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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,553
354
दोनो ही अपडेट बहुत ही शानदार और लाज़वाब है आखिर सरोज को भी पता चल गया है कि उसकी बेटी को वैभव से प्यार हो गया है
वैभव रूपा से इसलिए शादी करना चाहता है कि उसने उसकी जान बचाई थी
शुभम भाई कोई चक्कर चलाकर वैभव से दोनो को शादी करवा दोनो ही वैभव के लिए पागल है अगर दोनो में से किसी एक के साथ अगर शादी हुई तो वह नाइंसाफी होगी।प्यार के साथ धोखा होगा
वैभव ने अजीत और विभोर को विदेश भेजने का निर्णय सही लिया है
Bhai main kis ke sath chakkar chala du?? Chakkar to vaibhav ke chal rele hain :D
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,553
354
अध्याय - 93
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



"वो कल दोपहर तक यहां आ जाएंगे।" पिता जी ने कहा____"तुम एक दो लोगों को ले जा कर हवेली के पूर्वी हिस्से वाले दो कमरों की साफ सफाई करवा देना। हमें भी एक ज़रूरी काम से कहीं जाना है।"

पिता जी के कहने पर मैंने सिर हिलाया और बैठक से बाहर आ गया। हवेली में काम करने वाले दो मुलाज़िमों को ले कर मैं हवेली के पूर्वी हिस्से की तरफ बढ़ चला। बंद पड़े कमरों को खोल कर दोनों मुलाज़िमों को उनकी बढ़िया से सफ़ाई करने के लिए बोल दिया। उसके बाद मैं नीचे आ गया। नीचे आ कर मैं मां से मिला। उन्हें बताया कि जब दोनों मुलाज़िम कमरों की सफ़ाई कर के आएं तो उन दोनों कमरों में पोंछा लगाने के लिए वो किसी नौकरानी को भेज दें।



अब आगे....


अगले दिन सुबह नाश्ता पानी कर के मैं खेतों की तरफ चल पड़ा। गांव में क्योंकि चंद्रकांत के बेटे की किसी ने हत्या कर दी थी इस लिए हर तरफ उसी की चर्चा थी। मेरे ज़हन में भी ये सवाल चकरा रहा था कि आख़िर रघुवीर को किसने पेल दिया होगा? काफी दिमाग़ लगाने के बाद भी समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा किसने किया होगा? ज़हन में ये ख़याल भी आता था कि कहीं सच में रूपचंद्र ने तो उसकी हत्या नहीं की होगी? संभव है कि रजनी की बातों से वो सच में गुस्से से इस क़दर पगला गया हो कि रजनी को सबक सिखाने के लिए उसने उसके पति की हत्या कर दी हो? किंतु अगले ही पल मुझे अपना ये ख़याल जमता हुआ प्रतीत नहीं होता था क्योंकि रूपचंद्र से मुझे ऐसे किसी कर्म की ज़रा भी आशा नहीं थी। वो बुरा इंसान ज़रूर था लेकिन रघुवीर की हत्या करेगा ऐसा बिल्कुल नहीं लगता था।

वो मेरी हत्या करने का ख़्वाइशमंद ज़रूर था किंतु अब तो वो भी संभव नहीं था क्योंकि उसकी बहन रूपा के साथ मेरे ब्याह की बात पक्की हो चुकी थी और अब वो ऐसा कुछ करने का सोच भी नहीं सकता था। वो मुझसे सिर्फ इस बात से नफ़रत करता था क्योंकि उसकी नज़र में मैंने उसकी बहन को बर्बाद किया था और अब जबकि उसकी बहन से मेरा ब्याह होना ही पक्का हो गया था तो उसकी नाराज़गी अथवा नफ़रत स्वतः ही दूर हो जानी थी।

साहूकारों के घर के सामने से निकला तो अनायास ही मेरी नज़र उनके दरवाज़े की तरफ चली गई किंतु बाहर किसी को ना देख मैं आगे बढ़ गया। ये अलग बात है कि जाने क्या सोच कर मेरी धड़कनें थोड़ा तेज़ हो गईं थी। थोड़ा आगे आया तो मुंशी चंद्रकांत का घर आ गया। उसके घर के बाहर और तो कोई न दिखा किंतु चंद्रकांत की बेटी कोमल दिख गई। वो घर के बाहर ही दरवाज़े के बगल से बनी चबूतरेनुमा पट्टी पर गुमसुम सी बैठी थी। मोटर साईकिल की आवाज़ सुनते ही जैसे वो ख़यालों से बाहर आई और फिर उसकी नज़र मुझ पर पड़ी। आज काफी समय बाद उसे देख रहा था मैं। कितना बदल गई थी वो। ऐसा लग रहा था जैसे पहले से ज़्यादा जवान और सुंदर दिखने लगी थी वो।

मुझ पर नज़र पड़ते ही वो एकदम से सम्हल कर बैठ गई और साथ ही घबरा कर जल्दी से इधर उधर देखने लगी। एक वक्त था जब मेरे मन में उसे भोगने की इच्छा थी किंतु अब उसके बारे में ऐसा कुछ महसूस ही नहीं हुआ मुझे। मुझे खुद इस बात पर हैरानी हुई किंतु फिर जल्दी ही मुझे एहसास हुआ कि इसकी वजह शायद अनुराधा से मेरा प्रेम करना हो सकता है या फिर भाभी को दिया हुआ वचन हो सकता है, या फिर इसकी वजह वो हो सकती है जो पिछले कुछ समय से हमारे साथ हुआ था।

मैं उससे नज़र हटा कर सीधा निकल गया। जल्दी ही मैं अपने खेतों पर पहुंच गया। खेतों पर बने मकान के सामने जैसे ही मैं पहुंचा तो मकान के बाहर बरामदे में सरोज काकी को देख मैं चौंक गया। मेरे मन में सवाल उभरा कि काकी अपने गांव से हमारे गांव इतनी दूर मेरे खेत वाले मकान में किस लिए आ कर बैठी है? जाने क्यों मेरे मन में किसी अनहोनी की आशंका हुई और मैं एकदम से फिक्रमंद हो उठा। तभी मोटर साइकिल की आवाज़ सुन कर भुवन भी वहीं पर आ गया। भुवन ने मुझे सलाम किया, इधर मैं मोटर साईकिल खड़ी कर के बरामदे में आया। सरोज काकी ने मुझे पहले ही देख लिया था इस लिए वो उठ कर खड़ी हो गई थी।

"क्या बात है काकी?" मैंने फिक्रमंदी से उसके क़रीब पहुंचते हुए पूछा____"आप इतनी दूर यहां क्या कर रही हैं? सब ठीक तो है ना?"

मेरी बात सुन कर काकी ने कुछ बोलने से पहले भुवन की तरफ देखा। भुवन ने उसे देख कर हल्के से सिर हिलाया और फिर वापस चला गया। मुझे थोड़ा अजीब लगा किंतु मैंने इस बारे में कुछ नहीं कहा बल्कि अपने सवाल के जवाब की आशा में काकी के पास ही बैठ गया।

"बात क्या है काकी?" मैंने व्याकुलतावश फिर से पूछा____"तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही हो? सब ठीक तो है ना?"

"क्या बताऊं वैभव?" काकी ने गंभीरता से गहरी सांस ली____"कुछ समझ में ही नहीं आ रहा कि तुम्हें क्या बताऊं और कैसे बताऊं?"

"आख़िर बात क्या है?" मैं उसके इस तरह बोलने पर और भी फिक्रमंद हो उठा____"आज तुम्हारे चेहरे पर चिंता के भाव क्यों दिखाई दे रहे हैं? अगर कोई समस्या हो गई है तो तुम मुझे बेझिझक बताओ। तुम जानती हो कि मैं तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के लिए बिना सोचे समझे कुछ भी कर जाऊंगा।"

"यही तो ग़लत किया है तुमने।" काकी ने अजीब भाव से मुझे देखा____"तुम्हें बिना सोचे समझे कुछ भी नहीं करना चाहिए था। ख़ास कर हम जैसे ग़रीब लोगों के साथ।"

"यूं पहेलियों में बातें न करो काकी।" मैंने बेचैन भाव से कहा____"साफ साफ बताओ कि आख़िर हुआ क्या है? मैंने ऐसा क्या कर दिया है बिना सोचे समझे?"

"मेरी भोली भाली बेटी के हृदय में तुमने अपने प्रति कोमल भावनाएं जगा देने का काम किया है वैभव।" काकी ने सहसा हताश हो कर कहा____"उसके दिल में अपने प्रति तुमने प्रेम के ऐसे भाव उत्पन्न कर दिए हैं जिसके चलते मेरी बेटी का जीवन उजाड़ सा हो गया है। क्यों वैभव? आख़िर क्यों तुमने मेरी नासमझ और नादान बेटी के साथ इस तरह का खेल खेल लिया? क्या तुम्हें ज़रा भी इस बात का ख़याल नहीं आया कि इस सबके बाद मेरी बेटी का क्या होगा?"

सरोज काकी की बातें सुन कर मुझे एकदम से झटका लगा। मैं अंदर ही अंदर ये सोच कर भी हैरान हुआ कि काकी को इस बारे में कैसे पता चल गया? हालाकि उसको एक दिन तो इस बात का पता चलना ही था किंतु इतना जल्दी पता चल जाएगा ये उम्मीद नहीं थी मुझे। मैंने एक गहरी सांस ली।

"तुम ग़लत समझ रही हो काकी।" फिर मैंने गंभीरता से कहा____"मैंने तुम्हारी बेटी के साथ कोई खेल नहीं खेला। सच तो ये है कि जो कुछ हुआ है वो सब उस विधाता का ही मायाजाल था। उसने मुझ जैसे चरित्र हीन लड़के को बदलने के लिए तुम्हारी बेटी को चुना। हां काकी, तुम्हारी उस बेटी को जिसकी सादगी और मासूमियत में जाने ऐसी क्या बता थी कि मैं चाह कर भी उसे अपनी हवस का शिकार नहीं बना सका। शुरुआत में तो मैं खुद पर इसके लिए चकित होता था किंतु फिर जैसे आदत पड़ गई। उसके बाद तो फिर ऐसा हुआ कि तुम्हारी बेटी के प्रति मेरे दिल में खुद ही कोमल भावनाएं जागने लगीं। उससे बातें करना अच्छा लगने लगा। उसकी हर अदा दिलो दिमाग़ में घर करती चली गई। आज आलम ये है कि मेरे दिल में अनुराधा के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रेम है। मेरा दिल हर पल उसकी खुशी की दुआएं मांगता है।"

"क्या तुम मुझे अपनी इन चिकनी चुपड़ी बातों से बहलाना चाहते हो?" सरोज ने पूर्व की भांति ही आहत भाव से कहा____"मगर मैं बहलने वाली नहीं हूं। मैं तुमसे विनती करती हूं कि मेरी नादान और नासमझ बेटी को बर्बाद करने का मत सोचो और ना ही उसे ऐसे भ्रम में डालो जिसमें फंस कर वो एक दिन टूट कर बिखर जाए।"

"तुम अब भी मुझे ग़लत ही समझ रही हो काकी।" मैंने बेबस भाव से कहा____"शायद इस लिए क्योंकि तुम्हारी नज़र में मेरी छवि अच्छी नहीं है। मैं मानता हूं कि मेरे जैसे गंदे चरित्र वाले लड़के के साथ कोई भी मां अपनी बेटी का संबंध जुड़ा हुआ नहीं बर्दास्त करेगी लेकिन मेरा यकीन करो काकी। मैं अब पहले जैसा नहीं रहा। तुम्हारी बेटी ने किसी जादू की तरह मेरे बुरे चरित्र को मिटा कर मेरे अंदर एक अच्छा इंसान पैदा कर दिया है।"

मेरी बात सुन कर काकी मेरी तरफ अजीब भाव से देखने लगी। जैसे उसे मेरी बातों पर यकीन ही न हो रहा हो। मैं समझ सकता था कि उसको ही क्या बल्कि किसी को भी इतना जल्दी मेरे बदले हुए चरित्र की बात हजम नहीं हो सकती थी।

"तुम खुद सोचो काकी कि अगर मैं पहले जैसा ही होता तो क्या तुम्हारी बेटी मेरा शिकार होने से अब तक बची रहती?" मैंने जैसे उसे समझाते हुए कहा____"क्या तुम्हें लगता है कि तुम में से कोई भी मुझे अपनी मनमानी करने से रोक लेता? हर्गिज़ नहीं, अगर मैं सच में तुम्हारी बेटी की इज्ज़त ख़राब कर के उसे बर्बाद करना चाहता तो वो पहले ही कर डालता और तुम में से कोई भी अनुराधा को मुझसे नहीं बचा सकता था मगर मैंने ऐसा नहीं किया। जानती हो क्यों? क्योंकि उस मासूम को देख कर मेरे अंदर ऐसा करने की हिम्मत ही नहीं हुई। मुझे नहीं पता कि उस समय ऐसा क्यों होता था लेकिन सच यही है। मुझे ग़लत मत समझो काकी और ना ही अपनी बेटी को ग़लत समझना। वो बहुत मासूम है। उसका दामन बेदाग़ है। मैं खुद मिट जाना पसंद करूंगा लेकिन उस मासूम पर किसी तरह का दाग़ लगाने का सोच भी नहीं सकता।"

सरोज काकी के चेहरे पर बड़ी तेज़ी से भावों का आना जाना लग गया था। वो हैरत से मुझे देखे जा रही थी। इधर मेरी धड़कनें ये सोच कर थोड़ा असमान्य हो गई थीं कि जाने काकी अब क्या कहेगी?

