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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–40





सुबह सबका नाश्ता एक साथ हो रहा था। दल में २ वेयरवोल्फ रूही और अलबेली भी थी, जिन्हे सब बहुत ही ओछी नजरों से देख रहे थे। खैर सुबह के नाश्ते के बाद ही सुकेश से एक रेंजर मिलने पहुंचा, जिसने जंगल के मानचित्र पर उस जगह को घेर दिया जहां रीछ स्त्री के होने की संभावना थी। सतपुरा के उस पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचने में लगभग १२ घंटे का वक्त लगता। सभी दल ने अपना बैग पैक किया और अपने–अपने टीम के साथ निकल गए।


रात के ८ बजे सभी लोग उस जगह पर थे, जहां से छान–बिन करते हुए अगले ६ दिनो में उस सीमा तक पहुंचना था, जिसके आगे कथित तौर पर रीछ स्त्री ने अपना क्षेत्र बांधा था। सभी लोग उसी स्थान पर कैंप लगाकर सो गए। एक बड़े से हिस्से में बड़े–छोटे तकरीबन 20 टेंट लगा हुआ था। उसके मध्य में आग जल रही थी। आग के पास बारी–बारी से कुछ लोग बैठकर पहरा दे रहे थे।


मध्य रात्रि का वक्त था। शरद हवाओं के कारण चारो ओर का वातावरण बिलकुल ठंडा था। काली अंधेरी रात में जंगली जानवरों की आवाज चारो ओर गूंज रही थी। पहरेदार आग के पास बैठकर अपने शिकार के किस्से सुना रहे थे। आर्यमणि और निशांत अपने–अपने टेंट में सो रहे थे, तभी आर्यमणि के टेंट में रूही घुसी... "बॉस उठ जाओ"… हालांकि आर्यमणि तो पहले से जाग रहा था। रूही ने मुंह से जो भी कहा लेकिन अपनी भौह और आंखें सुकोडकर मानो कह रही हो... "क्यों नाटक कर रहे, तुमने सब सुना न"


आर्यमणि अपने पलकें झपका कर शांत रहने का इशारा करते.… "क्या हुआ रूही?"


रूही:– सरदार खान आया है, वो तुमसे मिलना चाहता है।

आर्यमणि:– सरदार खान यहां कैसे आ गया। और उसे मुझसे बात करनी है तो तुम्हारे टेंट में क्यों आया है? क्या उसे किसी प्रहरी ने नही देखा?


वेयरवोल्फ एक खास कम्युनिकेशन कर सकते है। लगभग 1किलोमीटर की दूरी से भी कोई बुदबुदाए तो वेयरवोल्फ सुन सकते हैं। सरदार खान ने ऐसे ही रूही को संदेश भेजा था, जिसे अलबेली और आर्यमणि दोनो ने सुना, लेकिन आर्यमणि अनजान बने हुआ था।


रूही:– एक खास कम्युनिकेशन के जरिए हम बात कर सकते हैं। यहां तक कि हम जो भी यहां बात कर रहे वह दूर बैठे सुन रहा होगा...


आर्यमणि:– ये तो काफी रोचक गुण है। चलो चलकर देखा जाए की क्यों सरदार खान की छाती में मरोड़ उठ रहा।


रूही "बिलकुल बॉस" कहती आगे बढ़ी, पीछे से आर्यमणि चल दिया। रूही, आर्यमणि को लेकर सरदार खान के निर्देशानुसार वाली जगह पर पहुंची। निर्धारित जगह पर रुकने के साथ ही आर्यमणि 10 फिट हवा में ऊपर उछल गया और उसके सीने पर से टप–टप खून टपकने लगा। सरदार खान द्वारा आर्यमणि पर सीधा हमला वह भी प्राणघाती।


आर्यमणि, हवा में ही तेज चिल्लाया... "रूही किनारे हटो"… हालांकि रूही भी तैयार थी और वक्त रहते वह किनारे हट गई। सरदार खान अपने विकराल रूप में चारो ओर के चक्कर लगा रहा था। काली अंधेरी रात में जब अपनी लाल आंखों से रूही और आर्यमणि ने उसे देखा, तब ऐसा प्रतीत हुआ मानो चार पाऊं पर खड़े किसी दानव का विकराल रूप देख रहे हो।


उसकी काली चमड़ी काफी अलग और शख्त दिख रही थी। इतनी शख्त की लोहे के १०० फिट की दीवार से भी टकराए तो उस दीवार को ध्वस्त कर दे। बदन के चारो ओर मानो हल्का काला धुवां सा उठ रहा हो। उसकी चमकती लाल आंखे खौफनाक थी। उसके चारो पंजे इतने बड़े थे कि किसी भी इंसान का मुंह को एक बार में दबोच ले। उन पंजों के आगे के नाखून, बिलकुल किसी धारदार हथियार की तरह तेज, जो एक बार चले तो अपने दुश्मन का सर धर से अलग कर दे। भेड़िए की इतनी बड़ी काली शक्ल की हृदय में कंपन पैदा कर दे। उसके बड़े–बड़े दैत्याकार दांतों की बनावट, सफेद और चमकीली। नथुनों से फुफकार मारती तेज श्वास... कुल मिलाकर एक भयावह जीव बड़ी ही तेजी के साथ आर्यमणि और रूही के चारो ओर चक्कर लगा रहा था और दोनो बस उसे अपने पास से गुजरते हुए महसूस कर रहे थे।

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5–6 बार चारो ओर के चक्कर लगाने के बाद सरदार खान आर्यमणि और रूही के ठीक सामने था। आर्यमणि, रूही को अपने पीछे लिया और हाथों के इशारे से सरदार खान को आने का निमंत्रण देने लगा। मुख पर हल्की मुस्कान, चमकता ललाट और बिना भय के खड़ा आर्यमणि, मानो सरदार खान के दैत्य स्वरूप का उपहास कर रहा हो। बचा–खुचा उपहास आर्यमणि के हाथ के इशारे ने कर दिया। जुबान से तो कुछ न निकला लेकिन आर्यमणि के इशारे ने साफ कर दिया था कि... "आ जा झंडू, तुझे देख लेता हूं।"


जैसे सरदार खान के पीछे किसी ने मिर्ची डाल दी हो जिसका धुवां उसके नाक से निकल रहा हो। ठीक वैसे ही आग लगी फुफकार उसके नथुनों से निकल रही थी और फिर तीव्र वेग से गतिमान होकर सरदार खान हमला करने के लिए हवा का झोंका बन गया। 10 क्विंटल का शैतान 300/350 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ते हुए हवा में छलांग लगा चुका था। उसने अपने पंजों में जैसे बिजली भर रखा हो। चौड़े पंजे जब खुले तब उसके नाखून किसी हीरे की तरह चमक रहे थे। विकराल सा दैत्याकार वुल्फ हवा में आर्यमणि के ठीक सामने से उसके गर्दन पर अपना पंजा चलाया।


पंजा चलाने की रफ्तार ऐसी थी कि उसका हाथ दिखा ही नही। लेकिन आर्यमणि उस विकराल दानव से भी कहीं ज्यादा तेज। आर्यमणि अपने ऊपरी शरीर को इतनी तेजी में पीछे किया मानो बिजली सी रफ्तार रही हो। आर्यमणि कब पीछे हटा और वापस अपनी जगह पर आया कोई देख नहीं पाया। दर्शक की आंखों को भले बिजली की तेजी लगे, किंतु आर्यमणि अपने सामान्य गति में ही था। उसे तो बस सामान्य सी गति में ही एक धारदार पंजे का वार अपने गर्दन पर होता दिखा और वह अपने बचाव में पीछे हटकर अपनी जगह पर आया।


उसके बाद जो हुआ शब्दों में बायां कर पाना मुश्किल। रफ्तार और वार के जवाब में आर्यमणि ने जब अपना रफ्तार और वार दिखाया फिर तो तो सब स्तब्ध ही रह गए। शरदार खान हवा से तेज रफ्तार में दौड़कर छलांग लगाते आर्यमणि के सामने था। उसका पंजा जैसे ही आर्यमणि के गर्दन को छूने वाला था, आर्यमणि अपने रफ्तार का प्रदर्शन करते पीछे हुआ और गर्दन से आगे जा रहे पंजे के ऊपर की कलाई को अपने मुट्ठी में दबोच लिया। उस पंजे को मुट्ठी में दबोचने के बाद, हमला करने के विपरीत दिशा में उसके इस भुजा को इतनी ताकत से खींचा की सरदार खान का 10 क्विंटल का पूरा शरीर ही उसी दिशा में पूरी रफ्तार के साथ खींच गया।


आर्यमणि उस पंजे की कलाई को पकड़ कर पहले दाएं फिर बाएं... फिर दाएं फिर बाएं.. मानो रबर के एक सिरे पर कोई बाल लटका दिया गया हो। जिसे पकड़कर कोई बच्चा धैर–पटक दाएं–बाएं, दाएं–बाएं, दाएं–बाएं, दाएं–बाएं, जमीन पर पटक रहा हो। पूरी रफ्तार के साथ आर्यमणि सरदार खान को दाएं और बाएं पटक रहा था। जमीन से केवल धप–धप की आवाज आ रही थी। जिस कलाई पर आर्यमणि ने अपनी पकड़ बनाई थी, वहां से मांस के जलने की बदबू आ रही थी। सरदार खान इतना तेज चिल्ला रहा था की कैंप में सोए लोग चौंक कर उठ गए। वह सभी लोग तुरंत अपने हथियार तैयार किए, टॉर्च निकाले, और तेजी से आवाज की ओर रवाना हुए। और यहां तो सरदार खान 1 सेकंड में 6 बार जमीन पर पटका जा रहा था।


महज 2 मिनट ही तो आर्यमणि ने पटका था, तभी वहां लोगों की गंध आने लगी, जो उसी के ओर बढ़ रहे थे। आर्यमणि आखरी बार उसे जमीन पर पटक कर छोड़ दिया। फुफकार मार कर दहाड़ने वाला बीस्ट अल्फा किसी कुत्ते की तरह दर्द से बिलबिलाता कुकुकु करते वहां से अपना पिछवाड़ा बचाकर भागा। सरदार खान भागते हुए जब अपना शेप शिफ्ट करके वापस इंसान बना, तब उसके एक हाथ की कलाई का मांस ही गायब था और वहां केवल हड्डियां ही दिख रही थी। शरीर के इतने अंजर–पंजर ढीले हुए थे कि खून हर जगह से निकल रहा था और आंसू आंखों की जगह बदलकर कहीं और से निकलने लगा था।


सरदार खान के गुर्गे वहीं कुछ दूर आगे खड़े तमाशा देखते रह गए। आर्यमणि ने न तो सरदार खान को उन्हे बुलाने का मौका दिया। और जिस हिसाब से आर्यमणि ने एक हाथ से पकड़कर बीस्ट रूपी सरदार खान को जमीन पर धैर–पटक किसी बॉल की तरह पटका था, उसे देख सबकी ऐसी फटी थी कि आगे आने की हिम्मत ही नहीं हुई। सरदार खान के 20 वेयरवोल्फ चेले अपने वुल्फ रूपी आकार में थे। सभी २ लाइन बनाकर खड़े हुए और 2 लाइन के बीच में सभी ने अपने कंधों पर सरदार खान को लोड करके, उसे लेकर भागे।


जबतक शिकारी पहुंचते तबतक तो पूरा माहोल ठंडा हो चुका था। रह गए थे केवल रूही और आर्यमणि। शिकारियों की भीड़ लग गई। सभी शिकारी एक साथ सवाल पूछने में लग गए। सुकेश सबको चुप करवाते... "ये लड़की यहां पर कौन सा कांड कर रही थी आर्य"… अब वेयरवॉल्फ की दर्दनाक आवाज थी तो पूछताछ की सुई भी रूही पर जा अटकी। कुछ शिकारियों के घूरती नजर और रूही के प्रति उनका हवस भी साफ मेहसूस किया जा सकता था।


निशांत, जो एक किनारे खड़ा था... "भाऊ पता लगाना तो शिकारियों का काम है न। ऐसे सवाल पूछकर प्रहरी की बेजजती तो न करो"…


भूमि का सबसे मजबूत सहायक पैट्रिक.… "यहां जो भी हुआ था उसे शायद रूही और आर्यमणि ने हल कर दिया है। हमरी मदद भी चाहिए क्या आर्यमणि?


आर्यमणि:– नही पैट्रिक सर, सब ठीक है यहां।


पलक:– लेकिन यहां हुआ क्या था? रूही ऐसे भीषण दर्द से चीख क्यों रही थी?


निशांत:– शायद कोई बुरा सपना देखकर डर गई। अब वेयरवॉल्फ है तो उसी आवाज में चीख रही थी।


कोई एक शिकारी... "हां जहां इतने प्रहरी हो वहां ऐसे सपने आने लाजमी है।"


पैट्रिक:– प्रहरी और उसके घमंड की भी एक दास्तान होनी चाहिए... एक बात मैं साफ कर दूं.. शिकारियों की अगुवाई मैं कर रहा हूं... अगली बार अपनी गटर जैसी जुबान से किसी को प्रहरी होने का घमंड दिखा तो उसके पिछवाड़े मिर्ची डालकर निकाल दूंगा... चलो सभा खत्म करो यहां से।


प्रहरी होने का अहंकार और रूही को नीचा दिखाने का एक भी अवसर हाथ से जाने नही दे रहे थे। पैट्रिक के लिए भी शायद अब सीमा पार गया हो इसलिए उसे अंत में कहना पड़ गया। खैर सभी वापस चले गए, जबकि निशांत और आर्यमणि जंगल में तफरी करने निकल गए... "तो इसलिए तूने भ्रमित पत्थर नही लिया। तेरे पास तो तिलिस्मी ताकत है।"… आर्यमणि और रूही के पीछे निशांत भी पहुंचा था। और पूरा एक्शन अपनी आंखों से लाइव देख चुका था..


आर्यमणि:– तिलिस्मी ताकत हो भी सकती है या नही भी। वैसे भी किसी को मारने के लिए यदि ताकत सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता, फिर तो हर राष्ट्र में लाठी के जोड़ पर शासन चलता।


निशांत:– अब क्या प्रवचन देगा...


आर्यमणि:– माफ करना...


निशांत:– छोड़ भी.. और ये बता की तू है क्या? क्या तू अब तंत्र–मंत्र की दुनिया का हिस्सा है या केवल एक सुपरनैचुरल है?


आर्यमणि:– हाहाहाहाहा... मतलब मैं क्या हूं वो तू भी जानना चाहता है...


निशांत:– भी का मतलब... कोई और भी है क्या?


आर्यमणि:– हां बहुत सारे लोग... लेकिन मुझे खुद पता नही की मैं क्या हूं...


कुछ आंखों में इशारे हुए और निशांत बात को बदलते... "तू चुतिया है। काम पर ध्यान दे। हमे यहां पता क्या करना है?


आर्यमणि:– कौन सी विषम परिस्थिति का सामना करना पड़ सकता है और उस से निकले कैसे...


निशांत, अपने मोबाइल की स्क्रीन पर लिख कर स्क्रीन आर्यमणि के सामने कर दिया... "क्या हमे यहां कोई देख और सुन रहा है।"..


आर्यमणि, अपने मोबाइल में लिखकर स्क्रीन निशांत के सामने दिखाते... "माहोल देखकर समझ में नहीं आ रहा क्या? किसी को कुछ पता नही है कि करना क्या है, फिर भी सबको यहां ले आए हैं।


निशांत:– हे भगवान... यानी बहुत से लोग बलि चढ़ेंगे और पीछे रहकर कुछ लोग प्लान बनायेंगे..


आर्यमणि:– हां, भूमि दीदी की पूरी टीम है यहां। और मुझे लगता है कि भूमि दीदी बहुतों को खटकने लगी है..


निशांत:– पूरा फैसला तो पलक का था...


आर्यमणि:– यहां का मकड़जाल समझना थोड़ा मुश्किल है। कौन है वो सामने नहीं आ रहा, लेकिन पूरे खेल इशारों पर ही खेल रहा..


निशांत:– मुझे तो सुकेश भारद्वाज और उज्जवल भारद्वाज पर ही शक है। दोनो के शक्ल पर धूर्त लिखा है।


आर्यमणि:– पता नही..


निशांत:– पता नही का मतलब..


आर्यमणि:– मुझे बहुत सी बातें पता चली है, लेकिन हर बात एक ही सवाल पर अटक जाती है...


निशांत:– कौन सी?


आर्यमणि:– इतना कुछ करने के पीछे का मकसद क्या है?


