रविवार की सुहानी सुबह, किशनपुर से बाहर जाने वाले रास्ते कर एक साइकल तेजी से चले जा रही थी.. अभी तक उस साइकल मे कुछ 30-35 किमी का टप्पा पार कर लिया था, जहा रास्ता ले जाए उस ओर उस साइकल के पहिए मूड रहे थे, आजू बाजू मे फैले विशाल निसर्ग का आनंद ले रहे थे,
देव की ये हर रविवार की दिनचर्या थी, सुबह अपनी साइकल उठा कर वो निसर्ग की गोद मे निकल जाया करता था, एक ठहराया हुआ अंतर पार करके लौट आता था, किशनपुर को निसर्ग की देन थी, शहर के बाहर रास्ते के दोनो ओर लगे पेड़, खुशनुमा साफ हवा, शहर के कोलाहल से दूर इस रास्ते पर देव को शांति की अनुभूति होती थी , रास्ते सही थे उसमे रविवार होने की वजह से कुछ एक दो गुजरने वाली गाडियो को छोड़ दिया जाए तो इंसानो का हस्तक्षेप कम ही होता था...
और ऐसे इस रास्ते पर सुबह के सुहाने मौसन मे देव की साइकल दौड़ रही थी, दिमाग़ मे एक साथ कई ख़यालो का चक्र शुरू था, देव एक बैंक मे अच्छी पोस्ट पर जॉब करता था, अभी उसने नया नया जॉब जॉइन किया था और इसीलिए उससे काम मे ग़लतिया भी बहुत होती थी, अभी कल ही की बात है जब उसने अपनी ग़लती के लिए बॅंक मे अपने बॉस से डांट खाई थी और आज उसी बात का गुस्सा उसके साइकल के पेड़ेल पर निकल रहा था नतिजन आज उसकी साइकल हमेशा के मुक़ाबले ज़्यादा तेज़ थी...
खुद की कंपनी को इन्जॉय करने वाले देव को अकेले रहना ज़्यादा पसंद था और इसीलिए वो अकेला ही साइकल लेकर जब वक़्त मिले निकल जाया करता था, उसे लोगो से मिलना बात करना ज़रा भी पसंद नही था, अब इसके पीछे भी कुछ रीज़न्स थे, एक तो देव का अपने आप मे ही मगन रहने वाला स्वभाव उपर से उसके पिताजी जो खुद बॅंक मे जॉब करते थे, एक छोटा भाई भी था, नील जो अभी पढ़ रहा था
देव को बचपन से ही राइटर बनना था, उसका दिमाग़ असंख्य कल्पनाओ से भरा हुआ था, कॉलेज ख़तम होने के बाद अपना सपना साकार करने उसने लिखना शुरू कर दिया था लेकिन उसके पिता की जिद्द के आगे उसका सपना हार गया था और आख़िर मे देव ने अपने अंदर के उस लेखक को मार दिया था,
पिता के कहने पर उसने ज़बरदस्ती बैंक की जॉब के लिए तयारी शुरू की और जॉब मिल भी गयी थी, लेकिन कोई कितना ही रोके सपने कभी मरते नही है वो बस दिमाग़ के किसी कोने मे छिप जाते है, हर रविवार को साइकल चलते हुए देव के अंदर छिपा वो लेखक अपना सर उठता था, अपने दिमाग़ मे अलग अलग कल्पनाओ को साकार करते हुए देव साइकल पर दूर निकल जाया करता था, अपनी स्वप्नवत कल्पनाओ की दुनिया मे अपनी बनाई दुनिया की भूलभुलैया मे
आज भी अपनी दुनिया मे उसने एक खूबसूरत लड़की को कुछ गुंडों से बचाया था, अपने कल्पना विश्व मे देव ने अपने लिए एक खूबसूरत साथी भी चुन ली थी जिसके साथ उसका प्यार का सिलसिला भी शुरू हो चुका था
देव की कल्पनाओ की दुनिया मे उसका जॉब, उसके सपने को ना समझने वाले उसके मा बाप इनके लिए कोई जगह नही थी, उसकी साइकल के साथ साथ उसके दिमाग के पहिए भी घूम रहे थे, उस लड़की को गुंडों से बचाने का समाधान उसके चेहरे पर फैली मुस्कान बयान कर रही थी और तभी अचानक दर्द की एक लहर उसे दिमाग़ मे घुसी और वो साइकल समेत नीचे गिर गया, उसके पैर की नसो मे खिचाव आ गया था, साइकल एक तरफ गिर चुकी थी और देव अपने पैर को झटक कर सहलाते हुए ठीक कर रहा था, धीरे धीरे दर्द कम हो गया था और तभी उसकी नज़र सामने गयी
सामने देखते ही वो थोड़ा चौका, वो इस वक़्त एक छोटे से तालाब के पास था जिसके किनारे पर एक सुंदर पुराने जमाने का बंगला उसे दिखने लगा था, देव कुछ पल ठिठका, वो इस जगह से पहले भी कई बार गुजर चुका था लेकिन ये पुराना घर उसने पहले कभी नही देखा था और अचानक इतना बड़ा घर बनाना वो भी पुराने स्टाइल से एकदम ही नामुमकिन था क्यूकी अभी पिछले हफ्ते ही वो एक सुपरहीरो की कहानी बुनते हुए जब यहा से गुजरा था तब यहा कुछ नही था, उस घर का दरवाजा खुला हुआ था और फिर थोड़े डाउट और थोड़ी एक्सईटमेंट के मिले जुले भाव देव के चेहरे पर उमट रहे थे, उसे ऐसा लग रहा था के इस घर को मानो उसने पहले भी कभी देखा था लेकिन कहा ये उसके ध्यान मे नही आ रहा था
