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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

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What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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354
Jivan me utar chadav aur jindgi parchit dost ya dushman ke aage piche hi ghoomti hai .
Vaibhav ko hero banane ke liye nahi bol rahe par kuchh update se bilkul darshak jaisa ho gya hai baki soch duba hua par karni zero .
Vaibhav ka charector change kiye good boy jaisa khatak jata hai . Soch hona dheere dheere badlna sambhav par buri aadte sex drugs sharab ye sab sochne se nahi chhut jati lambe tak prayash aur mehnat ke baad hi badlti wo bhi puri trah se nahi .
Iron bhai, vaibhav sirf aurto ka rasiya tha. Sharab gaanja afeem ya drugs wagairah se wo koso door tha. Yaad kijiye, first time murari ke sath desi daru aur bidi pine wala uska scene. Agar wo nashe ka addict hota to beshak Maan liya jata ki wo itna jaldi sudharne wala insaan nahi ho sakta tha. Wo sirf aurato ka shikaar kar ke maze karta tha, is kaam me bhi usne kisi ke sath kabhi koi zor zabardasti nahi ki thi. Kya aapne is kahani me kabhi use sharab pite huye ya koi nasha karte huye dekha hai... :roll:
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
43,937
116,039
304
Iron bhai, vaibhav sirf aurto ka rasiya tha. Sharab gaanja afeem ya drugs wagairah se wo koso door tha. Yaad kijiye, first time murari ke sath desi daru aur bidi pine wala uska scene. Agar wo nashe ka addict hota to beshak Maan liya jata ki wo itna jaldi sudharne wala insaan nahi ho sakta tha. Wo sirf aurato ka shikaar kar ke maze karta tha, is kaam me bhi usne kisi ke sath kabhi koi zor zabardasti nahi ki thi. Kya aapne is kahani me kabhi use sharab pite huye ya koi nasha karte huye dekha hai... :roll:
Maine udahran diya tha shubham bhai sharab ke sath sex bhi likha tha .
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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Maine udahran diya tha shubham bhai sharab ke sath sex bhi likha tha .
Main samajh gaya bhai par main bhi to yahi bata raha hu ki wo sirf aurto ke sath sex ka shaukeen tha. Sex karne ka use koi nasha nahi tha aur na hi aisi uski lat thi. Kyoki jise sex ki lat lagi hoti hai wo sex karne ke liye koi bhi tarika apnane par utaaru ho jata hai. Zor zabardasti kar ke rape hi kar daalta hai insaan magar vaibhav ke case me aisa nahi tha. Wo aurat ki marzi se hi sex karta tha...isi se zaahir hai ki wo pure hosho hawash me rahne wala insaan tha. Agar use kisi nashe ki lat lagi hoti to iske pahle hi uska koi dushman use tapka chuka hota...
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,518
354
अध्याय - 90
━━━━━━༻♥༺━━━━━━


"ऊपर वाले के ख़ौफ से डरो चंद्रकांत।" गौरी शंकर उसके सफ़ेद झूठ बोलने पर पहले तो बड़ा हैरान हुआ फिर बोला____"अपने बेटे की मौत के बाद भी तुम्हें एहसाह नहीं हुआ कि हमने और तुमने मिल कर कितना ग़लत किया था दादा ठाकुर के साथ। मुझे तो अब ऐसा लग रहा है कि अपने बदले की आग में अंधे हो कर तुमने खुद ही अपने बेटे की हत्या की है और उसका इल्ज़ाम मेरे भतीजे रूपचंद्र के साथ साथ दादा ठाकुर पर भी लगाया है। अगर वाकई में ये सच है तो तुम्हें अपनी इस नीचता के लिए चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाना चाहिए।"


अब आगे....


"चंद्रकांत, इस मामले के बारे में ईमानदारी से अपनी बात पंचायत के सामने रखो।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने सख़्त भाव से कहा____"अगर तुम झूठ के आधार पर किसी निर्दोष को फंसाने का सोच रहे हो तो समझ लो इसका बहुत ही बुरा ख़ामियाजा तुम्हें भुगतना पड़ सकता है।"

"मैं मानता हूं ठाकुर साहब कि मैं गौरी शंकर जी से मिलने इनके खेत पर गया था और इनसे वो सब कहा भी था।" चंद्रकांत ने महेंद्र सिंह की बात पर एकदम से घबरा कर कहा____"किंतु ये सच है कि मैं बेवजह अथवा झूठ के आधार पर किसी को फंसा नहीं रहा हूं। मैं बदले की भावना में इतना भी अंधा नहीं हुआ हूं कि अपने ही हाथों अपने इकलौते बेटे की हत्या करूंगा और फिर उसकी हत्या का इल्ज़ाम इन लोगों पर लगाऊंगा। चलिए मैं मान लेता हूं कि दादा ठाकुर ने मेरे बेटे की हत्या नहीं की होगी लेकिन मैं ये नहीं मान सकता कि रूपचंद्र ने भी मेरे बेटे की हत्या नहीं की होगी।"

"ऐसा तुम किस आधार पर कह रहे हो?" ठाकुर महेंद्र सिंह ने पूछा____"क्या तुमने अपनी आंखों से रूपचंद्र को तुम्हारे बेटे की हत्या करते हुए देखा है या फिर तुम्हारे पास कोई ऐसा गवाह है जिसने रूपचंद्र को तुम्हारे बेटे की हत्या करते हुए देखा हो?"

"नहीं ठाकुर साहब।" चंद्रकांत एकदम हताश हो कर बोला____"यही तो मेरा दुर्भाग्य है कि ना तो मैंने ऐसा देखा है और ना ही किसी और ने। किंतु मेरी बहू ने जो कुछ बताया है उससे साफ ज़ाहिर होता है कि रूपचंद्र ने ही मेरे बेटे रघुवीर की हत्या की है।"

"ऐसा क्या बताया है तुम्हारी बहू ने?" ठाकुर महेंद्र सिंह ने हैरानी से देखते हुए कहा____"अपनी बहू को बुलाओ, हम उसके मुख से ही सुनना चाहेंगे कि उसने तुम्हें ऐसा क्या बताया था जिसके आधार पर तुमने ये मान लिया कि रूपचंद्र ने ही तुम्हारे बेटे की हत्या की है?"

चंद्रकांत ने बेबस भाव से रजनी को इशारे से अपने पास बुलाया। रजनी सिर पर घूंघट डाले आ कर खड़ी हो गई। चेहरा घूंघट के चलते ढंका हुआ था इस लिए ये पता नहीं चल पाया कि इस वक्त उसके चहरे पर किस तरह के भाव थे? बहरहाल महेंद्र सिंह के पूछने पर रजनी ने झिझकते हुए पिछली रात की सारी बात बता दी जिसे सुन कर महेंद्र सिंह के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए।

"इस बात से कहां साबित होता है कि रूपचंद्र ने ही रघुवीर की हत्या की है?" फिर उन्होंने चंद्रकांत से कहा____"क्या तुम्हारे पास कोई ऐसा गवाह है जिसने अपनी आंखों से रघुवीर की हत्या करते हुए देखा है? पंचायत में बिना किसी सबूत अथवा प्रमाण के तुम किसी पर इल्ज़ाम नहीं लगा सकते और ना ही किसी को हत्यारा कह सकते हो।"

"मैं मानता हूं ठाकुर साहब कि मेरे पास कोई प्रमाण नहीं है।" चंद्रकांत ने सहसा दुखी भाव से कहा____"लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं है ना कि मेरे बेटे की किसी ने हत्या की ही नहीं है। इन लोगों के अलावा मेरी किसी से कोई दुश्मनी अथवा बैर नहीं है फिर कोई दूसरा क्यों मेरे बेटे की हत्या करेगा?"

"अगर तुम मानते हो कि किसी दूसरे ने तुम्हारे बेटे की हत्या नहीं की है बल्कि इन लोगों ने ही की है तो इसे साबित करने के लिए तुम पंचायत के सामने सबूत अथवा प्रमाण पेश करो।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने स्पष्ट भाव से कहा____"बिना किसी प्रमाण के किसी को भी हत्यारा नहीं माना जाएगा। हमारा ख़याल है कि इस मामले में तहक़ीकात करने की ज़रूरत है। हम खुद देखना चाहेंगे कि तुम्हारे बेटे की हत्या किस जगह पर हुई और साथ ही उसे किस तरीके से मारा गया है? तब तक के लिए पंचायत बर्खास्त की जाती है।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह जी कुर्सी से उठ गए। उनके साथ बाकी लोग भी उठ गए। भीड़ में मौजूद लोग दबी आवाज़ में तरह तरह की बातें करने लगे थे। इधर महेंद्र सिंह के पूछने पर चंद्रकांत ने बताया कि उसे अपने बेटे की लाश कहां और किस हालत में मिली थी?

महेंद्र सिंह के साथ पिता जी, मैं, गौरी शंकर, रूपचंद्र, और खुद चंद्रकांत चल पड़े। जल्दी ही हम उस जगह पर पहुंच गए जहां पर रघुवीर की लाश मिली थी।

चंद्रकांत का घर गांव में दाखिल होते ही सबसे पहले पड़ता था जबकि गांव से बाहर की तरफ जाने पर सबसे आख़िर में। उसके घर से कुछ ही दूरी पर साहूकारों के घर थे। बहरहाल हम सब चंद्रकांत के घर के पीछे पहुंचे। घर के चारो तरफ क़रीब चार फीट ऊंची चार दिवारी थी जो कि लकड़ी की मोटी मोटी बल्लियों द्वारा बनाई गई थी। सामने की तरफ बड़ा सा चौगान था जिसके एक तरफ गाय भैंस बंधी होती थीं। पीछे की तरफ एक कुआं था और साथ ही दूसरी तरफ छोटा सा सब्जी और फलों का बाग़ था।

रघुवीर की लाश जिस जगह मिली थी वो घर के बगल से जो खाली जगह थी वहां पर पड़ी हुई थी। उस जगह पर ढेर सारा खून फैला हुआ था। क़रीब से देखने पर एकदम से ही दुर्गंध का आभास हुआ। वो दुर्गंध पेशाब की थी। ज़ाहिर है उस जगह पर पेशाब किया जाता था। लाश को क्योंकि चंद्रकांत ने सुबह ही वहां से हटा लिया था इस लिए वहां पर सिर्फ खून ही फैला हुआ दिख रहा था जोकि ज़्यादातर सूख गया था और जो बचा था उसके ऊपर मक्खियां भिनभिना रहीं थी।

"हमारा ख़याल है कि हत्या रात में ही किसी पहर की गई थी।" पिता जी ने सहसा महेंद्र सिंह से कहा____"ज़्यादातर खून सूख चुका है जिससे यही ज़ाहिर होता है। हमें लगता है कि रघुवीर रात के किसी पहर पेशाब लगने के चलते घर से बाहर यहां आया होगा। हत्यारा पहले से ही उसकी ताक में यहां कहीं मौजूद रहा होगा और फिर जैसे ही रघुवीर यहां पेशाब करने के लिए आया होगा तो उसने उसकी हत्या कर दी होगी।"

"शायद आप ठीक कह रहे हैं।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"किंतु सबसे बड़ा सवाल ये है कि हत्यारे को ये कैसे पता रहा होगा कि रघुवीर रात के कौन से पहर पेशाब करने घर से बाहर आएगा?"

