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Romance भंवर (पूर्ण)

nain11ster

Prime
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Update:-44



तुम कुछ निष्कर्ष पर पहुंचो, उससे पहले मै तुम्हे एक बात बता दूं। मै लगभग २-३ महीने से दिल्ली में हूं लेकिन उसे पता होने के बावजूद, ना तो वो मुझसे मिलने की कोशिश की और ना ही उसने फोन किया। इतने दिनों में केवल 2 मिनट की मुलाकात कुछ दिन पहले हुई थी, वो भी तब जब सिन्हा सर को मै कुछ जरूरी केस पेपर देने गया था। उसके बाद कल रात मुलाकात हुई थी। वो भी मुलाकात नहीं होती लेकिन मै और सिन्हा सर पिए हुए थे, तब वो अाई थी। और फिर आज सुबह मुलाकात हुई, जब मुझे लगा कि तुमसे किसी भी तरह का रिश्ता आगे बढ़ाने से पहले, मै तुम्हे अपने और ऐमी के रिश्ते के बीच की सच्चाई बता दू

साची बड़े ही ध्यान से उसकी बातें सुनती रही। जब अपस्यु ने अपनी बातें समाप्त की तब साची अपस्यु के ओर देखते हुई अपने दर्द भड़े चेहरे पर थोड़ी सी झूठी मुस्कान लाती हुई कहने लगी…

साची:- सच ही कहा था तुमने मै बेवकूफ हूं। मुझ पर छोटा सा एहसान करोगे।

अपस्यु:- क्या?

साची:- हम एक दूसरे से दूर ही भले है। क्या तुम ऐसा कर सकते हो?

अपस्यु, की नजरें जैसे कुछ कहना चाह रही थी किंतु जुबान से इतना ही निकला… "चलो वापस चलते है।"

यूं तो बताने के लिए बहुत अरमान अभी बाकी थे, लेकिन कभी-कभी शायद अल्फ़ाज़ साथ नहीं देते। खामोश ही चले दोनों और खामोशियों के साथ ही घुट गए दोनों के अरमान। साची खुल कर रोना तो चाहती थी लेकिन उसके पास कोई कंधा नहीं था। अपस्यु अपनी भावना को जताना तो चाहता था लेकिन जता नहीं पाया।

कॉलेज के गेट से साची अंदर जा रही थी और अपस्यु ठीक उसके विपरीत दिशा में। चिल्ड्रंस केयर के सामने उसकी कार खड़ी हुई और अपनी सोच में डूबा वो अंदर जा रहा था। चिल्ड्रंस केयर के कुछ लड़के-लड़कियां जो स्कूल नहीं जा सकते थे, वो अाकर अपस्यु से मिलते रहे और अपस्यु मुस्कुराते हुए उन सब से मिलकर आगे बढ़ता रहा।

नजरों के सामने जब उसे नंदनी दिखी, वो धीरे-धीरे उसके ओर बढ़ने लगा। नंदनी जो अभी काफी मसरूफ थी सिन्हा जी से बात करने में, अपस्यु को सामने से यूं आते देखी वो सारे काम छोड़ कर उसके पास तेजी से पहुंची।

कुछ पूछ रही थी शायद अपस्यु से, लेकिन अपस्यु के कानो तक वो बात नहीं पहुंच पाई। बस अपनी मां को देखकर, वो लिपट कर रोते चला गया। बस रोता ही रहा। अपने बच्चे के निकलते आशु ने नंदनी को भी रोने पर विवश कर दिया। नंदनी अपस्यु के रोने का कारण तो नहीं जानती थी लेकिन उसका दर्द एक मां को खींच रही थी।

ना जाने कितनी देर वो रोता रहा। आशु शायद आज बहते ही रहते लेकिन आखों के सामने जब उसे आरव और ऐमी का चेहरा नजर आया तब उसके आशु खुद-व-खुद रुक गए। वो अपने आशु पोंछता नंदनी से अलग हुआ। नंदनी भी अपने आशु साफ करती वहीं सोफे पर बैठ गई।

अपस्यु की जब चेतना जागी, तब वो देख पा रहा था कि उसके चारो ओर उनके चिल्ड्रंस केयर के सभी लड़के-लड़कियां, सिन्हा जी, आरव, ऐमी सब वहीं खड़े थे। अपस्यु अपने आशु पोंछते, अपने चेहरे पर मुस्कान लाया और सबको देखने लगा। वो सबके नजरों के सवाल को देख पा रहा था, किंतु इस वक़्त शायद वो कुछ जवाब देने की स्थिति में नहीं था।

ऐमी वहां के भीड़ को वापस भेजती हुई कहने लगी…. "डैड आप अपना झगड़ा जारी रखो। आंटी आप भी शुरू हो जाइए।"

नंदनी, अब भी अपस्यु को ही देख रही थी, मायूसी उसके चेहरे पर भी थी…. "आप लोग वैभव को लेे जाइए। आरव ऑफिस में रुक कर सभी पेपर वर्क देख ले। अपस्यु, चल बेटा घर चलते है।"

नंदनी उसके साथ घर निकल गई। वहां पहुंचकर नंदनी, अपस्यु को बिठाकर पूछने लगी…. "मेरा स्ट्रोंग बच्चा इतना क्यों रोया। कोई रिश्ता टूटा क्या?"

