KEKIUS MAXIMUS
Supreme
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lovely update.अध्याय - 94थोड़ी ही देर में विभोर और अजीत बाहर आ गए तो मैं जीप में उन दोनों को बैठा कर खेतों की तरफ निकल गया। आसमान में काले बादलों ने अच्छा खासा अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। प्रतीत होता था कि आज वो जम के बरसेंगे।
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अब आगे....
अनुराधा रसोई में दोपहर का खाना बना के अपनी मां सरोज के आने की प्रतीक्षा कर रही थी। उसका छोटा भाई अनूप खाना खाने के बाद बरामदे में ही अपने मिट्टी के खिलौनों के साथ खेल रहा था जबकि अनुराधा बरामदे में रखी चारपाई पर सोचो में गुम बैठी थी।
सरोज अनुराधा को बता कर गई थी कि वो वैभव से मिलने उसके गांव जा रही है। अपनी मां की ये बात सुन कर अनुराधा की धड़कनें एकाएक ही थम गईं थी। उसे ये सोच कर घबराहट सी होने लगी थी कि उसकी मां वैभव से जाने क्या क्या कहेगी? हालाकि अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर अनुराधा ने अपनी मां से बस इतना ही कहा था कि वो वैभव को कुछ भी उल्टा सीधा न बोले। जवाब में सरोज ने उसे तीखी नज़रों से देखा था और फिर बिना कुछ कहे ही घर से बाहर निकल गई थी। उसके जाते ही अनुराधा की हालत ख़राब होने लगी थी।
अपनी मां के जाने के बाद वो बेमन से रसोई में जा कर दोपहर का खाना बनाने लगी थी। वो खाना ज़रूर बना रही थी लेकिन उसका पूरा ध्यान अपनी मां पर ही था और इस बात पर भी कि जाने अब क्या होगा? किसी तरह खाना बना तो उसने सबसे पहले अपने छोटे भाई को खिलाया और फिर बरामदे में रखी चारपाई पर बैठ कर वो अपनी मां के आने का इंतजार करने लगी थी।
जैसे जैसे वक्त गुज़र रहा था वैसे वैसे अनुराधा की हालत और भी ख़राब होती जा रही थी। उसने सैकड़ों बार मन ही मन ऊपर वाले को याद कर के उनसे सब कुछ अच्छा होने की प्रार्थना की थी। जब से उसका भेद उसकी मां के सामने खुला था तभी से वो इस बारे में चिंतित थी। हालाकि ये कहना भी ग़लत न होगा कि भुवन की वजह से वो अपनी मां को सब कुछ बता पाई थी और इसी के चलते उसके अंदर का बोझ और उसकी तड़प कुछ हद तक कम हो गई थी। उस वक्त तो उसे थोड़ा चैन भी मिल गया था जब उसने भुवन के द्वारा ये सुना था कि वैभव भी शायद उससे प्रेम करता है क्योंकि उसकी तकलीफ़ से वैभव को भी तकलीफ़ होती है। भुवन के अनुसार ऐसा तभी होता है जब कोई व्यक्ति किसी से प्रेम करता है। अनुराधा को ये जान कर अत्यंत खुशी हुई थी लेकिन अब जबकि सब कुछ जानने के बाद उसकी मां वैभव से मिलने गई थी तो उसके मन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे थे जिसके चलते उसकी हालत ख़राब होती जा रही थी।
आख़िर बड़ी मुश्किल से वक्त गुज़रा और बाहर के दरवाज़े को खोल कर उसकी मां अंदर दाख़िल होती हुई नज़र आई। सरोज को देखते ही उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं और वो एकदम से ब्याकुल और बेचैन सी नज़र आने लगी। उधर सरोज ने अंदर आने के बाद पलट कर दरवाज़ा अंदर से बंद किया और फिर नर्दे के पास जा कर अपने हाथ पैर धोने लगी।
अनुराधा ने देखा कि उसकी मां ने उसे देखने के बाद भी कुछ नहीं बोला तो उसकी धड़कनें फिर से थमती हुई प्रतीत हुईं। वो अपनी मां से फ़ौरन ही सब कुछ जान लेना चाहती थी लेकिन उससे पूछने की वो चाह कर भी हिम्मत न जुटा सकी। जब उसे कुछ न समझ आया तो वो चारपाई से जल्दी से उठी और रसोई में जा कर अपनी मां के लिए खाने की थाली सजाने लगी। मन में तरह तरह के ख़याल बुनते हुए उसने जल्दी से थाली तैयार की और फिर उसे ले कर बरामदे में आ गई।
उधर सरोज अपने हाथ पैर धोने के बाद बरामदे में आई और एक बोरी को दीवार से सटा कर रखने के बाद उसमें बैठ गई। वो जैसे ही बैठी तो अनुराधा ने खाने की थाली को चुपचाप उसके सामने रख दिया। उसके बाद जल्दी ही उसने एक लोटे में पानी भी ला कर मां के सामने रख दिया।
"अनूप को खाना खिलाया कि नहीं तूने?" रोटी का एक निवाला तोड़ते हुए सरोज ने अनुराधा से पूछा।
"ह...हां मां।" अनुराधा ने खुद को सम्हालते हुए झट से कहा____"उसे तो बहुत पहले ही खिला दिया था मैंने। बस तुम्हारे ही आने की प्रतीक्षा कर रही थी।"
"हम्म्म्म।" सरोज ने रोटी के निवाले को मुंह में डालने के बाद उसे चबाते हुए कहा____"और तूने खाया?"
