Jason carter
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Bahot behtareen shaandaar update bhai☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 07
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अब तक,,,,,
पिता जी से मैंने जिस तरीके से बातें की थी वैसी बातें संसार का कोई भी बेटा अपने पिता से नहीं कर सकता था। इंसान के दिल को तो ज़रा सी बातें भी चोट पहुंचा देती हैं जबकि मैंने तो पिता जी से ऐसी बातें की थी जो यकीनन उनके दिल को ही नहीं बल्कि उनकी आत्मा तक को घायल कर गईं होंगी। सारी ज़िन्दगी मैंने गलतियां की थी और यही सोचता था कि मैं जो कुछ भी कर रहा हूं वो सब अच्छा ही है किन्तु जब एक ग़लती मेरे पिता जी से हुई तो मैंने क्या किया?? उनकी एक ग़लती के लिए मैंने घर के हर सदस्य से नाता तोड़ लिया और उनके प्रति अपने दिल में गुस्सा और नफ़रत भर कर यही सोचता रहा कि एक दिन मैं उन सबकी इज्ज़त को मिट्टी में मिला दूंगा। भला ये कैसा न्याय था? मैं खुद जो कुछ करूं वो सब सही माना जाए और कोई दूसरा अगर कुछ करे तो वो दुनिया का सबसे ग़लत मान लिया जाए?
जाने कितनी ही देर तक मैं इस तरह के विचारों के चक्रव्यूह में फंसा रहा उसके बाद गहरी सांस ले कर उठा और मुरारी काका के घर की तरफ चल दिया। मुझे याद आया कि जगन ने उस वक़्त अपने भाई का अंतिम संस्कार करने की बात कही थी। मुरारी काका जैसे इंसान के अंतिम संस्कार पर मुझे भी जाना चाहिए था। आख़िर बड़े़ उपकार थे उनके मुझ पर।
अब आगे,,,,,
मैं मुरारी काका के घर से थोड़ी दूर ही था कि मुझे बाएं तरफ काफी सारे लोग दिखाई दिए। मैं समझ गया कि वो सब लोग मुरारी काका की अर्थी ले कर उस जगह पर उनका अंतिम संस्कार करने आये हैं। ये देख कर मैं भी उसी तरफ मुड़ कर चल दिया। थोड़ी ही देर में मैं उन लोगों के पास पहुंच गया। मुरारी काका के गांव के कुछ लोग मुरारी काका के खेतों से कुछ दूरी पर ही लकड़ी की चिता तैयार कर चुके थे और अब उस चिता पर मुरारी काका के शव को रखने जा रहे थे। सरोज काकी और अनुराधा एक कोने में खड़ी ये सब देख कर अपने आंसू बहा रहीं थी।
मुझे देख कर वहां मौजूद लोगों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की अलबत्ता जगन ने ज़रूर मुझे घूर कर देखा था। ख़ैर अंतिम संस्कार की सारी विधियां निपट जाने के बाद मुरारी काका की चिता को मुरारी काका के बेटे के द्वारा आग लगवा दिया गया। देखते ही देखते आग ने अपना उग्र रूप दिखाना शुरू कर दिया और मुरारी काका की चिता के चारो तरफ फैलने लगी।
मुरारी काका के गांव के कुछ और लोग भी आते दिखाई दिए जिनके हाथो में तुलसी की सूखी लकड़ियां थी। यहाँ जो लोग मौजूद थे उनके हाथों में भी तुलसी की सूखी लकड़ियां थी। असल में तुलसी की ये सूखी लकड़ियां मरने वाले की जलती चिता पर अर्पण कर के लोग दिवंगत आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। हर आदमी अपनी स्वेच्छा और क्षमता अनुसार तुलसी की छोटी बड़ी लकड़ियां घर से ले कर आता है और फिर तुलसी की सात लकड़ियां जोड़ कर जलती चिता पर दूर से फेंक कर अर्पण कर देता है। मेरे पास तुलसी की लकड़ी नहीं थी इस लिए मैंने कुछ ही दूरी पर दिख रहे आम के पेड़ से सूखी लकड़ी तोड़ी और उससे सात लड़की तोड़ कर बनाया। यहाँ ये मान्यता है कि अगर किसी के पास तुलसी की लकड़ी नहीं है तो वो आम की सात लकड़ियां बना कर भी जलती चिता पर अर्पण कर सकता है। जब सब गांव वालों ने जलती चिता को सत लकड़ियां दे दी तो मैंने भी आगे बढ़ कर आम की उन सात लकड़ियों को एक साथ जलती चिता पर उछाल दिया और फिर मुरारी काका के जलते शव को प्रणाम किया। मन ही मन मैंने भगवान से उनकी आत्मा की शान्ति के लिए दुआ भी की।
काफी देर तक मैं और बाकी लोग वहां पर रहे और फिर वहां से अपने अपने घरों की तरफ चल दिए। जगन और उसके कुछ ख़ास चाहने वाले वहीं रह गए थे। जगन के कहने पर सरोज काकी भी अपने दोनों बच्चों को ले कर चल दी थी।
मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि कल तक जिस मुरारी काका से मैं मिलता रहा था और हमारे बीच अच्छा खासा सम्बन्ध बन गया था आज वही इंसान इस दुनिया में नहीं है। मेरे ज़हन में हज़ारो सवाल थे जिनका जवाब मुझे खोजना था। आख़िर किसने मुरारी काका की इस तरह से हत्या की होगी और क्यों की होगी? मुरारी काका बहुत ही सीधे सादे और साधारण इंसान थे। उनकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी। वो देशी शराब ज़रूर पीते थे मगर गांव में किसी से भी उनका मन मुटाव नहीं था।
मैं समझ नहीं पा रहा था कि ऐसे इंसान की हत्या कोई क्यों करेगा? क्या किसी ने महज अपने शौक के लिए मुरारी की हत्या की थी या उनकी हत्या करने के पीछे कोई ऐसी वजह थी जिसके बारे में फिलहाल मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था? मुरारी काका के जाने के बाद उनकी बीवी और उनके दोनों बच्चे जैसे अनाथ हो गए थे। अनुराधा तो जवान थी और मुरारी काका उसका ब्याह करना चाहते थे किन्तु उसका भाई अभी छोटा था। मुरारी काका को अनुराधा के बाद दो बच्चे और हुए थे जो छोटी उम्र में ही ईश्वर को प्यारे हो गए थे।
मुरारी काका के इस तरह चले जाने से सरोज काकी के लिए अपना घर चलाना यकीनन मुश्किल हो जाना था। हालांकि मुरारी काका का छोटा भाई जगन ज़रूर था किन्तु वो अपने परिवार के साथ साथ सरोज काकी के परिवार की देख भाल नहीं कर सकता था। जगन को दो बेटियां और एक बेटा था। उसकी दोनों बेटियां बड़ी थी जो कुछ सालों बाद ब्याह के योग्य हो जाएंगी। लड़की ज़ात पलक झपकते ही ब्याह के योग्य हो जाती है और पिता अगर सक्षम न हो तो उसके लिए अपनी बेटियों का ब्याह करना एक चुनौती के साथ साथ चिंता का सबब बन भी जाता है।
सारे रास्ते मैं यही सब सोचता रहा और फिर झोपड़े में पहुंच कर मैंने अपने कपड़े उतारे और उन्हें पानी से धोया। नहा धो कर और दूसरे कपड़े पहन कर मैं झोपड़े के अंदर आ कर बैठ गया। मुरारी काका की हत्या के बाद से मैं एक सूनापन सा महसूस करने लगा था। मेरे ज़हन में ख़याल उभरे कि ये कैसा समय था कि एक तरफ मुरारी काका की इस तरह अकस्मात हत्या हो जाती है और दूसरी तरफ मेरे परिवार के लोग मुझे वापस घर ले जाने के लिए मेरे पास आते हैं। माँ ने तो साफ कह दिया था कि आज अगर मैं शाम को घर नहीं गया तो मैं उनका मरा हुआ मुँह देखूंगा।
मैं गहरी सोच में डूब गया था और ये सोचने लगा था कि ये दोनों बातें क्या महज एक इत्तेफ़ाक़ हैं या इसके पीछे कोई ख़ास वजह थी? मेरे परिवार वाले इस समय ही मेरे पास क्यों आये जब मेरे ताल्लुकात मुरारी काका से इस क़दर हो गए थे? पहले भाभी फिर पिता जी और फिर माँ और बड़ा भाई। ऐसे समय पर ही क्यों आये जब मुरारी काका की हत्या हुई? चार महीने हो गए मुझे यहाँ आये हुए किन्तु आज से पहले मेरे घर का कोई सदस्य मुझे देखने नहीं आया था तो फिर ऐसे समय पर ही क्यों आये ये लोग?
एक तरफ मुरारी काका का छोटा भाई जगन मुझे अपने भाई का हत्यारा बोल रहा था और दूसरी तरफ पिछली रात एक अंजान और रहस्यमयी शख्स मुझे धक्का दे कर गायब हो जाता है तो वहीं दूसरे दिन पिता जी मुझसे मिलने आ जाते हैं। पिता जी के जाने के बाद आज माँ बड़े भाई के साथ आ गईं थी। ये सब बातें इतनी सीधी और स्वाभाविक नहीं हो सकतीं थी। कहीं न कहीं इन सब बातों के पीछे कोई न कोई ख़ास बात ज़रूर थी जिसका मुझे इल्म नहीं हो रहा था।
मेरे ज़हन में कई सारे सवाल थे जिनका जवाब मुझे चाहिए था। एक सीधे सादे इंसान की हत्या कोई क्यों करेगा? पिछली रात मुझे धक्का देने वाला वो रहस्यमयी शख्स कौन था? क्या मुरारी काका की हत्या से उसका कोई सम्बन्ध था? चार महीने बाद ऐसे वक़्त पर ही मेरे घर के लोग मुझसे मिलने क्यों आये थे? क्या ठाकुर प्रताप सिंह ने मुरारी की हत्या करवाई होगी किन्तु उनकी बातें और फिर माँ की बातें मेरे ज़हन में आते ही मुझे मेरा ये विचार ग़लत लगने लगता था।
मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि जगन ने मुझ पर मुरारी काका की हत्या का आरोप लगाया था और जिस वजह से लगाया था वो हालांकि बचकाना तो था किन्तु सोचने वाली बात थी कि वो ये कैसे सोच सकता था कि मैं महज इतनी सी बात पर उसके भाई की हत्या कर दूँगा? दूसरी बात जगन को किसने बताया कि कल रात मैं मुरारी के घर गया था? क्या सरोज काकी ने बताया होगा उसे? पर सरोज काकी ने उससे ये तो नहीं कहा होगा कि मैंने ही उसके मरद की हत्या की है। मतलब ये जगन के अपने ख़याल थे कि मैंने ही उसके भाई की हत्या की है।
क्या जगन खुद अपने भाई की हत्या नहीं कर सकता? मेरे ज़हन में अचानक से ये ख़याल उभरा तो मैं इस बारे में गहराई से सोचने लगा किन्तु मुझे कहीं से भी ये नहीं लगा कि जगन अपने भाई की हत्या कर सकता है। क्योंकि दोनों भाईयों के बीच कोई बैर जैसी भावना नहीं थी। अगर ऐसी कोई बात होती तो मुरारी काका मुझसे इस बारे में ज़रूर बताते। मैंने इन चार महीनों में कभी भी दोनों भाईयों के बीच ऐसी कोई बात होती नहीं देखी थी जिससे कि मैं शक भी कर सकता कि जगन अपने भाई की हत्या कर सकता है।
मुरारी काका की हत्या मेरे लिए एक न सुलझने वाली गुत्थी की तरह हो गई थी और इस बारे में सोचते सोचते मेरा सिर फटने लगा था। अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि मुझे अपने झोपड़े के बाहर किसी की हलचल सुनाई दी। मैंने ठीक से ध्यान लगा कर सुना तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कोई चल कर मेरे झोपड़े की तरफ ही आ रहा हो। मैं एकदम से सतर्क हो गया। सतर्क इस लिए हो गया क्योंकि पिछली रात एक रहस्यमयी शख़्स ने मुझे ज़ोर का धक्का दिया था इस लिए हो सकता था कि इस वक़्त वो मुझे यहाँ अकेले देख कर मेरे पास किसी ग़लत इरादे से आया हो। मैं फ़ौरन ही उठा और झोपड़े के अंदर ही एक कोने में रखे लट्ठ को हाथ में ले कर झोपड़े से बाहर आ गया।
झोपड़े से बाहर आ कर मैंने इधर उधर नज़र घुमाई तो देखा मेरी ही उम्र के दो लड़के मेरे पास आते दिखे। चार क़दम की दूरी पर ही थे वो और मैंने उन दोनों को अच्छी तरह पहचान लिया। वो मेरे ही गांव के थे और मेरे दोस्त थे। एक का नाम चेतन था और दूसरे का सुनील। उन दोनों को इस वक़्त यहाँ देख कर मेरी झांठें सुलग गईं।
"कैसा है वैभव?" दोनों मेरे पास आ गए तो उनमे से चेतन ने मुझसे कहा।
"महतारीचोद तमीज़ से बात कर समझा।" गुस्से में मैंने झपट कर चेतन का गिरहबान पकड़ कर गुर्राया था_____"अपनी औकात मत भूल तू। तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरा नाम लेने की?"
