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Incest मा का दीवाना बेटा। (Completed)

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शहनाज़ : ये एक 36 साल की औरत हैं और हीरो की मा हैं, सारी कहानी इसी औरत पर आधारित हैं।



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शादाब:" एक 18 साल की उम्र का लड़का, शहनाज़ का इकलौता बेटा और जीने का सहारा।





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Rahul

Kingkong
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congratulations for new story
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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:congrats: dear

नयी कहानी शुरू करने पर शुभकामनाएँ
 

jonny khan

Nawab hai hum .... Mumbaikar
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:congrats:for new story ...
 

Indian ansari

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nice story yaarr _____ nxt plzzz _____
 

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आज सुबह से शहनाज़ बहुत खुश थी क्योंकि इकलौता बेटा शादाब दस साल के बाद घर वापिस लौट रहा था। इन सालों के दौरान दोनो के बीच बहुत कम बात हुई क्योंकि बेटा हॉस्टल में रहता था।

दरअसल शहनाज़ के पति की मौत गांव में डॉक्टर ना होने की वजह से हो गई थी इसलिए वी बुरी तरह से टूट गई थी और उसने उसी दिन फैसला किया था कि वो अपने बेटे को हर हाल में एक डॉक्टर बनाएगी ताकि फिर गांव में किसी की मौत डॉक्टर ना होने की कमी के चलते ना हो सके। उसने अपने बेटे से कसम ली थी कि जब तक वो एमबीबीएस का एग्जाम पास नहीं करेगा वो उसकी शक्ल तक नहीं देखेगी।
कल ही सीपीएमटी का रिजल्ट आया था जिसमें उसके बेटे ने टॉप किया था और बस अब कुछ साल में अंदर ही उसका डाक्टर बन जाना तय था।

शाहनवाज जानती थी कि उसने अपने मासूम से बेटे पर बहुत ज़ुल्म किए हैं लेकिन वो गांव की भलाई के चलते मजबुर थी और ये उसके बाप की भी इच्छा थी कि उसका बेटा एक डॉक्टर बने। शाहनवाज की शादी रहमान से मात्रा 17 साल की उम्र में हो गई है और अगले ही साल उसने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया था। लेकिन उनकी ये खुशी ज्यादा दिन तक नहीं चल पाई और एक एक्सिडेंट में उसके पति की मौत हो गई थी, गांव से शहर तक ले जाते उसने दम तोड़ दिया था। काश उस वक़्त गांव में अस्पताल होता तो आज उसका मियां जिस्म होता।

शहनाज़ के शौहर एक शाही राजघरानों से थे। राज पाट तो चले गए लेकिन उनकी शानो शौकत अभी तक जिंदा थी। घर में पीछे छुट गई थे उसके सास ससुर जी की अब पूरी तरह से कमजोर होकर बेड का सहारा ले चुके थे। बस उनकी सेवा में लगी रहती थी, घर वालो और रिश्तेदारों ने दूसरी शादी का बहुत दबाव दिया लेकिन उसने अपने बेटे के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया और शादी ना करने का फैसला किया था। बेचारी नाज बचपन से लेकर अब तक दुख ही झेलती अाई थी, छोटी सी उम्र में ही मा का इंतकाल हो गया था, बाप ने दूसरी शादी कर ली और सौतेली मा ने नाज को बहुत परेशान किया जिस कारण वो सिर्फ 12 तक ही पढ़ सकी थी।


एक दिन रहमान के बाप की नजर उस पर पड़ी तो उन्हें लगा कि उन्हें अपने बेटे के लिए जिस परी की तलाश थी वो उन्हें मिल गई हैं बस फिर उसकी शादी हो गई।



पूरे घर को सजाया गया था और एक बहुत ही बड़ी पार्टी का आयोजन किया गया था क्योंकि आज शादाब ने एमबीवीएस का एग्जाम पास कर लिया था इसलिए पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ गई थी।

शहनाज़ सुबह जल्दी उठी और नहाने के लिए बाथरूम में घुस गई। उसने अपना बुर्का बाहर ही उतार दिया था और अब सिर्फ सूट सलवार पहने हुए थी। शाहनवाज एक गोरे बदन की भरी हुई औरत थी, दूध में चुटकी भर सिंदूर मिला दो तो ऐसा गजब का रंग था, एक दम चांद सा खुबसुरत चेहरा, गहरे काले घने बाल मानो ऐसे लहराते थे कि सावन की घटाए भी पनाह मांगती थी।उसके भरे हुए सुंदर गाल मानो कोई खूबसूरत सेब, गालों की लाली देखते ही बनती थी, उसकी बड़ी बड़ी प्यारी खूबसूरत बोलती हुई आंखे, छोटी सी प्यारी सी नाक जो उसकी सुन्दरता में चार चांद लगा देती थी। उसके होंठ बिल्कुल शबनम की बूंद की तरह से नाजुक, हल्का सा लाल रंग लिए हुए मानो कुदरत ने खुद ही उसके होंठो को सजाकर भेजा हो,एक दम पतले पतले होंठ मानो किसी गुलाब की आपस में जुड़ी हुई लाल सुर्ख फूल की दो पंखुड़ियां।

