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Incest पहाडी मौसम

Raz-s9

No nude av/dp -XF STAFF
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Bohuth kamouk.romantic update gab ki Rasta por. Apne dekhaya.thanx , only Ruhan bai ka story me real Gaon ki incest ka moja mil tha he
 
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Ajju Landwalia

Well-Known Member
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मां बेटे दोनों बाजार के लिए निकल गए थे लेकिन बाजार निकलने से पहले जो नजर सूरज ने अपनी मां के कमरे में देखा था उसे देखकर अभी तक उसके लंड की अकड़ ज्यों की त्यों बनी हुई थी,, ऐसा पहली बार नहीं हुआ था कि वह अपनी मां को नंगी ना देखा हो वाकई बार अपनी मां को बिना वस्त्र के देख चुका था उसके नंगे बदन को अपनी आंखों से देखकर अपने हाथों से अपने मन की प्यास बुझा भी चुका था अपनी मां के खूबसूरत बदन का हर एक अंग उसे छुआ नहीं था लेकिन फिर भी आज जो कुछ भी उसने अपनी मां के कमरे में देखा था उसे उसके मन में उठ रहे वासना की भावनाओं का तूफान शांत नहीं हो रहा था बार-बार उसकी आंखों के सामने उसकी मां की बड़ी-बड़ी गदराई गांड नजर आ रही थी,,, जिसे वह खुद अपने हाथों से पकड़ कर दबाना चाहता था उसे खेलना चाहता था उस पर अपनी होठ रखकर चूमना चाहता था और एक बार उसने अपनी अभिलाषा को पूरी भी किया था खेत में काम करते हुए,, जब उसकी मां थककर वही खटिया पर पेड़ के नीचे सो गई थी उसे दिन सूरज हिम्मत दिखाते हुए अपनी मां की गांड पर अपने लंड को जी भरकर रगड़ा था और अपना अपनी अपनी मां की गांड पर ही निकाल दिया था ‌।

इन सबके बावजूद भी जब भी वह अपनी मां को लग्न अवस्था में देखा था इसका एहसास बिल्कुल तरो ताजा हो जाता था ऐसा लगता भी नहीं था कि वह अपनी मां को इससे पहले भी नंगी देख चुका है इसलिए तो उसकी यह हालत हो जाती थी,,,, सूरज के तन बदन में वासना का तूफान उठ रहा था बार-बार उसकी आंखों के सामने उसकी मां कपड़े बदलते हुए कपड़े उतारते हुए अपनी नंगी गांड मटकाते हुए यही सब क्रियाकलाप करते हुए नजर आ रही थी इसलिए वह अपने मन को लाख समझाने की कोशिश करने के बावजूद भी उसका मन मान नहीं रहा था,, सुनैना आगे आगे चल रही थी और सूरज पीछे-पीछे चल रहा था और इस समय उसकी नजर अपनी मां की गदराई चौड़ी गांड पर ही थी,,, क्योंकि कच्ची पगडंडी से चलते हुए उसके पैर ऊपर नीचे हो रहे थे जिसकी वजह से उसकी बड़ी-बड़ी गांड की दोनों फांके कसी हुई साड़ी में आपस में रगड़ खाकर एक अद्भुत आकार साड़ी के ऊपर उपसा रहे थे। सूरज अपनी मां से बातचीत करना चाहता था क्योंकि वह जानता था कि औरत के करीब पहुंचने का सबसे आसान तरीका होता है आपस में बातचीत करना लेकिन इस समय उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी मां से बात की शुरुआत कैसे करें क्योंकि वह जानता था कि जिस समय वह अपनी मां के कमरे में दाखिल हुआ था उसे समय उसकी मां के बदन पर कपड़े का रेशा तक नहीं था वह पूरी तरह से नंगी खड़ी थी,,, इसलिए वह अपने मन में यही सोच रहा था कि उसकी मां उसके बारे में क्या सोच रही होगी और ऐसे भी अगर उसकी मां उसे इस बारे में कुछ कहती भी तो उसके पास बहाना था कि दरवाजे पर कड़ी नहीं लगी थी और उसे देर हो रही थी बाजार चलने में और यह भी कह सकता था उसे क्या मालूम कि इस समय वह कपड़े बदल रही है और कपड़े बदलते समय सारे कपड़े उतार कर कपड़े बदलती है। उसके पास साफ बहाना था कि जो कुछ भी हुआ था वहअनजाने में हुआ था। लेकिन धीरे-धीरे वह लोग गांव के बाहर आ चुके थे लेकिन सुनैना ने जो कुछ भी कमरे में हुआ था उस बारे में बिल्कुल भी जिक्र नहीं की थी।

दोपहर का समय सड़क पर गांव के इक्का दुक्का लोग दिखाई दे रहे थे आते जाते,, बाजार पहुंचकर अच्छी तरीके से खरीदी करने का समय दोनों के पास पर्याप्त था। और वैसे भी सूरज पहली बार अपनी मां के साथ बाजार जा रहा था क्योंकि ऐसा कभी मौका ही नहीं आया था कि वह अपनी मां के साथ बाजार जाकर खरीदी कर सके सुन ना ज्यादातर अपने पति के साथ ही बाजार जाती थी या तो गांव की औरतों के साथ यह पहला मौका था जब अपने बेटे के साथ बाजार जा रही थी। तभी सामने से सोनू और सोनू की चाची आते हुए नजर आए उन्हें देखकर सुनैना रुक गई और सूरज भी रुक गया सुनैना सोनू की चाची से मुस्कुराते हुए बोली।

कहां से आ रही हो इतनी दोपहर में,,,।

क्या बताऊं पास के गांव गई थी वहीं से आ रही हूं।

पास के गांव,,,,!(सुनैना आश्चर्य से बोली)

अरे ऐसे ही कोई खास काम नहीं था तो घूमते हुए वहां निकल गई थी,,,,(उन दोनों की बातचीत हो रही थी तभी सोनू सूरज के पास आ गया और दोनों मुस्कुरा कर बातें करने लगे तो सूरज सोनू की चाची की तरफ देखते हुए सोनू से बोला)

क्या बात है सोनू बहुत खुश नजर आ रहा है । कहीं चाची की चुदाई तो कर के तो नहीं आ रहा है।

नहीं यार मेरी किस्मत ऐसी कहां कसम से बहुत मन करता है लेकिन मुझे लगता नहीं है कि चाची कुछ करने देगी,,,(सोनू भी अपनी चाची के पिछवाड़े की तर क्षफ देखते हुए बोला और यह सूरज देख चुका था इसलिए चुटकी लेते हुए बोला।)