"वो मैं तुम्हारे आने की प्रतीक्षा कर रही थी।" अनुराधा ने धड़कते दिल से कहा____"मैंने सोचा जब तुम आ जाओगी तो साथ में ही खाऊंगी।"
"अरे! तुझे खा लेना चाहिए था।" सरोज ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा____"मुझे वापस आने में समय तो लग ही जाना था। ख़ैर जा तू भी खा ले। मुझे अब कुछ नहीं चाहिए।"
अनुराधा पूछना तो बहुत कुछ चाहती थी लेकिन उसकी हिम्मत न पड़ी इस लिए बेमन से वो पलटी और रसोई की तरफ बढ़ गई। कुछ ही देर में वो अपने लिए थाली में खाना ले कर आ गई और अपनी मां के पास ही चुपचाप बैठ गई। उसने एक नज़र सरोज पर डाली तो उसे आराम से खाना खाते हुए पाया। उसे समझ न आया कि उसकी मां इतना आराम से कैसे खाना खा रही थी? उसके अनुसार तो उसे गुस्से में नज़र आना चाहिए था।
अनुराधा का बहुत जी चाह रहा था कि वो अपनी मां से पूछे लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। दूसरे उसे झिझक के साथ साथ शर्म भी महसूस हो रही थी कि उसके पूछने पर उसकी मां उसके बारे में जाने क्या सोचेगी। वो बस मन ही मन दुआ कर रही थी कि मां खुद ही सब कुछ बता दे।
"वैसे मिल आई हूं वैभव से।" अनुराधा के कानों में उसकी मां की आवाज़ पड़ी तो वो एकदम से चौंकी और उसने अपनी मां की तरफ देखा। मन ही मन उसने ऊपर वाले को धन्यवाद दिया कि उसने उसकी दुआ सुन ली। उधर सरोज ने बिना उसकी तरफ देखे ही सपाट भाव से कहा____"मुझे तो पूरा यकीन था कि उसने तुझे भी बाकी लड़कियों की तरह अपने जाल में फांस रखा रहा होगा लेकिन उसकी बातें सुनने के बाद एहसास हुआ कि मैं ग़लत थी।"
अनुराधा की धड़कनें एकदम से मंद मंद चलने लगीं थी। सरोज के चुप होते ही उसने पूछना चाहा कि आख़िर वैभव ने उससे क्या बातें की लेकिन मारे झिझक और शर्म के पूछ न सकी। बस हलक में सांसें अटकाए और आस भरी नज़रों से देखती रही अपनी मां को। किंतु जब काफी देर गुज़र जाने पर भी सरोज ने आगे कुछ न कहा तो जैसे अनुराधा के सब्र का बांध टूट गया और उसकी सारी झिझक तथा शर्म छू मंतर सी हो गई।
"अ...आख़िर ऐसा क्या कहा तुमसे छोटे कुंवर ने मां?" अनुराधा ने दबी आवाज़ में पूछा।
अनुराधा के यूं पूछने पर सरोज ने मुंह में लिए निवाले को चबाना बंद कर उसकी तरफ अजीब भाव से देखा तो अनुराधा एकदम से सिमट गई और उसकी नज़रें झुक गईं। ये देख सरोज मन ही मन मुस्कुरा उठी किंतु अगले ही पल उसके अंदर एक टीस सी उभरी, ये सोच कर कि वो कौन सी मनहूस घड़ी थी जब उसने वैभव के साथ नाजायज़ संबंध बना लिया था। काश! उसे पता होता कि आगे चल कर उसी वैभव से उसकी बेटी प्रेम करने लगेगी और वैभव उससे ब्याह करने का उसको वचन भी देगा।
सरोज को इस बात के चलते बहुत बुरा महसूस हो रहा था मगर वो भी जानती थी कि होनी तो हो चुकी है इस लिए अब उसके बारे में सोच कर दुखी होने से या बुरा महसूस होने से भला क्या होगा? उसने मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि अब से वो वैभव के बारे में कभी भूल से भी ग़लत ख़याल अपने ज़हन में नहीं आने देगी। आख़िर वो उसका होने वाला दामाद था और वो उसकी होने वाली सास जोकि मां समान ही होती है।
