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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–4




इसके पूर्व आर्यमणि गार्ड्स की आंखों में धूल झोंककर सीधा जंगल पहुंचा। बहुत देर तक वो मैत्री के कत्ल की सुराग ढूंढने की कोशिश करता रहा। उसे बहुत ज्यादा जानकारी हाथ तो नहीं लगी, लेकिन मैत्री का बैग जरूर मिला, जिसमे उसकी कई सारे सामान के साथ एक डायरी थी, और हर पन्ने पर आर्यमणि के लिए कुछ ना कुछ था। और उसी बैग से आर्यमणि के हाथ कुछ ऐसा भी लगा जिसे वह नजरंदाज नहीं कर सकता था.…


पूरे गंगटोक में मैत्री और आर्यमणि के बीच के भावनात्मक जुड़ाव को सब जानते थे। यूं तो आर्यमणि बहुत ही सीमित बात करता था, लेकिन जिस दिन मैत्री यहां से जर्मनी गई थी, आर्यमणि ने 3 महीने बाद अपने माता-पिता से बात किया था, और सिर्फ एक ही बात… "उसे भी जर्मनी भेज दे।"..


मैत्री की वो डायरी पुराने दर्द को कुरेद गई। मैत्री ने जैसे पन्नो पर अरमान लिखे थे... "एक बार आर्य को अपने परिवार के साथ देखना चाहती हूं। कितना हसीन वो पल होगा जब हर दूरी समाप्त होगी। आर्य हमारे साथ होगा। एक दिन... शायद कभी..."


कुछ दिन बाद...


आर्यमणि श्रीलंका के एक बीच पर था। मैत्री के बैग पर श्रीलंका के होटल का टैग लगा था, जिसके पीछे आर्यमणि यहां तक पहुंचा था। दिल के दर्द अंदर से नासूर थे, बस एक सुराग की जरूरत थी। सुरागों की तलाश में आर्यमणि श्रीलंका पहुंच तो गया लेकिन यहां उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ।


3 दिन बेकार बिताने के बाद चौथे दिन आर्यमणि के होटल कमरे के बाहर शुहोत्र खड़ा था। आर्यमणि बिना कोई भाव दिए कमरे का दरवाजा पूरा खोल दिया और शूहोत्र अंदर। अंदर आते ही शुहोत्र कुछ–कुछ बोलने लगा। वह जो भी बात कर रहा था, उसमे आर्यमणि की रुचि एक जरा भी नहीं थी। बहुत देर तक उसकी बातें बर्दास्त करने के बाद, जब आर्यमणि से नही रहा गया, तब वह शुहोत्र का कॉलर पकड़कर.… "लंगड़ा लोपचे की कहानी यदि भूल गए हो तो मैं तुम्हारा दूसरा टांग तोड़कर उन यादों को फिर से ताजा कर दूं क्या?"…


शुहोत्र:– तुम्हारी उम्र और तुम्हारी बातें कभी मैच ही नहीं करती। और उस से भी ज्यादा तुम्हारी फाइट... इतनी छोटी उम्र में इतना सब कर कैसे लेते हो..


आर्यमणि:– सुनो लोपचे, यदि जान बचाने के बदले मेरे बाप की तरह तुम भी मेरे फिक्रमंद बनते रहे और मुझे घर लौटने की सलाह देते रहे, तो कसम से मैं ही तुम्हारी जान निकाल लूंगा। यदि मैत्री के कातिलों के बारे में कुछ पता है तो बताओ, वरना दरवाजे से बाहर हो जाओ..


शुहोत्र:– मैत्री के कातिलों की यदि तलाश होती फिर तुम यहां नही, बल्कि नागपुर में होते। क्यों उसके कातिलों को ढूंढने का ढोंग कर रहे?


आर्यमणि:– अब तेरा नया चुतियापा शुरू हो गया...


शुहोत्र:– क्यों खुद को बहला रहे हो आर्य। तुम्हारा दिल भी जनता है कि मैत्री को किसने मारा...


आर्यमणि:–शुहोत्र बेहतर होगा अब तुम मुझे अकेला छोड़ दो... इस से पहले की मैं अपना आपा खो दूं, भागो यहां से...


शुहोत्र:– तुम मुझसे नफरत कर सकते हो लेकिन मैत्री मेरी बहन थी और मैं उसका भाई, ये बात तुम मत भूलना। तुमसे बात करने की एक ही वजह है, और वो है मैत्री की कुछ इच्छाएं, जिस वजह से तुम्हे सुन रहा हूं, वरना जान तो मैं भी ले सकता हूं।


आर्यमणि बिना कुछ बोले पूरा दरवाजा खोल दिया और हाथ के इशारे से शुहोत्र को जाने के लिए कहने लगा। शुहोत्र दरवाजे से बाहर कदम रखते.… "मैत्री की डायरी में मैने ही श्रीलंका का टैग लगाया था। उसके अरमान उस डायरी के कई पन्ने पर लिखे है। यदि मैत्री की एक अधूरी इच्छा पूरी करनी हो तो कमरा संख्या २०२१ में चले आना।


शुहोत्र अपनी बात कह कर निकल गया। आर्यमणि झटके से दरवाजा बंद करके सोफे पर बैठा और मैत्री की डायरी को सीने से लगाकर, रोते हुए मैत्री, मैत्री चिल्लाने लगा। डायरी के कई ऐसे पन्ने थे, जिसपर मैत्री के मायूस अरमान लिखे थे... "तुम यहां क्यों नहीं... हम भारत में नही रह सकते, कम से कम तुम तो यहां आ सकते हो। अपने पलकों में सजा लूंगी, तुम सीने में कहीं छिपा लूंगी। यहां हम सुकून से एक दूसरे के साथ रहेंगे। एक बार आर्य को अपने परिवार के साथ देखना चाहती हूं। कितना हसीन वो पल होगा जब हर दूरी समाप्त होगी। आर्य हमारे साथ होगा। एक दिन... शायद कभी..."


डायरी में लिखे चंद लाइंस आर्यमणि को बार–बार याद आ रहे थे। अंत में आंसुओं को पोंछ कर आर्यमणि शुहोत्र के साथ सफर करने चल दिया। चल दिया मैत्री के उस घर, जहां मैत्री उसे अपने परिवार के साथ देखना चाहती थी।


सुहोत्र और आर्यमणि फ्लाइट में थे.... शूहोत्र आर्यमणि को देखकर… "एक भावनाहीन लड़के के अंदर की भावना को भी देख लिया आर्यमणि। जिस हिसाब से तुम्हारे बारे में लोगों ने बताया, मुझे लगा तुम मैत्री को भुल चुके होगे? लेकिन मैं गलत था।और वो लोग भी जो ये कहते थे कि तुम मैत्री को कबका भूल चुके होगे। इतनी छोटी उम्र में कितना प्यार करते थे उससे।"..


आर्यमणि:- अब इन बातों का क्या फायदा, बस वो जहां रहे हंसती रहे।


शूहोत्र:- उस रात तुम जंगल में क्यों आए थे?