"माना कि तुम मेरी बेटी को ख़राब नहीं करना चाहते।" फिर उसने गहरी सांस ले कर कहा____"लेकिन उसके दिल में अपने प्रति प्रेम का अंकुर पैदा कर के उसे बर्बाद ही तो कर रहे हो तुम। वो तो नासमझ है इस लिए उसे अभी इस बात का एहसास ही नहीं है कि प्रेम के वशीभूत हो कर उसे ऐसे लड़के का ख़्वाब नहीं देखना चाहिए जो उसकी पहुंच से बहुत दूर है और जो उसको कभी हासिल ही नहीं हो सकता। किंतु तुम तो समझदार हो, तुम्हें तो सोचना चाहिए कि उसको ऐसे ख़्वाब नहीं दिखाना चाहिए।"

"फ़िक्र मत करो काकी।" मैंने गहरी सांस ले कर कहा____"तुमसे ज़्यादा मुझे अनुराधा की चिंता है और इस बात की भी कि इस प्रेम के चलते हम दोनों का क्या होगा? तुम जिस चीज़ के बारे में सोच कर इतना हलकान हो रही हो उसका मुझे भी शिद्दत से एहसास है। इस लिए यही कहूंगा कि तुम इस बारे में ज़्यादा मत सोचो। मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा। तुम्हें मुझ पर भरोसा है ना?"

सरोज काकी अजीब भाव से देखने लगी मुझे। कदाचित उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या कहे? मैं समझ सकता था कि इस वक्त उसके अंदर किस तरह की आंधी चल रही थी। यकीनन उसे अपनी बेटी की चिंता थी। उसे पता था कि उसकी बेटी का और मेरा कोई मेल नहीं है लेकिन प्रेम कहां किसी की हैसियत देखता है? वैसे सच कहूं तो अब जा कर मुझे भी इस बात का एहसास हुआ था कि अनुराधा से प्रेम करना अलग बात है किंतु उसे अपनी जीवन संगनी बनाना ज़रा भी आसान नहीं हो सकता। क्योंकि हम दोनों की हैसियत में ज़मीन आसमान का फ़र्क है मगर मैंने भी अब ये सोच लिया था कि जिसने मेरा कायाकल्प कर के मुझे एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित किया है उसे अपने जीवन से यूं जाने नहीं दूंगा। फिर भले ही इसके लिए मुझे किसी भी हद तक क्यों न जाना पड़े।

"आख़िर कैसे भरोसा करूं वैभव?" सहसा सरोज काकी ने अधीरता से कहा____"ये बातें कोई मामूली बातें नहीं हैं जिसके बारे में कोई आंख बंद कर के भरोसा कर लेगा। मैं अच्छी तरह जानती हूं कि मेरी बेटी तुम्हारे प्रेम के चलते अपना जीवन बर्बाद कर लेगी। तुम भी एक दिन उसे बेसहारा छोड़ कर चले जाओगे।"

"नहीं काकी नहीं।" मैंने मजबूती से इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"ऐसा कभी नहीं होगा। ठाकुर वैभव सिंह तुम्हें वचन देता है कि वो ना तो तुम्हारी बेटी का जीवन बर्बाद करेगा और ना ही उसे कोई तकलीफ़ देगा। मेरे दिल में उसके लिए सच्चा प्रेम है। मैंने फ़ैसला कर लिया है कि अनुराधा को मैं अपनी जीवन संगनी बनाऊंगा। उससे ब्याह करूंगा। क्या तुम अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथों में दोगी?"

सरोज काकी मेरी बात सुन कर आश्चर्य से मुझे देखने लगी। उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। उसके मुख से कोई बोल ना फूटा। ऐसा लगा जैसे उसकी आवाज़ हलक में ही कहीं फंस गई हो।

"जवाब दो काकी।" उसे मुंह फाड़े देख मैंने फिर से कहा____"क्या तुम अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथ में दोगी?"

"आं...हां...म..मगर ये कैसे संभव है वैभव?" सरोज को जैसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था____"मेरा मतलब है कि क्या तुम्हारे पिता दादा ठाकुर अपने बेटे का ब्याह मुझ जैसी एक मामूली से किसान की बेटी से करेंगे?"

"वो सब तुम मुझ पर छोड़ दो काकी।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"तुम सिर्फ़ ये बताओ कि क्या तुम्हें ये रिश्ता मंज़ूर है और क्या तुम अपनी बेटी का ब्याह मेरे साथ करोगी?"

"भला कौन ऐसी मां होगी जो अपनी बेटी का ब्याह ऊंचे घर में करने के सपने न देखे?" काकी ने अधीरता से कहा____"लेकिन सपने में और हकीक़त में बहुत फ़र्क होता है बेटा। फिर भी अगर तुम इस सपने को हकीक़त बना देने का माद्दा रखते हो और मुझे वचन देते हो तो मुझे मंज़ूर है। अगर सच में ऐसा हो जाए तो ये मेरी बेटी का अहोभाग्य ही होगा।"

"ज़रूर होगा काकी।" मैंने इस बार मुस्कुराते हुए कहा____"हो सकता है कि ऐसा होने में थोड़ा वक्त लगे लेकिन यकीन मानो ऐसा होगा ज़रूर।"

मैंने देखा सरोज काकी के चेहरे पर एक अलग ही तरह की चमक दिखने लगी थी। खुशी से उसका चेहरा चमकने लगा था। हालाकि उसी चेहरे में कभी कभी दुविधा जैसे भाव भी गर्दिश करते नज़र आने लगते थे।

"अच्छा अब ये बताओ कि तुम्हें इस बारे में कैसे पता चला?" मैंने कुछ सोचते हुए उससे पूछा।

"भुवन ने बताया।" काकी ने कहा____"असल में काफी दिनों से मैं देख रही थी कि अनू एकदम ख़ामोश और गुमसुम सी रहती है। मुझे उसकी दशा देख कर चिंता होने लगी थी। समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर उसकी ख़ामोशी की क्या वजह है। मेरे पूछने पर वो गोल मोल जवाब दे कर टाल जाती थी। फिर मैंने ये सोच कर भुवन से पूछा कि शायद उसे कुछ पता हो। आख़िर वो अनू को अपनी बहन मानता है। मेरे पूछने पर भुवन ने बताया कि अनू तुमसे प्रेम करती है और उसकी ऐसी हालत की वजह उसका प्रेम करना ही है। मुझे तो उसकी बात सुन कर यकीन ही नहीं हुआ था। फिर जब मैंने अनू से इस बारे में सख़्ती से पूछा तो उसने इस बात को क़बूल कर लिया। पहले तो मुझे यही लगा था कि तुमने मेरी भोली भाली बेटी को फंसा लिया है।"

"अच्छा हुआ कि उसे फंसाने की हिम्मत ही नहीं की मैंने।" मैंने कहा____"वरना शायद ऐसा होता कि आगे भी जीवन में मैं कभी अच्छा इंसान बनने का न सोच पाता और ना ही मुझे ये एहसास होता कि अपने अब तक के जीवन में मैंने कितने ग़लत कर्म किए थे। तुम्हारी बेटी कोई मामूली लड़की नहीं है काकी, वो तो एक ख़ास किस्म की लड़की है जिसने मेरे जैसे इंसान को बिना कुछ किए ही बदल कर रख दिया है। ऐसी लड़की से मुझे प्रेम न होता तो भला क्या होता?"

"मेरी तुमसे अब एक ही विनती है कि अपना वचन ज़रूर निभाना।" काकी ने मेरी तरफ देखते हुए नम आंखों से कहा____"मेरी बेटी के साथ कोई छल मत करना और ना ही कभी उसे कोई तकलीफ़ देना।"

"ठाकुर वैभव सिंह खुद मिट जाएगा लेकिन सपने में भी वो अनुराधा को कोई तकलीफ़ नहीं देगा।" मैंने कहा____"तुम बेफिक्र रहो काकी। अनुराधा अब मेरी अमानत है। उसका हर सुख दुख अब मेरा है।"

"ठीक है फिर।" काकी ने उठते हुए कहा____"अब मुझे उसकी कोई चिंता नहीं है। अच्छा अब चलती हूं।"

काकी के जाने के बाद भी मैं उसी के बारे में सोचता रहा। आज मैंने अनुराधा के विषय में एक अहम और अटूट फ़ैसला ले लिया था। हालाकि मुझे एहसास था कि इस बारे में मेरा फ़ैसला मेरे पिता जी को बेहद नागवार भी गुज़र सकता है क्योंकि वो पहले ही मेरा ब्याह साहूकार गौरी शंकर की भतीजी रूपा से तय कर चुके हैं। मतलब साफ़ है कि आने वाला समय मेरे लिए कुछ ज़्यादा ही चुनौतियों से भरा हुआ साबित होने वाला है। मैं ये सब सोच ही रहा था कि भुवन मेरे पास आया और सिर झुका कर खड़ा हो गया।

"तुम्हें क्या हुआ?" उसे सिर झुकाए खड़ा हो गया देख मैंने उससे पूछा____"इस तरह सिर झुकाए क्यों खड़े हो गए?"

"माफ़ करना छोटे कुंवर मैंने काकी को आपके और अनुराधा के बीच बने संबंध के बारे में बता दिया।" उसने दबी आवाज़ में कहा____"मैं उसे बताना नहीं चाहता था लेकिन जब मैंने उसे अपनी बेटी के लिए कुछ ज़्यादा ही चिंतित देखा तो मुझे उसको सब कुछ बताना पड़ा।"

"अच्छा किया भुवन जो तुमने काकी को सब कुछ बता दिया।" मैंने कहा____"वैसे भी एक दिन तो उसे पता चलना ही था। मैं भी इस बात को सोच कर थोड़ा परेशान सा हो जाता था कि काकी कहीं इस सबके बारे में ग़लत ना सोच बैठे। आख़िर पता तो उसे भी है कि मैं अब से पहले किस तरह का इंसान था?"