अपस्यु:- आप को पता चल गई ये बात।

नंदनी:- मां हूं ना बच्चे का दर्द मेहशूस हो जाता है। कल रात घर से गायब क्यों थे?

अपस्यु:- सिन्हा अंकल ने रोक लिया था अपने पास।

नंदनी:- बता तो देना था मुझे, कितनी फ़िक्र हो रही थी।

अपस्यु:- सॉरी मां। अब से नहीं होगा।

नंदनी:- अच्छा सुन वो खूबसरत और प्यारी सी लड़की कौन थी?

अपस्यु:- कौन मां?

"आंटी मेरे बारे में बात कर रही है शायद।"… ऐमी अंदर आती हुई कहने लगी। साथ में सिन्हा जी उसके साथ वैभव और आरव था।

नंदनी:- तुम लोग एक दूसरे को जानते हो।

ऐमी:- आप के सभी सवालों के जवाब मेरे डैड और आरव दे देगा क्योंकि अपस्यु को मै अपने साथ ले जा रही हूं।

अपस्यु:- ऐमी फिर कभी चलते है आज नहीं।

ऐमी:- क्या सर मुझे मना कर रहे हो।

ऐमी के जिद के आगे फिर अपस्यु की नहीं चली। आरव भी ऐमी का साथ देते उसे भेज दिया। अपस्यु जाते-जाते आरव को नजरों से कुछ समझाते हुए वहां से चला गया और आरव ने बीती वक़्त के उन चुनिंदा राज को सामने रख दिया जिसमे अपस्यु, आरव और सिन्हा परिवार था।

दूसरी ओर… राहें जब अलग हुई तब साची के कदम भी धीमे-धीमे कॉलेज के अंदर बढ़ रहे थे। अपस्यु की बाते जैसे उसके दिमाग में गूंज रही थी। वो इस कदर डूबी रही अपनी सोच में कि कुंजल की आवाज़ तक नहीं सुन पाई ..…

"क्या हो गया, इतनी गुमसुम और मायूस क्यों हो।"…. कुंजल साची को टोकती हुई कहने लगी….

साची…. मुझे एकांत चाहिए अभी कुंजल।

कुंजल उसके हाल-ए-दिल को समझती हुई, कॉलेज के दूसरे मंजिल पर बनी एक कबाड़ख़ाने में लेकर पहुंच गई। हालांकि वो जगह भी खाली तो नहीं थी लेकिन कुंजल को ज्यादा वक़्त नहीं लगा वहां के कुछ लैला-मजनू को भगाने में।

जैसे ही वो जगह खाली हुई, साची कुंजल को पकड़ कर रोने लगी। भावनाएं आशुओं के साथ बहते जा रहे थे, वो लगातार रोए जा रही थी। रोते-रोते सिसकियां सी लेने लगी वो। रोते हुए काफी वक़्त हो चला था, कुंजल उसे पानी बॉटल देती हुई उसके आशु पोछी…. "पानी पी लो।"

साची:- मेरे ही साथ ऐसा क्यों हुआ कुंजल, मैंने तो उसे इतना ऊंचा दर्जा दिया था। मै ही गलत हूं इस बात को सोच कर पगलाई सी, उस पर सबकुछ लुटाने का सोच लिया था। मेरा जमीर धिक्करता रहा, लेकिन मै अपनी गलती समझ कर आगे बढ़ती रही।

कुंजल:- शांत हो जाओ साची। तुम इस वक़्त शायद अपने आपे में नहीं हो।

साची:- क्यों वो तुम्हारा भाई है इसलिए तुम्हे बुरा लग रहा है क्या?

कुंजल:- मुझे उसके लिए नहीं तुम्हारे लिए बुरा लग रहा है। खुद को संभालो।

साची:- कैसे संभाल लूं कुंजल, तुम जानती भी हो मेरे अंदर क्या चल रहा है।

कुंजल:- मै अच्छे से जान रही हूं, तुम्हे पागलपन के दौरे आने शुरू हुए है और ना जाने कब तक आएंगे उसका समय निश्चित नहीं है।

साची:- हां शायद तुम सही कह रही हो। ये मेरा दर्द है और मै ही झेलूंगी, तुम्हरे साथ का शुक्रिया।

कुंजल:- मै जानती थी पागलपन की शुरवात में ऐसे ही जवाब आएंगे। जाओ कुछ दिन रोकर जब तुम्हारे आशु सुख जाएंगे तब मै बात करूंगी।

दिन बिरहा में बीतने के बाद साची घर लौट कर आयी और सीधे अपने कमरे में जाकर रोती रही। ना जाने वो कितना रोई थी, आखें सुज गई थी। आखों के आस पास की सिलवटें सारी कहानी कह रहे थे। लावणी किसी तरह उसके कमरे में पहुंची। बहुत कोशिशों के बाद जाकर वो चुप हुई।

