Haa bhai, aakriti ne dhokha kiya Aryan ke sath, aur andhere me kya kya kiya se bhi samajh jaaoAwesome update bhai
Aaryan ke saath aakriti thi use samay slaka ke bhesh mei aur usne amrit bhi pi liya kya?
Nice update.....#152.
वेदांत रहस्यम्
(15 जनवरी 2002, मंगलवार, 15:00, ट्रांस अंटार्कटिक माउन्टेन, अंटार्कटिका)
विल्मर को सुनहरी ढाल देने के बाद शलाका ने जेम्स को वापस उसी कमरे में रुकाया और स्वयं अपने शयनकक्ष में आ गई।
शलाका ने अपने भाईयों पर नजर मारी जो कि दूसरे कमरे में थे।
शलाका ने अब अपने कमरे का द्वार अंदर से बंद कर लिया, वह नहीं चाहती थी कि वेदांत रहस्यम् पढ़ते समय कोई भी उसे डिस्टर्ब करे।
कक्ष में मौजूद अलमारी से शलाका ने वेदांत रहस्यम् निकाल ली और उसे ले अपने बिस्तर पर आ गई।
लाल रंग के जिल्द वाली, 300 पृष्ठ वाली, 5,000 वर्ष पुरानी, आर्यन के द्वारा लिखी किताब अब उसके सामने थी।
शलाका जानती थी कि इसी किताब में वह रहस्य भी दफन है कि आर्यन ने क्यों अपनी इच्छा से अपनी मौत का वरण किया? यह पुस्तक अपने अंदर सैकड़ों राज दबाये थी, इसलिये उसे खोलते समय शलाका के हाथ कांपने लगे।
शलाका ने वेदांत रहस्यम् का पहला पृष्ठ खोला।
पहले पृष्ठ पर वेदालय की फोटो बनी थी। जिसे आर्यन ने अपनी स्मृति से रेखा चित्रों के माध्यम से बनाया था। उसे देखकर एक पल में ही शलाका 5,000 वर्ष पहले की यादें अपने दिल में महसूस करने लगी।
शलाका जानती थी, कि यह किताब जादुई है, अगर उसने वेदालय की फोटो को छुआ, तो वह उस स्थान पर पहुंच जायेगी, इसलिये इच्छा होने के बाद भी शलाका ने वेदालय की फोटो को स्पर्श नहीं किया।
शलाका ने अब दूसरा पृष्ठ पलटा। उस पृष्ठ पर वेदालय की वह तस्वीर थी, जब पहली बार सभी वेदालय में प्रविष्ठ हुए थे।
उस तस्वीर में आकृति, आर्यन से चिपक कर खड़ी थी और शलाका उनसे थोड़ा दूर खड़ी थी।
कुछ देर के लिये ही सही पर यह तस्वीर देखते ही शलाका के मन में आकृति के लिये गुस्सा भर गया।
शलाका ने अब एक-एक कर पन्ने पलटने शुरु कर दिये।
आगे के लगभग 30 पेज वेदालय की अलग-अलग यादों से भरे हुए थे। पर एक पेज पलटते ही शलाका से रहा नहीं गया, उसने उस तस्वीर को छू लिया।
एक पल में ही शलाका उस तस्वीर में समाकर उस काल में पहुंच गई, जहां वह एक नदी के किनारे आर्यन के साथ अकेली थी।
आर्यन और शलाका दोनों ही इस समय xyz (chhote) वर्ष के थे।
तो आइये दोस्तों देखते हैं कि ऐसा क्या था उस फोटो में कि शलाका अपने आप को उसे छूने से रोक नहीं पायी।
वेदालय से कुछ दूरी पर एक सुंदर सी झील थी, जहां इस मौसम में बहुत से पंछी और चिड़िया उड़कर, उस स्थान पर आते थे।
इस समय जिधर नजर जा रही थी, उधर चारो ओर रंग-बिरंगे फूल, तितलियां और पंछी दिखाई दे रहे थे। ऐसे मौसम में आर्यन और शलाका उस स्थान पर बैठे थे।
“आज तो छुट्टी का दिन था फिर तुम मुझे यहां पर क्यों लाये आर्यन?” शलाका ने अपनी नन्हीं आँखों से आर्यन को देखते हुए पूछा।
“क्यों कि तुम मुझसे एक छोटी सी शर्त हार गई थी और शर्त केअनुसार एक दिन के लिये मैं जो कहूं, वो तुम्हें मानना पड़ता, तो फिर मैंने सोचा कि क्यों ना मैं तुम्हें अपनी सबसे फेवरेट जगह दिखाऊं, बस यही सोच मैं तुम्हें यहां ले आया। मुझे पता है कि अगर शर्त नहीं होती तो तुम कभी मेरे साथ नहीं आती। पर सच कहूं तो मैं तुम्हें ऐसे अकेले कमरे में बंद पड़े नहीं देख सकता। तुम पता नहीं कमरे से बाहर क्यों नहीं निकलती?”
“वो....वो मैं तुमसे बात करना चाहती हूं, तुम्हारे साथ घूमना भी चाहती हूं, पर वो आकृति हमेशा तुम्हारे साथ रहती है और वह मुझसे बहुत चिढ़ती है, बस इसी लिये मैं तुम्हारे साथ बाहर कहीं नहीं जाती।”
शलाका ने धीरे से कहा।
“कोई बात नहीं, पर आज तो आकृति मेरे साथ नहीं है...आज तुम यहां मेरे साथ खेल सकती हो।” आर्यन ने भोला सा चेहरा बनाते हुए कहा।
“ठीक है, पर तुम यहां पर आकर कौन सा खेल खेलते हो?” शलाका ने आर्यन की बातों में रुचि लेते हुए कहा।
“मैं यहां पर प्रकृति को महसूस करने वाला खेल खेलता हूं। क्या यह खेल तुम मेरे साथ खेलोगी?” आर्यन ने कहा।
“पर मुझे तो ये खेल नहीं आता। इसे कैसे खेलते हैं आर्यन?” शलाका ने कहा।
“यह खेलना बहुत आसान है...सबसे पहले हम कोई चिड़िया ले लेते हैं और उसे महसूस करते हैं।”
“चिड़िया?” शलाका को कुछ भी समझ में नहीं आया- “चिड़िया में महसूस करने वाला क्या होता है आर्यन?”
