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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,553
354
अध्याय - 95
━━━━━━༻♥༺━━━━━━


अगले दिन नाश्ता करने के बाद मैं खेतों की तरफ जाने के लिए निकला ही था कि बाहर बैठक में एक बार मैंने यूं ही नज़र डाली लेकिन अगले ही पल मुझे अपनी जगह पर जाम सा हो जाना पड़ा। कारण, बैठक में सुनील और चेतन को देख लिया था मैंने। उन दोनों से क़रीब दो क़दम की दूरी पर शेरा खड़ा था। मैं फ़ौरन ही बैठक कक्ष में दाखिल हो गया। बैठक में पिता जी के अलावा वो व्यक्ति भी था जिसे पिता जी ने मेरे ननिहाल से बुलाया था और जिसे पिता जी ने अपना नया मुंशी नियुक्त कर दिया था।

(यहां पर मैं इस नए मुंशी और उसके परिवार के बारे में संक्षिप्त में बता देना ज़रूरी समझता हूं।)

✮ किशोरी लाल सिंह (उम्र - 40 के क़रीब)
☞ निर्मला सिंह (किशोरी लाल की पत्नी/उम्र - 35 के क़रीब)

किशोरी लाल और निर्मला के दो बच्चे हैं, जिनमें से सबसे बड़ी बेटी है और फिर एक बेटा।

☞ कजरी सिंह (किशोरी और निर्मला की बेटी/ उम्र - 18)
☞ मोहित सिंह (किशोरी और निर्मला का बेटा/ उम्र **)

किशोरी लाल मेरे ननिहाल माधवगढ़ का रहने वाला है। उसका एक बड़ा भाई है जिसका नाम समय लाल है। समय लाल मेरे नाना जी का मुंशी है। इसके पहले इनके पिता मुंशी का काम करते थे। कहने का मतलब ये कि इन लोगों के बारे में मेरे नाना जी लोगों को अच्छी तरह पता है और क्योंकि ये उनकी नज़र में भरोसेमंद और योग्य थे इस लिए नाना जी ने उसे मेरे पिता जी के पास भेजा था। मेरा ख़याल है कि नए मुंशी का इतना परिचय काफी है इस कहानी के लिए। अतः अब कथानक की तरफ रुख करते हैं।

सुनील और चेतन पिता जी के सामने सिर झुकाए खड़े थे। मैंने दोनों को ध्यान से देखा और फिर आगे बढ़ते हुए एक कुर्सी पर बैठ गया।

"इन दोनों को हमारे सामने लाने में तुम्हें इतना समय क्यों लग गया?" पिता जी ने शेरा की तरफ देखते हुए उससे पूछा।

"माफ़ कीजिए मालिक।" शेरा ने खेदपूर्ण भाव से कहा____"दरअसल ये दोनों यहां थे ही नहीं। पता करने पर पता चला कि ये दोनों अपने ननिहाल गए हुए हैं। तब मैं अपने साथ कुछ आदमियों को ले कर इनके ननिहाल समयपुर गया। वहां जब इन दोनों ने मुझे देखा तो ये भाग खड़े हुए। बड़ी मुश्किल से हाथ लगे तो इन्हें ले कर यहां आया।"

शेरा की बात सुन कर पिता जी ने सख़्त नज़रों से सुनील और चेतन की तरफ देखा तो वो दोनों एकदम से सिमट गए। चेहरे पर मारे घबराहट के ढेर सारा पसीना उभर आया था।

"ठीक है अब तुम जाओ।" पिता जी ने शेरा से कहा तो वो चला गया। शेरा के जाने के बाद पिता जी ने उन दोनों की तरफ देखते हुए सख़्त भाव से कहा____"हम तुम दोनों से सिर्फ एक ही सवाल करेंगे और उम्मीद करते हैं कि तुम हमारे सवाल का जवाब सच के रूप में ही दोगे।"

"हमें माफ़ कर दीजिए ताऊ जी।" चेतन घबरा कर एकदम से पिता जी के पैर पकड़ कर बोल पड़ा____"हमसे बहुत बड़ा अपराध हो गया है।"

"क्या तुम लोगों को लगता है कि तुम दोनों ने जो अपराध किया है।" पिता जी ने कहा____"उसके लिए तुम दोनों को माफ़ी मिलनी चाहिए? क्या तुम लोगों को लगता है कि तुम्हारे जिस मित्र ने तुम्हें हमेशा अपना सच्चा मित्र मान कर अपने साथ किसी साए की तरह रखा उसके साथ इस तरह का विश्वास घात करने के बाद तुम्हें माफ़ कर देना चाहिए?"

"हम जानते हैं ताऊ जी कि हमारा अपराध माफ़ी के लायक नहीं है।" सुनील भी पिता जी के पैरों के पास घुटनों के बल बैठ कर लगभग रोते हुए बोला____"लेकिन हम दोनों मजबूर थे। अगर हम ऐसा नहीं करते तो हमारे परिवार को ख़त्म कर दिया जाता।"

"पूरी बात बताओ।" पिता जी ने उसी सख़्ती के साथ कहा____"हम जानना चाहते हैं कि आख़िर किसने तुम्हें इस क़दर मजबूर कर दिया था कि तुम उसके कहने पर अपने मित्र के साथ विश्वास घात करने के साथ साथ उसकी जान के भी दुश्मन बन गए?"

"ये तब की बात है जब आपने वैभव को इस गांव से निष्कासित कर दिया था।" पिता जी के पैरों के पास से उठ कर सुनील ने दो क़दम पीछे हट कर कहा_____"उस दिन हमें बड़ा दुख लगा था जब हमारा दोस्त वैभव हमसे दूर चला गया। आख़िर उसकी वजह से ही तो हम दोनों का जीवन अच्छे से गुज़र रहा था और हमें किसी चीज़ का अभाव नहीं रहता था। उस दिन पंचायत में हमने भी आपका फ़ैसला सुना था जिसमें आपने कहा था कि गांव का कोई भी व्यक्ति वैभव से किसी भी तरह का ताल्लुक नहीं रखेगा और ना ही कोई उसकी मदद करेगा। अगर किसी ने ऐसा किया तो उसके साथ भी वही सुलूक किया जाएगा। आपकी इस बात से हम थोड़ा सहम तो गए थे लेकिन अपने दोस्त को इस तरह अकेले मुसीबत में पड़ गया देख भी नहीं सकते थे इस लिए हम दोनों ने फ़ैसला किया कि हम दोनों सबकी नज़र बचा कर अपने दोस्त वैभव से ज़रूर मिला करेंगे और हमसे जिस तरह से भी हो सकेगा हम वैभव की मदद करेंगे।"

"यही सोच कर एक दिन हम दोनों अपने अपने घर से निकल कर अपने ठिकाने पर मिले।" सुनील सांस लेने के लिए रुका तो जैसे चेतन ने कमान सम्हालते हुए कहा____"शाम पूरी तरह से हो गई थी और हर तरफ अंधेरा फैल गया था। आस पास का मुआयना करने के बाद हम दोनों जैसे ही अपने ठिकाने से निकले तो एकदम से अंधेरे में एक चमकता हुआ साया हमारे सामने आ कर खड़ा हो गया। इतना ही नहीं उसके साथ दो काले साए और भी आ कर हमारे अगल बगल खड़े हो गए। दोनों के हाथ में लट्ठ थे। अपने इतने क़रीब किसी जिन्न की तरह अचानक से उन लोगों को प्रगट हो गया देख डर के मारे हमारी चीख निकल गई थी। हमें समझ नहीं आया था कि आख़िर वो लोग कौन थे जो खुद को इस तरह से छुपाए हुए थे। पहले जो चमकीला साया आया था उसके पूरे शरीर पर सफेद लिबास था और जो दो लोग उसके बाद उसी समय आ कर हम दोनों के अगल बगल खड़े हो गए थे उनके शरीर पर काले रंग का लिबास था। यहां तक कि उन सबका चेहरा भी सफेद और काले रंग के नक़ाब में छुपा हुआ था। हम दोनों की तो उन्हें देख कर हालत ही ख़राब हो गई थी।"

"वो तीनों हमें इस तरह से घेर कर खड़े हो गए थे कि हम कहीं भाग ही नहीं सकते थे।" चेतन सांस लेने के लिए रुका तो सुनील ने आगे बताना शुरू किया____"पहले तो हमें लगा कि वो तीनों आपके ही कोई आदमी होंगे जो हम पर नज़र रखे हुए थे किंतु जल्दी ही हमारी ये ग़लतफहमी दूर हो गई। उन तीनों में से सफ़ेद लिबास पहने साए ने अपनी अजीब सी आवाज़ में हमसे कहा कि अब से हम दोनों को वही करना होगा जो वो कहेगा। अगर हमने उसके कहे अनुसार उसका कोई नहीं किया तो अंजाम के रूप में हमें अपने अपने परिवार के लोगों से हाथ धोना पड़ जाएगा।"

"यानि तुम दोनों उस सफ़ेदपोश के धमकाने पर अपने दोस्त के साथ विश्वास घात करने पर मजबूर हो गए?" सहसा पिता जी ने दोनों को बारी बारी से देखते हुए कहा____"ख़ैर, हम ये जानना चाहते हैं कि वो सफ़ेदपोश व्यक्ति तुम दोनों से क्या करवाता था या यूं कहें कि तुम दोनों उसके कहने कर क्या करते थे?"

"पहले तो उसने वैभव के बारे में हमसे सारी जानकारी ली।" सुनील ने कहा____"जैसे कि वैभव क्या क्या करता है और उसके किस किस से संबंध हैं? ये भी कि वैभव की पहुंच कहां तक है? हमसे ये सब जानने के बाद उसने हमें सिर्फ एक ही काम करने को कहा और वो काम था नज़र रखना। वैभव पर नज़र रखने के साथ साथ हमें ये भी देखते रहना था कि वैभव कहां कहां जाता है और खुद उसके पीछे कौंन कौंन है?"

"इस बात का क्या मतलब हुआ?" पिता जी के साथ साथ मैं भी चौंका था, उधर पिता जी ने पूछा____"वैभव के पीछे कौन कौन है इस बात को देखते रहने के लिए क्यों कहा था उसने तुम लोगों को?"

"हमें इस बारे में कुछ नहीं पता।" चेतन ने सिर झुका कर दबी आवाज़ में कहा____"हम खुद भी इस बारे में सोचते थे मगर कुछ समझ नहीं आया हमें। कई बार हमने आपको या वैभव को सब कुछ बताने का सोचा और एक दो बार आप दोनों के पास आने की कोशिश भी की मगर नाकाम रहे। पता नहीं कैसे उसे पता चल जाता था और उसके दोनों काले नक़ाबपोश आदमी हमारे सामने जिन्न की तरह आ कर खड़े हो जाते थे। आख़िरी बार उसने हमें धमकी दी थी कि अब अगर हमने फिर से आपको या वैभव को इस बारे में कुछ बताने का सोचा तो हमारे लिए अच्छा नहीं होगा।"

"सफ़ेदपोश से तुम लोगों की मुलाक़ात कैसे होती थी?" पिता जी ने पूछा____"और अभी आख़िरी बार कब मिले थे उससे?"

"हम दोनों अपनी मर्ज़ी से नहीं मिल सकते थे उससे।" चेतन ने कहा____"क्योंकि एक तो हमें उसके बारे में कुछ पता ही नहीं था और दूसरे उसने खुद ही हमें बोला हुआ था कि हम लोग भूल कर भी उससे मिलने की या उसके पीछे आने की कोशिश न करें। क्योंकि ऐसी सूरत में हमें बहुत बुरा अंजाम भुगतना पड़ सकता है। इस लिए हम अपनी मर्ज़ी से उससे मिल ही नहीं सकते थे। किंतु जब उसको हमसे मिलना होता था तो उसके दोनों काले नकाबपोश आदमी रात के अंधेरे में हमारे सामने प्रगट हो जाते थे और हमें उस सफ़ेदपोश व्यक्ति के पास ले जाते थे। सफ़ेदपोश के पूछने पर हम उसको सारी बातें बताते और फिर उसके अगले आदेश पर वापस चले जाते थे।"

"हम्म्म्म।" पिता जी ने लंबी हुंकार सी भरी, फिर बोले____"तो जैसा कि उस सफ़ेदपोश व्यक्ति के अनुसार तुम दोनों वैभव पर नज़र रखते थे और ये भी कि इसके पीछे कौन कौन है ये भी पता करते थे तो अब हमें बताओ कि तुम लोगों ने वैभव के पीछे किन किन लोगों को देखा था?"

"कई लोगों को देखा था हमने।" सुनील ने बताया____"लेकिन रात के अंधेरे में हम ये जान ही नहीं पाए थे कि वो लोग कौन थे जो वैभव के पीछे थे? किंतु हां, हरि शंकर के बेटे रूपचंद्र को वैभव पर नज़र रखते हुए हमने बहुतों बार देखा था।"

"कमाल है।" पिता जी ने एक नज़र मेरी तरफ देखने के बाद कहा____"तुम लोगों ने रूपचंद्र को तो कई बार देखा लेकिन बाकी लोगों को देखा तो ज़रूर मगर उन्हें पहचाना नहीं। ये कैसे हो सकता है भला? जब तुम दोनों का काम ही था ऐसे लोगों पर नज़र रखते हुए उनका पता लगाना तो फिर कैसे तुम लोगों को उनके बारे में पता नहीं चला?"

