Sanju@
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मुंशी और रघुवीर दोनो अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं दोनो बाप बेटे साहूकारो को अपने साथ मिलाने के लिए और ठाकुर साहब और वैभव के खिलाफ साहूकारो के मन में जहर घोलने के लिए चाल चल रहे हैं लेकिन उनकी चाल उल्टी पड़ रही है एक बार फिर से सफेद नकाबपोश का जिक्र हुआ है लेकिन अभी तक पता नहीं चला और वह शांत भी है तो इसका मतलब वह कुछ तो प्लान बना रहा है तो मुंशी और रघुवीर उसकी तलाश करेगे और उससे सहायता लेंगेअध्याय - 88"ये तो तुमने सही कहा।" भाभी ने कुछ सोचते हुए कहा____"उस लड़की के साथ प्रेम का सफ़र करना तुम्हारे लिए आसान नहीं होगा क्योंकि अगर पिता जी को इसका पता चला तो संभव है कि वो उस लड़की से तुम्हारे इस प्रेम प्रसंग पर नाराज़ हो जाएं और तुम्हें उसको भुला देने के लिए कह दें। कहने का मतलब ये कि सचमुच प्रेम की इस डगर पर तुम्हें बहुत कुछ सहना पड़ सकता है।"
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भाभी की इन बातों ने मुझे एकाएक चिंता में डाल दिया। वो मुझे आराम करने का बोल कर चली गईं जबकि मैं पलंग पर लेटने के बाद गहरी सोच में डूब गया।
अब आगे....
"क्या हुआ?" चंद्रकांत अपने बेटे रघुवीर को बाहर से मुस्कुराते हुए आते देखा तो पूछ बैठा____"किस बात से इतना खुश हो जो इतना मुस्कुरा रहे हो तुम?"
"लगता है मेरी लगाई हुई आग भड़कने वाली है बापू।" रघुवीर ने खुशी के आवेश में मुस्कुराते हुए कहा____"ऐसा प्रतीत होता है जैसे जल्द ही दादा ठाकुर और गौरी शंकर के बीच कलह शुरू होने वाली है।"
"ऐसा किस आधार पर कह रहे हो तुम?" चंद्रकांत अपने बेटे की बात से मन ही मन चौंक पड़ा था।
"मेरे एक ख़ास आदमी ने अभी अभी आ कर मुझे बताया है कि गौरी शंकर अपने भतीजे रूपचंद्र के साथ हवेली गया था।" रघुवीर ने कहा____"और वापस आते समय दोनों ही चाचा भतीजे गुस्से में नज़र आ रहे थे। ज़ाहिर है हवेली में दादा ठाकुर से उनकी कोई तो ऐसी बात ज़रूर हुई है जिसके चलते वो दोनों गुस्से में वहां से लौटे हैं।"
"यानि गौरी शंकर दादा ठाकुर के पास वैभव की शिकायत ले कर गया था।" चंद्रकांत ने सोचने वाले अंदाज़ में कहा____"हवेली में यकीनन दादा ठाकुर ने उसकी शिकायत को सिरे से ख़ारिज़ कर दिया होगा तभी तो दोनों चाचा भतीजे गुस्से में आए वहां से। हमारे लिए ये जानना ज़रूरी है कि दादा ठाकुर और गौरी शंकर के बीच इस संबंध में क्या बातें हुईं हैं?"