“रुको , मैं तुम्हें यह करके दिखाता हूं।” यह कहकर आर्यन ने इधर-उधर देखा।
आर्यन को कुछ दूरी पर एक नन्ही सी लाल रंग की चिड़िया उड़ती हुई दिखाई दी, आर्यन उस चिड़िया की ओर दौड़ा।
चिड़िया एक नन्हें बच्चे को अपनी ओर भागते देख, चीं-चीं कर तेजी से उड़ने लगी।
आर्यन ने कुछ देर तक चिड़िया को देखा और फिर वह चिड़िया के समान ही आवाज निकालता उस चिड़िया से अलग दिशा में दौड़ा।
चिड़िया उस नन्हें बालक को अपनी तरह बोलता देख, आर्यन के पीछे-पीछे उड़ने लगी।
अब नजारा उल्टा था, पहले चिड़िया के पीछे आर्यन था, पर अब आर्यन के पीछे चिड़िया।
सच कहें तो शलाका को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, पर आर्यन के पीछे चिड़िया का भागना उसे अच्छा लग रहा था।
अब आर्यन एक जगह पर रुक गया, और अपने दोनों हाथों को फैलाकर, फिर चिड़िया की तरह बोलने लगा।
कुछ ही देर में चिड़िया आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गयी, आर्यन ने धीरे से चिड़िया के पंखों को सहलाया।
चिड़िया को आर्यन का सहलाना बहुत अच्छा लगा, वह फिर चीं-चीं कर मानो आर्यन को और ऐसा करने को कह रही थी।
आर्यन ने अब उसे कई बार सहलाया और फिर उसे लेकर शलाका के पास आ गया।
“अब अपना हाथ आगे करो शलाका।” आर्यन ने शलाका से कहा।
शलाका ने डरते-डरते अपना हाथ आगे कर दिया। आर्यन ने नन्हीं चिड़िया को शलाका के हाथों पर रख दिया।
नन्हीं चिड़िया शलाका के हाथ पर फुदक कर चीं-चीं कर रही थी।
कुछ ही देर में शलाका का डर खत्म हो गया और वह भी चिड़िया के साथ खेलने लगी।
शलाका चिड़िया से खेलने में इतना खो गई कि वह भूल गई कि आर्यन भी उसके साथ है।
“क्या अब तुम इस चिड़िया को महसूस कर पा रही हो शलाका?” आर्यन ने शलाका से पूछा।
“हां.... इस चिड़िया का धड़कता दिल, इसके खुशी से फुदकने का अहसास, इसका पंख पसार कर उड़ना, इसका मेरे हाथों पर चोंच मारना, मुझे सबकुछ महसूस हो रहा है आर्यन। सच कहूं तो यह बहुत अच्छी फीलिंग है, मैंने ऐसा पहले कभी नहीं महसूस किया।”
“यही प्रकृति है शलाका, अगर हम अपने आसपास की चीजों को दिल से महसूस करने लगें तो हम कभी स्वयं को अकेला महसूस नहीं करेंगे। अकेले होकर भी कभी हम दुखी नहीं होंगे।”
आर्यन ने अब उस नन्हीं चिड़िया को चीं-चीं कर कुछ कहा और फिर उसे आसमान में उड़ा दिया।
“क्या तुम्हें पंछियों की भाषा आती है आर्यन?” शलाका ने आर्यन की आँखों में देखते हुए पूछा।
“नहीं !”
“तो फिर तुम उस चिड़िया से बात कैसे कर रहे थे?” शलाका ने हैरानी से कहा।
“किसने कहा कि मैं उससे बात कर रहा था। मैं तो बस उसे महसूस कर रहा था, पर महसूस करते-करते, वह मेरी भावनाओं को स्वयं समझ जा रही थी।” आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा।
तभी शलाका को एक फूल पर बैठी बहुत ही खूबसूरत तितली दिखाई दी, जो नीले और काले रंग की थी।
उसे देख शलाका ने उसे पकड़ लिया।
वह तितली अब शलाका की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी।
यह देख आर्यन ने शलाका का हाथ थाम लिया और बोला- “किसी को दुख पहुंचा कर हमें खुशी कभी नहीं मिल सकती शलाका।”
आर्यन के शब्द सुन शलाका ने अपनी चुटकी खोलकर उस तितली को उड़ा दिया।
यह देख आर्यन ने अपने हाथ पसार कर अपने मुंह से एक विचित्र सी ध्वनि निकाली, ऐसा करते ही पता नहीं कहां से सैकड़ों तितलियां आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गईं।
“एक बार तितली को तुम छूकर के देख लो, हर पंख उसका छाप दिल पर छोड़ जायेगा।”
आर्यन के शब्द समझ शलाका ने अपने हाथों की ओर देखा, जिस पर तितली का नीला और काला रंग अब भी लगा था।
तितली का रंग शलाका के हाथ पर एक छाप छोड़ गया था, पर आर्यन का रंग शलाका के दिल पर एक अमिट छाप छोड़ रहा था, वह अब महसूस कर रही थी, इस पूरे जहान को, नीले से आसमान को....और
कुछ अलग सा महसूस कराने वाले उस आर्यन को............।”
शलाका अब वापस अपने कमरे में आ गई थी, पर उन कुछ पलों ने शलाका के दिमाग में एक हलचल सी मचा दी थी।
कुछ पलों तक शलाका यूं ही बैठी रही फिर उसने एक गहरी साँस भरी और वेदांत रहस्यम् के आगे के पन्नों को पलटने लगी।
धीरे-धीरे वेदालय की सभी घटनाएं निकल गईं। इसके बाद कुछ और चित्र नजर आये, पर वह शलाका के लिये जरुरी नहीं थे, उसे तो बस अब रहस्य जानना था, इसलिये शलाका ने जल्दी-जल्दी बहुत से पृष्ठ पलट
दिये।
अब शलाका की नजर एक ऐसे पृष्ठ पर थी, जिसमें आर्यन शलाका के साथ उसके कमरे में था, पर बहुत याद करने के बाद भी शलाका को कोई ऐसी स्मृति याद नहीं आयी, यह सोच शलाका ने उस फोटो को भी छू लिया।..............