"बात ये थी कि मैं तेरे जीवन को बर्बाद होते नहीं देख सकती थी।" फिर सरोज ने अनुराधा से नज़र हटाने के बाद कहा____"इस लिए मैंने उससे साफ शब्दों में बातें की और ये निश्चित किया कि उसकी वजह से तेरा जीवन आबाद हो, ना कि बर्बाद।"
सरोज की बातें अनुराधा के कानों में ज़रूर पड़ीं लेकिन उसकी समझ में कुछ न आया। इस लिए उसने सिर उठा कर फिर से अपनी मां की तरफ देखा। इस बार उसे ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा।
"इतना तो उसने भी बताया कि वो भी तुझसे वैसे ही प्रेम करता है जैसे तू उससे करती है।" सरोज ने कहा____"लेकिन अपनी बेटी के सुखी जीवन की खातिर मेरे लिए इतना सुन लेना काफी नहीं था। सिर्फ प्रेम करने से तो तेरा जीवन नहीं संवर सकता था ना इस लिए मुझे उसके मुख से वो सुनना था जिसके चलते तेरा जीवन हमेशा के लिए सुखी भी हो जाए।"
अनुराधा को मानो अभी भी कुछ समझ नहीं आया। वो सोचने लगी कि आज उसकी मां ये कैसी अजीब अजीब बातें कर रही है?
"जब मैंने वैभव से इस संबंध में बातें की तो उसने आख़िर वो कह ही दिया जो मैं सुनना चाहती थी और जिसके चलते मैं चिंता से मुक्त हो सकती थी।" सरोज ने कहा____"उसने साफ शब्दों में मुझसे कहा है कि वो तुझसे ब्याह करेगा और इस बात का उसने मुझे वचन भी दिया है।"
सरोज की ये बात सुन कर अनुराधा के दिलो दिमाग़ में पलक झपकते ही मानो धमाका सा हुआ। आश्चर्य से उसकी आंखें फैल गईं। वो किसी बुत की तरह चकित अवस्था में अपनी मां को देखती रह गई। फिर अचानक ही जैसे उसे होश आया तो उसने महसूस किया कि उसकी धड़कनें धाड़ धाड़ कर के बजने लगीं हैं जिनकी धमक उसे अपने कानों में गूंजती महसूस हो रही हैं।
बिजली की तरह उसके मन में ये बात बैठ गई कि वैभव उसके साथ ब्याह करेगा। उसने मन ही मन चकित भाव से कहा_____'हाय राम! क्या सच में ऐसा हो सकता है? किंतु ऐसा तो मैंने सोचा ही नहीं था।'
अनुराधा अपना खाना पीना भूल कर अगले कुछ ही पलों में जाने कौन सी दुनिया में गोता लगाने लगी। उसके दिलो दिमाग़ में उथल पुथल सी मच गई थी जिसे रोकना अथवा सम्हालना जैसे उसके बस में ही नहीं रह गया था। अचानक ही उसकी आंखों के सामने रंग बिरंगे कुछ ऐसे चित्र घूमने लगे जिन्हें देख कर उसका चेहरा खुशी से चमकता नज़र आया मगर फिर एकाएक ही उसके उस चमकते चेहरे पर लाज की सुर्खी भी छाती नज़र आई। उसकी नज़रें झुकती चली गईं। बार बार गुलाबी होठों पर एक गहरी मुस्कान थिरकने लगी जिसे वो जी तोड़ कोशिश कर के छुपाने की कोशिश करने लगी। उसका मन किया कि वो फ़ौरन ही खाना पीना छोड़ कर भागते हुए अपने कमरे में पहुंच जाए और फिर अकेले में वो खुशी के मारे उछलना कूदना शुरू कर दे। अपनी हालत को काबू करने का प्रयास करते हुए एकाएक वो उठने ही लगी थी कि तभी....