"मेरा ख़याल है कि तुम्हें एक बार फिर गौरी शंकर से मिलना चाहिए बापू।" रघुवीर ने जैसे राय दी____"और उसी से किसी तरह इस बारे में जान लेना चाहिए। अगर ये लगे कि दोनों पक्षों के बीच मामला तनातनी का बन चुका है तो फ़ौरन ही आग में घी डालने का काम कर देना।"
"सही कह रहे हो तुम।" चंद्रकांत ने सिर हिलाते हुए कहा____"हमें अपने लिए ढाल के रूप में गौरी शंकर का साथ हर कीमत पर चाहिए। भले ही उनका समूल विनाश कर दिया है दादा ठाकुर ने लेकिन अभी भी साहूकार इतने समर्थ हैं कि वो दादा ठाकुर से भिड़ सकते हैं।"
"बात तो तुम्हारी ठीक है बापू।" रघुवीर ने कहा____"लेकिन जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि गौरी शंकर अब हमें अपने साथ नहीं मिलाएगा। हालाकि मैंने उसे दादा ठाकुर के खिलाफ़ भड़काने का समान तो तरीके से जुटा दिया है लेकिन मुझे लगता है कि अपनी ये लड़ाई वो खुद ही अकेले लड़ना चाहेगा।"
"असल में दादा ठाकुर ने जिस तरह से उसके अपनों का नर संघार किया है उससे वो पूरी तरह से ख़ौफ खा गया है।" चंद्रकांत ने कहा____"उसमें अब इतना जल्दी दादा ठाकुर के खिलाफ़ जाने का साहस नहीं हो सकता। ख़ैर, देखते हैं क्या होता है। मैं आज ही उससे मिलूंगा और उससे जानने की कोशिश करूंगा कि उसकी दादा ठाकुर से इस सिलसिले में क्या बातें हुईं हैं? अगर सच में दादा ठाकुर से उसकी तनातनी हुई है तो मेरी कोशिश यही रहेगी कि उसे मैं फिर से अपने साथ मिला लूं।"
"और अगर वो फिर भी हमारे साथ न मिला तो?" रघुवीर ने जैसे संदेह ज़ाहिर किया____"तब हम क्या करेंगे बापू? तब तो हमें अकेले ही दादा ठाकुर के उस सपोले का किस्सा ख़त्म करने के बारे में सोचने पड़ेगा।"
"फ़िक्र मत करो बेटा।" चंद्रकांत ने कठोरता से कहा____"गौरी शंकर अगर साथ में न भी मिला तब भी हम उस नामुराद वैभव का किस्सा ख़त्म करेंगे।"
"वो कैसे बापू?" रघुवीर ने उत्सुकता से पूछा।
"मेरे दिमाग़ में एक ज़बरदस्त योजना ने जन्म लिया है।" चंद्रकांत ने कहा____"वो ऐसी योजना है कि वैभव बच नहीं सकेगा और उसका बाप अपने बेटे को बचा भी नहीं पाएगा। यूं समझो कि वैभव नाम के कुकर्मी का जीवन एक झटके में समाप्त हो जाएगा और फिर वो हमेशा के लिए एक इतिहास बन के रह जाएगा।"
"अगर ऐसी बात है तो फिर हमें गौरी शंकर के साथ की क्या ज़रूरत है बापू?" रघुवीर ने आवेश में आ कर कहा____"हम जल्द से जल्द उस हरामजादे का किस्सा ही ख़त्म कर देते हैं।"
"नहीं बेटे, ये काम ज़ल्दबाज़ी में तो हर्गिज़ नहीं होगा।" चंद्रकांत ने जैसे उसे समझाते हुए कहा____"क्योंकि ज़ल्दबाज़ी में किया गया कोई भी काम अक्सर बिगड़ जाता है और मुसीबत का सबब बन जाता है। ये सच है कि मेरी योजना के अनुसार वैभव का किस्सा ख़त्म हो जाएगा लेकिन उससे पहले मैं ये चाहता हूं कि अगर गौरी शंकर का साथ मिल जाए तो अच्छा हो जाए। ऐसा इस लिए क्योंकि इससे बाद में हम सारा दोष उसके ऊपर ही मढ़ सकते हैं। गौरी शंकर की भतीजी और वैभव का मामला एक तरह से इस बात का सबूत रहेगा कि उसने इसी बात के चलते वैभव को मार डाला। इधर हम निर्दोष हो कर बच जाएंगे।"
"ओह! तो इस लिए तुम गौरी शंकर को अपने साथ मिला लेने पर इतना ज़ोर दे रहे हो?" रघुवीर जैसे सब कुछ समझ गया था____"वाकई में तुम्हारी ये योजना तो ज़बरदस्त है बापू।"
चंद्रकांत अपने बेटे द्वारा की गई इस तारीफ़ से अपनी बुद्धिमानी पर गर्व महसूस किया। उसके मन में कई तरह के विचार आ जा रहे थे।
"हम एक महत्वपूर्ण बात तो भूल ही रहे हैं बापू।" गहरे विचारों में खोया चंद्रकांत अपने बेटे की इस बात को सुन कर चौंका, बोला____"कौन सी बात?"
