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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

ranipyaarkidiwani

Rajit singh
406
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अध्याय - 93
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



"वो कल दोपहर तक यहां आ जाएंगे।" पिता जी ने कहा____"तुम एक दो लोगों को ले जा कर हवेली के पूर्वी हिस्से वाले दो कमरों की साफ सफाई करवा देना। हमें भी एक ज़रूरी काम से कहीं जाना है।"

पिता जी के कहने पर मैंने सिर हिलाया और बैठक से बाहर आ गया। हवेली में काम करने वाले दो मुलाज़िमों को ले कर मैं हवेली के पूर्वी हिस्से की तरफ बढ़ चला। बंद पड़े कमरों को खोल कर दोनों मुलाज़िमों को उनकी बढ़िया से सफ़ाई करने के लिए बोल दिया। उसके बाद मैं नीचे आ गया। नीचे आ कर मैं मां से मिला। उन्हें बताया कि जब दोनों मुलाज़िम कमरों की सफ़ाई कर के आएं तो उन दोनों कमरों में पोंछा लगाने के लिए वो किसी नौकरानी को भेज दें।



अब आगे....


अगले दिन सुबह नाश्ता पानी कर के मैं खेतों की तरफ चल पड़ा। गांव में क्योंकि चंद्रकांत के बेटे की किसी ने हत्या कर दी थी इस लिए हर तरफ उसी की चर्चा थी। मेरे ज़हन में भी ये सवाल चकरा रहा था कि आख़िर रघुवीर को किसने पेल दिया होगा? काफी दिमाग़ लगाने के बाद भी समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा किसने किया होगा? ज़हन में ये ख़याल भी आता था कि कहीं सच में रूपचंद्र ने तो उसकी हत्या नहीं की होगी? संभव है कि रजनी की बातों से वो सच में गुस्से से इस क़दर पगला गया हो कि रजनी को सबक सिखाने के लिए उसने उसके पति की हत्या कर दी हो? किंतु अगले ही पल मुझे अपना ये ख़याल जमता हुआ प्रतीत नहीं होता था क्योंकि रूपचंद्र से मुझे ऐसे किसी कर्म की ज़रा भी आशा नहीं थी। वो बुरा इंसान ज़रूर था लेकिन रघुवीर की हत्या करेगा ऐसा बिल्कुल नहीं लगता था।

वो मेरी हत्या करने का ख़्वाइशमंद ज़रूर था किंतु अब तो वो भी संभव नहीं था क्योंकि उसकी बहन रूपा के साथ मेरे ब्याह की बात पक्की हो चुकी थी और अब वो ऐसा कुछ करने का सोच भी नहीं सकता था। वो मुझसे सिर्फ इस बात से नफ़रत करता था क्योंकि उसकी नज़र में मैंने उसकी बहन को बर्बाद किया था और अब जबकि उसकी बहन से मेरा ब्याह होना ही पक्का हो गया था तो उसकी नाराज़गी अथवा नफ़रत स्वतः ही दूर हो जानी थी।

साहूकारों के घर के सामने से निकला तो अनायास ही मेरी नज़र उनके दरवाज़े की तरफ चली गई किंतु बाहर किसी को ना देख मैं आगे बढ़ गया। ये अलग बात है कि जाने क्या सोच कर मेरी धड़कनें थोड़ा तेज़ हो गईं थी। थोड़ा आगे आया तो मुंशी चंद्रकांत का घर आ गया। उसके घर के बाहर और तो कोई न दिखा किंतु चंद्रकांत की बेटी कोमल दिख गई। वो घर के बाहर ही दरवाज़े के बगल से बनी चबूतरेनुमा पट्टी पर गुमसुम सी बैठी थी। मोटर साईकिल की आवाज़ सुनते ही जैसे वो ख़यालों से बाहर आई और फिर उसकी नज़र मुझ पर पड़ी। आज काफी समय बाद उसे देख रहा था मैं। कितना बदल गई थी वो। ऐसा लग रहा था जैसे पहले से ज़्यादा जवान और सुंदर दिखने लगी थी वो।

मुझ पर नज़र पड़ते ही वो एकदम से सम्हल कर बैठ गई और साथ ही घबरा कर जल्दी से इधर उधर देखने लगी। एक वक्त था जब मेरे मन में उसे भोगने की इच्छा थी किंतु अब उसके बारे में ऐसा कुछ महसूस ही नहीं हुआ मुझे। मुझे खुद इस बात पर हैरानी हुई किंतु फिर जल्दी ही मुझे एहसास हुआ कि इसकी वजह शायद अनुराधा से मेरा प्रेम करना हो सकता है या फिर भाभी को दिया हुआ वचन हो सकता है, या फिर इसकी वजह वो हो सकती है जो पिछले कुछ समय से हमारे साथ हुआ था।

मैं उससे नज़र हटा कर सीधा निकल गया। जल्दी ही मैं अपने खेतों पर पहुंच गया। खेतों पर बने मकान के सामने जैसे ही मैं पहुंचा तो मकान के बाहर बरामदे में सरोज काकी को देख मैं चौंक गया। मेरे मन में सवाल उभरा कि काकी अपने गांव से हमारे गांव इतनी दूर मेरे खेत वाले मकान में किस लिए आ कर बैठी है? जाने क्यों मेरे मन में किसी अनहोनी की आशंका हुई और मैं एकदम से फिक्रमंद हो उठा। तभी मोटर साइकिल की आवाज़ सुन कर भुवन भी वहीं पर आ गया। भुवन ने मुझे सलाम किया, इधर मैं मोटर साईकिल खड़ी कर के बरामदे में आया। सरोज काकी ने मुझे पहले ही देख लिया था इस लिए वो उठ कर खड़ी हो गई थी।

"क्या बात है काकी?" मैंने फिक्रमंदी से उसके क़रीब पहुंचते हुए पूछा____"आप इतनी दूर यहां क्या कर रही हैं? सब ठीक तो है ना?"

मेरी बात सुन कर काकी ने कुछ बोलने से पहले भुवन की तरफ देखा। भुवन ने उसे देख कर हल्के से सिर हिलाया और फिर वापस चला गया। मुझे थोड़ा अजीब लगा किंतु मैंने इस बारे में कुछ नहीं कहा बल्कि अपने सवाल के जवाब की आशा में काकी के पास ही बैठ गया।

"बात क्या है काकी?" मैंने व्याकुलतावश फिर से पूछा____"तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही हो? सब ठीक तो है ना?"

"क्या बताऊं वैभव?" काकी ने गंभीरता से गहरी सांस ली____"कुछ समझ में ही नहीं आ रहा कि तुम्हें क्या बताऊं और कैसे बताऊं?"

"आख़िर बात क्या है?" मैं उसके इस तरह बोलने पर और भी फिक्रमंद हो उठा____"आज तुम्हारे चेहरे पर चिंता के भाव क्यों दिखाई दे रहे हैं? अगर कोई समस्या हो गई है तो तुम मुझे बेझिझक बताओ। तुम जानती हो कि मैं तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के लिए बिना सोचे समझे कुछ भी कर जाऊंगा।"

"यही तो ग़लत किया है तुमने।" काकी ने अजीब भाव से मुझे देखा____"तुम्हें बिना सोचे समझे कुछ भी नहीं करना चाहिए था। ख़ास कर हम जैसे ग़रीब लोगों के साथ।"

"यूं पहेलियों में बातें न करो काकी।" मैंने बेचैन भाव से कहा____"साफ साफ बताओ कि आख़िर हुआ क्या है? मैंने ऐसा क्या कर दिया है बिना सोचे समझे?"

"मेरी भोली भाली बेटी के हृदय में तुमने अपने प्रति कोमल भावनाएं जगा देने का काम किया है वैभव।" काकी ने सहसा हताश हो कर कहा____"उसके दिल में अपने प्रति तुमने प्रेम के ऐसे भाव उत्पन्न कर दिए हैं जिसके चलते मेरी बेटी का जीवन उजाड़ सा हो गया है। क्यों वैभव? आख़िर क्यों तुमने मेरी नासमझ और नादान बेटी के साथ इस तरह का खेल खेल लिया? क्या तुम्हें ज़रा भी इस बात का ख़याल नहीं आया कि इस सबके बाद मेरी बेटी का क्या होगा?"

सरोज काकी की बातें सुन कर मुझे एकदम से झटका लगा। मैं अंदर ही अंदर ये सोच कर भी हैरान हुआ कि काकी को इस बारे में कैसे पता चल गया? हालाकि उसको एक दिन तो इस बात का पता चलना ही था किंतु इतना जल्दी पता चल जाएगा ये उम्मीद नहीं थी मुझे। मैंने एक गहरी सांस ली।

"तुम ग़लत समझ रही हो काकी।" फिर मैंने गंभीरता से कहा____"मैंने तुम्हारी बेटी के साथ कोई खेल नहीं खेला। सच तो ये है कि जो कुछ हुआ है वो सब उस विधाता का ही मायाजाल था। उसने मुझ जैसे चरित्र हीन लड़के को बदलने के लिए तुम्हारी बेटी को चुना। हां काकी, तुम्हारी उस बेटी को जिसकी सादगी और मासूमियत में जाने ऐसी क्या बता थी कि मैं चाह कर भी उसे अपनी हवस का शिकार नहीं बना सका। शुरुआत में तो मैं खुद पर इसके लिए चकित होता था किंतु फिर जैसे आदत पड़ गई। उसके बाद तो फिर ऐसा हुआ कि तुम्हारी बेटी के प्रति मेरे दिल में खुद ही कोमल भावनाएं जागने लगीं। उससे बातें करना अच्छा लगने लगा। उसकी हर अदा दिलो दिमाग़ में घर करती चली गई। आज आलम ये है कि मेरे दिल में अनुराधा के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रेम है। मेरा दिल हर पल उसकी खुशी की दुआएं मांगता है।"

"क्या तुम मुझे अपनी इन चिकनी चुपड़ी बातों से बहलाना चाहते हो?" सरोज ने पूर्व की भांति ही आहत भाव से कहा____"मगर मैं बहलने वाली नहीं हूं। मैं तुमसे विनती करती हूं कि मेरी नादान और नासमझ बेटी को बर्बाद करने का मत सोचो और ना ही उसे ऐसे भ्रम में डालो जिसमें फंस कर वो एक दिन टूट कर बिखर जाए।"

"तुम अब भी मुझे ग़लत ही समझ रही हो काकी।" मैंने बेबस भाव से कहा____"शायद इस लिए क्योंकि तुम्हारी नज़र में मेरी छवि अच्छी नहीं है। मैं मानता हूं कि मेरे जैसे गंदे चरित्र वाले लड़के के साथ कोई भी मां अपनी बेटी का संबंध जुड़ा हुआ नहीं बर्दास्त करेगी लेकिन मेरा यकीन करो काकी। मैं अब पहले जैसा नहीं रहा। तुम्हारी बेटी ने किसी जादू की तरह मेरे बुरे चरित्र को मिटा कर मेरे अंदर एक अच्छा इंसान पैदा कर दिया है।"

मेरी बात सुन कर काकी मेरी तरफ अजीब भाव से देखने लगी। जैसे उसे मेरी बातों पर यकीन ही न हो रहा हो। मैं समझ सकता था कि उसको ही क्या बल्कि किसी को भी इतना जल्दी मेरे बदले हुए चरित्र की बात हजम नहीं हो सकती थी।

"तुम खुद सोचो काकी कि अगर मैं पहले जैसा ही होता तो क्या तुम्हारी बेटी मेरा शिकार होने से अब तक बची रहती?" मैंने जैसे उसे समझाते हुए कहा____"क्या तुम्हें लगता है कि तुम में से कोई भी मुझे अपनी मनमानी करने से रोक लेता? हर्गिज़ नहीं, अगर मैं सच में तुम्हारी बेटी की इज्ज़त ख़राब कर के उसे बर्बाद करना चाहता तो वो पहले ही कर डालता और तुम में से कोई भी अनुराधा को मुझसे नहीं बचा सकता था मगर मैंने ऐसा नहीं किया। जानती हो क्यों? क्योंकि उस मासूम को देख कर मेरे अंदर ऐसा करने की हिम्मत ही नहीं हुई। मुझे नहीं पता कि उस समय ऐसा क्यों होता था लेकिन सच यही है। मुझे ग़लत मत समझो काकी और ना ही अपनी बेटी को ग़लत समझना। वो बहुत मासूम है। उसका दामन बेदाग़ है। मैं खुद मिट जाना पसंद करूंगा लेकिन उस मासूम पर किसी तरह का दाग़ लगाने का सोच भी नहीं सकता।"

सरोज काकी के चेहरे पर बड़ी तेज़ी से भावों का आना जाना लग गया था। वो हैरत से मुझे देखे जा रही थी। इधर मेरी धड़कनें ये सोच कर थोड़ा असमान्य हो गई थीं कि जाने काकी अब क्या कहेगी?