आर्यमणि अपने आखों पर पर्दा डालकर बिना कोई जवाब दिए हुए सो गया। उसे देखकर शूहोत्र खुद से ही कहने लगा…. "जर्मनी में ये सरदर्द देने वाला है।"


जर्मनी का फ्रेबुर्ग शहर, जहां का ब्लैक फॉरेस्ट इलाका अपनी पर्वत श्रृंखला और बड़े–बड़े घने जंगलों के लिए मशहूर है। रोमन जब पहली बार यहां आए थे तब इन जंगलों में दिन के समय में भी सूरज की रौशनी नहीं पहुंचती थी और चारो ओर अंधेरा ही रहता था। तभी से यहां का नाम ब्लैक फॉरेस्ट पर गया।


शूहोत्र जब आर्यमणि को लेकर उस क्षेत्र की ओर बढ़ने लगा, वहां का चारो ओर का नजारा बिल्कुल जाना पहचाना सा लग रहा था। फ्रेबूर्ग शहर के सबसे शांत क्षेत्र में था शूहोत्र का निवास स्थान, जहां दूर-दूर तक कोई दूसरा मकान नहीं था। मकान से तकरीबन 100 मीटर की दूरी से शुरू हो जाता था जंगल का इलाका।


शूहोत्र के लौटने की खबर तो पहले से थी, लेकिन उस बंगलो में रहने वाले लोगों को जारा भी अंदाजा नहीं था कि वो अपने साथ एक मेहमान लेकर आएगा। अजीब सा वह बंगलो था, जिसका नाम वुल्फ हाउस था। दरवाजे से अंदर जाते ही एक बहुत बड़ा हाल था,लगभग 1000 फिट का। पूरे हॉल को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे यहां पर्याप्त रौशनी नहीं है। हल्का अंधेरा सा, जैसे कोई शैतान को पूजने की जगह हो। अजीब सी बू चारो ओर फैली थी। और एक बड़ा सा डायनिंग टेबल जिसपर बैठकर आराम से 80–90 लोग खाना खा सकते थे।



तकरीबन 60–70 लोग थे उस हॉल में जब आर्यमणि वहां पहुंचा। सभी मांस पर पागल कुत्ते की तरह झरप कर रहे थे। जैसे ही उन्होंने अजनबी को देखा सब सीधे होकर बैठ गए। वहां मौजूद हर कोई आर्यमणि को ही देख रहा था। उन्ही लोगों में से एक कमसिन, बला की खूबसूरत, नीले आंखों वालि लड़की आर्यमणि के नजदीक जाकर उसके गर्दन की खुशबू लेने लगी…. "उफ्फ ! ये तो दीवाना बना रहा है मुझे।"..


शूहोत्र उस लड़की को धक्का देकर पीछे धकेलते हुए… "रोज, जाकर अपनी जगह पर बैठ जाओ।"..


रोज, उसे घूरती हुई जाकर अपनी जगह पर बैठ गई…. शूहोत्र आर्य से.… "सॉरी आर्य वो मेरी कजिन रोज थी, बाद में तुम्हे मै सबसे परिचय करवाता हूं। अभी तुम थक गए होगे जाकर आराम करो।".. शूहोत्र, आर्य अपने साथ बाहर लेकर आया और गेस्ट रूम के अंदर उसे भेजकर खुद बंगलो में आ गया।


शूहोत्र के पिता जीतन लोपचे, सुहोत्र को अपनी आंखें दिखाते…. "किसे साथ लाना चाहिए किसे नहीं, ये बात भी मुझे सीखानी होगी क्या? पहले ही इस लड़के की वजह से हम बहुत कुछ झेल चुके है।"


शूहोत्र:- इस लड़के की वजह से हमने कुछ नहीं झेला है पापा। हम अपनी गलतियों का दोष किसी और पर नहीं दे सकते। आपकी जिद की वजह से लोपचे कॉटेज की घटना हुई थी और आपके बेवजह रुल की वजह से मैत्री मारी गई। मैं भी लगभग मरा ही हुआ था, यदि आर्य सही वक़्त पर नहीं आया होता।


उस घर की मुखिया और जीतन कि दूर की रिश्तेदार… ईडन, शूहोत्र की आखों में झांककर देखती हुई…. "वो लड़का तुम्हारा बिटा है।"..


शूहोत्र, अपनी नजरें चुराते…. "मुझे बचाने के क्रम में गलती से उसके हथेली पर पूरी बाइट दे दिया, और वो लड़का पूरी बाइट झेल गया, मरा नहीं।"..


रोज:- ओह तभी उससे मिश्रित खून की बू आ रही थी। बहुत आकर्षक खुशबू थी वैसे।


शूहोत्र:- क्या यहां किसी को मैत्री के जाने का गम नहीं है?


ईडन:- तुम नियम भुल रहे हो। मैत्री से पहले ही कही थी, अकेली वो जिंदा नहीं रह सकती, मारी जाएगी। उसी ने हमसे कहा था यहां रोज-रोज मरने से अच्छा है कि एक बार में ही मर जाऊं। उसने अपनी मौत खुद चुनी, और तुम खुशकिस्मत हो जो बिना अपने पैक के बच गए। आज रात जाने वाले के लिए जश्न होगा और हम अपने नए सदस्य का स्वागत करेंगे।


ईडन के को सुनने के बाद शूहोत्र की फिर हिम्मत नहीं हुई कुछ बोलने कि। शूहोत्र चुपचाप अपने कमरे में चला गया और अपनी बहन के साथ ली गई तस्वीरों को भींगे आंख देखने लगा।


रात का वक़्त होगा। हॉल में पार्टी जैसा माहौल था और कई घबराए से मासूम जानवर जैसे कि खरगोश, हिरण, जंगली सूअर बंधे हुए थे। मैत्री की बड़ी सी एक तस्वीर लगी थी और तस्वीर के नीचे टेबल पर एक बड़ा सा नाद रखा हुआ था। आर्यमणि जैसे ही हॉल में पहुंचा, वहां का अजीब माहौल देखकर वो अंदाज़ा लगा पा रहा था कि वो किन लोगों के बीच है।


एक लड़की आर्यमणि के करीब आकर खड़ी होती हुई… "तुम आर्य हो ना।"..


आर्यमणि उसे गौर से देखने लगा… लगभग न बताने लायक कमसिन उम्र। आकर्षक बदन जिसपर ना चाहते हुए भी ध्यान खींचा चला जाए। उसे देखने का अजीब ही कसिस थी। नीली आखें, ब्लोंड बाल, और चेहरा इतना चमकता हुआ कि रौशनी टकराकर वापस चली जाए। आर्यमणि खुद पर काबू पाकर गहरी श्वांस लिया… "तुम व्हाइट फॉक्स यानी कि ओशुन हो ना।"..


ओशुन, मुस्कुराकर अपने हाथ उसके ओर बढ़ती…. "पहचान गए मुझे। मैत्री ने तुम्हारे बारे में मुझे बताया था। उसकी चॉइस पर मुझे अब जलन हो रही है।"


आर्यमणि:- तुमने यहां सम्मोहन किया है क्या? मै खुद में बेबस सा मेहसूस कर रहा हूं। तुम्हे वासना भरी नजरो से देखने से खुद को रोक नहीं पा रहा।


ओशुन:- अभी तो ठीक से मैत्री की अंतिम विदाई भी नहीं हुई और तुम अपने लवर के बेस्ट फ्रेंड के बारे में ऐसे विचार पाल रहे हो।


आर्यमणि उसकी बात सुनकर वहां से थोड़ा दूर किनारे में अलग आकर खड़ा हो गया और सामने के रश्मों को देखने लगा। जैसे ही ईडन वहां पहुंची माहौल में सरगर्मी बढ़ गई। जाम के गलास को टोस्ट करते हुए ईडन कहने लगी… "हमारे बीच हमारी एक साथी नहीं रही, जाने वाले को हम खुशी-खुशी अंतिम विदाई देंगे।" ईडन ने आन्नाउंसमेंट किया और सबसे पहले मैत्री के पिता उसकी तस्वीर के सामने खड़े हो गए। अपने हथेली को चीरकर कुछ देर तक खून को नादी में गिरने दिया उसके बाद अपनी हथेली ईडन के ओर बढ़ा दिया।..