चेतन को मुझसे ऐसी उम्मीद सपने में भी नहीं थी। उसने तो ये सोचा था कि उन दोनों के आने से मैं खुश हो जाऊंगा और उन दोनों को अपने गले लगा लूंगा मगर उन दोनों को क्या पता था कि ठाकुर वैभव सिंह को अब दोस्तों से कितनी नफ़रत हो गई थी।
"ये तू क्या कर रहा है वैभव?" सुनील ने हैरत से आंखें फाड़ कर मुझसे ये कहा तो मैंने खींच कर एक लात उसके गुप्तांग पर जमा दिया जिससे उसकी चीख निकल गई और वो मारे दर्द के अपना गुप्तांग पकड़े दोहरा होता चला गया।
"भोसड़ीवाले।" फिर मैंने गुस्से में फुँकारते हुए उससे कहा____"दुबारा मेरा नाम लिया तो तेरी बहन को खड़े खड़े चोद दूंगा।" कहने के साथ ही मैं चेतन की तरफ पलटा____"अगर तुम दोनों अपनी सलामती चाहते हो तो अपना कान पूँछ दबा कर यहाँ से दफा हो जाओ।"
"हम तो तुझसे मिलने आये थे वैभव आआह्ह्ह्।" चेतन ने ये कहा ही था कि मैंने घुटने का वार उसके पेट में ज़ोर से किया तो उसकी चीख निकल गई।
"मादरचोद।" फिर मैंने उसके चेहरे पर घू़ंसा मारते हुए कहा____"बोला न कि मेरा नाम लेने की हिम्मत मत करना। तुम सालों को मैंने पालतू कुत्तों की तरह पाला था और तुम दोनों ने क्या किया? इन चार महीनों में कभी देखने तक नहीं आये मुझे। अगर मुझे पहले से पता होता कि मेरे पाले हुए कुत्ते इतने ज़्यादा बेवफ़ा निकलेंगे तो पहले ही तुम दोनों का खून कर देता।"
"हमे माफ़ कर दो वैभव।" सुनील ने हाथ जोड़ते हुए कहा____"हम आना तो चाहते थे लेकिन बड़े ठाकुर साहब के डर से नहीं आये कि कहीं वो हमें भी तुम्हारी तरह गांव से निष्कासित न कर दें।"
"इसका मतलब तो यही हुआ न कि तुम दोनों ने सिर्फ अपने बारे में ही सोचा।" मैंने शख़्त भाव से कहा____"क्या यही थी तुम दोनों की दोस्ती? थू है तुम दोनों पर। अभी के अभी यहाँ से दफा हो जाओ वरना तुम दोनों की इतनी बार गांड मारुंगा कि हगना मुश्किल हो जाएगा।"
"माफ़ कर दे यार।" चेतन बोला____"अब आ तो गए हैं ना हम दोनों।"
"तेरी माँ को चोदूं मादरचोद।" मैंने चेतन को एक और घूंसा जड़ते हुए कहा____"यहां आ कर क्या मुझ पर एहसान किया है तूने? कान खोल कर सुन लो तुम दोनों। आज के बाद तुम दोनों कभी मुझे अपनी शकल न दिखाना वरना घर में घुस कर तुम दोनों की माँ बहन को चोदूंगा। अब दफा हो जाओ यहाँ से।"
दोनों ने पहली बार मुझे इतने गुस्से में देखा था और उन्हें ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि मैं दोनों पर इतना ज़्यादा क्रोधित हो जाऊंगा। दोनों बुरी तरह सहम गए थे और जब मैंने ये कहा तो दुबारा उन दोनों में बोलने की हिम्मत न हुई।
चेतन और सुनील जा चुके थे। पता नहीं क्यों उन दोनों को देख कर इतना गुस्सा आ गया था मुझे? शायद इस लिए कि इन चार महीनों में मुझे पता चल गया था कि कौन मेरा चाहने वाला था और कौन नहीं। सच कहूं तो अब दोस्ती जैसे शब्द से नफ़रत ही हो गई थी मुझे।
दोनों के जाने के बाद मैं कुछ देर तक दोस्तों के बारे में ही सोचता रहा। दोपहर से ज़्यादा का समय हो गया था और अब मुझे भूख लग रही थी। आज से पहले मैं या तो मुरारी के घर में खाना खा लेता था या फिर जंगल में जा कर उसी नदी से मछलियाँ पकड़ कर और फिर उन्हें भून कर अपनी भूख मिटा लेता था। मुरारी काका की हत्या हो जाने से मैं मुरारी काका के घर खाना खाने के लिए नहीं जा सकता था। हालांकि मैं अगर जाता तो सरोज काकी अनुराधा से बनवा कर ज़रूर मुझे खाना देती मगर ऐसे वक़्त में मुझे खुद उसके यहाँ खाना खाने के लिए जाना ठीक नहीं लग रहा था। इस लिए मैं उठा और जंगल की तरफ बढ़ गया।
रास्ते में मैं सोच रहा था कि अब ऐसे वक़्त में मुझे क्या करना चाहिए? यहाँ पर मैं दो वजहों से रुका हुआ था। एक तो बंज़र ज़मीन पर फसल उगा कर मैं अपने बाप को दिखाना चाहता था और दूसरे मुरारी काका की वजह से क्योंकि उनसे मेरे अच्छे ताल्लुक बन गए थे। हालांकि एक वजह और भी थी और वो ये कि सरोज काकी से मुझे शारीरिक सुख मिलता था और कहीं न कहीं ये बात भी सच ही थी कि मैं उसकी बेटी अनुराधा को भी हासिल करना चाहता था।
मैं अक्सर सोचता था कि मैं अनुराधा के साथ शख्ती से पेश क्यों नहीं आ पाता? चार महीने पहले तक तो ऐसा था कि मैं जिस लड़की या औरत को चाह लेता था उसे किसी न किसी तरह हासिल कर ही लेता था और फिर उसे भोगता था मगर अनुराधा के मामले में मेरी कठोरता जाने कहां गायब हो जाती थी और उसके लिए एक कोमल भावना आ जाती थी। यही वजह थी कि चार महीने गुज़र जाने के बाद भी मेरे और अनुराधा के बीच की दूरी वैसी की वैसी ही बनी हुई थी जैसे चार महीने पहले बनी हुई थी।
आज शाम को मुझे घर भी जाना था क्योकि मैं माँ को बोल चुका था कि मैं शाम को आऊंगा मगर सच कहूं तो घर जाने की अब ज़रा भी हसरत नहीं थी मुझे। मुरारी काका और उसके घर से एक लगाव सा हो गया था मुझे। उसके घर में अनुराधा के हाथ का बना खाना मैं अक्सर ही खाता रहता था। चूल्हे में उसके हाथ की बनी सोंधी सोंधी रोटियां और आलू भांटा का भरता एक अलग ही स्वाद की अनुभूति कराता था। अनुराधा का चोर नज़रों से मुझे देखना और फिर जब हमारी नज़रें आपस में मिल जातीं तो उसका हड़बड़ा कर अपनी नज़रें हटा लेना। जब वो हलके से मुस्कुराती थी तो उसके दोनों गालों पर हलके से गड्ढे पड़ जाते थे। मैं जानता था कि घर लौटने के बाद फिर मैं मुरारी काका के घर इस तरह नहीं जा पाऊंगा और अनुराधा जैसी बेदाग़ चीज़ मेरे हाथ से निकल जाएगी।
मुझे याद आया कि कल रात मुरारी काका मुझसे अपनी बेटी का हाथ थामने की बात कह रहे थे। कल रात वो देशी शराब के नशे में थे और शराब के नशे में अक्सर इंसान सच ही बोलता है तो क्या मुरारी काका सच में यही चाहते थे कि मैं उनकी बेटी का हाथ हमेशा के लिए थाम लूं? क्या मुझे सच में मुरारी काका की इस इच्छा को मान लेना चाहिए? अनुराधा में कोई कमी नहीं थी। उसकी मासूमियत और उसकी सादगी उसका सबसे बड़ा गहना थी। उसके मासूम चेहरे को देख कर कभी कभी मेरे ज़हन में ये ख़याल भी आ जाता था कि उसके लिए कितना ग़लत सोचता हूं मैं। दुनिया में क्या लड़कियों और औरतों की कमी है जो मैं उस मासूम को दाग़दार करने की हसरत पाले बैठा हूं? ये ख़याल भी एक वजह थी कि मैं अनुराधा के क़रीब ग़लत इरादे से जा नहीं जा पाता था।
मुरारी काका एक ग़रीब इंसान थे और मैं एक बड़े और उच्च कुल का नालायक चिराग़। अब तो मुझे घर वापस लौटना ही था क्योकि माँ ने धमकी दी थी कि अगर शाम तक मैं घर नहीं गया तो मुझे उनका मरा हुआ मुँह देखना पड़ेगा। इस लिए जब मैं घर चला जाऊंगा तो मैं एक बार फिर से बड़े बाप का बेटा बन जाऊंगा और मुमकिन है कि मेरे माता पिता अनुराधा के साथ मेरा ये रिश्ता पसंद न करें। ऐसे में मैं कैसे मुरारी काका की इच्छा को पूरा कर पाऊंगा। हालांकि सबसे बड़ा सवाल तो अभी यही था कि क्या मैं खुद ये चाहता हूं कि अनुराधा का हाथ मैं हमेशा के लिए थाम लूं? मुझे एहसास हुआ कि ये सब इतना आसान नहीं था क्योंकि इसमें मेरे पिता जी के मान सम्मान का सवाल था और उनसे ज़्यादा मेरा सवाल था कि मैं खुद क्या चाहता हूं?
जंगल के अंदर उस नदी में पहुंच कर मैंने कुछ मछलियाँ पकड़ी और उन्हें वहीं भून कर खाया। अब कुछ राहत महसूस हो रही थी मुझे। मैं जंगल से निकल कर वापस झोपड़े पर आ गया। मेरी फसल जल कर ख़ाक हो गई थी और अब मेरे यहाँ रुकने की कोई वजह भी नहीं रह गई थी। शाम को घर लौटना मेरी मज़बूरी बन गई थी वरना मैं तो घर जाना ही नहीं चाहता था। असल में मैं ये चाहता था कि इस समय मैं जिन परिस्थितियों में था उससे बाहर निकल आऊं और ऐसा तभी हो सकता था जब मैं मुरारी काका के हत्यारे का पता लगा लूं और जगन के साथ साथ उसके गांव वालों को भी दिखा दूं कि मैं मुरारी काका का हत्यारा नहीं था।
इस वक़्त मुरारी काका के घर जाना उचित नहीं था क्योंकि उनके घर में इस वक़्त मातम सा छाया होगा। हालांकि मेरे वहां जाने से सरोज काकी या अनुराधा को कोई समस्या नहीं होनी थी किन्तु मैं नहीं चाहता था कि अगर जगन वहां पर हो और उसने मुझसे कुछ उल्टा सीधा बोला तो मेरे द्वारा कोई बवाल मच जाए। इस लिए मैंने सोचा कि एक दो दिन बाद जाऊंगा क्योंकि तब तक घर का माहौल कुछ ठीक हो जाएगा। दूसरी बात मुझे सरोज काकी से ये भी बताना होगा कि अब से मैं झोपड़े में नहीं रहूंगा बल्कि अपने घर पर ही रहूंगा।
झोपड़े में पड़ा मैं सोच रहा था कि जगन के रिपोर्ट लिखवाने पर भी थाने से दरोगा नहीं आया था जबकि हत्या जैसे मामले में दरोगा को फ़ौरन ही आना चाहिए था और मुरारी की हत्या के मामले को अपने हाथ में ले कर उसकी छानबीन शुरू कर देनी चाहिए थी मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। मुरारी काका की लाश को दोपहर तक घर में ही रखा गया था उसके बाद उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया था। मतलब साफ़ था कि हत्यारे ने दरोगा को घूंस दे कर हत्या के इस मामले को दबा दिया था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा कौन ब्यक्ति हो सकता है जिसकी पहुंच पुलिस के दरोगा तक है और वो हत्या जैसे गंभीर मामले को भी दबा देने की कूवत रखता है?
मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर मुझे मुरारी के हत्यारे का पता लगाना है तो मुझे खुद पुलिस के दरोगा की तरह इस मामले की छानबीन करनी होगी। आख़िर मुझे भी तो इस हत्या से अपने ऊपर लगे इल्ज़ाम को हटाना था। इस ख़याल के साथ ही मैं एक झटके में उठा और झोपड़े से बाहर निकल आया। बाहर आ कर मैंने झोपड़े के पास ही रखे अपने लट्ठ को उठाया और मुरारी काका के घर की तरफ चल पड़ा। मैंने सोच लिया था कि हत्या के इस मामले की मैं खुद बारीकी से जांच करुंगा।
मुरारी काका के घर के सामने पेड़ के नीचे बने एक चबूतरे पर कुछ लोग बैठे बातें कर रहे थे। उन लोगों के साथ मुरारी काका का छोटा भाई जगन भी था। मुझे देख कर सब के सब चुप हो गए और चबूतरे से उतर कर ज़मीन पर खड़े हो गए। जगन की नज़र मुझ पर पड़ी तो उसने घूर कर देखा मुझे।
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Ek nayi shuruwat hone ja rahi h dekhte h kia kia hota h. Iss safer m☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 08
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अब तक,,,,
मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर मुझे मुरारी के हत्यारे का पता लगाना है तो मुझे खुद पुलिस के दरोगा की तरह इस मामले की छानबीन करनी होगी। आख़िर मुझे भी तो इस हत्या से अपने ऊपर लगे इल्ज़ाम को हटाना था। इस ख़याल के साथ ही मैं एक झटके में उठा और झोपड़े से बाहर निकल आया। बाहर आ कर मैंने झोपड़े के पास ही रखे अपने लट्ठ को उठाया और मुरारी काका के घर की तरफ चल पड़ा। मैंने सोच लिया था कि हत्या के इस मामले की मैं खुद बारीकी से जांच करुंगा।
मुरारी काका के घर के सामने पेड़ के नीचे बने एक चबूतरे पर कुछ लोग बैठे बातें कर रहे थे। उन लोगों के साथ मुरारी काका का छोटा भाई जगन भी था। मुझे देख कर सब के सब चुप हो गए और चबूतरे से उतर कर ज़मीन पर खड़े हो गए। जगन की नज़र मुझ पर पड़ी तो उसने घूर कर देखा मुझे।
अब आगे,,,,,
जगन को अपनी तरफ इस तरह घूरते देख कर मेरे ज़हन में ये बात आई कि मुझे इस तरह सबकी मौजूदगी में मुरारी काका के घर के अंदर नहीं जाना चाहिए क्योंकि ऐसे में वहां मौजूद सभी लोगों के मन में ग़लत सोच पैदा हो सकती थी। जगन तो वैसे भी सबके सामने मुझसे कह ही चुका था कि मैं उसकी भतीजी अनुराधा को अपनी हवश का शिकार बनाना चाहता था और इसी लिए अपने रास्ते के कांटे मुरारी काका की हत्या कर दी है।
"मुझे माफ़ कर दो जगन काका क्योंकि मैंने तुम पर हाथ उठाया था उस समय।" फिर मैंने जगन के सामने जा कर उससे कहा____"हालाँकि जिस तरह का आरोप तुमने मुझ पर लगाया था और जिस तरीके से मेरे चरित्र को उछाला था उस तरह में मेरी जगह कोई भी होता तो वो तुम पर ऐसे ही हाथ उठा देता।"
मेरी बातें सुन कर जगन कुछ न बोला। वहां पर मौजूद लोगों में से भी कोई कुछ न बोला। वो इस तरह अपनी अपनी जगह पर खड़े हुए थे जैसे उन्हें डर हो कि अगर वो मेरे सामने इस तरह खड़े न रहेंगे तो मैं उन सबका खून कर दूंगा।
"मैं मानता हूं जगन काका कि मेरा चरित्र अब से पहले अच्छा नहीं था।" जगन के साथ साथ सभी को ख़ामोश देख मैंने फिर से कहा____"और मैं ये भी मानता हूं कि मैंने अब से पहले गांव की न जाने कितनी ही बहू बेटियों की इज्जत के साथ खेला है मगर अब ऐसा नहीं रहा मैं। मैं जानता हूं कि अगर मैं ये बात अपना सर पटक पटक के भी कहूंगा तो तुम लोग मेरी बात का यकीन नहीं करोगे मगर तुम्हारे यकीन न करने से ना तो सच्चाई बदल जाएगी और ना ही मुझ पर कोई फ़र्क पड़ेगा।"
इतना कहने के बाद मैं सांस लेने के लिए रुका। मेरे चुप होते ही वातावरण में ख़ामोशी छा गई। सभी के चेहरों पर ऐसे भाव उभर आये थे जैसे अब वो मेरे आगे बोलने का शिद्दत से इंतज़ार करने लगे हों।
"ग़लतियां हर इंसान से होती हैं।" सबकी तरफ एक एक नज़र डालते हुए मैंने कहा____"इस धरती पर कोई भगवान नहीं है जिससे कभी कोई ग़लती ही न हो। मुझसे बहुत सी गलतियां हुईं जिसके लिए आज मुझे कुछ ही सही मगर पछतावा ज़रूर है। मेरे पिता ने मुझे उन्हीं गलतियों की वजह से गांव से निष्कासित किया और आज मैं पिछले चार महीने से यहाँ हूं। इन चार महीनों में अगर मैंने किसी की बहू बेटी की इज्ज़त ख़राब की हो तो बेझिझक तुम लोग मेरा सर काट डालो।"
अपनी बात कहने के बाद मैंने सबकी तरफ देखा। वहां मौजूद सभी लोग एक दूसरे की तरफ ऐसे देखने लगे थे जैसे आँखों से ही एक दूसरे से पूछ रहे हों कि तुम में से क्या किसी की बहू बेटी के साथ इस ठाकुर के लड़के ने कुछ किया है? आँखों से पूछे गए सवाल का जवाब भी आँखों से ही मिल गया उन्हें।
"तुमने मुझ पर इल्ज़ाम लगाया था जगन काका कि मैं तुम्हारी भतीजी अनुराधा को अपनी हवश का शिकार बनाना चाहता हूं।" मैंने जगन की तरफ देखते हुए कहा____"अगर सच में ऐसा होता तो क्या अब तक तुम्हारी भतीजी मेरा शिकार न हो गई होती? जब अब तक किसी ने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ लिया था तो तुम्हारी भतीजी का जब मैं शिकार कर लेता तो तुम में से कोई मेरा क्या बिगाड़ लेता? इस पर भी अगर तुम्हें यकीन नहीं है तो जा कर अपनी भतीजी से पूछ लो काका। चार महीने से मैं इस घर में आता जाता हूं और इन चार महीनों में अगर मैंने कभी भी तुम्हारी भतीजी को ग़लत नज़र से देखा हो तो वो तुम्हें ज़रूर बताएगी और फिर तुम मेरा सर काटने के लिए आज़ाद हो।"
मेरी इन बातों को सुन कर जगन ने एक गहरी सांस ली। उसके चेहरे पर बेचैनी जैसे भाव उभरे। उसने नज़र उठा कर वहां मौजूद सभी लोगों को देखा और फिर मेरी तरफ ख़ामोशी से देखने लगा।
"मुरारी काका मेरे लिए किसी फ़रिश्ते से कम नहीं थे जगन काका।" मैंने जगन काका के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा____"मेरे बुरे वक़्त में सिर्फ उन्होंने ही मेरा साथ दिया था। उनके घर का नमक खाया है मैंने। मेरे दिल में उनके लिए मरते दम तक जगह रहेगी। जिस इंसान ने मेरे लिए इतना कुछ किया उस इंसान की अगर मैं हत्या करुंगा तो मुझे नरक में भी जगह नहीं मिलेगी। हवश ने मुझे इतना भी अँधा नहीं कर दिया है कि मैं अपने ही फ़रिश्ते की बेरहमी से हत्या कर दूं।"
"मुझे छोटे ठाकुर पर विश्वास है जगन।" वहां मौजूद लोगों में से एक आदमी ने जगन से कहा____"इन्होंने सच में मुरारी की हत्या नहीं की है और ना ही तुम्हारी भतीजी पर इनकी नीयत ग़लत है। अगर ऐसा होता तो तुम्हारी भतीजी खुद सबको बताती कि इन्होंने उसके साथ ग़लत किया है।"
"मैं किशोर की बातों से सहमत हूं जगन।" एक दूसरे आदमी ने कहा____"छोटे ठाकुर ने कुछ नहीं किया है। तुमने बेवजह ही इन पर इतने गंभीर आरोप लगाये थे।"
एक के बाद एक आदमी जगन से यही सब कहने लगा था जिसे सुन कर जगन ने फिर से एक गहरी सांस ली। उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि उसे भी ये बात समझ आ गई थी कि मैं वैसा नहीं हूं जैसा वो समझ रहा था।
"मुझे माफ़ कर दो छोटे ठाकुर।" फिर जगन ने हाथ जोड़ते हुए कहा____"मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई जो मैंने तुम पर ये इल्ज़ाम लगाये थे। मुझे माफ़ कर दो।"
"माफी मांगने की कोई ज़रूरत नहीं है जगन काका।" मैंने जगन काका के जुड़े हुए हाथों को पकड़ते हुए कहा____"क्योंकि तुमने वही किया है जो ऐसे वक़्त में और ऐसी परिस्थिति में करना चाहिए था। ख़ैर छोड़ो ये सब। मैं यहाँ ये बताने आया था कि अब से मेरा वनवास ख़त्म हो गया है और अब से मैं अपने घर में ही रहूंगा किन्तु मैं ये वादा करता हूं कि जिस किसी ने भी मुरारी काका की हत्या की है उसका पता मैं लगा के रहूंगा और फिर उसे सज़ा भी दूंगा।"
"छोटे ठाकुर।" जगन ने कहा____"मैं तो यही कहूंगा कि तुम अब इस झमेले में न पड़ो। क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी जान को कोई ख़तरा हो जाए। वैसे भी मेरा भाई तो अब चला ही गया है।"
"नहीं जगन काका।" मैंने दृढ़ता से कहा____"मुझे अपनी जान की कोई परवाह नहीं है। मेरे लिए अब ये जानना बेहद ज़रूरी हो गया है कि मुरारी काका की हत्या किसने और किस वजह से की है और बात सिर्फ इतनी ही नहीं है बल्कि मुझे लगता है कि जिस किसी ने भी मुरारी काका की हत्या की है उसी ने मेरी फसल भी जलाई है।"
"फसल जलाई है???" जगन तो चौंका ही था किन्तु मेरी ये बात सुन कर वहां मौजूद बाकी लोग भी बुरी तरह चौंका थे, जबकि जगन ने हैरानी से कहा____"ये तुम क्या कह रहे हो छोटे ठाकुर? तुम्हारी फसल जला दिया किसी ने??"