"ऐसा इस लिए क्योंकि वो लोग हमेशा रात के अंधेरे में ही कभी कभी वैभव के पीछे हमें नज़र आते थे।" चेतन ने कहा____"जबकि रूपचंद्र दिन में भी वैभव पर नज़र रखता था, इस वजह से हमें उसके बारे में अच्छे से पता चल गया था। दिन के उजाले में वैभव के पीछे हमने रूपचंद्र के अलावा कभी किसी को नहीं देखा।"

चेतन की ये बात सुन कर पिता जी फ़ौरन कुछ न बोले। उनके चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए थे। मैं खुद भी सोच में पड़ गया था किंतु सहसा मुझे एहसास हुआ कि वो दोनों इस बारे में झूठ नहीं बोल रहे थे। यकीनन रात के अंधेरे में ऐसे व्यक्तियों के बारे में जान पाना आसान नहीं रहा होगा दोनों के लिए।

"पिछली बार कब मिले थे तुम दोनों उस सफ़ेदपोश से?" सहसा मैंने दोनों की तरफ देखते हुए पूछा।

"बहुत दिन हो गए।" सुनील ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"तब से अभी तक उससे हमारी मुलाक़ात नहीं हुई लेकिन....।"

"लेकिन??" मैंने घूरा उसे।

"पिछली बार अजीब बात हुई थी।" सुनील ने कहा____"हमेशा तो उसके काले नकाबपोश आदमी हमें लेने आते थे और वही हमें उस सफ़ेदपोश से मिलवाते थे लेकिन पिछली बार ऐसा नहीं हुआ।"

"क्यों?" पिता जी ने पूछा।

"पहले हमें भी पता नहीं चला था।" चेतन ने गहरी सांस ली____"फिर हमें कहीं से पता चला कि उसके दोनों नकाबपोश आदमी मर चुके हैं। तभी तो पिछली बार सफ़ेदपोश व्यक्ति खुद ही चल कर हमारे सामने आया था।"

"तुम दोनों के अलावा और किस किस को उस सफ़ेदपोश ने अपना मोहरा बना रखा है?" मैंने पूछा।

"एक दो बार मैंने पास वाले गांव के एक आदमी को देखा था।" सुनील ने बताया____"उसका नाम जगन था। उसके अलावा और किसी के बारे में हमें नहीं पता। हो सकता है कि हमारे अलावा भी उसके कई और मोहरे हों जिनसे वो अलग अलग समय पर मिलता हो।"

"पास के गांव में छुपे क्यों बैठे थे तुम दोनों?" मैंने पूछा____"क्या ऐसा करने के लिए तुम्हारे आका ने कहा था तुम लोगों से?"

"नहीं ऐसी कोई बता नहीं है।" चेतन ने झिझकते हुए कहा____"असल में काफी समय से हमारी उस सफ़ेदपोश व्यक्ति से मुलाक़ात नहीं हुई थी। हमें समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर इसकी क्या वजह हो सकती है? हालाकि इससे कहीं न कहीं हम ये सोच कर खुश भी थे कि उसके कहने पर हमें फिलहाल कहीं भटकना नहीं पड़ रहा है लेकिन फिर ये सोच कर डर भी जाते थे कि कहीं वो हमें आजमा न रहा हो। यानि अगर हम उसकी मर्ज़ी के खिलाफ़ कुछ करेंगे तो हमें लेने के देने ना पड़ जाएं। इधर जब काफी दिनों से सफ़ेदपोश हमसे मिलने नहीं आया तो हम और भी ज़्यादा असमंजस में पड़ गए। हमें ये भी डर सताता रहता था कि किसी दिन आप हमें पकड़ न लें। इतना तो हम समझ ही चुके थे कि अब तक आप लोगों को हम पर शक हो ही गया होगा, ख़ास कर वैभव को। इसी डर से हम इस गांव में ज़्यादा रहते ही नहीं थे। अपने घर वालों को भी समझा दिया था कि वो इस बारे में न तो हमारी फ़िक्र करें और ना ही किसी को बताएं। बस यही बात थी कि हम दोनों दूसरे गांव में छुप के रहते थे।"

"हमें माफ़ कर दीजिए ताऊ जी।" चेतन की बात पूरी होते ही सुनील अपने हाथ जोड़ कर बोल पड़ा____"हमने जो भी किया है वो सब मजबूरी में किया है।" कहने के साथ वो मेरी तरफ पलटा, फिर बोला____"तुम भी हमें माफ़ कर दो वैभव। तुम तो हम दोनों को बचपन से जानते हो कि हम कैसे हैं। ये ऊपर वाला ही जानता है कि तुमसे गद्दारी करने की वजह से हम कितना दुखी थे और कितना शर्मिंदा महसूस करते थे। मन करता था कि अपने आप को मिटा डालें मगर फिर ये सोच कर ऐसा क़दम नहीं उठाया कि ऐसा करने से हमारे घर वालों पर क्या गुज़रेगी?"

"ठीक है मैंने माफ़ किया तुम दोनों को।" मैंने एक नज़र पिता जी पर डालने के बाद कहा____"और उम्मीद करता हूं कि अब से वफ़ादारी दिखाओगे।"

"अभी इन लोगों से वफ़ादारी की उम्मीद करना उचित नहीं है।" पिता जी ने कहा____"क्योंकि इन दोनों को अभी भी उस सफ़ेदपोश से ख़तरा है। वो बहुत ही शातिर और ख़तरनाक व्यक्ति है। संभव है कि उसे ये पता चल गया हो कि ये दोनों हमारे पास पहुंच चुके हैं और हमारे पूछने पर इन लोगों ने हमें सब कुछ बता दिया हो। ऐसे में इन दोनों पर अब उसका ख़तरा बढ़ गया है। हमारा ख़याल ये है कि इन दोनों को फिलहाल वैसा ही करते रहना चाहिए जैसा अब तक ये करते आए थे। सफ़ेदपोश से अगर दुबारा इन लोगों की मुलाक़ात होती है तो ये किसी तरीके से हमें इशारा कर देंगे। इनका इशारा पाने के लिए हमारे कुछ लोग गुप्त रूप से इन दोनों के आस पास ही मौजूद रहेंगे।"

पिता जी की बात से मैं भी सहमत था इस लिए यही फ़ैसला हुआ कि वो दोनों फिलहाल पहले जैसा बर्ताव करते रहें। उन दोनों के जाने के बाद पिता जी कुछ देर तक जाने क्या सोचते रहे।

"क्या लगता है तुम्हें?" पिता जी ने सहसा मुझसे पूछा____"तुम्हारे वो दोनों दोस्त वाकई में सच बोल रहे थे या उन्होंने हमसे झूठ बोला था?"

"मुझे नहीं लगता पिता जी कि वो दोनों झूठ बोल रहे थे।" मैंने ठोस लहजे में कहा____"वैसे भी झूठ बोलने की कोई वजह नहीं थी उनके पास। मैं दोनों को बहुत अच्छे से जानता हूं। यकीनन वो दोनों सफ़ेदपोश के द्वारा इस क़दर मजबूर किए गए थे कि दोनों को ऐसा करना पड़ा।"

"ऐसा तुम इस लिए कह रहे हो क्योंकि तुम अभी भी उन दोनों को दोस्त मानते हो और उन्हें दोस्त के नज़रिए से ही देख रहे हो।" पिता जी ने मानो तर्क़ देते हुए कहा____"जबकि तुम्हें सबसे ज़्यादा इस बात पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए कि ये वही दोस्त हैं जो सफ़ेदपोश के द्वारा मजबूर कर दिए गए थे और फिर उन्होंने तुम्हारे साथ विश्वास घात किया। मान लेते हैं कि दोनों के दिल साफ हैं और वो तुमसे गद्दारी करने का नहीं सोच सकते लेकिन ये भी मत भूलो कि इंसान मजबूरी में कुछ भी कर गुज़रता है। हो सकता है कि उनका हमारे सामने वो सब कहना भी उनकी मजबूरी का ही हिस्सा रहा हो। आख़िर मजबूरी में वो तुमसे कहीं ज़्यादा अपने परिवार के बारे में ही सोचेंगे।"

"यानि आपको उन दोनों पर शक है?" मैंने कहा____"और आपके अनुसार उन्होंने जो कुछ भी हमसे कहा है वो सब सफ़ेदपोश के सिखाए अनुसार ही कहा है।"

"क्या ऐसा नहीं हो सकता?" पिता जी ने उल्टा सवाल कर दिया मुझसे।
"होने को तो कुछ भी हो सकता है पिता जी।" मैंने कहा____"लेकिन मेरा दिल कहता है कि वो दोनों बेकसूर है"

"हमने ये कब कहा कि वो बेकसूर नहीं हैं?" पिता जी ने अजीब भाव से कहा____"हम तो सिर्फ ये कह रहे हैं कि संभव है कि उन्होंने अभी जो कुछ भी हमसे कहा है या बताया है वो सब उन्हें उस सफ़ेदपोश ने ही सिखाया रहा हो। शायद वो समझता था कि किसी न किसी दिन इन दोनों पर हम शक करेंगे ही और फिर इन्हें पकड़ने का भी सोचेंगे। सफ़ेदपोश ने इसी बात को समझते हुए इन्हें पहले ही सिखा पढ़ा दिया रहा होगा कि हमारे द्वारा पकड़े जाने पर इन्हें हमसे क्या कहना है।"

"बेशक ऐसा हो सकता है।" मैंने कुछ पल सोचने के बाद कहा____"किंतु सवाल है कि इससे सफ़ेदपोश का अपना क्या फ़ायदा होता? कहने का मतलब ये कि अगर दोनों ने वही सब कुछ हमें बताया है जो आपके अनुसार उन्हें सफ़ेदपोश ने सिखाया पढ़ाया रहा होगा तो इन सब बातों के द्वारा सफ़ेदपोश का क्या लाभ हो सकता है और क्या नुकसान हो सकता है? मुझे तो ऐसा लगता है पिता जी कि आप बेवजह ही इतना दूर का सोच रहे हैं। दोनों ने जो कुछ भी हमें बताया है वो सब स्वाभाविक बातें हैं जो उनकी परिस्थिति के अनुसार वाजिब ही लगती हैं।"

"मानते हैं।" पिता जी ने सिर हिलाया____"किंतु हमें सिर्फ एक पहलू के बारे में नहीं सोचना चाहिए बल्कि मौजूदा हालात के अनुसार दोनों पहलुओं पर सोचना चाहिए। हमारे लिए यही हितकर भी रहेगा।"

मैं पिता जी की इस बात से सहमत था इस लिए दुबारा कोई तर्क वितर्क नहीं किया। उधर पिता जी ने आगे कहा____"शेरा को बोलो कि वो अपने कुछ आदमियों को उन दोनों पर नज़र रखने को कहे।"

"क्या ऐसा करना ज़रूरी है?" मैंने बैठक से ही एक दरबान को आवाज़ देने के बाद पिता जी से कहा।

इससे पहले कि पिता जी मेरी बात का कोई जवाब देते एक दरबान फ़ौरन ही हाज़िर हो गया जिसको मैंने शेरा को बुलाने को कहा तो वो चला गया।

"बिल्कुल ज़रूरी है।" दरबान के जान के बाद पिता जी ने मेरी बात का जवाब देते हुए कहा____"ये मत भूलो कि सफ़ेदपोश के मोहरों में से फिलहाल हम तुम्हारे दोस्तों के बारे में ही जानते हैं। जगन तो मर चुका है इस लिए सुनील और चेतन के द्वारा ही हम सफ़ेदपोश तक पहुंच सकते हैं।"

"वो कैसे?" मेरे माथे पर सोचने वाले भाव उभर आए।

"काफी समय से सफ़ेदपोश ने कोई हरकत नहीं की है और ना ही उसके बारे में हमें कहीं से कोई ख़बर मिली है।" पिता जी ने कहा____"संभव है कि वो किसी बड़े काम को अंजाम देने की फ़िराक में हो। अब क्योंकि हमारे पास उसके पास पहुंचने का कोई रास्ता अथवा जरिया नहीं है तो सुनील और चेतन ही ऐसे हैं जिनके द्वारा हम सफ़ेदपोश तक पहुंच सकते हैं, बशर्ते कि सफ़ेदपोश इनसे मिलने की कोशिश करे। हमने इसी लिए दोनों पर नज़र रखने के लिए कहा है कि अगर सफ़ेदपोश उन दोनों से मिलने की कोशिश करे तो दोनों पर नज़र रख रहे हमारे आदमियों को भी सफ़ेदपोश दिख जाए और फिर वो फ़ौरन ही हमें इस बात की सूचना दे दें।"

मैं अभी कुछ बोलने ही वाला था कि शेरा बैठक में दाखिल हुआ। पिता जी ने उसे समझा दिया कि उसे क्या करना है। सारी बात समझने के बाद शेरा चला गया।

"ये सब तो ठीक है लेकिन रघुवीर की हत्या का जो मामला सामने आया है उसके बारे में आपका क्या ख़याल है?" मैंने उत्सुकतावश ही पूछा पिता जी से____"क्या लगता है आपको? रघुवीर की हत्या किसने की होगी? क्या चंद्रकांत ने खुद ही अपने बेटे की हत्या कर के हमें फंसाने की साज़िश की हो सकती है?"

"नहीं, हर्गिज़ नहीं।" पिता जी ने पूरी मजबूती से इंकार में सिर हिला कर कहा____"चंद्रकांत बदले की भावना में इतना भी अंधा नहीं हो सकता कि वो अपने ही हाथों अपने इकलौते बेटे की हत्या कर के अपने वंश का नाश कर बैठे। उसके बेटे की हत्या यकीनन किसी और ने ही की है।"

"किसने की होगी?" मैंने सवाल किया____"क्या उसकी हत्या हमारे मामले की वजह से हुई या फिर किसी और ने ही चंद्रकांत से उसके बेटे की हत्या कर के अपनी दुश्मनी निकाल ली है?"

"जहां तक हम दोनों बाप बेटे को जानते और समझते हैं उससे हम यही कहेंगे कि दोनों की किसी से ऐसी दुश्मनी नहीं थी जिसके चलते कोई उनमें से किसी की हत्या कर दे।" पिता जी ने गंभीरता से कहा____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि इंसान किसी के बारे में पूर्ण रूप से सब कुछ नहीं जान रहा होता है। कहने का मतलब ये कि संभव है कि उसका ऐसा कोई दुश्मन बन ही गया रहा हो जिसके बारे में हमें फिलहाल पता नहीं था।"

"चंद्रकांत ने तो रूपचंद्र पर भी इल्ज़ाम लगाया था।" मैंने कहा____"उसकी बहू ने अपने और रूपचंद्र के विषय में जो बातें बताई थी तो क्या ऐसा हो सकता है कि रूपचंद्र ने गुस्से में आ कर रघुवीर की हत्या कर दी हो?"

"ये तो अपने ही हाथों अपने पैर में कुल्हाड़ी मार लेने वाली बात होती।" पिता जी ने कहा____"हमें नहीं लगता कि रूपचंद्र ने इस तरह की बेवकूफी की होगी। अगर उसे रजनी की बातों पर इतना ही गुस्सा आ गया था तो वो उसी समय रजनी पर ही अपना गुस्सा मिटा देता। अपने गुस्से को शांत करने के लिए वो रात होने का इंतज़ार नहीं करता और ना ही फिर वो रघुवीर की हत्या करता। इंसान जिस पर गुस्सा होता है ज़्यादातर वो उसी पर अपना गुस्सा निकालता है।"

"अगर ऐसा है।" मैंने कहा____"तो फिर यही ज़ाहिर होता है कि रघुवीर की हत्या करने वाला कोई और ही है। अब सवाल ये है कि रघुवीर ने आख़िर किसी के साथ ऐसा क्या बुरा किया था जिसके चलते उसे अपनी जान से हाथ धो लेना पड़ा?"

