इस जगह के दोषी को लेने चल दिये और बाकी सभी आगे बढ़ गये।


इधर आर्यमणि लागातार छाती चिड़कर, वेंडिगों के हृदय को मसलकर मार रहा था। किंतु एक तो उनकी तादात और ऊपर से उनके तेज हमले। आर्यमणि धीमा पर रहा था और वेंडिगो अब भागकर हमला करने के बदले आर्यमणि के शरीर पर कूदकर जोंक की तरह चिपक जाते, और अपने क्ला से उसके शरीर पर हमला कर रहे थे। आर्यमणि किसी को पकड़े तो न छाती चीड़ दे। अब हालात यह था कि १००० वेंडिगो एक साथ उसके शरीर पर कूद जाते। आर्यमणि अपने शरीर से जब तक उन्हे जमीन पर पटकता, तब तक एक साथ २००–३०० क्ला उसके शरीर पर चल चुके होते।


देखते ही देखते वेंडिगो ने आर्यमणि को पूरा ढक ही दिया। आर्यमणि तो दिखना भी बंद हो गया था, बस ऊपर से वेंडिगो के ऊपर वेंडिगो ही नजर आ रहे थे। तभी उस जगह जैसे विस्फोट हुआ हो। ६ फिट का आर्यमणि 9 फिट का बन चुका था। अपने बदन को इस कदर झटका की शरीर के ऊपर जोंक जैसे चिपके वेंडिगो विस्फोट की तरह चारो ओर उड़ चुके थे। लागातार हमले और बहते खून से आर्यमणि भले ही धीमा हो गया था, लेकिन यह मात्र एक मानसिक धारणाएं थी, वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी का ख्याल होता तो आर्यमणि खुद को धीमा मेहसूस नही करता।


फिलहाल तो आर्यमणि अपने भव्य रूप में खड़ा था। हैवी मेटल वाला उजला चमकता शरीर और गहरी लाल आंखे। चौड़ी भुजाएं, चौड़े पंजे और क्ला तो स्टेनलेस स्टील की भांति चमक रहे थे। अब परवाह नहीं की शरीर पर कितने वेंडिगो कूद रहे। बस सामने से उड़ता हुआ वेंडिगो निशाने पर होता। बाएं हाथ के निशाने पर जो वेंडिगो आता, उसका सामना लोहे के मुक्के से हो जाता। फिर तो देखने में ऐसा लगता मानो हड्डियों के अंदर जमे मांस और खून (दरसल हड्डियों के ढांचों के अंदर वाइटल ऑर्गन के विषय में लिखा गया है) पर किसी ने वजनी हथौड़ा मार दिया। ठीक वेंडिगो के सीने पर भी ऐसा ही हथौड़ा चल रहा था। मुक्का वेंडिगो के छाती फाड़कर इस पार से घुसकर उस पार निकल जाता और विस्फोट के साथ हड्ढियों और दिल के चिथरे हवा में होते।


वहीं दाएं हाथ के निशाने पर जो वेंडिगो कूदता उसका सामने चौड़े पंजे और चमकते धारदार क्ला से होता। बिजली की गति से आर्यमणि अपना दायां पंजा चलता। पूरा क्ला सीने की हड्डी को तोड़ते हुए सीधा सीने में घुसता। और मुट्ठी में उसका दिल दबोचकर बाहर खींच लेता। और इस बेदर्दी से दिल को मुट्ठी को दबोचता कि जब पंजे खुलते तो केवल रस ही हाथ में रहता।


देखने वाला यह नजारा था। आंखों के आगे जैसे कल्पनाओं से पड़े दृश्य था। जैसा पुराने जमाने की लड़ाई के किसी दृश्य में, कई तीरंदाज एक साथ जब तीर छोड़ते थे, तब जैसे आकाश तीर से ढक जाता था, ठीक उसी प्रकार वेंडिगो इतनी तादात में कूद रहे थे की पूरी जगह ही हड्डी के ढांचों से बने, सड़े हुए इस सुपरनैचुरल वेंडिगो से ढक जाती। और उसके अगले ही पल आर्यमणि इस तेजी से अपने बदन को झटकता की वापस से आकाश ढक जाता। इन प्रक्रिया के बीच कुछ वेंडिगो, आर्यमणि के दोनो हाथ का स्वाद भी चख लेते।


अब ऐसा तो था नही की वहां सिर्फ आर्यमणि था। उसके साथ निशांत भी आया था। हमला निशांत पर भी होता लेकिन उसके पास भ्रमित अंगूठी थी, और एक भी वेंडिगो उसे छू नही पा रहा था। निशांत तो बस पूरे एक्शन का मजा लेते अपने मोबाइल पर ढोल–नगाड़ा वाला म्यूजिक बजाकर मजा लूट रहा था। साथ ही साथ निशांत अपनी गला फाड़ आवाज से आर्यमणि का जोश बढ़ाते… "महाकाल का रूप लिए रह आर्य... फाड़–फाड़.. फाड़... साले को... चिथरे कर दे... परखच्चे उड़ा दे... रौद्र रूप धारण कर ले... मार आर्य मार"…


निशांत की जोश भरी हुंकार... आर्यमणि की भीषण और हृदय में कंपन करने वाली दहाड़ और चुंबकीय भीड़ को बिखेड़ कर बिजली के रफ्तार से चलने वाले हाथ... काफी रोमांचक दृश्य था। सड़े हुए लाशों के ढेर पहाड़ बन रहे थे। दाएं पंजे ने न जाने कितने जीवित वेंडिगो के दिल खींचकर निकाल लिए थे। वहीं बाएं हाथ का लौह मुक्का न जाने कितने वेंडिगो के छाती के पार कर गये थे। समा पूरा बंधा था। निशांत लगातार हुंकार पर हुंकार भरते, जोश दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था।


तभी वहां कुछ लोग पहुंचे। सभी के बदन पर गेरुआ वस्त्र। १ के हाथ में दंश तो कई लोग कंधे पर बड़े–बड़े झोला टांग रखे थे। निशांत पूरा जोश दिलाता भीषण लड़ाई के मजे ले रहा था तो वहीं आर्यमणि वेंडिगो के चीथरे उड़ा रहा था। संन्यासी और उसके सहायकों के पहुंचते ही माहोल ही पूरा बदल गया हो। वेंडिगो अब कूद तो रहे थे लेकिन आर्यमणि, निशांत और बाकी के जो संन्यासियों की जितनी टोली थी, सबके आगे अदृश्य दीवार सी बन गई थी। वेंडिगो कूदते और अदृश्य किसी दीवार से टकराकर वहीं नीचे गिर जाते।


हैरतंगेज नजारा था जिसे देखकर निशांत चिल्लाने लगा... "आर्य तंत्र–मंत्र और तिलिस्म करने वाले कुछ लोग हमे मिल गए। कहां थे आप लोग... बचपन में चर्चा किया था, आज जाकर मिले हो"…निशांत की बात सुनकर आर्यमणि भी विश्राम की स्थिति में आया।


संन्यासी मुस्कुराते हुए.… "कोई बात नही बस एक बार परिचित होने की देर थी, अब तो मिलना–जुलना लगा रहेगा।"


आर्यमणि:– आप लोग जादूगरनी ताड़का (वही जादूगरनी जिसके साथ सुकेश आया है) के चेले हैं।


संन्यासी:– नही हम उनके चेले नही और ना ही तुम्हारे दूसरे अवतार (प्योर अल्फा) की पहचान को हमसे कोई खतरा है। हां लेकिन जल्दी साथ चलो, वरना जिसके लिए हम यहां आए है, वह कहीं भाग ना जाए...


आर्यमणि और निशांत उनके साथ कदम से कदम मिलाते हुए चल दिये। निशांत पूरी जिज्ञासा के साथ... "ये आपने कौन सा मंत्र पढ़ा है जो पीछे से ये मुर्दे (वेंडिगी) हमला तो कर रहे, लेकिन हवा की दीवार से टकरा जा रहे।"


संन्यासी:– यह एक प्रकार का सुरक्षा मंत्र है... छोटा सा मंत्र है, भ्रमित अंगूठी के साथ ये मंत्र तुम पढ़ोगे तो असर भी होगा...


निशांत:– क्या बात कर रहे है? क्या सच में ऐसा होगा..


संन्यासी:– संपूर्ण सुरक्षा–वायु आवाहन.. इसे किसी सजीव को देखकर 6 बार पढ़ो।


निशांत ट्राई मारने चल दिया, इधर आर्यमणि, बड़े ही ध्यान से पूरे माहोल को समझने की कोशिश कर रहा था। संन्यासी आर्यमणि के ओर देखकर मुस्कुराते हुए... "यदि मेरी भावनाओं को तुम पढ़ नही सकते, इसका मतलब यह नहीं की तुम मेरी तुलना उनसे करने लग जाओ, जिनकी भावना तुम पढ़ने में असफल हो"..


आर्यमणि:– मतलब..


संन्यासी:– मतलब जाने दो। मै पिछले कुछ दिनों से तुम्हे देख रहा हूं। तुमसे एक ही बात कहूंगा... तुम सत्य के निकट हो, लेकिन उन चीजों को समझने के लिए तुम्हे पहले अपने आप को थोड़ा वक्त देना होगा। तुमने खुद को बहुत उलझा रखा है... जिस दुनिया को तुम समझने की कोशिश कर रहे हो, उस से पहले थोड़ी अपनी दुनिया भी समझ लो..


आर्यमणि:– आप तो उलझाने लगे..


संन्यासी:– माफ करना.. मैं तुम्हे और उलझाना नही चाहता था। मेरे कहने का अर्थ है कि जैसा तुम नागपुर में कुछ ऐसे लोगों से मिले हो जिनकी भावना तुम नही पढ़ सकते। उन्ही के विषय में तुम्हे जानकारी जुटानि है.. मैं गलत तो नहीं..


आर्यमणि:– हां बिलकुल सही कह रहे...


संन्यासी:– तुम कितने भी उत्सुक क्यों न हो, उनके विषय में मैं कोई जवाब नही दूंगा। मैं बस रास्ता बता रहा हूं ध्यान से सुनो... जिस सवाल का जवाब तुम यहां आने के बाद ढूंढ रहे, उसके लिए तुम्हे इतनी जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए... बस जल्दी जानने की जिज्ञासा को थोड़ा दरकिनार कर दो, हर सवाल का जवाब मिल जायेगा। कुछ इतिहास को अपने हिसाब से बनाया गया था और मुझे खुशी है कि तुम हर इतिहास पर आंख मूंदकर भरोसा नही करते...


"साधु जी, साधु जी, मैने तो एक वेंडिगो को ही गोला में पैक करके हवा में उड़ा दिया... क्या मैने गलत मंत्र पढ़ा"… निशांत दौड़ता, भागता उत्सुकता के साथ पहुंचा और अपनी बात कहने लगा..


