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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग 247 - मेरा दिन -बूआकी लड़की पृष्ठ १५३९

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komaalrani

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जुलाई में इस कहानी के 3 भाग पोस्ट हुए

। भाग ३६ वापस -घर पृष्ठ ४१६ - ४ जुलाई
२ भाग ३७ और दंगा नहीं हुआ पृष्ठ ४१९ --- १६ जुलाई
३ भाग ३८, रीत और चुम्मन का मोबाइल पृष्ठ ४२४-२६ जुलाई
 

komaalrani

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Wonderful update Madam...proper thriller and suspense..with all the officers (Collector, SP, etc) being part of the story...
"Danga to nahi hua"...lekin ab shayad ab Guddi ke saath "danga hoga" as Chanda Bhabhi had suggested correctly :)

Good One Madam...

komaalrani
Thanks so much, as you have rightly surmised, it is a cocktail of sex and suspense, thrill and titillation and many things more. Thanks for the first comment on this post.

:thanks: :thanks: :thanks: :thanks: :thanks: :thanks: :thanks: :thanks:
 
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komaalrani

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छुटकी - होली दीदी की ससुराल में भाग १०३ इमरतिया पृष्ठ १०७६

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komaalrani

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Bohot badhiya.
Dekhte hai data se kya kya pata chalta hai.RDX Kahan se aayaa? Wo number kiska tha?? Kon master mind hai in ke pichhe???..

Sayad aage or bhi maza aane wala hai...



Bohot hi umda komal g.maza aa gayaa padh ke.jaise Surendra Mohan Pathak ka upanayas padh raha hu.
aapne ekdam shai kaha dher saare saaval aur un savaalo ka jaavb dhhondhti kahaani, jab lagata hai sb jawab mil gaye to naye saval aa jaate hain , aur aur abhi jassoi aur suspense thoda aur badhega agle kuch parts men

saath dene ke liye regular meri saari stories pe comments karne ke liye bahoot thanks
 

komaalrani

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komaalrani

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Agli update kab aayegi komal g
Agala Update koshish karungi ki aaj hi de dun lekin vo story ka part hoga bhi aur nahi bhi hoga, aur isliye us update ka koyi number nahi hoga lekin kahani jis shahar ke background par hai use samjahne ke liye vo update jaroori hai mool kahani men bhi tha isliye vo post hoga aur kahani ko aage badhaane vaala update bhi bas coming week men 9 August ke pahle
 

komaalrani

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aaj ka update same to same hai .
आप ऐसे सुविज्ञ रसिक पाठक हो तो कहानी लिखने की सब मेहनत सुफल हो जाती है है, सच में आप को कहानी एकदम याद है और उस के बाद भी आप का साथ मिल रहा है, और मैं कई बार कहती हूँ की मेरी कहानी के बहुत ज्यादा व्यूज नहीं है पाठक नहीं है, लेकिन जो भी थोड़े बहुत हैं उनके मन में वह कहानी घर बना ले, पात्र रच बस जाएं स्मृति में तो उससे बढ़ के कोई क्या चाहेगा,

आप की बात एकदम सही है, न सिर्फ इस भाग में बल्कि आगे कई भागों में जहाँ रीत है कहानी करीब करीब एकदम उसी तरह रहेगी, क्योंकि रीत का चरित्र जैसा था अब उसमे कुछ भी जोड़ना घटाना मुश्किल है, मैंने पहली बार के पुरुष के मुंह से , उसे नैरेटर बना के कहने को कोशिश की लेकिन नाम याद रह गया रीत का, तो रीत के साथ कुछ भी क़तर ब्योंत करना मुश्किल है इसलिए की

वो मेरी जान ले लेगी, खून पी लेगी और जो थोड़ा बहुत बचा वो उसके फैन, रीत की रीत, रीत ही जाने

लेकिन लम्बी कहानी में कुछ बार कुछ विसंगतियां हो जाती हैं जो रसज्ञ पाठको को कहीं न कहीं सालती हैं तो आप ही ऐसे एक मित्र पाठक ने जब यह कहानी फिर से मैंने पोस्ट करनी शुरू की तो उन्होंने इंगित किया और बात उनकी सही थी। रीत का एक जबरदस्त टीन रोमास, फिर एक ट्रेजेडी जिसने उसके जिंदगी एकदम बदल दी और फिर पुनर्मिलन इस कहानी के में बहुत आगे आया, आप को याद होगा।

और वो कहानी का एक इम्पोर्टेन्ट हिस्सा है

लेकिन कहानी के शुरू में रोमांस तो गुड्डी के साथ है लेकिन रीत का भी जिक्र कहीं कहीं लगभग रोमांटिक ढंग से आया है और एक सेक्स सिन भी आनंद बाबू का रीत के साथ होली वाले प्रसंग में था और वह रीत के बाद के इंटेंस रोमांस से मैच नहीं खाता था और गुड्डी के साथ रोमांस को भी कहीं न कहीं धूमिल करता था, इसलिए मुझे पिछले होली के प्रसंगो में भी कई बार कैंची चलानी पड़ी, रीत का देह संबध वाला मामला काट दिया और उसकी भरपाई, संध्या भाभी के साथ बाथरूम में एक लम्बे एरोटिक प्रसंग से हुयी।

तो इस प्रसंग में भी रफ़ूगीरी करनी पड़ी है, बहुत थोड़ी सी है और रफू अच्छा वही है जो पता न चले तो रफू का एक कारण तो मैंने बता दिया और अब कुछ नमूने भी इसी पिछले पार्ट का दे रही हूँ मूल कहानी से तुलना कर के
यह है पिछली बार की पोस्ट का पाठ