अपनी चाची की गांड देख रहा है ना,,, (सूरज की बात सुनकर सोनू मुस्कुरा दिया तो सूरज अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,) कसम से यार जिस दिन से तूने अपनी चाची की नंगी गांड देखा है तब से तो मेरे सपने में तेरी चाची आती है अब तो मेरा भी मन बहुत करता है तेरी चाची को चोदने के लिए कोई जुगाड़ लगा यार हम दोनों का भला हो जाए,,,,।

मुझे नहीं लगता कि इस जन्म में हम दोनों की ख्वाहिश पूरी होगी मैं तो देख देख कर हिला कर काम चला लेता हूं ।

लगता है मुझे भी अब यही करना होगा,,, तेरी संगत में मैं भी बिगड़ गया हूं,,,,,,।
(सूरज आज तक इस बात की भनक तक सोनू को नहीं लगने दिया था कि वह उसकी चाची की चुदाई कर चुका है,, थोड़ी देर में सोनू की चाची गांव की तरफ जल्दी और सूरज और उसकी मां बाजार की तरफ लेकिन जाते-जाते भी एक नजर सूरज सोनू की चाची की तरफ मारता गया और सोनू की चाची भी उसकी तरफ देखकर मुस्कुरा दी और दोनों की यह ताक झांक न तो सुनैना को दिखाई दिया और ना ही सोनू को,,,, थोड़ी दूर चलने के बाद सुनैना को लग रहा था किसके बेटे से बात करना चाहिए वरना उसके बेटे को ऐसा ही लगेगा कि जो कुछ भी कमरे के अंदर हुआ था उससे वह नाराज हो चुकी है और वैसे जो कुछ भी कमरे में हुआ था उसी के बारे में सुनैना सोच भी रही थी और न जाने की उसके तन-बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी और यह हलचल खास करके उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में हो रही थी और उसे साफ महसूस हो रहा था कि जब-जब अपने बेटे के बारे में सोच रही थी तब तक उसकी बुर से नमकीन पानी का रिसाव हो रहा था। इसलिए उसकी सांस थोड़ी गहरी हो जा रही थी लेकिन फिर भी सुनैना अपने बेटे से बातचीत की शुरुआत करने के लिए आगे आगे चलते हुए पीछे नजर घूमाकर देखी तो उसका दिल धक से रह गया क्योंकि उसे अच्छी तरह से एहसास हो गया कि उसका बेटा उसकी भारी भरकम गांड की तरफ ही देख रहा था और वह भी ललचाई नजर से,,, अब तो सुनैना के बदन में और भी ज्यादा हलचल होने लगी थी लेकिन फिर भी वह सामान्य बनी रहना चाहती थी इसलिए वह चलते हुए बोली,,,,,, बातचीत की शुरुआत करने के लिए कोई मुद्दा तो था नहीं इसलिए वह ऐसे ही अपने बेटे से बोली)

सूरज बाजार में घर के लिए कोई सामान चाहिए तो याद दिलाना ऐसा ना हो कि इतनी दूर आने पर भूल जाए और घर पर पहुंचे तो पता चले यह सामान तो लिया ही नहीं,,,।

हां मुझे भी मालूम है,,,, वैसे तुम्हें क्या-क्या खरीदना है?

वह तो वहां चलने पर ही पता चलेगा,,,,,,, की क्या-क्या लेना है।

लेकिन फिर भी बाजार चल रही हो कुछ तो पता होगा कि वहां क्या खरीदना है राशन का सामान खरीदना है या कुछ जरूरी सामान खरीदना है।

अब ऐसे कैसे बता दूं वहां पहुंचेंगे तो खुद ही देख लेना की क्या-क्या लेना है वैसे तो राशन का सामान भी चाहिए हल्दी मसाला नामक यह सब तो खत्म ही हो गया है वह भी खरीद लेंगे और थोड़ा जरूरी सामान है वह भी खरीद लेंगे।

चलो देखते हैं वैसे मां तुम पहली बार मेरे साथ बाजार चल रही हो ना,,,।

हां पहली बार तेरे साथ बाजार चल रही हूं इसके पहले तो तेरे बाबुजी रहते थे तब उनके साथ जाती थी।
(सूरज अपने मन में यही सोच रहा था कि यही सही मौका है अपने बाबूजी के बारे में अपनी मां से पूछने का कि वह क्या जवाब देती है इसलिए वह बोला)

बाबुजी की याद नहीं आती,,,,?

(सूरज की बात सुनकर सुनैना को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले वह खामोश हो गई थी और सूरज इसी तरह से जानता था कि उसकी मां को उसके बाबूजी की याद बहुत सताती है दिनभर भले वह सामान्य रहती हो लेकिन रात को बिस्तर पर तो उसे उसके बाबूजी की याद बहुत सताती है जिसे वह अपनी आंखों से देख भी चुका था और अपनी बहन को दिखा भी चुका था जब सुनैना की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला तो सूरज फिर से बोला)


क्या हुआ तुम कुछ बोल नहीं रही हो मां क्या तुम्हें बाबूजी की याद आती है।

तुझे आती है,,,(सुनैना उल्टा ही अपने बेटे से यह सवाल पूछ बैठी थी)

पहले आई थी लेकिन अब धीरे-धीरे आदत सी पड़ गई है,,, और वैसे भी सारा काम हम लोगों को करना पड़ रहा है तो भला याद क्यों आएगी उन्हें भी तो सोचना चाहिए कि मेरा परिवार है मेरी बीवी है और जब इतने के बावजूद भी उन्हें हम लोगों की याद नहीं आती तो हमें भी उन्हें याद करने की कोई जरूरत नहीं है आखिरकार हम लोगों का काम तो चल ही रहा है ना काम रुक तो नहीं रहा है।(सूरज जानबूझकर अपनी मां से इस तरह की बातें कर रहा था जिसे उसके पिताजी के साथ न होने का उसे फर्क ही नहीं पड़ता क्योंकि वह भी अपनी मां की मां की बात जानना चाहता था और अपनी मां के मन में ऐसे भाव पैदा करना चाहता था कि उसे भी इस बात से बिल्कुल भी फर्क नहीं पड़ता कि उसके पति उसके साथ नहीं है। कुछ इस तरह से सूरज ने कहा था उसकी बात सुनकर सुनैना के मन में भी अपने पति के प्रति तिरस्कार की भावना पैदा हो रही थी इसलिए वह भी बोली।)