“हा अब याद आया! ऐसी की एक कहानी पिछले महीने ही तो बनाई थी, एक पुराना घर जिसमे एक सोने का खजाना गाड़ा हुआ है.. क्या नाम था उस कहानी के हीरो का??? हा अभिषेक वो इस घर मे मौजूद मायवी राक्षसी शक्ति को हराता है लेकिन खतम नहीं कर पाता और यहा रखे सोने से भरे बक्से को लेकर चला जाता है और फिर आराम से अपनी जिंदगी बिताता है लेकिन मेरी कहानी का घर सेम टु सेम यहा कैसे?” देव ने अपने आप से सवाल किया
इस सवाल का जवाब अब उसे उस घर के अंदर जाकर ही मिल सकता था इसीलिए देव दबे कदमो से अंदर जाने लगा, दरवाजा खुला ही था और वो घर उसे जाना पहचाना सा लग रहा था क्यूकी ये बिल्कुल वैसा था जिसकी रचना उसने अपनी कल्पनाओ मे की थी एकदम हूबेहूब, जैसे जैसे देव धीरे धीरे अंदर जर रहा था एक अजीब सा डर उसके मन मे भर रहा था वो डर रहा था के जैसे उसके कल्पन विश्व का घर यहा आ गया था वैसे ही इस घर की मालकिन वो खूबसूरत चुड़ैल भी इसी घर मे रहती होगी जो इंसानो को अपने वश मे कर लेती है और धीरे धीरे उनकी सारी उर्जा सोख लेती है और उन्हे इस घर मे ही गुलाम बना कर उनका अस्तित्व ही ख़तम कर देती है.
देव अपनी ही बनाई कहानी को दोहराते हुए फुक फुक कर हर कदम रख रहा था लेकिन उसके सामने कोई नहीं था, वो घर एकदम खाली लग रहा था बस दूर घर मे एक कोने से हल्की सी रोशनी दिख रही थी बाकी सब तरफ अंधेरा था, पूरे घर मे मीठी सी भीनी भीनी खुशबू फैली हुई थी
देव धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था और अपने सामने का दृश्य देख हैरत मे उसकी आंखे बड़ी हो गई थी, सुबह अपने कल्पन विश्व मे देव ने जिस लड़की को बचाया था वो लड़की उसे वहा दिखी थी, उस घर मे उसी लड़की की एक बड़ी सी पेंटिंग लगी हुई थी, वो पेंटिंग इतनी बारीकी से और इतनी खूबी से बनाई हुई थी के लग रहा था मानो वो अभी बोल उठेगी..
देव चलते हुए उस पेंटिंग के पास जा पहुचा, सुंदर गोल चेहरा, मुसकुराते हुए गालों मे गिरने वाले डिम्पल, लंबे काले बाल, वो वही थी, देव उस पेंटिंग को देख वहा स्तब्ध हो गया था, कही अपन कोई सपना तो नहीं देख रहे है? ऐसा खयाल देव के दिमाग मे कौंधा और तभी वो लड़की पेंटिंग मे से उसे देख के मुस्कुराई
बस देव घबरा गया, वो पीछे सरकने लगा और पीछे सरकते हुए वहा रखी किसी चीज के उसके पैर मे अटकने से देव वही गिर गया, देव ने जब ऊपर की ओर देखा... वहा कुछ नहीं था, ना वो पुराना घर था ना ही उस लड़की की पेंटिंग था... देव जिस जगह साइकिल से गिरा था वो अब भी वही था, उसका सर भारी लग रहा था दुख रहा था, देव अपना सर पकड़ के वही बैठ गया
“अबे यार कही मैं बेहोश तो नहीं हो गया था... शीट शीट शीट... 2 बज रहा है यानि मैं डेढ़ घंटे से यही बेहोश पड़ा हुआ हु??”
देव ने अपनी घड़ी देखते हुए कहा और फिर उसने झट से अपनी साइकिल उठाई और वापसी के सफर पर निकल गया...
घर वापिस आते हुए देव को शाम हो चुकी थी और उसके पिताजी गुस्से मे उसकी राह देख रहे थे और जैसे ही उसने घर मे अपना पहला कदम रखा
“देव.. बैंक से तुम्हारे बॉस का फोन आया था.. कह रहे थे तुम्हारा काम मे मन नहीं लगता अपने ही खयालों मे खोए रहते हो तुम.. इसीलिए इतना पढ़ाया क्या तुम्हें ताकि तुम ऐसे ही मेरी नाक कटवाते फिरो??”
वो देव के आते साथ ही उसपर भड़क गए थे लेकिन अपने पिता से इस कदर डांट खाना देव के लिए कुछ नया नहीं था ऊपर से साइकिल पर से गिरने से उसका घुटना छील गया था जिसमे से थोड़ा खून भी बह रहा था लेकिन उसके बारे मे ना पूछते हुए उसके पिता उसपर चिल्लाने लगे थे और देव को इसी बात का दुख था, इस घर मे कीसी को भी उसकी फिक्र नहीं थी, उसकी मा भी उससे ज्यादा उसके छोटे भाई के प्यार करती थी... घर का वातावरण पहले ही गरम था इसीलिए देव बगैर कीसी को कुछ बोले खाना खा कर सोने चला गया, दिन भर की थकान के चलते उसे नींद भी जल्दी आ गई,
अभी कुछ ही पल बीते थे के देव को अपने पैरों पर एक नाजुक सा स्पर्श महसूस हुआ और वो झटके के साथ उठ गया, सामने देखा तो वही लड़की थी जिसकी देव ने अपनी कहानियों की दुनिया मे जान बचाई थी और देव अभी उसी पुराने घर मे था जहा को दोपहर को था
“बहुत ज्यादा चोट लगी है क्या?”
