सूरज के कानों में तो उसकी मां की कुर्सी निकलने वाली पेशाब की सिटी की मधुर धुन सुनाई दे रही थी जिसमें वह पूरी तरह से मत हुआ जा रहा था कि तभी उसकी मां की चीख सुनाई दी सूरज एकदम से घबरा गया था वह जिस तरह से चीखी थी अगर गांव में इस तरह की ची मुंह से निकाली होती तो पूरा गांव इकट्ठा हो गया होता,, लेकिन इस वीरान सुनसान सड़क पर उसकी चीख सुनने वाला केवल सूरज ही था सूरज भी एकदम से घबरा गया था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार ऐसा क्या हो गया कि उसकी मां इतनी जोर से चीखने लगी,,, सूरज को अपनी मां की चिंता हो रही थी क्योंकि इस तरह से वह कभी चीखती नहीं थी जरूर कोई बात थी।
सूरज जल्दी से दौड़ता हुआ अपनी मां के पीछे आकर खड़ा हो गया और बोला।
क्या हुआ मां क्यों चीख रही हो,,,,,,, (अभी तक के की वजह से सूरज का ध्यान अपनी मां के ऊपर ठीक से गया नहीं था लेकिन जैसे ही अपने शब्द पूरे करने के बाद वह अपनी मां की तरफ देखा तो देखा ही रह गया साड़ी कमर तक उठाए हुए वह पेशाब करने बैठी थी उसकी बड़ी-बड़ी नंगी गांड झाड़ियां में भी खूबसूरत आभा बनाई हुई थी एकदम आसमान के चांद की तरह चमक रही थी,,, और सूरज के लिए मजे की बात यह थी कि उसकी मां चीखने के बावजूद भी अपने आप को व्यवस्थित नहीं की थी अपने कपड़ों को दुरुस्त नहीं की थी उसकी नंगी गांड सूरज की आंखों के सामने थी सूरज अपनी मां की गोरी गोरी गांड देखकर पागल हुआ जा रहा था,,, लेकिन तभी उसकी मां एकदम घबराते हुए स्वर में धीरे से बोली।
सांप ,,सांप,,, (सुनैना एकदम घबराई हुई थी उसकी सांस अटक रही थी वह अपने बदन को एकदम स्थिर की हुई थी और सूरज ने गौर किया था कि उसकी मां की बुर से निकलने वाली सीधी की आवाज भी एकदम शांत हो चुकी थी मतलब साफ था कि उसकी मां पेशाब नहीं कर रही थी,,,,, सांप का जिक्र होते ही सूरज की घबरा गया और एकदम से बोला,,,)
सांप कहां है सांप,,,,! (सूरज इधर-उधर देखता हुआ बोला था उसकी मां बोले नहीं बल्कि उंगली के इशारे से एकदम घबराए हुए दिखाने लगी ज्यादा नहीं सिर्फ इतना ही बोली,,,)

यह देख,,,, (सुनैना उंगली से अपने पैर की तरफ इशारा कर रही थी,,, और जब सूरज ने देखा तो उसके भी होश उड़ गए थे क्योंकि उसकी मां जहां पर पेशाब करने बैठी थी उसके पैर वहां पड़े हुए थे जहां पर सांप बैठा हुआ था और गोलाई बनाया हुआ था,,, सांप काफी बड़ा लग रहा था इसलिए सुनैना बड़े आराम से उसके बनाए हुए गोलाई में अपने पैर रखकर बैठ चुकी थी और उसे एहसास तक नहीं हुआ था कि वह कहां बैठी है,,,, वह तो पेशाब करने में ही मस्त थी,,,, सूरज भी यह देखकर हैरान हो गया था कि वाकई में चिंता वाली बात हो गई थी वह जानता था कि अगर उसकी मां उठने की कोशिश करेगी तो हलन चलन से सांप एकदम इधर-उधर होने लगेगा जो कि इस समय सूरज को साफ दिखाई दे रहा था कि उसकी मां का एक पर गोली में था और उसे सांप का पूरा शरीर आगे झाड़ियां में था इसका मतलब साफ था