“शलाका-शलाका कहां हो तुम?” आर्यन, शलाका को आवाज देते हुए अपने घर में प्रविष्ठ हुआ- “देखो मैं वापस आ गया।” आर्यन यह कहते हुए धड़धड़ा कर अपने कमरे में प्रविष्ठ हो गया।
कमरे में शलाका एक अलमारी के पास खड़ी थी, आर्यन ने उसे देखते ही गोद में उठा लिया और उसे पूरे कमरे में नचाने लगा- “आज मेरा सपना पूरा हो गया, आज मैंने वो हासिल कर लिया, जिसकी वजह से अब हम सदियों तक साथ रह सकते हैं। अब मुझे तुमसे कोई अलग नहीं कर सकता, यहां तक कि मौत भी नहीं।” यह कहकर आर्यन ने शलाका को नीचे उतार दिया।
“तुमने.... तुमने ऐसा क्या प्राप्त कर लिया आर्यन? जिससे अब तुम सदियों तक मेरे साथ रहोगे।” शलाका ने अपना चेहरा आर्यन की ओर से दूसरी ओर घुमाते हुए कहा।
“ये लो कितनी भुलक्कड़ हो यार तुम। अरे मैंने तुम्हें जाने से पहले बताया तो था कि मैं, हम दोनों के लिये ब्रह्मकलश से अमृत लेने जा रहा हूं।” आर्यन ने कहा।
“तो क्या....तो क्या तुम्हें अमृत प्राप्त हो गया?” शलाका के शब्द कांप रहे थे।
“ऐसा हो सकता है क्या कि मैं कोई चीज चाहूं और मुझे ना मिले?”
आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा- “अरे हां यार...मैंने अमृत की 2 बूंदें प्राप्त कर लीं। अब हम शादी शुदा जिंदगी बिताते हुए भी अमरत्व प्राप्त कर सकते हैं।” यह कहते हुए आर्यन ने 2 नन्हीं सुनहरी धातु की बनी शीशियां शलाका के सामने रख दीं।
“और अब हम कल सुबह नहा कर, पूजा करके इस अमृत को धारण करेंगे।” आर्यन के शब्दों में खुशी साफ झलक रही थी- “और ये तुम अपना मुंह घुमाकर क्या बात कर रही हो? मैं 3 महीने के बाद वापस आया हूं और तुम अजीब सी हरकतें कर रही हो।”
“क्या हम इसे अभी नहीं पी सकते?” शलाका ने पलटते हुए कहा- “सुबह का इंतजार करने से क्या फायदा?”
“नहीं हम इसे सुबह ही पीयेंगे।” आर्यन ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा।
“तो फिर हम अभी क्या करेंगे?” शलाका ने आर्यन की ओर देखते हुए पूछा।
“ये लो ये भी कोई पूछने की बात है?” आर्यन ने हंसकर शलाका को पकड़ लिया- “अभी हम सिर्फ और सिर्फ प्यार करेंगे।”
यह कहकर आर्यन ने वहां जल रही शमा को बुझा दिया। कमरे में अब पूरा अंधेरा छा गया था। इसी के साथ शलाका वापस वेदांत रहस्यम् के पास आ गई।
पर इस समय शलाका की आँखें, उसका चेहरा और यहां तक कि उसके बाल भी अग्नि के समान प्रतीत हो रहे थे क्यों कि जिस शलाका को वह अभी आर्यन के साथ देखकर आ रही थी, वह वो नहीं थी।
शलाका ने तुरंत अपनी भावनाओं को नियंत्रण में किया, नहीं तो उसकी अग्नि शक्ति से अभी वेदांत रहस्यम् भी जल जाती।
“काश....काश इस वेदांत रहस्यम् से भूतकाल को बदला जा सकता।” शलाका ने गुर्राकर कहा और जल्दी से वेदांत रहस्यम् का अगला पन्ना खोल दिया।
जारी रहेगा______![]()
Bhut hi badhiya update Bhai#151.
चैपटर-3
रहस्यमय नेवला: (तिलिस्मा 2.11)
सुयश सहित सभी अब तिलिस्मा के दूसरे द्वार पर खड़े थे।
दूसरे द्वार में सभी को एक बड़े से कमरे में 2 विशाल गोल क्षेत्र बने दिखाई दिये, जो कि आकार में लगभग 40 फुट व्यास के बने थे।
उन दोनों गोल क्षेत्रों के बीच 1-1 वर्गाकार पत्थर रखा था। एक पत्थर पर नेवले की मूर्ति और दूसरे पत्थर पर एक ऑक्टोपस की मूर्ति रखी थी।
नेवले की मूर्ति के आगे लगी नेम प्लेट पर 1 और ऑक्टोपस की मूर्ति के आगे लगी नेम प्लेट पर 2 लिखा था।
दोनों ही गोल क्षेत्रों की जमीन 1 वर्ग मीटर के संगमरमर के पत्थरों से बनी थी।
“नेवले की मूर्ति के नीचे 1 लिखा है, हमें पहले उस क्षेत्र में ही चलना होगा।” सुयश ने सभी की ओर देखते हुए कहा।
सभी ने सिर हिलाया और नेवले की मूर्ति के पास पहुंच गये। अब सभी संगमरमर के पत्थरों पर खड़े थे।
नेम प्लेट पर, जहां 1 नंबर लिखा था, उसके नीचे 2 लाइन की एक कविता भी लिखी थी-
“जीवनचक्र का है इक सार,
लगाओ परिक्रमा खोलो द्वार”
“इन पंक्तियों का क्या मतलब हुआ कैप्टेन?” जेनिथ ने सुयश की ओर देखते हुए पूछा- “यहां तो कोई भी द्वार नहीं है, यह नेवला हमें कौन से द्वार को खोलने की बात कर रहा है?”
