Kapil Bajaj
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Bhot bdiya update bhai ji gajabUpdate 13
जैसे ही सपना अंदर जाती है, वो सीधे पलंग के तरफ जाती है और अनिता को देखते ही ज़ोर से अनिता कहती है।
पायल भी वहां जाकर देखती है, वो भी अनिता को ऐसे देख रोने लगती है।
सपना : अनिता को क्या हुआ है, वो कुछ बोल क्यों नहीं रही है ?
नीलेश : सपना, वो अभी कोमा में है।
सपना : नहीं, ये सच नहीं हो सकता; आप झूठ बोल रहे है।
निखिल : दीदी, ये सच है।
सपना : तुम चुप ही रहो। (बहुत गुस्से से और जोर से कहती है।)
जिसे सुन बाकी लोग भी हक्के-बक्के रह जाते है।
नीलेश : सपना, शांति से हॉस्पिटल है, दूसरे लोगों को परेशानी होगी।
सपना : आप इसे कह दो, ये अभी की अभी यहां से चले जाएं। ये सब इसकी वजह से हुआ है, कहीं मेरे हाथों से इसका खून ना हो जाएं।
नीलेश : ठीक है।
फिर नीलेश अपने पास में खड़े वैभव को इशारा करता है। वैभव भी इशारा समझ के निखिल को बाहर ले जाता है। उनके साथ राजेश भी चला जाता है।
नीलेश : सपना, मैंने उसे भेज दिया है अब तुम शांति से यहां बैठ जाओ।
अंतिम : भाभी, आप आराम से बैठ जाइए।
सपना : तुम मुझे बार-बार भाभी क्यों बोल रही हो ? (थोड़ा गुस्से से चिल्लाकर..)
नीलेश : तुम पायल पर गुस्सा क्यों हो रही हो ?
सपना : मैंने तो पायल को कुछ कहा ही नहीं। (हैरानी! से)
नीलेश : मैं अपनी पायल की बात नहीं कर रहा हूं, मैं इनकी बात कर रहा हूं। (अंतिम कि ओर इशारा करके)
सपना : वो मुझे बार-बार भाभी कह रही है इसलिए गुस्सा आ गया।
नीलेश : तुम उसकी भाभी हो, इसलिए वो तुम्हें भाभी कह रही है।
सपना : मैं कुछ समझी! नहीं ?
नीलेश : पहले तुम बैठो तो सही फिर तुम्हें समझता हूं।
सपना : ठीक है, लेकिन पहले ये बताइए कि वो औरत कहां है जिसने अवनी और अनिता कि खबर दी थी।
नीलेश : वो भी बता दूंगा, पहले तुम आराम से बैठो। पायल बेटा, तुम भी बैठो।
फिर सपना और पायल सोफे पर बैठ जाती है। अंतिम उन्हें पानी देती है और उनके पास ही बैठ जाती है।
सपना : माफ करना, मैंने तुम्हें गुस्से में वो कह दिया था।
अंतिम : कोई बात नहीं, वैसे भी भाभी को अपनी ननद पर गुस्सा करने का पूरा हक है। (मुस्कुरा के..)
सपना : डॉक्टर ने कुछ बताया, अनीता कब तक ठीक हो जायेगी ?
नीलेश : अभी उन्हें कुछ ज्यादा नहीं बताया। सिर्फ इतना कहा है कि इन्हें यहां कुछ दिन और रहना पड़ेगा, क्योंकि कुछ और जांच करनी है।
सपना : ठीक है, लेकिन अनीता अच्छी हो जायेगी ना ?
नीलेश : हां, हमें भी उम्मीद है कि अनीता बहुत जल्द ठीक हो जाएगी।
सपना : बस, मैं यही चाहती हूं कि अनीता जल्दी से अच्छी हो जाए।
अंतिम : भाभी, हम सब भी यही चाहते हैं।
सपना : आप बताएंगे, ये मुझे भाभी क्यों बुला रही है ?
नीलेश : तुम्हें याद है, एक बार तुमने मुझे से पायल का नाम पायल रखने की वजह पूछी थी।
(सपना सोचने लगी।)
सपना : हां, याद आया।
नीलेश : ये वही है।
सपना : आपका मतलब है कि ये वही पायल है; आपके ताऊजी की लड़की है।
नीलेश : हां।
सपना : लेकिन आपने कहा था कि "मुझे नहीं पता है कि मेरी प्यारी बहन कहां है।"
नीलेश : हां, कहा था।
सपना : आपने कभी मुझे बताया ही नहीं कि आपकी बहन आपको मिल गई है और कब मिली ?
