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Non-Erotic नहीं हूँ मैं बेवफा!

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king cobra

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अब वो मुझसे बता करें तब तो कुछ कहूं..................अब तो बस यही उम्मीद है की वो ये सब देख और पढ़ रहे हों!!!!!!!!!!! बाकी आप सब उन्हें टैग करते रहिये...................जब ऑनलाइन आयेंगे तो हो सकता है देख लें

हालात तो तब भी यही थे जब लेखक जी ने मुझसे शादी का प्रस्ताव रखा था...............तब अगर मैंने हिम्मत दिखाई होती तो मिलकर लड़ सकते थे...................फर्क बस इतना है की तब वो मेरा साथ चाहते थे और मैं पीछे हो गई थी.........और अब मैं उनका साथ चाहती हूँ तो आप सब की बातें सुन वो पीछे हो रहे हैं!!!!!!!!!!
ji nahi aisa bilkul nahi hai Aadmi sunta sabki karta apne man ki hum kaun se dada thakur hain fir bhi agar aapko hamare karan takleef hui to uske liye dil se sorry
 

king cobra

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भाग 2

जानकी के पैदा होने से पहले ही मुझे पढ़ाई का शौक लग चूका था| जब भाईसाहब स्कूल से लौट अपनी तख्ती पर लिखते तो उन्हें यूँ लिखते हुए देख मैं खिलखिलाने लगती..........मेरा बालपन देखते हुए भाईसाहब मुझे अपनी गोदी में बिठा कर मेरे हाथ में चौक पकड़ा कर लिखते| मेरे लिए ये बड़ा ही रोचक खेल था क्योंकि हरबार मैं कोई न कोई नया अक्षर लिखती थी................मतलब भाईसाहब मेरा हाथ पकड़ कर नए नए अक्षर बनाते थे! ज्यों ज्यों मैं बड़ी होती गई मेरी रूचि पढ़ाई में बढ़ती गई..............मैं अक्षरों पर ऊँगली रख कर भाईसाहब से पूछती की ये क्या है और भाईसाहब मुझे उस अक्षर को बोल कर बताते................फिर मैं भी उनके पीछे पीछे अक्षर को बोलकर दुहराती| मुझे अपने भाईसाहब के पास रहना अच्छा लगता था और पढ़ाई मेरे लिए एक माध्यम थी जिसके जरिये मैं ज्यादा से ज्यादा समय अपने भाई साहब के साथ बिता पाती थी|



फिर जब जानकी और सोनी पैदा हुए तो मेरे सर पर दोनों की जिम्मेदारी आ गई...................तो दूसरी तरफ भाईसाहब बड़े हो रहे थे और अब वो अपनी बहन के साथ कम समय बिताते थे और बाकी का समय वो अपने दोस्तों के साथ बिताने लगे थे| लेकिन फिर भी दिन में दो बार खाना खाते समय वो हम तीनों बहनों को अपने साथ बिठा कर खाना खाते| सोनी खाती तो कुछ नहीं थी............पर वो भाईसाहब की थाली में अपने दोनों हाथ से खाना छू कर खुश हो जाती थी| उसकी इस शैतानी पर भाईसाहब हँसते थे.........जबकि मैं और जानकी उसे डाँटने लगते!



जैसा की हमारे लेखक जी कहते आये हैं की अच्छी चीजें जल्दी ही खत्म हो जाती हैं.....................वैसे ही सुख का ये समय इतनी जल्दी बीता की पता ही नहीं चला|





भाईसाहब की दबंगई बढ़ती जा रही थी...........आये दिन उनकी मार पीट करने की खबर घर आने लगी थी| इन खबरों से बप्पा का दी बहुत दुखता और वो भाईसाहब को डांटने लगते..............जब बप्पा डांट कर चले जाते तब मैं भाईसाहब के गले लग कर उन्हें सांत्वना देती| मुझे लगता था की अगर मेरे भाईसाहब किसी को मार रहे हैं तो ठीक ही है............वो मार भी कितना लेते होंगें..........२ ४ थप्पड़.............उससे किसी का क्या बिगड़ जाता होगा???? लेकिन फिर एक दिन वो हुआ जिसे देख मैं अपने भाईसाहब से डरने लगी!!!!!!!



दोपहर का समय था...........हम चारों भाई-बहन खाना खा कर तख्त पर आराम कर रहे थे| तभी भाईसाहब का एक दोस्त आया............उसने बताया की पड़ोस के गॉंव में से किसी ने जानबूझ कर हमारे खेतों में अपने जानवर छोड़ दिए हैं!!!!! ये खबर सुनते ही भाईसाहब उठ बैठे............"मुन्नी तू दुनो लगे पहुरो..........हम आभायें आईथ है!!!" इतना कह भाईसाहब अपने दोस्त के साथ एक डंडा ले कर दौड़ गए|



मुझे उत्सुकता हुई की आखिर क्या हुआ है इसलिए मैं भी उनके पीछे पीछे नंगे पॉंव दौड़ गई| हमारे खेतों में 4 भैसें घुस आई थीं.................और उन्होंने हमारे एक चौथाई खेत को रोंद कर तबाह कर दिया था!!! मेरे भाईसाहब ने अकेले चारों को डंडे से हाँक कर बाहर निकाला!!! तभी उन चारों भैंसों के मालिक..............दो लड़के दौड़ते हुए आये| उन्हें देख मेरे भाईसाहब को बहुत गुस्सा आया और वो सीधा उनसे भिड़ गए!!! भाईसाहब ने डंडे को किसी लाठी की तरह घुमाया..................फिर उन दोनों लड़कों को ऐसे सूता की दोनों ने दर्द से चिल्लाना शुरू कर दिया!!!





