• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance फख्त इक ख्वाहिश

2,966
2,841
159


चलते चलते एकाएक अपनी जीप बीच सड़क पर बंद पड़ गई और फिर स्टार्ट होने का नाम ही नहीं ले रही थी। एक तो शराब का सुरुर और पीछे से आने वाले गाडि़यों के हार्न की आवाज़ से हाथ और दिमाग दोनों ही काम नहीं कर रहे थे। गाडी़ में धक्का लगाने के लिए जैसे ही मैं बाहर निकला तो सामने साडी़ में लिपटी बेहद सभ्य-शालीन, सुंदर और पुरकशिश शख्शियत को देखकर बुरी तरह हड़बडा़ गया।


" माफ कर...ना मैड़म, इं...जिन बंद पड़ ग...या है। बस दो मि...निट में रा..स्ता क्ली...अर हो जाएगा "


मेरे नशे में होने और लड़खडा़ कर बोलने की वजह से मुझे अंदाजा नहीं था कि उसे कुछ समझ आया होगा मगर फिर वो हुआ जिसने मुझे उसका अहसान-मंद बना दिया। जीप साइड में लगने के बाद, धक्का लगाने के लिए उनको थैंक्स बोलने ही वाला था कि वो फुर्ती से अपनी गाडी़ में बैठकर जा चुकी थी।


" ऐ बेवडे़, मरेगा क्य.... साॅरी सर!!!! पहचाना नहीं। गाड़ी खराब है क्या?? मैं हेल्प.... "


" इट़्स ओके, तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं " कड़वी मुस्कुराहट के साथ मैंने उसको जाने का इशारा किया और सिगरेट जलाने लगा।


मजा़ किरकिरा कर दिया था माधरचोद पत्रकार ने। अरसे बाद आज एक खूबसूरत चेहरा दिखा था, मगर उस हरामी की वजह से आंखों में कैद हुए उस अक्श की तस्वीर अब बहुत धुंधली पड़ चुकी थी।


सुंदर की रेहडी़ पर गोलगप्पे खाने के बाद क्या हुआ, मैं घर कब और कैसे आया मुझे कुछ याद न था। सुबह मेरी नींद खुली तो खुद कोे बिस्तर पर पाया। तैयार होने के बाद मैं नाश्ता कर रहा था तो व्हाट्स-एप पर एक लिंक ने मेरा ध्यान खींचा। ओपन करने पर पाया, ये इक वीडियो थी जिसे कल रात उस वक्त रिकार्ड किया गया था, जब इक पार्टी में, मैं नशे में झूमते हुऐ रैप कर रहा था। उस सस्ते यूट्यूबर की आत्मा की शांति के लिए दो मिनिट का मौन धारण कर अपना नाश्ता खत्म किया और माँ से पूछा कि मुझे यहां कौन लेकर आया।


" राजौरिया भाईसाब की तबियत बहुत खराब है। बार-बार बोल रहे थे समर को बुला दो तो रेणु बहन ने तेरे डैडी को भेजा था तुझे लेने "


" ....... शिवानी को ...... इंफार्म किया उसे "


" बात भी मत करना उसकी वहां, वैसे आई थी वो अपने हसबैंड के साथ। रेणु और भाईसाब दोनों ने मना कर दिया उनसे मिलने से "


अंकल से मिला तो कमजोर पड़ने लगा, आंटी ने बताया बैक-टू-बैक दो कार्डियक अरैस्ट को झेला है अंकल ने पर ग्लूकोज लेवल ज्यादा होने से डाॅक्टर आपरेट करने से बच रहे हैं। हालत बहुत दयनीय थी, देखा नहीं भी जा रहा था उन्हें।


" एक दोस्त बना है अजमेर में। कार्डियक सर्जन है, ट्राई करोगे उसे? " अंकल का हाथ सहलाते हुए मैंने पूछा।


" अगर तू जीने के लिए कोई वजह दे तो फिर मैं खुद को बचाने की कोशिश करुँ "


सोचने लगा क्या वजह दे सकता था मैं उन्हे। मुझे खामोश देख डैड अंकल को मनाने लगे मगर उनकी जिद और हठ से लग रहा कि वो अपना मन बना चुके थे। आंटी असहय थी, और मुझे अभी भी कुछ नहीं सूझ रहा था। लंच करने के बाद मैं अपने दोस्तों से मिलने निकल गया। उनके पास आज भी शिवानी की कामयाबी के अलावा कोई टापिक न था इसलिए कुछ देर तक बच्चों के साथ क्रिकेट खेलने के बाद मैं घर आ गया।