"महेंद्र सिंह इसकी तहक़ीकात कर रहे हैं।" पिता जी ने कहा____"हमें पूरा यकीन है कि जल्द से जल्द रघुवीर के हत्यारे का पता चल जाएगा। एक बात और, तुम्हें इस तरह के मामले से बिल्कुल ही दूर रहना है। हम चाहते हैं कि तुम ऐसे काम करो जिसके चलते लोगों के अंदर से तुम्हारी ख़राब छवि मिट जाए और लोग तुम्हें एक अच्छा इंसान मान कर तुम्हें सम्मान की दृष्टि से देखने लगें।"

"मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं पिता जी।" मेरे मन में अचानक ही एक बात आई तो मैंने कहा____"और इसके लिए मैंने एक अहम कार्य करने का भी सोचा है। अगर आप कहें तो अपने उस कार्य के बारे में आपको बताऊं?"

"हां क्यों नहीं।" पिता जी ने कहा____"हम भी जानना चाहते हैं कि तुम अच्छा बनने के लिए ऐसा कौन सा कार्य करना चाहते हो?"

"मैं चाहता हूं कि एक दिन गांव के सभी लोगों को हवेली के विशाल प्रांगण में बुलाया जाए।" मैंने कहा____"और फिर उन सभी लोगों को ये बताया जाए कि गांव के जिन लोगों ने हमसे कर्ज़ ले रखा है उन सबका कर्ज़ हम पूरी तरह से माफ़ करते हैं। मेरा ख़याल है कि कर्ज़ माफ़ी की बात सुन कर गांव वाले बेहद खुश हो जाएंगे और पिछले कुछ समय से जिस वजह से लोगों के अंदर हमारे प्रति ग़लत विचार पैदा हुए होंगे वो जड़ से समाप्त हो जाएंगे।"

"हम्म्म्म! काफ़ी अच्छा ख़याल है ये।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए कहा____"गांव वालों के लिए ऐसा कार्य करना बड़ी बात है। यकीनन इससे गांव वाले काफी खुश और प्रभावित होंगे। हमें अच्छा लगा कि तुमने इतनी बड़ी बात सोची और ऐसा कार्य करने का निर्णय लिया है।"

"आपने बिल्कुल सही कहा ठाकुर साहब।" किशोरी लाल ने खुशी से मुस्कुराते हुए पिता जी से कहा____"छोटे कुंवर का ऐसा सोचना और इस गांव के लोगों के लिए ऐसा कार्य करना वाकई में बड़ी अच्छी बात है।"

"तो फिर ये तय रहा।" पिता जी ने कहा____"हम पंडित जी से कोई अच्छा सा मुहूर्त निकलवा कर इस कार्य को करवा देते हैं।"

थोड़ी देर और इसी संबंध में हमारी बातें हुईं उसके बाद मैं अपनी मोटर साईकिल ले कर खेतों की तरफ निकल गया। पिता जी काफी खुश और प्रभावित नज़र आए थे मुझे।

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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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अध्याय - 94
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थोड़ी ही देर में विभोर और अजीत बाहर आ गए तो मैं जीप में उन दोनों को बैठा कर खेतों की तरफ निकल गया। आसमान में काले बादलों ने अच्छा खासा अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। प्रतीत होता था कि आज वो जम के बरसेंगे।


अब आगे....



अनुराधा रसोई में दोपहर का खाना बना के अपनी मां सरोज के आने की प्रतीक्षा कर रही थी। उसका छोटा भाई अनूप खाना खाने के बाद बरामदे में ही अपने मिट्टी के खिलौनों के साथ खेल रहा था जबकि अनुराधा बरामदे में रखी चारपाई पर सोचो में गुम बैठी थी।

सरोज अनुराधा को बता कर गई थी कि वो वैभव से मिलने उसके गांव जा रही है। अपनी मां की ये बात सुन कर अनुराधा की धड़कनें एकाएक ही थम गईं थी। उसे ये सोच कर घबराहट सी होने लगी थी कि उसकी मां वैभव से जाने क्या क्या कहेगी? हालाकि अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर अनुराधा ने अपनी मां से बस इतना ही कहा था कि वो वैभव को कुछ भी उल्टा सीधा न बोले। जवाब में सरोज ने उसे तीखी नज़रों से देखा था और फिर बिना कुछ कहे ही घर से बाहर निकल गई थी। उसके जाते ही अनुराधा की हालत ख़राब होने लगी थी।

अपनी मां के जाने के बाद वो बेमन से रसोई में जा कर दोपहर का खाना बनाने लगी थी। वो खाना ज़रूर बना रही थी लेकिन उसका पूरा ध्यान अपनी मां पर ही था और इस बात पर भी कि जाने अब क्या होगा? किसी तरह खाना बना तो उसने सबसे पहले अपने छोटे भाई को खिलाया और फिर बरामदे में रखी चारपाई पर बैठ कर वो अपनी मां के आने का इंतजार करने लगी थी।

जैसे जैसे वक्त गुज़र रहा था वैसे वैसे अनुराधा की हालत और भी ख़राब होती जा रही थी। उसने सैकड़ों बार मन ही मन ऊपर वाले को याद कर के उनसे सब कुछ अच्छा होने की प्रार्थना की थी। जब से उसका भेद उसकी मां के सामने खुला था तभी से वो इस बारे में चिंतित थी। हालाकि ये कहना भी ग़लत न होगा कि भुवन की वजह से वो अपनी मां को सब कुछ बता पाई थी और इसी के चलते उसके अंदर का बोझ और उसकी तड़प कुछ हद तक कम हो गई थी। उस वक्त तो उसे थोड़ा चैन भी मिल गया था जब उसने भुवन के द्वारा ये सुना था कि वैभव भी शायद उससे प्रेम करता है क्योंकि उसकी तकलीफ़ से वैभव को भी तकलीफ़ होती है। भुवन के अनुसार ऐसा तभी होता है जब कोई व्यक्ति किसी से प्रेम करता है। अनुराधा को ये जान कर अत्यंत खुशी हुई थी लेकिन अब जबकि सब कुछ जानने के बाद उसकी मां वैभव से मिलने गई थी तो उसके मन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे थे जिसके चलते उसकी हालत ख़राब होती जा रही थी।

आख़िर बड़ी मुश्किल से वक्त गुज़रा और बाहर के दरवाज़े को खोल कर उसकी मां अंदर दाख़िल होती हुई नज़र आई। सरोज को देखते ही उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं और वो एकदम से ब्याकुल और बेचैन सी नज़र आने लगी। उधर सरोज ने अंदर आने के बाद पलट कर दरवाज़ा अंदर से बंद किया और फिर नर्दे के पास जा कर अपने हाथ पैर धोने लगी।

अनुराधा ने देखा कि उसकी मां ने उसे देखने के बाद भी कुछ नहीं बोला तो उसकी धड़कनें फिर से थमती हुई प्रतीत हुईं। वो अपनी मां से फ़ौरन ही सब कुछ जान लेना चाहती थी लेकिन उससे पूछने की वो चाह कर भी हिम्मत न जुटा सकी। जब उसे कुछ न समझ आया तो वो चारपाई से जल्दी से उठी और रसोई में जा कर अपनी मां के लिए खाने की थाली सजाने लगी। मन में तरह तरह के ख़याल बुनते हुए उसने जल्दी से थाली तैयार की और फिर उसे ले कर बरामदे में आ गई।

उधर सरोज अपने हाथ पैर धोने के बाद बरामदे में आई और एक बोरी को दीवार से सटा कर रखने के बाद उसमें बैठ गई। वो जैसे ही बैठी तो अनुराधा ने खाने की थाली को चुपचाप उसके सामने रख दिया। उसके बाद जल्दी ही उसने एक लोटे में पानी भी ला कर मां के सामने रख दिया।

"अनूप को खाना खिलाया कि नहीं तूने?" रोटी का एक निवाला तोड़ते हुए सरोज ने अनुराधा से पूछा।

"ह...हां मां।" अनुराधा ने खुद को सम्हालते हुए झट से कहा____"उसे तो बहुत पहले ही खिला दिया था मैंने। बस तुम्हारे ही आने की प्रतीक्षा कर रही थी।"

"हम्म्म्म।" सरोज ने रोटी के निवाले को मुंह में डालने के बाद उसे चबाते हुए कहा____"और तूने खाया?"

"वो मैं तुम्हारे आने की प्रतीक्षा कर रही थी।" अनुराधा ने धड़कते दिल से कहा____"मैंने सोचा जब तुम आ जाओगी तो साथ में ही खाऊंगी।"

"अरे! तुझे खा लेना चाहिए था।" सरोज ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा____"मुझे वापस आने में समय तो लग ही जाना था। ख़ैर जा तू भी खा ले। मुझे अब कुछ नहीं चाहिए।"

अनुराधा पूछना तो बहुत कुछ चाहती थी लेकिन उसकी हिम्मत न पड़ी इस लिए बेमन से वो पलटी और रसोई की तरफ बढ़ गई। कुछ ही देर में वो अपने लिए थाली में खाना ले कर आ गई और अपनी मां के पास ही चुपचाप बैठ गई। उसने एक नज़र सरोज पर डाली तो उसे आराम से खाना खाते हुए पाया। उसे समझ न आया कि उसकी मां इतना आराम से कैसे खाना खा रही थी? उसके अनुसार तो उसे गुस्से में नज़र आना चाहिए था।

अनुराधा का बहुत जी चाह रहा था कि वो अपनी मां से पूछे लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। दूसरे उसे झिझक के साथ साथ शर्म भी महसूस हो रही थी कि उसके पूछने पर उसकी मां उसके बारे में जाने क्या सोचेगी। वो बस मन ही मन दुआ कर रही थी कि मां खुद ही सब कुछ बता दे।

"वैसे मिल आई हूं वैभव से।" अनुराधा के कानों में उसकी मां की आवाज़ पड़ी तो वो एकदम से चौंकी और उसने अपनी मां की तरफ देखा। मन ही मन उसने ऊपर वाले को धन्यवाद दिया कि उसने उसकी दुआ सुन ली। उधर सरोज ने बिना उसकी तरफ देखे ही सपाट भाव से कहा____"मुझे तो पूरा यकीन था कि उसने तुझे भी बाकी लड़कियों की तरह अपने जाल में फांस रखा रहा होगा लेकिन उसकी बातें सुनने के बाद एहसास हुआ कि मैं ग़लत थी।"

अनुराधा की धड़कनें एकदम से मंद मंद चलने लगीं थी। सरोज के चुप होते ही उसने पूछना चाहा कि आख़िर वैभव ने उससे क्या बातें की लेकिन मारे झिझक और शर्म के पूछ न सकी। बस हलक में सांसें अटकाए और आस भरी नज़रों से देखती रही अपनी मां को। किंतु जब काफी देर गुज़र जाने पर भी सरोज ने आगे कुछ न कहा तो जैसे अनुराधा के सब्र का बांध टूट गया और उसकी सारी झिझक तथा शर्म छू मंतर सी हो गई।

"अ...आख़िर ऐसा क्या कहा तुमसे छोटे कुंवर ने मां?" अनुराधा ने दबी आवाज़ में पूछा।

अनुराधा के यूं पूछने पर सरोज ने मुंह में लिए निवाले को चबाना बंद कर उसकी तरफ अजीब भाव से देखा तो अनुराधा एकदम से सिमट गई और उसकी नज़रें झुक गईं। ये देख सरोज मन ही मन मुस्कुरा उठी किंतु अगले ही पल उसके अंदर एक टीस सी उभरी, ये सोच कर कि वो कौन सी मनहूस घड़ी थी जब उसने वैभव के साथ नाजायज़ संबंध बना लिया था। काश! उसे पता होता कि आगे चल कर उसी वैभव से उसकी बेटी प्रेम करने लगेगी और वैभव उससे ब्याह करने का उसको वचन भी देगा।

सरोज को इस बात के चलते बहुत बुरा महसूस हो रहा था मगर वो भी जानती थी कि होनी तो हो चुकी है इस लिए अब उसके बारे में सोच कर दुखी होने से या बुरा महसूस होने से भला क्या होगा? उसने मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि अब से वो वैभव के बारे में कभी भूल से भी ग़लत ख़याल अपने ज़हन में नहीं आने देगी। आख़िर वो उसका होने वाला दामाद था और वो उसकी होने वाली सास जोकि मां समान ही होती है।

"बात ये थी कि मैं तेरे जीवन को बर्बाद होते नहीं देख सकती थी।" फिर सरोज ने अनुराधा से नज़र हटाने के बाद कहा____"इस लिए मैंने उससे साफ शब्दों में बातें की और ये निश्चित किया कि उसकी वजह से तेरा जीवन आबाद हो, ना कि बर्बाद।"

सरोज की बातें अनुराधा के कानों में ज़रूर पड़ीं लेकिन उसकी समझ में कुछ न आया। इस लिए उसने सिर उठा कर फिर से अपनी मां की तरफ देखा। इस बार उसे ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा।

"इतना तो उसने भी बताया कि वो भी तुझसे वैसे ही प्रेम करता है जैसे तू उससे करती है।" सरोज ने कहा____"लेकिन अपनी बेटी के सुखी जीवन की खातिर मेरे लिए इतना सुन लेना काफी नहीं था। सिर्फ प्रेम करने से तो तेरा जीवन नहीं संवर सकता था ना इस लिए मुझे उसके मुख से वो सुनना था जिसके चलते तेरा जीवन हमेशा के लिए सुखी भी हो जाए।"

अनुराधा को मानो अभी भी कुछ समझ नहीं आया। वो सोचने लगी कि आज उसकी मां ये कैसी अजीब अजीब बातें कर रही है?