बस उसका ये कातिल चेहरा ही आज तक सभी ने देखा था क्योंकि वो अपने आपको पुरी तरह से ढक कर रखती थी। वो एक मर्यादा में रहने वाली औरत थी और उसने अपनी मर्यादा को कभी लांघने की कोशिश नहीं करी थी क्योंकि उसके संस्कार हमेशा आड़े अा जाते थे। वो इतनी शर्मीली थी कि आज तक किसी के आगे पूरी तरह से नंगी नहीं हुई थी यहां तक की सुहागरात को भी उसने अपने पति को पूरे कपड़े निकालने से साफ इंकार कर दिया था क्योंकि उससे ये सब नहीं हो सकता था। नहाते हुए भी हमेशा अपनी आंखे बंद करके ही नहाती थी क्योंकि उसमे इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि वो अपने आपको खुद ही नंगा देख सके। आंखो की हया और खुदा का डर उसके उपर हमेशा हावी रहा।


उसने अपने कपड़े धीरे से एक एक करके बंद आंखो के साथ निकाले और जल्दी ही नहा धोकर तैयार हो गई। ब्रा पेंटी पहन लेने के बाद उसने एक काले रंग का सूट सलवार पहना और फिर बुर्का पहनकर एयरपोर्ट जाने के लिए तैयार हो गई।




ड्राइवर ने गाड़ी निकाली और जल्दी ही वो एयरपोर्ट पर खड़ी हुई थी। वो बाहर निकलते लोगो पर नजर गड़ाए हुए थी उसकी बेचैनी इस कदर बढ़ गई थी कि उसे आने वाले हर लड़के में अपना बेटा नजर अा रहा था। अपने लख्ते जिगर को वो कैसे पहचानेगी ये सोच सोच कर वो परेशान थी। एयरपोर्ट पर जाने वाले एक मात्र रास्ते पर उसका ड्राइवर उसके बेटे के नाम की तख्ती लिए खड़ा हुआ था।


खुले कपडे पहने के बाद ही उसके जिस्म का हर उभार साफ नजर आता था। कपड़ों के ऊपर से ही उसकी भरी हुई भारी भरकम गांड़, एक दम उभरी हुई, बिल्कुल बाहर की तरफ निकली हुई ऐसे लगती थी मानो जबरदस्ती अंदर कैद की गई हो। उसकी गांड़ की मस्त गोलाई देख कर लोगो के लंड सलामी देने लगते थे और आज भी कुछ ऐसा ही हुआ। उससे थोड़ी दूर खड़े हुए दो मनचले बहक गए और उनमें से एक बोला:'

" ओए उधर देख, क्या माल है यार, उफ्फ ऐसी तगड़ी उभरी हुई गांड़ आज तक किसी की नहीं देखी, लंड खड़ा हो गया।

दूसरा:" हान भाई, क़यामत हैं क़यामत, काश इसकी नंगी गांड़ देख पाता,मसल मसल कर लाल कर देता मैं, साली ने लंड को तड़पा दिया।

शहनाज़ उनके बाते सुनकर हैरान हो गई, इतनी थोड़ी सी उम्र में ये लड़के बिगड़ गए हैं, क्या जमाना अा गया है। लेकिन लडको की बाते सुनकर वो अंदर ही अंदर मुस्कुरा उठी अपनी तारीफ सुनकर और उसके जिस्म में हलचल सी हुई।


पहला लड़का:" उसकी गांड़ का एक उभार तेरे दोनो हाथो में भी नहीं आएगा, तुझसे नहीं हो पाएगा, इसके लिए तो कोई सांड जैसा तगड़ा लड़का चाहिए।

तभी शादाब दूर से आता हुआ दिखाई दिया तो लड़को की नजर उस पर पड़ गई, छह फीट लंबा चौड़ा खूबसूरत जवान, एक दम अपनी मां की तरफ गोरा, चौड़ी छाती, आंखो पर काला चश्मा,।

उसे देखते ही पहले वाला मनचला बोल उठा:" वो देख यार, क्या खूबसूरत लड़का हैं, बिल्कुल सांड के जैसा मोटा तगड़ा, मेरे हिसाब से इस औरत के लिए ये सही है, हाथ देख उसके कितने बड़े और मजबूत लग रहे हैं। इसकी गांड़ तो वो ही ठीक से मसल सकता हैं।