की वह आराम कर रहा था,,, सूरज को समझ में आ गया था कि इसी डर के मारा उसकी मां की पेशाब रोक रही थी और वह पेशाब नहीं कर पाई थी,,,,, सूरज भी अपनी मां की तरह ही उसके पास बैठ गया था ठीक उसके पीछे ,,,डर के मारा सुनैना को इस बात का अहसास तक नहीं था कि वह किस अवस्था में बैठी है। सूरज की आंखों के सामने उसकी मां की नंगी गांड थी एकदम गदराई हुई ,,, जिसे देखने के लिए सूरज दिन रात तड़पता था और आज आलम यह था कि उसकी मां नंगी गांड उसकी आंखों के सामने परोसे हुए बैठी थी और उसे अहसास तक नहीं था,,,,,, इस डर के माहौल में इतनी सूरज अपने आप को अपनी मां की नंगी गांड देखने से रोक नहीं पा रहा था। और शायद यही औरत की खूबसूरत अंगों का आकर्षण होता है जिसमें मर्द पूरी तरह से खो जाता है भले ही वह कैसी भी हालत में हो,,,,।

घबराहट से पूरा माहौल एकदम शांत हो चुका था सुनैना की कान फाड़ देने वाली चीख शांत हो चुकी थी,,, क्योंकि उसे पूरा यकीन करके उसका बेटा जरूर कुछ ना कुछ करेगा क्योंकि अब वह कुछ कर सके ऐसी उसकी हालत बिल्कुल भी नहीं थी वह भी हार मान चुकी थी इसलिए तो अपने बेटे की तरफ आस भरी नजर से देखते हुए बोली,,,।
अब क्या करूं सूरज मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है,,,,,।
तुम चिंता मत करो मैं हूं ना बस हिलना डुलना बिल्कुल भी नहीं,,,, मुझे लग रहा है कि सांप आराम कर रहा है इसलिए वह शांत है वरना अभी तक तो,,, (इतना कहकर वह शांत हो गया और कुछ सोचने लगा,,,, यह मुश्किल की घड़ी भी सूरज के लिए आस भरी सुनहरी कीरन लेकर आई थी,,,, सूरज कभी अपनी मां के पैर की तरफ देखा तो कभी अपनी मां के खूबसूरत चेहरे की तरफ तो कभी उसकी बड़ी-बड़ी गांड की तरफ ऐसी मुश्किल घड़ी में भी सूरज को उसकी मां की बड़ी-बड़ी गांड आकर्षित कर रही थी और सुनैना अपने बेटे की तरफ देख रही थी तो कभी अपने पैर की तरफ उसे भी एहसास हो रहा था कि वाकई में सांप को ज्यादा ही लंबा था,,,,,, सूखे हुए पत्तों के बीच वह सांप अपने अस्तित्व को छुपाया हुआ था ताकि उसे भी भारी जंगली जानवर उस पर हमला न कर दे,,, लेकिन इस समय सुनैना मुश्किल घड़ी में थी मुसीबत में थी जिसमें से सूरज को बाहर निकालना था। सूरज कुछ देर तक शांत बैठा रहा वह सोच रहा था कि कैसे इस मुसीबत से अपनी मां को बाहर निकाला जाए,,,, लेकिन सुनैना से सब्र नहीं हो रहा था वह अपने बेटे की तरफ देखते हुए बोली,,,)

कुछ कर सूरज मुझे बहुत डर लग रहा है।
डरने वाली बात तो है ही अगर तुम खड़ी हो जाती हो तो सूखे हुए पत्तों में हलन चलन होगी और सांप एकदम से बाहर आ सकता है और काट सकता है।
तो अब क्या करूं,,,,,।
रुको तुम्हें कुछ नहीं करना है जो करना है मुझे ही करना है,,,,,।
कुछ भी कर लेकिन जल्दी कर,,,,।