"उस दिन पंचायत में दादा ठाकुर हम लोगों से किसी सफ़ेदपोश के बारे में पूछ रहा था।" रघुवीर ने अजीब भाव से अपने पिता की तरफ देखते हुए कहा____"और उसने ये भी बताया था कि उस सफ़ेदपोश व्यक्ति ने कई बार वैभव को जान से मारने का प्रयास किया था।"
"हां हां याद आया मुझे।" चंद्रकांत ये सोच कर खुद पर हैरान हुआ कि वो इतनी बड़ी बात कैसे भूल गया था?
"तुम्हें क्या लगता है बापू?" रघुवीर ने कहा____"क्या सच में ऐसा कोई सफ़ेदपोश व्यक्ति है जो दादा ठाकुर के बताए अनुसार वैभव को कई बार जान से मारने की कोशिश की होगी? या फिर ये दादा ठाकुर की कोई चाल है? मेरा मतलब है कि अपने पक्ष को किसी तरह से दीन हीन दिखाने की उसकी ये चाल थी?"
"हो भी सकता है बेटे कि ये सब उसकी चाल ही हो।" चंद्रकांत ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"लेकिन मुझे नहीं लगता है कि दादा ठाकुर इस तरह की कोई चाल चल के पंचायत में खुद को दीन हीन दर्शाने की कोशिश करेगा।"
"यानि तुम मानते हो कि सफ़ेदपोश की बात सच है?" रघुवीर ने कहा____"और उसने कई बार वैभव को जान से मारने की कोशिश की होगी?"
"इस बात को न मानने का कोई मतलब ही नहीं है बेटे।" चंद्रकांत ने अपने शब्दों पर ज़ोर देते हुए कहा____"वैभव जैसे कुकर्मी लड़के के कई सारे ऐसे दुश्मन हो सकते हैं जो उसकी जान लेना चाहते होंगे।"
"फिर तो हमें वैभव को ख़त्म करने की ज़रूरत ही नहीं है बापू।" रघुवीर ने कहा____"कथित सफ़ेदपोश खुद ही उसे जान से मार देगा। हर बार तो उस हरामजादे की किस्मत अच्छी नहीं हो सकती ना। किसी न किसी दिन तो वो सफ़ेदपोश के हाथ लग ही जाएगा और फिर निश्चय ही वो अपनी जान से जाएगा। इस लिए हमें वैभव को मारने का इरादा त्याग देना चाहिए। इससे हम पर बाद में कोई बात भी नहीं आएगी।"
"नहीं बेटे।" चंद्रकांत ने दृढ़ता से कहा____"उस नामुराद को तो हम अपने हाथों से ही ख़त्म करेंगे। तभी हमारे अंदर की आग ठंडी होगी। तुम चिंता मत करो, मेरी योजना ऐसी है कि हम वैभव का किस्सा भी ख़त्म कर देंगे और उसका कोई इल्ज़ाम भी हम पर नहीं आएगा।"
"ठीक है बापू।" रघुवीर ने कहा____"अगर हम पर कोई इल्ज़ाम ही नहीं आने वाला तो इससे अच्छा कुछ है ही नहीं। मैं भी उसे अपने हाथों से ही मौत देना चाहता हूं।"
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साहूकारों के घर में सबके सामने गहन विचार विमर्श चल रहा था। गौरी शंकर और रूपचंद्र ने सभी को संक्षेप में वो किस्सा सुना दिया था जो हवेली में दादा ठाकुर के बीच हुआ था। सारी बातें सुन कर सभी सोच में पड़ गए थे। तभी शिव शंकर की सबसे छोटी बेटी स्नेहा सबके पास आई और फिर उसने गौरी शंकर से कहा कि दादा जी बुला रहे हैं। स्नेहा की बात सुन कर गौरी शंकर फ़ौरन ही अपने पिता चंद्रमणि के कमरे की तरफ बढ़ गया। उसके पीछे रूपचंद्र और बाकी औरतें भी बढ़ चलीं। कुछ ही देर में गौरी शंकर और रूपचंद्र उस कमरे में पहुंच गए जिस कमरे में चंद्रमणि पलंग पर लेटे हुए थे। वो वृद्ध हो चुके थे और चल फिर नहीं सकते थे।
"आपने मुझे बुलाया पिता जी?" गौरी शंकर अपने पिता के पास ही पलंग के किनारे पर बैठते हुए उनसे बोला।
"आख़िर कब अपनी मनमानियां करना बंद करोगे तुम लोग?" चंद्रमणि ने अपनी कमज़ोर सी आवाज़ में खांसने के बाद कहा____"क्या चाहते हो कि तुम्हारे घर की औरतें और बहू बेटियां सब अनाथ और बेसहारा हो जाएं?"