निशांत:– देखा जाए तो यही सवाल तुम्हारे लिए भी है। जैसा मैंने तुझे लड़ते देखा, अब ऐसा तो नहीं है कि नागपुर आने के बाद सीखे हो। हर किसी को लगता है कि तुझमें कुछ खास है, लेकिन तुझमें वह खास क्या है, सबके लिए बड़ा सवाल है? और उस से भी बड़ा सवाल.. तू नागपुर किस मकसद से आया है? देख ये मत कहना की मेरे और चित्रा के लिए आया है। यह एक वजह हो सकती है लेकिन तेरे आने की सिर्फ यह वजह तो बिलकुल भी नहीं...


दोनो ही टेक्स्ट–टेक्स्ट लिख कर बातें कर रहे थे। निशांत के टेक्स्ट पढ़ने के बाद आर्यमणि मुस्कुराते हुए अपने स्क्रीन पर लिखते... "मैं एक वेयरवॉल्फ ही हूं। तुमने उस दिन बिलकुल सही परखा था। लेकिन मुझ पर वेयरवोल्फ या इंसानों के कोई नियम लागू नहीं होते...


निशांत:– तू कौन सा वेयरवोल्फ है, उसका डिटेल लिटरेचर दे।


आर्यमणि एक पेज खोलकर अपना मोबाइल निशांत के हाथ ने थमा दिया। निशांत जैसे–जैसे उस लिटरेचर को पढ़ता गया, आंखें बड़ी और उत्साह पूरे जोश के साथ अंदर से उफान मार रहा था। पूरा पढ़ने के बाद... "मुझे सिटी बजाने का मन कर रहा लेकिन बजा नही सकता"..


आर्यमणि:– हां मैं तुम्हारे इमोशन समझ सकता हूं।


निशांत:– खैर वुल्फ होकर तू प्रहरी के बीच आया, इसके पीछे कोई बहुत बड़ी तो वजह रही ही होगी...


आर्यमणि:– पीछे की वजह जानेगा तो तू मुझे चुतिया कहेगा। बस २ सवाल के जिज्ञासा में आया था.. और यहां आकर वही पुरानी आदत, पूरा रायता फैला दिया..


निशांत:– क्या बात कर रहा है... मतलब तूने किसी की मार रखी है और मुझे बताया तक नही...


आर्यमणि:– अभी धीमा पाइल्स दिया है। रोज सुबह दर्द में गुजरता होगा और पूरा दिन दर्द का एहसास बना रहता होगा...


निशांत:– किसकी...


आर्यमणि:– इन्ही प्रहरियों की, और किसकी... साले नालायक खुद को इंसानों से भी बढ़कर समझते हैं।


निशांत:– लगा–लगा इनकी लंका लगा... एक मिनट कही इन सबके बीच तू मेरे बाप की भी लंका तो नही लगा रहा...


आर्यमणि:– तूने इंसेप्शन मूवी देखी है..


निशांत:– हां..


आर्यमणि:– जैसे वहां सपने के अंदर सपना और उसके अंदर एक और सपना होता है, ठीक वैसा ही है..


निशांत:– मतलब यहां प्रहरी में जितने भी चुतिये है, उनके पीछे भी कोई चुतिया है..


आर्यमणि:– हाहाहाहा... बस यहीं एक जगह लोचा है। हर बॉस के ऊपर एक बिग बॉस होता है ये तो सब जानते हैं लेकिन यहां सब आबरा का डबरा चल रहा है... जल्द ही समझ जायेगा... यहां सभी बिग बॉस ही है.. दिखता ताकत और पैसे का करप्शन ही है.. लेकिन इन सबके बीच कोई बड़ा खेल चल रहा जो दिख रहे प्रहरी करप्शन से कहीं ज्यादा ऊपर है...


निशांत:– सस्पेंस में छोड़ रहा...


आर्यमणि:– मैं खुद सस्पेंस में हूं, तुझे क्यों छोड़ने लगा? ताकत और पैसे के ऊपर क्या हो सकता है?


निशांत:– मतलब तू उन सबके बारे में जानता है कि वो कौन है, लेकिन उनके दिमाग में क्या चल रहा ये नही जानता...

आर्यमणि:– सबके बारे में जानता हूं ऐसा तो नहीं कह सकता लेकिन पहले दिन से बहुत से लोगों के बारे में जानता हूं... तभी तो उसका मकसद जानने में रायता फैल गया है...


निशांत:– चल ठीक है तू जैसा ठीक समझे वैसा कर। लेकिन यहां आए शिकारियों को तो बचा ले। जनता हूं कि यहां भी कुछ प्रहरी साले घमंडी है, लेकिन बहुत से नही...


आर्यमणि:– चल मोबाइल बंद करते हैं। आराम से आज और कल का दिन बिताते है, उसके बाद सबको पीछे छोड़कर हम तीसरे दिन रीछ स्त्री के इलाके में घुस जायेंगे...


प्रहरी के काम करने का तरीका पहली बार कोई बाहर वाला देख रहा था। आर्यमणि, निशांत, रूही और अलबेली इन्हे देखकर ऊब से गए थे। यूं तो ३ टीम, ३ अलग–अलग रास्तों से छानबीन करती, लेकिन तीन दिशा से 40–50 लोगों के फैलने की भी तो जगह हो। हर कोई एक पता लगाते–लगाते एक दूसरे के दिशा में ही पता लगाना शुरू कर देते। हां लेकिन क्या पता लगा रहे थे वह किसे पता। किसी को घंटा पता नही था कि छानबीन में क्या करना है। कहने का अर्थ है कि छानबीन में बहुत कुछ पता लगाया जा सकता था, जैसे की पाऊं के निशान। कपड़े का मिलना, कोई अनुष्ठान, इत्यादि। लेकिन 5–6 किलोमीटर के इलाके को आगे 6–7 दिन तक जांच करना था, फिर होगा क्या?… ये टट्टी फलाना जानवर की। झुंड में टट्टी कर गए.. यहां खून के निशान है, लगता है रीछ स्त्री घायल हो गई.... लगता है यहां वुल्फ भी है... ऐसे–ऐसे लॉजिक जिनका कोई सर–पैर नही था।


सबको आए ३ रात हो चुके थे। कथित तौर पर रीछ स्त्री की सीमा 3 किलोमीटर और दूर था, जिसे बचे २ दिन में पूरा करना था। आर्यमणि और उसकी टीम पूरी तरह से बोर हो चुकी थी। बस एक पलक थी जो सबको अनुशासन और हर बारीकियों पर ध्यान देने कह रही थी। ३ दिन तक तो सभी ने पलक रानी की बात सुनी। चौथे दिन मानो सारे अनुशासन का चौथा कर दिया हो। सुबह कैंप में कोई मिला ही नहीं। मिला तो बस एक नोट... "हम चंद्र ग्रहण की शाम बॉर्डर पर पहुंच जायेंगे... हमारी छानबीन पूरी हुई"… ऐसा सब लिखकर गायब थे।


अलबेली और रूही नए जंगल का भ्रमण करने दूर तक निकल चुकी थी। आर्यमणि और निशांत तो अलग ही फिराक में थे, वो दोनो रीछ स्त्री की कथित सीमा तक पहुंच चुके थे। और अब बातें करते हुए आगे भी बढ़ रहे थे.…


निशांत:– अबे ३ किलोमीटर दूर सीमा थी न.. हम तो ४ किलोमीटर आगे आ गए होंगे... कहीं दिख रही रीछ स्त्री क्या?


आर्यमणि:– कुछ दिख तो रहा है, लेकिन शायद ये रीछ स्त्री नही है...


निशांत ने भी उसे देखा और देखकर अपने मुंह पर हाथ रखते.… "वेंडिगो सुपरनैचुरल"


वह क्षीणता के बिंदु पर था। उसकी सूजी हुई त्वचा उसकी हड्डियों पर कसकर खींची गई थी। उसकी हडि्डयां उसकी खाल से बाहर निकल रही थी। उसका रंग मृत्यु के भस्म सा धूसर हो गया था और उसकी आंखें अंदर गहराइयों में घुसी थी। एडियाना का सेवक सुपरनैचुरल वेंडीगो हाल ही में कब्र से विस्थापित हुए एक कठोर कंकाल की तरह लग रहा था। उसके जो होंठ थे वे फटे हुए और खूनी थे। उसका शरीर अशुद्ध था और मांस के दबाव से पीड़ित था, जिससे सड़न, मृत्यु और भ्रष्टाचार की एक अजीब और भयानक गंध आ रही थी। पास ही पड़े वह किसी इंसान के मांस को नोच–नोच कर खा रहा था।

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Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–40





सुबह सबका नाश्ता एक साथ हो रहा था। दल में २ वेयरवोल्फ रूही और अलबेली भी थी, जिन्हे सब बहुत ही ओछी नजरों से देख रहे थे। खैर सुबह के नाश्ते के बाद ही सुकेश से एक रेंजर मिलने पहुंचा, जिसने जंगल के मानचित्र पर उस जगह को घेर दिया जहां रीछ स्त्री के होने की संभावना थी। सतपुरा के उस पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचने में लगभग १२ घंटे का वक्त लगता। सभी दल ने अपना बैग पैक किया और अपने–अपने टीम के साथ निकल गए।


रात के ८ बजे सभी लोग उस जगह पर थे, जहां से छान–बिन करते हुए अगले ६ दिनो में उस सीमा तक पहुंचना था, जिसके आगे कथित तौर पर रीछ स्त्री ने अपना क्षेत्र बांधा था। सभी लोग उसी स्थान पर कैंप लगाकर सो गए। एक बड़े से हिस्से में बड़े–छोटे तकरीबन 20 टेंट लगा हुआ था। उसके मध्य में आग जल रही थी। आग के पास बारी–बारी से कुछ लोग बैठकर पहरा दे रहे थे।


मध्य रात्रि का वक्त था। शरद हवाओं के कारण चारो ओर का वातावरण बिलकुल ठंडा था। काली अंधेरी रात में जंगली जानवरों की आवाज चारो ओर गूंज रही थी। पहरेदार आग के पास बैठकर अपने शिकार के किस्से सुना रहे थे। आर्यमणि और निशांत अपने–अपने टेंट में सो रहे थे, तभी आर्यमणि के टेंट में रूही घुसी... "बॉस उठ जाओ"… हालांकि आर्यमणि तो पहले से जाग रहा था। रूही ने मुंह से जो भी कहा लेकिन अपनी भौह और आंखें सुकोडकर मानो कह रही हो... "क्यों नाटक कर रहे, तुमने सब सुना न"


आर्यमणि अपने पलकें झपका कर शांत रहने का इशारा करते.… "क्या हुआ रूही?"


रूही:– सरदार खान आया है, वो तुमसे मिलना चाहता है।

आर्यमणि:– सरदार खान यहां कैसे आ गया। और उसे मुझसे बात करनी है तो तुम्हारे टेंट में क्यों आया है? क्या उसे किसी प्रहरी ने नही देखा?


वेयरवोल्फ एक खास कम्युनिकेशन कर सकते है। लगभग 1किलोमीटर की दूरी से भी कोई बुदबुदाए तो वेयरवोल्फ सुन सकते हैं। सरदार खान ने ऐसे ही रूही को संदेश भेजा था, जिसे अलबेली और आर्यमणि दोनो ने सुना, लेकिन आर्यमणि अनजान बने हुआ था।


रूही:– एक खास कम्युनिकेशन के जरिए हम बात कर सकते हैं। यहां तक कि हम जो भी यहां बात कर रहे वह दूर बैठे सुन रहा होगा...


आर्यमणि:– ये तो काफी रोचक गुण है। चलो चलकर देखा जाए की क्यों सरदार खान की छाती में मरोड़ उठ रहा।


रूही "बिलकुल बॉस" कहती आगे बढ़ी, पीछे से आर्यमणि चल दिया। रूही, आर्यमणि को लेकर सरदार खान के निर्देशानुसार वाली जगह पर पहुंची। निर्धारित जगह पर रुकने के साथ ही आर्यमणि 10 फिट हवा में ऊपर उछल गया और उसके सीने पर से टप–टप खून टपकने लगा। सरदार खान द्वारा आर्यमणि पर सीधा हमला वह भी प्राणघाती।


आर्यमणि, हवा में ही तेज चिल्लाया... "रूही किनारे हटो"… हालांकि रूही भी तैयार थी और वक्त रहते वह किनारे हट गई। सरदार खान अपने विकराल रूप में चारो ओर के चक्कर लगा रहा था। काली अंधेरी रात में जब अपनी लाल आंखों से रूही और आर्यमणि ने उसे देखा, तब ऐसा प्रतीत हुआ मानो चार पाऊं पर खड़े किसी दानव का विकराल रूप देख रहे हो।


उसकी काली चमड़ी काफी अलग और शख्त दिख रही थी। इतनी शख्त की लोहे के १०० फिट की दीवार से भी टकराए तो उस दीवार को ध्वस्त कर दे। बदन के चारो ओर मानो हल्का काला धुवां सा उठ रहा हो। उसकी चमकती लाल आंखे खौफनाक थी। उसके चारो पंजे इतने बड़े थे कि किसी भी इंसान का मुंह को एक बार में दबोच ले। उन पंजों के आगे के नाखून, बिलकुल किसी धारदार हथियार की तरह तेज, जो एक बार चले तो अपने दुश्मन का सर धर से अलग कर दे। भेड़िए की इतनी बड़ी काली शक्ल की हृदय में कंपन पैदा कर दे। उसके बड़े–बड़े दैत्याकार दांतों की बनावट, सफेद और चमकीली। नथुनों से फुफकार मारती तेज श्वास... कुल मिलाकर एक भयावह जीव बड़ी ही तेजी के साथ आर्यमणि और रूही के चारो ओर चक्कर लगा रहा था और दोनो बस उसे अपने पास से गुजरते हुए महसूस कर रहे थे।


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5–6 बार चारो ओर के चक्कर लगाने के बाद सरदार खान आर्यमणि और रूही के ठीक सामने था। आर्यमणि, रूही को अपने पीछे लिया और हाथों के इशारे से सरदार खान को आने का निमंत्रण देने लगा। मुख पर हल्की मुस्कान, चमकता ललाट और बिना भय के खड़ा आर्यमणि, मानो सरदार खान के दैत्य स्वरूप का उपहास कर रहा हो। बचा–खुचा उपहास आर्यमणि के हाथ के इशारे ने कर दिया। जुबान से तो कुछ न निकला लेकिन आर्यमणि के इशारे ने साफ कर दिया था कि... "आ जा झंडू, तुझे देख लेता हूं।"


जैसे सरदार खान के पीछे किसी ने मिर्ची डाल दी हो जिसका धुवां उसके नाक से निकल रहा हो। ठीक वैसे ही आग लगी फुफकार उसके नथुनों से निकल रही थी और फिर तीव्र वेग से गतिमान होकर सरदार खान हमला करने के लिए हवा का झोंका बन गया। 10 क्विंटल का शैतान 300/350 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ते हुए हवा में छलांग लगा चुका था। उसने अपने पंजों में जैसे बिजली भर रखा हो। चौड़े पंजे जब खुले तब उसके नाखून किसी हीरे की तरह चमक रहे थे। विकराल सा दैत्याकार वुल्फ हवा में आर्यमणि के ठीक सामने से उसके गर्दन पर अपना पंजा चलाया।


पंजा चलाने की रफ्तार ऐसी थी कि उसका हाथ दिखा ही नही। लेकिन आर्यमणि उस विकराल दानव से भी कहीं ज्यादा तेज। आर्यमणि अपने ऊपरी शरीर को इतनी तेजी में पीछे किया मानो बिजली सी रफ्तार रही हो। आर्यमणि कब पीछे हटा और वापस अपनी जगह पर आया कोई देख नहीं पाया। दर्शक की आंखों को भले बिजली की तेजी लगे, किंतु आर्यमणि अपने सामान्य गति में ही था। उसे तो बस सामान्य सी गति में ही एक धारदार पंजे का वार अपने गर्दन पर होता दिखा और वह अपने बचाव में पीछे हटकर अपनी जगह पर आया।


