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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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@09vk

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संध्या अपने कमरे में बेड पर बैठी थी, उसके हाथो में अभी भी मोबाइल फोन था। वो पूरी तरह से टूट चुकी थी। निशब्द थी, उसके पास ऐसा कोई भी शब्द नही था जिसे बोल कर वो अपने बेटे को माना पाए। अपने घुटनों में अपना सिर छुपाए शायद वो अभी भिनरो रही थी। थोड़ी देर वो यूं ही रोती रही, उसके बाद संध्या अपने बेड पर से उठते हुए अपने कमरे से बाहर आ जाति है, उसके कदम उस कमरे की तरफ बढ़े, जो कभी वो अभय का कमरा हुआ करता था।


जल्द ही संध्या अभय के कमरे में दाखिल हो चुकी थी। संध्या उस कमरे में आकर अभय के बेड पर बैठ जाती है। जब से अभय घर छोड़ कर भाग था, उसके बाद से शायद आज संध्या पहेली बार अभय के कमरे में आई थी। वो धीरे से अभय के बेड पर लेट जाती है.... और अपनी आंखे बंद कर लेती है।

आज अभय उसके पास नही था, मगर संध्या को ऐसा लग रहा था मानो उसका बेटा उसके पास लेता है। संध्या को वो रात की बात याद आती......

एक रात जब वो अभय के कमरे में आई थी। उस वक्त अभय अपने कमरे में बेड पर बैठा एक आर्ट बुक में कुछ चित्र बना रहा था...

संध्या --"कितनी देर तक जागता रहेगा, चल अब सो जा। नही तो तू कल स्कूल ना जाने का बहाना बनाने लगेगा।"

अभय --"मां देखो ना, मैने तेरी तस्वीर बनाई है।"

संध्या --"बोला ना, सो जा। बाद में देख लूंगी। मुझे भी नींद आ रही है, अभि मैं जा रही हूं।"

ये बोल कर संध्या जैसे ही जाने को हुई...अभय ने संध्या का हाथ पकड़ लिया।

अभय --"मां...आज मेरे पास ही सो जा ना।"

अभय की बात सुनकर, संध्या अभय को बेड पर लिटाते हुए उसके ऊपर चादर डालते हुए बोली...

संध्या --"अब उतना भी बच्चा नहीं है तू, जो तुझे मेरे बिना नींद नहीं आएगी। सो जा चुप चाप।"

अचानक ही संध्या की आंखे खुल जाती है, और वो उठ कर बेड पर बैठ जाती है। बेड पर अपने हाथ पीटते हुए रो कर खुद से बोली...

"कैसी मां हूं मैं, मेरा बेटा मेरे पास रहें चाहता था। और मैं उसे खुद से दूर करती चली गई। क्यूं किया ऐसा मैने, क्यूं मैं उसे बेवजह पिटती रही, मेरे इतना पीटने के बाद भी वो क्यूं पायल से झूठ बोलता रहा की मैं उसको करने के बाद उसके जख्मों पे प्यार से मलहम लगाने आती थी। मैं इतना कैसे शख्त हो गई अपने ही बेटे के लिए?? क्यूं मुझे उसकी हर एक छोटी सी छोटी गलती पर गुस्सा आ जाता था। आज उसके ना होने पर मुझे समझ आ रहा है की मैने कितनी बड़ी गलती की है, गलती नही मैने तो गुनाह किया है। मैं कितना भी चाहूं, मैं उसे मना नहीं पा रही हूं, मुझसे तो वो नफरत भी नही करता, उसकी नजर मेरी कुछ भी अहमियत ही नही है, वो मुझे अपने नफरत के काबिल भी नही समझता। वो मुझे जो चाहे वो समझे...जिंदगी भर बात भी न करे तो भी मैं उसकी यादों में और उसे छुप छुप कर देख कर भी जी लूंगी....। पर मेरे बारे में वो ना समझे जो मुझे लग रहा है। ही भगवान.....क्या बीती होगी मेरे बच्चे पर जब उसने मुझे रमन के साथ देखा होगा? छी:......धिक्कार है मुझ पर। अब तक तो मै समझाती थी की, वो मुझसे इसलिए नाराज था या घर छोड़ कर भाग था की, मैं उसे पिटती थी। मगर आज उसके आखिरी शब्द ने वो असलियत बयान कर दी की, वो मुझसे दूर क्यूं भागा ? मेरी जिस्म की आग ने मेरा सब कुछ डूबो दिया। काश मैं उसे समझा पाती की कुछ समय के लिए मैं बहक गई थी। खुद में नही थी। कैसे समझाऊंगी उसे, घिनौना काम तो घिनौना ही होता है चाहे लंबे अरसे का हो या कुछ समय का। हे भगवान.....अब तो मैं उसे अपना मुंह भी दिखाने के लायक नही रही । क्या करूं.... कहां जाऊं।"

सोचते हुए संध्या अभय के बेड पर ही...रोते रोते सो जाती है....

-------------------------------------------------

सुबह जब संध्या की नींद खुलती है, तो झट से अभय के बेड पर उठ कर बैठ जाती है। उसका सिर काफी भरी लग रहा था, और हल्का हल्का दुख भी रहा था। वो अपना सिर पकड़े बैठी ही थी की तभी दरवाजे पे खटखटाहट....

संध्या --"कौन है.....?

"मैं ही भाभी...."

संध्या बेड पर से उठते हुए.....दरवाजा खोलते हुए वापस बेड पर आकर बैठ जाती है। रमन भी संध्या के पीछे पीछे कमरे में दाखिल होता है।


रमन --"क्या हुआ भाभी...? आज अभय के कमरे में ही सो गई थी क्या?"

रमन की बात सुनकर......

संध्या --"अभय कोरे और तेरे रिश्ते के बारे में कैसा पता चला?"