किसी ने किसी को धोका नहीं दिया। दोनों ने ही अपनी भावनाएं कभी एक दूसरे से नहीं छिपाए लेकिन दिल दोनों का ही टूटा। शायद प्यार में जो विश्वास होता है, उसकी कमी सी खल गई। आज ऐमी के साथ भी अपस्यु खामोश ही रहा।

अगली सुबह बिल्कुल खामोश और मायूस थी। ना तो कोई उत्साह बचा था और ना ही कोई तमन्ना। बस एक कॉलेज जाने की ड्यूटी बची थी, साची वहीं निभा रही थी। आखें उसके रोने कि कहानी बयां कर रही थी और मायूस उतरा सा चेहरा टूटे दिल का किस्सा।

अपस्यु जब सुबह जागा तब उसके चेहरे पर उसकी वहीं चिर परिचित मुस्कान थी। अपने भाई-बहन के साथ उसने पूरा वर्कआउट भी किया किंतु अब उसने कॉलेज से मुंह मोड़ लिया था। साची जो आखरी बात उस से कह गई, उसी को निभाते हुए उसने कॉलेज से ही दूरियां बनाना सही समझा।

दिन बीत रहे थे और दोनों के बीच की दूरियां भी शायद। अपस्यु अपना ध्यान अपने पुरानी रुचि पर केंद्रित करने में लग गया, नई चीजों का अध्यन करना और उसे प्रयोग में लाना। अपने रुचि में खुद को इस कदर वो उलझा चुका था कि दिन ढल जाता, मजबूरी में सोना पड़ रहा था लेकिन अध्यन पूरा नहीं हो पा रहा था।

बीतते वक़्त के साथ साची भी खुद को संभालने कि कोशिश कर रही थी, लेकिन दर्द ज्यादा था और उसपर सोचने के लिए प्रयाप्त समय भी। शायद यही वजह थी कि आशु छलक ही आते थे, किंतु कुंजल और लावणी हर संभव उसे हंसाने और गम भूलने में मदद कर रही थी।

बीतते वक़्त के साए में आरव की लावणी भी कहीं गुम हो रही थी। आरव से गुस्सा तो था लेकिन उससे प्यार भी कम नहीं था। बस लावणी चाह कर भी उसे सुन नहीं पा रही थी। उसका दिल कर तो रहा था कि कुछ वक़्त रुक कर आरव का मानना भी सुन लिया जाए, और अपना गुस्सा बस उसकी एक प्यार भरी बात से खत्म किया जाए, लेकिन शायद इस वक़्त वो अपना सारा खाली समय अपनी बहन को दे रही थी।

लगभग 15 दिन बीतने को आए थे। रात का अंधेरा और 2 बजे का वक्त था। … आरव एक बार फिर चोरी से लावणी के कमरे में दाखिल हुआ। लाइट जला कर उसने फिर से सोती हुई लावणी के मासूम चेहरे को गौर से देखने लगा… "हाय मेरी धड़कने, काबू में रह भाई। माना कि वो तेरे होश उड़ा रही है लेकिन अंदर इतना मत उछल।"

अपने अंदर के पंख को उड़ान देते, आरव लावणी के सर के पास जाकर बैठ गया और उसका मुंह पर हाथ डालकर उसे जगाने लगा। लावणी की जब आखें खुली तो आरव को पास बैठे देख उसकी आखें चौड़ी हो गई…. "ऊं ऊं ऊं" … "ओह" .. और आरव ने अपना हाथ लावणी के मुंह पर से हटाया।

हाथ हटते ही लावणी उठकर बैठती हुई अपने आखें दिखाने लगी…. "प्लीज प्लीज प्लीज मेरी बात तो सुन लो"… उसकी आखें देखकर आरव मिन्नतें करते कहने लगा।

लावणी:- क्यों सुनूं तुम्हे…

आरव:- बेबी आई लव यू।

लावणी:- तुमसे तो कब का ब्रेकअप कर चुकी मै, जाकर किसी और कि नींद खराब करो।

आरव, साइड से ही उसके गले पड़ते…. एक मौका तो दो मुझे अपनी बात समझाने का।

(अंदर खिल-खिलाती हंसी, बाहर से खुद को शख्त दिखाती).. लावणी अराव की इस हरकत पर अपनी मुंडी घुमा कर उसे घूरती हुई कहने लगी… "1 फिट की दूरी से बात करो, चलो।"

आरव, कुछ दूरियां बनाते…. "बेबी सुनो ना"…

लावणी:- 4 बार तो कह चुके "सुनो ना, सुनो ना".. इस से आगे भी है कुछ बोलना है या फिर यही रट्टा मार कर आए हो।

आरव:- कहने को बहुत सी बातें है बेबी लेकिन पहले आई लव यू।

लावणी अपने बनावटी भाव दिखाती…. "ये भी दोबारा बोल रहे हो।"

आरव:- अब तुम ऐसे मुझ पर राशन-पानी लेकर चढ़ी रहोगी तो कहां से मै कुछ सोच पाऊंगा। ठीक से सोचने तो दो की कैसे समझाऊं तुम्हे।

