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भाग - ३४ मॉल में माल, - महक
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माल सिगरा के पास ही था, और महक के अंकल का ही था।
उसमें उनके भी चार-पांच स्टोर्स भी थे। लेकिन पूरे शहर में अभी भी अघोषित कर्फ्यू का माहौल था। सड़क पे इक्की दुक्की गाड़ियां दिख रही थी। सिर्फ पुलिस की गाड़ियां, पीएसी की ट्रक नजर आ रही थी। जगह-जगह चेक पोस्ट, नाकाबन्दी लगी हुई थी। हमारी गाड़ी भी दो-तीन बार रोकी गई। एक भी रिक्शा नहीं दिख रहा था।
माल में उतरते समय ये तय हुआ की जब तक मैं शर्ट लूंगा, गाड़ी लेकर रेस्टहाउस से हमारा सामान कलेक्ट करके आ जायेगी और वहां से हम सीधे गुन्जा के यहाँ…
अंकल ने ये भी बोल दिया था- “तुम बस वस के चक्कर में ना पड़ो क्योंकी इस माहौल में उसका भी ठिकाना नहीं है। मेरी गाड़ी तुझे घर तक,आजमगढ़ ड्राप कर आयेगी…”
माल में भी आधी से ज्यादा दुकानें बन्द थी।
अंकल ने पहले से कपड़े वाली दुकान और एक-दो स्टोर्स को बोल दिया था। एक छोटा सी मेडिसिन शाप भी उनमें थी। पहली शाप एक मोबाइल की थी मैं उसमें घुस गया। उसमें एक ब्लैक बेरी का भी कियोस्क था। मेरी तो बांछे खिल गईं। मैंने दो ब्लैक बेरी पसंद कर लिये।
महक मेरे साथ ही लिफाफे पे टिकट की तरह चिपकी थी। वो बोली-
“रुकिये मैं बताती हूँ…” और उसने सेल्समैन को क्या बोला की वो दो नये जस्ट रिलीज हुये टैबलेट और दो आई पैड ले आया और महक ने उसको भी पैक करा दिया।
मैं नहीं नहीं करता रह गया- “बड़ा महंगा है। जरूरत नहीं है। इत्यादी इत्यादी…”
कौन सुनने वाला था। मैंने अपना कार्ड निकालकर सेल्समैन को दे दिया, पेमेंट के लिये।
अब तो डबल पेस अटैक चालू हो गया। महक के अंकल एकदम से नाराज हो गये-
“दामाद कहते हो और पैसा देने की कोशिश करते हो और खासकर इस दुकान में…”
मैंने दुकान का नाम पहली बार देखा, महक के नाम पे था।
महक तो और ज्यादा पूरी ज्वालामुखी-
“नहीं नहीं आपको बहुत शौक है ना पेमेंट का। वो तो करना पड़ेगा। लेकिन पहले शापिंग पूरी तो कर लीजिये मैं खुद एक-एक पैसे का हिसाब लूंगी…” और कार्ड और पैकेट दोनों सेल्समैन के हाथ से उसने ले लिया।
अंकल बोले- “महक जरा तुम इनका ख्याल रखना मैं घर चलता हूँ…” मकान उनका माल से सटा ही था।
महक- “चिन्ता ना करिये मैं इनका बहुत अच्छे से ख्याल रखूंगी…”
गुन्जा खड़े-खड़े मुश्कुरा रही थी।
मैं समझ गया था की ये महक भी उसी मिट्टी की बनी है जिसकी गुंजा, गुड्डी और रीत बनी हैं, मस्त बिन्दास और बनारस के रस में घुली।

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माल सिगरा के पास ही था, और महक के अंकल का ही था।
उसमें उनके भी चार-पांच स्टोर्स भी थे। लेकिन पूरे शहर में अभी भी अघोषित कर्फ्यू का माहौल था। सड़क पे इक्की दुक्की गाड़ियां दिख रही थी। सिर्फ पुलिस की गाड़ियां, पीएसी की ट्रक नजर आ रही थी। जगह-जगह चेक पोस्ट, नाकाबन्दी लगी हुई थी। हमारी गाड़ी भी दो-तीन बार रोकी गई। एक भी रिक्शा नहीं दिख रहा था।
माल में उतरते समय ये तय हुआ की जब तक मैं शर्ट लूंगा, गाड़ी लेकर रेस्टहाउस से हमारा सामान कलेक्ट करके आ जायेगी और वहां से हम सीधे गुन्जा के यहाँ…
अंकल ने ये भी बोल दिया था- “तुम बस वस के चक्कर में ना पड़ो क्योंकी इस माहौल में उसका भी ठिकाना नहीं है। मेरी गाड़ी तुझे घर तक,आजमगढ़ ड्राप कर आयेगी…”
माल में भी आधी से ज्यादा दुकानें बन्द थी।
अंकल ने पहले से कपड़े वाली दुकान और एक-दो स्टोर्स को बोल दिया था। एक छोटा सी मेडिसिन शाप भी उनमें थी। पहली शाप एक मोबाइल की थी मैं उसमें घुस गया। उसमें एक ब्लैक बेरी का भी कियोस्क था। मेरी तो बांछे खिल गईं। मैंने दो ब्लैक बेरी पसंद कर लिये।
महक मेरे साथ ही लिफाफे पे टिकट की तरह चिपकी थी। वो बोली-
“रुकिये मैं बताती हूँ…” और उसने सेल्समैन को क्या बोला की वो दो नये जस्ट रिलीज हुये टैबलेट और दो आई पैड ले आया और महक ने उसको भी पैक करा दिया।
मैं नहीं नहीं करता रह गया- “बड़ा महंगा है। जरूरत नहीं है। इत्यादी इत्यादी…”
कौन सुनने वाला था। मैंने अपना कार्ड निकालकर सेल्समैन को दे दिया, पेमेंट के लिये।
अब तो डबल पेस अटैक चालू हो गया। महक के अंकल एकदम से नाराज हो गये-
“दामाद कहते हो और पैसा देने की कोशिश करते हो और खासकर इस दुकान में…”
मैंने दुकान का नाम पहली बार देखा, महक के नाम पे था।
महक तो और ज्यादा पूरी ज्वालामुखी-
“नहीं नहीं आपको बहुत शौक है ना पेमेंट का। वो तो करना पड़ेगा। लेकिन पहले शापिंग पूरी तो कर लीजिये मैं खुद एक-एक पैसे का हिसाब लूंगी…” और कार्ड और पैकेट दोनों सेल्समैन के हाथ से उसने ले लिया।
अंकल बोले- “महक जरा तुम इनका ख्याल रखना मैं घर चलता हूँ…” मकान उनका माल से सटा ही था।
महक- “चिन्ता ना करिये मैं इनका बहुत अच्छे से ख्याल रखूंगी…”
गुन्जा खड़े-खड़े मुश्कुरा रही थी।
मैं समझ गया था की ये महक भी उसी मिट्टी की बनी है जिसकी गुंजा, गुड्डी और रीत बनी हैं, मस्त बिन्दास और बनारस के रस में घुली।
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