नीलेश : कल ही मिली है और वो भी इत्तेफ़ाक़ से। (खुश! होते हुए.)
सपना : मतलब ?
नीलेश : जिसने निखिल को फोन किया था और हमें यहां बुलाया वो पायल ही थी।
सपना : पायल, शुक्रिया! तुम्हारा ये अहसान मैं जीवनभर नहीं भूलूंगी। तुम्हें कुछ भी चाहिए, तो अपनी भाभी से बोल देना।
अंतिम : भाभी, इसमें अहसान की कैसी बात, मैंने जो भी किया इंसानियत के नाते ही किया था और रही बात मांगे कि तो समय आने पर मांग लूंगी। (मुस्कान के साथ)
सपना आगे बढ़कर अंतिम को गले लगा लेती है और उसके माथे को चूम लेती है। दोनों ननद भाभी भावुक हो जाती है।
थोड़ी देर बाद...
सपना : जब आपको कल ही पता चल गया था, आपकी बहन मिल गई है। फिर भी आपने मुझे कल फोन पर ये बात नहीं बताई ?
नीलेश : मैं बता ही रहा था कि तुमने बोलने ही नहीं दिया।
सपना : ठीक है, लेकिन तुमने अनीता के बारे में भी नहीं बताया था।
नीलेश : वो तुम्हारे गुस्से के कारण नहीं बताया था।
अंतिम : भाभी, अभी आपका गुस्सा देखकर तो मैं डर ही गई थी।
(अंतिम कि बात सुनके नीलेश मंद-मंद हंसने लगता है। जिसे सपना देख लेती है।)
सपना : पायल, ऐसी कोई बात नहीं है, तुम्हारे भैय्या को मेरे गुस्से के बारे में सब पता है। फिर भी इन्होंने नहीं बताया।
नीलेश : अच्छा, तो फिर मैं निखिल को अंदर बुला लूं ?
सपना : बुला लो, लेकिन मैं जबतक अनीता ठीक नहीं हो जाती है, उसे बात नहीं करूंगी।
नीलेश : ठीक है, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।
नीलेश बाहर जाता है, लेकिन उसे कोई भी वहां नहीं दिखता है। वो निखिल को फोन करता है और बात करता है। बात होने के बाद नीलेश वापस रूम में आ जाता है।
सपना : कहां है निखिल ?
नीलेश : वे लोग कैंटीन में है, आ रहे है।
पायल : पापा, बुआ जी को मामी जी कहां मिली और कैसे ?
नीलेश : बेटी, जिस दिन आपकी मामी जब लापता हुई थी, उसी दिन आपकी बुआ को वो एक सड़क किनारे बेहोश मिली थी और उनके पास ही अवनी रो रही थी। फिर आपकी बुआ उन्हें अपने साथ ले आई।
सपना : लेकिन अनीता बेहोश कैसे हुई ?
नीलेश : वो तो अनीता ही बता सकती है।
सपना : पायल, तुमने अनीता और अवनी की बुरे वक़्त में सहायता की और उनकी जान भी बचाई। मेरी यही दुआ है कि तुम हमेशा खुश रहो और तुम्हारी सारी मनोकामनाएं पूरी हो।
अंतिम : भाभी, मुझे मेरे भैय्या और आप सभी मिल गए। इसे बड़ी खुशी! की बात मेरे लिए क्या हो सकती है।
सपना उसे फिर से गले लगा लेती है और कहती है कि तुम मेरी ननद ही नहीं बल्कि मेरी प्यारी बहन भी हो।
इतने में वैभव, निखिल और राजेश भी आ जाते है।
नीलेश : सपना, ये वैभव जी है। पायल के पति। (वैभव जी की ओर इशारा करके)
वैभव : भाभी जी, नमस्ते!
सपना : नमस्ते!
राजेश : नमस्ते! दीदी।
सपना : नमस्ते!, कैसे हो राजेश ?
राजेश : बढ़िया हूं, दीदी।
नीलेश : बढ़िया तो होंगे, कुंवारे जो ठहरे। (हंसते हुए...)
