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Thriller 100 - Encounter !!!! Journey Of An Innocent Girl (Completed)

nain11ster

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अध्याय 16 भाग:- 1 (परिणाम और भागती जिंगदी)




सुबह के 5 बजे संगीता की विदाई हो गई। ठंड की सुबह लगभग रात सी ही दिखती है। संगीता के विदाई के साथ ही, उसके बंगलौर से आए सभी दोस्त भी निकल गए क्योंकि सबकी पटना से फ्लाइट थी..


सबसे आखरी में ऋतु ही निकली.. वो मुस्कुराती हुई पहले मुझसे गले मिली फिर प्राची दीदी से और सबसे अंत में नकुल के पास पहुंचकर... "मेनका"..


मै जैसे ही उन दोनों के ओर मुड़ी, ऋतु नकुल को टाईट हग करके, मुझे आंख मारी और मेरे ही सामने नकुल के होंठ को अपने होंठ से छुकर बाय-बाय करती निकल गई..


मेरा तो मुंह खुला का खुला ही रह गया. नकुल मुस्कुराते हुए... "दोनो मुंह बंद करो, मच्छर घुस जायेगा"…


जब मुड़कर देखी तो प्राची दीदी भी अपनी आखें बड़ी किए उसे देख रही थी... मै, नकुल को घूरती... "ओय ये सब क्या था"..


नकुल:- अब वो किस्स करके गई, और क्लास मेरी लगा रही.. जाने भी दो उसे.. तुम दोनो को चिढ़ा रही थी..


प्राची दीदी:- और तुझे मज़े दे रही थी, क्यों..


मै:- छोड़ो भी इन टेम्पररी गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड को, यहां ध्यान दो... मै आज बहुत खुश हूं.. भाई तू दूर क्यों खड़ा है पास आ ना..


जैसे ही नकुल मेरे पास आया उसे खींचकर ऐसा थप्पड़ दी कि प्राची दीदी के मुंह से "आव बेचारा" निकल गया और नकुल का गाल लाल. फिर दोनो के बीच आकर मैं दोनो के कंधे पर हाथ रखती, पहले नकुल के गाल को चूम ली, फिर प्राची दीदी के... "मै बहुत खुश हूं.. बहुत बहुत बहुत खुश हूं"..


प्राची दीदी... नकुल चाय पिलवा दे तो बड़ा मज़ा आ जाए..


नकुल वहां के हलवाई को बुलाकर उसे 100 का नोट दिया और वहां मौजूद सबके लिए चाय बनाने बोलकर, हमे विवाह मंडप वाले हॉल में लेकर चल दिया.. अंदर पहुंचने के बाद बाहर के ठंड का एहसास हुआ हमे...


जैसे ही हम तीनो बैठे, नकुल हंसते हुए कहने लगा… "अपने बदले के लिए तूने कितनों की लंका लगा दी मेनका"..


मै:- भुल गए क्या बोली थी, यदि इसी टॉपिक पर बात होनी है तो मै जा रही हूं...


प्राची दीदी:- नकुल, मेनका सही कह रही.. वैसे मेरी एक जिज्ञासा है प्लीज उसका जवाब दे दे बहन। क्या मेरे साथ कुछ ऐसा होता है जैसा नकुल के साथ हुआ, तो क्या तुम मेरे लिए भी इतना करोगी..


मै प्राची दीदी को मुस्कुराकर देखती हुई... "दीदी कोई मेरे भाई को इस स्थिति में ला खड़ा किया था, कि वो मुझसे दूर चला जाता... मेरा नकुल मुझसे दूर... इस बात को सही करने के लिए मै किसी भी दूरी को तय कर सकती हूं, और ये मै उन सबके लिए कर सकती हूं जिसे मै खुद से दूर जाते नहीं देख सकती"…


अपनी बात कहकर मैंने नकुल को फिर एक जोरदार थप्पड़ चिपका दी... एक बार फिर प्राची दीदी अपनी आखें सिकोड़ती "आव बेचारा" की.. और एक बार फिर नकुल का गाल लाल था... "मेनकाआआ, अब ये क्यों"


मै:- कुत्ता कहीं का, मुझे जब-जब ये बात याद आएगी की तूने शुरू से मुझसे सब कुछ छिपाया, और हमे छोड़कर भागने के फिराक में था, तब-तब थप्पड़ मारूंगी.. याद रख घर पर भी ये कहानी जब कहूंगी और मुझे ये बात फिर याद आएगी, तब तुझे मारूंगी...


प्राची दीदी:- बस भी कर ना रे.. तेरा तो लाडला भतीजा है ना..


मै:- लाड प्यार कुछ ज्यादा ही हो गया दीदी, इसलिए तो बिना सोचे कुछ भी करने जा रहा था... ये भी ना हुआ कि बात कर ले.. कितना अखड़ा था मुझे आपको अंदाजा भी है.. बस ये सदमे में था और मुझे बदला लेना था. इस बात के कारन कुछ कही नहीं तब..


नकुल:- अरे पागल मै कहीं नहीं भागने वाला था, बस उस वक्त कुछ सूझ नहीं रहा था.. अब जानती तो है कि जब दिमाग काम नहीं करता तो एक के बाद एक गलतियां हो ही जाती है..


मै:- एक थप्पड़ और मारना रह गया, एक और बात याद आ गई..


प्राची दीदी:- कौन सी...


मै:- ये कुता भरे कॉलेज ग्राउंड में मुझसे चिल्लाकर कहा था कि आज मेरे साथ क्लास बंक करके जा रही, कल किसी और के साथ जाओगी...


प्राची दीदी:- नकुल...


नकुल:- अरे हो गया छिलाई, अब माफ कर दे ना.. प्लीज प्लीज प्लीज..


वो मेरे गोद में सर रखकर मेरे पेट ने गुदगुदी करने लगा.. मै भी हंसती हुई बस-बस करने लगी.. तभी बाहर से एक लेबर चाय का जग लेकर पहुंच गया और कप मे चाय उरेलकर चलता बना...


हम तीनो भी पूरी रात के जागे थे, ऊपर से खूब नाचे.. चाय पीकर हम तीनों भी निकले.. प्राची दीदी हम दोनों से गले लगकर कहने लगी.. आज शाम मै भी दिल्ली के लिए निकल रही हूं... दोनो अपना ख्याल रखना.. और नकुल वादा तो याद है ना".. नकुल भी मुसकुराते हुए हां कहा और वहां से हम तीनो निकल लिए..


मै और नकुल गांव के रास्ते पर थे, तभी नकुल अपने पॉकेट से एक मोबाइल निकालकर, कार के डैशबोर्ड पर रखते... "जानती है ये किसका मोबाइल है"..


मै:- किसका..


नकुल:- उसी का, जिसका तूने सर फोड़ दिया..


मै:- हेय भगवान, तुने चोरी की..


नकुल:- नाह ! डकैती करवाई..


मै:- कैसे..


नकुल:- जब तू जयमाला स्टेज पर कहीं ना ऊपर देख कोई है तो नहीं। तभी मै समझ गया था कि कुछ तो बात है.. उसी के कुछ देर बाद वो लड़का जिसने तुझे छेड़ा था, अपना मोबाइल हाथ में घुमाते नीचे आया..

उसी समय मैंने अपने 2 लोगों को पैसे दिए और सीधा बोल दिया... मौका देखकर छीन लेना मोबाइल.. छीनते क्या, उसे हॉस्पिटल ले जाते वक्त गायब कर दिया..


मै:- तो डकैती कैसे हुई.. हुई तो चोरी ही ना..


नकुल:- हां लेकिन उन्हे मैंने पैसे तो डकैती के दिए, तो मेरे लिए डकैती ही हुई ना..


मै:- आह मज़ा आ गया अब तो... इस मोबाइल का सॉफ्टवेयर उड़ाकर ब्लैंक कर देना और फेंक देना मोबाइल..


नकुल:- वो सब रात को ही हो गया.. जीवक्ष (शॉपिंग मॉल का स्टाफ) के पास रात को ही भिजवाकर, उसके माथे दे दिया था काम.. विदाई से कुछ देर पहले मोबाइल मेरे हाथ में पुरा ब्लैंक होकर आया है..


मै:- हां तो मुहरत देख रहा है क्या? फेंक दे उस चोट्टे के मोबाइल को...


"हां बस अभी ही"… और इतना कहकर उसने मोबाइल फेंक दिया. कितना ख्याल रहता है ना नकुल को भी मेरी छोटी-छोटी बातों का... वैसे इतनी भी ज्यादा इमरजेंसी नहीं थी कि ठंड के समय 1 बजे रात को किसी के घर का दरवाजा खुलवाया जाए... फिर वो इंसान भी किसी दूसरे का दरवाजा खुलवाकर, आपका काम करवाए और सुबह के 4 बजे तक आपका काम हो जाए... यही नकुल है, काम खत्म करके चैन कि नींद सोने वाला...


वैसे रात भर के जागे हम दोनों ही थे, ऊपर से नाच नाचकर बदन पुरा टूट गया था.. मै तो गांव पहुंचते ही अपने कमरे में घुसी और सीधा 3 बजे दरवाजा खोली... भूख बहुत तेज लगी थी लेकिन अभी कुछ भी खाने को नहीं मिला..


कारन था कल रात को हुआ वाकया और उस कांड मे 2 लोग आत्महत्या कर चुके थे.. एक थे माखन मिश्रा, नीलेश के पिता.. और दूसरा प्रवीण मिश्रा, गिरीश के पिता.. माखन चाचा के सबसे बड़े बेटे मुकुल भैया को खबर मिल चुकी थी और वो मुंबई से कल तक लौटते. चिता को मुख अग्नि देने तक कुछ भी नहीं पकता..