मैं उस समय एक छोटी बच्ची थी जिसने ने लड़ाई झगड़ा कभी नहीं देखा था....................मेरे लिए तो गुस्से में अपनी बहन के बाल खींचना ही लड़ाई झगड़ा होता था...............ऐसे में जब मैंने ये हाथापाई देखि..........चीख पुकार देखि तो मैं डर के मारे थरथरकाने लगी!!!!!!!! पता नहीं मेरे भाईसाहब पर कौनसा भूत सवार हो गया था की उन्होंने उन दोनों लड़कों को ऐसे पीटना शुरू कर दिया जैसे धोबी कपड़ों को पटकता है!!!!!!! भाईसाहब का वो रौद्र रूप मेरे दिल में घर घर गया और मैं अपने भाईसाहब के गुस्से से घबराने लगी और घर दौड़ कर वापस आ गई|



भाईसाहब ने जो मार पिटाई की थी उसकी खबर बप्पा को लग गई थी................. कुछ देर बाद जब भाईसाहब घर लौटे तो बप्पा उन पर बरस पड़े| दोनों में बहुत बहस हुई और गुस्से में भाईसाहब घर से निकल गए| उनके जाने के बाद अम्मा भाईसाहब का बचाव करते हुए बोलीं की उन्होंने जो भी किया वो ठीक था.............मगर बप्पा को अम्मा की बातें बस माँ की ममता लग रही थीं इसलिए अब दोनों लड़ पड़े! घर में हो रहे इस झगड़े का असर जानकी और सोनी पर पड़ रहा था..................दोनों डर के मारे अंदर वाले कमरे में लिपटी हुई थीं|



पता नहीं उस पल मुझ में कैसे प्यार जागा...........मैंने दोनों को अपने गले लगा लिया और उन्हें बातें कर बहलाने लगी| सोनी सबसे छोटी थी इसलिए वो जल्दी ही मुस्कुराने लगी...............वहीं जानकी बड़ी थी इसलिए वो मेरी चालाकी समझ गई...............थोड़ा समय लगा उसे मगर आखिर वो भी मुस्कुराने लगी| वो पहला दिन था जब जानकी मेरे सामने मुस्कुराई थी................क्योंकि उसके बाद हम दोनों में हमेशा ही ठनी रही|



मैं अपने भाईसाहब का रौद्र रूप देख चुकी थी इसलिए मैं अब उनके पास जाने से थोड़ा घबराने लगी थी| धीरे धीरे भाईसाहब को मेरा डर दिखने लगा और उन्होंने मेरे इस डर के बारे में पुछा................तो मैंने भाईसाहब को सारा सच कह सुनाया| मेरी बात सुन भाईसाहब मुस्कुराये और बोले "ई गुस्सा.........मार पीट हम बाहर का लोगन से करित है.........हम कभौं हमार मुन्नी पर थोड़े ही हाथ उठाब??? अरे तू तो हमार नानमुन मुन्नी हो..............तोह से लड़ाई करब तो हमका नरक मेओ जगह न मिली!" .............भाईसाहब की कही ये बात मुझे आज भी याद है|उस दिन भाईसाहब की बात से मेरा डर कुछ कम तो हुआ था मगर मैं अपनी पूरी कोशिश करती थी की मैं उन्हें गुस्सा न दिलाऊं वरना...............क्या पता मेरी भी कुटाई हो जाए!!!!





दिन धीरे धीरे बीत रहे थे............ और ज्यों ज्यों हम चारों बड़े हो रहे थे.............त्यों त्यों पिताजी और भाईसाहब के बीच लड़ाई झगड़ा बढ़ता जा रहा था| भाईसाहब की दबंगई दिनों दिन बढ़ती जा रही थी...............गॉंव में कभी भी लड़ाई झगड़ा होता तो भाईसाहब अपने दाल को ले कर आ पहुँचते| इसी दबंगई के चलते भाईसाहब की संगत कुछ गलत लड़कों के साथ बढ़ गई थी......................जिसके फल स्वरूप उन्होंने गलत संगत में पड़ नशा करना शुरू कर दिया था|



नशा रिश्तों का नाश कर देता है..............मेरी ज़िंदगी का ये पहला सबक मुझे जल्द ही सीखने को मिला|



परधानी के चुनाव होने थे और मेरे भाईसाहब चुनाव प्रचार में लगे थे................की तभी एक दिन पता चला की पड़ोस के गॉंव में से किसी ने प्रधान के खेतों में अपने जानवर छोड़ दिए!!! ये खबर मिलते ही भाईसाहब अपने दाल को ले कर पहुँच गए दूसर गॉंव………………फिर शुरू हुई मार पीट..............लाठी डंडे चले...........और आखिर पुलिस केस बना| पुलिस भाईसाहब और उनके साथीदारों को पकड़ कर ले गई................लेकिन घंटे भर में ही हमारे गॉंव के प्रधान ने सबकी छूट करवा दी|



जब ये बात बप्पा को पता चली तो वो बहुत गुस्सा हुए...............भाईसाहब के घर आते ही बप्पा उन पर बरस पड़े| भाईसाहब ने थोड़ी देर तो बप्पा की गाली गलोज सुनी.............फिर वो बिना कुछ कहे चले गए|मुझे और अम्मा को भाईसाहब की बहुत चिंता हो रही थी मगर हम दोनों करते क्या???? हमें पता नहीं था की भाईसाहब कहाँ होंगें????? अम्मा बप्पा को प्यार से समझाने लगीं की वो शांत हो जाएँ मगर बप्पा का गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा था|



आखिर रात हुई और भाईसाहब घर लौटे............लेकिन वो इस वक़्त अकेले घर नहीं आये थे...........वो आज पहलीबार अपने दोस्तों के साथ दारु पी कर घर आये थे! भाईसाहब को पिए हुए देख बप्पा का गुस्सा बेकाबू हो गया.................वो भाईसाहब को थप्पड़ मारने वाले हुए थे की अम्मा बीच में आ गईं| बप्पा को बहुत गुस्सा आ रहा था इसलिए उन्होंने गुस्से में माँ को एक तरफ धक्का दे दिया!!!



