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Incest रिश्तों का कामुक संगम

vyabhichari

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ननद भौजाई होली में रगड़ाई भाग-२

राजू और गुड्डी ठंढई पी चुके थे। ठंढई पीने के बाद दोनों एक दूजे से लिपट गए।
गुड्डी अपने चूचियों को राजू की छाती में दबाते हुए बोली," राजू, हम चाहत बानि की आज होली के दिन, तू आपन गलती सुधार लअ। उ गलती जउन तू हमार गर्भपात कराके कइले रहलु। आज तू आपन लांडरूपी हल से, हमार कोख रूपी खेत में बूर के माध्यम से आपन वीर्य रूपी बिया गिरा द। उ बिया हम आपन कोख में फसल जइसे पूरा आठ नौ महीना तक रखब और ओकर बाद बच्चा जनके, हम दुनु उ बच्चा के फसल जइसन लहलहात देखब।"
राजू," गुड्डी दीदी, तू सच कहत बारू। हम तहार गुनाहगार बानि। केहू आपन बच्चा के कइसे गिरा सकेला।"
गुड्डी," अब तू हमार जइसन मत सोच, जउन हो गइल उ हो गइल। अब हमनी के आगे के सोचे के बा। हम दुनु के खातिर जउन तू उ समय कइले रहलु, उ ठीक रहे। पर भगवान आपन प्यार के एगो अउर मउका देले बानि। ई मउका हाथ से जाय न दअ। सोच जब बच्चा होई त का होई?
राजू उसके चूचियों पर सर रख पूछा," का होई?
गुड्डी," जब हमार प्रसव हो जाई अउर बच्चा जनम ली, त हम दुनु माई- बाबू बन जाएब। हम बहिन होखे आपन सगा भाई के बच्चा के माई बनब। तू आपन सगी बहिनिया के बच्चा के बाप बनबु। जउन बच्चा तहार भगना चाहे भगनी होखे चाही उहे असल में तहार बेटा चाहे बेटी होई। वसही हम ओकर माई रहब, फुआ से पहिले।"
राजू," मतलब ई कि, उ हमार बच्चा भी रही अउर भांजी भी, वसही तू ओकर माई भी रहबु अउर फुआ भी। ई कइसन रिश्ता के उलझन होई।"
गुड्डी," रिश्ता के उलझन न, रिश्तों के कामुक संगम होई। भाई बहिन के अंतरंग, अनुचित पर निश्छल अउर पवित्र प्रेम के प्रतीक। उ तहार अउर हमार काम वासना के अगिया कभू बूते न दी, काहे कि ओकरा देख के हम दुनु आपस के कामुक कुकृत्य याद कइके फेर से रिश्ता के कामुक संगम में डुबकी लगाएब।"
राजू," गुड्डी दीदी, तहरा केतना बच्चा चाही?
गुड्डी," राजू, हम चाहत बानि कि हमनी कम से कम चार बच्चा करि। हमके बड़ा शौक बा, घर में ढ़ेर बच्चा होखे चाही। हम दिनभर घर अउर बच्चा संभारब, अउर रतिया में बचवन के पापा के।"
राजू," लेकिन ओकर मतलब बा कि पूरा पांच साल हम दुनु के चुदाई बन्द हो जाई।"
गुड्डी," जब घर के आगे के दरवाजा बंद होखेला न, त लोक घर के बाहर न रहेला। पाछे के दरवाजा से अंदर घुसेला। आगे से बूर में न डाल पईबु, त हमार गाँड़ में लांड डालके मज़ा लिहा। उमे त कोनो रोक न रही।"
राजू," गुड्डी दीदी, तब त मज़ा आ जाई। एतना बच्चा होई त तू अगला दस साल तक दूध देत रहबु। तहार दूध पीके हम तहरे खूब चोदब।"
गुड्डी," ई त तहार हक़ बा, बोले वाला बात नइखे। हर मरद आपन माई के अलावा पत्नी के दूध जरूर पिएला। एमे कुछ गलत नइखे। स्त्री के स्तन इहे खातिर होखेला, अगर ई खाली बच्चा के दूध पियाबे खातिर रहित, त बच्चा जेतना दूध पिएला उ से बहुत ज्यादे दूध चुच्ची में आवेला।"
राजू," फेर त हम रोज राति तहार दूध पियब।"
गुड्डी," पहिले हमके जमके चोदके, हमार दूध पीके आपन थकान मिटा लिहा। ओकर बाद हमार बाँहिया में सूत रहिया। मोर बचवन के होखे वाला पापा।"
राजू," गुड्डी दीदी, ई शुभ काम में देरी काहे के।" राजू ने गुड्डी की बूर में लण्ड डाल उसे घोड़ी बनाके चोदने लगा।गुड्डी अपने भाई का लण्ड पूरे मज़े से लेने लगी। राजू और गुड्डी की भीषण चुदाई चल रही थी।

तभी कोई बोला," गुड़िया तू इहे सब करेलु भाई के साथ।"
दोनों ने मुड़के देखा, तो वहां गुड़िया का पति अशोक खड़ा था।
