Update:-51
USA Trip…
सुबह सुबह न्यूयॉर्क में फ्लाइट लैंड कर चुकी थी, चारों वहां से बाहर निकले और इन्हे रिसीव करने वीरभद्र पहले से एयरपोर्ट पहुंचा हुआ था। जैसे ही वीरभद्र की नजर में आरव आया, वो दौर कर उसके पास पहुंचा और उसके गले लग गया।
"अबे छोड़ दे वीरे, वरना यहां के लोग कुछ और ही समझ लेंगे।"… आरव ने वीरभद्र के कानो में कहकर उससे अलग हुआ। प्रतीक्षालय में चारो बैठ गए, आरव ने सबको वीरभद्र से मिलवाया और उसके बाद वीरभद्र को अलग ले जाकर कहने लगा….
"सुन वीरे, यूं समझ ले आज तुम्हे मै पहला काम दे रहा हूं।"… आरव ने धीमे आवाज़ में कहा।
वीरभद्र:- हुकुम करो .. अभी किसी को सुला दू क्या?
आरव:- गावर कहीं के आराम से बात करो और कितनी बार कहा है पूरी बात समझ कर रिएक्शन दिया करो।
वीरभद्र, अपने भावनाओ पर काबू रखे… "क्षमा करना गुरुदेव भूल गया था। तुम समझाओ पूरी बात।"
आरव:- ध्यान से सुनो, मै यहां से शिकागो निकल रहा हूं। तीनों की जिम्मेदारी तुमपर सौंप कर जा रहा हूं।
वीरभद्र:- ठीक है आरव। मुझे क्या करना होगा।
आरव:- हर जगह इनके पीछे साए कि तरह रहोगे। जहां जाएंगे घूमने साथ जाओगे और सबसे जरूरी बात दोनों मेरी बहने है, विन्नी और कुंजल।
वीरभद्र:- भाई सा, वो छोड़ा बहन को छू रहा है, अभी मुंह तोड़कर आया मैं…
आरव, अपना सर पीटते…. अबे रुक बावले, वो छुई-मुई नहीं है जो छूने से मुरझा जाएगी। यार तू महीने दिन के ऊपर से यहां है, फिर भी गांव तेरे दिमाग से निकला नहीं। हर बात में मार-पिट और खून-खराबा। तू रहने दे तुझसे ना हो पाएगा।
वीरभद्र:- अरे गुस्सा क्यों कर रहे हो। अब कुछ आदत है जाते जाते जाएगी। तुम सारी बात समझाओ मुझे और निश्चिंत हो जाओ।
तकरीबन आधा घंटे के माथा-पच्ची के बाद आरव को लगा कि ये पूरा समझ चुका है। थोड़ी ही देर में आरव की वहीं से कूनेक्टिंग फ्लाइट थी, आरव वहां से शिकागो निकल गया और बाकी सब सन-डिएगो निकले।
सबके कमरे पहले से तैयार थे, आते ही दोनों लड़कियां अपने कमरे में चली गई और वीरभद्र क्रिश को लेकर उसके कमरे में चला आया।…
विन्नी बाथरूम के दरवाजे पर खड़ी होकर…. "कुंजी की बच्ची जल्दी निकलियो घंटो मत लगाना।"
कुंजल:- दरवाजा खुला है, तू भी आ सकती है।
विन्नी:- तेरे साथ अंदर जाने के लिए आयी हूं क्या, वो है ना मेरा क्रिश उसके साथ बाथरूम शेयर करूंगी।
कुंजल:- अरमान काबू में रख बेटा, कहीं तू गरम तवा की तरह भट्टी में ना जलती रह जाए। मेरे एक भाई ने क्रिश को वहां एयरपोर्ट पर वार्निंग दिया था और दूसरे ने तो एक चिपकू तुम दोनों के बीच में छोड़ रखा है।…
विन्नी:- अरे तू उसकी चिंता क्यों कर रही है… उसे तो मै यूं मैनेज कर लूंगी। वो कोई बड़ी बात नहीं है।
कुंजल:- मै भी यहीं हूं, देख लूंगी तेरी होशियारी भी। वैसे एक बात बता, तुम दोनों के बीच कुछ हुआ भी है या मामला ऊपर-ऊपर ही चल रहा है।
विन्नी:- हुंह ! ये हम दोनों की बीच की बात है, कोई ये सब भी शेयर करता है क्या?
