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अध्याय - 95
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अगले दिन नाश्ता करने के बाद मैं खेतों की तरफ जाने के लिए निकला ही था कि बाहर बैठक में एक बार मैंने यूं ही नज़र डाली लेकिन अगले ही पल मुझे अपनी जगह पर जाम सा हो जाना पड़ा। कारण, बैठक में सुनील और चेतन को देख लिया था मैंने। उन दोनों से क़रीब दो क़दम की दूरी पर शेरा खड़ा था। मैं फ़ौरन ही बैठक कक्ष में दाखिल हो गया। बैठक में पिता जी के अलावा वो व्यक्ति भी था जिसे पिता जी ने मेरे ननिहाल से बुलाया था और जिसे पिता जी ने अपना नया मुंशी नियुक्त कर दिया था।
(यहां पर मैं इस नए मुंशी और उसके परिवार के बारे में संक्षिप्त में बता देना ज़रूरी समझता हूं।)
✮ किशोरी लाल सिंह (उम्र - 40 के क़रीब)
☞ निर्मला सिंह (किशोरी लाल की पत्नी/उम्र - 35 के क़रीब)
किशोरी लाल और निर्मला के दो बच्चे हैं, जिनमें से सबसे बड़ी बेटी है और फिर एक बेटा।
☞ कजरी सिंह (किशोरी और निर्मला की बेटी/ उम्र - 18)
☞ मोहित सिंह (किशोरी और निर्मला का बेटा/ उम्र **)
किशोरी लाल मेरे ननिहाल माधवगढ़ का रहने वाला है। उसका एक बड़ा भाई है जिसका नाम समय लाल है। समय लाल मेरे नाना जी का मुंशी है। इसके पहले इनके पिता मुंशी का काम करते थे। कहने का मतलब ये कि इन लोगों के बारे में मेरे नाना जी लोगों को अच्छी तरह पता है और क्योंकि ये उनकी नज़र में भरोसेमंद और योग्य थे इस लिए नाना जी ने उसे मेरे पिता जी के पास भेजा था। मेरा ख़याल है कि नए मुंशी का इतना परिचय काफी है इस कहानी के लिए। अतः अब कथानक की तरफ रुख करते हैं।
सुनील और चेतन पिता जी के सामने सिर झुकाए खड़े थे। मैंने दोनों को ध्यान से देखा और फिर आगे बढ़ते हुए एक कुर्सी पर बैठ गया।
"इन दोनों को हमारे सामने लाने में तुम्हें इतना समय क्यों लग गया?" पिता जी ने शेरा की तरफ देखते हुए उससे पूछा।
"माफ़ कीजिए मालिक।" शेरा ने खेदपूर्ण भाव से कहा____"दरअसल ये दोनों यहां थे ही नहीं। पता करने पर पता चला कि ये दोनों अपने ननिहाल गए हुए हैं। तब मैं अपने साथ कुछ आदमियों को ले कर इनके ननिहाल समयपुर गया। वहां जब इन दोनों ने मुझे देखा तो ये भाग खड़े हुए। बड़ी मुश्किल से हाथ लगे तो इन्हें ले कर यहां आया।"
शेरा की बात सुन कर पिता जी ने सख़्त नज़रों से सुनील और चेतन की तरफ देखा तो वो दोनों एकदम से सिमट गए। चेहरे पर मारे घबराहट के ढेर सारा पसीना उभर आया था।
"ठीक है अब तुम जाओ।" पिता जी ने शेरा से कहा तो वो चला गया। शेरा के जाने के बाद पिता जी ने उन दोनों की तरफ देखते हुए सख़्त भाव से कहा____"हम तुम दोनों से सिर्फ एक ही सवाल करेंगे और उम्मीद करते हैं कि तुम हमारे सवाल का जवाब सच के रूप में ही दोगे।"
"हमें माफ़ कर दीजिए ताऊ जी।" चेतन घबरा कर एकदम से पिता जी के पैर पकड़ कर बोल पड़ा____"हमसे बहुत बड़ा अपराध हो गया है।"
"क्या तुम लोगों को लगता है कि तुम दोनों ने जो अपराध किया है।" पिता जी ने कहा____"उसके लिए तुम दोनों को माफ़ी मिलनी चाहिए? क्या तुम लोगों को लगता है कि तुम्हारे जिस मित्र ने तुम्हें हमेशा अपना सच्चा मित्र मान कर अपने साथ किसी साए की तरह रखा उसके साथ इस तरह का विश्वास घात करने के बाद तुम्हें माफ़ कर देना चाहिए?"