मेरे बाद भाईसाहब सबसे ज्यादा प्यार अम्मा से करते थे..............जब उन्होंने बप्पा को माँ को धक्का देते हुए देखा तो भाईसाहब के भीतर गुस्से का ज्वालामुखी फट गया..................और उन्होंने गुस्से में आ कर बप्पा पर हाथ उठा दिया!!!!



भाईसाहब इस समय होश में नहीं थे...............उन्होंने जैसे ही बप्पा पर हाथ उठाया वैसे ही उन्हें थोड़ा बहुत होश आया| इधर बप्पा के गुस्से की सीमा नहीं थी................उनके अपने खून ने उन पर हाथ उठाया था..........ये जिल्ल्त वो बर्दश्त नहीं कर सकते थे इसलिए बप्पा ने गुस्से में आ कर भाईसाहब को पीछे की और धक्का दिया| वैसे तो भाईसाहब बलिष्ठ थे..........मगर नशे में होने के कारन बप्पा के दिए धक्के के कारन वो पीछे की और गिर पड़े! “मरी कटौ.................निकर जाओ हमार घरे से........... अउर आज के बाद हमका आपन शक्ल न दिखायो......नाहीं तो तोहका मारकर गाड़ देब!!!!!” बप्पा ने बहुत सी गालियां देते हुए भाईसाहब को घर से निकलने को कहा|



मैं चौखट पर खड़ी ये सब देख रही थी..............बप्पा बहुत कठोर थे मगर मैं उनकी सदा इज्जत करती थी....................जब भाईसाहब ने उनपर हाथ उठाया तो उसी पल मेरे भाईसाहब जो मुझे सबसे ज्यादा प्यार करते थे..................वो मेरी नजरों से नीचे गिर गए!!! मुझे उनसे नफरत होने लगी थी..............फिर जब बप्पा ने उन्हें घर से निकल जाने को कहा.................तब न जाने क्यों मेरा दिल रोने लगा!!!!!!! मैं नहीं चाहती थी की भाईसाहब घर छोड़ कर जाएँ..................और कहीं न कहीं उम्मीद कर रही थी की वो बप्पा से माफ़ी मांग कर बात को यहीं दबा दें|



पर शायद भाईसाहब को अपनी गलती का एहसास हो गया था............इसीलिए उन्होंने कुछ नहीं कहा और सर झुकाये हुए खड़े हुए तथा बिना कुछ कहे चले गए!!!!! भाईसाहब का ये रवैय्ये देख मैं दंग थी!!!!!!!!! क्यों भाईसाहब ने बप्पा से माफ़ी नहीं मांगी????????? अगर वो माफ़ी मांग लेते तो बप्पा का गुस्सा शांत हो जाता...........कम से कम मेरे लिए तो भाईसाहब माफ़ी मांग लेते.................ताकि उन्हें घर छोड़ कर ना जाना पड़े| ये बातें मेरे दिल में घर कर गईं और मेरे मन में मेरे ही भाईसाहब के लिए ज़हर घुल गया!!!!!!!!!!
bhai sahab maryada langh gaye wo kar gujre Jo hargij na karna tha very sad
 

kamdev99008

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आप सभी ने तो उनसे कहा था की मुझसे दूर रहे....................इसलिए आप सबकी बात को सीरियसली लेते हुए उन्होंने मुझसे बात चीत बंद कर रखी है...................और इस फोरम पर वो इसलिए नज़र नहीं आ रहे क्योंकि यहाँ जो सबने उनकी मेहनत को फिक्शन कह दिया उससे उनके दिल को बहुत चोट पहुंची....................पता नहीं वो यहाँ दुबारा आएंगे भी या नहीं :verysad:
दोबारा ही नहीं... बार बार आना पड़ेगा Rockstar_Rocky मानु भाई को....
अभी तो काला इश्क़ का पार्ट 2 भी लिखना है उनको
आपकी कहानी भी पढ़नी पड़ेगी, जैसे आपने उनकी कहानी पढ़ी.... दिल से जुड़े रहकर

लेखक जी की तरह सेक्स के बारे में मैं लिख नहीं सकती...............मुझसे वो शब्द नहीं लिखे जाते.............आपने बताया की आपने एक्स बी पर पी ऍम किया था लेकिन तबतक हम दोनों ही वो फोरम छोड़ चुके थे..................फोरम छोड़ने के बाद कुछ समय तक तो समय बड़ा प्यार भरा बीता.......लेकिन फिर................
मैंने ना उनके लिखे intimate scenes पढ़े और ना आपसे ऐसी अपेक्षा रखता हूँ....
प्यार और ख़ुशी के साथ दर्द और गम भी मिलते हैं... जीना इसी का नाम है.... सबको अपना लो
 
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दोबारा ही नहीं... बार बार आना पड़ेगा Rockstar_Rocky मानु भाई को....
अभी तो काला इश्क़ का पार्ट 2 भी लिखना है उनको
आपकी कहानी भी पढ़नी पड़ेगी, जैसे आपने उनकी कहानी पढ़ी.... दिल से जुड़े रहकर


मैंने ना उनके लिखे intimate scenes पढ़े और ना आपसे ऐसी अपेक्षा रखता हूँ....
प्यार और ख़ुशी के साथ दर्द और गम भी मिलते हैं... जीना इसी का नाम है.... सबको अपना लो
भाईसाहब आपने नई अपडेट पढ़ी तो रिव्यु क्यों नहीं दिया????? :girlmad:
 
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kamdev99008

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भाईसाहब आपने नई अपडेट पढ़ी तो रिव्यु क्यों नहीं दिया????? :girlmad:
रिव्यू लिखना, अपडेट लिखने से भी ज्यादा मुश्किल है....

