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Erotica फागुन के दिन चार

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komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ३६, पृष्ठ ४१६

वापस -घर


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komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ३६

वापस -घर
४,७८,४१४
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गुड्डी ने रास्ते में बता दिया की उसने चंदा भाभी को और रीत को फोन कर दिया था की गुंजा हमारे साथ है, एकदम सेफ है। हमलोग 10 मिनट में पहुँच रहे हैं और उसे छोड़कर तब जायेंगे।



रास्ते में अभी भी सन्नाटा था। बस दो-चार चाय की दुकानें खुली थी। चौराहों पे लोग इकठा थे, एक्की-दुक्की गाड़ियां चल रही थी।लेकिन जैसे ही हमारी बाइक औरंगाबाद में मुड़ी, और फिर गुड्डी के घर की ओर माहौल थोड़ा बदला बदला सा था, एक तो दो ट्रक पीएसी और एक आर ए ऍफ़ की थीं और पीएसी के जवान एकदम मुस्तैद थे। फिर गुड्डी की गली के बाहर , एक टुकड़ी कुछ कमांडेट लेकिन पुलिस के बंदोबस्त से ज्यादा लग रहा था, या तो हवा बदल रही थी या बाहर की जहरीली हवा का असर अभी भी उस मोहल्ले तक नहीं पहुंचा था। कुछ कुछ दुकाने आधी तीही खुली हुयी थीं, कुछ के शटर खुल रहे थे, लोग गलियों में खड़े होकर बातें कर रहे थे। हाँ टीवी पर आकर अभी भी थके नहीं थे, उसी तरह चीख चीख कर बोल रहे थे।



हम लोग 5-7 मिनट में ही चंदा भाभी के घर पहुँच गए।



वो नीचे इंतजार कर रही थी। दोनों ने एक दूसरे को देखा, और फिर बाँध टूट पड़ा।



गुड्डी घर के अन्दर चली गई।



गुंजा अपनी माँ की बाँहों में सिमट गई और सुबक-सुबक के रोने लगी। चंदा भाभी ने भी उसे अपनी बाहों में भींच लिया और बिना बोले उनके गाल पे भी आँसू की धार बह निकली।



मैं दो मिनट चुपचाप खड़ा रहा।



बिन बोले बहुत कुछ वो कहती रही, सुनती रही। गुंजा ने मुड़कर एक पल मेरी ओर देखा, हल्के से मुश्कुरायी और आँसू पोंछ लिए।
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“ऊपर चलें…” मैंने भी मुश्कुराकर बोला और उसके कंधे पे हाथ रख दिया।

सीढ़ी से हम लोग ऊपर चल दिए और सीधे चंदा भाभी के कमरे में, और एक बार फिर गुंजा ने अपनी माँ को भींच लिया। चंदा भाभी उसकी पीठ, सिर सहलाती रही।

गुंजा दो पल के बाद मुड़ी और मेरी ओर देखकर बोली- “मम्मी, ये अगर नहीं पहुँचते तो। पता नहीं क्या हालत होती? मैं आपको देख भी नहीं पाती…”

गुंजा भी जानती थी की क्या बताना है क्या नहीं बताना, लेकिन माँ बेटी में कुछ छिपता है क्या ? चुम्मन के क्लास में आने से लेकर बम के फटने तक की पूरी दास्तान, हाँ मेरी वीरगाथा, थोड़ी बढ़ा चढ़ा कर ही, और मैं जैसे वापस उन पलों में लौट गया था,



आज सच में गुंजा कितनी बार बची। पहले तो जिस तरह से गुंजा, महक और शाजिया, और गुंजा एकदम बीच में बेंच पर, और नीचे वो बम, और अब उस बम के शक्तिशाली होने के बारे में किसी को शक नहीं हो सकता था, निश्चित रूप से वो एकदम लोकल नहीं था, जब फटा तो स्कूल की एक पूरी दीवार तो गिरी ही, उसकी शॉकवेव्स, हमने सीढ़ियों पर भी महसूस की और उसके झटके से बंद दरवाजा बीसो फुट दूर जा गिरा, और अगर वह बम्ब तब फटता जब गुंजा, उस बेंच पर होती ?



मैं सोच भी नहीं सकता था, पर गुंजा बार बार उन पलों को फिर से जी रही थी,

और निकलते समय भी, शाजिया और महक तो बच के साफ़ निकल गयी थीं, लेकिन गुंजा के निकलते समय चुम्मन आ गया था और उसका चाक़ू का निशाना, ये तो ऐन वक्त पर मैं उसके ऊपर गिरा, उसे छाप लिया और चुम्मन का चाकू मेरे बांह पर लगा वरना वो शर्तिया गुंजा को लगता और फिर,



फिर सबसे ज्यादा खतरा तो गली में, दो बार हमला, और दोनों बार वो बाल बाल बची, मैं सोच सकता था उस की हालत,

बात ख़तम होने के पहले ही गुंजा एक बार अपनी माँ की छाती में दुबक के, बस



और फिर



गुंजा अब मुड़कर मेरे गले से लिपट गई। वो अभी भी हल्के-हल्के सुबक रही थी।

चंदा भाभी मुझे बस देख रही थीं जैसे क्या कहें कुछ समझ में नहीं आ रहा हो और उनकी चुप्पी में एक सवाल भी था।

मैं बोला- “कुछ नहीं हुआ वहाँ। ये तीनों बस बैठी थी। गुंडों ने छुआ तक नहीं इसे। खरोंच तक नहीं लगी इसे।“

गुंजा और मेरी बाँहों में दुबक गई और हल्के से मुश्कुराने लगी।

और मैंने अब गुंजा को खूब कसकर भींच लिया और एक उंगली से उसकी आँख की कोर से लटक रहे आँसू को तोड़ दिया।

लेकिन चंदा भाभी के लिए इत्ती देर सीरियस रह पाना बहुत मुश्किल था, बोल वो गुंजा से रही थीं लेकिन तीर के निशाने पर मैं ही था।

" तेरे जीजू की तो चांदी हो गयी हो होगी, दो और जबरदस्त साल । याँ, महक तो महक, शाजिया भी कम नहीं है। मौके का फायदा उठाया होगा तेरे जीजू ने "



सच में महक के रुई के फाहे ऐसे गोल गोल उभार, और कैसे खुद खींच कर उसने अपने स्कूल यूनिफॉर्म के टॉप के ऊपर से कस के दबा दिया था और शाजिया कौन सी कम है, दोनों ने होली के बाद की बुकिंग अभी से कर ली है।



गुंजा छटक के मेरी बाहों से अलग हो गई.



