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चलते चलते एकाएक अपनी जीप बीच सड़क पर बंद पड़ गई और फिर स्टार्ट होने का नाम ही नहीं ले रही थी। एक तो शराब का सुरुर और पीछे से आने वाले गाडि़यों के हार्न की आवाज़ से हाथ और दिमाग दोनों ही काम नहीं कर रहे थे। गाडी़ में धक्का लगाने के लिए जैसे ही मैं बाहर निकला तो सामने साडी़ में लिपटी बेहद सभ्य-शालीन, सुंदर और पुरकशिश शख्शियत को देखकर बुरी तरह हड़बडा़ गया।
" माफ कर...ना मैड़म, इं...जिन बंद पड़ ग...या है। बस दो मि...निट में रा..स्ता क्ली...अर हो जाएगा "
मेरे नशे में होने और लड़खडा़ कर बोलने की वजह से मुझे अंदाजा नहीं था कि उसे कुछ समझ आया होगा मगर फिर वो हुआ जिसने मुझे उसका अहसान-मंद बना दिया। जीप साइड में लगने के बाद, धक्का लगाने के लिए उनको थैंक्स बोलने ही वाला था कि वो फुर्ती से अपनी गाडी़ में बैठकर जा चुकी थी।
" ऐ बेवडे़, मरेगा क्य.... साॅरी सर!!!! पहचाना नहीं। गाड़ी खराब है क्या?? मैं हेल्प.... "
" इट़्स ओके, तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं " कड़वी मुस्कुराहट के साथ मैंने उसको जाने का इशारा किया और सिगरेट जलाने लगा।
मजा़ किरकिरा कर दिया था माधरचोद पत्रकार ने। अरसे बाद आज एक खूबसूरत चेहरा दिखा था, मगर उस हरामी की वजह से आंखों में कैद हुए उस अक्श की तस्वीर अब बहुत धुंधली पड़ चुकी थी।
सुंदर की रेहडी़ पर गोलगप्पे खाने के बाद क्या हुआ, मैं घर कब और कैसे आया मुझे कुछ याद न था। सुबह मेरी नींद खुली तो खुद कोे बिस्तर पर पाया। तैयार होने के बाद मैं नाश्ता कर रहा था तो व्हाट्स-एप पर एक लिंक ने मेरा ध्यान खींचा। ओपन करने पर पाया, ये इक वीडियो थी जिसे कल रात उस वक्त रिकार्ड किया गया था, जब इक पार्टी में, मैं नशे में झूमते हुऐ रैप कर रहा था। उस सस्ते यूट्यूबर की आत्मा की शांति के लिए दो मिनिट का मौन धारण कर अपना नाश्ता खत्म किया और माँ से पूछा कि मुझे यहां कौन लेकर आया।
" राजौरिया भाईसाब की तबियत बहुत खराब है। बार-बार बोल रहे थे समर को बुला दो तो रेणु बहन ने तेरे डैडी को भेजा था तुझे लेने "
" ....... शिवानी को ...... इंफार्म किया उसे "
" बात भी मत करना उसकी वहां, वैसे आई थी वो अपने हसबैंड के साथ। रेणु और भाईसाब दोनों ने मना कर दिया उनसे मिलने से "
अंकल से मिला तो कमजोर पड़ने लगा, आंटी ने बताया बैक-टू-बैक दो कार्डियक अरैस्ट को झेला है अंकल ने पर ग्लूकोज लेवल ज्यादा होने से डाॅक्टर आपरेट करने से बच रहे हैं। हालत बहुत दयनीय थी, देखा नहीं भी जा रहा था उन्हें।
" एक दोस्त बना है अजमेर में। कार्डियक सर्जन है, ट्राई करोगे उसे? " अंकल का हाथ सहलाते हुए मैंने पूछा।
" अगर तू जीने के लिए कोई वजह दे तो फिर मैं खुद को बचाने की कोशिश करुँ "
