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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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354
Dada Thakur apradh bhod se itna gharsit Ho Gaya ki use kya Bura kya achcha samajh hi nahin a Raha, sahukaron ke asaliyat ko jante hue bhi aapni phool Jaisi bhai ki beti ko sahukaron se bihane per razi ho gaya.
कभी-कभी Insan apni achhai duniya ke samne sabit karne ke liye apnon ki Bali Chadha deta hai, yahi Satya hai
Kabhi kabhi aankho dekha sach sach nahi hota....
Dada thakur ko har baat ka ehsaas hai lekin unke is behaviour ke pichhe bhi ek vajah hai jise samajhne ki zarurat hai...

Sahi kaha...
 

Napster

Well-Known Member
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अध्याय - 78
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



"कोई तो वजह ज़रूर है।" पिता जी ने गहरी सांस ली____"जिसके चलते वो तुम्हारे खिलाफ़ हो कर उस सफ़ेदपोश व्यक्ति का मोहरा बन गए। ख़ैर सच का पता तो अब उनसे रूबरू होने के बाद ही चलेगा। हमें जल्द ही इस बारे में कोई क़दम उठाना होगा।"


अब आगे....


आसमान में काले बादल मंडरा रहे थे। ऐसा लगता था जैसे आज बारिश ज़रूर होगी। आज कल काफी गर्मी होती थी। जिसकी वजह से अक्सर लोग बीमार भी पड़ रहे थे। मैं अपनी मोटर साईकिल द्वारा भुवन से मिलने अपने नए बन रहे मकान में आया था। मकान लगभग तैयार ही हो गया था, बस कुछ चीजें शेष थीं जोकि कुछ दिनों में पूरी हो जाएंगी। भुवन किसी काम से कहीं गया हुआ था और मैं उसी का इंतज़ार कर रहा था।

मेरे ज़हन में मकान को देखते हुए कई सारे विचार उभर रहे थे। जिसमें सबसे पहला विचार यही था कि मैंने क्या सोच कर यहां पर ये मकान बनवाया था और अब क्या हो चुका था। ऐसा क्यों होता है कि हम सोचते कुछ हैं और हो कुछ और जाता है? मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं अपने चाचा और बड़े भाई को इस तरह से खो दूंगा। यूं तो मुझे दोनों के ही इस तरह चले जाने का बेहद दुख था लेकिन सबसे ज़्यादा दुख अपने भाई के चले जाने का हो रहा था। क्योंकि उनके चले जाने से भाभी का जैसे संसार ही उजड़ गया था।

सुहागन के रूप में कितनी खूबसूरत लगती थीं वो। मैं हमेशा उनके रूप सौंदर्य पर मोहित हो जाता था। अपनी ग़लत आदतों की वजह से मैं हमेशा उनसे दूर ही रहता था। मैं ये किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि उनके रूप सौंदर्य को देख कर मेरे मन में ग़लती से भी उनके प्रति ग़लत ख़याल आ जाए। हालाकि मेरे ना चाहने पर भी ग़लत ख़याल आ ही जाते थे मगर फिर भी मैं अब तक अपनी कोशिशों में कामयाब ही रहा था और अपनी भाभी के दामन पर दाग़ लगाने से खुद को रोके रखा था। मगर ये जो कुछ हुआ है वो हर तरह से असहनीय है।

जिस भाभी के चेहरे पर हमेशा नूर रहता था उनका वही चेहरा आज विधवा हो जाने के चलते किसी उजड़े हुए चमन का हिस्सा नज़र आने लगा था। मेरा हर सच जानने के बावजूद वो मेरी परवाह करती थीं और हवेली में सबसे बड़ा मेरा मुकाम बना हुआ देखना चाहती थीं। अपने जीवन में मैंने उनके जैसी सभ्य, सुशील, संस्कारी और सबके बारे में अच्छा सोचने वाली नारी नहीं देखी थी। बार बार मेरे मन में एक ही सवाल उभरता था कि इतनी अच्छी औरत को ऊपर वाला इतना बड़ा दुख कैसे दे सकता है? मैंने उन्हें हमेशा खुश रखने का उनसे वादा तो किया था लेकिन मैं खुद नहीं जानता था कि उनके इतने बड़े दुख को मैं कैसे दूर कर सकूंगा और कैसे उन्हें खुशियां दे पाऊंगा? सच तो ये था कि मेरे लिए ऐसा कर पाना बिल्कुल भी आसान नहीं था।