गुड्डी पहले तो चौंकी क्योंकि ये राजू और गुड्डी का निजी अंतरंग क्षण था। पर फिर खुद को संभाल बोली," जब भतार के लांड में नइखे दम, त मेहरू के दोसर लांड लेवे में काहे के शरम। रउवा के आश्चर्य काहे होता, तहरा त सब मालूमे बा। केहू अउर त नइखे आईल रउवा साथे।"
अशोक," न, केहू नइखे।"
राजू," जीजा देख औरतिया के कइसन चोदल जावेला। सिखबा त सीख ल।"
गुड्डी," ई सीख के का करिहें, एकर त लांड न खड़ा होखेला। ई खाली गाँड़ मराबे जानेला। देखबा, असली लांड कइसन होखेला।" ऐसा बोल गुड्डी उठी और अपने छोटे भाई का लण्ड हिलाते हुए बोली," ई देख अइसन होखेला, लंबा, मोटा, अउर कड़क। औरत दिनभर जउन काम करेली, रात के पति के नीचे बूर में लांड लेके, पेलवाके थकान दूर कर आराम से सुतेली।"
अशोक," हमरा माफ कर द। तू आपन भाई के साथे रासलीला मना ताकि तू बच्चा के माई बने। बच्चा के नाम हम देब।
गुड्डी," उ त देबे करबु ऐसे कि तहार सच्चाई दुनिया के सामने न आ जाये।"
राजू," जीजा, अगर तू चाहेलु कि बच्चा के तहार नाम मिले त, हम चाहत बानि कि तू हमसे आपन पत्नी के चुदाबे खातिर प्रार्थना कर।"
गुड्डी समझ गयी कि राजू का मक़सद अशोक को जलील करना है, वो मन ही मन हंसी और फिर अशोक से बोली," का भईल इहे मउका बा, तू ई घर के अउर आपन जीवन में सुकून चाहेलु, त हमार भाई के आगे हाथ जोड़के प्रार्थना करअ ल। उ हमार कोख में बच्चा देके तहरा, दुनिया के नज़र में नामर्दगी के श्राप से बचाई।"
अशोक उसके आगे हाथ जोड़के बोला," राजू जी, हमार पत्नी के चोदीं, एकरा चोदके संतुष्ट कर दी।ई बहुत बड़की चुदक्कड़ बिया। ई सदा तहार लांड के सपना देखेलि। जल्दी से एकरा कोख में बीज गिराके एकरा गाभिन कर दी। ताकि ई समय से बच्चा जनी, अउर हम उ बच्चा के बाप। मतलब बच्चा त तहार रही, पर हम नाम देब।"
राजू," मज़ा न आईल ढंग से दलाली कर, सोच ई तहार पत्नी न रंडी बिया। अउर रंडी के काम ग्राहक के साथ भरपूर चुदाई कर, संतुष्टि दे अउर ओकरा बदला में दाम ले।"
गुड्डी," हम रंडी बानि, राजू बाबूजी। हमरा रउवा से पइसा न, बच्चा चाही। प्लीज हमके बच्चा दे दी।"
अशोक," हाँ, सचमुच, हमार पत्नी के चोद ओकर गोद भराई पूरा कर द। हम राउर सामने हाथ जोड़त बानि।"
राजू हंसते हुए, काहे न, तहार पत्नी के बच्चा हो जाये।तनि आपन पत्नी के बूर चियार के, हमार लांड डाल दअ।"
अशोक ने राजू के कहे अनुसार अपनी पत्नी की बूर खोलके उसमें राजू का तगड़ा लण्ड घुसा दिया।"
राजू अब गुड्डी को रफ्तार से चोदने लगा। अशोक भी वहीं बैठ उनकी चुदाई देखने लगा। गुड्डी बोली," सुन रे भड़वा, पत्नी के दलाल तनि नज़र रख, जब तलिक ई हमके चोदत बा।"
अशोक थोड़ी दूर जाके बैठ गया, जहां से सब दिखाई दे चुदाई भी और घर का मुख्य दरवाजा भी। वो खुद ठंढई पीने लगा और थोड़ी देर में बेहोश हो गया। राजू गुड्डी को तेजी से चोदते हुए हांफ रहा था। गुड्डी की आँहें और सिसकारियां उसे और तेजी से चोदने की प्रेरणा दे रही थी। तभी गुड्डी ने राजू से बोला," राजू तनि सांस ले ल। तनि ठंढई पी ल। हम कहूँ भगत नइखे।" राजू उसकी बात मान रुक गया।

राजू जमीन पर बैठ, अपनी बहन को खुद की ओर गोद में बिठा, उसे ठंढई पिला रहा था। गुड्डी ठंढई का गिलास पकड़े हुए, अपने भाई को ठंढई पिला रही थी। गुड्डी राजू से पूरी तरह चिपकी हुई थी। गुड्डी राजू के सर को अपने चूचियों के बीच छुपा रही थी, ताकि राजू उसकी चुच्चियों का भरपूर आनंद ले सके। इतने में राजू ने अपना लण्ड, उत्तेजित हो उसकी बूर में घुसा दिया। गुड्डी की बहती बूर आसानी से उस लण्ड को अपने भीतर स्वागत की। उसके मुँह से आनंद भरी सिसकारी मुस्कुराहट के साथ निकल गई। राजू ने गुड्डी के बाल पकड़े और उसके गले को चूमते हुए उसके चूतड़ों का मर्दन करने लगा।