संन्यासी:– नही मंत्र तो सही पढ़ा लेकिन तुमने एक नरभक्षी को सुरक्षा चक्र में बांधकर छोड़ दिया। चूंकि वह छलांग लगा रहा था इसलिए हवा में उड़ा। अब जरा सोचो की वह इंसानों की बस्ती में पहुंच गया फिर क्या होगा...


निशांत:– हे भगवान !! क्या होगा अब.. मेरे वजह से निर्दोष लोग मारे जायेंगे...


सन्यासी मुस्कुराते हुए.… चिंता मत करो हम उन्हे देख लेंगे... वैसे क्या तुम्हे भी मंत्र और उनके प्रयोग में रुचि है...


निशांत:– सीखा दो सर १०–१२ मंत्र अभी सीखा दो।


संन्यासी, मुस्कुराते हुए.… "अंगूठी के बिना तुम मंत्र से कोई लाभ नहीं ले सकते।"..


निशांत:– हां लेकिन ये अंगूठी मुझे लेगा कौन... रहेगा तो मेरे पास ही...


निशांत की इस बात पर सन्यासी मुस्कुराते हुए अपनी मुट्ठी खोले... "क्या इसी अंगूठी के विषय में तुम कह रहे थे।"


निशांत:– ओय ढोंगी साधु, तुम यहां हमारे अंगूठी के लिए आये हो...


संन्यासी:– तुम्हे पारीयान की पांडुलिपि में कहीं भी कैलाश मठ नही मिला था क्या? खैर जाने दो। तुम ये अंगूठी अपने पास एक शर्त पर रख सकते हो..


निशांत:– कौन सी..


संन्यासी:– हमारे खोजी दल का नेतृत्व करो। कुछ साल तप और कठिन मेहनत के बाद एक बार तुमने योग्यता सिद्ध कर दी, फिर बिना इस अंगूठी के भी मंत्र का प्रयोग कर सकते हो। और अंगूठी को तुम्हारी उंगली से हमारे मठाधीश आचार्य जी भी नही निकाल पायेंगे...


निशांत मायूस होते... "फिर मुझे बहुत सारे रोक–टोक झेलने होंगे। अपनी दुनिया छोड़कर आप लोगों की तरह रहना होगा। बहुत सारे प्रतिबंध तो आप लोग लगा देंगे। फिर मुझे पहचान छिपाकर रहना होगा।"


संन्यासी:– इतनी सारी बातें नही होती है। पहचान हम छिपाते नही, बल्कि हम सबके सामने रहे तो हाल वैसा ही होना है... अपना दरवाजा गंदा हो तो भी उसे साफ करने के लिए नगर–निगम के कर्मचारी का इंतजार करते हैं। हां कुछ प्रतिबंध होते है, लेकिन वो तो हर जगह होते है। क्या तुम जिस कॉलेज में हो उस कॉलेज की अपनी कानून व्यवस्था नहीं। क्या जिले की कानून व्यवस्था नहीं या फिर राज्य या देश की। खैर मैं तुम्हे अपने साथ आने के लिए प्रेरित नही कर रहा। बस तुम्हारे सवालों का जवाब दे रहा। बेशक यदि मेरी तरह संन्यासी बनना है फिर संसार त्याग कर हमारे साथ आ जाओ, वरना यदि तुम्हे पारीयान की तरह खोजी बनना है, फिर तुम्हारी जरूरी शिक्षा तुम्हारे कमरे में हो जायेगी...


निशांत पूरे उत्साह से... "क्या यह सच है?"..


संन्यासी:– हां सच है... अब तैयार हो जाओ हम पहुंच गये...


बात करते हुए सभी लगभग २ किलोमीटर आगे चले आये थे।संन्यासी एक बड़े से मांद के आगे खड़ा था। मानो पत्थर का 50 फिट का दरवाजा खड़ा हो। संन्यासी उसी दरवाजे के आगे खड़े होते.… "अंदर तुम्हारे खोज की मंजिल है आर्यमणि। बाकी अंदर जाने से पहले मैं बता दूं कि जिस किताब के उल्लेख की वजह से तुमने रीछ स्त्री को जाना, उसमे केवल कैद करने के स्थान को छोड़ दिया जाए तो बाकी सब झूठ लिखा था। उस किताब को छापा ही गया था भरमाने के लिये।

आर्यमणि:– मेरे बहुत से सवाल है...


निशांत:– इस दरवाजे के पार बवाल है, पहले उसे देख ले... एक्शन टाइम पर सवाल जवाब नही करते...


निशांत की बात सुनकर सभी हंसते हुए उस मांद के अंदर घुस गये। अंदर पूरा हैरतंगेज नजारा था। मांद की दरवाजा ही केवल पत्थर का बना था, बाकी उस पार तो खुला बर्फीला मैदान था। चारो ओर बर्फ ही बर्फ नजर आ रहा था। एक मकबरा के दोनो ओर लोग थे। एक ओर सिद्ध पुरुष और संन्यासियों के साथ सहायक थे। तो दूसरे ओर साए की तरह लहराती रीछ स्त्री जिसके पाऊं जमीन से 5 फिट ऊपर होंगे। उसके साथ कई सारे विकृत सिद्ध पुरुष काला वस्त्र पहने थे। और उन सबके पीछे जहां तक नजर जाय, केवल वेंडिगो ही वेंडिगो... ऐसा लग रहा था कब्र का बॉर्डर हो और दोनो ओर से लोग युद्ध के लिए तैयार...


रीछ स्त्री महाजनिका के भी दर्शन हो गए... स्त्री की वह भव्य स्वरूप थी, जिसकी शक्ल लगभग भालू जैसी थी। शरीर का आकार भी लगभग भालू जितना ही लंबा चौड़ा और वह हवा में लहरा रही थी। दोनो ओर के शांति को रीछ स्त्री महाजनिका तोड़ती... "साधु हमारे कार्य में विघ्न न डालो। वरना मेरे प्रकोप का सामना करना पड़ेगा..."


साधु ओमकार नारायण:– हमारे संन्यासी और सहायकों को पिछले 8 दिन से चकमा दे रही थी और आज तुमने द्वार (portal) भी खोला तो जादूगरनी (ऐडियाना) के क्षेत्र में। बचकाना सी चाल..


तांत्रिक उध्यात (वह तांत्रिक जिसने रीछ स्त्री को छुड़ाया)… सुनो ओमकार हम कोई युद्ध नही चाहते। एक बार देवी महाजानिका की शक्ति पुर्नस्थापित हो जाए फिर हम दूसरी दुनिया में चले जायेंगे... मत भूलो की अभी सिर्फ हमने जादूगरनी (ऐडियाना) की आत्मा को बंधा है, न तो उसको इच्छा से तोड़ा है और न ही उसकी आत्मा को मुक्त किया है..


ओमकार नारायण:– क्या इस बात से मुझे डरना चाहिए? या फिर तुम्हारी महत्वकांछा ने एक घोर विकृत अति शक्तिशाली जीव को उसके नींद से जगा दिया, इसलिए तुम्हे मृत्यु दण्ड दूं।


तांत्रिक उध्यात:– देवी तुम्हे जीव दिख रही। मुझे मृत्यु दण्ड दोगे... तो फिर देकर दिखाओ मृत्यु दण्ड..


अपनी बात समाप्त करने के साथ ही बिजली गरजे, बर्फीला तूफान सा उठा और उस तूफान के बीच आसमान से ऊंची ऐडियाना की आत्मा दिखना शुरू हो गयि। बर्फीले तूफान के बीच से कभी अग्नि तो कभी बिलजी किसी अस्त्र की तरह प्राणघाती हमला करने लगे। उसी तूफान के बीच चारो ओर से काले धुएं उठने लगे। उन काले उठते धुएं और बर्फीले तूफान के बीच से अनगिनत वेंडीगो उछलकर हमला करने लगे।
 

krish1152

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निशांत ने भी उसे देखा और देखकर अपने मुंह पर हाथ रखते.… "वेंडिगो सुपरनैचुरल"

आर्यमणि:– इंसानी मांस के दीवाने, वेंडीगो.…

निशांत:– मुझे लगा किसी वेयरवोल्फ का अति–कुपोषित रूप है। ओओ आर्य, लगता है इनके इरादे कुछ ठीक नही...


दोनो बात कर ही रहे थे, इतने ने दोनों को कई सारे वेंडिगो ने घेर लिया।…. "निशांत, इनके पतले आकार पर मत जाना, ये एक अल्फा से ज्यादा खतरनाक होते है।"


निशांत:– हां मैंने भी पढ़ा था। मुझे तो ये बता की इसका दिल कैसे बाहर निकलेंगे...


(वेंडिगो को मारने की एकमात्र विधि, उसका दिल निकालकर नींबू की तरह निचोड़ देना)


आर्यमणि, लंबा छलांग लगाते एक वेंडिगो को पकड़कर उसकी छाती चीड़ दिया। छाती चिड़कर उसके दिल को अपने हाथ से मसलते… "फिलहाल तो इनका दिल ऐसे ही निकाल सकते हैं।"…. निशांत वह नजार देखकर... "तू दिल निकलता रह छोड़े, मैं आराम से ट्रैप वायर लगता हूं।"…. "पागल है क्या, तू मुझे तो मारना नही चाहता। कहीं तेज दौड़ते मैं फंस गया तो"…. "फिर इतने ट्रैप वायर का इस्तमाल कहां इनके पिछवाड़े में डालने के लिए करूं"….. "तू कुछ मत कर। यहां तो आमने–सामने की लड़ाई है। ट्रैप वायर आगे कहीं न कहीं काम आ ही जायेगी"…


विंडिगो की गतिसीलता, उसकी चूसती–फुर्ती और उसके तेज–धारदार क्ला, आर्यमणि को काफी परेशान कर रहे थे। जब तक वह 1 वेंडिगो की छाती चिड़ता उसके पीठ पर १००० तलवार चलने जितने क्ला के वार हो चुका होते। ऐडियाना का सेवक मानो पागलों की तरह हमला कर रहा था।


वैसे इसी क्षेत्र में अब से थोड़ी देर पहले योगी और संन्यासियों की पूरी एक टोली पहुंची थी। 2 सिद्ध पुरुष, 5 सन्यासी और 30 सहायकों के साथ ये सभी पहुंचे थे। ये सभी अपनी मंजिल के ओर बढ़ रहे थे। उस टोली के मुखिया ओमकार नारायण कुछ महसूस करते... "इस शापित जगह का दोषी पारीयान पहुंच चुका है। उसे सुरक्षित लेकर पहुुंचो। सिद्ध पुरुष के आदेश पर 1 सन्यासी अपने 20 सहायकों के साथ इस जगह के दोषी को लेने चल दिये और बाकी सभी आगे बढ़ गये।