घर में केवल सोभा भाभी थी, वो भी इसलिए क्योंकि मै घर पर थी... खैर उस परिवार के लिए मेरे कोई इमोशन बचे नहीं थे. नीलेश की हालात के पीछे उसके माता पिता का ही पुरा हाथ था, ऐसा मेरे मानना था...


बहरहाल मुझे भी आखरी विदाई तो देनी ही थी, इसलिए मै, सोभा भाभी के साथ नीलेश के घर पहुंची. कुछ देर रुककर मै वापस चली आयी.. नहाकर फ्रेश हुई ही थी कि दरवाजे पर आशा भाभी खड़ी थी...


चूंकि नकुल का परिवार बेटी पक्ष का था, इसलिए सभी घरों के लिए खाना नकुल के घर से ही आ रहा था.. आशा भाभी मुझे अपने घर ले जाकर खिलाई और बीती रात की अधूरी बात पूछने लगी कि मुझे संगीता और मिथलेश के बारे में क्या पता था..


"भाभी, आप खिलाने बुलाई हो या अपने सवाल से टॉर्चर करने"… मैं खाती हुई जवाब दी...


"हां खा ले चैन से खाना, पूछ क्या ली, तेरे लिए टॉर्चर हो गया.. तू जाग गई है तो सब पहुंच ही रहे होंगे..." भाभी ताने देते कहने लगी..


मै:- क्यों ?


आशा भाभी:- तू नहीं जानती है क्यों? सुबह से न्यूज भी नहीं देखी क्या... अपना ही जिला और अपना ही गांव पूरे चैनल पर छाया हुआ है... एक ही रात में 58 गिरफ्तारियां हुई है... मामला यहां के कोर्ट से सीधा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है... हर जगह केवल अपना डिस्ट्रिक्ट, अपना गांव और एसपी कुमार आनंद ही छाया हुआ है... सब उसे रियल सिंघम कहकर पुकार रहे...


मै:- हां तो जाकर सिंघम से मिलो ना...


मै बोलकर निवाला मुंह में ली ही थी कि पीछे से मां पहुंची... "तू यहां क्या कर रही है"…


मै नीचे बोरे पर बैठकर पल्थी लगाकर खा रही थी. हाथ में परे निवाले को प्लेट में डालकर खड़ी होती... "चलो कहां चलना है, यदि यहां नहीं होना चाहिए था तो मुझे"..


मां:- ऐसे खाना को बीच में छोड़कर उठ क्यों गई..


मै:- क्योंकि पागल हूं ना मै.. इसलिए उठ गई.. भेज दो रांची मुझे.. उससे भी ना हो तो आगरा भेज दो…


आशा भाभी:- तू इतना गुस्सा क्यों हो रही है.. तू आराम से खा हम रुके है…


मै:- नाह मै तबतक नहीं खाऊंगी जबतक दोनो मेरे नजरो के सामने से दूर ना हो जाओ... वैसे मेरा भाई कहां है..


मां:- किसकी बात कर रही है, महेश की या मनीष की..


मै:- माफ करना, मेरा प्यारा भतीजा कहां है..


मां:- वो नालायक फरार है.. जब भी फोन करूं तो कहता है कि दीदी जब जाग जाए तब बुलाना.. अकेले मै ये कहानी नहीं बता पाऊंगा.


बहरहाल हर किसी के दिल का हाल मै समझ रही थी.. सबको जानना था कि कल की हुए घटना मे हमारी क्या भागीदारी थी... शायद कहानी नकुल ने पहले से तैयार कर ली हो, क्योंकि हम ये कहानी पूरी उनको नहीं बता सकते थे...


खैर जब सब लोग जमा हो गए तो मै और नकुल ने मिलकर उनसे इतना ही बताया की अर्पिता की कहानी सुनकर हमने बस एसपी साहब को उन लड़कियों के फोटो दिए थे, जनके साथ नीलेश को देखा था हमने... बाकी की कहानी तो आप जानते ही हो...


सबने हमारी खूब प्रशंसा की लेकिन एक और घटना का भेद आशा भाभी ने सबके सामने खोल दिया... रात को हुई दिव्यांश के सर फोड़ने वाली घटना...


अब उसके जवाब में मै क्या कहूं.. मैंने उनसे बताया की वो लगातार बदतमीजी कर रहा था.. मुझे छेड़ रहा था. नकुल ने उसे वार्न किया, प्राची दीदी समझाई और जब वो नहीं माना और लगातार छेड़ता ही रहा, तब मजबूरन मुझे ये काम करना पड़ा..


पापा और महेश भैया तो तुरंत आशा भाभी को बोले, संगीता की मां को फोन लगाकर उसका पूरा पता लेने। लेकिन मनीष भैया सबको शांत करवाते हुए कहने लगे, मेनका ने उपचार कर दिया उसका.. ज्यादा खींचने की जरूरत नहीं है इस बात को....


अगले कुछ दिन तक पुरा ड्रामा चलता रहा.. एक ओर तो गांव का ड्रामा था, जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था.. वहीं दूसरी ओर नीलेश और गिरीश को एक घंटा केवल उनके पिता के मुख अग्नि के वक्त शमशान लाया गया और फिर उन्हे दिल्ली ले जाया गया...


गांव के ड्रामे मे था नीलेश का उठाया हुआ एडवांस पैसा, जो उसने प्लाई फैक्टरी के कंपनी से लिया था.. जिसके बराबर हिस्सेदार था गिरीश और आंशिक हिस्सेदार था नंदू.. वहीं राजवीर अंकल से जमीन खरीदने के लिए भी 4 करोड़ का बाजार से कर्ज उठाया गया था, जिसके जमीन के पेपर और कर्ज के दस्तावेज कर्ज देने वालों के पास थे..


नंदू का सारा कर्ज तकरीबन 4 करोड़ का था, जिसे उसके घर वालों ने उसके हिस्से की जमीन और संपत्ति बेचकर चुका दी... फिर भी 1.60 करोड़ का शेष राशि बच गया था, जिसके लिए उनके घरवालों ने हाथ जोड़कर साफ कह दिया कि नंदू की संपति जितनी थी, उतना बेचकर कर्ज का पैसा चुका दिया, बाकी उससे समझ लीजिए...


नंदू का तो फिर भी कम था, नीलेश और गिरीश का कर्ज तो और लंबा लंबा था. क्योंकि दोनो ही 40% के पार्टनर थे और पुरा धंधा पिता के नाम रजिस्टर्ड कंपनी के नाम से ही कर रहे थे.. एक तो उसका प्लाई फैक्टरी का एडवांस पैसा और दूसरे जमीन के लिए कर्ज, कुल मिलाकर 10 करोड़ की राशि थी... इतनी बड़ी रकम पुरा करने के चक्कर में प्रवीण मिश्रा और माखन मिश्रा के बैंक अकाउंट सिज करना परा... नीलेश और गिरीश का अकाउंट सिज़ हुआ.. फिर पूरे जमीन का मूल्यांकन हुआ…


प्लाई फैक्टरी के एडवांस के पैसे तो प्रवीण मिश्रा और माखन मिश्रा के बैंक अकाउंट और साथ ही साथ उनके बेटे के अकाउंट से तो सैटल हो गया था, किन्तु राजवीर अंकल के जमीन के लिए उठाया गया पैसा, उनके जमीन और घर को बेचकर पुरा करना परा...


माखन चाचा के बाकी बेटे केवल अपना सिग्नेचर करके वापस अपने सहर को लौट गए. गांव में अब उनके लिए कुछ भी नहीं बचा था। वहीं माखन चाचा के बड़े भाई कुमोध चाचा, अपने रिटायरमेंट की जिंदगी गांव में बिताना चाहते थे, इसलिए कर्जदारों से वो अपने पुरखों की जमीन वापस लेकर, उसके पैसे का भुगतान कर दिया था...
 

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अध्याय 16 भाग:- 2




खैर ये तो गांव के ड्रामे थे जिसमे प्रवीण मिश्रा की भी संपत्ति बिक चुकी थी.. वहीं दूसरी ओर गांव की पॉलिटिक्स भी लगभग बदलती नजर आ रही थी, जहां हमारे गांव के मुखिया चाचा कि पकड़ अब उस पूरे इलाके में सबसे ज्यादा मजबूत थी, तो वहीं महादेव मिश्रा के मरने के बाद विधायक असगर अली का बेटा लियाकत अली यहां की राजनीति का मुख्य चेहरा बनकर उभर चुका था...


गांव के जो भी ड्रामे थे, वो तो गांव भर में ही छाए हुए थे, लेकिन जो ड्रामा कुमार आंनद रच चुके थे, वो तो पूरे देश मे छाया हुआ था... सुप्रीम कोर्ट में लागतार सुनवाई जारी रही... 58 गिरफ्तारियां बढ़कर 62 हो गई... कुल 6 लड़कियां थी, जो कि दरिंदगी की शिकारी हुईं थी, पिछले 6 महीने में।


सब की सब 18-19 साल से ज्यादा उम्र की लड़कियां नहीं थी... केवल एक अर्पिता को छोड़कर बाकी सारी लड़कियां दूसरे स्टेट से उठवाई गई थी.. जिन चार लोगों को बाद में अरेस्ट किया गया था, उन्हीं की जिम्मेदारी होती थी अच्छे घर की लड़कियों का पुरा पता करके, कैसे सुरक्षित ढंग से उठाया जाए...


