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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

rangeen londa

New Member
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भाई ये तो पक्का हो ही गया है क़ि आदमखोर कई लोग हैं...
मर्द और औरत दोनो....!!

तो एक बार आदमख़ोरों की रासलीला भी दिखा ही दो...
कुछ नया देखने मिलेगा हम सब को भी!!🤩
Chutiyadr
 

Paraoh11

Member
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एक बात और...
तब सबके पास कैमरा नहीं होता था...
हॉस्टल में हम 5 लड़कों के झुंड में मेरे पास ही था पर कभी मेरे पास रहा नहीं..
हमेशा कोई ना कोई माँग के ले जाता था!!
कमेरा मेरा था पर फ़टाग्रफ़ी का शौक़ दो लड़कों को ज़्यादा था...
फ़ोटो स्टूडीओ वाला कभी भी नहीं बता सकता था की कैमरा असल में किसका है...!

गहरी दोस्ती में संसाधन किसी का भी हो...
होता सबका ही है..
आज भी एक दोस्त का क्रिकेट बैट मेरे ही पास पड़ा हुआ है..
कॉलेज के 20 साल बाद भी..
और मेरा कैमरा उस के पास!!!

कैमरा छोड़ो..
अगर फ़ोटो स्टूडीओ एक ही था तो जो कबीर की माँ की हत्या की फ़ोटो और बाक़ी ब्लैक्मेल वाली फ़ोटो वो सब उसी स्टूडीओ में बनी होंगी...
ऐसी फ़ोटो किसी ख़ास राज़दार से ही बनवा सकते हैं क्यूँकि ऐसी फ़ोटो कोई भूल ही नहीं सकता !

इसलिए कबीर को चाहिए कि एक हाथ से बुक स्टोर वाले को नोटों की ग़ड्डी पकड़ाए और दूसरे से उसे ग़ोटे पकड़े, वही सब कुछ बक देगा...
ऐसी फ़ोटो और उन्हें देने वाला दोनो को वो बुक स्टोर वाला कभी भूल ही नहीं सकता चाहे कितने भी साल गुजर जाएँ ।

उसने भी कबीर को चुतिया समझ कर कैमरे के पीछे लगा दिया !!!

साला common sense है भी इस बंदे के पास या वो भी मूठ मार के निकाल दिया!!!??
 
Last edited:

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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एक बात और...
तब सबके पास कैमरा नहीं होता था...
हॉस्टल में हम 5 लड़कों के झुंड में मेरे पास ही था पर कभी मेरे पास रहा नहीं..
हमेशा कोई ना कोई माँग के ले जाता था!!
कमेरा मेरा था पर फ़टाग्रफ़ी का शौक़ दो लड़कों को ज़्यादा था...
फ़ोटो स्टूडीओ वाला कभी भी नहीं बता सकता था की कैमरा असल में किसका है...!

गहरी दोस्ती में संसाधन किसी का भी हो...
होता सबका ही है..
आज भी एक दोस्त का क्रिकेट बैट मेरे ही पास पड़ा हुआ है..
कॉलेज के 20 साल बाद भी..
और मेरा कैमरा उस के पास!!!

कैमरा छोड़ो..
अगर फ़ोटो स्टूडीओ एक ही था तो जो कबीर की माँ की हत्या की फ़ोटो और बाक़ी ब्लैक्मेल वाली फ़ोटो वो सब उसी स्टूडीओ में बनी होंगी...
ऐसी फ़ोटो किसी ख़ास राज़दार से ही बनवा सकते हैं क्यूँकि ऐसी फ़ोटो कोई भूल ही नहीं सकता !

इसलिए कबीर को चाहिए कि एक हाथ से बुक स्टोर वाले को नोटों की ग़ड्डी पकड़ाए और दूसरे से उसे ग़ोटे पकड़े, वही सब कुछ बक देगा...
ऐसी फ़ोटो और उन्हें देने वाला दोनो को वो बुक स्टोर वाला कभी भूल ही नहीं सकता चाहे कितने भी साल गुजर जाएँ ।

उसने भी कबीर को चुतिया समझ कर कैमरे के पीछे लगा दिया !!!

