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Incest चोरी का माल

Lutgaya

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तीन पत्ती गुलाब
भाग -20


(Teen Patti Gulab- Part 20​

आज पूरे दिन बार-बार गौरी का ही ख़याल आता रहा। एकबार तो सोचा गौरी से फ़ोन पर ही बात कर लूं पर फिर मैंने अपना इरादा बदल लिया। अब मैं आगे के प्लान के बारे में सोच रहा था। गौरी शारीरिक रूप से तो पहले ही चुग्गा देने लायक हो गयी है और अब तो वह मानसिक रूप से भी तैयार है।
गौरी की सु-सु और नितम्बों का विचार मन में आते ही दिल की धड़कन तेज होने लगती है और मन करता है आज रात को पढ़ाते समय ही उसे प्रेम का अगला सबक सिखा दूं। पर मधुर की मौजूदगी में यह सब कहाँ संभव हो पायेगा? तो क्या कल सुबह-सुबह मधुर के स्कूल जाते ही … अगला सबक … ??? यालाह … मेरा दिल तो अभी से धड़कने लगा है। लंड तो जैसे अड़ियल घोड़ा बनकर चुग्गे के लिए हिनहिनाने लगा है।
ओह … कल तो रविवार है? लग गए लौड़े!
एक बात तो हो सकती है आज रात को पढ़ाते समय भी लिंगपान तो करवाया ही जा सकता है। मधुर तो अन्दर कमरे में सोयी हुई रहेगी और गौरी तो चुप-चाप यह लिंगपान वाला सवाल आसानी से हल कर लेगी। और फिर एक रात की ही तो बात है। अब देर करना ठीक नहीं है सोमवार को लिंग देव का दिन है। अब लिंग देव इतनी कृपा तो हम दोनों भक्तों पर कर ही देंगे।
भेनचोद यह किस्मत हमेशा हाथ में लौड़े लिए तैयार ही रहती है पर सोमवार लिंग देव इतनी कृपा तो हम दोनों भक्तों पर कर ही देंगे। सोमवार को सुबह-सुबह उसके साथ बाथरूम में नहाते हुए प्रेम का अगला सबक सिखाने का यह आईडिया बहुत ही कारगर और सुन्दरतम होगा।
शाम को घर जाते समय मैंने गौरी के लिए बढ़िया क्वालिटी की इम्पोर्टेड चॉकलेट खरीदी और उसकी पसंद के आम और लीची फ्लेवर की फ्रूटी के 8-10 पाउच भी ले लिए थे।
आज गौरी के बजाय मधुर ने दरवाजा खोला। मैंने इधर उधर नज़र दौड़ाई पर गौरी कहीं नज़र नहीं आ रही थी।
अब गौरी के बारे में सीधे मधुर से पूछना तो ठीक नहीं था तो मैंने बहाने से मधुर से कहा- मधुर आज तो कड़क चाय पीने का मन कर रहा है गौरी को बोलो ना प्लीज … बना दे।
“मैं बना देती हूँ आप फ्रेश होकर आओ?”
“वो गौरी नहीं है क्या?”
“गौरी तो घर चली गई है।” मधुर ने बम विष्फोट कर दिया।
“क … क्यों?” मैंने हकला सा गया।
“अरे … ये निम्नवर्गीय लोगों की परेशानियां ख़त्म ही नहीं होती.”
“अब क्या हुआ?”
“होना क्या है वही रोज-रोज पैसे का रोना लगा रहता है.”
“म.. मैं समझा नहीं?” मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था। क्या पता इनकी रोज-रोज पैसों की डिमांड से तंग आकर मधुर ने गौरी को काम से ही ना हटा दिया हो। मैं तो देव चालीसा ही पढ़ने लगा। हे लिंग देव प्लीज अब लौड़े मत लगा देना।
“वो … अनार है ना?” मधुर ने कुछ सोचते हुए कहा।
मेरी झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी। ये मधुर भी पूरी बात एक बार में कभी नहीं बताती।
“हाँ?”
“इन लोगों को सिवाय बच्चे पैदा करने के कोई काम ही नहीं है। उसके तीन बच्चे तो पहले से ही हैं अब वह फिर पेट से थी तो उसका गर्भपात हो गया।”
“ओह … बहुत बुरा हुआ.” मैंने कहा।
“अनार का पति कुछ कमाता-धमाता तो है नहीं, सारी आफत बेचारी गुलाबो की जान को पड़ी है। और उसे भी सब चीजों और परेशानियों के लिए बस यही घर दिखता है.”
“फिर?”
“वो गुलाबो का फ़ोन आया था कि कुछ पैसों की जरूरत है तो गौरी के साथ थोड़े पैसे भेज दो।”
“हुम्म …” मैंने एक निश्वास छोड़ते हुए कहा।
“क्या करती पैसे देकर गौरी को भी भेजना ही पड़ा। बड़ी मुश्किल से उसका पढ़ाई में मन लगा था अब 2-3 दिन वहाँ रहेगी तो सब भूल जायेगी।”
सारे मूड की ऐसी की तैसी हो गयी। लग गए लौड़े !!! मैं मुंह हाथ धोने बाथरूम में चला गया। पता नहीं कितने पापड़ अभी और बेलने पड़ेंगे।
मेरे प्रिय पाठको और पाठिकाओ! दुनिया में दो त्रासदियाँ (ट्रेजडी) होती हैं। एक हम जो चाहते हैं वह नहीं होता और दूसरे हम जो नहीं चाहते वह अनचाहा जरूर होता है। अब वक़्त और किस्मत के आगे किसका जोर है। मैं आपसे माफ़ी चाहता हूँ। कितना खूबसूरत प्लान बनाया था पर ये किस्मत भी बड़ी बेरहम होती है। कई बार हमारे लाख चाहने के बाद भी वह नहीं होता जो हम चाहते हैं।
पर आप निराश ना हों 2-3 दिनों की ही तो बात है उसके बाद जल्दी ही वह मरहला (इवेंट) आने वाला है जिसका मुझे ही नहीं आप सभी को भी बेसब्री से इंतज़ार है।
और फिर अगले 3-4 दिन तो गौरी की याद में मुट्ठ मारते हुए ही बीते।
आज शाम को दफ्तर से जब मैं घर लौटा तो पता चला गौरी पूरे चार दिनों के बाद आज दोपहर में आ गई है। मैं जब बाथरूम से हाथ मुंह धोकर हॉल में आया तब तक गौरी ने चाय बना दी थी। मधुर मेरे पास ही बैठी हुई थी।
गौरी ने दो कपों में चाय डाल दी तो हम दोनों चाय पीने लगे।
मेरा मन तो कर रहा था गौरी भी हमारे साथ ही चाय पी ले पर मधुर के सामने मेरी और गौरी की इतनी हिम्मत और जुर्रत कैसे हो सकती थी।
रात का खाना निपटाने के बाद हम लोग टीवी देख रहे थे। मधुर मेरी बगल में सोफे पर बैठी थी। गौरी नीचे फर्श पर बैठी कभी-कभी कनखियों से मेरी ओर देख रही थी। मैंने ध्यान दिया उसके चेहरे की रंगत कुछ निखर सी गयी है और मुंहासे भी अब ठीक लगते हैं।
“अरे गौरी?” मधुर ने उसे टोका।
“हओ” गौरी ने चौंककर मधुर की ओर देखा।
“तुमने 3-4 दिन पटरानी की तरह बहुत मटरगश्ती कर ली अब थोड़ा ध्यान पढ़ाई पर दो।” मधुर ने झिड़की लगाते हुए गौरी से कहा।
बेचारी गौरी तो सकपका सी गई।
“प्रेम! इस महारानी ने 3-4 दिन बड़ा आराम कर लिया अब रात को इसकी थोड़ी देर रात तक क्लास लगाओ नहीं तो यह सब कुछ भूल जायेगी.” मधुर ने फतवा जारी करते हुए कहा।
“ओह … हाँ … ” अब अमरीशपुरी स्टाइल में मधुर के इस फतवे के आगे मैं भला क्या बोल सकता था।
मधुर सोने के लिए बेडरूम में चली गई। गौरी अपनी किताबें उठा कर ले आई। आज उसने कॉटन का टॉप और छोटे वाली निक्कर पहन रखी था। पतली पिंडलियों के ऊपर मांसल घुटने और गुदाज़ जांघें तो ऐसे लग रही थी जैसे चड्डी पहन के फूल खिला हो। चलते समय उसके गोल-गोल घूमते नितम्ब तो मेरे लंड को बेकाबू ही कर रहे थे।
पिछले 3-4 दिनों से मैं मुट्ठ मार-मार कर थक गया था। आज रात में अगर गौरी वीर्यपान वाला सवाल हल कर दे तो कसम से मज़ा आ जाए।
गौरी बेमन से अपनी किताबें टेबल पर रखकर दूसरे सोफे पर बैठ गई। उसके चेहरे पर अनमना सा भाव था।
मुझे लगता है उसे रोज-रोज की यह किताबी पढ़ाई अच्छी नहीं लग रही। वह इन सभी झंझटों और बन्धनों को छोड़ कर खुले आसमान में उड़ना चाहती है। अब तो उसे प्रेमग्रन्थ की पढ़ाई करने का मन करने लगा है।
“गौरी क्या बात है आज तुम कुछ उदास सी लग रही हो?” मैंने पूछा।
“किच्च?” गौरी मुंडी झुकाए बैठी रही।
“गौरी तुम्हारे बिना तो इस घर में रौनक ही नहीं रही। पता है मैंने तुम्हें कितना याद किया?”
अब गौरी ने मेरी ओर देखते हुए उलाहना सा दिया- आपने तो मुझे एतबाल भी फ़ोन नहीं तिया?
“वो.. वो … दरअसल ऑफिस में इतना काम रहता था कि सिर खुजाने का भी समय नहीं मिला यार।”