"हो सकता है कि ये इत्तेफ़ाक ही हुआ हो कि जिस समय हत्यारा यहां पर मौजूद था उसी समय रघुवीर पेशाब लगने के चलते बाहर आया।" पिता जी ने जैसे संभावना ज़ाहिर की____"या फिर हत्यारे ने रघुवीर के हर क्रिया कलाप को पहले से ही अच्छी तरह गौर फरमा लिया रहा होगा। हमारा मतलब है कि उसने पहले ये जांचा परखा होगा कि रघुवीर पेशाब करने के लिए रात के कौन से वक्त पर घर से बाहर निकलता है। कुछ लोगों की ये आदत होती है कि उनकी पेशाब लगने की वजह से अक्सर रात में नींद खुल जाती है और फिर वो बिस्तर से उठ कर पेशाब करने जाते हैं। संभव है कि रघुवीर के साथ भी ऐसा ही होता रहा हो। हत्यारे ने उसकी इसी आदत को गौर किया होगा और फिर उसने एक दिन अपने काम को अंजाम देने का सोच लिया।"

"क्या रघुवीर अक्सर रातों को उठ कर पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकलता था?" महेंद्र सिंह ने पलट कर चंद्रकांत से पूछा।

"हां ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने स्वीकार किया____"उसकी तो शुरू से ही ऐसी आदत थी। मैं खुद भी रात में एक दो बार पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकलता हूं। मेरा बेटा भी लगभग रोज ही रात में पेशाब करने के लिए उठता था और फिर घर से बाहर आता था।"

"यानि आपका सोचना एकदम सही था।" महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"वाकई में रघुवीर पेशाब करने के चलते ही बाहर आया। हत्यारा जोकि रघुवीर की इस आदत से परिचित था वो यहां पर उसी की प्रतीक्षा कर रहा था। जैसे ही रघुवीर पेशाब करने के लिए बाहर आया तो उसने उसे एक झटके में मार डाला।"

"तुम्हें कब पता चला कि रघुवीर की हत्या हो गई है?" पिता जी ने चंद्रकांत से पूछा।

"सुबह ही पता चला था।" चंद्रकांत की आवाज़ भारी हो गई____"रात में तो मुझे किसी तरह का आभास ही नहीं हुआ। सुबह जब मैं पेशाब करने के लिए इस जगह पर आया तो अपने बेटे की खून से लथपथ पड़ी लाश को देख कर मेरी जान ही निकल गई थी।"

"यानि हत्यारे ने एक झटके में ही रघुवीर को मार डाला था।" महेंद्र सिंह ने कहा____"हमारा ख़याल है कि रघुवीर को ज़रा सा भी एहसास नहीं हुआ होगा कि कोई उसकी हत्या करने के लिए उसके पास ही मौजूद है। उधर हत्यारा भी अच्छी तरह समझता था कि अगर उसने ग़लती से भी रघुवीर को सम्हलने का मौका दिया तो वो शोर मचा देगा जिससे वो पकड़ा जाएगा। ख़ैर चलिए देखते हैं कि हत्यारे ने रघुवीर को किस तरीके से मारा होगा?"

हम सब जल्दी ही घर के सामने आ गए। घर के बाएं तरफ एक लकड़ी के तखत पर रघुवीर की लाश को रख दिया गया था। तखत में भी उसका बचा कुचा खून फैल गया था। बाहर काफी संख्या में भीड़ थी जो लाश को देखने के लिए आतुर हो रही थी किंतु हमारे आदमियों ने उन्हें रोका हुआ था।

रघुवीर के गले पर एक मोटा सा चीरा लगा हुआ था जो कि सामने की तरफ से था और पूरे गले में था। ज़ाहिर है रघुवीर बुरी तरह तड़पा होगा किंतु हत्यारे ने उसे शोर मचाने का कोई भी मौका नहीं दिया होगा। चंद्रकांत के बयान से तो यही ज़ाहिर होता था क्योंकि उसे भनक तक नहीं लगी थी। भनक तो तब लगती जब रघुवीर कोई आवाज़ कर पाता। यानि हत्यारे ने रघुवीर का गला तो काटा ही किंतु उसके मुख को तब तक दबाए रखा रहा होगा जब तक कि तड़पते हुए रघुवीर की जीवन लीला समाप्त नहीं हो गई होगी।

"काफी बेदर्दी से जान ली है हत्यारे ने।" महेंद्र सिंह ने रघुवीर के गले में दिख रहे मोटे से चीरे को देखते हुए कहा____"ऐसा तो कोई बेरहम व्यक्ति ही कर सकता है।"

"इन लोगों के अलावा इतनी बेरहमी कौन दिखा सकता है ठाकुर साहब?" चंद्रकांत दुखी भाव से बोल पड़ा____"इन लोगों ने ही मेरे बेटे की इस तरह से हत्या की है। इन्होंने अपने भाई और बेटे की हत्या का बदला मेरे बेटे की हत्या कर के लिया है। मुझे इंसाफ़ चाहिए ठाकुर साहब।"

"अगर हमें तुम्हारे बेटे की हत्या ही करनी होती तो यूं चोरी छुपे नहीं करते।" पिता जी ने इस बार सख़्त भाव से कहा____"बल्कि डंके की चोट पर करते, जिस तरह गौरी शंकर के अपनों की हत्या की थी। हालाकि अब हमें अपने किए गए कर्म पर बेहद अफसोस और दुख है लेकिन सच यही है कि हमने ये सब नहीं किया है। हमने अपने जीवन में पहले कभी किसी के साथ कुछ ग़लत नहीं किया था और ये बात तुमसे बेहतर कोई नहीं जानता। तुम हमें हमारे बचपन से जानते हो। फिर ये कैसे सोच सकते हो कि हमने तुम्हारे बेटे की हत्या की है?"

"जब तक कोई प्रमाण नहीं मिलता तब तक तुम किसी पर भी अपने बेटे की हत्या का इल्ज़ाम नहीं लगा सकते।" महेंद्र सिंह ने कहा____"बेहतर यही है कि पहले प्रमाण खोजो और फिर पंचायत में इंसाफ़ की मांग करो।"

"मैं भला कहां से प्रमाण खोजूंगा ठाकुर साहब?" चंद्रकांत ने आहत भाव से कहा____"मुझे तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अब कभी भी मेरे बेटे का हत्यारा नहीं मिलेगा और जब वो मिलेगा ही नहीं तो भला कैसे कोई इंसाफ़ होगा?"

"अगर तुम ठाकुर साहब पर भरोसा करते हो तो इनसे आग्रह करो कि ये तुम्हारे बेटे के हत्यारे का पता लगाएं।" महेंद्र सिंह ने जैसे सुझाव दिया।

"नहीं ठाकुर साहब।" पिता जी ने कहा____"हम ऐसे किसी भी मामले को अपने हाथ में नहीं लेना चाहते। हम ये भी जानते हैं कि चंद्रकांत को हम पर कभी भरोसा नहीं हो सकता। बेहतर यही है कि चंद्रकांत खुद अपने बेटे के हत्यारे का पता लगाए और फिर अपने बेटे की हत्या का इंसाफ़ मांगे।"

"अगर ऐसी बात है तो यही बेहतर होगा।" महेंद्र सिंह कहने के साथ ही चंद्रकांत से मुखातिब हुए____"ख़ैर हमें ये बताओ कि तुमने ये कैसे सोच लिया कि तुम्हारे बेटे की हत्या ठाकुर साहब ने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के की है?"

"सुबह जब मैंने अपने बेटे की खून से लथपथ लाश देखी तो मेरी चीख निकल गई थी।" चंद्रकांत ने दुखी भाव से कहा____"मेरी चीख सुन कर रघुवीर की मां, मेरी बहु और बेटी तीनों ही बाहर भागते हुए आईं थी। जब उन लोगों ने रघू की खून से लथपथ लाश देखी तो उनकी भी हालत ख़राब हो गई। उसके बाद हम सबका रोना धोना शुरू हो गया। इसी बीच मेरी बहू रजनी ने रोते हुए कहा कि ये सब रूपचंद्र ने किया है। उसकी बात सुन कर मैं उछल ही पड़ा था। मेरे पूछने पर उसने बताया कि कैसे पिछले दिन शाम को जब वो दिशा मैदान कर के वापस लौट रही थी तो रास्ते में रूपचंद्र ने उसे रोक लिया था। रूपचंद्र उसकी इज़्ज़त के साथ खेलना चाहता था जिसके लिए उसने उसे सबको बता देने की धमकी दी थी। मेरी बहू के अनुसार उसकी इस धमकी की वजह से रूपचंद्र बहुत गुस्सा हुआ था तो ज़ाहिर है कि इसी गुस्से में उसने मेरे बेटे की हत्या की होगी।"

"तो फिर तुम ये क्यों कह रहे थे कि ये सब दादा ठाकुर ने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के किया है?" महेंद्र सिंह ने कहा____"क्या तुम बेवजह ही इन्हें अपने बेटे की हत्या में जोड़ कर लोगों के बीच इन्हें बदनाम करना चाहते थे?"

"नहीं ठाकुर साहब।" चंद्रकांत हड़बड़ा कर जल्दी से बोला____"असल में कुछ दिन पहले मैंने सुना था कि ये गौरी शंकर जी के घर गए थे सुलह करने और फिर गौरी शंकर जी भी इनकी हवेली गए थे। मुझे लगा ये दोनों आपस में मिल गए हैं। दूसरी बात साहूकारों का विनाश कर के तो इन्होंने अपने भाई और बेटे की हत्या का बदला ले लिया था किंतु मुझसे और मेरे बेटे से नहीं ले सके थे। मुझे यकीन हो गया कि इन्होंने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के मेरे बेटे की हत्या की है। गौरी शंकर जी क्योंकि अब इनके खिलाफ़ जा ही नहीं सकते इस लिए वो इनके पक्ष में ही बोलेंगे। यही सब सोच कर मैंने इन दोनों पर अपने बेटे की हत्या का आरोप लगाया था।"

"ये सब तुम्हारी अपनी सोच है चंद्रकांत।" पिता जी ने कहा____"तुम्हें भले ही हम पर यकीन न हो लेकिन सच तो यही है कि तुम्हारे बेटे की हत्या से हमारा दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है। तुम लोगों ने हमारे भाई और बेटे की हत्या की थी उसके लिए हमने गुस्से में आ कर जो कुछ किया उसके लिए हमें अफ़सोस तो है लेकिन हम ये भी समझते हैं कि हमारी जगह कोई भी होता तो यही करता। शुकर मनाओ कि उस दिन हमें ये पता ही नहीं था कि साहूकारों के साथ तुमने भी हमारे भाई और बेटे की हत्या की थी वरना उस दिन तुम बाप बेटे भी हमारे गुस्से का शिकार हो गए होते। ख़ैर जो हुआ सो हुआ किंतु इस मामले में हमारा कोई हाथ नहीं है। बाकी तुम्हें जो ठीक लगे करो।"

चंद्रकांत कुछ न बोला। महेंद्र सिंह ने अपनी तरफ से इस मामले की तह तक जाने का फ़ैसला किया और चंद्रकांत को आश्वासन दिया कि वो उसके बेटे के हत्यारे को जल्द ही खोज लेंगे और उसके साथ इंसाफ़ करेंगे। उसके बाद सबको अपने अपने घर जाने को बोल दिया गया। चंद्रकांत दुखी हृदय से अपने बेटे की लाश के पास आ कर आंसू बहाने लगा।

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साहूकारों के घर के बाहर सड़क के किनारे जो बड़ा सा पेड़ था उसके नीचे बने चबूतरे के पास हम सब आ कर रुके। गौरी शंकर ने रूपचंद्र को भेज कर अपने घर से कुछ कुर्सियां मंगवा ली जिनमें पिता जी, गौरी शंकर, महेंद्र सिंह और उनके साथ आए लोग बैठ गए। जबकि मैं और रूपचंद्र ज़मीन में ही खड़े रहे।

"आपको क्या लगता है ठाकुर साहब?" महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए पूछा____"चंद्रकांत के बेटे की हत्या किसने की होगी?"

"ये सवाल हमारे ज़हन में भी है मित्र।" पिता जी ने कहा____"हम खुद इस सवाल पर गहराई से विचार मंथन कर रहे हैं किंतु फिलहाल कुछ भी समझ में नहीं आ रहा।"

"इतना तो आप भी समझते हैं कि दुनिया में कुछ भी बेवजह नहीं होता।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस खींचते हुए कहा____"ज़ाहिर है चंद्रकांत के बेटे की हत्या भी बेवजह नहीं की होगी हत्यारे ने। अब सवाल ये है कि आख़िर वो कौन सी वजह रही होगी जिसके चलते हत्यारे ने रघुवीर को जान से मार डाला? अगर वजह का पता चल जाए तो कदाचित हमें हत्यारे तक पहुंचने में आसानी हो जाएगी।"

"एक बात और है बड़े भैया।" महेंद्र सिंह के छोटे भाई ने कुछ सोचते हुए कहा____"और वो ये कि क्या चंद्रकांत के बेटे की हत्या का मामला दादा ठाकुर अथवा गौरी शंकर जी से ही जुड़ा हुआ है या उसकी हत्या का मामला इनसे अलग है?"