उफ्फ ये मंजर। जिसे आज तक पौराणिक कथाओं में सुना था। जिसके अस्तित्व लगभग ना के बराबर आर्यमणि ने मान लिया था। शक तो उसे उस रात से था जबसे उसने मैत्री का वो लॉकेट हटाया और उसका शरीर भेड़िया जैसे दिखने लगा। सुहोत्र का मुंह बंद करने के क्रम में, नुकीले दांत अंदर हथेली फाड़ कर घुस जाना, और छोटे रास्ते से लौटते वक़्त शूहोत्र का उन लोमड़ी को कंट्रोल करके रखना, जो खून की प्यासी थी।


किन्तु अब तक जो भी हुआ उसे आर्यमणि एक दिमागी उपज मानकर ही खुद को समझता रहा था। उसे लग रहा था कि वो कुछ ज्यादा ही वेयरवुल्फ की कहानियों के बारे में सोच रहा है। लेकिन जितन का हाथ जैसे ही ईडन के चेहरे के पास गया, ईडन की आखें काली से लाल हो गई। उसके शरीर में बदलाव आने लगा और अपने हाइट से 4 फिट लंबी हो गई।


हाथ किसी भेड़िए के पंजे में तब्दील हो गए। दो बड़ी–बड़ी नुकीली दातों के के बीच में कई सारे छोटे–छोटे नुकीली दांत, अपना बड़ा सा मुंह फाड़कर हथेली का कटा हुआ हिस्सा उसने मुंह में लिया और जैसे ही चूसना शुरू कि, जीतन की तेज चिंख नकल गई। उसकी भी आंखे लाल हो गई, बड़े–बड़े नाखूनों वाले पंजे आ गए, और वो बड़ी ही बेचैनी के साथ चिल्ला रहा था।


थोड़ी देर खून चूसने के बाद जैसे ही ईडन ने जीतन का हाथ छोड़ा वो लड़खड़ाकर नीचे गिरने लगा। लोगो ने उसे सहारा देकर बिठाया। ऐसे ही एक-एक करके सबने किया, पहले नादी में खून गिराया फिर खून चूसने दिया। यहां का अजीब खूनी खेल देखकर आर्यमणि को अजीब लगने लगा, और वो समारोह को छोड़कर बाहर जाने लगा।


वह गेट के ओर 2 कदम बढ़ाया ही था कि तेजी के साथ ओशुन उसके करीब पहुंचती…. "समारोह छोड़कर जाने का अर्थ होगा ईडन का अपमान। मत जाओ यहां से।"


आर्यमणि:- क्या मै यहां एक कैदी हूं?


ओशुन:- नहीं, यहां कोई कैदी नहीं, बस नियम से बंधे एक सदस्य हो। तुम्हे यदि यहां का माहौल अच्छा नहीं लग रहा तो मूझपर कन्सन्ट्रेट करो। और हां मेरे स्किन से एक अरोमा निकलती है जो आकर्षित करती है, इसलिए खुद में गिल्ट फील मत करना।


आर्यमणि:- हम्मम ! यहां और कितनी देर तक रश्में होगी।


ओशुन:- तुम आखरी होगे, उसके बाद जश्न होगा।..


आर्यमणि:- क्या मै भी तुम लोगों में से एक हूं।


ओशुन, उसे देखकर मुस्कुराती हुई…. "तुम्हे पता है इस हॉल में बैठे हर सदस्य, यहां तक कि मैत्री के मां बाप भी उसके मरने का जश्न मना रहे है। यहां केवल 2 लोग हैं और तुम्हे शामिल कर लिया जाए तो 3, जिसे मैत्री के जाने का गहरा सदमा है। पहला शूहोत्र, दूसरी मै, और तीसरे तुम।"


आर्यमणि:- ऐसा क्यों?


ओशुन:- क्योंकि मैत्री यहां सबसे खास थी, और यही वजह थी कि तुम्हारा साथ होना उसके पापा को जरा भी पसंद नहीं था। लेकिन फिर भी मैत्री ने तुम्हे चुना था, इसका मतलब साफ है कि तुम हम जैसे नहीं हो, बल्कि कुछ खास हो। लेकिन क्या है ना, अकेला वुल्फ कितना भी खास क्यों ना हो, शिकार बन ही जाता है। जबतक अपने पैक के साथ हो तबतक ज़िन्दगी है।


आर्यमणि:- हम्मम !


तभी माहौल में ईडन कि आवाज़ गूंजी। वह तालियों से अपने दल में सामिल हुए नए सदस्य का स्वागत करने के लिए कहने लगी। ओशुन उसका हाथ थामकर खुद लेकर पहुंची। जैसे ही उसके हथेली से वो पट्टी हटाई गई, कमाल हो चुका था। जख्म ऐसे गायब थे जैसे वो पहले कभी थे ही नहीं।


ओशुन ने चाकू से हथेली का वो हिस्सा काट दिया जहां शूहोत्र ने उसे काटा था। कुछ बूंद खून नीचे टपकाने के बाद, आर्यमणि से कहने लगी…. "अपने कपड़े निकलो"..


आर्यमणि उसकी बात सुनकर अपने सारे कपड़े निकाल दिया। पीछे से वहां मौजूद कई लड़कियां उसे देखकर हूटिंग करने लगी। तरह-तरह के कमेंट पास होने लगे। ईडन अपने हाथ उठाकर सबको ख़ामोश रहने का इशारा की। फिर ईडन एक नजर ओशुन को देखी और ओशुन खून से भरी नाद आर्यमणि के ऊपर उरेल दी।


रक्त स्नान हो रहा हो जैसे। रक्त में सराबोर करने के बाद ऒशुन ने आर्य का हाथ ऊपर, ईडन के मुंह के ओर बढ़ा दी। जैसे ही ईडन ने खून चूसना शुरू किया, आर्यमणि को लगा उसकी नसें फट जायेगी और खून नशों के बाहर बहने लगेगा। काफी दर्द भरि चींख उसके मुंह से निकली और उसकी आखें बंद हो गई।
 
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Ammu775

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इसके पूर्व आर्यमणि गार्ड्स की आंखों में धूल झोंककर सीधा जंगल पहुंचा। बहुत देर तक वो मैत्री के कत्ल की सुराग ढूंढने की कोशिश करता रहा। उसे बहुत ज्यादा जानकारी हाथ तो नहीं लगी, लेकिन मैत्री का बैग जरूर मिला, जिसमे उसकी कई सारे सामान के साथ एक डायरी थी, और हर पन्ने पर आर्यमणि के लिए कुछ ना कुछ था। और उसी बैग से आर्यमणि के हाथ कुछ ऐसा भी लगा जिसे वह नजरंदाज नहीं कर सकता था.…


पूरे गंगटोक में मैत्री और आर्यमणि के बीच के भावनात्मक जुड़ाव को सब जानते थे। यूं तो आर्यमणि बहुत ही सीमित बात करता था, लेकिन जिस दिन मैत्री यहां से जर्मनी गई थी, आर्यमणि ने 3 महीने बाद अपने माता-पिता से बात किया था, और सिर्फ एक ही बात… "उसे भी जर्मनी भेज दे।"..


मैत्री की वो डायरी पुराने दर्द को कुरेद गई। मैत्री ने जैसे पन्नो पर अरमान लिखे थे... "एक बार आर्य को अपने परिवार के साथ देखना चाहती हूं। कितना हसीन वो पल होगा जब हर दूरी समाप्त होगी। आर्य हमारे साथ होगा। एक दिन... शायद कभी..."


कुछ दिन बाद...


आर्यमणि श्रीलंका के एक बीच पर था। मैत्री के बैग पर श्रीलंका के होटल का टैग लगा था, जिसके पीछे आर्यमणि यहां तक पहुंचा था। दिल के दर्द अंदर से नासूर थे, बस एक सुराग की जरूरत थी। सुरागों की तलाश में आर्यमणि श्रीलंका पहुंच तो गया लेकिन यहां उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ।


3 दिन बेकार बिताने के बाद चौथे दिन आर्यमणि के होटल कमरे के बाहर शुहोत्र खड़ा था। आर्यमणि बिना कोई भाव दिए कमरे का दरवाजा पूरा खोल दिया और शूहोत्र अंदर। अंदर आते ही शुहोत्र कुछ–कुछ बोलने लगा। वह जो भी बात कर रहा था, उसमे आर्यमणि की रुचि एक जरा भी नहीं थी। बहुत देर तक उसकी बातें बर्दास्त करने के बाद, जब आर्यमणि से नही रहा गया, तब वह शुहोत्र का कॉलर पकड़कर.… "लंगड़ा लोपचे की कहानी यदि भूल गए हो तो मैं तुम्हारा दूसरा टांग तोड़कर उन यादों को फिर से ताजा कर दूं क्या?"…


शुहोत्र:– तुम्हारी उम्र और तुम्हारी बातें कभी मैच ही नहीं करती। और उस से भी ज्यादा तुम्हारी फाइट... इतनी छोटी उम्र में इतना सब कर कैसे लेते हो..


आर्यमणि:– सुनो लोपचे, यदि जान बचाने के बदले मेरे बाप की तरह तुम भी मेरे फिक्रमंद बनते रहे और मुझे घर लौटने की सलाह देते रहे, तो कसम से मैं ही तुम्हारी जान निकाल लूंगा। यदि मैत्री के कातिलों के बारे में कुछ पता है तो बताओ, वरना दरवाजे से बाहर हो जाओ..