मनचले की बात सुनकर शहनाज़ की नजर अपने आप उस शादाब की तरफ उठ गई। सच में खूबसूरत था वो, दूर से आता हुआ बिल्कुल कामदेव के जैसा लग रहा था, एक बार तो उसे देखकर सच में शहनाज़ का दिल धड़क उठा और नजरे गड़ाए उसे ध्यान से देखती रही। जैसे जैसे वो पास आता जा रहा था शहनाज़ की आंखे मस्ती से चोड़ी होती जा रही थी और पूरे जिस्म में कंपकपी सी दौड़ रही थी।

जैसे ही वो उसके सामने आया तो दोनो की आंखे टकराई और दोनो एक साथ मुस्कुरा दिए तो शादाब आगे बढ़ा और बोला:"

" अम्मी मैं शादाब, आपका बेटा,

शहनाज़ तो जैसे ख्वाबों से बाहर अाई और उसे पहचान लिया और एक दम से अपनी बांहे फैला दी तो बेटा अपनी मा की बांहों में समा गया। दोनो एक दुसरे की धड़कन सुनते रहे और बेटा पूरी तरह से अपनी मा को कसकर अपनी बांहों में भर लिया था और मा भी प्यार से अपने बेटे की कमर थपथपा रही थी।

थोड़ी देर बाद शहनाज़ ने उसे पुकारा:" बेटा बस छोड़ अब मुझे, घर चले, तेरे दादा दादी तेरा इंतजार कर रहे होंगे।

शादाब जैसे भावनाओ के आवेश से बाहर आया और अपनी मा की तरफ देखते हुए कहा:"

" हान अम्मी चलो, घर

बाहर आकर दोनो गाड़ी में बैठ गए और गाड़ी घर की तरफ चल पड़ी। शहनाज़ को अपना बेटा बहुत प्यारा लगा और वो बार बार उसे ही देखे जा रही थी। उसे रह रह कर उन मनचलों की बाते याद अा रही थी कि इसकी गांड़ को थामने के लिए तो इस लड़के जैसे मोटे और तगड़े हाथ चाहिए। ये बात मन में आते ही ना चाहते हुए भी शहनाज़ की नजर अपने बेटे के हाथो पर पड़ी। सच में उसके बेटे के हाथ बहुत तगड़े और मोटे ताजे थे। शहनाज़ का पूरा वजूद कांप उठा और उसकी सांसे अपने आप तेज गति से चलने लगी और माथे पर हल्का सा पसीना उभर आया। उफ्फ मैं ये क्या सोचने लगी, शहनाज़ को एक तेज झटका सा लगा और वो अपनी कल्पना से बाहर अाई और आगे की तरफ देखते हुए चुप चाप बैठ गई। ना चाहते हुए भी बीच बीच में रह रह कर उसकी नजर अपने बेटे के हाथो पर पड़ रही थी। खैर कुछ देर के बाद वो घर पहुंच गए।
शहनाज़ गाड़ी से उतरी और घर के अंदर की तरफ चल पड़ी। शादाब भी उसके साथ ही था। दोनो जैसे ही दरवाजे के अंदर दाखिल हुए तो शादाब के उपर छत पर से फूलो की बरसात होने लगी और लोगो ने माला पहना कर उसका स्वागत किया। गांव की औरतें और जवान लड़कियां उसे देख कर आंहे भर रही थी। इस सम्मान के बाद शादाब अपनी मा के साथ घर में चला गया और दोनो मा बेटे दादा दादी के कमरे की तरफ बढ़ गए। शादाब पीछे पीछे चल रहा था और शहनाज़ की गांड़ इतनी ज्यादा उछल रही थी कि ना चाहते हुए भी उसकी नजर अपनी मां की गांड़ पर जमी हुई थी। कर कदम पर शहनाज़ की गांड़ उपर नीचे हो रही थी और बुर्के में से साफ़ नजर आ रही थी। शादाब को अच्छा नहीं लगा रहा था अपनी सगी मा की गांड़ के इस तरह देखना इसलिए वो तेजी से चलता हुआ अपनी मा से आगे निकल गया। शहनाज़ के होंठो पर मुस्कान आ गई और बोली:"

" क्या बात हैं बेटा, बहुत जल्दी ही अपने दादा दादी से मिलने की तुझे जो इतनी तेजी से चल रहा है !!