लावणी:- ये बातें उस वक़्त समझ में नहीं आयी थी, जब कमर में हाथ डाले उस लड़की से चिपक कर डांस कर रहे थे।

आरव, वापस लावणी के पास जाकर उसके गले पड़ते हुए कहने लगा…. "अरे वो तो ऐमी ने फसाया था मुझे वरना मै तो कॉलेज में भी किसी को भाव नहीं देता।"

लावणी:- तुमने कह दिया मैंने सुन लिया, इस विषय पर बाद में सोचकर बताऊंगी। फिलहाल मै दी को लेकर चिंता में हूं।

आरव:- वो बेवकूफ है…

लावणी:- ओए कुछ भी बकवास की ना तो देख लेना…

आरव:- अगर तुम्हे मेरी बातें बकवास लगे ना तो तुम बेशक मेरे साथ जो चाहे वो कर लेना … लेकिन एक बार मेरी पूरी बात ध्यान से सुन लो और मेरे कहे अनुसार साची को समझाना… तुम दोनों बहन कि चिंताएं खत्म हो जाएगी।

आरव ने फिर अपनी बात कहनी शुरू की। वो कहता गया लावणी उसे ध्यान से सुनती गई। जैसे-जैसे बात आगे बढ़ रही थी, वैसे-वैसे उसे अंदर से खुशी मेहसूस होते जा रही थी। अपनी बात पूरी खत्म करके आरव लावणी से कहने लगा…. "सिर्फ तुम्हारी चिंता कि वजह से मैं अपनी बात अधूरी छोड़ कर जा रहा हूं। अब तो तुम्हारी ये चिंता जब खत्म होगी तभी मिलने आऊंगा। चलता हूं बेबी… और हां…

लावणी आरव की ओर देखती… क्या ?

फाटक से वो उसके होटों को चूम कर भागते हुए कहने लगा…. "आई लव यू।" आरव के जाते ही लावणी हंसती हुई कहने लगी…. "मेरा स्वीटो.. लव यू टू"… अंधरे में भागता हुआ आरव फिर से अपने घर वापस आया। अपस्यु हॉल में ही बैठा हुआ था।

"तूने सारी बातें समझा दी लावणी को"….. "समझा तो दिया है भाई लेकिन यार तेरा दिल नहीं दुखेगा।"…

"कोई एक तो खुश रहे मेरे भाई… मेरा क्या है, बिना अाशरा तब भी थे आगे भी जीते रहेंगे। एक ही दर्द से 2 लोग क्यों पिस्ते रहे।"
 

Chinturocky

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Ye to Trezady ho gayi, ??????
Per kya ker sakte hai apne pyar ko kisi ke Saath batana aasan baat nahi hai fir jab dusara use best friend ya casual relationship ka naam de pyar ka nahi to baat aur bhi jyada ulajh jaati hai.
Sabase bada sawal "ek aur update milega kya aaj"
 

Chinturocky

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Kisi ka samjhdar hona aur apane se pahle apano ka khayal rakhane se Sab ke sab aap pe nirbhar ho jaate hai, fir aapka khayal rakhane ke liye ya kisi pe nirbhar karne ke liye koi Aapke paas nahi hota,
Kahane ko sab paas hote hai fir bhi wo Bilkul akela hota hai. Apasyu ke Saath aisa hi hai. Saanchi usako itana uncha aur samajhadar manti hai ki usase koi galti ho sakti hai Maan hi nahi paa rahi wo bhi Insan hai usaki bhi bhawnaye hai nahi swikar kar paa rahi hai. Dekhate hai aage kya hota hai dono ke rishton me.
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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Hmm kya sach mein dono alag ho gaye.. :D
ya phir aage chalke dono ek ho jayenge... aur crazy boy ka patta cut.. oh ho aise kaise nashedi kunjal hain na :D
अरे वो तो ऐमी ने फसाया था मुझे वरना मै तो कॉलेज में भी किसी को भाव नहीं देता।"
badi khatarnak prani hai yeh toh... :D
.......
Ab aarav ne kya samjhaya lavnee ko... aur yeh apsyu ne kya bola aarav ko, lavnee ko samjhane ke liye ....
"कोई एक तो खुश रहे मेरे भाई… मेरा क्या है, बिना अाशरा तब भी थे आगे भी जीते रहेंगे। एक ही दर्द से 2 लोग क्यों पिस्ते रहे
do baatein ho sakti hain... ya toh kuch aisa samjhane ko kaha jishe sunne ki baad jish daur se saachi gujar rahin hai, usse khud ko sambhal le.... ya phir kuch aisa jisse dono phir se ek ho jaye...ek honge lekin amy k sath casual relationship rahega ishi terms & conditions ke sath... :D
Khair let's see what happens next
Brilliant update... Great going :applause: :applause:
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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साची बड़े ही ध्यान से उसकी बातें सुनती रही। जब अपस्यु ने अपनी बातें समाप्त की तब साची अपस्यु के ओर देखते हुई अपने दर्द भड़े चेहरे पर थोड़ी सी झूठी मुस्कान लाती हुई कहने लगी…
साची:- सच ही कहा था तुमने मै बेवकूफ हूं। मुझ पर छोटा सा एहसान करोगे।

अपस्यु:- क्या?