उसने बहुत ज्यादा प्यार से देव से पूछा और उसके इस कदर प्यार से पूछने पर देव पिघल रहा था
“नहीं ज्यादा नहीं लगी है”
“मैं दवा लगा देती हु”
अब उसकी इस बात का देव विरोध ना कर सका
“आप कौन है और मैं यहा कैसे आया?”
देव ने सवाल पूछा जिसपर उसके जख्म पर मरहम लगाने वाले वो कोमल हाथ रुके
“आप भूल गए मुझे? मैं वही हु आपकी दुनिया का एक छोटा सा हिस्सा, मुग्धा नाम है मेरा, आपने ही तो रखा था याद है?”
देव के पास कहने को शब्द नहीं थे एक तो पहली बार कोई इतनी खूबसिरत लड़की वो भी इतने प्यार से उससे बात कर रही थी उसके शब्द मानो उसके गले मे ही अटक गए थे
“अब आप आराम कीजिए... मैं फिर आऊँगी”
इतना बोल के वो लड़की मुसकुराते हुए वहा से चली गई थी, उस रात देव को बहुत बढ़िया नींद आई थी जो सुबह उसके फोन के अलार्म के साथ खुली, देव ने आंखे खोली तो वो अपने रूम मे था, उसने अपने आजू बाजू मे देखा तो सब कुछ जाना पहचाना ही था बस वो नहीं थी
“वो शायद सपना ही था”
देव अपने आप से बोला और उसने चादर हटाई, अब उसके घुटने मे दर्द कुछ कम था और जख्म पर कुछ चिपचिपा लगा हुआ था, एकदम दवा जैसा, अब देव को कुछ समझ नहीं आ रहा था... लेकिन फिलहाल उसके पास इस सब के बारे मे सोचने का वक्त नहीं था उसे जल्द के जल्द अपने ऑफिस पहुचना था, घड़ी की सुई की तरह ही भागते हुए देव भी अपने कामों मे लग गया था, कहने को तो उसके पास काम बहुत था लेकिन दिमाग से वो लड़की जा ही नहीं रही थी, बैंक मे भी उसके दिमाग मे बस वही छाई हुई थी
उसके प्यार भरे शब्द अब भी देव के कानों मे घूम रहे थे, उसकी कल्पना की दुनिया उसकी असल दुनिया पर भारी पड रही थी और फिर जो होना था वही हुआ काम मे गलती हो गई..
जल्दी जल्दी अपना काम निपट कर देव घर आ चुका था और खाना खा कर सोने चला गया था, शरीर मे थकान थी जो नींद भी जल्दी आ गई थी
और फिर वापिस से वही स्पर्श... देव वापिस उठ बैठा आंखे खुलते ही सामने चाँदनी बिखरती है ऐसा प्रकाश फैला हुआ था, प्रकाश की किरने पानी मे परिवर्तित होकर तालाब के किनारे बैठे देव की आँखों मे जा रही थी और जब उससे वो रोशनी बर्दाश्त नहीं हुई उसने अपने चेहरा घुमा लिया तो उसने देखा के उसके दाई ओर वही बैठी थी, वो जो कल रात उसके सपने मे आई थी, मुग्धा।
आज देव उसे देख डरा नहीं बल्कि मुस्कुराया और फिर दोनों के बीच बात चित का दौर शुरू हुआ, देव उसे अपने बारे मे सब बता रहा था और वो भी सब कुछ मुसकुराते हुए सुन रही थी, समय अपनी गति से दौड़ रहा था और फिर वही मोबाईल का अलार्म और वापिस देव नींद से जाग चुका था
दूसरी बार मुग्धा का सपने मे आना, उसकी वो मधुर मुस्कान, उसके मुह से निकले प्यार भरे शब्द सब कुछ देव जतन करके रखना चाहता था, वो वापिस काम पर पहुचा
जब देव बैंक मे पहुचा तब सारे ऑफिस स्टाफ की नजरे उसी के तरफ थी उसे देख पीअन मैनेजर के केबिन मे उसके आने की खबर गया और मैनेजर से उसे अपने केबिन मे बुलाया
“मिस्टर देव कल आपने फिर गलती कर दी, कब तक.. आपकी ये लापरवाही कब तक चलेगी? आपके पिताजी मेरे बहुत अच्छे दोस्त है तुम रमेश के बेटे हो इसीलिए मैं चुप था लेकिन कल तो तुमने हद्द कर दी 8 लाख रुपये किसी और ही अकाउंट मे भेज दिए?? एक काम करो एक महीने की छुट्टी लो, दिमाग को आराम दो फिर बात करेंगे, तुम रमेश के बेटे हो इसीलिए ये समझो के तुम्हारी नौकरी नहीं जा रही”
अब देव डर गया था, इस बात के क्या परिणाम हो सकते है ये वो जानता था, अब मैनेजर उसके बाप को फोन लगाएगा और वो देव को दस बाते सुनाएंगे और यही सोच सोच के देव डर रहा था, बचपन से ही देव घरवालों के नाराज होने के डर मे बड़ा हुआ था वो बैंक से बाहर आया और एक नदी किनारे जाकर बैठ गया... इस सब के पीछे का रीज़न था रात को उसे आने वाले सपने और वो लड़की, उसकी मिश्री जैसी मीठी बाते दिनभर देव के कानों मे घूमती रहती थी जिसके चलते अब उसे घरवालों की नाराजग़ी का सामना करना था ऊपर से जिसके लिए जिंदगी भर मेहनत की थी वो नौकरी भी अब खतरे मे थी.. देव अपने ही ख्वाबों की भूलभुलैया मे उलझता जा रहा था..