कुछ देर तक सभी लोग बातें करते है। फिर नर्स आ जाती है। अंतिम सभी को घर चलने का कहती है। राजेश को भी कहती है, लेकिन राजेश उसे यह कह देता है कि वो यहीं दीदी के पास रुक जायेगा। फिर अंतिम निखिल से कहती है कि वो राजेश को समझाए, निखिल भी राजेश को समझाता है, लेकिन वो नहीं मानता है। आखिर सपना के कहने पर वो राजी हो जाता है क्योंकि वो उन्हें अनीता दीदी जैसा ही मानता है।
सभी लोग हॉस्पिटल से निकल जाते है, रास्ते में सभी लोग एक फैमिली रेसटोरेंट्स में खाना खाते है। (खाना पैक करवाने के बजाय वे लोग वहीं खाना खाने रुक जाते है।) खाना खाने की बाद सभी घर आ जाते है।
सभी लोग आकर हॉल में बैठते हैं, जहां सभी बच्चे टीवी देख रहे थे। सभी बच्चे उन्हें देख अपने मम्मी-पापा के पास आ जाते है। निखिल के पास अवनी बैठ जाती है और दक्ष अपनी मम्मी के पास बैठ जाता है। पलक भी नीलेश के पास आकर बैठ जाती है।
सकीना (नौकरानी) : मालकिन, सभी बच्चों को खाना खिला दिया है। अब मैं घर जा रही हूं।
अंतिम : अरे, इतनी रात को कैसे जाओगी ? आज यहीं रुक जाओ।
सकीना (नौकरानी) : मालकिन, मैं रिक्शा से चली जाऊंगी।
अंतिम : ठीक है, पैसे है तुम्हारे पास ?
सकीना (नौकरानी) : जी मालकिन, अब मैं चलती हूं।
अंतिम : ठीक है।
सकीना के जाते ही पलक अपने पापा से बोलती है।
पलक : पापा, कब से मैं आपका इंतजार कर रही थी ?
नीलेश : बेटा, वो थोड़ी देर हो गई वापस आने में माफ कर दो।
पलक : पापा, आप सभी कहां गए थे ?
नीलेश : बेटा, काम से गए थे।
सपना : पलक, इधर मेरे पास आओ। (प्यार से बोलती है।)
पलक उठकर सपना के पास चली जाती है।
अंतिम उसे अपने पर्स से एक चॉकलेट निकाल के देती है।
पलक : शुक्रिया! आंटी।
अंतिम : बेटा, आप मुझे आंटी नहीं; बुआ कहा करो।
पलक : जी।
सपना : बेटा, ये आपकी बुआ है और वो आपके फूफाजी है। (वैभव की तरफ इशारा करके)
सपना : बेटा, जल्दी से अपनी बुआ और फूफाजी के पैर छुओ।
पलक : जी।
फिर पलक अपनी बुआ (अंतिम) और फूफा (वैभव) के पैर छूती है।
अंतिम : दक्ष, तुम भी अपनी मामी जी के चरण स्पर्श करो।
दक्ष भी अपनी मामी (सपना) के चरण स्पर्श करता है।
फिर थोड़ी देर सभी लोग बातचीत करते हैं, उसके बाद सभी सोने चले जाते है।
(अंतिम का घर बहुत ही सुंदर और बड़ा है। इस दो मंजिला घर में पांच बेडरूम, किचन, हॉल, डायनिंग रूम और एक छोटा सा स्टोर रूम है। सभी बेडरूम अटैच लेट बाथरूम है और सभी में डबल बेड लगे है। अंतिम का घर इतना बड़ा इसलिए है कि वैभव का परिवार बड़ा और धनवान था। पहले सभी भाई इसी घर में रहते थे, लेकिन कुछ साल पहले सभी भाई अलग-अलग हो गए और वैभव के हिस्से में ये घर आया।)
अवनी और दक्ष अपने रूम में सो जाते है। निखिल और राजेश ऊपर के एक रूम में और उसके पास वाले रूम में पायल और पलक सो जाते है। नीलेश और सपना नीचे के एक रूम में और अंतिम और वैभव अपने रूम में सो जाते है।
अगली सुबह सबसे पहले अंतिम उठ जाती है और दक्ष के रूम में जाती है। दक्ष को उठाकर उसे कहती है।
अंतिम : बेटा, जल्दी से आप तैयार हो जाओ। तब तक आपके लिए लंच बॉक्स तैयार करती हूं।
दक्ष : जी मम्मी।
अंतिम किचन में चली जाती है और दक्ष अपने बाथरूम में नहाने चला जाता है।
कुछ देर बाद बाकी लोग भी उठकर अपने नित्य कर्म करके हॉल में आ जाते है। केवल अवनी और पलक को छोड़कर, क्योंकि दोनों अभी भी सो रहे है।
तब तक अंतिम भी दक्ष का लंच बॉक्स तैयार कर देती है और फिर सभी के लिए चाय बनाकर लाती है और सभी लोग चाय पीते है। नीलेश चाय की चुस्की लेते हुए निखिल से बोलता है।
नीलेश : निखिल, तुम अनीता की देखभाल के लिए यहीं रुक जाओ।
निखिल : ठीक है।
अंतिम : भैय्या, आप कहां जा रहे है ?