संध्या थोड़ा गुस्से भरी लहजे में बोली, जिसे सुनकर रमन एक पल के लिए हैरान हो गया।

रमन --"क्या बोल रही हो भाभी तुम? मुझे क्या मालूम अभय को.....अच्छा, तो वो छोकरा फिर से तुम्हे मिला था। जिसे तुम अपना बेटा समझती हो, जरूर उसी ने फिर से कोई खेल खेला है।"

संध्या --"मैने पूछा, अभय को हमारे संबंध के बारे में कैसे पता चला....।"

धीरे धीरे संध्या की आवाज तेज होने लगी थी, उसके चेहरे पे गुस्से के बदल उमड़ पड़े थे। संध्या की गुस्से से भरी बात सुनकर, इस बार रमन भी अकड़ कर बोला.....

रमन --"अरे कैसा संबंध, तुम तो ऐसी बात कर रही हो जैसे हमारा बरसो पुराना प्यार चल रहा हो,। कुत्ते की तरह तुम्हारे पीछे लगा रहता था। कर तुम्हे नही पता की हमारा कितने दिन का संबंध था? बगीचे का वो दिन याद है, क्या बोली थी तुम? निरोध नही है तो नही करेंगे, इसको तुम संबंध कहती हो। फिर उसके बाद उस रात किसी तरह मैंने तुम्हे एक बार फिर मनाया, सोचा रात भर प्यार करूंगा इसके लिए निरोध का पूरा डब्बा ले आया। पर फिर तुमने क्या बोला? हो गया तेरा...अब जा यह से, और थोड़ा बच बचा कर जाना कही अभय ना देख ले। एक पल के अहसास को तुम संबंध कहती हो, साला वो निरोध का डिब्बा आज भी वैसे ही पड़ा है। और तुम संबंध की बात करती हो।"

संध्या --"मैं यहां तुम्हारा बकवास सुनने नही बैठी हूं, और एक बात। उस रात तो अभय घर आया ही नहीं, मतलब उसने हम्बदोनो को बगीचे में ही देखा था।"

इस बार रमन की हवा खराब हुई थी, शायद गांड़ भी फटी हो, मगर उसकी आवाज नही आती इसके लिए पता नही चला...

संध्या --"अगर अभय वहा इत्तेफाक से पहुंचा होगा, तो बात की बात। पर अगर किसी ने उसे....??"

रमन --"भा...भाभी तुम मुझ पर शक कर रही हो?"

संध्या जेड2"मेरी जिंदगी जहन्नुम बन चुकी है, कुछ भी नही रहा, मैं कुछ भी कर सकती हूं।"

इतना बोल कर संध्या वहा से चली जाति है....

संध्या के जाते ही, रमन अपने जेब से मोबाइल फोन निकलते हुए एक नंबर मिलता है। उसके चेहरे के भाव से पता चला रहा था की वो काफी घबरा गया है,

रमन --"हेलो... मु...मुनीम। कुछ पता चला उस छोकरे के बारे में?"

दूसरी तरफ से मुनीम ने कुछ बोला.....

रमन --"कुछ नही पता चला तो पता करो, नही तो उसे रास्ते से हटा दो।"

बोलते हुए रमन ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया, और जैसे ही कमरे से बाहर जाने के लिए कदम बढ़ाया, उसे दरवाजे पर ललिता खड़ी दिखी...

मटकाती हुई ललिता कमरे में दाखिल हुई, और रमन के गले में हाथ डालते हुई बोली...

ललिता --"जिसको रास्ते से हटाना चाहिए, उसे क्यों नही हटा रहे हो मेरी जान?"

रमन --"क्या मतलब...?"

ललीता --"अपनी प्यारी भाभी...."

ललिता बोल ही रही थी की, एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर रसीद हो गए...

रमन --"साली, ज्यादा जुबान चलाने लगी है, तुझे पता है ना, की वो मेरी जान है...उसमे जान अटकी है मेरी। उसका बदन... आह, क्या कयामत है? और तू....!!"

ये सुनकर ललिता एक जहरीली मुस्कान की चादर अपने चेहरे पर ओढ़ते हुए बोली...

ललीता --"एक बार किस्मत मेहरबान हुई थी तुम पर, पर क्या हुआ ?? तुम्हारे लंड पर चढ़े उस निरोध ने तुम्हारी भाभी की गर्म और रसभरी चूत का मजा चख लिया, और अब तो तुम्हे उस चूत का मूत भी नसीब होने रहा।"

ललिता की बात सुनकर, रमन गुस्से में बौखलाया बोला...

रमन --"वो सिर्फ मेरी है, एक दिन मैं उसे अपना जरूर बनाऊंगा, और उसके लिए मैं क्या क्या कर सकता हूं, ये बात तू अच्छी तरह से जानती है। रास्ते का कांटा वो छोरा है...उसे निकाल कर फेंकना पड़ेगा नही तो वो यूं ही भाभी की जुबान बन कर चुभता रहेगा.....!!"

कहते हुए रमन कमरे से बाहर चला जाता है......
Nice update
 

MAD. MAX

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संध्या अपने कमरे में बेड पर बैठी थी, उसके हाथो में अभी भी मोबाइल फोन था। वो पूरी तरह से टूट चुकी थी। निशब्द थी, उसके पास ऐसा कोई भी शब्द नही था जिसे बोल कर वो अपने बेटे को माना पाए। अपने घुटनों में अपना सिर छुपाए शायद वो अभी भिनरो रही थी। थोड़ी देर वो यूं ही रोती रही, उसके बाद संध्या अपने बेड पर से उठते हुए अपने कमरे से बाहर आ जाति है, उसके कदम उस कमरे की तरफ बढ़े, जो कभी वो अभय का कमरा हुआ करता था।


जल्द ही संध्या अभय के कमरे में दाखिल हो चुकी थी। संध्या उस कमरे में आकर अभय के बेड पर बैठ जाती है। जब से अभय घर छोड़ कर भाग था, उसके बाद से शायद आज संध्या पहेली बार अभय के कमरे में आई थी। वो धीरे से अभय के बेड पर लेट जाती है.... और अपनी आंखे बंद कर लेती है।

आज अभय उसके पास नही था, मगर संध्या को ऐसा लग रहा था मानो उसका बेटा उसके पास लेता है। संध्या को वो रात की बात याद आती......