"हां काका।" मैंने गंभीरता से कहा____"आज सुबह जब मैं यहाँ से वापस अपने खेत की तरफ गया तो मैंने देखा कि गेहू की पुल्लियों का जो गड्ड बना के रखा था मैंने उसमे भीषण आग लगी हुई थी। अपनी मेहनत को जल कर राख होते देखता रह गया था मैं। भला मैं कैसे उस आग को बुझा सकता था? ख़ैर इतना कुछ होने के बाद अब ये सोचने का विषय हो गया है कि मेरी गेहू की फसल को आग किसने लगाईं और अगर किसी ने ये सब मुझसे अपनी दुश्मनी निकालने की वजह से किया है तो उसने फसल को ही क्यों जलाया? वो अपनी दुश्मनी मुझसे भी तो निकाल सकता था?"
"बड़ी हैरत की बात है छोटे ठाकुर।" जगन ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"भला ऐसा कौन कर सकता है?"
"यही तो पता करना है काका।" मैंने शख़्त भाव से कहा____"एक तरफ मुरारी काका की हत्या का मामला और दूसरी तरफ मेरी फसल को जला देने का मामला। ये दोनों ही मामले ऐसे हैं जिनके बारे में फिलहाल कुछ भी समझ में नहीं आ रहा कि ऐसा किसी ने क्यों किया है?"
जगन काका से थोड़ी देर और कुछ बातें करने के बाद मैं घर के अंदर की तरफ दाखिल हो गया। मैंने महसूस कर लिया था कि जगन काका के ज़हन में जो मेरे प्रति नाराज़गी थी वो काफी हद तक दूर हो चुकी थी। हालांकि मेरे ज़हन में ये ख़याल अब भी उभरता था कि मुरारी काका की हत्या क्या जगन ने की होगी? माना कि दोनों भाइयों के बीच कोई मन मुटाव या बैर जैसी भावना नहीं थी किन्तु कोई अपने अंदर कैसी भावना छुपाये बैठा है इसका पता किसी को कैसे चल सकता है? कहने का मतलब ये कि हो सकता है कि जगन के मन में अपने बड़े भाई की ज़मीन हड़पने का इरादा पहले से ही रहा हो जिसके लिए उसने अवसर देख कर अपने भाई की हत्या कर दी और हत्या के इस मामले में मुझे बड़ी सफाई से फंसा दिया हो।
अगर सोचा जाए तो ये ख़याल अपनी जगह तर्क संगत ही था। ज़र जोरु और ज़मीन होती ही ऐसी है जिसके लिए इंसान कुछ भी कर सकता है। जगन के लिए ये सुनहरा अवसर था अपने भाई की हत्या करने का और अपने भाई की हत्या में मुझे फंसा देने का। उसे अच्छी तरह पता था कि मैं कैसा आदमी हूं और आज कल कैसे हालात में हूं। उसे ये भी पता था कि मुरारी काका से मेरा गहरा ताल्लुक बन गया था और मेरा उनके घर आना जाना भी था। मेरे चरित्र का फायदा उठा कर ही उसने अपने भाई की हत्या की होगी और उस हत्या का इल्ज़ाम मेरे सर मढ़ दिया होगा।
मेरे मन में ये ख़याल अक्सर उभर आते थे लेकिन मेरे पास कोई प्रमाण नहीं था कि मैं अपने इस ख़याल को सही साबित कर सकूं। ख़ैर ये तो अब आने वाला वक़्त ही बताएगा कि मुरारी काका की हत्या से किसे फायदा होने वाला है। मैं यही सब सोचते हुए घर के अंदर आया तो देखा सरोज काकी अंदर वाले भाग के बरामदे के पास बैठी थी। उसके साथ गांव की कुछ औरतें भी बैठी हुईं थी। अनुराधा मुझे कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। ख़ैर मैं जब अंदर पहुंचा तो सरोज काकी के साथ साथ उन औरतों ने भी मेरी तरफ देखा।
"काकी अब से मैं अपने घर में ही रहूंगा।" मैंने कुछ देर उन सबको देखने के बाद सरोज काकी से कहा____"कल पिता जी आये थे और आज माँ और बड़ा भाई आया था। माँ ने अपनी क़सम दे कर मुझे घर लौटने के लिए मजबूर कर दिया है इस लिए आज शाम को मैं चला जाऊंगा लेकिन मैं यहाँ आता रहूंगा। मुरारी काका के बड़े उपकार हैं मुझ पर इस लिए मैं ये पता लगा के रहूंगा कि उनकी हत्या किसने और किस वजह से की है?"
"मैं तो अब भी यही कहती हूं बेटा कि तुम इस झमेले में मत पड़ो।" सरोज काकी ने गंभीर भाव से कहा____"मेरा मरद तो चला ही गया है। क्या हत्यारे का पता लगा लेने से वो मुझे वापस मिल जायेगा?"
"ये तुम कैसी बातें करती हो काकी?" मैंने बाकी औरतों की तरफ देखने के बाद काकी से कहा____"माना कि मुरारी काका अब कभी वापस नहीं मिलेंगे मगर ये जानना तो हम सबका हक़ है कि उनकी हत्या किसने की है? स्वर्ग में बैठे मुरारी काका भी यही चाहते होंगे कि उनके हत्यारे का पता लगाया जाए और उसे सज़ा दी जाए। अगर ऐसा न हुआ तो उनकी आत्मा को शान्ति नहीं मिलेगी। मैं खुद भी तब तक चैन से नहीं बैठूंगा जब तक कि काका के हत्यारे का पता नहीं लगा लेता। क्योंकि मुरारी काका की हत्या से मैं खुद को भी कहीं न कहीं अपराधी मानता हूं। क्या पता किसी ने मुझसे अपनी दुश्मनी निकालने के लिए ही मुरारी काका की इस तरह से जान ले ली हो। इस लिए मैं इस सबका पता लगा के ही रहूंगा।"
सरोज काकी मेरी तरफ उदास नज़रों से देखती रही। उसके पास बैठी बाकी औरतें भी ख़ामोशी से मेरी बातें सुन रही थी। तभी मेरी नज़र अनुराधा पर पड़ी। वो अभी अभी एक कमरे से निकल कर बाहर आई थी। उसने एक नज़र मेरी तरफ देखा और फिर चुप चाप घर के पीछे की तरफ जाने के लिए जो दरवाज़ा था उस तरफ बढ़ गई।
"तुम्हेँ पता है काकी।" मैंने काकी से कहा____"आज सुबह जब मैं यहाँ से अपने खेत की तरफ गया तो देखा कि खेत में मेरी गेहू की फसल में आग लगी हुई थी। सारी की सारी फसल जल कर राख हो गई।"
"ये तुम क्या कह रहे हो बेटा?" सरोज के साथ साथ बाकी औरतें भी मेरी बात सुन कर हैरानी से मेरी तरफ देखने लगीं थी।
"हां काकी।" मैंने कहा____"इतनी मेहनत से मैंने जिस फसल को उगाया था उसे किसी ने आग लगा दी और मैं कुछ नहीं कर सका। तुम खुद सोचो काकी कि ऐसा किसी ने क्यों किया होगा? मुरारी काका की हत्या होना और मेरी फसल को आग लगा देना ये दोनों मामले साथ साथ हुए हैं। मतलब साफ़ है कि दोनों मामलों का आपस में सम्बद्ध है और इन दोनों मामलों को जन्म देने वाला कोई एक ही इंसान है। ख़ैर अपनी फसल के जल जाने का मुझे इतना दुःख नहीं है मगर मुरारी काका की हत्या जिस किसी ने भी की है उसे मैं पाताल से भी खोज निकालूँगा और फिर उसे ऐसी सज़ा दूंगा कि उसके फ़रिश्ते भी थर्रा जाएंगे।"
मैं ये सब कहने के बाद पलटा और घर से बाहर निकल कर अपने झोपड़े की तरफ चल दिया। आसमान में चमकता हुआ सूरज पश्चिम दिशा की तरफ पहुंच चुका था और कुछ ही देर में शाम हो जानी थी। ये देख कर मुझे याद आया कि आज शाम को मुझे अपने घर जाना है। घर जाने की बात याद आते ही मेरे मन में एक अजीब सा एहसास होने लगा और साथ ही ज़हन में ये ख़याल भी उभर आये कि घर में पिता जी से जब मेरा सामना होगा तब वो क्या कहेंगे मुझे? मैंने उस दिन गुस्से में भाभी को दुत्कार दिया था तो क्या वो मुझसे गुस्सा होंगी? ऐसे कई सारे ख़याल मेरे मन में उभर रहे थे और मेरे अंदर अजीब सा एहसास जगा रहे थे।
फागुन का महीना चल रहा था और कल होली का त्यौहार है। मैं सोचने लगा कि इस साल की ये होली मुरारी काका के घर वालों के भाग्य में नहीं थी। मुझे याद आया कि हर साल मैं अपने दोस्तों के साथ होली के इस त्यौहार को अपने तरीके से मनाता था। भांग के नशे में गांव की कुछ लड़कियों को मैं उठवा लेता था और गांव से दूर खेतों में बने अपने मकान में ले जा कर उनके मज़े लेता था। ऐसा नहीं था कि मैं हर किसी पर जुल्म करता था बल्कि बहुत सी ऐसी भी होतीं थी जो अपनी ख़ुशी से मेरे साथ सम्भोग करतीं थी क्योंकि मैं उन्हें संतुष्ट भी करता था और पैसे से उनकी मदद भी करता था। इस बार का ये त्यौहार मेरे लिए एक नए रूप में था और मैं खुद भी एक नए रूप में था।
मैंने एक थैले में अपने कपड़े समेट कर डाले और घर जाने के लिए तैयार हो गया। मेरा मन ज़रा भी नहीं कर रहा था कि मैं यहाँ से घर जाऊं। इस जगह से एक लगाव हो गया था और इस जगह पर कई सारी यादें बन गईं थी। इस जगह पर मुरारी काका जैसे इंसान ने बुरे वक़्त में मेरा साथ दिया था। इस जगह पर सरोज काकी ने मुझे जिस्मानी सुख दिया था और इसी जगह पर मैंने अपने बुरे वक़्त में जीवन का असली रंग देखा था। अनुराधा जैसी एक आम सी लड़की ने बिना कुछ किये ही मेरी मानसिकता को बदल दिया था। मुझे एक बार फिर से याद आ गया कि मुरारी काका ने पिछले दिन मुझसे अपनी बेटी अनुराधा का हाथ थाम लेने की बात कही थी। मेरे मन में तरह तरह के विचार चलने लगे। क्या मैं सरोज काकी और उसके बच्चों को ऐसे ही छोड़ कर चला जाऊंगा? क्या मैं मुरारी काका के उपकारों को भूल कर ऐसे ही यहाँ से चला जाऊंगा? नहीं, मैं ऐसे नहीं जाऊंगा बल्कि मुरारी काका के उपकारों का बदला ज़रूर चुकाऊंगा।
जाने कितनी ही देर तक मैं ये सब सोचता रहा। सूर्य अपने वजूद पर लालिमा चढ़ाये पश्चिम दिशा में उतर चुका था। आस पास कोई नहीं था बस हवा चलने की आवाज़ें ही सुनाई दे रहीं थी। मेरे मन में बहुत सी बातें इस जगह के लिए पनप चुकी थी और मैंने एक फैसला कर लिया था।
अपना सामान एक थैले में भर कर मैं झोपड़े से बाहर निकला और एक बार खेत के उस हिस्से की तरफ देखा जहां पर मेरी फसल का जली हुई राख के रूप में ढेर पड़ा था। कुछ देर उस राख के ढेर को देखने के बाद मैं खेत की तरफ बढ़ गया। खेत के पास आ कर मैंने उस खेत की ज़मीन पर अपना हाथ रखा और फिर उस हाथ को अपने माथे पर लगा कर मैंने उस ज़मीन को प्रणाम किया।
खेत की उस ज़मीन को प्रणाम करने के बाद मैं उठा और पलट कर चल दिया। अभी मैं झोपड़े के करीब ही पंहुचा था कि मेरी नज़र सामने से आती हुई एक बग्घी पर पड़ी। उस बग्घी में पिता जी का एक आदमी बैठा हुआ था। मेरे मन में ख़याल उभरा कि शायद ये बग्घी माँ ने मुझे लाने के लिए भेजी होगी।