उसे इंसान को तो ऐसा ही लगता था कि मैं नहीं रहूंगा तो यह लोग कैसे जिंदा रहेंगे कैसे ईन लोगों का काम चलेगा कैसे खेती-बाड़ी का काम होगा,,,, लेकिन उसे नहीं मालूम की हम भी इंसान हैं हमें भी मेहनत करना आता है हमें भी भगवान ने दो हाथ दिए हैं हम भी बना खा सकते हैं खेतों में काम कर सकते हैं मजदूरी कर सकते हैं कैसे भी करके अपना परिवार संभाल सकते हैं। मुझे भी उसकी जरूरत नहीं है,,,,।

(पहली बार सूरज अपनी मां के मुंह से अपने बाबूजी के लिए इस तरह के तिरस्कार के शब्द सुनने को मिल रहे थे यह शायद उसके मन का क्रोध ही था जो शब्द के रूप में उसके मुंह से बाहर निकल रहे थे वरना वह आज तक अपने पति के बारे में इस तरह के शब्दों का प्रयोग कभी कि नहीं थे शायद जीवन की ज़रूरतें जिम्मेदारी और अपने पति की तरफ से शारीरिक जरूरत को पूरे करने की कमी का ही नतीजा था जो सूरज की मां इस तरह से अपने पति के बारे में बोल रही थी और यही सूरज के लिए भी सही मौका था गरम लोहा देखकर हथौड़ा मारने का इसलिए वह भी अपनी मां की बात सुनकर बोला)


तुम्हें क्या लगता है मां बाबूजी कहां होंगे कहीं कमाने गए होंगे या फिर,,,,।

कमाने गए होते तो अब तक तो आ गए होते उनके गए भी 6 महीने से ऊपर हो चुके हैं कोई तो खोज खबर होती ।(आगे आगे चलते हुए सुनैना बोली)

यही सब सो कर तो मेरा भी मन शंका से भरा जा रहा है।

किस तरह का शंका,,,,,,,(चलते हुए ही सुनैना बोली,,,, अपनी मां की बात सुनकर सूरज को समझ में नहीं आ रहा था कि यह बात उसे अपनी मां से कहना चाहिए या नहीं कहना चाहिए इसलिए अभी थोड़ी देर तक खामोश हो गया था लेकिन फिर अपने आप से ही बात करते हुए बोला कि अगर उसे अपने लिए रास्ता साफ करना है तो उसकी मां के मन में उसके बाबूजी के प्रति तिरस्कार भरना होगा कुछ ऐसी बातें बतानी होगी जिसे सुनकर वाकई में उसकी मां अपने पति से ही नफरत करने लगे और फिर वह भी कुछ ऐसा करने लगे जैसा उसे नहीं करना चाहिए लेकिन इन सब में सूरज की ही भलाई थी इसलिए वह बोला,,)

मुझे तो लगता है मां की बाबूजी किसी औरत के चक्कर में है,,,,।
(यह बात सुनते ही सुनैना एकदम से रुक गई और सूरज की तरफ मुड़कर देखने लगी सूरज अपनी मां की तरफ देख रहा था सुनैना के चेहरे पर खामोशी और दर्द की रेखाएं साथ झलक रही थी वह पूरी तरह से आश्चर्यचकित थी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि यह बात उसका बेटा कह रहा था कुछ देर तक दोनों के बीच खामोशी बनी रही तो सूरज ही अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,)

मैं ऐसे ही यह बात नहीं कह रहा हूं शुरू शुरू में जब पिताजी घर नहीं आते थे तों में उन्हें ढूंढता हुआ शराब के ठेके पर पहुंच गया था लेकिन वहां भी पिताजी का कोई अता-पता नहीं चला,,,, लेकिन मैं वहां कुछ लोगों को यह कहते सुना की भोला का का चक्कर दो-तीन गांव छोड़कर किसी ऐसी औरत के साथ चल रहा है जिसका पति नहीं है और उसके दो बच्चे हैं मैंने तो यह सुन तो मुझे तो अपने कानों पर भरोसा ही नहीं हुआ लेकिन उन सभी ने उसकी बात का समर्थन किया।

(इतना सुनकर तो सुनैना की हालत एकदम से खराब हो गई पल भर के लिए उसके चेहरे पर किसी भी प्रकार का भाव दिखाई नहीं दे रहा था वह एकदम जड़वंत हो गई थी,,,,, फिर ना जाने क्या हुआ था बिना कुछ बोले फिर से आगे आगे चलने लगी,,,,, यह देखकर सूरज भी पीछे-पीछे चलने लगा और बोला,,,)

मुझे तो पूरा यकीन हो गया कि यही सब चक्कर है वरना बाबूजी जरूरआते,,,।

किस्मत में जो लिखा होगा वही होगा शायद मेरी किस्मत में यही लिखा है,,,,।

लेकिन तुम्हें निराश होने की कोई जरूरत नहीं है मैं हूं ना हम लोग मिलकर घर को चला तो रहे हैं,,,, किसी भी प्रकार की चिंता करने की जरूरत नहीं है जिस तरह से बाबूजी मेहनत करते थे उससे ज्यादा मेहनत नहीं करूंगा मैं हर तरीके से तुम्हें खुश रखूंगा बस तुम कभी उदास मत होना,,,,।

(सूरज अपना उल्लू सीधा करने में लगा हुआ था और सुनैना अपने बेटे के मुंह से एक जिम्मेदारी वाली बात सुनकर एक जिम्मेदार बेटा होने का एहसास दिलाता हुआ देखकर सुनैना के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी उसे अपने बेटे की यह बातें बड़ी अच्छी लग रही थी,,, लेकिन फिर अपने मन में सोचने लगी कि जैसा वह कह रहा है कि उसे हर तरीके से खुश रखेगा तो क्या हुआ उसकी शारीरिक जरूरतों को भी पूरी कर पाएगा,,, यह ख्याल उसके मन में अनजाने में आया था और अपने इस ख्याल से वह खुद अपनी नजरों में शर्म से पानी पानी हो जा रही थी और अपने आप से ही बोली यह कैसी बातें कर रही है वह तेरा बेटा है भला अपने ही बेटे से अपनी शारीरिक जरूरतो को पुरी करने की ख्वाहिश वह कैसे कर सकती हैं। लेकिन यह ख्याल ही उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर पैदा कर रहा था। अनायास ही उसके होठों पर मुस्कान तैरने लगी और वह अपनी बेटी की बात सुनकर खुश होते हुए बोली।)

मुझे तेरे ऊपर नाज है,,,, पूरे गांव में तेरे जैसा बेटा किसी का नहीं होगा मुझे इतनी कम उम्र में ही पूरे परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा लिया है,,,,।

