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Incest रिश्तों का कामुक संगम

rahulmishra18062003

Nude AV not allowed
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मैंने भी अपनी सगी मां को खूब चोदा है वो तीन बार पेट से हो गई पर हमने बच्चा गिरवा दिया इस बार वो फिर से पेट से है पर माँ उसको पैदा करेगी | मेरा बच्चा
 
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Reactions: rajeev13

Kaminawrd

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Ye baat sahi ki raju aur bina aur sex scene hona chahiye aur wo bhi us scene sari kriya raju karein kyunki ab tak to bhale hi sex scene bahut acche aur utejit ho par pehle bina bolti phir wo Raju karta hai aisa nhi hona chahiye raju har cheez kud karein wo bina se order na le balki raju bina ko hukum de aur bina us baat ka palan karein ek sasti kutiya ki tarah par ulta Raju aur guddi ka scene waise hota jo ki bahut kamuk aur raju guddi ko ekdum bazuru kutiya ki tarah rakta hai waise raju ko bina ko rakna chahiye.....aur bina ke liye thuk aur kaank ke baal jaise scenes Jayda ho to aur maza ayyega
Raju Bina ko ekdam personal kutiya bana le. Bina ko patane me Raju ko jitna mehnat laga hai Raju utna hi use Jalil kare wo sab yad karwa ke aur Bina mafi mange. Jaise bina ke muh me apna land dekar pure ghar me kutiya ki tarah ghumaye, niche muth marke bina ko chatwane,Bina ko gandi gandi galiyan de,
 

Ranjhnaa

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गुड्डी की चड्डी भाग १

सुबह के लगभग साढ़े पांच बज रहे थे। सूर्योदय हो रहा था। धरमदेव अपनी साईकिल से खेतों की ओर निकल चुके थे। बीना घर के काम काज में लग चुकी थी। राजू भैंसों का दूध निकालने के लिए, घर के आंगन में पड़ी बाल्टी लेने जा रहा था। गुड्डी घर के पिछवाड़े में बनी कच्ची बाथरूम में नहा रही थी। जिसमे ऊपर कोई भी छत नहीं थी, पूरा खुला था, साथ ही उसमे दरवाज़े के नाम पर बस एक पर्दा लगा हुआ था। आज गुड्डी का व्रत था, इसलिए वो सुबह सुबह ही नहा कर पूजा करने मंदिर जाने वाली थी। उसकी माँ ने उसे व्रत रखने को कहा था, और बोली थी कि ये व्रत रखने से उसको मनचाहा वर मिलेगा। राजू बाल्टी लेकर घर के पिछवाड़े से ही निकल रहा था। तभी उसका ध्यान बाथरूम से बदन पर लोटे से पानी गिरने की आवाज़ आयी। साथ ही गुड्डी के पैरों की पायल की आवाज़ भी रुनझुन रुनझुन कर बज रही थी। राजू ने बहुत कोशिश की कि वो उधर ध्यान ना दे, और भैंसों के खटाल की ओर जाने लगा। वो दो चार कदम चलने के बाद रुक गया। ना चाहते हुए भी, वो बेचैन मन से हारकर, बाथरूम की ओर जाने लगा। उसके नज़दीक पहुंचकर उसने आइस्ते से बाल्टी नीचे रख दी। चुकि वो ईंट और मिट्टी से जोड़ी गयी दीवार थी, कीड़े मकोड़ों ने कई जगह से मिट्टी हटा दी थी, जिससे देखने पर अंदर साफ साफ दिखता था। राजू अंदर झांकने के लिए एक बार झुका, पर फिर अंदर के अच्छे भाई ने उसे रोका तो, उसने आंखे बंद कर ली और दीवार से चिपककर खड़ा हो गया। पर थोड़ी ही देर में, काम भावना ने अंदर के भाई को हरा दिया, और वो अंदर नहा रही गुड्डी को देखने के लिए, एक लंबी सांस लेके छेद से अपनी आंख लगा दी। अंदर के नजारे को देखकर वो स्तब्ध रह गया।