"माना कि तुम मेरी बेटी को ख़राब नहीं करना चाहते।" फिर उसने गहरी सांस ले कर कहा____"लेकिन उसके दिल में अपने प्रति प्रेम का अंकुर पैदा कर के उसे बर्बाद ही तो कर रहे हो तुम। वो तो नासमझ है इस लिए उसे अभी इस बात का एहसास ही नहीं है कि प्रेम के वशीभूत हो कर उसे ऐसे लड़के का ख़्वाब नहीं देखना चाहिए जो उसकी पहुंच से बहुत दूर है और जो उसको कभी हासिल ही नहीं हो सकता। किंतु तुम तो समझदार हो, तुम्हें तो सोचना चाहिए कि उसको ऐसे ख़्वाब नहीं दिखाना चाहिए।"

"फ़िक्र मत करो काकी।" मैंने गहरी सांस ले कर कहा____"तुमसे ज़्यादा मुझे अनुराधा की चिंता है और इस बात की भी कि इस प्रेम के चलते हम दोनों का क्या होगा? तुम जिस चीज़ के बारे में सोच कर इतना हलकान हो रही हो उसका मुझे भी शिद्दत से एहसास है। इस लिए यही कहूंगा कि तुम इस बारे में ज़्यादा मत सोचो। मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा। तुम्हें मुझ पर भरोसा है ना?"

सरोज काकी अजीब भाव से देखने लगी मुझे। कदाचित उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या कहे? मैं समझ सकता था कि इस वक्त उसके अंदर किस तरह की आंधी चल रही थी। यकीनन उसे अपनी बेटी की चिंता थी। उसे पता था कि उसकी बेटी का और मेरा कोई मेल नहीं है लेकिन प्रेम कहां किसी की हैसियत देखता है? वैसे सच कहूं तो अब जा कर मुझे भी इस बात का एहसास हुआ था कि अनुराधा से प्रेम करना अलग बात है किंतु उसे अपनी जीवन संगनी बनाना ज़रा भी आसान नहीं हो सकता। क्योंकि हम दोनों की हैसियत में ज़मीन आसमान का फ़र्क है मगर मैंने भी अब ये सोच लिया था कि जिसने मेरा कायाकल्प कर के मुझे एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित किया है उसे अपने जीवन से यूं जाने नहीं दूंगा। फिर भले ही इसके लिए मुझे किसी भी हद तक क्यों न जाना पड़े।

"आख़िर कैसे भरोसा करूं वैभव?" सहसा सरोज काकी ने अधीरता से कहा____"ये बातें कोई मामूली बातें नहीं हैं जिसके बारे में कोई आंख बंद कर के भरोसा कर लेगा। मैं अच्छी तरह जानती हूं कि मेरी बेटी तुम्हारे प्रेम के चलते अपना जीवन बर्बाद कर लेगी। तुम भी एक दिन उसे बेसहारा छोड़ कर चले जाओगे।"

"नहीं काकी नहीं।" मैंने मजबूती से इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"ऐसा कभी नहीं होगा। ठाकुर वैभव सिंह तुम्हें वचन देता है कि वो ना तो तुम्हारी बेटी का जीवन बर्बाद करेगा और ना ही उसे कोई तकलीफ़ देगा। मेरे दिल में उसके लिए सच्चा प्रेम है। मैंने फ़ैसला कर लिया है कि अनुराधा को मैं अपनी जीवन संगनी बनाऊंगा। उससे ब्याह करूंगा। क्या तुम अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथों में दोगी?"

सरोज काकी मेरी बात सुन कर आश्चर्य से मुझे देखने लगी। उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। उसके मुख से कोई बोल ना फूटा। ऐसा लगा जैसे उसकी आवाज़ हलक में ही कहीं फंस गई हो।

"जवाब दो काकी।" उसे मुंह फाड़े देख मैंने फिर से कहा____"क्या तुम अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथ में दोगी?"

"आं...हां...म..मगर ये कैसे संभव है वैभव?" सरोज को जैसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था____"मेरा मतलब है कि क्या तुम्हारे पिता दादा ठाकुर अपने बेटे का ब्याह मुझ जैसी एक मामूली से किसान की बेटी से करेंगे?"

"वो सब तुम मुझ पर छोड़ दो काकी।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"तुम सिर्फ़ ये बताओ कि क्या तुम्हें ये रिश्ता मंज़ूर है और क्या तुम अपनी बेटी का ब्याह मेरे साथ करोगी?"

"भला कौन ऐसी मां होगी जो अपनी बेटी का ब्याह ऊंचे घर में करने के सपने न देखे?" काकी ने अधीरता से कहा____"लेकिन सपने में और हकीक़त में बहुत फ़र्क होता है बेटा। फिर भी अगर तुम इस सपने को हकीक़त बना देने का माद्दा रखते हो और मुझे वचन देते हो तो मुझे मंज़ूर है। अगर सच में ऐसा हो जाए तो ये मेरी बेटी का अहोभाग्य ही होगा।"

"ज़रूर होगा काकी।" मैंने इस बार मुस्कुराते हुए कहा____"हो सकता है कि ऐसा होने में थोड़ा वक्त लगे लेकिन यकीन मानो ऐसा होगा ज़रूर।"

मैंने देखा सरोज काकी के चेहरे पर एक अलग ही तरह की चमक दिखने लगी थी। खुशी से उसका चेहरा चमकने लगा था। हालाकि उसी चेहरे में कभी कभी दुविधा जैसे भाव भी गर्दिश करते नज़र आने लगते थे।

"अच्छा अब ये बताओ कि तुम्हें इस बारे में कैसे पता चला?" मैंने कुछ सोचते हुए उससे पूछा।

"भुवन ने बताया।" काकी ने कहा____"असल में काफी दिनों से मैं देख रही थी कि अनू एकदम ख़ामोश और गुमसुम सी रहती है। मुझे उसकी दशा देख कर चिंता होने लगी थी। समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर उसकी ख़ामोशी की क्या वजह है। मेरे पूछने पर वो गोल मोल जवाब दे कर टाल जाती थी। फिर मैंने ये सोच कर भुवन से पूछा कि शायद उसे कुछ पता हो। आख़िर वो अनू को अपनी बहन मानता है। मेरे पूछने पर भुवन ने बताया कि अनू तुमसे प्रेम करती है और उसकी ऐसी हालत की वजह उसका प्रेम करना ही है। मुझे तो उसकी बात सुन कर यकीन ही नहीं हुआ था। फिर जब मैंने अनू से इस बारे में सख़्ती से पूछा तो उसने इस बात को क़बूल कर लिया। पहले तो मुझे यही लगा था कि तुमने मेरी भोली भाली बेटी को फंसा लिया है।"

"अच्छा हुआ कि उसे फंसाने की हिम्मत ही नहीं की मैंने।" मैंने कहा____"वरना शायद ऐसा होता कि आगे भी जीवन में मैं कभी अच्छा इंसान बनने का न सोच पाता और ना ही मुझे ये एहसास होता कि अपने अब तक के जीवन में मैंने कितने ग़लत कर्म किए थे। तुम्हारी बेटी कोई मामूली लड़की नहीं है काकी, वो तो एक ख़ास किस्म की लड़की है जिसने मेरे जैसे इंसान को बिना कुछ किए ही बदल कर रख दिया है। ऐसी लड़की से मुझे प्रेम न होता तो भला क्या होता?"

"मेरी तुमसे अब एक ही विनती है कि अपना वचन ज़रूर निभाना।" काकी ने मेरी तरफ देखते हुए नम आंखों से कहा____"मेरी बेटी के साथ कोई छल मत करना और ना ही कभी उसे कोई तकलीफ़ देना।"

"ठाकुर वैभव सिंह खुद मिट जाएगा लेकिन सपने में भी वो अनुराधा को कोई तकलीफ़ नहीं देगा।" मैंने कहा____"तुम बेफिक्र रहो काकी। अनुराधा अब मेरी अमानत है। उसका हर सुख दुख अब मेरा है।"

"ठीक है फिर।" काकी ने उठते हुए कहा____"अब मुझे उसकी कोई चिंता नहीं है। अच्छा अब चलती हूं।"

काकी के जाने के बाद भी मैं उसी के बारे में सोचता रहा। आज मैंने अनुराधा के विषय में एक अहम और अटूट फ़ैसला ले लिया था। हालाकि मुझे एहसास था कि इस बारे में मेरा फ़ैसला मेरे पिता जी को बेहद नागवार भी गुज़र सकता है क्योंकि वो पहले ही मेरा ब्याह साहूकार गौरी शंकर की भतीजी रूपा से तय कर चुके हैं। मतलब साफ़ है कि आने वाला समय मेरे लिए कुछ ज़्यादा ही चुनौतियों से भरा हुआ साबित होने वाला है। मैं ये सब सोच ही रहा था कि भुवन मेरे पास आया और सिर झुका कर खड़ा हो गया।

"तुम्हें क्या हुआ?" उसे सिर झुकाए खड़ा हो गया देख मैंने उससे पूछा____"इस तरह सिर झुकाए क्यों खड़े हो गए?"

"माफ़ करना छोटे कुंवर मैंने काकी को आपके और अनुराधा के बीच बने संबंध के बारे में बता दिया।" उसने दबी आवाज़ में कहा____"मैं उसे बताना नहीं चाहता था लेकिन जब मैंने उसे अपनी बेटी के लिए कुछ ज़्यादा ही चिंतित देखा तो मुझे उसको सब कुछ बताना पड़ा।"

"अच्छा किया भुवन जो तुमने काकी को सब कुछ बता दिया।" मैंने कहा____"वैसे भी एक दिन तो उसे पता चलना ही था। मैं भी इस बात को सोच कर थोड़ा परेशान सा हो जाता था कि काकी कहीं इस सबके बारे में ग़लत ना सोच बैठे। आख़िर पता तो उसे भी है कि मैं अब से पहले किस तरह का इंसान था?"

"वैसे बधाई हो छोटे कुंवर।" भुवन ने सिर उठा कर सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"काकी ने आपके साथ अपनी बेटी का रिश्ता मंज़ूर कर लिया है। अनुराधा से जब आपका ब्याह हो जाएगा तो मेरे साथ भी आपका एक नया रिश्ता बन जाएगा।"

"मतलब?" मैंने उलझन पूर्ण भाव से उसे देखा।

"मतलब ये कि तब मैं आपका साला बन जाऊंगा।" भुवन ने उसी तरह मुस्कुराते हुए कहा____"आप शायद भूल रहे हैं कि अनुराधा को मैंने अपनी छोटी बहन माना है।"

"ओह! हां हां सही कहा तुमने हा हा हा।" मैं उसकी बात समझते ही ठहाका लगा कर हंस पड़ा। भुवन भी हंसने लगा था। कुछ देर बाद वो चला गया। मैं भी मन ही मन मुस्कुराते हुए अनुराधा के बारे में जाने कैसे कैसे हसीन ख़्वाब बुनने लगा।

✮✮✮✮

दोपहर को जब मैं खाना खाने हवेली पहुंचा तो बैठक में पिता जी के साथ किसी अंजान व्यक्ति को देख कर ठिठक गया। पिता जी की नज़र मुझ पर पड़ी तो उन्होंने मुझे बैठक में आने का इशारा किया।

"ये शायद छोटे कुंवर हैं।" मैं जैसे ही बैठक में दाखिल हुआ तो उस व्यक्ति ने मेरी तरफ इशारा करते हुए पिता जी से नम्र भाव से कहा____"कई साल पहले इन्हें देखा था जब ये अपनी ननिहाल माधवगढ़ आए थे।"

पिता जी ने उसकी बात सुन कर हां में सिर हिलाया। उस व्यक्ति ने मुझे अदब से सलाम किया तो मैं समझ गया कि ये वही व्यक्ति है जिसे पिता जी ने अपने हिसाब किताब के काम के लिए मेरे ननिहाल से बुलाया था। ख़ैर पिता जी के इशारा मिलते ही मैं बैठक से निकल कर हवेली के अंदर की तरफ बढ़ गया।

गुशलखाने में अच्छे से नहा धो कर मैंने अपने कमरे में जा कर दूसरे कपड़े पहने। उसके बाद खाना खाने के लिए नीचे आ गया। आज मुझे आने में देरी हो गई थी इस लिए भोजन करने वाला मैं अकेला ही बचा था। ख़ैर जल्दी ही कुसुम ने मेरे सामने भोजन की थाली ला कर रख दी तो मैं भूखा होने की वजह से टूट पड़ा खाने पर।

पेट भर खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में आ कर पलंग पर लेट गया। आंखें बंद किया तो सरोज काकी का चेहरा उजागर हो गया। उसकी बातें मेरे दिलो दिमाग़ में उभरने लगीं। सरोज अपनी बेटी का ब्याह मुझसे करने के लिए राज़ी हो गई थी इस बात से यकीनन मैं खुश था लेकिन मुझे इस बात का भी एहसास था कि अनुराधा से ब्याह करना मेरे लिए आसान काम नहीं हो सकता था। पिता जी को जब इस बारे में पता चलेगा तो जाने वो क्या कहेंगे मुझे?