(अपनी मां की बात सुनकर सूरज खुशी से गदगद हुए जा रहा था और देखते ही देखते वह लोग काफी दूर तक निकल गए थे अब थोड़ी दूरी रह गई थी बाजार पहुंचने में लेकिन तभी अचानक चलते-चलते सुनैना एकदम से रुक गई,,,,, जहां पर रुकी थी वहां की कच्ची सड़क के दोनों किनारे बड़े-बड़े पेड़ थे घनी झाड़ियां,,, सूरज भी खड़ा हो गया और अपनी मां से बोला,,,)

क्या हुआ यहां क्यों खड़ी हो गई हो,,,,?(ऐसा कहकर वह चारों तरफ नजर घुमा कर देखने लगा कि कहीं उसकी मां कुछ देख तो नहीं रही है लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था थोड़ी देर सुनैना इधर-उधर देखने के बाद जब उसे लगने लगा कि उसका बेटा उसके पास ही खड़ा रहेगा तो वह धीरे से बोली,,,)

तू आगे चल में आती हुं,,,,।


लेकिन यहां क्या करोगी मैं कुछ समझ नहीं रहा हूं यहां क्या करोगी खड़ी रहकर,,,,,।

अरे तू समझने की कोशिश कर तू आगे तो चल में आ रही हूं वापस नहीं चली जाऊंगी,,,।
(अपनी मां की हालत देखकर सूरज को इतना तो समझ में आ गया था कि उसकी मां को बड़े जोरों की पेशाब लगी थी क्योंकि वह अपने पेशाब पर काबू पाने के लिए अपने पैर की उंगलियों पर खड़ी हो जा रही थी,,,, और सूरज को अपनी मां की ऐसी हालत देखने में मजा आ रहा था। )

लेकिन फिर भी बताओ तो सही यहां क्या कर रही हो क्यों रुकी हो मुझे चिंता हो रही है कहीं कोई आसपास में है तो नहीं,,,,।


नहीं ऐसा कुछ भी नहींहै,,,,

फिर,,,,(सूरज अच्छी तरह से जानता था लेकिन वह अपनी मां के मुंह से सुनना चाहता था इसलिए वह जिद कर रहा था और अनजान बनने की कोशिश कर रहा था अपनी बेटी की बात सुनकर थोड़ा झल्ला कर सुनैना बोली,,,)



बात को समझने की कोशिश कर सूरज मैं तुझे कह रही हूं थोड़ा आगे क्या तो चला क्यों नहीं जाता,,,,,(ऐसा कहते हुए फिर ना जाने सुनैना को क्या सूझी वह भी अपने बेटे से बताने के लिए मचल उठी और धीरे से बोली,,,) बात तो समझने की कोशिश कर मुझे बड़े जोरों की,,,,,(अपनी जोरों की आ रही पेशाब पर काबू करने की कोशिश करते हुए इधर-उधर पेर उठाकर चलते हुए) पेशाब लगी है,,,,(ऐसा कहते हुए सुनैना एकदम शर्म से पानी पानी हो गई,,, वह अपने बेटे के सामने पेशाब शब्द का प्रयोग करना नहीं चाहती थी लेकिन मजबूरन उसे इस तरह का शब्द का प्रयोग करना पड़ा था लेकिन अपने बेटे के सामने इस तरह के शब्दों का प्रयोग करके जहां एक तरफ वह शर्म से पानी पानी हो रही थी वहीं दूसरी तरफ उसके बदन में उत्तेजना की लहर उठ रही थी उसके दोनों टांगों के बीच की पतली दरार फूल पिचक रही थी। अपनी मां के मुंह से पेशाब वाली बात सुनकर सूरज भी मदहोश हो गया था लेकिन एकदम सहज बनने का नाटक करते हुए वह बोला,,,)

ओहहहहह मुझे मालूम नहीं था,,,, अच्छा कर लो,,,,(ऐसा वह जानबूझकर बोला था क्योंकि किसी औरत को पेशाब करने के लिए जब मरद इस तरह के शब्दों का प्रयोग करता है तो मर्द और औरत के बीच बहुत कुछ घटित हो चुका होता है या घटित होने की आशंका बनी होती है और इसी बात के एहसास से सुनैना के तन-बदन में मदहोशी का रस घुलने लगा था वह एकदम से शर्म से पानी पानी हुए जा रही थी वह अपने बेटे से नजर नहीं मिल पाई थी,,,, सूरज अपने शब्दों का बाद अपनी मां के मन पर चला कर वह थोड़ा दूर जाकर खड़ा हो गया था वैसे तो इस स्थिति में वह अपने बेटे के करीब होते हुए पेशाब नहीं करना चाहती थी लेकिन वह अपने पेशाब पर बिल्कुल भी काबू नहीं कर पा रही थी इसलिए मजबूरन उसे पेशाब करना ही था इसलिए वह थोड़ा इधर-उधर देखकर घनी झाड़ियों के बीच जाकर खड़ी हो गई,,,,, और वह वहां से अपने बेटे की तरफ देखी तो उसका बेटा वहां से दिखाई दे रहा था लेकिन सूरज जानबूझकर अपनी मां की तरफ नहीं देख रहा था क्योंकि वह जानता था कि उसकी मां अभी खड़ी है अपने बेटे की आंखों के सामने उसे शर्मिंदगी का एहसास हो रहा था वह धीरे से अपनी साड़ी को अपने हाथों से पकड़ ली थी और अपने बेटे की तरफ देख रही थी कि कहीं वह उसकी तरफ देखा तो नहीं रहा है,,,, जब अनिश्चित हो गई कि उसका बेटा उसकी तरफ नहीं देख रहा है तो वह मुस्कुरा कर लेकिन इस मुस्कुराहट में भी पूरी तरह से शर्मिंदगी छिपी हुई थी वह धीरे-धीरे अपनी साड़ी को ऊपर की तरफ उठाने लगी और इधर-उधर देख भी ले रही थी कि कहीं कोई गांव का इंसानतो वहां नहीं है लेकिन वह लोग गांव से काफी दूर आ चुके थे और दोपहर का समय होने की वजह से किसी के भी आने की आशंका दिखाई दे नहीं रही थी इसलिए वह निश्चित होकर अपनी साड़ी को एकदम से कमर तक उठा ली थी,,,,,