“यह सब तो बहाने हैं.”
“अच्छा गौरी तुम्हारे मुंहासों का क्या हाल है?”
“अब तो ठीत लगते हैं।”
“दिखाओ तो?”
गौरी मेरी बगल में आकर बैठ गई। मैंने पहले तो उसके दोनों गालों पर हाथ फिराया और फिर उसकी थोड़ी और होंठों पर। मेरे ऐसा करने से गौरी के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई। और मेरा पप्पू तो बिगड़ैल बच्चे की तरह जोर-जोर से उछलने लगा था। मन कर रहा था उसके होंठों पर एक चुम्बन ही ले लूं पर अभी यह सब ठीक नहीं था। क्या पता मधुर अभी सोई नहीं हो और अचानक बाहर ना आ जाए।
“हम्म … !!! गौरी मैंने बोला था ना?”
“त्या?”
“देखो वीर्यपान और उस दवा से यह मुंहासे कितनी जल्दी ठीक होने लगे हैं।”
“हओ … मैंने 3-4 दिन आपती बताई दवाई दिन में तीन-चाल बाल लगाईं तब जातल ये ठीक हुए हैं?”
“तुम्हें वो नुस्खा याद रहा?”
“हाँ मैंने उसे नोट तल लिया था और आपने जो दवा बनाई थी वह साथ ले गई थी।”
“गुड … गौरी तुम बहुत ही समझदार हो। पर अभी भी ये पूरी तरह ठीक नहीं हुए लगते?”
“तो?”
“अभी वो दवा 10-15 दिन और लगानी पड़ेगी और साथ में वह उपचार भी लेना पड़ेगा नहीं तो दवा असर नहीं करेगी.” मैंने हंसते हुए कहा।
“हट!!! तित्ति बाल (कितनी बार) तो पी लिया?”
“अरे केवल दो बार ही तो पीया है। पता है इसकी कम से कम 7 खुराक जरूरी होती हैं?”
“हट …”
“तुम्हारी कसम मैं सच बोल रहा हूँ। अब अगर ये दुबारा हो गए तो फिर मुझे दोष मत देना कि मैंने पहले नहीं बताया?” मैंने गंभीर स्वर में कहा। पहले तो गौरी इसे मज़ाक समझ रही थी पर अब उसे भी लगा कि मैं सच बोल रहा हूँ।
“गौरी एक काम करते हैं.”
“त्या?”
“मुझे पता है तुम्हें ये पढ़ाई-लिखाई वाला काम थोड़ा झंझटिया (अरुचिकर) लगता है पर यह सब जरूरी भी है। आज पहले मैं थोड़ा अंग्रेजी के अगले 2-3 पाठ पढ़ा देता हूँ फिर हम थोड़ी देर बात करेंगे। कितने दिन हो गए बात किये हुए।”
“हओ” अब गौरी के चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान सी आ गई थी।
“यह पढ़ाई-लिखाई है तो झमेला ही पर यह तुम्हारे अच्छे भविष्य के लिए है तो करना लाज़मी (आवश्यक) भी है।”
गौरी ने एक बार फिर से हओ कहा और फिर मैंने उसे अंग्रेजी की किताब का एक पाठ और लैटर राइटिंग आदि सिखाया। अब तक रात के 10:30 बज गए थे। मैंने एक बार कमरे में चुपके से झाँक कर देखा कि मधुर सो गई या नहीं। मधुर के खर्राटे सुनकर लगा वह सो गई है। मैंने धीरे से कमरे के दरवाजे को बाहर से कुण्डी (सांकल) लगा दी। और फिर गौरी के पास आ गया।
गौरी तो जैसे मेरा इंतज़ार ही कर रही थी। मैंने झट से उसे बांहों में भर लिया और तड़ातड़ कई चुम्बन ले लिए।
‘ईईईईईईई … ’ गौरी कुछ कसमसाई तो जरूर पर उसने ज्यादा विरोध नहीं किया।
“गौरी पिछले 3-4 दिनों में मैंने तुम्हें बहुत मिस (याद) किया।”
“त्यों?” गौरी ने हंसते हुए पूछा।
“सच में गौरी तुम्हारे बिना इस घर में रौनक ही नहीं रही। और ऑफिस में भी किसी काम में मन नहीं लगा.”
मेरी बात सुनकर गौरी कुछ बोली तो नहीं पर वह कुछ सोच जरूर रही थी।
“गौरी, मुझे तुम्हारे मुंहासों की बड़ी फिक्र थी क्या पता ठीक हुए या नहीं?”
गौरी मेरी बांहों में लिपटी मंद-मंद मुस्कुरा रही थी। वह तो बस आँखें बंद किये सुनहरे सपनों में ही जैसे खोई हुई थी।
मैं कभी उसकी पीठ और कभी उसके नितम्बों पर हाथ फिर रहा था और मेरा लंड तो घोड़े की तरह हिनहिनाने लगा था। मन कर रहा था गुरु क्यों देर कर रहे हो सोफे पर पटक कर साली का गेम बजा डालो।
“गौरी क्या तुम्हें मेरी याद आई या नहीं सच बताना?”
“मुझे भी आपती बहुत याद आती थी पल त्या तलती वो अनाल दीदी बीमाल थी तो वहाँ लहना पड़ा।”
“अब कैसी है अनार?”
“थीत है पल तमजोल बहुत हो गई है।”
अब मैंने गौरी के नितम्बों और जाँघों पर हाथ फिराना चालू कर दिया था। गौरी की साँसें तेज होने लगी थी। और मेरा पप्पू तो जैसे पिंजरे में बंद खतरनाक शेर की तरह दहाड़ ही रहा था।
गौरी ने एक सीत्कार सी ली और उसने अपनी बाँहें मेरी कमर पर कस सी ली।
“गौरी क्या तुम्हारा मन नहीं करता कि कोई सारी रात भर तुम्हें बांहों में भरकर प्रेम करे?”
“मुझे ऐसी बातों से शलम आती है?”
“इसमें शर्माने वाली क्या बात है? मैं तो केवल पूछ रहा हूँ?” अब तक मेरा हाथ उसकी सु-सु तक पहुँच गया था।
“आईईईई … ” गौरी की मीठी सीत्कार सी निकल गई।
“गौरी मेरी एक बात मानोगी?”
“हम … ?” गौरी ने आँखें बंद किये हामी सी भरी।
“व … वो … एक बार अपनी सु-सु के द … दर्शन करवा दो ना प … प्लीज?” मैंने हकलाते हुए कहा।
मुझे लगा गौरी मना कर देगी।
“हट!”
“प्लीज गौरी अपने गुरूजी की एक बात तो मान लो प्लीज?” मैंने मिन्नत की।
“वो … दीदी तो पता चल गया तो आपतो और मेले तो जान से माल डालेगी.”
“अरे मधुर तो सोई हुई है उसे कहाँ पता चलेगा? प्लीज … गौरी मान जाओ ना … मैं तो उसकी बस एक झलक देखना चाहता हूँ?”
“नहीं … मुझे शल्म आती है.” कहते हुए गौरी ने अपनी जांघें जोर से भींच ली।
“वाह … जी और मुझे भी तो शर्म आयी थी पर मैंने भी दिखाया था ना?”
“नहीं … प्लीज … आज नहीं … बाद में … दिखा दूंगी?”
“बाद में कब?” मैंने गौरी को चूमते हुए कहा।
“आप समझते नहीं … वो … वो … मैं तल दिखा दूंगी … प्लोमिज …”
मुझे थोड़ी निराशा सी हुई। पता नहीं गौरी मधुर के होते डर रही थी या कोई और बात थी। मैं भी जबरदस्ती कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था। काश कल सुबह गौरी नहाते समय अपनी सु-सु दिखाने के लिए राजी हो जाए तो कसम से मज़ा आ जाए। उसके साथ नहाते समय उसकी सु-सु को चूमने का उत्तम विचार मन में आते ही लंड महाराज ने तो पाजामे में कोहराम ही मचा दिया और उसने प्री कम के कई तुपके छोड़ दिए। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा।
“गौरी! आई लव यू!” मैंने गौरी का सिर अपने दोनों हाथों में पकड़ लिया और उसके होंठों पर एक चुम्बन ले लिया।
“गौरी वो दवाई पीनी है क्या?” मैंने हंसते हुए पूछा।
“तोन सी?”
मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने खड़े लंड पर लगाते हुए कहा- इससे पूछ लो!
“हट!” कहते हुए गौरी ने अपना हाथ झटके से खींच लिया।
“गौरी पिछले 4-5 दिनों से यह बहुत उदास है।”
“त्यों? इसे त्या हुआ?” गौरी ने आँखें तरेरते हुए पूछा।
“इस बेचारे की किसी को परवाह ही नहीं है.” कहकर मैंने आशा भरी नज़रों से गौरी की ओर ताका।
गौरी मेरा मतलब अच्छी तरह जानती थी।
“अगल दीदी जाग गई तो?”
“वो तो कब की सो चुकी है। तुम चिंता मत करो और मैंने बेडरूम की कुण्डी लगा दी है।”
“बेचाली दीदी आपको तितना सीधा समझती हैं ओल आप?” गौरी ने हंसते हुए कहा और फिर पजामे के ऊपर से ही मेरे लंड को दबाना शुरू कर दिया।
“मेरी जान मैं तो यह सब तुम्हारे भले के लिए कर रहा हूँ.”
“मैं सब समझती हूँ … अब मैं इतनी भोली भी नहीं हूँ.” गौरी ने मंद-मंद मुस्कुराते हुए कहा और फिर मेरे तातार लंड को पाजामे के ऊपर से ही मुठियाने लगी।
फिर गौरी ने 4 दिनों के बाद लंड देव का एकबार फिर से अभिषेक करके प्रसाद ग्रहण कर लिया।
और फिर पूरी रात हम दोनों को ही उस हसीन सुबह का बेसब्री से इंतज़ार था.
कहानी जारी रहेगी.
 