"प्रणाम छोटे ठाकुर।" बग्घी मेरे पास आई तो बग्घी चला रहे उस आदमी ने मुझसे बड़े अदब से कहा____"ठाकुर साहब ने आपको लाने के लिए मुझे भेजा है।"
"इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी काका।" मैंने सपाट लहजे में कहा____"ईश्वर ने मुझे दो पैर दिए हैं जो कि अभी सही सलामत हैं। इस लिए मैं पैदल ही घर आ जाता।"
"ऐसा कैसे हो सकता है छोटे ठाकुर?" उस आदमी ने कहा_____"ख़ैर छोड़िये, लाइए ये थैला मुझे दीजिए।"
बग्घी से उतर कर वो आदमी मेरे पास आया और थैला लेने के लिए मेरी तरफ अपना हाथ बढ़ाया तो मैंने उसे ख़ामोशी से थैला दे दिया जिसे ले कर वो एक तरफ हट गया। मैं जब बग्घी में बैठ गया तो वो आदमी भी आगे बैठ गया और फिर उसने घोड़ों की लगाम को हरकत दी तो घोड़े आवाज़ करते हुए चल दिए।
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Accha update tha bhai.☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 08
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अब तक,,,,
मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर मुझे मुरारी के हत्यारे का पता लगाना है तो मुझे खुद पुलिस के दरोगा की तरह इस मामले की छानबीन करनी होगी। आख़िर मुझे भी तो इस हत्या से अपने ऊपर लगे इल्ज़ाम को हटाना था। इस ख़याल के साथ ही मैं एक झटके में उठा और झोपड़े से बाहर निकल आया। बाहर आ कर मैंने झोपड़े के पास ही रखे अपने लट्ठ को उठाया और मुरारी काका के घर की तरफ चल पड़ा। मैंने सोच लिया था कि हत्या के इस मामले की मैं खुद बारीकी से जांच करुंगा।
मुरारी काका के घर के सामने पेड़ के नीचे बने एक चबूतरे पर कुछ लोग बैठे बातें कर रहे थे। उन लोगों के साथ मुरारी काका का छोटा भाई जगन भी था। मुझे देख कर सब के सब चुप हो गए और चबूतरे से उतर कर ज़मीन पर खड़े हो गए। जगन की नज़र मुझ पर पड़ी तो उसने घूर कर देखा मुझे।
अब आगे,,,,,
जगन को अपनी तरफ इस तरह घूरते देख कर मेरे ज़हन में ये बात आई कि मुझे इस तरह सबकी मौजूदगी में मुरारी काका के घर के अंदर नहीं जाना चाहिए क्योंकि ऐसे में वहां मौजूद सभी लोगों के मन में ग़लत सोच पैदा हो सकती थी। जगन तो वैसे भी सबके सामने मुझसे कह ही चुका था कि मैं उसकी भतीजी अनुराधा को अपनी हवश का शिकार बनाना चाहता था और इसी लिए अपने रास्ते के कांटे मुरारी काका की हत्या कर दी है।
"मुझे माफ़ कर दो जगन काका क्योंकि मैंने तुम पर हाथ उठाया था उस समय।" फिर मैंने जगन के सामने जा कर उससे कहा____"हालाँकि जिस तरह का आरोप तुमने मुझ पर लगाया था और जिस तरीके से मेरे चरित्र को उछाला था उस तरह में मेरी जगह कोई भी होता तो वो तुम पर ऐसे ही हाथ उठा देता।"
मेरी बातें सुन कर जगन कुछ न बोला। वहां पर मौजूद लोगों में से भी कोई कुछ न बोला। वो इस तरह अपनी अपनी जगह पर खड़े हुए थे जैसे उन्हें डर हो कि अगर वो मेरे सामने इस तरह खड़े न रहेंगे तो मैं उन सबका खून कर दूंगा।
"मैं मानता हूं जगन काका कि मेरा चरित्र अब से पहले अच्छा नहीं था।" जगन के साथ साथ सभी को ख़ामोश देख मैंने फिर से कहा____"और मैं ये भी मानता हूं कि मैंने अब से पहले गांव की न जाने कितनी ही बहू बेटियों की इज्जत के साथ खेला है मगर अब ऐसा नहीं रहा मैं। मैं जानता हूं कि अगर मैं ये बात अपना सर पटक पटक के भी कहूंगा तो तुम लोग मेरी बात का यकीन नहीं करोगे मगर तुम्हारे यकीन न करने से ना तो सच्चाई बदल जाएगी और ना ही मुझ पर कोई फ़र्क पड़ेगा।"
इतना कहने के बाद मैं सांस लेने के लिए रुका। मेरे चुप होते ही वातावरण में ख़ामोशी छा गई। सभी के चेहरों पर ऐसे भाव उभर आये थे जैसे अब वो मेरे आगे बोलने का शिद्दत से इंतज़ार करने लगे हों।
"ग़लतियां हर इंसान से होती हैं।" सबकी तरफ एक एक नज़र डालते हुए मैंने कहा____"इस धरती पर कोई भगवान नहीं है जिससे कभी कोई ग़लती ही न हो। मुझसे बहुत सी गलतियां हुईं जिसके लिए आज मुझे कुछ ही सही मगर पछतावा ज़रूर है। मेरे पिता ने मुझे उन्हीं गलतियों की वजह से गांव से निष्कासित किया और आज मैं पिछले चार महीने से यहाँ हूं। इन चार महीनों में अगर मैंने किसी की बहू बेटी की इज्ज़त ख़राब की हो तो बेझिझक तुम लोग मेरा सर काट डालो।"
अपनी बात कहने के बाद मैंने सबकी तरफ देखा। वहां मौजूद सभी लोग एक दूसरे की तरफ ऐसे देखने लगे थे जैसे आँखों से ही एक दूसरे से पूछ रहे हों कि तुम में से क्या किसी की बहू बेटी के साथ इस ठाकुर के लड़के ने कुछ किया है? आँखों से पूछे गए सवाल का जवाब भी आँखों से ही मिल गया उन्हें।
"तुमने मुझ पर इल्ज़ाम लगाया था जगन काका कि मैं तुम्हारी भतीजी अनुराधा को अपनी हवश का शिकार बनाना चाहता हूं।" मैंने जगन की तरफ देखते हुए कहा____"अगर सच में ऐसा होता तो क्या अब तक तुम्हारी भतीजी मेरा शिकार न हो गई होती? जब अब तक किसी ने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ लिया था तो तुम्हारी भतीजी का जब मैं शिकार कर लेता तो तुम में से कोई मेरा क्या बिगाड़ लेता? इस पर भी अगर तुम्हें यकीन नहीं है तो जा कर अपनी भतीजी से पूछ लो काका। चार महीने से मैं इस घर में आता जाता हूं और इन चार महीनों में अगर मैंने कभी भी तुम्हारी भतीजी को ग़लत नज़र से देखा हो तो वो तुम्हें ज़रूर बताएगी और फिर तुम मेरा सर काटने के लिए आज़ाद हो।"
मेरी इन बातों को सुन कर जगन ने एक गहरी सांस ली। उसके चेहरे पर बेचैनी जैसे भाव उभरे। उसने नज़र उठा कर वहां मौजूद सभी लोगों को देखा और फिर मेरी तरफ ख़ामोशी से देखने लगा।
"मुरारी काका मेरे लिए किसी फ़रिश्ते से कम नहीं थे जगन काका।" मैंने जगन काका के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा____"मेरे बुरे वक़्त में सिर्फ उन्होंने ही मेरा साथ दिया था। उनके घर का नमक खाया है मैंने। मेरे दिल में उनके लिए मरते दम तक जगह रहेगी। जिस इंसान ने मेरे लिए इतना कुछ किया उस इंसान की अगर मैं हत्या करुंगा तो मुझे नरक में भी जगह नहीं मिलेगी। हवश ने मुझे इतना भी अँधा नहीं कर दिया है कि मैं अपने ही फ़रिश्ते की बेरहमी से हत्या कर दूं।"
"मुझे छोटे ठाकुर पर विश्वास है जगन।" वहां मौजूद लोगों में से एक आदमी ने जगन से कहा____"इन्होंने सच में मुरारी की हत्या नहीं की है और ना ही तुम्हारी भतीजी पर इनकी नीयत ग़लत है। अगर ऐसा होता तो तुम्हारी भतीजी खुद सबको बताती कि इन्होंने उसके साथ ग़लत किया है।"
"मैं किशोर की बातों से सहमत हूं जगन।" एक दूसरे आदमी ने कहा____"छोटे ठाकुर ने कुछ नहीं किया है। तुमने बेवजह ही इन पर इतने गंभीर आरोप लगाये थे।"
एक के बाद एक आदमी जगन से यही सब कहने लगा था जिसे सुन कर जगन ने फिर से एक गहरी सांस ली। उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि उसे भी ये बात समझ आ गई थी कि मैं वैसा नहीं हूं जैसा वो समझ रहा था।
"मुझे माफ़ कर दो छोटे ठाकुर।" फिर जगन ने हाथ जोड़ते हुए कहा____"मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई जो मैंने तुम पर ये इल्ज़ाम लगाये थे। मुझे माफ़ कर दो।"
"माफी मांगने की कोई ज़रूरत नहीं है जगन काका।" मैंने जगन काका के जुड़े हुए हाथों को पकड़ते हुए कहा____"क्योंकि तुमने वही किया है जो ऐसे वक़्त में और ऐसी परिस्थिति में करना चाहिए था। ख़ैर छोड़ो ये सब। मैं यहाँ ये बताने आया था कि अब से मेरा वनवास ख़त्म हो गया है और अब से मैं अपने घर में ही रहूंगा किन्तु मैं ये वादा करता हूं कि जिस किसी ने भी मुरारी काका की हत्या की है उसका पता मैं लगा के रहूंगा और फिर उसे सज़ा भी दूंगा।"
"छोटे ठाकुर।" जगन ने कहा____"मैं तो यही कहूंगा कि तुम अब इस झमेले में न पड़ो। क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी जान को कोई ख़तरा हो जाए। वैसे भी मेरा भाई तो अब चला ही गया है।"
"नहीं जगन काका।" मैंने दृढ़ता से कहा____"मुझे अपनी जान की कोई परवाह नहीं है। मेरे लिए अब ये जानना बेहद ज़रूरी हो गया है कि मुरारी काका की हत्या किसने और किस वजह से की है और बात सिर्फ इतनी ही नहीं है बल्कि मुझे लगता है कि जिस किसी ने भी मुरारी काका की हत्या की है उसी ने मेरी फसल भी जलाई है।"
"फसल जलाई है???" जगन तो चौंका ही था किन्तु मेरी ये बात सुन कर वहां मौजूद बाकी लोग भी बुरी तरह चौंका थे, जबकि जगन ने हैरानी से कहा____"ये तुम क्या कह रहे हो छोटे ठाकुर? तुम्हारी फसल जला दिया किसी ने??"
"हां काका।" मैंने गंभीरता से कहा____"आज सुबह जब मैं यहाँ से वापस अपने खेत की तरफ गया तो मैंने देखा कि गेहू की पुल्लियों का जो गड्ड बना के रखा था मैंने उसमे भीषण आग लगी हुई थी। अपनी मेहनत को जल कर राख होते देखता रह गया था मैं। भला मैं कैसे उस आग को बुझा सकता था? ख़ैर इतना कुछ होने के बाद अब ये सोचने का विषय हो गया है कि मेरी गेहू की फसल को आग किसने लगाईं और अगर किसी ने ये सब मुझसे अपनी दुश्मनी निकालने की वजह से किया है तो उसने फसल को ही क्यों जलाया? वो अपनी दुश्मनी मुझसे भी तो निकाल सकता था?"
"बड़ी हैरत की बात है छोटे ठाकुर।" जगन ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"भला ऐसा कौन कर सकता है?"