उसका दिल जोरों से धड़क रहा था क्योंकि चार-पांच मीटर की दूरी पर ही उसका बेटा खड़ा था और एक जवान बेटे की आंखों के सामने उसके करीब होते हुए एक मां अपनी साड़ी उठाकर पेशाब करने के लिए बैठ जाए यह एक शर्मिंदगी की बात थी इसलिए सुनैना के तन बदन में अजीब सी हलचल भी हो रही थी और थोड़ा अलग ही एहसास हो रहा था जिसे वह बयान नहीं कर सकती थी,,,,, साड़ी कमर तक उठाकर वह जल्दी से पेशाब करने के लिए नीचे बैठ गई थी और यह एहसास अंकित को भी हो गया था कि उसकी मां पेशाब करने के लिए नीचे बैठ गई थी क्योंकि पल भर में उसके कानों में उसकी मां की बुर से निकलने वाली सिटी की आवाज एकदम साफ सुनाई दे रही थी,,,, और यही एहसास जहां एक तरफ उसके बेटे को मदहोश कर रहा था उत्तेजित कर रहा था वही सुनैना को शर्मसार कर रहा था क्योंकि उसे भी साफ-साफ एहसास हो रहा था कि उसकी बुर से निकलने वाली सिटी की आवाज इस बिराने में काफी शोर मचा रही थी उसे पूरा यकीन था कि उसकी बुर से निकलने वाली सिटी की आवाज उसके बेटे के कानों तक जरूर पहुंच रही होगी। वह शर्मिंदगी का एहसास लिए अपनी बर से पेशाब की धार मेरी रही थी कि तभी वह एकदम से जोर से चीख पड़ी,,)

Bahut hi mast update he rohnny4545 BHai,

Sunaina bhi ab apne pati ki chinta nahi kar rahi he............suraj ki baato ka use bhi yakin hone laga he........

Sunaina ekdum chillayi kyun............

Agali update ke pratiksha rahegi
 

rohnny4545

Well-Known Member
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सूरज के कानों में तो उसकी मां की कुर्सी निकलने वाली पेशाब की सिटी की मधुर धुन सुनाई दे रही थी जिसमें वह पूरी तरह से मत हुआ जा रहा था कि तभी उसकी मां की चीख सुनाई दी सूरज एकदम से घबरा गया था वह जिस तरह से चीखी थी अगर गांव में इस तरह की ची मुंह से निकाली होती तो पूरा गांव इकट्ठा हो गया होता,, लेकिन इस वीरान सुनसान सड़क पर उसकी चीख सुनने वाला केवल सूरज ही था सूरज भी एकदम से घबरा गया था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार ऐसा क्या हो गया कि उसकी मां इतनी जोर से चीखने लगी,,, सूरज को अपनी मां की चिंता हो रही थी क्योंकि इस तरह से वह कभी चीखती नहीं थी जरूर कोई बात थी।




सूरज जल्दी से दौड़ता हुआ अपनी मां के पीछे आकर खड़ा हो गया और बोला।

क्या हुआ मां क्यों चीख रही हो,,,,,,, (अभी तक के की वजह से सूरज का ध्यान अपनी मां के ऊपर ठीक से गया नहीं था लेकिन जैसे ही अपने शब्द पूरे करने के बाद वह अपनी मां की तरफ देखा तो देखा ही रह गया साड़ी कमर तक उठाए हुए वह पेशाब करने बैठी थी उसकी बड़ी-बड़ी नंगी गांड झाड़ियां में भी खूबसूरत आभा बनाई हुई थी एकदम आसमान के चांद की तरह चमक रही थी,,, और सूरज के लिए मजे की बात यह थी कि उसकी मां चीखने के बावजूद भी अपने आप को व्यवस्थित नहीं की थी अपने कपड़ों को दुरुस्त नहीं की थी उसकी नंगी गांड सूरज की आंखों के सामने थी सूरज अपनी मां की गोरी गोरी गांड देखकर पागल हुआ जा रहा था,,, लेकिन तभी उसकी मां एकदम घबराते हुए स्वर में धीरे से बोली।

सांप ,,सांप,,, (सुनैना एकदम घबराई हुई थी उसकी सांस अटक रही थी वह अपने बदन को एकदम स्थिर की हुई थी और सूरज ने गौर किया था कि उसकी मां की बुर से निकलने वाली सीधी की आवाज भी एकदम शांत हो चुकी थी मतलब साफ था कि उसकी मां पेशाब नहीं कर रही थी,,,,, सांप का जिक्र होते ही सूरज की घबरा गया और एकदम से बोला,,,)

सांप कहां है सांप,,,,! (सूरज इधर-उधर देखता हुआ बोला था उसकी मां बोले नहीं बल्कि उंगली के इशारे से एकदम घबराए हुए दिखाने लगी ज्यादा नहीं सिर्फ इतना ही बोली,,,)





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यह देख,,,, (सुनैना उंगली से अपने पैर की तरफ इशारा कर रही थी,,, और जब सूरज ने देखा तो उसके भी होश उड़ गए थे क्योंकि उसकी मां जहां पर पेशाब करने बैठी थी उसके पैर वहां पड़े हुए थे जहां पर सांप बैठा हुआ था और गोलाई बनाया हुआ था,,, सांप काफी बड़ा लग रहा था इसलिए सुनैना बड़े आराम से उसके बनाए हुए गोलाई में अपने पैर रखकर बैठ चुकी थी और उसे एहसास तक नहीं हुआ था कि वह कहां बैठी है,,,, वह तो पेशाब करने में ही मस्त थी,,,, सूरज भी यह देखकर हैरान हो गया था कि वाकई में चिंता वाली बात हो गई थी वह जानता था कि अगर उसकी मां उठने की कोशिश करेगी तो हलन चलन से सांप एकदम इधर-उधर होने लगेगा जो कि इस समय सूरज को साफ दिखाई दे रहा था कि उसकी मां का एक पर गोली में था और उसे सांप का पूरा शरीर आगे झाड़ियां में था इसका मतलब साफ था की वह आराम कर रहा था,,, सूरज को समझ में आ गया था कि इसी डर के मारा उसकी मां की पेशाब रोक रही थी और वह पेशाब नहीं कर पाई थी,,,,, सूरज भी अपनी मां की तरह ही उसके पास बैठ गया था ठीक उसके पीछे ,,,डर के मारा सुनैना को इस बात का अहसास तक नहीं था कि वह किस अवस्था में बैठी है। सूरज की आंखों के सामने उसकी मां की नंगी गांड थी एकदम गदराई हुई ,,, जिसे देखने के लिए सूरज दिन रात तड़पता था और आज आलम यह था कि उसकी मां नंगी गांड उसकी आंखों के सामने परोसे हुए बैठी थी और उसे अहसास तक नहीं था,,,,,, इस डर के माहौल में इतनी सूरज अपने आप को अपनी मां की नंगी गांड देखने से रोक नहीं पा रहा था। और शायद यही औरत की खूबसूरत अंगों का आकर्षण होता है जिसमें मर्द पूरी तरह से खो जाता है भले ही वह कैसी भी हालत में हो,,,,।