साची:- हम एक दूसरे से दूर ही भले है। क्या तुम ऐसा कर सकते हो?

अपस्यु, की नजरें जैसे कुछ कहना चाह रही थी किंतु जुबान से इतना ही निकला… "चलो वापस चलते है।"
अपस्यु अपना ध्यान अपने पुरानी रुचि पर केंद्रित करने में लग गया, नई चीजों का अध्यन करना और उसे प्रयोग में लाना। अपने रुचि में खुद को इस कदर वो उलझा चुका था कि दिन ढल जाता, मजबूरी में सोना पड़ रहा था लेकिन अध्यन पूरा नहीं हो पा रहा था।

बीतते वक़्त के साथ साची भी खुद को संभालने कि कोशिश कर रही थी, लेकिन दर्द ज्यादा था और उसपर सोचने के लिए प्रयाप्त समय भी। शायद यही वजह थी कि आशु छलक ही आते थे, किंतु कुंजल और लावणी हर संभव उसे हंसाने और गम भूलने में मदद कर रही थी।
If a dream breaks in a single moment,the world seems lonely, when no loved one remains, the world seems lonely, Why does this happen, When this heart cries out, Even the wind seems as if it is crying?... Why does this happen, When this heart cries out, Even the wind seems as if it is crying? :D
इसीलिए इसीलिए
.. ये भटकाव अच्छा नहीं इश्क बुरी बला होती है। लग जाये तो आसानी से पीछा नहीं छूटता। साची, हम पाठकगण आपको मना तो नहीं कर सकते पर इतना जरुर हैं की प्रीत का स्वाद जो चखा जुबान ने फिर बेगाने हुए जग से समझो..... :lollypop:
 
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dianelane

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aaj kal kaam jyada hone ke wajah se update likhna thoda kam ho gaya hai .. so no bomabom ... kahani raftar se chalti rahegi .. aap bhi uski vishwas ke sath apni pratkriya dete rahen ... :thanks: for everyone support
Jhuth kahe ko bol rahe ho....
 

Chutiyadr

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तुम कुछ निष्कर्ष पर पहुंचो, उससे पहले मै तुम्हे एक बात बता दूं। मै लगभग २-३ महीने से दिल्ली में हूं लेकिन उसे पता होने के बावजूद, ना तो वो मुझसे मिलने की कोशिश की और ना ही उसने फोन किया। इतने दिनों में केवल 2 मिनट की मुलाकात कुछ दिन पहले हुई थी, वो भी तब जब सिन्हा सर को मै कुछ जरूरी केस पेपर देने गया था। उसके बाद कल रात मुलाकात हुई थी। वो भी मुलाकात नहीं होती लेकिन मै और सिन्हा सर पिए हुए थे, तब वो अाई थी। और फिर आज सुबह मुलाकात हुई, जब मुझे लगा कि तुमसे किसी भी तरह का रिश्ता आगे बढ़ाने से पहले, मै तुम्हे अपने और ऐमी के रिश्ते के बीच की सच्चाई बता दू

साची बड़े ही ध्यान से उसकी बातें सुनती रही। जब अपस्यु ने अपनी बातें समाप्त की तब साची अपस्यु के ओर देखते हुई अपने दर्द भड़े चेहरे पर थोड़ी सी झूठी मुस्कान लाती हुई कहने लगी…

साची:- सच ही कहा था तुमने मै बेवकूफ हूं। मुझ पर छोटा सा एहसान करोगे।

अपस्यु:- क्या?

साची:- हम एक दूसरे से दूर ही भले है। क्या तुम ऐसा कर सकते हो?

अपस्यु, की नजरें जैसे कुछ कहना चाह रही थी किंतु जुबान से इतना ही निकला… "चलो वापस चलते है।"

यूं तो बताने के लिए बहुत अरमान अभी बाकी थे, लेकिन कभी-कभी शायद अल्फ़ाज़ साथ नहीं देते। खामोश ही चले दोनों और खामोशियों के साथ ही घुट गए दोनों के अरमान। साची खुल कर रोना तो चाहती थी लेकिन उसके पास कोई कंधा नहीं था। अपस्यु अपनी भावना को जताना तो चाहता था लेकिन जता नहीं पाया।

कॉलेज के गेट से साची अंदर जा रही थी और अपस्यु ठीक उसके विपरीत दिशा में। चिल्ड्रंस केयर के सामने उसकी कार खड़ी हुई और अपनी सोच में डूबा वो अंदर जा रहा था। चिल्ड्रंस केयर के कुछ लड़के-लड़कियां जो स्कूल नहीं जा सकते थे, वो अाकर अपस्यु से मिलते रहे और अपस्यु मुस्कुराते हुए उन सब से मिलकर आगे बढ़ता रहा।