साला common sense है भी इस बंदे के पास या वो भी मूठ मार के निकाल दिया!!!??
उसने कहा था की उसने कैमरा बेचा था, इसीलिए वो देख कर बता सकता है।

और कबीर के पास कोई फोटो नही है कि जिसे दिखा कर वो कुछ पूछ सके।

यहां कबीर बस ओरल एविडेंस पर भरोसा कर के बैठा है, उसे कुछ मैटेरियल एविडेंस चाहिए अब।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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DONO ME JYAADA FARK THODI NAA HE

DONO HI DHANDHAA KARTE HE

Simon Pegg Cheers GIF by PeacockTV
दुनिया में सब धंधा ही करते हैं भाई, चाहे वैश्य हो या वेश्या, चाहे स्कूल चलाने वाला हो या आश्रम।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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YAANII KI SAB VAISHYA:headache3::headache3::headache3::headache3:

JOB WALO KA SPECIFY KAR DO :freak::freak::freak:
पठानों की बस्ती है।
झुक झुक कर चलना है।
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#143

मेरे बचपन की साथी , जिसके साथ हर दिन मैं जिया हर पल जिया मेरे सामने किस बेशर्मी से झूठ पर झूठ बोले जा रही थी . मैं हैरान नहीं था मुझे खुद पर गुस्सा था. क्या कमी थी दोस्ती में. मैंने तो पूरी इमानदारी से निभाया था न , क्यों बदल गयी थी ये लड़की. अपनी आँखों के समाने मैं घर टूटते हुए देख रहा था . मन इतना व्यथित था की मैं रोना चाहता था . कमजोर नहीं था मैं पर बचपन से इतनी खुशहाली देखि थी की रंग बदलते इन लोगो की नीचता पर यकीन नहीं होता था .



दिल तो करता था की इस लड़की की खाल खिंच लू पर उसके बदन से टपकता लहू भी मेरे ही दिल का होता . मैं चीखना चाहता था उस पर , हाथ उठाना चाहता था उस पर . खुद को रोका , वो जैसी भी हो गयी थी , दिल के किसी कोने में उसके हिस्से की जगह भी थी . मंगू के जाने से मैं और घुटने लगा था .

“कहाँ जा रहा है कबीर ” चंपा ने सवाल किया

मैं- तुझसे दूर

चंपा- वो तो तू पहले ही जा चूका है

मैं- जाना पड़ा मुझे. इस मासूम चेहरे के पीछे जो धूर्तता का नकाब तूने ओढा है न . मुझे शर्म आती है मैंने तुझे अपनी दोस्त माना. मेरे जिगर का टुकड़ा मेरा ही न हो सका. तुझसे गिला ये नहीं है की तुने मेरे बाप का बिस्तर गर्म किया वो तेरी मर्जी की बात है . दुःख ये है की तेरे मन को नहीं जान सका. मुझसे बाते छिपाने लगी तू, तेरी आँखों में स्नेह की जगह अब मुझे धोखा और स्वार्थ दीखता है .

चंपा-स्नेह, स्वार्थ क्या मायने है इन शब्दों के. बरसो पहले खोखले हो चुके है ये सब . घर में मातम पसरा था , राख भी ठंडी नहीं हुई थी और तू दुल्हन ले आया. ब्याह कर लिया तूने . ये स्वार्थ नहीं था कबीर. मैं क्या गिला करू तुझसे, क्या उलाहना दू तुझे .

मैं- काश समझा सकता कितना बोझ था मेरे कदमो को उसके घर की तरफ उठते हुए. मैंने वादा किया था निशा से .

चंपा- वादा तो मुझसे भी किया था की मेरी डोली तू उठाएगा. वादा तो तूने भी किया था मेरे गुनेहगार को मेरे सामने लाकर खड़ा कर देगा. पर तू भूल गया . अपने स्वार्थ के आगे तू मुझे भूल गया .

मैं- कुछ वादे तोड़ देना जरुरी हो जाता है कभी कभी

चंपा- आ गयी न दिल की बात जुबान पर .

मैं- आ गयी . इमानदरी की क्या बात करती है तू , तू खुद एक धोखेबाज़ है .