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Lutgaya

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तीन पत्ती गुलाब
भाग -21

अगले दिन सुबह जब मधुर स्कूल चली गई तो गौरी नाज-ओ-अंदाज़ से चलती हुई हॉल में आ गई। उसने आँखें मटकाते हुए इशारों में पूछा- चाय या कॉफ़ी?
“गौरी मैं तुम्हारे लिए लीची और मैंगो फ्रूटी के पाउच और इम्पोर्टेड चॉकलेट लाया था वो तुमने टेस्ट की या नहीं?”
“किच्च!! तहां रखी हैं?”
“अरे फ्रिज़ में ही तो रखी हैं. आज चाय-वाय छोड़ो दोनों फ्रूटी ही पीते हैं.”
“हओ” कहते हुए गौरी रसोई में जाकर फ्रूटी और चॉकलेट ले आई।

गौरी मेरे बगल में आकर बैठ गई। आज उसने गोल गले की टी-शर्ट और इलास्टिक लगी पतली पजामी पहन रखी थी। कमर में कसी पजामी में कैद नितम्ब तो आज कुछ ज्यादा ही नखरीले लग रहे थे और जांघें तो बस कहर ही बरपा रही थी। उसके कमसिन बदन से आती अनछुए कौमार्य और परफ्यूम की मिली जुली खुशबू तो मुझे मदहोश ही किए जा रही थी।

हम दोनों फ्रूटी पीने लगे। मेरी निगाहें तो गौरी की जाँघों से हट ही नहीं रही थी। गौरी ने इसे महसूस तो जरूर कर लिया पर बोली कुछ नहीं अलबत्ता उसने अपनी जांघें और जोर से भींच ली।
“गौरी तुमने कल एक वादा किया था?”
“त्या?”
“भूल गई ना … वो … सु-सु दिखाने का?”
“ओह … वो … ?” कहते हुए गौरी एक बार फिर शर्मा गई। उसने अपनी मुंडी नीचे झुका ली।
ईईइस्स्स्स …

मैंने गौरी को अपनी बांहों में भींच लिया। गौरी थोड़ा कसमसाई तो जरूर पर उसने कोई विरोध नहीं किया।
“गौरी प्लीज … ”
“नहीं … मुझे … शल्म आ रही है।”
“आओ बैडरूम में चलते हैं.”

अब मैं खड़ा हो गया और मैंने उसे गोद में उठा लिया। इस हालत में फूलों जैसी नाजुक और कमसिन लड़कियों का भार वैसे भी ज्यादा नहीं लगता। गौरी ने अपनी आँखें बंद कर ली और अपनी बांहें मेरे गले में डाल दी।

मैं गौरी को उठाये बैडरूम में आ गया। मैंने गौरी को धीरे से पलग पर लेटा दिया। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। गौरी ने शर्माते हुए अपने दोनों हाथों से अपनी आँखें बंद कर ली। मेरा पप्पू तो बेकाबू ही होने लगा था। उसमें इतना तनाव आ गया था कि मुझे तो लगने लगा कहीं इसका सुपारा फट ही ना जाए।

“गौरी? मेरी जान?” मैंने उसे बांहों में भरकर उसके लरजते होंठों पर एक चुम्बन लेते हुए कहा।
“हम” गौरी ने आँखें बंद किये ही जवाब दिया। उसकी साँसें बहुत तेज़ चलने लगी थी। गालों पर जैसे लाली सी छा गई थी। रोमांच के कारण उसके शरीर के रोयें खड़े हो गए।
“आँखें खोलो मेरी जान?”
“किच्च … मुझे शल्म आ रही है?”
“प्लीज अब शर्म छोड़ो ये … ये टी-शर्ट उतार दो ना प्लीज …”

मैंने उसके गालों को चूमते हुए उसे थोड़ा सा सहारा दिया और फिर उसे थोड़ा उठाते हुए अपने हाथ बढ़ाकर मैं उसकी गोल गले वाली टी-शर्ट को उतारने लगा।
गौरी ने अपने हाथ ऊपर उठा दिए।

हे भगवान् … उसकी पतली कमर के ऊपर उभरा हुआ सा पेडू और उसके ऊपर गहरी नाभि … और उसके ऊपर दो कश्मीरी सेब जैसे उन्नत उरोज … उफ्फ्फ … क्या बला की खूबसूरती है … कंगूरे तो रोमांच के कारण भाले की नोक की तरह हो चले हैं। रोम विहीन गोरे रंग की कांख। अब पता नहीं उसने वैक्सिंग से बालों को हटाया है या कुदरती रूप से ही उसके बाल नहीं है।

हे लिंग देव! पतली कमर के नीचे जाँघों के बीच छुपे गौरी के उस अनमोल खजाना भी इसी तरह रोम विहीन होगा। मुझे तो डर सा लगने लगा है … उसे देखकर क्या पता मैं उसकी ताब ही ना सह पाऊँ और कहीं उसकी तपिश से पिंघल ही ना जाऊं?

गौरी फिर से लेट गई। मैंने उसके पेडू पर एक गहरा सा चुम्बन लिया और फिर अपनी जीभ को नुकीला करके उसकी नाभि पर फिराने लगा। गौरी की एक मीठी सीत्कार सी निकल गई और उसे एक झुरझुरी सी आ गई।
“सल … त्या तल लहे हो?”
“गौरी तुम बहुत खूबसूरत हो। मुझे जी भर कर तुम्हारे सौन्दर्य को देख लेने दो।”
कहते हुए मैंने कई चुम्बन उसके पेट और उरोजों पर भी ले लिए।

गौरी ने कसकर अपनी जांघें भींच ली। उसकी साँसें तेज़ होने लगी थी।
अब मैंने उसकी पजामी का इलास्टिक पकड़ा और उसे धीरे धीरे नीचे करने लगा। गौरी ने और जोर से अपनी जांघें भींच ली।
“सल … मुझे शल्म आ लही है … नहीं प्लीज … ”
“गौरी आज मुझे मत रोको … मुझे तुम्हारे इस हुस्न की दौलत को जी भर कर दीदार कर लेने दो … प्लीज …”

जब पजामी थोड़ी नीचे सरकने लगी तो गौरी ने अपने नितम्ब थोड़े से ऊपर उठा दिए … और मैंने उस पजामी को निकाल कर फेंक दिया। गौरी ने झट से अपना एक हाथ अपनी सु-सु पर रख लिया।
“गौरी! मेरी जान अब शर्मो हया का यह बंधन छोड़ो … कितने दिनों और मिन्नतों के बाद आज इस अनमोल खजाने के दर्शन हुए हैं … प्लीज …” कहते हुए मैंने उसका हाथ सु-सु पर से हटा दिया।
गौरी ने ज्यादा विरोध नहीं किया।

मेरा दिल धक-धक करने लगा था। दोनों जाँघों के बीच गुलाबी रंग के मोटे-मोटे पपोटे वाली सु-सु का चीरा तो मुश्किल से ढाई-तीन इंच का रहा होगा। और उस दरार के दोनों ओर कटार की धार की तरह पतली तीखी गहरे जामुनी रंग की दो लकीरें आपस में ऐसे चिपकी थी जैसे दो सहेलियां गले मिल रही हों। गुलाबी रंग की पुष्ट जांघें जिन पर हलकी हलकी पतली नीले रंग की शिरायें।

रोम विहीन गंजी बुर को देखते ही मेरा पप्पू तो दहाड़ें ही मारने लगा। झांट तो छोड़ो उसकी सु-सु पर तो एक रोयाँ भी नहीं था। मैं सच कहता हूँ ऐसी बुर तो केवल सिमरन की ही थी।

फूल सी खिली हुई बुर का लम्बा और एकदम चकुंदर सा सुर्ख चीरा झिलमिला रहा था। फांकों के शीर्ष पर मटर के दाने जितनी गुलाबी रंग की मदनमणि ऐसे लग रही थी जैसे किसी बया की चोंच हो। और उसके दांये पपोटे पर एक काला तिल जैसा उसकी ठोडी पर है … उफ्फ्फ …

गौरी का निर्वस्त्र शरीर मेरी आँखों के सामने पसरा पड़ा था। मुझे अपनी किस्मत पर यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह सब हकीकत है या मैं कोई सपना देख रहा हूँ।
हे भगवान् … मेरे जीवन मैं बहुत बार ऐसे मौके आये हैं जब मैंने अनछुई लड़कियों की बुर को देखा है पर यह मेरे जीवन का एक स्वर्णिम, हसीन और अनमोल नजारा था।

मेरा पप्पू तो बेकाबू सा होने लगा था। एक बार तो मन किया लोहा गर्म है हथोड़ा मार देता हूँ। गौरी ज्यादा ना नुकर नहीं करेगी मान जायेगी।

पर मैं यह सब इतना जल्दी करने के मूड में नहीं था। मैं सच कहता हूँ अगर मैं कोई 18-20 साल का लौंडा लपाड़ा होता तो कभी का इसे ठोक-बजा देता पर मैं इस मिलन को एक यादगार बनाना चाहता था लिहाज़ा मैंने कोई जल्द बाज़ी नहीं की।

अब मैंने उसकी बुर पर अपना हाथ फिराना चालू कर दिया था। एक रेशमी सा अहसास मुझे रोमांच से भरता चला गया। गौरी के शरीर में सिहरन सी दौड़ने लगी। उसका पूरा शरीर रोमांच से कांपने लगा था। अब मैंने अपने दोनों हाथों की चिमटी में उसके पपोटों को थोड़ा सा खोल दिया। हलकी सी पुट की आवाज के साथ रक्तिम चीरा खुल गया। गुलाब की पंखुड़ियों की मानिंद अंदरूनी होंठ (लीबिया-लघु भगोष्ट) कामरस में डूबे थे जैसे किसी तड़फती मछली ने पान की गिलोरी मुंह में दबा रखी हो।

फूली हुई तिकोने आकार की उसकी छोटी सी बुर जैसे गुलाब की कोई कली अभी अभी खिल कर फूल बनी है। मैं अपने आप को कैसे रोक पाता … मैंने अपने होंठ उसके रक्तिम चीरे पर लगा दिए।
ईईईईइ … गौरी की एक हलकी सी रोमांच भरी चीख निकल गई।