वहशियाना का खेल रचने के लिए लड़की उपलब्ध करवाना, और उस खेल मे सामिल होने के लिए नीलेश और गिरीश को फांसी की सजा... उसी के साथ 14 अधिकारी, जिसमे कमिश्नर, डीएम, डेप्युटी डीएम, और भी बड़े-बड़े अधिकारी थे... उन्हे भी उनकी दरिंदगी के लिए फांसी की सजा हुई.. महादेव मिश्रा के 6 बॉडीगार्ड, 4 प्राइवेट फाइनेंसर और 8 क्रिमिनल को भी उसी केस में फांसी की सजा हुई...


कुल 62 अभियुक्त मे से वहां 32 को फांसी हुई थी.. वहीं नंदू और उसके साथ के 8 क्रिमिनल को गलत तरीके से टेंडर पाने, सेक्स रैकेट चलाने और कम उम्र की लड़कियों को पैसे का लालच देकर उनसे काम निकलवाने के लिए उन्हे 7 साल की सजा हुई...


बाकी बचे हुए दोषियों का भी आरोप साबित हो चुका था और उन्हे भी अलग-अलग धाराओं के तहत किसी को 3 साल, तो किसी को 5 साल की सजा हुई थी... लगातार 2 महीने की सुनवाई मे एक के बाद एक परिणाम आते गए और सबको सजा होती चली गई..


ये कुमार आंनद का पुरा बिछाया जाल था, जिसमे 62 लोग गिरफ्तार हुए थे और किसी एक तक को भी उसने बेल नहीं होने दिया था... वहीं बात करे यदि नीतू और गैंग की तो.. नीतू, फातिमा और पूनम को नंदू का साथी करार दिया गया, किन्तु नाबालिक उम्र और कच्ची उम्र की नासमझी के कारन पूनम को 2 साल, नीतू और फातिमा को 1 साल करेक्शन सेंटर में रखकर, रिपोर्ट सबमिट करने के ऑर्डर मिले, उनकी सजा उसके बाद तय होती.


इधर अपनी भी जिंदगी सामान्य रूप से आगे बढ़ने लगी थी... पढ़ाई और परिवार के बीच अपना समय अच्छा कट रहा था. नीलेश के घर में इस बार शायद इंसानों ने जगह ली थी. माधव चाचा काफी मिलनसार और अच्छे लगे, बाकी मिलना जुलना तो केवल नाम मात्र का ही होता रहा...


नए साल के आगमन से लेकर मकर संक्रांति के त्योहार तक सब आकर गए. 11th के एग्जाम भी समाप्त हो गए और इस बार भी मै अपने गांव के कॉलेज की टॉपर रही. वहीं हमारे सहर का मकान भी तैयार हो चुका था, जिसका गृह प्रवेश कुछ दिन पहले ही हुआ था.


गृह प्रवेश के साथ ही महेश भैया और सोभा भाभी को सहर के मकान में शिफ्ट करवा दिया गया, ताकि वहां रहकर वो साक्षी और केशव को शहर के अंग्रेजी स्कूल में दाखिला करवा सके.


होली के बाद रूपाली दीदी (ममेरी बहन) के शादी की भी तारीख तय हो चुकी थी. ज़िन्दगी बिल्कुल सामान्य और हंसी खुशी कट रही थी... जनवरी तक तो इतनी ठंड थी की मै कहीं निकली ही नहीं. शुरवात फरबरी से ही मैंने पापा और मम्मी को तैयारी के लिए एक साल वर्मा सर से पढ़ने की बात पूछ ली... उन्होंने भी हां कह दिया..


मै और नकुल पता करके पहुंचे वर्मा सर के पास. पहली बार किसी अकरू शिक्षक से मिल रही थी.. पहले दिन तो उन्होंने यह कहकर भगा दिया कि पहले कम से कम अपना 12th तो क्लियर करके आना चाहिए था..


2-3 दिन चक्कर काटे, मिन्नतें की। पुरा बताया की मै पिछले 3 दिन से गांव से आकर उनसे समय लेने की कोशिश कर रही हूं. लगातार कोशिशों की वजह से वो थोड़ा सा पिघले. रविवार के दिन उन्होंने ने बुलाया था, मै जैसे ही पहुंची उन्होंने सवालों से भरा एक पेपर थमा दिया और जवाब लिखने के लिए आधे घंटा का समय दे दिया..


50 ऑब्जेक्टिव सवाल थे, और कुछ सवालों के लेवल तो मेरे तैयारी के कहीं ऊपर के सवाल थे. मुझे जो आते थे उनका जवाब देकर, मैंने आधे घंटे में उन्हे अपना जवाब सबमिट कर दिया..


28 सवालों का जवाब मैंने दिया था और सब के सब सही थे. उन्होंने पूछा कि कॉम्पिटिशन की तैयारी कर रही हो और 50 मे से मात्र 28 ऑब्जेक्टिव का जवाब दी, बाकियों को अटेम्प्ट भी नहीं की..


मै:- सर उन सवालों के जवाब मुझे नहीं आते थे, और ना ही ऐसा लगा कि मैंने उन सवालों को कभी पढ़ा है.. जितने आए उतने के जवाब दे दिए..


वर्मा सर ने मुझसे फिर पूछा कि सीए की तैयारी करना एक बात, लेकिन तुम जानती भी हो सीए बनने मे मेहनत के अलावा कितना वक्त लगता है.. मुझे सच मे बहुत ज्यादा पता नहीं था.. मैंने उनसे बस इतना ही कहा कि सर प्रोफेशनल कोर्स है, 4 साल या 5 साल लग जाएंगे..


मेरा जवाब सुनकर वो मुस्कुरा दिए और घर परिवार का डिटेल पूछने लगे. मेरे पापा से उन्होंने बात की, और फिर उन्होंने 3 दिन का समय दे दिया... मंगलवार, शुक्रवार और रविवार...


मै काफी खुश हुई, सर को धन्यवाद कही और घर लौट आयी. 2 दिन बाद से मेरी क्लास शुरू हो गई. वर्मा सर ने बेसिक से ही शुरू किया, बावजूद इसके की उनको भी पता था कि मै ये सब पढ़ चुकी हूं, लेकिन जब उन्होंने टॉपिक उठाया और समझाना शुरू किए, तब पता चला कि उस टॉपिक के अंदर इतनी टेक्निकल चीजें थी.. 2 घंटे की क्लास कभी 3 घंटे तो कभी साढ़े 3 घंटे की हो जाती..


जब वो पढ़ाने बैठते थे, तो ना उन्हे समय का ख्याल आता और ना ही मुझे कभी बोरियत हुई.. जो भी पढ़ाते थे पूरे दिल से पढ़ाते थे... महीने दिन बीत चुके थे, फागुन का महीना चल रहा था, होली से 3 दिन पहले का रविवार था..


प्राची दीदी सहर मे थी और मै, नकुल के साथ मिलने पहुंची हुई थी. सुबह के वक्त दरवाजे पर आंटी खड़ी थी.. उनके चेहरे पर अलग ही मुस्कान थी. पूछने पर पता चला कि 2 साल कुछ महीने बाद उनका बेटा हर्ष घर पहुंचा था..


हालांकि वो हम दोनों (नकुल और मै) के लिए ही मात्र एक अनजान लड़का था, लेकिन आंटी को खुश देखकर हम भी खुश थे.. मै जैसे ही अंदर पहुंची, राजवीर अंकल भी काफी ज्यादा खुश लग रहे थे, बस एक जो खुश नहीं नजर आ रही थी, वो थी प्राची दीदी..


हमने कारन जानने कि कोशिश कि तो पता चला कि प्राची दीदी और हर्ष मे कुछ-कुछ बातों का मतभेद था, जो अक्सर लड़ाई में बदल जाती थी.. आज भी वही हुआ था.. प्राची दीदी चाहती थी कि फ्लाइट लैंड हो तो हर्ष दिल्ली में उसके पास रुके और वहां से दोनो साथ आते. लेकिन वो मां का इतना बड़ा भक्त लड़का था कि दिल्ली एयरपोर्ट से ही कनेक्टिंग फ्लाइट लेकर घर भाग आया...


हम दोनों जब उनके कमरे के पास पहुंचे, तब दोनो में कोल्ड वॉर चल रहा था और मै पहली बार हर्ष को देख रही थी.. ये वही रूप था, जैसा नकुल का था, जैसे रवि का था.. सांवला सलोना, बिल्कुल कृष्ण की तरह...


मुझे ना ये रंग काफी भा जाता था. हर्ष अपने पिता पर गया था, जबकि प्राची दीदी बिल्कुल अपने मां पर.. गोरी चिटी, और खूबसूरत चेहरे की आकार वाली.. हां लेकिन हर्ष भी कम नहीं था.. लगभग 6 फिट की हाइट थी, मेरे नकुल के बराबर. चेहरा वैसा ही दिलकश और बॉडी बिल्कुल आकर्षित करने वाली...


खैर मुझे की, हम तो सामने चल रहे झगड़े को देख रहे थे. प्राची दीदी बोलते-बोलते उसे "करिया" बोलकर, हर्ष के बाल बिखेर दी, और वो हर्ष प्राची दीदी को घूरते हुए कहने लगा... "बस तुमसे थोड़ा सा माध्यम रंग है, सांवले और गोरे चिट्टे के बीच का समझी"..… "हां रे नालायक, मै जानती हूं.. किसी ने मेरे गोरे चिट्टे भाई को हॉस्पिटल में बदलकर तुझ करिए को हमारे मत्थे डाल दिया"…


प्राची दीदी कि बात पर हमारी भी हंसी निकल गई. उन दोनों का ध्यान हमारी ओर गया और हर्ष चिल्लाकर कहने लगा… "आ गए तेरे चमचे, जा दरबार लगा उसके साथ"..