नीलेश : हम सब घर जा रहे है, अनीता के डिस्चार्ज होने के समय आ जाएंगे।
अंतिम : भैय्या, हम लोग कितने सालों बाद मिले और आप जाने कि बात कर रहे है। आप सभी यहीं रुक जाइए।
नीलेश : हम सब यहां नहीं रुक सकते हैं।
अंतिम : क्या ये घर आपका नहीं हैं ?
नीलेश : ऐसी कोई बात नहीं हैं।
अंतिम : तो फिर आप लोग क्यों नहीं रुक सकते है ?
सपना : पायल, मैं खुद यहां रुकना चाहती हूं, लेकिन पायल और पलक कि पढ़ाई की वजह से हमें जाना होगा। इतने दिनों की स्कूल कि छुट्टी से उनकी पढ़ाई छूट जायेगी।
अंतिम : भैय्या, आप तो रुक ही सकते है।
नीलेश : पायल, मुझे भी अपने ऑफिस के कुछ काम निपटाने है, इसलिए मैं भी नहीं रुक सकता हूं।
अंतिम : ठीक है, तो मैं आपके साथ चलती हूं।
नीलेश : ये क्या पागलों जैसी बात कर रही हो। तुम यदि हमारे साथ जाओगी तो यहां दक्ष कि देखभाल कौन करेगा ?
वैभव : भैय्या, मैंने आपको पहले ही कहा था कि आपकी बहन आपके लिए पागल है।
नीलेश : वैभव जी, फिर भी हम नहीं रुक सकते है।
अंतिम : प्लीज़..भैय्या!, आप मेरी बात मान जाइए।
निखिल : जीजाजी, एक तरीके से ये बात हल हो सकती है।
नीलेश : क्या कहना चाहते हो तुम ?
निखिल : मेरी जगह आप यहां रुक जाइए और मैं दीदी के साथ चला जाता हूं।
नीलेश : लेकिन मुझे ऑफिस के काम भी निपटाने है।
निखिल : वो मैं निपटा दूंगा और कुछ समस्या होगी तो आपको फोन कर लूंगा। इसे आप अंतिम जी के साथ कुछ दिन यहां रह लेंगे, जिससे अंतिम जी की इच्छा भी पूरी हो जायेगी। इनके लिए हम इतना तो कर ही सकते है।
वैभव : भैय्या, मुझे निखिल की बात में दम लगा। ये हो सकता है।
अंतिम : भैय्या, निखिल जी की बात मान जाइए।
नीलेश : सपना, तुम क्या कहती हो ?
