Update:-16
तभी सायलेंसर में दबी गोली चलने की आवाज और आरव हंसता हुआ… "जब जान पर बन आती है तो ऐसे ही कहानियां बनने लगते है। जब उनसब का नंबर भी अा ही रहा है, तो मुझे क्यों इस बात की फ़िक्र की उन्हे शक हुआ या नहीं हुआ। उन्हें पता चला या नहीं चला.. ट्रिगर दबाव खेल खल्लास, अब अगले का नंबर आने दो"
"अबे !!! पूरा कान सुन कर दिया। तू चाहता क्या है"… थोड़ा डर और गुस्से के बीच, निकली उस शूटर की आवाज़।
आरव:- आज मेरा मूड बहुत अच्छा है इसलिए तुझे मारने से पहले सोचा तुझ से कुछ बाते कर लूं। वैसे नाम क्या है तुम्हारा और शूटिंग में कौन से झंडे गाड़े है वो बता।
शूटर:- मेरा नाम वीरभद्र सिंह है, उदयपुर से हूं। मैंने शूटिंग में प्रशिक्षण लिया है और ये मेरा पहला काम था। लेकिन मैं अभी ये सोच कर परेशान हूं की तू वहां भी है और यहां भी, ये कैसे संभव हुआ।
आरव अपना पिस्तौल पीछे कमर में खोंसकर उसेके सिर पर एक हाथ मारते बोला… "अभी मैं बात करना चाह रहा हूं ना, तो मेरे बातों का बस जवाब दे। गोली मार दी हुई होती, तो साले सस्पेंस में ही मर जाता"
मौका अच्छा था, वीरभद्र ने जैसे ही देखा पिस्तौल उसने पीछे रख लिया, फुर्ती दिखाते उसने अपनी पिस्तौल निकाल ली और सर पर तानने की नाकाम कोशिश। जैसे ही वो अपना हाथ घुमाकर आगे के ओर लाया, आरव ट्रिगर में फंसे उंगली को हल्का ऊपर की ओर मोड़ दिया, दूसरे हाथ से एक धारदार खंजर उसके गले पर रखकर…
"अभी मैं अपना हाथ का दवाब थोड़ा और बढ़ा दूं, तो एक तरफ तेरी ट्रिगर दबाने वाली उंगली ऐसे टूट जाएगी की फिर तू नकारा हो जाएगा। और कहीं ये वाले हाथ का दवाब बढ़ा दिया तो तेरे आगे स्वर्गवासी का टाइटल लग जाएगा। जल्दी बता कौन सा ऑप्शन तुझे पसंद आया"
वीरभद्र:- इनमें से कोई नहीं। बात करते हैं ना।
आरव उसके हाथ से पिस्तौल लेकर इतने तेजी के साथ पिस्तौल के एक-एक पुर्जे को अलग किया कि वीरभद्र अपनी आंखें चौड़ी कर बस देखता ही रह गया। उसने अपने दोनो हाथ जोड़ कर उसे नमन करते हुए पूछा… "देखने में लड़के जितने और अंदर ऐसी क्षमता। आज से आप मेरे गुरु और मैं आप का चेला, प्रभु।
आरव:- अब जाकर तूने कुछ ऐसा कहा जो मेरे कानो को पसंद आया है। अब जरा जल्दी-जल्दी में बक की तुझे यहां किसने भेजा और तुझे कौन सा काम सौंपा गया था?