एक रात जब वो अभय के कमरे में आई थी। उस वक्त अभय अपने कमरे में बेड पर बैठा एक आर्ट बुक में कुछ चित्र बना रहा था...

संध्या --"कितनी देर तक जागता रहेगा, चल अब सो जा। नही तो तू कल स्कूल ना जाने का बहाना बनाने लगेगा।"

अभय --"मां देखो ना, मैने तेरी तस्वीर बनाई है।"

संध्या --"बोला ना, सो जा। बाद में देख लूंगी। मुझे भी नींद आ रही है, अभि मैं जा रही हूं।"

ये बोल कर संध्या जैसे ही जाने को हुई...अभय ने संध्या का हाथ पकड़ लिया।

अभय --"मां...आज मेरे पास ही सो जा ना।"

अभय की बात सुनकर, संध्या अभय को बेड पर लिटाते हुए उसके ऊपर चादर डालते हुए बोली...

संध्या --"अब उतना भी बच्चा नहीं है तू, जो तुझे मेरे बिना नींद नहीं आएगी। सो जा चुप चाप।"

अचानक ही संध्या की आंखे खुल जाती है, और वो उठ कर बेड पर बैठ जाती है। बेड पर अपने हाथ पीटते हुए रो कर खुद से बोली...

"कैसी मां हूं मैं, मेरा बेटा मेरे पास रहें चाहता था। और मैं उसे खुद से दूर करती चली गई। क्यूं किया ऐसा मैने, क्यूं मैं उसे बेवजह पिटती रही, मेरे इतना पीटने के बाद भी वो क्यूं पायल से झूठ बोलता रहा की मैं उसको करने के बाद उसके जख्मों पे प्यार से मलहम लगाने आती थी। मैं इतना कैसे शख्त हो गई अपने ही बेटे के लिए?? क्यूं मुझे उसकी हर एक छोटी सी छोटी गलती पर गुस्सा आ जाता था। आज उसके ना होने पर मुझे समझ आ रहा है की मैने कितनी बड़ी गलती की है, गलती नही मैने तो गुनाह किया है। मैं कितना भी चाहूं, मैं उसे मना नहीं पा रही हूं, मुझसे तो वो नफरत भी नही करता, उसकी नजर मेरी कुछ भी अहमियत ही नही है, वो मुझे अपने नफरत के काबिल भी नही समझता। वो मुझे जो चाहे वो समझे...जिंदगी भर बात भी न करे तो भी मैं उसकी यादों में और उसे छुप छुप कर देख कर भी जी लूंगी....। पर मेरे बारे में वो ना समझे जो मुझे लग रहा है। ही भगवान.....क्या बीती होगी मेरे बच्चे पर जब उसने मुझे रमन के साथ देखा होगा? छी:......धिक्कार है मुझ पर। अब तक तो मै समझाती थी की, वो मुझसे इसलिए नाराज था या घर छोड़ कर भाग था की, मैं उसे पिटती थी। मगर आज उसके आखिरी शब्द ने वो असलियत बयान कर दी की, वो मुझसे दूर क्यूं भागा ? मेरी जिस्म की आग ने मेरा सब कुछ डूबो दिया। काश मैं उसे समझा पाती की कुछ समय के लिए मैं बहक गई थी। खुद में नही थी। कैसे समझाऊंगी उसे, घिनौना काम तो घिनौना ही होता है चाहे लंबे अरसे का हो या कुछ समय का। हे भगवान.....अब तो मैं उसे अपना मुंह भी दिखाने के लायक नही रही । क्या करूं.... कहां जाऊं।"

सोचते हुए संध्या अभय के बेड पर ही...रोते रोते सो जाती है....

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सुबह जब संध्या की नींद खुलती है, तो झट से अभय के बेड पर उठ कर बैठ जाती है। उसका सिर काफी भरी लग रहा था, और हल्का हल्का दुख भी रहा था। वो अपना सिर पकड़े बैठी ही थी की तभी दरवाजे पे खटखटाहट....

संध्या --"कौन है.....?

"मैं ही भाभी...."

संध्या बेड पर से उठते हुए.....दरवाजा खोलते हुए वापस बेड पर आकर बैठ जाती है। रमन भी संध्या के पीछे पीछे कमरे में दाखिल होता है।


रमन --"क्या हुआ भाभी...? आज अभय के कमरे में ही सो गई थी क्या?"

रमन की बात सुनकर......

संध्या --"अभय कोरे और तेरे रिश्ते के बारे में कैसा पता चला?"

संध्या थोड़ा गुस्से भरी लहजे में बोली, जिसे सुनकर रमन एक पल के लिए हैरान हो गया।

रमन --"क्या बोल रही हो भाभी तुम? मुझे क्या मालूम अभय को.....अच्छा, तो वो छोकरा फिर से तुम्हे मिला था। जिसे तुम अपना बेटा समझती हो, जरूर उसी ने फिर से कोई खेल खेला है।"

संध्या --"मैने पूछा, अभय को हमारे संबंध के बारे में कैसे पता चला....।"

धीरे धीरे संध्या की आवाज तेज होने लगी थी, उसके चेहरे पे गुस्से के बदल उमड़ पड़े थे। संध्या की गुस्से से भरी बात सुनकर, इस बार रमन भी अकड़ कर बोला.....

