इधर आर्यमणि अटक सा गया। लगभग 1 घंटे बाद आर्यमणि के मोबाइल पर पलक का कॉल आया, और वो आर्यमणि से उसका पता पूछने लगी। आर्यमणि उसे बिल काउंटर पर ही बुला लिया।… "सॉरी मेरे कारण तुम्हे इंतजार करना पड़ा। दीदी को कॉल की तो पता चला उन्हें जरूरी काम था इसलिए उन्हें निकालना पड़ा और मै तुम्हारे साथ"..
आर्यमणि:- इट्स ओके। चलो चलकर पहले कुछ खाते है।
पलक:- बाहर में कुछ खाए क्या?
आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है चलो।
आर्यमणि, पलक को रुकने बोलकर अपनी बाइक ले आया। पलक को अचानक ध्यान आया कि आर्यमणि के पास तो बाइक है, वो भी उसके सीट की पोजिशन ऐसी है कि बिना चिपके जा नहीं सकते है… "आर्य, क्या तुम्हारे पास कार नहीं है"
आर्यमणि:- ज़िन्दगी में हर चीज का मज़ा लेना चाहिए पलक। गंभीर और शांत मै भी रहता हूं, इसका मतलब ये नहीं कि जीता नहीं हूं, हंसता नहीं हूं। तुमने तो अपने अंदर के ख्यालों को ही अपनी पूरी दुनिया बना ली है। अब आओ और ये झिझक छोड़ दो कि बाइक पर मै एक अजनबी के साथ कैसे जाऊंगी।
"चले क्या"… पलक बाइक पर बैठती हुई आर्यमणि के कंधे पर हांथ डालकर मुस्कुराती हुई कहने लगी। आर्यमणि मस्त अपनी बाइक चला रहा था और पीछे बैठकर पलक आर्यमणि से दूरी बनाने की कोशिश तो कर रही थी, लेकिन बीएमडब्लू बाइक के सीट कि पोजिशनिंग कुछ ऐसी थी कि वो जाकर आर्यमणि से चिपक जाती।
बड़ी मुश्किल से पलक 2 इंच की दूरी बनाती और इधर ट्रैफिक के कारण लगा ब्रेक उन दूरियों को मिटा देती।… "पलक कहां चलना है।"..
पलक अपने होंठ आर्यमणि के कान के करीब ले जाती… "चांदनी चौक चलेंगे पहले।"… कुछ ही देर में दोनो चांदनी चौक में थे। पलक स्ट्रीट फूड का लुफ्त उठाने आयी थी, वहां उसने जैसे ही 2 प्लेट हैदराबादी तंदूर का ऑर्डर दिया… "पलक एक ही प्लेट का ऑर्डर दो।"..
पलक:- क्यों ऐसे ठेले पर का खाना खाने में शर्म आएगी क्या?
आर्यमणि:- नहीं, मै नॉन वेज नहीं खाता।
पलक:- सच बताओ।
आर्यमणि:- हां सच ही कह रहा हूं।
पलक:- फिर छोड़ो, चलो चलते है यहां से।
आर्यमणि:- लेकिन हुआ क्या?
पलक:- साथ आए है, खाली हाथ खड़े रहोगे और मै खाऊंगी तो अजीब लगेगा ना।
आर्यमणि:- तुम आराम से खाओ, मै भी अपने लिए कुछ ले लेता हूं।
वहीं पास से उसने गरम छने समोसे लिए और पलक का साथ देते हुए वो समोसा खाने लगा। चांदनी चौक से फिर दोनो प्रताप नगर और वहां से फिर तहसील ऑफिस। हर जगह के स्ट्रीट फूड का मज़ा लेते अंत में दोनो सिविल लाइन चले आए।
जैसे ही सिविल लाइन आया, पलक… "तुम यहीं छोड़ दो, यहां से मै चली जाऊंगी।"…
आर्यमणि:- नहीं दीदी ने घर तक छोड़कर आने के लिए कहा है।
पलक, अनायास ही बोल पड़ी… "पागल हो क्या, मेरे घर जाओगे। तुम जानते भी हो वहां का क्या माहौल होगा।"
आर्यमणि:- हद है, इतना बढ़िया अनजान के रोल में घुसी थी, यहां आकर क्या हो गया?
पलक, छोटा सा मुंह बनाती... "मुझे माफ कर दो। मैं अपनी आई (अक्षरा भारद्वाज) के नाम पर तुम्हे बस छेड़ रही थी। लेकिन मेरे घर तक जाना...
आर्यमणि:- क्यों किसी लड़के के साथ जाने पर तुम्हारे घरवाले तुम्हे गोली मार देंगे क्या?
पलक:- किसी मे, और तुम मे अंतर है ना आर्य।
आर्यमणि:- मेरे माथे पर नाम नहीं लिखा है। दीदी ने कहा है तो घर तक छोड़कर ही आऊंगा।
पलक:- जिद्दी कहीं के ! ठीक है चलो।
कुछ ही दूरी पर पलक का घर था। आर्य उसे छोड़कर वापस लौट ही रहा था कि पीछे से पलक ने आवाज़ लगा दी… "सुनो आर्य"...
आर्य रुककर इशारे से पूछने लगा क्या हुआ। पलक उत्तर देती कहने लगी, दादा (राजदीप) का आवास शिफ्ट कर दिया गया है। आर्यमणि पलक को लेकर उसके नए आवास पर पहुंच गया। पलक बाइक से उतरती हुई आर्यमणि से विदा ली। लेकिन पलक जैसे ही अपना कदम बढ़ायि, आर्यमणि भी उसके पीछे चल दिया।
पलक हैरानी से आर्यमणि को देखती... "मेरे पीछे क्यूं आ रहे?