"हम जानते हैं ताऊ जी कि हमारा अपराध माफ़ी के लायक नहीं है।" सुनील भी पिता जी के पैरों के पास घुटनों के बल बैठ कर लगभग रोते हुए बोला____"लेकिन हम दोनों मजबूर थे। अगर हम ऐसा नहीं करते तो हमारे परिवार को ख़त्म कर दिया जाता।"
"पूरी बात बताओ।" पिता जी ने उसी सख़्ती के साथ कहा____"हम जानना चाहते हैं कि आख़िर किसने तुम्हें इस क़दर मजबूर कर दिया था कि तुम उसके कहने पर अपने मित्र के साथ विश्वास घात करने के साथ साथ उसकी जान के भी दुश्मन बन गए?"
"ये तब की बात है जब आपने वैभव को इस गांव से निष्कासित कर दिया था।" पिता जी के पैरों के पास से उठ कर सुनील ने दो क़दम पीछे हट कर कहा_____"उस दिन हमें बड़ा दुख लगा था जब हमारा दोस्त वैभव हमसे दूर चला गया। आख़िर उसकी वजह से ही तो हम दोनों का जीवन अच्छे से गुज़र रहा था और हमें किसी चीज़ का अभाव नहीं रहता था। उस दिन पंचायत में हमने भी आपका फ़ैसला सुना था जिसमें आपने कहा था कि गांव का कोई भी व्यक्ति वैभव से किसी भी तरह का ताल्लुक नहीं रखेगा और ना ही कोई उसकी मदद करेगा। अगर किसी ने ऐसा किया तो उसके साथ भी वही सुलूक किया जाएगा। आपकी इस बात से हम थोड़ा सहम तो गए थे लेकिन अपने दोस्त को इस तरह अकेले मुसीबत में पड़ गया देख भी नहीं सकते थे इस लिए हम दोनों ने फ़ैसला किया कि हम दोनों सबकी नज़र बचा कर अपने दोस्त वैभव से ज़रूर मिला करेंगे और हमसे जिस तरह से भी हो सकेगा हम वैभव की मदद करेंगे।"
"यही सोच कर एक दिन हम दोनों अपने अपने घर से निकल कर अपने ठिकाने पर मिले।" सुनील सांस लेने के लिए रुका तो जैसे चेतन ने कमान सम्हालते हुए कहा____"शाम पूरी तरह से हो गई थी और हर तरफ अंधेरा फैल गया था। आस पास का मुआयना करने के बाद हम दोनों जैसे ही अपने ठिकाने से निकले तो एकदम से अंधेरे में एक चमकता हुआ साया हमारे सामने आ कर खड़ा हो गया। इतना ही नहीं उसके साथ दो काले साए और भी आ कर हमारे अगल बगल खड़े हो गए। दोनों के हाथ में लट्ठ थे। अपने इतने क़रीब किसी जिन्न की तरह अचानक से उन लोगों को प्रगट हो गया देख डर के मारे हमारी चीख निकल गई थी। हमें समझ नहीं आया था कि आख़िर वो लोग कौन थे जो खुद को इस तरह से छुपाए हुए थे। पहले जो चमकीला साया आया था उसके पूरे शरीर पर सफेद लिबास था और जो दो लोग उसके बाद उसी समय आ कर हम दोनों के अगल बगल खड़े हो गए थे उनके शरीर पर काले रंग का लिबास था। यहां तक कि उन सबका चेहरा भी सफेद और काले रंग के नक़ाब में छुपा हुआ था। हम दोनों की तो उन्हें देख कर हालत ही ख़राब हो गई थी।"
"वो तीनों हमें इस तरह से घेर कर खड़े हो गए थे कि हम कहीं भाग ही नहीं सकते थे।" चेतन सांस लेने के लिए रुका तो सुनील ने आगे बताना शुरू किया____"पहले तो हमें लगा कि वो तीनों आपके ही कोई आदमी होंगे जो हम पर नज़र रखे हुए थे किंतु जल्दी ही हमारी ये ग़लतफहमी दूर हो गई। उन तीनों में से सफ़ेद लिबास पहने साए ने अपनी अजीब सी आवाज़ में हमसे कहा कि अब से हम दोनों को वही करना होगा जो वो कहेगा। अगर हमने उसके कहे अनुसार उसका कोई नहीं किया तो अंजाम के रूप में हमें अपने अपने परिवार के लोगों से हाथ धोना पड़ जाएगा।"
