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Incest पहाडी मौसम

rohnny4545

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मुखिया की बीवी और सूरज दोनों आम के बगीचे में पहुंच चुके थे बगीचा एकदम घना था चारों तरफ आम के बड़े-बड़े पेड़ नजर आ रहे थे वैसे रात का समय था इसलिए कुछ खास ज्यादा दिखाई तो नहीं दे रहा था लेकिन जिस तरह का घना अंधेरा था उसे देखते हुए सूरत समझ गया था कि यह जगह आम के पेड़ों से पूरी तरह से घिरा हुआ था,,, और ऐसे में मुखिया की बीवी का पेशाब करने वाली बात का कहना सूरज के लिए पूरी तरह से उत्तेजना का संचार करने वाला साबित हो रहा था क्योंकि आज तक सूरज ने किसी औरत के मुंह से यह कहते हुए नहीं सुना था कि उसे बड़े जोरों की पेशाब लगी है यह मौका उसके लिए पहली बार का था इसीलिए तो उसके कान एकदम से खड़े हो गए थे और साथ में उसके पजामे में उसका लंड भी,,,, अपनी औकात में आ चुका था,,,,।

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मुखिया की बीवी के मुंह से पेशाब करने वाली बात सुनकर सूरज पूरी तरह से चौंक गया था क्योंकि उसे यकीन नहीं हो रहा था कि कोई औरत उसे यह शब्द का प्रयोग कर सकती है वह आश्चर्य से मुखिया की बीवी की तरफ ही देख रहा था जो की लालटेन की पीली रोशनी में पूरी तरह से दमक रहा था सूरज को पहली बार एहसास हो रहा था की मुखिया की बीवी कुछ ज्यादा ही खूबसूरत है उसका भरा हुआ चेहरा गोल-गोल ऐसा लग रहा था कि मानो जैसे गुलाब का फूल हो,,,, वह अभी भी सूरज के कंधों का सहारा लेकर खड़ी थी उसके बदन से उठ रही मादक खुशबू सूरज की तन बदन में आग लग रही थी इतने करीब वह किसी भी औरत के नहीं आया था जितना करीब मुखिया की बीवी के था,,,।

वैसे तो वह जानबूझकर ही सूरज को अपनी गांड दिखाने के लिए पेशाब करने वाली बात कही थी लेकिन पेशाब करने के नाम से ही उसे वास्तव में बड़े जोरों की पेशाब लग गई थी जिसकी वजह से वह अपने पैर को इधर-उधर रख रही थी वह अपनी पेशाब की तीव्रता को रोक नहीं पा रही थी उसकी हालत को देखकर सूरज भी समझ गया था कि वाकई में इसे पेशाब लगी है लेकिन वह पूरी तरह से मदहोश हो चुका था क्योंकि उसने आज तक किसी भी औरत को पेशाब करने की मुद्रा में कल्पना नहीं किया था उसके जीवन में पहली औरत उसके दोस्त की चाची थी जिसे वह पेशाब करते हुए देखा था और उसके दोस्त ने हीं दिखाया था,,,। सूरज को समझ में नहीं आ रहा था कि मुखिया की बीवी से वह क्या बोले,,, और मुखिया की बीवी खेली खाई औरत थी सूरज के मन की बात को अच्छी तरह से समझ रही थी सूरज के चेहरे के बदलते भाव को देखकर वह मन ही मन प्रसन्न हो रही थी क्योंकि वह समझ गई थी कि उसके मुंह से पेशाब करने वाली बात सुनकर सूरज पूरी तरह से हक्का-बक्का हो गया है,,,, इसलिए वह फिर से बोली,,,,।

समझ में नहीं आ रहा क्या करूं,,,,!

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अब जैसा तुम ठीक समझो अगर रोक सको तो,,,(घबराते हुए सूरज ने बोला उसकी बात सुनकर मुखिया की बीवी बोली,,,,)

पागल हो गया है क्या कोई रोक सकता है अगर रोक भी सकता है तो कितनी देर तक पेट दर्द करने लगेगा पागल,,,

नहीं मेरे कहने का मतलब यह नहीं था,,,,

तू रहने दे अपने खाने के मतलब को यहां मेरी हालत खराब हो रही है अच्छा तो एक काम कर लालटेन को ठीक से पकड़,,,, और मेरी तरफ तु बिल्कुल भी मत देखना,,,

कैसी बात कर रही हो मालकिन मैं इतना बेशर्म थोड़ी हूं जो किसी औरत को,,,,(इतना कहकर सूरज रुक गया क्योंकि आगे का शब्द उसे कहने में शर्म महसूस हो रही,,, थी,,,।)

अच्छा ठीक है तो मुझे सहारा देकर उस झाड़ियों के पास ले जा,,,,

कहां ,,,,,,उधर,,,,(हाथ के इशारे से घनी झाड़ियां के बीच बताते हुए सूरज बोला,,,)

हां वही आज तो मुझे आना ही नहीं चाहिए था अगर मुझे पता होता है कितनी दिक्कत होगी तो मैं आता ही नहीं लेकिन अगर नहीं आती तो,,,, फिर कोई भी जाकर आम तोड़ कर ले जाता तूने देखा नहीं है सूरज इस बगीचे के हम बहुत बड़े-बड़े हैं खरबूजे जैसे मैं तुझे कल दूंगी,,,,,(मुखिया की बीवी के बाद जीत के दौरान सूरज उसे सहारा देकर घड़ी झाड़ियां के पास ले गया)

अब तू थोड़ा पीछे हो जा,,, लालटेन जितना लालटेन की रोशनी से ज्यादा दूर नहीं क्योंकि सांप बिच्छू का डर रहता है।

तुम चिंता मत करो मालकिन मैं चारों तरफ देख रहा हूं,,,,

भले तो चारों तरफ देखना लेकिन मेरी तरफ अभी मत देखना मुझे बहुत शर्म आती है,,,

नहीं नहीं मालकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं होगा मैं इतना गिरा हुआ नहीं हूं,,,,।
(मुखिया की बीवी जान बैठकर उसे अपनी तरफ ना देखने के लिए बोल रही थी लेकिन वह जानती थी कि सूरज उसे देखे बिना नहीं रह पाएगा क्योंकि वह मर्दों की फितरत से अच्छी तरह से वाकिफ थी,,, सूरज तीन-चार कदम दूर जाकर खड़ा हो गया जहां से लालटेन की रोशनी मुखिया की बीवी तक आराम से पहुंच रही थी वैसे भी वह इससे ज्यादा दूर नहीं जाना चाहता था क्योंकि वह लालटेन की रोशनी में मुखिया की बीवी को पेशाब करते हुए देखना चाहता था उसकी नंगी गांड के दर्शन करना चाहता था वह देखना चाहता था की पेशाब करती हुई औरत कितनी खूबसूरत लगती है क्योंकि वह अपने मां के इस लालच को दवा नहीं पा रहा था भले ही मुखिया की बीवी ने उसे ऐसा न करने की सलाह दी थी लेकिन वह मानने वाला नहीं था वह क्या दुनिया का कोई भी मर्द होता तो शायद इस समय मुखिया की बीवी की बात मानने से इनकार कर देता,,,,, मुखिया की बीवी झाड़ियां के पास खड़ी थी वह जानती थी कि इस बगीचे में सूरज के सिवा और कोई नहीं है फिर भी वह इधर-उधर देख ले रही थी कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है यह उसकी आदत में शुमार था वैसे भले ही वह छिनार बन चुकी थी लेकिन फिर भी पेशाब करते हैं समय आदत के अनुसार वह इधर-उधर देख लेती थी कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है और वैसे भी ज्यादा तर वह पेशाब करने बैठी थी तो किसी ना किसी को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए ही,,,, जिसमें आज सूरज का नंबर था सूरज को वह पूरी तरह से अपनी जवानी का दीवाना बना देना चाहती थी ताकि वह उसका गुलाम बनकर रह जाए,,,, मुखिया की बीवी अपनी साड़ी को दोनों हाथों से पकड़ कर सूरज की तरफ देखे बिना ही वह बोली,,,)

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तु यहां देख तो नहीं रहा है ना,,,,

नहीं मालकिन बिल्कुल भी नहीं,,,,( वह जानबूझकर अपनी नजर को दूसरी तरफ घूम लिया था)

ठीक है ऐसे ही खड़े रहना जब तक कि मैं पेशाब न कर लूं,,,,,(और इतना कहते हुए वहां अपने दोनों हाथों की नाजुक उंगलियों का सहारा लेकर अपनी साड़ी को उसमें फंसा कर ऊपर की तरफ उठने लगी जैसे-जैसे साड़ी ऊपर की तरफ जा रही थी वैसे सूरज का दिल बड़े जोरों से धड़क रहा था वह तिरछी नजर से मुखिया की बीवी की तरफ ही देख रहा था,,,, देखते ही देखते मुखिया की बीवी की साड़ी उसके घुटनों तक उड़ गई उसकी मोटी मोटी मांसल चिकनी पिंडलियों को देखकर सूरज के बदन में उत्तेजना की लहर उठने लगी उसका लंड अकड़ने लगा,,,, धीरे-धीरे मुखिया की बीवी साड़ी को अपनी टांगों के ऊपर ले जा रही थी वह जानबूझकर धीरे-धीरे अपनी साड़ी को ऊपर उठा रही थी ताकि सूरज उसके बेहतरीन हुस्न को देखकर मदहोश हो जाए उसकी जवानी चारों खाने चित हो जाए,,, और ऐसा हो भी रहा था।

देखते ही देखते मुखिया की बीवी की साड़ी उसकी मोटी मोटी जांघों की ऊपर तक आ गई इतना ऊपर की सूरज को उसके नितंबों का नीचला हिस्सा दिखने लगा था और नितंबों के उसे गोलाकार आकार को देखकर सूरज की तो जैसे सांस ही अटकी जा रही थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था गांव से दूर अाम के बगीचे में इतना गर्म गर्म दृश्य देखने को मिलेगा उसने कभी कल्पना भी नहीं किया था। जिस तरह से सूरज की हालत खराब थी उसी तरह से मुखिया की बीवी की भी हालत खराब हो रही थी हालांकि वह कई मर्दों के सामने अपने वस्त्र उतार कर नग्न हो चुकी थी लेकिन आज पहली बार उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि कपड़े उतारते समय भी उसके बाद में उत्तेजना की लहर उठ रही थी वह मदहोश हो रही थी,,, आज उसे एक जवान लड़की के सामने अपने कपड़े उठाने में बेहद शर्म महसूस हो रही थी और इस शर्म की महसूसियत उसे अपनी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार से बहती हुई महसूस हो रही थी,,,,।