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घबराहट से पूरा माहौल एकदम शांत हो चुका था सुनैना की कान फाड़ देने वाली चीख शांत हो चुकी थी,,, क्योंकि उसे पूरा यकीन करके उसका बेटा जरूर कुछ ना कुछ करेगा क्योंकि अब वह कुछ कर सके ऐसी उसकी हालत बिल्कुल भी नहीं थी वह भी हार मान चुकी थी इसलिए तो अपने बेटे की तरफ आस भरी नजर से देखते हुए बोली,,,।

अब क्या करूं सूरज मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है,,,,,।


तुम चिंता मत करो मैं हूं ना बस हिलना डुलना बिल्कुल भी नहीं,,,, मुझे लग रहा है कि सांप आराम कर रहा है इसलिए वह शांत है वरना अभी तक तो,,, (इतना कहकर वह शांत हो गया और कुछ सोचने लगा,,,, यह मुश्किल की घड़ी भी सूरज के लिए आस भरी सुनहरी कीरन लेकर आई थी,,,, सूरज कभी अपनी मां के पैर की तरफ देखा तो कभी अपनी मां के खूबसूरत चेहरे की तरफ तो कभी उसकी बड़ी-बड़ी गांड की तरफ ऐसी मुश्किल घड़ी में भी सूरज को उसकी मां की बड़ी-बड़ी गांड आकर्षित कर रही थी और सुनैना अपने बेटे की तरफ देख रही थी तो कभी अपने पैर की तरफ उसे भी एहसास हो रहा था कि वाकई में सांप को ज्यादा ही लंबा था,,,,,, सूखे हुए पत्तों के बीच वह सांप अपने अस्तित्व को छुपाया हुआ था ताकि उसे भी भारी जंगली जानवर उस पर हमला न कर दे,,, लेकिन इस समय सुनैना मुश्किल घड़ी में थी मुसीबत में थी जिसमें से सूरज को बाहर निकालना था। सूरज कुछ देर तक शांत बैठा रहा वह सोच रहा था कि कैसे इस मुसीबत से अपनी मां को बाहर निकाला जाए,,,, लेकिन सुनैना से सब्र नहीं हो रहा था वह अपने बेटे की तरफ देखते हुए बोली,,,)





कुछ कर सूरज मुझे बहुत डर लग रहा है।

डरने वाली बात तो है ही अगर तुम खड़ी हो जाती हो तो सूखे हुए पत्तों में हलन चलन होगी और सांप एकदम से बाहर आ सकता है और काट सकता है।

तो अब क्या करूं,,,,,।

रुको तुम्हें कुछ नहीं करना है जो करना है मुझे ही करना है,,,,,।

कुछ भी कर लेकिन जल्दी कर,,,,।

(अपनी मां की यह बात सुनकर सूरज अपने मन में ही बोला साला मेरा मन तो तुम्हें चोदने को कर रहा है कहो तो चोद दुं,,, साली इतनी मस्त गांड मेरी आंखों के सामने है लेकिन मैं कुछ कर नहीं सकता हूं कोई और होता तो इस समय डाल चुका होता ,,,,, अपने मन में अपनी मां के प्रति इस तरह की बात सोचते हुए और वह भी ऐसी हालत में वह आगे की युक्ति सोच रहा था और फिर धीरे से अपनी मां की तरफ बैठे-बैठे ही सरक गया जैसे कि वह भी किसी औरत की भांति पेशाब करने बैठा हो,,, और देखते ही देखते वह एकदम से अपनी मां के करीब पहुंच गया था,,,,, और अपना दोनों हाथ आगे बढ़कर नीचे से अपनी मां का पैर पकड़ लिया और उसके हाथ में उसकी मां की पायल भी पकड़ गई थी जो की हल्का सा शोर मचाने लगी थी यह देखकर वह अपनी मां के पैरों को थोड़ा जोर से पकड़ लिया था और बोला।)

तुम्हारी पायल कुछ ज्यादा ही शोर मचाती है,,,।

तुझे पायल की पड़ी है यहां मेरी जान सूख रही है।

चिंता मत करो अभी सब कुछ ठीक हो जाएगा,,,,।

लेकिन तू कर क्या रहा है,,,, देखना तेरा हाथ सांप से स्पर्श न हो जाए वरना वह जाग जाएगा,,,,।

इसीलिए तो संभाल कर तुम्हारा पैर पकड़ा हूं,,,,, (सूरज की हालात दोनों तरफ से खराब थी एक तरफ सांप का डर उसके मन में बना हुआ था और दूसरी तरफ उसकी मां की गदराई गांड जो की पूरी तरह से हाहाकार मचा रही थी और उसकी हालत को खराब कर रही थी,,,, सूरज नजर भर कर अपनी मां की गांड को देख रहा था गांड की फांकों के बीच के कटाव की पतली दरार इतनी गजब की थी मानो जैसे हरियाली से भरा हुआ रास्ता और यह हरियाली पेड़ पौधों जंगल की नहीं बल्कि जवानी की हरीयाली थी,,,, सूरज को अच्छी तरह से एहसास हो रहा था कि उसकी मां जिस तरह से बड़ी तीव्रता के साथ पेशाब कर रही थी उसकी बुर से निकलने वाली पेशाब के छिंटे उसके पैर पर भी पड़े थे जो कि ईस समय सूरज के हाथों में लग रहे थे लेकिन सूरज को इसका एहसास पूरी तरह से उत्तेजित कर दे रहा था। सूरज कस के अपनी मां के पैर को पकड़ा हुआ था और उस गोलाई में से अपनी मां के पर को निकालना चाहता था इसलिए जोर लगाकर वह ऊपर की तरफ उठाने लगा और बोला,,,)

ईस पैर का भार थोड़ा कम करो और जैसे मैं उठा रहा हूं खुद भी उठने की कोशिश करो तभी इस मुसीबत से निकल पाओगी,,,, और जल्दी करो कहीं ऐसा ना हो कि इधर से चूहे गुजरे और उन्हें पकड़ने के चक्कर में हम लोगों का नुकसान हो जाए,,,,,,।

(ऐसा कहते हुए सूरज दम लगाकर अपनी मां के पर को ऊपर की तरफ उठा रहा था और उसकी मां भी अपने बदन के भार को उठाने की कोशिश कर रही थी,,, लेकिन सुनैना से ठीक से हो नहीं पा रहा था तो सूरज ही उससे बोला,,,)