कुंजल, बाथरूम से बाहर निकलती हुई….. "ओह हो तो बेबी अपना सिक्रेट रीलेशन मेनटेन कर रही है। मत बता"....
विन्नी, बाथरूम में घुसती…. हीहीहीहीही… ऐसी बातें कोई पूछता हैं क्या? वैसे अब तक कुछ ना हुआ है। अच्छा सुनना, यहां के हिसाब से कुछ कपड़े खरीदने चलें क्या? छोटी सी शॉपिंग।
कुंजल:- आज रात चलते है ना… शॉपिंग के साथ-साथ यहां के डिस्को का भी मजा लेंगे…
विन्नी:- वु हू….. अब तो बस मस्ती ही मस्ती…. अपनी तो पाठशाला, मस्ती की पाठशाला… वू हू…
इधर आरव शिकागो अपने होटल पहुंचकर, ऐमी के "फॉल बैंक" के मैसेज का रिस्पॉन्ड करते हुए वापस संदेश भेजा और आते ही बिस्तर पर चित लेट गया…. थोड़ा सा मायूस होते खुद से ही कहने लगा… "वक़्त, वक़्त की बात है.. शायद अभी वो वक़्त नहीं आया"….
दिल्ली, अपस्यु के घर सुबह 7.30 बजे के करीब….
नंदनी जबतक सरला (श्रेया की मां) के घर जाकर उसके कार के बारे में पता कर रही थी तबतक अपस्यु ड्राइवर को परखने लगा.. 20 लोगों में से उसने 2 को अलग किया… एक का नाम गुफरान था और दूसरे का प्रदीप… बाकी सबको कुछ पैसे देकर वहां से रवाना किया…
थोड़ी ही देर में नंदनी वापस लौट आयी और उसके पीछे-पीछे श्रेया भी थी। अपस्यु ने एक एक नजर देखा और फिर दोबारा नजर उठा कर देखने पर विवश हो गया…. कुछ छन देखने के बाद अपस्यु अपनी नजरे उसपर से हटा कर नंदनी से बात करते हुए कहने लगा… "मां ये 2 ड्राइवर को मैंने सिलेक्ट किया है, आप इनकी सैलरी वगैरह की बात करके रख लो। मैं आज इंजीनियर को बुलवाकर उस पर्टेशन के आगे वाले हिस्से से 2 कमरे उस हॉल में बनवा देता हूं।"
नंदनी:- एक ही ड्राइवर की जरूरत है, 2 क्यों?
श्रेया:- आंटी मै चलती हूं।
नंदनी:- ओह मैं भी ना…. एक मिनट बेटा.. अपस्यु इसे कॉलेज तक छोड़ दे, मै इनसे बात कर लेती हूं।
अपस्यु:- मां 2 की जरूरत है किसी को निकालना मत, बस सैलरी तय कर लो। चले मैम…
"आप दोनों मां-बेटे कि जोड़ी कमाल की है।"… दोनों चलते-चलते बातें करने लगे…
अपस्यु:- और आप को ऐसा क्यों लगा?