"जब मैंने वैभव से इस संबंध में बातें की तो उसने आख़िर वो कह ही दिया जो मैं सुनना चाहती थी और जिसके चलते मैं चिंता से मुक्त हो सकती थी।" सरोज ने कहा____"उसने साफ शब्दों में मुझसे कहा है कि वो तुझसे ब्याह करेगा और इस बात का उसने मुझे वचन भी दिया है।"

सरोज की ये बात सुन कर अनुराधा के दिलो दिमाग़ में पलक झपकते ही मानो धमाका सा हुआ। आश्चर्य से उसकी आंखें फैल गईं। वो किसी बुत की तरह चकित अवस्था में अपनी मां को देखती रह गई। फिर अचानक ही जैसे उसे होश आया तो उसने महसूस किया कि उसकी धड़कनें धाड़ धाड़ कर के बजने लगीं हैं जिनकी धमक उसे अपने कानों में गूंजती महसूस हो रही हैं।

बिजली की तरह उसके मन में ये बात बैठ गई कि वैभव उसके साथ ब्याह करेगा। उसने मन ही मन चकित भाव से कहा_____'हाय राम! क्या सच में ऐसा हो सकता है? किंतु ऐसा तो मैंने सोचा ही नहीं था।'

अनुराधा अपना खाना पीना भूल कर अगले कुछ ही पलों में जाने कौन सी दुनिया में गोता लगाने लगी। उसके दिलो दिमाग़ में उथल पुथल सी मच गई थी जिसे रोकना अथवा सम्हालना जैसे उसके बस में ही नहीं रह गया था। अचानक ही उसकी आंखों के सामने रंग बिरंगे कुछ ऐसे चित्र घूमने लगे जिन्हें देख कर उसका चेहरा खुशी से चमकता नज़र आया मगर फिर एकाएक ही उसके उस चमकते चेहरे पर लाज की सुर्खी भी छाती नज़र आई। उसकी नज़रें झुकती चली गईं। बार बार गुलाबी होठों पर एक गहरी मुस्कान थिरकने लगी जिसे वो जी तोड़ कोशिश कर के छुपाने की कोशिश करने लगी। उसका मन किया कि वो फ़ौरन ही खाना पीना छोड़ कर भागते हुए अपने कमरे में पहुंच जाए और फिर अकेले में वो खुशी के मारे उछलना कूदना शुरू कर दे। अपनी हालत को काबू करने का प्रयास करते हुए एकाएक वो उठने ही लगी थी कि तभी....

"अरे! कहां जा रही है?" सरोज ने उसे देखते हुए मानों टोका_____"पहले ठीक से खाना तो खा ले। उसके बाद अपने कमरे में जा कर खुशियां मना लेना।"

मां की ये बात सुन कर अनुराधा शर्म से मानो पानी पानी हो गई। उसके ज़हन में बिजली की तरह ख़याल उभरा कि उसकी मां को उसकी हालत के बारे में इतना अच्छे से कैसे पता चल गया? उसमें नज़र उठा कर मां की तरफ देखने की हिम्मत न हुई। खुद को समेटे वो किसी तरह वापस बैठ गई और फिर सिर झुकाए ही चुपचाप खाना खाने लगी। उधर सरोज उसकी ये हालत देख कर मन ही मन मुस्कुरा उठी। वो सोचने लगी कि सच में उसकी बेटी अब जवान हो गई है।

खुशी के मारे अनुराधा से कुछ खाया ही नहीं जा रहा था लेकिन खाना खाना उसकी मजबूरी थी इस लिए मजबूरन उसे किसी तरह खाना ही पड़ा। बड़ी मुश्किल से उसका खाना ख़त्म हुआ। सरोज खा चुकी थी और अब वो बरामदे में रखी चारपाई पर आराम करने के लिए लेट गई थी। इधर अनुराधा झट से उठी और अपनी तथा मां की थाली को उठा कर उसे नर्दे के पास रख दिया। उसके बाद वो लगभग दौड़ते हुए अपने कमरे की तरफ भागती चली गई।

कमरे में आ कर उसने सबसे पहले दरवाज़ा अंदर से बंद किया और फिर चारपाई पर पीठ के बल लेट कर अपनी आंखें बंद कर ली। होठों पर उभर आई मुस्कान के साथ उसने पहली बार चैन की लंबी सांस ली। अगले ही पल उसकी बंद पलकों में वैभव का मनमोहक चेहरा उभर आया और वो उसके साथ जाने कैसे कैसे ख़्वाब बुनने लगी। उसे पता ही न चला कि कब उसकी दोनों आंखों की कोरों से खुशी के आंसू निकल कर उसकी कनपटी को छूते हुए चारपाई में बिछी चादर पर फ़ना हो गए।

✮✮✮✮

जैसा कि आसमान में छाए बादलों को देख कर ही प्रतीत हुआ था कि बारिश होगी तो बिल्कुल वैसा ही हुआ। शाम होने में थोड़ा वक्त था जब बारिश शुरू हुई। सारे मजदूर भाग कर मकान में आ गए। मैं, विभोर और अजीत जीप से वापस हवेली जाने का सोच रहे थे किंतु भुवन ने मुझे रोक लिया, ये कह कर कि तेज़ बारिश में जाना ठीक नहीं है। एक तो कच्चा रास्ता दूसरे बारिश के चलते कीचड़ जिसकी वजह से तेज़ बारिश में जीप चलाना उचित नहीं था। भुवन की बात मान कर मैं तखत पर बैठ गया था।

सारे मजदूरों को देखते हुए अचानक मेरे मन में एक विचार आया जिसके बारे में सोचने से मुझे काफी अलग सा महसूस हुआ और साथ ही एक खुशी का आभास भी हुआ। मैंने निश्चय कर लिया कि अपने मन में उठे इस विचार पर ज़रूर अमल करूंगा।

ख़ैर आधा घंटा तेज़ बारिश हुई। एक बार फिर से खेतों में पानी नज़र आने लगा था। बारिश रुकी नहीं थी क्योंकि हल्की हल्की फुहारें अभी भी आसमान से ज़मीन पर गिर रहीं थी। कच्चा रास्ता पहले से और भी ज़्यादा ख़राब नज़र आने लगा था लेकिन जाना तो था ही इस लिए विभोर और अजीत को ले कर मैं जीप में बैठा और फिर उसे स्टार्ट कर हवेली की तरफ निकल गया।

जब मैं हवेली पहुंचा तो सूरज पूरी तरह डूब चुका था और शाम का धुंधलका छा गया था। हाथ पांव धो कर मैं अपने कमरे में आ गया। कपड़े उतार कर मैंने नीचे गमछा लपेट लिया, जबकि ऊपर बनियान थी। बारिश होने की वजह से बिजली गुल हो गई थी मगर लालटेन का पीला प्रकाश कमरे में फैला हुआ था। मेरी लाडली बहन को मेरा बहुत ख़्याल रहता था। बिजली के न रहने पर अक्सर शाम को वो मेरे कमरे की लालटेन जला कर चली जाती थी।

मैं पलंग पर आराम करने के लिए लेटने ही वाला था कि तभी खुले दरवाज़े से किसी के अंदर आने की आहट हुई। मुझे लगा कुसुम होगी इस लिए अपने अंदाज़ में दरवाज़े की तरफ चेहरा कर के मैं अभी कुछ बोलने ही वाला था कि आने वाले व्यक्ति पर नज़र पड़ते ही मैं चुप रह गया।

एक अजनबी लड़की को अकेले मेरे कमरे में दाख़िल होता देख मैं एकदम से चौंक पड़ा। मेरी नज़रें उस पर ही जम गईं। उधर वो जैसे ही मेरे क़रीब आई तो लालटेन की रोशनी में मुझे उसकी शक्लो सूरत स्पष्ट नज़र आई और सच तो ये था कि मैं अपलक उसे देखता ही रह गया। इतना तो मैं समझ गया था कि ये वही लड़की है जिसके बारे में कुसुम ने मुझे बताया था किंतु वो इतनी आकर्षक होगी इसकी उम्मीद नहीं थी मुझे। हालाकि मेरी लाडली बहन के आगे वो कुछ भी नहीं थी किंतु अगर उसको अलग दृष्टि से देखा जाए तो वो बहुत कुछ थी।

कुसुम ने सही कहा था वो उसके ही उमर की थी। जिस्म एकदम नाज़ुक सा किंतु एकदम सांचे में ढला हुआ। घाघरा चोली पहने हुए थी वो जिसके चलते उसके पेट का हिस्सा साफ दिख रहा था। पेट में मौजूद उसकी नाभी को देख मेरे अंदर हलचल सी होने लगी थी। चोली में ढंकी उसकी छातियां एकदम तनी हुईं थी। सुराहीदार गले के ऊपर उसका ताज़े खिले गुलाब की मानिंद चेहरा एक अलग ही तरह से मुझे आकर्षित करने लगा था। उस पर उसकी बड़ी बड़ी किंतु गहरी आंखें जो काजल लगा होने की वजह से और भी क़ातिल लग रहीं थी।

"न...नमस्ते छोटे कुंवर।" उसकी खनकती आवाज़ से मैं एकदम से ही आसमान से ज़मीन पर आया और थोड़ा हड़बड़ा कर उसकी तरफ देखा। फिर मैंने जल्दी ही खुद को सम्हालते हुए उसके नमस्ते का जवाब दिया।

मैंने देखा उसके हाथ में पीतल का ट्रे था जिसमें चाय का एक कप और ग्लास में पानी रखा हुआ था। वो थोड़ा और मेरे क़रीब आई और फिर मुस्कुराते हुए झुक कर मेरी तरफ ट्रे को बढ़ाया तो अनायास ही मेरी गुस्ताख़ नज़रें उसकी चोली के बड़े गले में से अचानक ही उजागर हो ग‌ए दो पर्वत शिखरों पर जा पड़ीं। मुझे पूरा यकीन था कि अगर वो थोड़ा और झुक जाती तो उसकी छातियां और भी ज़्यादा मेरी नज़रों के सामने उजागर हो जातीं। उसकी छातियों के बीच की गहरी दरार देख मेरा हलक सूख गया और साथ ही मेरे समूचे जिस्म में सिहरन सी दौड़ गई।

"हाय राम!" तभी मैं उसकी खनकती आवाज़ से चौंक पड़ा और साथ ही हड़बड़ा भी गया। मैंने झटके से उसकी तरफ देखा तो वो एकदम से सीधा खड़ी हो गई। उसके चहरे पर शर्म की हल्की लाली छा गई थी। मैं समझ गया कि उसे पता चल गया है कि मैं उसकी छातियां देख रहा था।

"आप तो बड़े ख़राब और बदमाश हैं छोटे कुंवर।" फिर उसने मुझे एक अलग ही अदा से घूरते हुए कहा____"भला कोई किसी लड़की को ऐसे देखता है क्या?"

"व...वो...वो माफ़ करना मुझे।" मुझसे कुछ कहते ना बना।

हालाकि मैं ये सोच कर एकदम से चौंक भी पड़ा कि मैं किसी लड़की के सामने इस तरह से कैसे हड़बड़ा गया और तो और उससे माफ़ी भी मांग बैठा। उधर मेरी बात सुन कर अचानक ही वो खिलखिला कर हंसने लगी। ऐसा लगा जैसे पूरे कमरे में घंटियां बज उठीं हों। मैं भौचक्का सा तथा मूर्खों की तरह उसे हंसते हुए देखने लगा। मेरे जीवन में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि मैं किसी लड़की के सामने इस तरह से असहज हो गया होऊं।

"अरे! लगता है आप डर गए हमसे।" फिर उसने अपनी हंसी को रोक कर किंतु मुस्कुराते हुए कहा____"अगर ये सच है तो फिर हम यही कहेंगे कि कुसुम ने आपके बारे में हमें ग़लत बताया था। ख़ैर छोड़िए, लीजिए चाय पीजिए नहीं तो ये ठंडी हो जाएगी। वैसे आप ठंडी चीज़ के शौकीन तो नहीं होंगे न?"

मतलब हद ही हो गई। एक लड़की जो मेरे लिए अजनबी थी और मैं उसके लिए वो इतनी बेबाकी से मुझसे बातें कर रही थी? इतना ही नहीं मेरे जैसे सूरमा को अपनी बातों तथा हरकतों से एकदम अवाक सा कर चुकी थी। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि आख़िर ये क्या बला है?

"बहुत खूब।" मैं जो अब तक उसके बारे में एक राय बना कर सम्हल चुका था बोला____"बहुत ही दिलचस्प। वैसे, क्या कुसुम ने तुम्हें बताया नहीं कि ठाकुर वैभव सिंह के कमरे में उस औरत जात का आना वर्जित है जो हवेली के बाहर की पैदाइश हो?"

"जी नहीं।" उसने पूरी बेबाकी के साथ कहा____"हमें तो कुसुम ने ऐसा कुछ भी नहीं बताया। वैसे आपके कमरे में किसी औरत जात का आना क्यों वर्जित है भला?"

"मेरा ख़याल है कि तुम्हें अपने इस सवाल का जवाब मुझसे नहीं।" मैंने उसकी कजरारी आंखों में देखते हुए कहा____"बल्कि हवेली में मौजूद किसी और व्यक्ति से मांगना चाहिए। तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं कि इसके लिए तुम्हें ज़्यादा तकलीफ़ उठाने की ज़रूरत भी नहीं पड़ेगी। तुम जिससे पूछोगी वही तुम्हें विस्तार से सब कुछ बता देगा। ख़ैर, लाओ चाय दो, मुझे सच में ठंडी चीज़ों का शौक नहीं है।"

मेरी बात सुन कर उसने मेरी तरफ ट्रे को बढ़ाया और इसके लिए उसे फिर से झुकना पड़ा किंतु इस बार मैंने उसकी चोली में से झांकती छातियों की तरफ नहीं देखा। ये देख उसके होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई।

"एक बात पूछें आपसे?" उसने सीधा खड़े होते हुए कहा तो मैंने उसकी तरफ देखते हुए पलकें झपका कर इशारा कर दिया कि वो पूछ ले।

"आपको ठंडी चीज़ों का शौक नहीं है।" उसने पूरी निडरता से मेरी आंखों में देखते हुए कहा____"तो क्या गरम चीज़ों का भी शौक नहीं है?"

"क्या मतलब?" मैं उसकी बात सुन कर एकदम से चौंका।
"सोचिए।" उसने मुस्कुराते हुए बड़ी अदा से कहा____"अच्छा अब हम चलते हैं....छोटे कुंवर जी।"

कहने के साथ ही वो हवा के झोंके की तरह कमरे से बाहर निकल गई। मेरी तरफ से जैसे वो कुछ भी सुनना ज़रूरी नहीं समझी थी। उसकी बातों के साथ साथ उसके यूं चले जाने पर मेरे ज़हन में बस एक ही बात आई कि ज़रूर भेजा खिसका हुआ है इस लड़की का।


━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
सबसे पहले तो बहुत बहुत धन्यवाद कहानी को पुनः प्रारंभ करने के लिए और आप patience बना कर रखिएगा, क्योंकि हो सकता है की बाकी readers को 2–3 का समय लग जाए जानने में की कहानी पुनः प्रारंभ हो गई है।

वैभव ने सरोज को वादा कर तो दिया लेकिन मुझे ये नही समझ आ रहा की एक साथ दोनो से कैसे शादी करेगा और दूसरी बात वैभव में कब इतना guts आएगा की वो जाकर अपने और अनुराधा के बारे में बता पाएगा।

रही बात अनुराधा की तो फिलहाल तो वो अभी अपनें alice in wonderland में है जहा सब कुछ वैसा ही हो रहा है जैसा वो चाहती है। अब देखते है ये कब तक चलता और कब वो reality में वापस आयेगी।

और ये कजरी, ये तो बहुत ज्यादा चंट है, अगर ये वैभव से 6 महीना पहले मिली होती तो अब वैभव बिस्तर पर लेटा दिया होता, पर उसकी किस्मत अच्छी है की वैभव की जिंदगी अब 3–3 लड़की है।

दादा ठाकुर का तजुर्बा काम आया, उन्होंने एक मिनिट में सुनील और चेतन के झूठ पकड़ लिया।

फिलहाल रघुवीर के कातिल के बारे कुछ कहना गलत होगा, लेकिन हो सकता है की ये रजनी का काम हो बाकी तो इस राज के खुलने की प्रतीक्षा रहेगी।

आगे ऐसे अदभुद अपडेट की प्रतीक्षा में
बाकी तो स्वस्थ रहे मस्त रहे ❣️
 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
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158
अध्याय - 94
━━━━━━༻♥༺━━━━━━


थोड़ी ही देर में विभोर और अजीत बाहर आ गए तो मैं जीप में उन दोनों को बैठा कर खेतों की तरफ निकल गया। आसमान में काले बादलों ने अच्छा खासा अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। प्रतीत होता था कि आज वो जम के बरसेंगे।


अब आगे....