देव घरवालों को अपना चेहरा दिखने से भी डर रहा था, शाम के 7 बजे तक वो वही बैठा रहा इधर उधर घूमता रहा और फिर अपने मन मे कुछ डिसाइड करके भारी कदमों से वो अपने घर की ओर बढ़ा
देव के घर पहुचते ही उसके मा बाप उसकी राह ही देख रहे थे उसके पापा रमेश उसके पास आए और सन्न से उसके कान के नीचे लगाई, ये देव की जिंदगी का पहला थप्पड़ था उसकी आँखों से पानी आने लगा था
“हरामखोर यहा मैंने बैंक मे अपनी पूरी जिंदगी गुजार दी और कभी 1 रुपये का भी झोल नहीं हुआ और तू?? तू पैदा होते ही मर क्यू नहीं गया? हमारी नाक कटवा दी आज”
देव भी रोए जा रहा था और फिर वो हिम्मत करके बोला
“मुझे नहीं करना था वो जॉब... मेरे सपने कुछ और थे”
बस इस बात पर उसके पिताजी और ज्यादा भड़क गए
“क्या घंटा सपने थे तेरे, और क्या करता तू वो बनके, भीख ही मंगनी है तो वैसे ही मांग ले, पहले पता होता मेरी औलाद ऐसी नालायक निकलेगी तो इसे इतना पढ़ाता ही नहीं सीधा मजदूरी मे लगवा देता”
देव बगैर किसी को कुछ बोले अपने कमरे में आ गया था..
इस वक्त रात के 9 बज रहे थे अपने घरवालों की तीखी बाते और अपने लिए घृणित नजरे उससे सहन नही हो रही थी, उनका बोला हर शब्द देव के मन को भेद रहा था और दिल में बस एक ही सवाल बार बार उठ रहा था "क्या गलती थी मेरी?" दिमाग सुन्न हो गया था, रो रो कर आंखे भारी होकर बंद हो गई थी और बगैर कुछ खाए देव गहरी नींद में सो चुका था
जब आंखे खुली तो देव डाइनिंग टेबल पर बैठा था, उसके सामने खाने की बहुत सी चीजे रखी हुई थी और सुबह से भूखे देव ने जब इतना सब खाने का देखा तो उसके मुंह में पानी आने लगा था, डाइनिंग टेबल पर एक केंडल जल रही थी और उस मोमबत्ती की हल्की सी रोशनी में देव ने सामने देखा तो वहा उसकी स्वप्न सुंदरी मुग्धा बैठी हुई थी और देव उसे कुछ कहता इससे पहले ही मुग्धा ने अपने मुंह पर उंगली रख उसे चुप रहने का इशारा किया
"शूsss... कुछ मत बोलो, मुझे सब कुछ पता है, तुम्हारी उस दुनिया में भले ही किसी को तुम्हारी कोई परवाह ना हो लेकिन यहा है, ये तुम्हारी बनाई दुनिया है, तुमने हमे बनाया है यहा कोई तुम्हें कुछ नही कहेगा, सो इन्जॉय"
मुग्धा की बात सुन फिर आगे देव कुछ नही बोला, वैसे भी वो बात करने की हालत में नहीं था वो किसी से बात नहीं करना चाहता था इसीलिए उसने अपने सामने रखे खाने पर ताव मारना शुरू किया।
इधर देव के छोटे भाई नील को उसकी चिंता हो रही थी.. एक तो वो देव को हालत जानता था ऊपर से देव ने खाना भी नहीं खाया था, नील ने देव के रूम का दरवाजा खटखटाया, दरवाजा खुला था, नील दबे कदमों से रूम में अंदर आया तो उसने देखा के देव पीठ के बल सो रहा था और उसका सर कुछ अलग तरह से हिल रहा था
रूम में कुछ खाने का चप चप ऐसा आवाज आ रहा था नील धीरे से चलते हुए देव के पास आया और अपने सामने का नजारा देख वो हैरान रह गया
देव का मुंह हिल रहा था मानो वो कुछ खा रहा था और बीच बीच ने उसके हाथो की भी हलचल हो रही थी ऐसा लग रहा था जैसे वो बीच में कुछ उठा कर पी रहा था, खा रहा था और वैसे ही उसके हाथ और मुंह चल रहे थे, पानी पीते वक्त उसे निगलते हुए जैसे गला की हलचल होती है वैसे ही देव का गला हिल रहा था नील को समझ नही आ रहा था के ये क्या हो रहा है, उसने एक पल को देव को जगाने का सोचा, उसने उसे नींद से जगाने को कोशिश भी की लेकिन देव पर उसका कोई असर नही हुआ उसका मुंह अभी भी वैसे ही चल रहा था
मम्मी पापा अभी भी उससे नाराज थे इसीलिए ये सब उन्हें बताना भी मुश्किल था वो इसमे भी देव की ही गलती निकालते नील एकटक देव को देख रहा था "ये शायद सपना देख रहा है" ऐसा सोच नील वहा से निकल गया
सच ही तो था, देव ख्वाब में ही तो था, वो सपना ही देख रहा था लेकिन ये ख्वाब कुछ अलग था, यह देव की बनाई अपनी एक अलग दुनिया थी और अपनी बनाई इस दुनिया में पिछले कुछ दिनों में देव खो सा गया था, उस भूलभुलैया मे उलझ गया था..