अपडेट मनमर्जी से लिख लो लेकिन रिव्यू अपडेट के अनुसार ही होगा....
थोड़ा बहुत छूट दे दो...
 

Sanju@

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भाग 2

जानकी के पैदा होने से पहले ही मुझे पढ़ाई का शौक लग चूका था| जब भाईसाहब स्कूल से लौट अपनी तख्ती पर लिखते तो उन्हें यूँ लिखते हुए देख मैं खिलखिलाने लगती..........मेरा बालपन देखते हुए भाईसाहब मुझे अपनी गोदी में बिठा कर मेरे हाथ में चौक पकड़ा कर लिखते| मेरे लिए ये बड़ा ही रोचक खेल था क्योंकि हरबार मैं कोई न कोई नया अक्षर लिखती थी................मतलब भाईसाहब मेरा हाथ पकड़ कर नए नए अक्षर बनाते थे! ज्यों ज्यों मैं बड़ी होती गई मेरी रूचि पढ़ाई में बढ़ती गई..............मैं अक्षरों पर ऊँगली रख कर भाईसाहब से पूछती की ये क्या है और भाईसाहब मुझे उस अक्षर को बोल कर बताते................फिर मैं भी उनके पीछे पीछे अक्षर को बोलकर दुहराती| मुझे अपने भाईसाहब के पास रहना अच्छा लगता था और पढ़ाई मेरे लिए एक माध्यम थी जिसके जरिये मैं ज्यादा से ज्यादा समय अपने भाई साहब के साथ बिता पाती थी|



फिर जब जानकी और सोनी पैदा हुए तो मेरे सर पर दोनों की जिम्मेदारी आ गई...................तो दूसरी तरफ भाईसाहब बड़े हो रहे थे और अब वो अपनी बहन के साथ कम समय बिताते थे और बाकी का समय वो अपने दोस्तों के साथ बिताने लगे थे| लेकिन फिर भी दिन में दो बार खाना खाते समय वो हम तीनों बहनों को अपने साथ बिठा कर खाना खाते| सोनी खाती तो कुछ नहीं थी............पर वो भाईसाहब की थाली में अपने दोनों हाथ से खाना छू कर खुश हो जाती थी| उसकी इस शैतानी पर भाईसाहब हँसते थे.........जबकि मैं और जानकी उसे डाँटने लगते!



जैसा की हमारे लेखक जी कहते आये हैं की अच्छी चीजें जल्दी ही खत्म हो जाती हैं.....................वैसे ही सुख का ये समय इतनी जल्दी बीता की पता ही नहीं चला|





भाईसाहब की दबंगई बढ़ती जा रही थी...........आये दिन उनकी मार पीट करने की खबर घर आने लगी थी| इन खबरों से बप्पा का दी बहुत दुखता और वो भाईसाहब को डांटने लगते..............जब बप्पा डांट कर चले जाते तब मैं भाईसाहब के गले लग कर उन्हें सांत्वना देती| मुझे लगता था की अगर मेरे भाईसाहब किसी को मार रहे हैं तो ठीक ही है............वो मार भी कितना लेते होंगें..........२ ४ थप्पड़.............उससे किसी का क्या बिगड़ जाता होगा???? लेकिन फिर एक दिन वो हुआ जिसे देख मैं अपने भाईसाहब से डरने लगी!!!!!!!



दोपहर का समय था...........हम चारों भाई-बहन खाना खा कर तख्त पर आराम कर रहे थे| तभी भाईसाहब का एक दोस्त आया............उसने बताया की पड़ोस के गॉंव में से किसी ने जानबूझ कर हमारे खेतों में अपने जानवर छोड़ दिए हैं!!!!! ये खबर सुनते ही भाईसाहब उठ बैठे............"मुन्नी तू दुनो लगे पहुरो..........हम आभायें आईथ है!!!" इतना कह भाईसाहब अपने दोस्त के साथ एक डंडा ले कर दौड़ गए|



मुझे उत्सुकता हुई की आखिर क्या हुआ है इसलिए मैं भी उनके पीछे पीछे नंगे पॉंव दौड़ गई| हमारे खेतों में 4 भैसें घुस आई थीं.................और उन्होंने हमारे एक चौथाई खेत को रोंद कर तबाह कर दिया था!!! मेरे भाईसाहब ने अकेले चारों को डंडे से हाँक कर बाहर निकाला!!! तभी उन चारों भैंसों के मालिक..............दो लड़के दौड़ते हुए आये| उन्हें देख मेरे भाईसाहब को बहुत गुस्सा आया और वो सीधा उनसे भिड़ गए!!! भाईसाहब ने डंडे को किसी लाठी की तरह घुमाया..................फिर उन दोनों लड़कों को ऐसे सूता की दोनों ने दर्द से चिल्लाना शुरू कर दिया!!!





मैं उस समय एक छोटी बच्ची थी जिसने ने लड़ाई झगड़ा कभी नहीं देखा था....................मेरे लिए तो गुस्से में अपनी बहन के बाल खींचना ही लड़ाई झगड़ा होता था...............ऐसे में जब मैंने ये हाथापाई देखि..........चीख पुकार देखि तो मैं डर के मारे थरथरकाने लगी!!!!!!!! पता नहीं मेरे भाईसाहब पर कौनसा भूत सवार हो गया था की उन्होंने उन दोनों लड़कों को ऐसे पीटना शुरू कर दिया जैसे धोबी कपड़ों को पटकता है!!!!!!! भाईसाहब का वो रौद्र रूप मेरे दिल में घर घर गया और मैं अपने भाईसाहब के गुस्से से घबराने लगी और घर दौड़ कर वापस आ गई|