प्राची दीदी गुस्से में चिल्लाती हुई... "पापा इसने मेनका और नकुल को चमचा पुकारा"… उधर से राजवीर अंकल... "दे उसे एक थप्पड़, अक्ल सही हो जाए.. लंदन जाकर तमीज भुल गया है"…… "पापा तमीज के साथ-साथ सराफत भी भुल गया हूं, इस भ्रम में मत रहना की मै नहीं मार सकता, मै भी मार दूंगा दीदी को"….


प्राची दीदी:- तू हॉस्पिटल का बदला हुआ बच्चा नहीं है तो मारकर दिखा, चल उठा हाथ..


प्राची दीदी तो हर्ष को उकसाने के साथ-साथ उसे ठोक भी रही थी और वो आखों से सोले बरसाते हुए... "दीदी, देखो मेरा हाथ पर गया तो फिर रोती रहोगी".. ऐसे ही जब 5-6 बार प्राची दीदी करती रही, तभी उनके गाल पर एक थप्पड़ पर गया..


नाना ये थप्पड़ हर्ष का नहीं था, बल्कि आंटी का था। जिन्होंने प्राची दीदी को मारा था... खैर थोड़े से फैमिली ड्रामे के बीच हम भी बैठ गए बातचीत करने… 3 बजे के करीब मै सर के पास पहुंची, तब वो कहीं निकल रहे थे, उन्होंने बस इतना ही कहा... "जाओ तुम्हारे एक हफ्ते की छुट्टी"… मंगलवार से आना.."


मै भी निकलने से पहले सर के पाऊं पर अबीर डालकर उन्हे होली की शुभकामना दी और प्राची दीदी के पास लौट आयी… जब लौटी तो घर का पुरा माहौल ही गुलाल से रंगीन था... भागम भाग चल रही थी, उसी बीच मेरे चेहरे से लेकर मेरी पूरी ड्रेस पर हर्ष ने अबीर उड़ेल दिया...


"मेरी प्यारी ड्रेस"… उसने तो मेरे उजले रंग के गाउन को पुरा लालाम लाल कर दिया... उधर आंटी भी नकुल के ऊपर गुलाल डाल रही थी, साथ मे अंकल ना ना कहते रह गए लेकिन उनके ऊपर भी उड़ेल दी... एक बात तो तय थी कि दोनो मां बेटे को रंगो से बहुत प्रेम था..


मेरी नजर अब प्राची दीदी को ढूंढ रही थी... "हर्ष, प्राची दीदी"..


हर्ष:- हमे जैसे ही पता चला की तुम लोग जाने वाले हो.. मैंने नकुल को रंग डाला, तुम पर रंग डाला, लेकिन रंगों की शुरवात होते ही, दीदी भाग गई.. कमरा लॉक करके बैठी है..


मै नकुल, हर्ष और आंटी को अपने पीछे लेती... "चलो फिर दरवाजा खुलवाते है… वो क्या है ना रंगों के इस त्योहार से मुझे भी बड़ा लगाव है..."


ये लोग तो अबीर लिए हुए थे लेकिन मै तो अपने साथ पहले से पक्का रंग लेकर निकली थी, जिसके बारे में केवल नकुल जानता था... मै नकुल को पहले ही इशारा कर चुकी थी, और वो समझ गया की उसे क्या करना था...


मैं दरवाजे के बाहर से ही चिल्लायी, की दीदी मै जा रही हूं.. प्राची दीदी अंदर से ही कहने लगी ठीक है मै कल गांव आकर मिलूंगी...


उनका रंगों से डर देखकर मुझे हंसी आ गई.. मै सोचने लगी जिस हिसाब का इनका डर है, कल यदि रूपा भाभी और सोभा भाभी के हत्थे चढ़ गई, तो इनका क्या हाल होगा.. अंदर से ही हंसी छूट गई... खैर मै उन्हे ताने देते हुए कहने लगी… "अबीर यानी केवल धूल, उससे डरकर यदि आप मेरे लिए दरवाजा नहीं खोली फिर मै क्या ही कह सकती हूं"..


मेरे इस इमोशनल अत्याचार से प्राची दीदी ने थोड़ा सा दरवाजा खोला और कहने लगी... "मेनका प्लीज, मान जा ना.. मुझे रंग पसंद नहीं"..
 

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अध्याय 16 भाग:- 3







"अरे ऐसे कैसे पसंद नहीं"… अंटी पीछे से आगे आकर दरवाजे को धक्का दी और दरवाजा पुरा खुल गया... प्राची दीदी झट से अपने ऊपर चादर ओढ़कर कहने लगी.. "देखो मुझसे बुरा कोई ना होगा"..


मै:- देखिए 5 मिनट मै दीदी से मिल लूं, आप लोग प्लीज बाहर जाइए...


कुछ पल बीतने के बाद... "दीदी घूंघट हटाओ, सब बाहर गए"… प्राची दीदी चादर थोड़ा सा किनारे करते देखी, फिर नकुल से कही दरवाजा बंद करो अभी... नकुल ने जैसे ही दरवाजा बंद किया, प्राची ने कहा दोनो अपने हाथ आगे करके दिखाओ... हम दोनों की खुली और साफ हथेली देखकर प्राची दीदी अपना चादर हटाई...


"तू जानती नहीं है मेनका, रंग मेरे चेहरे पर कितना रिएक्शन करता है. मै छोटी थी, रंग के कारन पूरे चेहरे पर छोटे-छोटे स्पॉट आ गए थे.. एक महीना तक मुंह छिपाकर चलना परा"…


प्राची दीदी बिस्तर पर बैठकर आराम से अपनी होली की कथा सुनाने लगी. मै उनके करीब खड़ी होकर, अपने दोनो हाथ पीछे की हुई थी और नकुल ने बड़ी सफाई से पहले मेरे हथेली को पानी से गीला किया, फिर पक्का रंग मेरी हथेली पर डाल दिया..


जैसे ही उनकी बात खत्म हुई, मै प्राची दीदी को मुस्कुराती हुई कहने लगी… "होली का मतलब, ना कोई गोरा, ना कोई काला. सब एक समान रंग मे रंगे। ये समानता का त्योहार है दीदी. हम त्योहारों के देश में रहते हैं, जहां हमने विदेशी त्योहारों को भी उतना ही मान और सम्मान दिया है, फिर आप इस समानता के त्योहार से इतना परहेज क्यों करती हो"..


मै अपनी चिकनी-चुपड़ी बात करती हुई, बड़ी ही सफाई से उनके चेहरे पर, अपनी दोनो हथेली फिरा चुकी थी. पहले तो प्राची दीदी को लगा कि मेरे हाथ ठंडे है, लेकिन रंग के कारन जब उनके गाल सूखे और खींचने लगे, तब वो हम पर चिल्लाई... इतने में ही नकुल दरवाजा खोल चुका था.. वो भी अपने हाथ का पक्का रंग, उनके गाल पर तेजी से मल दिया...


पास टेबल पर परा गुलाल मै उनके पूरे ऊपर उड़ेल दी, और हम दोनों कांड करके वहां से भागे… प्राची दीदी भी हमारे पीछे भागी, लेकिन तबतक हम वहां से फुर हो चुके थे और प्राची दीदी पीछे से चिल्लाती रह गई..


अगले दिन जब मैंने उन्हे कॉल करके पूछा कि वो गांव कब पहुंच रही है, तब उन्होंने कहा कि मै अब अगली बार ही गांव आऊंगी, होली के समय का तेरा कांड मै भूलूंगी नहीं मेनका... मै बदला तो लेकर रहूंगी... मै ना भी लूं तो भी वो भगवान इंसाफ करेगा...


बहरहाल ये वक्त गांव में होली मानाने का था और होली मे लोगों के गुस्से हमने कौन से पहली बार सुने है.. जब मै अपनी स्ट्रिक्ट मासी को रंग में पोत दी थी, जिनपर रंग डालने की हिम्मत तो उसके जीजा यानी मेरे पिताजी को नहीं हुई, फिर प्राची दीदी तो उनके मुकाबले ज़ीरो थी...


खैर.. वक्त था होली का और बिहार के मुख्य त्योहारों मे से ये भी एक प्रमुख त्योहार हुआ करता है. हां पहले कि हुल्लारबाज होली, जहां लोग गोबर, मिट्टी और कीचड़ तक का प्रयोग कर दिया करते थे, वो भी होली के हफ्ते भर पहले से.. जहां यात्री बस और ट्रेन जब गांव के इलाकों से गुजरे, तो उन पर रंग के साथ-साथ अन्य चीजों की भी बौछार कर दी जाती थी, उसका प्रचलन खत्म सा हो गया था। लेकिन होली का उत्साह मे कोई कमी नहीं थी... ऊपर से मै तो भौजियो के बीच की इकलौती ननद थी. होली के दिन तो मेरी हालत ऐसी होती मानो लोमड़ियों के बीच में खरगोश फसी हुई हो...


परन्तु मै भी कहां कम थी, मै तो भौजीयो के ऊपर चुपके से रंग डाल देती, लेकिन उसके बाद फिर हाथ नहीं आती... हां वो अलग बात है कि एक बार फसी तो फिर जो ही गत वो मेरा करती थी, वो मै ही जानती हूं... ऊपर से मेरा चिल्लाना तो जैसे उनके लिए जोश का काम करता हो... मै जितना चिल्लाती उनके हमले उतने ही जोरदार होते...