(अपनी मां की यह बात सुनकर सूरज अपने मन में ही बोला साला मेरा मन तो तुम्हें चोदने को कर रहा है कहो तो चोद दुं,,, साली इतनी मस्त गांड मेरी आंखों के सामने है लेकिन मैं कुछ कर नहीं सकता हूं कोई और होता तो इस समय डाल चुका होता ,,,,, अपने मन में अपनी मां के प्रति इस तरह की बात सोचते हुए और वह भी ऐसी हालत में वह आगे की युक्ति सोच रहा था और फिर धीरे से अपनी मां की तरफ बैठे-बैठे ही सरक गया जैसे कि वह भी किसी औरत की भांति पेशाब करने बैठा हो,,, और देखते ही देखते वह एकदम से अपनी मां के करीब पहुंच गया था,,,,, और अपना दोनों हाथ आगे बढ़कर नीचे से अपनी मां का पैर पकड़ लिया और उसके हाथ में उसकी मां की पायल भी पकड़ गई थी जो की हल्का सा शोर मचाने लगी थी यह देखकर वह अपनी मां के पैरों को थोड़ा जोर से पकड़ लिया था और बोला।)
तुम्हारी पायल कुछ ज्यादा ही शोर मचाती है,,,।
तुझे पायल की पड़ी है यहां मेरी जान सूख रही है।
चिंता मत करो अभी सब कुछ ठीक हो जाएगा,,,,।
लेकिन तू कर क्या रहा है,,,, देखना तेरा हाथ सांप से स्पर्श न हो जाए वरना वह जाग जाएगा,,,,।
इसीलिए तो संभाल कर तुम्हारा पैर पकड़ा हूं,,,,, (सूरज की हालात दोनों तरफ से खराब थी एक तरफ सांप का डर उसके मन में बना हुआ था और दूसरी तरफ उसकी मां की गदराई गांड जो की पूरी तरह से हाहाकार मचा रही थी और उसकी हालत को खराब कर रही थी,,,, सूरज नजर भर कर अपनी मां की गांड को देख रहा था गांड की फांकों के बीच के कटाव की पतली दरार इतनी गजब की थी मानो जैसे हरियाली से भरा हुआ रास्ता और यह हरियाली पेड़ पौधों जंगल की नहीं बल्कि जवानी की हरीयाली थी,,,, सूरज को अच्छी तरह से एहसास हो रहा था कि उसकी मां जिस तरह से बड़ी तीव्रता के साथ पेशाब कर रही थी उसकी बुर से निकलने वाली पेशाब के छिंटे उसके पैर पर भी पड़े थे जो कि ईस समय सूरज के हाथों में लग रहे थे लेकिन सूरज को इसका एहसास पूरी तरह से उत्तेजित कर दे रहा था। सूरज कस के अपनी मां के पैर को पकड़ा हुआ था और उस गोलाई में से अपनी मां के पर को निकालना चाहता था इसलिए जोर लगाकर वह ऊपर की तरफ उठाने लगा और बोला,,,)
ईस पैर का भार थोड़ा कम करो और जैसे मैं उठा रहा हूं खुद भी उठने की कोशिश करो तभी इस मुसीबत से निकल पाओगी,,,, और जल्दी करो कहीं ऐसा ना हो कि इधर से चूहे गुजरे और उन्हें पकड़ने के चक्कर में हम लोगों का नुकसान हो जाए,,,,,,।
(ऐसा कहते हुए सूरज दम लगाकर अपनी मां के पर को ऊपर की तरफ उठा रहा था और उसकी मां भी अपने बदन के भार को उठाने की कोशिश कर रही थी,,, लेकिन सुनैना से ठीक से हो नहीं पा रहा था तो सूरज ही उससे बोला,,,)
एक काम करो तुम एक हाथ पीछे की तरफ लाकर मेरे कंधे पर रखकर सहारा ले लो तब आराम से उठ पाओगी,,,,,।