भाईसाहब ने जो मार पिटाई की थी उसकी खबर बप्पा को लग गई थी................. कुछ देर बाद जब भाईसाहब घर लौटे तो बप्पा उन पर बरस पड़े| दोनों में बहुत बहस हुई और गुस्से में भाईसाहब घर से निकल गए| उनके जाने के बाद अम्मा भाईसाहब का बचाव करते हुए बोलीं की उन्होंने जो भी किया वो ठीक था.............मगर बप्पा को अम्मा की बातें बस माँ की ममता लग रही थीं इसलिए अब दोनों लड़ पड़े! घर में हो रहे इस झगड़े का असर जानकी और सोनी पर पड़ रहा था..................दोनों डर के मारे अंदर वाले कमरे में लिपटी हुई थीं|



पता नहीं उस पल मुझ में कैसे प्यार जागा...........मैंने दोनों को अपने गले लगा लिया और उन्हें बातें कर बहलाने लगी| सोनी सबसे छोटी थी इसलिए वो जल्दी ही मुस्कुराने लगी...............वहीं जानकी बड़ी थी इसलिए वो मेरी चालाकी समझ गई...............थोड़ा समय लगा उसे मगर आखिर वो भी मुस्कुराने लगी| वो पहला दिन था जब जानकी मेरे सामने मुस्कुराई थी................क्योंकि उसके बाद हम दोनों में हमेशा ही ठनी रही|



मैं अपने भाईसाहब का रौद्र रूप देख चुकी थी इसलिए मैं अब उनके पास जाने से थोड़ा घबराने लगी थी| धीरे धीरे भाईसाहब को मेरा डर दिखने लगा और उन्होंने मेरे इस डर के बारे में पुछा................तो मैंने भाईसाहब को सारा सच कह सुनाया| मेरी बात सुन भाईसाहब मुस्कुराये और बोले "ई गुस्सा.........मार पीट हम बाहर का लोगन से करित है.........हम कभौं हमार मुन्नी पर थोड़े ही हाथ उठाब??? अरे तू तो हमार नानमुन मुन्नी हो..............तोह से लड़ाई करब तो हमका नरक मेओ जगह न मिली!" .............भाईसाहब की कही ये बात मुझे आज भी याद है|उस दिन भाईसाहब की बात से मेरा डर कुछ कम तो हुआ था मगर मैं अपनी पूरी कोशिश करती थी की मैं उन्हें गुस्सा न दिलाऊं वरना...............क्या पता मेरी भी कुटाई हो जाए!!!!





दिन धीरे धीरे बीत रहे थे............ और ज्यों ज्यों हम चारों बड़े हो रहे थे.............त्यों त्यों पिताजी और भाईसाहब के बीच लड़ाई झगड़ा बढ़ता जा रहा था| भाईसाहब की दबंगई दिनों दिन बढ़ती जा रही थी...............गॉंव में कभी भी लड़ाई झगड़ा होता तो भाईसाहब अपने दाल को ले कर आ पहुँचते| इसी दबंगई के चलते भाईसाहब की संगत कुछ गलत लड़कों के साथ बढ़ गई थी......................जिसके फल स्वरूप उन्होंने गलत संगत में पड़ नशा करना शुरू कर दिया था|



नशा रिश्तों का नाश कर देता है..............मेरी ज़िंदगी का ये पहला सबक मुझे जल्द ही सीखने को मिला|



परधानी के चुनाव होने थे और मेरे भाईसाहब चुनाव प्रचार में लगे थे................की तभी एक दिन पता चला की पड़ोस के गॉंव में से किसी ने प्रधान के खेतों में अपने जानवर छोड़ दिए!!! ये खबर मिलते ही भाईसाहब अपने दाल को ले कर पहुँच गए दूसर गॉंव………………फिर शुरू हुई मार पीट..............लाठी डंडे चले...........और आखिर पुलिस केस बना| पुलिस भाईसाहब और उनके साथीदारों को पकड़ कर ले गई................लेकिन घंटे भर में ही हमारे गॉंव के प्रधान ने सबकी छूट करवा दी|



जब ये बात बप्पा को पता चली तो वो बहुत गुस्सा हुए...............भाईसाहब के घर आते ही बप्पा उन पर बरस पड़े| भाईसाहब ने थोड़ी देर तो बप्पा की गाली गलोज सुनी.............फिर वो बिना कुछ कहे चले गए|मुझे और अम्मा को भाईसाहब की बहुत चिंता हो रही थी मगर हम दोनों करते क्या???? हमें पता नहीं था की भाईसाहब कहाँ होंगें????? अम्मा बप्पा को प्यार से समझाने लगीं की वो शांत हो जाएँ मगर बप्पा का गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा था|



आखिर रात हुई और भाईसाहब घर लौटे............लेकिन वो इस वक़्त अकेले घर नहीं आये थे...........वो आज पहलीबार अपने दोस्तों के साथ दारु पी कर घर आये थे! भाईसाहब को पिए हुए देख बप्पा का गुस्सा बेकाबू हो गया.................वो भाईसाहब को थप्पड़ मारने वाले हुए थे की अम्मा बीच में आ गईं| बप्पा को बहुत गुस्सा आ रहा था इसलिए उन्होंने गुस्से में माँ को एक तरफ धक्का दे दिया!!!



मेरे बाद भाईसाहब सबसे ज्यादा प्यार अम्मा से करते थे..............जब उन्होंने बप्पा को माँ को धक्का देते हुए देखा तो भाईसाहब के भीतर गुस्से का ज्वालामुखी फट गया..................और उन्होंने गुस्से में आ कर बप्पा पर हाथ उठा दिया!!!!