गुड्डी अंदर बिल्कुल नंगी/ नग्नावस्था में नहा रही थी।उसने अपने बदन पर एक टुकड़ा कपड़े का भी नहीं डाल रखा था। जिस तरह वो अपने माँ के गर्भ से पैदा हुई थी, बिल्कुल उतनी ही नंगी थी। वो अंदर अकड़ू होकर बैठी थी। और इस वक़्त अपने बालों में शैम्पू कर रही थी। ऐसा करते हुए, वो अपने हाथों से बालों को रगड़ रही थी, जिससे उसके चुच्चियां हिल रही थी। उसके गहरे भूरे रंग के चूचक बिल्कुल तने हुए थे। इस अवस्था में उसकी आंखें बंद थी। उसके हाथ उठाने की वजह से उसकी बगलें/ काँखें भी साफ झलक रही थी। काँखों का रंग उसके शरीर के गोरे रंग की अपेक्षा सांवली थी, और हल्के बाल उसे और भी आकर्षक लग रहे थे। राजू की भूखी नजरें गुड्डी के मदमस्त जिस्म का मुआयना कर रही थी। अपनी बड़ी बहन को पूरी नंगी देखने का ये उसका पहला अवसर था। तभी गुड्डी ने सर पर पानी डाला और शैम्पू के झाग उतरने लगे। शैम्पू के झाग उसके बदन से बहकर चुच्चियों की घाटियों से होकर, चूचकों/ निप्पल को चूमकर बह रहे थे। उसके काले लंबे बाल पानी की वजह से, उसके चेहरे और पीठ से चिपक गए थे। वो अपनी आंखें बंद किये हुए ही, पानी डाल रही थी। जब उसका सारा झाग निकल गया, तो उसने बालों को इकठ्ठा करके पीछे ले ली, और उसका चेहरा खुलकर सामने आया। उफ़्फ़ भगवान ने बड़ी ही सुंदर शक्ल दी थी उसको। मदमस्त कजरारे नैन, खिंची हुई नाक, कोमल चिकने सुंदरगाल, गुलाब की पंखुड़ियों से नाज़ुक प्यारे होंठ, लंबी सी गर्दन। शायद भगवान ने गुड्डी के रूप में स्वर्ग की कोई अप्सरा ही भेज दी थी। अभी राजू ये सब देख ही रहा था, की तभी वो उठकर खड़ी हो गयी।
राजू का मुंह खुला का खुला रह गया, और आँखे बड़ी हो गयी। गुड्डी अपने गीले बाल बांधने लगी थी। वो बाल्टी से पानी निकालकर अपने नंगे बदन पर पानी डालने लगी। एक भाई को शायद अपनी सगी बहन को इस निजी क्षण में नहीं देखना चाहिए, ये किसी भी समाज में व्यभिचार ही कहा जाता है। पर एक नंगी खूबसूरत लड़की को 18 साल की कच्ची उम्र का लड़का देखेगा तो इसमें किसे दोष दिया जाए। बिल्कुल नंगी होने से उसके सुंदर बदन की नुमाइश का लुत्फ कोई और नहीं बल्कि उसका सगा भाई ही उठा रहा था। खड़ी होकर जब उसके बदन से पानी गिर रहा था, तो वो मोतियों की तरह उसके निप्पल पर लटक रहे थे। वो अपने बदन को साफ करने के लिये हाथों से रगड़ रही थी। फिर वो नीचे झुकी ताकि अपनी जाँघे और पैरों को साफ कर सके। ऐसा करने से उसकी गाँड़ सीधा राजू के सामने आ गयी। उसके बड़े बड़े गोरे चूतड़ भीग कर, माहौल को और गर्म बना रहे थे। वो फिर अपने चूतड़ों को हाथों से रागड़के साफ कर रही थी। उसने गाँड़ की दरार में भी हाथ ले जाकर, उसे खूब साफ किया। वो अपने गाँड़ के छेद को उंगलियों से मलकर साफ की। राजू ये सब देखकर अपने लण्ड को मसल रहा था। जैसे कि इतना काफी नहीं था, वो अब अपनी जांघों के बीच की सबसे कीमती चीज़ अपनी बुर पर पानी डालने लगी। बुर पर काले, घुंघराले बाल उसको सजा रहे थे। उसने अपनी बुर को उंगलीयों से खोला, जिससे बुर की पत्तियां अलग हो गयी और गुलाबी बुर खुलकर सामने आ गयी। वो उसमें पानी डाली और उंगली से रगड़के साफ करने लगी। गुड्डी इस सबसे बेफिक्र थी, की जिसके कलाई पर वो रक्षाबंधन के दिन राखी बांधती है अपनी इज्जत की रक्षा के लिए, वो बाहर उसकी इज्जत को आंखों से लूट रहा था। उसने आज जीभर कर अपनी गुड्डी दीदी के नंगे जिस्म को निहारा, पर वो कभी काफी नहीं होने वाला था। गुड्डी अंदर नहा चुकी थी, और गमछे से अपने बदन को पोंछ रही थी। फिर उसने अपनी साफ गुलाबी पैंटी पहनी और स्कूल की यूनिफार्म की स्कर्ट पहनी। ऊपर टेप पहनी और शर्ट डाली। बालों में तौलिया लपेटा और अपनी गंदी कच्छी और टेप को पानी से खंगालने लगी। राजू समझ गया कि, अब गुड्डी निकलने वाली है, तो उसने बाल्टी उठायी और खटाल की ओर चल दिया। उधर गुड्डी बालों में तौलिया लपेटे हाथों में बाल्टी जिसमे धुले कपडे थे, लेकर घर की ओर चल दी। राजू उसके निकलने से पहले भैंस के थनों में पानी मार रहा था। जैसे ही वो निकली, राजू उसको अंदर जाते हुए देख रहा था। राजू ने जल्दी ही दूध निकालना शुरू कर दिया। तभी गुड्डी छत पर आ गयी और रस्सी पर कपड़े डालने लगी। राजू और गुड्डी की नज़र टकरा गई। गुड्डी मुस्काई और बोली," राजू जल्दी जल्दी कर, अभी तू पहिले भैंस के दुहत बाड़े, दोसर भैंस के कब दुहबे।" ये बोलते हुए उसके हाथों से उसकी कच्छी नीचे गिर गयी। ये राजू ने भी देख लिया। गुड्डी पहले तो शरमाई की कैसे अपने भाई से कच्छी उठाने को बोले। राजू ये मौका चूकना नहीं चाहता था। वो उठकर सामने गया और अपनी बहन की कच्छी उठायी। उसने देखा जहां से वो बुर और गाँड़ के बीच लगती है, वहां से रंग हल्का हो चला था, और थोड़ी सी फट चुकी थी। वो गुड्डी के सामने ही उसे गौर से देख रहा था। गुड्डी को शर्म आ रही थी। वो चुपचाप उसे चड्डी को निहारते देख रही थी। राजू ने उसकी ओर देखते हुए, उसकी चड्डी के उस हिस्से में उंगली डाल दी, पर ऐसे जैसे कि लगे वो छेद को चेक कर रहा है। गुड्डी को अब और शर्म आने लगी, उसने राजू को इशारे से चड्डी ऊपर फेंकने को बोला। राजू ने अनजान बनते हुए हथेली हिलाकर ना समझने का इशारा किया। आंगन में उसकी माँ बीना चूल्हा जला रही थी, तो वो ज़ोर से बोल भी नहीं सकती थी। उसने छत के किनारे आकर बोला," राजू हमार हईं उ देदआ। फेंक जल्दी से।" राजू ने कान के पास हथेली लाकर ना सुनने का इशारा किया। गुड्डी थोड़ा जोर से बोली," जल्दी से उपर फेंक उ हमार हईं।"
राजू ने, फिर उसकी गीली कच्छी को बॉल बनाकर ऊपर फेंक दिया। और पलटकर चल दिया। गुड्डी अपनी कच्छी लेकर जल्दी से रस्सी पर डालकर नीचे चली गयी। राजू अपने हाथ को देखकर सोचने लगा, की अपनी बहन के सामने ही उसकी चड्डी के छेद को देख रहा था। जाने उसमें इतनी हिम्मत कहाँ से आई। वो खुद अचंभित था। उधर गुड्डी भी उसकी नियत जैसे भांप गयी थी। क्योंकि जब राजू उसकी चड्डी देख रहा था, तो उसकी आँखों में ठरक देख सकती थी। फिर भी उसे ये बिल्कुल भी भरोसा नहीं हो रहा था। उसका दिल ये मानने को तैयार ही नहीं थी, की उसकी चड्डी से उसका छोटा भाई उत्तेजित हो गया था।