इधर आर्यमणि लागातार छाती चिड़कर, वेंडिगों के हृदय को मसलकर मार रहा था। किंतु एक तो उनकी तादात और ऊपर से उनके तेज हमले। आर्यमणि धीमा पर रहा था और वेंडिगो अब भागकर हमला करने के बदले आर्यमणि के शरीर पर कूदकर जोंक की तरह चिपक जाते, और अपने क्ला से उसके शरीर पर हमला कर रहे थे। आर्यमणि किसी को पकड़े तो न छाती चीड़ दे। अब हालात यह था कि १००० वेंडिगो एक साथ उसके शरीर पर कूद जाते। आर्यमणि अपने शरीर से जब तक उन्हे जमीन पर पटकता, तब तक एक साथ २००–३०० क्ला उसके शरीर पर चल चुके होते।


देखते ही देखते वेंडिगो ने आर्यमणि को पूरा ढक ही दिया। आर्यमणि तो दिखना भी बंद हो गया था, बस ऊपर से वेंडिगो के ऊपर वेंडिगो ही नजर आ रहे थे। तभी उस जगह जैसे विस्फोट हुआ हो। ६ फिट का आर्यमणि 9 फिट का बन चुका था। अपने बदन को इस कदर झटका की शरीर के ऊपर जोंक जैसे चिपके वेंडिगो विस्फोट की तरह चारो ओर उड़ चुके थे। लागातार हमले और बहते खून से आर्यमणि भले ही धीमा हो गया था, लेकिन यह मात्र एक मानसिक धारणाएं थी, वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी का ख्याल होता तो आर्यमणि खुद को धीमा मेहसूस नही करता।


फिलहाल तो आर्यमणि अपने भव्य रूप में खड़ा था। हैवी मेटल वाला उजला चमकता शरीर और गहरी लाल आंखे। चौड़ी भुजाएं, चौड़े पंजे और क्ला तो स्टेनलेस स्टील की भांति चमक रहे थे। अब परवाह नहीं की शरीर पर कितने वेंडिगो कूद रहे। बस सामने से उड़ता हुआ वेंडिगो निशाने पर होता। बाएं हाथ के निशाने पर जो वेंडिगो आता, उसका सामना लोहे के मुक्के से हो जाता। फिर तो देखने में ऐसा लगता मानो हड्डियों के अंदर जमे मांस और खून (दरसल हड्डियों के ढांचों के अंदर वाइटल ऑर्गन के विषय में लिखा गया है) पर किसी ने वजनी हथौड़ा मार दिया। ठीक वेंडिगो के सीने पर भी ऐसा ही हथौड़ा चल रहा था। मुक्का वेंडिगो के छाती फाड़कर इस पार से घुसकर उस पार निकल जाता और विस्फोट के साथ हड्ढियों और दिल के चिथरे हवा में होते।


वहीं दाएं हाथ के निशाने पर जो वेंडिगो कूदता उसका सामने चौड़े पंजे और चमकते धारदार क्ला से होता। बिजली की गति से आर्यमणि अपना दायां पंजा चलता। पूरा क्ला सीने की हड्डी को तोड़ते हुए सीधा सीने में घुसता। और मुट्ठी में उसका दिल दबोचकर बाहर खींच लेता। और इस बेदर्दी से दिल को मुट्ठी को दबोचता कि जब पंजे खुलते तो केवल रस ही हाथ में रहता।


देखने वाला यह नजारा था। आंखों के आगे जैसे कल्पनाओं से पड़े दृश्य था। जैसा पुराने जमाने की लड़ाई के किसी दृश्य में, कई तीरंदाज एक साथ जब तीर छोड़ते थे, तब जैसे आकाश तीर से ढक जाता था, ठीक उसी प्रकार वेंडिगो इतनी तादात में कूद रहे थे की पूरी जगह ही हड्डी के ढांचों से बने, सड़े हुए इस सुपरनैचुरल वेंडिगो से ढक जाती। और उसके अगले ही पल आर्यमणि इस तेजी से अपने बदन को झटकता की वापस से आकाश ढक जाता। इन प्रक्रिया के बीच कुछ वेंडिगो, आर्यमणि के दोनो हाथ का स्वाद भी चख लेते।


अब ऐसा तो था नही की वहां सिर्फ आर्यमणि था। उसके साथ निशांत भी आया था। हमला निशांत पर भी होता लेकिन उसके पास भ्रमित अंगूठी थी, और एक भी वेंडिगो उसे छू नही पा रहा था। निशांत तो बस पूरे एक्शन का मजा लेते अपने मोबाइल पर ढोल–नगाड़ा वाला म्यूजिक बजाकर मजा लूट रहा था। साथ ही साथ निशांत अपनी गला फाड़ आवाज से आर्यमणि का जोश बढ़ाते… "महाकाल का रूप लिए रह आर्य... फाड़–फाड़.. फाड़... साले को... चिथरे कर दे... परखच्चे उड़ा दे... रौद्र रूप धारण कर ले... मार आर्य मार"…


निशांत की जोश भरी हुंकार... आर्यमणि की भीषण और हृदय में कंपन करने वाली दहाड़ और चुंबकीय भीड़ को बिखेड़ कर बिजली के रफ्तार से चलने वाले हाथ... काफी रोमांचक दृश्य था। सड़े हुए लाशों के ढेर पहाड़ बन रहे थे। दाएं पंजे ने न जाने कितने जीवित वेंडिगो के दिल खींचकर निकाल लिए थे। वहीं बाएं हाथ का लौह मुक्का न जाने कितने वेंडिगो के छाती के पार कर गये थे। समा पूरा बंधा था। निशांत लगातार हुंकार पर हुंकार भरते, जोश दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था।


तभी वहां कुछ लोग पहुंचे। सभी के बदन पर गेरुआ वस्त्र। १ के हाथ में दंश तो कई लोग कंधे पर बड़े–बड़े झोला टांग रखे थे। निशांत पूरा जोश दिलाता भीषण लड़ाई के मजे ले रहा था तो वहीं आर्यमणि वेंडिगो के चीथरे उड़ा रहा था। संन्यासी और उसके सहायकों के पहुंचते ही माहोल ही पूरा बदल गया हो। वेंडिगो अब कूद तो रहे थे लेकिन आर्यमणि, निशांत और बाकी के जो संन्यासियों की जितनी टोली थी, सबके आगे अदृश्य दीवार सी बन गई थी। वेंडिगो कूदते और अदृश्य किसी दीवार से टकराकर वहीं नीचे गिर जाते।


हैरतंगेज नजारा था जिसे देखकर निशांत चिल्लाने लगा... "आर्य तंत्र–मंत्र और तिलिस्म करने वाले कुछ लोग हमे मिल गए। कहां थे आप लोग... बचपन में चर्चा किया था, आज जाकर मिले हो"…निशांत की बात सुनकर आर्यमणि भी विश्राम की स्थिति में आया।


संन्यासी मुस्कुराते हुए.… "कोई बात नही बस एक बार परिचित होने की देर थी, अब तो मिलना–जुलना लगा रहेगा।"


आर्यमणि:– आप लोग जादूगरनी ताड़का (वही जादूगरनी जिसके साथ सुकेश आया है) के चेले हैं।


संन्यासी:– नही हम उनके चेले नही और ना ही तुम्हारे दूसरे अवतार (प्योर अल्फा) की पहचान को हमसे कोई खतरा है। हां लेकिन जल्दी साथ चलो, वरना जिसके लिए हम यहां आए है, वह कहीं भाग ना जाए...


आर्यमणि और निशांत उनके साथ कदम से कदम मिलाते हुए चल दिये। निशांत पूरी जिज्ञासा के साथ... "ये आपने कौन सा मंत्र पढ़ा है जो पीछे से ये मुर्दे (वेंडिगी) हमला तो कर रहे, लेकिन हवा की दीवार से टकरा जा रहे।"


संन्यासी:– यह एक प्रकार का सुरक्षा मंत्र है... छोटा सा मंत्र है, भ्रमित अंगूठी के साथ ये मंत्र तुम पढ़ोगे तो असर भी होगा...


निशांत:– क्या बात कर रहे है? क्या सच में ऐसा होगा..


संन्यासी:– संपूर्ण सुरक्षा–वायु आवाहन.. इसे किसी सजीव को देखकर 6 बार पढ़ो।


निशांत ट्राई मारने चल दिया, इधर आर्यमणि, बड़े ही ध्यान से पूरे माहोल को समझने की कोशिश कर रहा था। संन्यासी आर्यमणि के ओर देखकर मुस्कुराते हुए... "यदि मेरी भावनाओं को तुम पढ़ नही सकते, इसका मतलब यह नहीं की तुम मेरी तुलना उनसे करने लग जाओ, जिनकी भावना तुम पढ़ने में असफल हो"..


आर्यमणि:– मतलब..


संन्यासी:– मतलब जाने दो। मै पिछले कुछ दिनों से तुम्हे देख रहा हूं। तुमसे एक ही बात कहूंगा... तुम सत्य के निकट हो, लेकिन उन चीजों को समझने के लिए तुम्हे पहले अपने आप को थोड़ा वक्त देना होगा। तुमने खुद को बहुत उलझा रखा है... जिस दुनिया को तुम समझने की कोशिश कर रहे हो, उस से पहले थोड़ी अपनी दुनिया भी समझ लो..


आर्यमणि:– आप तो उलझाने लगे..


संन्यासी:– माफ करना.. मैं तुम्हे और उलझाना नही चाहता था। मेरे कहने का अर्थ है कि जैसा तुम नागपुर में कुछ ऐसे लोगों से मिले हो जिनकी भावना तुम नही पढ़ सकते। उन्ही के विषय में तुम्हे जानकारी जुटानि है.. मैं गलत तो नहीं..


आर्यमणि:– हां बिलकुल सही कह रहे...


संन्यासी:– तुम कितने भी उत्सुक क्यों न हो, उनके विषय में मैं कोई जवाब नही दूंगा। मैं बस रास्ता बता रहा हूं ध्यान से सुनो... जिस सवाल का जवाब तुम यहां आने के बाद ढूंढ रहे, उसके लिए तुम्हे इतनी जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए... बस जल्दी जानने की जिज्ञासा को थोड़ा दरकिनार कर दो, हर सवाल का जवाब मिल जायेगा। कुछ इतिहास को अपने हिसाब से बनाया गया था और मुझे खुशी है कि तुम हर इतिहास पर आंख मूंदकर भरोसा नही करते...