रूपा से ब्याह होना तो पक्का ही हो गया था तो अब सवाल ये था कि क्या पिता जी मुझे किसी और से भी ब्याह करने की इजाज़त देंगे? हालाकि एक व्यक्ति का एक से ज़्यादा लड़कियों से ब्याह करना कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन पिता जी को ऐसा संबंध स्वीकार होगा कि नहीं ये सोचने वाली बात थी। अपने पिता जी के स्वभाव के बारे में मैं अच्छी तरह जानता था इस लिए एकाएक ही मुझे इस सबके बारे में सोचते हुए चिंता होने लगी।

मैं सरोज को वचन दे चुका था कि अब से अनुराधा मेरी अमानत है और उसके हर सुख दुख का मुझे ख़याल रखना है। अतः अब ये भी संभव नहीं था कि मैं अपने वचन को तोड़ दूं अथवा अनुराधा से ब्याह करने का इरादा ही बदल दूं। अनुराधा मेरी चाहत थी जिसके साथ ज़िंदगी गुज़ारना अब मेरी हसरत बन चुकी थी। मैंने महसूस किया कि अचानक ही मैं एक अलग ही तरह के चक्रव्यूह में फंस गया हूं। समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी इस समस्या को कैसे दूर करूं और वो सब कैसे हो जाए जो मैं चाहता हूं?

यही सब सोचते हुए जाने कब मेरी आंख लग गई। उसके बाद कुसुम के जगाने पर ही मेरी आंख खुली। वो एक ट्रे में पानी से भरा ग्लास और चाय का प्याला लिए खड़ी थी। मैं जल्दी से उठा और ग्लास उठा कर पानी पिया। कुसुम पलंग के किनारे ही मेरे पास बैठ गई। पानी पीने के बाद मैंने ट्रे से चाय का कप उठा लिया।

"शाम हो गई क्या?" मैंने खिड़की के बाहर हल्का अंधेरा छाया देखा तो कुसुम से पूछ बैठा।

"नहीं भैया।" कुसुम ने बताया____"शाम होने में तो अभी बहुत समय है। ये अंधेरा तो आसमान में छाए काले काले बादलों का है। ऐसा लगता है जैसे आज तेज़ बारिश होगी।"

"अच्छा ये बता भाभी कहां हैं?" मैंने कुछ सोचते हुए उससे पूछा।
"वो तो नीचे बड़ी मां लोगों के पास बैठ के चाय पी रही हैं।" कुसुम ने कहा____"उन लोगों के साथ एक काकी भी है जो आज माधवगढ़ से आई हैं।"

"ओह! हां पिता जी ने बताया था मुझे।" मैंने चाय की चुस्की ले कर कहा।

"आपको पता है भैया।" कुसुम ने सहसा खुशी से मुस्कुराते हुए कहा____"काकी की एक बेटी भी है जो मेरी ही उमर की है। मेरी उससे दोस्ती भी हो गई है। बहुत अच्छी है वो।"

"अच्छा।" जाने क्यों मेरे कान खड़े हो गए उसकी बात सुन कर____"बड़ा जल्दी दोस्ती हो गई तेरी उससे।"

"हां भैया।" कुसुम ने उसी खुशी के साथ कहा____"बड़ी मां ने मुझसे कहा था कि मैं उसके साथ बातें करूं और उससे घुल मिल जाऊं जिससे उसको यहां पर अजनबीपन न महसूस हो।"

"हम्म्म्म।" मैंने चाय की चुस्की लेते हुए हुंकार भरी____"तो ऐसी क्या बातें की तुमने उससे जिससे वो तेरी इतनी जल्दी दोस्त बन गई?"

"बस ऐसे ही इधर उधर की बातें।" कुसुम ने मुस्कुराते हुए कहा____"वो अपने बारे में बताने लगी, फिर मैंने उसे सबके बारे में बताया। आपके बारे में भी बताया कि इस हवेली में आप मेरे सबसे अच्छे वाले भैया हैं और मुझे बहुत प्यार करते हैं।"

"अच्छा।" मैंने खाली कप को उसके ट्रे में रखते हुए कहा____"अगर उससे तेरी दोस्ती हो गई है तो ये बहुत अच्छी बात है फिर। उसके साथ तेरा भी अच्छे से समय कट जाया करेगा। अच्छा अब तू जा, मैं भी खेतों की तरफ जाऊंगा। विभोर और अजीत को जा कर बोल दे कि वो भी मेरे साथ चलने को तैयार हो जाएं।"

कुसुम ने हां में सिर हिलाया और फिर खुशी खुशी कमरे से चली गई। मैंने भी उठ कर अपने कपड़े पहने और नीचे गुशलखाने में हाथ मुंह धो कर मां लोगों के पास आ गया। मैंने देखा मां और चाची लोगों के पास एक औरत बैठी हुई थी। उसकी उमर यही कोई पैंतीस के आस पास रही होगी। चेहरा साफ था उसका, जिस्म भी काफी गदराया हुआ नज़र आ रहा था। मां ने मुझे देख कर उसे बताया कि मैं उनका छोटा बेटा हूं। मां की बात सुन कर उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए मुझे नमस्ते किया तो मैंने भी सिर को हल्का सा खम करके उसे नमस्ते किया। तभी मेरी नज़र रागिनी भाभी पर पड़ी। वो अपलक मुझे ही देखे जा रहीं थी। जैसे ही मेरी नज़र उनसे मिली तो वो हल्के से मुस्कुराईं। मुझे समझ न आया कि वो क्या सोच के मुस्कुराईं थी? हालाकि जवाब में मैंने भी मुस्कुरा दिया था उसके बाद मैं ये सोच कर उठ कर वहां से बाहर की तरफ चल पड़ा कि औरतों के बीच भला मेरा क्या काम?

थोड़ी ही देर में विभोर और अजीत बाहर आ गए तो मैं जीप में उन दोनों को बैठा कर खेतों की तरफ निकल गया। आसमान में काले बादलों ने अच्छा खासा अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। प्रतीत होता था कि आज वो जम के बरसेंगे।




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Hero agar kisi ko bhogega nahi to kese chalega 😁
Koi na pyaar ki baat hi kuch aur hoti hai bigade se bigade insaan ko bhi sudhar deta hai pyaar ye sach kaha Anuradha ke pyaar ke chalte chote kuwar sudhar rahe hai
Par yahan isane vachan to de diya ki vo anuradha se pyaar karta hai shadi bhi karega shadi karega kese baap bete me foot dalegi ki sahukar ki beti khud mana kar degi shadi ke liye

Gao ki ladki ka muh bola bhai kuch jyada hi meetha nahi hai itna meetha seedha koi kese ho saktaa hai jiss tarike se ye kahani chal rahi hai uss hisaab se to ye daal me kuch kala lag raha hai

Ye thakur ke ghar me jo uski nani ke yahan se 3 log aaye hai kya vo sahi bande hai ki unke liye ye dekhe layak hoga

Vaibhav ki behan se unki ladki ka itni jaldi ghul mill Jana kuch ajeeb na hai

Aur bhabhi ka yu muskurake dekhna bevajah kuch jyada hi soch vichar karne yogya hai


Kahani sahi ja rahi hai lage raho
 

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
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nice update ..saroj kaki apni pareshani lekar aa gayi vaibhav se milne ,vaibhav ko bhi tension ho gaya ki kya samasya aa gayi jo saroj dusre gaon se yaha aayi .
anuradha ki prem ki baat karne par vaibhav ne sab sach bata diya aur ye bhi bataya ki wo uski wajah se hi sudhar gaya aur achche raste par chalne laga .

aur saroj ko vachan bhi de diya ki wo anuradha se shadi karega ,par ye utna aasan bhi nahi honewala .dada thakur ki sehmati bhi leni padegi vaibhav ko .
bhuwan to khush ho gaya ki wo ab sala ban jayega vaibhav ka 🤣.
 

Tiger 786

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अध्याय - 47
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अब तक....

विभोर अभी कुछ बोलने ही वाला था कि तभी बाहर से किसी के द्वारा दरवाज़ा बजाए जाने से तीनों के तीनों ही उछल पड़े। पलक झपकते ही तीनों के चेहरों पर हवाइयां उड़ती हुई नज़र आने लगीं। दरवाज़े की तरफ टकटकी लगाए वो अपलक देखने लगे थे। डर और घबराहट के मारे कुछ ही पलों में तीनों का बुरा हाल हो गया। सबकी आंखों में एक ही सवाल मानों ताण्डव सा करने लगा था कि कौन हो सकता है बाहर?

अब आगे....

बाहर से कोई बार बार दरवाज़ा बजाए जा रहा था किंतु विभोर अजीत और गौरव में से किसी में भी हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि जा कर दरवाज़ा खोलें। सबके चेहरों पर बारह बजे हुए थे। डर और घबराहट के मारे चेहरा पसीने पसीने हुआ पड़ा था। गुज़रते वक्त के साथ उन तीनों की हालत और भी ज़्यादा ख़राब हुई जा रही थी।

"क...क..कौन हो सकता है गौरव?" विभोर के हलक से बड़ी मुश्किल से मरी हुई आवाज़ निकली____"क.. कहीं वो तो नहीं आ गया?"

"य..ये क्या कह रहे हो विभोर भाई?" गौरव को अपनी गांड़ फटती हुई महसूस हुई, बोला____"भ..भला वो यहां कैसे आ सकता है? उसे क्या पता हम यहां होंगे? नहीं नहीं, ये कोई और ही होगा।"

"ले..लेकिन कौन?" अजीत हिम्मत कर के पूछ ही बैठा____"इस वक्त कौन हो सकता है? और तो और बोल भी नहीं रहा, बस दरवाज़ा ही बजाए जा रहा है।"

"अ..अब क्या करें?" गौरव जब कोई जवाब न दे सका तो विभोर दबी हुई आवाज़ में बोला____"क्या हमें दरवाज़ा खोल कर देखना चाहिए कि बाहर कौन है?"

"इसके अलावा कोई दूसरा चारा भी तो नहीं है विभोर भाई।" गौरव मानों बेबस भाव से बोला____"दरवाज़ा तो हमें खोलना ही पड़ेगा। संभव है बाहर कोई ऐसा व्यक्ति हो जो हमारा ही आदमी हो।"

गौरव की बात सुन कर विभोर और अजीत के चेहरों पर तनिक राहत के भाव उभरते नज़र आए लेकिन डर और घबराहट में कोई कमी न हुई। इस बीच दरवाज़ा फिर से बजाया गया। उन तीनों के लिए सबसे ज़्यादा परेशानी वाली बात ये थी कि बाहर जो कोई भी था वो बोल कुछ नहीं रहा था बल्कि सिर्फ़ दरवाज़ा ही बजाए जा रहा था। इधर ये तीनों एक दूसरे का चेहरा देख रहे थे और ये उम्मीद भी कर रहे थे कि दरवाज़ा खोलने कौन जाने वाला है? आख़िर हिम्मत जुटा कर गौरव ही दरवाज़े की तरफ बढ़ा। धीमें क़दमों से चलते हुए वो दरवाज़े के क़रीब पहुंचा। अपनी घबराहट को बड़ी मुश्किल से काबू करने का प्रयास करते हुए उसने कांपते हाथ से दरवाज़े की शांकल को पकड़ा और फिर उसे बहुत ही आहिस्ता से खींच कर कुंडे से अलग किया। दिल की धड़कनें उसकी कनपटियों पर मानों हथौड़ा बरसा रहीं थी। सूखे हलक को उसने थूक निगल कर तर किया और शांकल को अपनी तरफ खींच कर दरवाज़े के पल्ले को धड़कते दिल के साथ खोला।

अभी दरवाज़े का पल्ला थोड़ा ही खुला था कि तभी वो पल्ला भड़ाक से उसके चेहरे पर बड़ी तेज़ी से टकराया जिससे दो बातें एक साथ हुईं। पहली तो गौरव के हलक से दर्दनाक चीख निकली और दूसरी उसका जिस्म हवा में लहराते हुए पीछे कमरे में जा कर धड़ाम से गिरा। कमरे के अंदर मौजूद विभोर और अजीत अचानक हुए इस कृत्य से बुरी तरह उछल पड़े। दहशत के चलते उनके हलक से चीख भी निकल गई थी।

गौरव को कमरे की ज़मीन पर यूं धड़ाम से गिर गया देख उन दोनों की जान हलक में आ कर फंस गई थी। बात सिर्फ़ इतनी ही होती तो शायद उन्हें अपने ज़िंदा होने का आभास भी हो जाता लेकिन दरवाज़े से जिस शख़्स को अंदर आते देखा उसे देख उन दोनों की आत्मा उनका शरीर छोड़ देने के लिए मानो बगावत कर उठी।

"कैसे हो मेरे खानदान के नमूनों?" मैंने उन दोनों की तरफ देखते हुए सर्द लहजे में कहा____"स्वागत नहीं करोगे हमारा?"
"व..व..वैभव..भ..भैया।" विभोर के हलक से अटकता हुआ स्वर निकला। मुझे किसी जिन्न की तरह प्रगट हो गया देख उसकी घिग्घी सी बंध गई थी। चेहरा कागज़ की तरह एकदम सफेद पड़ गया था।

"न न, वैभव भैया नहीं, हरामज़ादा।" मैंने उसकी आंखों में आंखें डाल कर उसी सर्द लहजे में कहा____"तुमने यही नाम रखा है न मेरा?"