नजरों के सामने जब उसे नंदनी दिखी, वो धीरे-धीरे उसके ओर बढ़ने लगा। नंदनी जो अभी काफी मसरूफ थी सिन्हा जी से बात करने में, अपस्यु को सामने से यूं आते देखी वो सारे काम छोड़ कर उसके पास तेजी से पहुंची।

कुछ पूछ रही थी शायद अपस्यु से, लेकिन अपस्यु के कानो तक वो बात नहीं पहुंच पाई। बस अपनी मां को देखकर, वो लिपट कर रोते चला गया। बस रोता ही रहा। अपने बच्चे के निकलते आशु ने नंदनी को भी रोने पर विवश कर दिया। नंदनी अपस्यु के रोने का कारण तो नहीं जानती थी लेकिन उसका दर्द एक मां को खींच रही थी।

ना जाने कितनी देर वो रोता रहा। आशु शायद आज बहते ही रहते लेकिन आखों के सामने जब उसे आरव और ऐमी का चेहरा नजर आया तब उसके आशु खुद-व-खुद रुक गए। वो अपने आशु पोंछता नंदनी से अलग हुआ। नंदनी भी अपने आशु साफ करती वहीं सोफे पर बैठ गई।

अपस्यु की जब चेतना जागी, तब वो देख पा रहा था कि उसके चारो ओर उनके चिल्ड्रंस केयर के सभी लड़के-लड़कियां, सिन्हा जी, आरव, ऐमी सब वहीं खड़े थे। अपस्यु अपने आशु पोंछते, अपने चेहरे पर मुस्कान लाया और सबको देखने लगा। वो सबके नजरों के सवाल को देख पा रहा था, किंतु इस वक़्त शायद वो कुछ जवाब देने की स्थिति में नहीं था।

ऐमी वहां के भीड़ को वापस भेजती हुई कहने लगी…. "डैड आप अपना झगड़ा जारी रखो। आंटी आप भी शुरू हो जाइए।"

नंदनी, अब भी अपस्यु को ही देख रही थी, मायूसी उसके चेहरे पर भी थी…. "आप लोग वैभव को लेे जाइए। आरव ऑफिस में रुक कर सभी पेपर वर्क देख ले। अपस्यु, चल बेटा घर चलते है।"

नंदनी उसके साथ घर निकल गई। वहां पहुंचकर नंदनी, अपस्यु को बिठाकर पूछने लगी…. "मेरा स्ट्रोंग बच्चा इतना क्यों रोया। कोई रिश्ता टूटा क्या?"

अपस्यु:- आप को पता चल गई ये बात।

नंदनी:- मां हूं ना बच्चे का दर्द मेहशूस हो जाता है। कल रात घर से गायब क्यों थे?

अपस्यु:- सिन्हा अंकल ने रोक लिया था अपने पास।

नंदनी:- बता तो देना था मुझे, कितनी फ़िक्र हो रही थी।

अपस्यु:- सॉरी मां। अब से नहीं होगा।

नंदनी:- अच्छा सुन वो खूबसरत और प्यारी सी लड़की कौन थी?

अपस्यु:- कौन मां?

"आंटी मेरे बारे में बात कर रही है शायद।"… ऐमी अंदर आती हुई कहने लगी। साथ में सिन्हा जी उसके साथ वैभव और आरव था।

नंदनी:- तुम लोग एक दूसरे को जानते हो।

ऐमी:- आप के सभी सवालों के जवाब मेरे डैड और आरव दे देगा क्योंकि अपस्यु को मै अपने साथ ले जा रही हूं।

अपस्यु:- ऐमी फिर कभी चलते है आज नहीं।

ऐमी:- क्या सर मुझे मना कर रहे हो।

ऐमी के जिद के आगे फिर अपस्यु की नहीं चली। आरव भी ऐमी का साथ देते उसे भेज दिया। अपस्यु जाते-जाते आरव को नजरों से कुछ समझाते हुए वहां से चला गया और आरव ने बीती वक़्त के उन चुनिंदा राज को सामने रख दिया जिसमे अपस्यु, आरव और सिन्हा परिवार था।

दूसरी ओर… राहें जब अलग हुई तब साची के कदम भी धीमे-धीमे कॉलेज के अंदर बढ़ रहे थे। अपस्यु की बाते जैसे उसके दिमाग में गूंज रही थी। वो इस कदर डूबी रही अपनी सोच में कि कुंजल की आवाज़ तक नहीं सुन पाई ..…

"क्या हो गया, इतनी गुमसुम और मायूस क्यों हो।"…. कुंजल साची को टोकती हुई कहने लगी….