शुहोत्र:– मैत्री के कातिलों की यदि तलाश होती फिर तुम यहां नही, बल्कि नागपुर में होते। क्यों उसके कातिलों को ढूंढने का ढोंग कर रहे?


आर्यमणि:– अब तेरा नया चुतियापा शुरू हो गया...


शुहोत्र:– क्यों खुद को बहला रहे हो आर्य। तुम्हारा दिल भी जनता है कि मैत्री को किसने मारा...


आर्यमणि:–शुहोत्र बेहतर होगा अब तुम मुझे अकेला छोड़ दो... इस से पहले की मैं अपना आपा खो दूं, भागो यहां से...


शुहोत्र:– तुम मुझसे नफरत कर सकते हो लेकिन मैत्री मेरी बहन थी और मैं उसका भाई, ये बात तुम मत भूलना। तुमसे बात करने की एक ही वजह है, और वो है मैत्री की कुछ इच्छाएं, जिस वजह से तुम्हे सुन रहा हूं, वरना जान तो मैं भी ले सकता हूं।


आर्यमणि बिना कुछ बोले पूरा दरवाजा खोल दिया और हाथ के इशारे से शुहोत्र को जाने के लिए कहने लगा। शुहोत्र दरवाजे से बाहर कदम रखते.… "मैत्री की डायरी में मैने ही श्रीलंका का टैग लगाया था। उसके अरमान उस डायरी के कई पन्ने पर लिखे है। यदि मैत्री की एक अधूरी इच्छा पूरी करनी हो तो कमरा संख्या २०२१ में चले आना।


शुहोत्र अपनी बात कह कर निकल गया। आर्यमणि झटके से दरवाजा बंद करके सोफे पर बैठा और मैत्री की डायरी को सीने से लगाकर, रोते हुए मैत्री, मैत्री चिल्लाने लगा। डायरी के कई ऐसे पन्ने थे, जिसपर मैत्री के मायूस अरमान लिखे थे... "तुम यहां क्यों नहीं... हम भारत में नही रह सकते, कम से कम तुम तो यहां आ सकते हो। अपने पलकों में सजा लूंगी, तुम सीने में कहीं छिपा लूंगी। यहां हम सुकून से एक दूसरे के साथ रहेंगे। एक बार आर्य को अपने परिवार के साथ देखना चाहती हूं। कितना हसीन वो पल होगा जब हर दूरी समाप्त होगी। आर्य हमारे साथ होगा। एक दिन... शायद कभी..."


डायरी में लिखे चंद लाइंस आर्यमणि को बार–बार याद आ रहे थे। अंत में आंसुओं को पोंछ कर आर्यमणि शुहोत्र के साथ सफर करने चल दिया। चल दिया मैत्री के उस घर, जहां मैत्री उसे अपने परिवार के साथ देखना चाहती थी।


सुहोत्र और आर्यमणि फ्लाइट में थे.... शूहोत्र आर्यमणि को देखकर… "एक भावनाहीन लड़के के अंदर की भावना को भी देख लिया आर्यमणि। जिस हिसाब से तुम्हारे बारे में लोगों ने बताया, मुझे लगा तुम मैत्री को भुल चुके होगे? लेकिन मैं गलत था।और वो लोग भी जो ये कहते थे कि तुम मैत्री को कबका भूल चुके होगे। इतनी छोटी उम्र में कितना प्यार करते थे उससे।"..


आर्यमणि:- अब इन बातों का क्या फायदा, बस वो जहां रहे हंसती रहे।


शूहोत्र:- उस रात तुम जंगल में क्यों आए थे?


आर्यमणि अपने आखों पर पर्दा डालकर बिना कोई जवाब दिए हुए सो गया। उसे देखकर शूहोत्र खुद से ही कहने लगा…. "जर्मनी में ये सरदर्द देने वाला है।"


जर्मनी का फ्रेबुर्ग शहर, जहां का ब्लैक फॉरेस्ट इलाका अपनी पर्वत श्रृंखला और बड़े–बड़े घने जंगलों के लिए मशहूर है। रोमन जब पहली बार यहां आए थे तब इन जंगलों में दिन के समय में भी सूरज की रौशनी नहीं पहुंचती थी और चारो ओर अंधेरा ही रहता था। तभी से यहां का नाम ब्लैक फॉरेस्ट पर गया।


शूहोत्र जब आर्यमणि को लेकर उस क्षेत्र की ओर बढ़ने लगा, वहां का चारो ओर का नजारा बिल्कुल जाना पहचाना सा लग रहा था। फ्रेबूर्ग शहर के सबसे शांत क्षेत्र में था शूहोत्र का निवास स्थान, जहां दूर-दूर तक कोई दूसरा मकान नहीं था। मकान से तकरीबन 100 मीटर की दूरी से शुरू हो जाता था जंगल का इलाका।


शूहोत्र के लौटने की खबर तो पहले से थी, लेकिन उस बंगलो में रहने वाले लोगों को जारा भी अंदाजा नहीं था कि वो अपने साथ एक मेहमान लेकर आएगा। अजीब सा वह बंगलो था, जिसका नाम वुल्फ हाउस था। दरवाजे से अंदर जाते ही एक बहुत बड़ा हाल था,लगभग 1000 फिट का। पूरे हॉल को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे यहां पर्याप्त रौशनी नहीं है। हल्का अंधेरा सा, जैसे कोई शैतान को पूजने की जगह हो। अजीब सी बू चारो ओर फैली थी। और एक बड़ा सा डायनिंग टेबल जिसपर बैठकर आराम से 80–90 लोग खाना खा सकते थे।



तकरीबन 60–70 लोग थे उस हॉल में जब आर्यमणि वहां पहुंचा। सभी मांस पर पागल कुत्ते की तरह झरप कर रहे थे। जैसे ही उन्होंने अजनबी को देखा सब सीधे होकर बैठ गए। वहां मौजूद हर कोई आर्यमणि को ही देख रहा था। उन्ही लोगों में से एक कमसिन, बला की खूबसूरत, नीले आंखों वालि लड़की आर्यमणि के नजदीक जाकर उसके गर्दन की खुशबू लेने लगी…. "उफ्फ ! ये तो दीवाना बना रहा है मुझे।"..


शूहोत्र उस लड़की को धक्का देकर पीछे धकेलते हुए… "रोज, जाकर अपनी जगह पर बैठ जाओ।"..


रोज, उसे घूरती हुई जाकर अपनी जगह पर बैठ गई…. शूहोत्र आर्य से.… "सॉरी आर्य वो मेरी कजिन रोज थी, बाद में तुम्हे मै सबसे परिचय करवाता हूं। अभी तुम थक गए होगे जाकर आराम करो।".. शूहोत्र, आर्य अपने साथ बाहर लेकर आया और गेस्ट रूम के अंदर उसे भेजकर खुद बंगलो में आ गया।


शूहोत्र के पिता जीतन लोपचे, सुहोत्र को अपनी आंखें दिखाते…. "किसे साथ लाना चाहिए किसे नहीं, ये बात भी मुझे सीखानी होगी क्या? पहले ही इस लड़के की वजह से हम बहुत कुछ झेल चुके है।"


शूहोत्र:- इस लड़के की वजह से हमने कुछ नहीं झेला है पापा। हम अपनी गलतियों का दोष किसी और पर नहीं दे सकते। आपकी जिद की वजह से लोपचे कॉटेज की घटना हुई थी और आपके बेवजह रुल की वजह से मैत्री मारी गई। मैं भी लगभग मरा ही हुआ था, यदि आर्य सही वक़्त पर नहीं आया होता।


उस घर की मुखिया और जीतन कि दूर की रिश्तेदार… ईडन, शूहोत्र की आखों में झांककर देखती हुई…. "वो लड़का तुम्हारा बिटा है।"..


शूहोत्र, अपनी नजरें चुराते…. "मुझे बचाने के क्रम में गलती से उसके हथेली पर पूरी बाइट दे दिया, और वो लड़का पूरी बाइट झेल गया, मरा नहीं।"..