जिस तरह से सूरज का दिल जोरों से धड़क रहा था उसी तरह से मुखिया की बीवी की भी सांस बड़ी तेजी से चल रही थी क्योंकि बस थोड़ा सा और उसकी अपनी साड़ी उठाना था इसके बाद सूरज को वही दिखने वाला था जो वह दिखाना चाहती थी उसकी गांड एकदम नंगी हो जाने वाली थी और इसी पल का सूरज के साथ-सा त मुखिया की बीवी को भी बड़ी बेसब्री से इंतजार,,,।

आम के बगीचे में पूरी तरह से सन्नाटा छाया हुआ था बस चारों तरफ झींगुरों का शोर मचा हुआ था रहने कर दूर दराज से कुत्ते के भौंकने की भी आवाज आ रही थी कुल मिलाकर वातावरण भयानक ही था लेकिन इस भयानक वातावरण में भी मुखिया की बीवी अपनी जवानी के जोर से पूरे वातावरण को मदहोश बना दी थी,, सूरज जो की रात को बेवजह घर के बाहर नहीं निकलता था आज पहली बार मुखिया की बीवी के साथ वह खुली रात का आनंद ले रहा था और उसे पहली बार एहसास हो रहा था कि रात में कितना मजा आता है रात में जितना दर का माहौल होता है उससे भी ज्यादा कहीं आनंद का माहौल बना होता है बस माहौल बनाने वाली होनी चाहिए,,, और इस समय रात के भयानक वातावरण में मदहोश कर देने वाला माहौल बनाने वाली थी मुखिया की बीवी जिसके अंग अंग से जवानी टपक रही थी,,,।

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मुखिया की बीवी अब ज्यादा देर नहीं करना चाहती थी क्योंकि अभी रात बहुत बाकी थी और पूरी रात उसे आनंद लेना था इसलिए वह अपनी उंगलियों को हरकत करते हुए बाकी साड़ियों को भी अपने नितंबों से ऊपर उठा ली और देखते ही देखते लालटेन की पीली रोशनी में मुखिया की बीवी की भारी भरकम गोरी गोरी गांड एकदम से चमकने लगी जिस पर नजर पड़ते ही सूरज की हालत एकदम से खराब हो गई उसकी आंखें फटी की फटी रह गई मुखिया की बीवी की नंगी गांड देखकर वह मदहोश हो गया,,,,।

देख तो नहीं रहा है ना रे,,,,।

(मुखिया की बीवी पीछे नजर घुमाई बिना ही बोली क्योंकि वह तो जानती ही थी कि सूरज उसे ही देख रहा होगा पर इसीलिए वह सूरज के रंग में भंग नहीं डालना चाहती थी,,,, मुखिया की बीवी के इस सवाल पर सूरज पूरी तरह से हड़बड़ा गया और हडबढ़ाते स्वर में बोला,,,।)

नननन,,, नहीं बिल्कुल भी नहीं मैं ऐसा कर भी नहीं सकता,,,,।

(सूरज के लड़खड़ाते शब्दों को सुनकर मुखिया की बीवी के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव में जलने लगी क्योंकि उसके लड़का आते हुए शब्द ही उसके मन की बात को बयां कर रहे थे वह मुस्कुराने लगी और साड़ी को कमर तक उठाए हुए ही वह नीचे बैठ गई और अगले ही पल उसकी गुलाबी पूरे से पेशाब की धार फूट पड़ी और उसमें से एक तीर्व मधुर आवाज पूरे वातावरण में गुंजने लगी जो कि यह आवाज सूरज के कानों तक बड़े आसानी से पहुंच रही थी सूरत समझ गया था कि उसकी बुर से पेशाब निकल रहा है वह भी इस एहसास से ही मदहोश हुआ जा रहा था उसका लंड पूरी तरह से अकड़ गया था,,,। सूरज के लिए यह नजारा बेहद अद्भुत और अतुलनीय इस तरह के नजर को कभी अपनी आंखों से देखा नहीं था बस उसके दोस्त ने दूर से ही दिखाया था लेकिन इतना साफ-साफ उसे समय भी नहीं नजर आ रहा था क्योंकि वह काफी दूर था और झाड़ियां के पीछे खुद छुपा हुआ था लेकिन यहां सब कुछ खुला था लाल टीम की पीली रोशनी में मुखिया की बीवी पूरी तरह से नजर आ रही थी उसकी नंगी बड़ी-बड़ी गांड देखकर तू सूरज के मुंह में पानी आ रहा था उसका मन कर रहा था कि आगे बढ़कर मुखिया की बीवी की गांड को दोनों हाथों से पकड़ ले वह औरत की गांड को दोनों हाथों से पकडने का सुख भोगना चाहता था उसे सहलाना चाहता था देखना चाहता था की साड़ी में कसी हुई गांड वास्तव में छूने पर कैसी होती है,,,,।

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मुखिया की बीवी की गुलाबी बुर में से निकल रही सीधी की आवाज पूरे वातावरण में गूंज रही थी और इस बात का एहसास मुखिया की बीवी को भी था वह अच्छी तरह से जानती थी कि बुर से निकल रही सिटी की आवाज सूरज के कानों में अच्छी तरह से पहुंच रही होगी और वही समाज को सुनकर पूरी तरह से मदहोश हो चुका होगा,,, वह इतना तो जानती ही थी कि सूरज उसकी तरफ ही देख रहा होगा लेकिन फिर भी वह अपने मन की तसल्ली के लिए हल्की नजरों से पीछे की तरफ देखने की कोशिश की तो वास्तव में सूरज आंख फाड़े उसकी तरफ ही देख रहा था उसके एक हाथ में कल आ रही थी और दूसरे हाथ में लालटेन थी,,, मुखिया की बीवी के तेज नजरों ने उसकी पजामे में उठे हुए भाग को भी देख ली थी और उसे भाग को देखकर उसके चेहरे की प्रसन्नता बढ़ने लगी और अंदर ही अंदर खुश होने लगी क्योंकि वह अपनी चाल में कामयाब होती हुई नजर आ रही थी वह जानती थी कि आज रात भर वह सूरज के साथ मजा लुटेगी,,,। फिर भी वह बोली,,,)

क्या रे सूरज देखा तो नहीं रहा है ना,,,

बिल्कुल भी नहीं मालकिन मैं अपने वादे का पक्का हूं एक बार कह दिया तो कह दिया,,,

मुझे तुझे यही उम्मीद थी तेरी जगह कोई और होता तो अपनी नजरों को यहां घूमाने से रोक नहीं पाता तु बहुत सीधा लड़का है,,।
(ऐसा कहते हुए वह अपनी बुर की गुलाबी छेद के अंदर से जोर लगाकर बड़े जोरों से पेशाब कर रही थी और उसके पेशाब की धार सामने की घास को भिगो रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे वह पानी दे रही हो,,,, देखते ही देखते वह पूरी तरह से पेशाब कर चुकी थी लेकिन उसके झांट के बालों में उसके पेशाब की बूंदे अभी भी लगी हुई थी जिसे वह उठने से पहले अपनी बड़ी-बड़ी भारी भरकम गांड को झटका देते हुए अपने झांट के बाल में से पेशाब की बूंद को नीचे गिराने की कोशिश करने लगी,,, लेकिन उसकी यह हरकत सूरज के लिए बेहद जानलेवा साबित हो रही थी सूरज ठीक उसके पीछे खड़ा होकर मुखिया की बीवी को अपनी गांड झटकाते हुए देख रहा था,,, और उसके ऐसा करने पर उसकी गांड पूरी तरह से पानी में गिरे कंकड की तरह लहर मार रही थी,,, मुखिया की बीवी की तरफ से उसकी है हरकत सूरज को पूरी तरह से मदहोश कर गई और अनजाने में ही उसका हाथ पजामा के ऊपर से ही उसके खड़े लंड पर आ गया जिसे वह जोर से दबा दिया,,,, और उसकी यह हरकत पैनी नजरों से मुखिया की बीवी ने देख ली थी,,,। और मंद मंद मुस्कुराने लगी उसे यकीन हो गया था कि उसका जादू सूरज पर पूरी तरह से चल गया था,,, और वह पेशाब करने के बाद धीरे से उठकर खड़ी हो गई और फिर कमर तक उठे हुई साड़ी को वह धीरे से नीचे गिरा दी और पल भर में ही एक खूबसूरत नाटक पर पर्दा पड़ गया,,,, वह मुस्कुराते हुए सूरज की तरफ घूम गई और बोली,,,।

अब जाकर राहत हुई वरना ऐसा लग रहा था कि मैं चल ही नहीं पाऊंगी इतना दर्द कर रहा था मेरा पेट,,,,

चलो अच्छा हुआ मालकिन की तुम्हें आराम हो गया,,,,।

(सूरज चलने को तैयार था लेकिन मुखिया की बीवी उसके पास आकर उसके हाथ से लालटेन और कुल्हाड़ी लेते हुए बोली,,,,)

एक काम कर सूरज तू भी पेशाब कर ले वरना रात को लगेगी तो ऐसे माहौल में बाहर निकलना ठीक नहीं है क्योंकि सियार घूमते ही रहते हैं,,,,।
(सियार शब्द सुनकर ही सूरज को थोड़ी घबराहट हुई वह पेशाब नहीं करना चाहता था क्योंकि उसे लगी नहीं थी लेकिन मुखिया की बीवी का ठीक कहना भी था अगर रात को लगेगी तब क्या करेगा,,,, इसलिए वह तैयार हो गया और जहां पर मुखिया की बीवी बैठकर पेशाब कर रही थी उसे जगह पर जाने लगा और उसने लालटेन की रोशनी में गीली जमीन को देखा तो मन ही मन उत्तेजित होने लगा क्योंकि जहां पर मुखिया की बीवी बेठी थी वहां की मिट्टी मुखिया की बीवी के पेशाब से पूरी तरह से गीली हो चुकी थी,,,,। सूरज कदम आगे बढ़कर वहां से आगे निकल जाना चाहता था क्योंकि उसे भी मुखिया की बीवी के सामने पेशाब करने में शर्म महसूस हो रही थी लेकिन तभी मुखिया की बीवी ने उसे रोकते हुए बोली,,,)

अरे आगे मत जा जहां पर मैं कर रही थी वही कर ले आगे सांप बिच्छू का डर रहता है,,,,।
(मुखिया की बीवी अपने फायदे के लिए उसे पास में रखना चाहती थी लेकिन वह शर्म के मारे आगे चला गया लेकिन जैसे ही वह अपने पजामे पर हाथ रख वैसे ही झाड़ियां में हलचल हुई और वह एकदम से घबरा गया और तो कभी पीछे ले लिया मुखिया की बीवी भी इसी पल का फायदा उठाते हुए उसके पास पहुंच गई और उसका हाथ पकड़ कर पीछे की तरफ खींचने लगी और बोली,,,,)

मैं कह रही हूं ना कि मत जा सांप बिच्छू का डर रहता है देख सांप निकल कर गया ना,,,,।