रमन --"अरे कैसा संबंध, तुम तो ऐसी बात कर रही हो जैसे हमारा बरसो पुराना प्यार चल रहा हो,। कुत्ते की तरह तुम्हारे पीछे लगा रहता था। कर तुम्हे नही पता की हमारा कितने दिन का संबंध था? बगीचे का वो दिन याद है, क्या बोली थी तुम? निरोध नही है तो नही करेंगे, इसको तुम संबंध कहती हो। फिर उसके बाद उस रात किसी तरह मैंने तुम्हे एक बार फिर मनाया, सोचा रात भर प्यार करूंगा इसके लिए निरोध का पूरा डब्बा ले आया। पर फिर तुमने क्या बोला? हो गया तेरा...अब जा यह से, और थोड़ा बच बचा कर जाना कही अभय ना देख ले। एक पल के अहसास को तुम संबंध कहती हो, साला वो निरोध का डिब्बा आज भी वैसे ही पड़ा है। और तुम संबंध की बात करती हो।"

संध्या --"मैं यहां तुम्हारा बकवास सुनने नही बैठी हूं, और एक बात। उस रात तो अभय घर आया ही नहीं, मतलब उसने हम्बदोनो को बगीचे में ही देखा था।"

इस बार रमन की हवा खराब हुई थी, शायद गांड़ भी फटी हो, मगर उसकी आवाज नही आती इसके लिए पता नही चला...

संध्या --"अगर अभय वहा इत्तेफाक से पहुंचा होगा, तो बात की बात। पर अगर किसी ने उसे....??"

रमन --"भा...भाभी तुम मुझ पर शक कर रही हो?"

संध्या जेड2"मेरी जिंदगी जहन्नुम बन चुकी है, कुछ भी नही रहा, मैं कुछ भी कर सकती हूं।"

इतना बोल कर संध्या वहा से चली जाति है....

संध्या के जाते ही, रमन अपने जेब से मोबाइल फोन निकलते हुए एक नंबर मिलता है। उसके चेहरे के भाव से पता चला रहा था की वो काफी घबरा गया है,

रमन --"हेलो... मु...मुनीम। कुछ पता चला उस छोकरे के बारे में?"

दूसरी तरफ से मुनीम ने कुछ बोला.....

रमन --"कुछ नही पता चला तो पता करो, नही तो उसे रास्ते से हटा दो।"

बोलते हुए रमन ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया, और जैसे ही कमरे से बाहर जाने के लिए कदम बढ़ाया, उसे दरवाजे पर ललिता खड़ी दिखी...

मटकाती हुई ललिता कमरे में दाखिल हुई, और रमन के गले में हाथ डालते हुई बोली...

ललिता --"जिसको रास्ते से हटाना चाहिए, उसे क्यों नही हटा रहे हो मेरी जान?"

रमन --"क्या मतलब...?"

ललीता --"अपनी प्यारी भाभी...."

ललिता बोल ही रही थी की, एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर रसीद हो गए...

रमन --"साली, ज्यादा जुबान चलाने लगी है, तुझे पता है ना, की वो मेरी जान है...उसमे जान अटकी है मेरी। उसका बदन... आह, क्या कयामत है? और तू....!!"

ये सुनकर ललिता एक जहरीली मुस्कान की चादर अपने चेहरे पर ओढ़ते हुए बोली...

ललीता --"एक बार किस्मत मेहरबान हुई थी तुम पर, पर क्या हुआ ?? तुम्हारे लंड पर चढ़े उस निरोध ने तुम्हारी भाभी की गर्म और रसभरी चूत का मजा चख लिया, और अब तो तुम्हे उस चूत का मूत भी नसीब होने रहा।"

ललिता की बात सुनकर, रमन गुस्से में बौखलाया बोला...

रमन --"वो सिर्फ मेरी है, एक दिन मैं उसे अपना जरूर बनाऊंगा, और उसके लिए मैं क्या क्या कर सकता हूं, ये बात तू अच्छी तरह से जानती है। रास्ते का कांटा वो छोरा है...उसे निकाल कर फेंकना पड़ेगा नही तो वो यूं ही भाभी की जुबान बन कर चुभता रहेगा.....!!"

कहते हुए रमन कमरे से बाहर चला जाता है......
oohhooo ky bat hai wah yha pe RAMAN majnu bna baitha hai SANDHYA ka or isi bat ke chalte ye kand kia hai
Or
Is chakkar me bali ka bakra bna ABHAY
.
SANDHYA ne shi khe ek bat RAMAN se ki uski jindgi ab jahanoom bn chuki hai
Shi bi hai
Bat chahe jo bi ho bachpan me ABHAY apni Maa se bhot pyar krta tha tbi PAYAL ke pochne pr bi jhot bolta tha ki Maa Marti bi hai fir jhkm me marham bi lgati hai jbki esa kuch ni hota tha
Ulta Marti bi thi or ABHAY ke samne kisi doosre ke bacche ko pyar krti thi yha tk Khanna bi ni deti thi apne bete ko
.
Ajeeb bat hai apni choot ki grmi ki bat ho ya gussa ho aaj SANDHYA ko smj ni aarha hai ki wo itna gussa Q krti thi ABHAY pr
Ha ye smj aagya ki ABHAY ne use RAMAN ke sath dekha hai
.
Kher ab to trpna or baato ko bardasht krna he likha hai SANDHYA ki kismat me ABHAY ke hatho se
.
SBSE JAD MJEDAR BAT YE HUE KI WRITER NE SBKE DIMAG KI BAND BJA KE RAKH DI BS EK NIROADH SE 😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂
.
BHOT KHOOB Hemantstar111 BRO MJA AAGYA UPDATE ME BRO 😂😂😂😉😉😉😉😉😉
 

Absolute_ONE

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संध्या अपने कमरे में बेड पर बैठी थी, उसके हाथो में अभी भी मोबाइल फोन था। वो पूरी तरह से टूट चुकी थी। निशब्द थी, उसके पास ऐसा कोई भी शब्द नही था जिसे बोल कर वो अपने बेटे को माना पाए। अपने घुटनों में अपना सिर छुपाए शायद वो अभी भिनरो रही थी। थोड़ी देर वो यूं ही रोती रही, उसके बाद संध्या अपने बेड पर से उठते हुए अपने कमरे से बाहर आ जाति है, उसके कदम उस कमरे की तरफ बढ़े, जो कभी वो अभय का कमरा हुआ करता था।


जल्द ही संध्या अभय के कमरे में दाखिल हो चुकी थी। संध्या उस कमरे में आकर अभय के बेड पर बैठ जाती है। जब से अभय घर छोड़ कर भाग था, उसके बाद से शायद आज संध्या पहेली बार अभय के कमरे में आई थी। वो धीरे से अभय के बेड पर लेट जाती है.... और अपनी आंखे बंद कर लेती है।

आज अभय उसके पास नही था, मगर संध्या को ऐसा लग रहा था मानो उसका बेटा उसके पास लेता है। संध्या को वो रात की बात याद आती......