अभी मैं ये सोच ही रहा था कि अचानक ही आसमान में बिजली चमकी और अगले कुछ ही पलों में तेज़ गर्जना हुई। मेरे देखते ही देखते कुछ ही पलों में बूंदा बांदी होने लगी। मकान में काम कर रहे मजबूर बूंदा बांदी होते देख बड़ा खुश हुए। फ़सल काटने के बाद की ये पहली बारिश थी जो होने लगी थी। पहले बूंदा बांदी और फिर एकदम से तेज़ बारिश होने लगी। चारो तरफ एकदम से अंधेरा सा हो गया। मैं मकान के दरवाज़े के बाहर ही बरामदे में बैठा हुआ था। बाहर जो मज़दूर मौजूद थे वो भीगने से बचने के लिए भागते हुए जल्दी ही बरामदे में आ गए। मैं दरवाज़े के पास ही एक लकड़ी के स्टूल पर बैठा हुआ था। तेज़ हवा भी चल रही थी जो बारिश में घुल कर ठंडक का एहसास कराने लगी थी। दरवाज़े के बाहर बरामदे जैसा था इस लिए बारिश के छींटे मुझ तक नहीं पहुंच सकते थे। देखते ही देखते तपती हुई ज़मीन में छलछलाता हुआ पानी नज़र आने लगा। ज़मीन से एक अलग ही सोंधी सोंधी महक आने लगी थी।

बारिश इतनी तेज़ होने लगी थी कि दूर वाले पेड़ पौधे धुंधले से नज़र आने लगे थे। एकाएक मेरी घूमती हुई निगाह एक जगह पर ठहर गई और इसके साथ ही मेरे माथे पर सिलवटें भी उभर आईं। जल्दी ही मेरी नज़र ने उस जगह पर भागते व्यक्ति को पहचान लिया। वो अनुराधा थी जो तेज़ बारिश में दौड़ते हुए इस तरफ ही आ रही थी। अनुराधा को इस तरह यहां आते देख मेरी धड़कनें बढ़ गईं। ज़हन में ख़याल उभरा कि ये यहां क्यों आ रही है?

"अरे! वो तो अनुराधा बिटिया है न रे भीखू?" बरामदे के एक तरफ खड़े एक अधेड़ मज़दूर ने दूसरे आदमी से पूछा____"ये बारिश में यहां कहां भींगते हुए आ रही हैं?"

"अपने भाई भुवन से मिलने आ रही होगी।" दूसरे मज़दूर ने कहा____"लेकिन बारिश में नहीं आना चाहिए था उसे। देखो तो पूरा भीग गई है ये।"

मज़दूरों की बात सुन कर मैं ख़ामोश ही रहा। असल में मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं? मैं तो खुद सोच में पड़ गया था कि वो यहां क्यों आ रही है, वो भी बारिश में भींगते हुए। मेरे देखते ही देखते वो जल्दी ही हमारे पास आ गई। गीली और पानी से लबरेज़ मिट्टी पर थल्ल थल्ल पैर जमाते हुए वो बरामदे में आ गई। उसकी नज़र अभी मुझ पर नहीं पड़ी थी। शायद तेज़ बारिश के चलते वो ठीक से सामने का नहीं देख रही थी। मैंने देखा सुर्ख रंग का उसका कुर्ता सलवार पूरी तरह भीग गया था। दुपट्टे को उसने सिर पर ओढ़ा हुआ था जिसे उसने बरामदे में आते ही जल्दी से सीने पर डाल लिया। भीगे होने की वजह से उसके सीने के उभार साफ नज़र आ रहे थे।

"अरे! इतनी तेज़ बारिश में तुम यहां क्यों आई हो अनुराधा?" भीखू ने उससे पूछा____"देखो तो सारे कपड़े गीले हो गए हैं तुम्हारे और ये क्या, तुम्हारा एक चप्पल टूट गया है क्या?"

"हां काका।" अनुराधा ने मासूमियत से कहा____"शायद दौड़ने की वजह से टूट गया है। वैसे उसे टूटना ही था। पुराना जो हो गया था।"

"पर तेज़ बारिश में तुम्हें यहां भींगते हुए आने की क्या ज़रूरत थी?" भीखू ने कहा____"भींगने से बीमार पड़ गई तो?"

"मुझे क्या पता था काका कि इतना जल्दी बारिश होने लगेगी।" अनुराधा ने अपने चप्पल को पैर से निकालते हुए कहा____"जब घर से चली थी तब तो बूंदा बांदी भी नहीं हो रही थी।"

"हां लगता है तुम्हारे घर से निकलने का ही ये बारिश इंतज़ार कर रही थी।" भीखू ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"ख़ैर भुवन तो यहां है ही नहीं। हमारे छोटे कुंवर भी उसी का इंतज़ार कर रहे हैं यहां।"

अनुराधा भीखू के मुख से छोटे कुंवर सुन बुरी तरह चौंकी। उसने फिरकिनी की तरह घूम कर पीछे देखा तो उसकी नज़र मुझ पर पड़ गई। उफ्फ! भीगने की वजह से कितनी प्यारी लग रही थी वो। मेरे पूरे जिस्म में सिहरन सी दौड़ गई। मैंने देखा वो अपलक मुझे ही देखने लगी थी। बारिश में भीग जाने की वजह से उसके गीले हो चुके गुलाबी होंठ हल्के हल्के कांप रहे थे। अचानक ही मुझे वस्तिस्थित का एहसास हुआ तो मैंने उससे नज़रें हटा लीं और बाहर बारिश की तरफ देखने लगा। मैंने महसूस किया कि जो लड़की इसके पहले मुझसे नज़रें नहीं मिला पाती थी वो अपलक मुझे ही देखे जा रही थी। एक अलग ही तरह के भाव उसके चेहरे पर उभरे दिखाई दिए थे मुझे।

"अरे! तुम्हें क्या हुआ बिटिया?" भीखू की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी मगर मैंने उसकी तरफ नहीं देखा। उधर वो अनुराधा से बोला____"तुम एकदम से बुत सी क्यों खड़ी हो? हमारे छोटे कुंवर को देखा नहीं था क्या कभी तुमने?"