ओहहहह मालकिन मैं तो देखा ही नहीं मैं तो एकदम से घबरा गया,,,,।(डर के मारे हांफते हुए सूरज बोला,,,)

इसलिए तो कह रही हूं,,,, चल अब आगे मत जा यही पेशाब कर ले,,,, अगर तुझे कुछ हो गया तो तेरे घर वालों को क्या जवाब दूंगी,,,,,।
(झाड़ियों में सुरसुराहट की वजह से मुखिया की बीवी का काम बनता हुआ नजर आ रहा था,,,,, मुखिया की बीवी की बात सुनकर सूरज असहज होता हुआ बोला,,,,)

यहां,,,, नहीं नहीं मुझसे नहीं होगा,,, तुम्हारे सामने कैसे,,,,,


अरे तो क्या हो गया,,,, तू तो मेरे बेटे जैसा है और कोई मां भला अपने बेटे को नुकसान होने देना चाहेगी इसलिए तू यहीं पर कर ले अगर तुझे शर्म आती है तो मैं अपनी नजर घुमा लेती हूं,,,,,।
(इतना कहते हुए मुखिया की बीवी चालाकी दिखाते हुए अपनी नजर को दूसरी तरफ घुमली थी उसके हाथ में कुल्हाड़ी थी और दूसरे हाथ में लालटेन थी लालटेन की पीली रोशनी में सब कुछ साफ नजर आ रहा था मुखिया की बीवी के सामने पेशाब करने में सूरज शर्म महसूस कर रहा था लेकिन उसे भी जोरों की पेशाब लग चुकी थी और मुखिया की बीवी नजर दूसरी तरफ घूम कर रखी थी इसलिए उसकी हिम्मत बढ़ने लगी और वह धीरे से पजामे को पकड़ कर नीचे कर दिया पजामे के नीचे होते ही उसका खड़ा लंड एकदम से हवा में झूलने लगा,,,, झाड़ियों में हुई सुरसुराहट की वजह से कुछ देर के लिए उसके लंड में थोड़ा ढीलापन आ गया था लेकिन सूरज के हाथ में आते ही एक बार फिर से उसमें रक्त का प्रभाव बड़ी तेजी से होने लगा और वह एकदम से कड़क हो गया और वह शर्म महसूस करते हुए पेशाब करना शुरू कर दिया,,, पेशाब गिरने की आवाज कान में पडते ही,,, मुखिया की बीवी की दोनों कामों के बीच हलचल होना शुरू हो गया उसकी उत्सुकता बढ़ने लगी और वह अपने आप को सूरज की तरफ देखने से रोक नहीं पाई,,,, और वह धीरे से सूरज के लंड की तरफ निगाह घूमा कर देखने लगी तो उसके होश उड़ गए,,,, उसका मुंह खुला का खुला रह गया उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था क्योंकि आज तक कुछ नहीं इतना मोटा और लंबा लंड कभी नहीं देखी थी,, ।

सूरज के मोटे तगड़े लंड पर मुखिया की बीवी की नजर पढ़ते ही उसकी बुर उत्तेजना के मारे फुलने पीचकने लगी,,,, उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था उसे लग रहा था कि वह कोई सपना देख रही है कितना मोटा और लंबा लंड भी हो सकता है इसका उसे अंदाजा ही नहीं था,,, क्योंकि जवानी से लेकर उम्र के ईस पड़ाव तक बन जाने कितने लैंड को अपनी बुर में ले चुकी थी लेकिन आज तक उसकी आंखों के सामने उसकी बुर के अंदर इतना मोटा और तगड़ा लंड कभी भी प्रवेश नहीं कर पाया था,,, या यूं कह लो कि आज तक जितने भी मर्द उससे मिले थे उनका लंड ऐसा था ही नहीं तभी तो मुखिया की बीवी एकदम आश्चर्य चकित हो गई थी उसकी आंखों में उसे पाने की चमक साफ नजर आ रही थी सूरज को भी इस बात का एहसास हो गया था की मुखिया की बीवी उसके लंड को देख रही थी और यह एहसास होते ही सूरज के तन-बड़े में आग लगने लगी यह पहली मर्तबा था जब कोई औरत उसके लंड की तरफ देख रही थी,,,, सूरज शर्म से मरा जा रहा था लेकिन उसे अपने बदन मेंअत्यधिक उतेजना का अनुभव हो रहा था उसके हाथ में अभी भी उसका लंड था जिसमें से पेशाब की धार फूट रही थी वह मुखिया की बीवी को यह नहीं बोल पाया कि वह अपनी नजर को दुसरी तरफ कर ले क्योंकि ना जाने क्यों उसके मन में भी ऐसा हो रहा था की मुखिया की बीवी उसके लंड की तरफ देखते ही रहे,,, यही तो जवानी का नशा था यही तो इस उम्र की चाहत थी और इसी में सूरज मदहोशी के चरम शिखर पर विराजमान होता जा रहा था,,,,।

पेशाब करने के बाद जैसे ही सूरज ने लंड में से पेशाब की बूंद को झटकने के लिए अपने लंड को ऊपर नीचे करके दो-चार बार झटका और उसके इस तरह से झटकते हुए लंड को देखकर मुखिया की बीवी की उत्तेजना उसके बस में बिल्कुल भी नहीं रही और उसकी बुर से मदन रस की बुंद टपक कर नीचे जमीन पर गिर गई,,,, और फिर बिना कुछ बोले सूरज अपने लंड को वापस पजामे में डाल दिया लेकिन उसमें तंबू बना हुआ था,,,,।

हो गया मालकिन,,,,

हां अब ठीक है ,,ले लालटेन पकड़,,,, अब हमें चलना चाहिए,,,,, देख वह रही झोपड़ी बड़े से पेड़ के नीचे,,,, मैं आम के बगीचे की रखवाली के लिए ही है झोपड़ी बनवा कर रखी हूं,,,,,।
(हालांकि घना अंधेरा होने की वजह से वह झोपड़ी ठीक से सूरज को दिखाई नहीं दे रही थी लेकिन वह लालटेन पकड़कर आगे आगे चलने लगा,,,, और देखते ही देखते दोनों उस झोपड़ी के पास आ गए कुछ झोपड़ी के पास एक हेड पंप भी बना हुआ था,,, और हेड पंप को देखकर सूरज बोला,,,)

यह तो अच्छा की हो मालकिन की यहां पर हेड पंप गडवा कर रखी हो वरना अगर पानी प्यास लग जाए तो इंसान तो अपनी बिगर ही मर जाएगा,,,,।

इसीलिए तो हेड पंप लगवाई हूं,,,,,(इतना कहते हुए दोनों झोपड़ी के एकदम पास पहुंच गए एक हाथ में कुल्हाड़ी लिए हुए,,, मुखिया की बीवी लकड़ी के बने दरवाजे को खोलने लगी और लकड़ी का दरवाजा खोलते ही सूरज के हाथ में से लालटेन को ले ली और खुद पहले झोपड़ी में प्रवेश कर गई और उसके पीछे सूरज,,,,)
 
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sunoanuj

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Bahut hi behtarin updates…. 👏🏻👏🏻👏🏻
 

Ajju Landwalia

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मुखिया की बीवी और सूरज दोनों आम के बगीचे में पहुंच चुके थे बगीचा एकदम घना था चारों तरफ आम के बड़े-बड़े पेड़ नजर आ रहे थे वैसे रात का समय था इसलिए कुछ खास ज्यादा दिखाई तो नहीं दे रहा था लेकिन जिस तरह का घना अंधेरा था उसे देखते हुए सूरत समझ गया था कि यह जगह आम के पेड़ों से पूरी तरह से घिरा हुआ था,,, और ऐसे में मुखिया की बीवी का पेशाब करने वाली बात का कहना सूरज के लिए पूरी तरह से उत्तेजना का संचार करने वाला साबित हो रहा था क्योंकि आज तक सूरज ने किसी औरत के मुंह से यह कहते हुए नहीं सुना था कि उसे बड़े जोरों की पेशाब लगी है यह मौका उसके लिए पहली बार का था इसीलिए तो उसके कान एकदम से खड़े हो गए थे और साथ में उसके पजामे में उसका लंड भी,,,, अपनी औकात में आ चुका था,,,,।

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मुखिया की बीवी के मुंह से पेशाब करने वाली बात सुनकर सूरज पूरी तरह से चौंक गया था क्योंकि उसे यकीन नहीं हो रहा था कि कोई औरत उसे यह शब्द का प्रयोग कर सकती है वह आश्चर्य से मुखिया की बीवी की तरफ ही देख रहा था जो की लालटेन की पीली रोशनी में पूरी तरह से दमक रहा था सूरज को पहली बार एहसास हो रहा था की मुखिया की बीवी कुछ ज्यादा ही खूबसूरत है उसका भरा हुआ चेहरा गोल-गोल ऐसा लग रहा था कि मानो जैसे गुलाब का फूल हो,,,, वह अभी भी सूरज के कंधों का सहारा लेकर खड़ी थी उसके बदन से उठ रही मादक खुशबू सूरज की तन बदन में आग लग रही थी इतने करीब वह किसी भी औरत के नहीं आया था जितना करीब मुखिया की बीवी के था,,,।

वैसे तो वह जानबूझकर ही सूरज को अपनी गांड दिखाने के लिए पेशाब करने वाली बात कही थी लेकिन पेशाब करने के नाम से ही उसे वास्तव में बड़े जोरों की पेशाब लग गई थी जिसकी वजह से वह अपने पैर को इधर-उधर रख रही थी वह अपनी पेशाब की तीव्रता को रोक नहीं पा रही थी उसकी हालत को देखकर सूरज भी समझ गया था कि वाकई में इसे पेशाब लगी है लेकिन वह पूरी तरह से मदहोश हो चुका था क्योंकि उसने आज तक किसी भी औरत को पेशाब करने की मुद्रा में कल्पना नहीं किया था उसके जीवन में पहली औरत उसके दोस्त की चाची थी जिसे वह पेशाब करते हुए देखा था और उसके दोस्त ने हीं दिखाया था,,,। सूरज को समझ में नहीं आ रहा था कि मुखिया की बीवी से वह क्या बोले,,, और मुखिया की बीवी खेली खाई औरत थी सूरज के मन की बात को अच्छी तरह से समझ रही थी सूरज के चेहरे के बदलते भाव को देखकर वह मन ही मन प्रसन्न हो रही थी क्योंकि वह समझ गई थी कि उसके मुंह से पेशाब करने वाली बात सुनकर सूरज पूरी तरह से हक्का-बक्का हो गया है,,,, इसलिए वह फिर से बोली,,,,।

समझ में नहीं आ रहा क्या करूं,,,,!