वीरभद्र:- मुझे और मेरे साथ एक और शूटर, जिसे मैं जानता नहीं, उसे विधायक भूषण जी ने भेजा है। मेरा काम बस आप के कमरे में नजर बनाए रखना था और पल-पल की खबर विधायक जी को देनी थी।
आरव:- पल-पल की खबर.. अबे ये बता तू पल-पल की खबर के लिए ये फोन लाइन हमेशा चालू रखेगा, तो तेरी फोन कि बैट्री ना डिस्चार्ज होगी। और क्या वो इतना फुर्सत में है कि पूरा दिन तुझे सुनता रहेगा।
वीरभद्र अपना फोन बाहर निकाला और साथ में बैग खोलकर बैट्री चार्ज करने की व्यवस्था दिखाते हुए कहने लगा.. "भाई 5 पॉवरबैंक अपने साथ लाया हूं और उधर विधायक चाचा थोड़े ना कान लगा कर सुन रहे हैं। वहां एक लड़का है जो हमेशा हमे सुनता रहता है। कोई इमरजेंसी वाली बात हो तो वो विधायक चाचा से बता देता है"।
आरव:- वह !! शाबाश !! क्या उम्दा टेक्नोलॉजी है। वैसे ये विधायक, चाचा कब से हो गए रे।
वीरभद्र:- वो मेरे दूर के रिश्तेदार हैं और उन्होंने ही मेरे प्रशिक्षण का पूरा खर्चा उठाया था।
आरव:- मदर*** हरामि.. मतलब तुझे शूटर बनाया उसने और कुछ पढ़ाई लिखाई भी करवाई है या नहीं।
वीरभद्र:- अरे पढ़ाई लिखाई करके क्या करेंगे गुरुदेव। अंत में तो पैसे ही कमाने है, और देखो, इस काम के लिए उन्होंने मुझे 1 लाख रुपए भी दिए है।
आरव:- हम पंछी एक ही वृक्ष के है बस डाल अलग-अलग। अच्छा सुन तुझे कभी ये नहीं लगा कि तू अपने ज़िन्दगी में कुछ अच्छा भी कर सकता था।
वीरभद्र:- मै इससे भी अच्छा क्या करता?
आरव:- साले पूरा गोबर ही हो। अबे 1 लाख के लिए यहां अा गया और मैंने तुझे गोली मार दी होती तो क्या वो 1 लाख अपने छाती पर लाद कर ले जाता। तुझे इतनी भी समझ नहीं की वो तुझे मारने के लिए यहां भेजा है।
वीरभद्र:- अपने को काम चाहिए बस, इतना नहीं सोचता। आपने धोका दिया वरना मेरे निशाने पर तो पहले आप ही थे। अब बताओ की कौन मरता और कौन मारता।
आरव:- बस बहुत हुआ.. तुझ से बात करूंगा तो मेरा भेजा फ्राई हो जाएगा। ये बता मेरे लिए काम करेगा।
वीरभद्र:- आप मुझे गद्दारी करने के लिए कह रहे है।
आरव:- मैंने गोली चलाई और तू मर गया यानी तेरी पिछली जिंदगी भी उसी के साथ मर गई। अब मैंने तुझे जिंदगी बक्शी तो इस हिसाब से तू किसका वफादार हुआ।
वीरभद्र:- हां ये तो मैंने सोचा ही नहीं। बिल्कुल गुरुदेव अब से मेरी वफादारी आपकी, जबतक की मैं मर ना जाऊं।
आरव:- फ़िक्र मत कर तुझे हम मरने नहीं देंगे। अच्छा ये बता तूने अबतक कोई मज़े किए हैं कि ना किए।
वीरभद्र:- कैसे मज़े..
आरव:- अरे वही छोड़े, लड़कियों के साथ मज़े..
वीरभद्र शर्माते हुए… जी नहीं गुरुदेव अब तक तो मैंने किसी को छुआ तक नहीं
आरव:- पहले तो तू ये गुरुदेव बुलाना बंद कर, मेरा नाम आरव है। और हां आज रात तू तैयार रहना..
वीरभद्र:- किसलिए गुरुदेव.. अरे माफ़ करना. किसलिए आरव.. किसी को मारना है क्या…
आरव:- नहीं रे भोले.. तुझे मज़े के लिए तैयार रहने कह रहा हूं। फिलहाल चल जरा उस दूसरे शूटर से भी हाय-हेल्लो कर आते हैं।
वहां से निकलने से पहले आरव ने वीरभद्र से कॉल लगवाया और बहाने बनवाते हुए कहलवा दिया कि, "बिल्कुल सुदूर इलाका है नेटवर्क आते जाते रहता है, अपने लोकेशन पर हूं और मेरे ठीक सामने टारगेट है"। फिर वहां से निकलकर वो लोग चढ़े उस हल्ट स्टेशन की छत पर।