मेरी बात सुन कर विभोर से कुछ कहते न बन पड़ा। मुझसे आंख तक मिलाने की हिम्मत न हुई उसमें। फ़ौरन ही बगले झांकने लगा था वो। अपनी धड़कनें उसे रुकती हुई सी महसूस हुईं। हलक किसी रेगिस्तान की तरह सूख गया था, जिसे तर करने के लिए मुंह में थूक का एक क़तरा भी ना बचा था। यही हाल अजीत का भी था। उधर ज़मीन पर गिरा पड़ा गौरव खुद को उठा कर कमरे के एक कोने में खड़ा कर लिया था। गांड के बल ज़मीन पर गिरा था वो इस लिए अभी भी गांड में दर्द हो रहा था उसके जिसका असर उसके बिगड़े हुए चेहरे से साफ़ नज़र आ रहा था। वैभव सिंह नाम की दहशत ने सिर्फ़ उसे ही नहीं बल्कि तीनों को ही जैसे नपुंसक बना दिया था। तीनों के जिस्म जूड़ी के मरीज़ की तरह थर थर कांपे जा रहे थे। उनकी ये हालत देख मैं मन ही मन हंसा तो ज़रूर लेकिन उनकी करनी का ख़्याल आते ही मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया।

"सांप सूंघ गया क्या तुझे?" मैं गुस्से में विभोर का कालर पकड़ कर गुर्राया____"बोल यही नाम रखा है न तूने मेरा?"
"म..मु...मुझे माफ़ कर दीजिए भैया।" विभोर मिमियाते हुए बड़ी मुश्किल से बोला।

"ठीक है, माफ़ कर दूंगा तुझे।" मैं उसी तरह उसका कालर पकड़े गुर्राया____"लेकिन ये तो बता कि ऐसा कौन सा अच्छा काम किया है तूने जिसके लिए तुझे माफ़ कर दूं? तुम दोनों ने साहूकार के इस लड़के के साथ मिल कर मुझे नामर्द बनाने का कार्य किया। इसके लिए तो मैं तुझे माफ़ भी कर सकता हूं लेकिन तूने अपनी ही बहन को घटिया काम करने पर मजबूर किया। क्या तुझे ज़रा सा भी एहसास है कि तेरे मजबूर करने पर जब उस मासूम ने ऐसे घटिया काम किए तब उस पर क्या क्या गुज़रती रही होगी? तूने अपनी ही बहन की आत्मा को छलनी किया, क्या तुझे लगता है कि इसके लिए तुझे माफ़ी मिलनी चाहिए?"

विभोर सिर झुकाए खड़ा रह गया। उसमें जैसे बोलने की अब हिम्मत ही न बची थी। मेरा मन तो कर रहा था कि उन दोनों भाईयों को वहीं ज़मीन पर जिंदा गाड़ दूं लेकिन बड़ी मुश्किल से मैं अपने गुस्से को काबू किए हुए था।

"अब बोलता क्यों नहीं हरामखोर?" उसे कुछ न बोलता देख गुस्से से मैंने एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर रसीद कर दिया जिससे वो लहरा कर एक तरफ ज़मीन में जा गिरा। गुस्से से तमतमाया हुआ मैं उसके क़रीब पहुंचा। इससे पहले कि मैं झुक कर उसको उठाता मेरे सिर पर ज़ोर से प्रहार हुआ। मेरे हलक से दर्द भरी चीख निकल गई। दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ कर लहरा गया मैं।

सिर पर हुए तीव्र प्रहार से मैं दर्द से चीखा भी था और लहरा भी गया था किंतु जल्दी ही सम्हल कर पलटा। मेरी नज़र अजीत पर पड़ी। उसके हाथ में एक मोटा सा डंडा था और चेहरे पर गुस्सा तो था लेकिन उस गुस्से में भी डर और घबराहट के भाव गर्दिश करते नज़र आ रहे थे। उसके पीछे दीवार से लगा गौरव आंखें फाड़े कभी अजीत को देखता तो कभी मुझे। शायद उसे अजीत से ऐसे कार्य की उम्मीद नहीं थी और उसे ही क्या मुझे खुद भी उससे ऐसी उम्मीद नहीं थी, लेकिन जल्दी ही समझ गया कि ऐसा करने की हिम्मत उसमें क्यों आई होगी। असल में उसे लगा होगा कि मैं अकेला ही यहां आया हूं और वो तीन लोग हैं जिससे वो मुझ पर भारी पड़ सकते हैं। मैं समझ सकता था कि मेरे प्रति इतने समय से पल रही उनकी नफ़रत ने आज शायद अपने सब्र का बांध तोड़ दिया था।

"रु..रुक क्यों गया अजीत?" अपने भाई के हाथों मुझे मार खाया देख विभोर फ़ौरन ही उठ कर खड़ा हो गया था। पलक झपकते ही उसके चेहरे पर भी नफ़रत के भाव उभर आए थे। मेरी तरफ उसी नफ़रत से देखते हुए उसने अजीत से कहा____"मार इस हरामजादे को। ये अकेला हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। इससे डरने की ज़रूरत नहीं है छोटे। आज तसल्ली से इसको सबक सिखाएंगे हम दोनों। इसकी वजह से हवेली में कभी हमारी कोई अहमियत नहीं रही। सब इसके ही गुणगान गाते थे जैसे ये कोई इंसान नहीं बल्कि भगवान हो।"

"बहुत खूब।" विभोर की ज़हर में घुली बातें सुन कर मैं मुस्कुराते हुए बोल पड़ा____"आज पहली बार गीदड़ ने शेर बनने की कोशिश की है। ख़ैर अच्छा प्रयास है, अब इससे पहले कि तेरा और तेरे भाई का जोश ठंडा पड़ जाए दोनों अपनी मर्दानगी दिखाओ मुझे।"

"लगता है तुझे हमारी मर्दानगी देखने की बड़ी जल्दी है।" अजीत डंडे को पकड़े मेरी तरफ दो क़दम आगे बढ़ कर बोला____"फ़िक्र मत कर, आज हम तेरी वो हालत करेंगे कि तुझे अपने जन्म लेने पर अफ़सोस होगा।"

"पीछे से वार करने वाले हिंजड़े होते हैं बेटा।" मैंने उसकी खिल्ली उड़ाने वाले भाव से कहा____"सच्चा मर्द है तो अब आगे से वार कर के दिखा। मैं भी तो देखूं कि बिल में रहने वाले चूहों में कितना कसबल है?"

मेरी बात सुन कर दोनों भाई बुरी तरह तिलमिला उठे और यही तो मैं चाहता था। गुस्से में तिलमिलाए हुए अजीत ने तेज़ी से डंडे को घुमा कर मुझ पर प्रहार किया लेकिन मैंने आराम से झुक कर उसके वार से खुद को बचा लिया। इससे पहले कि वो संभल पाता मेरी टांग घूम गई जोकि सीधा उसके डंडे पर पड़ी, परिणामस्वरुप डंडा उसके हाथ से छूट कर दूर फिसल गया। उसके बाद जल्दी ही मैंने उसकी पीठ पर दुहत्थड़ जमा दिया जिससे वो ज़मीन चाटता नज़र आया। अभी मैं सम्हला ही था कि पीछे से विभोर ने मुझे दबोच लिया।

"अजीत जल्दी से उठ और डंडे को उठा कर इसका सिर फोड़ दे।" मुझे मजबूती से पकड़े विभोर ज़ोर से चिल्लाते हुए अजीत से बोला था____"आज या तो ये नहीं या फिर हम नहीं।"

विभोर की बात पर अजीत ने फ़ौरन ही अमल किया। वो तेज़ी से उठा और दूर पड़े डंडे को उठा लिया। इधर मैं विभोर से छूटने की कोशिश कर रहा था। विभोर पूरी ताक़त से मुझे पकड़े हुए था। शायद करो या मरो वाली बात उसके ज़हन में समा गई थी। उसे पता था कि अगर उन दोनों भाईयों ने मुझे मौका दिया तो ये उनके लिए ठीक नहीं होगा। इधर मैं भी जानता था कि इस वक्त वो दोनों होश में नहीं हैं। मेरे प्रति उनके अंदर जो नफ़रत भरी हुई थी वो उन्हें होश में आने ही नहीं दे सकती थी।

अजीत डंडे को मजबूती से पकड़े मेरी तरफ बढ़ा। मैंने जब देखा कि वो मेरे क़रीब ही आ गया है तो मैने जल्दी से अपनी कुहनी का वार पीछे विभोर के चेहरे पर किया जिससे उसने दर्द से बिलबिलाते हुए जल्दी ही मुझे छोड़ दिया। अभी मैं उससे छूट कर सम्हला ही था कि उधर अजीत का डंडा घूम गया जो तेज़ी से मेरी तरफ आया। मैं बिजली की सी तेज़ी से एक तरफ को हट गया जिससे डंडे का वार कच्ची ज़मीन पर ज़ोर से पड़ा।

मेरे ख़्याल से तमाशा बहुत हो गया था और अब इस तमाशे को ख़त्म करने का वक्त आ गया था। मैंने देखा विभोर फिर से मुझे पकड़ने के लिए मेरी तरफ लपका लेकिन मैंने एक लात उसके पेट पर जमा दी जिससे वो पेट पकड़ कर दोहरा हो गया। इधर अजीत एक बार फिर से डंडा लिए मेरी तरफ लपका मगर हवा में ही मैने उसके डंडे को थाम लिया और एक लात उसके पेट पर जमा दिया जिससे वो भी अपना पेट पकड़ कर दर्द से दोहरा हो गया। मैंने उसके हाथ से डंडा छुड़ाया और फिर दे दनादन दोनों भाईयों पर डंडे बरसाने शुरू कर दिए। कमरे में दोनों की चीखें गूंजने लगीं। दीवार से पीठ टिकाए खड़ा गौरव उन दोनों को इस तरह दर्द से चीखते देख थर थर कांपे जा रहा था। मैंने विभोर और अजीत पर तब तक डंडे बरसाए जब तक कि वो दोनों मुझसे रहम की भीख न मांगने लगे। कमरे की ज़मीन पर दोनों लहू लुहान हुए पड़े थे। मुझे उन दोनों पर इतना गुस्सा आया हुआ था कि मैं एक बार फिर से दोनों पर डंडे बरसाने ही चला था कि तभी कमरे के दरवाज़े से आई एक भारी आवाज़ को सुन कर रुक गया।


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दरवाज़े पर पिता जी यानि दादा ठाकुर खड़े थे और उनके पीछे जगताप चाचा के साथ साथ और भी कई सारे लोग थे। पिता जी का चेहरा जहां शांत था वहीं जगताप चाचा के चेहरे पर गुस्सा दिख रहा था। दरवाज़े पर उन सबको खड़ा देख कमरे में मौजूद विभोर अजीत और गौरव तीनों की ही नानी मर गई।

कुछ ही पलों में एक एक कर के सब कमरे में आ गए। गौरव ने जब अपने ताऊ मणि शंकर को देखा तो उसकी हालत और भी ज़्यादा ख़राब हो गई। कमरे में हमारे अलावा पिता जी, जगताप चाचा, बड़े भैया (अभिनव सिंह) और साहूकार मणि शंकर थे। पिता जी के साथ सुरक्षा के लिए जो हमारे आदमी आए थे वो बाहर ही रुक गए थे।

जगताप चाचा विभोर और अजीत की तरफ गुस्से से देखे जा रहे थे। प्रतिपल उनका गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। अचानक वो आगे बढ़े और मेरे हाथ से डंडा छीन लिया। इससे पहले कि वो गुस्से में कुछ करते पिता जी की शख़्त आवाज़ सुन कर अपनी जगह पर रुक गए।

"मुझे मत रोकिए बड़े भैया।" फिर वो गुस्से से कह उठे____"आज इन दोनों ने मुझे आपकी नज़रों से गिरा दिया है। मुझे यकीन नहीं हो रहा कि ये मेरी अपनी औलादें हैं जिन्होंने इतना घटिया कर्म किया है। इससे अच्छा तो यही है कि मैं ऐसा कुकर्म करने वाली अपनी औलादों की अपने हाथों से ही जान ले लूं।"

"होश में आओ जगताप।" पिता जी ने शख्त लहजे में कहा____"इस मामले को शांति से और ठंडे दिमाग़ से देखना है हमें। हम जानना चाहते हैं कि इन लोगों ने जो कुछ भी किया है वो क्यों किया है और किसके कहने पर किया है?"