" और असली बात ये थी की मेरी आँखें किसी को ढूँढ़ रही थी, चारों ओर। वो उस धमाचौकड़ी में तो हो नहीं सकती थी। वो सारी दुनियां से अलग थी। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते मैं कोने में पहुँच गया। और अचानक किसी ने मेरी आँखें पीछे से बंद कर ली। वो स्पर्श तो मैं बेहोशी में भी पहचान सकता था। लेकिन देर तक उस छुवन के अहसास के लिए मैंने बहाना बनाया।

मैं बोला- “कौन छोड़ो न…”

“एलो एलो। एलो जी सनम हम आ गए, आज फिर दिल लेकर…”

फागुन की सारी चाँदनी शहद बनकर मेरे कानों में घुल गई। और फिर चूड़ियों की खनक। मेरे कानों के पास। और वो सपना आँखों के सामने। उछल कर वो सारंग नयनी मेरे सामने आ गई। अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाते, दो उंगलियों के बीच दुपट्टे की कोर पकड़े।


और ये है इस बार का पाठ


और अचानक किसी ने मेरी आँखें पीछे से बंद कर ली। ले पहचान तो मैं गया लेकिन देर तक उस छुवन के अहसास के लिए मैंने बहाना बनाया।

मैं बोला- “कौन छोड़ो न…”

“एलो एलो। एलो जी सनम हम आ गए, आज फिर दिल लेकर…”

उछल कर वो सारंग नयनी मेरे सामने आ गई। अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाते, दो उंगलियों के बीच दुपट्टे की कोर पकड़े।



आप देखंगे की की कई लाइने कट गयी हैं जो आनंद और रीत के रिश्ते को थोड़ा ज्यादा ही रोमांटिक बनाती थीं, उन्हें मैंने सुविधा के लिए
रंग में भी कर दिया है।

और एक नमूना

ये था मूल पाठ

नहीं। मैं सिर्फ देख रहा था। रस में लीन।

रीत मेरे सामने चुटकी बजाते हुए बोली- “ये बाबू जी। मैं हूँ। भूल गए क्या?”

मुश्कुराकर मैंने कहा- “जिस दिन तुम्हें भूल जाऊँगा ना। अगले दिन सूरज नहीं निकलेगा। कम से कम मेरे लिए…”


रीत ने तुरंत मेरे मुँह पे हाथ रख दिया- “हे ऐसा वैसा कुछ ना बोलो। तुम कौन होते हो मेरे। मेरे लिए कुछ बोलने वाले। कुछ हक तुम्हारा इस पर…” और अब मेरा कान उसके हाथ में था।

और ये नया पाठ, कुछ लाइने काट देनी पड़ी


मैं सिर्फ देख रहा था।

रीत मेरे सामने चुटकी बजाते हुए बोली- “ये बाबू जी। मैं हूँ। भूल गए क्या?”


और अब मेरा कान उसके हाथ में था।


और क्योंकि आंनद बाबू और रीत का देह संबध का प्रसंग इस पाठ से काट दिया गया तो ये लाइन भी इस पोस्ट से हटानी पड़ी

“ना बाबा ना। तुमने जो होली के बाद किया, अभी तक टांगों में चिलख है। 14 नए-नए बहाने बना चुकी हूँ तब से।

सेक्स हुआ ही नहीं इस बार तो ये लाइन कहाँ से आ पाती

तो इस तरह के कई छोटे छोटे बदलाव हैं रीत के चलते, लेकिन उसके साथ और लाइने जोड़नी भी पड़ी, जैसे इस बार मुझे यह तार्किक नहीं लग रहा था की रीत के लैपटॉप का इस्तेमाल क्यों नहीं किया और इस लिए कुछ लाइने जोड़ी,

मैंने जान बूझ के रीत का लैपी नहीं इस्तेमाल किया था, क्या पता चुम्मन के मोबाइल में कोई डाटा ट्रैकर, कोई ट्राजन कुछ और हो, और ढूंढने वाले उसी तार को पकड़ के रीत के पास, तो ये मैं कतई नहीं चाहता था। हाँ रीत की सहेली के लैपी का भी मैं शुद्धिकरण करता ही, इस्तेमाल के पहले भी बाद भी लेकिन उसमे वायरस का पता चल जाएगा, और रीत कहीं से भी नहीं ट्रैक हो सकती थी


आज का दिन खतरनाक था, पहले गुड्डी का चक्कर चला, सेठजी की दूकान पे वही रीत की सहेली के बाबू जी वाली दूकान पे पहले छोटा चेतन और उसके जमूरे, फिर पुलिस वाले गुड्डी के पीछे, और उसके बाद बेचारी गुंजा बाल बाल बची और एक बार नहीं कितनी बार और अब मैं रीत पे कोई आफत नहीं आने देना चाहता था, रीत तो खैर खुद काफी थी, लेकिन अगर मुझे रुकना पड़ गया तो गुड्डी के साथ का सब प्रोग्राम खटाई में

तो इन भागों में भी जो करीब करीब जस के तस हैं उनमे भी रफ़ूगीरी करनी होती है और उसमे बहुत टाइम लगता है , एक एक लाइन एक एक शब्द और उसको कहानी की धारा से जोड़कर देखना इसलिए टाइम लगता है लेकिन रफू का कमाल तो यही है की पता न चले


आपको पोस्ट अच्छी लगी, आपने कमेंट किया इसलिए आभार धन्यवाद

Happy Thank U GIF
Fun Thank You GIF by Carawrrr





 
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