भीखू की बात सुन कर अनुराधा जैसे आसमान से गिरी। उसने हड़बड़ा कर भीखू की तरफ देखा और फिर खुद को सम्हालते हुए बोली____"देखा था काका। पहले ठीक से पहचानती नहीं थी लेकिन अब पहचान गई हूं। पहले यकीन नहीं होता था पर अब हो चुका है।"

"ये तुम क्या कह रही हो बिटिया?" भीखू को जैसे अनुराधा की बात समझ नहीं आई, अतः बोला____"मैं समझा नहीं तुम्हारी बात को।"

"हर बात इतना जल्दी कहां समझ आती है काका?" अनुराधा ने अजीब भाव से कहा____"समझने में तो वक्त लगता है ना? ख़ैर छोड़िए, मुझे लगता है कि बारिश के चलते भुवन भैया नहीं आएंगे। मुझे भी घर जाना होगा, नहीं तो मां परेशान हो जाएगी। बारिश देख के डांटेगी भी मुझे।"

"हां पर इतनी तेज़ बारिश में कैसे जाओगी तुम?" भीखू ने हैरान नज़रों से अनुराधा की तरफ देखते हुए कहा____"ज़्यादा भींगने से बीमार हो जाओगी। कुछ देर रुक जाओ। बारिश रुक जाए तो चली जाना।"

"अरे! मैं तो पहले से ही बीमार हूं काका।" अनुराधा ने कहा____"ये बारिश मुझे भला और क्या बीमार करेगी? अच्छा अब चलती हूं। भैया आएं तो बता देना कि मैं आई थी।"

भीखू ने ही नहीं बल्कि और भी कई लोगों ने अनुराधा को रोका मगर वो न रुकी। तेज़ बारिश में जैसे वो कूद ही पड़ी और पूरी निडरता से ख़राब मौसम में वो बड़े आराम से आगे बढ़ती चली गई। इधर मैं पहले ही उसकी बातों से हैरान परेशान था और अब उसे यूं भींगते हुए जाता देखा तो और भी चिंतित हो उठा। एकाएक ही मेरे मस्तिष्क में जैसे भूचाल सा आ गया। उस दिन भुवन द्वारा कही गई बातें मेरे ज़हन में गूंज उठीं। मतलब अनुराधा ने भीखू से अभी जो बातें की थी उसमें उसका संदेश था। शायद वो ऐसी बातें मुझे ही सुना रही थी और चाहती थी कि मैं समझ जाऊं। मेरे लिए ये बड़े ही आश्चर्य की बात थी कि एक भोली भाली और मासूम सी लड़की में कुछ ही दिनों में इतना ज़्यादा परिवर्तन कैसे आ गया?

"पता नहीं आज क्या हो गया है इस लड़की को?" एक अन्य मज़दूर ने भीखू से कहा____"एकदम पगला ही गई है। देखो तो कैसे भींगते हुए चली जा रही है। देखना पक्का बीमार पड़ेगी ये। भुवन को पता चलेगा तो वो भी परेशान हो जाएगा इसके लिए।"

"अरे! हमारे पास एक छाता था न?" किसी दूसरे मज़दूर ने अचनाक से कहा____"तेज़ धूप से बचने के लिए भुवन लाया था। रुको अभी देखता हूं।"

"हां हां जल्दी ले आ।" भीखू बोल पड़ा____"वो ज़्यादा दूर नहीं गई है अभी। दौड़ कर जल्दी से उसको छाता पकड़ा के आ जाना।"

कुछ ही देर में वो मज़दूर छाता ले आया। इधर मेरे अंदर मानों खलबली सी मच गई थी। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं क्या न करूं? सहसा मेरी नज़र एक मज़दूर को छाता ले कर बरामदे से बाहर की तरफ जाते देखा तो मैं हड़बड़ा कर स्टूल से उठ कर खड़ा हो गया।

"रुको।" मैंने उसे पुकारा तो वो एकदम से रुक गया और मेरी तरफ पलट कर देखने लगा।
"इधर लाओ छाता।" मैं उसकी तरफ बढ़ते हुए बोला____"मैं इसे ले कर जा रहा हूं उसके पास।"