सुयश ने जेनिथ की बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह तेजी से कुछ सोच रहा था।
कुछ देर के बाद सुयश ने अपना पैर संगमरमर के पत्थरों से बाहर निकालने की कोशिश की, परंतु जैसे ही उसका पैर उस गोल क्षेत्र के बाहर निकला, उसे करंट का बहुत तेज झटका महसूस हुआ।
“अब हम इस संगमरमर के क्षेत्र से बाहर नहीं निकल सकते, अगर किसी ने कोशिश की तो उसे करंट का तेज झटका लगेगा।”
सुयश ने अब जेनिथ का उत्तर देते हुए कहा- “समझ गई जेनिथ? यानि कि अब हम इस नेवले की पहेली को सुलझाए बिना इस स्थान से बाहर नहीं जा सकते और कविता की पंक्तियां पढ़कर ऐसा लग रहा है कि हमें इस नेवले की मूर्ति का 1 चक्कर लगाना होगा।”
“पर नेवले की मूर्ति का चक्कर लगाना तो बहुत आसान कार्य है।” ऐलेक्स ने सुयश को देखते हुए कहा।
“ब्वॉयफ्रेंड जी, इस तिलिस्मा में कुछ भी आसान नहीं है।” क्रिस्टी ने ऐलेक्स से मजा लेते हुए कहा- “अवश्य ही इन बातों में कोई ना कोई पेंच है?”
“अच्छा जी, तो तुम्हीं बता दो कि क्या पेंच है, इन पंक्तियों में?” ऐलेक्स ने क्रिस्टी को देखकर हंसते हुए कहा।
“कैप्टेन क्या मैं नेवले का एक चक्कर लगा कर देखूं।” ऐलेक्स ने सुयश से इजाजत मांगते हुए कहा- “क्यों कि बिना कुछ किये तो हमें कुछ भी समझ में नहीं आयेगा?”
ऐलेक्स की बात में दम था, इसलिये सुयश ने ऐलेक्स को इजाजत दे दी। ऐलेक्स ने मूर्ति का एक चक्कर लगाना शुरु कर दिया।
सभी की नजरें ध्यान से वहां घटने वाली हर एक घटना पर थीं। पर जैसे ही ऐलेक्स का चक्कर पूरा हुआ, वह धड़ाम से जमीन पर गिर गया।
ऐलेक्स को ऐसा महसूस हुआ कि जैसे उसके पूरे बदन की शक्ति ही खत्म हो गई हो।
उसे गिरते देख सभी भागकर ऐलेक्स के पास आ गये।
“क्या हुआ ऐलेक्स? तुम ठीक तो हो ना?” क्रिस्टी ने घबराते हुए पूछा।
“ऐसा लग रहा है कि जैसे मेरे बदन की पूरी शक्ति खत्म हो गई है।” ऐलेक्स ने पड़े-पड़े ही जवाब दिया- “मैं सबकुछ देख और महसूस कर पा रहा हूं, बस उठ नहीं पा रहा।”
“इसका मतलब तुमने गलत तरीके से चक्कर लगाया है।” सुयश ने चारो ओर देखते हुए कहा- “हमें फिर से इन पंक्तियों का मतलब समझना पड़ेगा और तुम परेशान मत हो क्रिस्टी, मुझे पूरा विश्वास है कि जैसे ही हम इस द्वार की पहेली को सुलझा लेंगे, ऐलेक्स फिर से ठीक हो जायेगा। याद करो मैग्नार्क द्वार में ऐसा तौफीक के साथ भी हो गया था।”
सुयश के शब्द सुन, क्रिस्टी थोड़ा निश्चिंत हो गई।
“कैप्टेन, मुझे लगता है कि ऐलेक्स ने ‘एंटी क्लाक वाइज’ (घड़ी के चलने की विपरीत दिशा) चक्कर लगाया था और इन पंक्तियों में जीवनचक्र की बात की गई है। अब जीवनचक्र तो समय के हिसाब से ही चलता है, तो इसके हिसाब से एंटी क्लाक वाइज तो परिक्रमा लगाई ही नहीं जा सकती।” क्रिस्टी ने कहा।
“क्रिस्टी सहीं कह रही है, यह स्थान किसी मंदिर की भांति बना है और किसी भी मंदिर में एंटी क्लाक वाइज चक्कर नहीं लगाया जाता।” सुयश ने कहा।
“तो क्या मैं क्लाक वाइज चक्कर लगा कर देखूं, हो सकता है कि ऐसा करने से द्वार खुल जाये।” क्रिस्टी ने कहा।
सुयश ने क्रिस्टी की बात सुनकर एक बार फिर ध्यान से उन पंक्तियों को पढ़ा और फिर क्रिस्टी को चक्कर लगाने की इजाजत दे दी।
क्रिस्टी ने क्लाक वाइज चक्कर लगाना शुरु कर दिया, पर इस बार भी चक्कर के पूरा होते ही क्रिस्टी लहरा कर ऐलेक्स जैसी हालत में जमीन पर गिर गई।
“जमीन पर गिरने की आपको ढेरों बधाइयां गर्लफ्रेंड जी, हमारे परिवार में आपका स्वागत है।” ऐलेक्स ने ऐसी स्थिति में भी सबको हंसा दिया।
“मैं तो बस तुम्हारा साथ देने को आयी हूं, वरना मुझे जमीन पर गिरने का शौक नहीं।” क्रिस्टी ने मुंह बनाते हुए कहा।
“कैप्टेन अब हम 4 लोग ही बचे हैं, अब हमें बहुत सोच समझ कर निर्णय लेना होगा।” जेनिथ ने कहा।
“मुझे लगता है कि यहां पर जीवनचक्र की बात हो रही है, तो पहले हमें इस नेवले को जिंदा करना होगा, तभी हम इसका चक्कर लगा सकेंगे।” शैफाली ने काफी देर के बाद कुछ कहा।
अब सबकी निगाह फिर से उस पूरे क्षेत्र में दौड़ गई।
“वैसे शैफाली, तुम यह बताओ कि नेवले का प्रिय भोजन है क्या? इससे हमें कुछ ढूंढने में आसानी हो जायेगी।” जेनिथ ने शैफाली से पूछा।
