" चौबीस घंटे "
संजू ( वी आर )
कहानी निःशब्द कर देती है।
पढ़ कर सिर्फ दो शब्द दिमाग में उभरते हैं, गज़ब और जबरदस्त।
२० वीं सदी के पूर्वार्ध में शुरू हुयी, न्वॉयर कहानियों की विधा का असर अभी भी नियो न्वॉयर के रूप में दिखता है लेकिन हिंदी फिल्मों में ५० के दशक में देवानंद की बहुत सी फिल्मे इस विधा से प्रभावित थी, जाल, बाज, बाजी, फंटूस और सब मुंबई की पृष्ठभूमि पर. पोर्ट और पोर्ट सिटी का इस्तेमाल भी साहित्य में ऐसी स्थितियों के लिए बहुत बार हुआ और कहानी पढ़ते ही वह सब आँखों के सामने आ जाते हैं।
दो बातें जिन्होंने मुझे कहानी से बाँध कर रखा, वो थीं, दृश्य बंध और चरित्र चित्रण। मंज़रकशी कहानी के लिए एक जरूरी बात मानी जाती है जो पढ़ने वाले को उस जगह ले जा कर खड़ा कर दे जहाँ घटनाएं घट रही हैं.
डिमेलो बार से ही बात एस्टेब्लिश हो जाती है। मुम्बई पोर्ट से सटी हुयी जो सड़क है उसका नाम, डिमेलो रोड ही है। शाम के बाद बैलार्ड पियर और फोर्ट के आफिस बंद होने के बाद जो उस इलाके की हालत होती है वो एकदम रूबरू नजर आती है , लेकिन सबसे बड़ी बात है, कम से कम शब्दों में उस चित्र को खींचना। लेकिन उस दृश्य को पात्र किस तरह देख रहा है उस करेक्टर से उस मंजर को पढ़ने वालों तक ले आना,
" उस वक्त वह ग्राहको से खचाखच भरा हुआ था। सिगरेट धूंए और शोर - शराबे से वह पुरी तरह रचा बसा था।.... चेतना पर हावी हो जाने वाला शोर- शराबा । तन्हाई का दुश्मन शोर । किसी गम, किसी याद को घोलकर पी जाने के लिए हासिल शराब।"
और यह वर्णन हर छोटे छोटे दृश्य में बखूबी नजर आता है।
दूसरी बात है कैरेक्टर की कंसिस्टेंसी, शुरू से ही मुख्य किरदार अकेलेपन से जूझ रहा है, माँ रही नहीं, जिस प्रेमिका पर भरोसा था उसने छोड़ दिया,... और अब उसकी सिर्फ एक कोशिश होती है अपने को भुलाने की, चाहे काम में हो या शराब में। और यह कैरेक्टर बार बार कहानी में दिखता है, सिवाय उस मौके के जब वह दिन में वर्षा को देखता है और उसे उसमे अपनी बिछुड़ी प्रेमिका नजर आती है।
और कम शब्दों में जिस तरह से वर्षा का नक्श खींचा गया और बाकी लोगों का भी वह तारीफ़ के काबिल है।
फार्मेट भी अलग ढंग का है, कहानी तब मज़ा देती है जब वह कहानी के पीछे की कहानी कहती है जो जीत के अकेलेपन की अवसाद की और दुखांत की कहानी है।
मैं नियमित रूप से समीक्षा नहीं करती लेकिन मुझे लगता है की किसी कहानी में क्या कहा गया है के साथ कैसे कहा गया है इस पर भी पढ़ने वाले को ध्यान देना चाहिए और इस पैमाने पर यह कहानी सफल है। और लघु कथा के लिए जो आवश्यक तत्व है, किसी भी शब्द का, वाक्य का आवश्यकता से ज्यादा न होना, उस लिहाज से भी यह कहानी बहुत अच्छी है.
और एक बात और इस कहानी के एक दृश्य से जाने भी दो यारों की भी यादें ताजा हो गयीं।