उसके बाद जो हुआ शब्दों में बायां कर पाना मुश्किल। रफ्तार और वार के जवाब में आर्यमणि ने जब अपना रफ्तार और वार दिखाया फिर तो तो सब स्तब्ध ही रह गए। शरदार खान हवा से तेज रफ्तार में दौड़कर छलांग लगाते आर्यमणि के सामने था। उसका पंजा जैसे ही आर्यमणि के गर्दन को छूने वाला था, आर्यमणि अपने रफ्तार का प्रदर्शन करते पीछे हुआ और गर्दन से आगे जा रहे पंजे के ऊपर की कलाई को अपने मुट्ठी में दबोच लिया। उस पंजे को मुट्ठी में दबोचने के बाद, हमला करने के विपरीत दिशा में उसके इस भुजा को इतनी ताकत से खींचा की सरदार खान का 10 क्विंटल का पूरा शरीर ही उसी दिशा में पूरी रफ्तार के साथ खींच गया।


आर्यमणि उस पंजे की कलाई को पकड़ कर पहले दाएं फिर बाएं... फिर दाएं फिर बाएं.. मानो रबर के एक सिरे पर कोई बाल लटका दिया गया हो। जिसे पकड़कर कोई बच्चा धैर–पटक दाएं–बाएं, दाएं–बाएं, दाएं–बाएं, दाएं–बाएं, जमीन पर पटक रहा हो। पूरी रफ्तार के साथ आर्यमणि सरदार खान को दाएं और बाएं पटक रहा था। जमीन से केवल धप–धप की आवाज आ रही थी। जिस कलाई पर आर्यमणि ने अपनी पकड़ बनाई थी, वहां से मांस के जलने की बदबू आ रही थी। सरदार खान इतना तेज चिल्ला रहा था की कैंप में सोए लोग चौंक कर उठ गए। वह सभी लोग तुरंत अपने हथियार तैयार किए, टॉर्च निकाले, और तेजी से आवाज की ओर रवाना हुए। और यहां तो सरदार खान 1 सेकंड में 6 बार जमीन पर पटका जा रहा था।


महज 2 मिनट ही तो आर्यमणि ने पटका था, तभी वहां लोगों की गंध आने लगी, जो उसी के ओर बढ़ रहे थे। आर्यमणि आखरी बार उसे जमीन पर पटक कर छोड़ दिया। फुफकार मार कर दहाड़ने वाला बीस्ट अल्फा किसी कुत्ते की तरह दर्द से बिलबिलाता कुकुकु करते वहां से अपना पिछवाड़ा बचाकर भागा। सरदार खान भागते हुए जब अपना शेप शिफ्ट करके वापस इंसान बना, तब उसके एक हाथ की कलाई का मांस ही गायब था और वहां केवल हड्डियां ही दिख रही थी। शरीर के इतने अंजर–पंजर ढीले हुए थे कि खून हर जगह से निकल रहा था और आंसू आंखों की जगह बदलकर कहीं और से निकलने लगा था।


सरदार खान के गुर्गे वहीं कुछ दूर आगे खड़े तमाशा देखते रह गए। आर्यमणि ने न तो सरदार खान को उन्हे बुलाने का मौका दिया। और जिस हिसाब से आर्यमणि ने एक हाथ से पकड़कर बीस्ट रूपी सरदार खान को जमीन पर धैर–पटक किसी बॉल की तरह पटका था, उसे देख सबकी ऐसी फटी थी कि आगे आने की हिम्मत ही नहीं हुई। सरदार खान के 20 वेयरवोल्फ चेले अपने वुल्फ रूपी आकार में थे। सभी २ लाइन बनाकर खड़े हुए और 2 लाइन के बीच में सभी ने अपने कंधों पर सरदार खान को लोड करके, उसे लेकर भागे।


जबतक शिकारी पहुंचते तबतक तो पूरा माहोल ठंडा हो चुका था। रह गए थे केवल रूही और आर्यमणि। शिकारियों की भीड़ लग गई। सभी शिकारी एक साथ सवाल पूछने में लग गए। सुकेश सबको चुप करवाते... "ये लड़की यहां पर कौन सा कांड कर रही थी आर्य"… अब वेयरवॉल्फ की दर्दनाक आवाज थी तो पूछताछ की सुई भी रूही पर जा अटकी। कुछ शिकारियों के घूरती नजर और रूही के प्रति उनका हवस भी साफ मेहसूस किया जा सकता था।


निशांत, जो एक किनारे खड़ा था... "भाऊ पता लगाना तो शिकारियों का काम है न। ऐसे सवाल पूछकर प्रहरी की बेजजती तो न करो"…


भूमि का सबसे मजबूत सहायक पैट्रिक.… "यहां जो भी हुआ था उसे शायद रूही और आर्यमणि ने हल कर दिया है। हमरी मदद भी चाहिए क्या आर्यमणि?


आर्यमणि:– नही पैट्रिक सर, सब ठीक है यहां।


पलक:– लेकिन यहां हुआ क्या था? रूही ऐसे भीषण दर्द से चीख क्यों रही थी?


निशांत:– शायद कोई बुरा सपना देखकर डर गई। अब वेयरवॉल्फ है तो उसी आवाज में चीख रही थी।


कोई एक शिकारी... "हां जहां इतने प्रहरी हो वहां ऐसे सपने आने लाजमी है।"


पैट्रिक:– प्रहरी और उसके घमंड की भी एक दास्तान होनी चाहिए... एक बात मैं साफ कर दूं.. शिकारियों की अगुवाई मैं कर रहा हूं... अगली बार अपनी गटर जैसी जुबान से किसी को प्रहरी होने का घमंड दिखा तो उसके पिछवाड़े मिर्ची डालकर निकाल दूंगा... चलो सभा खत्म करो यहां से।


प्रहरी होने का अहंकार और रूही को नीचा दिखाने का एक भी अवसर हाथ से जाने नही दे रहे थे। पैट्रिक के लिए भी शायद अब सीमा पार गया हो इसलिए उसे अंत में कहना पड़ गया। खैर सभी वापस चले गए, जबकि निशांत और आर्यमणि जंगल में तफरी करने निकल गए... "तो इसलिए तूने भ्रमित पत्थर नही लिया। तेरे पास तो तिलिस्मी ताकत है।"… आर्यमणि और रूही के पीछे निशांत भी पहुंचा था। और पूरा एक्शन अपनी आंखों से लाइव देख चुका था..


आर्यमणि:– तिलिस्मी ताकत हो भी सकती है या नही भी। वैसे भी किसी को मारने के लिए यदि ताकत सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता, फिर तो हर राष्ट्र में लाठी के जोड़ पर शासन चलता।


निशांत:– अब क्या प्रवचन देगा...


आर्यमणि:– माफ करना...


निशांत:– छोड़ भी.. और ये बता की तू है क्या? क्या तू अब तंत्र–मंत्र की दुनिया का हिस्सा है या केवल एक सुपरनैचुरल है?


आर्यमणि:– हाहाहाहाहा... मतलब मैं क्या हूं वो तू भी जानना चाहता है...


निशांत:– भी का मतलब... कोई और भी है क्या?


आर्यमणि:– हां बहुत सारे लोग... लेकिन मुझे खुद पता नही की मैं क्या हूं...


कुछ आंखों में इशारे हुए और निशांत बात को बदलते... "तू चुतिया है। काम पर ध्यान दे। हमे यहां पता क्या करना है?


आर्यमणि:– कौन सी विषम परिस्थिति का सामना करना पड़ सकता है और उस से निकले कैसे...


निशांत, अपने मोबाइल की स्क्रीन पर लिख कर स्क्रीन आर्यमणि के सामने कर दिया... "क्या हमे यहां कोई देख और सुन रहा है।"..


आर्यमणि, अपने मोबाइल में लिखकर स्क्रीन निशांत के सामने दिखाते... "माहोल देखकर समझ में नहीं आ रहा क्या? किसी को कुछ पता नही है कि करना क्या है, फिर भी सबको यहां ले आए हैं।


निशांत:– हे भगवान... यानी बहुत से लोग बलि चढ़ेंगे और पीछे रहकर कुछ लोग प्लान बनायेंगे..


आर्यमणि:– हां, भूमि दीदी की पूरी टीम है यहां। और मुझे लगता है कि भूमि दीदी बहुतों को खटकने लगी है..


निशांत:– पूरा फैसला तो पलक का था...


आर्यमणि:– यहां का मकड़जाल समझना थोड़ा मुश्किल है। कौन है वो सामने नहीं आ रहा, लेकिन पूरे खेल इशारों पर ही खेल रहा..


निशांत:– मुझे तो सुकेश भारद्वाज और उज्जवल भारद्वाज पर ही शक है। दोनो के शक्ल पर धूर्त लिखा है।


आर्यमणि:– पता नही..


निशांत:– पता नही का मतलब..


आर्यमणि:– मुझे बहुत सी बातें पता चली है, लेकिन हर बात एक ही सवाल पर अटक जाती है...


निशांत:– कौन सी?


आर्यमणि:– इतना कुछ करने के पीछे का मकसद क्या है?


निशांत:– देखा जाए तो यही सवाल तुम्हारे लिए भी है। जैसा मैंने तुझे लड़ते देखा, अब ऐसा तो नहीं है कि नागपुर आने के बाद सीखे हो। हर किसी को लगता है कि तुझमें कुछ खास है, लेकिन तुझमें वह खास क्या है, सबके लिए बड़ा सवाल है? और उस से भी बड़ा सवाल.. तू नागपुर किस मकसद से आया है? देख ये मत कहना की मेरे और चित्रा के लिए आया है। यह एक वजह हो सकती है लेकिन तेरे आने की सिर्फ यह वजह तो बिलकुल भी नहीं...


दोनो ही टेक्स्ट–टेक्स्ट लिख कर बातें कर रहे थे। निशांत के टेक्स्ट पढ़ने के बाद आर्यमणि मुस्कुराते हुए अपने स्क्रीन पर लिखते... "मैं एक वेयरवॉल्फ ही हूं। तुमने उस दिन बिलकुल सही परखा था। लेकिन मुझ पर वेयरवोल्फ या इंसानों के कोई नियम लागू नहीं होते...


निशांत:– तू कौन सा वेयरवोल्फ है, उसका डिटेल लिटरेचर दे।


आर्यमणि एक पेज खोलकर अपना मोबाइल निशांत के हाथ ने थमा दिया। निशांत जैसे–जैसे उस लिटरेचर को पढ़ता गया, आंखें बड़ी और उत्साह पूरे जोश के साथ अंदर से उफान मार रहा था। पूरा पढ़ने के बाद... "मुझे सिटी बजाने का मन कर रहा लेकिन बजा नही सकता"..


आर्यमणि:– हां मैं तुम्हारे इमोशन समझ सकता हूं।


निशांत:– खैर वुल्फ होकर तू प्रहरी के बीच आया, इसके पीछे कोई बहुत बड़ी तो वजह रही ही होगी...


आर्यमणि:– पीछे की वजह जानेगा तो तू मुझे चुतिया कहेगा। बस २ सवाल के जिज्ञासा में आया था.. और यहां आकर वही पुरानी आदत, पूरा रायता फैला दिया..


निशांत:– क्या बात कर रहा है... मतलब तूने किसी की मार रखी है और मुझे बताया तक नही...


आर्यमणि:– अभी धीमा पाइल्स दिया है। रोज सुबह दर्द में गुजरता होगा और पूरा दिन दर्द का एहसास बना रहता होगा...


निशांत:– किसकी...


आर्यमणि:– इन्ही प्रहरियों की, और किसकी... साले नालायक खुद को इंसानों से भी बढ़कर समझते हैं।


निशांत:– लगा–लगा इनकी लंका लगा... एक मिनट कही इन सबके बीच तू मेरे बाप की भी लंका तो नही लगा रहा...


आर्यमणि:– तूने इंसेप्शन मूवी देखी है..


निशांत:– हां..


आर्यमणि:– जैसे वहां सपने के अंदर सपना और उसके अंदर एक और सपना होता है, ठीक वैसा ही है..


निशांत:– मतलब यहां प्रहरी में जितने भी चुतिये है, उनके पीछे भी कोई चुतिया है..


आर्यमणि:– हाहाहाहा... बस यहीं एक जगह लोचा है। हर बॉस के ऊपर एक बिग बॉस होता है ये तो सब जानते हैं लेकिन यहां सब आबरा का डबरा चल रहा है... जल्द ही समझ जायेगा... यहां सभी बिग बॉस ही है.. दिखता ताकत और पैसे का करप्शन ही है.. लेकिन इन सबके बीच कोई बड़ा खेल चल रहा जो दिख रहे प्रहरी करप्शन से कहीं ज्यादा ऊपर है...


निशांत:– सस्पेंस में छोड़ रहा...


आर्यमणि:– मैं खुद सस्पेंस में हूं, तुझे क्यों छोड़ने लगा? ताकत और पैसे के ऊपर क्या हो सकता है?


निशांत:– मतलब तू उन सबके बारे में जानता है कि वो कौन है, लेकिन उनके दिमाग में क्या चल रहा ये नही जानता...

आर्यमणि:– सबके बारे में जानता हूं ऐसा तो नहीं कह सकता लेकिन पहले दिन से बहुत से लोगों के बारे में जानता हूं... तभी तो उसका मकसद जानने में रायता फैल गया है...


निशांत:– चल ठीक है तू जैसा ठीक समझे वैसा कर। लेकिन यहां आए शिकारियों को तो बचा ले। जनता हूं कि यहां भी कुछ प्रहरी साले घमंडी है, लेकिन बहुत से नही...


आर्यमणि:– चल मोबाइल बंद करते हैं। आराम से आज और कल का दिन बिताते है, उसके बाद सबको पीछे छोड़कर हम तीसरे दिन रीछ स्त्री के इलाके में घुस जायेंगे...


प्रहरी के काम करने का तरीका पहली बार कोई बाहर वाला देख रहा था। आर्यमणि, निशांत, रूही और अलबेली इन्हे देखकर ऊब से गए थे। यूं तो ३ टीम, ३ अलग–अलग रास्तों से छानबीन करती, लेकिन तीन दिशा से 40–50 लोगों के फैलने की भी तो जगह हो। हर कोई एक पता लगाते–लगाते एक दूसरे के दिशा में ही पता लगाना शुरू कर देते। हां लेकिन क्या पता लगा रहे थे वह किसे पता। किसी को घंटा पता नही था कि छानबीन में क्या करना है। कहने का अर्थ है कि छानबीन में बहुत कुछ पता लगाया जा सकता था, जैसे की पाऊं के निशान। कपड़े का मिलना, कोई अनुष्ठान, इत्यादि। लेकिन 5–6 किलोमीटर के इलाके को आगे 6–7 दिन तक जांच करना था, फिर होगा क्या?… ये टट्टी फलाना जानवर की। झुंड में टट्टी कर गए.. यहां खून के निशान है, लगता है रीछ स्त्री घायल हो गई.... लगता है यहां वुल्फ भी है... ऐसे–ऐसे लॉजिक जिनका कोई सर–पैर नही था।


सबको आए ३ रात हो चुके थे। कथित तौर पर रीछ स्त्री की सीमा 3 किलोमीटर और दूर था, जिसे बचे २ दिन में पूरा करना था। आर्यमणि और उसकी टीम पूरी तरह से बोर हो चुकी थी। बस एक पलक थी जो सबको अनुशासन और हर बारीकियों पर ध्यान देने कह रही थी। ३ दिन तक तो सभी ने पलक रानी की बात सुनी। चौथे दिन मानो सारे अनुशासन का चौथा कर दिया हो। सुबह कैंप में कोई मिला ही नहीं। मिला तो बस एक नोट... "हम चंद्र ग्रहण की शाम बॉर्डर पर पहुंच जायेंगे... हमारी छानबीन पूरी हुई"… ऐसा सब लिखकर गायब थे।


अलबेली और रूही नए जंगल का भ्रमण करने दूर तक निकल चुकी थी। आर्यमणि और निशांत तो अलग ही फिराक में थे, वो दोनो रीछ स्त्री की कथित सीमा तक पहुंच चुके थे। और अब बातें करते हुए आगे भी बढ़ रहे थे.…


निशांत:– अबे ३ किलोमीटर दूर सीमा थी न.. हम तो ४ किलोमीटर आगे आ गए होंगे... कहीं दिख रही रीछ स्त्री क्या?


आर्यमणि:– कुछ दिख तो रहा है, लेकिन शायद ये रीछ स्त्री नही है...