"छ...छोटे कुंवर आप?" उसके साथ बाकी मज़दूर भी हैरानी से मेरी तरफ देखने लगे जबकि मैं उसके क़रीब पहुंचते ही बोला____"हां तो क्या हो गया? काफी दिन हो गए मुरारी काका के घर नहीं गया। इसी बहाने काकी से घर का हाल चाल भी पूछ लूंगा। भुवन आए तो कहना मैं मुरारी काका के घर गया हूं और जल्दी ही वापस आऊंगा।"

अब क्योंकि किसी में भी हिम्मत नहीं थी जो मुझसे कोई और सवाल जवाब करता था इस लिए उस मज़दूर ने फ़ौरन ही मुझे छाता पकड़ा दिया। मैंने जल्दी से छाते को खोला और बाहर हो रही बारिश में जंग का मैदान समझ कर कूद पड़ा। सच कहूं तो मेरे दिल की धड़कनें असमान्य गति से चल रहीं थी। अनुराधा मुझसे क़रीब चालीस पचास क़दम की दूरी पर पहुंच चुकी थी। मैं छाता लिए तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ने लगा। बाहर बारिश तो तेज़ हो ही रही थी लेकिन उसके साथ हवा भी चल रही थी जिसके चलते बारिश की बौछारें चारो तरफ अपना रुख बदल लेती थीं। जल्दी ही मेरे घुटने से ऊपर का भी हिस्सा बारिश की बूंदों से भीगता नज़र आया। उधर अनुराधा बिना इधर उधर देखे बड़े आराम से चली जा रही थी। मैं हैरान था कि आते समय वो भींगने से बचने के लिए दौड़ते हुए आई थी जबकि अब वो बड़े आराम से जा रही थी। ज़ाहिर था उसे बारिश से ना तो भीग जाने की परवाह थी और ना ही भीग जाने के चलते बीमार पड़ने की। सही कहा था उस मज़दूर ने कि एकदम पगला गई थी वो।

जब मैं उसके क़रीब पहुंच गया तो मैंने झिझकते हुए उसे आवाज़ दी और अगले ही पल मेरी आवाज़ का उस पर जैसे किसी चमत्कार की तरह असर हुआ। वो अपनी जगह पर इस तरह रुक गई थी जैसे किसी ने जादू से उसको एक जगह पर टिका दिया हो। मुझे समझते देर न लगी कि वो मेरे ही आने का इंतज़ार कर रही थी। तभी तो वो इतना आराम से चल रही थी वरना भला ऐसा कौन मूर्ख होगा जो तेज़ बारिश में इतना आराम से चले?

यूं तो मैंने अनुराधा को वचन दिया था कि अब कभी उसके घर की दहलीज़ पर नहीं आऊंगा और कदाचित ये भी कि उससे बातें भी नहीं करूंगा मगर इस वक्त मुझे अपना ही वचन तोड़ना पड़ रहा था। ऐसा सिर्फ इस लिए क्योंकि मैं किसी भी कीमत पर ये नहीं चाहता था कि उसे कुछ हो जाए।

मैं जल्दी ही उसके क़रीब पहुंच गया और उसको छाते के अंदर ले लिया। मैंने देखा वो थर थर कांप रही थी। ज़ाहिर है बारिश में भीग जाने का असर था और उसके साथ ही शायद इसका भी कि इस वक्त वो मेरे इतने क़रीब थी। मेरी नज़दीकियों में पहले भी उसकी हालत ठीक नहीं रहती थी।

"बारिश के रुकने तक अगर वहां रुक जाती तो काकी खा नहीं जाती तुम्हें।" मैंने सामने की तरफ देखते हुए कहा____"इस तरह भींगने से अगर बीमार पड़ जाओगी तो उन्हें बहुत परेशानी होगी।"

"अ...आपको मां की परेशानी की चिंता है मेरी नहीं?" अनुराधा ने तिरछी नज़रों से मेरी तरफ देखते हुए धीमें से मानों शिकायत की।

"अगर तुम्हारी चिंता न होती तो छाता ले कर तुम्हारे पास नहीं आता।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"वैसे माफ़ करना, आज एक बार फिर से मैंने तुम्हें दिया हुआ अपना वादा तोड़ दिया। मैंने तुमसे वादा किया था कि अब से कभी भी ना तो मैं तुम्हारे घर की दहलीज़ पर क़दम रखूंगा और ना ही तुम्हारे सामने आऊंगा। कितना बुरा इंसान हूं ना जो अपना वादा भी नहीं निभा सकता।"

"न...नहीं, ऐसा मत कहिए।" अनुराधा का गला सहसा भारी हो गया____"सब मेरी ग़लती है। मैं ही बहुत बुरी हूं। मेरी ही ग़लती की वजह से आपने ऐसा वादा किया था मुझसे।"

"नहीं, तुम्हारी कोई ग़लती नहीं है।" मैं सहसा आगे बढ़ा तो वो भी मेरे साथ बढ़ चली। इधर मैंने आगे कहा____"तुमने कुछ भी ग़लत नहीं किया है। तुमने तो वही कहा था जो सच था और जो मेरी वास्तविकता थी। शायद मैं वाकई में किसी के भरोसे के लायक नहीं हूं। ख़ैर छोड़ो, ये छाता ले लो और घर जाओ।"

"क...क्या मतलब??" अनुराधा ने चौंक कर मेरी तरफ देखा____"क...क्या आप नहीं चलेंगे घर?"