"अब सुनने को रह ही क्या गया है भैया?" जगताप चाचा ने सहसा दुखी भाव से कहा____"सब कुछ तो बाहर से सुन ही लिया है हम सबने। मुझे बस इजाज़त दीजिए ताकि ऐसी औलादों को मैं अपने हाथों से मार मार कर ख़त्म कर सकूं।"

"हमने क्या कहा तुम्हें समझ में नहीं आया क्या?" पिता जी ने इस बार जगताप चाचा की तरफ गुस्से से देखते हुए कहा____"अब ख़ामोश रहो और हमें इन लोगों से बात करने दो।"

जगताप चाचा पिता जी की बात सुन कर ख़ामोश रह गए। एक तरफ जहां बड़े भैया सोचो में गुम से हो कर खड़े थे वहीं दूसरी तरफ मणि शंकर भी चेहरे पर अजीब से भाव लिए ख़ामोश खड़ा था। इधर विभोर अजीत और गौरव एक कोने में सिमटे हुए बैठे हुए थे। चेहरों पर मुर्दानगी छाई हुई थी उनके।

"हमने ये तो सुन लिया है कि तुम दोनों ने वैभव के साथ वो सब इस लिए किया क्योंकि तुम दोनों इससे नफ़रत करते थे।" पिता जी ने विभोर और अजीत दोनों को बारी बारी से देखते हुए कहा____"और ये भी सुन लिया है कि इसके लिए तुमने खुद अपनी ही बहन और हमारी बेटी कुसुम को भी मजबूर कर रखा था। अब हम ये जानना चाहते हैं कि इसके अलावा और क्या किया है तुमने और साथ ही ऐसे काम में गौरव के अलावा और कौन कौन तुम्हारे साथ शामिल है?"

पिता जी की बातें सुन कर विभोर और अजीत दोनों ही कुछ न बोले। डर और घबराहट से उन दोनों का बुरा हाल था और साथ ही शर्मिंदगी के मारे उनका चेहरा झुका हुआ था। जब काफी देर गुज़र जाने पर भी वो दोनों कुछ न बोले तो पिता जी ने तेज़ आवाज़ में घुड़कते हुए दुबारा वही सब पूछा।

"इसके अलावा और कुछ नहीं किया हमने।" विभोर ने दबी हुई आवाज़ में बोलने का साहस किया____"हमारे इस काम में सिर्फ़ गौरव ही हमारे साथ रहा है। इसका काम सिर्फ दवा लाना ही था। हमें नहीं पता कि ये कहां से वो दवा ले कर आता था जिसे चाय में हर रोज़ थोड़ा थोड़ा मिला कर पिलाने से इंसान की मर्दानगी समाप्त हो जाती है।"

"और बड़े भैया को ऐसी कौन सी घूंटी पिलाते थे तुम लोग?" मैंने उन दोनों की तरफ देखते हुए शख़्त भाव से पूछा____"जिसके प्रभाव से ये हमेशा तुम दोनों के साथ ही चिपके रहते थे?"

"इसका जवाब मैं देता हूं वैभव।" पिता जी के पीछे खड़े बड़े भैया अचानक से बोल पड़े तो मैं और पिता जी पलट कर उनकी तरफ देखने लगे, जबकि उन्होंने आगे कहा____"जब मुझे पता चला था कि मेरा जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है तो मैं इस बात से बेहद दुखी हो गया था। एकदम से ऐसा लगने लगा था जैसे दुनिया में अब मेरे लिए कुछ रह ही नहीं गया है। मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक से मेरे साथ ये क्या हो गया था? उधर तू अपनी ही दुनिया में मस्त रहता था। मुझे तुझसे हमेशा ईर्ष्या होती थी लेकिन ये भी सोचता था कि सबके नसीब में जीवन का ऐसा आनंद कहां? अगर तू अपने ऐसे जीवन से खुश है तो मुझे तुझसे ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए, बल्कि खुश होना चाहिए। आख़िर तू मेरा छोटा भाई है। ख़ैर, अपने साथ ऊपर वाले के द्वारा की गई इस नाइंसाफी की वजह से मैं बहुत व्यथित था। तेरी भाभी भी इस सबसे बेहद दुखी थी लेकिन अब भला इसमें किसी का क्या ज़ोर चल सकता था? पिता जी ने इस बारे में किसी को कुछ भी बताने से मना कर रखा था लेकिन इन्हें भला इस बात का एहसास कैसे हो सकता था कि मुझ पर क्या गुज़र रही थी? सोचा था अपने दिल का हाल तुझे बताऊंगा और तेरे साथ अपनी ज़िंदगी के बचे हुए दिन गुज़ारुंगा लेकिन तभी एक दिन तुझे भी पिता जी ने बहिष्कृत कर के गांव से निकाल दिया। सबको ये भी कह दिया कि जो कोई भी तुझसे मिलने की या संबंध रखने की कोशिश करेगा उसको भी वही सज़ा दी जाएगी। तेरे यूं अचानक से चले जाने के बाद मैं एकदम से अकेला पड़ गया। हर गुज़रते दिनों के साथ ये सोच सोच कर मेरी हालत बद से बदतर होती जा रही थी कि एक दिन ऐसा आ जाएगा जब मैं सबको छोड़ कर इस दुनिया से चला जाऊंगा। अंदर ही अंदर मुझे ये दुख खाए जा रहा था जिसकी वजह से मैं चिड़चिड़ा हो गया।हर रोज़ तेरी भाभी पर गुस्सा करने लगा, जबकि उस बेचारी का तो कोई कसूर ही नहीं था। ख़ैर एक दिन मैंने विभोर और अजीत को जीप से कहीं जाते हुए देखा तो मैंने इन दोनों को रुकने को कहा और फिर इनके साथ मैं भी जीप में बैठ कर चल दिया। मैं नहीं जानता था कि ये लोग कहां जा रहे थे अथवा मुझे अपने इन छोटे भाइयों के साथ जाना चाहिए था कि नहीं लेकिन खुद को बहलाने के लिए उस वक्त मुझे जो सही लगा मैंने वही किया। इन दोनों के साथ सारा दिन मैं इधर से उधर घूमता रहा। हवेली के कमरे में इतनों दिनों तक पड़े पड़े मैं ऊब गया था इस लिए उस दिन मुझे इनके साथ घूमने से थोड़ा अच्छा महसूस हुआ। उसके बाद मैं हर रोज़ इन दोनों के साथ घूमने जाने लगा। फिर एक दिन गौरव से मुलाक़ात हुई। शुरू शुरू में गौरव मेरी वजह से असहज महसूस करता था लेकिन फिर हमारे बीच सब कुछ सामान्य हो गया। मैं नहीं जानता था कि ये तीनों जब एक साथ होते थे तो क्या करते थे लेकिन एक दिन मैंने इन्हें बगीचे वाले मकान में गांजा पीते हुए देख लिया। इन तीनों की तो हालत ही ख़राब हो गई थी लेकिन मैंने इन लोगों को उसके लिए कुछ नहीं कहा। कहता भी क्यों, सबको अपनी इच्छा के अनुसार जीवन जीने का हक़ है। उनके पास बहुत बड़ा जीवन था इस लिए वो हर चीज़ का आनंद उठा रहे थे, लेकिन मेरे पास तो कुछ ही समय का जीवन था। मैंने सोचा अपने इन छोटे भाइयों के साथ मैं भी खुशी के कुछ पल गुज़ार लेता हूं। बस, उसके बाद से यही सिलसिला चलने लगा। मैं भी इन लोगों के साथ गांजा पीने लगा। धीरे धीरे मुझे गांजा पीने की लत लग गई तो मैं खुद ही इन लोगों को साथ ले कर हवेली से निकल लेता और कहीं एकान्त में जा कर हम तीनों गांजा पीते। विभोर ने बताया था कि गांजे का जुगाड़ गौरव करता था। मैंने इससे कभी नहीं पूछा कि ये कहां से ऐसा गांजा ले कर आता था जिसे पीने के बाद मैं अपने सारे दुख दर्द भूल जाता था। गांजा पीने के बाद मैं एक अलग ही तरह की रंगीन दुनिया में खो जाता था। एक ऐसी रंगीन दुनिया में जहां जीवन बहुत ही सुंदर दिखता था और इस बात का एहसास ही नहीं रह जाता था कि एक दिन मुझे हक़ीक़त वाली दुनिया से रुखसत भी हो जाना है।"

बड़े भैया चुप हुए तो कमरे में ब्लेड की धार की मानिंद पैना सन्नाटा छा गया। सबके चेहरों पर गभीरता के भाव गर्दिश करते नज़र आ रहे थे। इधर मैं ये सोचने लगा था कि मेरे न रहने पर मेरे भैया को कितना कुछ सहना पड़ा था। मैं समझ सकता था कि वो उस समय कितनी बुरी स्थित से गुज़रे रहे होंगे।

"हमें माफ़ करना बेटे, हमने कभी तुम्हारी तकलीफ़ों को दूर करने या उन्हें साझा करने का प्रयत्न नहीं किया।" पिता जी ने गंभीर भाव से कहा_____"लेकिन यकीन मानों कुल गुरु की उस भविष्यवाणी को सुन कर हम भी बेहद दुखी थे। किसी के सामने अपने सीने के नासूर बन गए दर्द को दिखा नहीं सकते थे और यही हमारे लिए सबसे बड़े दुःख का कारण बन गया था। हर पल ऊपर वाले से यही पूछते थे कि आख़िर क्यों उसने हमारे बेटे का जीवन इतना कमतर बनाया?"

"आपको माफ़ी मांगने की ज़रूरत नहीं है पिता जी।" बड़े भैया ने कहा____"मैं समझ सकता हूं कि ये सब आपके लिए भी कितना असहनीय रहा होगा।"

"बड़े भैया, क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकता हूं?" मैंने झिझकते हुए बड़े भैया से कहा तो वो मेरी तरफ देख कर मुस्कुराए और फिर बोले____"बेझिझक हो के पूछ छोटे। तुझे मुझसे इजाज़त लेने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

"क्या इसके अलावा भी आप इन दोनों के साथ कुछ करते थे?" मैंने एक बार फिर से झिझकते हुए कहा____"मेरा मतलब है कि ये लोग हवेली की नौकरानी शीला को कुसुम के कमरे में ले जा कर उसके साथ रंगरलियां मनाते थे तो क्या आप भी इस काम में इनका साथ देते थे?"