"कहना क्या चाहते हो ज्ञानेंद्र?" महेंद्र सिंह ने उसकी तरफ देखा।

"मौजूदा समय में इस मामले के बारे में हर कोई यही सोचेगा कि रघुवीर की हत्या का मामला दादा ठाकुर अथवा गौरी शंकर जी से ही जुड़ा हुआ होगा।" ज्ञानेंद्र सिंह ने अपने शब्दों पर ज़ोर देते हुए कहा____"ज़ाहिर है इस सोच के चलते हम उसके हत्यारे को भी इन्हीं दोनों के बीच तलाश करने का सोचेंगे। हो सकता है कि उसकी हत्या किसी और ने ही की हो, ये सोच कर कि उसकी तरफ किसी का ध्यान जा ही नहीं सकेगा। आख़िर चंद्रकांत और उसके बेटे ने कुछ समय पहले दादा ठाकुर के भाई और बेटे की हत्या की थी तो ज़ाहिर है कि सब तो यही सोचेंगे कि इन्होंने ही रघुवीर की हत्या की होगी। उधर असल हत्यारा हमेशा के लिए एक तरह से महफूज़ ही रहेगा।"

"हम ज्ञानेंद्र की इन बातों से सहमत हैं मित्र।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए महेंद्र सिंह से कहा____"यकीनन काबीले-गौर बात की है इन्होंने। हमें भी यही लगता है कि रघुवीर का हत्यारा कोई और ही है जिसने मौजूदा समय में हमारी स्थिति का फ़ायदा उठा कर उसकी हत्या की और सबके ज़हन में ये बात बैठा दी कि ऐसा हमने ही किया है अथवा हमने गौरी शंकर के साथ मिल कर उसकी हत्या की साज़िश की है।"

"अब सोचने वाली बात ये है कि ऐसा वो कौन हो सकता है जिसने इस तरह से आपकी मौजूदा स्थिति का फ़ायदा उठा कर तथा रघुवीर की हत्या कर के अपना काम कर गया?" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"मेरे हिसाब से अब हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि आपके अथवा गौरी शंकर जी के अलावा रघुवीर के और किस किस से ऐसे संबंध थे जिसके चलते कोई उसकी हत्या तक करने की हद तक चला गया?"

"हम्म्म्म सही कहा तुमने।" महेंद्र सिंह ने कहा____"कुछ समय पहले तक चंद्रकांत ठाकुर साहब का मुंशी था। उसका बेटा भी इनके लिए वफ़ादार था। हमें यकीन है कि चंद्रकांत ने मुंशीगीरी करने के अलावा भी ऐसे कई काम ठाकुर साहब की चोरी से किए होंगे जो उसके लिए फ़ायदेमंद रहे होंगे। ऐसे में उसके संबंध काफी लोगों से बने हो सकते हैं और उसके साथ साथ उसके बेटे के भी। हमें चंद्रकांत के ऐसे संबंधों के बारे में जांच पड़ताल करनी होगी। चंद्रकांत से भी उसके ऐसे संबंधों के बारे में पूछना होगा।"

"ठीक है आपको जो उचित लगे कीजिए।" पिता जी ने कहा____"अगर कहीं हमारी ज़रूरत महसूस हो तो बेझिझक हमें ख़बर कर दीजिएगा। हम भी चाहते हैं कि रघुवीर का हत्यारा जल्द से जल्द पकड़ा जाए और ये भी पता चल जाए कि उसने रघुवीर की हत्या क्यों की?"

इस संबंध में कुछ और बातें हुईं उसके बाद महेंद्र सिंह अपने छोटे भाई और बाकी लोगों के साथ उठ कर चले गए। मैं और पिता जी भी जाने लगे तो सहसा गौरी शंकर ने पिता जी को रोक लिया।

"मैं आपसे अपने उन अपराधों की माफ़ी मांगना चाहता हूं दादा ठाकुर।" गौरी शंकर ने अपने हाथ जोड़ कर कहा____"जो मैंने अपने भाइयों और चंद्रकांत के साथ मिल कर आपके साथ किया है। बदले की भावना में हम सब इतने अंधे हो चुके थे कि आपकी नेक नीयती और उदारता को जानते हुए भी आपके साथ हमेशा बैर भाव रखा और फिर वो सब कर बैठे। बदले में आपने हमारे साथ जो किया उसके लिए वास्तव में हम खुद ही ज़िम्मेदार हैं। ये आपके विशाल हृदय का ही सबूत है कि इतना कुछ हो जाने के बाद भी आप हमसे रिश्ते सुधार लेने को कह रहे थे जबकि आपकी जगह कोई और होता तो यकीनन वो ख़्वाब में भी ऐसा नहीं सोचता। हमें हमारे अपराधों के लिए माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब। मैं अपने बच्चों की क़सम खा कर कहता हूं कि अब से मैं या मेरे घर का कोई भी सदस्य आपसे या आपके परिवार के किसी भी सदस्य से बैर भाव नहीं रखेगा। अब से हम आपकी छत्रछाया में ही रहेंगे।"

मैं गौरी शंकर की ये बातें सुन कर आश्चर्य चकित हो गया था। मुझे यकीन है कि पिता जी का भी यही हाल रहा होगा। वो उसकी बातें सुन कर काफी देर तक उसकी तरफ देखते रहे थे। दूसरी तरफ रूपचंद्र सामान्य भाव से खड़ा था।

"चलो देर आए दुरुस्त आए।" फिर उन्होंने गंभीरता से कहा____"हालाकि सोचने वाली बात है कि इसके लिए हम दोनों को ही भारी कीमत चुकानी पड़ी है। काश! इस तरह का हृदय परिवर्तन तुम सबका पहले ही हो गया होता तो आज वो लोग भी हमारे साथ होते जिन्हें हमने अपनी दुश्मनी अथवा नफ़रत के चलते भेंट चढ़ा दिया। कल्पना करो गौरी शंकर कि महज इतनी सी बात को तुम लोगों ने दिल से स्वीकार नहीं किया था और नफ़रत के चलते हमारे साथ साथ खुद अपने ही परिवार के लोगों को मिट्टी में मिला डाला। ऐसा क्यों होता है कि इंसान को वक्त रहते सही और ग़लत का एहसास नहीं होता? ख़ैर कोई बात नहीं, शायद हमारे एक होने के लिए हमें इतनी बड़ी कीमत को चुकाना ही लिखा था।"

"आप सही कह रहे हैं ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने संजीदगी से कहा____"हम इंसान वक्त से पहले प्रेम और नफ़रत के परिणामों का एहसास ही नहीं कर पाते। शायद यही हम इंसानों का दुर्भाग्य है।"

"इंसान अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है गौरी शंकर।" पिता जी ने कहा____"हर इंसान के बस में होता है अच्छा और बुरा कर्म करना। हर इंसान अच्छी तरह जान रहा होता है कि वो कैसा कर्म कर रहा है। कभी प्रेम से, कभी नफ़रत से तो कभी स्वार्थ के चलते। ख़ैर छोड़ो, हम चाहते हैं कि हम सब एक नई शुरुआत करें। हम ये हर्गिज़ नहीं चाहते हैं कि हमारे गांव के साहूकारों का इतना सम्पन्न परिवार नफ़रत की वजह से अपने ही हाथों खुद को गर्त में डुबा ले।"

"आप बहुत महान हैं ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने अधीरता से कहा____"हम जैसे बुरी मानसिकता वाले लोगों के लिए भी इतना कुछ सोचते हैं तो ये आपकी महानता ही है। अब मुझे पूरा भरोसा है कि हम जितने भी लोग बचे हैं आपकी छत्रछाया में खुशी से फल फूल जाएंगे।"

"एक बात और।" पिता जी ने कहा____"तुम्हारी भतीजी ने हमारे बेटे की जान बचा कर इसके ऊपर ही नहीं बल्कि हमारे ऊपर भी बहुत बड़ा उपकार किया है। पहले हमें कुछ पता नहीं था किंतु अब हमें सब कुछ मालूम हो चुका है इस लिए हम उस प्यारी सी बच्ची को अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि इस रिश्ते से अब तुम्हें कोई समस्या नहीं होगी।"

"मुझे कोई समस्या नहीं है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर झट से बोल पड़ा____"बल्कि ये तो मेरे और मेरी भतीजी के लिए बड़े सौभाग्य की बात है कि आप उसे अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं।"

"तो फिर ये तय रहा।" पिता जी ने कहा____"अगले वर्ष हम बारात ले कर तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारी भतीजी को अपनी बहू बना कर ले जाएंगे।"

पिता जी की इस बता को सुन कर गौरी शंकर सहसा घुटनों के बल बैठ गया और फिर अपने सिर को पिता जी के चरणों में रख दिया। ये देख कर पिता जी पहले तो चौंके फिर झुके और उसे दोनों हाथों से पकड़ कर उठा लिया। उधर रूपचंद्र तो सामान्य ही दिख रहा था लेकिन इधर मेरी स्थिति थोड़ा अजीब हो गई थी। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि जो बात असंभव थी वो पलक झपकते ही संभव कैसे हो ग‌ई थी? एकाएक ही मेरा सिर अंतरिक्ष में परवाज़ करता महसूस होने लगा था।

"तुम्हारी जगह हमारे पैरों में नहीं।" सहसा पिता जी की आवाज़ से मैं धरातल पर आया____"बल्कि हमारे हृदय में बनने वाली है गौरी शंकर। अगले वर्ष हम दोनों समधी बन जाएंगे।"

"आप जैसा महान इस धरती में कोई नहीं हो सकता दादा ठाकुर।" गौरी शंकर की आंखें नम होती नज़र आईं____"अब जा कर मुझे एहसास हो रहा है कि इसके पहले हम सब कितने ग़लत थे। काश! पहले ही हम सबको सद्बुद्धि आ गई होती। काश! हमने अपने अंदर नफ़रत को इस तरह से पाला न होता।"

कहते कहते गौरी शंकर का गला भर आया और उससे आगे कुछ बोला ना गया। पिता जी ने किसी तरह उसे शांत किया और फिर समझा बुझा कर उसे घर भेज दिया। उसके बाद मैं और पिता जी बग्घी में बैठ कर अपनी हवेली की तरफ बढ़ चले। इधर मेरे दिलो दिमाग़ में एक अलग ही मंथन चलने लगा था।


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Iron Man

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Main samajh gaya bhai par main bhi to yahi bata raha hu ki wo sirf aurto ke sath sex ka shaukeen tha. Sex karne ka use koi nasha nahi tha aur na hi aisi uski lat thi. Kyoki jise sex ki lat lagi hoti hai wo sex karne ke liye koi bhi tarika apnane par utaaru ho jata hai. Zor zabardasti kar ke rape hi kar daalta hai insaan magar vaibhav ke case me aisa nahi tha. Wo aurat ki marzi se hi sex karta tha...isi se zaahir hai ki wo pure hosho hawash me rahne wala insaan tha. Agar use kisi nashe ki lat lagi hoti to iske pahle hi uska koi dushman use tapka chuka hota...
Lambi bahash ka koi fyada nahi . Naughty charector ki baat kar rahe the jabardasti ki nahi . Koi cheez hamesha ya lagatar ho to aadat nasha jaisa ho jata hai😎
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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Lambi bahash ka koi fyada nahi . Naughty charector ki baat kar rahe the jabardasti ki nahi . Koi cheez hamesha ya lagatar ho to aadat nasha jaisa ho jata hai😎
Chalo maan liya bhai :hug:

Btw ju ke signature me ek story hai CHODURAJA name se use kyo nahi continue kar rahe :bat1:
 

Iron Man

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अध्याय - 90
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"ऊपर वाले के ख़ौफ से डरो चंद्रकांत।" गौरी शंकर उसके सफ़ेद झूठ बोलने पर पहले तो बड़ा हैरान हुआ फिर बोला____"अपने बेटे की मौत के बाद भी तुम्हें एहसाह नहीं हुआ कि हमने और तुमने मिल कर कितना ग़लत किया था दादा ठाकुर के साथ। मुझे तो अब ऐसा लग रहा है कि अपने बदले की आग में अंधे हो कर तुमने खुद ही अपने बेटे की हत्या की है और उसका इल्ज़ाम मेरे भतीजे रूपचंद्र के साथ साथ दादा ठाकुर पर भी लगाया है। अगर वाकई में ये सच है तो तुम्हें अपनी इस नीचता के लिए चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाना चाहिए।"


अब आगे....


"चंद्रकांत, इस मामले के बारे में ईमानदारी से अपनी बात पंचायत के सामने रखो।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने सख़्त भाव से कहा____"अगर तुम झूठ के आधार पर किसी निर्दोष को फंसाने का सोच रहे हो तो समझ लो इसका बहुत ही बुरा ख़ामियाजा तुम्हें भुगतना पड़ सकता है।"

"मैं मानता हूं ठाकुर साहब कि मैं गौरी शंकर जी से मिलने इनके खेत पर गया था और इनसे वो सब कहा भी था।" चंद्रकांत ने महेंद्र सिंह की बात पर एकदम से घबरा कर कहा____"किंतु ये सच है कि मैं बेवजह अथवा झूठ के आधार पर किसी को फंसा नहीं रहा हूं। मैं बदले की भावना में इतना भी अंधा नहीं हुआ हूं कि अपने ही हाथों अपने इकलौते बेटे की हत्या करूंगा और फिर उसकी हत्या का इल्ज़ाम इन लोगों पर लगाऊंगा। चलिए मैं मान लेता हूं कि दादा ठाकुर ने मेरे बेटे की हत्या नहीं की होगी लेकिन मैं ये नहीं मान सकता कि रूपचंद्र ने भी मेरे बेटे की हत्या नहीं की होगी।"

"ऐसा तुम किस आधार पर कह रहे हो?" ठाकुर महेंद्र सिंह ने पूछा____"क्या तुमने अपनी आंखों से रूपचंद्र को तुम्हारे बेटे की हत्या करते हुए देखा है या फिर तुम्हारे पास कोई ऐसा गवाह है जिसने रूपचंद्र को तुम्हारे बेटे की हत्या करते हुए देखा हो?"