गुड्डी बोली," राजू, आज तहरा मन न करेला का, हमार गाँड़ मारेके। तहरा त बहुत मज़ा आवेला गाँड़ मारे में।"
राजू गुड्डी के गाँड़ की छेद में उंगली डाल बोला," काहे न रंडी साली, तहार गाँड़ मारे में अउर मज़ा आयी।"
गुड्डी," त कउन बात के इंतज़ार बा, डाल द गांड़ियाँ में लांड, अउर पेलआ कसके।"
उनदोनों के सामने तभी राजू का छोटा भाई अनिल आ गया। अनिल शहर में पढ़ाई करता था, वो होली के दिन चला आया था।
अनिल," भउजी, ई तू आपन भाई के साथे का कर रहल बारू। छि..छि...तहरा शरम नइखे आवत, बियाहल होखे भी तू पराया मरद उहू में आपन सगा भाई साथ एतना घटिया हरकत करत बारू। सच कहेला लोक कि औरत तेरियाचरित्र होखेलि। ओकरा पर कभू भरोसा न कइल जा सकेला।"
राजू आगे बढ़ उसे पीटना चाहता था, पर गुड्डी आगे बढ़ राजू को रोकी। फिर अपने देवर की ओर पलट बोली," आपन भैया से पूछ ल, हम जे कर रहल बानि ओकरा से पूछ के। तहार भैया के त खड़ा भी न होखेला। हम तेरियाचरित्र नइखे हम त खाली आपन भाई के बानि। पहिले आपन बहिन के संभालअ, हमार भाई के रिझा के फेर ओकरा से चोदबा लेले बिया।" ऐसा बोल वो राजू को उसके सामने चूम ली।
उसी समय मीरा पूरी नंगी पके मांस का पतीला लेकर आ गयी। राजू ने अनिल को बोला," उ देख तहार मादरजात लंगटी बहिन हमरा खातिर मांस लेकर आवतिया। कसम से एकर सील फाड़े में बड़ा मजा आईल। हमरा से एतना खुश बिया कि हमरा खातिर मांस पकौलस।"
मीरा अपने छोटे भाई को देख बोली," आह, ओह अनिल तू कब आइलु। खबर भी न कइलु।"
अनिल बोला," उ छोड़ मीरा दीदी, तू इँहा का गुल खिलावत बिया। ई घर के मान मर्यादा, इज़्ज़त सब माटी में मिला देलु।"
मीरा," का कइनी, हम त होली खेलत बानि। भाभी के भाई के साथ। एमे का गलत बात बा।"
अनिल," अइसे कउन शरीफ घर के लइकी होली खेलत बिया। भाँग पीके, कपड़ा फड़वा के, लंगटी घूमत बिया।"
राजू," अनिल तू न बुझबू, इहे उमर बा मस्ती के। आपन दीदी के साथ तू भी शामिल हो ल। बहुत मज़ा आयी।"
गुड्डी," हाँ बिल्कुल। अनिल बाबू देखअ आपन दीदी के। कइसन सुंदर बिया। हम दावा से कहत बानि, भाई बहिन के बीच होली में कउनु बाधा होवे के न चाही। हम दुनु भाई बहिन के देख लअ केतना स्वतंत्र आउर मस्ती में होली के आनंद ले रहल बानि। भाँग के नशा के साथ, लंगटी दीदी के बाँहिया में ले अउर बिन हिचक ओकरा चोद के मज़ा ले लअ।"
राजू," का सोचत बारआ, उठा के ले चल आपन बहिनिया के, ऊंहा गाछ बिरिछ के बीच। हम दुनु मिलके आपन बड़ बहिन के चोदब। मीरा आपन भाई के भाँग पिया दअ।"
मीरा हंसते हुए अनिल के सामने आई और बोली," अनिल ई लअ भाँग पी ल, ताकि कउनु हिचक न रहे। तू चिंता मत कर हम केहू के न कहब, ई बात हम चार लोकन के बीच रही।" वो उसे भाँग वाली मीठी लस्सी का बड़ा गिलास देते हुए बोली।
अनिल उसकी ओर देख बोला," लेकिन ई गलत बात बा ना दीदी, आपन सगी बहिन के साथ कउन अइसे करेला।"
मीरा उसका हाथ पकड़ अपने चुच्चियों पर रख बोली," तहरा सामने उदाहरण बा, अउर अब तू भी अइसन करबे करबु।"
अनिल," तहरा अइसन काहे बुझाता?
मीरा," काहे कि, भउजी के भैया न चोदेला। उ त सौभाग्यशाली बिया, कि ओकर भाई ही ओकरा चोद के यौन सुख देवेला। काल के हमार पति अइसन निकली, जेकर खड़ा न होखे, त तहार बहिन के का होई। अउर एक बात, ई दुनु लोक मज़ाक उड़ावत बारन, हमार दुनु भाई नामर्द बा। अब ई घर के इज्जत तहरा हाथ में बा, हम त ई घर के इज्जत बचाबे चाहेनि, हमरा चोद के साबित कर द तू घर के असली मरद बारू।" मीरा ये बोल गुड्डी और राजू की ओर मुड़ कुटिल मुस्कान दी।