लेकिन साली हो तो गुंजा ऐसी, महक के उभारों से लेकर मॉल में हुयी शरारतों का जिक्र वो गोल कर गयी और आँख नचा कर मुस्कराते हए चंदा भाभी से बोलने लगी- “आपके देवर इत्ता शर्माते हैं, लड़कियों से भी ज्यादा। जैसे मैंने बताया की ये मेरे जीजू हैं। बस सब जल रही थी,मार कूदी पड़ रही थी, और महक तो,…. और ये शर्माकर गुलाल हो रहे थे…”

और अब गुंजा ने जिस तरह से मेरी ओर देखा तो मैं सच में शर्मा गया। और गुंजा और चंदा भाभी दोनों खिलखिला पड़े।



बादल छंट गए, हल्की सी चांदनी आसमान में मुश्कुराने लगी।



चंदा भाभी मुश्कुराते हुए मेरा हाथ पकड़कर बोली- “आने दो इनको होली के बाद। फिर सब शर्म वर्म उतार देंगे…”



गुंजा ने मुझे छेड़ते हुए कहा- “इनके साथ तो वो भी आने वाली हैं। इनकी बहन कम। …”



चंदा भाभी हँसते हुए बोली- “तभी तो। दोनों की साथ-साथ उतारेंगे ना…”



बाहर बरामदे में घचर पचर मची थी। दूबे भाभी, संध्या भाभी, बाकी पड़ोसने। गुड्डी ने सबको संक्षिप्त और सेंसर्ड वीरगाथा सुना दी थी। चुम्मन के साथ मेरी चोट और डी॰बी॰ का जिक्र सेंसर कर दिया गया था।



लेकिन सभी गुंजा से मिलने को व्याकुल थी।

लेकिन चन्दा भाभी को मैंने इशारा कर दिया था की पब्लिक के लिए क्या कहना है, मैं नहीं चाहता था की पुलिस का जो ऑफिसियल नैरेटिव है उससे अलग कुछ हो, तो मैंने साफ़ बोल दिया," अरे यह सब तो गुंजा की बातें हैं, असली काम तो पुलिस ने किया, बस वो कप्तान साहेब मेरी जान पहचान के हैं इसलिए मैं और गुड्डी पहुँच गए थे और जब ये लोग निकली तो मैं अपने साथ ले आया।

चंदा भाभी और गुंजा बाहर निकली और पीछे-पीछे मैं। चंदा भाभी और गुंजा को पड़ोसिनों ने गड़प कर लिया और एक बार फिर कहानी चालू हो गई।
 
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komaalrani

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स्थिति तनावपूर्ण किन्तु नियंत्रण में है और बातें पड़ोसिनों की,


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मैं दूर कोने में चला गया की कहीं कोई महिला मुझे ही चैनेल के पत्रकार की तरह पकड़ ले और मेरा वर्सन जानने की कोशिश करने लगे।

चंदा भाभी समझदार थीं और कुछ उन्हें गुड्डी और गुंजा ने समझा भी दिया था की जो कहानी टीवी पर है बस वही, और ज्यादा से ज्यादा ये की मैं और गुड्डी बाजार में थे, तो बस वहीँ ये सब सुना तो स्कूल पहुँच गए थे और जैसे ही गुंजा छूटी मैं और गुड्डी उसे ले आये। गुंजा को कुछ नहीं हुआ,



लेकिन जरूरी यह था की मैं उन पडोसनो के सामने न पडूँ वरना मेरी खिंचाई तो होती ही, मुझसे भी सवाल जवाब होते तो मैं चंदा भाभी के कमरे में , उसी बिस्तर पर, जहां कल रात चंदा भाभी ने बिस्तर पर न सिर्फ मेरी नथ ही नहीं उतारी बल्कि कबड्डी के सारे पाठ पढ़ा दिए थे और अपनी बचपन की कहानी भी सुना दी थी की कैसे जब वो गुंजा से भी छोटी थीं, उनकी चिड़िया उड़ने लगी थी, पड़ोस के एक जीजा ने, उनकी भाभी के साथ मिल के,



लेकिन मैं इस समय वो सब नहीं सोच रहा था, कोई भी ये नहीं सोच सकता था, लेकिन मेरे कान बाहर औरतों की बातों में लगे थे , सब एक से एक बढ़ के किस्से और सब देवी देवता मना रही थीं की गुंजा को कुछ हुआ नहीं, लेकिन गुंजा की मम्मी से नहीं रहा गया, वो बोलने लगी,



" अरे बिन्नो के देवर हैं न, आये थे गुड्डी को ले जाने अपने साथ बिन्नो के यहाँ आजमगढ़, वो थे न वहां , अरे गुंजा के जीजा हैं, आज सुबह से तो बस,…., "

मैं डर रहा था की कहीं चंदा भाभी जैसे गुंजा ने मेरी वीरगाथा सुनाई थी, कहीं वो सब, ….मेरा वहां घुसना एकदम अनऑफिशियल था और बस डीबी के चक्कर में हुआ था, और ये मैं भी जानता था की इस बात की भनक भी कहीं किसी को नहीं लगनी चाहिए थी। पर भाभी समझदार थीं और उससे बढ़कर गुड्डी,

तो गुड्डी मौके पे पहुँच गयी चाय लेके और पहला प्याला चंदा भाभी को पकड़ाया

और कुछ गुंजा के मुंह से सुनना चाहती थीं और कुछ गुंजा और चंदा भाभी की हितैषी बनने के बहाने, अपने शक की पुष्टि चाहती थीं की लड़कियों को इतने देर पकड़ के रखा था तो क्या ' बिना कुछ किये ' छोड़ा होगा, तो एक ने गुंजा से ही साफ़ साफ़ पूछ लिया

" चलो अच्छा हुआ बच गयी, कुछ तुमको, पुलिस ने डाक्टरी वाक्टरी तो की होगी, छुड़ाने के बाद, की कहीं, "

वो शायद रिश्ते में गुंजा की भाभी लगती थीं, इस लिए इस तरह खुल के और गुंजा भी खुल के हँसते हुए बोली, " अरे नहीं भौजी कुछ नहीं, और डाक्टरी वाक्टरी तो छोड़िये, एक सवाल तक नहीं किया। मेरे जीजू थे न, बस उनके साथ वापस, "

चंदा भाभी ने फिर ' मेरे जीजू' का राज खोला, " अरे वही बिन्नो के देवर, कल आये थे गुड्डी को ले जाने, होली की छुट्टी के लिए, बस इन सबो ने रोक लिया,"

लेकिन कुछ पडोसीने अपना किस्सा सुनाने के लिए ज्यादा व्याकुल थीं, स्कूल में फंसी तीन लड़कियों की दास्तान तो कई बार टीवी पे सुन चुकी थीं और सिर्फ इस बात की पुष्टि के लिए आयी थीं की उन तीन में उन के मोहल्ले की दर्जा नौ वाली गुंजा भी थी, फिर बाकी मोहल्लों में नमक मिर्च के साथ, लेकिन जिस तरह चंदा भाभी और गुंजा दोनों ने बोला, ' कुछ हुआ ही नहीं ' कहानी का सेक्स ही ख़तम हो गया, तो उन लोगों ने फिर अपनी बातें शुरू कर दी.