(जल्द ही सुनैना अपने बेटे की बात मान गई और अपना एक हाथ पीछे की तरफ लाकर अपने बेटे के कंधे पर रख दी और उसे पर दबाव बनाते हुए खुद उठने की कोशिश करने लगी और नीचे से सूरज अपनी मां के पैर को उठा ही रहा था,, धीरे-धीरे सूरज की मेहनत रंग लाने लगी,,, सुनैना की भी कोशिश कामयाब हो रही थी वह अपने पैर को उठाने में कामयाब हो गई थी सांप की गोलाई में से सुनैना का पेर ऊपर की तरफ उठ चुका था लेकिन अभी भी वह सुरक्षित नहीं थी क्योंकि अगर इस तरह से सूरज छोड़ देता तो फिर से मुसीबत खड़ी हो सकती थी इसलिए सूरज इस बार अपना एक हाथ,,, मौके का फायदा उठाते हुए नीचे से अपनी मां की गांड पर रखती है और उसे पर सहारा बनाकर अपनी मां की गांड को भी ऊपर की तरफ उठाने लगा,,,, अपनी मां की गांड पर हाथ रखते हैं सूरज की हालत एकदम से खराब हो गई थी उसके पजामे में उसका लंड पूरी तरह से अकड़ चुका था इस मुसीबत की घड़ी में भी उसकी आंखों में वासना के डोरे साफ नजर आ रहे थे,,,, और वाकई में मदद की आंखों के सामने जब इतनी खूबसूरत जवानी से भरी हुई औरत हो तो मुसीबत की घड़ी में भी वह मर्द उसे औरत के साथ संबंध बनाना चाहेगा,,, और यह हाल इस समय सूरज का भी था,,, अपनी मां की गांड के निचले हिस्से पर अपनी हथेली रखकर वह ऊपर की तरफ उठा रहा था और उसकी मां भी अपने बेटे का इस तरह का सहारा पाकर अपने वजन पर काबू पाते हुए ऊपर की तरफ उठ रही थी।
लेकिन सूरज के मन में कुछ और चल रहा था वह इस मौके को अपने हाथ से गंवाने नहीं देना चाहता था । भले ही वह अपनी मां की चुदाई नहीं कर सकता था लेकिन इस समय वहां अपनी मां के खूबसूरत अंग को छुकर उसका आनंद ले सकता था इसलिए वह अपनी मां की गांड के नीचे अपनी हथेली रखकर उसे ऊपर की तरफ उठाते हुए धीरे से अपनी हथेली को अपनी मां की बुर की तरफ बढ़ाने लगा और अगले ही पल जैसे ही उसे एहसास हुआ कि उसकी हथेली उसकी मां की गर्म बुर पर एकदम से सट गई है तो ,,, वह एकदम से मौके का फायदा उठाते हुए अपनी मां की बुर को एकदम से अपनी हथेली में दबोचते हुए बोला,,,,।
बस एकदम से खड़ी हो जाओ,,,, साथ में मैं भी खड़ा होता हूं,,,, (यह वह पल था जिसमें सूरज अच्छी तरह से जानता था कि अफरातफरी में उसकी मां कुछ समझ नहीं पाएगी,,,,, और ऐसा ही हुआ उसकी मां भी पूरा जोर लगाकर खड़ी होने की कोशिश करने लगी साथ में सूरज भी खड़े होने लगा लेकिन इस दौरान वह अपनी हथेली का दबाव अपनी मां की बुर पर बनाया हुआ था और बुर के ऊपर के हल्के-हल्के बालों में अभी भी पेशाब की बूंदे लगी हुई थी जिससे उसकी हथेली गीली हो रही थी,,,,, इस अद्भुत पल का आनंद लेते हुए मां बेटे दोनों खड़े हो चुके थे लेकिन सूरज अभी भी झुका हुआ था क्योंकि उसके एक हाथ में अभी भी उसकी मां का पैर था,,,, और फिर जब कुछ सब कुछ सही नजर आने लगा तब वह अपनी मां का पर खुद ही धीरे से दूसरी तरफ रख दिया,,,,,। वैसे तो यह सब कुछ बिल्कुल आसान लग रहा था लेकिन सूरज के मन में इस बात का डर था कि सूखे हुए पत्तों में जरा सा भी हलचल हुआ तो वह सांप तुरंत पलट कर इसी तरफ आएगा और ऐसे में वह काट भी सकता है इसलिए वहां बिल्कुल भी खतरा मोल नहीं लेना चाहता था,,, सुनैना उसे सांप की गोलाई से तकरीबन 2 फीट की दूरी पर खड़ी हो चुकी थी,,, सांप अभी भी ज्यो का त्यों बैठा हुआ ही था,,,, सांप की तरफ देखते हुए सुनैना बोली,,,)