माम-डैड मोस्ट आफ द टाइम अंकल-आंटी के यहां ही रहते थे इससे आपस में मन भी लग जाता और परेशानियां भी बंट जाती। सालों की दोस्ती आज बरकरार तो थी मगर कहीं न कहीं इस दोस्ती के एक रिश्ते में ना बदल पाने की इक कसक भी थी, जो मेरे यहां आने पर अक्सर इन सबके चेहरों से झलकती।


हाथ-मुँह धुलकर मैं आंटी के साथ किचिन में चाय पीते हुऐ बात कर रहा था कि मेरा मोबाइल बजने लगा, " बोलो सुंदर "


" सर, कुछ टीवी वाले पूछताछ करने आये हैं " उधर से आवाज आई।


" टीवी वाले.....!!! "


" वीडियो दिखा रहे थे.... लगता है रात किसी ने आपकी रिकार्डिंग... "


वो डर रहा था, उसको शांत रहने का बोलकर मैंने टीवी आॅन किया और खबरें देखने लगा। एक हिंदी न्यूज चैनल पर, मेरे नशे की हालत में होने की विडियो को मेरे इदारे की नाकामी से जोड़कर मेरे ज़हनियत पर सवाल उठाए जा रहे थे। सवाल उठाने वाले भी आम-जन नहीं वो खास-लोग थे जिनको मेरी तौर-तरीकों और क्षमता से रश्क था। वैसे भी, महकमे में मेरे कद्रदानो की गिनती उंगलियों से भी कम थी और इस वीडियोे ने उन मौकापरस्तों को अपनी खीझ निकालने का एक शानदार मौका दे दिया।


" माँ, इन्फार्मेशन गेदरिंग के लिए लोगों से जुड़ने का ये तरीका मुझे बेस्ट लगा, और वैसे भी उस वक्त यूनिफोर्म में नहीं था मैं " कुछ झूठ नहीं बोला था मैंने, अपने इदारे में पैर जमाने के लिए हर वो हथकंडा़ अपनाना पड़ता, जिस से कानून और व्यवस्था में लोगों का भरोसा और खौफ दोनों ही बने रहे।


इस घटना से डैड थोडे़ नाराज लग रहे थे मगर पाजि़टिव बात यह थी, राजोरिया अंकल अजमेर चल रहे थे। उनका अंदाजा था उनके वहां होने से मेरे नशा करने की तादात में थोडी़ कमी आएगी। सोने जाने से पहले डैड मुझे बालकनी में आने को कहा, जब में वहां पहुँचा तो डैड ने व्हिस्की का ग्लास मेरे आगे कर दिया।


" हीरो सिर्फ कहानियों या फिल्मों में ही अच्छे लगते हैं समर, असल जिंदगी में सब विलेन होते हैं " मेरे कंधे को सहलाते हुऐ डैड ने पीने का सिग्नल दिया।


" इम्म्म...... आप भूल रहे हैं डैड, टीवी वाले मुझे विलेन बता रहे थे " खाली ग्लास टेबल पर रखकर मैं अपने लिए सिगरेट सुलगाने लगा।


" सीखने तो लगा है तू अब, पर मुझे अभी भी डर लगता है। शायद इसलिए कि मैं इक बाप हूँ " इक लम्बी सांस ले कर मुस्कुराते हुऐ डैड अगली डोज़ की तैयारी करने लगे।


डैडी से बातें करते-करते इक मुखबिर का मैसिज आया। उसके मुताबिक कल बेवंजा माइनिंग एरिया में कुछ बडा़ होने वाला था। काॅल करने पर उसका मोबाइल नंबर बंद आ रहा था, इसका मतलब खबर पक्की थी। एक-दो जगह फोन करने के बाद हमने एक-एक लार्ज पैग लिया और सोने चले गये।


अगला दिन मेरे लिए बहुत बदतर रहा। रात मुखबिर से मिले इनपुट को, ज्याती ईगो की वजह से मेरे सीनियर द्वारा दरकिनार कर, एक एस.डी.एम और खनन विभाग की टीम को कुर्बानी का बकरा बना दिया। बस गनीमत सिर्फ इतनी ही थी कि हमले में कोई मरा नहीं था, नहीं तो मेरे सीनियर को अपने सीनियर, सरकार और मीडिया तीनों को जवाब देना भी मुश्किल हो जाता।