"यही तो पता करना है काका।" मैंने शख़्त भाव से कहा____"एक तरफ मुरारी काका की हत्या का मामला और दूसरी तरफ मेरी फसल को जला देने का मामला। ये दोनों ही मामले ऐसे हैं जिनके बारे में फिलहाल कुछ भी समझ में नहीं आ रहा कि ऐसा किसी ने क्यों किया है?"
जगन काका से थोड़ी देर और कुछ बातें करने के बाद मैं घर के अंदर की तरफ दाखिल हो गया। मैंने महसूस कर लिया था कि जगन काका के ज़हन में जो मेरे प्रति नाराज़गी थी वो काफी हद तक दूर हो चुकी थी। हालांकि मेरे ज़हन में ये ख़याल अब भी उभरता था कि मुरारी काका की हत्या क्या जगन ने की होगी? माना कि दोनों भाइयों के बीच कोई मन मुटाव या बैर जैसी भावना नहीं थी किन्तु कोई अपने अंदर कैसी भावना छुपाये बैठा है इसका पता किसी को कैसे चल सकता है? कहने का मतलब ये कि हो सकता है कि जगन के मन में अपने बड़े भाई की ज़मीन हड़पने का इरादा पहले से ही रहा हो जिसके लिए उसने अवसर देख कर अपने भाई की हत्या कर दी और हत्या के इस मामले में मुझे बड़ी सफाई से फंसा दिया हो।
अगर सोचा जाए तो ये ख़याल अपनी जगह तर्क संगत ही था। ज़र जोरु और ज़मीन होती ही ऐसी है जिसके लिए इंसान कुछ भी कर सकता है। जगन के लिए ये सुनहरा अवसर था अपने भाई की हत्या करने का और अपने भाई की हत्या में मुझे फंसा देने का। उसे अच्छी तरह पता था कि मैं कैसा आदमी हूं और आज कल कैसे हालात में हूं। उसे ये भी पता था कि मुरारी काका से मेरा गहरा ताल्लुक बन गया था और मेरा उनके घर आना जाना भी था। मेरे चरित्र का फायदा उठा कर ही उसने अपने भाई की हत्या की होगी और उस हत्या का इल्ज़ाम मेरे सर मढ़ दिया होगा।
मेरे मन में ये ख़याल अक्सर उभर आते थे लेकिन मेरे पास कोई प्रमाण नहीं था कि मैं अपने इस ख़याल को सही साबित कर सकूं। ख़ैर ये तो अब आने वाला वक़्त ही बताएगा कि मुरारी काका की हत्या से किसे फायदा होने वाला है। मैं यही सब सोचते हुए घर के अंदर आया तो देखा सरोज काकी अंदर वाले भाग के बरामदे के पास बैठी थी। उसके साथ गांव की कुछ औरतें भी बैठी हुईं थी। अनुराधा मुझे कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। ख़ैर मैं जब अंदर पहुंचा तो सरोज काकी के साथ साथ उन औरतों ने भी मेरी तरफ देखा।
"काकी अब से मैं अपने घर में ही रहूंगा।" मैंने कुछ देर उन सबको देखने के बाद सरोज काकी से कहा____"कल पिता जी आये थे और आज माँ और बड़ा भाई आया था। माँ ने अपनी क़सम दे कर मुझे घर लौटने के लिए मजबूर कर दिया है इस लिए आज शाम को मैं चला जाऊंगा लेकिन मैं यहाँ आता रहूंगा। मुरारी काका के बड़े उपकार हैं मुझ पर इस लिए मैं ये पता लगा के रहूंगा कि उनकी हत्या किसने और किस वजह से की है?"
"मैं तो अब भी यही कहती हूं बेटा कि तुम इस झमेले में मत पड़ो।" सरोज काकी ने गंभीर भाव से कहा____"मेरा मरद तो चला ही गया है। क्या हत्यारे का पता लगा लेने से वो मुझे वापस मिल जायेगा?"
"ये तुम कैसी बातें करती हो काकी?" मैंने बाकी औरतों की तरफ देखने के बाद काकी से कहा____"माना कि मुरारी काका अब कभी वापस नहीं मिलेंगे मगर ये जानना तो हम सबका हक़ है कि उनकी हत्या किसने की है? स्वर्ग में बैठे मुरारी काका भी यही चाहते होंगे कि उनके हत्यारे का पता लगाया जाए और उसे सज़ा दी जाए। अगर ऐसा न हुआ तो उनकी आत्मा को शान्ति नहीं मिलेगी। मैं खुद भी तब तक चैन से नहीं बैठूंगा जब तक कि काका के हत्यारे का पता नहीं लगा लेता। क्योंकि मुरारी काका की हत्या से मैं खुद को भी कहीं न कहीं अपराधी मानता हूं। क्या पता किसी ने मुझसे अपनी दुश्मनी निकालने के लिए ही मुरारी काका की इस तरह से जान ले ली हो। इस लिए मैं इस सबका पता लगा के ही रहूंगा।"
सरोज काकी मेरी तरफ उदास नज़रों से देखती रही। उसके पास बैठी बाकी औरतें भी ख़ामोशी से मेरी बातें सुन रही थी। तभी मेरी नज़र अनुराधा पर पड़ी। वो अभी अभी एक कमरे से निकल कर बाहर आई थी। उसने एक नज़र मेरी तरफ देखा और फिर चुप चाप घर के पीछे की तरफ जाने के लिए जो दरवाज़ा था उस तरफ बढ़ गई।
"तुम्हेँ पता है काकी।" मैंने काकी से कहा____"आज सुबह जब मैं यहाँ से अपने खेत की तरफ गया तो देखा कि खेत में मेरी गेहू की फसल में आग लगी हुई थी। सारी की सारी फसल जल कर राख हो गई।"
"ये तुम क्या कह रहे हो बेटा?" सरोज के साथ साथ बाकी औरतें भी मेरी बात सुन कर हैरानी से मेरी तरफ देखने लगीं थी।
"हां काकी।" मैंने कहा____"इतनी मेहनत से मैंने जिस फसल को उगाया था उसे किसी ने आग लगा दी और मैं कुछ नहीं कर सका। तुम खुद सोचो काकी कि ऐसा किसी ने क्यों किया होगा? मुरारी काका की हत्या होना और मेरी फसल को आग लगा देना ये दोनों मामले साथ साथ हुए हैं। मतलब साफ़ है कि दोनों मामलों का आपस में सम्बद्ध है और इन दोनों मामलों को जन्म देने वाला कोई एक ही इंसान है। ख़ैर अपनी फसल के जल जाने का मुझे इतना दुःख नहीं है मगर मुरारी काका की हत्या जिस किसी ने भी की है उसे मैं पाताल से भी खोज निकालूँगा और फिर उसे ऐसी सज़ा दूंगा कि उसके फ़रिश्ते भी थर्रा जाएंगे।"
मैं ये सब कहने के बाद पलटा और घर से बाहर निकल कर अपने झोपड़े की तरफ चल दिया। आसमान में चमकता हुआ सूरज पश्चिम दिशा की तरफ पहुंच चुका था और कुछ ही देर में शाम हो जानी थी। ये देख कर मुझे याद आया कि आज शाम को मुझे अपने घर जाना है। घर जाने की बात याद आते ही मेरे मन में एक अजीब सा एहसास होने लगा और साथ ही ज़हन में ये ख़याल भी उभर आये कि घर में पिता जी से जब मेरा सामना होगा तब वो क्या कहेंगे मुझे? मैंने उस दिन गुस्से में भाभी को दुत्कार दिया था तो क्या वो मुझसे गुस्सा होंगी? ऐसे कई सारे ख़याल मेरे मन में उभर रहे थे और मेरे अंदर अजीब सा एहसास जगा रहे थे।
फागुन का महीना चल रहा था और कल होली का त्यौहार है। मैं सोचने लगा कि इस साल की ये होली मुरारी काका के घर वालों के भाग्य में नहीं थी। मुझे याद आया कि हर साल मैं अपने दोस्तों के साथ होली के इस त्यौहार को अपने तरीके से मनाता था। भांग के नशे में गांव की कुछ लड़कियों को मैं उठवा लेता था और गांव से दूर खेतों में बने अपने मकान में ले जा कर उनके मज़े लेता था। ऐसा नहीं था कि मैं हर किसी पर जुल्म करता था बल्कि बहुत सी ऐसी भी होतीं थी जो अपनी ख़ुशी से मेरे साथ सम्भोग करतीं थी क्योंकि मैं उन्हें संतुष्ट भी करता था और पैसे से उनकी मदद भी करता था। इस बार का ये त्यौहार मेरे लिए एक नए रूप में था और मैं खुद भी एक नए रूप में था।
मैंने एक थैले में अपने कपड़े समेट कर डाले और घर जाने के लिए तैयार हो गया। मेरा मन ज़रा भी नहीं कर रहा था कि मैं यहाँ से घर जाऊं। इस जगह से एक लगाव हो गया था और इस जगह पर कई सारी यादें बन गईं थी। इस जगह पर मुरारी काका जैसे इंसान ने बुरे वक़्त में मेरा साथ दिया था। इस जगह पर सरोज काकी ने मुझे जिस्मानी सुख दिया था और इसी जगह पर मैंने अपने बुरे वक़्त में जीवन का असली रंग देखा था। अनुराधा जैसी एक आम सी लड़की ने बिना कुछ किये ही मेरी मानसिकता को बदल दिया था। मुझे एक बार फिर से याद आ गया कि मुरारी काका ने पिछले दिन मुझसे अपनी बेटी अनुराधा का हाथ थाम लेने की बात कही थी। मेरे मन में तरह तरह के विचार चलने लगे। क्या मैं सरोज काकी और उसके बच्चों को ऐसे ही छोड़ कर चला जाऊंगा? क्या मैं मुरारी काका के उपकारों को भूल कर ऐसे ही यहाँ से चला जाऊंगा? नहीं, मैं ऐसे नहीं जाऊंगा बल्कि मुरारी काका के उपकारों का बदला ज़रूर चुकाऊंगा।
जाने कितनी ही देर तक मैं ये सब सोचता रहा। सूर्य अपने वजूद पर लालिमा चढ़ाये पश्चिम दिशा में उतर चुका था। आस पास कोई नहीं था बस हवा चलने की आवाज़ें ही सुनाई दे रहीं थी। मेरे मन में बहुत सी बातें इस जगह के लिए पनप चुकी थी और मैंने एक फैसला कर लिया था।
अपना सामान एक थैले में भर कर मैं झोपड़े से बाहर निकला और एक बार खेत के उस हिस्से की तरफ देखा जहां पर मेरी फसल का जली हुई राख के रूप में ढेर पड़ा था। कुछ देर उस राख के ढेर को देखने के बाद मैं खेत की तरफ बढ़ गया। खेत के पास आ कर मैंने उस खेत की ज़मीन पर अपना हाथ रखा और फिर उस हाथ को अपने माथे पर लगा कर मैंने उस ज़मीन को प्रणाम किया।
खेत की उस ज़मीन को प्रणाम करने के बाद मैं उठा और पलट कर चल दिया। अभी मैं झोपड़े के करीब ही पंहुचा था कि मेरी नज़र सामने से आती हुई एक बग्घी पर पड़ी। उस बग्घी में पिता जी का एक आदमी बैठा हुआ था। मेरे मन में ख़याल उभरा कि शायद ये बग्घी माँ ने मुझे लाने के लिए भेजी होगी।
"प्रणाम छोटे ठाकुर।" बग्घी मेरे पास आई तो बग्घी चला रहे उस आदमी ने मुझसे बड़े अदब से कहा____"ठाकुर साहब ने आपको लाने के लिए मुझे भेजा है।"
"इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी काका।" मैंने सपाट लहजे में कहा____"ईश्वर ने मुझे दो पैर दिए हैं जो कि अभी सही सलामत हैं। इस लिए मैं पैदल ही घर आ जाता।"
"ऐसा कैसे हो सकता है छोटे ठाकुर?" उस आदमी ने कहा_____"ख़ैर छोड़िये, लाइए ये थैला मुझे दीजिए।"