"यानि तुम दोनों उस सफ़ेदपोश के धमकाने पर अपने दोस्त के साथ विश्वास घात करने पर मजबूर हो गए?" सहसा पिता जी ने दोनों को बारी बारी से देखते हुए कहा____"ख़ैर, हम ये जानना चाहते हैं कि वो सफ़ेदपोश व्यक्ति तुम दोनों से क्या करवाता था या यूं कहें कि तुम दोनों उसके कहने कर क्या करते थे?"
"पहले तो उसने वैभव के बारे में हमसे सारी जानकारी ली।" सुनील ने कहा____"जैसे कि वैभव क्या क्या करता है और उसके किस किस से संबंध हैं? ये भी कि वैभव की पहुंच कहां तक है? हमसे ये सब जानने के बाद उसने हमें सिर्फ एक ही काम करने को कहा और वो काम था नज़र रखना। वैभव पर नज़र रखने के साथ साथ हमें ये भी देखते रहना था कि वैभव कहां कहां जाता है और खुद उसके पीछे कौंन कौंन है?"
"इस बात का क्या मतलब हुआ?" पिता जी के साथ साथ मैं भी चौंका था, उधर पिता जी ने पूछा____"वैभव के पीछे कौन कौन है इस बात को देखते रहने के लिए क्यों कहा था उसने तुम लोगों को?"
"हमें इस बारे में कुछ नहीं पता।" चेतन ने सिर झुका कर दबी आवाज़ में कहा____"हम खुद भी इस बारे में सोचते थे मगर कुछ समझ नहीं आया हमें। कई बार हमने आपको या वैभव को सब कुछ बताने का सोचा और एक दो बार आप दोनों के पास आने की कोशिश भी की मगर नाकाम रहे। पता नहीं कैसे उसे पता चल जाता था और उसके दोनों काले नक़ाबपोश आदमी हमारे सामने जिन्न की तरह आ कर खड़े हो जाते थे। आख़िरी बार उसने हमें धमकी दी थी कि अब अगर हमने फिर से आपको या वैभव को इस बारे में कुछ बताने का सोचा तो हमारे लिए अच्छा नहीं होगा।"
"सफ़ेदपोश से तुम लोगों की मुलाक़ात कैसे होती थी?" पिता जी ने पूछा____"और अभी आख़िरी बार कब मिले थे उससे?"
"हम दोनों अपनी मर्ज़ी से नहीं मिल सकते थे उससे।" चेतन ने कहा____"क्योंकि एक तो हमें उसके बारे में कुछ पता ही नहीं था और दूसरे उसने खुद ही हमें बोला हुआ था कि हम लोग भूल कर भी उससे मिलने की या उसके पीछे आने की कोशिश न करें। क्योंकि ऐसी सूरत में हमें बहुत बुरा अंजाम भुगतना पड़ सकता है। इस लिए हम अपनी मर्ज़ी से उससे मिल ही नहीं सकते थे। किंतु जब उसको हमसे मिलना होता था तो उसके दोनों काले नकाबपोश आदमी रात के अंधेरे में हमारे सामने प्रगट हो जाते थे और हमें उस सफ़ेदपोश व्यक्ति के पास ले जाते थे। सफ़ेदपोश के पूछने पर हम उसको सारी बातें बताते और फिर उसके अगले आदेश पर वापस चले जाते थे।"
"हम्म्म्म।" पिता जी ने लंबी हुंकार सी भरी, फिर बोले____"तो जैसा कि उस सफ़ेदपोश व्यक्ति के अनुसार तुम दोनों वैभव पर नज़र रखते थे और ये भी कि इसके पीछे कौन कौन है ये भी पता करते थे तो अब हमें बताओ कि तुम लोगों ने वैभव के पीछे किन किन लोगों को देखा था?"