चंपा- तू मुझसे प्यार नहीं करता था कबीर , कभी नहीं चाहा तूने मुझे . मैं किसी के साथ भी मुह काला करू तुझे क्या दिलचस्पी है उसमे



मैं- मैंने नहीं चाहा तुझे,प्यार को जाना ही कितना तूने, तुझे अपने निचे कर लेता वो प्यार समझती तू, हाँ मैं नहीं प्यार करता था तुझे, मेरा स्नेह था तुझसे. मेरा गुरुर थी तू . देख क्या थी तू और आज क्या बन कर मेरे सामने खड़ी है . मेरी आँखों के सामने तू मेरे बाप के साथ चली गयी तूने नहीं सोचा की तुझे पुकारने वाला कौन है . तू स्वार्थ की बात करती है . तूने परकाश के सामने सलवार उतार दी. ये जानते हुए भी की वो मेरा दुश्मन है तू सोई उसके साथ . तू स्वार्थ की बात करती है.मेरी माँ के कत्ल का सबूत था तेरे पास तूने मुझसे छिपाया. दोस्ती की बात करती है तू , तुम धोखेबाजो के बिच रह कर मैं भी धोखेबाज़ हो गया .

चंपा ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया.वो मुंडेर से उतरी और वहां से चली गयी . मैंने मटके को मुह से लगाया और प्यास बुझाने की कोशिश करने लगा.

“मैं उसे वहां पर छिपाती जहाँ वो सबकी नजर में होती पर उसे कोई देख नहीं पाता ” मैंने अंजू के कहे शब्द फिर से दोहराए . इन शब्दों की क्या वैल्यू थी ये मैं जान गया था , ये शब्द कितने सार्थक थे मैं मान गया था क्योंकि चाची ने चाचा की लाश को वही पर छिपाया जहाँ वो सबकी नजरो में तो थी पर उसे को देख नहीं पाया था . परकाश क्यों आता था कुंवे पर . वो सोने की तलाश में नहीं आता था , उसे तो मालूम ही नहीं था की सोना कहाँ पर है , वो कुवे पर आता था ताकि अपने कुछ राज़ यहाँ पर छिपा सके. पर कहाँ .

मैंने कमरे की कुण्डी खोली और अन्दर दाखिल हो गया . सब कुछ तो जाना पहचाना था . वो ही पलंग उस पर पड़ा बिस्तर. कुछ जगह छोड़ के खेती के औजार, फिर एक कोने में सूखी घास और लकडिया. एक तरफ लकड़ी की कुंडिया जिन पर कपडे टांकते थे. मैंने आले-दिवाले सब देख मारे कहीं पर भी ऐसा कुछ नहीं था . कमरे की हर ईंट को ठोक बजा कर देखा. और फिर मेरे दिमाग में वो घंटी बजी जो इस गुत्थी को काफी हद तक सुलझा सकती थी .



ईंट. मैं दौड़ते हुए कुवे पर आया और उसकी मुंडेर को घूरने लगा. .ईंट , मुंडेर की ईंटे. पागलो की तरफ मैं एक एक ईंट को चेक करने लगा. सामने से घूमते हुए मैं पिछले हिस्से पर पहुँच गया था . इस तरफ जमीं पर घास थोड़ी जायदा थी क्योंकि एक छोटी नाली से पानी बहता रहता था . मैंने उस तरफ से थोडा सा ऊपर देखा तो मेरे होंठो पर न जाने क्यों मुस्कान सी आ गयी . यहाँ पर दो ईंटे खोखली थी , इनको जैसे बाद में लगाया गया हो. बढ़ी हुई धड़कानो को संभालते हुए मैंने कांपते हाथो से वो ईंटे हटाई और पुराना काला कपडा देख कर मेरी आँखे चमक सी गयी. कपडे में एक लकड़ी का छोटा सा बक्सा लपेटा गया था मैंने उस पुराने बक्से को खोला और जो मैंने देखा , यकीं होना आसान तो नहीं था पर मैंने तलाश कर ली थी , काले रंग का पुराना सा कैमरा मेरी हथेली में था.
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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मेरे बचपन की साथी , जिसके साथ हर दिन मैं जिया हर पल जिया मेरे सामने किस बेशर्मी से झूठ पर झूठ बोले जा रही थी . मैं हैरान नहीं था मुझे खुद पर गुस्सा था. क्या कमी थी दोस्ती में. मैंने तो पूरी इमानदारी से निभाया था न , क्यों बदल गयी थी ये लड़की. अपनी आँखों के समाने मैं घर टूटते हुए देख रहा था . मन इतना व्यथित था की मैं रोना चाहता था . कमजोर नहीं था मैं पर बचपन से इतनी खुशहाली देखि थी की रंग बदलते इन लोगो की नीचता पर यकीन नहीं होता था .