एक रात जब वो अभय के कमरे में आई थी। उस वक्त अभय अपने कमरे में बेड पर बैठा एक आर्ट बुक में कुछ चित्र बना रहा था...

संध्या --"कितनी देर तक जागता रहेगा, चल अब सो जा। नही तो तू कल स्कूल ना जाने का बहाना बनाने लगेगा।"

अभय --"मां देखो ना, मैने तेरी तस्वीर बनाई है।"

संध्या --"बोला ना, सो जा। बाद में देख लूंगी। मुझे भी नींद आ रही है, अभि मैं जा रही हूं।"

ये बोल कर संध्या जैसे ही जाने को हुई...अभय ने संध्या का हाथ पकड़ लिया।

अभय --"मां...आज मेरे पास ही सो जा ना।"

अभय की बात सुनकर, संध्या अभय को बेड पर लिटाते हुए उसके ऊपर चादर डालते हुए बोली...

संध्या --"अब उतना भी बच्चा नहीं है तू, जो तुझे मेरे बिना नींद नहीं आएगी। सो जा चुप चाप।"

अचानक ही संध्या की आंखे खुल जाती है, और वो उठ कर बेड पर बैठ जाती है। बेड पर अपने हाथ पीटते हुए रो कर खुद से बोली...

"कैसी मां हूं मैं, मेरा बेटा मेरे पास रहें चाहता था। और मैं उसे खुद से दूर करती चली गई। क्यूं किया ऐसा मैने, क्यूं मैं उसे बेवजह पिटती रही, मेरे इतना पीटने के बाद भी वो क्यूं पायल से झूठ बोलता रहा की मैं उसको करने के बाद उसके जख्मों पे प्यार से मलहम लगाने आती थी। मैं इतना कैसे शख्त हो गई अपने ही बेटे के लिए?? क्यूं मुझे उसकी हर एक छोटी सी छोटी गलती पर गुस्सा आ जाता था। आज उसके ना होने पर मुझे समझ आ रहा है की मैने कितनी बड़ी गलती की है, गलती नही मैने तो गुनाह किया है। मैं कितना भी चाहूं, मैं उसे मना नहीं पा रही हूं, मुझसे तो वो नफरत भी नही करता, उसकी नजर मेरी कुछ भी अहमियत ही नही है, वो मुझे अपने नफरत के काबिल भी नही समझता। वो मुझे जो चाहे वो समझे...जिंदगी भर बात भी न करे तो भी मैं उसकी यादों में और उसे छुप छुप कर देख कर भी जी लूंगी....। पर मेरे बारे में वो ना समझे जो मुझे लग रहा है। ही भगवान.....क्या बीती होगी मेरे बच्चे पर जब उसने मुझे रमन के साथ देखा होगा? छी:......धिक्कार है मुझ पर। अब तक तो मै समझाती थी की, वो मुझसे इसलिए नाराज था या घर छोड़ कर भाग था की, मैं उसे पिटती थी। मगर आज उसके आखिरी शब्द ने वो असलियत बयान कर दी की, वो मुझसे दूर क्यूं भागा ? मेरी जिस्म की आग ने मेरा सब कुछ डूबो दिया। काश मैं उसे समझा पाती की कुछ समय के लिए मैं बहक गई थी। खुद में नही थी। कैसे समझाऊंगी उसे, घिनौना काम तो घिनौना ही होता है चाहे लंबे अरसे का हो या कुछ समय का। हे भगवान.....अब तो मैं उसे अपना मुंह भी दिखाने के लायक नही रही । क्या करूं.... कहां जाऊं।"

सोचते हुए संध्या अभय के बेड पर ही...रोते रोते सो जाती है....

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सुबह जब संध्या की नींद खुलती है, तो झट से अभय के बेड पर उठ कर बैठ जाती है। उसका सिर काफी भरी लग रहा था, और हल्का हल्का दुख भी रहा था। वो अपना सिर पकड़े बैठी ही थी की तभी दरवाजे पे खटखटाहट....

संध्या --"कौन है.....?

"मैं ही भाभी...."

संध्या बेड पर से उठते हुए.....दरवाजा खोलते हुए वापस बेड पर आकर बैठ जाती है। रमन भी संध्या के पीछे पीछे कमरे में दाखिल होता है।


रमन --"क्या हुआ भाभी...? आज अभय के कमरे में ही सो गई थी क्या?"

रमन की बात सुनकर......

संध्या --"अभय कोरे और तेरे रिश्ते के बारे में कैसा पता चला?"

संध्या थोड़ा गुस्से भरी लहजे में बोली, जिसे सुनकर रमन एक पल के लिए हैरान हो गया।

रमन --"क्या बोल रही हो भाभी तुम? मुझे क्या मालूम अभय को.....अच्छा, तो वो छोकरा फिर से तुम्हे मिला था। जिसे तुम अपना बेटा समझती हो, जरूर उसी ने फिर से कोई खेल खेला है।"

संध्या --"मैने पूछा, अभय को हमारे संबंध के बारे में कैसे पता चला....।"

धीरे धीरे संध्या की आवाज तेज होने लगी थी, उसके चेहरे पे गुस्से के बदल उमड़ पड़े थे। संध्या की गुस्से से भरी बात सुनकर, इस बार रमन भी अकड़ कर बोला.....