साची…. मुझे एकांत चाहिए अभी कुंजल।

कुंजल उसके हाल-ए-दिल को समझती हुई, कॉलेज के दूसरे मंजिल पर बनी एक कबाड़ख़ाने में लेकर पहुंच गई। हालांकि वो जगह भी खाली तो नहीं थी लेकिन कुंजल को ज्यादा वक़्त नहीं लगा वहां के कुछ लैला-मजनू को भगाने में।

जैसे ही वो जगह खाली हुई, साची कुंजल को पकड़ कर रोने लगी। भावनाएं आशुओं के साथ बहते जा रहे थे, वो लगातार रोए जा रही थी। रोते-रोते सिसकियां सी लेने लगी वो। रोते हुए काफी वक़्त हो चला था, कुंजल उसे पानी बॉटल देती हुई उसके आशु पोछी…. "पानी पी लो।"

साची:- मेरे ही साथ ऐसा क्यों हुआ कुंजल, मैंने तो उसे इतना ऊंचा दर्जा दिया था। मै ही गलत हूं इस बात को सोच कर पगलाई सी, उस पर सबकुछ लुटाने का सोच लिया था। मेरा जमीर धिक्करता रहा, लेकिन मै अपनी गलती समझ कर आगे बढ़ती रही।

कुंजल:- शांत हो जाओ साची। तुम इस वक़्त शायद अपने आपे में नहीं हो।

साची:- क्यों वो तुम्हारा भाई है इसलिए तुम्हे बुरा लग रहा है क्या?

कुंजल:- मुझे उसके लिए नहीं तुम्हारे लिए बुरा लग रहा है। खुद को संभालो।

साची:- कैसे संभाल लूं कुंजल, तुम जानती भी हो मेरे अंदर क्या चल रहा है।

कुंजल:- मै अच्छे से जान रही हूं, तुम्हे पागलपन के दौरे आने शुरू हुए है और ना जाने कब तक आएंगे उसका समय निश्चित नहीं है।

साची:- हां शायद तुम सही कह रही हो। ये मेरा दर्द है और मै ही झेलूंगी, तुम्हरे साथ का शुक्रिया।

कुंजल:- मै जानती थी पागलपन की शुरवात में ऐसे ही जवाब आएंगे। जाओ कुछ दिन रोकर जब तुम्हारे आशु सुख जाएंगे तब मै बात करूंगी।

दिन बिरहा में बीतने के बाद साची घर लौट कर आयी और सीधे अपने कमरे में जाकर रोती रही। ना जाने वो कितना रोई थी, आखें सुज गई थी। आखों के आस पास की सिलवटें सारी कहानी कह रहे थे। लावणी किसी तरह उसके कमरे में पहुंची। बहुत कोशिशों के बाद जाकर वो चुप हुई।

किसी ने किसी को धोका नहीं दिया। दोनों ने ही अपनी भावनाएं कभी एक दूसरे से नहीं छिपाए लेकिन दिल दोनों का ही टूटा। शायद प्यार में जो विश्वास होता है, उसकी कमी सी खल गई। आज ऐमी के साथ भी अपस्यु खामोश ही रहा।

अगली सुबह बिल्कुल खामोश और मायूस थी। ना तो कोई उत्साह बचा था और ना ही कोई तमन्ना। बस एक कॉलेज जाने की ड्यूटी बची थी, साची वहीं निभा रही थी। आखें उसके रोने कि कहानी बयां कर रही थी और मायूस उतरा सा चेहरा टूटे दिल का किस्सा।

अपस्यु जब सुबह जागा तब उसके चेहरे पर उसकी वहीं चिर परिचित मुस्कान थी। अपने भाई-बहन के साथ उसने पूरा वर्कआउट भी किया किंतु अब उसने कॉलेज से मुंह मोड़ लिया था। साची जो आखरी बात उस से कह गई, उसी को निभाते हुए उसने कॉलेज से ही दूरियां बनाना सही समझा।

दिन बीत रहे थे और दोनों के बीच की दूरियां भी शायद। अपस्यु अपना ध्यान अपने पुरानी रुचि पर केंद्रित करने में लग गया, नई चीजों का अध्यन करना और उसे प्रयोग में लाना। अपने रुचि में खुद को इस कदर वो उलझा चुका था कि दिन ढल जाता, मजबूरी में सोना पड़ रहा था लेकिन अध्यन पूरा नहीं हो पा रहा था।

बीतते वक़्त के साथ साची भी खुद को संभालने कि कोशिश कर रही थी, लेकिन दर्द ज्यादा था और उसपर सोचने के लिए प्रयाप्त समय भी। शायद यही वजह थी कि आशु छलक ही आते थे, किंतु कुंजल और लावणी हर संभव उसे हंसाने और गम भूलने में मदद कर रही थी।

बीतते वक़्त के साए में आरव की लावणी भी कहीं गुम हो रही थी। आरव से गुस्सा तो था लेकिन उससे प्यार भी कम नहीं था। बस लावणी चाह कर भी उसे सुन नहीं पा रही थी। उसका दिल कर तो रहा था कि कुछ वक़्त रुक कर आरव का मानना भी सुन लिया जाए, और अपना गुस्सा बस उसकी एक प्यार भरी बात से खत्म किया जाए, लेकिन शायद इस वक़्त वो अपना सारा खाली समय अपनी बहन को दे रही थी।