रोज:- ओह तभी उससे मिश्रित खून की बू आ रही थी। बहुत आकर्षक खुशबू थी वैसे।


शूहोत्र:- क्या यहां किसी को मैत्री के जाने का गम नहीं है?


ईडन:- तुम नियम भुल रहे हो। मैत्री से पहले ही कही थी, अकेली वो जिंदा नहीं रह सकती, मारी जाएगी। उसी ने हमसे कहा था यहां रोज-रोज मरने से अच्छा है कि एक बार में ही मर जाऊं। उसने अपनी मौत खुद चुनी, और तुम खुशकिस्मत हो जो बिना अपने पैक के बच गए। आज रात जाने वाले के लिए जश्न होगा और हम अपने नए सदस्य का स्वागत करेंगे।


ईडन के को सुनने के बाद शूहोत्र की फिर हिम्मत नहीं हुई कुछ बोलने कि। शूहोत्र चुपचाप अपने कमरे में चला गया और अपनी बहन के साथ ली गई तस्वीरों को भींगे आंख देखने लगा।


रात का वक़्त होगा। हॉल में पार्टी जैसा माहौल था और कई घबराए से मासूम जानवर जैसे कि खरगोश, हिरण, जंगली सूअर बंधे हुए थे। मैत्री की बड़ी सी एक तस्वीर लगी थी और तस्वीर के नीचे टेबल पर एक बड़ा सा नाद रखा हुआ था। आर्यमणि जैसे ही हॉल में पहुंचा, वहां का अजीब माहौल देखकर वो अंदाज़ा लगा पा रहा था कि वो किन लोगों के बीच है।


एक लड़की आर्यमणि के करीब आकर खड़ी होती हुई… "तुम आर्य हो ना।"..


आर्यमणि उसे गौर से देखने लगा… लगभग न बताने लायक कमसिन उम्र। आकर्षक बदन जिसपर ना चाहते हुए भी ध्यान खींचा चला जाए। उसे देखने का अजीब ही कसिस थी। नीली आखें, ब्लोंड बाल, और चेहरा इतना चमकता हुआ कि रौशनी टकराकर वापस चली जाए। आर्यमणि खुद पर काबू पाकर गहरी श्वांस लिया… "तुम व्हाइट फॉक्स यानी कि ओशुन हो ना।"..


ओशुन, मुस्कुराकर अपने हाथ उसके ओर बढ़ती…. "पहचान गए मुझे। मैत्री ने तुम्हारे बारे में मुझे बताया था। उसकी चॉइस पर मुझे अब जलन हो रही है।"


आर्यमणि:- तुमने यहां सम्मोहन किया है क्या? मै खुद में बेबस सा मेहसूस कर रहा हूं। तुम्हे वासना भरी नजरो से देखने से खुद को रोक नहीं पा रहा।


ओशुन:- अभी तो ठीक से मैत्री की अंतिम विदाई भी नहीं हुई और तुम अपने लवर के बेस्ट फ्रेंड के बारे में ऐसे विचार पाल रहे हो।


आर्यमणि उसकी बात सुनकर वहां से थोड़ा दूर किनारे में अलग आकर खड़ा हो गया और सामने के रश्मों को देखने लगा। जैसे ही ईडन वहां पहुंची माहौल में सरगर्मी बढ़ गई। जाम के गलास को टोस्ट करते हुए ईडन कहने लगी… "हमारे बीच हमारी एक साथी नहीं रही, जाने वाले को हम खुशी-खुशी अंतिम विदाई देंगे।" ईडन ने आन्नाउंसमेंट किया और सबसे पहले मैत्री के पिता उसकी तस्वीर के सामने खड़े हो गए। अपने हथेली को चीरकर कुछ देर तक खून को नादी में गिरने दिया उसके बाद अपनी हथेली ईडन के ओर बढ़ा दिया।..


उफ्फ ये मंजर। जिसे आज तक पौराणिक कथाओं में सुना था। जिसके अस्तित्व लगभग ना के बराबर आर्यमणि ने मान लिया था। शक तो उसे उस रात से था जबसे उसने मैत्री का वो लॉकेट हटाया और उसका शरीर भेड़िया जैसे दिखने लगा। सुहोत्र का मुंह बंद करने के क्रम में, नुकीले दांत अंदर हथेली फाड़ कर घुस जाना, और छोटे रास्ते से लौटते वक़्त शूहोत्र का उन लोमड़ी को कंट्रोल करके रखना, जो खून की प्यासी थी।


किन्तु अब तक जो भी हुआ उसे आर्यमणि एक दिमागी उपज मानकर ही खुद को समझता रहा था। उसे लग रहा था कि वो कुछ ज्यादा ही वेयरवुल्फ की कहानियों के बारे में सोच रहा है। लेकिन जितन का हाथ जैसे ही ईडन के चेहरे के पास गया, ईडन की आखें काली से लाल हो गई। उसके शरीर में बदलाव आने लगा और अपने हाइट से 4 फिट लंबी हो गई।


हाथ किसी भेड़िए के पंजे में तब्दील हो गए। दो बड़ी–बड़ी नुकीली दातों के के बीच में कई सारे छोटे–छोटे नुकीली दांत, अपना बड़ा सा मुंह फाड़कर हथेली का कटा हुआ हिस्सा उसने मुंह में लिया और जैसे ही चूसना शुरू कि, जीतन की तेज चिंख नकल गई। उसकी भी आंखे लाल हो गई, बड़े–बड़े नाखूनों वाले पंजे आ गए, और वो बड़ी ही बेचैनी के साथ चिल्ला रहा था।


थोड़ी देर खून चूसने के बाद जैसे ही ईडन ने जीतन का हाथ छोड़ा वो लड़खड़ाकर नीचे गिरने लगा। लोगो ने उसे सहारा देकर बिठाया। ऐसे ही एक-एक करके सबने किया, पहले नादी में खून गिराया फिर खून चूसने दिया। यहां का अजीब खूनी खेल देखकर आर्यमणि को अजीब लगने लगा, और वो समारोह को छोड़कर बाहर जाने लगा।


वह गेट के ओर 2 कदम बढ़ाया ही था कि तेजी के साथ ओशुन उसके करीब पहुंचती…. "समारोह छोड़कर जाने का अर्थ होगा ईडन का अपमान। मत जाओ यहां से।"


आर्यमणि:- क्या मै यहां एक कैदी हूं?


ओशुन:- नहीं, यहां कोई कैदी नहीं, बस नियम से बंधे एक सदस्य हो। तुम्हे यदि यहां का माहौल अच्छा नहीं लग रहा तो मूझपर कन्सन्ट्रेट करो। और हां मेरे स्किन से एक अरोमा निकलती है जो आकर्षित करती है, इसलिए खुद में गिल्ट फील मत करना।


आर्यमणि:- हम्मम ! यहां और कितनी देर तक रश्में होगी।


ओशुन:- तुम आखरी होगे, उसके बाद जश्न होगा।..


आर्यमणि:- क्या मै भी तुम लोगों में से एक हूं।


ओशुन, उसे देखकर मुस्कुराती हुई…. "तुम्हे पता है इस हॉल में बैठे हर सदस्य, यहां तक कि मैत्री के मां बाप भी उसके मरने का जश्न मना रहे है। यहां केवल 2 लोग हैं और तुम्हे शामिल कर लिया जाए तो 3, जिसे मैत्री के जाने का गहरा सदमा है। पहला शूहोत्र, दूसरी मै, और तीसरे तुम।"


आर्यमणि:- ऐसा क्यों?


ओशुन:- क्योंकि मैत्री यहां सबसे खास थी, और यही वजह थी कि तुम्हारा साथ होना उसके पापा को जरा भी पसंद नहीं था। लेकिन फिर भी मैत्री ने तुम्हे चुना था, इसका मतलब साफ है कि तुम हम जैसे नहीं हो, बल्कि कुछ खास हो। लेकिन क्या है ना, अकेला वुल्फ कितना भी खास क्यों ना हो, शिकार बन ही जाता है। जबतक अपने पैक के साथ हो तबतक ज़िन्दगी है।


आर्यमणि:- हम्मम !