"नहीं ठाकुर साहब।" चंद्रकांत एकदम हताश हो कर बोला____"यही तो मेरा दुर्भाग्य है कि ना तो मैंने ऐसा देखा है और ना ही किसी और ने। किंतु मेरी बहू ने जो कुछ बताया है उससे साफ ज़ाहिर होता है कि रूपचंद्र ने ही मेरे बेटे रघुवीर की हत्या की है।"

"ऐसा क्या बताया है तुम्हारी बहू ने?" ठाकुर महेंद्र सिंह ने हैरानी से देखते हुए कहा____"अपनी बहू को बुलाओ, हम उसके मुख से ही सुनना चाहेंगे कि उसने तुम्हें ऐसा क्या बताया था जिसके आधार पर तुमने ये मान लिया कि रूपचंद्र ने ही तुम्हारे बेटे की हत्या की है?"

चंद्रकांत ने बेबस भाव से रजनी को इशारे से अपने पास बुलाया। रजनी सिर पर घूंघट डाले आ कर खड़ी हो गई। चेहरा घूंघट के चलते ढंका हुआ था इस लिए ये पता नहीं चल पाया कि इस वक्त उसके चहरे पर किस तरह के भाव थे? बहरहाल महेंद्र सिंह के पूछने पर रजनी ने झिझकते हुए पिछली रात की सारी बात बता दी जिसे सुन कर महेंद्र सिंह के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए।

"इस बात से कहां साबित होता है कि रूपचंद्र ने ही रघुवीर की हत्या की है?" फिर उन्होंने चंद्रकांत से कहा____"क्या तुम्हारे पास कोई ऐसा गवाह है जिसने अपनी आंखों से रघुवीर की हत्या करते हुए देखा है? पंचायत में बिना किसी सबूत अथवा प्रमाण के तुम किसी पर इल्ज़ाम नहीं लगा सकते और ना ही किसी को हत्यारा कह सकते हो।"

"मैं मानता हूं ठाकुर साहब कि मेरे पास कोई प्रमाण नहीं है।" चंद्रकांत ने सहसा दुखी भाव से कहा____"लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं है ना कि मेरे बेटे की किसी ने हत्या की ही नहीं है। इन लोगों के अलावा मेरी किसी से कोई दुश्मनी अथवा बैर नहीं है फिर कोई दूसरा क्यों मेरे बेटे की हत्या करेगा?"

"अगर तुम मानते हो कि किसी दूसरे ने तुम्हारे बेटे की हत्या नहीं की है बल्कि इन लोगों ने ही की है तो इसे साबित करने के लिए तुम पंचायत के सामने सबूत अथवा प्रमाण पेश करो।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने स्पष्ट भाव से कहा____"बिना किसी प्रमाण के किसी को भी हत्यारा नहीं माना जाएगा। हमारा ख़याल है कि इस मामले में तहक़ीकात करने की ज़रूरत है। हम खुद देखना चाहेंगे कि तुम्हारे बेटे की हत्या किस जगह पर हुई और साथ ही उसे किस तरीके से मारा गया है? तब तक के लिए पंचायत बर्खास्त की जाती है।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह जी कुर्सी से उठ गए। उनके साथ बाकी लोग भी उठ गए। भीड़ में मौजूद लोग दबी आवाज़ में तरह तरह की बातें करने लगे थे। इधर महेंद्र सिंह के पूछने पर चंद्रकांत ने बताया कि उसे अपने बेटे की लाश कहां और किस हालत में मिली थी?

महेंद्र सिंह के साथ पिता जी, मैं, गौरी शंकर, रूपचंद्र, और खुद चंद्रकांत चल पड़े। जल्दी ही हम उस जगह पर पहुंच गए जहां पर रघुवीर की लाश मिली थी।

चंद्रकांत का घर गांव में दाखिल होते ही सबसे पहले पड़ता था जबकि गांव से बाहर की तरफ जाने पर सबसे आख़िर में। उसके घर से कुछ ही दूरी पर साहूकारों के घर थे। बहरहाल हम सब चंद्रकांत के घर के पीछे पहुंचे। घर के चारो तरफ क़रीब चार फीट ऊंची चार दिवारी थी जो कि लकड़ी की मोटी मोटी बल्लियों द्वारा बनाई गई थी। सामने की तरफ बड़ा सा चौगान था जिसके एक तरफ गाय भैंस बंधी होती थीं। पीछे की तरफ एक कुआं था और साथ ही दूसरी तरफ छोटा सा सब्जी और फलों का बाग़ था।

रघुवीर की लाश जिस जगह मिली थी वो घर के बगल से जो खाली जगह थी वहां पर पड़ी हुई थी। उस जगह पर ढेर सारा खून फैला हुआ था। क़रीब से देखने पर एकदम से ही दुर्गंध का आभास हुआ। वो दुर्गंध पेशाब की थी। ज़ाहिर है उस जगह पर पेशाब किया जाता था। लाश को क्योंकि चंद्रकांत ने सुबह ही वहां से हटा लिया था इस लिए वहां पर सिर्फ खून ही फैला हुआ दिख रहा था जोकि ज़्यादातर सूख गया था और जो बचा था उसके ऊपर मक्खियां भिनभिना रहीं थी।

"हमारा ख़याल है कि हत्या रात में ही किसी पहर की गई थी।" पिता जी ने सहसा महेंद्र सिंह से कहा____"ज़्यादातर खून सूख चुका है जिससे यही ज़ाहिर होता है। हमें लगता है कि रघुवीर रात के किसी पहर पेशाब लगने के चलते घर से बाहर यहां आया होगा। हत्यारा पहले से ही उसकी ताक में यहां कहीं मौजूद रहा होगा और फिर जैसे ही रघुवीर यहां पेशाब करने के लिए आया होगा तो उसने उसकी हत्या कर दी होगी।"

"शायद आप ठीक कह रहे हैं।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"किंतु सबसे बड़ा सवाल ये है कि हत्यारे को ये कैसे पता रहा होगा कि रघुवीर रात के कौन से पहर पेशाब करने घर से बाहर आएगा?"

"हो सकता है कि ये इत्तेफ़ाक ही हुआ हो कि जिस समय हत्यारा यहां पर मौजूद था उसी समय रघुवीर पेशाब लगने के चलते बाहर आया।" पिता जी ने जैसे संभावना ज़ाहिर की____"या फिर हत्यारे ने रघुवीर के हर क्रिया कलाप को पहले से ही अच्छी तरह गौर फरमा लिया रहा होगा। हमारा मतलब है कि उसने पहले ये जांचा परखा होगा कि रघुवीर पेशाब करने के लिए रात के कौन से वक्त पर घर से बाहर निकलता है। कुछ लोगों की ये आदत होती है कि उनकी पेशाब लगने की वजह से अक्सर रात में नींद खुल जाती है और फिर वो बिस्तर से उठ कर पेशाब करने जाते हैं। संभव है कि रघुवीर के साथ भी ऐसा ही होता रहा हो। हत्यारे ने उसकी इसी आदत को गौर किया होगा और फिर उसने एक दिन अपने काम को अंजाम देने का सोच लिया।"

"क्या रघुवीर अक्सर रातों को उठ कर पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकलता था?" महेंद्र सिंह ने पलट कर चंद्रकांत से पूछा।

"हां ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने स्वीकार किया____"उसकी तो शुरू से ही ऐसी आदत थी। मैं खुद भी रात में एक दो बार पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकलता हूं। मेरा बेटा भी लगभग रोज ही रात में पेशाब करने के लिए उठता था और फिर घर से बाहर आता था।"

"यानि आपका सोचना एकदम सही था।" महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"वाकई में रघुवीर पेशाब करने के चलते ही बाहर आया। हत्यारा जोकि रघुवीर की इस आदत से परिचित था वो यहां पर उसी की प्रतीक्षा कर रहा था। जैसे ही रघुवीर पेशाब करने के लिए बाहर आया तो उसने उसे एक झटके में मार डाला।"

"तुम्हें कब पता चला कि रघुवीर की हत्या हो गई है?" पिता जी ने चंद्रकांत से पूछा।

"सुबह ही पता चला था।" चंद्रकांत की आवाज़ भारी हो गई____"रात में तो मुझे किसी तरह का आभास ही नहीं हुआ। सुबह जब मैं पेशाब करने के लिए इस जगह पर आया तो अपने बेटे की खून से लथपथ पड़ी लाश को देख कर मेरी जान ही निकल गई थी।"

"यानि हत्यारे ने एक झटके में ही रघुवीर को मार डाला था।" महेंद्र सिंह ने कहा____"हमारा ख़याल है कि रघुवीर को ज़रा सा भी एहसास नहीं हुआ होगा कि कोई उसकी हत्या करने के लिए उसके पास ही मौजूद है। उधर हत्यारा भी अच्छी तरह समझता था कि अगर उसने ग़लती से भी रघुवीर को सम्हलने का मौका दिया तो वो शोर मचा देगा जिससे वो पकड़ा जाएगा। ख़ैर चलिए देखते हैं कि हत्यारे ने रघुवीर को किस तरीके से मारा होगा?"

हम सब जल्दी ही घर के सामने आ गए। घर के बाएं तरफ एक लकड़ी के तखत पर रघुवीर की लाश को रख दिया गया था। तखत में भी उसका बचा कुचा खून फैल गया था। बाहर काफी संख्या में भीड़ थी जो लाश को देखने के लिए आतुर हो रही थी किंतु हमारे आदमियों ने उन्हें रोका हुआ था।

रघुवीर के गले पर एक मोटा सा चीरा लगा हुआ था जो कि सामने की तरफ से था और पूरे गले में था। ज़ाहिर है रघुवीर बुरी तरह तड़पा होगा किंतु हत्यारे ने उसे शोर मचाने का कोई भी मौका नहीं दिया होगा। चंद्रकांत के बयान से तो यही ज़ाहिर होता था क्योंकि उसे भनक तक नहीं लगी थी। भनक तो तब लगती जब रघुवीर कोई आवाज़ कर पाता। यानि हत्यारे ने रघुवीर का गला तो काटा ही किंतु उसके मुख को तब तक दबाए रखा रहा होगा जब तक कि तड़पते हुए रघुवीर की जीवन लीला समाप्त नहीं हो गई होगी।

"काफी बेदर्दी से जान ली है हत्यारे ने।" महेंद्र सिंह ने रघुवीर के गले में दिख रहे मोटे से चीरे को देखते हुए कहा____"ऐसा तो कोई बेरहम व्यक्ति ही कर सकता है।"

"इन लोगों के अलावा इतनी बेरहमी कौन दिखा सकता है ठाकुर साहब?" चंद्रकांत दुखी भाव से बोल पड़ा____"इन लोगों ने ही मेरे बेटे की इस तरह से हत्या की है। इन्होंने अपने भाई और बेटे की हत्या का बदला मेरे बेटे की हत्या कर के लिया है। मुझे इंसाफ़ चाहिए ठाकुर साहब।"

"अगर हमें तुम्हारे बेटे की हत्या ही करनी होती तो यूं चोरी छुपे नहीं करते।" पिता जी ने इस बार सख़्त भाव से कहा____"बल्कि डंके की चोट पर करते, जिस तरह गौरी शंकर के अपनों की हत्या की थी। हालाकि अब हमें अपने किए गए कर्म पर बेहद अफसोस और दुख है लेकिन सच यही है कि हमने ये सब नहीं किया है। हमने अपने जीवन में पहले कभी किसी के साथ कुछ ग़लत नहीं किया था और ये बात तुमसे बेहतर कोई नहीं जानता। तुम हमें हमारे बचपन से जानते हो। फिर ये कैसे सोच सकते हो कि हमने तुम्हारे बेटे की हत्या की है?"