सोचने लगा क्या वजह दे सकता था मैं उन्हे। मुझे खामोश देख डैड अंकल को मनाने लगे मगर उनकी जिद और हठ से लग रहा कि वो अपना मन बना चुके थे। आंटी असहय थी, और मुझे अभी भी कुछ नहीं सूझ रहा था। लंच करने के बाद मैं अपने दोस्तों से मिलने निकल गया। उनके पास आज भी शिवानी की कामयाबी के अलावा कोई टापिक न था इसलिए कुछ देर तक बच्चों के साथ क्रिकेट खेलने के बाद मैं घर आ गया।
माम-डैड मोस्ट आफ द टाइम अंकल-आंटी के यहां ही रहते थे इससे आपस में मन भी लग जाता और परेशानियां भी बंट जाती। सालों की दोस्ती आज बरकरार तो थी मगर कहीं न कहीं इस दोस्ती के एक रिश्ते में ना बदल पाने की इक कसक भी थी, जो मेरे यहां आने पर अक्सर इन सबके चेहरों से झलकती।
हाथ-मुँह धुलकर मैं आंटी के साथ किचिन में चाय पीते हुऐ बात कर रहा था कि मेरा मोबाइल बजने लगा, " बोलो सुंदर "
" सर, कुछ टीवी वाले पूछताछ करने आये हैं " उधर से आवाज आई।
" टीवी वाले.....!!! "
" वीडियो दिखा रहे थे.... लगता है रात किसी ने आपकी रिकार्डिंग... "
वो डर रहा था, उसको शांत रहने का बोलकर मैंने टीवी आॅन किया और खबरें देखने लगा। एक हिंदी न्यूज चैनल पर, मेरे नशे की हालत में होने की विडियो को मेरे इदारे की नाकामी से जोड़कर मेरे ज़हनियत पर सवाल उठाए जा रहे थे। सवाल उठाने वाले भी आम-जन नहीं वो खास-लोग थे जिनको मेरी तौर-तरीकों और क्षमता से रश्क था। वैसे भी, महकमे में मेरे कद्रदानो की गिनती उंगलियों से भी कम थी और इस वीडियोे ने उन मौकापरस्तों को अपनी खीझ निकालने का एक शानदार मौका दे दिया।
" माँ, इन्फार्मेशन गेदरिंग के लिए लोगों से जुड़ने का ये तरीका मुझे बेस्ट लगा, और वैसे भी उस वक्त यूनिफोर्म में नहीं था मैं " कुछ झूठ नहीं बोला था मैंने, अपने इदारे में पैर जमाने के लिए हर वो हथकंडा़ अपनाना पड़ता, जिस से कानून और व्यवस्था में लोगों का भरोसा और खौफ दोनों ही बने रहे।
इस घटना से डैड थोडे़ नाराज लग रहे थे मगर पाजि़टिव बात यह थी, राजोरिया अंकल अजमेर चल रहे थे। उनका अंदाजा था उनके वहां होने से मेरे नशा करने की तादात में थोडी़ कमी आएगी। सोने जाने से पहले डैड मुझे बालकनी में आने को कहा, जब में वहां पहुँचा तो डैड ने व्हिस्की का ग्लास मेरे आगे कर दिया।
" हीरो सिर्फ कहानियों या फिल्मों में ही अच्छे लगते हैं समर, असल जिंदगी में सब विलेन होते हैं " मेरे कंधे को सहलाते हुऐ डैड ने पीने का सिग्नल दिया।
" इम्म्म...... आप भूल रहे हैं डैड, टीवी वाले मुझे विलेन बता रहे थे " खाली ग्लास टेबल पर रखकर मैं अपने लिए सिगरेट सुलगाने लगा।
" सीखने तो लगा है तू अब, पर मुझे अभी भी डर लगता है। शायद इसलिए कि मैं इक बाप हूँ " इक लम्बी सांस ले कर मुस्कुराते हुऐ डैड अगली डोज़ की तैयारी करने लगे।
डैडी से बातें करते-करते इक मुखबिर का मैसिज आया। उसके मुताबिक कल बेवंजा माइनिंग एरिया में कुछ बडा़ होने वाला था। काॅल करने पर उसका मोबाइल नंबर बंद आ रहा था, इसका मतलब खबर पक्की थी। एक-दो जगह फोन करने के बाद हमने एक-एक लार्ज पैग लिया और सोने चले गये।