निशांत ने भी उसे देखा और देखकर अपने मुंह पर हाथ रखते.… "वेंडिगो सुपरनैचुरल"


वह क्षीणता के बिंदु पर था। उसकी सूजी हुई त्वचा उसकी हड्डियों पर कसकर खींची गई थी। उसकी हडि्डयां उसकी खाल से बाहर निकल रही थी। उसका रंग मृत्यु के भस्म सा धूसर हो गया था और उसकी आंखें अंदर गहराइयों में घुसी थी। एडियाना का सेवक सुपरनैचुरल वेंडीगो हाल ही में कब्र से विस्थापित हुए एक कठोर कंकाल की तरह लग रहा था। उसके जो होंठ थे वे फटे हुए और खूनी थे। उसका शरीर अशुद्ध था और मांस के दबाव से पीड़ित था, जिससे सड़न, मृत्यु और भ्रष्टाचार की एक अजीब और भयानक गंध आ रही थी। पास ही पड़े वह किसी इंसान के मांस को नोच–नोच कर खा रहा था।



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:reading1: :reading: :readnews:
 

Sk.

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Hahaha nahi uska kuch nahi hai... Aur na hi main kahani ke plot ko kisi bhi web series se mix karta hun... U always get fresh contain here...

Haan lekin yadi darwaja bedroom ka khulta aur pahunchta japan to pakka kah dete....

Waise Maine third season nahi dekha... Aaram se festival time me dekhunga..
तीसरा संस्करण भी बहुत से रोमांच से भरा है मित्र देखना जरूर 😊
 

nain11ster

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Wahan se to nikal liye magar ye waakai unique tha friends with benefits type
Achha fir break up nahi pach raha... Back ground me ho raha action nahi pach raha... Koi past connection hai jiski thodi jhalkiyan mili.. lekin poora itihaas kya hai wah nahi mil raha :D

Oh ek baat aur... Ye friends with benefits to katai nahi... Matlab abhi janab engagement Wale scene ke aas pass hain :D
 

jitutripathi00

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भाग:–40





सुबह सबका नाश्ता एक साथ हो रहा था। दल में २ वेयरवोल्फ रूही और अलबेली भी थी, जिन्हे सब बहुत ही ओछी नजरों से देख रहे थे। खैर सुबह के नाश्ते के बाद ही सुकेश से एक रेंजर मिलने पहुंचा, जिसने जंगल के मानचित्र पर उस जगह को घेर दिया जहां रीछ स्त्री के होने की संभावना थी। सतपुरा के उस पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचने में लगभग १२ घंटे का वक्त लगता। सभी दल ने अपना बैग पैक किया और अपने–अपने टीम के साथ निकल गए।


रात के ८ बजे सभी लोग उस जगह पर थे, जहां से छान–बिन करते हुए अगले ६ दिनो में उस सीमा तक पहुंचना था, जिसके आगे कथित तौर पर रीछ स्त्री ने अपना क्षेत्र बांधा था। सभी लोग उसी स्थान पर कैंप लगाकर सो गए। एक बड़े से हिस्से में बड़े–छोटे तकरीबन 20 टेंट लगा हुआ था। उसके मध्य में आग जल रही थी। आग के पास बारी–बारी से कुछ लोग बैठकर पहरा दे रहे थे।


मध्य रात्रि का वक्त था। शरद हवाओं के कारण चारो ओर का वातावरण बिलकुल ठंडा था। काली अंधेरी रात में जंगली जानवरों की आवाज चारो ओर गूंज रही थी। पहरेदार आग के पास बैठकर अपने शिकार के किस्से सुना रहे थे। आर्यमणि और निशांत अपने–अपने टेंट में सो रहे थे, तभी आर्यमणि के टेंट में रूही घुसी... "बॉस उठ जाओ"… हालांकि आर्यमणि तो पहले से जाग रहा था। रूही ने मुंह से जो भी कहा लेकिन अपनी भौह और आंखें सुकोडकर मानो कह रही हो... "क्यों नाटक कर रहे, तुमने सब सुना न"


आर्यमणि अपने पलकें झपका कर शांत रहने का इशारा करते.… "क्या हुआ रूही?"


रूही:– सरदार खान आया है, वो तुमसे मिलना चाहता है।

आर्यमणि:– सरदार खान यहां कैसे आ गया। और उसे मुझसे बात करनी है तो तुम्हारे टेंट में क्यों आया है? क्या उसे किसी प्रहरी ने नही देखा?


वेयरवोल्फ एक खास कम्युनिकेशन कर सकते है। लगभग 1किलोमीटर की दूरी से भी कोई बुदबुदाए तो वेयरवोल्फ सुन सकते हैं। सरदार खान ने ऐसे ही रूही को संदेश भेजा था, जिसे अलबेली और आर्यमणि दोनो ने सुना, लेकिन आर्यमणि अनजान बने हुआ था।


रूही:– एक खास कम्युनिकेशन के जरिए हम बात कर सकते हैं। यहां तक कि हम जो भी यहां बात कर रहे वह दूर बैठे सुन रहा होगा...


आर्यमणि:– ये तो काफी रोचक गुण है। चलो चलकर देखा जाए की क्यों सरदार खान की छाती में मरोड़ उठ रहा।


रूही "बिलकुल बॉस" कहती आगे बढ़ी, पीछे से आर्यमणि चल दिया। रूही, आर्यमणि को लेकर सरदार खान के निर्देशानुसार वाली जगह पर पहुंची। निर्धारित जगह पर रुकने के साथ ही आर्यमणि 10 फिट हवा में ऊपर उछल गया और उसके सीने पर से टप–टप खून टपकने लगा। सरदार खान द्वारा आर्यमणि पर सीधा हमला वह भी प्राणघाती।


आर्यमणि, हवा में ही तेज चिल्लाया... "रूही किनारे हटो"… हालांकि रूही भी तैयार थी और वक्त रहते वह किनारे हट गई। सरदार खान अपने विकराल रूप में चारो ओर के चक्कर लगा रहा था। काली अंधेरी रात में जब अपनी लाल आंखों से रूही और आर्यमणि ने उसे देखा, तब ऐसा प्रतीत हुआ मानो चार पाऊं पर खड़े किसी दानव का विकराल रूप देख रहे हो।


उसकी काली चमड़ी काफी अलग और शख्त दिख रही थी। इतनी शख्त की लोहे के १०० फिट की दीवार से भी टकराए तो उस दीवार को ध्वस्त कर दे। बदन के चारो ओर मानो हल्का काला धुवां सा उठ रहा हो। उसकी चमकती लाल आंखे खौफनाक थी। उसके चारो पंजे इतने बड़े थे कि किसी भी इंसान का मुंह को एक बार में दबोच ले। उन पंजों के आगे के नाखून, बिलकुल किसी धारदार हथियार की तरह तेज, जो एक बार चले तो अपने दुश्मन का सर धर से अलग कर दे। भेड़िए की इतनी बड़ी काली शक्ल की हृदय में कंपन पैदा कर दे। उसके बड़े–बड़े दैत्याकार दांतों की बनावट, सफेद और चमकीली। नथुनों से फुफकार मारती तेज श्वास... कुल मिलाकर एक भयावह जीव बड़ी ही तेजी के साथ आर्यमणि और रूही के चारो ओर चक्कर लगा रहा था और दोनो बस उसे अपने पास से गुजरते हुए महसूस कर रहे थे।

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5–6 बार चारो ओर के चक्कर लगाने के बाद सरदार खान आर्यमणि और रूही के ठीक सामने था। आर्यमणि, रूही को अपने पीछे लिया और हाथों के इशारे से सरदार खान को आने का निमंत्रण देने लगा। मुख पर हल्की मुस्कान, चमकता ललाट और बिना भय के खड़ा आर्यमणि, मानो सरदार खान के दैत्य स्वरूप का उपहास कर रहा हो। बचा–खुचा उपहास आर्यमणि के हाथ के इशारे ने कर दिया। जुबान से तो कुछ न निकला लेकिन आर्यमणि के इशारे ने साफ कर दिया था कि... "आ जा झंडू, तुझे देख लेता हूं।"


जैसे सरदार खान के पीछे किसी ने मिर्ची डाल दी हो जिसका धुवां उसके नाक से निकल रहा हो। ठीक वैसे ही आग लगी फुफकार उसके नथुनों से निकल रही थी और फिर तीव्र वेग से गतिमान होकर सरदार खान हमला करने के लिए हवा का झोंका बन गया। 10 क्विंटल का शैतान 300/350 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ते हुए हवा में छलांग लगा चुका था। उसने अपने पंजों में जैसे बिजली भर रखा हो। चौड़े पंजे जब खुले तब उसके नाखून किसी हीरे की तरह चमक रहे थे। विकराल सा दैत्याकार वुल्फ हवा में आर्यमणि के ठीक सामने से उसके गर्दन पर अपना पंजा चलाया।


पंजा चलाने की रफ्तार ऐसी थी कि उसका हाथ दिखा ही नही। लेकिन आर्यमणि उस विकराल दानव से भी कहीं ज्यादा तेज। आर्यमणि अपने ऊपरी शरीर को इतनी तेजी में पीछे किया मानो बिजली सी रफ्तार रही हो। आर्यमणि कब पीछे हटा और वापस अपनी जगह पर आया कोई देख नहीं पाया। दर्शक की आंखों को भले बिजली की तेजी लगे, किंतु आर्यमणि अपने सामान्य गति में ही था। उसे तो बस सामान्य सी गति में ही एक धारदार पंजे का वार अपने गर्दन पर होता दिखा और वह अपने बचाव में पीछे हटकर अपनी जगह पर आया।


उसके बाद जो हुआ शब्दों में बायां कर पाना मुश्किल। रफ्तार और वार के जवाब में आर्यमणि ने जब अपना रफ्तार और वार दिखाया फिर तो तो सब स्तब्ध ही रह गए। शरदार खान हवा से तेज रफ्तार में दौड़कर छलांग लगाते आर्यमणि के सामने था। उसका पंजा जैसे ही आर्यमणि के गर्दन को छूने वाला था, आर्यमणि अपने रफ्तार का प्रदर्शन करते पीछे हुआ और गर्दन से आगे जा रहे पंजे के ऊपर की कलाई को अपने मुट्ठी में दबोच लिया। उस पंजे को मुट्ठी में दबोचने के बाद, हमला करने के विपरीत दिशा में उसके इस भुजा को इतनी ताकत से खींचा की सरदार खान का 10 क्विंटल का पूरा शरीर ही उसी दिशा में पूरी रफ्तार के साथ खींच गया।


आर्यमणि उस पंजे की कलाई को पकड़ कर पहले दाएं फिर बाएं... फिर दाएं फिर बाएं.. मानो रबर के एक सिरे पर कोई बाल लटका दिया गया हो। जिसे पकड़कर कोई बच्चा धैर–पटक दाएं–बाएं, दाएं–बाएं, दाएं–बाएं, दाएं–बाएं, जमीन पर पटक रहा हो। पूरी रफ्तार के साथ आर्यमणि सरदार खान को दाएं और बाएं पटक रहा था। जमीन से केवल धप–धप की आवाज आ रही थी। जिस कलाई पर आर्यमणि ने अपनी पकड़ बनाई थी, वहां से मांस के जलने की बदबू आ रही थी। सरदार खान इतना तेज चिल्ला रहा था की कैंप में सोए लोग चौंक कर उठ गए। वह सभी लोग तुरंत अपने हथियार तैयार किए, टॉर्च निकाले, और तेजी से आवाज की ओर रवाना हुए। और यहां तो सरदार खान 1 सेकंड में 6 बार जमीन पर पटका जा रहा था।


महज 2 मिनट ही तो आर्यमणि ने पटका था, तभी वहां लोगों की गंध आने लगी, जो उसी के ओर बढ़ रहे थे। आर्यमणि आखरी बार उसे जमीन पर पटक कर छोड़ दिया। फुफकार मार कर दहाड़ने वाला बीस्ट अल्फा किसी कुत्ते की तरह दर्द से बिलबिलाता कुकुकु करते वहां से अपना पिछवाड़ा बचाकर भागा। सरदार खान भागते हुए जब अपना शेप शिफ्ट करके वापस इंसान बना, तब उसके एक हाथ की कलाई का मांस ही गायब था और वहां केवल हड्डियां ही दिख रही थी। शरीर के इतने अंजर–पंजर ढीले हुए थे कि खून हर जगह से निकल रहा था और आंसू आंखों की जगह बदलकर कहीं और से निकलने लगा था।


सरदार खान के गुर्गे वहीं कुछ दूर आगे खड़े तमाशा देखते रह गए। आर्यमणि ने न तो सरदार खान को उन्हे बुलाने का मौका दिया। और जिस हिसाब से आर्यमणि ने एक हाथ से पकड़कर बीस्ट रूपी सरदार खान को जमीन पर धैर–पटक किसी बॉल की तरह पटका था, उसे देख सबकी ऐसी फटी थी कि आगे आने की हिम्मत ही नहीं हुई। सरदार खान के 20 वेयरवोल्फ चेले अपने वुल्फ रूपी आकार में थे। सभी २ लाइन बनाकर खड़े हुए और 2 लाइन के बीच में सभी ने अपने कंधों पर सरदार खान को लोड करके, उसे लेकर भागे।


जबतक शिकारी पहुंचते तबतक तो पूरा माहोल ठंडा हो चुका था। रह गए थे केवल रूही और आर्यमणि। शिकारियों की भीड़ लग गई। सभी शिकारी एक साथ सवाल पूछने में लग गए। सुकेश सबको चुप करवाते... "ये लड़की यहां पर कौन सा कांड कर रही थी आर्य"… अब वेयरवॉल्फ की दर्दनाक आवाज थी तो पूछताछ की सुई भी रूही पर जा अटकी। कुछ शिकारियों के घूरती नजर और रूही के प्रति उनका हवस भी साफ मेहसूस किया जा सकता था।


निशांत, जो एक किनारे खड़ा था... "भाऊ पता लगाना तो शिकारियों का काम है न। ऐसे सवाल पूछकर प्रहरी की बेजजती तो न करो"…


भूमि का सबसे मजबूत सहायक पैट्रिक.… "यहां जो भी हुआ था उसे शायद रूही और आर्यमणि ने हल कर दिया है। हमरी मदद भी चाहिए क्या आर्यमणि?


आर्यमणि:– नही पैट्रिक सर, सब ठीक है यहां।


पलक:– लेकिन यहां हुआ क्या था? रूही ऐसे भीषण दर्द से चीख क्यों रही थी?


निशांत:– शायद कोई बुरा सपना देखकर डर गई। अब वेयरवॉल्फ है तो उसी आवाज में चीख रही थी।


कोई एक शिकारी... "हां जहां इतने प्रहरी हो वहां ऐसे सपने आने लाजमी है।"


पैट्रिक:– प्रहरी और उसके घमंड की भी एक दास्तान होनी चाहिए... एक बात मैं साफ कर दूं.. शिकारियों की अगुवाई मैं कर रहा हूं... अगली बार अपनी गटर जैसी जुबान से किसी को प्रहरी होने का घमंड दिखा तो उसके पिछवाड़े मिर्ची डालकर निकाल दूंगा... चलो सभा खत्म करो यहां से।


प्रहरी होने का अहंकार और रूही को नीचा दिखाने का एक भी अवसर हाथ से जाने नही दे रहे थे। पैट्रिक के लिए भी शायद अब सीमा पार गया हो इसलिए उसे अंत में कहना पड़ गया। खैर सभी वापस चले गए, जबकि निशांत और आर्यमणि जंगल में तफरी करने निकल गए... "तो इसलिए तूने भ्रमित पत्थर नही लिया। तेरे पास तो तिलिस्मी ताकत है।"… आर्यमणि और रूही के पीछे निशांत भी पहुंचा था। और पूरा एक्शन अपनी आंखों से लाइव देख चुका था..


आर्यमणि:– तिलिस्मी ताकत हो भी सकती है या नही भी। वैसे भी किसी को मारने के लिए यदि ताकत सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता, फिर तो हर राष्ट्र में लाठी के जोड़ पर शासन चलता।


निशांत:– अब क्या प्रवचन देगा...


आर्यमणि:– माफ करना...


निशांत:– छोड़ भी.. और ये बता की तू है क्या? क्या तू अब तंत्र–मंत्र की दुनिया का हिस्सा है या केवल एक सुपरनैचुरल है?


आर्यमणि:– हाहाहाहाहा... मतलब मैं क्या हूं वो तू भी जानना चाहता है...


निशांत:– भी का मतलब... कोई और भी है क्या?


आर्यमणि:– हां बहुत सारे लोग... लेकिन मुझे खुद पता नही की मैं क्या हूं...


कुछ आंखों में इशारे हुए और निशांत बात को बदलते... "तू चुतिया है। काम पर ध्यान दे। हमे यहां पता क्या करना है?


आर्यमणि:– कौन सी विषम परिस्थिति का सामना करना पड़ सकता है और उस से निकले कैसे...