होली के दिन सुबह से ही मै शरारत पर उतर आयी थी... सुबह जब रूपा भाभी किचेन का काम कर रही थी तब पीछे से, मैंने उनके साड़ी के किनारे को थोड़ा खींचकर 2 मग रंग डालकर भाग गई.... मुझे पता था किचेन का काम करके ही वो आएगी फंनफनाति नागीन का बदला लेने..


वहीं मेरी बड़ी भाभी सोभा, जब आंगन में बैठकर सब्ज़ी काट रही थी, मैं पीछे से गई, जबतक वो अपने चाकू छुड़ी रखकर अपने हाथ फ्री करती, उतने मे तो मैंने उनका पल्लू हटाया और ब्लाउस के अंदर पुरा एक मग रंग उड़ेलने के बाद, पूरी एक बाल्टी रंग उनके सर पर उड़ेल दी...


तीसरी नकुल की मां आशा भाभी, वो सुबह-सुबह घर आयी थी, और मै छत पर चढ़कर पूरी की पूरी बाल्टी रंग उनके ऊपर छपाक… ऐसा ही मैंने स्नेहा भाभी के साथ भी किया.. छत पर बैठी शिकार के इंतजार मे थी और वो भी सुबह-सुबह हमरे घर के ओर निकली थी। वो तो सुखी जा रही थी लेकिन रास्ते में एक नहीं 2 बाल्टी रंग उनके उपर उड़ेल दी...


आप ऐसा ना सोचना की बाल्टी भर पानी में रंग डालने से रंग नहीं चढ़ेगा... पुरा पक्का रंग 10 गुना ज्यादा मात्रा में डालती थी.. जिसपर भी पड़ा, रंग तो चिपकना ही था... सुबह से लेकर 11 बजे तक सभी भौजी होली खेलने में थोड़ी असहज रहती है, क्योंकि उन्हें तरह-तरह के पकवान तैयार करने होते है.. गीले बदन खाना पकाना थोड़ा अजीब हो जाता है...


और इसी चक्कर में आशा भाभी 2 बार, रूपा भाभी 4 बार, सोभा भाभी 4 बार, मेरी मां 2 बार, स्नेहा भाभी 2 बार.. वो नीलेश के घर रहने आए माधव चाचा के बड़े बेटे की पत्नी, और उनकी छोटी बेटी, दोनों हमारे घर के ओर से जा रहे थे.. एक बहन लगती और दूसरी भाभी.. मै बिना किसी भेदभाव के उन पर भी रंग डाल चुकी थी..


बड़ा मज़ा आ रहा था... लेकिन अब मामला यें था कि घड़ी में बज गए थे 1.. देवर भाभी की थोड़ी बेशर्मी वाली होली का समापन हो चुका था.. सभी भौजिया रंग मे सराबोर और पूरी तरह से भिंगी... मेला लगा मेरे ही घर में क्योंकि टारगेट थी मै..


पहले तो आपस में जितना पागलपन दिखाना था दिखाई.. कोई किसी के ब्लाउस मे हाथ डालकर रंग लगा रही थी तो किसी का हाथ साड़ी के नीचे से कमर में चला जाता.. और ये सब कांड करने के बाद जब सब लोग थोड़ा जलपान ग्रहण की, उसके बाद रूपा भाभी चिल्लाई... "दीदी (वहां के औरतों को संबोधित करती) अपनी होली तो हो गई, लेकिन सुबह से जिसने परेशान कर रखा था उसका क्या"?..


अब सबकी नजर छत पर.. मै उपर रेलिंग के पास बैठकर उन्हे सुन रही थी... "भौजी, हाथ आ गई फिर आप भी परेशान कर लेना"..


स्नेहा भाभी:- हाथ आ गई फिर तो पुरा चिर हरण होगा.. वैसे भी इस होली हमारा टारगेट तो तेरा जोबन ही है.. पिछले साल तो टीकोले थे, अभी छोटे संतरे तक पहुंच ही गए होंगे, या उससे बड़े है वो हम सब इत्मीनान से देख लेंगे..


मै:- रोका किसने है स्नेहा भौजी, हाथ आयी तो वो भी इक्छा पूरी कर लेना...


सभी औरतें आपस में ही खुसुर फुसुर करती रही.. 1 से 2 बज गए लेकिन मैंने छत का दरवाजा खोला ही नहीं.. सभी औरतें दरवाजा पीटने मे लगे और मै सबके ऊपर रंग डाल रही थी..


तभी नकुल के छत से आशा भाभी पहुंच गई.... जैसे ही वो मेरे छत पर आयी, मै समझ गई हो गया कांड.. मै जानती थी दौर भाग के खेल मे मै आशा भाभी के हाथ नहीं आऊंगी, लेकिन उन्हे भगाने की इक्छा जरा भी नहीं थी... "भौजी, आराम से लगा लो रंग जितना लगाना है.. मै हूं बैठी यहीं पर".. इतना कहकर मै बीच छत पर बैठ गई...


"तू बहुत होशियार है ना बेटा, तो अभी तेरी होशियारी निकलती हूं"… चूंकि मै जानती थी आशा भाभी बस मेरे गालों और सर पर ही रंग डालेंगी, उससे ज्यादा वो कभी कुछ कर ही नहीं सकती, इसलिए मै भी आराम से बैठ गई... लेकिन ये भी कहां कम थी, चल दी छत का दरवाजा खोलने..


सभी भाभियां बड़ी तेजी के साथ छत पर चढ़ी, और गुस्से से मुझे देख रही थी और मै हीहीही करती उन्हे ठेंगा दिखा रही थी... क्योंकि जिस रास्ते आशा भाभी आयी थी मै उसी रास्ते अब भागने वाली थी.. यानी कि जबतक आशा भाभी छत का दरवाजा खोलती, मै नकुल के छत पर आ चुकी थी.. उन सबको देखकर हंसती हुई... "बाय-बाय भाभी... अब तो नीचे भाभी का घर लॉक, और ऊपर ये छत का दरवाजा लॉक करके मै चली आराम से टीवी देखने, सीधा 5 बजे निकलूंगी..."


सभी हाथ मालती रह गई और मै फुर्र हो गई... मै सीधा शाम को 5 बजे आशा भाभी के घर से निकली.. रूपा भाभी के सामने जैसे ही मै आयी उन्हे ठेंगा दिखाते... "क्यों भौजी, हो गए दिल के पूरे अरमान...".. मैंने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि पीछे से सोभा भाभी मेरे कमर में हाथ डाली और मुझे हवा में उठाकर... "मज़ा तो अब आएगा मेमनी, 3 नहीं तो 5 बजे होली होगी.."..


"अरे भाभी छोड़ो भी, जाने भी दो...".. मिन्नतें, गुस्सा और जोर जबरदस्ती से खुद को छुड़ाना कुछ काम नहीं आया.. सोभा भाभी अकेले ही मुझे पकड़े रही और इतने में मेरी रूपा भाभी सभी भौजियों को निमंत्रण दे आयी..


आंगन का दरवाजा लग गया.. मेरे भागने के सारे रास्ते बंद, और अब आत्म समर्पण मे ही भलाई है.. दर्द से चींख और जान, दोनो निकाल दिया सबने मिलकर। खासकर जो अत्याचार मेरे स्तनों पर किया उन लोगों ने और जो ही मेरे पेट और पीठ को रंगा पोता था, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता आप बस समझ जाओ की मेरे कमर के नीचे तक सब पुरा पेंट करके गई...


खैर ऐसा नहीं है कि मज़ा नहीं आया.. अगर भौजीयों ने जोड़ ना दिखाया होता तो मेरी होली सुनी ही रहती.. वैसे तो ये हफ्ता ही मस्ती का था, लेकिन होली के दिन तो हम सब ने अपने हिसाब से खूब मस्ती की...


प्राची दीदी जब मेरा हाल सुनी तब वो हंसती हुई कहने लगी की तेरे साथ बिल्कुल सही हुआ.. मैंने भी बोल दिया, मेरा तो जो भी हुआ हो, अकेले टक्कर देकर मै भी आयी थी, कहीं आप यदि जल्लाद भाभियों के बीच फंसती तो आपका क्या होता..


मेरी बात सुनकर वो जैसे कहीं गुम हो गई.. शायद अपनी हालत के बारे में सोच रही हो.. होली का हफ्ता इतने हंसी-मज़ाक और सुहावना रहा की मै शनिवार को जो किताब छोड़ी, तो अगले शुक्रवार तक छुट्टी पर ही रही. वो भी ध्यान सोमवार से पहले नहीं ही आने वाला था, जब मै मंगलवार को सर के पास जाने की तैयारी करती..


किन्तु शुक्रवार की शाम वर्मा सर का कॉल आ गया, रविवार से ग्रेजुएशन सेकंड ईयर के बैच मे नया टॉपिक शुरू होना था, 2 से 3 उस बैच मे पढ़ने के बाद 3 बजे से सर फिर रेगुलर क्लास चलेगा, लेकिन अपने ही दिन पर.


मतलब की यदि रविवार को मेरी क्लास है 3 बजे की तो पहले 2 से 3 बैच की क्लास, फिर 3 से मेरी क्लास। जबकि सोमवार को मेरी क्लास नहीं होती है तो 2 से 3 पढ़ने के बाद छुट्टी.. उसके अलावा उन्होंने टॉपिक पहले से बता दिया था जिसे पढ़कर जाना था...