श्रेया:- एक आप की मां हैं, जहां इतनी बड़े अपार्टमेंट में पड़ोसियों कि मुलाकात मात्र लिफ्ट में होती है। कोई पड़ोसी बेल बजा दे, तो गेट के छोटे से छेद से पहले देखते है फिर 20 लॉक खोलने के बाद थोड़ा दरवाजा खोलकर, उसकी आड़ में रहकर पूछते है, क्या काम है.. और आप की मां है, पूरा घर का दरवाजा खोल दिया। ऐसी ही कुछ कहानी आपकी भी है। आप अपनी मां से बहुत प्यार करते है ना।
अपस्यु:- अपनी मां से तो सभी प्यार करते है। केवल मै उनकी बात मान लेता हूं इस वजह से कह देना की बहुत प्यार करता हूं सही है, लेकिन हर बच्चा अपनी मां से उतना ही प्यार करता है, बस हर किसी के जताने का तरीका अलग होता है।
श्रेया:- आप ये उल्टा रास्ता जा रहे है अपस्यु।
अपस्यु:- ओह, आप ने बताया नहीं जाना कहां है?
श्रेया:- लेडी हार्डिंग कॉलेज, कनॉट प्लेस…
अपस्यु ने गाड़ी घुमाई और चल दिया, कुछ देर दोनों के बीच खामोशी रही फिर श्रेया अपस्यु से पूछने लगी… "आज सुबह चोर नजर से क्या ऑब्जर्व कर रहे थे आप।".. श्रेया सवालिया नजरों से देखती हुई पूछने लगी…
अपस्यु:- आप ने पकड़ लिया क्या?
श्रेया:- हां मैंने देखा था।
अपस्यु:- वो आप बहुत खूबसूरत दिख रही थी। पहले एक झलक देखा, दिल ने कहा और देखो, सो दिल के हाथों मजबुर देखने लगा।
श्रेया:- वाह, क्या बात को घुमाया है आपने, जिस नजर की बात आप कर रहे वो आलग होती है, आपके देखने का नजरिया कुछ और ही था।
अपस्यु:- नजरों की इतनी परख, वैसे आप की पारखी नजर क्या विश्लेषण कर रही है मेरे इस प्रकार से देखने को…
श्रेया:- मुझे शक है कि आप मेरे पहनावे को लेकर कुछ सोच रहे थे…
अपस्यु:- हां आप का सोचना सही है। पूरी दिल्ली में आप के उम्र कि बहुत कम लड़कियां होंगी जो एथेनिक पहनती है, वरना तो यहां सबको मैंने शोर्ट्स, जीन्स और वेस्टर्न पोशाक में ही देखता हूं।
श्रेया:- लड़कियों को लेकर आप की सोच बहुत संकीर्ण हैं। पहनावे के साथ नजरों में भटकाव नहीं होना चाहिए। खैर मै एक मेडिकल की छात्रा हूं इसलिए मुझे ऐसे ड्रेस पहनने पड़ते है वरना मै भी अपनी इक्छा अनुसार कपड़े पहनती हूं। माफ़ कीजियेगा गाड़ी यहीं रोक दीजिए, मै यहां से चली जाऊंगी।
अपस्यु ने गाड़ी किनारे खड़ी की और वहां से श्रेया ने ऑटो ले लिया।… "सब लड़कियों को आजकल मेरे कैरेक्टर जज करने में ज्यादा इंट्रेस्ट है… मैं कहां किसी को लड़की को जज किया.. आखिर ये हो क्या रहा है मेरे साथ…."
अपस्यु वहीं से ऐमी को कॉल लगाया…. "क्या कर रही हो?"
ऐमी:- वैभव के साथ खेल रही थी।
अपस्यु:- सिन्हा सर से ऑफिशियल मीटिंग फिक्स करो, पूछो उनसे कब फ्री है?
ऐमी:- ठीक है मै कॉन्फ्रेंस में ही लेती हूं…
सिन्हा जी:- अरे मेरा बेटा इस वक़्त अपने डैड को कैसे याद की।
ऐमी:- डैड एक ऑफिशयल मीटिंग फिक्स करनी है, आप के पास वक़्त है क्या?