अनुराधा रसोई में दोपहर का खाना बना के अपनी मां सरोज के आने की प्रतीक्षा कर रही थी। उसका छोटा भाई अनूप खाना खाने के बाद बरामदे में ही अपने मिट्टी के खिलौनों के साथ खेल रहा था जबकि अनुराधा बरामदे में रखी चारपाई पर सोचो में गुम बैठी थी।

सरोज अनुराधा को बता कर गई थी कि वो वैभव से मिलने उसके गांव जा रही है। अपनी मां की ये बात सुन कर अनुराधा की धड़कनें एकाएक ही थम गईं थी। उसे ये सोच कर घबराहट सी होने लगी थी कि उसकी मां वैभव से जाने क्या क्या कहेगी? हालाकि अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर अनुराधा ने अपनी मां से बस इतना ही कहा था कि वो वैभव को कुछ भी उल्टा सीधा न बोले। जवाब में सरोज ने उसे तीखी नज़रों से देखा था और फिर बिना कुछ कहे ही घर से बाहर निकल गई थी। उसके जाते ही अनुराधा की हालत ख़राब होने लगी थी।

अपनी मां के जाने के बाद वो बेमन से रसोई में जा कर दोपहर का खाना बनाने लगी थी। वो खाना ज़रूर बना रही थी लेकिन उसका पूरा ध्यान अपनी मां पर ही था और इस बात पर भी कि जाने अब क्या होगा? किसी तरह खाना बना तो उसने सबसे पहले अपने छोटे भाई को खिलाया और फिर बरामदे में रखी चारपाई पर बैठ कर वो अपनी मां के आने का इंतजार करने लगी थी।

जैसे जैसे वक्त गुज़र रहा था वैसे वैसे अनुराधा की हालत और भी ख़राब होती जा रही थी। उसने सैकड़ों बार मन ही मन ऊपर वाले को याद कर के उनसे सब कुछ अच्छा होने की प्रार्थना की थी। जब से उसका भेद उसकी मां के सामने खुला था तभी से वो इस बारे में चिंतित थी। हालाकि ये कहना भी ग़लत न होगा कि भुवन की वजह से वो अपनी मां को सब कुछ बता पाई थी और इसी के चलते उसके अंदर का बोझ और उसकी तड़प कुछ हद तक कम हो गई थी। उस वक्त तो उसे थोड़ा चैन भी मिल गया था जब उसने भुवन के द्वारा ये सुना था कि वैभव भी शायद उससे प्रेम करता है क्योंकि उसकी तकलीफ़ से वैभव को भी तकलीफ़ होती है। भुवन के अनुसार ऐसा तभी होता है जब कोई व्यक्ति किसी से प्रेम करता है। अनुराधा को ये जान कर अत्यंत खुशी हुई थी लेकिन अब जबकि सब कुछ जानने के बाद उसकी मां वैभव से मिलने गई थी तो उसके मन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे थे जिसके चलते उसकी हालत ख़राब होती जा रही थी।

आख़िर बड़ी मुश्किल से वक्त गुज़रा और बाहर के दरवाज़े को खोल कर उसकी मां अंदर दाख़िल होती हुई नज़र आई। सरोज को देखते ही उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं और वो एकदम से ब्याकुल और बेचैन सी नज़र आने लगी। उधर सरोज ने अंदर आने के बाद पलट कर दरवाज़ा अंदर से बंद किया और फिर नर्दे के पास जा कर अपने हाथ पैर धोने लगी।

अनुराधा ने देखा कि उसकी मां ने उसे देखने के बाद भी कुछ नहीं बोला तो उसकी धड़कनें फिर से थमती हुई प्रतीत हुईं। वो अपनी मां से फ़ौरन ही सब कुछ जान लेना चाहती थी लेकिन उससे पूछने की वो चाह कर भी हिम्मत न जुटा सकी। जब उसे कुछ न समझ आया तो वो चारपाई से जल्दी से उठी और रसोई में जा कर अपनी मां के लिए खाने की थाली सजाने लगी। मन में तरह तरह के ख़याल बुनते हुए उसने जल्दी से थाली तैयार की और फिर उसे ले कर बरामदे में आ गई।

उधर सरोज अपने हाथ पैर धोने के बाद बरामदे में आई और एक बोरी को दीवार से सटा कर रखने के बाद उसमें बैठ गई। वो जैसे ही बैठी तो अनुराधा ने खाने की थाली को चुपचाप उसके सामने रख दिया। उसके बाद जल्दी ही उसने एक लोटे में पानी भी ला कर मां के सामने रख दिया।

"अनूप को खाना खिलाया कि नहीं तूने?" रोटी का एक निवाला तोड़ते हुए सरोज ने अनुराधा से पूछा।

"ह...हां मां।" अनुराधा ने खुद को सम्हालते हुए झट से कहा____"उसे तो बहुत पहले ही खिला दिया था मैंने। बस तुम्हारे ही आने की प्रतीक्षा कर रही थी।"

"हम्म्म्म।" सरोज ने रोटी के निवाले को मुंह में डालने के बाद उसे चबाते हुए कहा____"और तूने खाया?"

"वो मैं तुम्हारे आने की प्रतीक्षा कर रही थी।" अनुराधा ने धड़कते दिल से कहा____"मैंने सोचा जब तुम आ जाओगी तो साथ में ही खाऊंगी।"

"अरे! तुझे खा लेना चाहिए था।" सरोज ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा____"मुझे वापस आने में समय तो लग ही जाना था। ख़ैर जा तू भी खा ले। मुझे अब कुछ नहीं चाहिए।"

अनुराधा पूछना तो बहुत कुछ चाहती थी लेकिन उसकी हिम्मत न पड़ी इस लिए बेमन से वो पलटी और रसोई की तरफ बढ़ गई। कुछ ही देर में वो अपने लिए थाली में खाना ले कर आ गई और अपनी मां के पास ही चुपचाप बैठ गई। उसने एक नज़र सरोज पर डाली तो उसे आराम से खाना खाते हुए पाया। उसे समझ न आया कि उसकी मां इतना आराम से कैसे खाना खा रही थी? उसके अनुसार तो उसे गुस्से में नज़र आना चाहिए था।

अनुराधा का बहुत जी चाह रहा था कि वो अपनी मां से पूछे लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। दूसरे उसे झिझक के साथ साथ शर्म भी महसूस हो रही थी कि उसके पूछने पर उसकी मां उसके बारे में जाने क्या सोचेगी। वो बस मन ही मन दुआ कर रही थी कि मां खुद ही सब कुछ बता दे।

"वैसे मिल आई हूं वैभव से।" अनुराधा के कानों में उसकी मां की आवाज़ पड़ी तो वो एकदम से चौंकी और उसने अपनी मां की तरफ देखा। मन ही मन उसने ऊपर वाले को धन्यवाद दिया कि उसने उसकी दुआ सुन ली। उधर सरोज ने बिना उसकी तरफ देखे ही सपाट भाव से कहा____"मुझे तो पूरा यकीन था कि उसने तुझे भी बाकी लड़कियों की तरह अपने जाल में फांस रखा रहा होगा लेकिन उसकी बातें सुनने के बाद एहसास हुआ कि मैं ग़लत थी।"

अनुराधा की धड़कनें एकदम से मंद मंद चलने लगीं थी। सरोज के चुप होते ही उसने पूछना चाहा कि आख़िर वैभव ने उससे क्या बातें की लेकिन मारे झिझक और शर्म के पूछ न सकी। बस हलक में सांसें अटकाए और आस भरी नज़रों से देखती रही अपनी मां को। किंतु जब काफी देर गुज़र जाने पर भी सरोज ने आगे कुछ न कहा तो जैसे अनुराधा के सब्र का बांध टूट गया और उसकी सारी झिझक तथा शर्म छू मंतर सी हो गई।

"अ...आख़िर ऐसा क्या कहा तुमसे छोटे कुंवर ने मां?" अनुराधा ने दबी आवाज़ में पूछा।

अनुराधा के यूं पूछने पर सरोज ने मुंह में लिए निवाले को चबाना बंद कर उसकी तरफ अजीब भाव से देखा तो अनुराधा एकदम से सिमट गई और उसकी नज़रें झुक गईं। ये देख सरोज मन ही मन मुस्कुरा उठी किंतु अगले ही पल उसके अंदर एक टीस सी उभरी, ये सोच कर कि वो कौन सी मनहूस घड़ी थी जब उसने वैभव के साथ नाजायज़ संबंध बना लिया था। काश! उसे पता होता कि आगे चल कर उसी वैभव से उसकी बेटी प्रेम करने लगेगी और वैभव उससे ब्याह करने का उसको वचन भी देगा।

सरोज को इस बात के चलते बहुत बुरा महसूस हो रहा था मगर वो भी जानती थी कि होनी तो हो चुकी है इस लिए अब उसके बारे में सोच कर दुखी होने से या बुरा महसूस होने से भला क्या होगा? उसने मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि अब से वो वैभव के बारे में कभी भूल से भी ग़लत ख़याल अपने ज़हन में नहीं आने देगी। आख़िर वो उसका होने वाला दामाद था और वो उसकी होने वाली सास जोकि मां समान ही होती है।

"बात ये थी कि मैं तेरे जीवन को बर्बाद होते नहीं देख सकती थी।" फिर सरोज ने अनुराधा से नज़र हटाने के बाद कहा____"इस लिए मैंने उससे साफ शब्दों में बातें की और ये निश्चित किया कि उसकी वजह से तेरा जीवन आबाद हो, ना कि बर्बाद।"

सरोज की बातें अनुराधा के कानों में ज़रूर पड़ीं लेकिन उसकी समझ में कुछ न आया। इस लिए उसने सिर उठा कर फिर से अपनी मां की तरफ देखा। इस बार उसे ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा।

"इतना तो उसने भी बताया कि वो भी तुझसे वैसे ही प्रेम करता है जैसे तू उससे करती है।" सरोज ने कहा____"लेकिन अपनी बेटी के सुखी जीवन की खातिर मेरे लिए इतना सुन लेना काफी नहीं था। सिर्फ प्रेम करने से तो तेरा जीवन नहीं संवर सकता था ना इस लिए मुझे उसके मुख से वो सुनना था जिसके चलते तेरा जीवन हमेशा के लिए सुखी भी हो जाए।"

अनुराधा को मानो अभी भी कुछ समझ नहीं आया। वो सोचने लगी कि आज उसकी मां ये कैसी अजीब अजीब बातें कर रही है?

"जब मैंने वैभव से इस संबंध में बातें की तो उसने आख़िर वो कह ही दिया जो मैं सुनना चाहती थी और जिसके चलते मैं चिंता से मुक्त हो सकती थी।" सरोज ने कहा____"उसने साफ शब्दों में मुझसे कहा है कि वो तुझसे ब्याह करेगा और इस बात का उसने मुझे वचन भी दिया है।"

सरोज की ये बात सुन कर अनुराधा के दिलो दिमाग़ में पलक झपकते ही मानो धमाका सा हुआ। आश्चर्य से उसकी आंखें फैल गईं। वो किसी बुत की तरह चकित अवस्था में अपनी मां को देखती रह गई। फिर अचानक ही जैसे उसे होश आया तो उसने महसूस किया कि उसकी धड़कनें धाड़ धाड़ कर के बजने लगीं हैं जिनकी धमक उसे अपने कानों में गूंजती महसूस हो रही हैं।

बिजली की तरह उसके मन में ये बात बैठ गई कि वैभव उसके साथ ब्याह करेगा। उसने मन ही मन चकित भाव से कहा_____'हाय राम! क्या सच में ऐसा हो सकता है? किंतु ऐसा तो मैंने सोचा ही नहीं था।'

अनुराधा अपना खाना पीना भूल कर अगले कुछ ही पलों में जाने कौन सी दुनिया में गोता लगाने लगी। उसके दिलो दिमाग़ में उथल पुथल सी मच गई थी जिसे रोकना अथवा सम्हालना जैसे उसके बस में ही नहीं रह गया था। अचानक ही उसकी आंखों के सामने रंग बिरंगे कुछ ऐसे चित्र घूमने लगे जिन्हें देख कर उसका चेहरा खुशी से चमकता नज़र आया मगर फिर एकाएक ही उसके उस चमकते चेहरे पर लाज की सुर्खी भी छाती नज़र आई। उसकी नज़रें झुकती चली गईं। बार बार गुलाबी होठों पर एक गहरी मुस्कान थिरकने लगी जिसे वो जी तोड़ कोशिश कर के छुपाने की कोशिश करने लगी। उसका मन किया कि वो फ़ौरन ही खाना पीना छोड़ कर भागते हुए अपने कमरे में पहुंच जाए और फिर अकेले में वो खुशी के मारे उछलना कूदना शुरू कर दे। अपनी हालत को काबू करने का प्रयास करते हुए एकाएक वो उठने ही लगी थी कि तभी....