अगला दिन मेरे लिए बहुत बदतर रहा। रात मुखबिर से मिले इनपुट को, ज्याती ईगो की वजह से मेरे सीनियर द्वारा दरकिनार कर, एक एस.डी.एम और खनन विभाग की टीम को कुर्बानी का बकरा बना दिया। बस गनीमत सिर्फ इतनी ही थी कि हमले में कोई मरा नहीं था, नहीं तो मेरे सीनियर को अपने सीनियर, सरकार और मीडिया तीनों को जवाब देना भी मुश्किल हो जाता।
दफ्तर से फारिग होने के बाद मैं राजोरिया अंकल से मिलने हाॅस्पिटल गया तो पता लगा, हमले में घायल लोगों का इलाज यहीं चल रहा था। इंसानियत और इक जिम्मेदार पद पर होने के लिहाज से उनसे मिलकर उनका हालचाल जानना मुझे वाजि़ब लगा, और जब मैं उन्हें देखने गया तो एक शख्शियत को वहां देखकर मेरी पुतलियां सिकुड़ गई। ये मोहतरमा वही थी, जिसने जीप में धक्का लगाने में उस रात मेरी मदद की थी।
किसी के चिल्लाने की अवाज सुनकर मैंने सुरक्षाकर्मी को वहां साइलेंस मेंटेंन करने का निर्देश दिया और बाकी के घायलों से मिलने लगा। उनके बयानों से मोहतरमा के नाम और काम दोनों के बारे में पता लग गया। मैडम का नाम था अपराजिता निंबालकर और वो एसडीएम ब्यावर थीं। अंदर ही अंदर में खुश हो रहा था, कि अब मेरे पास बहुत सारे रीजन्स हैं यहां बार बार चक्कर लगाने के।
अगले दिन दफ्तर जाने से पहले मैं माॅम को हाॅस्पिटल छोड़ने आया तो मुझे देखकर एक बुजुर्ग बुरी तरह भड़क गये, और पुलिस की लापरवाहियों को मेरे शराब पीने से जोड़ कर मुझे लानतें भेजने लगे। ताज्जुब की बात ये थी, उनको पता नहीं था जिनसे बात करते हुए वो मुझे गालियां सुना रहे थे, वो और कोई नहीं मेरे डैड ही हैं, और मुझे भी पता नहीं था कि वो अपराजिता मैडम के डैड हैं।
यह जानकर, अपराजिता मैडम से मिलने की मेरी सारी तैयारियां, अरमान और प्लानिंग एक झटके में हवा हो गये। उनके बारे में सोचने भर से ही मेरा दिमाग सुन्न पड़ जाता, सूझता ही नहीं था कुछ। इसलिए मेरा हाॅस्पिटल जाना बंद हो गया तो दूसरी तरफ अंकल की सर्जरी भी निबट गयी।
फिर एक दिन आंटी ने मुझे जल्दी आने के लिए कहा, वजह पूछने पर उन्होने बताया शिवानी ने वहां कोई सीन क्रिएट कर दिया था। शहर से बाहर होनी की कारण मेरा जाना संभव नहीं था, इसलिए पास की चौकी को अंकल के सेफ्टी के लिए इंफार्म कर दिया। मगर बात यहीं पर खत्म नहीं हुई थी, अगली सुबह मेरा नाम फिर सुर्खियों में था। खबर थी, ज़ायदाद की खातिर सहायक पुलिस अधीक्षक ने परिवार को बंधक बनाया।
शहर में उर्स(मेला) के लिए आज मीटिंग रखी गई थी, और इस हैडलाईन के साथ मुझे मीटिंग में जाना था। कभी कभी तो हंसी आती थी मुझे अपने नसीब पर, शर्मिंदगी से मेरा हमेशा चोली-दामन का साथ रहा। डैड का मानना था, सबका भगवान होता है, पर मेरा भगवान न जाने कब से भांग खाकर सो रहा था।
" मुबारक हो मिस्टर धर... बडे़ मशहूर होते जा रहे हैं आजकल आप "
मीटिंग में जो ना हुआ वो अपराजिता मैडम ने कांफ्रेस रुम से बाहर आकर कर दिखाया। कुछ लोगों के ठहाकों की आवाज तो कईयों की मुस्कुराहटों से छलनी मेरी रुह को उस वक्त वहां से निकलना ही बेहतर लगा। ऐसा नहीं था कि मेरे पास कोई जवाब नहीं था, बस मैं बचाता था खुद को औरों की तरह बेरहम बनने से।