वो खूबसूरत बंगला उसके अंदर सोने से की हुई सजावट.. आजू बाजू का सुंदर परिसर और साथ मे वो, मुग्धा, कब रात होगी और कब सपने मे मुग्धा से मुलाकात होगी ऐसा देव को लगने लगा था, सुबह जब उसकी आँख खुलती थी और वास्तव से उसका सामना होता था तब उसका कीसी बात मे मन नहीं लगता था, सब कुछ ऐसा लगता था जैसे उसपर थोपा जा रहा हो, घरवालों से तो उसकी बात चित जैसे बंद ही हो गई थी, उसके पिता जी को उसका चेहरा भी देखना गवारा नहीं था क्युकी उसने समाज मे उनकी नाक काट दि थी बेइज्जती करवा दी थी, मा उससे थोड़ा बोल लेती थी लेकिन उसमे भी वो उसे ताने दे दिया करती थी, बस एक उसका छोटा भाई नील ही था जिसे थोड़ी ही सही उसकी चिंता थी और वो इस बारे मे उससे पूछने की कोशिश करते रहता था
“भाई कोई टेंशन है क्या? अगर है तो बताओ प्लीज”
“अरे मुझे काहे का टेंशन होगा, सब सही है”
“वैसा नहीं, तुम दिनभर अकेले अपने कमरे मे बंद रहते हो न कीसी से मिलते हो ना बात करते हो इसीलिए पूछा कुछ है तो बताओ”
लेकिन देव ने नील की बात का कोई जवाब नहीं दिया
रात को जब देव नींद मे होता तब उसके शरीर की होने वाली हलचल पर नील की नजर बनी हुई थी और अब उसे अपने भाई की फिक्र होने लगी थी, हर रात को वो नींद मे कुछ न कुछ बड़बड़ाते रहता था, उसके हिलते होंठ, हिलती हुई कमर और बीच मे ही चेहरे पर आने वाली मुस्कान नील के शक को मजबूत कर रहे थे के कुछ तो गड़बड़ थी कुछ तो था जो अजीब था, नील इसके बारे मे कीसी को बात भी नहीं पा रहा था और जब भी वो इस बारे मे देव से बात करने की कोशिश करता देव चिढ़ जाया करता था
शायद जॉब और घर के टेंशन मे देव मानसिक रूप से बीमार हो रहा था ऐसा नील को लगने लगा था और किस्मत से नील का एक दोस्त था जिसके पिता जी मनोविकार तज्ञ थे, उनसे नील ने बात की और उन्हे उसने देव के बर्ताव, खास तौर पर उसकी रात हो होने वाली हलचल, उसकी नींद मे करी हरकते बताई और डॉक्टर देशमुख ने उसे उनके पास लाने कहा
अब सबसे बड़ा सवाल यही था के के क्या देव वहा आएगा? लेकिन उसे वहा लाना जरूरी था क्युकी अब उसकी इन बातों का परिणाम उसके शरीर पर दिखने लगा था, उसके शरीर मे बदलाव आने लगे थे, गाल गड्ढे मे चले गए थे, वजन बहुत तेजी से कम हो रहा था और अब नील को उसकी और भी ज्यादा फिक्र होने लगी थी, नील देव पर बराबर नजर बनाए हुए था,
बिखरे बाल, आँखों के कोनों पर डार्क सर्कल खराब सा टीशर्ट पहने देव के चेहरे पर एक स्माइल हमेशा बनी रहती थी, कुछ न कुछ याद करके वो हमेशा हसते रहता था
जैसे जैसे दिन बीत रहे थे देव की हालत और भी खराब होने लगी थी, इस सब ने अब भयानक रूप ले लिया था, अपने मा बाप के सामने तो देव नॉर्मल रहने की पूरी कोशिश करता था लेकिन अकेले मे उसकी यही सब हरकते वापिस शुरू हो जाती थी और एक दिन कुछ बहाना बना कर नील देव को डॉक्टर देशमुख के पास लाने मे सफल हो गया था
उसको देखने के बाद डॉक्टर को पहले तो वो नॉर्मल ही लगा था, नील ने जब उनको पूरी बात और भी अच्छे से समझाई तब उसे सुनकर वो थोड़ा चौके क्युकी मानसिक रूप से बीमार आदमी जागते हुए ऐसा करे ये समझ मे आता था लेकिन नींद मे ऐसा सब कुछ होन उन्होंने पहली बार सुन था और उन्हे इसका प्रूफ चाहिए था, उन्होंने नील को रात को देव के कमरे मे जो भी होता है सब रिकार्ड करने कहा और नील ने देव के बेड के सामने एक छुपा हुआ कैमरा लगा दिया
कॅमेरे ने उस पूरी रात को रिकार्ड कर लिया था और उस रिकॉर्डिंग को देख डॉक्टर देशमुख हैरान रह गए थे, देव नींद मे अजीब ही हरकते कर रहा था, मानो वो कीसी से बात कर रहा था कीसी के साथ चल रहा था, वो रात को अपने सपनों की दुनिया मे ही जी रहा था
रात को नींद मे देव का बड़बड़ाना हलचल करना एक लिमिटेड टाइम के लिए ही होता था लेकिन उस धुंध मे देव पूरी रात निकाल देता था, उसके हाथों पैरों की होने वाली हलचल से ये पता चल रहा था के वो सपने मे मानो एक अलग ही जिंदगी जी रहा था
डॉक्टर देशमुख ने देव को अगले दिन बुलाया और उससे बात करने लगे और बातों बातों मे उन्होंने उसे हिप्नोटाइस कर लिया था, देव के मन मे क्या चल रहा है उन्हे सब कुछ जानना था
“देव, अब मैं तुमसे कुछ सवाल पूछूँगा, मैं चाहता हु तुम उसका मुझे सच सच जवाब दो, तुम रात मे कहा होते हो? कहा जाते हो? और क्या क्या करते हो?”