"साधु जी, साधु जी, मैने तो एक वेंडिगो को ही गोला में पैक करके हवा में उड़ा दिया... क्या मैने गलत मंत्र पढ़ा"… निशांत दौड़ता, भागता उत्सुकता के साथ पहुंचा और अपनी बात कहने लगा..


संन्यासी:– नही मंत्र तो सही पढ़ा लेकिन तुमने एक नरभक्षी को सुरक्षा चक्र में बांधकर छोड़ दिया। चूंकि वह छलांग लगा रहा था इसलिए हवा में उड़ा। अब जरा सोचो की वह इंसानों की बस्ती में पहुंच गया फिर क्या होगा...


निशांत:– हे भगवान !! क्या होगा अब.. मेरे वजह से निर्दोष लोग मारे जायेंगे...


सन्यासी मुस्कुराते हुए.… चिंता मत करो हम उन्हे देख लेंगे... वैसे क्या तुम्हे भी मंत्र और उनके प्रयोग में रुचि है...


निशांत:– सीखा दो सर १०–१२ मंत्र अभी सीखा दो।


संन्यासी, मुस्कुराते हुए.… "अंगूठी के बिना तुम मंत्र से कोई लाभ नहीं ले सकते।"..


निशांत:– हां लेकिन ये अंगूठी मुझे लेगा कौन... रहेगा तो मेरे पास ही...


निशांत की इस बात पर सन्यासी मुस्कुराते हुए अपनी मुट्ठी खोले... "क्या इसी अंगूठी के विषय में तुम कह रहे थे।"


निशांत:– ओय ढोंगी साधु, तुम यहां हमारे अंगूठी के लिए आये हो...


संन्यासी:– तुम्हे पारीयान की पांडुलिपि में कहीं भी कैलाश मठ नही मिला था क्या? खैर जाने दो। तुम ये अंगूठी अपने पास एक शर्त पर रख सकते हो..


निशांत:– कौन सी..


संन्यासी:– हमारे खोजी दल का नेतृत्व करो। कुछ साल तप और कठिन मेहनत के बाद एक बार तुमने योग्यता सिद्ध कर दी, फिर बिना इस अंगूठी के भी मंत्र का प्रयोग कर सकते हो। और अंगूठी को तुम्हारी उंगली से हमारे मठाधीश आचार्य जी भी नही निकाल पायेंगे...


निशांत मायूस होते... "फिर मुझे बहुत सारे रोक–टोक झेलने होंगे। अपनी दुनिया छोड़कर आप लोगों की तरह रहना होगा। बहुत सारे प्रतिबंध तो आप लोग लगा देंगे। फिर मुझे पहचान छिपाकर रहना होगा।"


संन्यासी:– इतनी सारी बातें नही होती है। पहचान हम छिपाते नही, बल्कि हम सबके सामने रहे तो हाल वैसा ही होना है... अपना दरवाजा गंदा हो तो भी उसे साफ करने के लिए नगर–निगम के कर्मचारी का इंतजार करते हैं। हां कुछ प्रतिबंध होते है, लेकिन वो तो हर जगह होते है। क्या तुम जिस कॉलेज में हो उस कॉलेज की अपनी कानून व्यवस्था नहीं। क्या जिले की कानून व्यवस्था नहीं या फिर राज्य या देश की। खैर मैं तुम्हे अपने साथ आने के लिए प्रेरित नही कर रहा। बस तुम्हारे सवालों का जवाब दे रहा। बेशक यदि मेरी तरह संन्यासी बनना है फिर संसार त्याग कर हमारे साथ आ जाओ, वरना यदि तुम्हे पारीयान की तरह खोजी बनना है, फिर तुम्हारी जरूरी शिक्षा तुम्हारे कमरे में हो जायेगी...


निशांत पूरे उत्साह से... "क्या यह सच है?"..


संन्यासी:– हां सच है... अब तैयार हो जाओ हम पहुंच गये...


बात करते हुए सभी लगभग २ किलोमीटर आगे चले आये थे।संन्यासी एक बड़े से मांद के आगे खड़ा था। मानो पत्थर का 50 फिट का दरवाजा खड़ा हो। संन्यासी उसी दरवाजे के आगे खड़े होते.… "अंदर तुम्हारे खोज की मंजिल है आर्यमणि। बाकी अंदर जाने से पहले मैं बता दूं कि जिस किताब के उल्लेख की वजह से तुमने रीछ स्त्री को जाना, उसमे केवल कैद करने के स्थान को छोड़ दिया जाए तो बाकी सब झूठ लिखा था। उस किताब को छापा ही गया था भरमाने के लिये।

आर्यमणि:– मेरे बहुत से सवाल है...


निशांत:– इस दरवाजे के पार बवाल है, पहले उसे देख ले... एक्शन टाइम पर सवाल जवाब नही करते...


निशांत की बात सुनकर सभी हंसते हुए उस मांद के अंदर घुस गये। अंदर पूरा हैरतंगेज नजारा था। मांद की दरवाजा ही केवल पत्थर का बना था, बाकी उस पार तो खुला बर्फीला मैदान था। चारो ओर बर्फ ही बर्फ नजर आ रहा था। एक मकबरा के दोनो ओर लोग थे। एक ओर सिद्ध पुरुष और संन्यासियों के साथ सहायक थे। तो दूसरे ओर साए की तरह लहराती रीछ स्त्री जिसके पाऊं जमीन से 5 फिट ऊपर होंगे। उसके साथ कई सारे विकृत सिद्ध पुरुष काला वस्त्र पहने थे। और उन सबके पीछे जहां तक नजर जाय, केवल वेंडिगो ही वेंडिगो... ऐसा लग रहा था कब्र का बॉर्डर हो और दोनो ओर से लोग युद्ध के लिए तैयार...


रीछ स्त्री महाजनिका के भी दर्शन हो गए... स्त्री की वह भव्य स्वरूप थी, जिसकी शक्ल लगभग भालू जैसी थी। शरीर का आकार भी लगभग भालू जितना ही लंबा चौड़ा और वह हवा में लहरा रही थी। दोनो ओर के शांति को रीछ स्त्री महाजनिका तोड़ती... "साधु हमारे कार्य में विघ्न न डालो। वरना मेरे प्रकोप का सामना करना पड़ेगा..."


साधु ओमकार नारायण:– हमारे संन्यासी और सहायकों को पिछले 8 दिन से चकमा दे रही थी और आज तुमने द्वार (portal) भी खोला तो जादूगरनी (ऐडियाना) के क्षेत्र में। बचकाना सी चाल..


तांत्रिक उध्यात (वह तांत्रिक जिसने रीछ स्त्री को छुड़ाया)… सुनो ओमकार हम कोई युद्ध नही चाहते। एक बार देवी महाजानिका की शक्ति पुर्नस्थापित हो जाए फिर हम दूसरी दुनिया में चले जायेंगे... मत भूलो की अभी सिर्फ हमने जादूगरनी (ऐडियाना) की आत्मा को बंधा है, न तो उसको इच्छा से तोड़ा है और न ही उसकी आत्मा को मुक्त किया है..


ओमकार नारायण:– क्या इस बात से मुझे डरना चाहिए? या फिर तुम्हारी महत्वकांछा ने एक घोर विकृत अति शक्तिशाली जीव को उसके नींद से जगा दिया, इसलिए तुम्हे मृत्यु दण्ड दूं।


तांत्रिक उध्यात:– देवी तुम्हे जीव दिख रही। मुझे मृत्यु दण्ड दोगे... तो फिर देकर दिखाओ मृत्यु दण्ड..


अपनी बात समाप्त करने के साथ ही बिजली गरजे, बर्फीला तूफान सा उठा और उस तूफान के बीच आसमान से ऊंची ऐडियाना की आत्मा दिखना शुरू हो गयि। बर्फीले तूफान के बीच से कभी अग्नि तो कभी बिलजी किसी अस्त्र की तरह प्राणघाती हमला करने लगे। उसी तूफान के बीच चारो ओर से काले धुएं उठने लगे। उन काले उठते धुएं और बर्फीले तूफान के बीच से अनगिनत वेंडीगो उछलकर हमला करने लगे।
Mast behtarin update lakin ye break time galat jagah per lena sahi nhi hai
 

Paraoh11

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लड़ाई से पहले निशांत को कम से कम १-२ मंत्र तो और सिखा देते !!😁

अच्छा हुआ पालक नहीं आयी , कर कुछ पाती नहीं उल्टा आर्य और निशांत को उसकी भी सुरक्षा करनी पड़ती!!
रूही और अलबेली भी इसीलिए भेज दी।

फ़ाइट ज़ोरदार होने वाली है पक्का!!

अब वेट नहीं हो रहा अगले अप्डेट का...😯
 

Itachi_Uchiha

अंतःअस्ति प्रारंभः
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भाग:–41





निशांत ने भी उसे देखा और देखकर अपने मुंह पर हाथ रखते.… "वेंडिगो सुपरनैचुरल"

आर्यमणि:– इंसानी मांस के दीवाने, वेंडीगो.…

निशांत:– मुझे लगा किसी वेयरवोल्फ का अति–कुपोषित रूप है। ओओ आर्य, लगता है इनके इरादे कुछ ठीक नही...


दोनो बात कर ही रहे थे, इतने ने दोनों को कई सारे वेंडिगो ने घेर लिया।…. "निशांत, इनके पतले आकार पर मत जाना, ये एक अल्फा से ज्यादा खतरनाक होते है।"


निशांत:– हां मैंने भी पढ़ा था। मुझे तो ये बता की इसका दिल कैसे बाहर निकलेंगे...