बग्घी से उतर कर वो आदमी मेरे पास आया और थैला लेने के लिए मेरी तरफ अपना हाथ बढ़ाया तो मैंने उसे ख़ामोशी से थैला दे दिया जिसे ले कर वो एक तरफ हट गया। मैं जब बग्घी में बैठ गया तो वो आदमी भी आगे बैठ गया और फिर उसने घोड़ों की लगाम को हरकत दी तो घोड़े आवाज़ करते हुए चल दिए।
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lagta hai ab hero ke ander insaniyat aur pariwar ki ahmiyat jagane lagi hai,sath hi use power bhi mil raha hai to kuchh achha hi hoga..☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 08
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अब तक,,,,
मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर मुझे मुरारी के हत्यारे का पता लगाना है तो मुझे खुद पुलिस के दरोगा की तरह इस मामले की छानबीन करनी होगी। आख़िर मुझे भी तो इस हत्या से अपने ऊपर लगे इल्ज़ाम को हटाना था। इस ख़याल के साथ ही मैं एक झटके में उठा और झोपड़े से बाहर निकल आया। बाहर आ कर मैंने झोपड़े के पास ही रखे अपने लट्ठ को उठाया और मुरारी काका के घर की तरफ चल पड़ा। मैंने सोच लिया था कि हत्या के इस मामले की मैं खुद बारीकी से जांच करुंगा।
मुरारी काका के घर के सामने पेड़ के नीचे बने एक चबूतरे पर कुछ लोग बैठे बातें कर रहे थे। उन लोगों के साथ मुरारी काका का छोटा भाई जगन भी था। मुझे देख कर सब के सब चुप हो गए और चबूतरे से उतर कर ज़मीन पर खड़े हो गए। जगन की नज़र मुझ पर पड़ी तो उसने घूर कर देखा मुझे।
अब आगे,,,,,
जगन को अपनी तरफ इस तरह घूरते देख कर मेरे ज़हन में ये बात आई कि मुझे इस तरह सबकी मौजूदगी में मुरारी काका के घर के अंदर नहीं जाना चाहिए क्योंकि ऐसे में वहां मौजूद सभी लोगों के मन में ग़लत सोच पैदा हो सकती थी। जगन तो वैसे भी सबके सामने मुझसे कह ही चुका था कि मैं उसकी भतीजी अनुराधा को अपनी हवश का शिकार बनाना चाहता था और इसी लिए अपने रास्ते के कांटे मुरारी काका की हत्या कर दी है।
"मुझे माफ़ कर दो जगन काका क्योंकि मैंने तुम पर हाथ उठाया था उस समय।" फिर मैंने जगन के सामने जा कर उससे कहा____"हालाँकि जिस तरह का आरोप तुमने मुझ पर लगाया था और जिस तरीके से मेरे चरित्र को उछाला था उस तरह में मेरी जगह कोई भी होता तो वो तुम पर ऐसे ही हाथ उठा देता।"
मेरी बातें सुन कर जगन कुछ न बोला। वहां पर मौजूद लोगों में से भी कोई कुछ न बोला। वो इस तरह अपनी अपनी जगह पर खड़े हुए थे जैसे उन्हें डर हो कि अगर वो मेरे सामने इस तरह खड़े न रहेंगे तो मैं उन सबका खून कर दूंगा।
"मैं मानता हूं जगन काका कि मेरा चरित्र अब से पहले अच्छा नहीं था।" जगन के साथ साथ सभी को ख़ामोश देख मैंने फिर से कहा____"और मैं ये भी मानता हूं कि मैंने अब से पहले गांव की न जाने कितनी ही बहू बेटियों की इज्जत के साथ खेला है मगर अब ऐसा नहीं रहा मैं। मैं जानता हूं कि अगर मैं ये बात अपना सर पटक पटक के भी कहूंगा तो तुम लोग मेरी बात का यकीन नहीं करोगे मगर तुम्हारे यकीन न करने से ना तो सच्चाई बदल जाएगी और ना ही मुझ पर कोई फ़र्क पड़ेगा।"
इतना कहने के बाद मैं सांस लेने के लिए रुका। मेरे चुप होते ही वातावरण में ख़ामोशी छा गई। सभी के चेहरों पर ऐसे भाव उभर आये थे जैसे अब वो मेरे आगे बोलने का शिद्दत से इंतज़ार करने लगे हों।
"ग़लतियां हर इंसान से होती हैं।" सबकी तरफ एक एक नज़र डालते हुए मैंने कहा____"इस धरती पर कोई भगवान नहीं है जिससे कभी कोई ग़लती ही न हो। मुझसे बहुत सी गलतियां हुईं जिसके लिए आज मुझे कुछ ही सही मगर पछतावा ज़रूर है। मेरे पिता ने मुझे उन्हीं गलतियों की वजह से गांव से निष्कासित किया और आज मैं पिछले चार महीने से यहाँ हूं। इन चार महीनों में अगर मैंने किसी की बहू बेटी की इज्ज़त ख़राब की हो तो बेझिझक तुम लोग मेरा सर काट डालो।"
अपनी बात कहने के बाद मैंने सबकी तरफ देखा। वहां मौजूद सभी लोग एक दूसरे की तरफ ऐसे देखने लगे थे जैसे आँखों से ही एक दूसरे से पूछ रहे हों कि तुम में से क्या किसी की बहू बेटी के साथ इस ठाकुर के लड़के ने कुछ किया है? आँखों से पूछे गए सवाल का जवाब भी आँखों से ही मिल गया उन्हें।
"तुमने मुझ पर इल्ज़ाम लगाया था जगन काका कि मैं तुम्हारी भतीजी अनुराधा को अपनी हवश का शिकार बनाना चाहता हूं।" मैंने जगन की तरफ देखते हुए कहा____"अगर सच में ऐसा होता तो क्या अब तक तुम्हारी भतीजी मेरा शिकार न हो गई होती? जब अब तक किसी ने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ लिया था तो तुम्हारी भतीजी का जब मैं शिकार कर लेता तो तुम में से कोई मेरा क्या बिगाड़ लेता? इस पर भी अगर तुम्हें यकीन नहीं है तो जा कर अपनी भतीजी से पूछ लो काका। चार महीने से मैं इस घर में आता जाता हूं और इन चार महीनों में अगर मैंने कभी भी तुम्हारी भतीजी को ग़लत नज़र से देखा हो तो वो तुम्हें ज़रूर बताएगी और फिर तुम मेरा सर काटने के लिए आज़ाद हो।"
मेरी इन बातों को सुन कर जगन ने एक गहरी सांस ली। उसके चेहरे पर बेचैनी जैसे भाव उभरे। उसने नज़र उठा कर वहां मौजूद सभी लोगों को देखा और फिर मेरी तरफ ख़ामोशी से देखने लगा।
"मुरारी काका मेरे लिए किसी फ़रिश्ते से कम नहीं थे जगन काका।" मैंने जगन काका के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा____"मेरे बुरे वक़्त में सिर्फ उन्होंने ही मेरा साथ दिया था। उनके घर का नमक खाया है मैंने। मेरे दिल में उनके लिए मरते दम तक जगह रहेगी। जिस इंसान ने मेरे लिए इतना कुछ किया उस इंसान की अगर मैं हत्या करुंगा तो मुझे नरक में भी जगह नहीं मिलेगी। हवश ने मुझे इतना भी अँधा नहीं कर दिया है कि मैं अपने ही फ़रिश्ते की बेरहमी से हत्या कर दूं।"
"मुझे छोटे ठाकुर पर विश्वास है जगन।" वहां मौजूद लोगों में से एक आदमी ने जगन से कहा____"इन्होंने सच में मुरारी की हत्या नहीं की है और ना ही तुम्हारी भतीजी पर इनकी नीयत ग़लत है। अगर ऐसा होता तो तुम्हारी भतीजी खुद सबको बताती कि इन्होंने उसके साथ ग़लत किया है।"
"मैं किशोर की बातों से सहमत हूं जगन।" एक दूसरे आदमी ने कहा____"छोटे ठाकुर ने कुछ नहीं किया है। तुमने बेवजह ही इन पर इतने गंभीर आरोप लगाये थे।"
एक के बाद एक आदमी जगन से यही सब कहने लगा था जिसे सुन कर जगन ने फिर से एक गहरी सांस ली। उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि उसे भी ये बात समझ आ गई थी कि मैं वैसा नहीं हूं जैसा वो समझ रहा था।
"मुझे माफ़ कर दो छोटे ठाकुर।" फिर जगन ने हाथ जोड़ते हुए कहा____"मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई जो मैंने तुम पर ये इल्ज़ाम लगाये थे। मुझे माफ़ कर दो।"
"माफी मांगने की कोई ज़रूरत नहीं है जगन काका।" मैंने जगन काका के जुड़े हुए हाथों को पकड़ते हुए कहा____"क्योंकि तुमने वही किया है जो ऐसे वक़्त में और ऐसी परिस्थिति में करना चाहिए था। ख़ैर छोड़ो ये सब। मैं यहाँ ये बताने आया था कि अब से मेरा वनवास ख़त्म हो गया है और अब से मैं अपने घर में ही रहूंगा किन्तु मैं ये वादा करता हूं कि जिस किसी ने भी मुरारी काका की हत्या की है उसका पता मैं लगा के रहूंगा और फिर उसे सज़ा भी दूंगा।"
"छोटे ठाकुर।" जगन ने कहा____"मैं तो यही कहूंगा कि तुम अब इस झमेले में न पड़ो। क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी जान को कोई ख़तरा हो जाए। वैसे भी मेरा भाई तो अब चला ही गया है।"
"नहीं जगन काका।" मैंने दृढ़ता से कहा____"मुझे अपनी जान की कोई परवाह नहीं है। मेरे लिए अब ये जानना बेहद ज़रूरी हो गया है कि मुरारी काका की हत्या किसने और किस वजह से की है और बात सिर्फ इतनी ही नहीं है बल्कि मुझे लगता है कि जिस किसी ने भी मुरारी काका की हत्या की है उसी ने मेरी फसल भी जलाई है।"
"फसल जलाई है???" जगन तो चौंका ही था किन्तु मेरी ये बात सुन कर वहां मौजूद बाकी लोग भी बुरी तरह चौंका थे, जबकि जगन ने हैरानी से कहा____"ये तुम क्या कह रहे हो छोटे ठाकुर? तुम्हारी फसल जला दिया किसी ने??"
"हां काका।" मैंने गंभीरता से कहा____"आज सुबह जब मैं यहाँ से वापस अपने खेत की तरफ गया तो मैंने देखा कि गेहू की पुल्लियों का जो गड्ड बना के रखा था मैंने उसमे भीषण आग लगी हुई थी। अपनी मेहनत को जल कर राख होते देखता रह गया था मैं। भला मैं कैसे उस आग को बुझा सकता था? ख़ैर इतना कुछ होने के बाद अब ये सोचने का विषय हो गया है कि मेरी गेहू की फसल को आग किसने लगाईं और अगर किसी ने ये सब मुझसे अपनी दुश्मनी निकालने की वजह से किया है तो उसने फसल को ही क्यों जलाया? वो अपनी दुश्मनी मुझसे भी तो निकाल सकता था?"
"बड़ी हैरत की बात है छोटे ठाकुर।" जगन ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"भला ऐसा कौन कर सकता है?"
"यही तो पता करना है काका।" मैंने शख़्त भाव से कहा____"एक तरफ मुरारी काका की हत्या का मामला और दूसरी तरफ मेरी फसल को जला देने का मामला। ये दोनों ही मामले ऐसे हैं जिनके बारे में फिलहाल कुछ भी समझ में नहीं आ रहा कि ऐसा किसी ने क्यों किया है?"