एक बोली और बात शहर के माहौल और टेशन की ओर मुड़ गयी और मेरे कान भी खड़े हो गए,
 
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komaalrani

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पडोसीने

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और पडोसीने भी बोलने को ज्यादा उत्सुक थीं,

" हमको तो लग रहा था आज दंगा होगा जबरदस्त, इतना टेंशन, सड़क पर न मनाई दिख रहा था न जानवर , और टीवी वाले बोल भी रहे थे जो हमार त्यौहार ख़राब किये हैं उनकी तो माँ बहिन कउनो नहीं बचनी चाहिए। "



दूसरी बोलीं, जो लोकल चैनल लगता है देख रही थीं और उसी की समर्थक थीं, " अरे हम तो कह रहे हैं हो जाना चाहिए, चुन्नी के पापा बोल रहे थे, अबकी तैयारी पूरी है, अगल बगल के गाँव वाले भी बस इशारे का इन्तजार कर रहे हैं, और हमरे एक रिश्तेदार पी ए सी में हैं बोल रहे थे, बस दो घंटा मिला जाए, हम लोगो की ड्यूटी ओहि मोहल्ला में लग जाए , दुनो ओर से एक एक गली घेर के एक एक घरे से निखारेंगे

और तीन पीढ़ी को साथ साथ अइसन फाड़ेंगे, अगवाड़ा पिछवाड़ा, दस साल क छुट्टी हो जायेगी,"



कोई जो हर मौके पे खुल के मजाक करती थीं, बोली, " अरे ससुरी को तो मजा ही हो जाएगा, अभी आधे तीहै से काम चलाती हैं, पूरा मिलेगा तो गपागप खुदे, महतारी बिटिया साथ साथ



लेकिन उन्हें लगा की मामला अभी नहीं गरमा रहा है तो उन्होंने दो चार लकड़ी और लगाई, थोड़ी आग और सुलगायी और हवा की, कल की बातें और मन की भावना, बोलीं



" भूल गयी, अभी बहुत दिन नहीं हुआ, मंदिर में, स्टेशनवा पे, ट्रेनिया पे एक साथ बम्ब फूटा था, कितने लोग मरे थे, पूरा बनारस "

और ये कह के वो चुप रह गयीं और असर देखने लगीं, बात तो सही थी, बहुत दिन नहीं हुए थे और सब लोगों का कुछ न कुछ जुड़ाव, तनाव थोड़ा और बढ़ गया था, पर एक महिला जो शायद मोडरेट दल की थीं या किसी कारण से उन की बात काटना चाहती थीं, माहौल के खिलाफ जाकर,



" लेकिन,"



बस उनके मुंह से लेकिन का निकलना था की वो ड्रैगन की महिला अवतार, एकदम से चालू हो गयी और पूरा महिला समाज जैसे उनके साथ



" लेकिन का, लेकिन, यही लेकिन के मारे न, अरे यही कहोगे न की वो सब यहाँ के नहीं थे, बनारस के नहीं थे, बाहरी थे, आतंकवादी, तो ससुरे आतंकवादी को रस्ता कौन बताता है, यहीं वाली सब न। ये तो पता चला था न की सब बुरका पहिन के इधर उधर जगह देखे थे. तो ये ससुरे बुरकवा का ओह पार से अपनी मुमानी का लियाये था या अपनी बहिन महतारी का, यहीं क कुल बुरके वाली छिनार थीं, रोटी पोय पोय के खिलाती थीं, रात में अपने गोदी में सुलाती थीं और फिर आय के वो सब, " गुस्से में उनसे बोला नहीं जा रहा था,

एक कोई लड़की थी, गुड्डी के ही उम्र की, खिलखाती बोली, " पहनती हैं सर पे, कहती हैं बुर का "

और माहौल थोड़ा हल्का हुआ, लेकिन एक कोई और पड़ोसन ने हाँ में हाँ मिलाते हुए बात आगे बढ़ाई,

" अरे सबसे अहले ये तम्बू कनात वालीन क बुरिया का इलाज होना चाहिए, एक बार उनकी आग ठंडी हो जाए तो कुल ससुर का नाती क गरमी निकल जायेगी, बहरे तो तम्बू कनात ओढ़ के निकलेंगी और घरे में गपागप, गपागप, अरे खाली दूध क बेराव है, चचेरा ममेरा फुफेरा, कउनो ना छोड़ती, सबके आगे, "

" अरे दूध का भी का, कहेंगी भैया तो दाएं वाले से पीये थे, हम बाएं वाले से पीये हैं " किसी ने और माहौल को हल्का बनाने की कोशिश की, फिर बात थोड़ी देर तक गुंजा की ओर मुड़ गयी, और सब लोग मार पुलिस की तारीफ़ की लड़की बच गयी, और ये होली के मौके पे मास्टराइन कुल काहें क्लास रखती हैं, सालो भर तो अपने यारों के साथ मस्ती करेगीं, टूशन पढ़ाएंगी



लेकिन वो ड्रैगन की अवतार महिला, जिनका जबरदस्त कनेक्शन था, कुछ ज्यादा ही ज्ञानी थीं और बात को उसी ओर ले आयीं



" अरे पुलिस नाम नहीं बताई लेकिन इनको तो सब पता चल जाता है, चुन्नी के बाबू बोल रहे थे जो गुंडवा पकड़ा गया है वो भी, सोनारपुरा का, और उसकी महतारी "



मुझे आपने कान पर विश्वास नहीं हुआ, डीबी ने चुम्मन के बारे में बातें इतनी छुपाने की कोशिश की लेकिन, इसका मतलब बहुत जगह से बहुत बातें लीक भी हो रही हैं, फिर मुझे लगा की चुम्मन की माँ ने लाउड स्पीकर पर जिस अंदाज में बोला था तो मिडिया और पुलिस वालों को अंदाज तो हो ही गया होगा, फिर दो से दो लोग जोड़ ही लेते हैं



" लेकिन टेंशन बहुत है, हमको तो लग रहा है कहीं दंगा फसाद न हो जाए " वो लेकिन वाली बोलीं।

" अरे हो जाए तो हो जाए अबकी ससुरे थूरे जाएंगे " कोई ड्रैगन की सहेली बोलीं।
 
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komaalrani

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गुड्डी

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और अब बात दूसरी ओर मोड़ गयी और मेरा ध्यान भी,

क्योंकि कमरे में गुड्डी आ गयी थी, चाय ले कर

और गुड्डी की महक लगते ही अब मुझसे पहले जंगबहादुर सनक जाते थे, फड़फड़ाने लगते थे, एक तो उन्हें अब मुंह में खून लग गया था, पहले चंदा भाभी कल रात और आज दिन में संध्या भाभी। दूसरे, गुड्डी तो गुड्डी तो थी, जब मन उसके कब्जे में था तो तन तो होना ही था। लेकिन एक फरक पड़ा, पहले बहुत निहोरा करवाती थी, लेकिन आज खुद ही धप्प से मेरी गोद में बैठ गयी, मेरी ओर मुंह करके और छेड़ते हुए बोली,

" यार तू भी न, अभी रोओगे की मीठी कम है तो चल एक चम्मच चीनी और, " और अपने होंठ उसने लगा दिए और सुड़क कर थोड़ी सी पी भी ली, और जोड़ा, " तेरे लिए नहीं बनी थी, पडोसीनो के लिए बनाई थी और इसलिए की जितनी देर चाय पियेंगी, लेकिन तेरी वो दयालु चंदा भाभी अपने देवर पे दया करके बोलीं, ' जा दे आ उस बेचारे को भी अंदर बैठा होगा ' , तो इसीलिए बेचारे को चारा खिलाने के लिए आ गयी " और अपने हाथ से मुझे कप पकड़ कर पिलाने लगी।