(वेंडिगो को मारने की एकमात्र विधि, उसका दिल निकालकर नींबू की तरह निचोड़ देना)


आर्यमणि, लंबा छलांग लगाते एक वेंडिगो को पकड़कर उसकी छाती चीड़ दिया। छाती चिड़कर उसके दिल को अपने हाथ से मसलते… "फिलहाल तो इनका दिल ऐसे ही निकाल सकते हैं।"…. निशांत वह नजार देखकर... "तू दिल निकलता रह छोड़े, मैं आराम से ट्रैप वायर लगता हूं।"…. "पागल है क्या, तू मुझे तो मारना नही चाहता। कहीं तेज दौड़ते मैं फंस गया तो"…. "फिर इतने ट्रैप वायर का इस्तमाल कहां इनके पिछवाड़े में डालने के लिए करूं"….. "तू कुछ मत कर। यहां तो आमने–सामने की लड़ाई है। ट्रैप वायर आगे कहीं न कहीं काम आ ही जायेगी"…


विंडिगो की गतिसीलता, उसकी चूसती–फुर्ती और उसके तेज–धारदार क्ला, आर्यमणि को काफी परेशान कर रहे थे। जब तक वह 1 वेंडिगो की छाती चिड़ता उसके पीठ पर १००० तलवार चलने जितने क्ला के वार हो चुका होते। ऐडियाना का सेवक मानो पागलों की तरह हमला कर रहा था।


वैसे इसी क्षेत्र में अब से थोड़ी देर पहले योगी और संन्यासियों की पूरी एक टोली पहुंची थी। 2 सिद्ध पुरुष, 5 सन्यासी और 30 सहायकों के साथ ये सभी पहुंचे थे। ये सभी अपनी मंजिल के ओर बढ़ रहे थे। उस टोली के मुखिया ओमकार नारायण कुछ महसूस करते... "इस शापित जगह का दोषी पारीयान पहुंच चुका है। उसे सुरक्षित लेकर पहुुंचो। सिद्ध पुरुष के आदेश पर 1 सन्यासी अपने 20 सहायकों के साथ इस जगह के दोषी को लेने चल दिये और बाकी सभी आगे बढ़ गये।


इधर आर्यमणि लागातार छाती चिड़कर, वेंडिगों के हृदय को मसलकर मार रहा था। किंतु एक तो उनकी तादात और ऊपर से उनके तेज हमले। आर्यमणि धीमा पर रहा था और वेंडिगो अब भागकर हमला करने के बदले आर्यमणि के शरीर पर कूदकर जोंक की तरह चिपक जाते, और अपने क्ला से उसके शरीर पर हमला कर रहे थे। आर्यमणि किसी को पकड़े तो न छाती चीड़ दे। अब हालात यह था कि १००० वेंडिगो एक साथ उसके शरीर पर कूद जाते। आर्यमणि अपने शरीर से जब तक उन्हे जमीन पर पटकता, तब तक एक साथ २००–३०० क्ला उसके शरीर पर चल चुके होते।


देखते ही देखते वेंडिगो ने आर्यमणि को पूरा ढक ही दिया। आर्यमणि तो दिखना भी बंद हो गया था, बस ऊपर से वेंडिगो के ऊपर वेंडिगो ही नजर आ रहे थे। तभी उस जगह जैसे विस्फोट हुआ हो। ६ फिट का आर्यमणि 9 फिट का बन चुका था। अपने बदन को इस कदर झटका की शरीर के ऊपर जोंक जैसे चिपके वेंडिगो विस्फोट की तरह चारो ओर उड़ चुके थे। लागातार हमले और बहते खून से आर्यमणि भले ही धीमा हो गया था, लेकिन यह मात्र एक मानसिक धारणाएं थी, वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी का ख्याल होता तो आर्यमणि खुद को धीमा मेहसूस नही करता।


फिलहाल तो आर्यमणि अपने भव्य रूप में खड़ा था। हैवी मेटल वाला उजला चमकता शरीर और गहरी लाल आंखे। चौड़ी भुजाएं, चौड़े पंजे और क्ला तो स्टेनलेस स्टील की भांति चमक रहे थे। अब परवाह नहीं की शरीर पर कितने वेंडिगो कूद रहे। बस सामने से उड़ता हुआ वेंडिगो निशाने पर होता। बाएं हाथ के निशाने पर जो वेंडिगो आता, उसका सामना लोहे के मुक्के से हो जाता। फिर तो देखने में ऐसा लगता मानो हड्डियों के अंदर जमे मांस और खून (दरसल हड्डियों के ढांचों के अंदर वाइटल ऑर्गन के विषय में लिखा गया है) पर किसी ने वजनी हथौड़ा मार दिया। ठीक वेंडिगो के सीने पर भी ऐसा ही हथौड़ा चल रहा था। मुक्का वेंडिगो के छाती फाड़कर इस पार से घुसकर उस पार निकल जाता और विस्फोट के साथ हड्ढियों और दिल के चिथरे हवा में होते।


वहीं दाएं हाथ के निशाने पर जो वेंडिगो कूदता उसका सामने चौड़े पंजे और चमकते धारदार क्ला से होता। बिजली की गति से आर्यमणि अपना दायां पंजा चलता। पूरा क्ला सीने की हड्डी को तोड़ते हुए सीधा सीने में घुसता। और मुट्ठी में उसका दिल दबोचकर बाहर खींच लेता। और इस बेदर्दी से दिल को मुट्ठी को दबोचता कि जब पंजे खुलते तो केवल रस ही हाथ में रहता।


देखने वाला यह नजारा था। आंखों के आगे जैसे कल्पनाओं से पड़े दृश्य था। जैसा पुराने जमाने की लड़ाई के किसी दृश्य में, कई तीरंदाज एक साथ जब तीर छोड़ते थे, तब जैसे आकाश तीर से ढक जाता था, ठीक उसी प्रकार वेंडिगो इतनी तादात में कूद रहे थे की पूरी जगह ही हड्डी के ढांचों से बने, सड़े हुए इस सुपरनैचुरल वेंडिगो से ढक जाती। और उसके अगले ही पल आर्यमणि इस तेजी से अपने बदन को झटकता की वापस से आकाश ढक जाता। इन प्रक्रिया के बीच कुछ वेंडिगो, आर्यमणि के दोनो हाथ का स्वाद भी चख लेते।


अब ऐसा तो था नही की वहां सिर्फ आर्यमणि था। उसके साथ निशांत भी आया था। हमला निशांत पर भी होता लेकिन उसके पास भ्रमित अंगूठी थी, और एक भी वेंडिगो उसे छू नही पा रहा था। निशांत तो बस पूरे एक्शन का मजा लेते अपने मोबाइल पर ढोल–नगाड़ा वाला म्यूजिक बजाकर मजा लूट रहा था। साथ ही साथ निशांत अपनी गला फाड़ आवाज से आर्यमणि का जोश बढ़ाते… "महाकाल का रूप लिए रह आर्य... फाड़–फाड़.. फाड़... साले को... चिथरे कर दे... परखच्चे उड़ा दे... रौद्र रूप धारण कर ले... मार आर्य मार"…


निशांत की जोश भरी हुंकार... आर्यमणि की भीषण और हृदय में कंपन करने वाली दहाड़ और चुंबकीय भीड़ को बिखेड़ कर बिजली के रफ्तार से चलने वाले हाथ... काफी रोमांचक दृश्य था। सड़े हुए लाशों के ढेर पहाड़ बन रहे थे। दाएं पंजे ने न जाने कितने जीवित वेंडिगो के दिल खींचकर निकाल लिए थे। वहीं बाएं हाथ का लौह मुक्का न जाने कितने वेंडिगो के छाती के पार कर गये थे। समा पूरा बंधा था। निशांत लगातार हुंकार पर हुंकार भरते, जोश दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था।


तभी वहां कुछ लोग पहुंचे। सभी के बदन पर गेरुआ वस्त्र। १ के हाथ में दंश तो कई लोग कंधे पर बड़े–बड़े झोला टांग रखे थे। निशांत पूरा जोश दिलाता भीषण लड़ाई के मजे ले रहा था तो वहीं आर्यमणि वेंडिगो के चीथरे उड़ा रहा था। संन्यासी और उसके सहायकों के पहुंचते ही माहोल ही पूरा बदल गया हो। वेंडिगो अब कूद तो रहे थे लेकिन आर्यमणि, निशांत और बाकी के जो संन्यासियों की जितनी टोली थी, सबके आगे अदृश्य दीवार सी बन गई थी। वेंडिगो कूदते और अदृश्य किसी दीवार से टकराकर वहीं नीचे गिर जाते।


हैरतंगेज नजारा था जिसे देखकर निशांत चिल्लाने लगा... "आर्य तंत्र–मंत्र और तिलिस्म करने वाले कुछ लोग हमे मिल गए। कहां थे आप लोग... बचपन में चर्चा किया था, आज जाकर मिले हो"…निशांत की बात सुनकर आर्यमणि भी विश्राम की स्थिति में आया।


संन्यासी मुस्कुराते हुए.… "कोई बात नही बस एक बार परिचित होने की देर थी, अब तो मिलना–जुलना लगा रहेगा।"


आर्यमणि:– आप लोग जादूगरनी ताड़का (वही जादूगरनी जिसके साथ सुकेश आया है) के चेले हैं।


संन्यासी:– नही हम उनके चेले नही और ना ही तुम्हारे दूसरे अवतार (प्योर अल्फा) की पहचान को हमसे कोई खतरा है। हां लेकिन जल्दी साथ चलो, वरना जिसके लिए हम यहां आए है, वह कहीं भाग ना जाए...


आर्यमणि और निशांत उनके साथ कदम से कदम मिलाते हुए चल दिये। निशांत पूरी जिज्ञासा के साथ... "ये आपने कौन सा मंत्र पढ़ा है जो पीछे से ये मुर्दे (वेंडिगी) हमला तो कर रहे, लेकिन हवा की दीवार से टकरा जा रहे।"


संन्यासी:– यह एक प्रकार का सुरक्षा मंत्र है... छोटा सा मंत्र है, भ्रमित अंगूठी के साथ ये मंत्र तुम पढ़ोगे तो असर भी होगा...


निशांत:– क्या बात कर रहे है? क्या सच में ऐसा होगा..


संन्यासी:– संपूर्ण सुरक्षा–वायु आवाहन.. इसे किसी सजीव को देखकर 6 बार पढ़ो।


निशांत ट्राई मारने चल दिया, इधर आर्यमणि, बड़े ही ध्यान से पूरे माहोल को समझने की कोशिश कर रहा था। संन्यासी आर्यमणि के ओर देखकर मुस्कुराते हुए... "यदि मेरी भावनाओं को तुम पढ़ नही सकते, इसका मतलब यह नहीं की तुम मेरी तुलना उनसे करने लग जाओ, जिनकी भावना तुम पढ़ने में असफल हो"..


आर्यमणि:– मतलब..


संन्यासी:– मतलब जाने दो। मै पिछले कुछ दिनों से तुम्हे देख रहा हूं। तुमसे एक ही बात कहूंगा... तुम सत्य के निकट हो, लेकिन उन चीजों को समझने के लिए तुम्हे पहले अपने आप को थोड़ा वक्त देना होगा। तुमने खुद को बहुत उलझा रखा है... जिस दुनिया को तुम समझने की कोशिश कर रहे हो, उस से पहले थोड़ी अपनी दुनिया भी समझ लो..


आर्यमणि:– आप तो उलझाने लगे..


संन्यासी:– माफ करना.. मैं तुम्हे और उलझाना नही चाहता था। मेरे कहने का अर्थ है कि जैसा तुम नागपुर में कुछ ऐसे लोगों से मिले हो जिनकी भावना तुम नही पढ़ सकते। उन्ही के विषय में तुम्हे जानकारी जुटानि है.. मैं गलत तो नहीं..


आर्यमणि:– हां बिलकुल सही कह रहे...