" सर काफी देर से आपका फोन बज रहा है "
ड्राइवर के हिलाने पर मैं खयालों से बाहर निकला और काॅल का आन्सर किया, " जी कहिये "
" अपराजिता बोल रही हूँ मिस्टर धर, क्या हम कुछ देर बात कर सकते हैं " दूसरी तरफ से आवाज आई।
" जरूर मैम "
" वो... आप बिना जवाब दिये गये तो बाद में अहसास हुआ कि मुझे ऐसे नहीं बोलना चाहिये था "
" इट्स ओके मैम, आपने कुछ गलत नहीं कहा। शोहरत मेरे पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान है। मुझे तो इवन आप सब का थैंक्स बोलना चाहिये था "
" साॅरी... वो बस इक मजा़क था और मुझे नहीं पता था कि बाकी लोग ऐसे रिएक्ट करेंगे "
" देखिये आप बेवजह परेशान हो रही हैं, मेरा यकीन करें मुझे किसी से कोई गिला नहीं है "
" चलो मैं यकीन कर लेती हूँ पर क्या आज शाम को मिल सकते है? "
" कभी भी मिल सकती हैं आप मेरे निवास पर "
अपने दिल का गुबार तो मैं कब का निकाल चुका था फिर शाम को मिलने के खयाल से रूह दुबारा से गुलजा़र होने लगी। तभी मुझे याद आया, निवास पर तो माॅम-डैड और अंकल आंटी भी होते, डर लगने लगा, कहीं वो हमारे कैजुअल मिलने को गलत इंटरप्रेट कर मुझे इंबैरश ना कर दें। आज के दिन और शर्मिंदगी उठाना नहीं चाहता था मैं इसलिए मैंने मेसेज भेजकर किसी दूसरी जगह मिलने का निवेदन किया।
भूतिया हलवाई, अलवर गेट के पास एक बेहद व्यस्त और भीड़-भाड़ वाला इलाका, यह वो जगह थी जहां आज हम मिल रहे थे। दिमाग ठनक गया था मेरा, मगर फिर याद आया, मुहब्बत में लोगों ने सर कटाए हैं, मुझे तो वहां सिर्फ लस्सी ही पीनी थी।
" बस लस्सी खरीदने के लिए बुलाया था यहां?? "
" हां, वैसे भी आपके कहवा से तो यह बेहतर ही है... ओके मैं फिर से मजा़क कर रही थी " खनकती हंसी और दिलकश मुस्कुराहट के साथ अपराजिता मैड़म ने जवाब दिया।
" कहवा!!! " मुझे समझ नहीं आया।
" इतनी भीड़ में शराब बोला तो आप फिर से नाराज हो जाते " सरगोशी से बोलते हुए मैडम ने अपनी अकलमंदी का तअारुफ कराया।
हैरान था मैं उसकी हिम्मत पर, इतनी भीड़ में, सबके सामने मेरे जैसे बदनाम शख्श के साथ, छोटी सी दुकान के सामने खडे़ होकर लस्सी पीना। खैर, जो भी हो मेरे मन की मुराद तो पूरी हो ही रही थी। कल तक जो सपने जैसा था, सोचा नहीं था इतना जल्दी सच साबित होगा। मुलाकत के दो दिन बाद जान-पहचान, तीसरे दिन बोलचाल और फिर सीधे लस्सी, सितारे बुलंद थे आज मेरे, अब देखना यह था कल मेरे साथ क्या होता है।
करीब 26 मिनट्स का वो साथ, बहुत यादगार रहा। हालांकि पहली बारी में, बातचीत ज्याती(पर्सनल) नहीं थी मगर उनका रुख कुछ ऐसा था, जैसे बचपन से वो मेरे को जानते हों। इस मुलाकात के बाद बहुत खुश रहने लगा था मैं और शाम को नशा करना भी इस डर से छोड़ दिया, कि उनका फोन-काॅल आया और जज़्बातों में गलती से कहीं मेरी जुबान फिसल जाये तब..... मसलन ऐसे ही चीजों को बेवजह पहले से अंदाजा़ लगाना... प्लान करना और फिर से अंदाजा़ लगाना... बस ऐसे ही वक्त गुजरता था मेरा।
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