"ये आप क्या कह रहे हैं पिता जी?" गौरी शंकर ने हैरानी से कहा____"हम भला ऐसा क्यों चाहेंगे?"
"तुम लोगों ने अपनी मनमानी के चलते अपने भाइयों को और अपने बच्चों को खो दिया।" चंद्रमणि ने कहा____"अब मेरा भी गला दबा दो ताकि जल्दी से मर जाऊं। मुझे तुम लोगों ने वैसे ही मरा हुआ समझ रखा है इस लिए गला दबा दो मेरा।"
"पिता जी ये कैसी बातें कर रहे हैं आप?" गौरी शंकर झट से बोला____"आप ये कैसे सोच सकते हैं कि हम सबने आपको मरा हुआ समझ लिया है?"
"तुम लोगों ने जो किया है उससे बहुत तकलीफ़ हुई है मुझे।" चंद्रमणि ने आहत भाव से कहा____"मेरे घर के इतने सारे लोग मर गए और तुम लोगों ने मुझे एक बार उनकी शकल तक नहीं दिखाई। जब से मैंने ये बिस्तर पकड़ा है तबसे मैं तुम लोगों के लिए मरा हुआ ही तो हूं। विधाता ने मुझे इतना बड़ा परिवार दिया था लेकिन सब ख़त्म हो गया। इतना कुछ होने के बाद भी मेरी जान नहीं गई। पता नहीं अभी और क्या क्या देखना सुनना बाकी है मुझे।"
"माफ़ कर दीजिए पिता जी लेकिन हमने आपको उन सबकी शकल इसी लिए नहीं दिखाई थी ताकि आपको उन्हें देख कर तकलीफ़ न हो।" गौरी शंकर ने कहा____"बाकी हमने जो किया वो तो आप भी चाहते थे। हां ये ज़रूर है कि हमने जिस तरह से सब कुछ सोचा था उस तरीके से नहीं हुआ।"
"यही तो विडंबना है गौरी।" चंद्रमणि ने कहा____"इंसान जो सोचता है अथवा जो चाहता है वैसा कुछ भी नहीं हुआ करता। होता तो वही है जो इंसानों के लिए ऊपर वाले ने सोचा होता है। मेरे दिल में हवेली वालों से नफ़रत ज़रूर थी लेकिन मैंने उसी दिन अपने अंदर से उस नफ़रत को निकाल दिया था जिस दिन सूर्य प्रताप का बेटा प्रताप सिंह मेरे पास अपने बाप के किए गए गुनाह की माफ़ी मांगने आया था। गुनाह तो उसके बाप सूर्य प्रताप सिंह ने किया था और उसे ईश्वर ने खुद ही सज़ा दे दी थी। उसके बाद उसके बेटों ने कभी किसी के साथ ग़लत नहीं किया। वर्षों तक जब मैंने ये जाना सुना तो मेरे दिल से बदले की भावना खुद ही चली गई। मैंने मणि शंकर को भी कई बार समझाया था कि अब वो उन लोगों से बदला लेने का ख़याल अपने दिल से निकाल दे मगर उसने ऐसा कभी नहीं किया। तुम लोगों ने हमेशा मनमानी की और ये उसी का नतीजा है कि आज मेरा ये भरा पूरा परिवार अनाथ हो गया है। इस घर की औरतें और बहू बेटियां सब तुम लोगों की करनी की वजह से बेसहारा हो गई हैं। क्या अभी भी तुम्हारे मन में प्रताप सिंह से बदला लेने की ही भावना है? क्या अपने ही हाथों अपने परिवार को मिट्टी में मिलाने से तुम्हारा पेट नहीं भरा?"