अनिल उसकी ओर देख बोला," अगर ई बात बा त हम साबित कर देब कि ई घर में नामर्द न मरद भी रहेला।" ऐसा बोल उसने हाथ पड़ी ठंडई पी, उसके बाद उसने एक और गिलास में ठंढई डाल पी गया। तीनों उसे ऐसा करते देख खुश थे। अनिल ने जैसे ही दूसरा गिलास खत्म किया मीरा उसे चूमने लगी। उसने तेजी से कपड़े उतार दिए। और नंगा हो अपना कड़ा लण्ड सबको दिखाया। वो बोला," ई देखअ लांड, कइसन टनटनाइल बा। सच्चा मरद के ही अइसन होखेला।"
गुड्डी बोली," हाँ, सच बा लेकिन लागत बा मीरा दीदी के नाम पर ज्यादा फनफनात बा।"
मीरा ये सुन बोली," काहे न होई, भउजी राउर भाई के भी त इहे हाल बा।"
मीरा अनिल का लण्ड थाम बोली," बाप रे बाप केतना बड़ा बा, उफ़्फ़फ़ हमार भाई केहू से कम नइखे।" ऐसा बोल वो नीचे बैठ उसका लण्ड चूमने लगी।
गुड्डी बोली," अरे अभी रुक जा तू लोक, उ बेचारा अभी आईल बा, ओकरा कुछ खिया त दे। राजू भी थकल बा। ई सब करे खातिर अभी त पूरा दिन बा।"
मीरा को गुड्डी ने उठाया, दोनों ने अपने भाइयों को बिठाया। इसके बाद मीरा और गुड्डी ने अपने भाइयों के लिए मांस प्लेट में निकाला और उनके गोद में बैठ अपने हाथों से मांस खिलाने लगी। दोनों नंगे भाई अपनी सगी नंगी बड़ी बहनों को अपने लण्ड पर बैठाए उनके हाथों से स्वादिष्ट मांस खा रहे थे। इस बीच वो भाँग वाली ठंढई पीते रहे। गुड्डी और मीरा भी उनके साथ साथ खा पी रही थी। इस बार गुड्डी ने ठंढई में शिलाजीत भी मिला दिया था, जिसके प्रभाव से दोनों भाइयों का लण्ड थोड़ी ही देर में सांप की तरह फुंफकारने लगा।
मीरा ने गुड्डी को टोका भी था, तो गुड्डी बोली," चुदाई के आज भरपूर आनंद लेवे के बा। दुनु भाँग के साथ शिलाजीत खाई त सवेरे तक, लांड टाइट रही। हमनी थकब त चली, पर ई दुनु न थके के चाही। आज शाम तलिक त ई दुनु रुकी न एकर बाद। होली के असली मज़ा त इहे में बा, रगड़ रगड़ के चोदे भाई, बहिन के बूरवा से झड़ी मलाई।" ऐसा बोल दोनों हंस दी और उन्होंने भी भाँग की ठंढई की एक गिलास गटका ली।
अनिल फिर मीरा को गोद में उठा उसे बगीचे के अंदर ले गया। उनदोनो को जाते देख गुड्डी बोली," एक अउर भाई बहिनचोद बन गईल।"
राजू," अनिल मीरा के बियाह कभू न हो पाई। मीरा लेकिन चाहे त आपन भाई के दैहिक सुख दे सकेलि, कभू बियाह न कइके, आपन भाई संग इंहे घर में रह के।"
गुड्डी," राजू, का तू हमरा संग बियाह करबअ? या हमके अपना साथ असही रखबअ?"
राजू," तू का चाहेलु, हम तहरा कइसे रखि? तू त हमार बड़ बहिन बारू, अब तू ही बताबा?
गुड्डी," गांव में त तू हमरा से बियाह न कर सकअ तारअ। मतलब तू हमके सबके सामने बहिन बना के रखबु अउर घर के भीतर पत्नी के तरह रखबु।"
राजू," बहिन बना के रखे से का मतलब बा, तू हमार त सच में बहिन बारू। लोक के का पता चली कि का होता।"
गुड्डी," राजू, मरद अगर बिना बियाह के कउनु औरत के घर में रखेला त समाज उ औरत के बड़ा गंदा नज़र से देखेला। जाने का कहेला लोक उ औरत का?
राजू उसके बालों को सहलाते हुए बोला," का कहेला लोक उ औरत के? बोलअ ना?
गुड्डी," राजू, बड़ा ही घटिया अउर गंदा नाम से बोलेला जमाना। औरत खातिर बहुत अपमानजनक बात होखेला। लेकिन औरत जब मनपसंद मरद संग रहेली, त ओकरा कउनु फरक न पड़ेला, काहे कि उ मरद के साथ सुरक्षित अउर संरक्षित महसूस करेली। उ शबद गाली होखेला।"
राजू," कउन शबद कउन गाली, खुलके बोल रानी?
गुड्डी," राजू, तहरा नइखे पता कि लइकी बिना ब्याह के लइका साथ रहेली त, दुनिया ओकरा का कहेला?
राजू," बोल ना, तू डेरात बाड़े कि लजात बाड़े?