"अरे! कहां जा रही है?" सरोज ने उसे देखते हुए मानों टोका_____"पहले ठीक से खाना तो खा ले। उसके बाद अपने कमरे में जा कर खुशियां मना लेना।"

मां की ये बात सुन कर अनुराधा शर्म से मानो पानी पानी हो गई। उसके ज़हन में बिजली की तरह ख़याल उभरा कि उसकी मां को उसकी हालत के बारे में इतना अच्छे से कैसे पता चल गया? उसमें नज़र उठा कर मां की तरफ देखने की हिम्मत न हुई। खुद को समेटे वो किसी तरह वापस बैठ गई और फिर सिर झुकाए ही चुपचाप खाना खाने लगी। उधर सरोज उसकी ये हालत देख कर मन ही मन मुस्कुरा उठी। वो सोचने लगी कि सच में उसकी बेटी अब जवान हो गई है।

खुशी के मारे अनुराधा से कुछ खाया ही नहीं जा रहा था लेकिन खाना खाना उसकी मजबूरी थी इस लिए मजबूरन उसे किसी तरह खाना ही पड़ा। बड़ी मुश्किल से उसका खाना ख़त्म हुआ। सरोज खा चुकी थी और अब वो बरामदे में रखी चारपाई पर आराम करने के लिए लेट गई थी। इधर अनुराधा झट से उठी और अपनी तथा मां की थाली को उठा कर उसे नर्दे के पास रख दिया। उसके बाद वो लगभग दौड़ते हुए अपने कमरे की तरफ भागती चली गई।

कमरे में आ कर उसने सबसे पहले दरवाज़ा अंदर से बंद किया और फिर चारपाई पर पीठ के बल लेट कर अपनी आंखें बंद कर ली। होठों पर उभर आई मुस्कान के साथ उसने पहली बार चैन की लंबी सांस ली। अगले ही पल उसकी बंद पलकों में वैभव का मनमोहक चेहरा उभर आया और वो उसके साथ जाने कैसे कैसे ख़्वाब बुनने लगी। उसे पता ही न चला कि कब उसकी दोनों आंखों की कोरों से खुशी के आंसू निकल कर उसकी कनपटी को छूते हुए चारपाई में बिछी चादर पर फ़ना हो गए।

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जैसा कि आसमान में छाए बादलों को देख कर ही प्रतीत हुआ था कि बारिश होगी तो बिल्कुल वैसा ही हुआ। शाम होने में थोड़ा वक्त था जब बारिश शुरू हुई। सारे मजदूर भाग कर मकान में आ गए। मैं, विभोर और अजीत जीप से वापस हवेली जाने का सोच रहे थे किंतु भुवन ने मुझे रोक लिया, ये कह कर कि तेज़ बारिश में जाना ठीक नहीं है। एक तो कच्चा रास्ता दूसरे बारिश के चलते कीचड़ जिसकी वजह से तेज़ बारिश में जीप चलाना उचित नहीं था। भुवन की बात मान कर मैं तखत पर बैठ गया था।

सारे मजदूरों को देखते हुए अचानक मेरे मन में एक विचार आया जिसके बारे में सोचने से मुझे काफी अलग सा महसूस हुआ और साथ ही एक खुशी का आभास भी हुआ। मैंने निश्चय कर लिया कि अपने मन में उठे इस विचार पर ज़रूर अमल करूंगा।

ख़ैर आधा घंटा तेज़ बारिश हुई। एक बार फिर से खेतों में पानी नज़र आने लगा था। बारिश रुकी नहीं थी क्योंकि हल्की हल्की फुहारें अभी भी आसमान से ज़मीन पर गिर रहीं थी। कच्चा रास्ता पहले से और भी ज़्यादा ख़राब नज़र आने लगा था लेकिन जाना तो था ही इस लिए विभोर और अजीत को ले कर मैं जीप में बैठा और फिर उसे स्टार्ट कर हवेली की तरफ निकल गया।

जब मैं हवेली पहुंचा तो सूरज पूरी तरह डूब चुका था और शाम का धुंधलका छा गया था। हाथ पांव धो कर मैं अपने कमरे में आ गया। कपड़े उतार कर मैंने नीचे गमछा लपेट लिया, जबकि ऊपर बनियान थी। बारिश होने की वजह से बिजली गुल हो गई थी मगर लालटेन का पीला प्रकाश कमरे में फैला हुआ था। मेरी लाडली बहन को मेरा बहुत ख़्याल रहता था। बिजली के न रहने पर अक्सर शाम को वो मेरे कमरे की लालटेन जला कर चली जाती थी।

मैं पलंग पर आराम करने के लिए लेटने ही वाला था कि तभी खुले दरवाज़े से किसी के अंदर आने की आहट हुई। मुझे लगा कुसुम होगी इस लिए अपने अंदाज़ में दरवाज़े की तरफ चेहरा कर के मैं अभी कुछ बोलने ही वाला था कि आने वाले व्यक्ति पर नज़र पड़ते ही मैं चुप रह गया।

एक अजनबी लड़की को अकेले मेरे कमरे में दाख़िल होता देख मैं एकदम से चौंक पड़ा। मेरी नज़रें उस पर ही जम गईं। उधर वो जैसे ही मेरे क़रीब आई तो लालटेन की रोशनी में मुझे उसकी शक्लो सूरत स्पष्ट नज़र आई और सच तो ये था कि मैं अपलक उसे देखता ही रह गया। इतना तो मैं समझ गया था कि ये वही लड़की है जिसके बारे में कुसुम ने मुझे बताया था किंतु वो इतनी आकर्षक होगी इसकी उम्मीद नहीं थी मुझे। हालाकि मेरी लाडली बहन के आगे वो कुछ भी नहीं थी किंतु अगर उसको अलग दृष्टि से देखा जाए तो वो बहुत कुछ थी।

कुसुम ने सही कहा था वो उसके ही उमर की थी। जिस्म एकदम नाज़ुक सा किंतु एकदम सांचे में ढला हुआ। घाघरा चोली पहने हुए थी वो जिसके चलते उसके पेट का हिस्सा साफ दिख रहा था। पेट में मौजूद उसकी नाभी को देख मेरे अंदर हलचल सी होने लगी थी। चोली में ढंकी उसकी छातियां एकदम तनी हुईं थी। सुराहीदार गले के ऊपर उसका ताज़े खिले गुलाब की मानिंद चेहरा एक अलग ही तरह से मुझे आकर्षित करने लगा था। उस पर उसकी बड़ी बड़ी किंतु गहरी आंखें जो काजल लगा होने की वजह से और भी क़ातिल लग रहीं थी।

"न...नमस्ते छोटे कुंवर।" उसकी खनकती आवाज़ से मैं एकदम से ही आसमान से ज़मीन पर आया और थोड़ा हड़बड़ा कर उसकी तरफ देखा। फिर मैंने जल्दी ही खुद को सम्हालते हुए उसके नमस्ते का जवाब दिया।

मैंने देखा उसके हाथ में पीतल का ट्रे था जिसमें चाय का एक कप और ग्लास में पानी रखा हुआ था। वो थोड़ा और मेरे क़रीब आई और फिर मुस्कुराते हुए झुक कर मेरी तरफ ट्रे को बढ़ाया तो अनायास ही मेरी गुस्ताख़ नज़रें उसकी चोली के बड़े गले में से अचानक ही उजागर हो ग‌ए दो पर्वत शिखरों पर जा पड़ीं। मुझे पूरा यकीन था कि अगर वो थोड़ा और झुक जाती तो उसकी छातियां और भी ज़्यादा मेरी नज़रों के सामने उजागर हो जातीं। उसकी छातियों के बीच की गहरी दरार देख मेरा हलक सूख गया और साथ ही मेरे समूचे जिस्म में सिहरन सी दौड़ गई।

"हाय राम!" तभी मैं उसकी खनकती आवाज़ से चौंक पड़ा और साथ ही हड़बड़ा भी गया। मैंने झटके से उसकी तरफ देखा तो वो एकदम से सीधा खड़ी हो गई। उसके चहरे पर शर्म की हल्की लाली छा गई थी। मैं समझ गया कि उसे पता चल गया है कि मैं उसकी छातियां देख रहा था।

"आप तो बड़े ख़राब और बदमाश हैं छोटे कुंवर।" फिर उसने मुझे एक अलग ही अदा से घूरते हुए कहा____"भला कोई किसी लड़की को ऐसे देखता है क्या?"

"व...वो...वो माफ़ करना मुझे।" मुझसे कुछ कहते ना बना।

हालाकि मैं ये सोच कर एकदम से चौंक भी पड़ा कि मैं किसी लड़की के सामने इस तरह से कैसे हड़बड़ा गया और तो और उससे माफ़ी भी मांग बैठा। उधर मेरी बात सुन कर अचानक ही वो खिलखिला कर हंसने लगी। ऐसा लगा जैसे पूरे कमरे में घंटियां बज उठीं हों। मैं भौचक्का सा तथा मूर्खों की तरह उसे हंसते हुए देखने लगा। मेरे जीवन में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि मैं किसी लड़की के सामने इस तरह से असहज हो गया होऊं।

"अरे! लगता है आप डर गए हमसे।" फिर उसने अपनी हंसी को रोक कर किंतु मुस्कुराते हुए कहा____"अगर ये सच है तो फिर हम यही कहेंगे कि कुसुम ने आपके बारे में हमें ग़लत बताया था। ख़ैर छोड़िए, लीजिए चाय पीजिए नहीं तो ये ठंडी हो जाएगी। वैसे आप ठंडी चीज़ के शौकीन तो नहीं होंगे न?"

मतलब हद ही हो गई। एक लड़की जो मेरे लिए अजनबी थी और मैं उसके लिए वो इतनी बेबाकी से मुझसे बातें कर रही थी? इतना ही नहीं मेरे जैसे सूरमा को अपनी बातों तथा हरकतों से एकदम अवाक सा कर चुकी थी। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि आख़िर ये क्या बला है?

"बहुत खूब।" मैं जो अब तक उसके बारे में एक राय बना कर सम्हल चुका था बोला____"बहुत ही दिलचस्प। वैसे, क्या कुसुम ने तुम्हें बताया नहीं कि ठाकुर वैभव सिंह के कमरे में उस औरत जात का आना वर्जित है जो हवेली के बाहर की पैदाइश हो?"

"जी नहीं।" उसने पूरी बेबाकी के साथ कहा____"हमें तो कुसुम ने ऐसा कुछ भी नहीं बताया। वैसे आपके कमरे में किसी औरत जात का आना क्यों वर्जित है भला?"

"मेरा ख़याल है कि तुम्हें अपने इस सवाल का जवाब मुझसे नहीं।" मैंने उसकी कजरारी आंखों में देखते हुए कहा____"बल्कि हवेली में मौजूद किसी और व्यक्ति से मांगना चाहिए। तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं कि इसके लिए तुम्हें ज़्यादा तकलीफ़ उठाने की ज़रूरत भी नहीं पड़ेगी। तुम जिससे पूछोगी वही तुम्हें विस्तार से सब कुछ बता देगा। ख़ैर, लाओ चाय दो, मुझे सच में ठंडी चीज़ों का शौक नहीं है।"

मेरी बात सुन कर उसने मेरी तरफ ट्रे को बढ़ाया और इसके लिए उसे फिर से झुकना पड़ा किंतु इस बार मैंने उसकी चोली में से झांकती छातियों की तरफ नहीं देखा। ये देख उसके होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई।

"एक बात पूछें आपसे?" उसने सीधा खड़े होते हुए कहा तो मैंने उसकी तरफ देखते हुए पलकें झपका कर इशारा कर दिया कि वो पूछ ले।

"आपको ठंडी चीज़ों का शौक नहीं है।" उसने पूरी निडरता से मेरी आंखों में देखते हुए कहा____"तो क्या गरम चीज़ों का भी शौक नहीं है?"

"क्या मतलब?" मैं उसकी बात सुन कर एकदम से चौंका।
"सोचिए।" उसने मुस्कुराते हुए बड़ी अदा से कहा____"अच्छा अब हम चलते हैं....छोटे कुंवर जी।"

कहने के साथ ही वो हवा के झोंके की तरह कमरे से बाहर निकल गई। मेरी तरफ से जैसे वो कुछ भी सुनना ज़रूरी नहीं समझी थी। उसकी बातों के साथ साथ उसके यूं चले जाने पर मेरे ज़हन में बस एक ही बात आई कि ज़रूर भेजा खिसका हुआ है इस लड़की का।


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Superb update bro 👌
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Sanju@

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अध्याय - 93
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"वो कल दोपहर तक यहां आ जाएंगे।" पिता जी ने कहा____"तुम एक दो लोगों को ले जा कर हवेली के पूर्वी हिस्से वाले दो कमरों की साफ सफाई करवा देना। हमें भी एक ज़रूरी काम से कहीं जाना है।"

पिता जी के कहने पर मैंने सिर हिलाया और बैठक से बाहर आ गया। हवेली में काम करने वाले दो मुलाज़िमों को ले कर मैं हवेली के पूर्वी हिस्से की तरफ बढ़ चला। बंद पड़े कमरों को खोल कर दोनों मुलाज़िमों को उनकी बढ़िया से सफ़ाई करने के लिए बोल दिया। उसके बाद मैं नीचे आ गया। नीचे आ कर मैं मां से मिला। उन्हें बताया कि जब दोनों मुलाज़िम कमरों की सफ़ाई कर के आएं तो उन दोनों कमरों में पोंछा लगाने के लिए वो किसी नौकरानी को भेज दें।



अब आगे....