दिल तो करता था की इस लड़की की खाल खिंच लू पर उसके बदन से टपकता लहू भी मेरे ही दिल का होता . मैं चीखना चाहता था उस पर , हाथ उठाना चाहता था उस पर . खुद को रोका , वो जैसी भी हो गयी थी , दिल के किसी कोने में उसके हिस्से की जगह भी थी . मंगू के जाने से मैं और घुटने लगा था .

“कहाँ जा रहा है कबीर ” चंपा ने सवाल किया

मैं- तुझसे दूर

चंपा- वो तो तू पहले ही जा चूका है

मैं- जाना पड़ा मुझे. इस मासूम चेहरे के पीछे जो धूर्तता का नकाब तूने ओढा है न . मुझे शर्म आती है मैंने तुझे अपनी दोस्त माना. मेरे जिगर का टुकड़ा मेरा ही न हो सका. तुझसे गिला ये नहीं है की तुने मेरे बाप का बिस्तर गर्म किया वो तेरी मर्जी की बात है . दुःख ये है की तेरे मन को नहीं जान सका. मुझसे बाते छिपाने लगी तू, तेरी आँखों में स्नेह की जगह अब मुझे धोखा और स्वार्थ दीखता है .

चंपा-स्नेह, स्वार्थ क्या मायने है इन शब्दों के. बरसो पहले खोखले हो चुके है ये सब . घर में मातम पसरा था , राख भी ठंडी नहीं हुई थी और तू दुल्हन ले आया. ब्याह कर लिया तूने . ये स्वार्थ नहीं था कबीर. मैं क्या गिला करू तुझसे, क्या उलाहना दू तुझे .

मैं- काश समझा सकता कितना बोझ था मेरे कदमो को उसके घर की तरफ उठते हुए. मैंने वादा किया था निशा से .

चंपा- वादा तो मुझसे भी किया था की मेरी डोली तू उठाएगा. वादा तो तूने भी किया था मेरे गुनेहगार को मेरे सामने लाकर खड़ा कर देगा. पर तू भूल गया . अपने स्वार्थ के आगे तू मुझे भूल गया .

मैं- कुछ वादे तोड़ देना जरुरी हो जाता है कभी कभी

चंपा- आ गयी न दिल की बात जुबान पर .

मैं- आ गयी . इमानदरी की क्या बात करती है तू , तू खुद एक धोखेबाज़ है .

चंपा- तू मुझसे प्यार नहीं करता था कबीर , कभी नहीं चाहा तूने मुझे . मैं किसी के साथ भी मुह काला करू तुझे क्या दिलचस्पी है उसमे



मैं- मैंने नहीं चाहा तुझे,प्यार को जाना ही कितना तूने, तुझे अपने निचे कर लेता वो प्यार समझती तू, हाँ मैं नहीं प्यार करता था तुझे, मेरा स्नेह था तुझसे. मेरा गुरुर थी तू . देख क्या थी तू और आज क्या बन कर मेरे सामने खड़ी है . मेरी आँखों के सामने तू मेरे बाप के साथ चली गयी तूने नहीं सोचा की तुझे पुकारने वाला कौन है . तू स्वार्थ की बात करती है . तूने परकाश के सामने सलवार उतार दी. ये जानते हुए भी की वो मेरा दुश्मन है तू सोई उसके साथ . तू स्वार्थ की बात करती है.मेरी माँ के कत्ल का सबूत था तेरे पास तूने मुझसे छिपाया. दोस्ती की बात करती है तू , तुम धोखेबाजो के बिच रह कर मैं भी धोखेबाज़ हो गया .