गुड्डी," न डेरात बानि न लजात बानि। ओकरा दुनिया उ मरद के रखैल कहेला। हम तहार रखैल बनके रहब। रखैल ओकरा कहेला जउन कउनु पराया मरद के बिस्तर के शोभा बढावेली। हर रखैल के उ मरद मालिक होखेला। तू हमार मालिक अउर हम तहार रखैल बानि।"
राजू," देख ल तू खुद हमार रखैल बने चाहेलु अउर हमके मालिक बुला रहल बारू। एकर मतलब बा तहार सम्पूर्ण समर्पण, बुझलु न।"
गुड्डी," जी एकदम।"
राजू," उफ़्फ़फ़ एकदम रखैल बने खातिर जन्म लेले बारू बुझाता। माई भी तहरे जइसन छिनरी बिया।"
गुड्डी," छिनार अगर बिया त तहरे खातिर, हमहु छिनार बानि तहरे खातिर। आवा छिनरी बहिन के चोद ल, राजा।"
राजू ने इस बार उसकी गाँड़ में लण्ड डाल दिया। गुड्डी ने ही उसे अपनी गाँड़ फैला, उसके सामने सिंकुड़ी भूरी छेद को परोसा। राजू भी जानता था कि गुड्डी गाँड़ मरवाने के लिए बेचैन थी। राजू ने जड़ तक लण्ड डाल उसकी गाँड़ के कसाव को ढीला कर दिया। गुड्डी ने जितना हो सके गाँड़ को ढीला छोड़ रखा था, ताकि राजू का लण्ड आराम से अंदर बाहर हो सके। थोड़ी देर बाद गुड्डी की गाँड़ लण्ड को अपने अंदर समावेशित कर ली। लण्ड अब गाँड़ में ऐसे चिपक चुका था, जैसे उसके गाँड़ का ही हिस्सा हो।
गुड्डी," राजू, उफ़्फ़फ़ बड़ा दिन बाद गाँड़ में लांड ढुकल बा। हाय, आह.. केतना कसाईल बा। उउम्म बूर के चुदाई अऊर गाँड़ के चुदाई दुनु में हमके बहुत मज़ा आवेला। सच बताई गाँड़ मराबे में अउर निम्मन लागेला।"
राजू उसकी गाँड़ मारते हुए बोला," सच दीदी तहार गाँड़ आज भी उतने टाइट बा, जेतना पहिले। मन करेला, तहार गाँड़ में ही लांड घुसाए रखि। जब लांड निकालत बानि, त भीतरी तहार गुलाबी गाँड़ के त्वचा देख मन अउर ललचा जाता। मन करेला बार बार तहार गाँड़ खोल के उ देख अपना आप के उत्तेजित रखी।"
गुड्डी," अच्छा, जइसे अच्छा बुझाता तहरा वइसे कर। लेकिन आपन लांड त न चटेबु, गाँड़ से निकाल के।" गुड्डी ने ऐसे पूछा जैसे उसे इशारा कर रही हो, उससे ये करवाने के लिए।"
राजू," काहे तहरा मन बा लांड चाटेके।"
गुड्डी," अगर तू दबाव देबु, त हम का कर सकेनि। तू जउन कहबू उ करे कब के पड़ी।"
राजू मुस्कुराते हुए," चल उठ रंडी साली, चल चाट आपन गाँड़ के रस, ई लांड से।"
गुड्डी भी मुस्कुराते हुए लण्ड को चाटने लगी। उसकी ये घिनौनी कामुक कृत्य चुदाई को और भी रसप्रद बनाने लगी। गुड्डी की आंखों शरम बिल्कुल भी नहीं थी, वो राजू की आंखों में निर्लज्जता से देख रही थी। लण्ड को ऐसे चूस रही थी, जैसे वो अभी अभी लॉलीपाप बनी हो। मन भर चाटने के बाद, राजू ने उसकी गाँड़ चुदाई शुरू कर दी।
पूरे दोपहर बीत गयी उनकी चुदाई करते हुए, पर दोनों में से कोई शांत नहीं हो पा रहा था।
उधर मीरा और अनिल जीवन में पहली बार कौटुम्बिक व्यभिचार का रस प्राप्त कर रहे थे।
दोनों बूर और लण्ड के अद्भुत संपर्क का कामुक आनंद उठा रहे थे। अनिल अपनी बड़ी बहन को बगीचे के बीचों बीच लिटा के चोद रहा था। मीरा अपने भाई के नीचे लेटी चुदने का सुख प्राप्त कर रही थी।
मीरा," आह... अनिल तू लइका सब होस्टल में का सब करेलु। लइकी के बारे में ऊंहा का बात होखेला।"
अनिल," मीरा दीदी, ऊंहा डेली रात में सब गंदा ब्लू फिलिम देखेला। सब मस्तराम के किताब पढेला। सब अभी जवान बा, त खाली लइकियन के बूर, गाँड़, चुच्ची, माहवारी, चुदाई के बात करेला। हर रूम में अधनंगी लइकी के पोस्टर बा। हम सब त गर्ल्स हॉस्टल से अंडरगारमेंट्स चुरा के ले आवेनि अउर उहे में मूठ मारेनी। पहिले त सीनियर्स सब करौलस, बाद में हमनी खुद कइनी। ऊंहा हमनी क्लास के लइकी के बारे में खूब गंदा गंदा बात करत बानि। जइसे उ लइकी चुदी त का सब करि। ओकरा कइसे चोदल जाउ। इहे सब।"
मीरा," बड़ा कमीना बारे तू सब।"
अनिल," सच में बहुत कमीना सब बा।"
मीरा," हम भी ब्लू फिलिम देखे चाहेली, अनिल तू हमके देखाबे। हम देखे चाहत बानि कि लइका सब लइकी के कइसे चोदेला।"
अनिल," हम त तहरा साथ ब्लू फिलिम जइसन चुदाई करब। सच दीदी जाने केतना फिलिम में हम तहरा सोचके मूठ मारनी।"
मीरा," अब तहरा मूठ मारेके जरूरत नइखे, हम भी बहुत बूर में उंगली कइनी ह। अब हमनी लांड बूर के खेल खेलब।"
अनिल," लेकिन हमके पता कइसे चली कि तहरा लांड चाही।"
मीरा," जब भी हम तहरा देख के आपन गाल सहलाएब, तू बूझ जहिया कि हमरा चुदाई चाही। हमनी कहूँ जगह खोजके चुदाई कर लेब।"
अनिल," अच्छा, लागत बा तू बहुत पियासल बारू।"
मीरा," तहरा अंदाज़ा नइखे, तहार दीदी के केतना बुरा हाल बा। वादा कर तू, हमके खुश रखबू। अउर हमनी के ई राज़ हमेशा राज़ रही।"