"जब तक कोई प्रमाण नहीं मिलता तब तक तुम किसी पर भी अपने बेटे की हत्या का इल्ज़ाम नहीं लगा सकते।" महेंद्र सिंह ने कहा____"बेहतर यही है कि पहले प्रमाण खोजो और फिर पंचायत में इंसाफ़ की मांग करो।"

"मैं भला कहां से प्रमाण खोजूंगा ठाकुर साहब?" चंद्रकांत ने आहत भाव से कहा____"मुझे तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अब कभी भी मेरे बेटे का हत्यारा नहीं मिलेगा और जब वो मिलेगा ही नहीं तो भला कैसे कोई इंसाफ़ होगा?"

"अगर तुम ठाकुर साहब पर भरोसा करते हो तो इनसे आग्रह करो कि ये तुम्हारे बेटे के हत्यारे का पता लगाएं।" महेंद्र सिंह ने जैसे सुझाव दिया।

"नहीं ठाकुर साहब।" पिता जी ने कहा____"हम ऐसे किसी भी मामले को अपने हाथ में नहीं लेना चाहते। हम ये भी जानते हैं कि चंद्रकांत को हम पर कभी भरोसा नहीं हो सकता। बेहतर यही है कि चंद्रकांत खुद अपने बेटे के हत्यारे का पता लगाए और फिर अपने बेटे की हत्या का इंसाफ़ मांगे।"

"अगर ऐसी बात है तो यही बेहतर होगा।" महेंद्र सिंह कहने के साथ ही चंद्रकांत से मुखातिब हुए____"ख़ैर हमें ये बताओ कि तुमने ये कैसे सोच लिया कि तुम्हारे बेटे की हत्या ठाकुर साहब ने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के की है?"

"सुबह जब मैंने अपने बेटे की खून से लथपथ लाश देखी तो मेरी चीख निकल गई थी।" चंद्रकांत ने दुखी भाव से कहा____"मेरी चीख सुन कर रघुवीर की मां, मेरी बहु और बेटी तीनों ही बाहर भागते हुए आईं थी। जब उन लोगों ने रघू की खून से लथपथ लाश देखी तो उनकी भी हालत ख़राब हो गई। उसके बाद हम सबका रोना धोना शुरू हो गया। इसी बीच मेरी बहू रजनी ने रोते हुए कहा कि ये सब रूपचंद्र ने किया है। उसकी बात सुन कर मैं उछल ही पड़ा था। मेरे पूछने पर उसने बताया कि कैसे पिछले दिन शाम को जब वो दिशा मैदान कर के वापस लौट रही थी तो रास्ते में रूपचंद्र ने उसे रोक लिया था। रूपचंद्र उसकी इज़्ज़त के साथ खेलना चाहता था जिसके लिए उसने उसे सबको बता देने की धमकी दी थी। मेरी बहू के अनुसार उसकी इस धमकी की वजह से रूपचंद्र बहुत गुस्सा हुआ था तो ज़ाहिर है कि इसी गुस्से में उसने मेरे बेटे की हत्या की होगी।"

"तो फिर तुम ये क्यों कह रहे थे कि ये सब दादा ठाकुर ने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के किया है?" महेंद्र सिंह ने कहा____"क्या तुम बेवजह ही इन्हें अपने बेटे की हत्या में जोड़ कर लोगों के बीच इन्हें बदनाम करना चाहते थे?"

"नहीं ठाकुर साहब।" चंद्रकांत हड़बड़ा कर जल्दी से बोला____"असल में कुछ दिन पहले मैंने सुना था कि ये गौरी शंकर जी के घर गए थे सुलह करने और फिर गौरी शंकर जी भी इनकी हवेली गए थे। मुझे लगा ये दोनों आपस में मिल गए हैं। दूसरी बात साहूकारों का विनाश कर के तो इन्होंने अपने भाई और बेटे की हत्या का बदला ले लिया था किंतु मुझसे और मेरे बेटे से नहीं ले सके थे। मुझे यकीन हो गया कि इन्होंने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के मेरे बेटे की हत्या की है। गौरी शंकर जी क्योंकि अब इनके खिलाफ़ जा ही नहीं सकते इस लिए वो इनके पक्ष में ही बोलेंगे। यही सब सोच कर मैंने इन दोनों पर अपने बेटे की हत्या का आरोप लगाया था।"

"ये सब तुम्हारी अपनी सोच है चंद्रकांत।" पिता जी ने कहा____"तुम्हें भले ही हम पर यकीन न हो लेकिन सच तो यही है कि तुम्हारे बेटे की हत्या से हमारा दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है। तुम लोगों ने हमारे भाई और बेटे की हत्या की थी उसके लिए हमने गुस्से में आ कर जो कुछ किया उसके लिए हमें अफ़सोस तो है लेकिन हम ये भी समझते हैं कि हमारी जगह कोई भी होता तो यही करता। शुकर मनाओ कि उस दिन हमें ये पता ही नहीं था कि साहूकारों के साथ तुमने भी हमारे भाई और बेटे की हत्या की थी वरना उस दिन तुम बाप बेटे भी हमारे गुस्से का शिकार हो गए होते। ख़ैर जो हुआ सो हुआ किंतु इस मामले में हमारा कोई हाथ नहीं है। बाकी तुम्हें जो ठीक लगे करो।"

चंद्रकांत कुछ न बोला। महेंद्र सिंह ने अपनी तरफ से इस मामले की तह तक जाने का फ़ैसला किया और चंद्रकांत को आश्वासन दिया कि वो उसके बेटे के हत्यारे को जल्द ही खोज लेंगे और उसके साथ इंसाफ़ करेंगे। उसके बाद सबको अपने अपने घर जाने को बोल दिया गया। चंद्रकांत दुखी हृदय से अपने बेटे की लाश के पास आ कर आंसू बहाने लगा।

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साहूकारों के घर के बाहर सड़क के किनारे जो बड़ा सा पेड़ था उसके नीचे बने चबूतरे के पास हम सब आ कर रुके। गौरी शंकर ने रूपचंद्र को भेज कर अपने घर से कुछ कुर्सियां मंगवा ली जिनमें पिता जी, गौरी शंकर, महेंद्र सिंह और उनके साथ आए लोग बैठ गए। जबकि मैं और रूपचंद्र ज़मीन में ही खड़े रहे।

"आपको क्या लगता है ठाकुर साहब?" महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए पूछा____"चंद्रकांत के बेटे की हत्या किसने की होगी?"

"ये सवाल हमारे ज़हन में भी है मित्र।" पिता जी ने कहा____"हम खुद इस सवाल पर गहराई से विचार मंथन कर रहे हैं किंतु फिलहाल कुछ भी समझ में नहीं आ रहा।"

"इतना तो आप भी समझते हैं कि दुनिया में कुछ भी बेवजह नहीं होता।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस खींचते हुए कहा____"ज़ाहिर है चंद्रकांत के बेटे की हत्या भी बेवजह नहीं की होगी हत्यारे ने। अब सवाल ये है कि आख़िर वो कौन सी वजह रही होगी जिसके चलते हत्यारे ने रघुवीर को जान से मार डाला? अगर वजह का पता चल जाए तो कदाचित हमें हत्यारे तक पहुंचने में आसानी हो जाएगी।"

"एक बात और है बड़े भैया।" महेंद्र सिंह के छोटे भाई ने कुछ सोचते हुए कहा____"और वो ये कि क्या चंद्रकांत के बेटे की हत्या का मामला दादा ठाकुर अथवा गौरी शंकर जी से ही जुड़ा हुआ है या उसकी हत्या का मामला इनसे अलग है?"

"कहना क्या चाहते हो ज्ञानेंद्र?" महेंद्र सिंह ने उसकी तरफ देखा।

"मौजूदा समय में इस मामले के बारे में हर कोई यही सोचेगा कि रघुवीर की हत्या का मामला दादा ठाकुर अथवा गौरी शंकर जी से ही जुड़ा हुआ होगा।" ज्ञानेंद्र सिंह ने अपने शब्दों पर ज़ोर देते हुए कहा____"ज़ाहिर है इस सोच के चलते हम उसके हत्यारे को भी इन्हीं दोनों के बीच तलाश करने का सोचेंगे। हो सकता है कि उसकी हत्या किसी और ने ही की हो, ये सोच कर कि उसकी तरफ किसी का ध्यान जा ही नहीं सकेगा। आख़िर चंद्रकांत और उसके बेटे ने कुछ समय पहले दादा ठाकुर के भाई और बेटे की हत्या की थी तो ज़ाहिर है कि सब तो यही सोचेंगे कि इन्होंने ही रघुवीर की हत्या की होगी। उधर असल हत्यारा हमेशा के लिए एक तरह से महफूज़ ही रहेगा।"

"हम ज्ञानेंद्र की इन बातों से सहमत हैं मित्र।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए महेंद्र सिंह से कहा____"यकीनन काबीले-गौर बात की है इन्होंने। हमें भी यही लगता है कि रघुवीर का हत्यारा कोई और ही है जिसने मौजूदा समय में हमारी स्थिति का फ़ायदा उठा कर उसकी हत्या की और सबके ज़हन में ये बात बैठा दी कि ऐसा हमने ही किया है अथवा हमने गौरी शंकर के साथ मिल कर उसकी हत्या की साज़िश की है।"

"अब सोचने वाली बात ये है कि ऐसा वो कौन हो सकता है जिसने इस तरह से आपकी मौजूदा स्थिति का फ़ायदा उठा कर तथा रघुवीर की हत्या कर के अपना काम कर गया?" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"मेरे हिसाब से अब हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि आपके अथवा गौरी शंकर जी के अलावा रघुवीर के और किस किस से ऐसे संबंध थे जिसके चलते कोई उसकी हत्या तक करने की हद तक चला गया?"

"हम्म्म्म सही कहा तुमने।" महेंद्र सिंह ने कहा____"कुछ समय पहले तक चंद्रकांत ठाकुर साहब का मुंशी था। उसका बेटा भी इनके लिए वफ़ादार था। हमें यकीन है कि चंद्रकांत ने मुंशीगीरी करने के अलावा भी ऐसे कई काम ठाकुर साहब की चोरी से किए होंगे जो उसके लिए फ़ायदेमंद रहे होंगे। ऐसे में उसके संबंध काफी लोगों से बने हो सकते हैं और उसके साथ साथ उसके बेटे के भी। हमें चंद्रकांत के ऐसे संबंधों के बारे में जांच पड़ताल करनी होगी। चंद्रकांत से भी उसके ऐसे संबंधों के बारे में पूछना होगा।"

"ठीक है आपको जो उचित लगे कीजिए।" पिता जी ने कहा____"अगर कहीं हमारी ज़रूरत महसूस हो तो बेझिझक हमें ख़बर कर दीजिएगा। हम भी चाहते हैं कि रघुवीर का हत्यारा जल्द से जल्द पकड़ा जाए और ये भी पता चल जाए कि उसने रघुवीर की हत्या क्यों की?"