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अब जैसा तुम ठीक समझो अगर रोक सको तो,,,(घबराते हुए सूरज ने बोला उसकी बात सुनकर मुखिया की बीवी बोली,,,,)

पागल हो गया है क्या कोई रोक सकता है अगर रोक भी सकता है तो कितनी देर तक पेट दर्द करने लगेगा पागल,,,

नहीं मेरे कहने का मतलब यह नहीं था,,,,

तू रहने दे अपने खाने के मतलब को यहां मेरी हालत खराब हो रही है अच्छा तो एक काम कर लालटेन को ठीक से पकड़,,,, और मेरी तरफ तु बिल्कुल भी मत देखना,,,

कैसी बात कर रही हो मालकिन मैं इतना बेशर्म थोड़ी हूं जो किसी औरत को,,,,(इतना कहकर सूरज रुक गया क्योंकि आगे का शब्द उसे कहने में शर्म महसूस हो रही,,, थी,,,।)

अच्छा ठीक है तो मुझे सहारा देकर उस झाड़ियों के पास ले जा,,,,

कहां ,,,,,,उधर,,,,(हाथ के इशारे से घनी झाड़ियां के बीच बताते हुए सूरज बोला,,,)

हां वही आज तो मुझे आना ही नहीं चाहिए था अगर मुझे पता होता है कितनी दिक्कत होगी तो मैं आता ही नहीं लेकिन अगर नहीं आती तो,,,, फिर कोई भी जाकर आम तोड़ कर ले जाता तूने देखा नहीं है सूरज इस बगीचे के हम बहुत बड़े-बड़े हैं खरबूजे जैसे मैं तुझे कल दूंगी,,,,,(मुखिया की बीवी के बाद जीत के दौरान सूरज उसे सहारा देकर घड़ी झाड़ियां के पास ले गया)

अब तू थोड़ा पीछे हो जा,,, लालटेन जितना लालटेन की रोशनी से ज्यादा दूर नहीं क्योंकि सांप बिच्छू का डर रहता है।

तुम चिंता मत करो मालकिन मैं चारों तरफ देख रहा हूं,,,,

भले तो चारों तरफ देखना लेकिन मेरी तरफ अभी मत देखना मुझे बहुत शर्म आती है,,,

नहीं नहीं मालकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं होगा मैं इतना गिरा हुआ नहीं हूं,,,,।
(मुखिया की बीवी जान बैठकर उसे अपनी तरफ ना देखने के लिए बोल रही थी लेकिन वह जानती थी कि सूरज उसे देखे बिना नहीं रह पाएगा क्योंकि वह मर्दों की फितरत से अच्छी तरह से वाकिफ थी,,, सूरज तीन-चार कदम दूर जाकर खड़ा हो गया जहां से लालटेन की रोशनी मुखिया की बीवी तक आराम से पहुंच रही थी वैसे भी वह इससे ज्यादा दूर नहीं जाना चाहता था क्योंकि वह लालटेन की रोशनी में मुखिया की बीवी को पेशाब करते हुए देखना चाहता था उसकी नंगी गांड के दर्शन करना चाहता था वह देखना चाहता था की पेशाब करती हुई औरत कितनी खूबसूरत लगती है क्योंकि वह अपने मां के इस लालच को दवा नहीं पा रहा था भले ही मुखिया की बीवी ने उसे ऐसा न करने की सलाह दी थी लेकिन वह मानने वाला नहीं था वह क्या दुनिया का कोई भी मर्द होता तो शायद इस समय मुखिया की बीवी की बात मानने से इनकार कर देता,,,,, मुखिया की बीवी झाड़ियां के पास खड़ी थी वह जानती थी कि इस बगीचे में सूरज के सिवा और कोई नहीं है फिर भी वह इधर-उधर देख ले रही थी कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है यह उसकी आदत में शुमार था वैसे भले ही वह छिनार बन चुकी थी लेकिन फिर भी पेशाब करते हैं समय आदत के अनुसार वह इधर-उधर देख लेती थी कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है और वैसे भी ज्यादा तर वह पेशाब करने बैठी थी तो किसी ना किसी को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए ही,,,, जिसमें आज सूरज का नंबर था सूरज को वह पूरी तरह से अपनी जवानी का दीवाना बना देना चाहती थी ताकि वह उसका गुलाम बनकर रह जाए,,,, मुखिया की बीवी अपनी साड़ी को दोनों हाथों से पकड़ कर सूरज की तरफ देखे बिना ही वह बोली,,,)

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तु यहां देख तो नहीं रहा है ना,,,,

नहीं मालकिन बिल्कुल भी नहीं,,,,( वह जानबूझकर अपनी नजर को दूसरी तरफ घूम लिया था)

ठीक है ऐसे ही खड़े रहना जब तक कि मैं पेशाब न कर लूं,,,,,(और इतना कहते हुए वहां अपने दोनों हाथों की नाजुक उंगलियों का सहारा लेकर अपनी साड़ी को उसमें फंसा कर ऊपर की तरफ उठने लगी जैसे-जैसे साड़ी ऊपर की तरफ जा रही थी वैसे सूरज का दिल बड़े जोरों से धड़क रहा था वह तिरछी नजर से मुखिया की बीवी की तरफ ही देख रहा था,,,, देखते ही देखते मुखिया की बीवी की साड़ी उसके घुटनों तक उड़ गई उसकी मोटी मोटी मांसल चिकनी पिंडलियों को देखकर सूरज के बदन में उत्तेजना की लहर उठने लगी उसका लंड अकड़ने लगा,,,, धीरे-धीरे मुखिया की बीवी साड़ी को अपनी टांगों के ऊपर ले जा रही थी वह जानबूझकर धीरे-धीरे अपनी साड़ी को ऊपर उठा रही थी ताकि सूरज उसके बेहतरीन हुस्न को देखकर मदहोश हो जाए उसकी जवानी चारों खाने चित हो जाए,,, और ऐसा हो भी रहा था।

देखते ही देखते मुखिया की बीवी की साड़ी उसकी मोटी मोटी जांघों की ऊपर तक आ गई इतना ऊपर की सूरज को उसके नितंबों का नीचला हिस्सा दिखने लगा था और नितंबों के उसे गोलाकार आकार को देखकर सूरज की तो जैसे सांस ही अटकी जा रही थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था गांव से दूर अाम के बगीचे में इतना गर्म गर्म दृश्य देखने को मिलेगा उसने कभी कल्पना भी नहीं किया था। जिस तरह से सूरज की हालत खराब थी उसी तरह से मुखिया की बीवी की भी हालत खराब हो रही थी हालांकि वह कई मर्दों के सामने अपने वस्त्र उतार कर नग्न हो चुकी थी लेकिन आज पहली बार उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि कपड़े उतारते समय भी उसके बाद में उत्तेजना की लहर उठ रही थी वह मदहोश हो रही थी,,, आज उसे एक जवान लड़की के सामने अपने कपड़े उठाने में बेहद शर्म महसूस हो रही थी और इस शर्म की महसूसियत उसे अपनी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार से बहती हुई महसूस हो रही थी,,,,।

जिस तरह से सूरज का दिल जोरों से धड़क रहा था उसी तरह से मुखिया की बीवी की भी सांस बड़ी तेजी से चल रही थी क्योंकि बस थोड़ा सा और उसकी अपनी साड़ी उठाना था इसके बाद सूरज को वही दिखने वाला था जो वह दिखाना चाहती थी उसकी गांड एकदम नंगी हो जाने वाली थी और इसी पल का सूरज के साथ-सा त मुखिया की बीवी को भी बड़ी बेसब्री से इंतजार,,,।

आम के बगीचे में पूरी तरह से सन्नाटा छाया हुआ था बस चारों तरफ झींगुरों का शोर मचा हुआ था रहने कर दूर दराज से कुत्ते के भौंकने की भी आवाज आ रही थी कुल मिलाकर वातावरण भयानक ही था लेकिन इस भयानक वातावरण में भी मुखिया की बीवी अपनी जवानी के जोर से पूरे वातावरण को मदहोश बना दी थी,, सूरज जो की रात को बेवजह घर के बाहर नहीं निकलता था आज पहली बार मुखिया की बीवी के साथ वह खुली रात का आनंद ले रहा था और उसे पहली बार एहसास हो रहा था कि रात में कितना मजा आता है रात में जितना दर का माहौल होता है उससे भी ज्यादा कहीं आनंद का माहौल बना होता है बस माहौल बनाने वाली होनी चाहिए,,, और इस समय रात के भयानक वातावरण में मदहोश कर देने वाला माहौल बनाने वाली थी मुखिया की बीवी जिसके अंग अंग से जवानी टपक रही थी,,,।

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मुखिया की बीवी अब ज्यादा देर नहीं करना चाहती थी क्योंकि अभी रात बहुत बाकी थी और पूरी रात उसे आनंद लेना था इसलिए वह अपनी उंगलियों को हरकत करते हुए बाकी साड़ियों को भी अपने नितंबों से ऊपर उठा ली और देखते ही देखते लालटेन की पीली रोशनी में मुखिया की बीवी की भारी भरकम गोरी गोरी गांड एकदम से चमकने लगी जिस पर नजर पड़ते ही सूरज की हालत एकदम से खराब हो गई उसकी आंखें फटी की फटी रह गई मुखिया की बीवी की नंगी गांड देखकर वह मदहोश हो गया,,,,।

देख तो नहीं रहा है ना रे,,,,।

(मुखिया की बीवी पीछे नजर घुमाई बिना ही बोली क्योंकि वह तो जानती ही थी कि सूरज उसे ही देख रहा होगा पर इसीलिए वह सूरज के रंग में भंग नहीं डालना चाहती थी,,,, मुखिया की बीवी के इस सवाल पर सूरज पूरी तरह से हड़बड़ा गया और हडबढ़ाते स्वर में बोला,,,।)

नननन,,, नहीं बिल्कुल भी नहीं मैं ऐसा कर भी नहीं सकता,,,,।

(सूरज के लड़खड़ाते शब्दों को सुनकर मुखिया की बीवी के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव में जलने लगी क्योंकि उसके लड़का आते हुए शब्द ही उसके मन की बात को बयां कर रहे थे वह मुस्कुराने लगी और साड़ी को कमर तक उठाए हुए ही वह नीचे बैठ गई और अगले ही पल उसकी गुलाबी पूरे से पेशाब की धार फूट पड़ी और उसमें से एक तीर्व मधुर आवाज पूरे वातावरण में गुंजने लगी जो कि यह आवाज सूरज के कानों तक बड़े आसानी से पहुंच रही थी सूरत समझ गया था कि उसकी बुर से पेशाब निकल रहा है वह भी इस एहसास से ही मदहोश हुआ जा रहा था उसका लंड पूरी तरह से अकड़ गया था,,,। सूरज के लिए यह नजारा बेहद अद्भुत और अतुलनीय इस तरह के नजर को कभी अपनी आंखों से देखा नहीं था बस उसके दोस्त ने दूर से ही दिखाया था लेकिन इतना साफ-साफ उसे समय भी नहीं नजर आ रहा था क्योंकि वह काफी दूर था और झाड़ियां के पीछे खुद छुपा हुआ था लेकिन यहां सब कुछ खुला था लाल टीम की पीली रोशनी में मुखिया की बीवी पूरी तरह से नजर आ रही थी उसकी नंगी बड़ी-बड़ी गांड देखकर तू सूरज के मुंह में पानी आ रहा था उसका मन कर रहा था कि आगे बढ़कर मुखिया की बीवी की गांड को दोनों हाथों से पकड़ ले वह औरत की गांड को दोनों हाथों से पकडने का सुख भोगना चाहता था उसे सहलाना चाहता था देखना चाहता था की साड़ी में कसी हुई गांड वास्तव में छूने पर कैसी होती है,,,,।