भाईसाहब इस समय होश में नहीं थे...............उन्होंने जैसे ही बप्पा पर हाथ उठाया वैसे ही उन्हें थोड़ा बहुत होश आया| इधर बप्पा के गुस्से की सीमा नहीं थी................उनके अपने खून ने उन पर हाथ उठाया था..........ये जिल्ल्त वो बर्दश्त नहीं कर सकते थे इसलिए बप्पा ने गुस्से में आ कर भाईसाहब को पीछे की और धक्का दिया| वैसे तो भाईसाहब बलिष्ठ थे..........मगर नशे में होने के कारन बप्पा के दिए धक्के के कारन वो पीछे की और गिर पड़े! “मरी कटौ.................निकर जाओ हमार घरे से........... अउर आज के बाद हमका आपन शक्ल न दिखायो......नाहीं तो तोहका मारकर गाड़ देब!!!!!” बप्पा ने बहुत सी गालियां देते हुए भाईसाहब को घर से निकलने को कहा|



मैं चौखट पर खड़ी ये सब देख रही थी..............बप्पा बहुत कठोर थे मगर मैं उनकी सदा इज्जत करती थी....................जब भाईसाहब ने उनपर हाथ उठाया तो उसी पल मेरे भाईसाहब जो मुझे सबसे ज्यादा प्यार करते थे..................वो मेरी नजरों से नीचे गिर गए!!! मुझे उनसे नफरत होने लगी थी..............फिर जब बप्पा ने उन्हें घर से निकल जाने को कहा.................तब न जाने क्यों मेरा दिल रोने लगा!!!!!!! मैं नहीं चाहती थी की भाईसाहब घर छोड़ कर जाएँ..................और कहीं न कहीं उम्मीद कर रही थी की वो बप्पा से माफ़ी मांग कर बात को यहीं दबा दें|




पर शायद भाईसाहब को अपनी गलती का एहसास हो गया था............इसीलिए उन्होंने कुछ नहीं कहा और सर झुकाये हुए खड़े हुए तथा बिना कुछ कहे चले गए!!!!! भाईसाहब का ये रवैय्ये देख मैं दंग थी!!!!!!!!! क्यों भाईसाहब ने बप्पा से माफ़ी नहीं मांगी????????? अगर वो माफ़ी मांग लेते तो बप्पा का गुस्सा शांत हो जाता...........कम से कम मेरे लिए तो भाईसाहब माफ़ी मांग लेते.................ताकि उन्हें घर छोड़ कर ना जाना पड़े| ये बातें मेरे दिल में घर कर गईं और मेरे मन में मेरे ही भाईसाहब के लिए ज़हर घुल गया!!!!!!!!!!
Awesome update
भाई साहब ने गुस्से में अपनी मर्यादा लांघ दी जो उनको हरगिश नही करना चाहिए था आपके मन में भाई साहब के प्रति जहर उनके प्यार की वजह से घुल गया क्योंकि आपको को सबसे ज्यादा प्यार भाई साहब से ही मिला था तो अबोध उम्र में किसी के प्रति गुस्सा किसी से डर हमारे मन में जल्दी ही बैठ जाता है और वही डर आपके मन में बैठा है
 
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king cobra

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रिव्यू लिखना, अपडेट लिखने से भी ज्यादा मुश्किल है....

अपडेट मनमर्जी से लिख लो लेकिन रिव्यू अपडेट के अनुसार ही होगा....
थोड़ा बहुत छूट दे दो...
matlab aap update par kuch na bologe ye chhut chahiye aapko :cry2:
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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भाग 2

जानकी के पैदा होने से पहले ही मुझे पढ़ाई का शौक लग चूका था| जब भाईसाहब स्कूल से लौट अपनी तख्ती पर लिखते तो उन्हें यूँ लिखते हुए देख मैं खिलखिलाने लगती..........मेरा बालपन देखते हुए भाईसाहब मुझे अपनी गोदी में बिठा कर मेरे हाथ में चौक पकड़ा कर लिखते| मेरे लिए ये बड़ा ही रोचक खेल था क्योंकि हरबार मैं कोई न कोई नया अक्षर लिखती थी................मतलब भाईसाहब मेरा हाथ पकड़ कर नए नए अक्षर बनाते थे! ज्यों ज्यों मैं बड़ी होती गई मेरी रूचि पढ़ाई में बढ़ती गई..............मैं अक्षरों पर ऊँगली रख कर भाईसाहब से पूछती की ये क्या है और भाईसाहब मुझे उस अक्षर को बोल कर बताते................फिर मैं भी उनके पीछे पीछे अक्षर को बोलकर दुहराती| मुझे अपने भाईसाहब के पास रहना अच्छा लगता था और पढ़ाई मेरे लिए एक माध्यम थी जिसके जरिये मैं ज्यादा से ज्यादा समय अपने भाई साहब के साथ बिता पाती थी|



फिर जब जानकी और सोनी पैदा हुए तो मेरे सर पर दोनों की जिम्मेदारी आ गई...................तो दूसरी तरफ भाईसाहब बड़े हो रहे थे और अब वो अपनी बहन के साथ कम समय बिताते थे और बाकी का समय वो अपने दोस्तों के साथ बिताने लगे थे| लेकिन फिर भी दिन में दो बार खाना खाते समय वो हम तीनों बहनों को अपने साथ बिठा कर खाना खाते| सोनी खाती तो कुछ नहीं थी............पर वो भाईसाहब की थाली में अपने दोनों हाथ से खाना छू कर खुश हो जाती थी| उसकी इस शैतानी पर भाईसाहब हँसते थे.........जबकि मैं और जानकी उसे डाँटने लगते!



जैसा की हमारे लेखक जी कहते आये हैं की अच्छी चीजें जल्दी ही खत्म हो जाती हैं.....................वैसे ही सुख का ये समय इतनी जल्दी बीता की पता ही नहीं चला|





भाईसाहब की दबंगई बढ़ती जा रही थी...........आये दिन उनकी मार पीट करने की खबर घर आने लगी थी| इन खबरों से बप्पा का दी बहुत दुखता और वो भाईसाहब को डांटने लगते..............जब बप्पा डांट कर चले जाते तब मैं भाईसाहब के गले लग कर उन्हें सांत्वना देती| मुझे लगता था की अगर मेरे भाईसाहब किसी को मार रहे हैं तो ठीक ही है............वो मार भी कितना लेते होंगें..........२ ४ थप्पड़.............उससे किसी का क्या बिगड़ जाता होगा???? लेकिन फिर एक दिन वो हुआ जिसे देख मैं अपने भाईसाहब से डरने लगी!!!!!!!