मैंने पहले तो उसे सूंघा और फिर एक चुम्बन उस पर ले लिया। अनछुए कौमार्य की तीखी गंद मेरे स्नायु तंत्र को सराबोर करती चली गई।
“सल … त्या तल लहे हो … छी … लुको … ” गौरी पैर पटकने लगी थी।

मैं उसके दोनों टांगों के बीच आ गया और थोड़ा सा अधलेटा होकर मैंने अपनी जीभ को नुकीला किया और गौरी की सु-सु के चीरे के बीच में फिराने लगा।
गौरी का शरीर अकड़ने लगा और उसने मेरे सिर को जोर से पकड़ कर अलग करने की नाकाम सी कोशिश की। मैंने जीभ के 3-4 लिस्कारे लगाए तो गौरी का पूरा शरीर ही रोमांच में डूबकर झटके से खाने लगा।

अब गौरी ने मेरे सिर के बालों को अपने हाथों में पकड़ लिया। मैंने उसकी बुर को पूरा अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगा।
“ईईईईईइ … सल … मैं मल जाऊंगी … सल … आह … मेला … सु सु … छ … छोड़ो … प्लीज …”
गौरी बड़बड़ाने सी लगी थी। अब वह मुझे परे हटाने की कोशिश भी नहीं कर रही थी अलबत्ता उसने मेरे सिर को अपने हाथों से जोर से भींच लिया और अपने पैर उठाकर मेरे कन्धों पर रख दिए।

मैंने अपनी जीभ को ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर फिराना चालू रखा। बीच बीच में मैं उसे पूरा मुंह में भर कर चुस्की सी लगाने लगा था। अब मैंने एक हाथ बढ़ाकर उसके एक उरोज की घुंडी को अपनी चिमटी में पकड़ लिया और उसे हौले-हौले दबाने और मसलने लगा। दूसरे हाथ से उसके नितम्बों का जायजा लिया।

आह … रेशम से मुलायम गोल खरबूजे जैसे कसे हुए नितम्ब और उनके गहरी खाई में मेरी अंगुलियाँ फिरने लगी। शायद गौरी ने कोई खुशबूदार क्रीम या तेल अपनी सु-सु और नितम्बों पर जरूर लगाया होगा। अब मेरी एक अंगुली उसकी महारानी (माफ़ करना इतने खूबसूरत और हसीना अंग को गांड जैसे लफ्ज से संबोधित कैसे किया जा सकता है) के छेद पर चली गई।

जैसे ही मैंने अपनी अंगुली उस छेद पर फिराई गौरी जोर-जोर से उछलने लगी- सल … मुझे तुछ हो लहा है … सल … मेला सु-सु … आआअह्ह्ह … ईईईईईइ!
मैं जानता था इस समय वह रोमांच के उच्चतम शिखर पर पहुँच गई है और उसका ओर्गस्म (स्खलन) होने वाला है। और किसी भी पल उसका कामरस निकल सकता है। मैंने उसकी सु-सु को पूरा मुंह में भर लिया और जोर-जोर से चूसने लगा।

गौरी के शरीर ने 3-4 झटके से खाए और फिर मीठी सीत्कारों के साथ उसकी सु-सु ने कामरस छोड़ दिया।
ईई ईईई ईईईइ …
गौरी ने एक मीठी रोमांच भरी चींख के साथ अपना काम रस मेरे मुंह में उंडेल दिया।

गौरी अब जोर-जोर से सांस लेने लगी थी और रोमांच के मारे उसका सारा बदन लरज रहा था। अब उसका शरीर थोड़ा ढीला पड़ने लगा था। उसने अपने पैर मेरी गर्दन से हटा कर सीधे कर लिए थे। उसके मुंह से मीठी सीत्कार सी निकलने लगी थी। पूर्ण संतुष्टि के बाद अब वह मेरे सिर पर अपना हाथ फिराने लगी थी।

मेरा लंड तो प्री-कम के तुपके छोड़-छोड़ कर बावला हुआ जा रहा था। अब धारा 357 हटाने का सही वक़्त आ गया था। मैंने अपने होंठ गौरी की सु-सु से हटा लिए और अपनी टी-शर्ट निकाल कर फेंक दी।

अचानक गौरी ने आँखें खोली और वह झट से उठी और फर्श पर खड़ी हो गई। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता गौरी ने मुझे हल्का सा धक्का देकर मेरे बरमूडा (घुटनों तक का निक्कर) जोर से खींचा और मेरे पप्पू को पकड़ कर गप्प से अपने मुंह में भर लिया। वह फर्श पर उकडू होकर बैठ गयी और मैं अधलेटा सा बेड पर पड़ा ही रह गया।
“ग … गौरी … ओह … रुको … प्लीज … ” मैंने हकलाते हुए से कहा।

गौरी ने मेरे नितम्बों को कसकर पकड़ लिया और जोर-जोर से मेरे पप्पू को चूसने लगी। उसने इशारे से मुझे हिलाने का मना कर दिया।

एक बात तो आप भी जानते हैं किसी भी पुरुष के लिए अपना लिंग चुसवाना एक दिवास्वप्न की तरह होता है। विशेषकर 35-40 की उम्र के बाद तो पुरुष की तीव्रतम इच्छा होती है कि उसके पत्नी या साथी सम्भोग से पहले उसका लंड जरूर चूसे।

नर अपना वीर्य मादा की कोख में ही डालना पसन्द करता है। मेरा मन तो इस बार वीर्य को गौरी के उदर में नहीं गर्भाशय में उंडेलने का था पर गौरी ने मेरे लंड को इतना जोर से पकड़ रखा था और जल्दी-जल्दी चूस रही थी कि मैं असमंजस में ही पड़ा रहा गया कि इसकी सु-सु में लंड डालूँ या मुंह में ही निकल जाने दूं।

जिस तरह आज गौरी मेरे पप्पू को चूस रही थी लगता है उसे लंड चूसने का बहुत बड़ा अनुभव हो गया है।

अब मैं धीरे-धीरे उठ कर खड़ा हो गया। मैंने उसका सिर अपने हाथों में पकड़ लिया और अपने लंड को उसके मुंह में आगे पीछे करने लगा। मेरा लंड अब पूरा उसके हलक तक जा रहा था।
“गौरी मेरी जान अब चूसना बंद करो … आओ … तुम्हें प्रेम का अगला पाठ तुम्हें पढ़ा दूं … प्लीज गौरी …”
गौरी ने मेरी टांगों को कसकर भींच लिया और इशारे से ऊं-ऊं की आवाज के साथ मना कर दिया।

मेरे लिए विचित्र स्थिति थी एक तरफ लंड चुसाई का आनंद और दूसरी तरफ सु-सु का भोग करने की तमन्ना? मुझे लगने लगा कि मेरे लंड में भारीपन सा आने लगा है और मैं जल्दी ही मेरा वीर्यपात हो जाएगा।

मेरे दिमाग में कई प्रश्न खड़े हो गए थे। ऐसी स्थिति में अगर मैंने गौरी को सम्भोग के लिए मनाया तो क्या पता वह राज़ी हो या ना हो? और अगर वह इसके लिए मान भी गई तो क्या पता इस दौरान मेरा वीर्य बाहर ही ना निकल जाए? मेरा तनाव अपने शिखर पर था और मुझे डर सा भी लगने लगा था कहीं अन्दर डालते ही मेरा पप्पू शहीद हो जाए तो?

मैं तो चाहता था कि गौरी के साथ मेरा प्रथम मिलन एक यादगार बन जाए और मुझे ही नहीं गौरी को भी मिलन के ये पल ता उम्र याद रहें और वह इन्हें याद करके भविष्य में भी रोमांचित होती रहे।

मैंने अपने हथियार डाल दिए। चलो कोई बात नहीं एकबार गौरी को वीर्यपान करवा देता हूँ उसके बाद थोड़ी देर रुक कर धारा 357 हटाने का अगला सोपान पूर्ण कर लेते हैं। गौरी कौन सी भागी जा रही है?
और पप्पू तो आधे घंटे बाद फिर से दहाड़ने लगेगा।

मैंने अपना लंड गौरी के मुंह में अन्दर बाहर करना चालू कर दिया। आज तो गौरी कमाल ही कर रही थी। शुरुवात में तो उसने 2-3 बार थोड़ा झिझकते और डरते हुए चूसा था पर आज तो जैसे उसकी झिझक और शर्म बिलकुल ख़त्म हो गई है। लंड को पूरा मुंह में लेकर धीरे धीरे चूसते हुए बाहर निकलना, कभी सुपारे को चूसना कभी दांतों से थोड़ा दबाना और फिर एक गहरी चुस्की लगाना और साथ-साथ नीचे गोटियों को पकड़कर सहलाने का अंदाज़ तो कमाल का था।

मैंने उसका मुख चोदन जारी रखा। अब मैं धीरे-धीरे अपने लंड को गौरी के मुंह में अन्दर बाहर करने लगा और बीच-बीच में अपने कूल्हों को हिला-हिला कर हल्के धक्के भी लगाने लगा। मैंने उसके सिर पर हाथ फिरना चालू कर दिया और बीच-बीच में उसके होंठों पर अपनी अंगुलियाँ फिरा कर देख लेता था कि वह पूरा लंड मुंह में ले पा रही है या नहीं।

गौरी ने आँखें बंद किये लंड चूसना जारी रखा।
“गौरी मेरी जान … आह … बहुत खूबसूरत हो तुम … आह … बहुत अच्छे ढंग से चूस रही हो मेरी जान … हाँ … पूरा मुंह में लेकर चूसो प्लीज …”
गौरी अब पूरे जोश में आ गयी और जोर जोर से लंड चूसने लगी। मुझे हैरानी हो रही थी आज गौरी ने मुंह दुखाने का बिलकुल भी नहीं कहा।

और फिर 15-20 मिनट की इस लाजवाब चुसाई के बाद मुझे लगने लगा मेरा तोता अब उड़ने वाला है। मेरा लंड कुछ ज्यादा ही मोटा हो गया था और अब तो वह फूलने और पिचकने लगा था। मैंने गौरी को इसके बारे में बताया तो गौरी ने आँखों के इशारे से हामी भरी कि आने दो।

मैंने गौरी का सिर अपने दोनों हाथों में कसकर भींच लिया और और गौरी ने मेरे पप्पू को अपने मुंह की गहराई तक ले गयी और चूसने लगी। और फिर एक लम्बी हुंकार के साथ मेरे लंड ने पिचकारियाँ मारनी शुरू कर दी।
गौरी तो उस अमृत को गटा-गट पीती चली गई जैसे कई बरसों की प्यासी हो। उसने एक भी कतरा बाहर नहीं जाने दिया और फिर लंड को चाटते हुए उसने नशीली आँखों से मेरी ओर देखा जैसे पूछ रही हो ‘कैसा लगा?’