"अरे! कहां जा रही है?" सरोज ने उसे देखते हुए मानों टोका_____"पहले ठीक से खाना तो खा ले। उसके बाद अपने कमरे में जा कर खुशियां मना लेना।"
मां की ये बात सुन कर अनुराधा शर्म से मानो पानी पानी हो गई। उसके ज़हन में बिजली की तरह ख़याल उभरा कि उसकी मां को उसकी हालत के बारे में इतना अच्छे से कैसे पता चल गया? उसमें नज़र उठा कर मां की तरफ देखने की हिम्मत न हुई। खुद को समेटे वो किसी तरह वापस बैठ गई और फिर सिर झुकाए ही चुपचाप खाना खाने लगी। उधर सरोज उसकी ये हालत देख कर मन ही मन मुस्कुरा उठी। वो सोचने लगी कि सच में उसकी बेटी अब जवान हो गई है।
खुशी के मारे अनुराधा से कुछ खाया ही नहीं जा रहा था लेकिन खाना खाना उसकी मजबूरी थी इस लिए मजबूरन उसे किसी तरह खाना ही पड़ा। बड़ी मुश्किल से उसका खाना ख़त्म हुआ। सरोज खा चुकी थी और अब वो बरामदे में रखी चारपाई पर आराम करने के लिए लेट गई थी। इधर अनुराधा झट से उठी और अपनी तथा मां की थाली को उठा कर उसे नर्दे के पास रख दिया। उसके बाद वो लगभग दौड़ते हुए अपने कमरे की तरफ भागती चली गई।
कमरे में आ कर उसने सबसे पहले दरवाज़ा अंदर से बंद किया और फिर चारपाई पर पीठ के बल लेट कर अपनी आंखें बंद कर ली। होठों पर उभर आई मुस्कान के साथ उसने पहली बार चैन की लंबी सांस ली। अगले ही पल उसकी बंद पलकों में वैभव का मनमोहक चेहरा उभर आया और वो उसके साथ जाने कैसे कैसे ख़्वाब बुनने लगी। उसे पता ही न चला कि कब उसकी दोनों आंखों की कोरों से खुशी के आंसू निकल कर उसकी कनपटी को छूते हुए चारपाई में बिछी चादर पर फ़ना हो गए।
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जैसा कि आसमान में छाए बादलों को देख कर ही प्रतीत हुआ था कि बारिश होगी तो बिल्कुल वैसा ही हुआ। शाम होने में थोड़ा वक्त था जब बारिश शुरू हुई। सारे मजदूर भाग कर मकान में आ गए। मैं, विभोर और अजीत जीप से वापस हवेली जाने का सोच रहे थे किंतु भुवन ने मुझे रोक लिया, ये कह कर कि तेज़ बारिश में जाना ठीक नहीं है। एक तो कच्चा रास्ता दूसरे बारिश के चलते कीचड़ जिसकी वजह से तेज़ बारिश में जीप चलाना उचित नहीं था। भुवन की बात मान कर मैं तखत पर बैठ गया था।
सारे मजदूरों को देखते हुए अचानक मेरे मन में एक विचार आया जिसके बारे में सोचने से मुझे काफी अलग सा महसूस हुआ और साथ ही एक खुशी का आभास भी हुआ। मैंने निश्चय कर लिया कि अपने मन में उठे इस विचार पर ज़रूर अमल करूंगा।
ख़ैर आधा घंटा तेज़ बारिश हुई। एक बार फिर से खेतों में पानी नज़र आने लगा था। बारिश रुकी नहीं थी क्योंकि हल्की हल्की फुहारें अभी भी आसमान से ज़मीन पर गिर रहीं थी। कच्चा रास्ता पहले से और भी ज़्यादा ख़राब नज़र आने लगा था लेकिन जाना तो था ही इस लिए विभोर और अजीत को ले कर मैं जीप में बैठा और फिर उसे स्टार्ट कर हवेली की तरफ निकल गया।