दोपहर का समय था...........हम चारों भाई-बहन खाना खा कर तख्त पर आराम कर रहे थे| तभी भाईसाहब का एक दोस्त आया............उसने बताया की पड़ोस के गॉंव में से किसी ने जानबूझ कर हमारे खेतों में अपने जानवर छोड़ दिए हैं!!!!! ये खबर सुनते ही भाईसाहब उठ बैठे............"मुन्नी तू दुनो लगे पहुरो..........हम आभायें आईथ है!!!" इतना कह भाईसाहब अपने दोस्त के साथ एक डंडा ले कर दौड़ गए|



मुझे उत्सुकता हुई की आखिर क्या हुआ है इसलिए मैं भी उनके पीछे पीछे नंगे पॉंव दौड़ गई| हमारे खेतों में 4 भैसें घुस आई थीं.................और उन्होंने हमारे एक चौथाई खेत को रोंद कर तबाह कर दिया था!!! मेरे भाईसाहब ने अकेले चारों को डंडे से हाँक कर बाहर निकाला!!! तभी उन चारों भैंसों के मालिक..............दो लड़के दौड़ते हुए आये| उन्हें देख मेरे भाईसाहब को बहुत गुस्सा आया और वो सीधा उनसे भिड़ गए!!! भाईसाहब ने डंडे को किसी लाठी की तरह घुमाया..................फिर उन दोनों लड़कों को ऐसे सूता की दोनों ने दर्द से चिल्लाना शुरू कर दिया!!!





मैं उस समय एक छोटी बच्ची थी जिसने ने लड़ाई झगड़ा कभी नहीं देखा था....................मेरे लिए तो गुस्से में अपनी बहन के बाल खींचना ही लड़ाई झगड़ा होता था...............ऐसे में जब मैंने ये हाथापाई देखि..........चीख पुकार देखि तो मैं डर के मारे थरथरकाने लगी!!!!!!!! पता नहीं मेरे भाईसाहब पर कौनसा भूत सवार हो गया था की उन्होंने उन दोनों लड़कों को ऐसे पीटना शुरू कर दिया जैसे धोबी कपड़ों को पटकता है!!!!!!! भाईसाहब का वो रौद्र रूप मेरे दिल में घर घर गया और मैं अपने भाईसाहब के गुस्से से घबराने लगी और घर दौड़ कर वापस आ गई|



भाईसाहब ने जो मार पिटाई की थी उसकी खबर बप्पा को लग गई थी................. कुछ देर बाद जब भाईसाहब घर लौटे तो बप्पा उन पर बरस पड़े| दोनों में बहुत बहस हुई और गुस्से में भाईसाहब घर से निकल गए| उनके जाने के बाद अम्मा भाईसाहब का बचाव करते हुए बोलीं की उन्होंने जो भी किया वो ठीक था.............मगर बप्पा को अम्मा की बातें बस माँ की ममता लग रही थीं इसलिए अब दोनों लड़ पड़े! घर में हो रहे इस झगड़े का असर जानकी और सोनी पर पड़ रहा था..................दोनों डर के मारे अंदर वाले कमरे में लिपटी हुई थीं|



पता नहीं उस पल मुझ में कैसे प्यार जागा...........मैंने दोनों को अपने गले लगा लिया और उन्हें बातें कर बहलाने लगी| सोनी सबसे छोटी थी इसलिए वो जल्दी ही मुस्कुराने लगी...............वहीं जानकी बड़ी थी इसलिए वो मेरी चालाकी समझ गई...............थोड़ा समय लगा उसे मगर आखिर वो भी मुस्कुराने लगी| वो पहला दिन था जब जानकी मेरे सामने मुस्कुराई थी................क्योंकि उसके बाद हम दोनों में हमेशा ही ठनी रही|



मैं अपने भाईसाहब का रौद्र रूप देख चुकी थी इसलिए मैं अब उनके पास जाने से थोड़ा घबराने लगी थी| धीरे धीरे भाईसाहब को मेरा डर दिखने लगा और उन्होंने मेरे इस डर के बारे में पुछा................तो मैंने भाईसाहब को सारा सच कह सुनाया| मेरी बात सुन भाईसाहब मुस्कुराये और बोले "ई गुस्सा.........मार पीट हम बाहर का लोगन से करित है.........हम कभौं हमार मुन्नी पर थोड़े ही हाथ उठाब??? अरे तू तो हमार नानमुन मुन्नी हो..............तोह से लड़ाई करब तो हमका नरक मेओ जगह न मिली!" .............भाईसाहब की कही ये बात मुझे आज भी याद है|उस दिन भाईसाहब की बात से मेरा डर कुछ कम तो हुआ था मगर मैं अपनी पूरी कोशिश करती थी की मैं उन्हें गुस्सा न दिलाऊं वरना...............क्या पता मेरी भी कुटाई हो जाए!!!!