"तुमसे मिलने का और बात करने का वादा तोड़ दिया है मैंने।" मैंने अजीब भाव से कहा____"पर तुम्हारे घर की दहलीज़ पर क़दम न रखने का वादा नहीं तोड़ना चाहता। आख़िर अपने किसी वादे को तो निभाऊं मैं। शायद तब किसी के भरोसे के लायक हो जाऊं।"

मैंने ये कहा और अनुराधा को छाता पकड़ा कर उससे दूर हट कर खड़ा हो गया। मैंने देखा उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े थे। मुझे तकलीफ़ तो बहुत हुई मगर शायद मैं इसी तकलीफ़ के लायक था।

"तुम्हारी आंखों में आसूं अच्छे नहीं लगते।" मैंने तेज़ बारिश में भींगते हुए उससे कहा____"इन आंसुओं को तो मेरा मुकद्दर बनना चाहिए और यकीन मानो ऐसे मुकद्दर से कोई शिकवा नहीं होगा मुझे।"

"न...नहीं रुक जाइए।" मुझे पलट कर जाता देख अनुराधा जल्दी से मानों चीख पड़ी____"भगवान के लिए रुक जाइए।"

"किस लिए?" मैं ठिठक कर उसकी तरफ पलटा।
"म...मुझे आपसे ढेर सारी बातें करनी हैं।" अनुराधा बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हालते हुए बोली____"और, और मुझे आपसे कुछ सुनना भी है।"

"मतलब??" मैं सहसा उलझ सा गया___"मुझसे भला क्या सुनना है तुम्हें?"

"ठ...ठकुराईन।" अनुराधा ने अपनी नज़रें झुका कर भारी झिझक के साथ कहा____"हां मुझे आपसे यही सुनना है। एक बार बोल दीजिए न।"

"क्यों?" मैं अंदर ही अंदर चकित हो उठा था किंतु अपने भावों को ज़ाहिर नहीं होने दिया।
"ब...बस सुनना है मुझे।" अनुराधा ने पहले की भांति ही नज़रें झुकाए हुए कहा।

"पर मैं ऐसा कुछ भी नहीं बोल सकता।" मैंने खुद को जैसे पत्थर बना लिया____"अब दिल में चाहत जैसी चीज़ को फिर से नहीं पालना चाहता। तुम्हारी यादें बहुत हैं मेरे लिए।"

कहने के साथ ही मैं पलट गया और फिर बिना उसके कुछ बोलने का इंतज़ार किए बारिश में भींगते हुए अपने मकान की तरफ बढ़ता चला गया। मैं जानता था कि ऐसा कर के मैंने बिल्कुल भी ठीक नहीं किया था क्योंकि अनुराधा को इससे बहुत तकलीफ़ होनी थी मगर मेरा भी तो कोई वजूद था। मेरे अंदर भी तो तूफ़ान चल पड़ा था जिसकी वजह से मैं उसके सामने कमज़ोर नहीं पड़ना चाहता था।

मुझे जल्दी ही वापस आ गया देख बरामदे में खड़े सारे मज़दूर हैरानी से मुझे देखने लगे। शायद ऐसा उनकी कल्पनाओं में भी नहीं था मगर उन्हें भला क्या पता था कि दुनिया में अक्सर ही ऐसा होता है जो किसी की कल्पनाओं में नहीं होता।

"छोटे कुंवर आप तो बड़ा जल्दी वापस आ गए?" एक अधेड़ उम्र का मज़दूर मुझे देखते हुए बोल पड़ा____"आपने तो कहा था कि आप मुरारी के घर जा रहे हैं उस लड़की के साथ? फिर वापस क्यों आ गए और तो और भीग भी गए?"

"हां छोटे कुंवर।" भीखू बोल पड़ा____"अगर आपको अनुराधा बिटिया को छाता ही दे के आ जाना था तो ये काम तो फुलवा भी कर देता। नाहक में ही भीग गए आप।"

"अरे! मैं तो मुरारी काका के घर ही जा रहा था काका।" मैंने कहा____"मगर फिर अचानक से मुझे एक ज़रूरी काम याद आ गया इस लिए वापस आ गया। रही बात भीग जाने की तो कोई बात नहीं।"