तभी माहौल में ईडन कि आवाज़ गूंजी। वह तालियों से अपने दल में सामिल हुए नए सदस्य का स्वागत करने के लिए कहने लगी। ओशुन उसका हाथ थामकर खुद लेकर पहुंची। जैसे ही उसके हथेली से वो पट्टी हटाई गई, कमाल हो चुका था। जख्म ऐसे गायब थे जैसे वो पहले कभी थे ही नहीं।


ओशुन ने चाकू से हथेली का वो हिस्सा काट दिया जहां शूहोत्र ने उसे काटा था। कुछ बूंद खून नीचे टपकाने के बाद, आर्यमणि से कहने लगी…. "अपने कपड़े निकलो"..


आर्यमणि उसकी बात सुनकर अपने सारे कपड़े निकाल दिया। पीछे से वहां मौजूद कई लड़कियां उसे देखकर हूटिंग करने लगी। तरह-तरह के कमेंट पास होने लगे। ईडन अपने हाथ उठाकर सबको ख़ामोश रहने का इशारा की। फिर ईडन एक नजर ओशुन को देखी और ओशुन खून से भरी नाद आर्यमणि के ऊपर उरेल दी।


रक्त स्नान हो रहा हो जैसे। रक्त में सराबोर करने के बाद ऒशुन ने आर्य का हाथ ऊपर, ईडन के मुंह के ओर बढ़ा दी। जैसे ही ईडन ने खून चूसना शुरू किया, आर्यमणि को लगा उसकी नसें फट जायेगी और खून नशों के बाहर बहने लगेगा। काफी दर्द भरि चींख उसके मुंह से निकली और उसकी आखें बंद हो गई।
Bahot hi romanchak or threell ka ehsaas kevat diye ho nain11 star bhai aapki lekhni ka ek alag hi andaaz pdne ko mill rha he superb update bhai exilent
 

Anky@123

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Pehla padav kehna hi thik hoga shayed, aaryamani ka pehla kadam werewolf ki duniya me aakhir rakh liya gaya hai , per jo samaz nahi aa raha wo ye ki aarya itna calm kese hai, kya usko locket nikalne se pehle bhi andesha tha,ya metri ne usey apne bare me bataya ho, aur kya Nishant bhi ye janta hai, aur sabse bada sawal kya ye kahani Teen wolf se prerit hai ?
 

Itachi_Uchiha

अंतःअस्ति प्रारंभः
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भाग:–4




इसके पूर्व आर्यमणि गार्ड्स की आंखों में धूल झोंककर सीधा जंगल पहुंचा। बहुत देर तक वो मैत्री के कत्ल की सुराग ढूंढने की कोशिश करता रहा। उसे बहुत ज्यादा जानकारी हाथ तो नहीं लगी, लेकिन मैत्री का बैग जरूर मिला, जिसमे उसकी कई सारे सामान के साथ एक डायरी थी, और हर पन्ने पर आर्यमणि के लिए कुछ ना कुछ था। और उसी बैग से आर्यमणि के हाथ कुछ ऐसा भी लगा जिसे वह नजरंदाज नहीं कर सकता था.…


पूरे गंगटोक में मैत्री और आर्यमणि के बीच के भावनात्मक जुड़ाव को सब जानते थे। यूं तो आर्यमणि बहुत ही सीमित बात करता था, लेकिन जिस दिन मैत्री यहां से जर्मनी गई थी, आर्यमणि ने 3 महीने बाद अपने माता-पिता से बात किया था, और सिर्फ एक ही बात… "उसे भी जर्मनी भेज दे।"..


मैत्री की वो डायरी पुराने दर्द को कुरेद गई। मैत्री ने जैसे पन्नो पर अरमान लिखे थे... "एक बार आर्य को अपने परिवार के साथ देखना चाहती हूं। कितना हसीन वो पल होगा जब हर दूरी समाप्त होगी। आर्य हमारे साथ होगा। एक दिन... शायद कभी..."


कुछ दिन बाद...


आर्यमणि श्रीलंका के एक बीच पर था। मैत्री के बैग पर श्रीलंका के होटल का टैग लगा था, जिसके पीछे आर्यमणि यहां तक पहुंचा था। दिल के दर्द अंदर से नासूर थे, बस एक सुराग की जरूरत थी। सुरागों की तलाश में आर्यमणि श्रीलंका पहुंच तो गया लेकिन यहां उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ।


3 दिन बेकार बिताने के बाद चौथे दिन आर्यमणि के होटल कमरे के बाहर शुहोत्र खड़ा था। आर्यमणि बिना कोई भाव दिए कमरे का दरवाजा पूरा खोल दिया और शूहोत्र अंदर। अंदर आते ही शुहोत्र कुछ–कुछ बोलने लगा। वह जो भी बात कर रहा था, उसमे आर्यमणि की रुचि एक जरा भी नहीं थी। बहुत देर तक उसकी बातें बर्दास्त करने के बाद, जब आर्यमणि से नही रहा गया, तब वह शुहोत्र का कॉलर पकड़कर.… "लंगड़ा लोपचे की कहानी यदि भूल गए हो तो मैं तुम्हारा दूसरा टांग तोड़कर उन यादों को फिर से ताजा कर दूं क्या?"…


शुहोत्र:– तुम्हारी उम्र और तुम्हारी बातें कभी मैच ही नहीं करती। और उस से भी ज्यादा तुम्हारी फाइट... इतनी छोटी उम्र में इतना सब कर कैसे लेते हो..


आर्यमणि:– सुनो लोपचे, यदि जान बचाने के बदले मेरे बाप की तरह तुम भी मेरे फिक्रमंद बनते रहे और मुझे घर लौटने की सलाह देते रहे, तो कसम से मैं ही तुम्हारी जान निकाल लूंगा। यदि मैत्री के कातिलों के बारे में कुछ पता है तो बताओ, वरना दरवाजे से बाहर हो जाओ..


शुहोत्र:– मैत्री के कातिलों की यदि तलाश होती फिर तुम यहां नही, बल्कि नागपुर में होते। क्यों उसके कातिलों को ढूंढने का ढोंग कर रहे?


आर्यमणि:– अब तेरा नया चुतियापा शुरू हो गया...


शुहोत्र:– क्यों खुद को बहला रहे हो आर्य। तुम्हारा दिल भी जनता है कि मैत्री को किसने मारा...


आर्यमणि:–शुहोत्र बेहतर होगा अब तुम मुझे अकेला छोड़ दो... इस से पहले की मैं अपना आपा खो दूं, भागो यहां से...


शुहोत्र:– तुम मुझसे नफरत कर सकते हो लेकिन मैत्री मेरी बहन थी और मैं उसका भाई, ये बात तुम मत भूलना। तुमसे बात करने की एक ही वजह है, और वो है मैत्री की कुछ इच्छाएं, जिस वजह से तुम्हे सुन रहा हूं, वरना जान तो मैं भी ले सकता हूं।


आर्यमणि बिना कुछ बोले पूरा दरवाजा खोल दिया और हाथ के इशारे से शुहोत्र को जाने के लिए कहने लगा। शुहोत्र दरवाजे से बाहर कदम रखते.… "मैत्री की डायरी में मैने ही श्रीलंका का टैग लगाया था। उसके अरमान उस डायरी के कई पन्ने पर लिखे है। यदि मैत्री की एक अधूरी इच्छा पूरी करनी हो तो कमरा संख्या २०२१ में चले आना।


शुहोत्र अपनी बात कह कर निकल गया। आर्यमणि झटके से दरवाजा बंद करके सोफे पर बैठा और मैत्री की डायरी को सीने से लगाकर, रोते हुए मैत्री, मैत्री चिल्लाने लगा। डायरी के कई ऐसे पन्ने थे, जिसपर मैत्री के मायूस अरमान लिखे थे... "तुम यहां क्यों नहीं... हम भारत में नही रह सकते, कम से कम तुम तो यहां आ सकते हो। अपने पलकों में सजा लूंगी, तुम सीने में कहीं छिपा लूंगी। यहां हम सुकून से एक दूसरे के साथ रहेंगे। एक बार आर्य को अपने परिवार के साथ देखना चाहती हूं। कितना हसीन वो पल होगा जब हर दूरी समाप्त होगी। आर्य हमारे साथ होगा। एक दिन... शायद कभी..."