शादाब ने मुड़कर अपनी मा की तरफ देखा तो उसकी नजर फिर से अपनी मा के खूबसूरत चेहरे पर पड़ी और वो मुस्कुरा दिया। शहनाज़ जैसे जैसे उसके पास आती जा रही थी शादाब की नजर एक पल के लिए ही सही लेकिन उसकी तनी चूचियों पर पड़ गई जो कि पूरी तरह से कपड़ों के ऊपर से ही उभरी हुई नजर आ रही थी।

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शादाब की आंखे फिर से खुली की खुली रह गई। उफ्फ वो तो इसलिए आगे निकला था कि अपनी मा की गांड़ देखने से बच जाए लेकिन चूचियों का नजारा तो गांड़ से भी ज्यादा मादक था। शादाब जैसे अपने होश ही खो बैठा और एकटक अपनी मा की तरफ देखता रहा। शहनाज़ चलती हुई उसके पास पहुंची और उसकी आंखो के आगे चुटकी बजाई तो शादाब जैसे नींद से जागा ।

शहनाज़:" क्या हुआ बेटा कहां खो गए थे? तबियत तो ठीक हैं तुम्हारी ?

शादाब हकलाते हुए:" हान अम्मी, ठीक हैं सब, बस आपको देख रहा था कि मेरी अम्मी कितनी खूबसूरत है, बहुत दिनों के बाद देखा आपको ।

शहनाज़:" हान बेटा मैं भी तरस गई थी तुझे देखने के लिए, चल पहले तेरे दादा दादी से मिल लेते है, वो बेचारे नहीं तेरी एक झलक के लिए बेचैन हैं, हम तो बाद में भी बात कर लेंगे आराम से उपर जाकर !!


दोनो मा बेटे एक साथ आगे बढ़ गए और दादा दादी के कमरे में पहुंचे तो दोनो के चेहरे आपके इकलौते पोते को देख कर खुशी से खिल उठे। शादाब ने उन्हें सलाम किया तो उसकी दादा दादी ने उसे अपनी बांहों में भर लिया। शादाब भी अपनी दादी मा से लिपट गया।

दादी पूरी तरह से भावुक हो गई थी इसलिए भर्राए गले के साथ बोली:"

" आंखे तरस गई थी तुझे देखने के लिए मेरे बच्चे, अब जाकर सुकून मिला हैं। कितना बड़ा हो गया है तू, अल्लाह तुझे सलामत रखे बेटा।

दादा:" बेटा अगर दादी से मन भर गया तो अपने दादा के भी गले लग जा एक बार ताकि मुझ बूढ़े को भी थोड़ा सुकून मिल सके।

शादाब पागलों की तरह अपने दादा से लिपट गया तो ये देख कर दादी और शहनाज़ दोनो की आंखे छलक उठी। थोड़ी देर के बाद शादाब अलग हुआ और उन्हें अपने हॉस्टल की बात बताने लगा। सभी ध्यान से उसकी बात सुन रहे थे और शादाब बीच बीच में मजाक भी कर रहा था जिससे अब माहौल थोड़ा बदल चुका था। उसकी बाते सुनकर शहनाज़ बार बार मुस्कुरा रही थी जिससे उसका चेहरा और भी खूबसूरत लग रहा था।

शहनाज़ अपने ससुर से पर्दा नहीं करती थीं क्योंकि उसके ससुर ने उसे मना कर दिया था और उसे अपनी सगी बेटी की तरह प्यार करता था। शहनाज़ भी जानती थी कि सास ससुर का उसके सिवा इस दुनिया में कोई नहीं है इसलिए उसने भी अपने ससुर की बात मान ली थी और अपने ससुर से पर्दा खोल दिया था।

खैर दादा दादी खाना खा चुके थे। धीरे धीरे बाहर अंधेरा होने लगा और दादा दादी ने शादाब को बोला:

" बेटा उपर जाकर खाना खाकर तू भी आराम कर ले, थक गया होगा सारे दिन के सफर से। जा बेटा सुबह बात करेंगे क्योंकि तेरी अम्मी शहनाज़ भी सुबह से भूखी हैं तेरे लिए।

शादाब ने अपने दादा की बात सुनकर प्यार से अपनी अम्मी की देखा तो शहनाज़ ने उसे एक प्यारी सी स्माइल दी और दोनो मा बेटे एक साथ उपर की तरफ चल पड़े। घर थोड़े दिन पहले ही फिर से बनाया गया था इसलिए आगे आगे शहनाज़ चल रही थी और सीढ़ियों पर चढने की वज़ह से उसकी गांड़ उछल उछल पड़ रही थी और शादाब फिर से अपनी मा की गांड़ को थिरकते हुए देखने से खुद को नहीं रोक पाया और उसके लंड में हलचल सी होने लगी।

खैर जल्दी ही वो उपर पहुंच गए और शादाब नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया।
 
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