और चारा भी क्या था उस के पास, मेरे हाथ तो दूसरे कप्स की साइज नापने में व्यस्त थे। और वो मुझे हड़काने में। लेकिन फिर पता नहीं कैसे मूड बदला और प्याला हटा के बची चाय खुद सुड़क गयी और कस के एक चुम्मी लेके बोली,

" स्साले, तेरी सारी बहनों की फुद्दी मारुं, गुंडों के आगे तो तेरा हाथ खूब चलता है "



मैं फूल के कुप्पा हो गया, गुड्डी ने खुद देखा था कैसे शुक्ला के चमचो को और खुद उसको, फिर गुंजा ने बताया होगा चुम्मन के बारे में, लेकिन गुड्डी कुछ और बोल रही थी और उसने हाल साफ़ किया वो सैयद चच्चू के मकान से ऊपर से जो फेंका था, क्या मस्त स्साले तूने कैच किया, मजा आ गया, लेकिन ये बोल की किसके पकड़ पकड़ के प्रैक्टिस करता था, अपनी उस बहिनिया, अनारकली ऑफ़ आजमगढ़ के, जिसके लिए बनारस के कितने लौंडे अभी से मुठिया रहे हैं, लेकिन उसके तो बस टिकोरे से रहे होंगे और टिकोरे और आम तो तुझे पसंद नहीं है

गुड्डी को चुप कराने का एक ही तरीका है , मैंने कस के उसे चूम लिया और मेरी जीभ उसके मुंह के अंदर और वो भी मजे से चुभलाने लगी, फिर बोली,

" स्साले, तेरी बहन की, गुंडे वुंडे तो ठीक हैं, आज चंदा भाभी भी तेरी वीरगाथा सुना रही थीं, लेकिन ये स्साले ये कल कल की पैदा हुयी लौंडियों के आगे तेरी फटती है, जुबान नहीं खोलती सब बिना तेल लगाए तेरी ले लेती हैं और तुझे निहुर के देने में मजा भी खूब आता है। ये गुंजा की सहेलियां दोनों, क्या रगड़ रही थीं, तेरी जितना ले रही थीं, उतना ही मुझे मजा आ रहा था। "

अब मैं क्या बोलूं की मैंने सीख लिया था की बनारस वालियों के आगे जुबान नहीं खोलनी चाहिए और अगर कहीं से भी साली लगने का चांस हो तो एकदम नहीं।

लेकिन मैं और कुछ बोलना चाहता था वो मैंने बोल दिया, " यार कब तक निकलेंगे, आजमगढ़ पहुँचते देर हो जायेगी"



मेरी नाक पकड़ के घुमाते, मेरी गोद में बैठे बैठे वो बोली, " मिठाई खाने को ललचा रहे हो बाबू " फिर उस का मूड घूमा , मुस्करा के एक चुम्मा फिर से लिया, और मीठा मीठा बोली

यार मन तो मेरा भी कर रहा है , जल्दी पहुँचने का लेकिन, तूने सुना तो ये औरते क्या कह रही हैं, सड़क पर एकदम सन्नाटा है, कभी कुछ भी, और हम लोगो पर भी तो रास्ते में दो दो बार, वो तो तुम थे, और अभी मैंने महक के ड्राइवर को फोन भी किया था, वो बोला, ' लहरबैर तक आ गया था, लेकिन कुछ लौंडे सड़क पर टायर जला रहे हैं, और लाठी डंडा ले के, कोई भी गाडी आती है तो उसी का पेट्रोल निकाल के, वो कबीर चौरा की ओर मुड़ गया। बोला है की जैसे रास्ता खुलेगा, तो बोलो कैसे निकलेंगे, लेकिन घबड़ा मत कुछ होगा जल्दी, मिलेगा, मिलेगा बेसबरे। "

फिर वो सारंगनयनी जिस तरह से देख रही थी, मेरी हालत खराब हो गयी, मैं ही शर्मा गया और वो जोर से खिस्स से हंस दी। और हलके से मेरे गाल पे चपत मार के बोली, " बुद्धू, चुबद्धु, मैं तो दो साल पहले नौवें में थी तब से देने के लिए तैयार थी, तेरे पाजामे का नाड़ा खोल के अंदर हाथ मैंने ही डाला था, उसे पकड़ा भी था, बाहर भी निकाला था "

और साथ में जैसे अपने आप उसके छोटे छोटे नितम्ब मेरे खड़े खूंटे पे हलके हलके चक्की की तरह चलाने लगी।

बात गुड्डी की बिलकुल सही थी, हम लोग खाट की पाटी से पाटी मिला के सोते थे, और रात में देर तक बात करते थे। गर्मी की रातें, चौड़े से बरामदे में, बस पंखा चलता रहता, और हम दोनों, और नीचे की मंजिल पे सिर्फ हमी दोनों, भैया भाभी ऊपर के मजिल के पाने कमरे में , भैया तो नौ बजे के पहले ही ऊपर, खाना भी वहीँ और भाभी भी साढ़े नौ बजते बजते, फिर सुबह साढ़े छह के बाद ही उनका दरवाजा खुलता था। और मैं बड़ी हिम्मत कर के जब लगता वो सो गयी है तो उसके फ्राक के ऊपर से, बल्कि एक दो इंच पहले ही उँगलियाँ शं कर रुक जातीं, कहीं जग गयी तो, और वो रुई के फाहे ऐसे गोल गोल, और एक दिन गुड्डी ने मेरी चोरी पकड़ ली, मेरा हाथ पकड़ कर अपने हाथ से फ्राक के ऊपर से, पहले तो हलके हलके दबाया, फिर हाथ खिंच कर फ्राक के अंदर, सीधे बस आते हुए उरोजों पे

अगले दिन गुड्डी ने नाड़ा भी खोल दिया,

खिलखिला के मेरी गोद में बैठे अपने दोनों हाथ मेरी गर्दन में दाल के बोली, " ये बुद्धू मेरे ही पल्ले पड़ना था , डरते थे न की कही तेरी भाभी न "

उसकी बात काटते हुए मैंने कबूला " हाँ, बहुत डर लगता था , की कहीं भाभी ऊपर से आ गयीं इसलिए "

" डरपोक, " खिलखिला के वो बोली, फिर जोड़ा " कैसे आ जातीं, उन लोगो की चक्की सारी रात चलती है, कम से कम तीन राउंड, कहीं चार पांच बजे तो सोती हैं तभी तो दिन भर जम्हाई लेती रहती है। और फिर उन की चप्पल,चटर पटर, कमरे से उनके निकलते ही पता चल जाता है, फिर सीढ़ी से नीचे उतरते पांच मिनट लगता है कम से कम "

अबकी मैंने चुम्मा लिया, कुछ झेंप के कुछ बात टालने के लिए लेकिन गुड्डी बोली " यार तेरे ऊपर दया आ गयी थी, मैं रोज देखती थी ये बेचारा देख देख के ललचा रहा है, न मांगने की हिम्मत है न छूने की तो मैंने सोचा चलो मैं ही इसका भला कर दूँ "
 