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मुखिया की बीवी की गुलाबी बुर में से निकल रही सीधी की आवाज पूरे वातावरण में गूंज रही थी और इस बात का एहसास मुखिया की बीवी को भी था वह अच्छी तरह से जानती थी कि बुर से निकल रही सिटी की आवाज सूरज के कानों में अच्छी तरह से पहुंच रही होगी और वही समाज को सुनकर पूरी तरह से मदहोश हो चुका होगा,,, वह इतना तो जानती ही थी कि सूरज उसकी तरफ ही देख रहा होगा लेकिन फिर भी वह अपने मन की तसल्ली के लिए हल्की नजरों से पीछे की तरफ देखने की कोशिश की तो वास्तव में सूरज आंख फाड़े उसकी तरफ ही देख रहा था उसके एक हाथ में कल आ रही थी और दूसरे हाथ में लालटेन थी,,, मुखिया की बीवी के तेज नजरों ने उसकी पजामे में उठे हुए भाग को भी देख ली थी और उसे भाग को देखकर उसके चेहरे की प्रसन्नता बढ़ने लगी और अंदर ही अंदर खुश होने लगी क्योंकि वह अपनी चाल में कामयाब होती हुई नजर आ रही थी वह जानती थी कि आज रात भर वह सूरज के साथ मजा लुटेगी,,,। फिर भी वह बोली,,,)

क्या रे सूरज देखा तो नहीं रहा है ना,,,

बिल्कुल भी नहीं मालकिन मैं अपने वादे का पक्का हूं एक बार कह दिया तो कह दिया,,,

मुझे तुझे यही उम्मीद थी तेरी जगह कोई और होता तो अपनी नजरों को यहां घूमाने से रोक नहीं पाता तु बहुत सीधा लड़का है,,।
(ऐसा कहते हुए वह अपनी बुर की गुलाबी छेद के अंदर से जोर लगाकर बड़े जोरों से पेशाब कर रही थी और उसके पेशाब की धार सामने की घास को भिगो रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे वह पानी दे रही हो,,,, देखते ही देखते वह पूरी तरह से पेशाब कर चुकी थी लेकिन उसके झांट के बालों में उसके पेशाब की बूंदे अभी भी लगी हुई थी जिसे वह उठने से पहले अपनी बड़ी-बड़ी भारी भरकम गांड को झटका देते हुए अपने झांट के बाल में से पेशाब की बूंद को नीचे गिराने की कोशिश करने लगी,,, लेकिन उसकी यह हरकत सूरज के लिए बेहद जानलेवा साबित हो रही थी सूरज ठीक उसके पीछे खड़ा होकर मुखिया की बीवी को अपनी गांड झटकाते हुए देख रहा था,,, और उसके ऐसा करने पर उसकी गांड पूरी तरह से पानी में गिरे कंकड की तरह लहर मार रही थी,,, मुखिया की बीवी की तरफ से उसकी है हरकत सूरज को पूरी तरह से मदहोश कर गई और अनजाने में ही उसका हाथ पजामा के ऊपर से ही उसके खड़े लंड पर आ गया जिसे वह जोर से दबा दिया,,,, और उसकी यह हरकत पैनी नजरों से मुखिया की बीवी ने देख ली थी,,,। और मंद मंद मुस्कुराने लगी उसे यकीन हो गया था कि उसका जादू सूरज पर पूरी तरह से चल गया था,,, और वह पेशाब करने के बाद धीरे से उठकर खड़ी हो गई और फिर कमर तक उठे हुई साड़ी को वह धीरे से नीचे गिरा दी और पल भर में ही एक खूबसूरत नाटक पर पर्दा पड़ गया,,,, वह मुस्कुराते हुए सूरज की तरफ घूम गई और बोली,,,।

अब जाकर राहत हुई वरना ऐसा लग रहा था कि मैं चल ही नहीं पाऊंगी इतना दर्द कर रहा था मेरा पेट,,,,

चलो अच्छा हुआ मालकिन की तुम्हें आराम हो गया,,,,।

(सूरज चलने को तैयार था लेकिन मुखिया की बीवी उसके पास आकर उसके हाथ से लालटेन और कुल्हाड़ी लेते हुए बोली,,,,)

एक काम कर सूरज तू भी पेशाब कर ले वरना रात को लगेगी तो ऐसे माहौल में बाहर निकलना ठीक नहीं है क्योंकि सियार घूमते ही रहते हैं,,,,।
(सियार शब्द सुनकर ही सूरज को थोड़ी घबराहट हुई वह पेशाब नहीं करना चाहता था क्योंकि उसे लगी नहीं थी लेकिन मुखिया की बीवी का ठीक कहना भी था अगर रात को लगेगी तब क्या करेगा,,,, इसलिए वह तैयार हो गया और जहां पर मुखिया की बीवी बैठकर पेशाब कर रही थी उसे जगह पर जाने लगा और उसने लालटेन की रोशनी में गीली जमीन को देखा तो मन ही मन उत्तेजित होने लगा क्योंकि जहां पर मुखिया की बीवी बेठी थी वहां की मिट्टी मुखिया की बीवी के पेशाब से पूरी तरह से गीली हो चुकी थी,,,,। सूरज कदम आगे बढ़कर वहां से आगे निकल जाना चाहता था क्योंकि उसे भी मुखिया की बीवी के सामने पेशाब करने में शर्म महसूस हो रही थी लेकिन तभी मुखिया की बीवी ने उसे रोकते हुए बोली,,,)

अरे आगे मत जा जहां पर मैं कर रही थी वही कर ले आगे सांप बिच्छू का डर रहता है,,,,।
(मुखिया की बीवी अपने फायदे के लिए उसे पास में रखना चाहती थी लेकिन वह शर्म के मारे आगे चला गया लेकिन जैसे ही वह अपने पजामे पर हाथ रख वैसे ही झाड़ियां में हलचल हुई और वह एकदम से घबरा गया और तो कभी पीछे ले लिया मुखिया की बीवी भी इसी पल का फायदा उठाते हुए उसके पास पहुंच गई और उसका हाथ पकड़ कर पीछे की तरफ खींचने लगी और बोली,,,,)

मैं कह रही हूं ना कि मत जा सांप बिच्छू का डर रहता है देख सांप निकल कर गया ना,,,,।

ओहहहह मालकिन मैं तो देखा ही नहीं मैं तो एकदम से घबरा गया,,,,।(डर के मारे हांफते हुए सूरज बोला,,,)

इसलिए तो कह रही हूं,,,, चल अब आगे मत जा यही पेशाब कर ले,,,, अगर तुझे कुछ हो गया तो तेरे घर वालों को क्या जवाब दूंगी,,,,,।
(झाड़ियों में सुरसुराहट की वजह से मुखिया की बीवी का काम बनता हुआ नजर आ रहा था,,,,, मुखिया की बीवी की बात सुनकर सूरज असहज होता हुआ बोला,,,,)

यहां,,,, नहीं नहीं मुझसे नहीं होगा,,, तुम्हारे सामने कैसे,,,,,


अरे तो क्या हो गया,,,, तू तो मेरे बेटे जैसा है और कोई मां भला अपने बेटे को नुकसान होने देना चाहेगी इसलिए तू यहीं पर कर ले अगर तुझे शर्म आती है तो मैं अपनी नजर घुमा लेती हूं,,,,,।
(इतना कहते हुए मुखिया की बीवी चालाकी दिखाते हुए अपनी नजर को दूसरी तरफ घुमली थी उसके हाथ में कुल्हाड़ी थी और दूसरे हाथ में लालटेन थी लालटेन की पीली रोशनी में सब कुछ साफ नजर आ रहा था मुखिया की बीवी के सामने पेशाब करने में सूरज शर्म महसूस कर रहा था लेकिन उसे भी जोरों की पेशाब लग चुकी थी और मुखिया की बीवी नजर दूसरी तरफ घूम कर रखी थी इसलिए उसकी हिम्मत बढ़ने लगी और वह धीरे से पजामे को पकड़ कर नीचे कर दिया पजामे के नीचे होते ही उसका खड़ा लंड एकदम से हवा में झूलने लगा,,,, झाड़ियों में हुई सुरसुराहट की वजह से कुछ देर के लिए उसके लंड में थोड़ा ढीलापन आ गया था लेकिन सूरज के हाथ में आते ही एक बार फिर से उसमें रक्त का प्रभाव बड़ी तेजी से होने लगा और वह एकदम से कड़क हो गया और वह शर्म महसूस करते हुए पेशाब करना शुरू कर दिया,,, पेशाब गिरने की आवाज कान में पडते ही,,, मुखिया की बीवी की दोनों कामों के बीच हलचल होना शुरू हो गया उसकी उत्सुकता बढ़ने लगी और वह अपने आप को सूरज की तरफ देखने से रोक नहीं पाई,,,, और वह धीरे से सूरज के लंड की तरफ निगाह घूमा कर देखने लगी तो उसके होश उड़ गए,,,, उसका मुंह खुला का खुला रह गया उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था क्योंकि आज तक कुछ नहीं इतना मोटा और लंबा लंड कभी नहीं देखी थी,, ।