एक काम करो तुम एक हाथ पीछे की तरफ लाकर मेरे कंधे पर रखकर सहारा ले लो तब आराम से उठ पाओगी,,,,,।
(जल्द ही सुनैना अपने बेटे की बात मान गई और अपना एक हाथ पीछे की तरफ लाकर अपने बेटे के कंधे पर रख दी और उसे पर दबाव बनाते हुए खुद उठने की कोशिश करने लगी और नीचे से सूरज अपनी मां के पैर को उठा ही रहा था,, धीरे-धीरे सूरज की मेहनत रंग लाने लगी,,, सुनैना की भी कोशिश कामयाब हो रही थी वह अपने पैर को उठाने में कामयाब हो गई थी सांप की गोलाई में से सुनैना का पेर ऊपर की तरफ उठ चुका था लेकिन अभी भी वह सुरक्षित नहीं थी क्योंकि अगर इस तरह से सूरज छोड़ देता तो फिर से मुसीबत खड़ी हो सकती थी इसलिए सूरज इस बार अपना एक हाथ,,, मौके का फायदा उठाते हुए नीचे से अपनी मां की गांड पर रखती है और उसे पर सहारा बनाकर अपनी मां की गांड को भी ऊपर की तरफ उठाने लगा,,,, अपनी मां की गांड पर हाथ रखते हैं सूरज की हालत एकदम से खराब हो गई थी उसके पजामे में उसका लंड पूरी तरह से अकड़ चुका था इस मुसीबत की घड़ी में भी उसकी आंखों में वासना के डोरे साफ नजर आ रहे थे,,,, और वाकई में मदद की आंखों के सामने जब इतनी खूबसूरत जवानी से भरी हुई औरत हो तो मुसीबत की घड़ी में भी वह मर्द उसे औरत के साथ संबंध बनाना चाहेगा,,, और यह हाल इस समय सूरज का भी था,,, अपनी मां की गांड के निचले हिस्से पर अपनी हथेली रखकर वह ऊपर की तरफ उठा रहा था और उसकी मां भी अपने बेटे का इस तरह का सहारा पाकर अपने वजन पर काबू पाते हुए ऊपर की तरफ उठ रही थी।

लेकिन सूरज के मन में कुछ और चल रहा था वह इस मौके को अपने हाथ से गंवाने नहीं देना चाहता था । भले ही वह अपनी मां की चुदाई नहीं कर सकता था लेकिन इस समय वहां अपनी मां के खूबसूरत अंग को छुकर उसका आनंद ले सकता था इसलिए वह अपनी मां की गांड के नीचे अपनी हथेली रखकर उसे ऊपर की तरफ उठाते हुए धीरे से अपनी हथेली को अपनी मां की बुर की तरफ बढ़ाने लगा और अगले ही पल जैसे ही उसे एहसास हुआ कि उसकी हथेली उसकी मां की गर्म बुर पर एकदम से सट गई है तो ,,, वह एकदम से मौके का फायदा उठाते हुए अपनी मां की बुर को एकदम से अपनी हथेली में दबोचते हुए बोला,,,,।

बस एकदम से खड़ी हो जाओ,,,, साथ में मैं भी खड़ा होता हूं,,,, (यह वह पल था जिसमें सूरज अच्छी तरह से जानता था कि अफरातफरी में उसकी मां कुछ समझ नहीं पाएगी,,,,, और ऐसा ही हुआ उसकी मां भी पूरा जोर लगाकर खड़ी होने की कोशिश करने लगी साथ में सूरज भी खड़े होने लगा लेकिन इस दौरान वह अपनी हथेली का दबाव अपनी मां की बुर पर बनाया हुआ था और बुर के ऊपर के हल्के-हल्के बालों में अभी भी पेशाब की बूंदे लगी हुई थी जिससे उसकी हथेली गीली हो रही थी,,,,, इस अद्भुत पल का आनंद लेते हुए मां बेटे दोनों खड़े हो चुके थे लेकिन सूरज अभी भी झुका हुआ था क्योंकि उसके एक हाथ में अभी भी उसकी मां का पैर था,,,, और फिर जब कुछ सब कुछ सही नजर आने लगा तब वह अपनी मां का पर खुद ही धीरे से दूसरी तरफ रख दिया,,,,,। वैसे तो यह सब कुछ बिल्कुल आसान लग रहा था लेकिन सूरज के मन में इस बात का डर था कि सूखे हुए पत्तों में जरा सा भी हलचल हुआ तो वह सांप तुरंत पलट कर इसी तरफ आएगा और ऐसे में वह काट भी सकता है इसलिए वहां बिल्कुल भी खतरा मोल नहीं लेना चाहता था,,, सुनैना उसे सांप की गोलाई से तकरीबन 2 फीट की दूरी पर खड़ी हो चुकी थी,,, सांप अभी भी ज्यो का त्यों बैठा हुआ ही था,,,, सांप की तरफ देखते हुए सुनैना बोली,,,)

दैया रे दैया आज तो बच गई मुझे तो लगा था कि आज मेरी जान ही चली जाएगी,,,।

मेरे होते हुए भला ऐसे कैसे हो सकता है,,,।

तो सही कह रहा है अगर आप तो मेरे साथ नहीं होता तो आज कुछ ना कुछ गजब हो जाता,,,, (सुनैना अभी भी गहरी गहरी सांस लेते हुए सांप की तरफ देखते हुए बोल रही थी और वह भूल चुकी थी कि अभी भी उसकी साड़ी कमर तक उठी हुई थी नितंबों का उभार जिस तरह का था उसे उभार पर उसकी साड़ी टिक गई थी और उसकी नंगी गांड पीछे से एकदम साफ दिखाई दे रही थी यह देखकर सूरज हल्के से मुस्कुरा दिया और अपनी मां से बोला,,,,)

अपने कपड़े तो ठीक कर लो अभी भी दिख रहा है,,,।
(अपने बेटे की बात पर गौर करते ही वह एकदम से हड़बड़ा गई और तुरंत अपनी साड़ी को व्यवस्थित करने लगी लेकिन इस बात को वह भी जानती थी कि अब कोई फायदा नहीं है क्योंकि उसे एहसास हो रहा था कि जिस तरह से वह पेशाब करने बैठी हुई थी उसके बेटे ने सब कुछ देख लिया था और वह अपने मन में सोच रही थी आज का दिन ही कुछ अलग ही है तैयार होते समय भी उसका बेटा उसे पूरी तरह से नंगी देख चुका था और इस समय भी उसे पेशाब करते हुए देख चुका था और यह एहसास उसे शर्म से पानी पानी किया जा रहा था वह अपने बेटे से नजर नहीं मिल पा रही थी अपने कपड़ों को दुरुस्त करके वह बोली,,,)