"कई लोगों को देखा था हमने।" सुनील ने बताया____"लेकिन रात के अंधेरे में हम ये जान ही नहीं पाए थे कि वो लोग कौन थे जो वैभव के पीछे थे? किंतु हां, हरि शंकर के बेटे रूपचंद्र को वैभव पर नज़र रखते हुए हमने बहुतों बार देखा था।"
"कमाल है।" पिता जी ने एक नज़र मेरी तरफ देखने के बाद कहा____"तुम लोगों ने रूपचंद्र को तो कई बार देखा लेकिन बाकी लोगों को देखा तो ज़रूर मगर उन्हें पहचाना नहीं। ये कैसे हो सकता है भला? जब तुम दोनों का काम ही था ऐसे लोगों पर नज़र रखते हुए उनका पता लगाना तो फिर कैसे तुम लोगों को उनके बारे में पता नहीं चला?"
"ऐसा इस लिए क्योंकि वो लोग हमेशा रात के अंधेरे में ही कभी कभी वैभव के पीछे हमें नज़र आते थे।" चेतन ने कहा____"जबकि रूपचंद्र दिन में भी वैभव पर नज़र रखता था, इस वजह से हमें उसके बारे में अच्छे से पता चल गया था। दिन के उजाले में वैभव के पीछे हमने रूपचंद्र के अलावा कभी किसी को नहीं देखा।"
चेतन की ये बात सुन कर पिता जी फ़ौरन कुछ न बोले। उनके चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए थे। मैं खुद भी सोच में पड़ गया था किंतु सहसा मुझे एहसास हुआ कि वो दोनों इस बारे में झूठ नहीं बोल रहे थे। यकीनन रात के अंधेरे में ऐसे व्यक्तियों के बारे में जान पाना आसान नहीं रहा होगा दोनों के लिए।
"पिछली बार कब मिले थे तुम दोनों उस सफ़ेदपोश से?" सहसा मैंने दोनों की तरफ देखते हुए पूछा।
"बहुत दिन हो गए।" सुनील ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"तब से अभी तक उससे हमारी मुलाक़ात नहीं हुई लेकिन....।"
"लेकिन??" मैंने घूरा उसे।
"पिछली बार अजीब बात हुई थी।" सुनील ने कहा____"हमेशा तो उसके काले नकाबपोश आदमी हमें लेने आते थे और वही हमें उस सफ़ेदपोश से मिलवाते थे लेकिन पिछली बार ऐसा नहीं हुआ।"
"क्यों?" पिता जी ने पूछा।
"पहले हमें भी पता नहीं चला था।" चेतन ने गहरी सांस ली____"फिर हमें कहीं से पता चला कि उसके दोनों नकाबपोश आदमी मर चुके हैं। तभी तो पिछली बार सफ़ेदपोश व्यक्ति खुद ही चल कर हमारे सामने आया था।"
"तुम दोनों के अलावा और किस किस को उस सफ़ेदपोश ने अपना मोहरा बना रखा है?" मैंने पूछा।
"एक दो बार मैंने पास वाले गांव के एक आदमी को देखा था।" सुनील ने बताया____"उसका नाम जगन था। उसके अलावा और किसी के बारे में हमें नहीं पता। हो सकता है कि हमारे अलावा भी उसके कई और मोहरे हों जिनसे वो अलग अलग समय पर मिलता हो।"
"पास के गांव में छुपे क्यों बैठे थे तुम दोनों?" मैंने पूछा____"क्या ऐसा करने के लिए तुम्हारे आका ने कहा था तुम लोगों से?"