सवाल सुन देव के चेहरे पर मुस्कान आ गई
“मैं रात मे मुग्धा के साथ होता हु, उसके आलीशान बंगले मे...”
“ये मुग्धा कौन है... मुझे सब कुछ जानना है तो मुझे सब सच बताओ कुछ भी नहीं छिपाना है”
“मुग्धा मेरी कहानी का एक किरदार है.. मैं पहले उसे बुरा समझता था.. चुड़ैल थी वो.. लोगों को राह भटका कर वो अपने घर मे बुला कर मार डालती थी लेकिन मैं गलत था वो वैसे नहीं है उलट वो बहुत अच्छी है, मेरे साथ वो बहुत अच्छे से रहती है”
देव की बात सुन डॉक्टर देशमुख शॉक थे
“ओके, नील ने मुझे बताया था के तुम्हें राइटर बनना था लेकिन अपने पिता जी जिद्द के चलते तुम्हें बैंक मे जॉब करना पड़ा... तुम कीसी से ज्यादा मिलते नही हो बात नहीं करते हो अपनी ही दुनिया मे मस्त रहते हो और मुग्धा ये तुम्हारी कहानी का एक किरदार है... चुड़ैल है”
अब देव के इक्स्प्रेशन बदल गए थे उसके चेहरे पर गंभीर भाव थे
“नहीं... वो कोई चुड़ैल नहीं है वो तो बहुत अच्छी लड़की है... मुझे बहुत प्यार से बात करती है... मुझसे आजतक कीसी ने इतने प्यार से बात नहीं की थी”
डॉक्टर देशमुख हो देव से बात करके जो समझना था वो समझ चुके थे, उन्होंने देव को हिप्नोटिज़म से बाहर निकाला और बाहर बैठने कहा और नील को अपने केबिन मे बुलाया, उनके चेहरे पर के पाज़िटिव हावभाव से ये साफ था के उन्होंने बीमारी का पता लगा लिया था और फिर उन्होंने नील से बात करना शुरू की
“देखो नील जैसा तुमने बताया और जो बाते मुझे देव से पता चली है उससे ये तो साफ है के उसे राइटर बनना था लेकिन तुम्हारे पिताजी की जबरदस्ती की वजह से वो अपने उस सपने को पूरा नहीं कर पाया और मजबूरी मे उसने बैंक मे जॉब करना शुरू कर दिया जो उसके मन को कभी भी स्वीकार नहीं था... उसने भले ही अपने अंदर के लेखक को दबा दिया था लेकिन वो उसके दिल की गहराइयों मे जिंदा था.. ये राइटर लोग कमाल होते है.. उनकी दुनिया ही अलग होती है उसमे देव कमजोर दिल का इंसान है, वो खुद तकलीफ सह लेगा लेकिन कीसी को कुछ बोलेगा नहीं और यही इस केस मे हुआ है, तुम्हारे भाई का स्वभाव अपने आप मे ही मगन रहने वाला है, उसमे तुम्हारे पिताजी का बार बार उसे खरी खोटी सुनाना, उसका अपमान करना या बाकी लोग जो उसे कुछ न कुछ कहते रहते है, उसमे उसकी जॉब का टेंशन ये सब बाते लगभग साथ ही हुई, और इन सब मानसिक हमलों से उसके दिल दिमाग पर असर होना शुरू हुआ, उसे तुम लोगों के सहारे की तुम्हारे सपोर्ट की जरूरत थी लेकिन वो अकेला पड चुका था उसमे तुम्हारा भाई अपने शांत अबोल स्वभाव के चलते कीसी से अपने मन की बात भी नहीं कर पता था और इसीलिए उसने अपनी कल्पना की दुनिया मे मुग्धा नाम के एक किरदार को जन्म दिया, वो उसके सपनों मी आने लगी, देव उससे सब कुछ शेयर करने लगा, एण्ड नाउ ही इस मेंटली ईल, वो अपनी ही बनाई दुनिया मे खो गया है”
डॉक्टर बोल ही रहे थे के नील बीच मे बोल पड़ा
“लेकिन डॉक्टर उसका वजन कम हो रहा है रात को वो अजीब हरकते करता है उसका क्या? और ये दिमागी बीमारी ऐसे अचानक उसपर हावी कैसे हो गई, देखो उसको वो कितना कमजोर हो गया है, इसका कोई इलाज तो होगा?”