अगले दिन सुबह नाश्ता पानी कर के मैं खेतों की तरफ चल पड़ा। गांव में क्योंकि चंद्रकांत के बेटे की किसी ने हत्या कर दी थी इस लिए हर तरफ उसी की चर्चा थी। मेरे ज़हन में भी ये सवाल चकरा रहा था कि आख़िर रघुवीर को किसने पेल दिया होगा? काफी दिमाग़ लगाने के बाद भी समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा किसने किया होगा? ज़हन में ये ख़याल भी आता था कि कहीं सच में रूपचंद्र ने तो उसकी हत्या नहीं की होगी? संभव है कि रजनी की बातों से वो सच में गुस्से से इस क़दर पगला गया हो कि रजनी को सबक सिखाने के लिए उसने उसके पति की हत्या कर दी हो? किंतु अगले ही पल मुझे अपना ये ख़याल जमता हुआ प्रतीत नहीं होता था क्योंकि रूपचंद्र से मुझे ऐसे किसी कर्म की ज़रा भी आशा नहीं थी। वो बुरा इंसान ज़रूर था लेकिन रघुवीर की हत्या करेगा ऐसा बिल्कुल नहीं लगता था।

वो मेरी हत्या करने का ख़्वाइशमंद ज़रूर था किंतु अब तो वो भी संभव नहीं था क्योंकि उसकी बहन रूपा के साथ मेरे ब्याह की बात पक्की हो चुकी थी और अब वो ऐसा कुछ करने का सोच भी नहीं सकता था। वो मुझसे सिर्फ इस बात से नफ़रत करता था क्योंकि उसकी नज़र में मैंने उसकी बहन को बर्बाद किया था और अब जबकि उसकी बहन से मेरा ब्याह होना ही पक्का हो गया था तो उसकी नाराज़गी अथवा नफ़रत स्वतः ही दूर हो जानी थी।

साहूकारों के घर के सामने से निकला तो अनायास ही मेरी नज़र उनके दरवाज़े की तरफ चली गई किंतु बाहर किसी को ना देख मैं आगे बढ़ गया। ये अलग बात है कि जाने क्या सोच कर मेरी धड़कनें थोड़ा तेज़ हो गईं थी। थोड़ा आगे आया तो मुंशी चंद्रकांत का घर आ गया। उसके घर के बाहर और तो कोई न दिखा किंतु चंद्रकांत की बेटी कोमल दिख गई। वो घर के बाहर ही दरवाज़े के बगल से बनी चबूतरेनुमा पट्टी पर गुमसुम सी बैठी थी। मोटर साईकिल की आवाज़ सुनते ही जैसे वो ख़यालों से बाहर आई और फिर उसकी नज़र मुझ पर पड़ी। आज काफी समय बाद उसे देख रहा था मैं। कितना बदल गई थी वो। ऐसा लग रहा था जैसे पहले से ज़्यादा जवान और सुंदर दिखने लगी थी वो।

मुझ पर नज़र पड़ते ही वो एकदम से सम्हल कर बैठ गई और साथ ही घबरा कर जल्दी से इधर उधर देखने लगी। एक वक्त था जब मेरे मन में उसे भोगने की इच्छा थी किंतु अब उसके बारे में ऐसा कुछ महसूस ही नहीं हुआ मुझे। मुझे खुद इस बात पर हैरानी हुई किंतु फिर जल्दी ही मुझे एहसास हुआ कि इसकी वजह शायद अनुराधा से मेरा प्रेम करना हो सकता है या फिर भाभी को दिया हुआ वचन हो सकता है, या फिर इसकी वजह वो हो सकती है जो पिछले कुछ समय से हमारे साथ हुआ था।

मैं उससे नज़र हटा कर सीधा निकल गया। जल्दी ही मैं अपने खेतों पर पहुंच गया। खेतों पर बने मकान के सामने जैसे ही मैं पहुंचा तो मकान के बाहर बरामदे में सरोज काकी को देख मैं चौंक गया। मेरे मन में सवाल उभरा कि काकी अपने गांव से हमारे गांव इतनी दूर मेरे खेत वाले मकान में किस लिए आ कर बैठी है? जाने क्यों मेरे मन में किसी अनहोनी की आशंका हुई और मैं एकदम से फिक्रमंद हो उठा। तभी मोटर साइकिल की आवाज़ सुन कर भुवन भी वहीं पर आ गया। भुवन ने मुझे सलाम किया, इधर मैं मोटर साईकिल खड़ी कर के बरामदे में आया। सरोज काकी ने मुझे पहले ही देख लिया था इस लिए वो उठ कर खड़ी हो गई थी।

"क्या बात है काकी?" मैंने फिक्रमंदी से उसके क़रीब पहुंचते हुए पूछा____"आप इतनी दूर यहां क्या कर रही हैं? सब ठीक तो है ना?"

मेरी बात सुन कर काकी ने कुछ बोलने से पहले भुवन की तरफ देखा। भुवन ने उसे देख कर हल्के से सिर हिलाया और फिर वापस चला गया। मुझे थोड़ा अजीब लगा किंतु मैंने इस बारे में कुछ नहीं कहा बल्कि अपने सवाल के जवाब की आशा में काकी के पास ही बैठ गया।

"बात क्या है काकी?" मैंने व्याकुलतावश फिर से पूछा____"तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही हो? सब ठीक तो है ना?"

"क्या बताऊं वैभव?" काकी ने गंभीरता से गहरी सांस ली____"कुछ समझ में ही नहीं आ रहा कि तुम्हें क्या बताऊं और कैसे बताऊं?"

"आख़िर बात क्या है?" मैं उसके इस तरह बोलने पर और भी फिक्रमंद हो उठा____"आज तुम्हारे चेहरे पर चिंता के भाव क्यों दिखाई दे रहे हैं? अगर कोई समस्या हो गई है तो तुम मुझे बेझिझक बताओ। तुम जानती हो कि मैं तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के लिए बिना सोचे समझे कुछ भी कर जाऊंगा।"

"यही तो ग़लत किया है तुमने।" काकी ने अजीब भाव से मुझे देखा____"तुम्हें बिना सोचे समझे कुछ भी नहीं करना चाहिए था। ख़ास कर हम जैसे ग़रीब लोगों के साथ।"

"यूं पहेलियों में बातें न करो काकी।" मैंने बेचैन भाव से कहा____"साफ साफ बताओ कि आख़िर हुआ क्या है? मैंने ऐसा क्या कर दिया है बिना सोचे समझे?"

"मेरी भोली भाली बेटी के हृदय में तुमने अपने प्रति कोमल भावनाएं जगा देने का काम किया है वैभव।" काकी ने सहसा हताश हो कर कहा____"उसके दिल में अपने प्रति तुमने प्रेम के ऐसे भाव उत्पन्न कर दिए हैं जिसके चलते मेरी बेटी का जीवन उजाड़ सा हो गया है। क्यों वैभव? आख़िर क्यों तुमने मेरी नासमझ और नादान बेटी के साथ इस तरह का खेल खेल लिया? क्या तुम्हें ज़रा भी इस बात का ख़याल नहीं आया कि इस सबके बाद मेरी बेटी का क्या होगा?"

सरोज काकी की बातें सुन कर मुझे एकदम से झटका लगा। मैं अंदर ही अंदर ये सोच कर भी हैरान हुआ कि काकी को इस बारे में कैसे पता चल गया? हालाकि उसको एक दिन तो इस बात का पता चलना ही था किंतु इतना जल्दी पता चल जाएगा ये उम्मीद नहीं थी मुझे। मैंने एक गहरी सांस ली।

"तुम ग़लत समझ रही हो काकी।" फिर मैंने गंभीरता से कहा____"मैंने तुम्हारी बेटी के साथ कोई खेल नहीं खेला। सच तो ये है कि जो कुछ हुआ है वो सब उस विधाता का ही मायाजाल था। उसने मुझ जैसे चरित्र हीन लड़के को बदलने के लिए तुम्हारी बेटी को चुना। हां काकी, तुम्हारी उस बेटी को जिसकी सादगी और मासूमियत में जाने ऐसी क्या बता थी कि मैं चाह कर भी उसे अपनी हवस का शिकार नहीं बना सका। शुरुआत में तो मैं खुद पर इसके लिए चकित होता था किंतु फिर जैसे आदत पड़ गई। उसके बाद तो फिर ऐसा हुआ कि तुम्हारी बेटी के प्रति मेरे दिल में खुद ही कोमल भावनाएं जागने लगीं। उससे बातें करना अच्छा लगने लगा। उसकी हर अदा दिलो दिमाग़ में घर करती चली गई। आज आलम ये है कि मेरे दिल में अनुराधा के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रेम है। मेरा दिल हर पल उसकी खुशी की दुआएं मांगता है।"

"क्या तुम मुझे अपनी इन चिकनी चुपड़ी बातों से बहलाना चाहते हो?" सरोज ने पूर्व की भांति ही आहत भाव से कहा____"मगर मैं बहलने वाली नहीं हूं। मैं तुमसे विनती करती हूं कि मेरी नादान और नासमझ बेटी को बर्बाद करने का मत सोचो और ना ही उसे ऐसे भ्रम में डालो जिसमें फंस कर वो एक दिन टूट कर बिखर जाए।"

"तुम अब भी मुझे ग़लत ही समझ रही हो काकी।" मैंने बेबस भाव से कहा____"शायद इस लिए क्योंकि तुम्हारी नज़र में मेरी छवि अच्छी नहीं है। मैं मानता हूं कि मेरे जैसे गंदे चरित्र वाले लड़के के साथ कोई भी मां अपनी बेटी का संबंध जुड़ा हुआ नहीं बर्दास्त करेगी लेकिन मेरा यकीन करो काकी। मैं अब पहले जैसा नहीं रहा। तुम्हारी बेटी ने किसी जादू की तरह मेरे बुरे चरित्र को मिटा कर मेरे अंदर एक अच्छा इंसान पैदा कर दिया है।"

मेरी बात सुन कर काकी मेरी तरफ अजीब भाव से देखने लगी। जैसे उसे मेरी बातों पर यकीन ही न हो रहा हो। मैं समझ सकता था कि उसको ही क्या बल्कि किसी को भी इतना जल्दी मेरे बदले हुए चरित्र की बात हजम नहीं हो सकती थी।

"तुम खुद सोचो काकी कि अगर मैं पहले जैसा ही होता तो क्या तुम्हारी बेटी मेरा शिकार होने से अब तक बची रहती?" मैंने जैसे उसे समझाते हुए कहा____"क्या तुम्हें लगता है कि तुम में से कोई भी मुझे अपनी मनमानी करने से रोक लेता? हर्गिज़ नहीं, अगर मैं सच में तुम्हारी बेटी की इज्ज़त ख़राब कर के उसे बर्बाद करना चाहता तो वो पहले ही कर डालता और तुम में से कोई भी अनुराधा को मुझसे नहीं बचा सकता था मगर मैंने ऐसा नहीं किया। जानती हो क्यों? क्योंकि उस मासूम को देख कर मेरे अंदर ऐसा करने की हिम्मत ही नहीं हुई। मुझे नहीं पता कि उस समय ऐसा क्यों होता था लेकिन सच यही है। मुझे ग़लत मत समझो काकी और ना ही अपनी बेटी को ग़लत समझना। वो बहुत मासूम है। उसका दामन बेदाग़ है। मैं खुद मिट जाना पसंद करूंगा लेकिन उस मासूम पर किसी तरह का दाग़ लगाने का सोच भी नहीं सकता।"

सरोज काकी के चेहरे पर बड़ी तेज़ी से भावों का आना जाना लग गया था। वो हैरत से मुझे देखे जा रही थी। इधर मेरी धड़कनें ये सोच कर थोड़ा असमान्य हो गई थीं कि जाने काकी अब क्या कहेगी?

"माना कि तुम मेरी बेटी को ख़राब नहीं करना चाहते।" फिर उसने गहरी सांस ले कर कहा____"लेकिन उसके दिल में अपने प्रति प्रेम का अंकुर पैदा कर के उसे बर्बाद ही तो कर रहे हो तुम। वो तो नासमझ है इस लिए उसे अभी इस बात का एहसास ही नहीं है कि प्रेम के वशीभूत हो कर उसे ऐसे लड़के का ख़्वाब नहीं देखना चाहिए जो उसकी पहुंच से बहुत दूर है और जो उसको कभी हासिल ही नहीं हो सकता। किंतु तुम तो समझदार हो, तुम्हें तो सोचना चाहिए कि उसको ऐसे ख़्वाब नहीं दिखाना चाहिए।"

"फ़िक्र मत करो काकी।" मैंने गहरी सांस ले कर कहा____"तुमसे ज़्यादा मुझे अनुराधा की चिंता है और इस बात की भी कि इस प्रेम के चलते हम दोनों का क्या होगा? तुम जिस चीज़ के बारे में सोच कर इतना हलकान हो रही हो उसका मुझे भी शिद्दत से एहसास है। इस लिए यही कहूंगा कि तुम इस बारे में ज़्यादा मत सोचो। मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा। तुम्हें मुझ पर भरोसा है ना?"

सरोज काकी अजीब भाव से देखने लगी मुझे। कदाचित उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या कहे? मैं समझ सकता था कि इस वक्त उसके अंदर किस तरह की आंधी चल रही थी। यकीनन उसे अपनी बेटी की चिंता थी। उसे पता था कि उसकी बेटी का और मेरा कोई मेल नहीं है लेकिन प्रेम कहां किसी की हैसियत देखता है? वैसे सच कहूं तो अब जा कर मुझे भी इस बात का एहसास हुआ था कि अनुराधा से प्रेम करना अलग बात है किंतु उसे अपनी जीवन संगनी बनाना ज़रा भी आसान नहीं हो सकता। क्योंकि हम दोनों की हैसियत में ज़मीन आसमान का फ़र्क है मगर मैंने भी अब ये सोच लिया था कि जिसने मेरा कायाकल्प कर के मुझे एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित किया है उसे अपने जीवन से यूं जाने नहीं दूंगा। फिर भले ही इसके लिए मुझे किसी भी हद तक क्यों न जाना पड़े।

"आख़िर कैसे भरोसा करूं वैभव?" सहसा सरोज काकी ने अधीरता से कहा____"ये बातें कोई मामूली बातें नहीं हैं जिसके बारे में कोई आंख बंद कर के भरोसा कर लेगा। मैं अच्छी तरह जानती हूं कि मेरी बेटी तुम्हारे प्रेम के चलते अपना जीवन बर्बाद कर लेगी। तुम भी एक दिन उसे बेसहारा छोड़ कर चले जाओगे।"

"नहीं काकी नहीं।" मैंने मजबूती से इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"ऐसा कभी नहीं होगा। ठाकुर वैभव सिंह तुम्हें वचन देता है कि वो ना तो तुम्हारी बेटी का जीवन बर्बाद करेगा और ना ही उसे कोई तकलीफ़ देगा। मेरे दिल में उसके लिए सच्चा प्रेम है। मैंने फ़ैसला कर लिया है कि अनुराधा को मैं अपनी जीवन संगनी बनाऊंगा। उससे ब्याह करूंगा। क्या तुम अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथों में दोगी?"

सरोज काकी मेरी बात सुन कर आश्चर्य से मुझे देखने लगी। उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। उसके मुख से कोई बोल ना फूटा। ऐसा लगा जैसे उसकी आवाज़ हलक में ही कहीं फंस गई हो।

"जवाब दो काकी।" उसे मुंह फाड़े देख मैंने फिर से कहा____"क्या तुम अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथ में दोगी?"

"आं...हां...म..मगर ये कैसे संभव है वैभव?" सरोज को जैसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था____"मेरा मतलब है कि क्या तुम्हारे पिता दादा ठाकुर अपने बेटे का ब्याह मुझ जैसी एक मामूली से किसान की बेटी से करेंगे?"

"वो सब तुम मुझ पर छोड़ दो काकी।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"तुम सिर्फ़ ये बताओ कि क्या तुम्हें ये रिश्ता मंज़ूर है और क्या तुम अपनी बेटी का ब्याह मेरे साथ करोगी?"