दैया रे दैया आज तो बच गई मुझे तो लगा था कि आज मेरी जान ही चली जाएगी,,,।
मेरे होते हुए भला ऐसे कैसे हो सकता है,,,।
तो सही कह रहा है अगर आप तो मेरे साथ नहीं होता तो आज कुछ ना कुछ गजब हो जाता,,,, (सुनैना अभी भी गहरी गहरी सांस लेते हुए सांप की तरफ देखते हुए बोल रही थी और वह भूल चुकी थी कि अभी भी उसकी साड़ी कमर तक उठी हुई थी नितंबों का उभार जिस तरह का था उसे उभार पर उसकी साड़ी टिक गई थी और उसकी नंगी गांड पीछे से एकदम साफ दिखाई दे रही थी यह देखकर सूरज हल्के से मुस्कुरा दिया और अपनी मां से बोला,,,,)
अपने कपड़े तो ठीक कर लो अभी भी दिख रहा है,,,।
(अपने बेटे की बात पर गौर करते ही वह एकदम से हड़बड़ा गई और तुरंत अपनी साड़ी को व्यवस्थित करने लगी लेकिन इस बात को वह भी जानती थी कि अब कोई फायदा नहीं है क्योंकि उसे एहसास हो रहा था कि जिस तरह से वह पेशाब करने बैठी हुई थी उसके बेटे ने सब कुछ देख लिया था और वह अपने मन में सोच रही थी आज का दिन ही कुछ अलग ही है तैयार होते समय भी उसका बेटा उसे पूरी तरह से नंगी देख चुका था और इस समय भी उसे पेशाब करते हुए देख चुका था और यह एहसास उसे शर्म से पानी पानी किया जा रहा था वह अपने बेटे से नजर नहीं मिल पा रही थी अपने कपड़ों को दुरुस्त करके वह बोली,,,)
अब हमें चलना चाहिए काफी देर हो चुकी है,,,,।
बात तो सही है लेकिन थोड़ा इधर आ जाओ,,,, इसे थोड़ा भगा दु वरना आते-जाते किसी का पैर पड़ गया तो गजब हो जाएगा,,,(खुद को और अपनी मां को सुरक्षित दायरे में करते हुए वह छोटा सा पत्थर उठाया और उसे और धीरे से फेंक दिया जिससे तुरंत वह सांप एकदम से उठकर खड़ा हो गया ठीक उसी तरफ जहां पर उसकी गोलाई था,,, यह देखकर सूरज अपनी मां से बोला,,,)
देख रही हो ना यही डर था मेरे मन में अगर जरा सा भी हलचल होता तो वह इसी तरह से फुंफकारने लगता और काट भी लेता,,
तू एकदम ठीक कह रहा है,,,,(सुनैना को विश्वास का एहसास हो रहा था कि उसके बेटे ने जो कुछ भी किया था उसी में उसकी भलाई थी,,,,, और अगले ही पल वह सांप भी झाड़ियों के अंदर चला गया,,,, मां बेटे फिर से बाजार के रास्ते जाने लगे लेकिन सूरज चलते हुए ही तुरंत अपनी मां से बोला,,,)
वह तो गनीमत थम की सांप के ऊपर पेशाब नहीं करने लगी वरना गजब हो जाता,,,(यह वाली बात सूरज जानबूझकर बोला था और अपने बेटे के मुंह से यह बातें सुनकर सुनैना के चेहरे पर शर्म की लाली जाने लगी वह कुछ बोल नहीं पाई और बिना कुछ बोले खामोश चलती रही थोड़ी देर में दोनों बाजार पहुंच चुके थे,,,,,, सुनैना बाजार में जरूर का सामान खरीद रही थी काफी महीनों बाद वह बाजार आई थी,,,, इसलिए वह ज्यादा खुश थी अपनी मां को राशन का सामान खरीदना हुआ देखकर सूरज भी आगे निकल गया था और अपने मनपसंद का सामान खरीद कर उसे अपने पजामे में रख लिया था जिसके बारे में उसने अपनी मां को नहीं बताया था। शाम के समय बाजार की रौनक बढ़ जाती थी लोगों की काफी भीड़ नजर आ रही थी लोग अपने-अपने जरूरत का सामान खरीद रहे थे,,,,,, थोड़ी देर में सुन ना खरीदी कर चुकी थी और फिर सूरज के साथ एक छोटी सी समोसे की दुकान पर पहुंच गई थी जहां पर वह खुद के लिए और अपने बेटे के लिए समोसे और जलेबी खरीद कर खा रही थी,,,,, और रानी के लिए भी ले ली थी।