निशांत, अपने मोबाइल की स्क्रीन पर लिख कर स्क्रीन आर्यमणि के सामने कर दिया... "क्या हमे यहां कोई देख और सुन रहा है।"..


आर्यमणि, अपने मोबाइल में लिखकर स्क्रीन निशांत के सामने दिखाते... "माहोल देखकर समझ में नहीं आ रहा क्या? किसी को कुछ पता नही है कि करना क्या है, फिर भी सबको यहां ले आए हैं।


निशांत:– हे भगवान... यानी बहुत से लोग बलि चढ़ेंगे और पीछे रहकर कुछ लोग प्लान बनायेंगे..


आर्यमणि:– हां, भूमि दीदी की पूरी टीम है यहां। और मुझे लगता है कि भूमि दीदी बहुतों को खटकने लगी है..


निशांत:– पूरा फैसला तो पलक का था...


आर्यमणि:– यहां का मकड़जाल समझना थोड़ा मुश्किल है। कौन है वो सामने नहीं आ रहा, लेकिन पूरे खेल इशारों पर ही खेल रहा..


निशांत:– मुझे तो सुकेश भारद्वाज और उज्जवल भारद्वाज पर ही शक है। दोनो के शक्ल पर धूर्त लिखा है।


आर्यमणि:– पता नही..


निशांत:– पता नही का मतलब..


आर्यमणि:– मुझे बहुत सी बातें पता चली है, लेकिन हर बात एक ही सवाल पर अटक जाती है...


निशांत:– कौन सी?


आर्यमणि:– इतना कुछ करने के पीछे का मकसद क्या है?


निशांत:– देखा जाए तो यही सवाल तुम्हारे लिए भी है। जैसा मैंने तुझे लड़ते देखा, अब ऐसा तो नहीं है कि नागपुर आने के बाद सीखे हो। हर किसी को लगता है कि तुझमें कुछ खास है, लेकिन तुझमें वह खास क्या है, सबके लिए बड़ा सवाल है? और उस से भी बड़ा सवाल.. तू नागपुर किस मकसद से आया है? देख ये मत कहना की मेरे और चित्रा के लिए आया है। यह एक वजह हो सकती है लेकिन तेरे आने की सिर्फ यह वजह तो बिलकुल भी नहीं...


दोनो ही टेक्स्ट–टेक्स्ट लिख कर बातें कर रहे थे। निशांत के टेक्स्ट पढ़ने के बाद आर्यमणि मुस्कुराते हुए अपने स्क्रीन पर लिखते... "मैं एक वेयरवॉल्फ ही हूं। तुमने उस दिन बिलकुल सही परखा था। लेकिन मुझ पर वेयरवोल्फ या इंसानों के कोई नियम लागू नहीं होते...


निशांत:– तू कौन सा वेयरवोल्फ है, उसका डिटेल लिटरेचर दे।


आर्यमणि एक पेज खोलकर अपना मोबाइल निशांत के हाथ ने थमा दिया। निशांत जैसे–जैसे उस लिटरेचर को पढ़ता गया, आंखें बड़ी और उत्साह पूरे जोश के साथ अंदर से उफान मार रहा था। पूरा पढ़ने के बाद... "मुझे सिटी बजाने का मन कर रहा लेकिन बजा नही सकता"..


आर्यमणि:– हां मैं तुम्हारे इमोशन समझ सकता हूं।


निशांत:– खैर वुल्फ होकर तू प्रहरी के बीच आया, इसके पीछे कोई बहुत बड़ी तो वजह रही ही होगी...


आर्यमणि:– पीछे की वजह जानेगा तो तू मुझे चुतिया कहेगा। बस २ सवाल के जिज्ञासा में आया था.. और यहां आकर वही पुरानी आदत, पूरा रायता फैला दिया..


निशांत:– क्या बात कर रहा है... मतलब तूने किसी की मार रखी है और मुझे बताया तक नही...


आर्यमणि:– अभी धीमा पाइल्स दिया है। रोज सुबह दर्द में गुजरता होगा और पूरा दिन दर्द का एहसास बना रहता होगा...


निशांत:– किसकी...


आर्यमणि:– इन्ही प्रहरियों की, और किसकी... साले नालायक खुद को इंसानों से भी बढ़कर समझते हैं।


निशांत:– लगा–लगा इनकी लंका लगा... एक मिनट कही इन सबके बीच तू मेरे बाप की भी लंका तो नही लगा रहा...


आर्यमणि:– तूने इंसेप्शन मूवी देखी है..


निशांत:– हां..


आर्यमणि:– जैसे वहां सपने के अंदर सपना और उसके अंदर एक और सपना होता है, ठीक वैसा ही है..


निशांत:– मतलब यहां प्रहरी में जितने भी चुतिये है, उनके पीछे भी कोई चुतिया है..


आर्यमणि:– हाहाहाहा... बस यहीं एक जगह लोचा है। हर बॉस के ऊपर एक बिग बॉस होता है ये तो सब जानते हैं लेकिन यहां सब आबरा का डबरा चल रहा है... जल्द ही समझ जायेगा... यहां सभी बिग बॉस ही है.. दिखता ताकत और पैसे का करप्शन ही है.. लेकिन इन सबके बीच कोई बड़ा खेल चल रहा जो दिख रहे प्रहरी करप्शन से कहीं ज्यादा ऊपर है...


निशांत:– सस्पेंस में छोड़ रहा...


आर्यमणि:– मैं खुद सस्पेंस में हूं, तुझे क्यों छोड़ने लगा? ताकत और पैसे के ऊपर क्या हो सकता है?


निशांत:– मतलब तू उन सबके बारे में जानता है कि वो कौन है, लेकिन उनके दिमाग में क्या चल रहा ये नही जानता...

आर्यमणि:– सबके बारे में जानता हूं ऐसा तो नहीं कह सकता लेकिन पहले दिन से बहुत से लोगों के बारे में जानता हूं... तभी तो उसका मकसद जानने में रायता फैल गया है...


निशांत:– चल ठीक है तू जैसा ठीक समझे वैसा कर। लेकिन यहां आए शिकारियों को तो बचा ले। जनता हूं कि यहां भी कुछ प्रहरी साले घमंडी है, लेकिन बहुत से नही...


आर्यमणि:– चल मोबाइल बंद करते हैं। आराम से आज और कल का दिन बिताते है, उसके बाद सबको पीछे छोड़कर हम तीसरे दिन रीछ स्त्री के इलाके में घुस जायेंगे...


प्रहरी के काम करने का तरीका पहली बार कोई बाहर वाला देख रहा था। आर्यमणि, निशांत, रूही और अलबेली इन्हे देखकर ऊब से गए थे। यूं तो ३ टीम, ३ अलग–अलग रास्तों से छानबीन करती, लेकिन तीन दिशा से 40–50 लोगों के फैलने की भी तो जगह हो। हर कोई एक पता लगाते–लगाते एक दूसरे के दिशा में ही पता लगाना शुरू कर देते। हां लेकिन क्या पता लगा रहे थे वह किसे पता। किसी को घंटा पता नही था कि छानबीन में क्या करना है। कहने का अर्थ है कि छानबीन में बहुत कुछ पता लगाया जा सकता था, जैसे की पाऊं के निशान। कपड़े का मिलना, कोई अनुष्ठान, इत्यादि। लेकिन 5–6 किलोमीटर के इलाके को आगे 6–7 दिन तक जांच करना था, फिर होगा क्या?… ये टट्टी फलाना जानवर की। झुंड में टट्टी कर गए.. यहां खून के निशान है, लगता है रीछ स्त्री घायल हो गई.... लगता है यहां वुल्फ भी है... ऐसे–ऐसे लॉजिक जिनका कोई सर–पैर नही था।


सबको आए ३ रात हो चुके थे। कथित तौर पर रीछ स्त्री की सीमा 3 किलोमीटर और दूर था, जिसे बचे २ दिन में पूरा करना था। आर्यमणि और उसकी टीम पूरी तरह से बोर हो चुकी थी। बस एक पलक थी जो सबको अनुशासन और हर बारीकियों पर ध्यान देने कह रही थी। ३ दिन तक तो सभी ने पलक रानी की बात सुनी। चौथे दिन मानो सारे अनुशासन का चौथा कर दिया हो। सुबह कैंप में कोई मिला ही नहीं। मिला तो बस एक नोट... "हम चंद्र ग्रहण की शाम बॉर्डर पर पहुंच जायेंगे... हमारी छानबीन पूरी हुई"… ऐसा सब लिखकर गायब थे।


अलबेली और रूही नए जंगल का भ्रमण करने दूर तक निकल चुकी थी। आर्यमणि और निशांत तो अलग ही फिराक में थे, वो दोनो रीछ स्त्री की कथित सीमा तक पहुंच चुके थे। और अब बातें करते हुए आगे भी बढ़ रहे थे.…


निशांत:– अबे ३ किलोमीटर दूर सीमा थी न.. हम तो ४ किलोमीटर आगे आ गए होंगे... कहीं दिख रही रीछ स्त्री क्या?


आर्यमणि:– कुछ दिख तो रहा है, लेकिन शायद ये रीछ स्त्री नही है...


निशांत ने भी उसे देखा और देखकर अपने मुंह पर हाथ रखते.… "वेंडिगो सुपरनैचुरल"


वह क्षीणता के बिंदु पर था। उसकी सूजी हुई त्वचा उसकी हड्डियों पर कसकर खींची गई थी। उसकी हडि्डयां उसकी खाल से बाहर निकल रही थी। उसका रंग मृत्यु के भस्म सा धूसर हो गया था और उसकी आंखें अंदर गहराइयों में घुसी थी। एडियाना का सेवक सुपरनैचुरल वेंडीगो हाल ही में कब्र से विस्थापित हुए एक कठोर कंकाल की तरह लग रहा था। उसके जो होंठ थे वे फटे हुए और खूनी थे। उसका शरीर अशुद्ध था और मांस के दबाव से पीड़ित था, जिससे सड़न, मृत्यु और भ्रष्टाचार की एक अजीब और भयानक गंध आ रही थी। पास ही पड़े वह किसी इंसान के मांस को नोच–नोच कर खा रहा था।

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Aryamani ke takat ki koi seema nahi hai sardar khan jaise datakar wolf ko ek rui ke jaise dhun diya. Par aryamani ke pichle 4 salo ke bare me pta nahi chalega tab tak uski takat ke bare me bhi kuch kaha nahi ja sakta. Nice update brother
Ek aur update ki pratiksha hai. Agar mil jata to mje hi mje.....
 

Anubhavp14

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आर्यमणि चारो ओर अपनी नजरें घुमाए जा रहा था। अचानक से उसकी नजर एक जगह ठहरी और वहां का नजारा देखकर आर्यमणि मुस्कुराने लगा। मिरर वाले उस हिस्से में पलक खड़ी थी। उसके हाथ में एक क्रिकेट स्टंप था। उसे वह फ्लोर पर टिकाकर बिल्कुल आर्यमणि के स्टाइल में खड़ी थी। कुछ देर वैसे ही खड़ी रही फिर पलक कॉलेज वाला एक्शन दोहराने लगी, जैसा–जैसा आर्यमणि कॉलेज में कर रहा था।


आर्यमणि, पलक के इस हरकत को पीछे से देख रहा था। पलक अपनी जिज्ञासा आइने के सामने दिखा रही थी… "सुनिए आप जरा एक किनारे खड़े होंगे।" आर्यमणि को किसी ने टोका और वो वहां से किनारे हटकर पलक के रिपीट टेलीकास्ट के एक्शन को देखने लगा।


3-4 बार पलक उस एक्ट को करने के बाद, वहीं पास के ट्रायल रूम में घुस गई और आर्यमणि मुस्कुराते हुए वहां से आगे बढ़ गया। अपनी धुन में आर्य मणि भी पलक के पीछे जाने लगा।
Bada hi cute sa moment banaya tha lekin kuch ese moment dekh fir yakeen hota hai ki nhi is palak hi aarya ki heroine hai lekin jo bhavanr me hua tha wo aankhon ke saamne aa jata hai ab kya kare ye sandeh maje bhi nhi lene deta story ke wo to jab tak puri nhi hogi aur ek bar aur nhi padhi jayegi tab tak maja nhi aane wala

चित्रा:- दीदी एक तो बात कम करता है ऊपर से आप ऐसे उसकी बोलती बंद कर दोगी तो क्या होगा।


भूमि:- किसी से बात करे कि ना करे तेरे से तो पूरी बात करता है ना। तू दिल पर हाथ रखकर बता, क्या वो मेरी बात का जवाब नहीं दे सकता था? वो भी ऐसा की हमारी बोलती बंद हो जाए।


चित्रा:- हां आपकी दोनो बात सही है। वो मुझ से बात भी करता है और यहां पर वो जवाब भी दे देता, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।


भूमि:- और क्यों नहीं किया..


चित्रा:- क्योंकि वो चाहता था हमे लगे कि हमने उससे ऐसा मज़ाक किया कि वो शर्माकर यहां से भाग गया।


भूमि:- तुझे वो दिल से मानता है और तू भी। अच्छा चित्रा तुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि आर्य तुझसे आई लव यू कहे।


चित्रा:- दीदी अगर उसे ऐसा फील होता ना कि मेरे दिल में ऐसी इक्छा है, तो भले ही उसके दिल में ऐसी इक्छा नहीं होती, लेकिन फिर भी वो बोल चुका होता।


भूमि:- और उसके दिल में ऐसी इक्छा होती की तू उसकी गर्लफ्रेंड होती..


चित्रा:- मुझे अभी फील हो जाए तो अभी कह दूंगी। कभी ना कभी किसी ना किसी को पार्टनर बनना ही है और मेरे करीबी दोस्त की ऐसी फीलिंग है तो चलो भाई कमिटेड हो जाओ।


भूमि:- कुछ तो गड़बड़ है चित्रा। इतने क्लियर कॉन्सेप्ट.. नाना कुछ ना कुछ यहां छिपाया जा रहा है। तुझे आर्य की कसम, मुझे वो बात बता जिसने तुम दोनों के बीच इतनी साफ मनसा दी है।


चित्रा:- हम दोनों ने अपने रिलेशन स्टेटस को चेंज किया था। जबरदस्ती 2 महीने तक गर्लफ्रेंड ब्वॉयफ्रैंड भी रहे। कई बार किस्स भी हुआ, लेकिन एक बार भी स्मूच नहीं हुआ। बॉयफ्रेंड के साथ चिपकने वाली कभी फीलिंग ही ना आयी। वही रेगुलर गले लगने वाली ही फीलिंग आयी। जबकि हम दोनों ने जान बूझकर काफी टाईट हग किया था, कुछ तो वैसी फीलिंग निकल आए, लेकिन नहीं निकला। और भी सुनना है या हो गया।


भूमि:- हां हां सुना सुना इंट्रेस्टिंग है ये तो।


चित्रा:- हुंह ! आगे कुछ नहीं। 2 महीने में हमे पता चल गया कि हम दोनों के बीच कुछ नहीं हो सकता, इसलिए हमने ब्रेकअप कर लिया।


भूमि:- तब बच्ची थी ना। सीने पर कुछ रहेगा तो ना फीलींग निकलती। अभी ट्राई करके देख ले।


चित्रा:- नहीं होगा कन्फर्म, क्योंकि आर्य किसी के प्यार मे है।


भूमि:- क्या बक कर रही है।


चित्रा:- मैं तो दोनो को जानती भी हूं।


भूमि:- उसका तो पता नहीं लेकिन तेरी लव स्टोरी किसी के साथ कन्फर्म है। खैर तू छिपाने वाली तो है नहीं इसलिए तेरी चिंता ना है। लेकिन आर्य... चल उसका नाम बता, कल ही आधी शादी करवाकर दोनो को बूक कर दूं।


चित्रा:- दीदी वो पलक..


जैसे ही चित्रा, पलक का नाम ली, पलक का कलेजा धक–धक। इधर भूमि हैरान होती... "क्या !! पलक???"


चित्रा:- अरे वो नहीं पलक हमे सुन रही।


पलक, सामने आती... "सॉरी, चित्रा अपनी और आर्य की लव स्टोरी बता रही थी और मैं तभी पहुंची। मुझे लगा कहीं मेरे सामने न बताए, इसलिए छिपकर सुन ली। वैसे काफी रोमांटिक लव स्टोरी थी।


भूमि:- दूसरों की लव स्टोरी छिपकर सुनते शर्म नहीं आती। चल अपने किस्से बता।


पलक:- मेरा नाम पलक भारद्वाज है। मैंने 2 साल एंट्रेंस टेस्ट की तैयारी की और पहले अटेम्प्ट में ही अच्छे मार्क्स मिले और आज मै नेशनल कॉलेज में हूं।


चित्रा:- अच्छा परपोज कितने लड़को ने किया वहीं बता दे।


पलक:- मुझे कोई प्रपोज नहीं करता।


भूमि:- चल झुटी। बड़ी आयी.. चित्रा देख इसे जारा..