इस संबंध में कुछ और बातें हुईं उसके बाद महेंद्र सिंह अपने छोटे भाई और बाकी लोगों के साथ उठ कर चले गए। मैं और पिता जी भी जाने लगे तो सहसा गौरी शंकर ने पिता जी को रोक लिया।

"मैं आपसे अपने उन अपराधों की माफ़ी मांगना चाहता हूं दादा ठाकुर।" गौरी शंकर ने अपने हाथ जोड़ कर कहा____"जो मैंने अपने भाइयों और चंद्रकांत के साथ मिल कर आपके साथ किया है। बदले की भावना में हम सब इतने अंधे हो चुके थे कि आपकी नेक नीयती और उदारता को जानते हुए भी आपके साथ हमेशा बैर भाव रखा और फिर वो सब कर बैठे। बदले में आपने हमारे साथ जो किया उसके लिए वास्तव में हम खुद ही ज़िम्मेदार हैं। ये आपके विशाल हृदय का ही सबूत है कि इतना कुछ हो जाने के बाद भी आप हमसे रिश्ते सुधार लेने को कह रहे थे जबकि आपकी जगह कोई और होता तो यकीनन वो ख़्वाब में भी ऐसा नहीं सोचता। हमें हमारे अपराधों के लिए माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब। मैं अपने बच्चों की क़सम खा कर कहता हूं कि अब से मैं या मेरे घर का कोई भी सदस्य आपसे या आपके परिवार के किसी भी सदस्य से बैर भाव नहीं रखेगा। अब से हम आपकी छत्रछाया में ही रहेंगे।"

मैं गौरी शंकर की ये बातें सुन कर आश्चर्य चकित हो गया था। मुझे यकीन है कि पिता जी का भी यही हाल रहा होगा। वो उसकी बातें सुन कर काफी देर तक उसकी तरफ देखते रहे थे। दूसरी तरफ रूपचंद्र सामान्य भाव से खड़ा था।

"चलो देर आए दुरुस्त आए।" फिर उन्होंने गंभीरता से कहा____"हालाकि सोचने वाली बात है कि इसके लिए हम दोनों को ही भारी कीमत चुकानी पड़ी है। काश! इस तरह का हृदय परिवर्तन तुम सबका पहले ही हो गया होता तो आज वो लोग भी हमारे साथ होते जिन्हें हमने अपनी दुश्मनी अथवा नफ़रत के चलते भेंट चढ़ा दिया। कल्पना करो गौरी शंकर कि महज इतनी सी बात को तुम लोगों ने दिल से स्वीकार नहीं किया था और नफ़रत के चलते हमारे साथ साथ खुद अपने ही परिवार के लोगों को मिट्टी में मिला डाला। ऐसा क्यों होता है कि इंसान को वक्त रहते सही और ग़लत का एहसास नहीं होता? ख़ैर कोई बात नहीं, शायद हमारे एक होने के लिए हमें इतनी बड़ी कीमत को चुकाना ही लिखा था।"

"आप सही कह रहे हैं ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने संजीदगी से कहा____"हम इंसान वक्त से पहले प्रेम और नफ़रत के परिणामों का एहसास ही नहीं कर पाते। शायद यही हम इंसानों का दुर्भाग्य है।"

"इंसान अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है गौरी शंकर।" पिता जी ने कहा____"हर इंसान के बस में होता है अच्छा और बुरा कर्म करना। हर इंसान अच्छी तरह जान रहा होता है कि वो कैसा कर्म कर रहा है। कभी प्रेम से, कभी नफ़रत से तो कभी स्वार्थ के चलते। ख़ैर छोड़ो, हम चाहते हैं कि हम सब एक नई शुरुआत करें। हम ये हर्गिज़ नहीं चाहते हैं कि हमारे गांव के साहूकारों का इतना सम्पन्न परिवार नफ़रत की वजह से अपने ही हाथों खुद को गर्त में डुबा ले।"

"आप बहुत महान हैं ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने अधीरता से कहा____"हम जैसे बुरी मानसिकता वाले लोगों के लिए भी इतना कुछ सोचते हैं तो ये आपकी महानता ही है। अब मुझे पूरा भरोसा है कि हम जितने भी लोग बचे हैं आपकी छत्रछाया में खुशी से फल फूल जाएंगे।"

"एक बात और।" पिता जी ने कहा____"तुम्हारी भतीजी ने हमारे बेटे की जान बचा कर इसके ऊपर ही नहीं बल्कि हमारे ऊपर भी बहुत बड़ा उपकार किया है। पहले हमें कुछ पता नहीं था किंतु अब हमें सब कुछ मालूम हो चुका है इस लिए हम उस प्यारी सी बच्ची को अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि इस रिश्ते से अब तुम्हें कोई समस्या नहीं होगी।"

"मुझे कोई समस्या नहीं है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर झट से बोल पड़ा____"बल्कि ये तो मेरे और मेरी भतीजी के लिए बड़े सौभाग्य की बात है कि आप उसे अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं।"

"तो फिर ये तय रहा।" पिता जी ने कहा____"अगले वर्ष हम बारात ले कर तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारी भतीजी को अपनी बहू बना कर ले जाएंगे।"

पिता जी की इस बता को सुन कर गौरी शंकर सहसा घुटनों के बल बैठ गया और फिर अपने सिर को पिता जी के चरणों में रख दिया। ये देख कर पिता जी पहले तो चौंके फिर झुके और उसे दोनों हाथों से पकड़ कर उठा लिया। उधर रूपचंद्र तो सामान्य ही दिख रहा था लेकिन इधर मेरी स्थिति थोड़ा अजीब हो गई थी। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि जो बात असंभव थी वो पलक झपकते ही संभव कैसे हो ग‌ई थी? एकाएक ही मेरा सिर अंतरिक्ष में परवाज़ करता महसूस होने लगा था।

"तुम्हारी जगह हमारे पैरों में नहीं।" सहसा पिता जी की आवाज़ से मैं धरातल पर आया____"बल्कि हमारे हृदय में बनने वाली है गौरी शंकर। अगले वर्ष हम दोनों समधी बन जाएंगे।"

"आप जैसा महान इस धरती में कोई नहीं हो सकता दादा ठाकुर।" गौरी शंकर की आंखें नम होती नज़र आईं____"अब जा कर मुझे एहसास हो रहा है कि इसके पहले हम सब कितने ग़लत थे। काश! पहले ही हम सबको सद्बुद्धि आ गई होती। काश! हमने अपने अंदर नफ़रत को इस तरह से पाला न होता।"

कहते कहते गौरी शंकर का गला भर आया और उससे आगे कुछ बोला ना गया। पिता जी ने किसी तरह उसे शांत किया और फिर समझा बुझा कर उसे घर भेज दिया। उसके बाद मैं और पिता जी बग्घी में बैठ कर अपनी हवेली की तरफ बढ़ चले। इधर मेरे दिलो दिमाग़ में एक अलग ही मंथन चलने लगा था।



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Shandar update.
Hatya anshuljha rah Gaya magar ye tay hi ki hatyara mushi ke parchito me hai .
Roopa se shadi tay ho gayi ab dekhte hai do nawo ki sawari vaibhav ko kis or le jati hai 😊
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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Chalo maan liya bhai :hug:

Btw ju ke signature me ek story hai CHODURAJA name se use kyo nahi continue kar rahe :bat1:
Akele room me nahi rahta hu na bhai . Chup chup yaha aa jate likhna possible na hai mauka milega to pori krenge
 

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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अध्याय - 90
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"ऊपर वाले के ख़ौफ से डरो चंद्रकांत।" गौरी शंकर उसके सफ़ेद झूठ बोलने पर पहले तो बड़ा हैरान हुआ फिर बोला____"अपने बेटे की मौत के बाद भी तुम्हें एहसाह नहीं हुआ कि हमने और तुमने मिल कर कितना ग़लत किया था दादा ठाकुर के साथ। मुझे तो अब ऐसा लग रहा है कि अपने बदले की आग में अंधे हो कर तुमने खुद ही अपने बेटे की हत्या की है और उसका इल्ज़ाम मेरे भतीजे रूपचंद्र के साथ साथ दादा ठाकुर पर भी लगाया है। अगर वाकई में ये सच है तो तुम्हें अपनी इस नीचता के लिए चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाना चाहिए।"


अब आगे....


"चंद्रकांत, इस मामले के बारे में ईमानदारी से अपनी बात पंचायत के सामने रखो।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने सख़्त भाव से कहा____"अगर तुम झूठ के आधार पर किसी निर्दोष को फंसाने का सोच रहे हो तो समझ लो इसका बहुत ही बुरा ख़ामियाजा तुम्हें भुगतना पड़ सकता है।"

"मैं मानता हूं ठाकुर साहब कि मैं गौरी शंकर जी से मिलने इनके खेत पर गया था और इनसे वो सब कहा भी था।" चंद्रकांत ने महेंद्र सिंह की बात पर एकदम से घबरा कर कहा____"किंतु ये सच है कि मैं बेवजह अथवा झूठ के आधार पर किसी को फंसा नहीं रहा हूं। मैं बदले की भावना में इतना भी अंधा नहीं हुआ हूं कि अपने ही हाथों अपने इकलौते बेटे की हत्या करूंगा और फिर उसकी हत्या का इल्ज़ाम इन लोगों पर लगाऊंगा। चलिए मैं मान लेता हूं कि दादा ठाकुर ने मेरे बेटे की हत्या नहीं की होगी लेकिन मैं ये नहीं मान सकता कि रूपचंद्र ने भी मेरे बेटे की हत्या नहीं की होगी।"

"ऐसा तुम किस आधार पर कह रहे हो?" ठाकुर महेंद्र सिंह ने पूछा____"क्या तुमने अपनी आंखों से रूपचंद्र को तुम्हारे बेटे की हत्या करते हुए देखा है या फिर तुम्हारे पास कोई ऐसा गवाह है जिसने रूपचंद्र को तुम्हारे बेटे की हत्या करते हुए देखा हो?"

"नहीं ठाकुर साहब।" चंद्रकांत एकदम हताश हो कर बोला____"यही तो मेरा दुर्भाग्य है कि ना तो मैंने ऐसा देखा है और ना ही किसी और ने। किंतु मेरी बहू ने जो कुछ बताया है उससे साफ ज़ाहिर होता है कि रूपचंद्र ने ही मेरे बेटे रघुवीर की हत्या की है।"

"ऐसा क्या बताया है तुम्हारी बहू ने?" ठाकुर महेंद्र सिंह ने हैरानी से देखते हुए कहा____"अपनी बहू को बुलाओ, हम उसके मुख से ही सुनना चाहेंगे कि उसने तुम्हें ऐसा क्या बताया था जिसके आधार पर तुमने ये मान लिया कि रूपचंद्र ने ही तुम्हारे बेटे की हत्या की है?"

चंद्रकांत ने बेबस भाव से रजनी को इशारे से अपने पास बुलाया। रजनी सिर पर घूंघट डाले आ कर खड़ी हो गई। चेहरा घूंघट के चलते ढंका हुआ था इस लिए ये पता नहीं चल पाया कि इस वक्त उसके चहरे पर किस तरह के भाव थे? बहरहाल महेंद्र सिंह के पूछने पर रजनी ने झिझकते हुए पिछली रात की सारी बात बता दी जिसे सुन कर महेंद्र सिंह के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए।

"इस बात से कहां साबित होता है कि रूपचंद्र ने ही रघुवीर की हत्या की है?" फिर उन्होंने चंद्रकांत से कहा____"क्या तुम्हारे पास कोई ऐसा गवाह है जिसने अपनी आंखों से रघुवीर की हत्या करते हुए देखा है? पंचायत में बिना किसी सबूत अथवा प्रमाण के तुम किसी पर इल्ज़ाम नहीं लगा सकते और ना ही किसी को हत्यारा कह सकते हो।"

"मैं मानता हूं ठाकुर साहब कि मेरे पास कोई प्रमाण नहीं है।" चंद्रकांत ने सहसा दुखी भाव से कहा____"लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं है ना कि मेरे बेटे की किसी ने हत्या की ही नहीं है। इन लोगों के अलावा मेरी किसी से कोई दुश्मनी अथवा बैर नहीं है फिर कोई दूसरा क्यों मेरे बेटे की हत्या करेगा?"

"अगर तुम मानते हो कि किसी दूसरे ने तुम्हारे बेटे की हत्या नहीं की है बल्कि इन लोगों ने ही की है तो इसे साबित करने के लिए तुम पंचायत के सामने सबूत अथवा प्रमाण पेश करो।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने स्पष्ट भाव से कहा____"बिना किसी प्रमाण के किसी को भी हत्यारा नहीं माना जाएगा। हमारा ख़याल है कि इस मामले में तहक़ीकात करने की ज़रूरत है। हम खुद देखना चाहेंगे कि तुम्हारे बेटे की हत्या किस जगह पर हुई और साथ ही उसे किस तरीके से मारा गया है? तब तक के लिए पंचायत बर्खास्त की जाती है।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह जी कुर्सी से उठ गए। उनके साथ बाकी लोग भी उठ गए। भीड़ में मौजूद लोग दबी आवाज़ में तरह तरह की बातें करने लगे थे। इधर महेंद्र सिंह के पूछने पर चंद्रकांत ने बताया कि उसे अपने बेटे की लाश कहां और किस हालत में मिली थी?