"भला कौन ऐसी मां होगी जो अपनी बेटी का ब्याह ऊंचे घर में करने के सपने न देखे?" काकी ने अधीरता से कहा____"लेकिन सपने में और हकीक़त में बहुत फ़र्क होता है बेटा। फिर भी अगर तुम इस सपने को हकीक़त बना देने का माद्दा रखते हो और मुझे वचन देते हो तो मुझे मंज़ूर है। अगर सच में ऐसा हो जाए तो ये मेरी बेटी का अहोभाग्य ही होगा।"

"ज़रूर होगा काकी।" मैंने इस बार मुस्कुराते हुए कहा____"हो सकता है कि ऐसा होने में थोड़ा वक्त लगे लेकिन यकीन मानो ऐसा होगा ज़रूर।"

मैंने देखा सरोज काकी के चेहरे पर एक अलग ही तरह की चमक दिखने लगी थी। खुशी से उसका चेहरा चमकने लगा था। हालाकि उसी चेहरे में कभी कभी दुविधा जैसे भाव भी गर्दिश करते नज़र आने लगते थे।

"अच्छा अब ये बताओ कि तुम्हें इस बारे में कैसे पता चला?" मैंने कुछ सोचते हुए उससे पूछा।

"भुवन ने बताया।" काकी ने कहा____"असल में काफी दिनों से मैं देख रही थी कि अनू एकदम ख़ामोश और गुमसुम सी रहती है। मुझे उसकी दशा देख कर चिंता होने लगी थी। समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर उसकी ख़ामोशी की क्या वजह है। मेरे पूछने पर वो गोल मोल जवाब दे कर टाल जाती थी। फिर मैंने ये सोच कर भुवन से पूछा कि शायद उसे कुछ पता हो। आख़िर वो अनू को अपनी बहन मानता है। मेरे पूछने पर भुवन ने बताया कि अनू तुमसे प्रेम करती है और उसकी ऐसी हालत की वजह उसका प्रेम करना ही है। मुझे तो उसकी बात सुन कर यकीन ही नहीं हुआ था। फिर जब मैंने अनू से इस बारे में सख़्ती से पूछा तो उसने इस बात को क़बूल कर लिया। पहले तो मुझे यही लगा था कि तुमने मेरी भोली भाली बेटी को फंसा लिया है।"

"अच्छा हुआ कि उसे फंसाने की हिम्मत ही नहीं की मैंने।" मैंने कहा____"वरना शायद ऐसा होता कि आगे भी जीवन में मैं कभी अच्छा इंसान बनने का न सोच पाता और ना ही मुझे ये एहसास होता कि अपने अब तक के जीवन में मैंने कितने ग़लत कर्म किए थे। तुम्हारी बेटी कोई मामूली लड़की नहीं है काकी, वो तो एक ख़ास किस्म की लड़की है जिसने मेरे जैसे इंसान को बिना कुछ किए ही बदल कर रख दिया है। ऐसी लड़की से मुझे प्रेम न होता तो भला क्या होता?"

"मेरी तुमसे अब एक ही विनती है कि अपना वचन ज़रूर निभाना।" काकी ने मेरी तरफ देखते हुए नम आंखों से कहा____"मेरी बेटी के साथ कोई छल मत करना और ना ही कभी उसे कोई तकलीफ़ देना।"

"ठाकुर वैभव सिंह खुद मिट जाएगा लेकिन सपने में भी वो अनुराधा को कोई तकलीफ़ नहीं देगा।" मैंने कहा____"तुम बेफिक्र रहो काकी। अनुराधा अब मेरी अमानत है। उसका हर सुख दुख अब मेरा है।"

"ठीक है फिर।" काकी ने उठते हुए कहा____"अब मुझे उसकी कोई चिंता नहीं है। अच्छा अब चलती हूं।"

काकी के जाने के बाद भी मैं उसी के बारे में सोचता रहा। आज मैंने अनुराधा के विषय में एक अहम और अटूट फ़ैसला ले लिया था। हालाकि मुझे एहसास था कि इस बारे में मेरा फ़ैसला मेरे पिता जी को बेहद नागवार भी गुज़र सकता है क्योंकि वो पहले ही मेरा ब्याह साहूकार गौरी शंकर की भतीजी रूपा से तय कर चुके हैं। मतलब साफ़ है कि आने वाला समय मेरे लिए कुछ ज़्यादा ही चुनौतियों से भरा हुआ साबित होने वाला है। मैं ये सब सोच ही रहा था कि भुवन मेरे पास आया और सिर झुका कर खड़ा हो गया।

"तुम्हें क्या हुआ?" उसे सिर झुकाए खड़ा हो गया देख मैंने उससे पूछा____"इस तरह सिर झुकाए क्यों खड़े हो गए?"

"माफ़ करना छोटे कुंवर मैंने काकी को आपके और अनुराधा के बीच बने संबंध के बारे में बता दिया।" उसने दबी आवाज़ में कहा____"मैं उसे बताना नहीं चाहता था लेकिन जब मैंने उसे अपनी बेटी के लिए कुछ ज़्यादा ही चिंतित देखा तो मुझे उसको सब कुछ बताना पड़ा।"

"अच्छा किया भुवन जो तुमने काकी को सब कुछ बता दिया।" मैंने कहा____"वैसे भी एक दिन तो उसे पता चलना ही था। मैं भी इस बात को सोच कर थोड़ा परेशान सा हो जाता था कि काकी कहीं इस सबके बारे में ग़लत ना सोच बैठे। आख़िर पता तो उसे भी है कि मैं अब से पहले किस तरह का इंसान था?"

"वैसे बधाई हो छोटे कुंवर।" भुवन ने सिर उठा कर सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"काकी ने आपके साथ अपनी बेटी का रिश्ता मंज़ूर कर लिया है। अनुराधा से जब आपका ब्याह हो जाएगा तो मेरे साथ भी आपका एक नया रिश्ता बन जाएगा।"

"मतलब?" मैंने उलझन पूर्ण भाव से उसे देखा।

"मतलब ये कि तब मैं आपका साला बन जाऊंगा।" भुवन ने उसी तरह मुस्कुराते हुए कहा____"आप शायद भूल रहे हैं कि अनुराधा को मैंने अपनी छोटी बहन माना है।"

"ओह! हां हां सही कहा तुमने हा हा हा।" मैं उसकी बात समझते ही ठहाका लगा कर हंस पड़ा। भुवन भी हंसने लगा था। कुछ देर बाद वो चला गया। मैं भी मन ही मन मुस्कुराते हुए अनुराधा के बारे में जाने कैसे कैसे हसीन ख़्वाब बुनने लगा।

✮✮✮✮

दोपहर को जब मैं खाना खाने हवेली पहुंचा तो बैठक में पिता जी के साथ किसी अंजान व्यक्ति को देख कर ठिठक गया। पिता जी की नज़र मुझ पर पड़ी तो उन्होंने मुझे बैठक में आने का इशारा किया।

"ये शायद छोटे कुंवर हैं।" मैं जैसे ही बैठक में दाखिल हुआ तो उस व्यक्ति ने मेरी तरफ इशारा करते हुए पिता जी से नम्र भाव से कहा____"कई साल पहले इन्हें देखा था जब ये अपनी ननिहाल माधवगढ़ आए थे।"

पिता जी ने उसकी बात सुन कर हां में सिर हिलाया। उस व्यक्ति ने मुझे अदब से सलाम किया तो मैं समझ गया कि ये वही व्यक्ति है जिसे पिता जी ने अपने हिसाब किताब के काम के लिए मेरे ननिहाल से बुलाया था। ख़ैर पिता जी के इशारा मिलते ही मैं बैठक से निकल कर हवेली के अंदर की तरफ बढ़ गया।

गुशलखाने में अच्छे से नहा धो कर मैंने अपने कमरे में जा कर दूसरे कपड़े पहने। उसके बाद खाना खाने के लिए नीचे आ गया। आज मुझे आने में देरी हो गई थी इस लिए भोजन करने वाला मैं अकेला ही बचा था। ख़ैर जल्दी ही कुसुम ने मेरे सामने भोजन की थाली ला कर रख दी तो मैं भूखा होने की वजह से टूट पड़ा खाने पर।

पेट भर खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में आ कर पलंग पर लेट गया। आंखें बंद किया तो सरोज काकी का चेहरा उजागर हो गया। उसकी बातें मेरे दिलो दिमाग़ में उभरने लगीं। सरोज अपनी बेटी का ब्याह मुझसे करने के लिए राज़ी हो गई थी इस बात से यकीनन मैं खुश था लेकिन मुझे इस बात का भी एहसास था कि अनुराधा से ब्याह करना मेरे लिए आसान काम नहीं हो सकता था। पिता जी को जब इस बारे में पता चलेगा तो जाने वो क्या कहेंगे मुझे?

रूपा से ब्याह होना तो पक्का ही हो गया था तो अब सवाल ये था कि क्या पिता जी मुझे किसी और से भी ब्याह करने की इजाज़त देंगे? हालाकि एक व्यक्ति का एक से ज़्यादा लड़कियों से ब्याह करना कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन पिता जी को ऐसा संबंध स्वीकार होगा कि नहीं ये सोचने वाली बात थी। अपने पिता जी के स्वभाव के बारे में मैं अच्छी तरह जानता था इस लिए एकाएक ही मुझे इस सबके बारे में सोचते हुए चिंता होने लगी।

मैं सरोज को वचन दे चुका था कि अब से अनुराधा मेरी अमानत है और उसके हर सुख दुख का मुझे ख़याल रखना है। अतः अब ये भी संभव नहीं था कि मैं अपने वचन को तोड़ दूं अथवा अनुराधा से ब्याह करने का इरादा ही बदल दूं। अनुराधा मेरी चाहत थी जिसके साथ ज़िंदगी गुज़ारना अब मेरी हसरत बन चुकी थी। मैंने महसूस किया कि अचानक ही मैं एक अलग ही तरह के चक्रव्यूह में फंस गया हूं। समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी इस समस्या को कैसे दूर करूं और वो सब कैसे हो जाए जो मैं चाहता हूं?

यही सब सोचते हुए जाने कब मेरी आंख लग गई। उसके बाद कुसुम के जगाने पर ही मेरी आंख खुली। वो एक ट्रे में पानी से भरा ग्लास और चाय का प्याला लिए खड़ी थी। मैं जल्दी से उठा और ग्लास उठा कर पानी पिया। कुसुम पलंग के किनारे ही मेरे पास बैठ गई। पानी पीने के बाद मैंने ट्रे से चाय का कप उठा लिया।

"शाम हो गई क्या?" मैंने खिड़की के बाहर हल्का अंधेरा छाया देखा तो कुसुम से पूछ बैठा।

"नहीं भैया।" कुसुम ने बताया____"शाम होने में तो अभी बहुत समय है। ये अंधेरा तो आसमान में छाए काले काले बादलों का है। ऐसा लगता है जैसे आज तेज़ बारिश होगी।"

"अच्छा ये बता भाभी कहां हैं?" मैंने कुछ सोचते हुए उससे पूछा।
"वो तो नीचे बड़ी मां लोगों के पास बैठ के चाय पी रही हैं।" कुसुम ने कहा____"उन लोगों के साथ एक काकी भी है जो आज माधवगढ़ से आई हैं।"

"ओह! हां पिता जी ने बताया था मुझे।" मैंने चाय की चुस्की ले कर कहा।

"आपको पता है भैया।" कुसुम ने सहसा खुशी से मुस्कुराते हुए कहा____"काकी की एक बेटी भी है जो मेरी ही उमर की है। मेरी उससे दोस्ती भी हो गई है। बहुत अच्छी है वो।"

"अच्छा।" जाने क्यों मेरे कान खड़े हो गए उसकी बात सुन कर____"बड़ा जल्दी दोस्ती हो गई तेरी उससे।"

"हां भैया।" कुसुम ने उसी खुशी के साथ कहा____"बड़ी मां ने मुझसे कहा था कि मैं उसके साथ बातें करूं और उससे घुल मिल जाऊं जिससे उसको यहां पर अजनबीपन न महसूस हो।"

"हम्म्म्म।" मैंने चाय की चुस्की लेते हुए हुंकार भरी____"तो ऐसी क्या बातें की तुमने उससे जिससे वो तेरी इतनी जल्दी दोस्त बन गई?"

"बस ऐसे ही इधर उधर की बातें।" कुसुम ने मुस्कुराते हुए कहा____"वो अपने बारे में बताने लगी, फिर मैंने उसे सबके बारे में बताया। आपके बारे में भी बताया कि इस हवेली में आप मेरे सबसे अच्छे वाले भैया हैं और मुझे बहुत प्यार करते हैं।"

"अच्छा।" मैंने खाली कप को उसके ट्रे में रखते हुए कहा____"अगर उससे तेरी दोस्ती हो गई है तो ये बहुत अच्छी बात है फिर। उसके साथ तेरा भी अच्छे से समय कट जाया करेगा। अच्छा अब तू जा, मैं भी खेतों की तरफ जाऊंगा। विभोर और अजीत को जा कर बोल दे कि वो भी मेरे साथ चलने को तैयार हो जाएं।"

कुसुम ने हां में सिर हिलाया और फिर खुशी खुशी कमरे से चली गई। मैंने भी उठ कर अपने कपड़े पहने और नीचे गुशलखाने में हाथ मुंह धो कर मां लोगों के पास आ गया। मैंने देखा मां और चाची लोगों के पास एक औरत बैठी हुई थी। उसकी उमर यही कोई पैंतीस के आस पास रही होगी। चेहरा साफ था उसका, जिस्म भी काफी गदराया हुआ नज़र आ रहा था। मां ने मुझे देख कर उसे बताया कि मैं उनका छोटा बेटा हूं। मां की बात सुन कर उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए मुझे नमस्ते किया तो मैंने भी सिर को हल्का सा खम करके उसे नमस्ते किया। तभी मेरी नज़र रागिनी भाभी पर पड़ी। वो अपलक मुझे ही देखे जा रहीं थी। जैसे ही मेरी नज़र उनसे मिली तो वो हल्के से मुस्कुराईं। मुझे समझ न आया कि वो क्या सोच के मुस्कुराईं थी? हालाकि जवाब में मैंने भी मुस्कुरा दिया था उसके बाद मैं ये सोच कर उठ कर वहां से बाहर की तरफ चल पड़ा कि औरतों के बीच भला मेरा क्या काम?

थोड़ी ही देर में विभोर और अजीत बाहर आ गए तो मैं जीप में उन दोनों को बैठा कर खेतों की तरफ निकल गया। आसमान में काले बादलों ने अच्छा खासा अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। प्रतीत होता था कि आज वो जम के बरसेंगे।




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बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
वैभव दोनो तरफ से फंस गया है अब देखते हैं वैभव दोनो से शादी करता है या फिर एक से
 

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तो क्या गरम चीज़ों का भी शौक नहीं है?"😀😀
 

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बहुत खूब शुभम भाई

अब ये नयी गरम चीज कौन सी आग लगायेगी
 
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