अनिल," हम कसम खाके कहत बानि, जब तक हम तहरा साथ रहब तहरा चुदाई के कमी न महसूस होई। जगह खाली तू चुनबू, हम तहार खुशी के सीमा चुनब। तहार इज्जत घर के इज्जत बा। हम ई हमेशा राज़ रखब। अगर तहरा देहि के रहे त हमरा पहिले काहे न देलु, जउन राजू के दे देलु। परिवार के लइकी पर पहिला हक़ त परिवार के ही बा।"
मीरा," लइकी त दूध के कटोरी होखेलि, बस हिम्मत होखे के चाही बिलाड़ के दूध पीएके। उ हिम्मत कइके कटोरी के दूध चख लेलस। तू अगर पहिले हिम्मत कइले रहतु, त ई दूध के कटोरी केहु के हाथ न लगत। लेकिन अब तू दूध के कटोरी अपना पंजा में कस लेलु, त अब इ तहरे पास रही।"
इसी बात को सुनकर अनिल अपनी बहन को चूमके उसे जोरसे चोदने लगा। मीरा भी कमर उचका चुदाई में भरपूर सहयोग कर रही थी। दोनों भाई बहन भाँग के नशे में जी तोड़ चुदाई करते हुए, पसीने से भीग चुके थे। अनिल का लण्ड मीरा की बूर की अच्छी खबर ले रहा था। सच कहते हैं चुदाई में रिश्ते नाते नहीं बस मर्द और औरत की वासना होती है। वासना सिर्फ जिस्म चाहती है, रिश्तों की मर्यादा नहीं। रिश्तों की मर्यादा काम पिपासा के आगे घुटने टेक देती है। उसके घुटने टेकते ही, सिर्फ मर्द औरत का रिश्ता बचता है। घर के संस्कार, अच्छे बुरे का एहसास, सही गलत का फर्क सब वासना की आंधी में उड़ जाते हैं। जैसे इस समय मीरा और अनिल पशुओं की भांति चुदाई कर रहे थे। मीरा की मर्यादा अनिल के लण्ड से हार गई थी। वहीं अनिल सगी बहन की जवानी चखने में लगा हुआ था। दोनों की ही आंखों में वासना तैर रही थी, जिसे दोनों एक दूसरे के साथ संभोग से मिटाने का प्रयास कर रहे थे।
दोनों रुक जाते, फिर चुदाई करने लगते, फिर हांफते, फिर रुकते और फिर चुदाई करने लगते।

उधर राजू और गुड्डी गुदा मैथुन का सुख बहुत देर से भोग रहे थे। गुड्डी ने तो इस दौरान बहुत बार राजू का लण्ड चूसा और अपनी गाँड़ का स्वाद चखा। इधर भी हवस पूरे चरम पर थी। दोनों का तन अब टूट रहा था, पर मन नहीं भरा था। दोनों ने आखिरकार थक के, चुदाई को विराम दिया और रात को फिर चुदाई का वादा किया। गुड्डी और राजू, मीरा और अनिल को ढूंढने गए तो देखा, मीरा अनिल के ऊपर बैठी कूद रही थी, जैसे कोई घुरसवारी कर रहा हो। अनिल उसके दोनों चुच्चियों को कसके थाम, उन भूरे उठे चुचकों का बेदर्दी से मर्दन कर रहा था। मीरा की तेज सिसकारियां माहौल में उत्तेजना का लवण फेंट रही थी। दोनों भाई बहन पिछले दो घंटे से चुदाई की रासलीला कर रहे थे। मीरा को अब समझ आया था कि कौटुम्बिक व्यभिचार असल में कितना रसप्रद और संक्रामक होता है। क्यों उसकी गुड्डी भाभी अपने सगे भाई के साथ काम लीला का आनंद उठाती है।
गुड्डी," मीरा चल अब, केतना चुदाई करबेबु। सांझ होखे वाला बा। अब त बाबूजी भी लौटिहन।"
मीरा," भउजी, रउवा त केतना दिन से भाई के लांड लेत बारि। हम त पहिल बेर लेत बानि। तनि अउर देर एकर लौड़ा हमार बूर में रहे दी। अभी त शुरुआत भईल ह।"
अनिल," हाँ, भउजी मीरा दीदी त अभी जोशियाईल बिया। एतना मस्त माल हमार बहिन बिया, कउनु हीरोइन के फेल कर दी। हम त अब एकर साथे ही घर बसाईब अउर एकरा आपन दुलहिन बनायेब।"
गुड्डी," अरे छोड़ एकरा न त ई बेचारी दुलहिन बने से पहिले, सुहागरात मनाबे लायक न बची। पिछला दु घंटा से एकर बूर के भीतरी एतना मोटा लौड़ा घुसल बा, एकरा काल होश न रही।"
मीरा," भउजी रउवा भी त चुदबात रहनि न। हमरा न कुछ होई। अभी त मज़ा शुरू भईल बा।"
गुड्डी," अरे हमके त आदत बा। आजे तहार बूर के ढक्कन खुलल बिया। बूर के ढीला होखे में टाइम लागी। अभी चल उठ।"
गुड्डी उसे जबरदस्ती उठा वहां से ले जाने लगी। अनिल अपनी बहन को देखते हुए बोला," मीरा दीदी, तू टेंशन मत ले।" मीरा हाथ छुड़ा उसके पास आई और धीरे से बोली," आज रात हम दरवाजा खुला रखब।" ऐसा बोल वो वापिस गुड्डी के साथ चल दी। राजू और अनिल दोनों अपनी बहनों को जाते हुए देख रहे थे।
दोनों ने सिगरेट सुलगाई और कपड़े डाल नहाने चले गए।
तभी राजू ने अनिल के कान में कुछ कहा। और दोनों वापस अपनी बहनों के पास आ गए। राजू बोला," दीदी काहे ना हम सब एक साथ नहा ली।
अनिल," हाँ, मीरा दीदी ऊंहा जउन बोरिंग बा, उंहे चारो आदमी नहाये चली। ऊंहा हौद में पानी भरल रहेला। का ख्याल बा।"
दोनों ही लड़कियों ने अपनी सहमति दे दी। दोनों ने फिर अपनी बहनों को गोद में उठा लिया और उन्हें पानी से भरे हौद की ओर ले गए। भाँग के नशे में चारों हँस रहे थे।
गुड्डी बोली," खाली साथ में नहैया, हमनी के चोदिह ना।"