महेंद्र सिंह के साथ पिता जी, मैं, गौरी शंकर, रूपचंद्र, और खुद चंद्रकांत चल पड़े। जल्दी ही हम उस जगह पर पहुंच गए जहां पर रघुवीर की लाश मिली थी।

चंद्रकांत का घर गांव में दाखिल होते ही सबसे पहले पड़ता था जबकि गांव से बाहर की तरफ जाने पर सबसे आख़िर में। उसके घर से कुछ ही दूरी पर साहूकारों के घर थे। बहरहाल हम सब चंद्रकांत के घर के पीछे पहुंचे। घर के चारो तरफ क़रीब चार फीट ऊंची चार दिवारी थी जो कि लकड़ी की मोटी मोटी बल्लियों द्वारा बनाई गई थी। सामने की तरफ बड़ा सा चौगान था जिसके एक तरफ गाय भैंस बंधी होती थीं। पीछे की तरफ एक कुआं था और साथ ही दूसरी तरफ छोटा सा सब्जी और फलों का बाग़ था।

रघुवीर की लाश जिस जगह मिली थी वो घर के बगल से जो खाली जगह थी वहां पर पड़ी हुई थी। उस जगह पर ढेर सारा खून फैला हुआ था। क़रीब से देखने पर एकदम से ही दुर्गंध का आभास हुआ। वो दुर्गंध पेशाब की थी। ज़ाहिर है उस जगह पर पेशाब किया जाता था। लाश को क्योंकि चंद्रकांत ने सुबह ही वहां से हटा लिया था इस लिए वहां पर सिर्फ खून ही फैला हुआ दिख रहा था जोकि ज़्यादातर सूख गया था और जो बचा था उसके ऊपर मक्खियां भिनभिना रहीं थी।

"हमारा ख़याल है कि हत्या रात में ही किसी पहर की गई थी।" पिता जी ने सहसा महेंद्र सिंह से कहा____"ज़्यादातर खून सूख चुका है जिससे यही ज़ाहिर होता है। हमें लगता है कि रघुवीर रात के किसी पहर पेशाब लगने के चलते घर से बाहर यहां आया होगा। हत्यारा पहले से ही उसकी ताक में यहां कहीं मौजूद रहा होगा और फिर जैसे ही रघुवीर यहां पेशाब करने के लिए आया होगा तो उसने उसकी हत्या कर दी होगी।"

"शायद आप ठीक कह रहे हैं।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"किंतु सबसे बड़ा सवाल ये है कि हत्यारे को ये कैसे पता रहा होगा कि रघुवीर रात के कौन से पहर पेशाब करने घर से बाहर आएगा?"

"हो सकता है कि ये इत्तेफ़ाक ही हुआ हो कि जिस समय हत्यारा यहां पर मौजूद था उसी समय रघुवीर पेशाब लगने के चलते बाहर आया।" पिता जी ने जैसे संभावना ज़ाहिर की____"या फिर हत्यारे ने रघुवीर के हर क्रिया कलाप को पहले से ही अच्छी तरह गौर फरमा लिया रहा होगा। हमारा मतलब है कि उसने पहले ये जांचा परखा होगा कि रघुवीर पेशाब करने के लिए रात के कौन से वक्त पर घर से बाहर निकलता है। कुछ लोगों की ये आदत होती है कि उनकी पेशाब लगने की वजह से अक्सर रात में नींद खुल जाती है और फिर वो बिस्तर से उठ कर पेशाब करने जाते हैं। संभव है कि रघुवीर के साथ भी ऐसा ही होता रहा हो। हत्यारे ने उसकी इसी आदत को गौर किया होगा और फिर उसने एक दिन अपने काम को अंजाम देने का सोच लिया।"

"क्या रघुवीर अक्सर रातों को उठ कर पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकलता था?" महेंद्र सिंह ने पलट कर चंद्रकांत से पूछा।

"हां ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने स्वीकार किया____"उसकी तो शुरू से ही ऐसी आदत थी। मैं खुद भी रात में एक दो बार पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकलता हूं। मेरा बेटा भी लगभग रोज ही रात में पेशाब करने के लिए उठता था और फिर घर से बाहर आता था।"

"यानि आपका सोचना एकदम सही था।" महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"वाकई में रघुवीर पेशाब करने के चलते ही बाहर आया। हत्यारा जोकि रघुवीर की इस आदत से परिचित था वो यहां पर उसी की प्रतीक्षा कर रहा था। जैसे ही रघुवीर पेशाब करने के लिए बाहर आया तो उसने उसे एक झटके में मार डाला।"

"तुम्हें कब पता चला कि रघुवीर की हत्या हो गई है?" पिता जी ने चंद्रकांत से पूछा।

"सुबह ही पता चला था।" चंद्रकांत की आवाज़ भारी हो गई____"रात में तो मुझे किसी तरह का आभास ही नहीं हुआ। सुबह जब मैं पेशाब करने के लिए इस जगह पर आया तो अपने बेटे की खून से लथपथ पड़ी लाश को देख कर मेरी जान ही निकल गई थी।"

"यानि हत्यारे ने एक झटके में ही रघुवीर को मार डाला था।" महेंद्र सिंह ने कहा____"हमारा ख़याल है कि रघुवीर को ज़रा सा भी एहसास नहीं हुआ होगा कि कोई उसकी हत्या करने के लिए उसके पास ही मौजूद है। उधर हत्यारा भी अच्छी तरह समझता था कि अगर उसने ग़लती से भी रघुवीर को सम्हलने का मौका दिया तो वो शोर मचा देगा जिससे वो पकड़ा जाएगा। ख़ैर चलिए देखते हैं कि हत्यारे ने रघुवीर को किस तरीके से मारा होगा?"

हम सब जल्दी ही घर के सामने आ गए। घर के बाएं तरफ एक लकड़ी के तखत पर रघुवीर की लाश को रख दिया गया था। तखत में भी उसका बचा कुचा खून फैल गया था। बाहर काफी संख्या में भीड़ थी जो लाश को देखने के लिए आतुर हो रही थी किंतु हमारे आदमियों ने उन्हें रोका हुआ था।

रघुवीर के गले पर एक मोटा सा चीरा लगा हुआ था जो कि सामने की तरफ से था और पूरे गले में था। ज़ाहिर है रघुवीर बुरी तरह तड़पा होगा किंतु हत्यारे ने उसे शोर मचाने का कोई भी मौका नहीं दिया होगा। चंद्रकांत के बयान से तो यही ज़ाहिर होता था क्योंकि उसे भनक तक नहीं लगी थी। भनक तो तब लगती जब रघुवीर कोई आवाज़ कर पाता। यानि हत्यारे ने रघुवीर का गला तो काटा ही किंतु उसके मुख को तब तक दबाए रखा रहा होगा जब तक कि तड़पते हुए रघुवीर की जीवन लीला समाप्त नहीं हो गई होगी।

"काफी बेदर्दी से जान ली है हत्यारे ने।" महेंद्र सिंह ने रघुवीर के गले में दिख रहे मोटे से चीरे को देखते हुए कहा____"ऐसा तो कोई बेरहम व्यक्ति ही कर सकता है।"

"इन लोगों के अलावा इतनी बेरहमी कौन दिखा सकता है ठाकुर साहब?" चंद्रकांत दुखी भाव से बोल पड़ा____"इन लोगों ने ही मेरे बेटे की इस तरह से हत्या की है। इन्होंने अपने भाई और बेटे की हत्या का बदला मेरे बेटे की हत्या कर के लिया है। मुझे इंसाफ़ चाहिए ठाकुर साहब।"

"अगर हमें तुम्हारे बेटे की हत्या ही करनी होती तो यूं चोरी छुपे नहीं करते।" पिता जी ने इस बार सख़्त भाव से कहा____"बल्कि डंके की चोट पर करते, जिस तरह गौरी शंकर के अपनों की हत्या की थी। हालाकि अब हमें अपने किए गए कर्म पर बेहद अफसोस और दुख है लेकिन सच यही है कि हमने ये सब नहीं किया है। हमने अपने जीवन में पहले कभी किसी के साथ कुछ ग़लत नहीं किया था और ये बात तुमसे बेहतर कोई नहीं जानता। तुम हमें हमारे बचपन से जानते हो। फिर ये कैसे सोच सकते हो कि हमने तुम्हारे बेटे की हत्या की है?"

"जब तक कोई प्रमाण नहीं मिलता तब तक तुम किसी पर भी अपने बेटे की हत्या का इल्ज़ाम नहीं लगा सकते।" महेंद्र सिंह ने कहा____"बेहतर यही है कि पहले प्रमाण खोजो और फिर पंचायत में इंसाफ़ की मांग करो।"

"मैं भला कहां से प्रमाण खोजूंगा ठाकुर साहब?" चंद्रकांत ने आहत भाव से कहा____"मुझे तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अब कभी भी मेरे बेटे का हत्यारा नहीं मिलेगा और जब वो मिलेगा ही नहीं तो भला कैसे कोई इंसाफ़ होगा?"

"अगर तुम ठाकुर साहब पर भरोसा करते हो तो इनसे आग्रह करो कि ये तुम्हारे बेटे के हत्यारे का पता लगाएं।" महेंद्र सिंह ने जैसे सुझाव दिया।

"नहीं ठाकुर साहब।" पिता जी ने कहा____"हम ऐसे किसी भी मामले को अपने हाथ में नहीं लेना चाहते। हम ये भी जानते हैं कि चंद्रकांत को हम पर कभी भरोसा नहीं हो सकता। बेहतर यही है कि चंद्रकांत खुद अपने बेटे के हत्यारे का पता लगाए और फिर अपने बेटे की हत्या का इंसाफ़ मांगे।"

"अगर ऐसी बात है तो यही बेहतर होगा।" महेंद्र सिंह कहने के साथ ही चंद्रकांत से मुखातिब हुए____"ख़ैर हमें ये बताओ कि तुमने ये कैसे सोच लिया कि तुम्हारे बेटे की हत्या ठाकुर साहब ने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के की है?"

"सुबह जब मैंने अपने बेटे की खून से लथपथ लाश देखी तो मेरी चीख निकल गई थी।" चंद्रकांत ने दुखी भाव से कहा____"मेरी चीख सुन कर रघुवीर की मां, मेरी बहु और बेटी तीनों ही बाहर भागते हुए आईं थी। जब उन लोगों ने रघू की खून से लथपथ लाश देखी तो उनकी भी हालत ख़राब हो गई। उसके बाद हम सबका रोना धोना शुरू हो गया। इसी बीच मेरी बहू रजनी ने रोते हुए कहा कि ये सब रूपचंद्र ने किया है। उसकी बात सुन कर मैं उछल ही पड़ा था। मेरे पूछने पर उसने बताया कि कैसे पिछले दिन शाम को जब वो दिशा मैदान कर के वापस लौट रही थी तो रास्ते में रूपचंद्र ने उसे रोक लिया था। रूपचंद्र उसकी इज़्ज़त के साथ खेलना चाहता था जिसके लिए उसने उसे सबको बता देने की धमकी दी थी। मेरी बहू के अनुसार उसकी इस धमकी की वजह से रूपचंद्र बहुत गुस्सा हुआ था तो ज़ाहिर है कि इसी गुस्से में उसने मेरे बेटे की हत्या की होगी।"

"तो फिर तुम ये क्यों कह रहे थे कि ये सब दादा ठाकुर ने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के किया है?" महेंद्र सिंह ने कहा____"क्या तुम बेवजह ही इन्हें अपने बेटे की हत्या में जोड़ कर लोगों के बीच इन्हें बदनाम करना चाहते थे?"

"नहीं ठाकुर साहब।" चंद्रकांत हड़बड़ा कर जल्दी से बोला____"असल में कुछ दिन पहले मैंने सुना था कि ये गौरी शंकर जी के घर गए थे सुलह करने और फिर गौरी शंकर जी भी इनकी हवेली गए थे। मुझे लगा ये दोनों आपस में मिल गए हैं। दूसरी बात साहूकारों का विनाश कर के तो इन्होंने अपने भाई और बेटे की हत्या का बदला ले लिया था किंतु मुझसे और मेरे बेटे से नहीं ले सके थे। मुझे यकीन हो गया कि इन्होंने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के मेरे बेटे की हत्या की है। गौरी शंकर जी क्योंकि अब इनके खिलाफ़ जा ही नहीं सकते इस लिए वो इनके पक्ष में ही बोलेंगे। यही सब सोच कर मैंने इन दोनों पर अपने बेटे की हत्या का आरोप लगाया था।"

"ये सब तुम्हारी अपनी सोच है चंद्रकांत।" पिता जी ने कहा____"तुम्हें भले ही हम पर यकीन न हो लेकिन सच तो यही है कि तुम्हारे बेटे की हत्या से हमारा दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है। तुम लोगों ने हमारे भाई और बेटे की हत्या की थी उसके लिए हमने गुस्से में आ कर जो कुछ किया उसके लिए हमें अफ़सोस तो है लेकिन हम ये भी समझते हैं कि हमारी जगह कोई भी होता तो यही करता। शुकर मनाओ कि उस दिन हमें ये पता ही नहीं था कि साहूकारों के साथ तुमने भी हमारे भाई और बेटे की हत्या की थी वरना उस दिन तुम बाप बेटे भी हमारे गुस्से का शिकार हो गए होते। ख़ैर जो हुआ सो हुआ किंतु इस मामले में हमारा कोई हाथ नहीं है। बाकी तुम्हें जो ठीक लगे करो।"

चंद्रकांत कुछ न बोला। महेंद्र सिंह ने अपनी तरफ से इस मामले की तह तक जाने का फ़ैसला किया और चंद्रकांत को आश्वासन दिया कि वो उसके बेटे के हत्यारे को जल्द ही खोज लेंगे और उसके साथ इंसाफ़ करेंगे। उसके बाद सबको अपने अपने घर जाने को बोल दिया गया। चंद्रकांत दुखी हृदय से अपने बेटे की लाश के पास आ कर आंसू बहाने लगा।

✮✮✮✮

साहूकारों के घर के बाहर सड़क के किनारे जो बड़ा सा पेड़ था उसके नीचे बने चबूतरे के पास हम सब आ कर रुके। गौरी शंकर ने रूपचंद्र को भेज कर अपने घर से कुछ कुर्सियां मंगवा ली जिनमें पिता जी, गौरी शंकर, महेंद्र सिंह और उनके साथ आए लोग बैठ गए। जबकि मैं और रूपचंद्र ज़मीन में ही खड़े रहे।

"आपको क्या लगता है ठाकुर साहब?" महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए पूछा____"चंद्रकांत के बेटे की हत्या किसने की होगी?"