सिन्हा जी:- 4 बजे दोनों आ जाओ।
अपस्यु:- ठीक है सर, मुलाकात होती है फिर 4 बजे…..
ऐमी:- मुझे पिक करते हुए चलना…
अपस्यु:- ठीक है।….
घर लौटकर अपस्यु सीधा अपने कमरे में गया और सरा सामान बैग में पैक करने लगा, जिसमे कुछ कपड़े, एक लैपटॉप, कुछ छोटे बड़े डिवाइस और 4 फिट के 2 रॉड डालकर, बैग पैक कर ही रहा था कि पीछे से नंदनी चलीं आयी।
"तुम भी कहीं जा रहे हो क्या?"… बिस्तर पर बैठती हुई नंदनी पूछने लगी।
अपस्यु, अपने बैग को पैक करते…. "नहीं मै कहीं जा नहीं रहा बस खाली बैठे पागल हो रहा हूं, तो सोच काम शुरू कर दूं।"
नंदनी:- अभी पढ़ाई पूरी करेगा या काम करेगा। काम करने के लिए तो पूरी उम्र बची है अपस्यु, पहले पढ़ाई।
अपस्यु, अपने मां के गाल को चूमते… मेरी स्वीट मम्मा... आप बेवजह परेशान हो रही है। मै कौन सा पढ़ाई छोड़ रहा हूं बस पार्ट टाइम जॉब है। मुझे दूर रह कर कुछ लोगों की जासूसी करनी है और उनकी रिपोर्ट सिन्हा सर को देनी है। बस इतना ही।
नंदनी:- अच्छा ! और ये अचानक से ख्याल कैसे आया तेरे मन में?
अपस्यु:- आज सुबह की घटना से…
नंदनी:- और मेरे स्वीट बेटू के साथ घटना क्या हुई?
अपस्यु:- वो है ना सरला आंटी की बेटी श्रेया, जिसे आपने मेरे साथ कॉलेज भेजा था…
नंदनी:- वो तो बड़ी प्यारी बच्ची है.. उसने क्या कर दिया..
अपस्यु:- मुझे कुछ भी बताना ही नहीं है। आप फिर बीच में कूद जाओगी…
"मां जी वो लंबोर्गिनी को शो रूम ले जाऊं या फिर बाहर किसी के पास बनवाना है।"…. नया ड्राइवर गुफरान कमरे के बाहर से पूछा…
अपस्यु अपने मुंह पर हाथ रख कर नंदनी को देखने लगा… नंदनी उसका रिएक्शन देखती हुई हसने लगे।… "गूफी, बेटा उसे का शो रूम ले जा, और वो प्रदीप गया उनकी कार को गराज लेकर।"… गुफरान वहां से "हां मां जी" कहता हुए निकला।
अपस्यु:- मुझे गए आधे घंटे ना हुआ होगा और ये कमरे में ऐसे चला आया जैसे वर्षों से काम कर रहा हो। इसपर कुछ प्रकाश डालेंगी।
नंदनी:- अरे बेचारा गूफी, उसकी बीवी छोड़ कर भाग गई। बहुत बुरा हुआ बेचारे के साथ।
अपस्यु आराम से पल्थी लगाते, वहीं जमीन पर बैठ गया और हथेली को फैलाकर अपने मुंह पर रखते हुए बड़े ध्यान से सुनने की मुद्रा में आते हुए पूछने लगा… "मां इस बेचारे के साथ क्या हुआ आज आप पूरी डिटेल बता ही दो।"
नंदनी, अपस्यु की इस हरकत पर जोड़ से हंसती हुई…. "अच्छा सॉरी, तुम बताओ क्या हुआ तुम्हारे और श्रेया के बीच। ऐसा क्या कह दी उसने जो तुम अब काम करने पर जोर डालने लगे।"
अपस्यु:- कुछ नहीं, जब वो आप के साथ आ रही थी तब मैंने उसे चोर नजरों से देखा और उसने ये पकड़ लिया। मुझ से पूछने लगी कि मै चोर नज़रों से क्या ऑब्जर्व कर रहा था।
नंदनी, अब वो ध्यान से सुनने की मुद्रा में आयी... "हां तो तुमने क्या कहा?"