रविवार को मै 2 बजे अपने समय से पहुंचकर एक किनारे बैठ गई. मै बैठी ही थी कि इतने में वो लड़का दिव्यांश "खि खी" करते अपने दोस्तो के साथ बैच मे पहुंचा. उसे देखकर मै पूरी तरह से चौंक गई और मुझे देखते ही वो भौचक्का होकर शांत खड़ा हो गया...


फिर जोर से चिल्लाते हुए कहने लगा... "अरे कुमार, वो शादी वाली लड़की याद है तुझे"….


कुमार:- कौन जिसने तेरा सर फोड़ दिया था..


दिव्यांश:- हां वही लड़की.. आज अपने सामने बैठी है...


उसका एक और दोस्त… "कौन वो हरी भरी माल जो हरे रंग के सूट मे बैठी हुई है"…


कॉमर्स के बैच में आमुमन कम ही लड़कियां होती है और वहां जो भी 4-5 लड़कियां थी, सब मुझे ही घुर रही थी.. उन लोगो के कॉमेंट तबतक चलते रहे जबतक की सर नहीं आ गए.. उसके बाद सब शांत क्लास शुरू. वो अपने क्लास के बाद बाहर निकल गए और मै अपनी आगे के क्लास के लिए रुक गई..


रविवार का दिन तो मेरे अपने रेगुलर क्लास के कारन सुकून भरा गया लेकिन सोमवार के दिन मेरी दूसरी क्लास नहीं थी, इसलिए मै भी उन्हीं लोगों के साथ निकली.. क्लास के बाहर जैसे ही गई, करीब 5-6 लड़के ऐसे रास्ता रोक चल रहे थे कि कोई आगे जा ना सके... एक-एक करके बाकी लड़कियों को उनके रिक्वेस्ट पर पास दे दिया और मै मजबूर थी उनके पीछे जाने के लिए...


"वाह रे लड़को"… कोई अपनी 60 हजार का मोबाइल निकालकर कह रहा था कि उस लड़की का पुरा खानदान इतने पैसों मे महीने खाना खाए, तो कोई अपनी 10 हजार की घड़ी दिखाकर कहता है, इतने पैसों के लिए तो ये लोग अपने कपड़े उतार दे.. और उधराहन नीतू का दे रहे थे, जो हमारे गांव से थी...


कोई कह रहा था रेट पुछ, उसी एरिया की है। तो कोई कह रहा था सीधा जो करना है कर ना, वो कौन सा बुरा मानेगी.. जाते-जाते कुछ नोट मुंह पर फेंक देना...


उसके पीछे चलने के वो 5 मिनट मेरे लिए जैसे अत्याचार थे. हां वो तो पैसे का ही शो ऑफ कर रहे थे, लेकिन गांव को बदनाम तो गांव के लोगों ने ही किया था। फिर ऐसे अभद्र टिप्पणी के लिए मै किस-किस से लड़ने जाती.. आशु के घूंट पीकर मै मिश्रा कॉलोनी चली आयी.. कुछ देर अपने सहर वाले घर बैठकर, मै साक्षी के साथ खेलकर, भाभी को बोल दी कि साक्षी और केशव को लिए जा रही हूं, कल लाकर छोड़ दूंगी..


सोभा भाभी:- आज ही तो सब आए है मेनका, क्या हो गया तुझे, तेरा ये चेहरा क्यों उतरा है..


मुझे सच मे रोना आ गया. मै भाभी से लिपटकर रोती हुई कहने लगी… "लोगों को जब हमारे गांव के बारे में पता चलता है तो बहुत ही अभद्र भाषा का प्रयोग करते है"..


भाभी मेरे पीठ पर हाथ फेरती, मुझे शांत करवाती हुई कहने लगी... "मै जब शादी करके आयी थी, तब मुझे भी सब कुछ-कुछ बोल देते थे, मेरा दिल जलता था और मै झगड़ा करने लगती थी.. वो चिढ़ इतनी अंदर तक घुसी की मुझे खुद भी पता नहीं चला कि मेरा स्वभाव कब बदल गया... तू मत चिढ़ा कर. चुपचाप सुनकर निकल ले, या रास्ता बदल ले.. बाकी जब तुम्हे लगे कि ये ज्यादा हो रहा है... फिर अच्छे से इलाज होगा.. तू क्यों मायूस हो रही.. तुझे तो सुनाकर नहीं कहा ना"..
 

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अध्याय 16 भाग:- 4




मैंने भाभी से झूठ कह दिया और ना मे सर हिला दिया.. मै नहीं चाहती थी कि ये मामला बड़ों के पास पहुंचे, इसलिए झूठ बोल दी.. गांव लौटने के क्रम में मैंने मिथलेश से बात करके, दिव्यांश की पूरी हरकत डिटेल मे बताई... तब उन्होंने बताया कि शादी के तीसरे दिन ही उस लड़के का परिवार, उनके साथ बहुत बड़ा झगड़ा करके गया। नौबत हाथापाई पर आ गई थी और मिथलेश ने उस लड़के के बाप और बड़े भाई को बेइज्जत करके भगाया था...


मैंने भी उन्हें कह दिया कि फिर तो कोई बात नहीं अब ये डर नहीं होगा कि आपके रिश्तेदार है, और हमारी बात किसी से शेयर ना करे.. संगीता से भी नहीं...


मेरा वो पुरा हफ्ता कैसा गुजरा वो मेरा दिल जी जानता था. उनके टॉर्चर का असर मेरे व्यवहार मे देखने को मिलता.. मै बात-बात पर कभी मां पर, तो कभी भाभी पर चिल्ला देती.. एक दिन तो गुस्से में मैंने साक्षी को एक थप्पड़ भी लगा दिया..


क्या बताऊं उसे मारने का अफ़सोस मुझे किस हद तक हो रहा था. उस दिन मेरे गले से खाना का एक निवाला तक नहीं उतरा... मैंने भी सोच लिया था कि अब बस बहुत हो गया.. अगले हफ्ते की तैयारी मै कर चुकी थी...


मैंने मां से कह दिया की चल मेरे साथ सहर, 2-3 दिन मै वहीं रुकने वाली हूं.. मां नहीं मानी तो जबरदस्ती उन्हे कसम देकर खींचकर लाई.. नकुल को रविवार के दिन ही पूरी बात बता चुकी थी, और वो मुझे बढ़िया उपाय भी बता चुका था..


कपिल और उसकी पूरी बॉडीगार्ड के टीम को हमने उठाया, राजवीर अंकल खुद अपनी कार में मुझे और नकुल को बिठाकर चल दिए.. हम पहुंचे पहले एक लड़के कुमार के घर.. कपिल जबरदस्ती उसका घर खुलवाया..


एक महिला ने आकर दरवाज़ा खोला और आने का कारन पूछने लगी... कपिल कहने लगा… "तेरे घर के पीछे के मोहल्ले में 4 धंधा करने वाली पकड़ाई है.. चल तू अपना रेट बता, 100 रुपया है या 200.."


वो महिला चींख चीखकर पुरा मोहल्ले को जमा कर ली, और कपिल की हरकत बताने लगी... कुछ पुरुष कपिल के ओर डंडा लेकर दौड़े, इसी बीच कुमार भी डंडा लेकर बाहर निकला था, लेकिन कपिल और सारे बॉडीगार्ड के हाथ में गन देखकर पीछे हटे.. कपिल ने उस कुमार के बच्चे को धर दबोचा.. और हमे उतारने के लिए इशारा किया...


राजवीर अंकल:- यहां मौजूद सभी लोगों से, मै अपने कर्मचारी कपिल के कहे शब्दों के लिए माफी चाहता हूं.. जो लोग मुझे नहीं जानते, उन्हे मै बता दूं कि मेरा नाम राजवीर सिंह है"..


नाम सुनते ही सभी लोग चिल्लाते हुए कहने लगे.. "राजवीर जी ये कौन सा तरीका है अपने ही सहर के लोगों को इस तरह से जलील करने का"..


राजवीर अंकल:- ये इस लड़के से पूछो (कुमार के ओर इशारा करते) जो एक हफ्ते से, मेरी बेटी से ऐसी ही बेहूदा बातें करता है. क्योंकि इसके गांव के किसी इलाके में, किसी लड़की ने गलत काम किया था.. अब बताओ मै आक्रोश मे आऊं.. अब क्यों बोलती बंद है तुम लोगों की.. अभी तो मुझसे सवाल कर रहे थे ना केवल एक बार अभद्र भाषा का प्रयोग करने पर...


दिव्यांश के दोस्त की अक्ल आ गई ठिकाने और ठीक उसी तरह हमने 6 लड़को के अक्ल ठिकाने लगा दिए, सिवाय उस दिव्यांश के। क्योंकि उसे स्पेशल ट्रीटमेंट जो देना था... अगले दिन जब मेरी क्लास थी तब सब लड़के पहुंचे, लेकिन आज कोई भी दिव्यांश के बात में हां मे हा नहीं मिलाया। बल्कि जैसे ही उसने मुझ पर टिप्पणी शुरू की, वो लड़के उसी की भाषा में कहने लगे… "यार इस लड़की मे कड़क माल नहीं, बल्कि मेरी बहन है ऐसी फीलिंग आ रही। उल्टा तेरी बड़ी बहन माला मुझे पुरा कड़क माल नजर आती है"…


जैसे ही दिव्यांश आगे बढ़ा उनका कॉलर पकड़ने... "मदरचोद तेरी बहन के बारे में कहा तो मिर्ची और दूसरे के घर की लड़कियां कड़क माल... जाकर इलाज करवा और सुधर जा"..