"ये सवाल हमारे ज़हन में भी है मित्र।" पिता जी ने कहा____"हम खुद इस सवाल पर गहराई से विचार मंथन कर रहे हैं किंतु फिलहाल कुछ भी समझ में नहीं आ रहा।"

"इतना तो आप भी समझते हैं कि दुनिया में कुछ भी बेवजह नहीं होता।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस खींचते हुए कहा____"ज़ाहिर है चंद्रकांत के बेटे की हत्या भी बेवजह नहीं की होगी हत्यारे ने। अब सवाल ये है कि आख़िर वो कौन सी वजह रही होगी जिसके चलते हत्यारे ने रघुवीर को जान से मार डाला? अगर वजह का पता चल जाए तो कदाचित हमें हत्यारे तक पहुंचने में आसानी हो जाएगी।"

"एक बात और है बड़े भैया।" महेंद्र सिंह के छोटे भाई ने कुछ सोचते हुए कहा____"और वो ये कि क्या चंद्रकांत के बेटे की हत्या का मामला दादा ठाकुर अथवा गौरी शंकर जी से ही जुड़ा हुआ है या उसकी हत्या का मामला इनसे अलग है?"

"कहना क्या चाहते हो ज्ञानेंद्र?" महेंद्र सिंह ने उसकी तरफ देखा।

"मौजूदा समय में इस मामले के बारे में हर कोई यही सोचेगा कि रघुवीर की हत्या का मामला दादा ठाकुर अथवा गौरी शंकर जी से ही जुड़ा हुआ होगा।" ज्ञानेंद्र सिंह ने अपने शब्दों पर ज़ोर देते हुए कहा____"ज़ाहिर है इस सोच के चलते हम उसके हत्यारे को भी इन्हीं दोनों के बीच तलाश करने का सोचेंगे। हो सकता है कि उसकी हत्या किसी और ने ही की हो, ये सोच कर कि उसकी तरफ किसी का ध्यान जा ही नहीं सकेगा। आख़िर चंद्रकांत और उसके बेटे ने कुछ समय पहले दादा ठाकुर के भाई और बेटे की हत्या की थी तो ज़ाहिर है कि सब तो यही सोचेंगे कि इन्होंने ही रघुवीर की हत्या की होगी। उधर असल हत्यारा हमेशा के लिए एक तरह से महफूज़ ही रहेगा।"

"हम ज्ञानेंद्र की इन बातों से सहमत हैं मित्र।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए महेंद्र सिंह से कहा____"यकीनन काबीले-गौर बात की है इन्होंने। हमें भी यही लगता है कि रघुवीर का हत्यारा कोई और ही है जिसने मौजूदा समय में हमारी स्थिति का फ़ायदा उठा कर उसकी हत्या की और सबके ज़हन में ये बात बैठा दी कि ऐसा हमने ही किया है अथवा हमने गौरी शंकर के साथ मिल कर उसकी हत्या की साज़िश की है।"

"अब सोचने वाली बात ये है कि ऐसा वो कौन हो सकता है जिसने इस तरह से आपकी मौजूदा स्थिति का फ़ायदा उठा कर तथा रघुवीर की हत्या कर के अपना काम कर गया?" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"मेरे हिसाब से अब हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि आपके अथवा गौरी शंकर जी के अलावा रघुवीर के और किस किस से ऐसे संबंध थे जिसके चलते कोई उसकी हत्या तक करने की हद तक चला गया?"

"हम्म्म्म सही कहा तुमने।" महेंद्र सिंह ने कहा____"कुछ समय पहले तक चंद्रकांत ठाकुर साहब का मुंशी था। उसका बेटा भी इनके लिए वफ़ादार था। हमें यकीन है कि चंद्रकांत ने मुंशीगीरी करने के अलावा भी ऐसे कई काम ठाकुर साहब की चोरी से किए होंगे जो उसके लिए फ़ायदेमंद रहे होंगे। ऐसे में उसके संबंध काफी लोगों से बने हो सकते हैं और उसके साथ साथ उसके बेटे के भी। हमें चंद्रकांत के ऐसे संबंधों के बारे में जांच पड़ताल करनी होगी। चंद्रकांत से भी उसके ऐसे संबंधों के बारे में पूछना होगा।"

"ठीक है आपको जो उचित लगे कीजिए।" पिता जी ने कहा____"अगर कहीं हमारी ज़रूरत महसूस हो तो बेझिझक हमें ख़बर कर दीजिएगा। हम भी चाहते हैं कि रघुवीर का हत्यारा जल्द से जल्द पकड़ा जाए और ये भी पता चल जाए कि उसने रघुवीर की हत्या क्यों की?"

इस संबंध में कुछ और बातें हुईं उसके बाद महेंद्र सिंह अपने छोटे भाई और बाकी लोगों के साथ उठ कर चले गए। मैं और पिता जी भी जाने लगे तो सहसा गौरी शंकर ने पिता जी को रोक लिया।

"मैं आपसे अपने उन अपराधों की माफ़ी मांगना चाहता हूं दादा ठाकुर।" गौरी शंकर ने अपने हाथ जोड़ कर कहा____"जो मैंने अपने भाइयों और चंद्रकांत के साथ मिल कर आपके साथ किया है। बदले की भावना में हम सब इतने अंधे हो चुके थे कि आपकी नेक नीयती और उदारता को जानते हुए भी आपके साथ हमेशा बैर भाव रखा और फिर वो सब कर बैठे। बदले में आपने हमारे साथ जो किया उसके लिए वास्तव में हम खुद ही ज़िम्मेदार हैं। ये आपके विशाल हृदय का ही सबूत है कि इतना कुछ हो जाने के बाद भी आप हमसे रिश्ते सुधार लेने को कह रहे थे जबकि आपकी जगह कोई और होता तो यकीनन वो ख़्वाब में भी ऐसा नहीं सोचता। हमें हमारे अपराधों के लिए माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब। मैं अपने बच्चों की क़सम खा कर कहता हूं कि अब से मैं या मेरे घर का कोई भी सदस्य आपसे या आपके परिवार के किसी भी सदस्य से बैर भाव नहीं रखेगा। अब से हम आपकी छत्रछाया में ही रहेंगे।"

मैं गौरी शंकर की ये बातें सुन कर आश्चर्य चकित हो गया था। मुझे यकीन है कि पिता जी का भी यही हाल रहा होगा। वो उसकी बातें सुन कर काफी देर तक उसकी तरफ देखते रहे थे। दूसरी तरफ रूपचंद्र सामान्य भाव से खड़ा था।

"चलो देर आए दुरुस्त आए।" फिर उन्होंने गंभीरता से कहा____"हालाकि सोचने वाली बात है कि इसके लिए हम दोनों को ही भारी कीमत चुकानी पड़ी है। काश! इस तरह का हृदय परिवर्तन तुम सबका पहले ही हो गया होता तो आज वो लोग भी हमारे साथ होते जिन्हें हमने अपनी दुश्मनी अथवा नफ़रत के चलते भेंट चढ़ा दिया। कल्पना करो गौरी शंकर कि महज इतनी सी बात को तुम लोगों ने दिल से स्वीकार नहीं किया था और नफ़रत के चलते हमारे साथ साथ खुद अपने ही परिवार के लोगों को मिट्टी में मिला डाला। ऐसा क्यों होता है कि इंसान को वक्त रहते सही और ग़लत का एहसास नहीं होता? ख़ैर कोई बात नहीं, शायद हमारे एक होने के लिए हमें इतनी बड़ी कीमत को चुकाना ही लिखा था।"

"आप सही कह रहे हैं ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने संजीदगी से कहा____"हम इंसान वक्त से पहले प्रेम और नफ़रत के परिणामों का एहसास ही नहीं कर पाते। शायद यही हम इंसानों का दुर्भाग्य है।"

"इंसान अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है गौरी शंकर।" पिता जी ने कहा____"हर इंसान के बस में होता है अच्छा और बुरा कर्म करना। हर इंसान अच्छी तरह जान रहा होता है कि वो कैसा कर्म कर रहा है। कभी प्रेम से, कभी नफ़रत से तो कभी स्वार्थ के चलते। ख़ैर छोड़ो, हम चाहते हैं कि हम सब एक नई शुरुआत करें। हम ये हर्गिज़ नहीं चाहते हैं कि हमारे गांव के साहूकारों का इतना सम्पन्न परिवार नफ़रत की वजह से अपने ही हाथों खुद को गर्त में डुबा ले।"

"आप बहुत महान हैं ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने अधीरता से कहा____"हम जैसे बुरी मानसिकता वाले लोगों के लिए भी इतना कुछ सोचते हैं तो ये आपकी महानता ही है। अब मुझे पूरा भरोसा है कि हम जितने भी लोग बचे हैं आपकी छत्रछाया में खुशी से फल फूल जाएंगे।"

"एक बात और।" पिता जी ने कहा____"तुम्हारी भतीजी ने हमारे बेटे की जान बचा कर इसके ऊपर ही नहीं बल्कि हमारे ऊपर भी बहुत बड़ा उपकार किया है। पहले हमें कुछ पता नहीं था किंतु अब हमें सब कुछ मालूम हो चुका है इस लिए हम उस प्यारी सी बच्ची को अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि इस रिश्ते से अब तुम्हें कोई समस्या नहीं होगी।"

"मुझे कोई समस्या नहीं है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर झट से बोल पड़ा____"बल्कि ये तो मेरे और मेरी भतीजी के लिए बड़े सौभाग्य की बात है कि आप उसे अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं।"

"तो फिर ये तय रहा।" पिता जी ने कहा____"अगले वर्ष हम बारात ले कर तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारी भतीजी को अपनी बहू बना कर ले जाएंगे।"

पिता जी की इस बता को सुन कर गौरी शंकर सहसा घुटनों के बल बैठ गया और फिर अपने सिर को पिता जी के चरणों में रख दिया। ये देख कर पिता जी पहले तो चौंके फिर झुके और उसे दोनों हाथों से पकड़ कर उठा लिया। उधर रूपचंद्र तो सामान्य ही दिख रहा था लेकिन इधर मेरी स्थिति थोड़ा अजीब हो गई थी। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि जो बात असंभव थी वो पलक झपकते ही संभव कैसे हो ग‌ई थी? एकाएक ही मेरा सिर अंतरिक्ष में परवाज़ करता महसूस होने लगा था।

"तुम्हारी जगह हमारे पैरों में नहीं।" सहसा पिता जी की आवाज़ से मैं धरातल पर आया____"बल्कि हमारे हृदय में बनने वाली है गौरी शंकर। अगले वर्ष हम दोनों समधी बन जाएंगे।"

"आप जैसा महान इस धरती में कोई नहीं हो सकता दादा ठाकुर।" गौरी शंकर की आंखें नम होती नज़र आईं____"अब जा कर मुझे एहसास हो रहा है कि इसके पहले हम सब कितने ग़लत थे। काश! पहले ही हम सबको सद्बुद्धि आ गई होती। काश! हमने अपने अंदर नफ़रत को इस तरह से पाला न होता।"

कहते कहते गौरी शंकर का गला भर आया और उससे आगे कुछ बोला ना गया। पिता जी ने किसी तरह उसे शांत किया और फिर समझा बुझा कर उसे घर भेज दिया। उसके बाद मैं और पिता जी बग्घी में बैठ कर अपनी हवेली की तरफ बढ़ चले। इधर मेरे दिलो दिमाग़ में एक अलग ही मंथन चलने लगा था।


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Mughe to munshi ke bete ki hatya ka shak 2 logo pe ja raha h

1. To Rajni ho gyi
2. Safed posh
Baki rupchandra to kar nahi payega...

Ab to khair rupa ke hav bhav badalne Wale h....

Manokana Puri ho rahi h uski...
 
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