"वैसे बधाई हो छोटे कुंवर।" भुवन ने सिर उठा कर सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"काकी ने आपके साथ अपनी बेटी का रिश्ता मंज़ूर कर लिया है। अनुराधा से जब आपका ब्याह हो जाएगा तो मेरे साथ भी आपका एक नया रिश्ता बन जाएगा।"

"मतलब?" मैंने उलझन पूर्ण भाव से उसे देखा।

"मतलब ये कि तब मैं आपका साला बन जाऊंगा।" भुवन ने उसी तरह मुस्कुराते हुए कहा____"आप शायद भूल रहे हैं कि अनुराधा को मैंने अपनी छोटी बहन माना है।"

"ओह! हां हां सही कहा तुमने हा हा हा।" मैं उसकी बात समझते ही ठहाका लगा कर हंस पड़ा। भुवन भी हंसने लगा था। कुछ देर बाद वो चला गया। मैं भी मन ही मन मुस्कुराते हुए अनुराधा के बारे में जाने कैसे कैसे हसीन ख़्वाब बुनने लगा।

✮✮✮✮

दोपहर को जब मैं खाना खाने हवेली पहुंचा तो बैठक में पिता जी के साथ किसी अंजान व्यक्ति को देख कर ठिठक गया। पिता जी की नज़र मुझ पर पड़ी तो उन्होंने मुझे बैठक में आने का इशारा किया।

"ये शायद छोटे कुंवर हैं।" मैं जैसे ही बैठक में दाखिल हुआ तो उस व्यक्ति ने मेरी तरफ इशारा करते हुए पिता जी से नम्र भाव से कहा____"कई साल पहले इन्हें देखा था जब ये अपनी ननिहाल माधवगढ़ आए थे।"

पिता जी ने उसकी बात सुन कर हां में सिर हिलाया। उस व्यक्ति ने मुझे अदब से सलाम किया तो मैं समझ गया कि ये वही व्यक्ति है जिसे पिता जी ने अपने हिसाब किताब के काम के लिए मेरे ननिहाल से बुलाया था। ख़ैर पिता जी के इशारा मिलते ही मैं बैठक से निकल कर हवेली के अंदर की तरफ बढ़ गया।

गुशलखाने में अच्छे से नहा धो कर मैंने अपने कमरे में जा कर दूसरे कपड़े पहने। उसके बाद खाना खाने के लिए नीचे आ गया। आज मुझे आने में देरी हो गई थी इस लिए भोजन करने वाला मैं अकेला ही बचा था। ख़ैर जल्दी ही कुसुम ने मेरे सामने भोजन की थाली ला कर रख दी तो मैं भूखा होने की वजह से टूट पड़ा खाने पर।

पेट भर खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में आ कर पलंग पर लेट गया। आंखें बंद किया तो सरोज काकी का चेहरा उजागर हो गया। उसकी बातें मेरे दिलो दिमाग़ में उभरने लगीं। सरोज अपनी बेटी का ब्याह मुझसे करने के लिए राज़ी हो गई थी इस बात से यकीनन मैं खुश था लेकिन मुझे इस बात का भी एहसास था कि अनुराधा से ब्याह करना मेरे लिए आसान काम नहीं हो सकता था। पिता जी को जब इस बारे में पता चलेगा तो जाने वो क्या कहेंगे मुझे?

रूपा से ब्याह होना तो पक्का ही हो गया था तो अब सवाल ये था कि क्या पिता जी मुझे किसी और से भी ब्याह करने की इजाज़त देंगे? हालाकि एक व्यक्ति का एक से ज़्यादा लड़कियों से ब्याह करना कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन पिता जी को ऐसा संबंध स्वीकार होगा कि नहीं ये सोचने वाली बात थी। अपने पिता जी के स्वभाव के बारे में मैं अच्छी तरह जानता था इस लिए एकाएक ही मुझे इस सबके बारे में सोचते हुए चिंता होने लगी।

मैं सरोज को वचन दे चुका था कि अब से अनुराधा मेरी अमानत है और उसके हर सुख दुख का मुझे ख़याल रखना है। अतः अब ये भी संभव नहीं था कि मैं अपने वचन को तोड़ दूं अथवा अनुराधा से ब्याह करने का इरादा ही बदल दूं। अनुराधा मेरी चाहत थी जिसके साथ ज़िंदगी गुज़ारना अब मेरी हसरत बन चुकी थी। मैंने महसूस किया कि अचानक ही मैं एक अलग ही तरह के चक्रव्यूह में फंस गया हूं। समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी इस समस्या को कैसे दूर करूं और वो सब कैसे हो जाए जो मैं चाहता हूं?

यही सब सोचते हुए जाने कब मेरी आंख लग गई। उसके बाद कुसुम के जगाने पर ही मेरी आंख खुली। वो एक ट्रे में पानी से भरा ग्लास और चाय का प्याला लिए खड़ी थी। मैं जल्दी से उठा और ग्लास उठा कर पानी पिया। कुसुम पलंग के किनारे ही मेरे पास बैठ गई। पानी पीने के बाद मैंने ट्रे से चाय का कप उठा लिया।

"शाम हो गई क्या?" मैंने खिड़की के बाहर हल्का अंधेरा छाया देखा तो कुसुम से पूछ बैठा।

"नहीं भैया।" कुसुम ने बताया____"शाम होने में तो अभी बहुत समय है। ये अंधेरा तो आसमान में छाए काले काले बादलों का है। ऐसा लगता है जैसे आज तेज़ बारिश होगी।"

"अच्छा ये बता भाभी कहां हैं?" मैंने कुछ सोचते हुए उससे पूछा।
"वो तो नीचे बड़ी मां लोगों के पास बैठ के चाय पी रही हैं।" कुसुम ने कहा____"उन लोगों के साथ एक काकी भी है जो आज माधवगढ़ से आई हैं।"

"ओह! हां पिता जी ने बताया था मुझे।" मैंने चाय की चुस्की ले कर कहा।

"आपको पता है भैया।" कुसुम ने सहसा खुशी से मुस्कुराते हुए कहा____"काकी की एक बेटी भी है जो मेरी ही उमर की है। मेरी उससे दोस्ती भी हो गई है। बहुत अच्छी है वो।"

"अच्छा।" जाने क्यों मेरे कान खड़े हो गए उसकी बात सुन कर____"बड़ा जल्दी दोस्ती हो गई तेरी उससे।"

"हां भैया।" कुसुम ने उसी खुशी के साथ कहा____"बड़ी मां ने मुझसे कहा था कि मैं उसके साथ बातें करूं और उससे घुल मिल जाऊं जिससे उसको यहां पर अजनबीपन न महसूस हो।"

"हम्म्म्म।" मैंने चाय की चुस्की लेते हुए हुंकार भरी____"तो ऐसी क्या बातें की तुमने उससे जिससे वो तेरी इतनी जल्दी दोस्त बन गई?"

"बस ऐसे ही इधर उधर की बातें।" कुसुम ने मुस्कुराते हुए कहा____"वो अपने बारे में बताने लगी, फिर मैंने उसे सबके बारे में बताया। आपके बारे में भी बताया कि इस हवेली में आप मेरे सबसे अच्छे वाले भैया हैं और मुझे बहुत प्यार करते हैं।"

"अच्छा।" मैंने खाली कप को उसके ट्रे में रखते हुए कहा____"अगर उससे तेरी दोस्ती हो गई है तो ये बहुत अच्छी बात है फिर। उसके साथ तेरा भी अच्छे से समय कट जाया करेगा। अच्छा अब तू जा, मैं भी खेतों की तरफ जाऊंगा। विभोर और अजीत को जा कर बोल दे कि वो भी मेरे साथ चलने को तैयार हो जाएं।"

कुसुम ने हां में सिर हिलाया और फिर खुशी खुशी कमरे से चली गई। मैंने भी उठ कर अपने कपड़े पहने और नीचे गुशलखाने में हाथ मुंह धो कर मां लोगों के पास आ गया। मैंने देखा मां और चाची लोगों के पास एक औरत बैठी हुई थी। उसकी उमर यही कोई पैंतीस के आस पास रही होगी। चेहरा साफ था उसका, जिस्म भी काफी गदराया हुआ नज़र आ रहा था। मां ने मुझे देख कर उसे बताया कि मैं उनका छोटा बेटा हूं। मां की बात सुन कर उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए मुझे नमस्ते किया तो मैंने भी सिर को हल्का सा खम करके उसे नमस्ते किया। तभी मेरी नज़र रागिनी भाभी पर पड़ी। वो अपलक मुझे ही देखे जा रहीं थी। जैसे ही मेरी नज़र उनसे मिली तो वो हल्के से मुस्कुराईं। मुझे समझ न आया कि वो क्या सोच के मुस्कुराईं थी? हालाकि जवाब में मैंने भी मुस्कुरा दिया था उसके बाद मैं ये सोच कर उठ कर वहां से बाहर की तरफ चल पड़ा कि औरतों के बीच भला मेरा क्या काम?

थोड़ी ही देर में विभोर और अजीत बाहर आ गए तो मैं जीप में उन दोनों को बैठा कर खेतों की तरफ निकल गया। आसमान में काले बादलों ने अच्छा खासा अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। प्रतीत होता था कि आज वो जम के बरसेंगे।



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ranipyaarkidiwani

Rajit singh
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Cheeze uljhi hui hain abhi... situation ko dekhte huye har koi kuch na kuch chhupa raha hai. Well jaise jaise kuch cheeze solve hoti jayengi waise waise baaki ki uljhi cheeze bhi clear ho jayengi... :declare:

Bilkul sahi point hai but yaha par sabse pahle ye samajhne ki zarurat hai ki ye story aaj ke time ki nahi hai balki 70-80 ke dashak ki hai. Us time gaav dehaat ke log itne saksham nahi hote the ki wo videsh pahuch kar apne kisi dushman ko maar sake. Halaaki ye bhi possible hai ki dada thakur ka dushman itna saksham ho jo videsh bhi pahuch jaye...anyway let's see what happens... ;)

Safedposh is a mysterious person in this story...abhi tak wo kyo parde ke pichhe hai ya khamosh hai ye wahi bata sakta hai. Maybe wo koi bada karne ki firaak me ho, so be patient and just wait... :dost:

Thanks...
Are Bhai Bhai mujhe laga mere coment se bore ho jaoge chalo shukar hai aapko mera kehna samajh aaya ki me kya keh raha hu kya puchne ki koshish kar raha hu
 

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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अध्याय - 93
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"वो कल दोपहर तक यहां आ जाएंगे।" पिता जी ने कहा____"तुम एक दो लोगों को ले जा कर हवेली के पूर्वी हिस्से वाले दो कमरों की साफ सफाई करवा देना। हमें भी एक ज़रूरी काम से कहीं जाना है।"

पिता जी के कहने पर मैंने सिर हिलाया और बैठक से बाहर आ गया। हवेली में काम करने वाले दो मुलाज़िमों को ले कर मैं हवेली के पूर्वी हिस्से की तरफ बढ़ चला। बंद पड़े कमरों को खोल कर दोनों मुलाज़िमों को उनकी बढ़िया से सफ़ाई करने के लिए बोल दिया। उसके बाद मैं नीचे आ गया। नीचे आ कर मैं मां से मिला। उन्हें बताया कि जब दोनों मुलाज़िम कमरों की सफ़ाई कर के आएं तो उन दोनों कमरों में पोंछा लगाने के लिए वो किसी नौकरानी को भेज दें।



अब आगे....


अगले दिन सुबह नाश्ता पानी कर के मैं खेतों की तरफ चल पड़ा। गांव में क्योंकि चंद्रकांत के बेटे की किसी ने हत्या कर दी थी इस लिए हर तरफ उसी की चर्चा थी। मेरे ज़हन में भी ये सवाल चकरा रहा था कि आख़िर रघुवीर को किसने पेल दिया होगा? काफी दिमाग़ लगाने के बाद भी समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा किसने किया होगा? ज़हन में ये ख़याल भी आता था कि कहीं सच में रूपचंद्र ने तो उसकी हत्या नहीं की होगी? संभव है कि रजनी की बातों से वो सच में गुस्से से इस क़दर पगला गया हो कि रजनी को सबक सिखाने के लिए उसने उसके पति की हत्या कर दी हो? किंतु अगले ही पल मुझे अपना ये ख़याल जमता हुआ प्रतीत नहीं होता था क्योंकि रूपचंद्र से मुझे ऐसे किसी कर्म की ज़रा भी आशा नहीं थी। वो बुरा इंसान ज़रूर था लेकिन रघुवीर की हत्या करेगा ऐसा बिल्कुल नहीं लगता था।

वो मेरी हत्या करने का ख़्वाइशमंद ज़रूर था किंतु अब तो वो भी संभव नहीं था क्योंकि उसकी बहन रूपा के साथ मेरे ब्याह की बात पक्की हो चुकी थी और अब वो ऐसा कुछ करने का सोच भी नहीं सकता था। वो मुझसे सिर्फ इस बात से नफ़रत करता था क्योंकि उसकी नज़र में मैंने उसकी बहन को बर्बाद किया था और अब जबकि उसकी बहन से मेरा ब्याह होना ही पक्का हो गया था तो उसकी नाराज़गी अथवा नफ़रत स्वतः ही दूर हो जानी थी।