अपस्यु:- मैंने उसे पहले झूट बोलकर उसकी तारीफ करी, लेकिन उसने मेरे झूट को पकड़ लिया। तब मैंने उसे सच बता दिया…
नंदनी:- मुझे भी वो सच सुनना है…
अपस्यु:- सच क्या मां, मैंने कहा आप की उम्र की बहुत कम लड़कियां होंगी जो एथेनिक पहनती है वरना सबको मैंने वेस्ट्रन ड्रेस में ही देखता हूं।
नंदनी:- हाहाहाहा… पक्का वो भी वेस्टर्न पहनती होगी इसलिए सुना दी होगी तुम्हे कुछ।
अपस्यु:- कुछ गलत बोल दिया क्या मां?
नंदनी:- तुम इकलौते बेटे होगे, जो अपनी मां से ये सब साझा कर रहा होगा। नहीं तुमने कुछ गलत नहीं बोला, बस उसने अपने ऊपर ले लिया, इसलिए उसे बुरा लग गया। अब तुम ज्यादा मत सोचो।
शाम के लगभग 4 बजे…
अपस्यु ऐमी को लेते हुए सिन्हा जी के ऑफिस के ओर निकल रहा था। अपस्यु कुछ खामोश सोच रहा था। ऐमी उसकी खामोशी को भांपते हुए पूछने लगी… "बात क्या है, मुख्य काम को छोड़कर अन्य काम को हाथ डालने का फैसला अचानक से कैसे कर लिए"…
अपस्यु:- बस लगा की एक ही विषय पर सोच-सोच कर कहीं मै अपने सोच को किसी दायरे के अंदर तो नहीं कैद कर रहा, जिसमे मुझे केवल जीत ही नजर आ रहा है…
ऐमी:- हम्मम !! मतलब कुछ केस हाथ में लेकर हम खुद आजमाएंगे…
अपस्यु:- नहीं आज सुबह एक घटना हुई, जिसमें मैंने कुछ गलत नहीं किया लेकिन मुझे उसका सरप्राइज रिएक्शन देखने मिला। मुझे लगा जैसे ये मेरे योजना कि सच्चाई बयां हो गई हो। एकतरफा प्लैनिंग ही बस मैंने किया है लेकिन किस वक़्त कौन सरप्राइज कर जाए किसे पता।
ऐमी:- मतलब ये भी एक तरह से अपनी तैयारियों की मजबूती देना हुआ। कुछ केस के जरिए ये आकने की कोशिश की हम जो प्लैनिंग करते है उसमे और जब वास्तव ने जो परिस्थितियां होती है उनमें कितने फर्क आते है. और लोग हमे कैसे चौंका सकते है।
"बिल्कुल सही आकलन… बस जो अंतर है, वो केवल इतना है कि, यहां हमें दोबारा मौका मिलेगा। एक बार नजरों में किसी के आ गए, तो छिपना आसान होगा। लेकिन वहां किसी की नजरों में आए तो फिर आर या पार वाली कहानी होगी। इसलिए ये जरूरी हो जाता है कि, अब एकतरफा अपनी योजना नहीं बल्कि उनके हिसाब से भी सोचकर देखना चाहिए, कि वो कितने सुनियोजित है और हम कहां-कहां चुक कर सकते है। इसलिए ये जरूरी हो जाता है कि कुछ क्रिमिनल्स को पहले परख कर देख लें कि उनकी क्या सोच रहती है किसी ऐसे दुश्मन से बचाव के लिए जिन्हे वो जानते ही नहीं।"