“वैसे तो नेवला सर्वाहारी होता है, वह मांसाहार और शाकाहार दोनों ही करता है, पर जब भी नेवले की बात आती है, तो उसे सांप से लड़ने के लिये ही याद किया जाता है।” शैफाली ने जेनिथ से कहा- “पर यह जानने का कोई फायदा नहीं है जेनिथ दीदी...आप यहां आसपास देखिये, यहां पर कुछ भी ऐसा नहीं है, जिससे कि इस नेवले को जिंदा किया जा सके।”
तभी ऐलेक्स की आवाज ने सभी को चौंका दिया- “कैप्टेन जरा एक मिनट मेरे पास आइये।”
सुयश सहित सभी ऐलेक्स और क्रिस्टी के पास पहुंच गये- “कैप्टेन मेरे कानों में किसी चीज के रेंगने की आवाज सुनाई दे रही है और वह आवाज इस पत्थर से आ रही है, जिस पर यह नेवला बैठा हुआ है।“
ऐलेक्स की बात सुनकर सभी का ध्यान अब उस पत्थर की ओर चला गया। पत्थर में कहीं कोई छेद नहीं था।
तभी ऐलेक्स का ध्यान पत्थर के ऊपर लगी नेम प्लेट पर चला गया।
“तौफीक जरा अपना चाकू मुझे देना।” सुयश ने तौफीक से चाकू मांगा।
तौफीक ने अपनी जेब से चाकू निकालकर सुयश के हवाले कर दिया।
सुयश ने चाकू की नोंक से उस धातु के स्टीकर को पत्थर से निकाल दिया।
उस धातु के स्टीकर के पीछे एक गोल सुराख था, जैसे ही सुयश ने उस नेम प्लेट को पत्थर से निकाला, उस छेद से एक काले रंग का 5 फुट का नाग निकलकर बाहर आ गया।
सभी उस नाग को देखकर पीछे हट गए। वह नाग अब उस पत्थर पर चढ़कर नेवले के सामने जा पहुंचा।
जैसे ही नाग ने नेवले की आँखों में देखा, नेवला जीवित होकर नाग पर टूट पड़ा।
थोड़ी ही देर के बाद नेवले ने नाग के शरीर को काटकर उसे मार डाला। नाग के मरते ही उसका शरीर गायब हो गया।
अब पत्थर पर जिंदा नेवला बैठा था, जो कि इन लोगों को ही घूर रहा था।
“मेरे हिसाब से अब हमें इसका चक्कर लगाना होगा।” सुयश ने कहा।
“आप रुकिये कैप्टेन, इस बार मैं ट्राई करती हूं, आपका अभी सही रहना ज्यादा जरुरी है।” जेनिथ ने कहा।
“नहीं -नहीं...अब मुझे ही चक्कर लगाने दो। मेरे हिसाब से अब कोई परेशानी नहीं होगी।” सुयश यह कहकर क्लाक वाइज नेवले का चक्कर लगाने लगा।
पर सुयश जिस ओर भी जा रहा था, नेवला अपना चेहरा उस ओर कर ले रहा था। सुयश के 1 चक्कर पूरा करने के बाद भी कोई दरवाजा नहीं खुला।
“अब क्या परेशानी हो सकती है?” सुयश ने कहा।
“जेनिथ।” तभी नक्षत्रा ने जेनिथ को पुकारा।
“हां बोलो नक्षत्रा।” जेनिथ ने अपना ध्यान अपने दिमाग पर लगाते हुए कहा।
“सुयश को बताओ कि भौतिक विज्ञान का नियम यह कहता है कि किसी भी चीज का एक चक्कर तब पूर्ण माना जाता है जब कि चक्कर लगाने वाला या फिर जिसके परितः वह चक्कर लगा रहा है, दोनों में से
कोई एक स्थिर रहे। यहां जब भी सुयश नेवले का चक्कर लगा रहा है, वह अपना चेहरा सुयश की ओर कर ले रहा है, ऐसे में यह चक्कर पूर्ण नहीं माना जायेगा। साधारण शब्दों में सुयश को नेवले का चक्कर लगाने के लिये उसकी पीठ देखनी होगी।”
नक्षत्रा ने भौतिक विज्ञान का एक जटिल नियम आसान शब्दों में जेनिथ को समझाया, पर जेनिथ के लिये विज्ञान किसी भैंस के समान ही था, उसे नक्षत्रा की आधी बातें समझ ही नहीं आयीं।
इसलिये जेनिथ ने सुयश को सिर्फ इतना कहा- “कैप्टेन, नक्षत्रा कह रहा है कि आपको नेवले का चक्कर पूरा करने के लिये नेवले की पीठ देखनी होगी।”
सुयश नक्षत्रा की कही बात को समझ गया।
अब सुयश ने चलने की जगह दौड़कर नेवले का चक्कर लगाया, परंतु नेवले ने अपनी गति को सुयश के समान कर लिया।
“यह तो मुसीबत है।” सुयश ने कहा- “मैं अपनी गति में जितना भी परिवर्तन करुंगा, यह नेवला भी उसी गति में अपना चेहरा मेरे सामने कर ले रहा है, इस तरह तो कभी भी इसका एक चक्कर पूरा नहीं होगा।”
कुछ देर सोचने के बाद सुयश ने तौफीक की ओर देखते हुए कहा- “तौफीक तुम भी आ जाओ, अब मैं थोड़ा तेज चक्कर लगाऊंगा, नेवले का चेहरा हमेशा मेरे सामने ही रहेगा, तुम भी इस पत्थर के चारो ओर धीमे-धीमे चक्कर लगाओ, इस प्रकार मेरा नहीं, बल्कि नेवले के चारो ओर तुम्हारा 1 चक्कर पूरा हो जायेगा और यह द्वार पार हो जायेगा।”
आइडिया बुरा नहीं था। सभी को अब इस द्वार के पार होने की पूरी उम्मीद हो गई थी।
परंतु जैसे ही तौफीक ने परिक्रमा स्थल पर अपना कदम रखा, नेवले ने घूरकर तौफीक को देखा।
नेवले के घूरते ही नेवले के शरीर से एक और नेवला निकलकर उस पत्थर पर दिखाई देने लगा।
अब एक का चेहरा सुयश की ओर था और दूसरे का चेहरा तौफीक की ओर था।
“बेड़ा गर्क।” शैफाली ने अपना सिर पीटते हुए कहा- “कुछ और सोचिये कैप्टेन अंकल, हम तिलिस्मा से बेइमानी नहीं कर सकते।”