"माफ़ कर दीजिए पिता जी।" गौरी शंकर ने गंभीर हो कर कहा____"असल में हवेली वालों के प्रति हमारे दिलो दिमाग़ में घृणा और नफ़रत ही इतनी ज़्यादा भरी हुई थी कि उसकी वजह से हमें दूसरा कुछ दिखता ही नहीं था। कहते हैं न कि इंसान को तभी अकल आती है जब उसे ठोकर लगती है। हमने ठोकर के रूप में बहुत बड़ी कीमत चुकाई पिता जी और तब जा कर हमें एहसास हुआ कि हमने वास्तव में क्या किया है और इसके पहले कितना ग़लत कर रहे थे।"
"तो अगर तुम्हें एहसास हो गया है तो अब ऐसा रास्ता चुनो जिससे इस परिवार का भला हो सके।" चंद्रमणि ने कहा____"और साथ ही इस गांव में इज्ज़त के साथ सब लोग जी सको।"
"इतना कुछ हो जाने के बाद अब ये इतना आसान नहीं है पिता जी।" गौरी शंकर ने गहरी सांस ली____"दूर दूर तक के लोगों को पता चल चुका है कि हमने दादा ठाकुर के साथ क्या किया है और उन्होंने हमारे साथ क्या किया है।"
"मानता हूं इस बात को।" चंद्रमणि ने कहा____"लेकिन ऐसा सोच कर बैठे रहने से कुछ हासिल भी नहीं होगा। इस गांव में अगर इज्ज़त सम्मान के साथ रहना है तो कुछ ऐसा करना होगा तुम्हें जिससे कि लोगों के ज़हन से इस परिवार के बारे में पैदा हुई ग़लत धारणाएं दूर हो जाएं और लोग तुम सब पर भरोसा करने लगें।"
"आप कहना क्या चाहते हैं पिता जी?" गौरी शंकर को जैसे समझ न आया था।
"यही कि दादा ठाकुर से माफ़ी मांग कर उनसे अपने बेहतर संबंध बना लो।" चंद्रमणि ने कहा____"तुम भी ये मानते ही होगे कि उनके साथ ग़लत करने की शुरुआत तुम लोगों ने ही की थी। उसके लिए जो भी अंजाम तुम्हें भुगतना पड़ा उसमें भी तुम लोगों की ही ग़लती है। इस लिए खुद जा कर अपने किए की माफ़ी मांगो और उनसे अपने रिश्ते बेहतर बना लो। वो बड़े लोग हैं गौरी, इतना कुछ हो जाने के बाद भी उनकी आन बान और शान में कोई कमी नहीं आएगी। जबकि तुम अगर अपनी ज़िद पर अड़े रहोगे तो हमेशा हमेशा के लिए अकेले ही रह जाओगे और ये भी यकीन करो कि एक दिन ऐसा भी वक्त आएगा जब लोग इस घर के लोगों की तरफ देखना भी पसंद नहीं करेंगे। इसी लिए कहता हूं कि इससे पहले कि ऐसा कोई दिन आए तुम दादा ठाकुर से अपने रिश्ते बेहतर बना कर उनसे घुल मिल जाओ। उनके साथ का बहुत बड़ा असर पड़ेगा। उनके साथ साथ लोग तुम लोगों की भी इज्ज़त करेंगे।"
अपने पिता की बातें सुन कर गौरी शंकर गहरी सोच में पड़ गया। यही हाल बाकी सबका भी था। कमरे में एकदम से सन्नाटा छा गया था। उधर चंद्रमणि कुछ देर तक गौरी शंकर को देखते रहे फिर उन्होंने एक गहरी सांस ली।
"मुझे मेरी नातिन स्नेहा ने कुछ बातें बताई हैं जो अभी वर्तमान में चल रही हैं।" चंद्रमणि ने सन्नाटे को चीरते हुए कहा____"अगर वो सब बातें वाकई में सच हैं तो उन्हीं के आधार पर तुम उनके साथ अपने रिश्ते बेहतर और मजबूत बना सकते हो।"
"क्या मतलब है आपका?" फूलवती सहसा बोल पड़ी____"कहीं आप ये तो नहीं कह रहे हैं कि हम दादा ठाकुर के बेटे से अपनी बेटी रूपा का ब्याह कर दें और एक मजबूत रिश्ता बना लें उनसे?"