✮✮✮✮

मेरे इस तरह चले जाने पर अनुराधा जैसे टूट सी गई थी। उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि मैं उससे इस तरह मुंह फेर कर और उसकी कोई बात बिना माने अथवा सुने चला जाऊंगा। हाथ में छाता पकड़े वो बस रोए जा रही थी। आज से पहले भी वो अकेले में रोती थी मगर उसके दुख में आज की तरह पहले इज़ाफ़ा नहीं हुआ था। मेरे चले जाने पर उसे ऐसा लगा था जैसे उसके अंदर से एक झटके में कुछ निकल गया था। उसका कोमल हृदय तड़प उठा था जिसके चलते उसके आंसू रोके नहीं रुक रहे थे। तभी आसमान में तेज़ बिजली कड़की तो वो एकदम से घबरा गई। उसके हाथ से छाता छूटते छूटते बचा। उसने एक नज़र उस तरफ देखा जिधर मैं गया था और फिर वो अपने आंसू पोंछते हुए पलट कर अपने घर की तरफ चल दी।

अनुराधा एक हाथ से छाता पकड़े बढ़ी चली जा रही थी। दिलो दिमाग़ में बवंडर सा चल रहा था। शून्य में खोई वो कब अपने घर पहुंच गई उसे पता ही नहीं चला। चौंकी तब जब एक बार फिर से तेज़ बिजली कड़की। उसने हड़बड़ा कर इधर उधर देखा तो उसकी नज़र सहसा अपने घर के दरवाज़े पर पड़ी।

दरवाज़ा खोल कर अनुराधा जैसे ही अंदर आई तो आंगन के पार बरामदे में बैठी उसकी मां की नज़र उस पर पड़ी। सरोज उसी की चिंता में बैठी हुई थी। अनुराधा को वापस आया देख वो एकदम से उठ कर खड़ी हो गई।

"हाय राम! ये क्या तू भीग कर आई है?" सरोज हैरत से आंखें फाड़ कर बोल पड़ी____"मना किया था न कि मौसम ख़राब है और बारिश कभी भी हो सकती है फिर भी चली गई अपने भाई से मिलने? ऐसा क्या ज़रूरी काम था तुझे उससे जिसके लिए तूने मेरी बात भी नहीं मानी?"

अनुराधा अपनी मां की बातें सुन कर कुछ न बोली। आंगन से चलते हुए वो बरामदे में आई और फिर छाते को बंद कर के अंदर कमरे की तरफ चली गई। उसके जाते ही सरोज जाने क्या क्या बड़बड़ाने लगी।

इधर कमरे में आते ही अनुराधा ने दरवाज़ा बंद किया और फिर दरवाज़े से ही पीठ टिका कर सिसक उठी। अपने अंदर का गुबार उससे सम्हाला न गया। आवाज़ बाहर उसकी मां के कानों तक ना पहुंचे इस लिए उसने अपने मुंह को हथेली से सख़्ती पूर्वक दबा लिया। जाने कितनी ही देर तक वो रोती रही। रोने से जब उसे थोड़ा राहत हुई तो वो आगे बढ़ी और फिर अपने गीले कपड़े उतारने लगी। उसे बेहद ठंड लगने लगी थी। कमरे में चिमनी जल रही थी इस लिए उसे कोई परेशानी नहीं हुई। जल्दी ही उसने दूसरे कपड़े पहन लिए और अपने गीले बालों को खोल कर उन्हें सुखाने का प्रयास करने लगी।

"अगर बीमार पड़ी तो देख लेना फिर।" वो जैसे ही बाहर आई तो सरोज उसे डांटते हुए बोली____"दवा भी नहीं कराऊंगी। रोज़ रोज़ तेरी बीमारी का इलाज़ करवाने के लिए पैसे नहीं हैं मेरे पास।"

"हां ठीक है मां।" अनुराधा ने संजीदगी से कहा____"मत करवाना मेरी दवा। मैं खुद चाहती हूं कि इस बार मैं ऐसी बीमार पड़ जाऊं कि कोई वैद्य मेरा इलाज़ ही न कर पाए। मर जाऊंगी तो अच्छा ही होगा। कम से कम अपने बापू के पास जल्दी से तो पहुंच जाऊंगी।"

अनुराधा की बातें सुन कर सरोज चौंकी। उसने बड़े ध्यान से अपनी बेटी के चेहरे की तरफ देखा। आज से पहले उसने कभी भी उससे ऐसी बातें नहीं की थी। अगर ये कहा जाए तो ग़लत न होगा कि उसने कभी अपनी मां से ज़ुबान ही नहीं लड़ाया था। उसके चेहरे पर मौजूद संजीदगी को देख कर सरोज के मन में कई तरह के ख़याल उभरे। वो चलते हुए उसके पास आई और उसके दोनो बाजुओं को पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया उसे।

"हाय राम! तू रो रही थी?" अनुराधा की सुर्ख और नम आंखों को देख सरोज ने किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा कर पूछा____"क्या बात है अनू? क्या हुआ है तुझे? तू भुवन से मिलने गई थी न? उसने कुछ कहा है क्या तुझे?"