दफ्तर से फारिग होने के बाद मैं राजोरिया अंकल से मिलने हाॅस्पिटल गया तो पता लगा, हमले में घायल लोगों का इलाज यहीं चल रहा था। इंसानियत और इक जिम्मेदार पद पर होने के लिहाज से उनसे मिलकर उनका हालचाल जानना मुझे वाजि़ब लगा, और जब मैं उन्हें देखने गया तो एक शख्शियत को वहां देखकर मेरी पुतलियां सिकुड़ गई। ये मोहतरमा वही थी, जिसने जीप में धक्का लगाने में उस रात मेरी मदद की थी।


किसी के चिल्लाने की अवाज सुनकर मैंने सुरक्षाकर्मी को वहां साइलेंस मेंटेंन करने का निर्देश दिया और बाकी के घायलों से मिलने लगा। उनके बयानों से मोहतरमा के नाम और काम दोनों के बारे में पता लग गया। मैडम का नाम था अपराजिता निंबालकर और वो एसडीएम ब्यावर थीं। अंदर ही अंदर में खुश हो रहा था, कि अब मेरे पास बहुत सारे रीजन्स हैं यहां बार बार चक्कर लगाने के।


अगले दिन दफ्तर जाने से पहले मैं माॅम को हाॅस्पिटल छोड़ने आया तो मुझे देखकर एक बुजुर्ग बुरी तरह भड़क गये, और पुलिस की लापरवाहियों को मेरे शराब पीने से जोड़ कर मुझे लानतें भेजने लगे। ताज्जुब की बात ये थी, उनको पता नहीं था जिनसे बात करते हुए वो मुझे गालियां सुना रहे थे, वो और कोई नहीं मेरे डैड ही हैं, और मुझे भी पता नहीं था कि वो अपराजिता मैडम के डैड हैं।


यह जानकर, अपराजिता मैडम से मिलने की मेरी सारी तैयारियां, अरमान और प्लानिंग एक झटके में हवा हो गये। उनके बारे में सोचने भर से ही मेरा दिमाग सुन्न पड़ जाता, सूझता ही नहीं था कुछ। इसलिए मेरा हाॅस्पिटल जाना बंद हो गया तो दूसरी तरफ अंकल की सर्जरी भी निबट गयी।


फिर एक दिन आंटी ने मुझे जल्दी आने के लिए कहा, वजह पूछने पर उन्होने बताया शिवानी ने वहां कोई सीन क्रिएट कर दिया था। शहर से बाहर होनी की कारण मेरा जाना संभव नहीं था, इसलिए पास की चौकी को अंकल के सेफ्टी के लिए इंफार्म कर दिया। मगर बात यहीं पर खत्म नहीं हुई थी, अगली सुबह मेरा नाम फिर सुर्खियों में था। खबर थी, ज़ायदाद की खातिर सहायक पुलिस अधीक्षक ने परिवार को बंधक बनाया।


शहर में उर्स(मेला) के लिए आज मीटिंग रखी गई थी, और इस हैडलाईन के साथ मुझे मीटिंग में जाना था। कभी कभी तो हंसी आती थी मुझे अपने नसीब पर, शर्मिंदगी से मेरा हमेशा चोली-दामन का साथ रहा। डैड का मानना था, सबका भगवान होता है, पर मेरा भगवान न जाने कब से भांग खाकर सो रहा था।


" मुबारक हो मिस्टर धर... बडे़ मशहूर होते जा रहे हैं आजकल आप "


मीटिंग में जो ना हुआ वो अपराजिता मैडम ने कांफ्रेस रुम से बाहर आकर कर दिखाया। कुछ लोगों के ठहाकों की आवाज तो कईयों की मुस्कुराहटों से छलनी मेरी रुह को उस वक्त वहां से निकलना ही बेहतर लगा। ऐसा नहीं था कि मेरे पास कोई जवाब नहीं था, बस मैं बचाता था खुद को औरों की तरह बेरहम बनने से।


" सर काफी देर से आपका फोन बज रहा है "


ड्राइवर के हिलाने पर मैं खयालों से बाहर निकला और काॅल का आन्सर किया, " जी कहिये "


" अपराजिता बोल रही हूँ मिस्टर धर, क्या हम कुछ देर बात कर सकते हैं " दूसरी तरफ से आवाज आई।