अब हमें चलना चाहिए काफी देर हो चुकी है,,,,।

बात तो सही है लेकिन थोड़ा इधर आ जाओ,,,, इसे थोड़ा भगा दु वरना आते-जाते किसी का पैर पड़ गया तो गजब हो जाएगा,,,(खुद को और अपनी मां को सुरक्षित दायरे में करते हुए वह छोटा सा पत्थर उठाया और उसे और धीरे से फेंक दिया जिससे तुरंत वह सांप एकदम से उठकर खड़ा हो गया ठीक उसी तरफ जहां पर उसकी गोलाई था,,, यह देखकर सूरज अपनी मां से बोला,,,)


देख रही हो ना यही डर था मेरे मन में अगर जरा सा भी हलचल होता तो वह इसी तरह से फुंफकारने लगता और काट भी लेता,,

तू एकदम ठीक कह रहा है,,,,(सुनैना को विश्वास का एहसास हो रहा था कि उसके बेटे ने जो कुछ भी किया था उसी में उसकी भलाई थी,,,,, और अगले ही पल वह सांप भी झाड़ियों के अंदर चला गया,,,, मां बेटे फिर से बाजार के रास्ते जाने लगे लेकिन सूरज चलते हुए ही तुरंत अपनी मां से बोला,,,)

वह तो गनीमत थम की सांप के ऊपर पेशाब नहीं करने लगी वरना गजब हो जाता,,,(यह वाली बात सूरज जानबूझकर बोला था और अपने बेटे के मुंह से यह बातें सुनकर सुनैना के चेहरे पर शर्म की लाली जाने लगी वह कुछ बोल नहीं पाई और बिना कुछ बोले खामोश चलती रही थोड़ी देर में दोनों बाजार पहुंच चुके थे,,,,,, सुनैना बाजार में जरूर का सामान खरीद रही थी काफी महीनों बाद वह बाजार आई थी,,,, इसलिए वह ज्यादा खुश थी अपनी मां को राशन का सामान खरीदना हुआ देखकर सूरज भी आगे निकल गया था और अपने मनपसंद का सामान खरीद कर उसे अपने पजामे में रख लिया था जिसके बारे में उसने अपनी मां को नहीं बताया था। शाम के समय बाजार की रौनक बढ़ जाती थी लोगों की काफी भीड़ नजर आ रही थी लोग अपने-अपने जरूरत का सामान खरीद रहे थे,,,,,, थोड़ी देर में सुन ना खरीदी कर चुकी थी और फिर सूरज के साथ एक छोटी सी समोसे की दुकान पर पहुंच गई थी जहां पर वह खुद के लिए और अपने बेटे के लिए समोसे और जलेबी खरीद कर खा रही थी,,,,, और रानी के लिए भी ले ली थी।

मां बेटे दोनों एक टूटी हुई लंबी सी कुर्सी पर बैठकर जलेबी और समोसे का मजा लूट रहे थे वहीं पास में दो लड़के भी खड़े थे वह दोनों उन्ही की तरफ देख रहे थे इसलिए सुनैना उन दोनों बच्चों को अपने पास बुलाई और उन्होंने दोनों के लिए भी जलेबी और समोसे खरीद कर उन्हें दे दी और वह लोग खाने लगे वह समोसे और जलेबी खा ही रहे थे कि तभी वहां पर उनकी मां आ गई,,, और अपने बच्चों को समोसे और जलेबी खाता हुआ देखकर बोली,,,,।

तुम दोनों को यह किसने दिलाया,,,,,।

चाची ने,,,,(वह दोनों बच्चे सुनैना की तरफ इशारा करते हुए बोले तो सुनैना मुस्कुराने लगी और उनकी तरफ देखकर वह औरत भी बोली)

इसकी क्या जरूरत थी दीदी यह दोनों बहुत जीद्दी हैं अभी इन्हें दिलाने ही वाली थी,,,,।


कोई बात नहीं मैं दिलाओ या तुम दिलाओ बात तो यही है और बच्चे तो बच्चे होते हैं,,,,।
(अभी दोनों की बातचीत हो ही रही थी कि सूरज को लग रहा था कि उसने ईस औरत को कहीं देखा है अपने दिमाग पर बहुत जोर देने के बाद उसे याद आ गया कि इस औरत को वह कैसे जानता है लेकिन इसके बारे में कुछ बोला नहीं और थोड़ी देर में शाम ढलने लगी थी सूरज अपनी मां के साथ सामान वाला थैला लेकर गांव की तरफ निकल गया था,,,, लेकिन अब धीरे-धीरे अंधेरा बढ़ने लगा था यह देखकर सूरज अपनी मां से बोला,,,)



जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाओ देर हो चुकी है।

जानती हूं उस सांप के चक्कर में देर हो गई वरना अब तक हम लोग घर पहुंच गए होते।

कोई बात नहीं वैसे भी ज्यादा देर नहीं हुई है लेकिन अब अंधेरा होने लगा है इसलिए समय पर घर पहुंच जाना जरुरी है।(मां बेटे दोनों कच्ची पगडंडी से होते हुए जल्दी-जल्दी आगे की तरफ निकल रहे थे कि तभी कुछ लोगों की आवाज सुनाई देने लगी जो आपस में ही बात करते हुए पीछे से उनकी तरफ ही आ रहे थे,,,,,, जिस तरह से वह लोग बातें कर रहे थे सूरज को समझते देर नहीं लगी थी कि वह लोग ठीक इंसान नहीं थे,,,,,, लेकिन सुनैना के मन में ऐसा कुछ नहीं था इसलिए वह अपने बेटे से बोली,,,)

लगता है गांव के कुछ लोग आ रहे हैं रुक जाओ उन्हीं लोग के साथ चलते हैं,,,,।

धीरे बोलो यह क्या कर रही हो,, वह लोग गांव के लोग नहीं है चोर बदमाश है,,,,,
(चोर बदमाश का नाम सुनते ही सुनैना की तो हालत खराब होने लगी उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें लेकिन सूरज उसका हाथ पकड़ कर बोला)

जल्दी से इधर आओ,,,,, (सूरज अपनी मां का हाथ पकड़े हुए एकदम से झाड़ियां के बीच बड़े से पेड़ के पीछे लेकर चला गया जहां से वह दोनों छुपकर देखने लगे की यह लोग हैं कौन)
 
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