सुयश अब फिर से सोच में पड़ गया।
काफी देर तक सोचने के बाद सुयश के दिमाग में एक और प्लान आया।
“तौफीक, हममें से एक को एंटी क्लाक वाइज और दूसरे को क्लाक वाइज चक्कर लगाना होगा, इस प्रकार से हममें से दोनों ही एक-एक नेवले का चक्कर पूरा कर लेंगे। अब परेशानी यह है कि जो भी एंटी क्लाक वाइज चक्कर लगायेगा, उसका हाल भी ऐलेक्स और क्रिस्टी जैसा हो जायेगा, परंतु उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्यों कि तब तक तो यह द्वार भी पार हो जायेगा।” सुयश ने तौफीक की ओर देखते हुए कहा।
तौफीक ने जरा देर तक सुयश का प्लान समझा और फिर मुस्कुरा कर तैयार हो गया।
अब सुयश क्लाक वाइज और तौफीक एंटी क्लाक वाइज चक्कर लगाने लगा।
जैसे ही दोनों का 1 चक्कर पूरा हुआ, वह नेवला वहां से गायब हो गया और ऐलेक्स व क्रिस्टी भी ठीक हो कर खड़े हो गये।
जेनिथ ने संगमरमर के क्षेत्र से अपना हाथ बाहर निकाल कर देखा, अब वहां कोई करंट उपस्थित नहीं था।
यह देख सभी ऑक्टोपस की मूर्ति की ओर चल दिये।
जारी रहेगा_______![]()
Bhut hi shandar update bhai#152.
वेदांत रहस्यम्
(15 जनवरी 2002, मंगलवार, 15:00, ट्रांस अंटार्कटिक माउन्टेन, अंटार्कटिका)
विल्मर को सुनहरी ढाल देने के बाद शलाका ने जेम्स को वापस उसी कमरे में रुकाया और स्वयं अपने शयनकक्ष में आ गई।
शलाका ने अपने भाईयों पर नजर मारी जो कि दूसरे कमरे में थे।
शलाका ने अब अपने कमरे का द्वार अंदर से बंद कर लिया, वह नहीं चाहती थी कि वेदांत रहस्यम् पढ़ते समय कोई भी उसे डिस्टर्ब करे।
कक्ष में मौजूद अलमारी से शलाका ने वेदांत रहस्यम् निकाल ली और उसे ले अपने बिस्तर पर आ गई।
लाल रंग के जिल्द वाली, 300 पृष्ठ वाली, 5,000 वर्ष पुरानी, आर्यन के द्वारा लिखी किताब अब उसके सामने थी।
शलाका जानती थी कि इसी किताब में वह रहस्य भी दफन है कि आर्यन ने क्यों अपनी इच्छा से अपनी मौत का वरण किया? यह पुस्तक अपने अंदर सैकड़ों राज दबाये थी, इसलिये उसे खोलते समय शलाका के हाथ कांपने लगे।
शलाका ने वेदांत रहस्यम् का पहला पृष्ठ खोला।
पहले पृष्ठ पर वेदालय की फोटो बनी थी। जिसे आर्यन ने अपनी स्मृति से रेखा चित्रों के माध्यम से बनाया था। उसे देखकर एक पल में ही शलाका 5,000 वर्ष पहले की यादें अपने दिल में महसूस करने लगी।
शलाका जानती थी, कि यह किताब जादुई है, अगर उसने वेदालय की फोटो को छुआ, तो वह उस स्थान पर पहुंच जायेगी, इसलिये इच्छा होने के बाद भी शलाका ने वेदालय की फोटो को स्पर्श नहीं किया।
शलाका ने अब दूसरा पृष्ठ पलटा। उस पृष्ठ पर वेदालय की वह तस्वीर थी, जब पहली बार सभी वेदालय में प्रविष्ठ हुए थे।
उस तस्वीर में आकृति, आर्यन से चिपक कर खड़ी थी और शलाका उनसे थोड़ा दूर खड़ी थी।
कुछ देर के लिये ही सही पर यह तस्वीर देखते ही शलाका के मन में आकृति के लिये गुस्सा भर गया।
शलाका ने अब एक-एक कर पन्ने पलटने शुरु कर दिये।
आगे के लगभग 30 पेज वेदालय की अलग-अलग यादों से भरे हुए थे। पर एक पेज पलटते ही शलाका से रहा नहीं गया, उसने उस तस्वीर को छू लिया।
एक पल में ही शलाका उस तस्वीर में समाकर उस काल में पहुंच गई, जहां वह एक नदी के किनारे आर्यन के साथ अकेली थी।
आर्यन और शलाका दोनों ही इस समय xyz (chhote) वर्ष के थे।
तो आइये दोस्तों देखते हैं कि ऐसा क्या था उस फोटो में कि शलाका अपने आप को उसे छूने से रोक नहीं पायी।
वेदालय से कुछ दूरी पर एक सुंदर सी झील थी, जहां इस मौसम में बहुत से पंछी और चिड़िया उड़कर, उस स्थान पर आते थे।
इस समय जिधर नजर जा रही थी, उधर चारो ओर रंग-बिरंगे फूल, तितलियां और पंछी दिखाई दे रहे थे। ऐसे मौसम में आर्यन और शलाका उस स्थान पर बैठे थे।
“आज तो छुट्टी का दिन था फिर तुम मुझे यहां पर क्यों लाये आर्यन?” शलाका ने अपनी नन्हीं आँखों से आर्यन को देखते हुए पूछा।
“क्यों कि तुम मुझसे एक छोटी सी शर्त हार गई थी और शर्त केअनुसार एक दिन के लिये मैं जो कहूं, वो तुम्हें मानना पड़ता, तो फिर मैंने सोचा कि क्यों ना मैं तुम्हें अपनी सबसे फेवरेट जगह दिखाऊं, बस यही सोच मैं तुम्हें यहां ले आया। मुझे पता है कि अगर शर्त नहीं होती तो तुम कभी मेरे साथ नहीं आती। पर सच कहूं तो मैं तुम्हें ऐसे अकेले कमरे में बंद पड़े नहीं देख सकता। तुम पता नहीं कमरे से बाहर क्यों नहीं निकलती?”