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komaalrani

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बाहर की हालत
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लेकिन आगे की बात वहीँ कट गयी, बाहर से दूबे भाभी की आवाज सुनाई पड़ी " अरे गुड्डी क्या कर रही है , थोड़ा चाय बना ला " और गुड्डी प्याला ले कर तीर की तरह बाहर, हाँ दो चार काम पकड़ा दिए मुझे।

मैं समझ गया की कुछ नयी पडोसने आयी है कुछ शायद नई बातें पता चलें और पता चली भीं

वो जो कह रही थीं की अबकी ' उन सबो की माँ बहिन सब चोदी जाएंगी " एक बार फिर से गर्जना कर रही थीं " अरे अबकी सब तैयारी पूरी है, वोटर लिस्ट ले के एक एक घर का नाम है केकरे यहाँ १८ साल से ऊपर वाली कितनी हैं, दो दिन से तो पेट्रोल इकठ्ठा हो रहा है, अरे हम तो कहे की उमर वूमर का देखना, सांप का सँपोलियाँ भी तो सांप ही जनेंगी, जिनकी झांट भी न आयी हो, उन सब को भोंसड़ी वाली बना के छोड़ना, लेकिन राशन वाशन हफ्ते भर का इकठ्ठा कर ल्यो, अभी गली वाली दो चार दूकान खुली हैं एक बार कर्फ्यू लग गया न तो हफ्ते भर से पहले उठेगा नहीं और असली रगड़ाई तो कर्फ्यू में ही होगी "



एक तो पहले आयी औरतों में से आधी चली गयी थीं, और कई चुप रहने में अपनी भलाई समझती थीं और कुछ सोचती थीं की इनसे काम पड़ता रहता है , पति उनके कार्पोरेशन के पार्षद और पार्टी में कुछ थे।



लेकिन अभी आयी औरतों में से कोई उनके टक्कर की थी, गुड्डी से चाय की प्याली लेने के बाद वो भी आग उगलने लगी, " अरे कहाँ पुराना रिकार्ड बजा रही हैं , कोई कर्फ्यू वर्फ्यू नहीं लग रहा है, बाहर निकल कर देखिये सब दुकाने खुल रही हैं "

लेकिन पहले वाली ऐसे कैसे मान लेती तो दूसरी वाली ने सबूत भी पेश कर दिया,



मैं कान पारे सुन रहा था और वो बोल रही थीं " अभी ये लहुराबीर से आ रहे हैं मैंने इनसे बोला था की राजपूत की दूकान से अरे वही प्रकाश टाकीज के सामने वाली से , आधा किलो रसगुल्ला ले आइयेगा। "

गुड्डी की मम्मी को भी बहुत पसंद था , एक दो बार मैं ले भी आया था, लेकिन मैं आगे की बात ध्यान से सुन रहा था और वॉल बोली

" हम को तो उम्मीद नहीं थीं, की यही बेचारे आ पाएंगे,, लेकिन ये तो पूरा एक किलो रसगुल्ला ले आये, बोले दूकान उस की खुल गयी और होली के उपलक्ष में १० % की छूट और आज तो पंद्रह परसेंट, ये बड़े बड़े रसगुल्ले , बोले अभी दस मिनट से रिक्शा, औटो सब चल रहा है , कम है लेकिन है "



दूसरी बोली, " अरे हम भी परेशान थे, कर्फ्यू का ऐसा बात चल रहा था, और हम तो मना रहे थे, इनका तो रोज का काम है , चार पंच्च दिन बंद हो गया तो मुश्किल हो जाती है। "



और मैंने भी चैन की सांस ली, गुड्डी ने बोला था की लहुराबीर में कुछ टेंशन था जिससे महक का ड्राइवर जो हमारा सामने लाने गया था , फंस गया था , लेकिन अगर वो रास्ता खुल गया तो दस बीस मिनट में ड्राइवर यहाँ और आधे घंटे नहीं हुआ तो घंटे भर में निकल लेंगे , दो ढाई घण्टे का रास्ता, रात होते होते पहुँच जाएंगे।
 
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komaalrani

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. फिर से टीवी चैनल
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तभी मुझे याद आया की सिद्द्की से बात कर लूँ , की हम लोग पहुँच गए हैं और उनसे रस्ते का हाल भी मालूम हो जाएगा



सिद्दीकी को मैंने फोन लगाया, एकदम रिलेक्स और नेपथ्य की आवाजें भी एकदम रिलेक्स, डीबी की समोसे का आर्डर देने की आवाज सुनायी पड़ी। कुछ सिद्द्की की बातों से और कुछ पीछे की आवाजों से मैंने थोड़ा बहुत अंदाजा लगा लिया ुर मेरी चिंता बहुत कम हो गयी ।



अब जल्दी ही हम घर जा सकते हैं, लेकिन मैंने कुछ पुष्टि के लिए कुछ मजे के लिए मैंने टीवी न्यूज लगा ली , और सबसे पहले वही जो दंगाई का ऑफिसियल चैनल लग रहा था , वही बनारस लोकल नेटवर्क, वही जो थोड़ी देर पहले आग उगल रहा था,

अब ऐंकर ड्रैगन से टक्कर तो नहीं ले रही थी , पर उस की आवाज और आँखों में अंगारे निकल रहे थे। और जो वो बोल रही थी,



स्थिति तनावपूर्ण लेकिन पुलिस के अनुसार नियंत्रण में



बार बार बंद दुकाने दिखाई जा रही थीं, सूनी सड़के और कहीं कही जलते टायर और उन के सामने खड़े एंकर बुझ रही ाहग को सुलगना चाहते थे।

लेकिन दो मिनट ध्यान से देखने पर ही पता चल गया, ये सब थोड़ी पहले की रिकार्ड की हुयी या फ़ाइल फोटुएं थीं। फिर अचनाक एक न्यूज के बीच से ही ब्रेक आ गया, कोई लोकल विज्ञापन था और मैंने दूसरे चैनल लगाए।



बनारस की कोई खबर ही नहीं थी ।



एक दो जो एकदम पुलिस के पीछे पड़े थे थोड़ी देर पहले तक उन चैनेल्स पर भी, खुली हुयी दुकाने, ट्रैफिक दिख रहा था। हाँ बनारस को देखते हुए ट्रैफिक थोड़ा हल्का था लेकिन बढ़ रहा था। दुकानों पर भीड़ कम थी, कहीं एक्का दुक्का तो कही चार पांच लोग , और हाँ जो पद्रह % मिठाई के डिस्काउंट की बात थी, वो सिर्फ राजपूत पर नहीं थी और भी कई दुकानों पर , जलजोग , क्षीरसागर सब जगह उस की नोटिस दिखीं।



मैंने फिर उस आग जलाऊ चैनल को टकटोरा, लेकिन वहां अभी भी विज्ञापन चल रहा था, और जब विज्ञापन बंद हुआ तो मैं अचरज से भर गया ,



एंकर वही आवाज नयी, अब लाइव टेलीकास्ट था, खुली दुकाने, ट्रैफिक बाजार और बार बार ' स्थिति एकदम समान्य है :