" जरूर मैम "


" वो... आप बिना जवाब दिये गये तो बाद में अहसास हुआ कि मुझे ऐसे नहीं बोलना चाहिये था "


" इट्स ओके मैम, आपने कुछ गलत नहीं कहा। शोहरत मेरे पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान है। मुझे तो इवन आप सब का थैंक्स बोलना चाहिये था "


" साॅरी... वो बस इक मजा़क था और मुझे नहीं पता था कि बाकी लोग ऐसे रिएक्ट करेंगे "


" देखिये आप बेवजह परेशान हो रही हैं, मेरा यकीन करें मुझे किसी से कोई गिला नहीं है "


" चलो मैं यकीन कर लेती हूँ पर क्या आज शाम को मिल सकते है? "


" कभी भी मिल सकती हैं आप मेरे निवास पर "


अपने दिल का गुबार तो मैं कब का निकाल चुका था फिर शाम को मिलने के खयाल से रूह दुबारा से गुलजा़र होने लगी। तभी मुझे याद आया, निवास पर तो माॅम-डैड और अंकल आंटी भी होते, डर लगने लगा, कहीं वो हमारे कैजुअल मिलने को गलत इंटरप्रेट कर मुझे इंबैरश ना कर दें। आज के दिन और शर्मिंदगी उठाना नहीं चाहता था मैं इसलिए मैंने मेसेज भेजकर किसी दूसरी जगह मिलने का निवेदन किया।


भूतिया हलवाई, अलवर गेट के पास एक बेहद व्यस्त और भीड़-भाड़ वाला इलाका, यह वो जगह थी जहां आज हम मिल रहे थे। दिमाग ठनक गया था मेरा, मगर फिर याद आया, मुहब्बत में लोगों ने सर कटाए हैं, मुझे तो वहां सिर्फ लस्सी ही पीनी थी।


" बस लस्सी खरीदने के लिए बुलाया था यहां?? "


" हां, वैसे भी आपके कहवा से तो यह बेहतर ही है... ओके मैं फिर से मजा़क कर रही थी " खनकती हंसी और दिलकश मुस्कुराहट के साथ अपराजिता मैड़म ने जवाब दिया।


" कहवा!!! " मुझे समझ नहीं आया।


" इतनी भीड़ में शराब बोला तो आप फिर से नाराज हो जाते " सरगोशी से बोलते हुए मैडम ने अपनी अकलमंदी का तअारुफ कराया।


हैरान था मैं उसकी हिम्मत पर, इतनी भीड़ में, सबके सामने मेरे जैसे बदनाम शख्श के साथ, छोटी सी दुकान के सामने खडे़ होकर लस्सी पीना। खैर, जो भी हो मेरे मन की मुराद तो पूरी हो ही रही थी। कल तक जो सपने जैसा था, सोचा नहीं था इतना जल्दी सच साबित होगा। मुलाकत के दो दिन बाद जान-पहचान, तीसरे दिन बोलचाल और फिर सीधे लस्सी, सितारे बुलंद थे आज मेरे, अब देखना यह था कल मेरे साथ क्या होता है।


करीब 26 मिनट्स का वो साथ, बहुत यादगार रहा। हालांकि पहली बारी में, बातचीत ज्याती(पर्सनल) नहीं थी मगर उनका रुख कुछ ऐसा था, जैसे बचपन से वो मेरे को जानते हों। इस मुलाकात के बाद बहुत खुश रहने लगा था मैं और शाम को नशा करना भी इस डर से छोड़ दिया, कि उनका फोन-काॅल आया और जज़्बातों में गलती से कहीं मेरी जुबान फिसल जाये तब..... मसलन ऐसे ही चीजों को बेवजह पहले से अंदाजा़ लगाना... प्लान करना और फिर से अंदाजा़ लगाना... बस ऐसे ही वक्त गुजरता था मेरा।
 
Last edited:

Assassin

Staff member
Moderator
4,493
3,977
159
:congrats: for story, have some doubts over it,will ask in pm
 
  • Like
Reactions: fountain_pen
2,966
2,841
159
दोस्तो,

इस कहानी को मैंने स्टोरी कांटेस्ट के लिए लिखा था, जो समय-अभाव की वजह से जल्दबाजी में अधूरी रह गई. हालांकि मेरा मन नहीं था कांटेस्ट में इसे अधूरे ही पोस्ट करने का मगर सच बोलू तो उस वक्त इस फोरम के स्टोरी कंटेस्ट के चार्म ने मुझे विवश कर दिया था।