डायरी में लिखे चंद लाइंस आर्यमणि को बार–बार याद आ रहे थे। अंत में आंसुओं को पोंछ कर आर्यमणि शुहोत्र के साथ सफर करने चल दिया। चल दिया मैत्री के उस घर, जहां मैत्री उसे अपने परिवार के साथ देखना चाहती थी।


सुहोत्र और आर्यमणि फ्लाइट में थे.... शूहोत्र आर्यमणि को देखकर… "एक भावनाहीन लड़के के अंदर की भावना को भी देख लिया आर्यमणि। जिस हिसाब से तुम्हारे बारे में लोगों ने बताया, मुझे लगा तुम मैत्री को भुल चुके होगे? लेकिन मैं गलत था।और वो लोग भी जो ये कहते थे कि तुम मैत्री को कबका भूल चुके होगे। इतनी छोटी उम्र में कितना प्यार करते थे उससे।"..


आर्यमणि:- अब इन बातों का क्या फायदा, बस वो जहां रहे हंसती रहे।


शूहोत्र:- उस रात तुम जंगल में क्यों आए थे?


आर्यमणि अपने आखों पर पर्दा डालकर बिना कोई जवाब दिए हुए सो गया। उसे देखकर शूहोत्र खुद से ही कहने लगा…. "जर्मनी में ये सरदर्द देने वाला है।"


जर्मनी का फ्रेबुर्ग शहर, जहां का ब्लैक फॉरेस्ट इलाका अपनी पर्वत श्रृंखला और बड़े–बड़े घने जंगलों के लिए मशहूर है। रोमन जब पहली बार यहां आए थे तब इन जंगलों में दिन के समय में भी सूरज की रौशनी नहीं पहुंचती थी और चारो ओर अंधेरा ही रहता था। तभी से यहां का नाम ब्लैक फॉरेस्ट पर गया।


शूहोत्र जब आर्यमणि को लेकर उस क्षेत्र की ओर बढ़ने लगा, वहां का चारो ओर का नजारा बिल्कुल जाना पहचाना सा लग रहा था। फ्रेबूर्ग शहर के सबसे शांत क्षेत्र में था शूहोत्र का निवास स्थान, जहां दूर-दूर तक कोई दूसरा मकान नहीं था। मकान से तकरीबन 100 मीटर की दूरी से शुरू हो जाता था जंगल का इलाका।


शूहोत्र के लौटने की खबर तो पहले से थी, लेकिन उस बंगलो में रहने वाले लोगों को जारा भी अंदाजा नहीं था कि वो अपने साथ एक मेहमान लेकर आएगा। अजीब सा वह बंगलो था, जिसका नाम वुल्फ हाउस था। दरवाजे से अंदर जाते ही एक बहुत बड़ा हाल था,लगभग 1000 फिट का। पूरे हॉल को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे यहां पर्याप्त रौशनी नहीं है। हल्का अंधेरा सा, जैसे कोई शैतान को पूजने की जगह हो। अजीब सी बू चारो ओर फैली थी। और एक बड़ा सा डायनिंग टेबल जिसपर बैठकर आराम से 80–90 लोग खाना खा सकते थे।



तकरीबन 60–70 लोग थे उस हॉल में जब आर्यमणि वहां पहुंचा। सभी मांस पर पागल कुत्ते की तरह झरप कर रहे थे। जैसे ही उन्होंने अजनबी को देखा सब सीधे होकर बैठ गए। वहां मौजूद हर कोई आर्यमणि को ही देख रहा था। उन्ही लोगों में से एक कमसिन, बला की खूबसूरत, नीले आंखों वालि लड़की आर्यमणि के नजदीक जाकर उसके गर्दन की खुशबू लेने लगी…. "उफ्फ ! ये तो दीवाना बना रहा है मुझे।"..


शूहोत्र उस लड़की को धक्का देकर पीछे धकेलते हुए… "रोज, जाकर अपनी जगह पर बैठ जाओ।"..


रोज, उसे घूरती हुई जाकर अपनी जगह पर बैठ गई…. शूहोत्र आर्य से.… "सॉरी आर्य वो मेरी कजिन रोज थी, बाद में तुम्हे मै सबसे परिचय करवाता हूं। अभी तुम थक गए होगे जाकर आराम करो।".. शूहोत्र, आर्य अपने साथ बाहर लेकर आया और गेस्ट रूम के अंदर उसे भेजकर खुद बंगलो में आ गया।


शूहोत्र के पिता जीतन लोपचे, सुहोत्र को अपनी आंखें दिखाते…. "किसे साथ लाना चाहिए किसे नहीं, ये बात भी मुझे सीखानी होगी क्या? पहले ही इस लड़के की वजह से हम बहुत कुछ झेल चुके है।"


शूहोत्र:- इस लड़के की वजह से हमने कुछ नहीं झेला है पापा। हम अपनी गलतियों का दोष किसी और पर नहीं दे सकते। आपकी जिद की वजह से लोपचे कॉटेज की घटना हुई थी और आपके बेवजह रुल की वजह से मैत्री मारी गई। मैं भी लगभग मरा ही हुआ था, यदि आर्य सही वक़्त पर नहीं आया होता।


उस घर की मुखिया और जीतन कि दूर की रिश्तेदार… ईडन, शूहोत्र की आखों में झांककर देखती हुई…. "वो लड़का तुम्हारा बिटा है।"..


शूहोत्र, अपनी नजरें चुराते…. "मुझे बचाने के क्रम में गलती से उसके हथेली पर पूरी बाइट दे दिया, और वो लड़का पूरी बाइट झेल गया, मरा नहीं।"..


रोज:- ओह तभी उससे मिश्रित खून की बू आ रही थी। बहुत आकर्षक खुशबू थी वैसे।


शूहोत्र:- क्या यहां किसी को मैत्री के जाने का गम नहीं है?


ईडन:- तुम नियम भुल रहे हो। मैत्री से पहले ही कही थी, अकेली वो जिंदा नहीं रह सकती, मारी जाएगी। उसी ने हमसे कहा था यहां रोज-रोज मरने से अच्छा है कि एक बार में ही मर जाऊं। उसने अपनी मौत खुद चुनी, और तुम खुशकिस्मत हो जो बिना अपने पैक के बच गए। आज रात जाने वाले के लिए जश्न होगा और हम अपने नए सदस्य का स्वागत करेंगे।


ईडन के को सुनने के बाद शूहोत्र की फिर हिम्मत नहीं हुई कुछ बोलने कि। शूहोत्र चुपचाप अपने कमरे में चला गया और अपनी बहन के साथ ली गई तस्वीरों को भींगे आंख देखने लगा।


रात का वक़्त होगा। हॉल में पार्टी जैसा माहौल था और कई घबराए से मासूम जानवर जैसे कि खरगोश, हिरण, जंगली सूअर बंधे हुए थे। मैत्री की बड़ी सी एक तस्वीर लगी थी और तस्वीर के नीचे टेबल पर एक बड़ा सा नाद रखा हुआ था। आर्यमणि जैसे ही हॉल में पहुंचा, वहां का अजीब माहौल देखकर वो अंदाज़ा लगा पा रहा था कि वो किन लोगों के बीच है।


एक लड़की आर्यमणि के करीब आकर खड़ी होती हुई… "तुम आर्य हो ना।"..


आर्यमणि उसे गौर से देखने लगा… लगभग न बताने लायक कमसिन उम्र। आकर्षक बदन जिसपर ना चाहते हुए भी ध्यान खींचा चला जाए। उसे देखने का अजीब ही कसिस थी। नीली आखें, ब्लोंड बाल, और चेहरा इतना चमकता हुआ कि रौशनी टकराकर वापस चली जाए। आर्यमणि खुद पर काबू पाकर गहरी श्वांस लिया… "तुम व्हाइट फॉक्स यानी कि ओशुन हो ना।"..