सपना : मुझे कोई दिक्कत नहीं है।
नीलेश : तो ठीक है, हम ऐसा ही करते है।
अंतिम : शुक्रिया! भैय्या।
अंतिम : निखिल जी, आपका भी शुक्रिया! आपके सुझाव के कारण भैय्या यहां रुकने को मान गए।
इनकी बातों के चक्कर कुछ लोगों कि चाय ही ठंडी हो जाती है। सपना फिर से चाय बनाकर लाती है।
कुछ देर बाद दक्ष की स्कूल बस आ जाती है और वो स्कूल चला जाता है।
सपना और अंतिम सभी के लिए किचन में नाश्ता बनाने लगती है। करीब आधे घण्टे बाद पलक और अवनी भी जाग जाते है। फिर सभी डायनिंग टेबल पर नाश्ता करते है।
कुछ घंटो के बाद सभी लोग खाना खा लेते है और फिर जाने कि तैयारी करते है, लेकिन जब अवनी और पलक को घर जाने का बोलते है तो दोनों जिद्द करती है।
पलक अपने पापा के साथ रहना चाहती थी और अवनी भी अंतिम के साथ रहना चाहती थी।
नीलेश अपने तरीके से पलक को समझा देता है और वो घर जाने को तैयार हो जाती है और अंतिम के कहने पर अवनी को अंतिम के पास ही रहने दिया जाता है।
फिर निखिल, सपना, पायल, राजेश और पलक सभी इंदौर जाने के लिए कार से निकल जाते है।
इनके जाने के बाद नीलेश और अंतिम भी हॉस्पिटल चले जाते है। वैभव भी अपने ऑफिस चला जाता है। घर पर सिर्फ सकीना (नौकरानी) रह जाती है। वो भी अपने कामों में व्यस्त हो जाती है।
ऐसे ही आज का दिन निकल जाता है, रात को सभी लोग खाना खाते है और कुछ देर बातें और टीवी देखते है फिर सभी लोग अपने कमरों में जाकर सो जाते है।
ऐसे ही तीन दिन और गुजर जाते है, इस दौरान वैभव, नीलेश, अंतिम, दक्ष और अवनी एक-दो बार बाहर घूमने और शॉपिंग करने भी चले जाते है।
आज सुबह से अंतिम किचन में काम करने लग जाती है, पहले वो दक्ष को तैयार कर स्कूल भेज देती है। फिर वापस किचन में काम करने लगती है।
आज अंतिम इतनी व्यस्त इसलिए है क्योंकि आज वैभव अपने ऑफिस के किसी काम के सिलसिले में दो दिनों के लिए दिल्ली जा रहा है।
वो जल्दी से नाश्ता तैयार करती हैं और वैभव और नीलेश को खिलाकर उनके जाने की तैयारी करती है। थोड़ी देर बाद नीलेश और वैभव एयरपोर्ट के लिए निकल जाते है।
वैभव के जाने के बाद नीलेश वहां से निकलकर सीधे हॉस्पिटल चला जाता है, वहां एक-दो घंटे रुकने के बाद घर आ जाता है।
घर पहुंचने के बाद अंतिम, नीलेश और अवनी खाना खाते है। एक-दो घंटे ऐसे ही गुजर जाते है, दक्ष भी स्कूल से आ जाता है। अंतिम उसे खाना खिलाकर अपने काम में व्यस्त हो जाती है और नीलेश, दक्ष और अवनी टीवी देखने व्यस्त हो जाते है।
शाम को दक्ष अपने रूम में पढ़ाई करने चला जाता है और अंतिम भी अवनी को अपने साथ बाजार ले जाती है। नीलेश सोचता है कि एक बार हॉस्पिटल हो आता हूं, वो भी सकीना को बोलकर हॉस्पिटल निकल जाता है।
ऐसे ही रात के आठ बजे जाते है, अंतिम एक बार वैभव को फोन करके उनकी खैर-खबर ले लेती है और भैय्या का इंतज़ार करने लगती है।
नीलेश जब घड़ी देखता है तो वो भी हॉस्पिटल से निकल सीधे घर आ जाता है। दोनों बैठकर थोड़ी बात करते है, कुछ देर ऐसे ही बात करने के बाद नीलेश बच्चों का पूछता है तो अंतिम बोलती है कि बच्चों को तो खाना खिलाकर सुला दिया। भैय्या, आप भी हाथ मुंह धोकर आ जाइए, तब तक में आपके लिए खाना लगाती हूं। नीलेश फ्रेश होकर आ जाता है और डायनिंग टेबल पर बैठ जाता है। अंतिम कि तरफ देख नीलेश उसे बोलता है।
नीलेश : तुमने खाना खाया कि नहीं ?
अंतिम : नहीं।
नीलेश : क्यों नहीं खाया ?
अंतिम : बस, आपका इंतज़ार कर रही थी।
नीलेश : अच्छा!, कोई बात नहीं, अब दोनों मिलकर साथ खाएंगे।
अंतिम : भैय्या, आप खा लीजिए। फिर मैं खा लूंगी।
नीलेश : नहीं, साथ में ही खाना पड़ेगा। वरना मैं खाना नहीं खाऊंगा। (थोड़ा नाराज़गी जाते हुए...)