मैंने उसे सहारा देकर खड़ा किया और उसके होंठों को चूमते हुए उसका धन्यवाद किया। गौरी एक बार फिर से मेरे सीने से लग गई। मैंने उसके सिर, पीठ, कमर और नितम्बों पर हाथ फिरना चालू रखा। गौरी आँखें बंद किये सुनहरे सपनों में खोयी लगती थी। वह धीरे धीरे मेरे सीने पर अपनी अंगुलियाँ फिराने लगी थी।

अचानक मोबाइल की घंटी बजी …

कहानी जारी रहेगी.
 

Lutgaya

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तीन पत्ती गुलाब
भाग-22

भेनचोद यह किस्मत भी हाथ में लौड़े लिए हर समय तैयार ही रहती है। गौरी इस समय रोमांच के उच्चतम स्तर पर पहुँच चुकी थी और बस मेरी एक पहल पर अपना सब कौमार्य मुझे सौम्प देने के लिए आतुर थी। मैं इस सोपान को आज ही सम्पूर्ण कर लेना चाहता था बस 10-15 मिनट की बात रह गयी थी।

पर ऐन वक़्त पर इस मोबाइल की घंटी से हम दोनों चौंक पड़े.
“ओह … दीदी ता फोन तो नहीं आ गया?” गौरी मेरी बांहों से छिटक कर दूर हो गई और उसने झट से अपने कपड़े उठाए और स्टडी रूम में भाग गई।

मेरा दिल जोर-जोर से किसी अनहोनी की आशंका से धड़कने लगा था। इस समय किसका फोन हो सकता है? मैंने कांपते से हाथों से मोबाइल उठाकर देखा, यह तो ऑफिस से फ़ोन था।
जैसे ही मैंने हेलो कहा उधर से आवाज आई- प्रेम जी सर … मैं बहादुर बोल रहा हूँ अपने गोडाउन में आग लग गई है आप जल्दी आ जायें.
“ओह … कब … आग कैसे लग गई?”
“हो सकता है शोर्ट सर्किट के कारण लगी हो.”
“हाँ … हाँ मैं पहुँच रहा हूँ जल्दी … तुम फायर ब्रिगेड को फ़ोन करो.”

अचानक हुए इस घटनाक्रम से मैं एक बार तो किमकर्तव्यविमूढ़ सा बन कर रह गया। थोड़ी देर बाद कुछ संयत हुआ। मैंने दुबारा हेलो बोला तब तक फोन कट चुका था।

अब तुरंत ऑफिस जाने की मजबूरी थी। फिर पूरा दिन आग से हुए नुक्सान का अनुमान लगाने, हेड ऑफिस इन्फॉर्म करने, इन्शुरेन्स क्लेम, पुलिस रिपोर्ट जैसी मगजमारी में ही बीत गया।

खैर शाम को जब मैं घर लौटा तो मधुर को ऑफिस के उस घटनाक्रम के बारे में बताया। खाना निपटाने के बाद मधुर तो सोने चली गई और गौरी अपनी किताबें लेकर मेरे पास आ बैठी।

मेरे दिमाग में तो आज सुबह की बातें ही घूम रही थी। गौरी ने आज हाफ बाजू की शर्ट और पाजामा पहना था। कल गौरी को कुछ होम वर्क दिया तो पहले तो उसे चेक किया बाद में उसे आगे के कुछ लेसन पढ़ाये।

मैंने गौर किया गौरी आज कुछ चुप सी है; उसका ध्यान पढ़ाई में नहीं लग रहा है।
“गौरी बस आज इतना ही पढ़ाई करेंगे आओ थोड़ी देर बात करते हैं.”
“हओ” कहते हुए गौरी ने अपनी किताबें बंद कर दी। वह तो जैसे तैयार ही बैठी थी।

“गौरी, आज तो पूरा दिन ही ऑफिस की मगजमारी में बीत गया।”
“ज्यादा नुत्सान (नुक्सान) तो नहीं हुआ?” गौरी ने पूछा।
“नुक्सान तो बहुत भारी हुआ पर इन्शुरेन्स कंपनी से क्लेम मिल जाएगा। पर दूसरे नुक्सान का क्लेम पता नहीं कब मिलेगा?” मैंने हंसते हुए कहा।
“दूसरा तौन सा नुत्सान हुआ है?”
“सुबह-सुबह कितना बड़ा अनमोल खजाना मिलने वाला था … बहुत बड़ा नुक्सान हो गया।”
“हट … ” गौरी ने शर्माते हुए कहा।

मैंने गौरी को पकड़कर अपनी बांहों में भर लिया।
“गौरी आओ उस अधूरे सबक को अभी पूरा कर लेते हैं.” इने उसके गालों पर चुम्बन लेते हुए कहा।

मैंने ध्यान दिया आज गौरी ने कानों में सोने की पतली-पतली बालियाँ पहन रखी हैं। ऐसी बालियाँ तो मिक्की पहना करती थी।
“गौरी ये कानों की बालियाँ कब ली?”
“वो तल पुत्रदा एकादशी थी ना तो दीदी ने मुझे ये बालियाँ दी हैं।”

“भाई वाह … और क्या-क्या दिया?”
मैं सोच रहा था कमाल है यह साली मक्खीचूस मधुमक्खी किसी को एक फटा कपड़ा नहीं देती गौरी पर इतनी मेहरबान कैसे हो रही है? समझ से परे लगता है।
“ओल … एक नाइटी भी दी थी।”
“अच्छा? पहनकर दिखाओ ना प्लीज …”
“ना … अभी नहीं बाद में?”
“एक तो तुम आजकल मिन्नतें बहुत करवाती हो?”
“तल दिखा दूंगी … प्लोमिज”
“अच्छा उसका रंग कैसा है यह तो बता दो?”
“गुलाबी है।”
“हे भगवान्! तुम्हारे ऊपर गुलाबी रंग कितना खूबसूरत लगेगा मेरा दिल तो अभी से धड़कने लगा है.”
ईईईइ … स्स्सस्स्स्स … गौरी शर्मा गई।

“आपतो एत बात बताऊँ?”
“हओ?” मेरा दिल धक्-धक् करने लगा।
“आप दीदी को तो नहीं बताओगे ना?”
“किच्च”
“वो दीदी ने मुझे बताया था कि उन्होंने अपनी सुहागलात तो ऐसी ही नाइटी पहनी थी.” कह कर गौरी शर्मा कर गुलज़ार ही हो गई।
आईला …

साली यह मधुर मेरा ईमान तुड़वा कर ही दम लेगी। पता नहीं मधुर के मन में क्या चल रहा है। मेरा लंड तो पजामे में उछलने ही लगा था। मन कर रहा था कौन कल का इंतज़ार करे आज ही और अभी इसे पटक कर धारा 370 हटा देता हूँ।

मैंने गौरी के नितम्बों पर हाथ फिराना चालू कर दिया। गौरी की मीठी सीत्कार निकालने लगी थी।

“गौरी और क्या बताया मधुर ने अपनी सुहागरात के बारे में?”
“आपतो सब पता है.”
“प्लीज बताओ ना?”

“दीदी ने बताया कि उस रात आपने उन्हें बहुत से गज़रे पहनाये थे?”
“गौरी तुम्हें भी गज़रे बहुत पसंद हैं क्या?”
गौरी आज ‘हओ’ बोलने के बजाय शरमाकर अपनी मुंडी नीचे कर ली।

मेरा हाथ अब उसकी सु-सु के पास पहुँच गया था। उसकी गर्मी और खुशबू पाकर मेरा पप्पू तो किलकारियां ही मारने लगा था। गौरी ने कस कर अपनी जांघें भींच ली।
“वो नाइटी पहन कर दिखा दो ना? प्लीज?”
“मैंने बोला ना कल दिन में दिखा दूंगी?”
“पर कल तो सन्डे है … मधुर तो सारा दिन घर पर रहेगी?”
“अले … तल दीदी पूले दिन गुप्ताजी ते यहाँ जाने वाली हैं?”
“क्या मतलब?”

फिर गौरी ने बताया कि पड़ोस वाले गुप्ताजी की लड़की नेहा की 3-4 दिन बाद शादी है तो कल दिन में तो मेहंदी और हल्द-हाथ का प्रोग्राम होगा और फिर रात को उनके यहाँ रतजगा का प्रोग्राम होगा। नेहा ने विशेषरूप से मधुर दीदी को को पूरे फंक्शन में और रात को भी अपने साथ रहने का बोला है।

हे लिंग देव! आज तो तेरी दिन में भी जय हो और रात में भी। मैंने गौरी को एक बार फिर से अपनी बांहों में भींच लिया। मेरा हाथ उसकी सु-सु तक पहुँच गया था। जैसे ही मेरी अंगुलियाँ उसके पपोटों को टटोलने लगी गौरी उछलकर खड़ी हो गयी और मुझे धक्का सा देते हुए बोली- अब आप सो जाओ … गुड नाईट!
और फिर वह स्टडी रूम में भाग गई।

कल का दिन और रात तो हमारे ख्वाबों की हसीन रात होने वाली है। इन पलों का हम दोनों को ही कितना बेसब्री से इंतज़ार था आप समझ सकते हैं। आज की रात पता नहीं कैसे बीतेगी?