संन्यासी:– तुम कितने भी उत्सुक क्यों न हो, उनके विषय में मैं कोई जवाब नही दूंगा। मैं बस रास्ता बता रहा हूं ध्यान से सुनो... जिस सवाल का जवाब तुम यहां आने के बाद ढूंढ रहे, उसके लिए तुम्हे इतनी जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए... बस जल्दी जानने की जिज्ञासा को थोड़ा दरकिनार कर दो, हर सवाल का जवाब मिल जायेगा। कुछ इतिहास को अपने हिसाब से बनाया गया था और मुझे खुशी है कि तुम हर इतिहास पर आंख मूंदकर भरोसा नही करते...


"साधु जी, साधु जी, मैने तो एक वेंडिगो को ही गोला में पैक करके हवा में उड़ा दिया... क्या मैने गलत मंत्र पढ़ा"… निशांत दौड़ता, भागता उत्सुकता के साथ पहुंचा और अपनी बात कहने लगा..


संन्यासी:– नही मंत्र तो सही पढ़ा लेकिन तुमने एक नरभक्षी को सुरक्षा चक्र में बांधकर छोड़ दिया। चूंकि वह छलांग लगा रहा था इसलिए हवा में उड़ा। अब जरा सोचो की वह इंसानों की बस्ती में पहुंच गया फिर क्या होगा...


निशांत:– हे भगवान !! क्या होगा अब.. मेरे वजह से निर्दोष लोग मारे जायेंगे...


सन्यासी मुस्कुराते हुए.… चिंता मत करो हम उन्हे देख लेंगे... वैसे क्या तुम्हे भी मंत्र और उनके प्रयोग में रुचि है...


निशांत:– सीखा दो सर १०–१२ मंत्र अभी सीखा दो।


संन्यासी, मुस्कुराते हुए.… "अंगूठी के बिना तुम मंत्र से कोई लाभ नहीं ले सकते।"..


निशांत:– हां लेकिन ये अंगूठी मुझे लेगा कौन... रहेगा तो मेरे पास ही...


निशांत की इस बात पर सन्यासी मुस्कुराते हुए अपनी मुट्ठी खोले... "क्या इसी अंगूठी के विषय में तुम कह रहे थे।"


निशांत:– ओय ढोंगी साधु, तुम यहां हमारे अंगूठी के लिए आये हो...


संन्यासी:– तुम्हे पारीयान की पांडुलिपि में कहीं भी कैलाश मठ नही मिला था क्या? खैर जाने दो। तुम ये अंगूठी अपने पास एक शर्त पर रख सकते हो..


निशांत:– कौन सी..


संन्यासी:– हमारे खोजी दल का नेतृत्व करो। कुछ साल तप और कठिन मेहनत के बाद एक बार तुमने योग्यता सिद्ध कर दी, फिर बिना इस अंगूठी के भी मंत्र का प्रयोग कर सकते हो। और अंगूठी को तुम्हारी उंगली से हमारे मठाधीश आचार्य जी भी नही निकाल पायेंगे...


निशांत मायूस होते... "फिर मुझे बहुत सारे रोक–टोक झेलने होंगे। अपनी दुनिया छोड़कर आप लोगों की तरह रहना होगा। बहुत सारे प्रतिबंध तो आप लोग लगा देंगे। फिर मुझे पहचान छिपाकर रहना होगा।"


संन्यासी:– इतनी सारी बातें नही होती है। पहचान हम छिपाते नही, बल्कि हम सबके सामने रहे तो हाल वैसा ही होना है... अपना दरवाजा गंदा हो तो भी उसे साफ करने के लिए नगर–निगम के कर्मचारी का इंतजार करते हैं। हां कुछ प्रतिबंध होते है, लेकिन वो तो हर जगह होते है। क्या तुम जिस कॉलेज में हो उस कॉलेज की अपनी कानून व्यवस्था नहीं। क्या जिले की कानून व्यवस्था नहीं या फिर राज्य या देश की। खैर मैं तुम्हे अपने साथ आने के लिए प्रेरित नही कर रहा। बस तुम्हारे सवालों का जवाब दे रहा। बेशक यदि मेरी तरह संन्यासी बनना है फिर संसार त्याग कर हमारे साथ आ जाओ, वरना यदि तुम्हे पारीयान की तरह खोजी बनना है, फिर तुम्हारी जरूरी शिक्षा तुम्हारे कमरे में हो जायेगी...


निशांत पूरे उत्साह से... "क्या यह सच है?"..


संन्यासी:– हां सच है... अब तैयार हो जाओ हम पहुंच गये...


बात करते हुए सभी लगभग २ किलोमीटर आगे चले आये थे।संन्यासी एक बड़े से मांद के आगे खड़ा था। मानो पत्थर का 50 फिट का दरवाजा खड़ा हो। संन्यासी उसी दरवाजे के आगे खड़े होते.… "अंदर तुम्हारे खोज की मंजिल है आर्यमणि। बाकी अंदर जाने से पहले मैं बता दूं कि जिस किताब के उल्लेख की वजह से तुमने रीछ स्त्री को जाना, उसमे केवल कैद करने के स्थान को छोड़ दिया जाए तो बाकी सब झूठ लिखा था। उस किताब को छापा ही गया था भरमाने के लिये।

आर्यमणि:– मेरे बहुत से सवाल है...


निशांत:– इस दरवाजे के पार बवाल है, पहले उसे देख ले... एक्शन टाइम पर सवाल जवाब नही करते...


निशांत की बात सुनकर सभी हंसते हुए उस मांद के अंदर घुस गये। अंदर पूरा हैरतंगेज नजारा था। मांद की दरवाजा ही केवल पत्थर का बना था, बाकी उस पार तो खुला बर्फीला मैदान था। चारो ओर बर्फ ही बर्फ नजर आ रहा था। एक मकबरा के दोनो ओर लोग थे। एक ओर सिद्ध पुरुष और संन्यासियों के साथ सहायक थे। तो दूसरे ओर साए की तरह लहराती रीछ स्त्री जिसके पाऊं जमीन से 5 फिट ऊपर होंगे। उसके साथ कई सारे विकृत सिद्ध पुरुष काला वस्त्र पहने थे। और उन सबके पीछे जहां तक नजर जाय, केवल वेंडिगो ही वेंडिगो... ऐसा लग रहा था कब्र का बॉर्डर हो और दोनो ओर से लोग युद्ध के लिए तैयार...


रीछ स्त्री महाजनिका के भी दर्शन हो गए... स्त्री की वह भव्य स्वरूप थी, जिसकी शक्ल लगभग भालू जैसी थी। शरीर का आकार भी लगभग भालू जितना ही लंबा चौड़ा और वह हवा में लहरा रही थी। दोनो ओर के शांति को रीछ स्त्री महाजनिका तोड़ती... "साधु हमारे कार्य में विघ्न न डालो। वरना मेरे प्रकोप का सामना करना पड़ेगा..."


साधु ओमकार नारायण:– हमारे संन्यासी और सहायकों को पिछले 8 दिन से चकमा दे रही थी और आज तुमने द्वार (portal) भी खोला तो जादूगरनी (ऐडियाना) के क्षेत्र में। बचकाना सी चाल..


तांत्रिक उध्यात (वह तांत्रिक जिसने रीछ स्त्री को छुड़ाया)… सुनो ओमकार हम कोई युद्ध नही चाहते। एक बार देवी महाजानिका की शक्ति पुर्नस्थापित हो जाए फिर हम दूसरी दुनिया में चले जायेंगे... मत भूलो की अभी सिर्फ हमने जादूगरनी (ऐडियाना) की आत्मा को बंधा है, न तो उसको इच्छा से तोड़ा है और न ही उसकी आत्मा को मुक्त किया है..


ओमकार नारायण:– क्या इस बात से मुझे डरना चाहिए? या फिर तुम्हारी महत्वकांछा ने एक घोर विकृत अति शक्तिशाली जीव को उसके नींद से जगा दिया, इसलिए तुम्हे मृत्यु दण्ड दूं।


तांत्रिक उध्यात:– देवी तुम्हे जीव दिख रही। मुझे मृत्यु दण्ड दोगे... तो फिर देकर दिखाओ मृत्यु दण्ड..


अपनी बात समाप्त करने के साथ ही बिजली गरजे, बर्फीला तूफान सा उठा और उस तूफान के बीच आसमान से ऊंची ऐडियाना की आत्मा दिखना शुरू हो गयि। बर्फीले तूफान के बीच से कभी अग्नि तो कभी बिलजी किसी अस्त्र की तरह प्राणघाती हमला करने लगे। उसी तूफान के बीच चारो ओर से काले धुएं उठने लगे। उन काले उठते धुएं और बर्फीले तूफान के बीच से अनगिनत वेंडीगो उछलकर हमला करने लगे।
To yaha is update me aaj kuch raj ka khula ho hi gaya. Jaise ricch stree ko udyant ne aajadi kiya tha. Uske piche iska main moto kya hai. Adiyana ko wapas se jinda karna. Ya uski power kisi tarh se hariyana.
Ye omkar narayan bhi koi top hi lag rahe hai. Jo itne sub logo ke hote hue bhi bilkul dar nahi rahe hai aur akele hi unko kah rahe hai ab tum sub ki life ka antim din aa gaya hai.aur ye kya ye sub apne aary ke bare me sub jante hai. Aur uska Aim uske swal yaha tak ki un swalo ke jawab bhi jante hai. Lakin in logo me hota hi hai jo kabil hai wo kud apni majil dundh lega ye bas rasta bhtakne par thodi madad kar denge aur baki sub kuch kud hi karna hoga. Aur ye dusre wale sadhu ne Aary ko bhi ricch ko marne ka tarika bata diya. Matlab mere hisab se to ricch ko aarya hi marega. Baki aage pata chl hi jayega.
Aur ye Nishant bilkul sahi lagaya hai aapne aary ke sath warna update me wo 2 star alag se nahi lagte jo iske hone se hai. Ye to sadhu ji ke samne kisi chote bacho jaise bate kar raha tha. Jise read keke such me bahut maja aa gaya.
Baki sub to thik hai bhaya lakin ye last me kya bhwal dikha diya adiyana ki aatma wo bhi sky tall.
Ab to agala hi update kuch sukun deskta hai dil ko is wale ne to bp hi increase kar diya.
Overall excellent Update nain11ster bhai.
 

B2.

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भाग:–41





निशांत ने भी उसे देखा और देखकर अपने मुंह पर हाथ रखते.… "वेंडिगो सुपरनैचुरल"

आर्यमणि:– इंसानी मांस के दीवाने, वेंडीगो.…

निशांत:– मुझे लगा किसी वेयरवोल्फ का अति–कुपोषित रूप है। ओओ आर्य, लगता है इनके इरादे कुछ ठीक नही...