चित्रा:- देखना क्या है दीदी.. अच्छा बता तो पलक तेरी फिगर क्या है।


पलक:- 32-24-34..


चित्रा:- सुना दीदी, क्या फिगर है। बिल्कुल छरहरा बदन, 5"6’ की हाइट और चेहरे की बनावट ऐसी की नजरें टिक जाए। बस एक ही कमी रह जाती है, कभी सज–संवर के नहीं निकलती। अब ऐसे फिगर वाली को कोई परपोज ना करे?


पलक:- इतने दिन से तो कॉलेज में हूं, किसी ने परपोज किया क्या अब तक?


चित्रा:- अब तू एसपी की बहन बनकर आएगी तो कौन परपोज करेगा। लोग थोड़े कम से काम चला लेते है। वैसे अपने कॉलेज में भी तेरे जैसी फिगर को टक्कर देने वाली लड़कियां है। और वो एक ग्रुप जो सबसे अलग रहता है उसकी लड़कियां इतनी हॉट होती है कि सभी लड़के उधर ही तकते रहते है। अब ऐसे माहौल में लड़के एसपी की बहन के साथ रिस्क क्यों ले? लड़के कहीं और कोशिश में लग गए होंगे। कौन पुलिस का लफड़ा पाले क्यों दीदी।?


भूमि:- अरे पुलिस वाले की बहन हुई तो क्या हुआ, लौंडे आजकल कुछ नहीं देखते, परपोज कर ही देते है।


पलक, थोड़ी चिढ़ती हुई… "ऐसा था तो मुझे अब तक आर्य ही परपोज कर देता।"..


चित्रा:- "अरे कुछ प्राउड मोमेंट होते है। भूमि दीदी आर्य जब मेरे साथ चलता है तब मैं जली-भुनी लड़कियों के रिएक्शंस ही देखती हूं। वो साले अलग-थलग ग्रुप वालों मे लौंडे भी उतना ही हैंडसम। वहां की सेक्सी हॉट लड़कियां ग्रुप के बाहर के लौंडों को देखती तक नहीं, लेकिन वो सब भी आर्य को ताड़ती रहती है, आर्य वो मैटेरियल है।"

"लड़कियां सामने से आकर जिसे परपोज करे, आर्य वो मटेरियल है और वो तुम्हे परपोज करेगा अपनी गर्लफ्रेड बनाने के लिए। वैसे भी अगर आर्य ने किसी को परपोज किया तो समझो वो गर्लफ्रेंड बनाने के लिए परपोज नहीं कर रहा, बल्कि लाइफ पार्टनर बनाने के लिए करेगा। यदि तुम्हे मेरी बातों का यकीन नहीं है तो तुम खुद देख लेना की उसकी नजर कितनी लड़कियों पर होती है, और कितनी लड़कियों की नजर उसपर।"


पलक:- तुम ज्यादा अच्छे से जानती होगी उसके बारे में। मुझे क्या करना है। मै जैसी भी हूं खुश हूं। एक लाइफ पार्टनर ही चुनना है ना, आई-बाबा जिसे चुन लेंगे मै हां कह दूंगी।


चित्रा:- बोरिंग..


भूमि:- चित्रा कल से इसे जरा बन सवर कर निकाल इसके घर से।


चित्रा:- कैसे होगा... ये सिविल लाइन 4th रोड में है और मै सिविल लाइन 1st रोड में।


भूमि:- तेरे बाजू वाले पड़ोसी का नाम बता जो पसंद नहीं।


चित्रा:- मुरली पवार, आईजी ऑफ पुलिस।


भूमि:- ठीक है, कल से इसके घर चली जाना आज रात ही ये शिफ्ट करेंगे।


पलक:- ठीक है जो भी करना है कर लेना.. अभी चले यहां से।


भूमि:- चित्रा वो हड्डी का ढांचा और निशांत किधर है।


चित्रा:- कहीं लाइन मार रहा होगा।


भूमि:- हा हा हा… पहले उन्ही दोनो की करतूत देखते है फिर आर्य को कॉल करती हूं।


पलक:- आप दोनो जाओ, मै तेजस दादा से मिलकर आती हूं।
Sat Sat Naman ho bhoomi desai ko kya to character hai ek IG ko shift karwa di sirf isiliye kyu ki do cousin aaju baaju reh le wah ......waise ye acha hua sabko clear kr diya ki kyu Chitra aur Aarya ki jodi nhi ban sakti me to clear tha kyu ki dosti apni jagah aur ek ladki ke saath relation me aana apni jagah Harry Potter me jab harmaionie Ron ko mili thi tab bhot galat lag raha tha aur us time me chota bhi tha bad me jab bada hua aur abhi bhi series dekhta hu to smjh ata hai JK Rowling sahi hai agar harry aur harmaionie ko relation me le aate to wo itne saal ki dosti wese nhi rehti jesi hai........ khair apni story par aate hai to chitra ko smjh aa gaya hai ki aarya aur palak ek dusre ko pasand karte hai tabhi wo palak ko ched rahi hai aur uska chedna kaam kar bhi gaya ek tarike se
पलक दोनो को छोड़कर एमडी चेंबर के ओर चल दी। दरवाजे पर वही शामलाल खड़ा था, पलक को देखकर पूछने लगा क्या काम है? पलक अपना नाम बतायी और वो हाथ के इशारे से अंदर जाने के लिए बोल दिया।


पलक अंदर आयि, और नजरों के सामने आर्यमणि… "तेजस दादा नहीं है क्या?"


आर्यमणि, पलक के कमर में हाथ डालकर, अपनी ओर खींचते.… "दादा नही, एक किस्स का वादा है, जो कॉलेज का मैटर खत्म करने के बाद तुम देती"…


पलक नाटकीय अंदाज में गुस्सा दिखती, खुद को आर्यमणि के पकड़ से छुड़ाने के लिए थोड़ी कसमसाती हुई.… "ये वादा कॉलेज के सामने मुझे परपोज करने के बाद का था। लेकिन शायद तुम्हारी फट गई। क्यूंकि सिर्फ तुम्हारे नागपुर में होने पर जिस अक्षरा भारद्वाज ने तुम्हे चैन से श्वांस नही लेने दिया, उसकी बेटी को सबके सामने परपोज कर देते, फिर क्या होता"…


पलक भले चिढ़ाने के लिए बोली हो लेकिन आर्यमणि बात को पूरी गंभीरता से लेते हुए.… "फिर तो फिलहाल हमे अनजान हो जाना चाहिए..."


पलक अंदर ही अंदर मुस्काती और बाहर से वह भी आर्यमणि की तरह गंभीर दिखती... "हां बिल्कुल!! तेजस दादा कहां है?"


आर्यमणि:– कहीं बाहर गए हैं।


पलक जाकर चुपचाप बैठ गई। कुछ पल तक दोनो ख़ामोश रहे… "कुछ पता है कब तक आएंगे?"..


आर्यमणि:- पता नहीं।


दोनो फिर से ख़ामोश हो गए। एक बार फिर पलक खामोशी तोड़ती हुई… "तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है?"..


आर्यमणि:- हां है।


पलक थोड़ी सी हैरान होती हुई… "लेकिन चित्रा तो बता रही थी कि तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है।"..


आर्यमणि:- अभी एक घंटे पहले बनी है, इसलिए उसे भी पता नहीं।


पलक:- पहली बार उससे कब मिले थे।


आर्यमणि:- 1 घंटे और 5 मिनट पहले।


पलक:- क्या वो चित्रा से भी खूबसूरत है?


आर्यमणि:- कल वो जब आएगी मिलने, तो खुद ही देख लेना।


पलक:- क्या वो अपने ही क्लास की है?


आर्यमणि:- कल उसकी पूरी डिटेल मिल जाएगी। अब चले यहां से दादा लगता है नहीं आने वाले।


पलक:- मै क्यों जाऊं? मै तो भूमि दीदी के साथ आयी हूं। तुम जाओ, मै दादा से मिलकर जाऊंगी।
Ye jo baat palak ne kahi wo koi bhi serious le leta lekin uske bad ye palak ka aarya ki gf puchna ye kuch smjh nhi aya ye kis tarha ka sawal hua aur aarya ko kya pehle se pata jo sahi me gf bana ke aaya roohi ko

आर्यमणि:- दीदी मैंने उसे चलने के लिए कहा था तब वो बोली दादा से मिलकर ही आएगी।


भूमि:- ठीक है एक काम कर तू उसे बाइक से छोड़ देना। मै इन तीनों को छोड़ आती हूं।


आर्यमणि:- ठीक है दीदी। अरे माधव ये लो, ये तुम्हारे लिए है।


माधव, आर्यमणि के हाथ में लैपटॉप देखकर थोड़ा आश्चर्य में पड़ गया… "नहीं दोस्त ई हमको थोड़े ना चाहिए, वापस कर दो।"..


चित्रा:- वो फ्री में नहीं दे रहा है माधव, बदले में तुम हम दोनों को मैथमेटिक्स और फिजिक्स पढ़ाओगे।


माधव:- वो तो हम वैसे भी हेल्प कर देंगे, लेकिन ई हम नहीं ले सकते है। वापस कर दीजिए इसको।


भूमि:- गार्ड इस अस्थिपंजर को उठाकर लाओ। आर्य तू वो लैपटॉप मुझे दे, हम इसके हॉस्टल के अंदर तक छोड़कर आएंगे।


माधव:- अरे लेकिन उ तो बॉयज हॉस्टल है दीदी आप काहे जाइएगा।


वो लोग माधव को लेकर चलते बने।
ab samjh aa raha hai dheere dheere madhav kya kaam aane wala hai lekin usse pehle uski body jarur banwa dena aur thoda trainned bhi karwa dena kyu ki madhav ka role bhi imp hone wala hai aage ye to smjh aa gaya hai jis tarha se aarya use laptop de raha hai wo chahata hai ki madhav sab kuch seekhe jisse wo aage jaa kr madhav ki help lega ....ye sab to theek hai lekin bhoomi ne ese kese aarya ko palak ko chodhne keh di jab ki usko bhi pata hai ki agar palak ki maa ne dono ko saath dekh liya to qayamat aani hai......
इधर आर्यमणि अटक सा गया। लगभग 1 घंटे बाद आर्यमणि के मोबाइल पर पलक का कॉल आया, और वो आर्यमणि से उसका पता पूछने लगी। आर्यमणि उसे बिल काउंटर पर ही बुला लिया।… "सॉरी मेरे कारण तुम्हे इंतजार करना पड़ा। दीदी को कॉल की तो पता चला उन्हें जरूरी काम था इसलिए उन्हें निकालना पड़ा और मै तुम्हारे साथ"..


आर्यमणि:- इट्स ओके। चलो चलकर पहले कुछ खाते है।


पलक:- बाहर में कुछ खाए क्या?


आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है चलो।


आर्यमणि, पलक को रुकने बोलकर अपनी बाइक ले आया। पलक को अचानक ध्यान आया कि आर्यमणि के पास तो बाइक है, वो भी उसके सीट की पोजिशन ऐसी है कि बिना चिपके जा नहीं सकते है… "आर्य, क्या तुम्हारे पास कार नहीं है"


आर्यमणि:- ज़िन्दगी में हर चीज का मज़ा लेना चाहिए पलक। गंभीर और शांत मै भी रहता हूं, इसका मतलब ये नहीं कि जीता नहीं हूं, हंसता नहीं हूं। तुमने तो अपने अंदर के ख्यालों को ही अपनी पूरी दुनिया बना ली है। अब आओ और ये झिझक छोड़ दो कि बाइक पर मै एक अजनबी के साथ कैसे जाऊंगी।


"चले क्या"… पलक बाइक पर बैठती हुई आर्यमणि के कंधे पर हांथ डालकर मुस्कुराती हुई कहने लगी। आर्यमणि मस्त अपनी बाइक चला रहा था और पीछे बैठकर पलक आर्यमणि से दूरी बनाने की कोशिश तो कर रही थी, लेकिन बीएमडब्लू बाइक के सीट कि पोजिशनिंग कुछ ऐसी थी कि वो जाकर आर्यमणि से चिपक जाती।


बड़ी मुश्किल से पलक 2 इंच की दूरी बनाती और इधर ट्रैफिक के कारण लगा ब्रेक उन दूरियों को मिटा देती।… "पलक कहां चलना है।"..


पलक अपने होंठ आर्यमणि के कान के करीब ले जाती… "चांदनी चौक चलेंगे पहले।"… कुछ ही देर में दोनो चांदनी चौक में थे। पलक स्ट्रीट फूड का लुफ्त उठाने आयी थी, वहां उसने जैसे ही 2 प्लेट हैदराबादी तंदूर का ऑर्डर दिया… "पलक एक ही प्लेट का ऑर्डर दो।"..


पलक:- क्यों ऐसे ठेले पर का खाना खाने में शर्म आएगी क्या?


आर्यमणि:- नहीं, मै नॉन वेज नहीं खाता।


पलक:- सच बताओ।


आर्यमणि:- हां सच ही कह रहा हूं।


पलक:- फिर छोड़ो, चलो चलते है यहां से।


आर्यमणि:- लेकिन हुआ क्या?


पलक:- साथ आए है, खाली हाथ खड़े रहोगे और मै खाऊंगी तो अजीब लगेगा ना।


आर्यमणि:- तुम आराम से खाओ, मै भी अपने लिए कुछ ले लेता हूं।


वहीं पास से उसने गरम छने समोसे लिए और पलक का साथ देते हुए वो समोसा खाने लगा। चांदनी चौक से फिर दोनो प्रताप नगर और वहां से फिर तहसील ऑफिस। हर जगह के स्ट्रीट फूड का मज़ा लेते अंत में दोनो सिविल लाइन चले आए।


जैसे ही सिविल लाइन आया, पलक… "तुम यहीं छोड़ दो, यहां से मै चली जाऊंगी।"…


आर्यमणि:- नहीं दीदी ने घर तक छोड़कर आने के लिए कहा है।


पलक, अनायास ही बोल पड़ी… "पागल हो क्या, मेरे घर जाओगे। तुम जानते भी हो वहां का क्या माहौल होगा।"


आर्यमणि:- हद है, इतना बढ़िया अनजान के रोल में घुसी थी, यहां आकर क्या हो गया?


पलक, छोटा सा मुंह बनाती... "मुझे माफ कर दो। मैं अपनी आई (अक्षरा भारद्वाज) के नाम पर तुम्हे बस छेड़ रही थी। लेकिन मेरे घर तक जाना...


आर्यमणि:- क्यों किसी लड़के के साथ जाने पर तुम्हारे घरवाले तुम्हे गोली मार देंगे क्या?


पलक:- किसी मे, और तुम मे अंतर है ना आर्य।


आर्यमणि:- मेरे माथे पर नाम नहीं लिखा है। दीदी ने कहा है तो घर तक छोड़कर ही आऊंगा।


पलक:- जिद्दी कहीं के ! ठीक है चलो।


कुछ ही दूरी पर पलक का घर था। आर्य उसे छोड़कर वापस लौट ही रहा था कि पीछे से पलक ने आवाज़ लगा दी… "सुनो आर्य"...


आर्य रुककर इशारे से पूछने लगा क्या हुआ। पलक उत्तर देती कहने लगी, दादा (राजदीप) का आवास शिफ्ट कर दिया गया है। आर्यमणि पलक को लेकर उसके नए आवास पर पहुंच गया। पलक बाइक से उतरती हुई आर्यमणि से विदा ली। लेकिन पलक जैसे ही अपना कदम बढ़ायि, आर्यमणि भी उसके पीछे चल दिया।

पलक हैरानी से आर्यमणि को देखती... "मेरे पीछे क्यूं आ रहे?

आर्यमणि:– जब इतनी दूर आ ही गया हूं, तो साथ में तुम्हारे घर भी चलता हूं। मेरे माथे पर थोड़े ना मेरा नाम लिखा है।"

पलक:– आर्य तुम समझते क्यूं नही? अंदर मत आओ..

आर्यमणि:– तुम्हे इस राजा की रानी बनना है या नही?

पलक:– हां लेकिन...

आर्यमणि:– हां तो फिर चलो...