"हां बहू, मैं सच में यही कहना चाहता हूं।" चंद्रमणि ने सिर हिलाते हुए कहा____"मैं जानता हूं कि इस वक्त तुम लोगों के दिलो दिमाग़ में इस संबंध के बारे में कैसे कैसे विचार उत्पन्न होते रहते हैं लेकिन मैं यही कहूंगा कि उन विचारों को अपने दिलो दिमाग़ से निकाल दो। इसी में सबका भला है। एक बात हमेशा याद रखो कि अतीत की बातों को ले कर बैठे रहने से ना तो कभी खुश रह पाओगे और ना ही कभी उन्नति कर पाओगे। जो हो गया उसे भूलने की कोशिश करो और उन लोगों की तरफ देखो जिनका भविष्य तुम लोगों के ही द्वारा अच्छा या बुरा बन सकता है।"
"हमने भी तो कल दादा ठाकुर से ऐसा ही संबंध बनाने की बात की थी पिता जी।" फूलवती ने कहा____"हमने उनसे कहा था कि अगर वो अपने भाई की बेटी का ब्याह हमारे बेटे रूपचंद्र से कर दें तो हमारे बीच बेहतर रिश्ता बन जाएगा।"
"तुम्हें ऐसा दुस्साहस नहीं करना चाहिए था बहू।" चंद्रमणि ने कहा____"वो हमसे बड़े लोग हैं और बड़े लोग कभी अपने से छोटे को सिर पर नहीं बिठाते। शुकर मनाओ कि तुम्हारे इस दुस्साहस पर दादा ठाकुर ने तुम पर गुस्सा नहीं किया वरना अनर्थ हो जाता।"
"आप बेकार में ही इतनी चिंता कर रहे हैं पिता जी।" फूलवती ने कहा___"जबकि सच तो ये है कि दादा ठाकुर जब मेरे सामने आया था तो हाथ जोड़ कर मुझसे माफ़ियां मांग रहा था। फिर जब हमने उससे अपनी बेटी का ब्याह हमारे बेटे से करने को कहा तो वो राज़ी भी हो गया।"
"ये क्या कह रही हो तुम बहू?" चंद्रमणि की कमज़ोर आंखें आश्चर्य से फैल गईं।
फूलवती ने कल का सारा किस्सा उन्हें बता दिया जिसे सुन कर चंद्रमणि हैरत के भाव लिए काफी देर तक कुछ न बोल सका था।
"तो तुम उसकी नर्मी और नेकदिली को उसकी दुर्बलता और अपराध बोझ से दबा हुआ समझ बैठी हो?" फिर चंद्रमणि ने कहा____"हैरत की बात है बहू कि तुम ऐसा समझी हो। ख़ैर ये तो उसके विशाल हृदय की बात है कि उसने खुद को तुम लोगों का दोषी माना और वो सब कहा मगर तुम्हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए था। इंसान ग़लतियों से सबक लेता है जबकि ऐसा लगता है कि यहां अभी भी तुम लोगों ने कोई सबक सीखा ही नहीं है। एक बार खुद सोचो कि उसे क्या ज़रूरत है भला तुम लोगों से अपने संबंध बेहतर बनाने की? जबकि उसके संबंध तो बड़े बड़े लोगों से हैं जो उसके लिए कुछ भी कर सकते हैं? वो चाह ले तो एक झटके में तुम सबकी ज़िंदगी को नर्क बना सकता है और तुम लोग कुछ नहीं कर पाओगे लेकिन नहीं, उसने इस सबके बाद भी तुम सबकी बेहतरी के बारे में सोचा और खुद आ कर वो सब कहा। तुम लोगों को उसका शुक्र गुज़ार होना चाहिए था। ये उसके विशाल हृदय की ही बात है। वो नहीं चाहता कि उसके गांव के इतने संपन्न साहूकारों का परिवार किसी गर्त में डूब जाए।"