राजू और अनिल उन दोनों को ले पानी के हौद के पास पहुंच गए और दोनों लड़कियों को पानी में प्यार से उतार दिया। दोनों उसमें प्यार से अपने बदन को रगड़ रगड़ नहाने लगी। दोनों लड़के भी पानी में उतर नहाने लगे। सब अपने रंग उतारने लगे। लेकिन दोनों भाई बहन युगल एक दूसरे को लगातार ताड़ रहे थे। कुछ ही पलों में गुड्डी राजू के पास आ गयी, और अपने नंगे बदन से पानी में भी आग लगाने वाली जवानी को उसके सामने रख बोली," राजू तनि हमार पाछे से रंग छोड़ा द।"
राजू," काहे ना, आवा तहार अंग अंग से रंग छुड़ा देत बानि।"
गुड्डी ने अपने गीले बाल आगे कर लिए और अपनी चिकिनी पीठ और गाँड़ उसके सामने कर दी। राजू उसकी पीठ रगड़ने लगा। मीरा भी मौके का फायदा उठा अपने भाई के पास पहुंची और उसे भी ऐसा करने बोली। अनिल भी वैसा ही कर रहा था।
गुड्डी बोली," इँहा चुदाई न करेके बा।"दरअसल दोनों ही लड़कियां रंगों में डूबी और पानी में गीली बहुत ही कामुक लग रही थी। दोनों ही भाई अपनी बहनों के हर अंग को रंगों की परत से आज़ाद करना चाह रहे थे। उन दोनों को भी इसमें मज़ा आ रहा था। उन दोनों ने लड़कों को अपने यौनांगों को छूने की आज़ादी तो दी थी, पर चुदाई की आज़ादी नहीं दी थी। वो अपनी बहनों की गाँड़, चूचियाँ और बूर पर खास तवज़्ज़ो दे रहे थे।गांव की ये देसी लड़कियां, रंगों में लिपटी और पानी में गीली अपने ही भाइयों के सामने निर्वस्त्र जल क्रीड़ा करते हुए रंगों को उतार और उतरवा रही थी। शरीफ घर की लड़कियों को जब छिनारपन करने का मौका मिलता है, तो वो अपनी सीमाएं भूल जाती है। इसके बाद लड़कियों ने भी उनके रंग छुड़ाने लगी। वो लोग आपस में एक दूसरे को छेड़ रहे थे। ऐसे में उन सबका उत्तेजित होना स्वाभाविक था। दोनों ही लडकियों के भीतर फिरसे चुदने की बेरहम प्यास जाग गयी। गुड्डी ने मीरा को आंख मार कर इशारा किया। दोनों अपने भाई की गोद में उनके ओर मुड़के बैठ गयी। और उनका लण्ड उनके गाँड़ की दरार के बीच आ गया। गुड्डी और मीरा आगे पीछे करते हुए लण्ड को चूतड़ों से रगड़ते हुए मज़ा ले रही थी। इतने में अशोक ने पूछा," मीरा दीदी, ई का करत बारू?
मीरा," तहार लांड से रंग छुड़ा रहल बानि।" और वो दोनों लड़कियां जोर से हंसी।
राजू ने गुड्डी की गाँड़ में एक चाटा मारा और बोला," तनि अच्छा से कर न दीदी।" गुड्डी और तेज और दम लगा उसका लण्ड मसलने लगी। माहौल फिर से गरमा चुका था। कब उनका लण्ड अपनी अपनी बहनों की बूर की गहराइयों को चूमने लगा, उनको भी नहीं पता चला। पानी की वजह से लड़कों को लड़कियों का वजन आधा लग रहा था। इसका फायदा उठा वो उन्हें तेजी से चोदने लगे थे। गुड्डी और मीरा अपने दोनों हाथ अपने भाइयों के कंधे पर जमा अपना वजन टिकाए हुए थे। उनके भारी गीले चूतड़ पानी से टकराते तो पानी के छींटे चारों ओर उड़ते थे। उनके गीले बाल उनके कंधे और पीठ से चिपके हुए थे। उन चारों की कामुक आवाज़ गूंज रही थी। आखिर में राजू ने गुड्डी की बूर में अपना माल गिरा दिया। अनिल ने भी मीरा के अंदर ही वीर्य का स्खलन कर दिया। दोनों ही लड़कियां उखड़ती साँसों से कुछ देर तक अपने भाइयों के साथ चिपकी रही। करीब आधे घंटे नहाने के बाद, चारों वापस घर आ गए।

रात को गुड्डी ने पति के लिए चटाई नीचे लगा दी और राजू को बिस्तर पर आने के लिए न्योता दे डाला। वैसे ही मीरा रात को खाना खाने के बाद अपने कमरे में अनिल का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। तभी बिजली चली गयी और राजू गुड्डी के कमरे में और अनिल मीरा के कमरे में पहुंच गया। गुड्डी का पति अशोक नीचे सो रहा था। राजू उसे लांघ कर गुड्डी के बिस्तर पर चढ़ गया। गुड्डी सारा काम खत्म करने के बाद, राजू के साथ बिस्तर में गुटरगूँ करने को तैयार थी। राजू कुछ ही देर में गुड्डी को उसके बिस्तर पर किसी फूल की तरह मसल रहा था। उसका यौवन रस राजू जैसा भंवरा ही पी सकता था। दूसरी तरफ मीरा भी बिस्तर में पेली जा रही थी।
गुड्डी की सिसकियां और आँहें उसके नियंत्रण में नही थी। दोनों भाई बहन चुदाई की आग में भड़के भूल गए थे कि वो कहाँ हैं। दोनों अपने संभोग में इतने लीन थे, कि उनकी आवाज़ों ने कब गुड्डी के ससुर को कमरे में बुला लिया उन्हें पता ही नहीं चला। दरअसल वो जब रात को मूतने उठा तो, उसकी नज़र खुली हुई खिड़की पर गयी, जहां उसे कमर से ऊपर नंगी हिलती चूचियों की मालकिन गुड्डी और उसके नीचे उसका भाई दिखा। वो सीधा कमरे में आ गुस्से में बत्तियां जला दी। राजू और गुड्डी बिल्कुल नंगे थे। फर्श पर उसका बेटा सो रहा था।
ससुर," बहु ई का हो रहल बा। तहरा शरम नइखे आवत का? भाई के साथ...छि...छि...