“नील रीलैक्स, ऐसा होता है, दिमागी बीमारी का मरीज के शरीर पर भी असर दिखता है, मैं कुछ दवाईया लिख कर दे रहा हु इन्हे ध्यान से देव को देना तुम्हारा काम है, इससे उसे रात मे अच्छी नींद आएगी, डॉन्ट वरी तुम्हारा भाई ठीक हो जाएगा”
नील ने डॉक्टर की बताई दवाईया ले ली थी, अस रात देव और भी ज्यादा अजीब तरीके से बिहेव कर रहा था जैसे खाना खाते हुए उसका हाथ बीच मे ही रुक जता था, एक ही निवाले को देर तक चबाते रहता था, उसका ये हाल देख उसके पिता को उसपर घिन आ रही थी, अपने बाप से एक जोरदार गाली खाने के बाद देव थोड़ा होश मे आया और उसने खाना शुरू किया, एक तरफ बाप की गाली दूसरी तरफ मा के ताने शुरू ही थे वही नील दोनों को चुप कराने की कोशिश कर रहा था, खाना होने के बाद नील देव को उसके कमरे मे ले गया और डॉक्टर की बताई दवाई उसे दी, कुछ ही समय मे देव गहरी नींद मे था, नील कुछ समय उसके पास ही बैठा, आज देव कीसी भी तरह की कोई भी हलचल नहीं कर रहा था,
नील 2 घंटे तक देव के पास बैठा रहा और इन दो घंटों मे देव ने कोई हलचल नहीं की वो आराम से सो रहा था, कई दिनों से चलते आ रहे देव की तगमग को आज आराम मिला था, उसे शांत सोता देख नील ने चैन की सास ली और अपने कमरे मे चला गया
अगली सुबह सब जाग चुके थे और अपने अपने कामों मे लगे हुए थे सिर्फ देव को छोड़ कर जो अपने कमरे मे सोया हुआ था, देव की मा उसके नाम से चिल्ला रही थी 8 बज चुके थे और उन्हे देव का देर तक सोना पसंद नहीं आ रहा था वही नील उन्हे शांत करवाने मे लगा हुआ था, नील समझ रहा था के रात को दी हुई दवाइयों के असर से देव सोया हुआ था लेकिन ये बात बाकी लोग नहीं समझ रहे थे, देव के पिता जी अब भी उसकी हालत नहीं समझ पा रहे थे उनके हिसाब से देव ये सब नाटक कर रहा था जिससे वो अपनी मनमानी कर पाए और उसे दोबारा बैंक की नौकरी ना करनी पड़े इसिलीये जब नील ने उन्हे कहा के देव को आराम करने दे तो उन्होंने निराशा मे अपनी गर्दन हिला दी
8 से 9 हुए लेकिन देव अभी तक सो रहा था और आखिर मे नील उसके कमरे की ओर गया, कमरे का दरवाजा खुला ही था और जैसे ही नील ने अंदर का हाल देखा उसके पैरों तले जमीन खिसक गई उसे सहारे के लिए दरवाजा पकड़ना पड़ा
देव के मुह से खून निकल रहा था और पूरा बेड उसके खून से सना हुआ था, हड्डी के ढांचे पर मांस चिपका दिया हो ऐसा देव का पतला शरीर उससे देखा नहीं जा रहा था, सामने का दृश्य एकदम भयानक था जिसे देख नील की हालत खराब हो गई थी, देव ने अपनी सफेद आंखे नील की ओर घुमाई जिसे देख नील चिल्लाने लगा था
“पापा..... पापा.....”
नील का आवाज सुन उसके पिताजी दौड़ कर ऊपर आए, देव की हालत देख उसके पिता जी भी मन बेचैन हो गया था रमेश को कुछ समझ नहीं आ रहा था, देव अपनी जगह से हिल भी नहीं पा रहा था लेकिन उसकी आंखे उसकी आँखों की पुतलिया गोल गोल घूम रही थी मदद की गुहार लगा रही थी...
रमेश और नील दोनों ने मिल कर देव को उठाया, देव के शरीर मे मानो प्राण बचे ही नहीं थे वो कीसी लक्ष जैसा लग रहा था.. देव के चेहरे को देख कर तो उसकी मा बेहोश ही हो गई थी, देव से बोलते भी नहीं बन रहा था दांत किटकिटा रहे थे शरीर ने हलचल एकदम ही बंद कर दी थी
उसको अस्पताल ले जाया गया, देव की हालत देख डॉक्टर भी हैरान थे, सारे टेस्टस किए गए लेकिन उसमे कुछ भी नहीं निकला था, कभी अच्छी खासी पर्सनैलिटी वाला देव आज हड्डियों का ढांचा बन गया था, वो पहचान मे भी नहीं आ रहा था, हार्ट मोनिटर से ये पता चल रहा था दिल की धड़कने ऊपर नीचे हो रही थी, बस वही एक चीज देव के जींद होने का सबूत दे रही थी
नील की बातों पर डॉक्टर को भरोसा ही नहीं हो रहा था के एक ही रात मे अच्छे खासे देव की ये हालत कैसे हो गई और अब इस बारे मे सोचने का वक्त नहीं था... देव की हालत बिगड़ती जा रही थी और डॉक्टर की टीम उसे बचाने की कोशिश मे लगे हुए थे
नील, उसके पिता रमेश हैरान परेशान से बाहर बैठे थे के अचानक उन्हे अंदर से डॉक्टर ने बुलाया और रमेश तुरंत देव के बेड पास पहुचे
देव का पूरा शरीर पसीने मे तरबतर था लेकिन चेहरे पर स्माइल कायम बनी हुई थी
हार्ट मोनिटर मशीन की टिक टिक शुरू थी जिसपर बनती लकिरे देव के जिंदा होने की गवाही दे रही थी, हमेशा देव को नीचा, कमजोर समझने वाले उसके पिता उसे अब फिक्र की नजरों से देख रहे थे...