साहूकारों के घर के सामने से निकला तो अनायास ही मेरी नज़र उनके दरवाज़े की तरफ चली गई किंतु बाहर किसी को ना देख मैं आगे बढ़ गया। ये अलग बात है कि जाने क्या सोच कर मेरी धड़कनें थोड़ा तेज़ हो गईं थी। थोड़ा आगे आया तो मुंशी चंद्रकांत का घर आ गया। उसके घर के बाहर और तो कोई न दिखा किंतु चंद्रकांत की बेटी कोमल दिख गई। वो घर के बाहर ही दरवाज़े के बगल से बनी चबूतरेनुमा पट्टी पर गुमसुम सी बैठी थी। मोटर साईकिल की आवाज़ सुनते ही जैसे वो ख़यालों से बाहर आई और फिर उसकी नज़र मुझ पर पड़ी। आज काफी समय बाद उसे देख रहा था मैं। कितना बदल गई थी वो। ऐसा लग रहा था जैसे पहले से ज़्यादा जवान और सुंदर दिखने लगी थी वो।

मुझ पर नज़र पड़ते ही वो एकदम से सम्हल कर बैठ गई और साथ ही घबरा कर जल्दी से इधर उधर देखने लगी। एक वक्त था जब मेरे मन में उसे भोगने की इच्छा थी किंतु अब उसके बारे में ऐसा कुछ महसूस ही नहीं हुआ मुझे। मुझे खुद इस बात पर हैरानी हुई किंतु फिर जल्दी ही मुझे एहसास हुआ कि इसकी वजह शायद अनुराधा से मेरा प्रेम करना हो सकता है या फिर भाभी को दिया हुआ वचन हो सकता है, या फिर इसकी वजह वो हो सकती है जो पिछले कुछ समय से हमारे साथ हुआ था।

मैं उससे नज़र हटा कर सीधा निकल गया। जल्दी ही मैं अपने खेतों पर पहुंच गया। खेतों पर बने मकान के सामने जैसे ही मैं पहुंचा तो मकान के बाहर बरामदे में सरोज काकी को देख मैं चौंक गया। मेरे मन में सवाल उभरा कि काकी अपने गांव से हमारे गांव इतनी दूर मेरे खेत वाले मकान में किस लिए आ कर बैठी है? जाने क्यों मेरे मन में किसी अनहोनी की आशंका हुई और मैं एकदम से फिक्रमंद हो उठा। तभी मोटर साइकिल की आवाज़ सुन कर भुवन भी वहीं पर आ गया। भुवन ने मुझे सलाम किया, इधर मैं मोटर साईकिल खड़ी कर के बरामदे में आया। सरोज काकी ने मुझे पहले ही देख लिया था इस लिए वो उठ कर खड़ी हो गई थी।

"क्या बात है काकी?" मैंने फिक्रमंदी से उसके क़रीब पहुंचते हुए पूछा____"आप इतनी दूर यहां क्या कर रही हैं? सब ठीक तो है ना?"

मेरी बात सुन कर काकी ने कुछ बोलने से पहले भुवन की तरफ देखा। भुवन ने उसे देख कर हल्के से सिर हिलाया और फिर वापस चला गया। मुझे थोड़ा अजीब लगा किंतु मैंने इस बारे में कुछ नहीं कहा बल्कि अपने सवाल के जवाब की आशा में काकी के पास ही बैठ गया।

"बात क्या है काकी?" मैंने व्याकुलतावश फिर से पूछा____"तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही हो? सब ठीक तो है ना?"

"क्या बताऊं वैभव?" काकी ने गंभीरता से गहरी सांस ली____"कुछ समझ में ही नहीं आ रहा कि तुम्हें क्या बताऊं और कैसे बताऊं?"

"आख़िर बात क्या है?" मैं उसके इस तरह बोलने पर और भी फिक्रमंद हो उठा____"आज तुम्हारे चेहरे पर चिंता के भाव क्यों दिखाई दे रहे हैं? अगर कोई समस्या हो गई है तो तुम मुझे बेझिझक बताओ। तुम जानती हो कि मैं तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के लिए बिना सोचे समझे कुछ भी कर जाऊंगा।"

"यही तो ग़लत किया है तुमने।" काकी ने अजीब भाव से मुझे देखा____"तुम्हें बिना सोचे समझे कुछ भी नहीं करना चाहिए था। ख़ास कर हम जैसे ग़रीब लोगों के साथ।"

"यूं पहेलियों में बातें न करो काकी।" मैंने बेचैन भाव से कहा____"साफ साफ बताओ कि आख़िर हुआ क्या है? मैंने ऐसा क्या कर दिया है बिना सोचे समझे?"

"मेरी भोली भाली बेटी के हृदय में तुमने अपने प्रति कोमल भावनाएं जगा देने का काम किया है वैभव।" काकी ने सहसा हताश हो कर कहा____"उसके दिल में अपने प्रति तुमने प्रेम के ऐसे भाव उत्पन्न कर दिए हैं जिसके चलते मेरी बेटी का जीवन उजाड़ सा हो गया है। क्यों वैभव? आख़िर क्यों तुमने मेरी नासमझ और नादान बेटी के साथ इस तरह का खेल खेल लिया? क्या तुम्हें ज़रा भी इस बात का ख़याल नहीं आया कि इस सबके बाद मेरी बेटी का क्या होगा?"

सरोज काकी की बातें सुन कर मुझे एकदम से झटका लगा। मैं अंदर ही अंदर ये सोच कर भी हैरान हुआ कि काकी को इस बारे में कैसे पता चल गया? हालाकि उसको एक दिन तो इस बात का पता चलना ही था किंतु इतना जल्दी पता चल जाएगा ये उम्मीद नहीं थी मुझे। मैंने एक गहरी सांस ली।

"तुम ग़लत समझ रही हो काकी।" फिर मैंने गंभीरता से कहा____"मैंने तुम्हारी बेटी के साथ कोई खेल नहीं खेला। सच तो ये है कि जो कुछ हुआ है वो सब उस विधाता का ही मायाजाल था। उसने मुझ जैसे चरित्र हीन लड़के को बदलने के लिए तुम्हारी बेटी को चुना। हां काकी, तुम्हारी उस बेटी को जिसकी सादगी और मासूमियत में जाने ऐसी क्या बता थी कि मैं चाह कर भी उसे अपनी हवस का शिकार नहीं बना सका। शुरुआत में तो मैं खुद पर इसके लिए चकित होता था किंतु फिर जैसे आदत पड़ गई। उसके बाद तो फिर ऐसा हुआ कि तुम्हारी बेटी के प्रति मेरे दिल में खुद ही कोमल भावनाएं जागने लगीं। उससे बातें करना अच्छा लगने लगा। उसकी हर अदा दिलो दिमाग़ में घर करती चली गई। आज आलम ये है कि मेरे दिल में अनुराधा के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रेम है। मेरा दिल हर पल उसकी खुशी की दुआएं मांगता है।"

"क्या तुम मुझे अपनी इन चिकनी चुपड़ी बातों से बहलाना चाहते हो?" सरोज ने पूर्व की भांति ही आहत भाव से कहा____"मगर मैं बहलने वाली नहीं हूं। मैं तुमसे विनती करती हूं कि मेरी नादान और नासमझ बेटी को बर्बाद करने का मत सोचो और ना ही उसे ऐसे भ्रम में डालो जिसमें फंस कर वो एक दिन टूट कर बिखर जाए।"

"तुम अब भी मुझे ग़लत ही समझ रही हो काकी।" मैंने बेबस भाव से कहा____"शायद इस लिए क्योंकि तुम्हारी नज़र में मेरी छवि अच्छी नहीं है। मैं मानता हूं कि मेरे जैसे गंदे चरित्र वाले लड़के के साथ कोई भी मां अपनी बेटी का संबंध जुड़ा हुआ नहीं बर्दास्त करेगी लेकिन मेरा यकीन करो काकी। मैं अब पहले जैसा नहीं रहा। तुम्हारी बेटी ने किसी जादू की तरह मेरे बुरे चरित्र को मिटा कर मेरे अंदर एक अच्छा इंसान पैदा कर दिया है।"

मेरी बात सुन कर काकी मेरी तरफ अजीब भाव से देखने लगी। जैसे उसे मेरी बातों पर यकीन ही न हो रहा हो। मैं समझ सकता था कि उसको ही क्या बल्कि किसी को भी इतना जल्दी मेरे बदले हुए चरित्र की बात हजम नहीं हो सकती थी।

"तुम खुद सोचो काकी कि अगर मैं पहले जैसा ही होता तो क्या तुम्हारी बेटी मेरा शिकार होने से अब तक बची रहती?" मैंने जैसे उसे समझाते हुए कहा____"क्या तुम्हें लगता है कि तुम में से कोई भी मुझे अपनी मनमानी करने से रोक लेता? हर्गिज़ नहीं, अगर मैं सच में तुम्हारी बेटी की इज्ज़त ख़राब कर के उसे बर्बाद करना चाहता तो वो पहले ही कर डालता और तुम में से कोई भी अनुराधा को मुझसे नहीं बचा सकता था मगर मैंने ऐसा नहीं किया। जानती हो क्यों? क्योंकि उस मासूम को देख कर मेरे अंदर ऐसा करने की हिम्मत ही नहीं हुई। मुझे नहीं पता कि उस समय ऐसा क्यों होता था लेकिन सच यही है। मुझे ग़लत मत समझो काकी और ना ही अपनी बेटी को ग़लत समझना। वो बहुत मासूम है। उसका दामन बेदाग़ है। मैं खुद मिट जाना पसंद करूंगा लेकिन उस मासूम पर किसी तरह का दाग़ लगाने का सोच भी नहीं सकता।"

सरोज काकी के चेहरे पर बड़ी तेज़ी से भावों का आना जाना लग गया था। वो हैरत से मुझे देखे जा रही थी। इधर मेरी धड़कनें ये सोच कर थोड़ा असमान्य हो गई थीं कि जाने काकी अब क्या कहेगी?

"माना कि तुम मेरी बेटी को ख़राब नहीं करना चाहते।" फिर उसने गहरी सांस ले कर कहा____"लेकिन उसके दिल में अपने प्रति प्रेम का अंकुर पैदा कर के उसे बर्बाद ही तो कर रहे हो तुम। वो तो नासमझ है इस लिए उसे अभी इस बात का एहसास ही नहीं है कि प्रेम के वशीभूत हो कर उसे ऐसे लड़के का ख़्वाब नहीं देखना चाहिए जो उसकी पहुंच से बहुत दूर है और जो उसको कभी हासिल ही नहीं हो सकता। किंतु तुम तो समझदार हो, तुम्हें तो सोचना चाहिए कि उसको ऐसे ख़्वाब नहीं दिखाना चाहिए।"

"फ़िक्र मत करो काकी।" मैंने गहरी सांस ले कर कहा____"तुमसे ज़्यादा मुझे अनुराधा की चिंता है और इस बात की भी कि इस प्रेम के चलते हम दोनों का क्या होगा? तुम जिस चीज़ के बारे में सोच कर इतना हलकान हो रही हो उसका मुझे भी शिद्दत से एहसास है। इस लिए यही कहूंगा कि तुम इस बारे में ज़्यादा मत सोचो। मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा। तुम्हें मुझ पर भरोसा है ना?"

सरोज काकी अजीब भाव से देखने लगी मुझे। कदाचित उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या कहे? मैं समझ सकता था कि इस वक्त उसके अंदर किस तरह की आंधी चल रही थी। यकीनन उसे अपनी बेटी की चिंता थी। उसे पता था कि उसकी बेटी का और मेरा कोई मेल नहीं है लेकिन प्रेम कहां किसी की हैसियत देखता है? वैसे सच कहूं तो अब जा कर मुझे भी इस बात का एहसास हुआ था कि अनुराधा से प्रेम करना अलग बात है किंतु उसे अपनी जीवन संगनी बनाना ज़रा भी आसान नहीं हो सकता। क्योंकि हम दोनों की हैसियत में ज़मीन आसमान का फ़र्क है मगर मैंने भी अब ये सोच लिया था कि जिसने मेरा कायाकल्प कर के मुझे एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित किया है उसे अपने जीवन से यूं जाने नहीं दूंगा। फिर भले ही इसके लिए मुझे किसी भी हद तक क्यों न जाना पड़े।

"आख़िर कैसे भरोसा करूं वैभव?" सहसा सरोज काकी ने अधीरता से कहा____"ये बातें कोई मामूली बातें नहीं हैं जिसके बारे में कोई आंख बंद कर के भरोसा कर लेगा। मैं अच्छी तरह जानती हूं कि मेरी बेटी तुम्हारे प्रेम के चलते अपना जीवन बर्बाद कर लेगी। तुम भी एक दिन उसे बेसहारा छोड़ कर चले जाओगे।"

"नहीं काकी नहीं।" मैंने मजबूती से इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"ऐसा कभी नहीं होगा। ठाकुर वैभव सिंह तुम्हें वचन देता है कि वो ना तो तुम्हारी बेटी का जीवन बर्बाद करेगा और ना ही उसे कोई तकलीफ़ देगा। मेरे दिल में उसके लिए सच्चा प्रेम है। मैंने फ़ैसला कर लिया है कि अनुराधा को मैं अपनी जीवन संगनी बनाऊंगा। उससे ब्याह करूंगा। क्या तुम अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथों में दोगी?"