सूरज के मोटे तगड़े लंड पर मुखिया की बीवी की नजर पढ़ते ही उसकी बुर उत्तेजना के मारे फुलने पीचकने लगी,,,, उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था उसे लग रहा था कि वह कोई सपना देख रही है कितना मोटा और लंबा लंड भी हो सकता है इसका उसे अंदाजा ही नहीं था,,, क्योंकि जवानी से लेकर उम्र के ईस पड़ाव तक बन जाने कितने लैंड को अपनी बुर में ले चुकी थी लेकिन आज तक उसकी आंखों के सामने उसकी बुर के अंदर इतना मोटा और तगड़ा लंड कभी भी प्रवेश नहीं कर पाया था,,, या यूं कह लो कि आज तक जितने भी मर्द उससे मिले थे उनका लंड ऐसा था ही नहीं तभी तो मुखिया की बीवी एकदम आश्चर्य चकित हो गई थी उसकी आंखों में उसे पाने की चमक साफ नजर आ रही थी सूरज को भी इस बात का एहसास हो गया था की मुखिया की बीवी उसके लंड को देख रही थी और यह एहसास होते ही सूरज के तन-बड़े में आग लगने लगी यह पहली मर्तबा था जब कोई औरत उसके लंड की तरफ देख रही थी,,,, सूरज शर्म से मरा जा रहा था लेकिन उसे अपने बदन मेंअत्यधिक उतेजना का अनुभव हो रहा था उसके हाथ में अभी भी उसका लंड था जिसमें से पेशाब की धार फूट रही थी वह मुखिया की बीवी को यह नहीं बोल पाया कि वह अपनी नजर को दुसरी तरफ कर ले क्योंकि ना जाने क्यों उसके मन में भी ऐसा हो रहा था की मुखिया की बीवी उसके लंड की तरफ देखते ही रहे,,, यही तो जवानी का नशा था यही तो इस उम्र की चाहत थी और इसी में सूरज मदहोशी के चरम शिखर पर विराजमान होता जा रहा था,,,,।

पेशाब करने के बाद जैसे ही सूरज ने लंड में से पेशाब की बूंद को झटकने के लिए अपने लंड को ऊपर नीचे करके दो-चार बार झटका और उसके इस तरह से झटकते हुए लंड को देखकर मुखिया की बीवी की उत्तेजना उसके बस में बिल्कुल भी नहीं रही और उसकी बुर से मदन रस की बुंद टपक कर नीचे जमीन पर गिर गई,,,, और फिर बिना कुछ बोले सूरज अपने लंड को वापस पजामे में डाल दिया लेकिन उसमें तंबू बना हुआ था,,,,।

हो गया मालकिन,,,,

हां अब ठीक है ,,ले लालटेन पकड़,,,, अब हमें चलना चाहिए,,,,, देख वह रही झोपड़ी बड़े से पेड़ के नीचे,,,, मैं आम के बगीचे की रखवाली के लिए ही है झोपड़ी बनवा कर रखी हूं,,,,,।
(हालांकि घना अंधेरा होने की वजह से वह झोपड़ी ठीक से सूरज को दिखाई नहीं दे रही थी लेकिन वह लालटेन पकड़कर आगे आगे चलने लगा,,,, और देखते ही देखते दोनों उस झोपड़ी के पास आ गए कुछ झोपड़ी के पास एक हेड पंप भी बना हुआ था,,, और हेड पंप को देखकर सूरज बोला,,,)

यह तो अच्छा की हो मालकिन की यहां पर हेड पंप गडवा कर रखी हो वरना अगर पानी प्यास लग जाए तो इंसान तो अपनी बिगर ही मर जाएगा,,,,।

इसीलिए तो हेड पंप लगवाई हूं,,,,,(इतना कहते हुए दोनों झोपड़ी के एकदम पास पहुंच गए एक हाथ में कुल्हाड़ी लिए हुए,,, मुखिया की बीवी लकड़ी के बने दरवाजे को खोलने लगी और लकड़ी का दरवाजा खोलते ही सूरज के हाथ में से लालटेन को ले ली और खुद पहले झोपड़ी में प्रवेश कर गई और उसके पीछे सूरज,,,,)

Bahut hi hsandar update he rohnny4545 Bhai,

Kamukta aur uttejna se bhapur

Keep posting Bro
 

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मुखिया की बीवी और सूरज दोनों आम के बगीचे में पहुंच चुके थे बगीचा एकदम घना था चारों तरफ आम के बड़े-बड़े पेड़ नजर आ रहे थे वैसे रात का समय था इसलिए कुछ खास ज्यादा दिखाई तो नहीं दे रहा था लेकिन जिस तरह का घना अंधेरा था उसे देखते हुए सूरत समझ गया था कि यह जगह आम के पेड़ों से पूरी तरह से घिरा हुआ था,,, और ऐसे में मुखिया की बीवी का पेशाब करने वाली बात का कहना सूरज के लिए पूरी तरह से उत्तेजना का संचार करने वाला साबित हो रहा था क्योंकि आज तक सूरज ने किसी औरत के मुंह से यह कहते हुए नहीं सुना था कि उसे बड़े जोरों की पेशाब लगी है यह मौका उसके लिए पहली बार का था इसीलिए तो उसके कान एकदम से खड़े हो गए थे और साथ में उसके पजामे में उसका लंड भी,,,, अपनी औकात में आ चुका था,,,,।

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मुखिया की बीवी के मुंह से पेशाब करने वाली बात सुनकर सूरज पूरी तरह से चौंक गया था क्योंकि उसे यकीन नहीं हो रहा था कि कोई औरत उसे यह शब्द का प्रयोग कर सकती है वह आश्चर्य से मुखिया की बीवी की तरफ ही देख रहा था जो की लालटेन की पीली रोशनी में पूरी तरह से दमक रहा था सूरज को पहली बार एहसास हो रहा था की मुखिया की बीवी कुछ ज्यादा ही खूबसूरत है उसका भरा हुआ चेहरा गोल-गोल ऐसा लग रहा था कि मानो जैसे गुलाब का फूल हो,,,, वह अभी भी सूरज के कंधों का सहारा लेकर खड़ी थी उसके बदन से उठ रही मादक खुशबू सूरज की तन बदन में आग लग रही थी इतने करीब वह किसी भी औरत के नहीं आया था जितना करीब मुखिया की बीवी के था,,,।

वैसे तो वह जानबूझकर ही सूरज को अपनी गांड दिखाने के लिए पेशाब करने वाली बात कही थी लेकिन पेशाब करने के नाम से ही उसे वास्तव में बड़े जोरों की पेशाब लग गई थी जिसकी वजह से वह अपने पैर को इधर-उधर रख रही थी वह अपनी पेशाब की तीव्रता को रोक नहीं पा रही थी उसकी हालत को देखकर सूरज भी समझ गया था कि वाकई में इसे पेशाब लगी है लेकिन वह पूरी तरह से मदहोश हो चुका था क्योंकि उसने आज तक किसी भी औरत को पेशाब करने की मुद्रा में कल्पना नहीं किया था उसके जीवन में पहली औरत उसके दोस्त की चाची थी जिसे वह पेशाब करते हुए देखा था और उसके दोस्त ने हीं दिखाया था,,,। सूरज को समझ में नहीं आ रहा था कि मुखिया की बीवी से वह क्या बोले,,, और मुखिया की बीवी खेली खाई औरत थी सूरज के मन की बात को अच्छी तरह से समझ रही थी सूरज के चेहरे के बदलते भाव को देखकर वह मन ही मन प्रसन्न हो रही थी क्योंकि वह समझ गई थी कि उसके मुंह से पेशाब करने वाली बात सुनकर सूरज पूरी तरह से हक्का-बक्का हो गया है,,,, इसलिए वह फिर से बोली,,,,।

समझ में नहीं आ रहा क्या करूं,,,,!

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अब जैसा तुम ठीक समझो अगर रोक सको तो,,,(घबराते हुए सूरज ने बोला उसकी बात सुनकर मुखिया की बीवी बोली,,,,)

पागल हो गया है क्या कोई रोक सकता है अगर रोक भी सकता है तो कितनी देर तक पेट दर्द करने लगेगा पागल,,,

नहीं मेरे कहने का मतलब यह नहीं था,,,,

तू रहने दे अपने खाने के मतलब को यहां मेरी हालत खराब हो रही है अच्छा तो एक काम कर लालटेन को ठीक से पकड़,,,, और मेरी तरफ तु बिल्कुल भी मत देखना,,,

कैसी बात कर रही हो मालकिन मैं इतना बेशर्म थोड़ी हूं जो किसी औरत को,,,,(इतना कहकर सूरज रुक गया क्योंकि आगे का शब्द उसे कहने में शर्म महसूस हो रही,,, थी,,,।)

अच्छा ठीक है तो मुझे सहारा देकर उस झाड़ियों के पास ले जा,,,,

कहां ,,,,,,उधर,,,,(हाथ के इशारे से घनी झाड़ियां के बीच बताते हुए सूरज बोला,,,)

हां वही आज तो मुझे आना ही नहीं चाहिए था अगर मुझे पता होता है कितनी दिक्कत होगी तो मैं आता ही नहीं लेकिन अगर नहीं आती तो,,,, फिर कोई भी जाकर आम तोड़ कर ले जाता तूने देखा नहीं है सूरज इस बगीचे के हम बहुत बड़े-बड़े हैं खरबूजे जैसे मैं तुझे कल दूंगी,,,,,(मुखिया की बीवी के बाद जीत के दौरान सूरज उसे सहारा देकर घड़ी झाड़ियां के पास ले गया)

अब तू थोड़ा पीछे हो जा,,, लालटेन जितना लालटेन की रोशनी से ज्यादा दूर नहीं क्योंकि सांप बिच्छू का डर रहता है।

तुम चिंता मत करो मालकिन मैं चारों तरफ देख रहा हूं,,,,

भले तो चारों तरफ देखना लेकिन मेरी तरफ अभी मत देखना मुझे बहुत शर्म आती है,,,

नहीं नहीं मालकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं होगा मैं इतना गिरा हुआ नहीं हूं,,,,।
(मुखिया की बीवी जान बैठकर उसे अपनी तरफ ना देखने के लिए बोल रही थी लेकिन वह जानती थी कि सूरज उसे देखे बिना नहीं रह पाएगा क्योंकि वह मर्दों की फितरत से अच्छी तरह से वाकिफ थी,,, सूरज तीन-चार कदम दूर जाकर खड़ा हो गया जहां से लालटेन की रोशनी मुखिया की बीवी तक आराम से पहुंच रही थी वैसे भी वह इससे ज्यादा दूर नहीं जाना चाहता था क्योंकि वह लालटेन की रोशनी में मुखिया की बीवी को पेशाब करते हुए देखना चाहता था उसकी नंगी गांड के दर्शन करना चाहता था वह देखना चाहता था की पेशाब करती हुई औरत कितनी खूबसूरत लगती है क्योंकि वह अपने मां के इस लालच को दवा नहीं पा रहा था भले ही मुखिया की बीवी ने उसे ऐसा न करने की सलाह दी थी लेकिन वह मानने वाला नहीं था वह क्या दुनिया का कोई भी मर्द होता तो शायद इस समय मुखिया की बीवी की बात मानने से इनकार कर देता,,,,, मुखिया की बीवी झाड़ियां के पास खड़ी थी वह जानती थी कि इस बगीचे में सूरज के सिवा और कोई नहीं है फिर भी वह इधर-उधर देख ले रही थी कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है यह उसकी आदत में शुमार था वैसे भले ही वह छिनार बन चुकी थी लेकिन फिर भी पेशाब करते हैं समय आदत के अनुसार वह इधर-उधर देख लेती थी कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है और वैसे भी ज्यादा तर वह पेशाब करने बैठी थी तो किसी ना किसी को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए ही,,,, जिसमें आज सूरज का नंबर था सूरज को वह पूरी तरह से अपनी जवानी का दीवाना बना देना चाहती थी ताकि वह उसका गुलाम बनकर रह जाए,,,, मुखिया की बीवी अपनी साड़ी को दोनों हाथों से पकड़ कर सूरज की तरफ देखे बिना ही वह बोली,,,)

