#17
मैंने देखा की इधर उधर मांस के बड़े बड़े टुकड़े फैले हुए थे . निशा अपने निशाँ छोड़ गयी थी . मैंने चंपा को पानी लाकर दिया और तमाम उन टुकडो को वहां से साफ़ करके दूर फेंक दिया.
मैं- अब ठीक है
चंपा- हाँ पर ये किसने किया
मैं- कोई शिकारी जानवर रहा होगा. तू आराम कर मैं तब तक काम देखता हूँ . तबियत ठीक लगे तो आ जाना .
मैंने खेतो का दूर तक चक्कर लगाया . बीच बीच से क्यारी-धोरो को भी देखा . जो पगडण्डी कटी थी उसे सुधारा. एक हिस्से में काफी घने पेड़ थी जिनकी बरसो से कटाई नहीं हुई थी मैंने सोचा की इनकी कटाई से इस हिस्से को धुप भी मिलेगी और लकडिया भी .
जब मैं वापिस लौटा तो देखा की भाभी आई हुई थी .
मैं- अरे भाभी आप क्यों आई इधर
भाभी- क्यों मैं नहीं आ सकती क्या
मैं- मेरा वो मतलब नहीं था .
भाभी- सोचा आज खाना मैं ले चलती हूँ , वैसे भी बहुत दिनों से घर से बाहर निकलना हुआ नहीं मेरा.
चंपा- बढ़िया किया भाभी .
भाभी मुस्कुराई और बोली- खाना खा लो तुम लोग.
खाना खाने के बाद चंपा कुछ सब्जिया तोड़ने चली गयी रह गए हम दोनों .
भाभी- मैं घूमना चाहती हूँ
मैं- जो आपका दिल करे. जहाँ तक जाना है जाइये
मैंने चारपाई बाहर निकाली और उस पर लेट गया कमर सीढ़ी करने के लिए. पर मेरा दिल नहीं लग रहा था पल पल हर पल मुझ पर एक नशा चढ़ रहा था निशा का नशा . कल रात इसी जगह पर हम दोनों अलाव के पास बैठ कर बाते कर रहे थे . चारपाई के किनारे को चुमते हुए मुझे बस निशा का सुरूर ही था .
“हाय देखो कैसे चारपाई को चूम रहा है जिसे चूमना चाहिए उसे तो देखता भी नहीं ” चंपा ने मुझे घूरते हुए कहा.
मैं थोडा असहज हो गया.
मैं- तू कब आयी
वो- मैं या विदेश से आई हूँ इधर ही तो थी दो मिनट सब्जी लाने क्या गयी देखो हालत क्या हो गयी तुम्हारी
मैं- अरे कुछ नहीं बस ऐसे ही
चंपा - हाय रे फूटी किस्मत मेरी. भाभी कहाँ है
मैं- इधर ही होंगी बोल रही थी की खेतो का चक्कर लगा कर आती हूँ .
चंपा - सुन .बड़े भैया या राय साहब से कह कर कीटनाशक मंगवा लेना शहर से .सब्जियों की कई क्यारिया ख़राब हो रही है . नुक्सान होगा इस बार .
मैं- तूने पहले क्यों नहीं बताया मुझे
वो- ये मेरा काम नहीं है सब्जिया तू और मंगू उगाते हो . तुम्हे मालूम होना चाहिए. आजकल तुम्हारा ध्यान न जाने कहा है
मैं- कोई बात कल ही शहर चला जाऊँगा.
चंपा- मुझे भी ले चल अपने साथ . बहुत दिन हुए
मैं- चाची या भाभी के साथ जाया कर न
वो- तेरे साथ अलग ही मजा रहेगा.
मैं- और उस मजे की सजा क्या होगी.
चंपा - किस बात की सजा
मैं- तू समझती क्यों नहीं
हम बाते कर ही रहे थे की एकाएक भाभी के चीखने की आवाजे आने लगी. हम दोनों तुरंत भाभी की तरफ भागे. भाभी खेतो के बीच खड़ी खड़ी कांप रही थी .
“भाभी, भाभी क्या हुआ ” मैंने भाभी के पास जाकर कहा . भाभी ने सामने की दिशा में अपना हाथ हिलाया . मैंने आगे आकर देखा सरसों में एक बच्चे की लाश पड़ी थी जिसे बुरी तरह से उधेडा गया था. खून बिलकुल ताजा था मैंने अपनी आँखे बंद कर ली. भाभी खौफ के मारे मेरे सीने से लग गयी .