और फिर वे प्रतीक्षित पल आ गए जिसका हम दोनों ही पिछले एक-डेढ़ महीने से इंतज़ार कर रहे थे।

आज दिन में मैंने गौरी के लिए 10-15 मोगरे के गज़रे, इम्पोर्टेड चॉकलेट, एक सोने की अंगूठी और बढ़िया क्वालिटी का लेडीज पर्स और बहुत सा अल्लम-पल्लम ले लिया था।
मैं अपने इस मिलन को एक यादगार बनाना चाहता था। जिस प्रकार मधुर ने उसे अपनी सुहागरात के बारे में बताया था मुझे लगता है गौरी इस मिलन के लिए बहुत उत्साहित है।

मुझे एक बात अब भी समझ नहीं आ रही मधुर ने गौरी को अपने प्रथम मिलन के उन पलों को गौरी के साथ क्यों सांझा किया होगा? मेरे प्रिय पाठको और पाठिकाओ अगर आप कुछ बता सकें तो मैं आप सभी का आभारी रहूँगा।

रात के कोई 10 बजे हैं। खाना वाना निपटाने के बाद मधुर तय प्रोग्राम के अनुसार गुप्ताजी के यहाँ आज होने वाले रतजगा में शामिल होने चली गई है। मैंने आज सुनहरे रंग का कुर्ता और पजामा पहना है और बढ़िया परफ्यूम बजी लगाया है।

मैं हाल में बैठा गौरी का इंतज़ार कर रहा हूँ। गौरी अपने कमरे में (स्टडी रूम) में कपड़े बदलने चली गई है। मैंने उसे मोगरे वाले गज़रे पहनने के लिए भी दे दिए हैं। गौरी-प्रेम मिलन की प्रतीक्षा में मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा है। ऐसे समय में यह इंतज़ार के पल कितने लम्बे लगने लगते हैं।

अचानक स्टडी रूम का दरवाजा खुला और गौरी अपनी मुंडी झुकाए धीरे-धीरे मेरी ओर आने लगी। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। गौरी ने गहरे गुलाबी रंग की वही नाइटी पहनी थी। पैरों में चांदी की पायल और कानों में वही सोने की बालियाँ। आज उसने बालों का जूड़ा बना रखा था और उसके ऊपर दो गज़रे भी लगा रखे थे। दोनों हाथों की कलाइयों, कोहनी के ऊपर दोनों बाजुओं पर भी गज़रे लगा रखे थे। एक गोल गज़रा उसने अपनी कमर पर भी बाँध लिया था। होंठों पर गहरे लाल रंग की लिपस्टिक आँखों में काजल और माथे पर एक छोटी सी बिंदी। मेहंदी लगे हाथों की कलाइयों में लाल और हरे रंग की चूड़ियाँ। जैसे दुष्यंत की शकुन्तला ने पुनर्जन्म ले लिया हो।

मैं तो उसे ऊपर से नीचे तक अपलक देखता ही रह गया। जैसे क़यामत अब 2 कदम दूर ही रह गई है।

गौरी आँखें बंद किये मुंडी झुकाए मेरे पास आकर खड़ी हो गई। मैं धीरे से उठा और गौरी को अपनी बांहों में ले लिया। और फिर एक हाथ नीचे करके उसे अपनी बांहों में उठा लिया। गौरी ने अपना सिर मेरे सीने से लगा दिया। मैं उसे उठाये अपने बेड रूम में आ गया।

अब मैंने गौरी को बेड पर बैठा दिया। मैं आज बाज़ार से सिन्दूर की एक डिब्बी और गज़रों के साथ दो फूलों की मालाएं भी लेकर आया था जो मैंने मधुर की नज़रों से बचा कर अपनी अलमारी में रख छोड़ी थी। मैं अब अलमारी से दोनों चीजें उठाकर ले आया।

“गौरी! मेरी प्रियतमा आओ मैं तुम्हारी मांग भर कर तुम्हें सदा-सदा के लिए अपना बना लेता हूँ ताकि तुम्हें और मुझे दोनों को ही कहीं ऐसा ना लगे कि हम दोनों कोई अपराध या अनैतिक कार्य कर रहे हैं।”

वह उठकर नीचे फर्श पर खड़ी हो गई। लाज से सिमटी गौरी के पास बोलने के लिए शायद शब्द ही कहाँ बचे थे। मैंने सिन्दूर से उसके पहले तो मांग भरी और और फिर फूलों की माला उसके गले में डाल दी और दूसरी माला मैंने गौरी को पकड़ा दी।
गौरी ने वह माला मेरे गले में डाल दी और फिर ने झुक कर मेरे पैरों को छू लिया।

अब मैंने अपनी जेब से वह सोने की अंगूठी निकाली और गौरी के दायें हाथ की अनामिका में पहना दी। मैंने गौरी के हाथ को अपने हाथ में लेकर उस पर एक चुम्बन ले लिया। गौरी लाज से सिमट गई।
“गौरी मेरी प्रियतमा! आज की रात हम दोनों के लिए सुनहरे सपनों की रात है। आओ हम दोनों इन सुनहरे ख़्वाबों को हकीकत में बदलकर जी भर कर भोग लें।”

गौरी ने अपनी बांहें मेरे गले में डाल दी। हम दोनों बिस्तर पर आ गए।

कहानी जारी रहेगी.
 

Lutgaya

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बहुत ही जबरदस्त अपडेट है । अगले अपडेट ( सुहाग रात ) का बहुत ही बेसब्री से इंतजार रहेगा
 