जगन काका से थोड़ी देर और कुछ बातें करने के बाद मैं घर के अंदर की तरफ दाखिल हो गया। मैंने महसूस कर लिया था कि जगन काका के ज़हन में जो मेरे प्रति नाराज़गी थी वो काफी हद तक दूर हो चुकी थी। हालांकि मेरे ज़हन में ये ख़याल अब भी उभरता था कि मुरारी काका की हत्या क्या जगन ने की होगी? माना कि दोनों भाइयों के बीच कोई मन मुटाव या बैर जैसी भावना नहीं थी किन्तु कोई अपने अंदर कैसी भावना छुपाये बैठा है इसका पता किसी को कैसे चल सकता है? कहने का मतलब ये कि हो सकता है कि जगन के मन में अपने बड़े भाई की ज़मीन हड़पने का इरादा पहले से ही रहा हो जिसके लिए उसने अवसर देख कर अपने भाई की हत्या कर दी और हत्या के इस मामले में मुझे बड़ी सफाई से फंसा दिया हो।
अगर सोचा जाए तो ये ख़याल अपनी जगह तर्क संगत ही था। ज़र जोरु और ज़मीन होती ही ऐसी है जिसके लिए इंसान कुछ भी कर सकता है। जगन के लिए ये सुनहरा अवसर था अपने भाई की हत्या करने का और अपने भाई की हत्या में मुझे फंसा देने का। उसे अच्छी तरह पता था कि मैं कैसा आदमी हूं और आज कल कैसे हालात में हूं। उसे ये भी पता था कि मुरारी काका से मेरा गहरा ताल्लुक बन गया था और मेरा उनके घर आना जाना भी था। मेरे चरित्र का फायदा उठा कर ही उसने अपने भाई की हत्या की होगी और उस हत्या का इल्ज़ाम मेरे सर मढ़ दिया होगा।
मेरे मन में ये ख़याल अक्सर उभर आते थे लेकिन मेरे पास कोई प्रमाण नहीं था कि मैं अपने इस ख़याल को सही साबित कर सकूं। ख़ैर ये तो अब आने वाला वक़्त ही बताएगा कि मुरारी काका की हत्या से किसे फायदा होने वाला है। मैं यही सब सोचते हुए घर के अंदर आया तो देखा सरोज काकी अंदर वाले भाग के बरामदे के पास बैठी थी। उसके साथ गांव की कुछ औरतें भी बैठी हुईं थी। अनुराधा मुझे कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। ख़ैर मैं जब अंदर पहुंचा तो सरोज काकी के साथ साथ उन औरतों ने भी मेरी तरफ देखा।
"काकी अब से मैं अपने घर में ही रहूंगा।" मैंने कुछ देर उन सबको देखने के बाद सरोज काकी से कहा____"कल पिता जी आये थे और आज माँ और बड़ा भाई आया था। माँ ने अपनी क़सम दे कर मुझे घर लौटने के लिए मजबूर कर दिया है इस लिए आज शाम को मैं चला जाऊंगा लेकिन मैं यहाँ आता रहूंगा। मुरारी काका के बड़े उपकार हैं मुझ पर इस लिए मैं ये पता लगा के रहूंगा कि उनकी हत्या किसने और किस वजह से की है?"
"मैं तो अब भी यही कहती हूं बेटा कि तुम इस झमेले में मत पड़ो।" सरोज काकी ने गंभीर भाव से कहा____"मेरा मरद तो चला ही गया है। क्या हत्यारे का पता लगा लेने से वो मुझे वापस मिल जायेगा?"
"ये तुम कैसी बातें करती हो काकी?" मैंने बाकी औरतों की तरफ देखने के बाद काकी से कहा____"माना कि मुरारी काका अब कभी वापस नहीं मिलेंगे मगर ये जानना तो हम सबका हक़ है कि उनकी हत्या किसने की है? स्वर्ग में बैठे मुरारी काका भी यही चाहते होंगे कि उनके हत्यारे का पता लगाया जाए और उसे सज़ा दी जाए। अगर ऐसा न हुआ तो उनकी आत्मा को शान्ति नहीं मिलेगी। मैं खुद भी तब तक चैन से नहीं बैठूंगा जब तक कि काका के हत्यारे का पता नहीं लगा लेता। क्योंकि मुरारी काका की हत्या से मैं खुद को भी कहीं न कहीं अपराधी मानता हूं। क्या पता किसी ने मुझसे अपनी दुश्मनी निकालने के लिए ही मुरारी काका की इस तरह से जान ले ली हो। इस लिए मैं इस सबका पता लगा के ही रहूंगा।"
सरोज काकी मेरी तरफ उदास नज़रों से देखती रही। उसके पास बैठी बाकी औरतें भी ख़ामोशी से मेरी बातें सुन रही थी। तभी मेरी नज़र अनुराधा पर पड़ी। वो अभी अभी एक कमरे से निकल कर बाहर आई थी। उसने एक नज़र मेरी तरफ देखा और फिर चुप चाप घर के पीछे की तरफ जाने के लिए जो दरवाज़ा था उस तरफ बढ़ गई।
"तुम्हेँ पता है काकी।" मैंने काकी से कहा____"आज सुबह जब मैं यहाँ से अपने खेत की तरफ गया तो देखा कि खेत में मेरी गेहू की फसल में आग लगी हुई थी। सारी की सारी फसल जल कर राख हो गई।"
"ये तुम क्या कह रहे हो बेटा?" सरोज के साथ साथ बाकी औरतें भी मेरी बात सुन कर हैरानी से मेरी तरफ देखने लगीं थी।
"हां काकी।" मैंने कहा____"इतनी मेहनत से मैंने जिस फसल को उगाया था उसे किसी ने आग लगा दी और मैं कुछ नहीं कर सका। तुम खुद सोचो काकी कि ऐसा किसी ने क्यों किया होगा? मुरारी काका की हत्या होना और मेरी फसल को आग लगा देना ये दोनों मामले साथ साथ हुए हैं। मतलब साफ़ है कि दोनों मामलों का आपस में सम्बद्ध है और इन दोनों मामलों को जन्म देने वाला कोई एक ही इंसान है। ख़ैर अपनी फसल के जल जाने का मुझे इतना दुःख नहीं है मगर मुरारी काका की हत्या जिस किसी ने भी की है उसे मैं पाताल से भी खोज निकालूँगा और फिर उसे ऐसी सज़ा दूंगा कि उसके फ़रिश्ते भी थर्रा जाएंगे।"
मैं ये सब कहने के बाद पलटा और घर से बाहर निकल कर अपने झोपड़े की तरफ चल दिया। आसमान में चमकता हुआ सूरज पश्चिम दिशा की तरफ पहुंच चुका था और कुछ ही देर में शाम हो जानी थी। ये देख कर मुझे याद आया कि आज शाम को मुझे अपने घर जाना है। घर जाने की बात याद आते ही मेरे मन में एक अजीब सा एहसास होने लगा और साथ ही ज़हन में ये ख़याल भी उभर आये कि घर में पिता जी से जब मेरा सामना होगा तब वो क्या कहेंगे मुझे? मैंने उस दिन गुस्से में भाभी को दुत्कार दिया था तो क्या वो मुझसे गुस्सा होंगी? ऐसे कई सारे ख़याल मेरे मन में उभर रहे थे और मेरे अंदर अजीब सा एहसास जगा रहे थे।
फागुन का महीना चल रहा था और कल होली का त्यौहार है। मैं सोचने लगा कि इस साल की ये होली मुरारी काका के घर वालों के भाग्य में नहीं थी। मुझे याद आया कि हर साल मैं अपने दोस्तों के साथ होली के इस त्यौहार को अपने तरीके से मनाता था। भांग के नशे में गांव की कुछ लड़कियों को मैं उठवा लेता था और गांव से दूर खेतों में बने अपने मकान में ले जा कर उनके मज़े लेता था। ऐसा नहीं था कि मैं हर किसी पर जुल्म करता था बल्कि बहुत सी ऐसी भी होतीं थी जो अपनी ख़ुशी से मेरे साथ सम्भोग करतीं थी क्योंकि मैं उन्हें संतुष्ट भी करता था और पैसे से उनकी मदद भी करता था। इस बार का ये त्यौहार मेरे लिए एक नए रूप में था और मैं खुद भी एक नए रूप में था।
मैंने एक थैले में अपने कपड़े समेट कर डाले और घर जाने के लिए तैयार हो गया। मेरा मन ज़रा भी नहीं कर रहा था कि मैं यहाँ से घर जाऊं। इस जगह से एक लगाव हो गया था और इस जगह पर कई सारी यादें बन गईं थी। इस जगह पर मुरारी काका जैसे इंसान ने बुरे वक़्त में मेरा साथ दिया था। इस जगह पर सरोज काकी ने मुझे जिस्मानी सुख दिया था और इसी जगह पर मैंने अपने बुरे वक़्त में जीवन का असली रंग देखा था। अनुराधा जैसी एक आम सी लड़की ने बिना कुछ किये ही मेरी मानसिकता को बदल दिया था। मुझे एक बार फिर से याद आ गया कि मुरारी काका ने पिछले दिन मुझसे अपनी बेटी अनुराधा का हाथ थाम लेने की बात कही थी। मेरे मन में तरह तरह के विचार चलने लगे। क्या मैं सरोज काकी और उसके बच्चों को ऐसे ही छोड़ कर चला जाऊंगा? क्या मैं मुरारी काका के उपकारों को भूल कर ऐसे ही यहाँ से चला जाऊंगा? नहीं, मैं ऐसे नहीं जाऊंगा बल्कि मुरारी काका के उपकारों का बदला ज़रूर चुकाऊंगा।
जाने कितनी ही देर तक मैं ये सब सोचता रहा। सूर्य अपने वजूद पर लालिमा चढ़ाये पश्चिम दिशा में उतर चुका था। आस पास कोई नहीं था बस हवा चलने की आवाज़ें ही सुनाई दे रहीं थी। मेरे मन में बहुत सी बातें इस जगह के लिए पनप चुकी थी और मैंने एक फैसला कर लिया था।
अपना सामान एक थैले में भर कर मैं झोपड़े से बाहर निकला और एक बार खेत के उस हिस्से की तरफ देखा जहां पर मेरी फसल का जली हुई राख के रूप में ढेर पड़ा था। कुछ देर उस राख के ढेर को देखने के बाद मैं खेत की तरफ बढ़ गया। खेत के पास आ कर मैंने उस खेत की ज़मीन पर अपना हाथ रखा और फिर उस हाथ को अपने माथे पर लगा कर मैंने उस ज़मीन को प्रणाम किया।
खेत की उस ज़मीन को प्रणाम करने के बाद मैं उठा और पलट कर चल दिया। अभी मैं झोपड़े के करीब ही पंहुचा था कि मेरी नज़र सामने से आती हुई एक बग्घी पर पड़ी। उस बग्घी में पिता जी का एक आदमी बैठा हुआ था। मेरे मन में ख़याल उभरा कि शायद ये बग्घी माँ ने मुझे लाने के लिए भेजी होगी।
"प्रणाम छोटे ठाकुर।" बग्घी मेरे पास आई तो बग्घी चला रहे उस आदमी ने मुझसे बड़े अदब से कहा____"ठाकुर साहब ने आपको लाने के लिए मुझे भेजा है।"
"इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी काका।" मैंने सपाट लहजे में कहा____"ईश्वर ने मुझे दो पैर दिए हैं जो कि अभी सही सलामत हैं। इस लिए मैं पैदल ही घर आ जाता।"
"ऐसा कैसे हो सकता है छोटे ठाकुर?" उस आदमी ने कहा_____"ख़ैर छोड़िये, लाइए ये थैला मुझे दीजिए।"
बग्घी से उतर कर वो आदमी मेरे पास आया और थैला लेने के लिए मेरी तरफ अपना हाथ बढ़ाया तो मैंने उसे ख़ामोशी से थैला दे दिया जिसे ले कर वो एक तरफ हट गया। मैं जब बग्घी में बैठ गया तो वो आदमी भी आगे बैठ गया और फिर उसने घोड़ों की लगाम को हरकत दी तो घोड़े आवाज़ करते हुए चल दिए।
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Shukriya Leon bhai,,,,nice update ..jagan aur baaki aadmiyo ko vishwas ho gaya ki vaibhav ne nahi maara murari ko .
par jagan aur saroj dono ne kaha ki tum is jhamele me nahi pado kya unko taklif nahi hoti murari ke maut ko lekar ..
Dukh to is baat ka bhi hoga use ki saroj se door ho jayega wo aur anuradha se bhi. Par kuch jugaad karte hain uska,,,,dukh to hona hi hai us zameen ko chhodte waqt .jaha 4 mahine raha aur apne mehnat se anaaj ungaya tha vaibhav ne ..
ab ghar jaa raha hai aur waha jake kya hota hai dekhte hai .