आज थोडा़ वक्त मिला तो इसका अगले भाग का कुछ हिस्सा लिखा है, जो अगले कुछ पोस्ट्स के साथ आपके सामने होगा, इस उम्मीद के साथ कि आपको पसंद आए।

धन्यवाद।
 
2,966
2,841
159


उर्स की तैयारियां और मेला शुरू होने के बीच कई बार हमारी मुलाकातें और फोन पर काफी बातें होती, पर मेरी कभी हिम्मत नहीं पड़ती अपनी तरफ से उन्हें फोन करने की। हर रोज उनसे दूर होने या खोने के अनजान से डर ने मुझे इतना शांत बना दिया कि दफ्तर और घर में मेरा होना, ना होने के बराबर था।


आगरा जाने से इक दिन पहले डैड और राजोरिया अंकल ने इस बदलाव के बारे में, मेरे से बात की। उन्हें यह डर था, या तो मैं शराब से अलग कोई और बुरा नशा करने लगा हूँ, या फिर मैं गहरे डिप्रैशन में हूँ। मेरे बहुत कनविंस कराने के बाद भी उनको मेरी दलीलों पर भरोसा ना हुआ। फिर हार कर जब मैंने उन्हें बताया कि मैं किसी को पसंद करने लगा हूँ, तब जा कर उनके चेहरे पर मुझे राहत दिखी।


अगले कई मिनिट्स तक अंकल मेरे हाथ को अपने हाथों के बीच रख कर सहलाते रहे, तो डैड मेरे पीठ को। कुछ देर के लिए माहौल गमगीन हो गया। जब जज्बातों का ज्वार उतरा तो मैंने क्लीयर किया, फिलहाल जो कुछ भी है वो इकतरफा है, इसलिए अभी से ख्वाब ना सजाये जाऐं। बस दुआ करते रहें, देर-सवेर ही सही मगर इस बार सबकी हसरतें पूरी हों।


अप्रैल के पहले सप्ताह का पहला दिन, अपराजिता का हुकुम आया अगले तीन दिन का सरकारी अवकाश है, इस लिए शाम को जीप से उदयपुर और माउंटआबू चलते हैं। यह पेशकश मेरे लिए, उंगली पकड़ कर हाथ झटकने जैसी थी, क्यूंकि 42 साल पुरानी जीप अब पहले जितनी जवान नहीं रही कि हमें बिना परेशान किये 300 km लाए और ले जाए। मैनें समझाने की कोशिश की, मगर उनका प्रोग्राम तय था।


वैसे भी अब तक अजमेर में हमारी मुलाकतें सिर्फ सार्वजनिक जगहों पर, मुश्किल से आधा घंटे के लिए होती थी। इसलिए उनके साथ बिताने का ये सुनहरा मौका मैं भी गंवाना नहीं चाहता था, तो जीप पर ज्यादा तूल ना देते हुऐ मैं भी हार मान कर पैकिंग करने लग गया और अंधेरा होने से पहले हम सफर की पहली मंजिल के लिए रणकपुर जा रहे थे।


" बाबा ने पहली बार जब इसे(जीप) पुलिस लाइन में देखा तो जवान हो गये थे वो, सालों बाद चहकते हुऐ देखा था उन्हें, सोचा कभी मिलोगे तो थैंक्स बोलूंगी। और फिर एक दिन तुम्हारी खबर देखी तो सारा खुमार एक झटके में उतर गया " माथा चढ़ाते कर मुँह बनाते हुऐ मैडम ने ताना मारा।


क्यूट थी वो बहुत, उसका यह अवतार कभी कभी ही दिखने को मिलता। मगर आज मौका और वक्त दोनों ही थे उसको निहारने के लिए। सांवला रंग, गहरी आंखें, डायमंड शेप सुहावना सा चेहरा जिसकी खूबसूरती को दोनों आंखों के बीच, माथे पर लगी छोटी बिंदी और मुकम्मल कर देती। वो बोले जा रही थी मैं हां-हूँ मे जवाब देते उसकी खनकती आवाज, महकती सांस और बचकनी शीरत से अपनी रूह के चरागों को रौशन किये जा रहा था।