जब मैं हवेली पहुंचा तो सूरज पूरी तरह डूब चुका था और शाम का धुंधलका छा गया था। हाथ पांव धो कर मैं अपने कमरे में आ गया। कपड़े उतार कर मैंने नीचे गमछा लपेट लिया, जबकि ऊपर बनियान थी। बारिश होने की वजह से बिजली गुल हो गई थी मगर लालटेन का पीला प्रकाश कमरे में फैला हुआ था। मेरी लाडली बहन को मेरा बहुत ख़्याल रहता था। बिजली के न रहने पर अक्सर शाम को वो मेरे कमरे की लालटेन जला कर चली जाती थी।
मैं पलंग पर आराम करने के लिए लेटने ही वाला था कि तभी खुले दरवाज़े से किसी के अंदर आने की आहट हुई। मुझे लगा कुसुम होगी इस लिए अपने अंदाज़ में दरवाज़े की तरफ चेहरा कर के मैं अभी कुछ बोलने ही वाला था कि आने वाले व्यक्ति पर नज़र पड़ते ही मैं चुप रह गया।
एक अजनबी लड़की को अकेले मेरे कमरे में दाख़िल होता देख मैं एकदम से चौंक पड़ा। मेरी नज़रें उस पर ही जम गईं। उधर वो जैसे ही मेरे क़रीब आई तो लालटेन की रोशनी में मुझे उसकी शक्लो सूरत स्पष्ट नज़र आई और सच तो ये था कि मैं अपलक उसे देखता ही रह गया। इतना तो मैं समझ गया था कि ये वही लड़की है जिसके बारे में कुसुम ने मुझे बताया था किंतु वो इतनी आकर्षक होगी इसकी उम्मीद नहीं थी मुझे। हालाकि मेरी लाडली बहन के आगे वो कुछ भी नहीं थी किंतु अगर उसको अलग दृष्टि से देखा जाए तो वो बहुत कुछ थी।
कुसुम ने सही कहा था वो उसके ही उमर की थी। जिस्म एकदम नाज़ुक सा किंतु एकदम सांचे में ढला हुआ। घाघरा चोली पहने हुए थी वो जिसके चलते उसके पेट का हिस्सा साफ दिख रहा था। पेट में मौजूद उसकी नाभी को देख मेरे अंदर हलचल सी होने लगी थी। चोली में ढंकी उसकी छातियां एकदम तनी हुईं थी। सुराहीदार गले के ऊपर उसका ताज़े खिले गुलाब की मानिंद चेहरा एक अलग ही तरह से मुझे आकर्षित करने लगा था। उस पर उसकी बड़ी बड़ी किंतु गहरी आंखें जो काजल लगा होने की वजह से और भी क़ातिल लग रहीं थी।
"न...नमस्ते छोटे कुंवर।" उसकी खनकती आवाज़ से मैं एकदम से ही आसमान से ज़मीन पर आया और थोड़ा हड़बड़ा कर उसकी तरफ देखा। फिर मैंने जल्दी ही खुद को सम्हालते हुए उसके नमस्ते का जवाब दिया।
मैंने देखा उसके हाथ में पीतल का ट्रे था जिसमें चाय का एक कप और ग्लास में पानी रखा हुआ था। वो थोड़ा और मेरे क़रीब आई और फिर मुस्कुराते हुए झुक कर मेरी तरफ ट्रे को बढ़ाया तो अनायास ही मेरी गुस्ताख़ नज़रें उसकी चोली के बड़े गले में से अचानक ही उजागर हो गए दो पर्वत शिखरों पर जा पड़ीं। मुझे पूरा यकीन था कि अगर वो थोड़ा और झुक जाती तो उसकी छातियां और भी ज़्यादा मेरी नज़रों के सामने उजागर हो जातीं। उसकी छातियों के बीच की गहरी दरार देख मेरा हलक सूख गया और साथ ही मेरे समूचे जिस्म में सिहरन सी दौड़ गई।
"हाय राम!" तभी मैं उसकी खनकती आवाज़ से चौंक पड़ा और साथ ही हड़बड़ा भी गया। मैंने झटके से उसकी तरफ देखा तो वो एकदम से सीधा खड़ी हो गई। उसके चहरे पर शर्म की हल्की लाली छा गई थी। मैं समझ गया कि उसे पता चल गया है कि मैं उसकी छातियां देख रहा था।
"आप तो बड़े ख़राब और बदमाश हैं छोटे कुंवर।" फिर उसने मुझे एक अलग ही अदा से घूरते हुए कहा____"भला कोई किसी लड़की को ऐसे देखता है क्या?"