ये वाला शूटर थोड़ा अनुभवी और ढिट भी था। तकरीबन 22 हत्याएं कर चुका था और जमील का खास पंटर था। आरव ने उसे 10 करोड़ के डील पर सेट किया और 5 करोड़ एडवांस में दे दिए। चूंकि इस शूटर पर यकीन नहीं किया जा सकता था इसलिए आरव ने चुपके से उसके गन में एक छोटा सा जीपीएस यंत्र और साथ में एक माइक्रोफोन चिपकाकर वीरभद्र के साथ वापस लौट आया।
रिजॉर्ट लौटकर वीरभद्र कुछ सोचते हुए आरव से कुछ पूछने कि कोशिश करता है लेकिन आरव उसे चुप रहने का इशारा कर अपने साथ लाए कुछ यंत्र बैग से निकालने लगा। बिल्कुल छोटे और मक्खी के अाकर का माइक्रो डिवाइस जो देखते ही देखते उड़ कर वहां से गायब हो गई और थोड़े देर बाद तकरीबन 50 से ऊपर वैसी ही मक्खियां वापस लौट आई जिसे आरव ने एक छोटे से बॉक्स में पैक करके चार्ज होने के लिए छोड़ दिया।
ये वही डिवाइस थे जो अपस्यु के वीपीएन से कनेक्ट था और पूरे चप्पे चप्पे पर वो इसी से नजर बनाए हुए था। आरव डिस्चार्ज हुए डिवाइस को चार्ज में लगा चुका था और उसकी जगह बैकअप डिवाइस छोड़ चुका था।
आरव:- हां भाई वीरे अब बताइए क्या पूछ रहे थे।
वीरभद्र:- भाई यही सब पूछने कि कोशिश कर रहा था कि आप कर क्या रहे हो।
आरव:- कुछ नहीं बस मक्खियां उड़ाने का शौक है वहीं पूरा कर रहा था। चल अब जरा तफरी कर आया जाए। और हां साथ में वो दूसरा बैग भी लेे लेना।
वीरभद्र:- इसमें क्या है आरव..
आरव:- कुछ और छोटे बड़े कीड़े, इन्हे जरा बाहर इनकी सही जगह छोड़ आऊं।
आरव वीरभद्र के साथ निकाल गया। इधर अपस्यु भी थोड़ा निश्चिंत मेहसूस करते हुए अपने बदन की जांच करके देखने लगा। पसलियां जुड़ना शुरू हो चुकी थी। हाथ की हड्डी भी लगभग जुड़ने को अाई थी। दिक्कत बस पाऊं की हड्डियों में था, शायद पाऊं की हड्डी जुड़ने में अभी कुछ दिन और लगने वाले थे।
लगभग सुबह के 11 बजे होंगे जब सभी न्यूज चैनल के ब्रेकिंग न्यूज में एक ही समाचार अा रहा था… "नागपुर के पूर्व सांसद और केंद्रीय मंत्री त्रिवेणी शंकर का हार्ट अटैक से निधन, पूरे देश में सोक कि लहर"… अपस्यु इस खबर को देख कर मुस्कुराया… "वह रे पैसा तू कुछ भी करवा सकता है".. अपस्यु इस खबर पर मुस्कुरा ही रहा था कि तभी उसके फोन की घंटी बजने लगी… "मुझे उम्मीद ही थी इसकी"
अपस्यु, अपना कॉल उठाते… "जी सर मैंने खबर देख लिया, लेकिन अभी तक वन डाउन ही हुआ है, दूसरे की खबर कब सुना रहे"…
जमील:- दूसरा कोई राह चलता आदमी नहीं है, उदयपुर का सीटिंग एमएलए और राजस्थान का शिक्षा मंत्री है, थोड़ा वक़्त चाहिए होगा इसके लिए।
अपस्यु:- चलो ठीक है दिया वक़्त, लेकिन ये तो बताओ कि उस पूर्व केंद्रीय मंत्री को उड़ाया कैसे।
जमील:- देख छोटे ये धंधे के राज तो मैं अपनी बीवी को नहीं बताता इसलिए इसका जवाब मै नहीं दे सकता। बस तू काम होने से मतलब रख। जो जिस हैसियत का है, उसकी मौत उतने ही सन्नाटे में, बिना किसी शक के होगा।
अपस्यु:- चलो नहीं पूछता मैं धंधे कि बात लेकिन जल्दी से बचा काम कर दो और अपने पैसे लेकर जाओ।
जमील:- देख अब हम पार्टनर हो गए हैं तो एक दूसरे पर भरोसा करते आना चाहिए इसलिए मैं चाहता हूं कि तू वो बाकी के पैसे मुझे देदे।
अपस्यु:- हाम्म, ठीक है कुछ वक़्त दो मै इसपर सोच कर बताता हूं।
अपस्यु उससे बात ख़त्म कर जोर जोर हंसने लगा और फिर पूरी ताकत झोंक दी अपनी आवाज़ में….
व्यापार में फसे या गलत कारोबार में फसे
जहां घिरे वहीं फसे, फसे तो बस फंसते रहे
हर मोड़- मोड़, हर डगर- डगर
भंवर है ये भंवर- भंवर....