“वो....वो मैं तुमसे बात करना चाहती हूं, तुम्हारे साथ घूमना भी चाहती हूं, पर वो आकृति हमेशा तुम्हारे साथ रहती है और वह मुझसे बहुत चिढ़ती है, बस इसी लिये मैं तुम्हारे साथ बाहर कहीं नहीं जाती।”
शलाका ने धीरे से कहा।
“कोई बात नहीं, पर आज तो आकृति मेरे साथ नहीं है...आज तुम यहां मेरे साथ खेल सकती हो।” आर्यन ने भोला सा चेहरा बनाते हुए कहा।
“ठीक है, पर तुम यहां पर आकर कौन सा खेल खेलते हो?” शलाका ने आर्यन की बातों में रुचि लेते हुए कहा।
“मैं यहां पर प्रकृति को महसूस करने वाला खेल खेलता हूं। क्या यह खेल तुम मेरे साथ खेलोगी?” आर्यन ने कहा।
“पर मुझे तो ये खेल नहीं आता। इसे कैसे खेलते हैं आर्यन?” शलाका ने कहा।
“यह खेलना बहुत आसान है...सबसे पहले हम कोई चिड़िया ले लेते हैं और उसे महसूस करते हैं।”
“चिड़िया?” शलाका को कुछ भी समझ में नहीं आया- “चिड़िया में महसूस करने वाला क्या होता है आर्यन?”
“रुको , मैं तुम्हें यह करके दिखाता हूं।” यह कहकर आर्यन ने इधर-उधर देखा।
आर्यन को कुछ दूरी पर एक नन्ही सी लाल रंग की चिड़िया उड़ती हुई दिखाई दी, आर्यन उस चिड़िया की ओर दौड़ा।
चिड़िया एक नन्हें बच्चे को अपनी ओर भागते देख, चीं-चीं कर तेजी से उड़ने लगी।
आर्यन ने कुछ देर तक चिड़िया को देखा और फिर वह चिड़िया के समान ही आवाज निकालता उस चिड़िया से अलग दिशा में दौड़ा।
चिड़िया उस नन्हें बालक को अपनी तरह बोलता देख, आर्यन के पीछे-पीछे उड़ने लगी।
अब नजारा उल्टा था, पहले चिड़िया के पीछे आर्यन था, पर अब आर्यन के पीछे चिड़िया।
सच कहें तो शलाका को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, पर आर्यन के पीछे चिड़िया का भागना उसे अच्छा लग रहा था।
अब आर्यन एक जगह पर रुक गया, और अपने दोनों हाथों को फैलाकर, फिर चिड़िया की तरह बोलने लगा।
कुछ ही देर में चिड़िया आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गयी, आर्यन ने धीरे से चिड़िया के पंखों को सहलाया।
चिड़िया को आर्यन का सहलाना बहुत अच्छा लगा, वह फिर चीं-चीं कर मानो आर्यन को और ऐसा करने को कह रही थी।
आर्यन ने अब उसे कई बार सहलाया और फिर उसे लेकर शलाका के पास आ गया।
“अब अपना हाथ आगे करो शलाका।” आर्यन ने शलाका से कहा।
शलाका ने डरते-डरते अपना हाथ आगे कर दिया। आर्यन ने नन्हीं चिड़िया को शलाका के हाथों पर रख दिया।
नन्हीं चिड़िया शलाका के हाथ पर फुदक कर चीं-चीं कर रही थी।
कुछ ही देर में शलाका का डर खत्म हो गया और वह भी चिड़िया के साथ खेलने लगी।
शलाका चिड़िया से खेलने में इतना खो गई कि वह भूल गई कि आर्यन भी उसके साथ है।
“क्या अब तुम इस चिड़िया को महसूस कर पा रही हो शलाका?” आर्यन ने शलाका से पूछा।
“हां.... इस चिड़िया का धड़कता दिल, इसके खुशी से फुदकने का अहसास, इसका पंख पसार कर उड़ना, इसका मेरे हाथों पर चोंच मारना, मुझे सबकुछ महसूस हो रहा है आर्यन। सच कहूं तो यह बहुत अच्छी फीलिंग है, मैंने ऐसा पहले कभी नहीं महसूस किया।”
“यही प्रकृति है शलाका, अगर हम अपने आसपास की चीजों को दिल से महसूस करने लगें तो हम कभी स्वयं को अकेला महसूस नहीं करेंगे। अकेले होकर भी कभी हम दुखी नहीं होंगे।”
आर्यन ने अब उस नन्हीं चिड़िया को चीं-चीं कर कुछ कहा और फिर उसे आसमान में उड़ा दिया।
“क्या तुम्हें पंछियों की भाषा आती है आर्यन?” शलाका ने आर्यन की आँखों में देखते हुए पूछा।
“नहीं !”