दिव्यांश का बाप बिहार पुलिस मे, पटना के किसी क्षेत्र का थाना प्रभारी, उसकी मां नगर निगम में अधिकारी.. पैसों कि कोई कमी नहीं और पैसे के साथ साथ दिव्यांश के गुरूर में भी कोई कमी नहीं थी...


बहरहाल ये पहला मौका था जब उसे, उसके है दोस्तों के हाथो बेजजती झेलनी पड़ी... ट्रीटमेंट नंबर 2.. उसके अगले दिन वो कुछ गुंडों के साथ आया और मेरे साथ-साथ अपने दोस्तो का भी रास्ता घेर लिया... जैसे ही गुंडों की नजर मुझ पर गई... "मेनका बहन यहां कैसे"..


मै भी दिव्यांश को देखती... क्यों रे दसरथ, अनवर तुम सब यहां कैसे.. किसकी फील्डिंग लगा रहे"… ये लियाकत अली के खास लोगों के चमचे के चमचे थे, जो मुझे अच्छे से जानते थे... मेरे पूछने पर उन्होंने दिव्यांश से पूछा और जब पता चला फील्डिंग मेरे लिए है, फिर तो...


फिर भी नहीं सुधरा, 2-3 दिन बाद पुलिस के साथ आया. साथ मे लेडी कांस्टेबल भी थी... आते ही मुझे अरेस्ट करने लगे... मैंने भी उनको लाइव वीडियो पर लिया, और पूछने लगी मामला क्या है? किस जुर्म मे अरेस्ट करने पहुंचे हो?


लेडी कॉन्स्टेबल:- ए तू मोबाइल पीछे डाल और चल थाने, वहीं सब बताएंगे...


मै:- एक मिनट मुझे देना...


मैंने कॉल अस्सिटेंट कमिसनर ऑफ़ पुलिस, कुमार आंनद के पर्सनल नंबर पर लगाया, और फोन स्पीकर पर... एसीपी फोन उठाते ही... "मनाकी लोग हमसे बहुत ज्यादा सोशल नहीं होना चाहते, लेकिन पुलिस वाले भी इंसान ही होते है.. जैसे बैंक वाले, रेलवे वाले और अन्य विभाग वालों को तुम लोग प्यार से अपनाते हो, हमे भी अपना लो.. पुलिस डिपार्टमेंट में कौन से काटें लगे है..


मै:- जीजाजी, तो आपने ही कौन सा मुझे याद कर लिया..


आंनद:- जीजाजी !!!!


मै:- जी बिल्कुल जी जा जी... मेरे पास इतने भाई है जिसकी गिनती नहीं, बस बचपन से केवल बहनों को मिस किया है, इसलिए मै भाई नहीं बनाती..


आंनद:- ठीक है कल सन्डे को फिर अपनी दीदी से मिलने आओ, और पड़ोस में कौन पुलिस वाला खड़ा है उसे कहो लाइन पर आने...


मै:- लेकिन आपको..


आंनद:- तुम जैसी समझदार लड़की को भी बताना होगा कि कैसे समझा, कौन है वहां...


फिर जो ही लाथार लगी उसको. थाना प्रभारी खुद मुझे अरेस्ट आया था और उसने फिर बताया की दिव्यांश के माता पिता के बारे में. रविवार के दिन मुझे सुबह ही एससीपी आंनद का फोन आया, कहने लगे कैसी है मेरी इकलौती साली... मै भी हंसती हुई पूछने लगी, क्या उधर भी मेरे जैसा हाल है...


आंनद:- जी हां बिल्कुल, और तो और जो रिश्ते में सालियां है उनसे इसलिए बात नहीं होती, क्योंकि मेरे ससुर को आईएएस दामाद चाहिए था और मैंने उसकी बेटी से जबरदस्ती शादी कर ली, इसलिए अपना ससुराल पक्ष थोड़ा कमजोर है...


मै:- अरे ऐसे कैसे कमजोर है.. आप मेरे जीजू है, अनूप मिश्रा और राजवीर सिंह जैसे दो रिश्ते के ससुर, आपका ससुराल पक्ष बहुत मजबूत है जीजाजी, बस साली और साले का गिफ्ट तैयार रखना, हम दोनों पहुंच रहे है...


मै नकुल को साथ लेकर निकली. हम जीस एड्रेस पर पहुंचे वहां तो आईएएस और आईपीएस दोनो का बोर्ड लगा था, इसका मतलब, यहां बहाल हुई नई डीएम, मुक्ता देसाई के पति है कुमार आनंद.. ओह माय गॉड..


मन में बहुत से खयालात चल रहे थे, लेकिन हम जैसे ही उनके घर पहुंचे, पहली बार एक आईएएस और आईपीएस की सोशल लाइफ देख रहे थे... घर में तो सब आम लोगों के जैसे ही होते है... 10 मिनट के बाद लगा ही नहीं की मै किसी अनजान के घर में हूं और क्या पोलाइट लेडी थी मुक्ता देसाई.. मै तो उनकी फैन हो गई...


सुबह 10 बजे के करीब एक सिपाही ने आकर कुमार आंनद को सूचना दी कि सिटी के थाना प्रभारी कुछ लोगों के साथ आए है... एसीपी साहब ने उन्हे मीटिंग हॉल में बैठने कहा, और अपनी पत्नी से कहने लगे चलो लोग पहुंच चुके है..


मै, उस दिव्यांश के माता पिता को दूसरी बार देख रही थी... कुमार आंनद ने सीधा पूछ लिया दिव्यांश के पापा से... "क्या चाहते हो, तुम मेरी साली को परेशान क्यों कर रहे"..


दिव्यांश के पापा:- सर आप किसी से कुछ भी रिश्ता बाना लीजिए, लेकिन इस लड़की ने एक पुलिसवाले के परिवार पर हमला किया है.. मैंने रिश्तेदारी के वजह से इस लड़की पर एफआईआर नहीं की वरना..


एसीपी:- वरना क्या सिन्हा जी.. देखिए आप सीनियर ऑफिसर है, आप ही आवेश मे रहेंगे तो मामला कैसे सुलझेगा...


सिन्हा:- इस लड़की को बोलो माफी मांग ले, मै अपनी दुश्मनी भुल जाऊंगा...


"हिहीहीही... हाहाहाहाहाहाहा"… मै और नकुल जोर-जोर से हसने लगे... हमे हंसते देख मुक्ता दीदी हैरानी से देखते... "ऐसा क्या हो गया जो हंस रही हो"…


नकुल:- मेरी ओर मत देखो दीदी, तुम ही बोलो...


मै:- ठीक है आलसी... आप सबको मेनका मिश्रा का नमस्कार.. जैसा कि सिन्हा अंकल ने कहा, वो मुझसे दुश्मनी किए बैठे है.. तो गौर से सुनिएगा... इस कुत्ते के बच्चे ने डांस करते वक्त मेरे कमर के नीचे हाथ डाला, मेरे कमर में चीकोटी काटी.. मेरे भाई नकुल ने बड़े प्यार से समझाया.. कहा दूर रहो..

खाने के टेबल पर मेरा हाथ पकड़ा और जब मैंने उसे जाने कहा, तो मेरे पाऊं मे अपना पाऊं डालकर, साड़ी ऊपर करने की कोशिश कर रहा था... थोड़ा गुस्सा आया और मैंने खाने के प्लेट को इसके सर पर दे मारा..

अब पहले ये दोनो दंपत्ति, भरे मंडप में आए थे झगड़ा करने.. फिर इसका बेटा कोचिंग से निकलते वक्त लगातार एक हफ्ते तक मेरा रेट लगाता रहा.. जब इसके दोस्तों ने टोका तो अपने खुद के दोस्त और मेरे लिए पहले गुंडा लाया और फिर पुलिस... मै हर बार कभी इसके दोस्तो से निपटी, तो कभी इस लड़के के पिताजी द्वारा भेजे गुंडे से.. सब अपने लेवल से शांतिपूर्वक मैनेज कर ली...

शुक्र करो इतनी बात मेरे खानदान मे से किसी को पता नहीं, वरना उनकी दुश्मनी झेलने की औकात नहीं है तुम्हारी सिन्हा सर.. बजाय अपने बीमार बेटे के उपचार करने के, तुम जो मुझसे दुश्मनी कर रहे हो... कहीं हमने दुश्मनी कर ली तो हमारे यहां पंचायत लगती है और वहां फैसला कोर्ट और पुलिस नहीं, बल्कि पंचायत करती है... सीधे-सीधे बताओ की क्या करना है.. फिर जब तुम लोगों को दुश्मनी ही निकालनी है तो मै मामला शांत करके क्या करूंगी... फिर हम भी दुश्मनी ही निभाएंगे...


मै अपनी बात पूरी ही कि थी कि जिला डीएम आवास पर मुखिया चाचा और वरुण भैया पहुंच गया.. एक सिपाही उनके आने की सूचना देने पहुंचा ही था, कि पीछे-पीछे वो दोनो भी पहुंच गए...


दोनो एक साथ... मेनका, नकुल, तुम दोनो यहां..


नकुल:- हम अपने दीदी और जीजाजी के यहां आए है.. आप दोनो सन्डे को तो काम छोड़ दो..


वरुण भैया:- नहीं कुछ पेपर वर्क थे, मैडम ने बोला था जल्दी मे कुछ भी नहीं होगा, इसलिए आज बुलाई थी..