चंपा ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया.वो मुंडेर से उतरी और वहां से चली गयी . मैंने मटके को मुह से लगाया और प्यास बुझाने की कोशिश करने लगा.

“मैं उसे वहां पर छिपाती जहाँ वो सबकी नजर में होती पर उसे कोई देख नहीं पाता ” मैंने अंजू के कहे शब्द फिर से दोहराए . इन शब्दों की क्या वैल्यू थी ये मैं जान गया था , ये शब्द कितने सार्थक थे मैं मान गया था क्योंकि चाची ने चाचा की लाश को वही पर छिपाया जहाँ वो सबकी नजरो में तो थी पर उसे को देख नहीं पाया था . परकाश क्यों आता था कुंवे पर . वो सोने की तलाश में नहीं आता था , उसे तो मालूम ही नहीं था की सोना कहाँ पर है , वो कुवे पर आता था ताकि अपने कुछ राज़ यहाँ पर छिपा सके. पर कहाँ .

मैंने कमरे की कुण्डी खोली और अन्दर दाखिल हो गया . सब कुछ तो जाना पहचाना था . वो ही पलंग उस पर पड़ा बिस्तर. कुछ जगह छोड़ के खेती के औजार, फिर एक कोने में सूखी घास और लकडिया. एक तरफ लकड़ी की कुंडिया जिन पर कपडे टांकते थे. मैंने आले-दिवाले सब देख मारे कहीं पर भी ऐसा कुछ नहीं था . कमरे की हर ईंट को ठोक बजा कर देखा. और फिर मेरे दिमाग में वो घंटी बजी जो इस गुत्थी को काफी हद तक सुलझा सकती थी .




ईंट. मैं दौड़ते हुए कुवे पर आया और उसकी मुंडेर को घूरने लगा. .ईंट , मुंडेर की ईंटे. पागलो की तरफ मैं एक एक ईंट को चेक करने लगा. सामने से घूमते हुए मैं पिछले हिस्से पर पहुँच गया था . इस तरफ जमीं पर घास थोड़ी जायदा थी क्योंकि एक छोटी नाली से पानी बहता रहता था . मैंने उस तरफ से थोडा सा ऊपर देखा तो मेरे होंठो पर न जाने क्यों मुस्कान सी आ गयी . यहाँ पर दो ईंटे खोखली थी , इनको जैसे बाद में लगाया गया हो. बढ़ी हुई धड़कानो को संभालते हुए मैंने कांपते हाथो से वो ईंटे हटाई और पुराना काला कपडा देख कर मेरी आँखे चमक सी गयी. कपडे में एक लकड़ी का छोटा सा बक्सा लपेटा गया था मैंने उस पुराने बक्से को खोला और जो मैंने देखा , यकीं होना आसान तो नहीं था पर मैंने तलाश कर ली थी , काले रंग का पुराना सा कैमरा मेरी हथेली में था.
मैं पहले से कह रहा था की कुएं और उसके आस पास कुछ जरूर है, और ये कैमरा अभिमानु ने छुपाया है।

सब के सब झूठे भरे पड़े है इस कहानी में, सबको बस अपनी लगी है, खुद क्या किया उसका प्रायश्चित तो दूर सच्चाई भी नही जुबान पर आती है इन धूर्तों के।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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लेकिन चंपा को एक जोर का कंटाप तो बनता था।
 

Tiger 786

Well-Known Member
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1200 पन्ने इसलिए हुए कि आप सभी पाठकों ने इस कहानी को पसंद किया, इतना रास्ता जब तय कर ही लिया तो मंजिल से थोड़ी दूर आकार क्या घबराना, जैसा मैंने कहा शॉर्ट मे निपटा दूँगा अब कोई सस्पेंस नहीं सच का असली चेहरा क्या है ये बताना मेरा कर्तव्य है मेरे पाठकों के प्रति.
Shortcut mat karna fauji bhai take ur time pls🙏🙏🙏
 
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