डिनर के बाद जब वो सोने चली गई तो बेचैनी सी बढ़ गई, ऐसा लगा जैसे शरीर के एक खास हिस्सा ने काम करना बंद कर दिया हो। तड़प ज्यादा बढ़ने पर माँ से बात करने लगा, उनका मानना था, मुझे यस सब अपराजिता से डिसकस करना चाहिये, जो मेरे बस का नहीं था। अभी तो हम दोस्त बने थे, और अभी से उसको प्रपोज करना सही नहीं था।


इन तीन दिनों में ना हम करीब आये और ना ही दूर गये, पर इक दूसरे को अच्छे से जानकर, भरोसा करने लगे थे। शिवानी से उलट उसे मेरे पसीनेे से दिक्कत नहीं थी तो मुझे उसे वेवजह मजा़क करने से। मुझे खाना बनाना पसंद था उसे खाना, और उसे ट्रैवलिंग ज्यादा पसंद थी तो मुझे उसके साथ सफर करना। मुझे उसके खुशी से चिल्लाने से शिकायत नहीं थी तो उसको मेरे खामोश रहने से दिक्कत नहीं थी।


" तुम तलाक-शुदा हो ना समर? "


एक दिन ऐसे ही उसने मेरे से पूछा तो मैं उसकी तरफ देखता ही रह गया। पहली बार पर्सनल हुई थी वो, " हाँ.. ना.. सारी.....आई मीन हाँ, इक तरह से डिवोर्स ही था "


" पेनफुल होता है ना......??? "


आंखों में आंखें डाल कर पूछ रही थी वो, जिसकी मुझे आज तो उम्मीद नहीं थीे। खैर इक ना इक दिन मुझे जवाब तो देना ही था, तो वो आज ही क्यूं नहीं।


" होता तो है... " मुस्कुराते हुए मैंने जवाब दिया मगर इस बार मेरी आवाज़ नहीं लड़खडा़ रही थी.


" इक ख्वाहिश पूरी करोगे मेरी? "


" जो चाहो... "


" आज के बाद ना हम कभी मिलेंगे, और ना ही मिलने की कोशिश करेंगे "


92 सेंकिड्स के इस विडियो कान्वर्शेशन को समझने में मुझे ग्यारह दिन लगे। वो चली गई थी यहां से। और अपनी जुबां की खातिर उसे तलाशने की मैंने कभी कोशिश की और ना ही उसकी कोई खबर आई। डैड और अंकल के सपने बेशक टूट गये पर उन्हें खुशी थी अपराजिता की ख्वाहिश तो पूरी हुई।


डेढ़ साल बाद मेरा उदयपुर ट्रांसफर हो गया, और इस दौरान मेरा नाम सुर्खियों में तो होता मगर जनसेवा के लिए। रणकपुर, कुम्भलगढ़ और गुरुशिखर यहां से पास ही पड़ते, पर जो मजा़ अपराजिता के साथ जीप में आया था, उसे दुबारा कभी नहीं चाहा। सही बोलते थे डैड, अलगाव में एक अलग ही नशा है, जो दुनिया की किसी दुकान पर नहीं मिलता।


" बोलिये बाबा, क्या परेशानी है आपकी "


बुजुर्ग को बैठने का इशारा कर मैं उनकी फाइल देखने लगा। कर्नल परिजात निंबालकर....ओह मेरे भगवान....अब सांसे उखड़ने लगी थी मेरी..... आंखों के रास्ते दिल का गुबार निकलने पर थोडी़ राहत हुई तब मैंने पहली बार बाबा को देखा, हालत उनकी भी मेरे से जुदा नहीं थी।
 
Last edited:
2,966
2,841
159


" बोलिये बाबा, क्या परेशानी है आपकी "


बुजुर्ग को बैठने का इशारा कर मैं उनकी फाइल देखने लगा। कर्नल परिजात निंबालकर....ओह मेरे भगवान....अब सांसे उखड़ने लगी थी मेरी..... आंखों के रास्ते दिल का गुबार निकलने पर थोडी़ राहत हुई तब मैंने पहली बार बाबा को देखा, हालत उनकी भी मेरे से जुदा नहीं थी।


पानी पिला कर मैंने अर्दली से चाय-नाश्ता के लिए कहा तो बाबा ने जोर देकर मना कर दिया और अकेले में बात करने के लिए आग्रह करने लगे। उस समय बडे़ बेचैन लग रहे थे वो, उन्हें एसे देख कर मुझे भी उनकी थोडी़ सी फिक्र होने लगी।