रमन --"अरे कैसा संबंध, तुम तो ऐसी बात कर रही हो जैसे हमारा बरसो पुराना प्यार चल रहा हो,। कुत्ते की तरह तुम्हारे पीछे लगा रहता था। कर तुम्हे नही पता की हमारा कितने दिन का संबंध था? बगीचे का वो दिन याद है, क्या बोली थी तुम? निरोध नही है तो नही करेंगे, इसको तुम संबंध कहती हो। फिर उसके बाद उस रात किसी तरह मैंने तुम्हे एक बार फिर मनाया, सोचा रात भर प्यार करूंगा इसके लिए निरोध का पूरा डब्बा ले आया। पर फिर तुमने क्या बोला? हो गया तेरा...अब जा यह से, और थोड़ा बच बचा कर जाना कही अभय ना देख ले। एक पल के अहसास को तुम संबंध कहती हो, साला वो निरोध का डिब्बा आज भी वैसे ही पड़ा है। और तुम संबंध की बात करती हो।"

संध्या --"मैं यहां तुम्हारा बकवास सुनने नही बैठी हूं, और एक बात। उस रात तो अभय घर आया ही नहीं, मतलब उसने हम्बदोनो को बगीचे में ही देखा था।"

इस बार रमन की हवा खराब हुई थी, शायद गांड़ भी फटी हो, मगर उसकी आवाज नही आती इसके लिए पता नही चला...

संध्या --"अगर अभय वहा इत्तेफाक से पहुंचा होगा, तो बात की बात। पर अगर किसी ने उसे....??"

रमन --"भा...भाभी तुम मुझ पर शक कर रही हो?"

संध्या जेड2"मेरी जिंदगी जहन्नुम बन चुकी है, कुछ भी नही रहा, मैं कुछ भी कर सकती हूं।"

इतना बोल कर संध्या वहा से चली जाति है....

संध्या के जाते ही, रमन अपने जेब से मोबाइल फोन निकलते हुए एक नंबर मिलता है। उसके चेहरे के भाव से पता चला रहा था की वो काफी घबरा गया है,

रमन --"हेलो... मु...मुनीम। कुछ पता चला उस छोकरे के बारे में?"

दूसरी तरफ से मुनीम ने कुछ बोला.....

रमन --"कुछ नही पता चला तो पता करो, नही तो उसे रास्ते से हटा दो।"

बोलते हुए रमन ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया, और जैसे ही कमरे से बाहर जाने के लिए कदम बढ़ाया, उसे दरवाजे पर ललिता खड़ी दिखी...

मटकाती हुई ललिता कमरे में दाखिल हुई, और रमन के गले में हाथ डालते हुई बोली...

ललिता --"जिसको रास्ते से हटाना चाहिए, उसे क्यों नही हटा रहे हो मेरी जान?"

रमन --"क्या मतलब...?"

ललीता --"अपनी प्यारी भाभी...."

ललिता बोल ही रही थी की, एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर रसीद हो गए...

रमन --"साली, ज्यादा जुबान चलाने लगी है, तुझे पता है ना, की वो मेरी जान है...उसमे जान अटकी है मेरी। उसका बदन... आह, क्या कयामत है? और तू....!!"

ये सुनकर ललिता एक जहरीली मुस्कान की चादर अपने चेहरे पर ओढ़ते हुए बोली...

ललीता --"एक बार किस्मत मेहरबान हुई थी तुम पर, पर क्या हुआ ?? तुम्हारे लंड पर चढ़े उस निरोध ने तुम्हारी भाभी की गर्म और रसभरी चूत का मजा चख लिया, और अब तो तुम्हे उस चूत का मूत भी नसीब होने रहा।"

ललिता की बात सुनकर, रमन गुस्से में बौखलाया बोला...

रमन --"वो सिर्फ मेरी है, एक दिन मैं उसे अपना जरूर बनाऊंगा, और उसके लिए मैं क्या क्या कर सकता हूं, ये बात तू अच्छी तरह से जानती है। रास्ते का कांटा वो छोरा है...उसे निकाल कर फेंकना पड़ेगा नही तो वो यूं ही भाभी की जुबान बन कर चुभता रहेगा.....!!"

कहते हुए रमन कमरे से बाहर चला जाता है......
Albela Bhai twist pr twist abhay ke jane ke baad Sandhya aaj tk abhay ke kamre mai ni gyi mtlb manna pdega Sandhya wakay mai abhay se ya bhut pyar krti hai ya pyar krne ka dikhawa...purani baat yaad krke usse uss sketch ki bhi yaad ni aayi jo abhay Sandhya ka bna rha tha...shyd uss sketch ko dekhti to uski ruh kaap jati kher ruh to wese bhi kaap gya jb usse smjh mai aayha ki abhay ke akhri sabd kya the...Sandhya apni hawas mitane ke liye raman ke jaal mai fas gyi.
Sandhya raman pr andha vishwash krti hai uski haar baat maan leti hai aur shyd issi liye apni jawani ki aag to thanda krne ke liye usse raman ke sath chudai ki...pyar to kisi se ni keh skti jb apne khoon se pyar ni to baki duniya kya chizz...aur aisa lgta hai Sandhya ki sarir ki garmi badhane mai Raman aur Lalita ka hath ho...Raman kutte ki trh Sandhya ke piche ghumta bhi tha to Sandhya bhi behek gyi dono ke bich achank se to sambandh ni bnn skta isse phle jarur dono mai chudai ke alawa bhut kuch hua ho aur usi ke wajh se raman ne confidence mai akar abhay ko waha bulaya tha kyuki usko pta tha ki aaj Sandhya apni chut ka ras usse jarur pilayegi pr ek condom ne mamla khrab kr diya pr raman ka kaam to ho hi gya...pr present time mai itna sb kuch Jaan lene ke baad bhi uski akal ni khuli abhi bhi wo raman pr hi vishwas kr ri khud ka dimag hi ni usse sochna chahiye ki Raman aur uske bich ke bare mai dono ke alawa koi ni janta to abhay ko pta kaise chla???
Sandhya ki dimag ka processer bhut jada slow hai usse baat der se smjh aati hai aur aage bhi aisa hua to ye bss abhay ke liye musibat hi bnegi...
Update mast tha pr update bhut chota hai albela ji update bhale hi gap mai do pr bada update dene ki kosis kare...thank you:thankyou::thank_you::thanx:
 