"नहीं ऐसी कोई बता नहीं है।" चेतन ने झिझकते हुए कहा____"असल में काफी समय से हमारी उस सफ़ेदपोश व्यक्ति से मुलाक़ात नहीं हुई थी। हमें समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर इसकी क्या वजह हो सकती है? हालाकि इससे कहीं न कहीं हम ये सोच कर खुश भी थे कि उसके कहने पर हमें फिलहाल कहीं भटकना नहीं पड़ रहा है लेकिन फिर ये सोच कर डर भी जाते थे कि कहीं वो हमें आजमा न रहा हो। यानि अगर हम उसकी मर्ज़ी के खिलाफ़ कुछ करेंगे तो हमें लेने के देने ना पड़ जाएं। इधर जब काफी दिनों से सफ़ेदपोश हमसे मिलने नहीं आया तो हम और भी ज़्यादा असमंजस में पड़ गए। हमें ये भी डर सताता रहता था कि किसी दिन आप हमें पकड़ न लें। इतना तो हम समझ ही चुके थे कि अब तक आप लोगों को हम पर शक हो ही गया होगा, ख़ास कर वैभव को। इसी डर से हम इस गांव में ज़्यादा रहते ही नहीं थे। अपने घर वालों को भी समझा दिया था कि वो इस बारे में न तो हमारी फ़िक्र करें और ना ही किसी को बताएं। बस यही बात थी कि हम दोनों दूसरे गांव में छुप के रहते थे।"
"हमें माफ़ कर दीजिए ताऊ जी।" चेतन की बात पूरी होते ही सुनील अपने हाथ जोड़ कर बोल पड़ा____"हमने जो भी किया है वो सब मजबूरी में किया है।" कहने के साथ वो मेरी तरफ पलटा, फिर बोला____"तुम भी हमें माफ़ कर दो वैभव। तुम तो हम दोनों को बचपन से जानते हो कि हम कैसे हैं। ये ऊपर वाला ही जानता है कि तुमसे गद्दारी करने की वजह से हम कितना दुखी थे और कितना शर्मिंदा महसूस करते थे। मन करता था कि अपने आप को मिटा डालें मगर फिर ये सोच कर ऐसा क़दम नहीं उठाया कि ऐसा करने से हमारे घर वालों पर क्या गुज़रेगी?"
"ठीक है मैंने माफ़ किया तुम दोनों को।" मैंने एक नज़र पिता जी पर डालने के बाद कहा____"और उम्मीद करता हूं कि अब से वफ़ादारी दिखाओगे।"
"अभी इन लोगों से वफ़ादारी की उम्मीद करना उचित नहीं है।" पिता जी ने कहा____"क्योंकि इन दोनों को अभी भी उस सफ़ेदपोश से ख़तरा है। वो बहुत ही शातिर और ख़तरनाक व्यक्ति है। संभव है कि उसे ये पता चल गया हो कि ये दोनों हमारे पास पहुंच चुके हैं और हमारे पूछने पर इन लोगों ने हमें सब कुछ बता दिया हो। ऐसे में इन दोनों पर अब उसका ख़तरा बढ़ गया है। हमारा ख़याल ये है कि इन दोनों को फिलहाल वैसा ही करते रहना चाहिए जैसा अब तक ये करते आए थे। सफ़ेदपोश से अगर दुबारा इन लोगों की मुलाक़ात होती है तो ये किसी तरीके से हमें इशारा कर देंगे। इनका इशारा पाने के लिए हमारे कुछ लोग गुप्त रूप से इन दोनों के आस पास ही मौजूद रहेंगे।"
पिता जी की बात से मैं भी सहमत था इस लिए यही फ़ैसला हुआ कि वो दोनों फिलहाल पहले जैसा बर्ताव करते रहें। उन दोनों के जाने के बाद पिता जी कुछ देर तक जाने क्या सोचते रहे।
"क्या लगता है तुम्हें?" पिता जी ने सहसा मुझसे पूछा____"तुम्हारे वो दोनों दोस्त वाकई में सच बोल रहे थे या उन्होंने हमसे झूठ बोला था?"