सरोज काकी मेरी बात सुन कर आश्चर्य से मुझे देखने लगी। उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। उसके मुख से कोई बोल ना फूटा। ऐसा लगा जैसे उसकी आवाज़ हलक में ही कहीं फंस गई हो।

"जवाब दो काकी।" उसे मुंह फाड़े देख मैंने फिर से कहा____"क्या तुम अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथ में दोगी?"

"आं...हां...म..मगर ये कैसे संभव है वैभव?" सरोज को जैसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था____"मेरा मतलब है कि क्या तुम्हारे पिता दादा ठाकुर अपने बेटे का ब्याह मुझ जैसी एक मामूली से किसान की बेटी से करेंगे?"

"वो सब तुम मुझ पर छोड़ दो काकी।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"तुम सिर्फ़ ये बताओ कि क्या तुम्हें ये रिश्ता मंज़ूर है और क्या तुम अपनी बेटी का ब्याह मेरे साथ करोगी?"

"भला कौन ऐसी मां होगी जो अपनी बेटी का ब्याह ऊंचे घर में करने के सपने न देखे?" काकी ने अधीरता से कहा____"लेकिन सपने में और हकीक़त में बहुत फ़र्क होता है बेटा। फिर भी अगर तुम इस सपने को हकीक़त बना देने का माद्दा रखते हो और मुझे वचन देते हो तो मुझे मंज़ूर है। अगर सच में ऐसा हो जाए तो ये मेरी बेटी का अहोभाग्य ही होगा।"

"ज़रूर होगा काकी।" मैंने इस बार मुस्कुराते हुए कहा____"हो सकता है कि ऐसा होने में थोड़ा वक्त लगे लेकिन यकीन मानो ऐसा होगा ज़रूर।"

मैंने देखा सरोज काकी के चेहरे पर एक अलग ही तरह की चमक दिखने लगी थी। खुशी से उसका चेहरा चमकने लगा था। हालाकि उसी चेहरे में कभी कभी दुविधा जैसे भाव भी गर्दिश करते नज़र आने लगते थे।

"अच्छा अब ये बताओ कि तुम्हें इस बारे में कैसे पता चला?" मैंने कुछ सोचते हुए उससे पूछा।

"भुवन ने बताया।" काकी ने कहा____"असल में काफी दिनों से मैं देख रही थी कि अनू एकदम ख़ामोश और गुमसुम सी रहती है। मुझे उसकी दशा देख कर चिंता होने लगी थी। समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर उसकी ख़ामोशी की क्या वजह है। मेरे पूछने पर वो गोल मोल जवाब दे कर टाल जाती थी। फिर मैंने ये सोच कर भुवन से पूछा कि शायद उसे कुछ पता हो। आख़िर वो अनू को अपनी बहन मानता है। मेरे पूछने पर भुवन ने बताया कि अनू तुमसे प्रेम करती है और उसकी ऐसी हालत की वजह उसका प्रेम करना ही है। मुझे तो उसकी बात सुन कर यकीन ही नहीं हुआ था। फिर जब मैंने अनू से इस बारे में सख़्ती से पूछा तो उसने इस बात को क़बूल कर लिया। पहले तो मुझे यही लगा था कि तुमने मेरी भोली भाली बेटी को फंसा लिया है।"

"अच्छा हुआ कि उसे फंसाने की हिम्मत ही नहीं की मैंने।" मैंने कहा____"वरना शायद ऐसा होता कि आगे भी जीवन में मैं कभी अच्छा इंसान बनने का न सोच पाता और ना ही मुझे ये एहसास होता कि अपने अब तक के जीवन में मैंने कितने ग़लत कर्म किए थे। तुम्हारी बेटी कोई मामूली लड़की नहीं है काकी, वो तो एक ख़ास किस्म की लड़की है जिसने मेरे जैसे इंसान को बिना कुछ किए ही बदल कर रख दिया है। ऐसी लड़की से मुझे प्रेम न होता तो भला क्या होता?"

"मेरी तुमसे अब एक ही विनती है कि अपना वचन ज़रूर निभाना।" काकी ने मेरी तरफ देखते हुए नम आंखों से कहा____"मेरी बेटी के साथ कोई छल मत करना और ना ही कभी उसे कोई तकलीफ़ देना।"

"ठाकुर वैभव सिंह खुद मिट जाएगा लेकिन सपने में भी वो अनुराधा को कोई तकलीफ़ नहीं देगा।" मैंने कहा____"तुम बेफिक्र रहो काकी। अनुराधा अब मेरी अमानत है। उसका हर सुख दुख अब मेरा है।"

"ठीक है फिर।" काकी ने उठते हुए कहा____"अब मुझे उसकी कोई चिंता नहीं है। अच्छा अब चलती हूं।"

काकी के जाने के बाद भी मैं उसी के बारे में सोचता रहा। आज मैंने अनुराधा के विषय में एक अहम और अटूट फ़ैसला ले लिया था। हालाकि मुझे एहसास था कि इस बारे में मेरा फ़ैसला मेरे पिता जी को बेहद नागवार भी गुज़र सकता है क्योंकि वो पहले ही मेरा ब्याह साहूकार गौरी शंकर की भतीजी रूपा से तय कर चुके हैं। मतलब साफ़ है कि आने वाला समय मेरे लिए कुछ ज़्यादा ही चुनौतियों से भरा हुआ साबित होने वाला है। मैं ये सब सोच ही रहा था कि भुवन मेरे पास आया और सिर झुका कर खड़ा हो गया।

"तुम्हें क्या हुआ?" उसे सिर झुकाए खड़ा हो गया देख मैंने उससे पूछा____"इस तरह सिर झुकाए क्यों खड़े हो गए?"

"माफ़ करना छोटे कुंवर मैंने काकी को आपके और अनुराधा के बीच बने संबंध के बारे में बता दिया।" उसने दबी आवाज़ में कहा____"मैं उसे बताना नहीं चाहता था लेकिन जब मैंने उसे अपनी बेटी के लिए कुछ ज़्यादा ही चिंतित देखा तो मुझे उसको सब कुछ बताना पड़ा।"

"अच्छा किया भुवन जो तुमने काकी को सब कुछ बता दिया।" मैंने कहा____"वैसे भी एक दिन तो उसे पता चलना ही था। मैं भी इस बात को सोच कर थोड़ा परेशान सा हो जाता था कि काकी कहीं इस सबके बारे में ग़लत ना सोच बैठे। आख़िर पता तो उसे भी है कि मैं अब से पहले किस तरह का इंसान था?"

"वैसे बधाई हो छोटे कुंवर।" भुवन ने सिर उठा कर सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"काकी ने आपके साथ अपनी बेटी का रिश्ता मंज़ूर कर लिया है। अनुराधा से जब आपका ब्याह हो जाएगा तो मेरे साथ भी आपका एक नया रिश्ता बन जाएगा।"

"मतलब?" मैंने उलझन पूर्ण भाव से उसे देखा।

"मतलब ये कि तब मैं आपका साला बन जाऊंगा।" भुवन ने उसी तरह मुस्कुराते हुए कहा____"आप शायद भूल रहे हैं कि अनुराधा को मैंने अपनी छोटी बहन माना है।"

"ओह! हां हां सही कहा तुमने हा हा हा।" मैं उसकी बात समझते ही ठहाका लगा कर हंस पड़ा। भुवन भी हंसने लगा था। कुछ देर बाद वो चला गया। मैं भी मन ही मन मुस्कुराते हुए अनुराधा के बारे में जाने कैसे कैसे हसीन ख़्वाब बुनने लगा।

✮✮✮✮

दोपहर को जब मैं खाना खाने हवेली पहुंचा तो बैठक में पिता जी के साथ किसी अंजान व्यक्ति को देख कर ठिठक गया। पिता जी की नज़र मुझ पर पड़ी तो उन्होंने मुझे बैठक में आने का इशारा किया।

"ये शायद छोटे कुंवर हैं।" मैं जैसे ही बैठक में दाखिल हुआ तो उस व्यक्ति ने मेरी तरफ इशारा करते हुए पिता जी से नम्र भाव से कहा____"कई साल पहले इन्हें देखा था जब ये अपनी ननिहाल माधवगढ़ आए थे।"

पिता जी ने उसकी बात सुन कर हां में सिर हिलाया। उस व्यक्ति ने मुझे अदब से सलाम किया तो मैं समझ गया कि ये वही व्यक्ति है जिसे पिता जी ने अपने हिसाब किताब के काम के लिए मेरे ननिहाल से बुलाया था। ख़ैर पिता जी के इशारा मिलते ही मैं बैठक से निकल कर हवेली के अंदर की तरफ बढ़ गया।

गुशलखाने में अच्छे से नहा धो कर मैंने अपने कमरे में जा कर दूसरे कपड़े पहने। उसके बाद खाना खाने के लिए नीचे आ गया। आज मुझे आने में देरी हो गई थी इस लिए भोजन करने वाला मैं अकेला ही बचा था। ख़ैर जल्दी ही कुसुम ने मेरे सामने भोजन की थाली ला कर रख दी तो मैं भूखा होने की वजह से टूट पड़ा खाने पर।

पेट भर खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में आ कर पलंग पर लेट गया। आंखें बंद किया तो सरोज काकी का चेहरा उजागर हो गया। उसकी बातें मेरे दिलो दिमाग़ में उभरने लगीं। सरोज अपनी बेटी का ब्याह मुझसे करने के लिए राज़ी हो गई थी इस बात से यकीनन मैं खुश था लेकिन मुझे इस बात का भी एहसास था कि अनुराधा से ब्याह करना मेरे लिए आसान काम नहीं हो सकता था। पिता जी को जब इस बारे में पता चलेगा तो जाने वो क्या कहेंगे मुझे?

रूपा से ब्याह होना तो पक्का ही हो गया था तो अब सवाल ये था कि क्या पिता जी मुझे किसी और से भी ब्याह करने की इजाज़त देंगे? हालाकि एक व्यक्ति का एक से ज़्यादा लड़कियों से ब्याह करना कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन पिता जी को ऐसा संबंध स्वीकार होगा कि नहीं ये सोचने वाली बात थी। अपने पिता जी के स्वभाव के बारे में मैं अच्छी तरह जानता था इस लिए एकाएक ही मुझे इस सबके बारे में सोचते हुए चिंता होने लगी।

मैं सरोज को वचन दे चुका था कि अब से अनुराधा मेरी अमानत है और उसके हर सुख दुख का मुझे ख़याल रखना है। अतः अब ये भी संभव नहीं था कि मैं अपने वचन को तोड़ दूं अथवा अनुराधा से ब्याह करने का इरादा ही बदल दूं। अनुराधा मेरी चाहत थी जिसके साथ ज़िंदगी गुज़ारना अब मेरी हसरत बन चुकी थी। मैंने महसूस किया कि अचानक ही मैं एक अलग ही तरह के चक्रव्यूह में फंस गया हूं। समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी इस समस्या को कैसे दूर करूं और वो सब कैसे हो जाए जो मैं चाहता हूं?