Papa Ranjeet

Banned
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Itne Comments aane ke baad,Main yahi nishkarsh pe pahucha hu ke Lekhak jab sab padh leta hain,to woh kya update dega.
Sandhya aur Abhay
Raman aur Munim
Inn Charo ke kartut vistrit tarike se yaha apne vicharo ke madhyam se kahani ko gati heen bana diya.
Lekhak ke gine chune 4-5 Lambe vakyon ke baad,yaha pages hi badh rahe.
Aur aapsi mat bhed bhi.
khair jo hona hain woh bhi dekh lenge.
Aisi sthiti ek jamaane kisi Ek thread pe pehle dekhni milti thi.
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अपडेट 22



संध्या अपने कमरे में बेड पर बैठी थी, उसके हाथो में अभी भी मोबाइल फोन था। वो पूरी तरह से टूट चुकी थी। निशब्द थी, उसके पास ऐसा कोई भी शब्द नही था जिसे बोल कर वो अपने बेटे को माना पाए। अपने घुटनों में अपना सिर छुपाए शायद वो अभी भिनरो रही थी। थोड़ी देर वो यूं ही रोती रही, उसके बाद संध्या अपने बेड पर से उठते हुए अपने कमरे से बाहर आ जाति है, उसके कदम उस कमरे की तरफ बढ़े, जो कभी वो अभय का कमरा हुआ करता था।


जल्द ही संध्या अभय के कमरे में दाखिल हो चुकी थी। संध्या उस कमरे में आकर अभय के बेड पर बैठ जाती है। जब से अभय घर छोड़ कर भाग था, उसके बाद से शायद आज संध्या पहेली बार अभय के कमरे में आई थी। वो धीरे से अभय के बेड पर लेट जाती है.... और अपनी आंखे बंद कर लेती है।

आज अभय उसके पास नही था, मगर संध्या को ऐसा लग रहा था मानो उसका बेटा उसके पास लेता है। संध्या को वो रात की बात याद आती......

एक रात जब वो अभय के कमरे में आई थी। उस वक्त अभय अपने कमरे में बेड पर बैठा एक आर्ट बुक में कुछ चित्र बना रहा था...

संध्या --"कितनी देर तक जागता रहेगा, चल अब सो जा। नही तो तू कल स्कूल ना जाने का बहाना बनाने लगेगा।"

अभय --"मां देखो ना, मैने तेरी तस्वीर बनाई है।"

संध्या --"बोला ना, सो जा। बाद में देख लूंगी। मुझे भी नींद आ रही है, अभि मैं जा रही हूं।"

ये बोल कर संध्या जैसे ही जाने को हुई...अभय ने संध्या का हाथ पकड़ लिया।

अभय --"मां...आज मेरे पास ही सो जा ना।"

अभय की बात सुनकर, संध्या अभय को बेड पर लिटाते हुए उसके ऊपर चादर डालते हुए बोली...

संध्या --"अब उतना भी बच्चा नहीं है तू, जो तुझे मेरे बिना नींद नहीं आएगी। सो जा चुप चाप।"

अचानक ही संध्या की आंखे खुल जाती है, और वो उठ कर बेड पर बैठ जाती है। बेड पर अपने हाथ पीटते हुए रो कर खुद से बोली...

"कैसी मां हूं मैं, मेरा बेटा मेरे पास रहें चाहता था। और मैं उसे खुद से दूर करती चली गई। क्यूं किया ऐसा मैने, क्यूं मैं उसे बेवजह पिटती रही, मेरे इतना पीटने के बाद भी वो क्यूं पायल से झूठ बोलता रहा की मैं उसको करने के बाद उसके जख्मों पे प्यार से मलहम लगाने आती थी। मैं इतना कैसे शख्त हो गई अपने ही बेटे के लिए?? क्यूं मुझे उसकी हर एक छोटी सी छोटी गलती पर गुस्सा आ जाता था। आज उसके ना होने पर मुझे समझ आ रहा है की मैने कितनी बड़ी गलती की है, गलती नही मैने तो गुनाह किया है। मैं कितना भी चाहूं, मैं उसे मना नहीं पा रही हूं, मुझसे तो वो नफरत भी नही करता, उसकी नजर मेरी कुछ भी अहमियत ही नही है, वो मुझे अपने नफरत के काबिल भी नही समझता। वो मुझे जो चाहे वो समझे...जिंदगी भर बात भी न करे तो भी मैं उसकी यादों में और उसे छुप छुप कर देख कर भी जी लूंगी....। पर मेरे बारे में वो ना समझे जो मुझे लग रहा है। ही भगवान.....क्या बीती होगी मेरे बच्चे पर जब उसने मुझे रमन के साथ देखा होगा? छी:......धिक्कार है मुझ पर। अब तक तो मै समझाती थी की, वो मुझसे इसलिए नाराज था या घर छोड़ कर भाग था की, मैं उसे पिटती थी। मगर आज उसके आखिरी शब्द ने वो असलियत बयान कर दी की, वो मुझसे दूर क्यूं भागा ? मेरी जिस्म की आग ने मेरा सब कुछ डूबो दिया। काश मैं उसे समझा पाती की कुछ समय के लिए मैं बहक गई थी। खुद में नही थी। कैसे समझाऊंगी उसे, घिनौना काम तो घिनौना ही होता है चाहे लंबे अरसे का हो या कुछ समय का। हे भगवान.....अब तो मैं उसे अपना मुंह भी दिखाने के लायक नही रही । क्या करूं.... कहां जाऊं।"

सोचते हुए संध्या अभय के बेड पर ही...रोते रोते सो जाती है....

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सुबह जब संध्या की नींद खुलती है, तो झट से अभय के बेड पर उठ कर बैठ जाती है। उसका सिर काफी भरी लग रहा था, और हल्का हल्का दुख भी रहा था। वो अपना सिर पकड़े बैठी ही थी की तभी दरवाजे पे खटखटाहट....