दिन धीरे धीरे बीत रहे थे............ और ज्यों ज्यों हम चारों बड़े हो रहे थे.............त्यों त्यों पिताजी और भाईसाहब के बीच लड़ाई झगड़ा बढ़ता जा रहा था| भाईसाहब की दबंगई दिनों दिन बढ़ती जा रही थी...............गॉंव में कभी भी लड़ाई झगड़ा होता तो भाईसाहब अपने दाल को ले कर आ पहुँचते| इसी दबंगई के चलते भाईसाहब की संगत कुछ गलत लड़कों के साथ बढ़ गई थी......................जिसके फल स्वरूप उन्होंने गलत संगत में पड़ नशा करना शुरू कर दिया था|



नशा रिश्तों का नाश कर देता है..............मेरी ज़िंदगी का ये पहला सबक मुझे जल्द ही सीखने को मिला|



परधानी के चुनाव होने थे और मेरे भाईसाहब चुनाव प्रचार में लगे थे................की तभी एक दिन पता चला की पड़ोस के गॉंव में से किसी ने प्रधान के खेतों में अपने जानवर छोड़ दिए!!! ये खबर मिलते ही भाईसाहब अपने दाल को ले कर पहुँच गए दूसर गॉंव………………फिर शुरू हुई मार पीट..............लाठी डंडे चले...........और आखिर पुलिस केस बना| पुलिस भाईसाहब और उनके साथीदारों को पकड़ कर ले गई................लेकिन घंटे भर में ही हमारे गॉंव के प्रधान ने सबकी छूट करवा दी|



जब ये बात बप्पा को पता चली तो वो बहुत गुस्सा हुए...............भाईसाहब के घर आते ही बप्पा उन पर बरस पड़े| भाईसाहब ने थोड़ी देर तो बप्पा की गाली गलोज सुनी.............फिर वो बिना कुछ कहे चले गए|मुझे और अम्मा को भाईसाहब की बहुत चिंता हो रही थी मगर हम दोनों करते क्या???? हमें पता नहीं था की भाईसाहब कहाँ होंगें????? अम्मा बप्पा को प्यार से समझाने लगीं की वो शांत हो जाएँ मगर बप्पा का गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा था|



आखिर रात हुई और भाईसाहब घर लौटे............लेकिन वो इस वक़्त अकेले घर नहीं आये थे...........वो आज पहलीबार अपने दोस्तों के साथ दारु पी कर घर आये थे! भाईसाहब को पिए हुए देख बप्पा का गुस्सा बेकाबू हो गया.................वो भाईसाहब को थप्पड़ मारने वाले हुए थे की अम्मा बीच में आ गईं| बप्पा को बहुत गुस्सा आ रहा था इसलिए उन्होंने गुस्से में माँ को एक तरफ धक्का दे दिया!!!



मेरे बाद भाईसाहब सबसे ज्यादा प्यार अम्मा से करते थे..............जब उन्होंने बप्पा को माँ को धक्का देते हुए देखा तो भाईसाहब के भीतर गुस्से का ज्वालामुखी फट गया..................और उन्होंने गुस्से में आ कर बप्पा पर हाथ उठा दिया!!!!



भाईसाहब इस समय होश में नहीं थे...............उन्होंने जैसे ही बप्पा पर हाथ उठाया वैसे ही उन्हें थोड़ा बहुत होश आया| इधर बप्पा के गुस्से की सीमा नहीं थी................उनके अपने खून ने उन पर हाथ उठाया था..........ये जिल्ल्त वो बर्दश्त नहीं कर सकते थे इसलिए बप्पा ने गुस्से में आ कर भाईसाहब को पीछे की और धक्का दिया| वैसे तो भाईसाहब बलिष्ठ थे..........मगर नशे में होने के कारन बप्पा के दिए धक्के के कारन वो पीछे की और गिर पड़े! “मरी कटौ.................निकर जाओ हमार घरे से........... अउर आज के बाद हमका आपन शक्ल न दिखायो......नाहीं तो तोहका मारकर गाड़ देब!!!!!” बप्पा ने बहुत सी गालियां देते हुए भाईसाहब को घर से निकलने को कहा|



मैं चौखट पर खड़ी ये सब देख रही थी..............बप्पा बहुत कठोर थे मगर मैं उनकी सदा इज्जत करती थी....................जब भाईसाहब ने उनपर हाथ उठाया तो उसी पल मेरे भाईसाहब जो मुझे सबसे ज्यादा प्यार करते थे..................वो मेरी नजरों से नीचे गिर गए!!! मुझे उनसे नफरत होने लगी थी..............फिर जब बप्पा ने उन्हें घर से निकल जाने को कहा.................तब न जाने क्यों मेरा दिल रोने लगा!!!!!!! मैं नहीं चाहती थी की भाईसाहब घर छोड़ कर जाएँ..................और कहीं न कहीं उम्मीद कर रही थी की वो बप्पा से माफ़ी मांग कर बात को यहीं दबा दें|




पर शायद भाईसाहब को अपनी गलती का एहसास हो गया था............इसीलिए उन्होंने कुछ नहीं कहा और सर झुकाये हुए खड़े हुए तथा बिना कुछ कहे चले गए!!!!! भाईसाहब का ये रवैय्ये देख मैं दंग थी!!!!!!!!! क्यों भाईसाहब ने बप्पा से माफ़ी नहीं मांगी????????? अगर वो माफ़ी मांग लेते तो बप्पा का गुस्सा शांत हो जाता...........कम से कम मेरे लिए तो भाईसाहब माफ़ी मांग लेते.................ताकि उन्हें घर छोड़ कर ना जाना पड़े| ये बातें मेरे दिल में घर कर गईं और मेरे मन में मेरे ही भाईसाहब के लिए ज़हर घुल गया!!!!!!!!!!
Bhut bdiya update bhouji :love2:
Vese likhne me to aap bhi kam nhi ho kuch :D

Bhaishab ka character gajab h 🙂

Vese bhaisahab gussa hi kar lete lekin unko hath na uthana chaiye tha :nope:

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king cobra

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Vese likhne me to aap bhi kam nhi ho kuch :D

Bhaishab ka character gajab h 🙂

Vese bhaisahab gussa hi kar lete lekin unko hath na uthana chaiye tha :nope:

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bhaisaab ne us time pi hui thi akku aur pine ka baad aadmi king hui jata hai usko lagta ki usne sansaar banaya sab unke under ma hain bas inna baat hai
 
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