लगभग 15 दिन बीतने को आए थे। रात का अंधेरा और 2 बजे का वक्त था। … आरव एक बार फिर चोरी से लावणी के कमरे में दाखिल हुआ। लाइट जला कर उसने फिर से सोती हुई लावणी के मासूम चेहरे को गौर से देखने लगा… "हाय मेरी धड़कने, काबू में रह भाई। माना कि वो तेरे होश उड़ा रही है लेकिन अंदर इतना मत उछल।"

अपने अंदर के पंख को उड़ान देते, आरव लावणी के सर के पास जाकर बैठ गया और उसका मुंह पर हाथ डालकर उसे जगाने लगा। लावणी की जब आखें खुली तो आरव को पास बैठे देख उसकी आखें चौड़ी हो गई…. "ऊं ऊं ऊं" … "ओह" .. और आरव ने अपना हाथ लावणी के मुंह पर से हटाया।

हाथ हटते ही लावणी उठकर बैठती हुई अपने आखें दिखाने लगी…. "प्लीज प्लीज प्लीज मेरी बात तो सुन लो"… उसकी आखें देखकर आरव मिन्नतें करते कहने लगा।

लावणी:- क्यों सुनूं तुम्हे…

आरव:- बेबी आई लव यू।

लावणी:- तुमसे तो कब का ब्रेकअप कर चुकी मै, जाकर किसी और कि नींद खराब करो।

आरव, साइड से ही उसके गले पड़ते…. एक मौका तो दो मुझे अपनी बात समझाने का।

(अंदर खिल-खिलाती हंसी, बाहर से खुद को शख्त दिखाती).. लावणी अराव की इस हरकत पर अपनी मुंडी घुमा कर उसे घूरती हुई कहने लगी… "1 फिट की दूरी से बात करो, चलो।"

आरव, कुछ दूरियां बनाते…. "बेबी सुनो ना"…

लावणी:- 4 बार तो कह चुके "सुनो ना, सुनो ना".. इस से आगे भी है कुछ बोलना है या फिर यही रट्टा मार कर आए हो।

आरव:- कहने को बहुत सी बातें है बेबी लेकिन पहले आई लव यू।

लावणी अपने बनावटी भाव दिखाती…. "ये भी दोबारा बोल रहे हो।"

आरव:- अब तुम ऐसे मुझ पर राशन-पानी लेकर चढ़ी रहोगी तो कहां से मै कुछ सोच पाऊंगा। ठीक से सोचने तो दो की कैसे समझाऊं तुम्हे।

लावणी:- ये बातें उस वक़्त समझ में नहीं आयी थी, जब कमर में हाथ डाले उस लड़की से चिपक कर डांस कर रहे थे।

आरव, वापस लावणी के पास जाकर उसके गले पड़ते हुए कहने लगा…. "अरे वो तो ऐमी ने फसाया था मुझे वरना मै तो कॉलेज में भी किसी को भाव नहीं देता।"

लावणी:- तुमने कह दिया मैंने सुन लिया, इस विषय पर बाद में सोचकर बताऊंगी। फिलहाल मै दी को लेकर चिंता में हूं।

आरव:- वो बेवकूफ है…

लावणी:- ओए कुछ भी बकवास की ना तो देख लेना…

आरव:- अगर तुम्हे मेरी बातें बकवास लगे ना तो तुम बेशक मेरे साथ जो चाहे वो कर लेना … लेकिन एक बार मेरी पूरी बात ध्यान से सुन लो और मेरे कहे अनुसार साची को समझाना… तुम दोनों बहन कि चिंताएं खत्म हो जाएगी।

आरव ने फिर अपनी बात कहनी शुरू की। वो कहता गया लावणी उसे ध्यान से सुनती गई। जैसे-जैसे बात आगे बढ़ रही थी, वैसे-वैसे उसे अंदर से खुशी मेहसूस होते जा रही थी। अपनी बात पूरी खत्म करके आरव लावणी से कहने लगा…. "सिर्फ तुम्हारी चिंता कि वजह से मैं अपनी बात अधूरी छोड़ कर जा रहा हूं। अब तो तुम्हारी ये चिंता जब खत्म होगी तभी मिलने आऊंगा। चलता हूं बेबी… और हां…

लावणी आरव की ओर देखती… क्या ?

फाटक से वो उसके होटों को चूम कर भागते हुए कहने लगा…. "आई लव यू।" आरव के जाते ही लावणी हंसती हुई कहने लगी…. "मेरा स्वीटो.. लव यू टू"… अंधरे में भागता हुआ आरव फिर से अपने घर वापस आया। अपस्यु हॉल में ही बैठा हुआ था।

"तूने सारी बातें समझा दी लावणी को"….. "समझा तो दिया है भाई लेकिन यार तेरा दिल नहीं दुखेगा।"…

"कोई एक तो खुश रहे मेरे भाई… मेरा क्या है, बिना अाशरा तब भी थे आगे भी जीते रहेंगे। एक ही दर्द से 2 लोग क्यों पिस्ते रहे।"
Aaraw aur lawani ka hi badiya hai no chik chik no jhik jhik ... Sidha point to point
bat..
apyus aur sanchi to pure udaas aatma hai :lol1:
 
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