संध्या --"कौन है.....?

"मैं ही भाभी...."

संध्या बेड पर से उठते हुए.....दरवाजा खोलते हुए वापस बेड पर आकर बैठ जाती है। रमन भी संध्या के पीछे पीछे कमरे में दाखिल होता है।


रमन --"क्या हुआ भाभी...? आज अभय के कमरे में ही सो गई थी क्या?"

रमन की बात सुनकर......

संध्या --"अभय कोरे और तेरे रिश्ते के बारे में कैसा पता चला?"

संध्या थोड़ा गुस्से भरी लहजे में बोली, जिसे सुनकर रमन एक पल के लिए हैरान हो गया।

रमन --"क्या बोल रही हो भाभी तुम? मुझे क्या मालूम अभय को.....अच्छा, तो वो छोकरा फिर से तुम्हे मिला था। जिसे तुम अपना बेटा समझती हो, जरूर उसी ने फिर से कोई खेल खेला है।"

संध्या --"मैने पूछा, अभय को हमारे संबंध के बारे में कैसे पता चला....।"

धीरे धीरे संध्या की आवाज तेज होने लगी थी, उसके चेहरे पे गुस्से के बदल उमड़ पड़े थे। संध्या की गुस्से से भरी बात सुनकर, इस बार रमन भी अकड़ कर बोला.....

रमन --"अरे कैसा संबंध, तुम तो ऐसी बात कर रही हो जैसे हमारा बरसो पुराना प्यार चल रहा हो,। कुत्ते की तरह तुम्हारे पीछे लगा रहता था। कर तुम्हे नही पता की हमारा कितने दिन का संबंध था? बगीचे का वो दिन याद है, क्या बोली थी तुम? निरोध नही है तो नही करेंगे, इसको तुम संबंध कहती हो। फिर उसके बाद उस रात किसी तरह मैंने तुम्हे एक बार फिर मनाया, सोचा रात भर प्यार करूंगा इसके लिए निरोध का पूरा डब्बा ले आया। पर फिर तुमने क्या बोला? हो गया तेरा...अब जा यह से, और थोड़ा बच बचा कर जाना कही अभय ना देख ले। एक पल के अहसास को तुम संबंध कहती हो, साला वो निरोध का डिब्बा आज भी वैसे ही पड़ा है। और तुम संबंध की बात करती हो।"

संध्या --"मैं यहां तुम्हारा बकवास सुनने नही बैठी हूं, और एक बात। उस रात तो अभय घर आया ही नहीं, मतलब उसने हम्बदोनो को बगीचे में ही देखा था।"

इस बार रमन की हवा खराब हुई थी, शायद गांड़ भी फटी हो, मगर उसकी आवाज नही आती इसके लिए पता नही चला...

संध्या --"अगर अभय वहा इत्तेफाक से पहुंचा होगा, तो बात की बात। पर अगर किसी ने उसे....??"

रमन --"भा...भाभी तुम मुझ पर शक कर रही हो?"

संध्या जेड2"मेरी जिंदगी जहन्नुम बन चुकी है, कुछ भी नही रहा, मैं कुछ भी कर सकती हूं।"

इतना बोल कर संध्या वहा से चली जाति है....

संध्या के जाते ही, रमन अपने जेब से मोबाइल फोन निकलते हुए एक नंबर मिलता है। उसके चेहरे के भाव से पता चला रहा था की वो काफी घबरा गया है,

रमन --"हेलो... मु...मुनीम। कुछ पता चला उस छोकरे के बारे में?"

दूसरी तरफ से मुनीम ने कुछ बोला.....

रमन --"कुछ नही पता चला तो पता करो, नही तो उसे रास्ते से हटा दो।"

बोलते हुए रमन ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया, और जैसे ही कमरे से बाहर जाने के लिए कदम बढ़ाया, उसे दरवाजे पर ललिता खड़ी दिखी...

मटकाती हुई ललिता कमरे में दाखिल हुई, और रमन के गले में हाथ डालते हुई बोली...

ललिता --"जिसको रास्ते से हटाना चाहिए, उसे क्यों नही हटा रहे हो मेरी जान?"

रमन --"क्या मतलब...?"

ललीता --"अपनी प्यारी भाभी...."

ललिता बोल ही रही थी की, एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर रसीद हो गए...

रमन --"साली, ज्यादा जुबान चलाने लगी है, तुझे पता है ना, की वो मेरी जान है...उसमे जान अटकी है मेरी। उसका बदन... आह, क्या कयामत है? और तू....!!"

ये सुनकर ललिता एक जहरीली मुस्कान की चादर अपने चेहरे पर ओढ़ते हुए बोली...

ललीता --"एक बार किस्मत मेहरबान हुई थी तुम पर, पर क्या हुआ ?? तुम्हारे लंड पर चढ़े उस निरोध ने तुम्हारी भाभी की गर्म और रसभरी चूत का मजा चख लिया, और अब तो तुम्हे उस चूत का मूत भी नसीब होने रहा।"

ललिता की बात सुनकर, रमन गुस्से में बौखलाया बोला...

रमन --"वो सिर्फ मेरी है, एक दिन मैं उसे अपना जरूर बनाऊंगा, और उसके लिए मैं क्या क्या कर सकता हूं, ये बात तू अच्छी तरह से जानती है। रास्ते का कांटा वो छोरा है...उसे निकाल कर फेंकना पड़ेगा नही तो वो यूं ही भाभी की जुबान बन कर चुभता रहेगा.....!!"

कहते हुए रमन कमरे से बाहर चला जाता है......
भाई जी दुविधा दूर करने के लिए धन्यवाद।

इसका मतलब है कि आगे चल कर संध्या को अपने बेटे के से मिलने की संभावना है, एक गलती के लिए जिंदगी भर की नफरत नही मिलनी चाहिए।

इस अपडेट से एक बात और क्लियर हुई की अभय के पिता की मौत में भी रमन का ही हाथ है, संध्या इसमें शामिल नही है।
 
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