"मुझे नहीं लगता पिता जी कि वो दोनों झूठ बोल रहे थे।" मैंने ठोस लहजे में कहा____"वैसे भी झूठ बोलने की कोई वजह नहीं थी उनके पास। मैं दोनों को बहुत अच्छे से जानता हूं। यकीनन वो दोनों सफ़ेदपोश के द्वारा इस क़दर मजबूर किए गए थे कि दोनों को ऐसा करना पड़ा।"
"ऐसा तुम इस लिए कह रहे हो क्योंकि तुम अभी भी उन दोनों को दोस्त मानते हो और उन्हें दोस्त के नज़रिए से ही देख रहे हो।" पिता जी ने मानो तर्क़ देते हुए कहा____"जबकि तुम्हें सबसे ज़्यादा इस बात पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए कि ये वही दोस्त हैं जो सफ़ेदपोश के द्वारा मजबूर कर दिए गए थे और फिर उन्होंने तुम्हारे साथ विश्वास घात किया। मान लेते हैं कि दोनों के दिल साफ हैं और वो तुमसे गद्दारी करने का नहीं सोच सकते लेकिन ये भी मत भूलो कि इंसान मजबूरी में कुछ भी कर गुज़रता है। हो सकता है कि उनका हमारे सामने वो सब कहना भी उनकी मजबूरी का ही हिस्सा रहा हो। आख़िर मजबूरी में वो तुमसे कहीं ज़्यादा अपने परिवार के बारे में ही सोचेंगे।"
"यानि आपको उन दोनों पर शक है?" मैंने कहा____"और आपके अनुसार उन्होंने जो कुछ भी हमसे कहा है वो सब सफ़ेदपोश के सिखाए अनुसार ही कहा है।"
"क्या ऐसा नहीं हो सकता?" पिता जी ने उल्टा सवाल कर दिया मुझसे।
"होने को तो कुछ भी हो सकता है पिता जी।" मैंने कहा____"लेकिन मेरा दिल कहता है कि वो दोनों बेकसूर है"
"हमने ये कब कहा कि वो बेकसूर नहीं हैं?" पिता जी ने अजीब भाव से कहा____"हम तो सिर्फ ये कह रहे हैं कि संभव है कि उन्होंने अभी जो कुछ भी हमसे कहा है या बताया है वो सब उन्हें उस सफ़ेदपोश ने ही सिखाया रहा हो। शायद वो समझता था कि किसी न किसी दिन इन दोनों पर हम शक करेंगे ही और फिर इन्हें पकड़ने का भी सोचेंगे। सफ़ेदपोश ने इसी बात को समझते हुए इन्हें पहले ही सिखा पढ़ा दिया रहा होगा कि हमारे द्वारा पकड़े जाने पर इन्हें हमसे क्या कहना है।"
"बेशक ऐसा हो सकता है।" मैंने कुछ पल सोचने के बाद कहा____"किंतु सवाल है कि इससे सफ़ेदपोश का अपना क्या फ़ायदा होता? कहने का मतलब ये कि अगर दोनों ने वही सब कुछ हमें बताया है जो आपके अनुसार उन्हें सफ़ेदपोश ने सिखाया पढ़ाया रहा होगा तो इन सब बातों के द्वारा सफ़ेदपोश का क्या लाभ हो सकता है और क्या नुकसान हो सकता है? मुझे तो ऐसा लगता है पिता जी कि आप बेवजह ही इतना दूर का सोच रहे हैं। दोनों ने जो कुछ भी हमें बताया है वो सब स्वाभाविक बातें हैं जो उनकी परिस्थिति के अनुसार वाजिब ही लगती हैं।"
"मानते हैं।" पिता जी ने सिर हिलाया____"किंतु हमें सिर्फ एक पहलू के बारे में नहीं सोचना चाहिए बल्कि मौजूदा हालात के अनुसार दोनों पहलुओं पर सोचना चाहिए। हमारे लिए यही हितकर भी रहेगा।"
मैं पिता जी की इस बात से सहमत था इस लिए दुबारा कोई तर्क वितर्क नहीं किया। उधर पिता जी ने आगे कहा____"शेरा को बोलो कि वो अपने कुछ आदमियों को उन दोनों पर नज़र रखने को कहे।"