दोनो बात कर ही रहे थे, इतने ने दोनों को कई सारे वेंडिगो ने घेर लिया।…. "निशांत, इनके पतले आकार पर मत जाना, ये एक अल्फा से ज्यादा खतरनाक होते है।"


निशांत:– हां मैंने भी पढ़ा था। मुझे तो ये बता की इसका दिल कैसे बाहर निकलेंगे...


(वेंडिगो को मारने की एकमात्र विधि, उसका दिल निकालकर नींबू की तरह निचोड़ देना)


आर्यमणि, लंबा छलांग लगाते एक वेंडिगो को पकड़कर उसकी छाती चीड़ दिया। छाती चिड़कर उसके दिल को अपने हाथ से मसलते… "फिलहाल तो इनका दिल ऐसे ही निकाल सकते हैं।"…. निशांत वह नजार देखकर... "तू दिल निकलता रह छोड़े, मैं आराम से ट्रैप वायर लगता हूं।"…. "पागल है क्या, तू मुझे तो मारना नही चाहता। कहीं तेज दौड़ते मैं फंस गया तो"…. "फिर इतने ट्रैप वायर का इस्तमाल कहां इनके पिछवाड़े में डालने के लिए करूं"….. "तू कुछ मत कर। यहां तो आमने–सामने की लड़ाई है। ट्रैप वायर आगे कहीं न कहीं काम आ ही जायेगी"…


विंडिगो की गतिसीलता, उसकी चूसती–फुर्ती और उसके तेज–धारदार क्ला, आर्यमणि को काफी परेशान कर रहे थे। जब तक वह 1 वेंडिगो की छाती चिड़ता उसके पीठ पर १००० तलवार चलने जितने क्ला के वार हो चुका होते। ऐडियाना का सेवक मानो पागलों की तरह हमला कर रहा था।


वैसे इसी क्षेत्र में अब से थोड़ी देर पहले योगी और संन्यासियों की पूरी एक टोली पहुंची थी। 2 सिद्ध पुरुष, 5 सन्यासी और 30 सहायकों के साथ ये सभी पहुंचे थे। ये सभी अपनी मंजिल के ओर बढ़ रहे थे। उस टोली के मुखिया ओमकार नारायण कुछ महसूस करते... "इस शापित जगह का दोषी पारीयान पहुंच चुका है। उसे सुरक्षित लेकर पहुुंचो। सिद्ध पुरुष के आदेश पर 1 सन्यासी अपने 20 सहायकों के साथ इस जगह के दोषी को लेने चल दिये और बाकी सभी आगे बढ़ गये।


इधर आर्यमणि लागातार छाती चिड़कर, वेंडिगों के हृदय को मसलकर मार रहा था। किंतु एक तो उनकी तादात और ऊपर से उनके तेज हमले। आर्यमणि धीमा पर रहा था और वेंडिगो अब भागकर हमला करने के बदले आर्यमणि के शरीर पर कूदकर जोंक की तरह चिपक जाते, और अपने क्ला से उसके शरीर पर हमला कर रहे थे। आर्यमणि किसी को पकड़े तो न छाती चीड़ दे। अब हालात यह था कि १००० वेंडिगो एक साथ उसके शरीर पर कूद जाते। आर्यमणि अपने शरीर से जब तक उन्हे जमीन पर पटकता, तब तक एक साथ २००–३०० क्ला उसके शरीर पर चल चुके होते।


देखते ही देखते वेंडिगो ने आर्यमणि को पूरा ढक ही दिया। आर्यमणि तो दिखना भी बंद हो गया था, बस ऊपर से वेंडिगो के ऊपर वेंडिगो ही नजर आ रहे थे। तभी उस जगह जैसे विस्फोट हुआ हो। ६ फिट का आर्यमणि 9 फिट का बन चुका था। अपने बदन को इस कदर झटका की शरीर के ऊपर जोंक जैसे चिपके वेंडिगो विस्फोट की तरह चारो ओर उड़ चुके थे। लागातार हमले और बहते खून से आर्यमणि भले ही धीमा हो गया था, लेकिन यह मात्र एक मानसिक धारणाएं थी, वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी का ख्याल होता तो आर्यमणि खुद को धीमा मेहसूस नही करता।


फिलहाल तो आर्यमणि अपने भव्य रूप में खड़ा था। हैवी मेटल वाला उजला चमकता शरीर और गहरी लाल आंखे। चौड़ी भुजाएं, चौड़े पंजे और क्ला तो स्टेनलेस स्टील की भांति चमक रहे थे। अब परवाह नहीं की शरीर पर कितने वेंडिगो कूद रहे। बस सामने से उड़ता हुआ वेंडिगो निशाने पर होता। बाएं हाथ के निशाने पर जो वेंडिगो आता, उसका सामना लोहे के मुक्के से हो जाता। फिर तो देखने में ऐसा लगता मानो हड्डियों के अंदर जमे मांस और खून (दरसल हड्डियों के ढांचों के अंदर वाइटल ऑर्गन के विषय में लिखा गया है) पर किसी ने वजनी हथौड़ा मार दिया। ठीक वेंडिगो के सीने पर भी ऐसा ही हथौड़ा चल रहा था। मुक्का वेंडिगो के छाती फाड़कर इस पार से घुसकर उस पार निकल जाता और विस्फोट के साथ हड्ढियों और दिल के चिथरे हवा में होते।


वहीं दाएं हाथ के निशाने पर जो वेंडिगो कूदता उसका सामने चौड़े पंजे और चमकते धारदार क्ला से होता। बिजली की गति से आर्यमणि अपना दायां पंजा चलता। पूरा क्ला सीने की हड्डी को तोड़ते हुए सीधा सीने में घुसता। और मुट्ठी में उसका दिल दबोचकर बाहर खींच लेता। और इस बेदर्दी से दिल को मुट्ठी को दबोचता कि जब पंजे खुलते तो केवल रस ही हाथ में रहता।


देखने वाला यह नजारा था। आंखों के आगे जैसे कल्पनाओं से पड़े दृश्य था। जैसा पुराने जमाने की लड़ाई के किसी दृश्य में, कई तीरंदाज एक साथ जब तीर छोड़ते थे, तब जैसे आकाश तीर से ढक जाता था, ठीक उसी प्रकार वेंडिगो इतनी तादात में कूद रहे थे की पूरी जगह ही हड्डी के ढांचों से बने, सड़े हुए इस सुपरनैचुरल वेंडिगो से ढक जाती। और उसके अगले ही पल आर्यमणि इस तेजी से अपने बदन को झटकता की वापस से आकाश ढक जाता। इन प्रक्रिया के बीच कुछ वेंडिगो, आर्यमणि के दोनो हाथ का स्वाद भी चख लेते।


अब ऐसा तो था नही की वहां सिर्फ आर्यमणि था। उसके साथ निशांत भी आया था। हमला निशांत पर भी होता लेकिन उसके पास भ्रमित अंगूठी थी, और एक भी वेंडिगो उसे छू नही पा रहा था। निशांत तो बस पूरे एक्शन का मजा लेते अपने मोबाइल पर ढोल–नगाड़ा वाला म्यूजिक बजाकर मजा लूट रहा था। साथ ही साथ निशांत अपनी गला फाड़ आवाज से आर्यमणि का जोश बढ़ाते… "महाकाल का रूप लिए रह आर्य... फाड़–फाड़.. फाड़... साले को... चिथरे कर दे... परखच्चे उड़ा दे... रौद्र रूप धारण कर ले... मार आर्य मार"…


निशांत की जोश भरी हुंकार... आर्यमणि की भीषण और हृदय में कंपन करने वाली दहाड़ और चुंबकीय भीड़ को बिखेड़ कर बिजली के रफ्तार से चलने वाले हाथ... काफी रोमांचक दृश्य था। सड़े हुए लाशों के ढेर पहाड़ बन रहे थे। दाएं पंजे ने न जाने कितने जीवित वेंडिगो के दिल खींचकर निकाल लिए थे। वहीं बाएं हाथ का लौह मुक्का न जाने कितने वेंडिगो के छाती के पार कर गये थे। समा पूरा बंधा था। निशांत लगातार हुंकार पर हुंकार भरते, जोश दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था।


तभी वहां कुछ लोग पहुंचे। सभी के बदन पर गेरुआ वस्त्र। १ के हाथ में दंश तो कई लोग कंधे पर बड़े–बड़े झोला टांग रखे थे। निशांत पूरा जोश दिलाता भीषण लड़ाई के मजे ले रहा था तो वहीं आर्यमणि वेंडिगो के चीथरे उड़ा रहा था। संन्यासी और उसके सहायकों के पहुंचते ही माहोल ही पूरा बदल गया हो। वेंडिगो अब कूद तो रहे थे लेकिन आर्यमणि, निशांत और बाकी के जो संन्यासियों की जितनी टोली थी, सबके आगे अदृश्य दीवार सी बन गई थी। वेंडिगो कूदते और अदृश्य किसी दीवार से टकराकर वहीं नीचे गिर जाते।


हैरतंगेज नजारा था जिसे देखकर निशांत चिल्लाने लगा... "आर्य तंत्र–मंत्र और तिलिस्म करने वाले कुछ लोग हमे मिल गए। कहां थे आप लोग... बचपन में चर्चा किया था, आज जाकर मिले हो"…निशांत की बात सुनकर आर्यमणि भी विश्राम की स्थिति में आया।


संन्यासी मुस्कुराते हुए.… "कोई बात नही बस एक बार परिचित होने की देर थी, अब तो मिलना–जुलना लगा रहेगा।"


आर्यमणि:– आप लोग जादूगरनी ताड़का (वही जादूगरनी जिसके साथ सुकेश आया है) के चेले हैं।


संन्यासी:– नही हम उनके चेले नही और ना ही तुम्हारे दूसरे अवतार (प्योर अल्फा) की पहचान को हमसे कोई खतरा है। हां लेकिन जल्दी साथ चलो, वरना जिसके लिए हम यहां आए है, वह कहीं भाग ना जाए...


आर्यमणि और निशांत उनके साथ कदम से कदम मिलाते हुए चल दिये। निशांत पूरी जिज्ञासा के साथ... "ये आपने कौन सा मंत्र पढ़ा है जो पीछे से ये मुर्दे (वेंडिगी) हमला तो कर रहे, लेकिन हवा की दीवार से टकरा जा रहे।"


संन्यासी:– यह एक प्रकार का सुरक्षा मंत्र है... छोटा सा मंत्र है, भ्रमित अंगूठी के साथ ये मंत्र तुम पढ़ोगे तो असर भी होगा...


निशांत:– क्या बात कर रहे है? क्या सच में ऐसा होगा..