"व...वो...वो माफ़ करना मुझे।" मुझसे कुछ कहते ना बना।
हालाकि मैं ये सोच कर एकदम से चौंक भी पड़ा कि मैं किसी लड़की के सामने इस तरह से कैसे हड़बड़ा गया और तो और उससे माफ़ी भी मांग बैठा। उधर मेरी बात सुन कर अचानक ही वो खिलखिला कर हंसने लगी। ऐसा लगा जैसे पूरे कमरे में घंटियां बज उठीं हों। मैं भौचक्का सा तथा मूर्खों की तरह उसे हंसते हुए देखने लगा। मेरे जीवन में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि मैं किसी लड़की के सामने इस तरह से असहज हो गया होऊं।
"अरे! लगता है आप डर गए हमसे।" फिर उसने अपनी हंसी को रोक कर किंतु मुस्कुराते हुए कहा____"अगर ये सच है तो फिर हम यही कहेंगे कि कुसुम ने आपके बारे में हमें ग़लत बताया था। ख़ैर छोड़िए, लीजिए चाय पीजिए नहीं तो ये ठंडी हो जाएगी। वैसे आप ठंडी चीज़ के शौकीन तो नहीं होंगे न?"
मतलब हद ही हो गई। एक लड़की जो मेरे लिए अजनबी थी और मैं उसके लिए वो इतनी बेबाकी से मुझसे बातें कर रही थी? इतना ही नहीं मेरे जैसे सूरमा को अपनी बातों तथा हरकतों से एकदम अवाक सा कर चुकी थी। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि आख़िर ये क्या बला है?
"बहुत खूब।" मैं जो अब तक उसके बारे में एक राय बना कर सम्हल चुका था बोला____"बहुत ही दिलचस्प। वैसे, क्या कुसुम ने तुम्हें बताया नहीं कि ठाकुर वैभव सिंह के कमरे में उस औरत जात का आना वर्जित है जो हवेली के बाहर की पैदाइश हो?"
"जी नहीं।" उसने पूरी बेबाकी के साथ कहा____"हमें तो कुसुम ने ऐसा कुछ भी नहीं बताया। वैसे आपके कमरे में किसी औरत जात का आना क्यों वर्जित है भला?"
"मेरा ख़याल है कि तुम्हें अपने इस सवाल का जवाब मुझसे नहीं।" मैंने उसकी कजरारी आंखों में देखते हुए कहा____"बल्कि हवेली में मौजूद किसी और व्यक्ति से मांगना चाहिए। तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं कि इसके लिए तुम्हें ज़्यादा तकलीफ़ उठाने की ज़रूरत भी नहीं पड़ेगी। तुम जिससे पूछोगी वही तुम्हें विस्तार से सब कुछ बता देगा। ख़ैर, लाओ चाय दो, मुझे सच में ठंडी चीज़ों का शौक नहीं है।"
मेरी बात सुन कर उसने मेरी तरफ ट्रे को बढ़ाया और इसके लिए उसे फिर से झुकना पड़ा किंतु इस बार मैंने उसकी चोली में से झांकती छातियों की तरफ नहीं देखा। ये देख उसके होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई।
"एक बात पूछें आपसे?" उसने सीधा खड़े होते हुए कहा तो मैंने उसकी तरफ देखते हुए पलकें झपका कर इशारा कर दिया कि वो पूछ ले।
"आपको ठंडी चीज़ों का शौक नहीं है।" उसने पूरी निडरता से मेरी आंखों में देखते हुए कहा____"तो क्या गरम चीज़ों का भी शौक नहीं है?"
"क्या मतलब?" मैं उसकी बात सुन कर एकदम से चौंका।
"सोचिए।" उसने मुस्कुराते हुए बड़ी अदा से कहा____"अच्छा अब हम चलते हैं....छोटे कुंवर जी।"
कहने के साथ ही वो हवा के झोंके की तरह कमरे से बाहर निकल गई। मेरी तरफ से जैसे वो कुछ भी सुनना ज़रूरी नहीं समझी थी। उसकी बातों के साथ साथ उसके यूं चले जाने पर मेरे ज़हन में बस एक ही बात आई कि ज़रूर भेजा खिसका हुआ है इस लड़की का।
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