"क्या ऐसा करना ज़रूरी है?" मैंने बैठक से ही एक दरबान को आवाज़ देने के बाद पिता जी से कहा।
इससे पहले कि पिता जी मेरी बात का कोई जवाब देते एक दरबान फ़ौरन ही हाज़िर हो गया जिसको मैंने शेरा को बुलाने को कहा तो वो चला गया।
"बिल्कुल ज़रूरी है।" दरबान के जान के बाद पिता जी ने मेरी बात का जवाब देते हुए कहा____"ये मत भूलो कि सफ़ेदपोश के मोहरों में से फिलहाल हम तुम्हारे दोस्तों के बारे में ही जानते हैं। जगन तो मर चुका है इस लिए सुनील और चेतन के द्वारा ही हम सफ़ेदपोश तक पहुंच सकते हैं।"
"वो कैसे?" मेरे माथे पर सोचने वाले भाव उभर आए।
"काफी समय से सफ़ेदपोश ने कोई हरकत नहीं की है और ना ही उसके बारे में हमें कहीं से कोई ख़बर मिली है।" पिता जी ने कहा____"संभव है कि वो किसी बड़े काम को अंजाम देने की फ़िराक में हो। अब क्योंकि हमारे पास उसके पास पहुंचने का कोई रास्ता अथवा जरिया नहीं है तो सुनील और चेतन ही ऐसे हैं जिनके द्वारा हम सफ़ेदपोश तक पहुंच सकते हैं, बशर्ते कि सफ़ेदपोश इनसे मिलने की कोशिश करे। हमने इसी लिए दोनों पर नज़र रखने के लिए कहा है कि अगर सफ़ेदपोश उन दोनों से मिलने की कोशिश करे तो दोनों पर नज़र रख रहे हमारे आदमियों को भी सफ़ेदपोश दिख जाए और फिर वो फ़ौरन ही हमें इस बात की सूचना दे दें।"
मैं अभी कुछ बोलने ही वाला था कि शेरा बैठक में दाखिल हुआ। पिता जी ने उसे समझा दिया कि उसे क्या करना है। सारी बात समझने के बाद शेरा चला गया।
"ये सब तो ठीक है लेकिन रघुवीर की हत्या का जो मामला सामने आया है उसके बारे में आपका क्या ख़याल है?" मैंने उत्सुकतावश ही पूछा पिता जी से____"क्या लगता है आपको? रघुवीर की हत्या किसने की होगी? क्या चंद्रकांत ने खुद ही अपने बेटे की हत्या कर के हमें फंसाने की साज़िश की हो सकती है?"
"नहीं, हर्गिज़ नहीं।" पिता जी ने पूरी मजबूती से इंकार में सिर हिला कर कहा____"चंद्रकांत बदले की भावना में इतना भी अंधा नहीं हो सकता कि वो अपने ही हाथों अपने इकलौते बेटे की हत्या कर के अपने वंश का नाश कर बैठे। उसके बेटे की हत्या यकीनन किसी और ने ही की है।"
"किसने की होगी?" मैंने सवाल किया____"क्या उसकी हत्या हमारे मामले की वजह से हुई या फिर किसी और ने ही चंद्रकांत से उसके बेटे की हत्या कर के अपनी दुश्मनी निकाल ली है?"
"जहां तक हम दोनों बाप बेटे को जानते और समझते हैं उससे हम यही कहेंगे कि दोनों की किसी से ऐसी दुश्मनी नहीं थी जिसके चलते कोई उनमें से किसी की हत्या कर दे।" पिता जी ने गंभीरता से कहा____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि इंसान किसी के बारे में पूर्ण रूप से सब कुछ नहीं जान रहा होता है। कहने का मतलब ये कि संभव है कि उसका ऐसा कोई दुश्मन बन ही गया रहा हो जिसके बारे में हमें फिलहाल पता नहीं था।"
"चंद्रकांत ने तो रूपचंद्र पर भी इल्ज़ाम लगाया था।" मैंने कहा____"उसकी बहू ने अपने और रूपचंद्र के विषय में जो बातें बताई थी तो क्या ऐसा हो सकता है कि रूपचंद्र ने गुस्से में आ कर रघुवीर की हत्या कर दी हो?"