अंतिम : ठीक है।
फिर दोनों खाना खाते है, कुछ ही देर में उनका खाना हो जाता है। दोनों हॉल में आकर कुछ देर टीवी देखते है। फिर नीलेश उठकर अपने रूम में जाने लगता है तो अंतिम बोलती है।
अंतिम : भैय्या, रूकिये।
नीलेश : क्या हुआ ? ( रुककर उसे पूछता है। )
अंतिम : भैय्या, इतने दिन हो गए। आपसे ढंग से बात ही नहीं हो पाई, इसलिए अभी बातें करते हैं,वैसे भी अभी मुझे नींद नहीं आ रही है।
नीलेश : अच्छा!, दो मिनट रुक में ये कपड़े चेंज कर आता हूं, फिर आराम से बैठकर बातें करेंगे।
अंतिम : ठीक है।
नीलेश अपने रूम में जाकर लोअर, टी शर्ट पहन कर बाहर आ जाता है, लेकिन अंतिम उसे वहां नहीं दिखाई देती है तो वो आवाज लगता है।
नीलेश : पायल...पायल...।
अंतिम : भैय्या, दो मिनट आ रही हूं।
नीलेश : ठीक है।
नीलेश सोफे पर बैठकर अंतिम का इंतज़ार करता है, लेकिन पांच मिनट बाद भी अंतिम नहीं आई, तो नीलेश फिर से आवाज लगाने वाला होता है कि फिर सोचता है रूम में जाकर बुला लेता हूं। रूम में जाकर देखता है, लेकिन वहां भी अंतिम नहीं देखती है। तभी अंतिम कि आवाज आती है जो कि बाथरूम से निकल रही थी।
अंतिम : भैय्या।
नीलेश : अरे, कहां रुक गई थी, तुम्हें बातें नहीं करनी ? ( अंतिम कि तरफ देखकर )
अंतिम : आप चेंज करने गए तो मैंने सोचा में भी चेंज कर लेती हूं।
नीलेश : ठीक है, चलो बाहर बैठकर बातें करते है।
अंतिम : अब आप यहां आ गए है तो यहीं बैठकर बात कर लेते है।
नीलेश : ठीक है।
फिर दोनों पलंग पर बैठ जाते है और दोनों के बीच बातें शुरू हो जाती है। कुछ देर बाद दोनों पलंग से टेका लेकर पैर लंबे कर लेटे कर बातें करने लगते है, एक से दो घंटे बातें करते-करते अंतिम भावकु हो जाती है और रोने भी लगती है। नीलेश उसे सीने से लगता लेता है और चुप कराने लगता है।
नीलेश : अरे, ऐसे रोते नहीं है जल्दी से अपने आसूं साफ करो।
अंतिम : भैय्या, मुझे पुराने दिन बहुत याद आ रहे हैं। (रोते हुए..।)
नीलेश : ऐसे रोते नहीं है, मेरी प्यारी बहन।
अंतिम : कितने सालों बाद, मैंने आज आपके मुंह से "मेरी प्यारी बहन" सुना।
नीलेश : चलो, अब अपने आसूं पूछो।
( फिर अपने हाथों से उसके आसूं पोछ देता है।)
नीलेश : चल, अब में अपने रूम में जाता हूं।
अंतिम : भैय्या, आज यहीं रुक जाओ। प्लीज़...। (नीलेश की ओर आशा भरी नजरों से..)
नीलेश : ठीक है।
अंतिम जैसे ही "ठीक है।" सुनती है, नीलेश के चेहरे पर चुम्बन कि बरसात कर देती है और आखिरी चुम्बन नीलेश के होंठो पर कर देती है।
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अंतिम : मेरे प्यारे भैय्या। ( मुस्कराते हुए..)
नीलेश : ये क्या था ?
अंतिम : मेरे भैय्या को मेरी बात माने के लिए शुक्रिया! किया।
नीलेश : मेरे मतलब था कि तुमने मेरे.. होठं को क्यों चूमा ? ( झिझकते हुए...।)
अंतिम : भैय्या, मैं तो पहले भी कई बार उन्हें चूमा है। (शरारती मुस्कान के साथ)
नीलेश : लेकिन अब यह ग़लत है। तुम्हें मुझे ऐसे चूमना नहीं चाहिए।
अंतिम : क्यों ?