“तो फिर तुम उस चिड़िया से बात कैसे कर रहे थे?” शलाका ने हैरानी से कहा।
“किसने कहा कि मैं उससे बात कर रहा था। मैं तो बस उसे महसूस कर रहा था, पर महसूस करते-करते, वह मेरी भावनाओं को स्वयं समझ जा रही थी।” आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा।
तभी शलाका को एक फूल पर बैठी बहुत ही खूबसूरत तितली दिखाई दी, जो नीले और काले रंग की थी।
उसे देख शलाका ने उसे पकड़ लिया।
वह तितली अब शलाका की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी।
यह देख आर्यन ने शलाका का हाथ थाम लिया और बोला- “किसी को दुख पहुंचा कर हमें खुशी कभी नहीं मिल सकती शलाका।”
आर्यन के शब्द सुन शलाका ने अपनी चुटकी खोलकर उस तितली को उड़ा दिया।
यह देख आर्यन ने अपने हाथ पसार कर अपने मुंह से एक विचित्र सी ध्वनि निकाली, ऐसा करते ही पता नहीं कहां से सैकड़ों तितलियां आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गईं।
“एक बार तितली को तुम छूकर के देख लो, हर पंख उसका छाप दिल पर छोड़ जायेगा।”
आर्यन के शब्द समझ शलाका ने अपने हाथों की ओर देखा, जिस पर तितली का नीला और काला रंग अब भी लगा था।
तितली का रंग शलाका के हाथ पर एक छाप छोड़ गया था, पर आर्यन का रंग शलाका के दिल पर एक अमिट छाप छोड़ रहा था, वह अब महसूस कर रही थी, इस पूरे जहान को, नीले से आसमान को....और
कुछ अलग सा महसूस कराने वाले उस आर्यन को............।”
शलाका अब वापस अपने कमरे में आ गई थी, पर उन कुछ पलों ने शलाका के दिमाग में एक हलचल सी मचा दी थी।
कुछ पलों तक शलाका यूं ही बैठी रही फिर उसने एक गहरी साँस भरी और वेदांत रहस्यम् के आगे के पन्नों को पलटने लगी।
धीरे-धीरे वेदालय की सभी घटनाएं निकल गईं। इसके बाद कुछ और चित्र नजर आये, पर वह शलाका के लिये जरुरी नहीं थे, उसे तो बस अब रहस्य जानना था, इसलिये शलाका ने जल्दी-जल्दी बहुत से पृष्ठ पलट
दिये।
अब शलाका की नजर एक ऐसे पृष्ठ पर थी, जिसमें आर्यन शलाका के साथ उसके कमरे में था, पर बहुत याद करने के बाद भी शलाका को कोई ऐसी स्मृति याद नहीं आयी, यह सोच शलाका ने उस फोटो को भी छू लिया।..............
“शलाका-शलाका कहां हो तुम?” आर्यन, शलाका को आवाज देते हुए अपने घर में प्रविष्ठ हुआ- “देखो मैं वापस आ गया।” आर्यन यह कहते हुए धड़धड़ा कर अपने कमरे में प्रविष्ठ हो गया।
कमरे में शलाका एक अलमारी के पास खड़ी थी, आर्यन ने उसे देखते ही गोद में उठा लिया और उसे पूरे कमरे में नचाने लगा- “आज मेरा सपना पूरा हो गया, आज मैंने वो हासिल कर लिया, जिसकी वजह से अब हम सदियों तक साथ रह सकते हैं। अब मुझे तुमसे कोई अलग नहीं कर सकता, यहां तक कि मौत भी नहीं।” यह कहकर आर्यन ने शलाका को नीचे उतार दिया।
“तुमने.... तुमने ऐसा क्या प्राप्त कर लिया आर्यन? जिससे अब तुम सदियों तक मेरे साथ रहोगे।” शलाका ने अपना चेहरा आर्यन की ओर से दूसरी ओर घुमाते हुए कहा।
“ये लो कितनी भुलक्कड़ हो यार तुम। अरे मैंने तुम्हें जाने से पहले बताया तो था कि मैं, हम दोनों के लिये ब्रह्मकलश से अमृत लेने जा रहा हूं।” आर्यन ने कहा।
“तो क्या....तो क्या तुम्हें अमृत प्राप्त हो गया?” शलाका के शब्द कांप रहे थे।
“ऐसा हो सकता है क्या कि मैं कोई चीज चाहूं और मुझे ना मिले?”
आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा- “अरे हां यार...मैंने अमृत की 2 बूंदें प्राप्त कर लीं। अब हम शादी शुदा जिंदगी बिताते हुए भी अमरत्व प्राप्त कर सकते हैं।” यह कहते हुए आर्यन ने 2 नन्हीं सुनहरी धातु की बनी शीशियां शलाका के सामने रख दीं।
“और अब हम कल सुबह नहा कर, पूजा करके इस अमृत को धारण करेंगे।” आर्यन के शब्दों में खुशी साफ झलक रही थी- “और ये तुम अपना मुंह घुमाकर क्या बात कर रही हो? मैं 3 महीने के बाद वापस आया हूं और तुम अजीब सी हरकतें कर रही हो।”
“क्या हम इसे अभी नहीं पी सकते?” शलाका ने पलटते हुए कहा- “सुबह का इंतजार करने से क्या फायदा?”
“नहीं हम इसे सुबह ही पीयेंगे।” आर्यन ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा।
“तो फिर हम अभी क्या करेंगे?” शलाका ने आर्यन की ओर देखते हुए पूछा।
“ये लो ये भी कोई पूछने की बात है?” आर्यन ने हंसकर शलाका को पकड़ लिया- “अभी हम सिर्फ और सिर्फ प्यार करेंगे।”
यह कहकर आर्यन ने वहां जल रही शमा को बुझा दिया। कमरे में अब पूरा अंधेरा छा गया था। इसी के साथ शलाका वापस वेदांत रहस्यम् के पास आ गई।
पर इस समय शलाका की आँखें, उसका चेहरा और यहां तक कि उसके बाल भी अग्नि के समान प्रतीत हो रहे थे क्यों कि जिस शलाका को वह अभी आर्यन के साथ देखकर आ रही थी, वह वो नहीं थी।
शलाका ने तुरंत अपनी भावनाओं को नियंत्रण में किया, नहीं तो उसकी अग्नि शक्ति से अभी वेदांत रहस्यम् भी जल जाती।
“काश....काश इस वेदांत रहस्यम् से भूतकाल को बदला जा सकता।” शलाका ने गुर्राकर कहा और जल्दी से वेदांत रहस्यम् का अगला पन्ना खोल दिया।
जारी रहेगा______![]()