सरोज एक ही सांस में जाने कितने ही सवाल उससे कर बैठी। अपनी बेटी को उसने ऐसी हालत में कभी नहीं देखा था। वो बीमार ज़रूर हो जाती थी लेकिन ऐसी हालत में कभी नज़र नहीं आई थी वो। उधर मां के इतने सारे सवाल सुन कर अनुराधा एकदम से घबरा गई। उसे लगा कहीं मां को सच न पता चल जाए। उसे कोई जवाब ही नहीं सूझ रहा था।

"क्या हुआ तू चुप क्यों है अनू?" बेटी को कुछ न बोलता देख सरोज और भी घबरा गई, उसने उसे हिलाते हुए पूछा____"बताती क्यों नहीं कि क्या हुआ है? देख मेरा मन बहुत घबरा रहा है। तुझे इस हालत में देख कर मेरे मन में बहुत ही बुरे बुरे ख़याल आ रहे हैं। बता क्या हुआ है तुझे? भुवन ने कुछ कहा है क्या तुझे?"

"न...नहीं मां।" अनुराधा ने खुद को किसी हद तक सम्हालते हुए कहा____"मुझे किसी ने कुछ नहीं कहा है।"

"तो फिर तू रोई क्यों है?" सरोज का अंजानी आशंका के चलते मानो बुरा हाल हो गया____"तेरी आंखें बता रही हैं कि तू रोई है। ज़रूर कुछ हुआ है तेरे साथ। बता मेरी बच्ची।"

"तुम बेकार में चिंता कर रही हो मां।" अनुराधा ने अब तक खुद को सहज कर लिया था, अतः बोली____"मैं रोई ज़रूर हूं लेकिन उसकी वजह ये नहीं है कि किसी ने मुझे कुछ कहा है। असल में बारिश होने लगी थी तो भींगने से बचने के लिए मैं दौड़ने लगी थी। पता नहीं मेरे पैर को क्या हुआ कि मैं रास्ते में एक जगह गिर गई। बहुत तेज़ दर्द हो रहा था इस लिए रोने लगी थी।"

"तू सच कह रही है ना?" सरोज की जैसे जान में जान आई, फिर एकदम से बैठ कर अनुराधा का पैर देखते हुए बोली____"दिखा मुझे कहां चोट लगी है तुझे?"

अनुराधा ये सुन कर बौखला ही गई। उसने तो अपनी समझ में बढ़िया बहाना बनाया था मगर उसे क्या पता था कि उसकी मां उसको चोट दिखाने को बोलने लगेगी।

"क्या हुआ?" अनुराधा को ख़ामोश देख सरोज ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा____"दिखा क्यों नहीं रही कि कहां चोट लगी है तुझे?"

"चोट नहीं लगी है मां।" अनुराधा ने हड़बड़ा कर जल्दी से कहा____"शायद पैर में मोच आई है। उस समय मैंने भी यही सोच कर देखा था कि शायद चोट लग गई है मुझे मगर चोट नहीं लगी थी।"

"ऊपर वाले का लाख लाख शुक्र है कि तुझे चोट नहीं आई।" सरोज ने कहा____"अच्छा बता कौन से पैर में मोच आई है। जल्दी दिखा मुझे, मोच भी बहुत ख़राब होती है। दर्द के मारे चलते नहीं बनता आदमी से।"

अनुराधा को मजबूरन अपना एक पैर दिखाना ही पड़ा। चिमनी की रोशनी में सरोज ने बड़े ध्यान से अपनी बेटी की बताई हुई जगह पर देखा मगर उसे कुछ समझ न आया। उसने एक बार सिर उठा कर अनुराधा को देखा और फिर उसकी बताई हुई जगह पर अपनी दो उंगलियों से दबा कर पूछा____"कहां दर्द हो रहा है तुझे?"

अनुराधा ने मुसीबत से बचने के लिए झूठ मूठ का ही दर्द का नाटक करते हुए बता दिया कि हां यहीं पर दर्द हो रहा है। सरोज ने उठ कर उसे चारपाई पर बैठाया और फिर तेज़ क़दमों से अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। उसके जाते ही अनुराधा ने राहत की सांस ली। कुछ देर में जब सरोज आई तो उसके हाथ में एक कटोरी थी।

"ये शहद हल्दी और चूना है।" फिर वो अनुराधा के पैर के पास बैठते हुए बोली____"इसे लगा देती हूं जिससे तुझे जल्दी ही आराम मिल जाएगा।"

सरोज कटोरी से निकाल कर शहद हल्दी और चूने के मिश्रण को अनुराधा के पैर में लगाने लगी। उधर अनुराधा को ये सोच कर रोना आने लगा कि उसे अपनी मां से झूठ बोलना पड़ा जिसके चलते उसकी मां उसके लिए कितना चिंतित हो गई है। उसका जी चाहा कि अपनी मां से लिपट कर खूब रोए मगर फिर उसने सख़्ती से अपने जज़्बातों को अंदर ही दबा लिया।



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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
प्रेम बहुत ही बडी चीज है
जब प्रेम भंग होने की आकांक्षा सामने आये तो मन बावरा हो जाता है जो अब अनुराधा को लगने लगा उसी कारण उसकी ये अवस्था हो गई
 