ओशुन, मुस्कुराकर अपने हाथ उसके ओर बढ़ती…. "पहचान गए मुझे। मैत्री ने तुम्हारे बारे में मुझे बताया था। उसकी चॉइस पर मुझे अब जलन हो रही है।"


आर्यमणि:- तुमने यहां सम्मोहन किया है क्या? मै खुद में बेबस सा मेहसूस कर रहा हूं। तुम्हे वासना भरी नजरो से देखने से खुद को रोक नहीं पा रहा।


ओशुन:- अभी तो ठीक से मैत्री की अंतिम विदाई भी नहीं हुई और तुम अपने लवर के बेस्ट फ्रेंड के बारे में ऐसे विचार पाल रहे हो।


आर्यमणि उसकी बात सुनकर वहां से थोड़ा दूर किनारे में अलग आकर खड़ा हो गया और सामने के रश्मों को देखने लगा। जैसे ही ईडन वहां पहुंची माहौल में सरगर्मी बढ़ गई। जाम के गलास को टोस्ट करते हुए ईडन कहने लगी… "हमारे बीच हमारी एक साथी नहीं रही, जाने वाले को हम खुशी-खुशी अंतिम विदाई देंगे।" ईडन ने आन्नाउंसमेंट किया और सबसे पहले मैत्री के पिता उसकी तस्वीर के सामने खड़े हो गए। अपने हथेली को चीरकर कुछ देर तक खून को नादी में गिरने दिया उसके बाद अपनी हथेली ईडन के ओर बढ़ा दिया।..


उफ्फ ये मंजर। जिसे आज तक पौराणिक कथाओं में सुना था। जिसके अस्तित्व लगभग ना के बराबर आर्यमणि ने मान लिया था। शक तो उसे उस रात से था जबसे उसने मैत्री का वो लॉकेट हटाया और उसका शरीर भेड़िया जैसे दिखने लगा। सुहोत्र का मुंह बंद करने के क्रम में, नुकीले दांत अंदर हथेली फाड़ कर घुस जाना, और छोटे रास्ते से लौटते वक़्त शूहोत्र का उन लोमड़ी को कंट्रोल करके रखना, जो खून की प्यासी थी।


किन्तु अब तक जो भी हुआ उसे आर्यमणि एक दिमागी उपज मानकर ही खुद को समझता रहा था। उसे लग रहा था कि वो कुछ ज्यादा ही वेयरवुल्फ की कहानियों के बारे में सोच रहा है। लेकिन जितन का हाथ जैसे ही ईडन के चेहरे के पास गया, ईडन की आखें काली से लाल हो गई। उसके शरीर में बदलाव आने लगा और अपने हाइट से 4 फिट लंबी हो गई।


हाथ किसी भेड़िए के पंजे में तब्दील हो गए। दो बड़ी–बड़ी नुकीली दातों के के बीच में कई सारे छोटे–छोटे नुकीली दांत, अपना बड़ा सा मुंह फाड़कर हथेली का कटा हुआ हिस्सा उसने मुंह में लिया और जैसे ही चूसना शुरू कि, जीतन की तेज चिंख नकल गई। उसकी भी आंखे लाल हो गई, बड़े–बड़े नाखूनों वाले पंजे आ गए, और वो बड़ी ही बेचैनी के साथ चिल्ला रहा था।


थोड़ी देर खून चूसने के बाद जैसे ही ईडन ने जीतन का हाथ छोड़ा वो लड़खड़ाकर नीचे गिरने लगा। लोगो ने उसे सहारा देकर बिठाया। ऐसे ही एक-एक करके सबने किया, पहले नादी में खून गिराया फिर खून चूसने दिया। यहां का अजीब खूनी खेल देखकर आर्यमणि को अजीब लगने लगा, और वो समारोह को छोड़कर बाहर जाने लगा।


वह गेट के ओर 2 कदम बढ़ाया ही था कि तेजी के साथ ओशुन उसके करीब पहुंचती…. "समारोह छोड़कर जाने का अर्थ होगा ईडन का अपमान। मत जाओ यहां से।"


आर्यमणि:- क्या मै यहां एक कैदी हूं?


ओशुन:- नहीं, यहां कोई कैदी नहीं, बस नियम से बंधे एक सदस्य हो। तुम्हे यदि यहां का माहौल अच्छा नहीं लग रहा तो मूझपर कन्सन्ट्रेट करो। और हां मेरे स्किन से एक अरोमा निकलती है जो आकर्षित करती है, इसलिए खुद में गिल्ट फील मत करना।


आर्यमणि:- हम्मम ! यहां और कितनी देर तक रश्में होगी।


ओशुन:- तुम आखरी होगे, उसके बाद जश्न होगा।..


आर्यमणि:- क्या मै भी तुम लोगों में से एक हूं।


ओशुन, उसे देखकर मुस्कुराती हुई…. "तुम्हे पता है इस हॉल में बैठे हर सदस्य, यहां तक कि मैत्री के मां बाप भी उसके मरने का जश्न मना रहे है। यहां केवल 2 लोग हैं और तुम्हे शामिल कर लिया जाए तो 3, जिसे मैत्री के जाने का गहरा सदमा है। पहला शूहोत्र, दूसरी मै, और तीसरे तुम।"


आर्यमणि:- ऐसा क्यों?


ओशुन:- क्योंकि मैत्री यहां सबसे खास थी, और यही वजह थी कि तुम्हारा साथ होना उसके पापा को जरा भी पसंद नहीं था। लेकिन फिर भी मैत्री ने तुम्हे चुना था, इसका मतलब साफ है कि तुम हम जैसे नहीं हो, बल्कि कुछ खास हो। लेकिन क्या है ना, अकेला वुल्फ कितना भी खास क्यों ना हो, शिकार बन ही जाता है। जबतक अपने पैक के साथ हो तबतक ज़िन्दगी है।


आर्यमणि:- हम्मम !


तभी माहौल में ईडन कि आवाज़ गूंजी। वह तालियों से अपने दल में सामिल हुए नए सदस्य का स्वागत करने के लिए कहने लगी। ओशुन उसका हाथ थामकर खुद लेकर पहुंची। जैसे ही उसके हथेली से वो पट्टी हटाई गई, कमाल हो चुका था। जख्म ऐसे गायब थे जैसे वो पहले कभी थे ही नहीं।


ओशुन ने चाकू से हथेली का वो हिस्सा काट दिया जहां शूहोत्र ने उसे काटा था। कुछ बूंद खून नीचे टपकाने के बाद, आर्यमणि से कहने लगी…. "अपने कपड़े निकलो"..


आर्यमणि उसकी बात सुनकर अपने सारे कपड़े निकाल दिया। पीछे से वहां मौजूद कई लड़कियां उसे देखकर हूटिंग करने लगी। तरह-तरह के कमेंट पास होने लगे। ईडन अपने हाथ उठाकर सबको ख़ामोश रहने का इशारा की। फिर ईडन एक नजर ओशुन को देखी और ओशुन खून से भरी नाद आर्यमणि के ऊपर उरेल दी।


रक्त स्नान हो रहा हो जैसे। रक्त में सराबोर करने के बाद ऒशुन ने आर्य का हाथ ऊपर, ईडन के मुंह के ओर बढ़ा दी। जैसे ही ईडन ने खून चूसना शुरू किया, आर्यमणि को लगा उसकी नसें फट जायेगी और खून नशों के बाहर बहने लगेगा। काफी दर्द भरि चींख उसके मुंह से निकली और उसकी आखें बंद हो गई।
Ogo matlb apna hero wolf nahi tha. Lakin suhotra ke katne se wo wolf ban gaya. Lakin apne hero me aisa kya special tha jo metro ek wolf hote hue bhi usko love karyi thi. Sath me ye inke kya bakwas rule hai jo matri ko pasand nahi hai. Aur itna to fix hai apna hero inke sath me nahi rahegam aur matri ko kisne mara hai. Ye pata karke apna hero sbko ek ek karke marega. Dekhte hai aage aur kya hota hai. Kul mila bahut bahut hi awsm update hai maja aa gaya.
 

nain11ster

Prime
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kya ye kahani Teen wolf se prerit hai ?
Yesssssssssssssssssss..... Mere warewolf story likhne ki ruchi ke pichhe ka karan teen wolf hi hai... Wolf se jude bahut se terminology teen wolf se liye gaye hain... Unki bahut sari theory ko maine adopt kiya hai ..

Kahani alag hai... Plot alag hai lekin prerna teen wolf hi hai... I am a big fan of teen wolf...
 
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