Samar_Singh
Conspiracy Theorist
- 4,548
- 6,196
- 144
Review
Story - Even So I believe my Friend
Writer - Flame Boy
कथानक - सुशील जो की एक मशहूर लेखक और निर्देशक है, जो कहानियां कहने में लाजवाब है, वो अपने पहले प्यार की कहानी अपनी सेक्रेटरी कृतिका को सुनाता है, जब वो दोनो कार में अपने दोस्त की शादी में जाते हैं। एक प्रेम त्रिकोण की कहानी जिसमे सुशील के लेखक बनने की यात्रा है।
आलोचना - एक बेहतरीन कहानी, कहानी का कथानक बेहतरीन तरीके से बताया गया है, कहानी का सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट उसका narration ही है, जो एक साधारण प्रेम कहानी को भी रोचक बना देता है।
कहानी के किरदार विशेष तौर पर सुशील जो बिहार से संबंध रखता है, उसकी हिंदी से ये झलकता भी है की वह किस स्थान से है। कहानी के संवाद और भाषा बहुत अच्छी है।
कई युवा सुशील से जुड़ाव भी महसूस करेंगे क्योंकि अक्सर सबके जीवन में ऐसा प्रेम होता ही है, जो होने से पहले टूट जाता है।
सुशील और कृतिका के बीच की केमिस्ट्री भी मुझे पसंद आई, जिसमे सिर्फ मालिक और सेक्रेटरी नही बल्कि दोस्ती का भाव भी नजर आता है।
सुशील सही ढंग से अपने प्रेम का इजहार नही कर पाया और ऐसे में उसकी जगह उसके दोस्त नमन ने ले ली, अक्सर ऐसे मामलो में मित्रता टूट जाती है, लेकिन सुशील परिपक्वता दिखाते हुए उस बात को स्वीकार करता है और आगे बढ़ने में लग जाता है और जीवन में सफलता हासिल करता है, हालाकि पहले प्यार का दर्द दिल में बना रहता है, इसलिए आज भी उसके पर्स में नव्या की तस्वीर है।
कहानी मूव ऑन करना सिखाती है, देवदास बनने वाली सोच को चुनौती देती है।
हालाकि कहानी में हिंदी के साथ साथ इंग्लिश का भी काफी प्रयोग हुआ है, लेकिन ये परेशान नहीं करता, क्योंकि इंग्लिश के सभी संवाद कृतिका और सुशील के बीच है, जिससे पता चलता है की प्रोफेशनल जीवन में वो अधिकतर इंग्लिश ही बोलते है।
कुछ जगह पर एक दो लेखन को त्रुटियां हुई है, जिन्हे हटाया जा सकता था, लेकिन बहुत कम है। इंग्लिश संवादों को हिंदी में अनुवादित करके शब्दों की सीमा को बर्बाद किया गया है, इसकी जगह कुछ और बातें कहानी में लिखी जा सकती थी।
कुल मिलाकर कहानी मुझे बहुत पसंद आई।
Story - Even So I believe my Friend
Writer - Flame Boy
कथानक - सुशील जो की एक मशहूर लेखक और निर्देशक है, जो कहानियां कहने में लाजवाब है, वो अपने पहले प्यार की कहानी अपनी सेक्रेटरी कृतिका को सुनाता है, जब वो दोनो कार में अपने दोस्त की शादी में जाते हैं। एक प्रेम त्रिकोण की कहानी जिसमे सुशील के लेखक बनने की यात्रा है।
आलोचना - एक बेहतरीन कहानी, कहानी का कथानक बेहतरीन तरीके से बताया गया है, कहानी का सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट उसका narration ही है, जो एक साधारण प्रेम कहानी को भी रोचक बना देता है।
कहानी के किरदार विशेष तौर पर सुशील जो बिहार से संबंध रखता है, उसकी हिंदी से ये झलकता भी है की वह किस स्थान से है। कहानी के संवाद और भाषा बहुत अच्छी है।
कई युवा सुशील से जुड़ाव भी महसूस करेंगे क्योंकि अक्सर सबके जीवन में ऐसा प्रेम होता ही है, जो होने से पहले टूट जाता है।
सुशील और कृतिका के बीच की केमिस्ट्री भी मुझे पसंद आई, जिसमे सिर्फ मालिक और सेक्रेटरी नही बल्कि दोस्ती का भाव भी नजर आता है।
सुशील सही ढंग से अपने प्रेम का इजहार नही कर पाया और ऐसे में उसकी जगह उसके दोस्त नमन ने ले ली, अक्सर ऐसे मामलो में मित्रता टूट जाती है, लेकिन सुशील परिपक्वता दिखाते हुए उस बात को स्वीकार करता है और आगे बढ़ने में लग जाता है और जीवन में सफलता हासिल करता है, हालाकि पहले प्यार का दर्द दिल में बना रहता है, इसलिए आज भी उसके पर्स में नव्या की तस्वीर है।
कहानी मूव ऑन करना सिखाती है, देवदास बनने वाली सोच को चुनौती देती है।
हालाकि कहानी में हिंदी के साथ साथ इंग्लिश का भी काफी प्रयोग हुआ है, लेकिन ये परेशान नहीं करता, क्योंकि इंग्लिश के सभी संवाद कृतिका और सुशील के बीच है, जिससे पता चलता है की प्रोफेशनल जीवन में वो अधिकतर इंग्लिश ही बोलते है।
कुछ जगह पर एक दो लेखन को त्रुटियां हुई है, जिन्हे हटाया जा सकता था, लेकिन बहुत कम है। इंग्लिश संवादों को हिंदी में अनुवादित करके शब्दों की सीमा को बर्बाद किया गया है, इसकी जगह कुछ और बातें कहानी में लिखी जा सकती थी।
कुल मिलाकर कहानी मुझे बहुत पसंद आई।