यही सब सोचते हुए जाने कब मेरी आंख लग गई। उसके बाद कुसुम के जगाने पर ही मेरी आंख खुली। वो एक ट्रे में पानी से भरा ग्लास और चाय का प्याला लिए खड़ी थी। मैं जल्दी से उठा और ग्लास उठा कर पानी पिया। कुसुम पलंग के किनारे ही मेरे पास बैठ गई। पानी पीने के बाद मैंने ट्रे से चाय का कप उठा लिया।

"शाम हो गई क्या?" मैंने खिड़की के बाहर हल्का अंधेरा छाया देखा तो कुसुम से पूछ बैठा।

"नहीं भैया।" कुसुम ने बताया____"शाम होने में तो अभी बहुत समय है। ये अंधेरा तो आसमान में छाए काले काले बादलों का है। ऐसा लगता है जैसे आज तेज़ बारिश होगी।"

"अच्छा ये बता भाभी कहां हैं?" मैंने कुछ सोचते हुए उससे पूछा।
"वो तो नीचे बड़ी मां लोगों के पास बैठ के चाय पी रही हैं।" कुसुम ने कहा____"उन लोगों के साथ एक काकी भी है जो आज माधवगढ़ से आई हैं।"

"ओह! हां पिता जी ने बताया था मुझे।" मैंने चाय की चुस्की ले कर कहा।

"आपको पता है भैया।" कुसुम ने सहसा खुशी से मुस्कुराते हुए कहा____"काकी की एक बेटी भी है जो मेरी ही उमर की है। मेरी उससे दोस्ती भी हो गई है। बहुत अच्छी है वो।"

"अच्छा।" जाने क्यों मेरे कान खड़े हो गए उसकी बात सुन कर____"बड़ा जल्दी दोस्ती हो गई तेरी उससे।"

"हां भैया।" कुसुम ने उसी खुशी के साथ कहा____"बड़ी मां ने मुझसे कहा था कि मैं उसके साथ बातें करूं और उससे घुल मिल जाऊं जिससे उसको यहां पर अजनबीपन न महसूस हो।"

"हम्म्म्म।" मैंने चाय की चुस्की लेते हुए हुंकार भरी____"तो ऐसी क्या बातें की तुमने उससे जिससे वो तेरी इतनी जल्दी दोस्त बन गई?"

"बस ऐसे ही इधर उधर की बातें।" कुसुम ने मुस्कुराते हुए कहा____"वो अपने बारे में बताने लगी, फिर मैंने उसे सबके बारे में बताया। आपके बारे में भी बताया कि इस हवेली में आप मेरे सबसे अच्छे वाले भैया हैं और मुझे बहुत प्यार करते हैं।"

"अच्छा।" मैंने खाली कप को उसके ट्रे में रखते हुए कहा____"अगर उससे तेरी दोस्ती हो गई है तो ये बहुत अच्छी बात है फिर। उसके साथ तेरा भी अच्छे से समय कट जाया करेगा। अच्छा अब तू जा, मैं भी खेतों की तरफ जाऊंगा। विभोर और अजीत को जा कर बोल दे कि वो भी मेरे साथ चलने को तैयार हो जाएं।"

कुसुम ने हां में सिर हिलाया और फिर खुशी खुशी कमरे से चली गई। मैंने भी उठ कर अपने कपड़े पहने और नीचे गुशलखाने में हाथ मुंह धो कर मां लोगों के पास आ गया। मैंने देखा मां और चाची लोगों के पास एक औरत बैठी हुई थी। उसकी उमर यही कोई पैंतीस के आस पास रही होगी। चेहरा साफ था उसका, जिस्म भी काफी गदराया हुआ नज़र आ रहा था। मां ने मुझे देख कर उसे बताया कि मैं उनका छोटा बेटा हूं। मां की बात सुन कर उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए मुझे नमस्ते किया तो मैंने भी सिर को हल्का सा खम करके उसे नमस्ते किया। तभी मेरी नज़र रागिनी भाभी पर पड़ी। वो अपलक मुझे ही देखे जा रहीं थी। जैसे ही मेरी नज़र उनसे मिली तो वो हल्के से मुस्कुराईं। मुझे समझ न आया कि वो क्या सोच के मुस्कुराईं थी? हालाकि जवाब में मैंने भी मुस्कुरा दिया था उसके बाद मैं ये सोच कर उठ कर वहां से बाहर की तरफ चल पड़ा कि औरतों के बीच भला मेरा क्या काम?

थोड़ी ही देर में विभोर और अजीत बाहर आ गए तो मैं जीप में उन दोनों को बैठा कर खेतों की तरफ निकल गया। आसमान में काले बादलों ने अच्छा खासा अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। प्रतीत होता था कि आज वो जम के बरसेंगे।




━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
Ab to beta Ghana chakravyuh me fas gaye h ek apne jholi me dal di gyi h to dusre ko bhi apni jholi me Lana h....


Ab dekhna h ki vaibhav kaise do ladkiyo se shadi karta h ....


Halaki mughe lagta h ki ye line lambi hone wali h kuch time baad kahi kusum bhabhi ka bhi naam na Jud jaye .. .


Ab jo ye naye log aaye h mughe inse khatre ki bu aa rahi h shayad Inka safedposh se koi connection nikal aaye....


Let's see what happens next......
 

Pagal king

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"वो कल दोपहर तक यहां आ जाएंगे।" पिता जी ने कहा____"तुम एक दो लोगों को ले जा कर हवेली के पूर्वी हिस्से वाले दो कमरों की साफ सफाई करवा देना। हमें भी एक ज़रूरी काम से कहीं जाना है।"

पिता जी के कहने पर मैंने सिर हिलाया और बैठक से बाहर आ गया। हवेली में काम करने वाले दो मुलाज़िमों को ले कर मैं हवेली के पूर्वी हिस्से की तरफ बढ़ चला। बंद पड़े कमरों को खोल कर दोनों मुलाज़िमों को उनकी बढ़िया से सफ़ाई करने के लिए बोल दिया। उसके बाद मैं नीचे आ गया। नीचे आ कर मैं मां से मिला। उन्हें बताया कि जब दोनों मुलाज़िम कमरों की सफ़ाई कर के आएं तो उन दोनों कमरों में पोंछा लगाने के लिए वो किसी नौकरानी को भेज दें।



अब आगे....


अगले दिन सुबह नाश्ता पानी कर के मैं खेतों की तरफ चल पड़ा। गांव में क्योंकि चंद्रकांत के बेटे की किसी ने हत्या कर दी थी इस लिए हर तरफ उसी की चर्चा थी। मेरे ज़हन में भी ये सवाल चकरा रहा था कि आख़िर रघुवीर को किसने पेल दिया होगा? काफी दिमाग़ लगाने के बाद भी समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा किसने किया होगा? ज़हन में ये ख़याल भी आता था कि कहीं सच में रूपचंद्र ने तो उसकी हत्या नहीं की होगी? संभव है कि रजनी की बातों से वो सच में गुस्से से इस क़दर पगला गया हो कि रजनी को सबक सिखाने के लिए उसने उसके पति की हत्या कर दी हो? किंतु अगले ही पल मुझे अपना ये ख़याल जमता हुआ प्रतीत नहीं होता था क्योंकि रूपचंद्र से मुझे ऐसे किसी कर्म की ज़रा भी आशा नहीं थी। वो बुरा इंसान ज़रूर था लेकिन रघुवीर की हत्या करेगा ऐसा बिल्कुल नहीं लगता था।

वो मेरी हत्या करने का ख़्वाइशमंद ज़रूर था किंतु अब तो वो भी संभव नहीं था क्योंकि उसकी बहन रूपा के साथ मेरे ब्याह की बात पक्की हो चुकी थी और अब वो ऐसा कुछ करने का सोच भी नहीं सकता था। वो मुझसे सिर्फ इस बात से नफ़रत करता था क्योंकि उसकी नज़र में मैंने उसकी बहन को बर्बाद किया था और अब जबकि उसकी बहन से मेरा ब्याह होना ही पक्का हो गया था तो उसकी नाराज़गी अथवा नफ़रत स्वतः ही दूर हो जानी थी।

साहूकारों के घर के सामने से निकला तो अनायास ही मेरी नज़र उनके दरवाज़े की तरफ चली गई किंतु बाहर किसी को ना देख मैं आगे बढ़ गया। ये अलग बात है कि जाने क्या सोच कर मेरी धड़कनें थोड़ा तेज़ हो गईं थी। थोड़ा आगे आया तो मुंशी चंद्रकांत का घर आ गया। उसके घर के बाहर और तो कोई न दिखा किंतु चंद्रकांत की बेटी कोमल दिख गई। वो घर के बाहर ही दरवाज़े के बगल से बनी चबूतरेनुमा पट्टी पर गुमसुम सी बैठी थी। मोटर साईकिल की आवाज़ सुनते ही जैसे वो ख़यालों से बाहर आई और फिर उसकी नज़र मुझ पर पड़ी। आज काफी समय बाद उसे देख रहा था मैं। कितना बदल गई थी वो। ऐसा लग रहा था जैसे पहले से ज़्यादा जवान और सुंदर दिखने लगी थी वो।

मुझ पर नज़र पड़ते ही वो एकदम से सम्हल कर बैठ गई और साथ ही घबरा कर जल्दी से इधर उधर देखने लगी। एक वक्त था जब मेरे मन में उसे भोगने की इच्छा थी किंतु अब उसके बारे में ऐसा कुछ महसूस ही नहीं हुआ मुझे। मुझे खुद इस बात पर हैरानी हुई किंतु फिर जल्दी ही मुझे एहसास हुआ कि इसकी वजह शायद अनुराधा से मेरा प्रेम करना हो सकता है या फिर भाभी को दिया हुआ वचन हो सकता है, या फिर इसकी वजह वो हो सकती है जो पिछले कुछ समय से हमारे साथ हुआ था।

मैं उससे नज़र हटा कर सीधा निकल गया। जल्दी ही मैं अपने खेतों पर पहुंच गया। खेतों पर बने मकान के सामने जैसे ही मैं पहुंचा तो मकान के बाहर बरामदे में सरोज काकी को देख मैं चौंक गया। मेरे मन में सवाल उभरा कि काकी अपने गांव से हमारे गांव इतनी दूर मेरे खेत वाले मकान में किस लिए आ कर बैठी है? जाने क्यों मेरे मन में किसी अनहोनी की आशंका हुई और मैं एकदम से फिक्रमंद हो उठा। तभी मोटर साइकिल की आवाज़ सुन कर भुवन भी वहीं पर आ गया। भुवन ने मुझे सलाम किया, इधर मैं मोटर साईकिल खड़ी कर के बरामदे में आया। सरोज काकी ने मुझे पहले ही देख लिया था इस लिए वो उठ कर खड़ी हो गई थी।

"क्या बात है काकी?" मैंने फिक्रमंदी से उसके क़रीब पहुंचते हुए पूछा____"आप इतनी दूर यहां क्या कर रही हैं? सब ठीक तो है ना?"

मेरी बात सुन कर काकी ने कुछ बोलने से पहले भुवन की तरफ देखा। भुवन ने उसे देख कर हल्के से सिर हिलाया और फिर वापस चला गया। मुझे थोड़ा अजीब लगा किंतु मैंने इस बारे में कुछ नहीं कहा बल्कि अपने सवाल के जवाब की आशा में काकी के पास ही बैठ गया।

"बात क्या है काकी?" मैंने व्याकुलतावश फिर से पूछा____"तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही हो? सब ठीक तो है ना?"

"क्या बताऊं वैभव?" काकी ने गंभीरता से गहरी सांस ली____"कुछ समझ में ही नहीं आ रहा कि तुम्हें क्या बताऊं और कैसे बताऊं?"

"आख़िर बात क्या है?" मैं उसके इस तरह बोलने पर और भी फिक्रमंद हो उठा____"आज तुम्हारे चेहरे पर चिंता के भाव क्यों दिखाई दे रहे हैं? अगर कोई समस्या हो गई है तो तुम मुझे बेझिझक बताओ। तुम जानती हो कि मैं तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के लिए बिना सोचे समझे कुछ भी कर जाऊंगा।"

"यही तो ग़लत किया है तुमने।" काकी ने अजीब भाव से मुझे देखा____"तुम्हें बिना सोचे समझे कुछ भी नहीं करना चाहिए था। ख़ास कर हम जैसे ग़रीब लोगों के साथ।"

"यूं पहेलियों में बातें न करो काकी।" मैंने बेचैन भाव से कहा____"साफ साफ बताओ कि आख़िर हुआ क्या है? मैंने ऐसा क्या कर दिया है बिना सोचे समझे?"