संन्यासी:– संपूर्ण सुरक्षा–वायु आवाहन.. इसे किसी सजीव को देखकर 6 बार पढ़ो।


निशांत ट्राई मारने चल दिया, इधर आर्यमणि, बड़े ही ध्यान से पूरे माहोल को समझने की कोशिश कर रहा था। संन्यासी आर्यमणि के ओर देखकर मुस्कुराते हुए... "यदि मेरी भावनाओं को तुम पढ़ नही सकते, इसका मतलब यह नहीं की तुम मेरी तुलना उनसे करने लग जाओ, जिनकी भावना तुम पढ़ने में असफल हो"..


आर्यमणि:– मतलब..


संन्यासी:– मतलब जाने दो। मै पिछले कुछ दिनों से तुम्हे देख रहा हूं। तुमसे एक ही बात कहूंगा... तुम सत्य के निकट हो, लेकिन उन चीजों को समझने के लिए तुम्हे पहले अपने आप को थोड़ा वक्त देना होगा। तुमने खुद को बहुत उलझा रखा है... जिस दुनिया को तुम समझने की कोशिश कर रहे हो, उस से पहले थोड़ी अपनी दुनिया भी समझ लो..


आर्यमणि:– आप तो उलझाने लगे..


संन्यासी:– माफ करना.. मैं तुम्हे और उलझाना नही चाहता था। मेरे कहने का अर्थ है कि जैसा तुम नागपुर में कुछ ऐसे लोगों से मिले हो जिनकी भावना तुम नही पढ़ सकते। उन्ही के विषय में तुम्हे जानकारी जुटानि है.. मैं गलत तो नहीं..


आर्यमणि:– हां बिलकुल सही कह रहे...


संन्यासी:– तुम कितने भी उत्सुक क्यों न हो, उनके विषय में मैं कोई जवाब नही दूंगा। मैं बस रास्ता बता रहा हूं ध्यान से सुनो... जिस सवाल का जवाब तुम यहां आने के बाद ढूंढ रहे, उसके लिए तुम्हे इतनी जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए... बस जल्दी जानने की जिज्ञासा को थोड़ा दरकिनार कर दो, हर सवाल का जवाब मिल जायेगा। कुछ इतिहास को अपने हिसाब से बनाया गया था और मुझे खुशी है कि तुम हर इतिहास पर आंख मूंदकर भरोसा नही करते...


"साधु जी, साधु जी, मैने तो एक वेंडिगो को ही गोला में पैक करके हवा में उड़ा दिया... क्या मैने गलत मंत्र पढ़ा"… निशांत दौड़ता, भागता उत्सुकता के साथ पहुंचा और अपनी बात कहने लगा..


संन्यासी:– नही मंत्र तो सही पढ़ा लेकिन तुमने एक नरभक्षी को सुरक्षा चक्र में बांधकर छोड़ दिया। चूंकि वह छलांग लगा रहा था इसलिए हवा में उड़ा। अब जरा सोचो की वह इंसानों की बस्ती में पहुंच गया फिर क्या होगा...


निशांत:– हे भगवान !! क्या होगा अब.. मेरे वजह से निर्दोष लोग मारे जायेंगे...


सन्यासी मुस्कुराते हुए.… चिंता मत करो हम उन्हे देख लेंगे... वैसे क्या तुम्हे भी मंत्र और उनके प्रयोग में रुचि है...


निशांत:– सीखा दो सर १०–१२ मंत्र अभी सीखा दो।


संन्यासी, मुस्कुराते हुए.… "अंगूठी के बिना तुम मंत्र से कोई लाभ नहीं ले सकते।"..


निशांत:– हां लेकिन ये अंगूठी मुझे लेगा कौन... रहेगा तो मेरे पास ही...


निशांत की इस बात पर सन्यासी मुस्कुराते हुए अपनी मुट्ठी खोले... "क्या इसी अंगूठी के विषय में तुम कह रहे थे।"


निशांत:– ओय ढोंगी साधु, तुम यहां हमारे अंगूठी के लिए आये हो...


संन्यासी:– तुम्हे पारीयान की पांडुलिपि में कहीं भी कैलाश मठ नही मिला था क्या? खैर जाने दो। तुम ये अंगूठी अपने पास एक शर्त पर रख सकते हो..


निशांत:– कौन सी..


संन्यासी:– हमारे खोजी दल का नेतृत्व करो। कुछ साल तप और कठिन मेहनत के बाद एक बार तुमने योग्यता सिद्ध कर दी, फिर बिना इस अंगूठी के भी मंत्र का प्रयोग कर सकते हो। और अंगूठी को तुम्हारी उंगली से हमारे मठाधीश आचार्य जी भी नही निकाल पायेंगे...


निशांत मायूस होते... "फिर मुझे बहुत सारे रोक–टोक झेलने होंगे। अपनी दुनिया छोड़कर आप लोगों की तरह रहना होगा। बहुत सारे प्रतिबंध तो आप लोग लगा देंगे। फिर मुझे पहचान छिपाकर रहना होगा।"


संन्यासी:– इतनी सारी बातें नही होती है। पहचान हम छिपाते नही, बल्कि हम सबके सामने रहे तो हाल वैसा ही होना है... अपना दरवाजा गंदा हो तो भी उसे साफ करने के लिए नगर–निगम के कर्मचारी का इंतजार करते हैं। हां कुछ प्रतिबंध होते है, लेकिन वो तो हर जगह होते है। क्या तुम जिस कॉलेज में हो उस कॉलेज की अपनी कानून व्यवस्था नहीं। क्या जिले की कानून व्यवस्था नहीं या फिर राज्य या देश की। खैर मैं तुम्हे अपने साथ आने के लिए प्रेरित नही कर रहा। बस तुम्हारे सवालों का जवाब दे रहा। बेशक यदि मेरी तरह संन्यासी बनना है फिर संसार त्याग कर हमारे साथ आ जाओ, वरना यदि तुम्हे पारीयान की तरह खोजी बनना है, फिर तुम्हारी जरूरी शिक्षा तुम्हारे कमरे में हो जायेगी...


निशांत पूरे उत्साह से... "क्या यह सच है?"..


संन्यासी:– हां सच है... अब तैयार हो जाओ हम पहुंच गये...


बात करते हुए सभी लगभग २ किलोमीटर आगे चले आये थे।संन्यासी एक बड़े से मांद के आगे खड़ा था। मानो पत्थर का 50 फिट का दरवाजा खड़ा हो। संन्यासी उसी दरवाजे के आगे खड़े होते.… "अंदर तुम्हारे खोज की मंजिल है आर्यमणि। बाकी अंदर जाने से पहले मैं बता दूं कि जिस किताब के उल्लेख की वजह से तुमने रीछ स्त्री को जाना, उसमे केवल कैद करने के स्थान को छोड़ दिया जाए तो बाकी सब झूठ लिखा था। उस किताब को छापा ही गया था भरमाने के लिये।

आर्यमणि:– मेरे बहुत से सवाल है...


निशांत:– इस दरवाजे के पार बवाल है, पहले उसे देख ले... एक्शन टाइम पर सवाल जवाब नही करते...


निशांत की बात सुनकर सभी हंसते हुए उस मांद के अंदर घुस गये। अंदर पूरा हैरतंगेज नजारा था। मांद की दरवाजा ही केवल पत्थर का बना था, बाकी उस पार तो खुला बर्फीला मैदान था। चारो ओर बर्फ ही बर्फ नजर आ रहा था। एक मकबरा के दोनो ओर लोग थे। एक ओर सिद्ध पुरुष और संन्यासियों के साथ सहायक थे। तो दूसरे ओर साए की तरह लहराती रीछ स्त्री जिसके पाऊं जमीन से 5 फिट ऊपर होंगे। उसके साथ कई सारे विकृत सिद्ध पुरुष काला वस्त्र पहने थे। और उन सबके पीछे जहां तक नजर जाय, केवल वेंडिगो ही वेंडिगो... ऐसा लग रहा था कब्र का बॉर्डर हो और दोनो ओर से लोग युद्ध के लिए तैयार...


रीछ स्त्री महाजनिका के भी दर्शन हो गए... स्त्री की वह भव्य स्वरूप थी, जिसकी शक्ल लगभग भालू जैसी थी। शरीर का आकार भी लगभग भालू जितना ही लंबा चौड़ा और वह हवा में लहरा रही थी। दोनो ओर के शांति को रीछ स्त्री महाजनिका तोड़ती... "साधु हमारे कार्य में विघ्न न डालो। वरना मेरे प्रकोप का सामना करना पड़ेगा..."


साधु ओमकार नारायण:– हमारे संन्यासी और सहायकों को पिछले 8 दिन से चकमा दे रही थी और आज तुमने द्वार (portal) भी खोला तो जादूगरनी (ऐडियाना) के क्षेत्र में। बचकाना सी चाल..


तांत्रिक उध्यात (वह तांत्रिक जिसने रीछ स्त्री को छुड़ाया)… सुनो ओमकार हम कोई युद्ध नही चाहते। एक बार देवी महाजानिका की शक्ति पुर्नस्थापित हो जाए फिर हम दूसरी दुनिया में चले जायेंगे... मत भूलो की अभी सिर्फ हमने जादूगरनी (ऐडियाना) की आत्मा को बंधा है, न तो उसको इच्छा से तोड़ा है और न ही उसकी आत्मा को मुक्त किया है..


ओमकार नारायण:– क्या इस बात से मुझे डरना चाहिए? या फिर तुम्हारी महत्वकांछा ने एक घोर विकृत अति शक्तिशाली जीव को उसके नींद से जगा दिया, इसलिए तुम्हे मृत्यु दण्ड दूं।


तांत्रिक उध्यात:– देवी तुम्हे जीव दिख रही। मुझे मृत्यु दण्ड दोगे... तो फिर देकर दिखाओ मृत्यु दण्ड..


अपनी बात समाप्त करने के साथ ही बिजली गरजे, बर्फीला तूफान सा उठा और उस तूफान के बीच आसमान से ऊंची ऐडियाना की आत्मा दिखना शुरू हो गयि। बर्फीले तूफान के बीच से कभी अग्नि तो कभी बिलजी किसी अस्त्र की तरह प्राणघाती हमला करने लगे। उसी तूफान के बीच चारो ओर से काले धुएं उठने लगे। उन काले उठते धुएं और बर्फीले तूफान के बीच से अनगिनत वेंडीगो उछलकर हमला करने लगे।
Are yr kahani me itna Jada maja aa raha tha ,
Shaktimaan show ki tarha kya shaktimaan bacha paega bacho ko jaane k liye dekhiye next episode,
Same ditto vahi feel aa rahi hai,
Are yr nain bhai kaha end Kiya Aaj ka update 😅
 
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