पलक असमंजस में, और आर्यमणि मानने को तैयार नहीं... पलक, आर्यमणि को समझाकर वापस भेजने में विफल रही और नतीजा, आर्यमणि भी पलक के साथ ही अंदर घुसा... वहीं कुछ घंटे पूर्व, शॉपिंग मॉल में जैसा की भूमि, चित्रा से कही थी, ठीक वैसा ही हुआ। एसपी राजदीप और कमिश्नर राकेश नाईक का आवास आसपास था। शिफ्ट करने में कोई परेशानी ना हो इसके लिए भूमि ने कई सारे लोगों को भेज दिया था।


सुप्रीटेंडेंट और कमिश्नर का परिवार आस-पास और दोनो परिवार के लोग हॉल में बैठकर गप्पे लड़ा रहे थे, ठीक उसी वक्त पलक और आर्यमणि वहां पहुंच गये। पलक और आर्यमणि ने जैसे ही घर में कदम रखा, सभी लोगो की नजर दोनो पर। और जैसे ही नजर आर्यमणि पर गई, वहां बैठे सभी लोग घोर आश्चर्य में पड़ गए।


इससे पहले कि कोई कुछ कहता, एक उड़ता हुआ चाकू आर्यमणि के ओर चला आया और पीछे से राजदीप की मां अक्षरा चिल्लाने लगी… "ये कुलकर्णी की औलाद यहां क्या कर रहा है। पलकककक .. हट उसके पास से। जिसका साया पड़ना भी अशुद्ध होता है, तू उसे घर तक साथ ले आयी। तुझे और कोई लड़का नहीं मिला क्या पूरे नागपुर में, जो तू उस भगोड़ी जया के बेटे को यहां ले आयी।


आर्यमणि दरवाजे पर ही खड़ा था, और अक्षरा बेज्जती करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पलक को ऐसा लगा मानो उसने आर्यमणि को यहां लाकर कितनी बड़ी गलती कर गई। शब्द तीर की तरह थे जो पलक का कलेजा चिर गई और वो रोती हुई आर्यमणि को देखने लगी, मानो बहते आंसू के साथ माफी मांग रही हो।


आर्यमणि खामोशी से बात सुनता गया। अक्षरा जैसे ही चुप होकर बढ़ी धड़कनों को सामान्य करने लगी, आर्यमणि पलक के आशु पोछकर उसे शांत रहने का इशारा किया और अक्षरा के ओर चल दिया। अपने हाथ में वो चाकू लिए अक्षरा के पास पहुंचा। आर्यमणि, अक्षरा का हाथ पकड़कर उसे चाकू थमाते… "देख तो लूं जरा, कितनी नफरत भरी है आपके दिल में।"…


तभी बीच में निशांत की मां निलानजना बोलने लगी… "नहीं आर्य"..


आर्य:- नहीं आंटी अभी नहीं। बचपन से इनकी एक ही कहानी सुनकर पक गया हूं। मेरी मां के बारे में इन्होंने इतना कुछ बोला है कि मेरा दिमाग खराब हो गया। कॉलेज में मुझे परेशान करने के लिए ये लोग स्टूडेंट को उकसा रहे है। आज दुश्मनी का लेवल भी चेक कर लेने दो मुझे।… अक्षरा भारद्वाज दिखाओ लेवल। भाई मरा था ना उस दिन, तो ले लो बदला। अब चाकू लिए ऐसे ख़ामोश क्या सोच रही है?


आर्यमणि इतनी जोर से चिल्लाया की वहां के हॉल में उसकी आवाज गूंज गई। राजदीप कुछ बोलने लगा लेकिन तभी चित्रा की मां निलांजना ने उसे चुप करा दिया। आर्यमणि गुस्से में अक्षरा से अपनी नजर मिलाए… "क्यों केवल बोलना आता है, पीठ पीछे लोग भेजने आते है। आज मैंने कॉलेज ने 30 ऐसे लोगो को मारा है जो आपके कहने पर कॉलेज मुझसे लड़ने आए थे। उनमें से 2 को बहुत गन्दा तोड़ा मैंने, और जब उससे मिलने हॉस्पिटल गया तो 30-40 और लोगों को तोड़ना परा। भारद्वाज खानदान में सामने से वार करने की हिम्मत खत्म हो गई क्या? चलो चलो चलो अब दिखाओ भी नफरत।


अक्षरा बड़ी मुश्किल से चाकू ऊपर उठाई। उसके हाथ कांप रहे थे। आर्यमणि ने उसके हाथ को अपने हाथ का सहारा देकर अक्षरा की आंखों में देखा। चाकू को अपने सीने के नीचे टिकाया। लोग जैसे ही दौड़कर उसके नजदीक पहुंचते, उससे पहले ही आर्यमणि वो चाकू अपने अंदर घुसा चुका था।
Maja aaya jo tareeka Aarya ne chuna usse behtar meko bhi nhi lag raha hai ki koi dusra tareeka hota aur bhale hi chaku usko seene ke andar lena pada lekin wo healer werewolf hai to usse koi dikkt nhi jayegi lekin baakiyon ki jo to faadi hai maaja aa gaya ab bus bhoomi didi aur unki maa ka reaction kya hota hai ye dekhna hai .......aur mujhe lag bhi rha tha ki bhoomi ne chodhne kaaha hai to kuch na kuch to kaand hona hi tha .....
 

Scorpionking

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भाग:–40





सुबह सबका नाश्ता एक साथ हो रहा था। दल में २ वेयरवोल्फ रूही और अलबेली भी थी, जिन्हे सब बहुत ही ओछी नजरों से देख रहे थे। खैर सुबह के नाश्ते के बाद ही सुकेश से एक रेंजर मिलने पहुंचा, जिसने जंगल के मानचित्र पर उस जगह को घेर दिया जहां रीछ स्त्री के होने की संभावना थी। सतपुरा के उस पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचने में लगभग १२ घंटे का वक्त लगता। सभी दल ने अपना बैग पैक किया और अपने–अपने टीम के साथ निकल गए।


रात के ८ बजे सभी लोग उस जगह पर थे, जहां से छान–बिन करते हुए अगले ६ दिनो में उस सीमा तक पहुंचना था, जिसके आगे कथित तौर पर रीछ स्त्री ने अपना क्षेत्र बांधा था। सभी लोग उसी स्थान पर कैंप लगाकर सो गए। एक बड़े से हिस्से में बड़े–छोटे तकरीबन 20 टेंट लगा हुआ था। उसके मध्य में आग जल रही थी। आग के पास बारी–बारी से कुछ लोग बैठकर पहरा दे रहे थे।


मध्य रात्रि का वक्त था। शरद हवाओं के कारण चारो ओर का वातावरण बिलकुल ठंडा था। काली अंधेरी रात में जंगली जानवरों की आवाज चारो ओर गूंज रही थी। पहरेदार आग के पास बैठकर अपने शिकार के किस्से सुना रहे थे। आर्यमणि और निशांत अपने–अपने टेंट में सो रहे थे, तभी आर्यमणि के टेंट में रूही घुसी... "बॉस उठ जाओ"… हालांकि आर्यमणि तो पहले से जाग रहा था। रूही ने मुंह से जो भी कहा लेकिन अपनी भौह और आंखें सुकोडकर मानो कह रही हो... "क्यों नाटक कर रहे, तुमने सब सुना न"


आर्यमणि अपने पलकें झपका कर शांत रहने का इशारा करते.… "क्या हुआ रूही?"


रूही:– सरदार खान आया है, वो तुमसे मिलना चाहता है।

आर्यमणि:– सरदार खान यहां कैसे आ गया। और उसे मुझसे बात करनी है तो तुम्हारे टेंट में क्यों आया है? क्या उसे किसी प्रहरी ने नही देखा?


वेयरवोल्फ एक खास कम्युनिकेशन कर सकते है। लगभग 1किलोमीटर की दूरी से भी कोई बुदबुदाए तो वेयरवोल्फ सुन सकते हैं। सरदार खान ने ऐसे ही रूही को संदेश भेजा था, जिसे अलबेली और आर्यमणि दोनो ने सुना, लेकिन आर्यमणि अनजान बने हुआ था।


रूही:– एक खास कम्युनिकेशन के जरिए हम बात कर सकते हैं। यहां तक कि हम जो भी यहां बात कर रहे वह दूर बैठे सुन रहा होगा...


आर्यमणि:– ये तो काफी रोचक गुण है। चलो चलकर देखा जाए की क्यों सरदार खान की छाती में मरोड़ उठ रहा।


रूही "बिलकुल बॉस" कहती आगे बढ़ी, पीछे से आर्यमणि चल दिया। रूही, आर्यमणि को लेकर सरदार खान के निर्देशानुसार वाली जगह पर पहुंची। निर्धारित जगह पर रुकने के साथ ही आर्यमणि 10 फिट हवा में ऊपर उछल गया और उसके सीने पर से टप–टप खून टपकने लगा। सरदार खान द्वारा आर्यमणि पर सीधा हमला वह भी प्राणघाती।


आर्यमणि, हवा में ही तेज चिल्लाया... "रूही किनारे हटो"… हालांकि रूही भी तैयार थी और वक्त रहते वह किनारे हट गई। सरदार खान अपने विकराल रूप में चारो ओर के चक्कर लगा रहा था। काली अंधेरी रात में जब अपनी लाल आंखों से रूही और आर्यमणि ने उसे देखा, तब ऐसा प्रतीत हुआ मानो चार पाऊं पर खड़े किसी दानव का विकराल रूप देख रहे हो।


उसकी काली चमड़ी काफी अलग और शख्त दिख रही थी। इतनी शख्त की लोहे के १०० फिट की दीवार से भी टकराए तो उस दीवार को ध्वस्त कर दे। बदन के चारो ओर मानो हल्का काला धुवां सा उठ रहा हो। उसकी चमकती लाल आंखे खौफनाक थी। उसके चारो पंजे इतने बड़े थे कि किसी भी इंसान का मुंह को एक बार में दबोच ले। उन पंजों के आगे के नाखून, बिलकुल किसी धारदार हथियार की तरह तेज, जो एक बार चले तो अपने दुश्मन का सर धर से अलग कर दे। भेड़िए की इतनी बड़ी काली शक्ल की हृदय में कंपन पैदा कर दे। उसके बड़े–बड़े दैत्याकार दांतों की बनावट, सफेद और चमकीली। नथुनों से फुफकार मारती तेज श्वास... कुल मिलाकर एक भयावह जीव बड़ी ही तेजी के साथ आर्यमणि और रूही के चारो ओर चक्कर लगा रहा था और दोनो बस उसे अपने पास से गुजरते हुए महसूस कर रहे थे।

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5–6 बार चारो ओर के चक्कर लगाने के बाद सरदार खान आर्यमणि और रूही के ठीक सामने था। आर्यमणि, रूही को अपने पीछे लिया और हाथों के इशारे से सरदार खान को आने का निमंत्रण देने लगा। मुख पर हल्की मुस्कान, चमकता ललाट और बिना भय के खड़ा आर्यमणि, मानो सरदार खान के दैत्य स्वरूप का उपहास कर रहा हो। बचा–खुचा उपहास आर्यमणि के हाथ के इशारे ने कर दिया। जुबान से तो कुछ न निकला लेकिन आर्यमणि के इशारे ने साफ कर दिया था कि... "आ जा झंडू, तुझे देख लेता हूं।"


जैसे सरदार खान के पीछे किसी ने मिर्ची डाल दी हो जिसका धुवां उसके नाक से निकल रहा हो। ठीक वैसे ही आग लगी फुफकार उसके नथुनों से निकल रही थी और फिर तीव्र वेग से गतिमान होकर सरदार खान हमला करने के लिए हवा का झोंका बन गया। 10 क्विंटल का शैतान 300/350 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ते हुए हवा में छलांग लगा चुका था। उसने अपने पंजों में जैसे बिजली भर रखा हो। चौड़े पंजे जब खुले तब उसके नाखून किसी हीरे की तरह चमक रहे थे। विकराल सा दैत्याकार वुल्फ हवा में आर्यमणि के ठीक सामने से उसके गर्दन पर अपना पंजा चलाया।


पंजा चलाने की रफ्तार ऐसी थी कि उसका हाथ दिखा ही नही। लेकिन आर्यमणि उस विकराल दानव से भी कहीं ज्यादा तेज। आर्यमणि अपने ऊपरी शरीर को इतनी तेजी में पीछे किया मानो बिजली सी रफ्तार रही हो। आर्यमणि कब पीछे हटा और वापस अपनी जगह पर आया कोई देख नहीं पाया। दर्शक की आंखों को भले बिजली की तेजी लगे, किंतु आर्यमणि अपने सामान्य गति में ही था। उसे तो बस सामान्य सी गति में ही एक धारदार पंजे का वार अपने गर्दन पर होता दिखा और वह अपने बचाव में पीछे हटकर अपनी जगह पर आया।


उसके बाद जो हुआ शब्दों में बायां कर पाना मुश्किल। रफ्तार और वार के जवाब में आर्यमणि ने जब अपना रफ्तार और वार दिखाया फिर तो तो सब स्तब्ध ही रह गए। शरदार खान हवा से तेज रफ्तार में दौड़कर छलांग लगाते आर्यमणि के सामने था। उसका पंजा जैसे ही आर्यमणि के गर्दन को छूने वाला था, आर्यमणि अपने रफ्तार का प्रदर्शन करते पीछे हुआ और गर्दन से आगे जा रहे पंजे के ऊपर की कलाई को अपने मुट्ठी में दबोच लिया। उस पंजे को मुट्ठी में दबोचने के बाद, हमला करने के विपरीत दिशा में उसके इस भुजा को इतनी ताकत से खींचा की सरदार खान का 10 क्विंटल का पूरा शरीर ही उसी दिशा में पूरी रफ्तार के साथ खींच गया।


आर्यमणि उस पंजे की कलाई को पकड़ कर पहले दाएं फिर बाएं... फिर दाएं फिर बाएं.. मानो रबर के एक सिरे पर कोई बाल लटका दिया गया हो। जिसे पकड़कर कोई बच्चा धैर–पटक दाएं–बाएं, दाएं–बाएं, दाएं–बाएं, दाएं–बाएं, जमीन पर पटक रहा हो। पूरी रफ्तार के साथ आर्यमणि सरदार खान को दाएं और बाएं पटक रहा था। जमीन से केवल धप–धप की आवाज आ रही थी। जिस कलाई पर आर्यमणि ने अपनी पकड़ बनाई थी, वहां से मांस के जलने की बदबू आ रही थी। सरदार खान इतना तेज चिल्ला रहा था की कैंप में सोए लोग चौंक कर उठ गए। वह सभी लोग तुरंत अपने हथियार तैयार किए, टॉर्च निकाले, और तेजी से आवाज की ओर रवाना हुए। और यहां तो सरदार खान 1 सेकंड में 6 बार जमीन पर पटका जा रहा था।


महज 2 मिनट ही तो आर्यमणि ने पटका था, तभी वहां लोगों की गंध आने लगी, जो उसी के ओर बढ़ रहे थे। आर्यमणि आखरी बार उसे जमीन पर पटक कर छोड़ दिया। फुफकार मार कर दहाड़ने वाला बीस्ट अल्फा किसी कुत्ते की तरह दर्द से बिलबिलाता कुकुकु करते वहां से अपना पिछवाड़ा बचाकर भागा। सरदार खान भागते हुए जब अपना शेप शिफ्ट करके वापस इंसान बना, तब उसके एक हाथ की कलाई का मांस ही गायब था और वहां केवल हड्डियां ही दिख रही थी। शरीर के इतने अंजर–पंजर ढीले हुए थे कि खून हर जगह से निकल रहा था और आंसू आंखों की जगह बदलकर कहीं और से निकलने लगा था।


सरदार खान के गुर्गे वहीं कुछ दूर आगे खड़े तमाशा देखते रह गए। आर्यमणि ने न तो सरदार खान को उन्हे बुलाने का मौका दिया। और जिस हिसाब से आर्यमणि ने एक हाथ से पकड़कर बीस्ट रूपी सरदार खान को जमीन पर धैर–पटक किसी बॉल की तरह पटका था, उसे देख सबकी ऐसी फटी थी कि आगे आने की हिम्मत ही नहीं हुई। सरदार खान के 20 वेयरवोल्फ चेले अपने वुल्फ रूपी आकार में थे। सभी २ लाइन बनाकर खड़े हुए और 2 लाइन के बीच में सभी ने अपने कंधों पर सरदार खान को लोड करके, उसे लेकर भागे।


जबतक शिकारी पहुंचते तबतक तो पूरा माहोल ठंडा हो चुका था। रह गए थे केवल रूही और आर्यमणि। शिकारियों की भीड़ लग गई। सभी शिकारी एक साथ सवाल पूछने में लग गए। सुकेश सबको चुप करवाते... "ये लड़की यहां पर कौन सा कांड कर रही थी आर्य"… अब वेयरवॉल्फ की दर्दनाक आवाज थी तो पूछताछ की सुई भी रूही पर जा अटकी। कुछ शिकारियों के घूरती नजर और रूही के प्रति उनका हवस भी साफ मेहसूस किया जा सकता था।


निशांत, जो एक किनारे खड़ा था... "भाऊ पता लगाना तो शिकारियों का काम है न। ऐसे सवाल पूछकर प्रहरी की बेजजती तो न करो"…


भूमि का सबसे मजबूत सहायक पैट्रिक.… "यहां जो भी हुआ था उसे शायद रूही और आर्यमणि ने हल कर दिया है। हमरी मदद भी चाहिए क्या आर्यमणि?