राजू जैसे ही दूध निकालके घर आया, तो उसने देखा उसकी बहन मंदिर जाने के लिए फूल और तांबे के लोटे में जल ले रही थी। गुड्डी ने अपनी माँ को बोला," माईं हम मंदिर जा तानि। फेन स्कूल भी जाय के बा।उसकी माँ बोली," ठीक बा।" गुड्डी की सहेली बिजुरी भी आ गयी थी। घुसते ही बिजुरी," गुड्डी, जल्दी कर ना, तहार पूजा पाठ के चक्कड़ में देर हो जाई, स्कूल जाय खातिर।"
गुड्डी,"तू एहवे रुक, हम तुरंत आवा तानि।"
बिजुरी," रुक हमहुँ आवा तानि तोहरा साथे।" और वो भी उसके साथ चल दी। राजू के मन में अब ठरक का बीज अंकुरित होने लगा था। उसने अपनी बहन को जाते हुए देखा, तो उसकी हिलते चूतड़ों पर ही नज़र टिक गई, तब तक देखता रहा जब तक नज़रों से ओझल ना हो गयी। उसने मौके का फायदा उठाया और माँ के नज़रों से चुराके अंदर कमरे में घुस गया जहां गुड्डी के कपड़े पड़े रहते थे। उसने जल्दी जल्दी में उसकी एक मुड़ी हुई पहनी चड्डी उठायी और उसे लेकर अपने बैग में डाल दिया। राजू स्कूल जाता नहीं था, क्योंकि स्कूल में तो पढ़ाई होती नही थी। वो रोज़ 8:30 बजे की ट्रेन पकड़कर पटना जाता था कोचिंग करने। वो अरुण के साथ जाता था। बाइक वो डेली ले जा नहीं सकता था, क्योंकि उसमें पेट्रोल का खर्चा होता था। देखते देखते आठ बज गए, तो राजू तैयार होकर नाश्ता करके जाने लगा। थोड़ी ही देर में वो गांव के बाहर स्टेशन पर था, जहां अरुण उसका इंतज़ार कर रहा था। दोनों ने मुस्कान दी। जल्द ही ट्रेन भी आ गई। दोनों ट्रैन पर चढ़कर सीट पकड़ ली।
दोनों बातों में लग गए।

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