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तु यहां देख तो नहीं रहा है ना,,,,

नहीं मालकिन बिल्कुल भी नहीं,,,,( वह जानबूझकर अपनी नजर को दूसरी तरफ घूम लिया था)

ठीक है ऐसे ही खड़े रहना जब तक कि मैं पेशाब न कर लूं,,,,,(और इतना कहते हुए वहां अपने दोनों हाथों की नाजुक उंगलियों का सहारा लेकर अपनी साड़ी को उसमें फंसा कर ऊपर की तरफ उठने लगी जैसे-जैसे साड़ी ऊपर की तरफ जा रही थी वैसे सूरज का दिल बड़े जोरों से धड़क रहा था वह तिरछी नजर से मुखिया की बीवी की तरफ ही देख रहा था,,,, देखते ही देखते मुखिया की बीवी की साड़ी उसके घुटनों तक उड़ गई उसकी मोटी मोटी मांसल चिकनी पिंडलियों को देखकर सूरज के बदन में उत्तेजना की लहर उठने लगी उसका लंड अकड़ने लगा,,,, धीरे-धीरे मुखिया की बीवी साड़ी को अपनी टांगों के ऊपर ले जा रही थी वह जानबूझकर धीरे-धीरे अपनी साड़ी को ऊपर उठा रही थी ताकि सूरज उसके बेहतरीन हुस्न को देखकर मदहोश हो जाए उसकी जवानी चारों खाने चित हो जाए,,, और ऐसा हो भी रहा था।

देखते ही देखते मुखिया की बीवी की साड़ी उसकी मोटी मोटी जांघों की ऊपर तक आ गई इतना ऊपर की सूरज को उसके नितंबों का नीचला हिस्सा दिखने लगा था और नितंबों के उसे गोलाकार आकार को देखकर सूरज की तो जैसे सांस ही अटकी जा रही थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था गांव से दूर अाम के बगीचे में इतना गर्म गर्म दृश्य देखने को मिलेगा उसने कभी कल्पना भी नहीं किया था। जिस तरह से सूरज की हालत खराब थी उसी तरह से मुखिया की बीवी की भी हालत खराब हो रही थी हालांकि वह कई मर्दों के सामने अपने वस्त्र उतार कर नग्न हो चुकी थी लेकिन आज पहली बार उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि कपड़े उतारते समय भी उसके बाद में उत्तेजना की लहर उठ रही थी वह मदहोश हो रही थी,,, आज उसे एक जवान लड़की के सामने अपने कपड़े उठाने में बेहद शर्म महसूस हो रही थी और इस शर्म की महसूसियत उसे अपनी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार से बहती हुई महसूस हो रही थी,,,,।

जिस तरह से सूरज का दिल जोरों से धड़क रहा था उसी तरह से मुखिया की बीवी की भी सांस बड़ी तेजी से चल रही थी क्योंकि बस थोड़ा सा और उसकी अपनी साड़ी उठाना था इसके बाद सूरज को वही दिखने वाला था जो वह दिखाना चाहती थी उसकी गांड एकदम नंगी हो जाने वाली थी और इसी पल का सूरज के साथ-सा त मुखिया की बीवी को भी बड़ी बेसब्री से इंतजार,,,।

आम के बगीचे में पूरी तरह से सन्नाटा छाया हुआ था बस चारों तरफ झींगुरों का शोर मचा हुआ था रहने कर दूर दराज से कुत्ते के भौंकने की भी आवाज आ रही थी कुल मिलाकर वातावरण भयानक ही था लेकिन इस भयानक वातावरण में भी मुखिया की बीवी अपनी जवानी के जोर से पूरे वातावरण को मदहोश बना दी थी,, सूरज जो की रात को बेवजह घर के बाहर नहीं निकलता था आज पहली बार मुखिया की बीवी के साथ वह खुली रात का आनंद ले रहा था और उसे पहली बार एहसास हो रहा था कि रात में कितना मजा आता है रात में जितना दर का माहौल होता है उससे भी ज्यादा कहीं आनंद का माहौल बना होता है बस माहौल बनाने वाली होनी चाहिए,,, और इस समय रात के भयानक वातावरण में मदहोश कर देने वाला माहौल बनाने वाली थी मुखिया की बीवी जिसके अंग अंग से जवानी टपक रही थी,,,।

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मुखिया की बीवी अब ज्यादा देर नहीं करना चाहती थी क्योंकि अभी रात बहुत बाकी थी और पूरी रात उसे आनंद लेना था इसलिए वह अपनी उंगलियों को हरकत करते हुए बाकी साड़ियों को भी अपने नितंबों से ऊपर उठा ली और देखते ही देखते लालटेन की पीली रोशनी में मुखिया की बीवी की भारी भरकम गोरी गोरी गांड एकदम से चमकने लगी जिस पर नजर पड़ते ही सूरज की हालत एकदम से खराब हो गई उसकी आंखें फटी की फटी रह गई मुखिया की बीवी की नंगी गांड देखकर वह मदहोश हो गया,,,,।

देख तो नहीं रहा है ना रे,,,,।

(मुखिया की बीवी पीछे नजर घुमाई बिना ही बोली क्योंकि वह तो जानती ही थी कि सूरज उसे ही देख रहा होगा पर इसीलिए वह सूरज के रंग में भंग नहीं डालना चाहती थी,,,, मुखिया की बीवी के इस सवाल पर सूरज पूरी तरह से हड़बड़ा गया और हडबढ़ाते स्वर में बोला,,,।)

नननन,,, नहीं बिल्कुल भी नहीं मैं ऐसा कर भी नहीं सकता,,,,।

(सूरज के लड़खड़ाते शब्दों को सुनकर मुखिया की बीवी के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव में जलने लगी क्योंकि उसके लड़का आते हुए शब्द ही उसके मन की बात को बयां कर रहे थे वह मुस्कुराने लगी और साड़ी को कमर तक उठाए हुए ही वह नीचे बैठ गई और अगले ही पल उसकी गुलाबी पूरे से पेशाब की धार फूट पड़ी और उसमें से एक तीर्व मधुर आवाज पूरे वातावरण में गुंजने लगी जो कि यह आवाज सूरज के कानों तक बड़े आसानी से पहुंच रही थी सूरत समझ गया था कि उसकी बुर से पेशाब निकल रहा है वह भी इस एहसास से ही मदहोश हुआ जा रहा था उसका लंड पूरी तरह से अकड़ गया था,,,। सूरज के लिए यह नजारा बेहद अद्भुत और अतुलनीय इस तरह के नजर को कभी अपनी आंखों से देखा नहीं था बस उसके दोस्त ने दूर से ही दिखाया था लेकिन इतना साफ-साफ उसे समय भी नहीं नजर आ रहा था क्योंकि वह काफी दूर था और झाड़ियां के पीछे खुद छुपा हुआ था लेकिन यहां सब कुछ खुला था लाल टीम की पीली रोशनी में मुखिया की बीवी पूरी तरह से नजर आ रही थी उसकी नंगी बड़ी-बड़ी गांड देखकर तू सूरज के मुंह में पानी आ रहा था उसका मन कर रहा था कि आगे बढ़कर मुखिया की बीवी की गांड को दोनों हाथों से पकड़ ले वह औरत की गांड को दोनों हाथों से पकडने का सुख भोगना चाहता था उसे सहलाना चाहता था देखना चाहता था की साड़ी में कसी हुई गांड वास्तव में छूने पर कैसी होती है,,,,।

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मुखिया की बीवी की गुलाबी बुर में से निकल रही सीधी की आवाज पूरे वातावरण में गूंज रही थी और इस बात का एहसास मुखिया की बीवी को भी था वह अच्छी तरह से जानती थी कि बुर से निकल रही सिटी की आवाज सूरज के कानों में अच्छी तरह से पहुंच रही होगी और वही समाज को सुनकर पूरी तरह से मदहोश हो चुका होगा,,, वह इतना तो जानती ही थी कि सूरज उसकी तरफ ही देख रहा होगा लेकिन फिर भी वह अपने मन की तसल्ली के लिए हल्की नजरों से पीछे की तरफ देखने की कोशिश की तो वास्तव में सूरज आंख फाड़े उसकी तरफ ही देख रहा था उसके एक हाथ में कल आ रही थी और दूसरे हाथ में लालटेन थी,,, मुखिया की बीवी के तेज नजरों ने उसकी पजामे में उठे हुए भाग को भी देख ली थी और उसे भाग को देखकर उसके चेहरे की प्रसन्नता बढ़ने लगी और अंदर ही अंदर खुश होने लगी क्योंकि वह अपनी चाल में कामयाब होती हुई नजर आ रही थी वह जानती थी कि आज रात भर वह सूरज के साथ मजा लुटेगी,,,। फिर भी वह बोली,,,)

क्या रे सूरज देखा तो नहीं रहा है ना,,,

बिल्कुल भी नहीं मालकिन मैं अपने वादे का पक्का हूं एक बार कह दिया तो कह दिया,,,

मुझे तुझे यही उम्मीद थी तेरी जगह कोई और होता तो अपनी नजरों को यहां घूमाने से रोक नहीं पाता तु बहुत सीधा लड़का है,,।
(ऐसा कहते हुए वह अपनी बुर की गुलाबी छेद के अंदर से जोर लगाकर बड़े जोरों से पेशाब कर रही थी और उसके पेशाब की धार सामने की घास को भिगो रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे वह पानी दे रही हो,,,, देखते ही देखते वह पूरी तरह से पेशाब कर चुकी थी लेकिन उसके झांट के बालों में उसके पेशाब की बूंदे अभी भी लगी हुई थी जिसे वह उठने से पहले अपनी बड़ी-बड़ी भारी भरकम गांड को झटका देते हुए अपने झांट के बाल में से पेशाब की बूंद को नीचे गिराने की कोशिश करने लगी,,, लेकिन उसकी यह हरकत सूरज के लिए बेहद जानलेवा साबित हो रही थी सूरज ठीक उसके पीछे खड़ा होकर मुखिया की बीवी को अपनी गांड झटकाते हुए देख रहा था,,, और उसके ऐसा करने पर उसकी गांड पूरी तरह से पानी में गिरे कंकड की तरह लहर मार रही थी,,, मुखिया की बीवी की तरफ से उसकी है हरकत सूरज को पूरी तरह से मदहोश कर गई और अनजाने में ही उसका हाथ पजामा के ऊपर से ही उसके खड़े लंड पर आ गया जिसे वह जोर से दबा दिया,,,, और उसकी यह हरकत पैनी नजरों से मुखिया की बीवी ने देख ली थी,,,। और मंद मंद मुस्कुराने लगी उसे यकीन हो गया था कि उसका जादू सूरज पर पूरी तरह से चल गया था,,, और वह पेशाब करने के बाद धीरे से उठकर खड़ी हो गई और फिर कमर तक उठे हुई साड़ी को वह धीरे से नीचे गिरा दी और पल भर में ही एक खूबसूरत नाटक पर पर्दा पड़ गया,,,, वह मुस्कुराते हुए सूरज की तरफ घूम गई और बोली,,,।