मैं समझ गया उस ब्रेक में कोई न्यूज एडिटर के कान उमेठ रहा था, ऐंकर तो सिर्फ एक्टिंग करती है, टेलिप्रॉम्पटर से देख र न्यूज पढ़ती है और आग उगलती है, और वो आग वाला टैप बंद हो गया था, टेलीप्रॉम्प्टर पर अब कुछ और लिखा नजर आ रहा था।

अब मुझे विशवास हो गया की बस अब थोड़ी देर में हम लोग, मैं और गुड्डी आजमग़ढ के लिए चल देंगे।
 
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Shetan

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फागुन के दिन चार भाग ३६

वापस -घर
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गुड्डी ने रास्ते में बता दिया की उसने चंदा भाभी को और रीत को फोन कर दिया था की गुंजा हमारे साथ है, एकदम सेफ है। हमलोग 10 मिनट में पहुँच रहे हैं और उसे छोड़कर तब जायेंगे।



रास्ते में अभी भी सन्नाटा था। बस दो-चार चाय की दुकानें खुली थी। चौराहों पे लोग इकठा थे, एक्की-दुक्की गाड़ियां चल रही थी।लेकिन जैसे ही हमारी बाइक औरंगाबाद में मुड़ी, और फिर गुड्डी के घर की ओर माहौल थोड़ा बदला बदला सा था, एक तो दो ट्रक पीएसी और एक आर ए ऍफ़ की थीं और पीएसी के जवान एकदम मुस्तैद थे। फिर गुड्डी की गली के बाहर , एक टुकड़ी कुछ कमांडेट लेकिन पुलिस के बंदोबस्त से ज्यादा लग रहा था, या तो हवा बदल रही थी या बाहर की जहरीली हवा का असर अभी भी उस मोहल्ले तक नहीं पहुंचा था। कुछ कुछ दुकाने आधी तीही खुली हुयी थीं, कुछ के शटर खुल रहे थे, लोग गलियों में खड़े होकर बातें कर रहे थे। हाँ टीवी पर आकर अभी भी थके नहीं थे, उसी तरह चीख चीख कर बोल रहे थे।



हम लोग 5-7 मिनट में ही चंदा भाभी के घर पहुँच गए।



वो नीचे इंतजार कर रही थी। दोनों ने एक दूसरे को देखा, और फिर बाँध टूट पड़ा।



गुड्डी घर के अन्दर चली गई।



गुंजा अपनी माँ की बाँहों में सिमट गई और सुबक-सुबक के रोने लगी। चंदा भाभी ने भी उसे अपनी बाहों में भींच लिया और बिना बोले उनके गाल पे भी आँसू की धार बह निकली।



मैं दो मिनट चुपचाप खड़ा रहा।



बिन बोले बहुत कुछ वो कहती रही, सुनती रही। गुंजा ने मुड़कर एक पल मेरी ओर देखा, हल्के से मुश्कुरायी और आँसू पोंछ लिए।
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“ऊपर चलें…” मैंने भी मुश्कुराकर बोला और उसके कंधे पे हाथ रख दिया।

सीढ़ी से हम लोग ऊपर चल दिए और सीधे चंदा भाभी के कमरे में, और एक बार फिर गुंजा ने अपनी माँ को भींच लिया। चंदा भाभी उसकी पीठ, सिर सहलाती रही।

गुंजा दो पल के बाद मुड़ी और मेरी ओर देखकर बोली- “मम्मी, ये अगर नहीं पहुँचते तो। पता नहीं क्या हालत होती? मैं आपको देख भी नहीं पाती…”

गुंजा भी जानती थी की क्या बताना है क्या नहीं बताना, लेकिन माँ बेटी में कुछ छिपता है क्या ? चुम्मन के क्लास में आने से लेकर बम के फटने तक की पूरी दास्तान, हाँ मेरी वीरगाथा, थोड़ी बढ़ा चढ़ा कर ही, और मैं जैसे वापस उन पलों में लौट गया था,



आज सच में गुंजा कितनी बार बची। पहले तो जिस तरह से गुंजा, महक और शाजिया, और गुंजा एकदम बीच में बेंच पर, और नीचे वो बम, और अब उस बम के शक्तिशाली होने के बारे में किसी को शक नहीं हो सकता था, निश्चित रूप से वो एकदम लोकल नहीं था, जब फटा तो स्कूल की एक पूरी दीवार तो गिरी ही, उसकी शॉकवेव्स, हमने सीढ़ियों पर भी महसूस की और उसके झटके से बंद दरवाजा बीसो फुट दूर जा गिरा, और अगर वह बम्ब तब फटता जब गुंजा, उस बेंच पर होती ?



मैं सोच भी नहीं सकता था, पर गुंजा बार बार उन पलों को फिर से जी रही थी,

और निकलते समय भी, शाजिया और महक तो बच के साफ़ निकल गयी थीं, लेकिन गुंजा के निकलते समय चुम्मन आ गया था और उसका चाक़ू का निशाना, ये तो ऐन वक्त पर मैं उसके ऊपर गिरा, उसे छाप लिया और चुम्मन का चाकू मेरे बांह पर लगा वरना वो शर्तिया गुंजा को लगता और फिर,



फिर सबसे ज्यादा खतरा तो गली में, दो बार हमला, और दोनों बार वो बाल बाल बची, मैं सोच सकता था उस की हालत,

बात ख़तम होने के पहले ही गुंजा एक बार अपनी माँ की छाती में दुबक के, बस



और फिर



गुंजा अब मुड़कर मेरे गले से लिपट गई। वो अभी भी हल्के-हल्के सुबक रही थी।

चंदा भाभी मुझे बस देख रही थीं जैसे क्या कहें कुछ समझ में नहीं आ रहा हो और उनकी चुप्पी में एक सवाल भी था।

मैं बोला- “कुछ नहीं हुआ वहाँ। ये तीनों बस बैठी थी। गुंडों ने छुआ तक नहीं इसे। खरोंच तक नहीं लगी इसे।“

गुंजा और मेरी बाँहों में दुबक गई और हल्के से मुश्कुराने लगी।

और मैंने अब गुंजा को खूब कसकर भींच लिया और एक उंगली से उसकी आँख की कोर से लटक रहे आँसू को तोड़ दिया।

लेकिन चंदा भाभी के लिए इत्ती देर सीरियस रह पाना बहुत मुश्किल था, बोल वो गुंजा से रही थीं लेकिन तीर के निशाने पर मैं ही था।

" तेरे जीजू की तो चांदी हो गयी हो होगी, दो और जबरदस्त साल । याँ, महक तो महक, शाजिया भी कम नहीं है। मौके का फायदा उठाया होगा तेरे जीजू ने "



सच में महक के रुई के फाहे ऐसे गोल गोल उभार, और कैसे खुद खींच कर उसने अपने स्कूल यूनिफॉर्म के टॉप के ऊपर से कस के दबा दिया था और शाजिया कौन सी कम है, दोनों ने होली के बाद की बुकिंग अभी से कर ली है।



गुंजा छटक के मेरी बाहों से अलग हो गई.