"मेरी भोली भाली बेटी के हृदय में तुमने अपने प्रति कोमल भावनाएं जगा देने का काम किया है वैभव।" काकी ने सहसा हताश हो कर कहा____"उसके दिल में अपने प्रति तुमने प्रेम के ऐसे भाव उत्पन्न कर दिए हैं जिसके चलते मेरी बेटी का जीवन उजाड़ सा हो गया है। क्यों वैभव? आख़िर क्यों तुमने मेरी नासमझ और नादान बेटी के साथ इस तरह का खेल खेल लिया? क्या तुम्हें ज़रा भी इस बात का ख़याल नहीं आया कि इस सबके बाद मेरी बेटी का क्या होगा?"

सरोज काकी की बातें सुन कर मुझे एकदम से झटका लगा। मैं अंदर ही अंदर ये सोच कर भी हैरान हुआ कि काकी को इस बारे में कैसे पता चल गया? हालाकि उसको एक दिन तो इस बात का पता चलना ही था किंतु इतना जल्दी पता चल जाएगा ये उम्मीद नहीं थी मुझे। मैंने एक गहरी सांस ली।

"तुम ग़लत समझ रही हो काकी।" फिर मैंने गंभीरता से कहा____"मैंने तुम्हारी बेटी के साथ कोई खेल नहीं खेला। सच तो ये है कि जो कुछ हुआ है वो सब उस विधाता का ही मायाजाल था। उसने मुझ जैसे चरित्र हीन लड़के को बदलने के लिए तुम्हारी बेटी को चुना। हां काकी, तुम्हारी उस बेटी को जिसकी सादगी और मासूमियत में जाने ऐसी क्या बता थी कि मैं चाह कर भी उसे अपनी हवस का शिकार नहीं बना सका। शुरुआत में तो मैं खुद पर इसके लिए चकित होता था किंतु फिर जैसे आदत पड़ गई। उसके बाद तो फिर ऐसा हुआ कि तुम्हारी बेटी के प्रति मेरे दिल में खुद ही कोमल भावनाएं जागने लगीं। उससे बातें करना अच्छा लगने लगा। उसकी हर अदा दिलो दिमाग़ में घर करती चली गई। आज आलम ये है कि मेरे दिल में अनुराधा के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रेम है। मेरा दिल हर पल उसकी खुशी की दुआएं मांगता है।"

"क्या तुम मुझे अपनी इन चिकनी चुपड़ी बातों से बहलाना चाहते हो?" सरोज ने पूर्व की भांति ही आहत भाव से कहा____"मगर मैं बहलने वाली नहीं हूं। मैं तुमसे विनती करती हूं कि मेरी नादान और नासमझ बेटी को बर्बाद करने का मत सोचो और ना ही उसे ऐसे भ्रम में डालो जिसमें फंस कर वो एक दिन टूट कर बिखर जाए।"

"तुम अब भी मुझे ग़लत ही समझ रही हो काकी।" मैंने बेबस भाव से कहा____"शायद इस लिए क्योंकि तुम्हारी नज़र में मेरी छवि अच्छी नहीं है। मैं मानता हूं कि मेरे जैसे गंदे चरित्र वाले लड़के के साथ कोई भी मां अपनी बेटी का संबंध जुड़ा हुआ नहीं बर्दास्त करेगी लेकिन मेरा यकीन करो काकी। मैं अब पहले जैसा नहीं रहा। तुम्हारी बेटी ने किसी जादू की तरह मेरे बुरे चरित्र को मिटा कर मेरे अंदर एक अच्छा इंसान पैदा कर दिया है।"

मेरी बात सुन कर काकी मेरी तरफ अजीब भाव से देखने लगी। जैसे उसे मेरी बातों पर यकीन ही न हो रहा हो। मैं समझ सकता था कि उसको ही क्या बल्कि किसी को भी इतना जल्दी मेरे बदले हुए चरित्र की बात हजम नहीं हो सकती थी।

"तुम खुद सोचो काकी कि अगर मैं पहले जैसा ही होता तो क्या तुम्हारी बेटी मेरा शिकार होने से अब तक बची रहती?" मैंने जैसे उसे समझाते हुए कहा____"क्या तुम्हें लगता है कि तुम में से कोई भी मुझे अपनी मनमानी करने से रोक लेता? हर्गिज़ नहीं, अगर मैं सच में तुम्हारी बेटी की इज्ज़त ख़राब कर के उसे बर्बाद करना चाहता तो वो पहले ही कर डालता और तुम में से कोई भी अनुराधा को मुझसे नहीं बचा सकता था मगर मैंने ऐसा नहीं किया। जानती हो क्यों? क्योंकि उस मासूम को देख कर मेरे अंदर ऐसा करने की हिम्मत ही नहीं हुई। मुझे नहीं पता कि उस समय ऐसा क्यों होता था लेकिन सच यही है। मुझे ग़लत मत समझो काकी और ना ही अपनी बेटी को ग़लत समझना। वो बहुत मासूम है। उसका दामन बेदाग़ है। मैं खुद मिट जाना पसंद करूंगा लेकिन उस मासूम पर किसी तरह का दाग़ लगाने का सोच भी नहीं सकता।"

सरोज काकी के चेहरे पर बड़ी तेज़ी से भावों का आना जाना लग गया था। वो हैरत से मुझे देखे जा रही थी। इधर मेरी धड़कनें ये सोच कर थोड़ा असमान्य हो गई थीं कि जाने काकी अब क्या कहेगी?

"माना कि तुम मेरी बेटी को ख़राब नहीं करना चाहते।" फिर उसने गहरी सांस ले कर कहा____"लेकिन उसके दिल में अपने प्रति प्रेम का अंकुर पैदा कर के उसे बर्बाद ही तो कर रहे हो तुम। वो तो नासमझ है इस लिए उसे अभी इस बात का एहसास ही नहीं है कि प्रेम के वशीभूत हो कर उसे ऐसे लड़के का ख़्वाब नहीं देखना चाहिए जो उसकी पहुंच से बहुत दूर है और जो उसको कभी हासिल ही नहीं हो सकता। किंतु तुम तो समझदार हो, तुम्हें तो सोचना चाहिए कि उसको ऐसे ख़्वाब नहीं दिखाना चाहिए।"

"फ़िक्र मत करो काकी।" मैंने गहरी सांस ले कर कहा____"तुमसे ज़्यादा मुझे अनुराधा की चिंता है और इस बात की भी कि इस प्रेम के चलते हम दोनों का क्या होगा? तुम जिस चीज़ के बारे में सोच कर इतना हलकान हो रही हो उसका मुझे भी शिद्दत से एहसास है। इस लिए यही कहूंगा कि तुम इस बारे में ज़्यादा मत सोचो। मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा। तुम्हें मुझ पर भरोसा है ना?"

सरोज काकी अजीब भाव से देखने लगी मुझे। कदाचित उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या कहे? मैं समझ सकता था कि इस वक्त उसके अंदर किस तरह की आंधी चल रही थी। यकीनन उसे अपनी बेटी की चिंता थी। उसे पता था कि उसकी बेटी का और मेरा कोई मेल नहीं है लेकिन प्रेम कहां किसी की हैसियत देखता है? वैसे सच कहूं तो अब जा कर मुझे भी इस बात का एहसास हुआ था कि अनुराधा से प्रेम करना अलग बात है किंतु उसे अपनी जीवन संगनी बनाना ज़रा भी आसान नहीं हो सकता। क्योंकि हम दोनों की हैसियत में ज़मीन आसमान का फ़र्क है मगर मैंने भी अब ये सोच लिया था कि जिसने मेरा कायाकल्प कर के मुझे एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित किया है उसे अपने जीवन से यूं जाने नहीं दूंगा। फिर भले ही इसके लिए मुझे किसी भी हद तक क्यों न जाना पड़े।

"आख़िर कैसे भरोसा करूं वैभव?" सहसा सरोज काकी ने अधीरता से कहा____"ये बातें कोई मामूली बातें नहीं हैं जिसके बारे में कोई आंख बंद कर के भरोसा कर लेगा। मैं अच्छी तरह जानती हूं कि मेरी बेटी तुम्हारे प्रेम के चलते अपना जीवन बर्बाद कर लेगी। तुम भी एक दिन उसे बेसहारा छोड़ कर चले जाओगे।"

"नहीं काकी नहीं।" मैंने मजबूती से इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"ऐसा कभी नहीं होगा। ठाकुर वैभव सिंह तुम्हें वचन देता है कि वो ना तो तुम्हारी बेटी का जीवन बर्बाद करेगा और ना ही उसे कोई तकलीफ़ देगा। मेरे दिल में उसके लिए सच्चा प्रेम है। मैंने फ़ैसला कर लिया है कि अनुराधा को मैं अपनी जीवन संगनी बनाऊंगा। उससे ब्याह करूंगा। क्या तुम अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथों में दोगी?"

सरोज काकी मेरी बात सुन कर आश्चर्य से मुझे देखने लगी। उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। उसके मुख से कोई बोल ना फूटा। ऐसा लगा जैसे उसकी आवाज़ हलक में ही कहीं फंस गई हो।

"जवाब दो काकी।" उसे मुंह फाड़े देख मैंने फिर से कहा____"क्या तुम अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथ में दोगी?"

"आं...हां...म..मगर ये कैसे संभव है वैभव?" सरोज को जैसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था____"मेरा मतलब है कि क्या तुम्हारे पिता दादा ठाकुर अपने बेटे का ब्याह मुझ जैसी एक मामूली से किसान की बेटी से करेंगे?"

"वो सब तुम मुझ पर छोड़ दो काकी।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"तुम सिर्फ़ ये बताओ कि क्या तुम्हें ये रिश्ता मंज़ूर है और क्या तुम अपनी बेटी का ब्याह मेरे साथ करोगी?"

"भला कौन ऐसी मां होगी जो अपनी बेटी का ब्याह ऊंचे घर में करने के सपने न देखे?" काकी ने अधीरता से कहा____"लेकिन सपने में और हकीक़त में बहुत फ़र्क होता है बेटा। फिर भी अगर तुम इस सपने को हकीक़त बना देने का माद्दा रखते हो और मुझे वचन देते हो तो मुझे मंज़ूर है। अगर सच में ऐसा हो जाए तो ये मेरी बेटी का अहोभाग्य ही होगा।"

"ज़रूर होगा काकी।" मैंने इस बार मुस्कुराते हुए कहा____"हो सकता है कि ऐसा होने में थोड़ा वक्त लगे लेकिन यकीन मानो ऐसा होगा ज़रूर।"

मैंने देखा सरोज काकी के चेहरे पर एक अलग ही तरह की चमक दिखने लगी थी। खुशी से उसका चेहरा चमकने लगा था। हालाकि उसी चेहरे में कभी कभी दुविधा जैसे भाव भी गर्दिश करते नज़र आने लगते थे।

"अच्छा अब ये बताओ कि तुम्हें इस बारे में कैसे पता चला?" मैंने कुछ सोचते हुए उससे पूछा।

"भुवन ने बताया।" काकी ने कहा____"असल में काफी दिनों से मैं देख रही थी कि अनू एकदम ख़ामोश और गुमसुम सी रहती है। मुझे उसकी दशा देख कर चिंता होने लगी थी। समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर उसकी ख़ामोशी की क्या वजह है। मेरे पूछने पर वो गोल मोल जवाब दे कर टाल जाती थी। फिर मैंने ये सोच कर भुवन से पूछा कि शायद उसे कुछ पता हो। आख़िर वो अनू को अपनी बहन मानता है। मेरे पूछने पर भुवन ने बताया कि अनू तुमसे प्रेम करती है और उसकी ऐसी हालत की वजह उसका प्रेम करना ही है। मुझे तो उसकी बात सुन कर यकीन ही नहीं हुआ था। फिर जब मैंने अनू से इस बारे में सख़्ती से पूछा तो उसने इस बात को क़बूल कर लिया। पहले तो मुझे यही लगा था कि तुमने मेरी भोली भाली बेटी को फंसा लिया है।"

"अच्छा हुआ कि उसे फंसाने की हिम्मत ही नहीं की मैंने।" मैंने कहा____"वरना शायद ऐसा होता कि आगे भी जीवन में मैं कभी अच्छा इंसान बनने का न सोच पाता और ना ही मुझे ये एहसास होता कि अपने अब तक के जीवन में मैंने कितने ग़लत कर्म किए थे। तुम्हारी बेटी कोई मामूली लड़की नहीं है काकी, वो तो एक ख़ास किस्म की लड़की है जिसने मेरे जैसे इंसान को बिना कुछ किए ही बदल कर रख दिया है। ऐसी लड़की से मुझे प्रेम न होता तो भला क्या होता?"