" मेरी बेटी और उसके हसबैंड को बचा लो समर, उसके ससुराल वालों ने उसे झूठे केस में फंसा दिया है "


बाबा के मुंह से निकले इन शब्दों ने मेरे हर उन अरमानों को कुचल दिया जिनको में पिछले डेढ़ साल से बिना किसी को शिकायत किये पाल रहा था। अपनी किस्मत पर अब तरस आने लगा था मुझे, इस जन्म में तो मेरे से कुछ गलत नहीं हुआ और पिछले जन्म के कर्मों के बारे में सोचना अपनी समझ के परे था।


पानी की ठंडक से खुद को शांत करने की बारी अब मेरी थी। 'अपराजिता' इक अरसा हो गया था, इस नाम को सुने बिना, और आज उसका जिक्र भी हुआ तो उसके हसबैंड और सुसराल वालों के साथ। खैर, आज बाबा को जरुरत थी मेरी और मुझे अंदाजा़ भी नहीं था उनकी परेशानी मेरी पहुंच के अंदर थी भी या नहीं, मगर मैं मन बना चुका था अपनी तरफ से उनकी हर तरह से हैल्प करने का।


" ठीक है तो मुझे मामले के बारे में हर एक बात सच-सच बतलाइये, जिससे की मैं अपनी तरफ से सही और पुरजोर कोशिश कर सकूं " अंकल का हाथ अपने हाथों के बीच में लेकर सहलाते हुऐ मैंने उनसे पूछा।


" वो लोग नार्वे में रहते हैं और पिछले सप्ताह वो मनीष के साथ अपने ससुराल में घूमने के लिए आयी थी जहां उसकी देवरानी ने उसे मनीष और उसके भाई के साथ दहेज और मारपीट के झूठे केस में फंसा दिया। परसों उनको वापस लौटना है पर इस फर्जी केस की वजह से उन्हें जमानत भी नहीं मिल रही "


" इस केस की कोई कापी या नकल लेकर आये हैं आप? "


" नहीं.... बात करने या सुनने के लिए तैयार ही नहीं हैं वो लोग। लोकल वकीलों से मिलकर मैंने कोशिश भी की पर देवरानी के भाई की राजनीतिक पंहुच की वजह से कोई भी कुछ करने को तैयार नहीं है "


" किस थाने का मामला है ये? "


" नाथद्वारा पुलिस स्टेशन, राजनगर (राजसमंद) "


सच बोलू तो नाथद्वारा का नाम सुनकर एक बार तो मेरे पूरे तन-बदन में आग सी लग गई, जिसकी वजह भी एक नहीं थी। हालांकि यह जगह मेरे कार्य-क्षेत्र में नहीं थी मगर अब में देखना या मिलना चाहता था उन लोगों से जिनकी वजह से आज मैं खुद को फिर से उपेक्षित महसूस कर रहा था।


यह वो जगह थी जो रणकपुर से उदयपुर के बीच उस रास्ते में पड़ती, जिसको उसने मेरे साथ घूमने के लिए चुना था। अपनी बेचारी "समझ" पर हंसी आ रही थी अब मुझे, सच में गधा था मैं जिसने अपराजिता की संगत को कुछ और ही मान लिया था। उसका मेरे से मिलना और घूमना एक जरिया भी तो हो सकता था उसकी पसंदीदा शख्श के होम-टाउन और उसके आसपास की जगहों से रूबरू होने का।
 
Last edited:

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
8,534
34,467
219
:congrats: dear................................
meine ye kahani contest me to nahin padhi thi.....................
balki............bahut sari kahaniyan nahin padh paya.................kuchh busy tha

bahut badhiya shuruat lagi.......................ise aise hi aage likhein.........
man ko chhoo lene wala ahsas ho raha hai
kuchh apna sa anubhav..............bas ek hi fark...........ki
mein sabko peechhe chhodkar aage badhta gaya.............waqt laut-lautkar mere samne aya ........
lekin meine sirf usi ko apnaya ............jisne mujhe chuna tha
aur unko bhula diya..............
jinko meine chuna tha....lekin jinhone mujhe nahin apnaya

aj bhi mere sath wo purani 7 premikayein judi hain............lekin sirf ek dosti ki had tak
dil mein sirf wo patni hai............jisne mujhe chuna.............mujhe apnaya..........mere dukh-sukh me sath nibhaya
 
Last edited:
Top