मां बेटे दोनों एक टूटी हुई लंबी सी कुर्सी पर बैठकर जलेबी और समोसे का मजा लूट रहे थे वहीं पास में दो लड़के भी खड़े थे वह दोनों उन्ही की तरफ देख रहे थे इसलिए सुनैना उन दोनों बच्चों को अपने पास बुलाई और उन्होंने दोनों के लिए भी जलेबी और समोसे खरीद कर उन्हें दे दी और वह लोग खाने लगे वह समोसे और जलेबी खा ही रहे थे कि तभी वहां पर उनकी मां आ गई,,, और अपने बच्चों को समोसे और जलेबी खाता हुआ देखकर बोली,,,,।
तुम दोनों को यह किसने दिलाया,,,,,।
चाची ने,,,,(वह दोनों बच्चे सुनैना की तरफ इशारा करते हुए बोले तो सुनैना मुस्कुराने लगी और उनकी तरफ देखकर वह औरत भी बोली)
इसकी क्या जरूरत थी दीदी यह दोनों बहुत जीद्दी हैं अभी इन्हें दिलाने ही वाली थी,,,,।
कोई बात नहीं मैं दिलाओ या तुम दिलाओ बात तो यही है और बच्चे तो बच्चे होते हैं,,,,।
(अभी दोनों की बातचीत हो ही रही थी कि सूरज को लग रहा था कि उसने ईस औरत को कहीं देखा है अपने दिमाग पर बहुत जोर देने के बाद उसे याद आ गया कि इस औरत को वह कैसे जानता है लेकिन इसके बारे में कुछ बोला नहीं और थोड़ी देर में शाम ढलने लगी थी सूरज अपनी मां के साथ सामान वाला थैला लेकर गांव की तरफ निकल गया था,,,, लेकिन अब धीरे-धीरे अंधेरा बढ़ने लगा था यह देखकर सूरज अपनी मां से बोला,,,)
जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाओ देर हो चुकी है।
जानती हूं उस सांप के चक्कर में देर हो गई वरना अब तक हम लोग घर पहुंच गए होते।
कोई बात नहीं वैसे भी ज्यादा देर नहीं हुई है लेकिन अब अंधेरा होने लगा है इसलिए समय पर घर पहुंच जाना जरुरी है।(मां बेटे दोनों कच्ची पगडंडी से होते हुए जल्दी-जल्दी आगे की तरफ निकल रहे थे कि तभी कुछ लोगों की आवाज सुनाई देने लगी जो आपस में ही बात करते हुए पीछे से उनकी तरफ ही आ रहे थे,,,,,, जिस तरह से वह लोग बातें कर रहे थे सूरज को समझते देर नहीं लगी थी कि वह लोग ठीक इंसान नहीं थे,,,,,, लेकिन सुनैना के मन में ऐसा कुछ नहीं था इसलिए वह अपने बेटे से बोली,,,)
लगता है गांव के कुछ लोग आ रहे हैं रुक जाओ उन्हीं लोग के साथ चलते हैं,,,,।
धीरे बोलो यह क्या कर रही हो,, वह लोग गांव के लोग नहीं है चोर बदमाश है,,,,,
(चोर बदमाश का नाम सुनते ही सुनैना की तो हालत खराब होने लगी उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें लेकिन सूरज उसका हाथ पकड़ कर बोला)
जल्दी से इधर आओ,,,,, (सूरज अपनी मां का हाथ पकड़े हुए एकदम से झाड़ियां के बीच बड़े से पेड़ के पीछे लेकर चला गया जहां से वह दोनों छुपकर देखने लगे की यह लोग हैं कौन)