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Subah ka bhula agar sham ko ghar aa jaye to use bhula nahi kehte :D
Use Oggy kehte he :cmouth:
:laughing:
Par yaha pe Dada Thakur jo he wo ekdam soft approach apna rahe he (ya fir wo aisa dikha rahe he ? )
Wo shayad logo ka bhala shanti me he yahi sochkar har ek se samjhauta karne pe aamada he par ve bhul gaye he ke Jyada jhuk ke milo to duniya pith ko paydaan bana deti he !
Ab Gaurishankar ka ahem bhale he maatimol huaa ho par dada thakur ne aurat ko khaas kar dushman ke ghar ki aurat ko kamjor samza !
Fir ye bhi ek baat he ke shantipriy vyakti ka nyaypurn hona jaruri nahi hota kyonki wo shanti prasthapit karne ashant logo se bhi samjhauta karega , aur yahi uske patan ka karan hoga !
Dada thakur ab mukhiya nahi rahe aur na hi wo future me kabhi ban sakte hain....is liye unka ye behaviour itna bhi hairatangej nahi hai. Rahi baat gauri shankar ki aur foolwati ki to jald hi unka kayakalp hoga...ab ye kaise hoga ye bhi pata chal jayega. Unko wastavikta ke dharatal par la kar patakne wala jaldi hi milega unhe...
Kaante ke ped ki jagah gulab ke bagiche me kabhi nahi ho sakti, bhale he khud gulab me kaante kyo na ho ! Anyay ko rokne ke liye shastr uthana aur khud ke swarth ke liye uthane me fark hota he aur ye fark Dada Thakur bhul gaye he !
Kher he , time to sleep :goodnight:
Dada thakur ka daur ek tarah se ab guzar gaya hai. Bhai aur bete ki maut ne unhen andar tak aahat kar diya hai. Hamesha sabka bhala karne wale insaan ne jab is tarah ka nar sanghaar kiya to logo ko bhale hi sabak mil gaya ho magar isse unka byaktitwa udaaseenta me dhal gaya hai. Pahle wo aas paas ke gaav ke bhi mukhiya hote the kintu ab apne gaav ke bhi nahi rahe....is liye itna badlaav aana swabhavik hai. Khair wakt hamesha ek jaisa nahi rahta....so intzar karo ki aage kya hota hai..
 
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अपने पिछले की समीक्षा मे अनुराधा को मै भूल ही गया था।
इसमे कोई संदेह नही की वो वैभव से मोहब्बत करने लगी है। शायद वैभव के हाल की अच्छाईयां उसके अतीत की बुराईयों को पीछे की तरफ ढकेल दिया है। शायद अब उसे इस बात से परहेज नही कि वैभव का नाजायज सम्बन्ध उसी के मां से बना हुआ था। शायद वैभव का उसे ठाकुराइन कहना अब वो कहीं अधिक मिस करने लगी है।
मुझे नही पता कि वैभव सर के मन मे क्या चल रहा है लेकिन यह जरूर पता है कि अनुराधा और रूपा मे किसी एक को चुनने मे उनके पसीने छूट जाने है।
और अगर कहीं भाभी श्री की भी बात आ गई तब तो यह प्रेम का कोण चतुर्भुज का कोण बन जाने वाला होगा।
ये काफी इंटरेस्टिंग होने वाला है।

वैभव की मां के एक एक बात का मै समर्थन करता हूं। दादा ठाकुर को इस रिश्ते के बारे मे सोचना तक नही चाहिए।

बहुत खुबसूरत अपडेट शुभम भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 

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Awesome update
इतना सब कुछ होने जाने के बाद भी कुछ भी नही बदला है साहूकारो ,मुंशी और उसके बेटे का वही हाल है साहूकारो के यहां अब मुखिया फूलवती है वह यह मानती हैं कि साहूकारो ने जो किया है वह सही है और ठाकुर ने जो किया गलत ठाकुर अब निर्बल है इसलिए कुसुम का हाथ मांग रही है अगर अपनी गलती पर पछतावा होता तो वह ठाकुर के सामने ये प्रस्ताव नही रखती। ये वो कुत्ते की पूंछ है जिसको कितना ही सीधा करलो साली रहेगी टेडी की टेडी ही। इनके लिए तो वैभव एकदम सही है क्योंकि लातो के भूत बातों से नही मानते हैं इंसान को इतना भी नही झुकना चाहिए कि लोग उसकी सराफत का नाजायज फायदा उठा ले ।ठाकुर साहब साहूकारो के घर आकर माफी मांगते हैं लेकिन इनको अभी तक पछतावा नहीं है बल्कि फूलमती मैडम तो ठाकुर की विनम्रता का गलत फायदा उठा रही है अभी तक कुछ नहीं बदला है वही ढाक के तीन पात है सब से ज्यादा दुख भाभी को हुआ है देखते हैं वैभव भाभी की खुशी के लिए क्या करता है
Thanks bro...
 
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