लेकिन साली हो तो गुंजा ऐसी, महक के उभारों से लेकर मॉल में हुयी शरारतों का जिक्र वो गोल कर गयी और आँख नचा कर मुस्कराते हए चंदा भाभी से बोलने लगी- “आपके देवर इत्ता शर्माते हैं, लड़कियों से भी ज्यादा। जैसे मैंने बताया की ये मेरे जीजू हैं। बस सब जल रही थी,मार कूदी पड़ रही थी, और महक तो,…. और ये शर्माकर गुलाल हो रहे थे…”

और अब गुंजा ने जिस तरह से मेरी ओर देखा तो मैं सच में शर्मा गया। और गुंजा और चंदा भाभी दोनों खिलखिला पड़े।



बादल छंट गए, हल्की सी चांदनी आसमान में मुश्कुराने लगी।



चंदा भाभी मुश्कुराते हुए मेरा हाथ पकड़कर बोली- “आने दो इनको होली के बाद। फिर सब शर्म वर्म उतार देंगे…”



गुंजा ने मुझे छेड़ते हुए कहा- “इनके साथ तो वो भी आने वाली हैं। इनकी बहन कम। …”



चंदा भाभी हँसते हुए बोली- “तभी तो। दोनों की साथ-साथ उतारेंगे ना…”



बाहर बरामदे में घचर पचर मची थी। दूबे भाभी, संध्या भाभी, बाकी पड़ोसने। गुड्डी ने सबको संक्षिप्त और सेंसर्ड वीरगाथा सुना दी थी। चुम्मन के साथ मेरी चोट और डी॰बी॰ का जिक्र सेंसर कर दिया गया था।



लेकिन सभी गुंजा से मिलने को व्याकुल थी।

लेकिन चन्दा भाभी को मैंने इशारा कर दिया था की पब्लिक के लिए क्या कहना है, मैं नहीं चाहता था की पुलिस का जो ऑफिसियल नैरेटिव है उससे अलग कुछ हो, तो मैंने साफ़ बोल दिया," अरे यह सब तो गुंजा की बातें हैं, असली काम तो पुलिस ने किया, बस वो कप्तान साहेब मेरी जान पहचान के हैं इसलिए मैं और गुड्डी पहुँच गए थे और जब ये लोग निकली तो मैं अपने साथ ले आया।

चंदा भाभी और गुंजा बाहर निकली और पीछे-पीछे मैं। चंदा भाभी और गुंजा को पड़ोसिनों ने गड़प कर लिया और एक बार फिर कहानी चालू हो गई।
Are wah gunja ne to anand babu ki chandi kar di. Ab to hero jesa damad par mahor pakki hai. Unki bahaniya par to mazak nahi rukega. Par saliya to mil gai. Wow.

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Shetan

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स्थिति तनावपूर्ण किन्तु नियंत्रण में है और बातें पड़ोसिनों की,


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मैं दूर कोने में चला गया की कहीं कोई महिला मुझे ही चैनेल के पत्रकार की तरह पकड़ ले और मेरा वर्सन जानने की कोशिश करने लगे।

चंदा भाभी समझदार थीं और कुछ उन्हें गुड्डी और गुंजा ने समझा भी दिया था की जो कहानी टीवी पर है बस वही, और ज्यादा से ज्यादा ये की मैं और गुड्डी बाजार में थे, तो बस वहीँ ये सब सुना तो स्कूल पहुँच गए थे और जैसे ही गुंजा छूटी मैं और गुड्डी उसे ले आये। गुंजा को कुछ नहीं हुआ,



लेकिन जरूरी यह था की मैं उन पडोसनो के सामने न पडूँ वरना मेरी खिंचाई तो होती ही, मुझसे भी सवाल जवाब होते तो मैं चंदा भाभी के कमरे में , उसी बिस्तर पर, जहां कल रात चंदा भाभी ने बिस्तर पर न सिर्फ मेरी नथ ही नहीं उतारी बल्कि कबड्डी के सारे पाठ पढ़ा दिए थे और अपनी बचपन की कहानी भी सुना दी थी की कैसे जब वो गुंजा से भी छोटी थीं, उनकी चिड़िया उड़ने लगी थी, पड़ोस के एक जीजा ने, उनकी भाभी के साथ मिल के,



लेकिन मैं इस समय वो सब नहीं सोच रहा था, कोई भी ये नहीं सोच सकता था, लेकिन मेरे कान बाहर औरतों की बातों में लगे थे , सब एक से एक बढ़ के किस्से और सब देवी देवता मना रही थीं की गुंजा को कुछ हुआ नहीं, लेकिन गुंजा की मम्मी से नहीं रहा गया, वो बोलने लगी,



" अरे बिन्नो के देवर हैं न, आये थे गुड्डी को ले जाने अपने साथ बिन्नो के यहाँ आजमगढ़, वो थे न वहां , अरे गुंजा के जीजा हैं, आज सुबह से तो बस,…., "

मैं डर रहा था की कहीं चंदा भाभी जैसे गुंजा ने मेरी वीरगाथा सुनाई थी, कहीं वो सब, ….मेरा वहां घुसना एकदम अनऑफिशियल था और बस डीबी के चक्कर में हुआ था, और ये मैं भी जानता था की इस बात की भनक भी कहीं किसी को नहीं लगनी चाहिए थी। पर भाभी समझदार थीं और उससे बढ़कर गुड्डी,

तो गुड्डी मौके पे पहुँच गयी चाय लेके और पहला प्याला चंदा भाभी को पकड़ाया

और कुछ गुंजा के मुंह से सुनना चाहती थीं और कुछ गुंजा और चंदा भाभी की हितैषी बनने के बहाने, अपने शक की पुष्टि चाहती थीं की लड़कियों को इतने देर पकड़ के रखा था तो क्या ' बिना कुछ किये ' छोड़ा होगा, तो एक ने गुंजा से ही साफ़ साफ़ पूछ लिया

" चलो अच्छा हुआ बच गयी, कुछ तुमको, पुलिस ने डाक्टरी वाक्टरी तो की होगी, छुड़ाने के बाद, की कहीं, "

वो शायद रिश्ते में गुंजा की भाभी लगती थीं, इस लिए इस तरह खुल के और गुंजा भी खुल के हँसते हुए बोली, " अरे नहीं भौजी कुछ नहीं, और डाक्टरी वाक्टरी तो छोड़िये, एक सवाल तक नहीं किया। मेरे जीजू थे न, बस उनके साथ वापस, "

चंदा भाभी ने फिर ' मेरे जीजू' का राज खोला, " अरे वही बिन्नो के देवर, कल आये थे गुड्डी को ले जाने, होली की छुट्टी के लिए, बस इन सबो ने रोक लिया,"

लेकिन कुछ पडोसीने अपना किस्सा सुनाने के लिए ज्यादा व्याकुल थीं, स्कूल में फंसी तीन लड़कियों की दास्तान तो कई बार टीवी पे सुन चुकी थीं और सिर्फ इस बात की पुष्टि के लिए आयी थीं की उन तीन में उन के मोहल्ले की दर्जा नौ वाली गुंजा भी थी, फिर बाकी मोहल्लों में नमक मिर्च के साथ, लेकिन जिस तरह चंदा भाभी और गुंजा दोनों ने बोला, ' कुछ हुआ ही नहीं ' कहानी का सेक्स ही ख़तम हो गया, तो उन लोगों ने फिर अपनी बातें शुरू कर दी.