मैं दिलासा भी देता तो क्या देता. एक मासूम को किसी ने उधेड़ कर रख दिया था . हम भाभी को कमरे के पास लेकर आये और थोडा पानी दिया . भाभी ने अपने जीवन में ऐसा कुछ नहीं देखा था तो वो बहुत ज्यादा घबरा गयी थी .
मैं- चंपा भाभी का ख्याल रखो
मैंने चंपा से कह तो दिया था पर वो बेचारी खुद उबकाई ले रही थी . खैर मैंने कस्सी उठाई और उस मासूम की लाश की तरफ चल दिया. उसे ऐसे छोड़ता तो कोई और जानवर नाश करता उसके टुकडो का. मने एक गड्ढा खोदा और उस नन्ही सी जान को दफना दिया. मेरे दिल में आग लगी थी . आँखों के सामने तमाम वो द्रश्य आ रहे थे जब निशा अलाव की आंच में मांस के टुकड़े भुन रही थी . अब मुझे समझ आया वो टुकड़े किसी बकरे के नहीं उस मासूम के थे.
मेरे पैर कांप रहे थे. जी घबरा रहा था पर मुझे चंपा और भाभी को भी संभालना था . मैंने फिर हाथ पैर धोये और भाभी की गाड़ी लेकर हम लोग घर आ गए. भाभी को बुखार आ गया था वैध ने कुछ दवाई दी . जिसके असर से भाभी को नींद सी आ गयी. मैंने चंपा को हिदायत दे दी थी की घर में किसी को भी इस घटना के बारे में न बताये.
निशा ने मुझे बताया कुछ था और हो कुछ और रहा था . मैंने उस पर विश्वास किया था . एक डायन पर मैंने विश्वास किया था . पर उसके लिए विश्वास के भला क्या मायने थे . क्या उसके और मेरे दरमियान जो भी बाते हुई थी उनका कुछ नहीं था सिवाय किसी छलावे के. पिछले कुछ दिनों में मैं लगातार लाशे ही देख रहा था . कहीं ये सब मुझ को पागल तो नहीं कर रहा था . छज्जे पर खड़े खड़े मैं ये सब ही सोच रहा था की तभी मैंने पिताजी की गाड़ी को अन्दर आते हुए देखा. गाड़ी से उतरते हुए वो कुछ थके से लग रहे थे . वो सीधा अपने कमरे में चले गए.
मैंने पिताजी के दरवाजे पर दस्तक दी.
पिताजी- अन्दर आ जाओ
मैं अन्दर गया . पिताजी कुर्सी पर बैठे थे .
मैं- आपसे कुछ बात करनी थी .
पिताजी- कहो
मैंने पिताजी को सारी बात बताई की खेतो पर क्या हुआ था .
पिताजी- ये पहली घटना नहीं है इस तरह की , आसपास के गाँवो से लगतार शिकायते आई है हमारे पास . पिछले कुछ महीनो से भेड-बकरिया. घोड़े -मुर्गे गायब हो रहे थे . ठण्ड के मौसम में अक्सर जंगली जानवर गाँवों का रुख कर लेते है पर इस पूर्णिमा से हमले जानवरों पर नहीं इंसानों पर हो रहे है . कुछ गाँवो के मोजिज लोगो से मिल कर हमने सुरक्षा के जरुरी उपाय किये भी पर वो सब नाकाफी है .
मैं- ऐसा चलता रहा तो लोगो का घर से निकलना बंद ही हो जायेगा.
पिताजी खेती का इलाका खुला है जंगल के पास है . इतने बड़े इलाके की तार बंदी न मुमकिन है
मैं- लोगो की टोली उस तरफ भी अगर चोकिदारी करे रातो में तो
पिताजी- नहीं , इन हालात में ये भी मुमकिन नहीं
मैं- तो फिर क्या इलाज इस समस्या का
पिताजी- दरअसल अभी तो मालूम भी नहीं की असल में ये क्या समस्या है. फिर भी हमने एक ओझा को बुलवाया है कल वो पहुँच जायेगा फिर देखते है वो क्या बताता है क्या करता है .
मै वापिस से भाभी के कमरे में आ गया . चाची ने मुझे गर्म चाय का कप दिया . कुछ घूंटो ने मुझे बड़ी राहत दी थी . भाभी के चेहरे पर नींद में भी डर सा था . दूसरी तरफ शहर से भी कोई खबर नहीं आई थी अभी तक. मैंने सोच लिया था की अगर निशा का हाथ है इन सब में तो मैं निशा को रंगे हाथ ही पकडूँगा तब देखूंगा वो क्या कहेगी मुझसे. सोचते सोचते मेरी भी आँख लग गयी .