वो इतनी जोर से चिल्लाया कि घर में सब जग गए। अशोक भी उठ गया। उसकी आवाज़ सुन मीरा और अनिल भी चुदाई बीच में रोक बातें सुनने लगे। मीरा ने मौके का फायदा उठा अनिल को कमरे से जाने को कहा। अनिल ने भी मौके की नजाकत को समझ वहां से निकलना ही ठीक समझा। उधर गुड्डी के कमरे में उसका ससुर अपने गले की तीव्रता नाप रहा था।
ससुर," रे बेशर्म तहार सामने तहार पत्नी तहार बिस्तर पर केहू अउर के साथ चुद रहल बिया अउर तू इँहा नीचे चटाई बिछा के लेटल बारअ।"
अशोक चुप रहा। गुड्डी और राजू एक दूसरे से चिपके हुए थे और दोनों स्तब्ध थे।
ससुर," बेशरम निर्लज्ज कहीं के, अइसन भाई पहिल बेर देखनि ह, जउन बहिन के ही चोद रहल बा। कइसन कुलक्षिणी बियाह के ले आइनि ह। रुक अभी रुक तू दुनो के बतावत बानि।" ऐसा बोल वो आगे बढ़ा।
तभी अशोक बीच में आ बोला," ई दुनु जउन करत बा, उ हमार मर्ज़ी से कर रहल बा। हमनी ई दुनु के इजाजत देनी ह।"
ससुर," अशोक ई का कहत बारे तू, पगला गईल हाउ का। छोड़ हमके।"
अशोक," पिताजी, हम सच कहत बानि। एमे ई दुनु के कउनु दोष नइखे।"
ससुर," हमरा पास तहार बकवास सुने के समय नइखे। अभी दुनाली लेके आवत हईं।" और वो दूसरे कमरे में गया। इतने में अशोक बोला," राजू गुड्डी तू दुनु भाग जो, अभी पिताजी के ऊपर खून सवार बा। हम इँहा देखब।"
गुड्डी," लेकिन रउवा इँहा..... कहीं कुछ अनर्थ न हो जाये।" वो रोते हुए बोली।
अशोक," अनर्थ हो जायीं, अगर तू लोक इँहा रुकबआ त। हम सच कहत बानि भाग जो। हम देख लेब।"
राजू भी कुछ कहना चाहता था, तभी गुड्डी का ससुर बंदूक लेकर आ गया। अशोक ने आगे बढ़ उनको रोक लिया। और चिल्ला के उनको भागने को कहा। अब दोनों के पास कोई चारा नहीं था। दोनों ने खिड़की से छलांग लगाई। अशोक का बाप चिल्ला के बोला," तू दुनु कहाँ, भागत बारे। तहार बाप के बताएब, का करेलु तू सब। रुक बहनचोद कहीं के।"
राजू को गुस्सा आया तो वो मुड़के जाने लगा, तो गुड्डी बोली," ई मउका ठीक नइखे। अभी भाग इँहा से।"
गुड्डी और राजू बिल्कुल नंगे वहां से आधी रात भाग गए। दोनों बहुत देर तक खेतों और बगीचों में नंगे भागते रहे। आखिर कर जब वो लोग काफी दूर निकल आये तो, दोनों ने एक पेड़ के नीचे आश्रय लिया। चांदनी रात में, पूर्णिमा का चांद जैसे उनका मार्गदर्शक और संरक्षक दोनों था। गुड्डी अपने भाई के साथ लिपटी हुई, उसकी बांहों में समाई हुई थी।
 

Raja jani

आवारा बादल
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2,163
159
ये वास्तव में बड़ी हैरत की बात है कि इतनी रसीली कामुक व्यभिचार गाथा के पाठक बहुत कम हैं सच में इतनी गर्म कामुक कहानियां बहुत कम है इस फोरम में।
 

Sphinx

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Ye pahle update is story ka h Jo jhand h
Varna sare update ek se badh kar ek uttejak the.
Worst update of this excellent story till date
 
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