"मैं तो रात में इनके पास गांजा पीने जाता था वैभव।" बड़े भैया ने कहा____"जैसा कि मैंने बताया मुझे गांजा पीने की लत लगी हुई थी इस लिए तेरी भाभी के सो जाने के बाद मैं इनके कमरे में गांजा पीने के लिए जाता था। एक दिन मुझे इन दोनों का ये राज़ भी नज़र आ गया कि ये लोग हवेली की एक नौकरानी के साथ मौज मस्ती भी करते हैं। पहले तो मुझे ये सोच कर हैरानी हुई थी कि ये दोनों भी तेरे नक्शे क़दम पर चल रहे हैं लेकिन फिर ये सोच कर इन्हें कुछ नहीं कहा कि जीवन इनका है इस लिए मुझे इनके किसी भी तरह के काम में हस्ताक्षेप नहीं करना चाहिए। वैसे भी मैं ज़्यादा समय का मेहमान नहीं था इस लिए मैं किसी से बैर भाव या मन मुटाव जैसी बात नहीं रखना चाहता था। ख़ैर, मैंने इन्हें कुछ नहीं कहा और इनके पास से गांजा ले कर एक दूसरे खाली कमरे में चला गया। कई बार तो जब मैं गांजे के नशे में होता था तो ये लोग मेरे सामने ही शीला के साथ रंगरलियां मनाते थे। मुझे अंधेरे में ठीक से कुछ दिखता तो नहीं था किंतु आवाज़ों से पता चलता रहता था कि क्या हो रहा है।"

"क्या इन लोगों ने कभी आपको शीला के साथ वो सब करने के लिए नहीं कहा?" मैंने बड़ी हिम्मत कर के पूछा तो बड़े भैया ने पहले वहां मौजूद सबकी तरफ देखा उसके बाद शांत भाव से कहा____"कई बार इन दोनों ने हंसी मज़ाक में मुझसे कहा था लेकिन मैं कभी इसके लिए राज़ी नहीं हुआ। एक दिन मैंने देखा कि ये लोग कुसुम के कमरे में शीला के साथ लगे हुए थे तो मैं इन दोनों पर बेहद गुस्सा हुआ। ये दोनों डर तो गए थे लेकिन फिर इन्होंने मुझे यकीन दिलाया कि कुसुम को इस बारे में कुछ भी पता नहीं है। मैंने जब डांटते हुए इनसे ये कहा कि कुसुम को पता हो या न हो लेकिन ऐसा गंदा काम उसके कमरे में नहीं करना चाहिए तो इन लोगों ने कहा कि ये ऐसा इस लिए करते हैं ताकि इससे अलग तरह का एहसास हो और एक अलग ही तरह का मज़ा आए।"

अपने से बड़ों के सामने खुल कर ऐसी बातें करने और सुनने में यकीनन मुझे और शायद भैया को भी शर्म और झिझक महसूस हो रही थी किंतु इसके बावजूद मैं ये सब बातें सबके सामने करवा रहा था ताकि असलियत सबको पता चल जाए। हालाकि मणि शंकर की मौजूदगी में ऐसी बातें नहीं होनी चाहिए थीं लेकिन अब जब बातें खुल ही गईं थी तो भला किसी की मौजूदगी से क्या फ़र्क पड़ता था?

"और क्या आपको भी ये पता था कि ये दोनों कुसुम के द्वारा चाय में नामर्द बनाने वाली दवा मिला कर मुझे पिलाते थे?" मैंने एक एक नज़र विभोर और अजीत की तरफ डालते हुए बड़े भैया से कहा____"क्या आपको कभी इन पर उस सबके अलावा और किसी भी चीज़ का शक नहीं हुआ?"

"शक तो तब होता है छोटे जब किसी से ऐसे किसी काम की उम्मीद हो।" बड़े भैया ने कहा____"मैं तो ज़्यादातर गांजे के नशे में ही गुम रहता था। ऐसा भी कह सकते हो कि मैं हर किसी से विरक्त हो गया था। मुझे भला ये कैसे पता हो सकता था कि ये लोग मेरे पीठ पीछे और क्या क्या कारनामें करते थे?"

"हे ईश्वर!" जगताप चाचा सहसा आहत भाव से बोल पड़े____"ये कैसी नीच औलादों को मेरी औलादें बना कर भेजा है तूने? मैं सोच भी नहीं सकता था कि मेरे ये दोनों सपूत इतने गंदे और घटिया काम भी करते होंगे। आज इनकी वजह से मेरा सिर शर्म से झुक गया है। मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहा। मुझे अपने देवता समान बड़े भैया की नज़रों से ऐसा गिराया है कि अब शायद ही मैं कभी सिर उठा पाऊं।"

कहने के साथ ही जगताप चाचा का चेहरा एकाएक गुस्से से भभक उठा। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता वो तेज़ी से आगे बढ़े और ज़मीन पर पड़े डंडे को उठा कर विभोर और अजीत को मारना शुरू कर दिया। कमरे में एकदम से दर्द भरी चीखें गूंज उठीं। मैं, बड़े भैया और मणि शंकर तो अपनी जगह पर ही खड़े रहे किंतु पिता जी जगताप चाचा की तरफ तेज़ी से बढ़े।

"रुक जाओ जगताप रुक जाओ।" उनके क़रीब पहुंचते ही पिता जी ने जगताप चाचा के उस हाथ को थाम लिया जिस हाथ में उन्होंने डंडा ले रखा था, फिर कठोर भाव से बोले____"बस बहुत हुआ। अब अगर तुमने इन दोनों पर हाथ उठाया तो हमसे बुरा कोई नहीं होगा।"

"मुझे मत रोकिए भैया।" जगताप चाचा क्रोध से खीझते हुए बोले____"आज मैं इन लोगों को जान से मार दूंगा। मुझे ऐसे बेटों के मर जाने का ज़रा सा भी दुख नहीं होगा जिन्होंने ऐसे ऐसे नीच कर्म किए हैं। मुझे तो सोच कर ही शर्म आती है कि इन लोगों ने क्या क्या किया है जबकि ऐसा नीच और गंदा काम करने पर इन्हें रत्ती भर भी शर्म नहीं आई। मुझे मत रोकिए भैया, इन्हें जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है।"

"तुमने किसी के बारे में फ़ैसला सुनाने का अधिकार कब से अपने हाथ में ले लिया?" पिता जी ने इस बार गुस्से से कहा____"मत भूलो कि इस गांव का ही नहीं बल्कि आस पास के अठारह गांव के लोगों के बारे में फ़ैसला सुनाने का हक़ सिर्फ़ और सिर्फ़ हमें है।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए भैया।" जगताप चाचा की आंखों से सहसा आंसू छलक पड़े____"इस वक्त मुझे किसी बात का होश नहीं है। मुझे बस इतना पता है कि मेरे इन कपूतों ने ऐसा कुकर्म किया है जिसके लिए इन्हें इस धरती पर जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है।"

"इन दोनों के साथ क्या करना है इसका फ़ैसला हम करेंगे।" पिता जी ने शख़्त भाव से कहा____"मगर उससे पहले हम मणि शंकर जी के उस भतीजे से भी जानना चाहते हैं कि उसने इन दोनों का ऐसे काम में साथ क्यों दिया? क्या उसे ज़रा भी इस बात का ख़्याल नहीं रहा था कि इस सबका अंजाम क्या हो सकता है?"

पिता जी की बातें सुन कर जगताप चाचा कुछ न बोले बल्कि गुस्से से डंडे को एक तरफ फेंक दिया। विभोर और अजीत जो कि पहले ही मेरे द्वारा की गई कुटाई से लहू लुहान हो गए थे वो जगताप चाचा के डंडों की मार से फिर से दर्द में कराहने लगे थे। उधर उन दोनों के पीछे दीवार से टिका गौरव अपनी सांसें रोके खड़ा था। डर और घबराहट से उसका बुरा हाल था।

"हमने अपनी तरफ से पूरा प्रयास किया है मणि शंकर जी कि हमारे परिवारों के बीच अच्छे संबंध बने रहें।" पिता जी घूम कर मणि शंकर से मुखातिब हुए____"और दोनों ही परिवारों के बच्चे एक दूसरे से अच्छा बर्ताव करते हुए आपस में मैत्री भाव रखें लेकिन मैत्री भाव का मतलब ये नहीं होता कि किसी एक की मित्रता के लिए दूसरे के साथ इतना बड़ा धोखा या इतना बड़ा कुकर्म किया जाए।"

"ठाकुर साहब, इस बारे में मैं अपने भतीजे का बिलकुल भी पक्ष नहीं लूंगा।" मणि शंकर ने गंभीरता से कहा____"मैं ये भी नहीं कहूंगा कि ये लोग अभी बच्चे हैं क्योंकि बच्चों वाला इन्होंने काम ही नहीं किया है। जो लड़के किसी लड़की अथवा किसी औरत के साथ ऐसे संबंध बनाते फिरते हों वो बच्चे तो हो ही नहीं सकते। इस लिए ना तो मैं अपने भतीजे का पक्ष ले कर ये कहूंगा कि आप इसके अपराधों के लिए इसे क्षमा कर दीजिए और ना ही आपके भतीजों का पक्ष लूंगा। ये सब अपराधी हैं और इनके अपराधों के लिए आप इन्हें जो भी दंड देंगे मुझे स्वीकार होगा।"

मणि शंकर की बात पूरी होते ही एक बार फिर से कमरे में ब्लेड की धार की मानिंद पैना सन्नाटा पसर गया। मैं मणि शंकर के चेहरे को ही अपलक निहारे जा रहा था और समझने की कोशिश कर रहा था कि उसकी बातें उसके चेहरे पर मौजूद भावों से समानता रखती हैं अथवा नहीं?



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Vaibhav ne akhirkar teeno ki tikdi ko pakad hi liya.ab dada thakur kya saza denge
Superb update
 

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TheBlackBlood

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Ab to beta Ghana chakravyuh me fas gaye h ek apne jholi me dal di gyi h to dusre ko bhi apni jholi me Lana h....


Ab dekhna h ki vaibhav kaise do ladkiyo se shadi karta h ....


Halaki mughe lagta h ki ye line lambi hone wali h kuch time baad kahi kusum bhabhi ka bhi naam na Jud jaye .. .


Ab jo ye naye log aaye h mughe inse khatre ki bu aa rahi h shayad Inka safedposh se koi connection nikal aaye....


Let's see what happens next......

Ati Sundar update Bhai saab

Super awsm update
Jbrdsti twist laye ho Bhai dekhte he kisse shadi hoti h aur bhabhi k sath kaise relationship bnta h vaibhav ka waiting for your next update brother luvd this one

Shandar update

Zabardast update bro

Hero agar kisi ko bhogega nahi to kese chalega 😁
Koi na pyaar ki baat hi kuch aur hoti hai bigade se bigade insaan ko bhi sudhar deta hai pyaar ye sach kaha Anuradha ke pyaar ke chalte chote kuwar sudhar rahe hai
Par yahan isane vachan to de diya ki vo anuradha se pyaar karta hai shadi bhi karega shadi karega kese baap bete me foot dalegi ki sahukar ki beti khud mana kar degi shadi ke liye

Gao ki ladki ka muh bola bhai kuch jyada hi meetha nahi hai itna meetha seedha koi kese ho saktaa hai jiss tarike se ye kahani chal rahi hai uss hisaab se to ye daal me kuch kala lag raha hai

Ye thakur ke ghar me jo uski nani ke yahan se 3 log aaye hai kya vo sahi bande hai ki unke liye ye dekhe layak hoga

Vaibhav ki behan se unki ladki ka itni jaldi ghul mill Jana kuch ajeeb na hai

Aur bhabhi ka yu muskurake dekhna bevajah kuch jyada hi soch vichar karne yogya hai


Kahani sahi ja rahi hai lage raho

nice update ..saroj kaki apni pareshani lekar aa gayi vaibhav se milne ,vaibhav ko bhi tension ho gaya ki kya samasya aa gayi jo saroj dusre gaon se yaha aayi .
anuradha ki prem ki baat karne par vaibhav ne sab sach bata diya aur ye bhi bataya ki wo uski wajah se hi sudhar gaya aur achche raste par chalne laga .

aur saroj ko vachan bhi de diya ki wo anuradha se shadi karega ,par ye utna aasan bhi nahi honewala .dada thakur ki sehmati bhi leni padegi vaibhav ko .
bhuwan to khush ho gaya ki wo ab sala ban jayega vaibhav ka 🤣.

Vaibhav ne akhirkar teeno ki tikdi ko pakad hi liya.ab dada thakur kya saza denge
Superb update
Thanks all
 

TheBlackBlood

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अध्याय - 94
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थोड़ी ही देर में विभोर और अजीत बाहर आ गए तो मैं जीप में उन दोनों को बैठा कर खेतों की तरफ निकल गया। आसमान में काले बादलों ने अच्छा खासा अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। प्रतीत होता था कि आज वो जम के बरसेंगे।


अब आगे....