चंद्रमणि की बातों ने एक बार फिर से कमरे में सन्नाटा खींच दिया। पहली बार फूलवती को अपने परिवार की वस्तुस्थिति का एहसास हुआ और साथ ही अपनी ग़लती का भी जो उसने दादा ठाकुर से ब्याह की बातें कर के की थी।
"तो आप ये चाहते हैं कि हम लोग सब कुछ भुला कर उससे संबंध बना लें?" गौरी शंकर ने गहरी सांस ले कर कहा____"और इसके लिए उसके कहे अनुसार हम अपनी बेटी रूपा का ब्याह दादा ठाकुर के बेटे से करने को तैयार हो जाएं?"
"इसी में तुम सबका भला है गौरी।" चंद्रमणि ने कहा____"इस घर की बेटी जब हवेली में बहू बन कर रहेगी तो उसकी एक शान बन जाएगी और उसके साथ साथ तुम सबके भी उस हवेली से गहरे संबंध बन जाएंगे। वो भी ऐसे संबंध जो हमेशा के लिए एक मजबूत रिश्ते में बंधे रहेंगे। उनके साथ साथ लोग तुम लोगों के बारे में भी अच्छा ही सोचने लगेंगे और तुम लोगों की हर जगह पूछ होने लगेगी। इससे बेहतर भला और क्या चाहिए इस परिवार के लिए? क्या ऐसा किसी दूसरे रास्ते से कभी कर पाओगे तुम लोग? तुम लोगों ने जो किया है उसके चलते कोई तुम्हारी बेटियों से ब्याह भी नहीं करेगा। वो सब यही सोचेंगे कि तुम लोग हत्यारे हो तो तुम्हारी बेटियां भी तुम्हारे जैसी ही सोच और मानसिकता वाली होंगी। ऐसे में कौन भला तुम्हारी बेटियों को अपने घर की बहू बनाना चाहेगा? सच तो ये है गौरी कि इस घर की बेटियां जीवन भर कुंवारी ही बैठी रह जाएंगी। इस लिए अगर तुम लोग चाहते हो कि तुम्हारी बेटियों का कहीं घर बस जाए और वो खुश रहें तो अपने दिलो दिमाग़ से दादा ठाकुर के प्रति बैर भाव निकाल दो और उससे ये रिश्ता बना लो। बाकी जैसी तुम लोगों की मर्ज़ी।"
कहने के साथ ही चंद्रमणि ने एक बार सबकी तरफ देखा और फिर दूसरी तरफ को करवट ले ली। गौरी शंकर समझ गया कि उसके पिता को जो कहना था वो कह चुका है। अपने पिता की तरफ देखते हुए उसने गहरी सांस ली और फिर उठ कर कमरे से बाहर आ गया। उसके पीछे बाकी लोग भी आ गए थे।
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चक्रमणि ने जो भी बात कही है वह एक दम सही कही है गौरीशंकर को उनकी बातो पर विचार करना चाहिए और ठाकुर साहब से अपने संबंध सुधारने चाहिए चक्रमणि ने सही कहा है कि अगर ऐसे रहे तो वो हमेशा अकेले ही रहेंगे वे ठाकुर साहब के रहमो करम पर है देखते हैं गौरी शंकर अपने पिता की बात मान कर अपनी गलती मानता है या नही
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