मुखिया चाचा:- दीदी जीजाजी के यहां आए थे तो घर में रहते.. यहां ये थाना प्रभारी के साथ मीटिंग हॉल में क्या कर रहे हो... नहीं कुछ तो बात है... यहां ये लड़का भी है.. और इस लड़के के साथ दूसरा पक्ष भी..


मै:- मुखिया हो, रॉ एजेंट नहीं जो कहानी मे सुर ताल मिला रहे हो... ये लड़का तो मेरे साथ वर्मा कोचिंग मे पढ़ता है..


वरुण भैया:- क्या एसीपी सर, मेरी बहन के साथ क्या केस हुआ है… डीएम और एसीपी ऐसे साथ में मीटिंग तो नहीं ले सकते..


मुक्ता देसाई:- यदि मै कहूं की मेरी बहन (मेरे बारे में बोली) बड़ी हो रही और जिंदगी के छोटे मसले वो अपने गांव वालों को बताने से पहले, खुद समाधान करना चाहती हो तो..


वरुण भैया:- मैडम जानती है आप, मेनका की पहचान आंनद सर से पहले हुई है. और मेनका ने उसे जीजा बनाया, क्योंकि उसके पास भाईयो की कमी नहीं है, बस बहन चाहिए इसे नए रिश्तों में.. इसके बहुत सारे भाइयों मे से मै भी एक भाई हूं... इस भुल मे ना रहे की मुखिया और उसका बेटा, अपने गांव की किसी लड़की से बात कर रहा है...

पापा चलो बाहर.. सबको सूचना दे दो और राजवीर अंकल को बुला लो.. यहां मैडम और सर अपनी मीटिंग में है, हमे डीस्ट्रब नहीं करना चाहिए... हम प्यार से बाहर इंतजार करते है.. क्यों अवस्थी सर (सहर का थाना प्रभारी) ठीक है ना...


मुक्ता देसाई:- आप दोनो बैठ क्यों नहीं जाते और विस्तार से मुझे जारा बताइए कि इस लड़की के लिए आप अपने काम को छोड़कर, बाहर क्यों जा रहे है?


वरुण भैया:- अपने-अपने इमोशन है.. और फिर मेरे पूरे गांव में नकुल और मेनका के लिए, जिसके दिल में इमोशन नहीं, वो शायद मेरे गांव का नहीं हो सकता... जितना आपको अपने आईएएस होने पर गर्व हुआ होगा, उतना ही गर्व आप नकुल और मेनका के संपर्क पर करेंगे..

बाकी काम का क्या है, सरकारी खर्चे पर हुआ तो ठीक वरना चंदा कर लेंगे... लेकिन मेरी बहन किसी अधिकारी के मीटिंग हॉल में बैठकर सवालों के जवाब दे या अपना दुखड़ा सुनाया फिर तो थू है ऐसी जिंदगी पर... इसलिए हम बाहर जा रहे है, ताकि दूसरे पक्ष को हम अपने मुखिया दरबार में आराम से सुनेगे...


कुमार आंनद:- वरुण जी, आपकी वो गर्व वाली बात दिल को छू गई.. ये बात तो मैंने भी मेहसूस की है चाहो तो आप मुझसे 2000 के स्टाम्प पर लिखवा लो... क्यों सिन्हा जी, इन दोनों भाई बहन को देखकर उसके गांव के मुखिया को गर्व हो रहा है, एक आईपीएस को गर्व हो रहा है जो इसके ब्लड रिलेशन मे नहीं है... आपका तो ये बेटा है.. एक ऐसा मौका आया है कि आप उसपर गर्व महसूस कर सके...


कुमार आंनद की बात सुनकर दिव्यांश के माता पिता फिर रुके नहीं... उनके आखों में शर्मिंदगी साफ देखी जा सकती थी। जब वो चले गए तब मुक्ता दीदी शिकायती लहजे में मुखिया चाचा और वरुण भैया से कहने लगे... "आप का ये बोलने का लहजा इन बच्चो मे किस मानसिकता का विकास करेगा क्या आपने कभी सोचा है? हर मामले को आप लोग खींचकर मार पीट तक क्यों ले जाते है? क्या हर बात के लिए मार पिट जरूरी होती है?"


मुखिया चाचा:- वो क्या है ना मैडम कुछ लोगों के पास सब कुछ होते हुए भी कभी उन चीजों का गलत इस्तमाल नहीं करते.. ये भरोसा जीता है नकुल और मेनका ने.. हम तो दोनो को बचपन से देखते आ रहे है...

गांव के कई ऐसे मसले थे, जो ये सातवीं कक्षा से हल करते आए है। हम तो पंचायत भवन और सड़क की सोचते थे और ये दोनो मुझसे लड़ झगर कर स्कूल की बिल्डिंग बनवाते थे.. कितना गर्व हुआ था जब डीएम ऑफिस में मुझे इस काम के लिए सम्मानित किया गया था...

नकुल के कहने पर कई किसानों को जैविक खेती की ट्रेनिग की व्यवस्था हमने करवाई... छोटे-छोटे खेत का नक्शा बनवाकर, उन्हे एक बड़ा खेत में तब्दील करके उसमे पूरी खेती शुरू करवाई.. कॉलेज जाने के लिए छात्र-छात्राओं के लिए वाहन कि व्यवस्था.. सब देखने में छोटे-छोटे काम थे जो इनके जिद के आगे झुक कर मुझे करना परा था.. ना जाने उन कमो के लिए मुझे कितनी बार सम्मानित किया गया.….

ये पॉली हाउस का प्रोजेक्ट भी नकुल का तैयार किया हुआ है, जिसकी चर्चा मै अभी करने आया हूं। शायद इसका भी सम्मान आप मुझे देंगी.. मै तो बहुत ही करप्ट मुखिया था, इनके दिलाए सम्मान ने मुझे एहसास करवाया की साला जिंदगी में जब आपके लिए ताली बजती है ना, तो तो उसका मज़ा ही कुछ और होता है, फिर उसका मुकाबला कोई धन नहीं कर सकता.. पैसे का लोभ लालच ही समाप्त कर दिया मेरा.. इनकी वजह से मै तो कभी चुनाव प्रचार के लिए नहीं जाता … ऐसे ही जीत जाता हूं...

केवल इतनी ही बात नहीं है, पिछले साल नकुल के रिश्ते के चाचा ने इसके 20 लाख चोरी कर लिए. इसी बच्ची ने अपने भतीजे की मदद की. किसी के नजर में ये चोरी तबतक नहीं आया जबतक इन दोनों ने घर में बताया नहीं था.. चाहते तो हंगामा कर सकते थे, अपना पैसा वसूल कर लेते पुरा पंचायत इनके पक्ष में होता, लेकिन इन्होंने शांति से अपना काम किया.. आप इनके लिए कह रही की इनपर हमारी बात का क्या असर पड़ेगा.. इस उम्र में 20 लाख मैटर जो बच्चे शांति से निपटा सकते है, उनके लिए फिर क्या ही कहना...

अब आप ही बता दो, क्या मेरे बोलने से इनकी मानसिक स्थिति में कोई बदलाव होगा.. जिसने मुझे सम्मान दिलाया उन्हे मै अपने बच्चे ना मनु, तो फिर लानत है ऐसी जिंदगी पर.. आप बताओ फिर आक्रोश क्यों ना हो दिल में, जब ये दोनो परेशान होंगे.. और अब शायद आपको यकीन हुआ हो की क्यों मेरे बेटे ने कहा था कि मेरा गांव में मेनका और नकुल के लिए जिसके दिल में इमोशन नहीं, वो मेरे गांव का नहीं...


ये क्या था, जो मुखिया चाचा कह गए. मै और नकुल एक दूसरे का ही चेहरा देख रहे थे, क्योंकि ये तो सत्य थी कि हमने बहुत सी चीजें अपने मुखिया चाचा से करवाई थी, लेकिन केवल यह सोचकर कि यहां मुझे समस्या हो रही है और उस समस्या का समाधान मुखिया चाचा करेंगे... हमे इस बात का जारा भी ज्ञान नहीं था, जो हमारी निजी समस्या थी, वो बहुत से लोगों की समस्या रही होगी..


हम दोनों ने पहली बार ये मेहसूस किया था कि समाज में जहां हम है, वहां बाहर होने वाली आपकी निजी समस्या, कई लोगों की समस्या होती है और उसके समाधान से कई लोगो कि जिंदगियों में खुशियां भर जाती है... बाहर के हुए समस्या को आप अपना निजी स्वार्थ समझकर भी अगर उसका समाधान करते है, तो वो सामाजिक समस्या का समाधान होता है.. भले ही आपने समाज कल्याण के बारे में सोचा हो की ना हो.. अपने आप ही कई लोगो को फायदा हो जाता है.…
 

nain11ster

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majedar update ..prachi to sach me piyakkad type hai 🤣🤣..
aur us ladke ko jyada hawa me udne ki achchi saja di menka ne 🤩🤩..jyada hi chipak raha tha 😁..
Hihihihi... Pahle ladke ka naam Leon hi tha.. lekin kahani ke sath match nahi karta isliye divyans daal diya :laugh:
 

nain11ster

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nice update ..wo ladka maar khane ke baad apne maa baap ko jhagda karne ke liye leke aaya 🤣🤣🤣..waise mujhe laga uske maa baap ki bhi thodi bahut pitaai hogi par bach gaye ..
rutu aur nakul to apne me hi mast hai ab 😁..

Wo kahawat sune hai ki nahi ... Hamare kshetr ki bahu prachalit katha hai... Bhad me jaye duniya hum bajaye harmoniya.. wahi yahan Nakul hai :D
 
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