आर्यमणि:– जब इतनी दूर आ ही गया हूं, तो साथ में तुम्हारे घर भी चलता हूं। मेरे माथे पर थोड़े ना मेरा नाम लिखा है।"
पलक:– आर्य तुम समझते क्यूं नही? अंदर मत आओ..
आर्यमणि:– तुम्हे इस राजा की रानी बनना है या नही?
पलक:– हां लेकिन...
आर्यमणि:– हां तो फिर चलो...
पलक असमंजस में, और आर्यमणि मानने को तैयार नहीं... पलक, आर्यमणि को समझाकर वापस भेजने में विफल रही और नतीजा, आर्यमणि भी पलक के साथ ही अंदर घुसा... वहीं कुछ घंटे पूर्व, शॉपिंग मॉल में जैसा की भूमि, चित्रा से कही थी, ठीक वैसा ही हुआ। एसपी राजदीप और कमिश्नर राकेश नाईक का आवास आसपास था। शिफ्ट करने में कोई परेशानी ना हो इसके लिए भूमि ने कई सारे लोगों को भेज दिया था।
सुप्रीटेंडेंट और कमिश्नर का परिवार आस-पास और दोनो परिवार के लोग हॉल में बैठकर गप्पे लड़ा रहे थे, ठीक उसी वक्त पलक और आर्यमणि वहां पहुंच गये। पलक और आर्यमणि ने जैसे ही घर में कदम रखा, सभी लोगो की नजर दोनो पर। और जैसे ही नजर आर्यमणि पर गई, वहां बैठे सभी लोग घोर आश्चर्य में पड़ गए।
इससे पहले कि कोई कुछ कहता, एक उड़ता हुआ चाकू आर्यमणि के ओर चला आया और पीछे से राजदीप की मां अक्षरा चिल्लाने लगी… "ये कुलकर्णी की औलाद यहां क्या कर रहा है। पलकककक .. हट उसके पास से। जिसका साया पड़ना भी अशुद्ध होता है, तू उसे घर तक साथ ले आयी। तुझे और कोई लड़का नहीं मिला क्या पूरे नागपुर में, जो तू उस भगोड़ी जया के बेटे को यहां ले आयी।
आर्यमणि दरवाजे पर ही खड़ा था, और अक्षरा बेज्जती करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पलक को ऐसा लगा मानो उसने आर्यमणि को यहां लाकर कितनी बड़ी गलती कर गई। शब्द तीर की तरह थे जो पलक का कलेजा चिर गई और वो रोती हुई आर्यमणि को देखने लगी, मानो बहते आंसू के साथ माफी मांग रही हो।
आर्यमणि खामोशी से बात सुनता गया। अक्षरा जैसे ही चुप होकर बढ़ी धड़कनों को सामान्य करने लगी, आर्यमणि पलक के आशु पोछकर उसे शांत रहने का इशारा किया और अक्षरा के ओर चल दिया। अपने हाथ में वो चाकू लिए अक्षरा के पास पहुंचा। आर्यमणि, अक्षरा का हाथ पकड़कर उसे चाकू थमाते… "देख तो लूं जरा, कितनी नफरत भरी है आपके दिल में।"…
तभी बीच में निशांत की मां निलानजना बोलने लगी… "नहीं आर्य"..
आर्य:- नहीं आंटी अभी नहीं। बचपन से इनकी एक ही कहानी सुनकर पक गया हूं। मेरी मां के बारे में इन्होंने इतना कुछ बोला है कि मेरा दिमाग खराब हो गया। कॉलेज में मुझे परेशान करने के लिए ये लोग स्टूडेंट को उकसा रहे है। आज दुश्मनी का लेवल भी चेक कर लेने दो मुझे।… अक्षरा भारद्वाज दिखाओ लेवल। भाई मरा था ना उस दिन, तो ले लो बदला। अब चाकू लिए ऐसे ख़ामोश क्या सोच रही है?
आर्यमणि इतनी जोर से चिल्लाया की वहां के हॉल में उसकी आवाज गूंज गई। राजदीप कुछ बोलने लगा लेकिन तभी चित्रा की मां निलांजना ने उसे चुप करा दिया। आर्यमणि गुस्से में अक्षरा से अपनी नजर मिलाए… "क्यों केवल बोलना आता है, पीठ पीछे लोग भेजने आते है। आज मैंने कॉलेज ने 30 ऐसे लोगो को मारा है जो आपके कहने पर कॉलेज मुझसे लड़ने आए थे। उनमें से 2 को बहुत गन्दा तोड़ा मैंने, और जब उससे मिलने हॉस्पिटल गया तो 30-40 और लोगों को तोड़ना परा। भारद्वाज खानदान में सामने से वार करने की हिम्मत खत्म हो गई क्या? चलो चलो चलो अब दिखाओ भी नफरत।
अक्षरा बड़ी मुश्किल से चाकू ऊपर उठाई। उसके हाथ कांप रहे थे। आर्यमणि ने उसके हाथ को अपने हाथ का सहारा देकर अक्षरा की आंखों में देखा। चाकू को अपने सीने के नीचे टिकाया। लोग जैसे ही दौड़कर उसके नजदीक पहुंचते, उससे पहले ही आर्यमणि वो चाकू अपने अंदर घुसा चुका था।