"ये तो अपने ही हाथों अपने पैर में कुल्हाड़ी मार लेने वाली बात होती।" पिता जी ने कहा____"हमें नहीं लगता कि रूपचंद्र ने इस तरह की बेवकूफी की होगी। अगर उसे रजनी की बातों पर इतना ही गुस्सा आ गया था तो वो उसी समय रजनी पर ही अपना गुस्सा मिटा देता। अपने गुस्से को शांत करने के लिए वो रात होने का इंतज़ार नहीं करता और ना ही फिर वो रघुवीर की हत्या करता। इंसान जिस पर गुस्सा होता है ज़्यादातर वो उसी पर अपना गुस्सा निकालता है।"
"अगर ऐसा है।" मैंने कहा____"तो फिर यही ज़ाहिर होता है कि रघुवीर की हत्या करने वाला कोई और ही है। अब सवाल ये है कि रघुवीर ने आख़िर किसी के साथ ऐसा क्या बुरा किया था जिसके चलते उसे अपनी जान से हाथ धो लेना पड़ा?"
"महेंद्र सिंह इसकी तहक़ीकात कर रहे हैं।" पिता जी ने कहा____"हमें पूरा यकीन है कि जल्द से जल्द रघुवीर के हत्यारे का पता चल जाएगा। एक बात और, तुम्हें इस तरह के मामले से बिल्कुल ही दूर रहना है। हम चाहते हैं कि तुम ऐसे काम करो जिसके चलते लोगों के अंदर से तुम्हारी ख़राब छवि मिट जाए और लोग तुम्हें एक अच्छा इंसान मान कर तुम्हें सम्मान की दृष्टि से देखने लगें।"
"मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं पिता जी।" मेरे मन में अचानक ही एक बात आई तो मैंने कहा____"और इसके लिए मैंने एक अहम कार्य करने का भी सोचा है। अगर आप कहें तो अपने उस कार्य के बारे में आपको बताऊं?"
"हां क्यों नहीं।" पिता जी ने कहा____"हम भी जानना चाहते हैं कि तुम अच्छा बनने के लिए ऐसा कौन सा कार्य करना चाहते हो?"
"मैं चाहता हूं कि एक दिन गांव के सभी लोगों को हवेली के विशाल प्रांगण में बुलाया जाए।" मैंने कहा____"और फिर उन सभी लोगों को ये बताया जाए कि गांव के जिन लोगों ने हमसे कर्ज़ ले रखा है उन सबका कर्ज़ हम पूरी तरह से माफ़ करते हैं। मेरा ख़याल है कि कर्ज़ माफ़ी की बात सुन कर गांव वाले बेहद खुश हो जाएंगे और पिछले कुछ समय से जिस वजह से लोगों के अंदर हमारे प्रति ग़लत विचार पैदा हुए होंगे वो जड़ से समाप्त हो जाएंगे।"
"हम्म्म्म! काफ़ी अच्छा ख़याल है ये।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए कहा____"गांव वालों के लिए ऐसा कार्य करना बड़ी बात है। यकीनन इससे गांव वाले काफी खुश और प्रभावित होंगे। हमें अच्छा लगा कि तुमने इतनी बड़ी बात सोची और ऐसा कार्य करने का निर्णय लिया है।"
"आपने बिल्कुल सही कहा ठाकुर साहब।" किशोरी लाल ने खुशी से मुस्कुराते हुए पिता जी से कहा____"छोटे कुंवर का ऐसा सोचना और इस गांव के लोगों के लिए ऐसा कार्य करना वाकई में बड़ी अच्छी बात है।"
"तो फिर ये तय रहा।" पिता जी ने कहा____"हम पंडित जी से कोई अच्छा सा मुहूर्त निकलवा कर इस कार्य को करवा देते हैं।"
थोड़ी देर और इसी संबंध में हमारी बातें हुईं उसके बाद मैं अपनी मोटर साईकिल ले कर खेतों की तरफ निकल गया। पिता जी काफी खुश और प्रभावित नज़र आए थे मुझे।
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