नील थोड़ा खुश हो गया था क्युकी उसे उसका भाई थोड़ा नॉर्मल लग रहा था, देव ने कांपते हाथों से अपने पिता का हाथ पकड़ा
“पापा, जो भी मैं कहने वाला हु उसे ध्यान से सुनना, मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है”
देव की बात सुन उसके पिता शॉक रह गए
“ज्यादा वक्त नहीं है मतलब?... देव तुम्हें कुछ नहीं होगा”
देव ने अपनी गर्दन नील की ओर घुमाई और उसे देखने लगा
“जो होना था हो चुका है... कल मैं उससे नहीं मिल पाया इसीलिए आज वो मुझे हमेशा के लिए लेने आ गई है... आपको याद है पापा मुझे राइटर बनना था लेकिन वो हो ना सका, आपकी जिद्द की वजह से मैं जॉब करने लगा था लेकिन मेरी कल्पनाओ ने मेरी कहानियों ने कभी भी मेरा साथ नहीं छोड़ा, मेरा कल्पना विश्व अलग है, मेरी दुनिया अलग है जो अब मुझे बुला रही है, मैंने कभी नहीं सोचा था के मेरी बनाई वो दुनिया मेरी असल दुनिया पर हावी हो सकती है”
देव क्या बोल रहा था ये ना तो नील को समझ रहा था ना ही रमेश को लेकिन वो शांति से उसकी बात सुन रहे थे
“मैंने ही उसे बनाया था, वो मेरी दुनिया मे मेरी ही बनाई हुई सबसे ज्यादा ताकतवर चुड़ैल थी... अगर मैं लेखक बन जाता तो उसे उसी दुनिया मे हरा देता, उसपर कोई कीतब लिख उसे उसी मे खत्म कर देता लेकिन वो हो ना सका, मैं असल जिंदगी मे उलझता गया और उसे नहीं हरा सका... मैं समझ गया था वो मुझ पर हावी हो चुकी है.. मैं काम मे गलतिया करने लगा, मैं उसके बहकावे मे आने लगा और मुझे आप लोगों की बाते सुननी पड़ी, मैं अपनी तकलीफ कीसी को नहीं बता सकता था, कोई नहीं जानता था अंदर से मैं कितना टूट चुका हु, मैं मन ही मन रो रहा था और तब वो मेरी जिंदगी मे आई, वो जो मेरी कहानी की खलनायिका थी उसने मेरा दुख समझ, बस वही थी जिसे मैं अपने मन की बाते बता पाया, मैं उसे सब कुछ बताने लगा, वो लोगों को भ्रमित करती है उन्हे मार देती है ये जानते हुए भी मैं अपने कल्पना विश्व मे उसमे उलझने लगा था, ख्वाबों की उस भूलभुलैया मी घुसता गया, मैं समझ नहीं सका के वो मुझे अपने फायदे के लिए अपनी ओर खिच रही थी, मैंने ही उसे बनाया था और अब वो मुझसे कह रही है मैं उसके लिए एक नई दुनिया का निर्माण करू जहा वो सबसे शक्तिशाली हो अब वो मुझे नहीं छोड़ेगी, उसे भी मेरा साथ अच्छा लगने लगा है, अब वो मुझे अपनी दुनिया मे ले जाने आ रही है, जहा बस हम दोनों होंगे और कोई नहीं और यही बताने उसने मुझे यहा भेजा है”
नील और उसके पिता को कुछ समझ नहीं आ रहा था
“नील, मेरे पलंग के नीचे एक बॉक्स है, उसी बॉक्स मे खजाना रखा हुआ है, मुग्धा मुझे हमारी हर मुलाकात के बाद एक नजराना देती थी उस बक्से मे वही है जिसे तुम लोग यूज कर सकते हो, पापा मुझे माफ कर देना मैं उसे नहीं हरा पाया, उसने मेरे मन पर कब्जा कर लिया है, मेरे जाने का वक्त आ गया है, देखो... देखो... वो.. वो आ गई है.... वो मुझे बुला रही है.... देखो....”
देव अपने ख्वाबों की भूलभुलैया मे उलझ कर एकदम जल्दी जल्दी मे सब कुछ बोलते हुए शांत हो गया था, हार्ट मॉनीटर पर की ऊपर नीचे होती हुई लाइन अब एक सीधी रेखा बन चुकी थी, देव की आंखे ऊपर कुछ देख रही थी और चेहरे पर एक मुस्कान थी और मुसकुराते हुए ही उसने अपने प्राण छोड़े थे... उसके हाथ की भींच रखी मुट्ठीया अब ढीली हो गई थी जिसमे से एक सोने का सिक्का खन की आवाज के साथ देव के हाथ से छूट कर जमीन पर गिरा.... वो सिक्का नील ने उठाया.... डॉक्टर ने देव को मृत घोषित कर दिया था, देव ने क्या बोला है इसका मतलब कोई नहीं समझ पाया था लेकिन अब देव वहा पहुच चुका था जहा उसे जाना था,
आज देव की तेरवी हो चुकी थी, ये सब जो कुछ भी हुआ था बहुत जल्दी जल्दी हुआ था और कल्पनाओ से परे था, देव के जाने का सबसे ज्यादा दुख नील को था... और ऐसे ही देव के बारे मे सोचते हुए नील को अस्पताल मे मिले उस सिक्के का खयाल आया... नील ने अपनी अलमारी खोली जिसमे वो सोने का सिक्का रखा हुआ था.. नील ने उस सिक्के को अच्छे से देखा जिसपर अजीब सी भाषा मे कुछ लिखा हुआ था, नील को अस्पताल मे बोली देव की बाते याद आई और वो देव के कमरे की ओर गया और उसने देव के पलंग के नीचे देखा तो वहा एक लकड़े का बॉक्स रखा था, नील ने वो लकड़े का बॉक्स बाहर निकाला और वो बॉक्स खोला तो उसने बहुत सारे वैसे ही सोने के सिक्के रखे हुए थे जो उसे देव के पास से मिला था उन सिक्कों पर सूरज की किरने पड़ने से वो चमक रहे थे...
समाप्त...