नीलेश : तुम जानती हो मैंने क्या कहना चाहता हूं।
अंतिम : अच्छा!, अब में अपने भैय्या को प्यार भी नहीं कर सकती। ( रूठते हुए नीलेश से दूर हट जाती है। )
नीलेश : अरे, मैंने तुम्हें प्यार करने से कब मना किया। (उसे वापस अपने पास बुलाता है।)
अंतिम : ये कोई तरीक़ा है कि पहले दूर करो; फिर वापस बुला लो। (नीलेश की तरफ झूठे गुस्से से)
नीलेश : मैं कब तुम्हें दूर किया, तुम खुद ही दूर हो गई। (प्यार से उसकी तरफ देखते हुए।)
(अंतिम ये सुनकर नीलेश के पास वापस आ जाती है।)
अंतिम : अच्छा! और प्यार करने से किसने मना किया ?
नीलेश : मैंने कब मना किया।
(नीलेश कि बात सुन वो नीलेश की आंखों में देखती है और अपनी बाहों को उसके गले में डाल कर उसे पूछती है।)
अंतिम : मतलब में प्यार कर सकती हूं। (आंखो में देखते हुए..)
नीलेश : हां। (उसने सोचा भी नहीं कि उसकी हां के बाद अंतिम क्या करेगी।)
अचानक अंतिम ने अपने होंठो को नीलेश के होंठो से मिल दिया और उसके होठों को चूसने लगी, साथ में अपना एक हाथ उसके सर में फिराने लगी। नीलेश तो उसकी इस हरक़त से भौचक्का!! रह गया, लेकिन कुछ 10 से 15 सेकेंड के बाद वो अंतिम को दूर कर देता है।
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नीलेश : ये क्या बदतमीजी है ? मैंने कहा ना कि ये ग़लत है।
अंतिम : आपने ही कहा कि में प्यार कर सकती हूं।
नीलेश : मैंने, ये वाले प्यार के लिए नहीं कहा था।
अंतिम : लेकिन हम पहले भी कई बार ये प्यार कर चुके है।
नीलेश : वो सब नादानी में और जवानी के कारण हो गया था, लेकिन अब तुम और मैं शादीशुदा है। अब ये हमारे बीच ग़लत है और जो पहले हुआ, वो भी ग़लत था। (थोड़ा गुस्से से कहता है।)
अंतिम : लेकिन मैंने हमेशा आपसे वहीं प्यार करना चाहती थी, लेकिन क़िस्मत को मंजूर ना था, किन्तु अब वापस मेरी क़िस्मत ने मुझे वो मौका दिया। ( रोते हुए ..बोलती है।)
नीलेश उसे रोता देख उसे पास खिसक जाता है और उसे रोना बंद करने के लिए बोलता है, लेकिन वो चुप नहीं होती है बल्कि और रोना शुरू कर देती है। ( वो जानती थी कि नीलेश उसे रोता हुआ नहीं देख सकता। )
नीलेश : मैं जानता हूं कि तुम मुझे बहुत ज्यादा प्यार करती हो, परन्तु ये सब ग़लत है तुम मेरी बात समझने कि कोशिश करो।
अंतिम : भैय्या, तो फिर आप जाइए; अपने रूम में आराम कीजिए। आपको मेरे प्यार की कोई परवाह नहीं है। (और जोर से रोने लगती है।)
नीलेश उसे रोता देख सोचता है कि यदि मैं यहां से गया तो ये रातभर रोती रहेगी। फिर कुछ और सोचकर अंतिम से बोलता है।
नीलेश : मेरी प्यारी बहन, तुम मुझे प्यार करना चाहती हो ना तो कर लो, लेकिन पहले अपने रोना बंद कर दो।
अंतिम : सच। (रोना कम करते हुए।)
नीलेश : हां, मेरी प्यारी बहन।
नीलेश की हां, सुनकर वो नीलेश के होंठो को अपने होंठो से मिल देती और उसके होठों को चूसने लगी। कुछ देर ऐसे चूसती रहती है, लेकिन नीलेश की तरफ से कोई जवाब नहीं आता है तो वो चूमना बंद कर देती।
नीलेश उसकी तरफ देखता है जो अभी नीलेश की तरफ ही देख रही थी। फिर एक कातिलाना मुस्कान के साथ वो उठकर नीलेश के ऊपर घुटनों के बल बैठ जाती है अब नीलेश की कमर उसकी जांघो की बीच थी। वो झुककर फिर से नीलेश के होंठो को अपने होंठो से मिला देती और उसके होठों को चूसने लगती। कुछ देर बाद नीलेश भी उसका साथ देने लगता है।
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