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तीन पत्ती गुलाब
भाग -23



तीन पत्ती गुलाब-23​

मैंने अपनी जेब से वह सोने की अंगूठी निकाली और गौरी के दायें हाथ की अनामिका में पहना दी। मैंने गौरी के हाथ को अपने हाथ में लेकर उस पर एक चुम्बन ले लिया। गौरी लाज से सिमट गई।
“गौरी मेरी प्रियतमा! आज की रात हम दोनों के लिए सुनहरे सपनों की रात है। आओ हम दोनों इन सुनहरे ख़्वाबों को हकीकत में बदलकर जी भर कर भोग लें।”
गौरी ने अपनी बांहें मेरे गले में डाल दी। हम दोनों बिस्तर पर आ गए।
मैंने उसके होंठों और गालों को चूम लिया। मैं धीरे-धीरे उसके बदन को सहलाने लगा। गौरी की आँखों में सुनहरे सपनों के साथ लाल डोरे से तैरने लगे थे। उसकी साँसें तेज़ होने लगी थी और दिल की धड़कन सुनाई देने लगी थी।
“गौरी प्लीज अब इन कपड़ों को उतार दो.”
“मुझे शल्म आती है पहले लाईट बंद करो.”
मैंने उठकर लाईट बंद कर दी और जीरो वाट का हल्का बल्ब जला दिया और फिर गौरी के पास आ बैठा।
“गौरी तुम बहुत खूबसूरत हो.” कहकर मैंने गौरी को फिर से अपनी बांहों में भर लिया और फिर उसके लरजते अधरों पर अपने होंठ रख दिए।
गुलाब की पंखुड़ियों की तरह नर्म मुलायम होंठ शहद की तरह मीठे लग रहे थे।
मैंने एक हाथ से उसके उरोजों को मसलना और दबाना चालू कर दिया और उसके होंठों की फांकों को मुंह में लेकर चूसने लगा।
हम दोनों 5-6 मिनट तक इसी तरह एक दूसरे को चूमते रहे और फिर मैंने उसकी नाइटी की डोरी खींच दी।
गौरी ने ज्यादा ना नुकुर नहीं की।
और फिर मैंने धीरे-धीरे उसके पेंटी भी उतार दी।
गौरी का निर्वस्त्र शरीर मेरी आँखों के सामने पसरा था … उसकी खूबसूरती देखकर तो किसी की भी आँखें ही चौंधियाँ जायें।
मैंने भी अपने कपड़े उतार दिए और गौरी को अपनी बांहों में भर लिया। मेरा लंड 90 डिग्री में जंग लड़ने को मुस्तैद किसी सिपाही की तरह खड़ा जैसे सलाम बजाने लगा था। अब मैंने अपने होंठ उसके अधरों से लगा दिए और फिर उसके पूरे बदन पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी।
उसके होंठ काँप से रहे थे और पूरा शरीर लरजने लगा था। गौरी की अब मीठी सीत्कारें निकालने लगी थी।
मैंने उसके पेट और नाभि पर चुम्बन लिया और फिर हौले-हौले अपनी जीभ उसकी सु-सु तक ले गया।
गौरी की रोमांच के मारे चीख सी निकल गई; उसने अपनी जांघें जोर से भींच ली।
मैंने अपने होंठ उसकी सु-सु के मोटे-मोटे पपोटों पर लगा दी। शायद गौरी ने आज कोई खुशबू वाली क्रीम लगाईं होगी तभी तो उसके कौमार्य और उस क्रीम के मिलीजुली भीनी-भीनी खुशबू मेरे नथुनों में समा गई।
फिर मैंने कई चुम्बन उसकी जाँघों पर लिये और फिर नीचे घुटनों और पिंडलियों पर भी अपनी जीभ फिराने लगा। गौरी तो रोमांच में डूबी इस प्रकार छटपटा रही रही जैसे कोई मछली बिना जल के तड़फ रही हो।
मेरे चुम्बन और गर्म साँसों का आभास पाते ही उसका सारा शरीर तरंगित सा होकर झनझना उठा था।
अब मैंने फिर से उसकी जाँघों को चूमते हुए जैसे ही अपनी जीभ उसकी सु-सु की फांकों पर लगाईं तो गौरी की जांघें अपने आप खुलने सी लगी और उसका रति रस बहने लगा था।
“सल … मुझे तुछ हो लहा है … आह … मैं मल जाउंगी सल … तुच्छ करो … प्लीज … आह … आह … ईईईई ईईईई …”
अब मैं गौरी के ऊपर आ गया और अँगुलियों से धीरे से उसके सु-सु को टटोला। सु-सु तो रतिरस से जैसे लबालब भरी थी। मैंने अपने एक अंगुली उसकी सु-सु के चीरे पर फिराई और फिर हौले से अपनी अंगुली थोड़ी अन्दर डालने की कोशिश की।
गौरी का शरीर थोड़ा सा अकड़ने लगा- आआअ … ईईईईई … मैं मल जाउंगी सल … आह!
“गौरी मेरी जान … तुम बहुत खूबसूरत हो … मुझे तो अपने भाग्य पर विश्वास ही नहीं हो रहा है कि मेरी प्रियतमा आज मेरी बांहों में है.”
“ईईईईई …”
“गौरी क्या तुम हमारे इस प्रथम मिलन के लिए तैयार हो?”
“मेले साजन … अब तुछ मत पूछो, जो तलना है जल्दी करो … आह …” कह कर गौरी ने अपनी बांहें मेरे गले में डाल दी और मुझे जोर से भींच सा लिया।
“गौरी एक मिनट रुको मैं निरोध लगा लेता हूँ.” मैंने बेड के ड्रावर से निरोध निकाला और अपने लंड पर लगाने लगा।
गौरी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली- मेरे साजन इसे लहने दो … मैं अपने इस प्रथम मिलन के अहसास और आनन्द को बिना तिसी अड़चन और अवरोध के महसूस तरना चाहती हूँ।
कह कर गौरी ने शर्मा कर अपने हाथ अपनी आँखों पर रख लिए।
मैंने हाथ में पकड़ा निरोध फेंक दिया और गौरी के ऊपर आ गया- गौरी, अगर कुछ गड़बड़ हो गई तो?
“तोई बात नहीं … मैं पिल्स ले लूंगी.”
अब गौरी ने तकिये के पास रखा सफ़ेद रंग का तौलिया अपनी कमर और नितम्बों के नीचे बिछा लिया। अब मैंने फिर से गौरी के ऊपर आ गया और एक हाथ उसके सिर के नीचे लगाकर उसके सिर को थोड़ा ऊपर उठाया और इसके अधरों को अपने मुंह में लेकर चूमने लगा।
मेरा खड़ा लंड उसकी सु-सु पर रगड़ खाने लगा। अब मैंने एक हाथ बढ़ाकर अपने लंड का सुपारे को उसकी फांकों पर फिराया। एक गुनगुना सा अहसास पाते ही लंड जोर-जोर से ठुमके लगाने लगा। मैंने अपने लंड को उसकी फांकों के बीच में फिराना चालू किया तो गौरी की मीठी सीत्कार निकालने लगी; उसकी जांघें अब स्वतः ही खुलने लगी थी।
“गौरी मेरी जान … क्या तुम अपने इस मिलन के लिए तैयार हो?”
“मेरे साजन अब तुछ मत पूछो … आह …”
मैंने पास रखी क्रीम की डिब्बी से थोड़ी सी क्रीम अपने सुपारे पर लगाईं और थोड़ी सी क्रीम अँगुलियों पर लगाकर गौरी की सु-सु की फांकों और चीरे पर लगा दी। अब मैंने उसकी सु-सु का छेद टटोला और उसकी फांकों को अंगूठे और अँगुलियों से थोड़ा सा चौड़ा किया धीरे से अपना सुपारा उसके छेद पर टिका दिया।
गौरी का ही नहीं मेरा दिल भी जोर जोर से धड़कने लगा था।
जब लंड छेद पर अच्छी तरह सेट हो गया तो मैंने अपना दूसरे हाथ से उसके नितम्बों के नीचे से उसकी कमर को पकड़ लिया और धीरे से एक धक्का लगाया। अब मेरा सुपारा उस स्वर्ग के दरवाजे के अन्दर दाखिल होने लगा।
“आह … धीरे … प्लीज … आह …” ऐसे लगा जैसे गौरी की आवाज डूब सी रही है। उसका सारा शरीर कांपने सा लगा था।
अब पता नहीं यह किसी डर के कारण था या रोमांच के उच्चतम शिखर पर पहुँचने के कारण था।
गौरी कुछ कसमसाने सी लगी थी। मैंने गौरी की कमर को जोर से पकड़ लिया। मैं जानता था उसके कौमार्य की झिल्ली अब टूटने वाली है तो गौरी को थोड़ा दर्द तो जरूर होगा और वह कहीं इधर-उधर होकर मेरा काम ना खराब कर दे, मैंने उसे और जोर से अपनी बांहों में भींच लिया।
“गौरी मेरी जान, आज तुम मेरी पूर्ण समर्पिता बनने वाली हो … प्रेम के इस पायदान पर तुम्हें थोड़ा कष्ट तो जरूर होगा पर मेरे लिए प्लीज … अपने इस प्रेम के लिए थोड़ा सा कष्ट सह लेना.”
“आह … मेरे साजन … मेरे प्रेम … ईईईईइ … ” गौरी इस समय रोमांच और उत्तेजना के उच्चतम स्तर पर पहुँच चुकी थी।
मैंने उसके होंठों को पूरा अपने मुंह में भर लिया और फिर एक और धक्के के साथ मेरा लंड किसी कुशल अनुभवी शिकारी की तरह सरसराता हुआ उसकी सु-सु की गहराई में उतरने लगा।
गौरी की दर्द के मारे चीख सी निकलने लगी पर मैंने उसके होंठों को मुंह में दबा रखा था तो केवल गूं-गूं की आवाज ही निकल रही थी।
गौरी को थोड़ा दर्द तो जरूर हो रहा होगा वह कसमसाने सी लगी थी पर मेरी गिरफ्त से निकल पाना अब उसके लिए कहाँ संभव था। मेरे लंड के एक और धक्के ने कौमार्य की सारी हदें पार करते हुए (फाड़ते हुए) अपनी मंजिल ए मक़सूद को पा लिया। गौरी दर्द के मारे छटपटाने सी लगी थी।
गौरी ने किसी तरह अपना मुंह थोड़ा घुमाया तो उसके होंठ मेरे मुंह से बाहर निकल गए और गौरी की एक हल्की सी चीख निकल गई- आआआ आआईईईई ईईईइ …
“बस मेरी जान … जो होना था हो गया … चिंता मत करो … यह दर्द अब मीठे अहसास में बदलने वाला है।” मैंने अब भी गौरी को अपनी बांहों में जोर से जकड़ रखा था।
गौरी अपने नितम्बों और कमर को हिलाने की कोशिश करने लगी थी पर मेरी गिरफ्त से अब वह निकल नहीं सकती थी। यह मन का नहीं तन का विरोध था। भंवरे ने अपना डंक उसकी कोमल पंखुड़ियों पर मार दिया था और शिकारी ने अपना लक्ष्य भेदन कर दिया था।
अब तो बस एक कोमल सा अहसास गौरी के पूरे शरीर में भरने लगा था। कलि अब खिलकर फूल बन गई थी और भंवरे को अपनी पंखुड़ियों में कैद किये अपना यौवन मधु पिलाने को आतुर हो रही थी।
उसके सु-सु की पंखुड़ियां ऐसे फ़ैल गई जैसे किसी तितली ने अपने पंख फैला दिए हों। उसकी सारी देह में कोई मीठा सा जहर भरने लगा था और एक मीठी कसक और जलन के साथ वह प्रकृति के इस अनूठे आनन्द को भोगने जा रही थी।
उसका सारा शरीर झनझना उठा था। आज वह एक पूर्ण समर्पिता बन चुकी थी।
मुझे लगा कुछ गर्म-गर्म सा स्त्राव मेरे लंड के चारों ओर बहने लगा है। उसके गालों पर कुछ बूँद आसुओं की ढलक आई थी।