अब जाकर राहत हुई वरना ऐसा लग रहा था कि मैं चल ही नहीं पाऊंगी इतना दर्द कर रहा था मेरा पेट,,,,

चलो अच्छा हुआ मालकिन की तुम्हें आराम हो गया,,,,।

(सूरज चलने को तैयार था लेकिन मुखिया की बीवी उसके पास आकर उसके हाथ से लालटेन और कुल्हाड़ी लेते हुए बोली,,,,)

एक काम कर सूरज तू भी पेशाब कर ले वरना रात को लगेगी तो ऐसे माहौल में बाहर निकलना ठीक नहीं है क्योंकि सियार घूमते ही रहते हैं,,,,।
(सियार शब्द सुनकर ही सूरज को थोड़ी घबराहट हुई वह पेशाब नहीं करना चाहता था क्योंकि उसे लगी नहीं थी लेकिन मुखिया की बीवी का ठीक कहना भी था अगर रात को लगेगी तब क्या करेगा,,,, इसलिए वह तैयार हो गया और जहां पर मुखिया की बीवी बैठकर पेशाब कर रही थी उसे जगह पर जाने लगा और उसने लालटेन की रोशनी में गीली जमीन को देखा तो मन ही मन उत्तेजित होने लगा क्योंकि जहां पर मुखिया की बीवी बेठी थी वहां की मिट्टी मुखिया की बीवी के पेशाब से पूरी तरह से गीली हो चुकी थी,,,,। सूरज कदम आगे बढ़कर वहां से आगे निकल जाना चाहता था क्योंकि उसे भी मुखिया की बीवी के सामने पेशाब करने में शर्म महसूस हो रही थी लेकिन तभी मुखिया की बीवी ने उसे रोकते हुए बोली,,,)

अरे आगे मत जा जहां पर मैं कर रही थी वही कर ले आगे सांप बिच्छू का डर रहता है,,,,।
(मुखिया की बीवी अपने फायदे के लिए उसे पास में रखना चाहती थी लेकिन वह शर्म के मारे आगे चला गया लेकिन जैसे ही वह अपने पजामे पर हाथ रख वैसे ही झाड़ियां में हलचल हुई और वह एकदम से घबरा गया और तो कभी पीछे ले लिया मुखिया की बीवी भी इसी पल का फायदा उठाते हुए उसके पास पहुंच गई और उसका हाथ पकड़ कर पीछे की तरफ खींचने लगी और बोली,,,,)

मैं कह रही हूं ना कि मत जा सांप बिच्छू का डर रहता है देख सांप निकल कर गया ना,,,,।

ओहहहह मालकिन मैं तो देखा ही नहीं मैं तो एकदम से घबरा गया,,,,।(डर के मारे हांफते हुए सूरज बोला,,,)

इसलिए तो कह रही हूं,,,, चल अब आगे मत जा यही पेशाब कर ले,,,, अगर तुझे कुछ हो गया तो तेरे घर वालों को क्या जवाब दूंगी,,,,,।
(झाड़ियों में सुरसुराहट की वजह से मुखिया की बीवी का काम बनता हुआ नजर आ रहा था,,,,, मुखिया की बीवी की बात सुनकर सूरज असहज होता हुआ बोला,,,,)

यहां,,,, नहीं नहीं मुझसे नहीं होगा,,, तुम्हारे सामने कैसे,,,,,


अरे तो क्या हो गया,,,, तू तो मेरे बेटे जैसा है और कोई मां भला अपने बेटे को नुकसान होने देना चाहेगी इसलिए तू यहीं पर कर ले अगर तुझे शर्म आती है तो मैं अपनी नजर घुमा लेती हूं,,,,,।
(इतना कहते हुए मुखिया की बीवी चालाकी दिखाते हुए अपनी नजर को दूसरी तरफ घुमली थी उसके हाथ में कुल्हाड़ी थी और दूसरे हाथ में लालटेन थी लालटेन की पीली रोशनी में सब कुछ साफ नजर आ रहा था मुखिया की बीवी के सामने पेशाब करने में सूरज शर्म महसूस कर रहा था लेकिन उसे भी जोरों की पेशाब लग चुकी थी और मुखिया की बीवी नजर दूसरी तरफ घूम कर रखी थी इसलिए उसकी हिम्मत बढ़ने लगी और वह धीरे से पजामे को पकड़ कर नीचे कर दिया पजामे के नीचे होते ही उसका खड़ा लंड एकदम से हवा में झूलने लगा,,,, झाड़ियों में हुई सुरसुराहट की वजह से कुछ देर के लिए उसके लंड में थोड़ा ढीलापन आ गया था लेकिन सूरज के हाथ में आते ही एक बार फिर से उसमें रक्त का प्रभाव बड़ी तेजी से होने लगा और वह एकदम से कड़क हो गया और वह शर्म महसूस करते हुए पेशाब करना शुरू कर दिया,,, पेशाब गिरने की आवाज कान में पडते ही,,, मुखिया की बीवी की दोनों कामों के बीच हलचल होना शुरू हो गया उसकी उत्सुकता बढ़ने लगी और वह अपने आप को सूरज की तरफ देखने से रोक नहीं पाई,,,, और वह धीरे से सूरज के लंड की तरफ निगाह घूमा कर देखने लगी तो उसके होश उड़ गए,,,, उसका मुंह खुला का खुला रह गया उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था क्योंकि आज तक कुछ नहीं इतना मोटा और लंबा लंड कभी नहीं देखी थी,, ।

सूरज के मोटे तगड़े लंड पर मुखिया की बीवी की नजर पढ़ते ही उसकी बुर उत्तेजना के मारे फुलने पीचकने लगी,,,, उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था उसे लग रहा था कि वह कोई सपना देख रही है कितना मोटा और लंबा लंड भी हो सकता है इसका उसे अंदाजा ही नहीं था,,, क्योंकि जवानी से लेकर उम्र के ईस पड़ाव तक बन जाने कितने लैंड को अपनी बुर में ले चुकी थी लेकिन आज तक उसकी आंखों के सामने उसकी बुर के अंदर इतना मोटा और तगड़ा लंड कभी भी प्रवेश नहीं कर पाया था,,, या यूं कह लो कि आज तक जितने भी मर्द उससे मिले थे उनका लंड ऐसा था ही नहीं तभी तो मुखिया की बीवी एकदम आश्चर्य चकित हो गई थी उसकी आंखों में उसे पाने की चमक साफ नजर आ रही थी सूरज को भी इस बात का एहसास हो गया था की मुखिया की बीवी उसके लंड को देख रही थी और यह एहसास होते ही सूरज के तन-बड़े में आग लगने लगी यह पहली मर्तबा था जब कोई औरत उसके लंड की तरफ देख रही थी,,,, सूरज शर्म से मरा जा रहा था लेकिन उसे अपने बदन मेंअत्यधिक उतेजना का अनुभव हो रहा था उसके हाथ में अभी भी उसका लंड था जिसमें से पेशाब की धार फूट रही थी वह मुखिया की बीवी को यह नहीं बोल पाया कि वह अपनी नजर को दुसरी तरफ कर ले क्योंकि ना जाने क्यों उसके मन में भी ऐसा हो रहा था की मुखिया की बीवी उसके लंड की तरफ देखते ही रहे,,, यही तो जवानी का नशा था यही तो इस उम्र की चाहत थी और इसी में सूरज मदहोशी के चरम शिखर पर विराजमान होता जा रहा था,,,,।

पेशाब करने के बाद जैसे ही सूरज ने लंड में से पेशाब की बूंद को झटकने के लिए अपने लंड को ऊपर नीचे करके दो-चार बार झटका और उसके इस तरह से झटकते हुए लंड को देखकर मुखिया की बीवी की उत्तेजना उसके बस में बिल्कुल भी नहीं रही और उसकी बुर से मदन रस की बुंद टपक कर नीचे जमीन पर गिर गई,,,, और फिर बिना कुछ बोले सूरज अपने लंड को वापस पजामे में डाल दिया लेकिन उसमें तंबू बना हुआ था,,,,।

हो गया मालकिन,,,,

हां अब ठीक है ,,ले लालटेन पकड़,,,, अब हमें चलना चाहिए,,,,, देख वह रही झोपड़ी बड़े से पेड़ के नीचे,,,, मैं आम के बगीचे की रखवाली के लिए ही है झोपड़ी बनवा कर रखी हूं,,,,,।
(हालांकि घना अंधेरा होने की वजह से वह झोपड़ी ठीक से सूरज को दिखाई नहीं दे रही थी लेकिन वह लालटेन पकड़कर आगे आगे चलने लगा,,,, और देखते ही देखते दोनों उस झोपड़ी के पास आ गए कुछ झोपड़ी के पास एक हेड पंप भी बना हुआ था,,, और हेड पंप को देखकर सूरज बोला,,,)

यह तो अच्छा की हो मालकिन की यहां पर हेड पंप गडवा कर रखी हो वरना अगर पानी प्यास लग जाए तो इंसान तो अपनी बिगर ही मर जाएगा,,,,।

इसीलिए तो हेड पंप लगवाई हूं,,,,,(इतना कहते हुए दोनों झोपड़ी के एकदम पास पहुंच गए एक हाथ में कुल्हाड़ी लिए हुए,,, मुखिया की बीवी लकड़ी के बने दरवाजे को खोलने लगी और लकड़ी का दरवाजा खोलते ही सूरज के हाथ में से लालटेन को ले ली और खुद पहले झोपड़ी में प्रवेश कर गई और उसके पीछे सूरज,,,,)
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
अब मुखिया की बिबी और सुरज के बीच चुदाई का घमासान जल्दी ही प्रारंभ होने वाला हैं तो देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

rohnny4545

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बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
अब मुखिया की बिबी और सुरज के बीच चुदाई का घमासान जल्दी ही प्रारंभ होने वाला हैं तो देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Mukhiya ki bibi or Suraj k pitaji

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