एक बोली और बात शहर के माहौल और टेशन की ओर मुड़ गयी और मेरे कान भी खड़े हो गए,
Yaha to chanda bhabhi par bhi impression jam gai. Ab guddi ke mammy ke kano tak bat pahochegi. Lekin gunja to pura pura bata rahi hai. Ab vese wakt par kaha kuchh hota.

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Shetan

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पडोसीने

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और पडोसीने भी बोलने को ज्यादा उत्सुक थीं,

" हमको तो लग रहा था आज दंगा होगा जबरदस्त, इतना टेंशन, सड़क पर न मनाई दिख रहा था न जानवर , और टीवी वाले बोल भी रहे थे जो हमार त्यौहार ख़राब किये हैं उनकी तो माँ बहिन कउनो नहीं बचनी चाहिए। "



दूसरी बोलीं, जो लोकल चैनल लगता है देख रही थीं और उसी की समर्थक थीं, " अरे हम तो कह रहे हैं हो जाना चाहिए, चुन्नी के पापा बोल रहे थे, अबकी तैयारी पूरी है, अगल बगल के गाँव वाले भी बस इशारे का इन्तजार कर रहे हैं, और हमरे एक रिश्तेदार पी ए सी में हैं बोल रहे थे, बस दो घंटा मिला जाए, हम लोगो की ड्यूटी ओहि मोहल्ला में लग जाए , दुनो ओर से एक एक गली घेर के एक एक घरे से निखारेंगे

और तीन पीढ़ी को साथ साथ अइसन फाड़ेंगे, अगवाड़ा पिछवाड़ा, दस साल क छुट्टी हो जायेगी,"



कोई जो हर मौके पे खुल के मजाक करती थीं, बोली, " अरे ससुरी को तो मजा ही हो जाएगा, अभी आधे तीहै से काम चलाती हैं, पूरा मिलेगा तो गपागप खुदे, महतारी बिटिया साथ साथ



लेकिन उन्हें लगा की मामला अभी नहीं गरमा रहा है तो उन्होंने दो चार लकड़ी और लगाई, थोड़ी आग और सुलगायी और हवा की, कल की बातें और मन की भावना, बोलीं



" भूल गयी, अभी बहुत दिन नहीं हुआ, मंदिर में, स्टेशनवा पे, ट्रेनिया पे एक साथ बम्ब फूटा था, कितने लोग मरे थे, पूरा बनारस "

और ये कह के वो चुप रह गयीं और असर देखने लगीं, बात तो सही थी, बहुत दिन नहीं हुए थे और सब लोगों का कुछ न कुछ जुड़ाव, तनाव थोड़ा और बढ़ गया था, पर एक महिला जो शायद मोडरेट दल की थीं या किसी कारण से उन की बात काटना चाहती थीं, माहौल के खिलाफ जाकर,



" लेकिन,"



बस उनके मुंह से लेकिन का निकलना था की वो ड्रैगन की महिला अवतार, एकदम से चालू हो गयी और पूरा महिला समाज जैसे उनके साथ



" लेकिन का, लेकिन, यही लेकिन के मारे न, अरे यही कहोगे न की वो सब यहाँ के नहीं थे, बनारस के नहीं थे, बाहरी थे, आतंकवादी, तो ससुरे आतंकवादी को रस्ता कौन बताता है, यहीं वाली सब न। ये तो पता चला था न की सब बुरका पहिन के इधर उधर जगह देखे थे. तो ये ससुरे बुरकवा का ओह पार से अपनी मुमानी का लियाये था या अपनी बहिन महतारी का, यहीं क कुल बुरके वाली छिनार थीं, रोटी पोय पोय के खिलाती थीं, रात में अपने गोदी में सुलाती थीं और फिर आय के वो सब, " गुस्से में उनसे बोला नहीं जा रहा था,

एक कोई लड़की थी, गुड्डी के ही उम्र की, खिलखाती बोली, " पहनती हैं सर पे, कहती हैं बुर का "

और माहौल थोड़ा हल्का हुआ, लेकिन एक कोई और पड़ोसन ने हाँ में हाँ मिलाते हुए बात आगे बढ़ाई,

" अरे सबसे अहले ये तम्बू कनात वालीन क बुरिया का इलाज होना चाहिए, एक बार उनकी आग ठंडी हो जाए तो कुल ससुर का नाती क गरमी निकल जायेगी, बहरे तो तम्बू कनात ओढ़ के निकलेंगी और घरे में गपागप, गपागप, अरे खाली दूध क बेराव है, चचेरा ममेरा फुफेरा, कउनो ना छोड़ती, सबके आगे, "

" अरे दूध का भी का, कहेंगी भैया तो दाएं वाले से पीये थे, हम बाएं वाले से पीये हैं " किसी ने और माहौल को हल्का बनाने की कोशिश की, फिर बात थोड़ी देर तक गुंजा की ओर मुड़ गयी, और सब लोग मार पुलिस की तारीफ़ की लड़की बच गयी, और ये होली के मौके पे मास्टराइन कुल काहें क्लास रखती हैं, सालो भर तो अपने यारों के साथ मस्ती करेगीं, टूशन पढ़ाएंगी



लेकिन वो ड्रैगन की अवतार महिला, जिनका जबरदस्त कनेक्शन था, कुछ ज्यादा ही ज्ञानी थीं और बात को उसी ओर ले आयीं



" अरे पुलिस नाम नहीं बताई लेकिन इनको तो सब पता चल जाता है, चुन्नी के बाबू बोल रहे थे जो गुंडवा पकड़ा गया है वो भी, सोनारपुरा का, और उसकी महतारी "



मुझे आपने कान पर विश्वास नहीं हुआ, डीबी ने चुम्मन के बारे में बातें इतनी छुपाने की कोशिश की लेकिन, इसका मतलब बहुत जगह से बहुत बातें लीक भी हो रही हैं, फिर मुझे लगा की चुम्मन की माँ ने लाउड स्पीकर पर जिस अंदाज में बोला था तो मिडिया और पुलिस वालों को अंदाज तो हो ही गया होगा, फिर दो से दो लोग जोड़ ही लेते हैं



" लेकिन टेंशन बहुत है, हमको तो लग रहा है कहीं दंगा फसाद न हो जाए " वो लेकिन वाली बोलीं।

" अरे हो जाए तो हो जाए अबकी ससुरे थूरे जाएंगे " कोई ड्रैगन की सहेली बोलीं।
पड़ोसन. सही नाम दिया इस अपडेट का. चार औरते मिल जाए तो उसे पंचायत कहते है. और यह पंचायत बड़े ख़तरनाक फेशले लेती है. हालत का बयान बड़ा ही कॉमेडियन लगा. माझा भी आया. यह हो जाता वो हो जाता.

कोमी दंगे फैलने का डर तो था. क्यों की वक्त त्योहारों का था. ऊपर से होस्टेज लड़कियां को कुछ हो जाता तो आतंक ही फेल जाता. लेकिन बातो बातो मे आनंद बाबू को यह तो पता चल गया की जो बाते DB छुपा रहे थे वो उजागर हो चुकी है.

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