अनुराधा रसोई में दोपहर का खाना बना के अपनी मां सरोज के आने की प्रतीक्षा कर रही थी। उसका छोटा भाई अनूप खाना खाने के बाद बरामदे में ही अपने मिट्टी के खिलौनों के साथ खेल रहा था जबकि अनुराधा बरामदे में रखी चारपाई पर सोचो में गुम बैठी थी।

सरोज अनुराधा को बता कर गई थी कि वो वैभव से मिलने उसके गांव जा रही है। अपनी मां की ये बात सुन कर अनुराधा की धड़कनें एकाएक ही थम गईं थी। उसे ये सोच कर घबराहट सी होने लगी थी कि उसकी मां वैभव से जाने क्या क्या कहेगी? हालाकि अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर अनुराधा ने अपनी मां से बस इतना ही कहा था कि वो वैभव को कुछ भी उल्टा सीधा न बोले। जवाब में सरोज ने उसे तीखी नज़रों से देखा था और फिर बिना कुछ कहे ही घर से बाहर निकल गई थी। उसके जाते ही अनुराधा की हालत ख़राब होने लगी थी।

अपनी मां के जाने के बाद वो बेमन से रसोई में जा कर दोपहर का खाना बनाने लगी थी। वो खाना ज़रूर बना रही थी लेकिन उसका पूरा ध्यान अपनी मां पर ही था और इस बात पर भी कि जाने अब क्या होगा? किसी तरह खाना बना तो उसने सबसे पहले अपने छोटे भाई को खिलाया और फिर बरामदे में रखी चारपाई पर बैठ कर वो अपनी मां के आने का इंतजार करने लगी थी।

जैसे जैसे वक्त गुज़र रहा था वैसे वैसे अनुराधा की हालत और भी ख़राब होती जा रही थी। उसने सैकड़ों बार मन ही मन ऊपर वाले को याद कर के उनसे सब कुछ अच्छा होने की प्रार्थना की थी। जब से उसका भेद उसकी मां के सामने खुला था तभी से वो इस बारे में चिंतित थी। हालाकि ये कहना भी ग़लत न होगा कि भुवन की वजह से वो अपनी मां को सब कुछ बता पाई थी और इसी के चलते उसके अंदर का बोझ और उसकी तड़प कुछ हद तक कम हो गई थी। उस वक्त तो उसे थोड़ा चैन भी मिल गया था जब उसने भुवन के द्वारा ये सुना था कि वैभव भी शायद उससे प्रेम करता है क्योंकि उसकी तकलीफ़ से वैभव को भी तकलीफ़ होती है। भुवन के अनुसार ऐसा तभी होता है जब कोई व्यक्ति किसी से प्रेम करता है। अनुराधा को ये जान कर अत्यंत खुशी हुई थी लेकिन अब जबकि सब कुछ जानने के बाद उसकी मां वैभव से मिलने गई थी तो उसके मन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे थे जिसके चलते उसकी हालत ख़राब होती जा रही थी।

आख़िर बड़ी मुश्किल से वक्त गुज़रा और बाहर के दरवाज़े को खोल कर उसकी मां अंदर दाख़िल होती हुई नज़र आई। सरोज को देखते ही उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं और वो एकदम से ब्याकुल और बेचैन सी नज़र आने लगी। उधर सरोज ने अंदर आने के बाद पलट कर दरवाज़ा अंदर से बंद किया और फिर नर्दे के पास जा कर अपने हाथ पैर धोने लगी।

अनुराधा ने देखा कि उसकी मां ने उसे देखने के बाद भी कुछ नहीं बोला तो उसकी धड़कनें फिर से थमती हुई प्रतीत हुईं। वो अपनी मां से फ़ौरन ही सब कुछ जान लेना चाहती थी लेकिन उससे पूछने की वो चाह कर भी हिम्मत न जुटा सकी। जब उसे कुछ न समझ आया तो वो चारपाई से जल्दी से उठी और रसोई में जा कर अपनी मां के लिए खाने की थाली सजाने लगी। मन में तरह तरह के ख़याल बुनते हुए उसने जल्दी से थाली तैयार की और फिर उसे ले कर बरामदे में आ गई।

उधर सरोज अपने हाथ पैर धोने के बाद बरामदे में आई और एक बोरी को दीवार से सटा कर रखने के बाद उसमें बैठ गई। वो जैसे ही बैठी तो अनुराधा ने खाने की थाली को चुपचाप उसके सामने रख दिया। उसके बाद जल्दी ही उसने एक लोटे में पानी भी ला कर मां के सामने रख दिया।

"अनूप को खाना खिलाया कि नहीं तूने?" रोटी का एक निवाला तोड़ते हुए सरोज ने अनुराधा से पूछा।

"ह...हां मां।" अनुराधा ने खुद को सम्हालते हुए झट से कहा____"उसे तो बहुत पहले ही खिला दिया था मैंने। बस तुम्हारे ही आने की प्रतीक्षा कर रही थी।"

"हम्म्म्म।" सरोज ने रोटी के निवाले को मुंह में डालने के बाद उसे चबाते हुए कहा____"और तूने खाया?"

"वो मैं तुम्हारे आने की प्रतीक्षा कर रही थी।" अनुराधा ने धड़कते दिल से कहा____"मैंने सोचा जब तुम आ जाओगी तो साथ में ही खाऊंगी।"

"अरे! तुझे खा लेना चाहिए था।" सरोज ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा____"मुझे वापस आने में समय तो लग ही जाना था। ख़ैर जा तू भी खा ले। मुझे अब कुछ नहीं चाहिए।"

अनुराधा पूछना तो बहुत कुछ चाहती थी लेकिन उसकी हिम्मत न पड़ी इस लिए बेमन से वो पलटी और रसोई की तरफ बढ़ गई। कुछ ही देर में वो अपने लिए थाली में खाना ले कर आ गई और अपनी मां के पास ही चुपचाप बैठ गई। उसने एक नज़र सरोज पर डाली तो उसे आराम से खाना खाते हुए पाया। उसे समझ न आया कि उसकी मां इतना आराम से कैसे खाना खा रही थी? उसके अनुसार तो उसे गुस्से में नज़र आना चाहिए था।

अनुराधा का बहुत जी चाह रहा था कि वो अपनी मां से पूछे लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। दूसरे उसे झिझक के साथ साथ शर्म भी महसूस हो रही थी कि उसके पूछने पर उसकी मां उसके बारे में जाने क्या सोचेगी। वो बस मन ही मन दुआ कर रही थी कि मां खुद ही सब कुछ बता दे।

"वैसे मिल आई हूं वैभव से।" अनुराधा के कानों में उसकी मां की आवाज़ पड़ी तो वो एकदम से चौंकी और उसने अपनी मां की तरफ देखा। मन ही मन उसने ऊपर वाले को धन्यवाद दिया कि उसने उसकी दुआ सुन ली। उधर सरोज ने बिना उसकी तरफ देखे ही सपाट भाव से कहा____"मुझे तो पूरा यकीन था कि उसने तुझे भी बाकी लड़कियों की तरह अपने जाल में फांस रखा रहा होगा लेकिन उसकी बातें सुनने के बाद एहसास हुआ कि मैं ग़लत थी।"

अनुराधा की धड़कनें एकदम से मंद मंद चलने लगीं थी। सरोज के चुप होते ही उसने पूछना चाहा कि आख़िर वैभव ने उससे क्या बातें की लेकिन मारे झिझक और शर्म के पूछ न सकी। बस हलक में सांसें अटकाए और आस भरी नज़रों से देखती रही अपनी मां को। किंतु जब काफी देर गुज़र जाने पर भी सरोज ने आगे कुछ न कहा तो जैसे अनुराधा के सब्र का बांध टूट गया और उसकी सारी झिझक तथा शर्म छू मंतर सी हो गई।

"अ...आख़िर ऐसा क्या कहा तुमसे छोटे कुंवर ने मां?" अनुराधा ने दबी आवाज़ में पूछा।

अनुराधा के यूं पूछने पर सरोज ने मुंह में लिए निवाले को चबाना बंद कर उसकी तरफ अजीब भाव से देखा तो अनुराधा एकदम से सिमट गई और उसकी नज़रें झुक गईं। ये देख सरोज मन ही मन मुस्कुरा उठी किंतु अगले ही पल उसके अंदर एक टीस सी उभरी, ये सोच कर कि वो कौन सी मनहूस घड़ी थी जब उसने वैभव के साथ नाजायज़ संबंध बना लिया था। काश! उसे पता होता कि आगे चल कर उसी वैभव से उसकी बेटी प्रेम करने लगेगी और वैभव उससे ब्याह करने का उसको वचन भी देगा।

सरोज को इस बात के चलते बहुत बुरा महसूस हो रहा था मगर वो भी जानती थी कि होनी तो हो चुकी है इस लिए अब उसके बारे में सोच कर दुखी होने से या बुरा महसूस होने से भला क्या होगा? उसने मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि अब से वो वैभव के बारे में कभी भूल से भी ग़लत ख़याल अपने ज़हन में नहीं आने देगी। आख़िर वो उसका होने वाला दामाद था और वो उसकी होने वाली सास जोकि मां समान ही होती है।

"बात ये थी कि मैं तेरे जीवन को बर्बाद होते नहीं देख सकती थी।" फिर सरोज ने अनुराधा से नज़र हटाने के बाद कहा____"इस लिए मैंने उससे साफ शब्दों में बातें की और ये निश्चित किया कि उसकी वजह से तेरा जीवन आबाद हो, ना कि बर्बाद।"

सरोज की बातें अनुराधा के कानों में ज़रूर पड़ीं लेकिन उसकी समझ में कुछ न आया। इस लिए उसने सिर उठा कर फिर से अपनी मां की तरफ देखा। इस बार उसे ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा।

"इतना तो उसने भी बताया कि वो भी तुझसे वैसे ही प्रेम करता है जैसे तू उससे करती है।" सरोज ने कहा____"लेकिन अपनी बेटी के सुखी जीवन की खातिर मेरे लिए इतना सुन लेना काफी नहीं था। सिर्फ प्रेम करने से तो तेरा जीवन नहीं संवर सकता था ना इस लिए मुझे उसके मुख से वो सुनना था जिसके चलते तेरा जीवन हमेशा के लिए सुखी भी हो जाए।"

अनुराधा को मानो अभी भी कुछ समझ नहीं आया। वो सोचने लगी कि आज उसकी मां ये कैसी अजीब अजीब बातें कर रही है?

"जब मैंने वैभव से इस संबंध में बातें की तो उसने आख़िर वो कह ही दिया जो मैं सुनना चाहती थी और जिसके चलते मैं चिंता से मुक्त हो सकती थी।" सरोज ने कहा____"उसने साफ शब्दों में मुझसे कहा है कि वो तुझसे ब्याह करेगा और इस बात का उसने मुझे वचन भी दिया है।"

सरोज की ये बात सुन कर अनुराधा के दिलो दिमाग़ में पलक झपकते ही मानो धमाका सा हुआ। आश्चर्य से उसकी आंखें फैल गईं। वो किसी बुत की तरह चकित अवस्था में अपनी मां को देखती रह गई। फिर अचानक ही जैसे उसे होश आया तो उसने महसूस किया कि उसकी धड़कनें धाड़ धाड़ कर के बजने लगीं हैं जिनकी धमक उसे अपने कानों में गूंजती महसूस हो रही हैं।

बिजली की तरह उसके मन में ये बात बैठ गई कि वैभव उसके साथ ब्याह करेगा। उसने मन ही मन चकित भाव से कहा_____'हाय राम! क्या सच में ऐसा हो सकता है? किंतु ऐसा तो मैंने सोचा ही नहीं था।'

अनुराधा अपना खाना पीना भूल कर अगले कुछ ही पलों में जाने कौन सी दुनिया में गोता लगाने लगी। उसके दिलो दिमाग़ में उथल पुथल सी मच गई थी जिसे रोकना अथवा सम्हालना जैसे उसके बस में ही नहीं रह गया था। अचानक ही उसकी आंखों के सामने रंग बिरंगे कुछ ऐसे चित्र घूमने लगे जिन्हें देख कर उसका चेहरा खुशी से चमकता नज़र आया मगर फिर एकाएक ही उसके उस चमकते चेहरे पर लाज की सुर्खी भी छाती नज़र आई। उसकी नज़रें झुकती चली गईं। बार बार गुलाबी होठों पर एक गहरी मुस्कान थिरकने लगी जिसे वो जी तोड़ कोशिश कर के छुपाने की कोशिश करने लगी। उसका मन किया कि वो फ़ौरन ही खाना पीना छोड़ कर भागते हुए अपने कमरे में पहुंच जाए और फिर अकेले में वो खुशी के मारे उछलना कूदना शुरू कर दे। अपनी हालत को काबू करने का प्रयास करते हुए एकाएक वो उठने ही लगी थी कि तभी....