आर्यमणि:– नही पैट्रिक सर, सब ठीक है यहां।


पलक:– लेकिन यहां हुआ क्या था? रूही ऐसे भीषण दर्द से चीख क्यों रही थी?


निशांत:– शायद कोई बुरा सपना देखकर डर गई। अब वेयरवॉल्फ है तो उसी आवाज में चीख रही थी।


कोई एक शिकारी... "हां जहां इतने प्रहरी हो वहां ऐसे सपने आने लाजमी है।"


पैट्रिक:– प्रहरी और उसके घमंड की भी एक दास्तान होनी चाहिए... एक बात मैं साफ कर दूं.. शिकारियों की अगुवाई मैं कर रहा हूं... अगली बार अपनी गटर जैसी जुबान से किसी को प्रहरी होने का घमंड दिखा तो उसके पिछवाड़े मिर्ची डालकर निकाल दूंगा... चलो सभा खत्म करो यहां से।


प्रहरी होने का अहंकार और रूही को नीचा दिखाने का एक भी अवसर हाथ से जाने नही दे रहे थे। पैट्रिक के लिए भी शायद अब सीमा पार गया हो इसलिए उसे अंत में कहना पड़ गया। खैर सभी वापस चले गए, जबकि निशांत और आर्यमणि जंगल में तफरी करने निकल गए... "तो इसलिए तूने भ्रमित पत्थर नही लिया। तेरे पास तो तिलिस्मी ताकत है।"… आर्यमणि और रूही के पीछे निशांत भी पहुंचा था। और पूरा एक्शन अपनी आंखों से लाइव देख चुका था..


आर्यमणि:– तिलिस्मी ताकत हो भी सकती है या नही भी। वैसे भी किसी को मारने के लिए यदि ताकत सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता, फिर तो हर राष्ट्र में लाठी के जोड़ पर शासन चलता।


निशांत:– अब क्या प्रवचन देगा...


आर्यमणि:– माफ करना...


निशांत:– छोड़ भी.. और ये बता की तू है क्या? क्या तू अब तंत्र–मंत्र की दुनिया का हिस्सा है या केवल एक सुपरनैचुरल है?


आर्यमणि:– हाहाहाहाहा... मतलब मैं क्या हूं वो तू भी जानना चाहता है...


निशांत:– भी का मतलब... कोई और भी है क्या?


आर्यमणि:– हां बहुत सारे लोग... लेकिन मुझे खुद पता नही की मैं क्या हूं...


कुछ आंखों में इशारे हुए और निशांत बात को बदलते... "तू चुतिया है। काम पर ध्यान दे। हमे यहां पता क्या करना है?


आर्यमणि:– कौन सी विषम परिस्थिति का सामना करना पड़ सकता है और उस से निकले कैसे...


निशांत, अपने मोबाइल की स्क्रीन पर लिख कर स्क्रीन आर्यमणि के सामने कर दिया... "क्या हमे यहां कोई देख और सुन रहा है।"..


आर्यमणि, अपने मोबाइल में लिखकर स्क्रीन निशांत के सामने दिखाते... "माहोल देखकर समझ में नहीं आ रहा क्या? किसी को कुछ पता नही है कि करना क्या है, फिर भी सबको यहां ले आए हैं।


निशांत:– हे भगवान... यानी बहुत से लोग बलि चढ़ेंगे और पीछे रहकर कुछ लोग प्लान बनायेंगे..


आर्यमणि:– हां, भूमि दीदी की पूरी टीम है यहां। और मुझे लगता है कि भूमि दीदी बहुतों को खटकने लगी है..


निशांत:– पूरा फैसला तो पलक का था...


आर्यमणि:– यहां का मकड़जाल समझना थोड़ा मुश्किल है। कौन है वो सामने नहीं आ रहा, लेकिन पूरे खेल इशारों पर ही खेल रहा..


निशांत:– मुझे तो सुकेश भारद्वाज और उज्जवल भारद्वाज पर ही शक है। दोनो के शक्ल पर धूर्त लिखा है।


आर्यमणि:– पता नही..


निशांत:– पता नही का मतलब..


आर्यमणि:– मुझे बहुत सी बातें पता चली है, लेकिन हर बात एक ही सवाल पर अटक जाती है...


निशांत:– कौन सी?


आर्यमणि:– इतना कुछ करने के पीछे का मकसद क्या है?


निशांत:– देखा जाए तो यही सवाल तुम्हारे लिए भी है। जैसा मैंने तुझे लड़ते देखा, अब ऐसा तो नहीं है कि नागपुर आने के बाद सीखे हो। हर किसी को लगता है कि तुझमें कुछ खास है, लेकिन तुझमें वह खास क्या है, सबके लिए बड़ा सवाल है? और उस से भी बड़ा सवाल.. तू नागपुर किस मकसद से आया है? देख ये मत कहना की मेरे और चित्रा के लिए आया है। यह एक वजह हो सकती है लेकिन तेरे आने की सिर्फ यह वजह तो बिलकुल भी नहीं...


दोनो ही टेक्स्ट–टेक्स्ट लिख कर बातें कर रहे थे। निशांत के टेक्स्ट पढ़ने के बाद आर्यमणि मुस्कुराते हुए अपने स्क्रीन पर लिखते... "मैं एक वेयरवॉल्फ ही हूं। तुमने उस दिन बिलकुल सही परखा था। लेकिन मुझ पर वेयरवोल्फ या इंसानों के कोई नियम लागू नहीं होते...


निशांत:– तू कौन सा वेयरवोल्फ है, उसका डिटेल लिटरेचर दे।


आर्यमणि एक पेज खोलकर अपना मोबाइल निशांत के हाथ ने थमा दिया। निशांत जैसे–जैसे उस लिटरेचर को पढ़ता गया, आंखें बड़ी और उत्साह पूरे जोश के साथ अंदर से उफान मार रहा था। पूरा पढ़ने के बाद... "मुझे सिटी बजाने का मन कर रहा लेकिन बजा नही सकता"..


आर्यमणि:– हां मैं तुम्हारे इमोशन समझ सकता हूं।


निशांत:– खैर वुल्फ होकर तू प्रहरी के बीच आया, इसके पीछे कोई बहुत बड़ी तो वजह रही ही होगी...


आर्यमणि:– पीछे की वजह जानेगा तो तू मुझे चुतिया कहेगा। बस २ सवाल के जिज्ञासा में आया था.. और यहां आकर वही पुरानी आदत, पूरा रायता फैला दिया..


निशांत:– क्या बात कर रहा है... मतलब तूने किसी की मार रखी है और मुझे बताया तक नही...


आर्यमणि:– अभी धीमा पाइल्स दिया है। रोज सुबह दर्द में गुजरता होगा और पूरा दिन दर्द का एहसास बना रहता होगा...


निशांत:– किसकी...


आर्यमणि:– इन्ही प्रहरियों की, और किसकी... साले नालायक खुद को इंसानों से भी बढ़कर समझते हैं।


निशांत:– लगा–लगा इनकी लंका लगा... एक मिनट कही इन सबके बीच तू मेरे बाप की भी लंका तो नही लगा रहा...


आर्यमणि:– तूने इंसेप्शन मूवी देखी है..


निशांत:– हां..


आर्यमणि:– जैसे वहां सपने के अंदर सपना और उसके अंदर एक और सपना होता है, ठीक वैसा ही है..


निशांत:– मतलब यहां प्रहरी में जितने भी चुतिये है, उनके पीछे भी कोई चुतिया है..


आर्यमणि:– हाहाहाहा... बस यहीं एक जगह लोचा है। हर बॉस के ऊपर एक बिग बॉस होता है ये तो सब जानते हैं लेकिन यहां सब आबरा का डबरा चल रहा है... जल्द ही समझ जायेगा... यहां सभी बिग बॉस ही है.. दिखता ताकत और पैसे का करप्शन ही है.. लेकिन इन सबके बीच कोई बड़ा खेल चल रहा जो दिख रहे प्रहरी करप्शन से कहीं ज्यादा ऊपर है...


निशांत:– सस्पेंस में छोड़ रहा...


आर्यमणि:– मैं खुद सस्पेंस में हूं, तुझे क्यों छोड़ने लगा? ताकत और पैसे के ऊपर क्या हो सकता है?


निशांत:– मतलब तू उन सबके बारे में जानता है कि वो कौन है, लेकिन उनके दिमाग में क्या चल रहा ये नही जानता...

आर्यमणि:– सबके बारे में जानता हूं ऐसा तो नहीं कह सकता लेकिन पहले दिन से बहुत से लोगों के बारे में जानता हूं... तभी तो उसका मकसद जानने में रायता फैल गया है...


निशांत:– चल ठीक है तू जैसा ठीक समझे वैसा कर। लेकिन यहां आए शिकारियों को तो बचा ले। जनता हूं कि यहां भी कुछ प्रहरी साले घमंडी है, लेकिन बहुत से नही...


आर्यमणि:– चल मोबाइल बंद करते हैं। आराम से आज और कल का दिन बिताते है, उसके बाद सबको पीछे छोड़कर हम तीसरे दिन रीछ स्त्री के इलाके में घुस जायेंगे...


प्रहरी के काम करने का तरीका पहली बार कोई बाहर वाला देख रहा था। आर्यमणि, निशांत, रूही और अलबेली इन्हे देखकर ऊब से गए थे। यूं तो ३ टीम, ३ अलग–अलग रास्तों से छानबीन करती, लेकिन तीन दिशा से 40–50 लोगों के फैलने की भी तो जगह हो। हर कोई एक पता लगाते–लगाते एक दूसरे के दिशा में ही पता लगाना शुरू कर देते। हां लेकिन क्या पता लगा रहे थे वह किसे पता। किसी को घंटा पता नही था कि छानबीन में क्या करना है। कहने का अर्थ है कि छानबीन में बहुत कुछ पता लगाया जा सकता था, जैसे की पाऊं के निशान। कपड़े का मिलना, कोई अनुष्ठान, इत्यादि। लेकिन 5–6 किलोमीटर के इलाके को आगे 6–7 दिन तक जांच करना था, फिर होगा क्या?… ये टट्टी फलाना जानवर की। झुंड में टट्टी कर गए.. यहां खून के निशान है, लगता है रीछ स्त्री घायल हो गई.... लगता है यहां वुल्फ भी है... ऐसे–ऐसे लॉजिक जिनका कोई सर–पैर नही था।


सबको आए ३ रात हो चुके थे। कथित तौर पर रीछ स्त्री की सीमा 3 किलोमीटर और दूर था, जिसे बचे २ दिन में पूरा करना था। आर्यमणि और उसकी टीम पूरी तरह से बोर हो चुकी थी। बस एक पलक थी जो सबको अनुशासन और हर बारीकियों पर ध्यान देने कह रही थी। ३ दिन तक तो सभी ने पलक रानी की बात सुनी। चौथे दिन मानो सारे अनुशासन का चौथा कर दिया हो। सुबह कैंप में कोई मिला ही नहीं। मिला तो बस एक नोट... "हम चंद्र ग्रहण की शाम बॉर्डर पर पहुंच जायेंगे... हमारी छानबीन पूरी हुई"… ऐसा सब लिखकर गायब थे।


अलबेली और रूही नए जंगल का भ्रमण करने दूर तक निकल चुकी थी। आर्यमणि और निशांत तो अलग ही फिराक में थे, वो दोनो रीछ स्त्री की कथित सीमा तक पहुंच चुके थे। और अब बातें करते हुए आगे भी बढ़ रहे थे.…


निशांत:– अबे ३ किलोमीटर दूर सीमा थी न.. हम तो ४ किलोमीटर आगे आ गए होंगे... कहीं दिख रही रीछ स्त्री क्या?


आर्यमणि:– कुछ दिख तो रहा है, लेकिन शायद ये रीछ स्त्री नही है...


निशांत ने भी उसे देखा और देखकर अपने मुंह पर हाथ रखते.… "वेंडिगो सुपरनैचुरल"


वह क्षीणता के बिंदु पर था। उसकी सूजी हुई त्वचा उसकी हड्डियों पर कसकर खींची गई थी। उसकी हडि्डयां उसकी खाल से बाहर निकल रही थी। उसका रंग मृत्यु के भस्म सा धूसर हो गया था और उसकी आंखें अंदर गहराइयों में घुसी थी। एडियाना का सेवक सुपरनैचुरल वेंडीगो हाल ही में कब्र से विस्थापित हुए एक कठोर कंकाल की तरह लग रहा था। उसके जो होंठ थे वे फटे हुए और खूनी थे। उसका शरीर अशुद्ध था और मांस के दबाव से पीड़ित था, जिससे सड़न, मृत्यु और भ्रष्टाचार की एक अजीब और भयानक गंध आ रही थी। पास ही पड़े वह किसी इंसान के मांस को नोच–नोच कर खा रहा था।

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Jabardast update bhai maza aa gaya lekin ye वेंडिगो सुपरनैचुरल kis Bala ka naam hai .
 

nain11ster

Prime
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Ohoho bhatakte musafir Marne se pahle apni mahatvapurn khojo ko likh kr gye Jiski jankari hmare Nainu bhaya ko prapt Hui or unke jariye Aaj hame pta Chal rha hai or hame ek awesome kahani Padhne ko mil rhi hai Gajab :applause: arya tum to bade heavy driver ke yha coaching karte rahe ho bhaya, Tabhi itne unche sanskar mile hai...
Arya or Nishant ne khoja tha aur tb unhone ek dusre ko bhi vha dobara na jane dene ka promise kiya tha lekin arya us potli ko yha le aaya, idhar Kon si anguthi kon pahnega Ispr Tu tu mai mai Chal rhi thi, mere ko sunne me bada maza aa rha tha ki richa madam ne potli utha li vo to Accha hua ki Sherni ki potty bta kr mamla samhal liya Varna gye the aaj, richa madam ko bhanak bhi nhi thi ki uske hath kya lga hai pr bhumi Di ke vha aa jane pr mamla nipat gya...
To ek ek anguthi dono ne pahan liya hai, idhar ye bhi dekhne mila ki arya ne Nishant ko Vahi anguthi di jo bhatakte musafir ki thi aur khud vo pahni jo chori ki thi, arya nishant ko dur rakhna chahta hai musibat se or dard se...
aapne ek jagah kaha tha arya lopche ke katne se werewolf nhi badla hai or idhar apne Nishant ne kaha ki Chal arya mujhe apna werewolf vala rup dikha 📢 kya ye Vahi hai jo ham soch rhe hai :wave:
Arya or Nishant ko hathiyar chuj karne ka kaha or sath me majak bhi udaya udhar Nishant ka javab sun dil ko thandhak pad gyi...
Bhatakte musafir ne apne asthiyo ke dibbe ke upar Sanskrit me likha tha ek khoji ka dusre khoji ke liye uphar, gaur se dekhne pr isme kai saval mil sakte hai pr Apan ko itna andar nhi Jane ka hai bhaya...
Arya or Nishant ne apni shopping kr li hai or ab Sabhi apni taiyari kr nikal chuke hai, Dekhte hai kya kya or Kis Kis se samna hota hai inka...
Superb bhai lajvab amazing Jabardast update sandar Nainu bhaya
Bhag 39 par koi vichar nahi aaya... Lagta hai alag se likha hai... Waise ek baat bata dun ki nishant jis tarah se kaha tha wah bus mazak me kaha tha... Jaise use sab samjhte hain... Baki nishant 39 update tak to nahi hi janta tha ki wah kya hai... Baki aage to sab clear hi hai...
 
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