अगले दिन भी में अपनी लास्ट सीट पर जाकर बैठ गया। अभी एडमिशन की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई तो रोज नए नए लोगो की संख्या बढ़ रही थी। में अपने नोटबुक से कल का पढ़ाया हुआ पढ़ने लगा। तभी मेरे पास एक लड़का आया और मेरी बगल वाली सीट पर बैठ गया। वो काफी मेरी तरह लग था एकदम शांत और डरा डरा। में समझ गया कि आज उसका पहला दिन है। मैने मम्मी की बात मानकर उसे हेलो कहा उसने भी आगे हाथ बढ़ाकर मुझे हेलो कहा। उसने अपने नाम सूरज बताया। वो भी पढ़ाई में अच्छा था 12 में मेरी तरह ही 90+ मार्क्स प्राप्त किए थे। जल्दी ही हमारी दोस्ती काफी अच्छी हो गई। मैने घर आकर मम्मी को ये बात बताई तो वो भी काफी खुश हो गई।
ऐसे ही कुछ दिन बीत गए। सूरज भी मेरी तरह घर से कॉलेज आता जाता था। एक दिन क्लास में सूरज ने आज पास कोई रूम लेने के बारे में मुझसे सुझाव मांगा। उसे रोज घर से कॉलेज आने जाने के कारण पढ़ने के लिए समय नहीं मिल पाता था। इसीलिए आज पास किसी किराए पर कमरे की तलाश करने लगा। कुछ कमरे का किराया काफी महंगा था तो कहीं पर बिजली पानी की अच्छी व्यस्था नही थी। अच्छे फ्लैट का किराया दस हजार होता था जिसे वह अकेले देने में असमर्थ था। इसीलिए उसने मुझसे कमरे में साझेदार बनने के लिए बोला। मेरे अलावा उसका कोई और दोस्त नहीं था और में भी उसकी तरह घर से कॉलेज का सफर रोज करना पड़ता था। मुझे उसका सुझाव अच्छा लगा क्योंकि मुझे भी रोज सफर के कारण थकान हो जाती थी। दूसरा फायदा यह था की वह पढ़ने में मेरी तरह ही था तो साथ रहकर हमे एक दूसरे की सहायता कर सकते थे। ये सब सोचकर मैंने उसे साझेदार बनने के लिए हां कर दिया।
कॉलेज के बाद मैं और सूरज रूम देखने के लिए चले गए। फ्लैट काफी बड़ा था जिसमे दो कमरे , एक रसोई , हाल था। मुझे भी वो फ्लैट पसंद आया मैंने घर आकर मम्मी को इसके बारे में बताया। मम्मी को भी मेरी पढ़ाई का लाभ दिखते हुए मुझे अपनी सहमति दे दी। एक सप्ताह में हम दोनो फ्लैट में अपना सभी समान लेकर रहना शुरू कर दिया।
हम दोनो ने कमरे में अलग अलग रहने की बजाय एक कमरे अपना बेड लगा लिया, इससे हम दोनो को साथ पढ़ने में कोई परेशानी नहीं होती थी हम दोनो एक दूसरे की मदद करते थे। हम साथ पढ़ते और साथ रहकर फिल्म भी देखते थे। उसके साथ रहते हुए मैने एक बात पर गौर किया की सूरज कभी कभी शांत और मायूस हो जाता था। मेरे पूछने पर भी वो कभी इसके बारे में नहीं बताता था बस चेहरे पर एक झूठी मुस्कान लाकर बात किसी और विषय पर मोड़ देता था। मुझे भी लगा शायद उसे घर की याद आती होगी क्योंकि वह भी मेरी तरह पहली बार घर से दूर रह रहा है। मैने भी उससे ज्यादा पूछना ठीक नही समझा। ऐसे ही दिन बीतते गए। एक दिन हम दोनो अपनी पढ़ाई खत्म कर बेड पर आराम कर रहे थे तभी उसने मुझसे मेरे परिवार के बारे में पूछा कि घर में कौन कौन है। मैने अपने परिवार मैं पापा मम्मी के बारे में सब कुछ उसे बताया। मैने भी उसके परिवार के बारे में जानना चाहा, पर वो कुछ नही बोला। उसकी आंखो में थोड़े आंसू थे। मैने उसके कंधे पर हाथ रख एक दोस्त के नाते उसे बताने के लिए कहा। तब उसने मुझे बताया कि पिछले साल उसकी मां का इस दुनिया से चली गई। तब से वह काफी अकेला महसूस करता है। अब मुझे भी समझ आया की वो क्यों कभी कभी इतना मायूस और दुखी हो जाता था। उसकी एक बड़ी बहन भी थी जो अब उसके लिए सब कुछ थी। उसी से बात कर सूरज अपना मन का बोझ हल्का करता था। मुझे भी ये सब सुन काफी बुरा लगा। क्योंकि में भी सूरज की तरह अपनी मम्मी को प्यार करता था , उनके सिवा दुनिया में मेरा कोई करीबी नही था। एक दूसरे से इस तरह बाते शेयर कर हम बहुत अच्छे मित्र बन गए।