"अरे! कहां जा रही है?" सरोज ने उसे देखते हुए मानों टोका_____"पहले ठीक से खाना तो खा ले। उसके बाद अपने कमरे में जा कर खुशियां मना लेना।"

मां की ये बात सुन कर अनुराधा शर्म से मानो पानी पानी हो गई। उसके ज़हन में बिजली की तरह ख़याल उभरा कि उसकी मां को उसकी हालत के बारे में इतना अच्छे से कैसे पता चल गया? उसमें नज़र उठा कर मां की तरफ देखने की हिम्मत न हुई। खुद को समेटे वो किसी तरह वापस बैठ गई और फिर सिर झुकाए ही चुपचाप खाना खाने लगी। उधर सरोज उसकी ये हालत देख कर मन ही मन मुस्कुरा उठी। वो सोचने लगी कि सच में उसकी बेटी अब जवान हो गई है।

खुशी के मारे अनुराधा से कुछ खाया ही नहीं जा रहा था लेकिन खाना खाना उसकी मजबूरी थी इस लिए मजबूरन उसे किसी तरह खाना ही पड़ा। बड़ी मुश्किल से उसका खाना ख़त्म हुआ। सरोज खा चुकी थी और अब वो बरामदे में रखी चारपाई पर आराम करने के लिए लेट गई थी। इधर अनुराधा झट से उठी और अपनी तथा मां की थाली को उठा कर उसे नर्दे के पास रख दिया। उसके बाद वो लगभग दौड़ते हुए अपने कमरे की तरफ भागती चली गई।

कमरे में आ कर उसने सबसे पहले दरवाज़ा अंदर से बंद किया और फिर चारपाई पर पीठ के बल लेट कर अपनी आंखें बंद कर ली। होठों पर उभर आई मुस्कान के साथ उसने पहली बार चैन की लंबी सांस ली। अगले ही पल उसकी बंद पलकों में वैभव का मनमोहक चेहरा उभर आया और वो उसके साथ जाने कैसे कैसे ख़्वाब बुनने लगी। उसे पता ही न चला कि कब उसकी दोनों आंखों की कोरों से खुशी के आंसू निकल कर उसकी कनपटी को छूते हुए चारपाई में बिछी चादर पर फ़ना हो गए।

✮✮✮✮

जैसा कि आसमान में छाए बादलों को देख कर ही प्रतीत हुआ था कि बारिश होगी तो बिल्कुल वैसा ही हुआ। शाम होने में थोड़ा वक्त था जब बारिश शुरू हुई। सारे मजदूर भाग कर मकान में आ गए। मैं, विभोर और अजीत जीप से वापस हवेली जाने का सोच रहे थे किंतु भुवन ने मुझे रोक लिया, ये कह कर कि तेज़ बारिश में जाना ठीक नहीं है। एक तो कच्चा रास्ता दूसरे बारिश के चलते कीचड़ जिसकी वजह से तेज़ बारिश में जीप चलाना उचित नहीं था। भुवन की बात मान कर मैं तखत पर बैठ गया था।

सारे मजदूरों को देखते हुए अचानक मेरे मन में एक विचार आया जिसके बारे में सोचने से मुझे काफी अलग सा महसूस हुआ और साथ ही एक खुशी का आभास भी हुआ। मैंने निश्चय कर लिया कि अपने मन में उठे इस विचार पर ज़रूर अमल करूंगा।

ख़ैर आधा घंटा तेज़ बारिश हुई। एक बार फिर से खेतों में पानी नज़र आने लगा था। बारिश रुकी नहीं थी क्योंकि हल्की हल्की फुहारें अभी भी आसमान से ज़मीन पर गिर रहीं थी। कच्चा रास्ता पहले से और भी ज़्यादा ख़राब नज़र आने लगा था लेकिन जाना तो था ही इस लिए विभोर और अजीत को ले कर मैं जीप में बैठा और फिर उसे स्टार्ट कर हवेली की तरफ निकल गया।

जब मैं हवेली पहुंचा तो सूरज पूरी तरह डूब चुका था और शाम का धुंधलका छा गया था। हाथ पांव धो कर मैं अपने कमरे में आ गया। कपड़े उतार कर मैंने नीचे गमछा लपेट लिया, जबकि ऊपर बनियान थी। बारिश होने की वजह से बिजली गुल हो गई थी मगर लालटेन का पीला प्रकाश कमरे में फैला हुआ था। मेरी लाडली बहन को मेरा बहुत ख़्याल रहता था। बिजली के न रहने पर अक्सर शाम को वो मेरे कमरे की लालटेन जला कर चली जाती थी।

मैं पलंग पर आराम करने के लिए लेटने ही वाला था कि तभी खुले दरवाज़े से किसी के अंदर आने की आहट हुई। मुझे लगा कुसुम होगी इस लिए अपने अंदाज़ में दरवाज़े की तरफ चेहरा कर के मैं अभी कुछ बोलने ही वाला था कि आने वाले व्यक्ति पर नज़र पड़ते ही मैं चुप रह गया।

एक अजनबी लड़की को अकेले मेरे कमरे में दाख़िल होता देख मैं एकदम से चौंक पड़ा। मेरी नज़रें उस पर ही जम गईं। उधर वो जैसे ही मेरे क़रीब आई तो लालटेन की रोशनी में मुझे उसकी शक्लो सूरत स्पष्ट नज़र आई और सच तो ये था कि मैं अपलक उसे देखता ही रह गया। इतना तो मैं समझ गया था कि ये वही लड़की है जिसके बारे में कुसुम ने मुझे बताया था किंतु वो इतनी आकर्षक होगी इसकी उम्मीद नहीं थी मुझे। हालाकि मेरी लाडली बहन के आगे वो कुछ भी नहीं थी किंतु अगर उसको अलग दृष्टि से देखा जाए तो वो बहुत कुछ थी।

कुसुम ने सही कहा था वो उसके ही उमर की थी। जिस्म एकदम नाज़ुक सा किंतु एकदम सांचे में ढला हुआ। घाघरा चोली पहने हुए थी वो जिसके चलते उसके पेट का हिस्सा साफ दिख रहा था। पेट में मौजूद उसकी नाभी को देख मेरे अंदर हलचल सी होने लगी थी। चोली में ढंकी उसकी छातियां एकदम तनी हुईं थी। सुराहीदार गले के ऊपर उसका ताज़े खिले गुलाब की मानिंद चेहरा एक अलग ही तरह से मुझे आकर्षित करने लगा था। उस पर उसकी बड़ी बड़ी किंतु गहरी आंखें जो काजल लगा होने की वजह से और भी क़ातिल लग रहीं थी।

"न...नमस्ते छोटे कुंवर।" उसकी खनकती आवाज़ से मैं एकदम से ही आसमान से ज़मीन पर आया और थोड़ा हड़बड़ा कर उसकी तरफ देखा। फिर मैंने जल्दी ही खुद को सम्हालते हुए उसके नमस्ते का जवाब दिया।

मैंने देखा उसके हाथ में पीतल का ट्रे था जिसमें चाय का एक कप और ग्लास में पानी रखा हुआ था। वो थोड़ा और मेरे क़रीब आई और फिर मुस्कुराते हुए झुक कर मेरी तरफ ट्रे को बढ़ाया तो अनायास ही मेरी गुस्ताख़ नज़रें उसकी चोली के बड़े गले में से अचानक ही उजागर हो ग‌ए दो पर्वत शिखरों पर जा पड़ीं। मुझे पूरा यकीन था कि अगर वो थोड़ा और झुक जाती तो उसकी छातियां और भी ज़्यादा मेरी नज़रों के सामने उजागर हो जातीं। उसकी छातियों के बीच की गहरी दरार देख मेरा हलक सूख गया और साथ ही मेरे समूचे जिस्म में सिहरन सी दौड़ गई।

"हाय राम!" तभी मैं उसकी खनकती आवाज़ से चौंक पड़ा और साथ ही हड़बड़ा भी गया। मैंने झटके से उसकी तरफ देखा तो वो एकदम से सीधा खड़ी हो गई। उसके चहरे पर शर्म की हल्की लाली छा गई थी। मैं समझ गया कि उसे पता चल गया है कि मैं उसकी छातियां देख रहा था।

"आप तो बड़े ख़राब और बदमाश हैं छोटे कुंवर।" फिर उसने मुझे एक अलग ही अदा से घूरते हुए कहा____"भला कोई किसी लड़की को ऐसे देखता है क्या?"

"व...वो...वो माफ़ करना मुझे।" मुझसे कुछ कहते ना बना।

हालाकि मैं ये सोच कर एकदम से चौंक भी पड़ा कि मैं किसी लड़की के सामने इस तरह से कैसे हड़बड़ा गया और तो और उससे माफ़ी भी मांग बैठा। उधर मेरी बात सुन कर अचानक ही वो खिलखिला कर हंसने लगी। ऐसा लगा जैसे पूरे कमरे में घंटियां बज उठीं हों। मैं भौचक्का सा तथा मूर्खों की तरह उसे हंसते हुए देखने लगा। मेरे जीवन में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि मैं किसी लड़की के सामने इस तरह से असहज हो गया होऊं।

"अरे! लगता है आप डर गए हमसे।" फिर उसने अपनी हंसी को रोक कर किंतु मुस्कुराते हुए कहा____"अगर ये सच है तो फिर हम यही कहेंगे कि कुसुम ने आपके बारे में हमें ग़लत बताया था। ख़ैर छोड़िए, लीजिए चाय पीजिए नहीं तो ये ठंडी हो जाएगी। वैसे आप ठंडी चीज़ के शौकीन तो नहीं होंगे न?"

मतलब हद ही हो गई। एक लड़की जो मेरे लिए अजनबी थी और मैं उसके लिए वो इतनी बेबाकी से मुझसे बातें कर रही थी? इतना ही नहीं मेरे जैसे सूरमा को अपनी बातों तथा हरकतों से एकदम अवाक सा कर चुकी थी। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि आख़िर ये क्या बला है?

"बहुत खूब।" मैं जो अब तक उसके बारे में एक राय बना कर सम्हल चुका था बोला____"बहुत ही दिलचस्प। वैसे, क्या कुसुम ने तुम्हें बताया नहीं कि ठाकुर वैभव सिंह के कमरे में उस औरत जात का आना वर्जित है जो हवेली के बाहर की पैदाइश हो?"

"जी नहीं।" उसने पूरी बेबाकी के साथ कहा____"हमें तो कुसुम ने ऐसा कुछ भी नहीं बताया। वैसे आपके कमरे में किसी औरत जात का आना क्यों वर्जित है भला?"

"मेरा ख़याल है कि तुम्हें अपने इस सवाल का जवाब मुझसे नहीं।" मैंने उसकी कजरारी आंखों में देखते हुए कहा____"बल्कि हवेली में मौजूद किसी और व्यक्ति से मांगना चाहिए। तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं कि इसके लिए तुम्हें ज़्यादा तकलीफ़ उठाने की ज़रूरत भी नहीं पड़ेगी। तुम जिससे पूछोगी वही तुम्हें विस्तार से सब कुछ बता देगा। ख़ैर, लाओ चाय दो, मुझे सच में ठंडी चीज़ों का शौक नहीं है।"

मेरी बात सुन कर उसने मेरी तरफ ट्रे को बढ़ाया और इसके लिए उसे फिर से झुकना पड़ा किंतु इस बार मैंने उसकी चोली में से झांकती छातियों की तरफ नहीं देखा। ये देख उसके होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई।

"एक बात पूछें आपसे?" उसने सीधा खड़े होते हुए कहा तो मैंने उसकी तरफ देखते हुए पलकें झपका कर इशारा कर दिया कि वो पूछ ले।

"आपको ठंडी चीज़ों का शौक नहीं है।" उसने पूरी निडरता से मेरी आंखों में देखते हुए कहा____"तो क्या गरम चीज़ों का भी शौक नहीं है?"

"क्या मतलब?" मैं उसकी बात सुन कर एकदम से चौंका।
"सोचिए।" उसने मुस्कुराते हुए बड़ी अदा से कहा____"अच्छा अब हम चलते हैं....छोटे कुंवर जी।"

कहने के साथ ही वो हवा के झोंके की तरह कमरे से बाहर निकल गई। मेरी तरफ से जैसे वो कुछ भी सुनना ज़रूरी नहीं समझी थी। उसकी बातों के साथ साथ उसके यूं चले जाने पर मेरे ज़हन में बस एक ही बात आई कि ज़रूर भेजा खिसका हुआ है इस लड़की का।


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