"मेरी तुमसे अब एक ही विनती है कि अपना वचन ज़रूर निभाना।" काकी ने मेरी तरफ देखते हुए नम आंखों से कहा____"मेरी बेटी के साथ कोई छल मत करना और ना ही कभी उसे कोई तकलीफ़ देना।"

"ठाकुर वैभव सिंह खुद मिट जाएगा लेकिन सपने में भी वो अनुराधा को कोई तकलीफ़ नहीं देगा।" मैंने कहा____"तुम बेफिक्र रहो काकी। अनुराधा अब मेरी अमानत है। उसका हर सुख दुख अब मेरा है।"

"ठीक है फिर।" काकी ने उठते हुए कहा____"अब मुझे उसकी कोई चिंता नहीं है। अच्छा अब चलती हूं।"

काकी के जाने के बाद भी मैं उसी के बारे में सोचता रहा। आज मैंने अनुराधा के विषय में एक अहम और अटूट फ़ैसला ले लिया था। हालाकि मुझे एहसास था कि इस बारे में मेरा फ़ैसला मेरे पिता जी को बेहद नागवार भी गुज़र सकता है क्योंकि वो पहले ही मेरा ब्याह साहूकार गौरी शंकर की भतीजी रूपा से तय कर चुके हैं। मतलब साफ़ है कि आने वाला समय मेरे लिए कुछ ज़्यादा ही चुनौतियों से भरा हुआ साबित होने वाला है। मैं ये सब सोच ही रहा था कि भुवन मेरे पास आया और सिर झुका कर खड़ा हो गया।

"तुम्हें क्या हुआ?" उसे सिर झुकाए खड़ा हो गया देख मैंने उससे पूछा____"इस तरह सिर झुकाए क्यों खड़े हो गए?"

"माफ़ करना छोटे कुंवर मैंने काकी को आपके और अनुराधा के बीच बने संबंध के बारे में बता दिया।" उसने दबी आवाज़ में कहा____"मैं उसे बताना नहीं चाहता था लेकिन जब मैंने उसे अपनी बेटी के लिए कुछ ज़्यादा ही चिंतित देखा तो मुझे उसको सब कुछ बताना पड़ा।"

"अच्छा किया भुवन जो तुमने काकी को सब कुछ बता दिया।" मैंने कहा____"वैसे भी एक दिन तो उसे पता चलना ही था। मैं भी इस बात को सोच कर थोड़ा परेशान सा हो जाता था कि काकी कहीं इस सबके बारे में ग़लत ना सोच बैठे। आख़िर पता तो उसे भी है कि मैं अब से पहले किस तरह का इंसान था?"

"वैसे बधाई हो छोटे कुंवर।" भुवन ने सिर उठा कर सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"काकी ने आपके साथ अपनी बेटी का रिश्ता मंज़ूर कर लिया है। अनुराधा से जब आपका ब्याह हो जाएगा तो मेरे साथ भी आपका एक नया रिश्ता बन जाएगा।"

"मतलब?" मैंने उलझन पूर्ण भाव से उसे देखा।

"मतलब ये कि तब मैं आपका साला बन जाऊंगा।" भुवन ने उसी तरह मुस्कुराते हुए कहा____"आप शायद भूल रहे हैं कि अनुराधा को मैंने अपनी छोटी बहन माना है।"

"ओह! हां हां सही कहा तुमने हा हा हा।" मैं उसकी बात समझते ही ठहाका लगा कर हंस पड़ा। भुवन भी हंसने लगा था। कुछ देर बाद वो चला गया। मैं भी मन ही मन मुस्कुराते हुए अनुराधा के बारे में जाने कैसे कैसे हसीन ख़्वाब बुनने लगा।

✮✮✮✮

दोपहर को जब मैं खाना खाने हवेली पहुंचा तो बैठक में पिता जी के साथ किसी अंजान व्यक्ति को देख कर ठिठक गया। पिता जी की नज़र मुझ पर पड़ी तो उन्होंने मुझे बैठक में आने का इशारा किया।

"ये शायद छोटे कुंवर हैं।" मैं जैसे ही बैठक में दाखिल हुआ तो उस व्यक्ति ने मेरी तरफ इशारा करते हुए पिता जी से नम्र भाव से कहा____"कई साल पहले इन्हें देखा था जब ये अपनी ननिहाल माधवगढ़ आए थे।"

पिता जी ने उसकी बात सुन कर हां में सिर हिलाया। उस व्यक्ति ने मुझे अदब से सलाम किया तो मैं समझ गया कि ये वही व्यक्ति है जिसे पिता जी ने अपने हिसाब किताब के काम के लिए मेरे ननिहाल से बुलाया था। ख़ैर पिता जी के इशारा मिलते ही मैं बैठक से निकल कर हवेली के अंदर की तरफ बढ़ गया।

गुशलखाने में अच्छे से नहा धो कर मैंने अपने कमरे में जा कर दूसरे कपड़े पहने। उसके बाद खाना खाने के लिए नीचे आ गया। आज मुझे आने में देरी हो गई थी इस लिए भोजन करने वाला मैं अकेला ही बचा था। ख़ैर जल्दी ही कुसुम ने मेरे सामने भोजन की थाली ला कर रख दी तो मैं भूखा होने की वजह से टूट पड़ा खाने पर।

पेट भर खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में आ कर पलंग पर लेट गया। आंखें बंद किया तो सरोज काकी का चेहरा उजागर हो गया। उसकी बातें मेरे दिलो दिमाग़ में उभरने लगीं। सरोज अपनी बेटी का ब्याह मुझसे करने के लिए राज़ी हो गई थी इस बात से यकीनन मैं खुश था लेकिन मुझे इस बात का भी एहसास था कि अनुराधा से ब्याह करना मेरे लिए आसान काम नहीं हो सकता था। पिता जी को जब इस बारे में पता चलेगा तो जाने वो क्या कहेंगे मुझे?

रूपा से ब्याह होना तो पक्का ही हो गया था तो अब सवाल ये था कि क्या पिता जी मुझे किसी और से भी ब्याह करने की इजाज़त देंगे? हालाकि एक व्यक्ति का एक से ज़्यादा लड़कियों से ब्याह करना कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन पिता जी को ऐसा संबंध स्वीकार होगा कि नहीं ये सोचने वाली बात थी। अपने पिता जी के स्वभाव के बारे में मैं अच्छी तरह जानता था इस लिए एकाएक ही मुझे इस सबके बारे में सोचते हुए चिंता होने लगी।

मैं सरोज को वचन दे चुका था कि अब से अनुराधा मेरी अमानत है और उसके हर सुख दुख का मुझे ख़याल रखना है। अतः अब ये भी संभव नहीं था कि मैं अपने वचन को तोड़ दूं अथवा अनुराधा से ब्याह करने का इरादा ही बदल दूं। अनुराधा मेरी चाहत थी जिसके साथ ज़िंदगी गुज़ारना अब मेरी हसरत बन चुकी थी। मैंने महसूस किया कि अचानक ही मैं एक अलग ही तरह के चक्रव्यूह में फंस गया हूं। समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी इस समस्या को कैसे दूर करूं और वो सब कैसे हो जाए जो मैं चाहता हूं?

यही सब सोचते हुए जाने कब मेरी आंख लग गई। उसके बाद कुसुम के जगाने पर ही मेरी आंख खुली। वो एक ट्रे में पानी से भरा ग्लास और चाय का प्याला लिए खड़ी थी। मैं जल्दी से उठा और ग्लास उठा कर पानी पिया। कुसुम पलंग के किनारे ही मेरे पास बैठ गई। पानी पीने के बाद मैंने ट्रे से चाय का कप उठा लिया।

"शाम हो गई क्या?" मैंने खिड़की के बाहर हल्का अंधेरा छाया देखा तो कुसुम से पूछ बैठा।

"नहीं भैया।" कुसुम ने बताया____"शाम होने में तो अभी बहुत समय है। ये अंधेरा तो आसमान में छाए काले काले बादलों का है। ऐसा लगता है जैसे आज तेज़ बारिश होगी।"

"अच्छा ये बता भाभी कहां हैं?" मैंने कुछ सोचते हुए उससे पूछा।
"वो तो नीचे बड़ी मां लोगों के पास बैठ के चाय पी रही हैं।" कुसुम ने कहा____"उन लोगों के साथ एक काकी भी है जो आज माधवगढ़ से आई हैं।"

"ओह! हां पिता जी ने बताया था मुझे।" मैंने चाय की चुस्की ले कर कहा।

"आपको पता है भैया।" कुसुम ने सहसा खुशी से मुस्कुराते हुए कहा____"काकी की एक बेटी भी है जो मेरी ही उमर की है। मेरी उससे दोस्ती भी हो गई है। बहुत अच्छी है वो।"

"अच्छा।" जाने क्यों मेरे कान खड़े हो गए उसकी बात सुन कर____"बड़ा जल्दी दोस्ती हो गई तेरी उससे।"

"हां भैया।" कुसुम ने उसी खुशी के साथ कहा____"बड़ी मां ने मुझसे कहा था कि मैं उसके साथ बातें करूं और उससे घुल मिल जाऊं जिससे उसको यहां पर अजनबीपन न महसूस हो।"

"हम्म्म्म।" मैंने चाय की चुस्की लेते हुए हुंकार भरी____"तो ऐसी क्या बातें की तुमने उससे जिससे वो तेरी इतनी जल्दी दोस्त बन गई?"

"बस ऐसे ही इधर उधर की बातें।" कुसुम ने मुस्कुराते हुए कहा____"वो अपने बारे में बताने लगी, फिर मैंने उसे सबके बारे में बताया। आपके बारे में भी बताया कि इस हवेली में आप मेरे सबसे अच्छे वाले भैया हैं और मुझे बहुत प्यार करते हैं।"

"अच्छा।" मैंने खाली कप को उसके ट्रे में रखते हुए कहा____"अगर उससे तेरी दोस्ती हो गई है तो ये बहुत अच्छी बात है फिर। उसके साथ तेरा भी अच्छे से समय कट जाया करेगा। अच्छा अब तू जा, मैं भी खेतों की तरफ जाऊंगा। विभोर और अजीत को जा कर बोल दे कि वो भी मेरे साथ चलने को तैयार हो जाएं।"

कुसुम ने हां में सिर हिलाया और फिर खुशी खुशी कमरे से चली गई। मैंने भी उठ कर अपने कपड़े पहने और नीचे गुशलखाने में हाथ मुंह धो कर मां लोगों के पास आ गया। मैंने देखा मां और चाची लोगों के पास एक औरत बैठी हुई थी। उसकी उमर यही कोई पैंतीस के आस पास रही होगी। चेहरा साफ था उसका, जिस्म भी काफी गदराया हुआ नज़र आ रहा था। मां ने मुझे देख कर उसे बताया कि मैं उनका छोटा बेटा हूं। मां की बात सुन कर उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए मुझे नमस्ते किया तो मैंने भी सिर को हल्का सा खम करके उसे नमस्ते किया। तभी मेरी नज़र रागिनी भाभी पर पड़ी। वो अपलक मुझे ही देखे जा रहीं थी। जैसे ही मेरी नज़र उनसे मिली तो वो हल्के से मुस्कुराईं। मुझे समझ न आया कि वो क्या सोच के मुस्कुराईं थी? हालाकि जवाब में मैंने भी मुस्कुरा दिया था उसके बाद मैं ये सोच कर उठ कर वहां से बाहर की तरफ चल पड़ा कि औरतों के बीच भला मेरा क्या काम?

थोड़ी ही देर में विभोर और अजीत बाहर आ गए तो मैं जीप में उन दोनों को बैठा कर खेतों की तरफ निकल गया। आसमान में काले बादलों ने अच्छा खासा अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। प्रतीत होता था कि आज वो जम के बरसेंगे।




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Ati Sundar update Bhai saab
 

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