आप सभी तो बहुत बड़े अनुभवी हैं इन सब बातों को जानते हैं कि यह कौमार्य की झिल्ली फटने से निकलने वाला खून था। गौरी ने अपना अक्षत कौमार्य मुझे सौम्प दिया था।
दर्द के अहसास को दबाये गौरी मेरी चौड़ी छाती के नीचे दबी मेरी बगलों से आती मरदाना गंध में जैसे डूब सी गई थी। आप तो जाने होंगे पुरुष की बगलों से आती पौरुष गंध स्त्री को कामातुर बना देती है और यही हाल पुरुष का भी होता है अपनी प्रियतमा की बगलों से आती कौमार्य की तीखी गंध उसे मतवाला सा बना देती है और सम्भोग के लिए प्रेरित करती है।
“गौरी मेरी प्रियतमा तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद …” कह कर मैंने उसके गालों पर आई शबनम जैसी आंसुओं की बूंदों को चूम लिया। गौरी के शरीर में एक मीठी सनसनाहट सी दौड़ गई।
“ओह … मैं मल जाऊँगी … बाहल निकालो … प्लीज” गौरी की आवाज थोड़ी मंद सी थी। मुझे लगा उसका दर्द अब असहनीय नहीं रहा है और मेरा पप्पू अपनी मंजिल पाकर अन्दर अच्छे से समायोजित हो गया है।
“गौरी बस … अब दर्द ख़त्म हो जाएगा और तुम्हें हमारा यह मिलन वो सुखद अहसास देगा जिसे तुम अपने जीवन पर्यंत याद रखोगी। गौरी मेरी स्मृतियों में भी तुम्हारा यह समर्पण ताउम्र समाया रहेगा। तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद मेरी प्रियतमा।”
मैंने हौले-हौले उसके सिर पर हाथ फिरना चालू कर दिया। गौरी का दर्द अब कुछ कम होने लगा था। अब मैंने गौरी के उरोज की फुनगी (कंगूरा) को अपने मुंह में भर लिया और पहले तो उसे चूसा और बाद में उसे दांतों के बीच लेकर दबा दिया।
गौरी की तो एक मीठी किलकारी ही निकल गयी।
मैं उसे लगातार चूमे जा रहा था। कभी एक उरोज को मुंह में भर लेता और दूसरे को हौले से मसलता और फिर दूसरे को मुंह में लेकर चूसने लग जाता।
गौरी ने एक हाथ मेरी पीठ पर रख लिया और दूसरे हाथ की अंगुलियाँ मेरे सिर पर फिराने लगी थी।
“गौरी अब दर्द तो नहीं हो रहा ना?”
गौरी अब क्या बोलती? ऐसी स्थिति में शब्द मौन हो जाते हैं और कई बार व्यक्ति चाहकर भी कुछ बोल नहीं पाता। जुबान साथ नहीं देती पर आँखें, धड़कता दिल और कांपते होंठ सब कुछ तो बयान कर देते हैं।
गौरी ने अचानक मेरा सिर अपने दोनों हाथों में पकड़ा और जोर से मेरे होंठों को अपने मुंह में लेकर अपने दांतों से काट लिया। यह उसके स्वीकृति और समर्पण की मौन अभिव्यक्ति थी।
अब मैंने अपने कूल्हे थोड़े से ऊपर किये और अपने लंड को थोड़ा सा बाहर निकला तो गौरी ने मेरी कमर पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया। उसने इशारों में मुझे हिलने से मना किया। एक हल्के धक्के के साथ लंड फिर से अन्दर समा गया।
गौरी की एक मीठी आह … सी निकल गई।
थोड़ी देर मैं इसी प्रकार बिना कोई बेजा हरकत किये अपने लंड को अन्दर डाले रहा। लंड तो अन्दर ठुमके पर ठुमके लगा रहा था। अब तो गौरी की सु-सु भी उस अनजान घुसपैठिये से परिचित हो गई लगती थी तभी तो उसने भी संकोचन चालू कर दिया था।
इस नैसर्गिक आनन्द को शब्दों में कहाँ बयान करना कहाँ संभव है। यह प्रकृति का वह आनन्द है जिसे प्राणीमात्र ही नहीं देवता भी भोगने के लिए तरसते हैं। इस दुनिया में प्रेम मिलन से आनन्ददायी कोई दूसरी क्रिया तो हो ही नहीं सकती।
गौरी अब कुछ संयत हो चुकी थी। मैंने उसके गालों और होंठों को फिर से चूमना चालू कर दिया था। जैसे ही मैंने उसके होंठों को मुंह में भरने की कोशिश की तो गौरी ने अपना मुंह थोड़ा सा घुमा लिया तो उसका कान मेरे होंठों के पास आ गया। कानों में पहनी बालियाँ जैसे मुझे ललचा रही थी। मैंने उसके कान की लोब को बाली सहित अपने मुंह में भर लिया और उसे चुभलाने लगा। बीच-बीच में उसे अपने दांतों से काटने भी लगा।
अब तो गौरी रोमांच के उच्चतम शिखर पर पहुँच गई थी। उसने अपने नितम्ब भी उचकाने शुरू कर दिए थे। उसके हिलते नितम्ब और कांपते होंठ यह इशारा कर रहे थे कि अब इसी तरह चुप मत रहो।
मैंने अब हौले-हौले अपने पप्पू को अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया था। गौरी पहले तो थोड़ा कसमसाई पर बाद में वह भी सहयोग करने लगी। उसका दर्द अब ख़त्म तो नहीं हुआ था पर लगता है असहनीय नहीं रहा तभी तो वह भी अपने नितम्ब उचकाकर मेरा साथ देने लगी थी। उसकी अब मीठी सीत्कारें निकालने लगी थी। अब उसने मेरे धक्कों के साथ अपने नितम्बों को लयबद्ध तरीके से हिलाना चालू कर दिया था और अपनी जाँघों को थोड़ा और खोलकर अपने पैर ऊपर उठा लिए थे।
ऐसा करने से मेरा पप्पू तो और भी खूंखार हो गया और अन्दर तक पैंठ जमाने लगा था। गौरी की सु-सु की कसावट और मखमली अहसास से सराबोर हुआ मेरा पप्पू तो आज मस्त होकर हिलौरें ही मारने लगा था। अब तो पूरे कमरे में सु-सु और पप्पू के मिलन का मधुर संगीत गूंजने लगा था।
मुझे हैरानी हो रही थी गौरी का यह प्रथम मिलन था पर ऐसा कतयी नहीं लग रहा था कि बिलकुल अनाड़ी या नवसिखिया है। मुझे लगता है उसने यू-ट्यूब पर इन सब चीजों को जरूर देखा होगा। यह भी संभव है मधुर ने इसे अपने मधुर मिलन की सारी बातों को रस ले लेकर बताया हो? कुछ भी हुआ हो पर मेरे लिए तो यह अतिरिक्त बोनस की तरह था।
गौरी अब पूर्ण सहयोग करने लगी थी। अब तो उसने अपनी सु-सु का संकोचन भी शुरू कर दिया था।
“गौरी तुम्हें अच्छा लग रहा है ना?”
“हट … !!”
“प्लीज बताओ ना?” कहते हुए मैंने एक धक्का जोर से लगा दिया।
“आईईई ईइच्च्च … ”
“आपने तो मुझे बिल्तुल बेशल्म बना दिया.”
“अरे मेरी जान इसमें शर्म की क्या बात है यह तो भगवान् का एक पवित्र और और नैसर्गिक कार्य है हम तो बस एक माध्यम हैं. इस मिलन की वेला में लाज और शर्म का पर्दा हटा रहने दो, बस उस आनन्द को महसूस करो.”
हमें अब तक कोई 20 मिनट तो जरूर हो गए थे। मैंने अपने धक्कों की गति अब बढ़ा दी थी। गौरी अब मीठी सीत्कारें करने लगी थी मुझे लगता था जिस प्रकार गौरी अपनी सु-सु का संकोचन कर रही थी और मेरे लंड को अन्दर उमेठ रही थी, उसका ओर्गास्म होने वाला है।
मेरी उत्तेजना का आलम यह था कि मैं जिस प्रकार धक्के लगा रहा था जैसे मैं गौरी मेरे लिए कतई नई नहीं है। साधारणतया प्रथम मिलन के समय अपनी प्रियतमा का बहुत ख़याल रखा जाता है पर पता नहीं क्यों मेरा अंतर्मन बिना किसी रहम के और जोर-जोर से धक्के लगाने को मुझे उकसा सा रहा था।
गौरी आआह … उईईइ … करने लगी थी।
अचानक गौरी की साँसें बहुत तेज हो गई और उसने मुझे कसकर अपनी बांहों में कस लिया। उसने अपनी जांघें भींच लीं और मेरे लंड को अपनी सु-सु में ऐसे कस लिया जैसे कोई बिल्ली किसी चूहे की गर्दन पकड़ लेती है।
ईईईईईईईई … गौरी की किलकारी भरी चीख पूरे कमरे में गूँज गई। गौरी का शरीर इतनी जोर से अकड़ने लगा और उसने अपनी बांहें मेरी पीठ पर कस ली। और उसके साथ ही चट-चट की आवाज के साथ उसकी कलाइयों में पहनी चूड़ियाँ चटक गई। और फिर वह किसी कटी पतंग की तरह हिचकोले खाती लम्बी-लम्बी साँसें लेती ढीली पड़ती चली गई।
मैंने सिर पर हाथ फिराना चालू कर दिया और उसके गालों और माथे पर चुम्बन लेने लगा। लगता है गौरी ने अपने जीवन का प्रथम लैंगिक ओर्गास्म पा लिया था।
थोड़ी देर बाद में गौरी संयत सी हो गई थी। इस समर्पण के बाद अब वह आँखें बंद किये सुनहरे सपनो में खोई इस मिलन के आनन्द को महसूस कर रही थी। जैसे-जैसे मैं उसके गालों, होंठों गले और उरोजों को चूमता उसका सारा शरीर तरंगित सा हो जाता।
अब मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए थे। अब तो गौरी भी बिना झिझके मेरे धक्कों का प्रत्युत्तर अपने नितम्बों को उचका कर देने लगी थी। इस समय वह आनन्द के उस झूले पर सवार थी जिसकी हर पींग साथ वह आनन्द की नई ऊंचाइयां छू रही थी। उसका गदराया बदन मेरे नीचे दबा बिछा पड़ा था। मेरी हर छुवन, घर्षण और धक्का उसे हर बार रोमांच से भर रहा था।
मैंने अब थोड़ा ऊपर होकर अपने लंड को उसके सु-सु के योनि मुकुट (मदन मणि) से रगड़ना चालू कर दिया था। मेरे ऐसा रगदने से गौरी की मदन मणि फूल कर मूंगफली के दाने जितनी बड़ी हो गई थी।
अब तो गौरी का सारा बदन ही थिरकने लगा था। उसने अपने दोनों पैर उठाकर मेरी कमर पर कस लिए थे और आह … ऊंह … की आवाजों के साथ जैसे आसमान में उड़ने लगी थी जैसे कह रही हो ‘मेरे साजन मुझे बादलों के उस पार ले चलो जहां हमा दोनों के अलावा दूसरा कोई नहीं हो।’
मैंने अब उसके उठे हुए नितम्बों पर हाथ फिराना चालू कर दिया और धक्कों की गति कुछ बढ़ा दी थी। साथ ही उसके अमृत कलशों को मसलने लगा था। कभी उसके शिखरों (चूचुक) को मसलते कभी उन्हें मुंह में लेकर चूमते हुए कभी कभी दांतों से दबा रहा था।
अब मुझे भी लगने लगा था कि प्रेम की अंतिम आहुति डालने का समय आ गया है। मेरा पूरा शरीर तरंगित सा होने लगा था और लिंग में भारीपन सा आने लगा था। मेरी आँखों में जैसे सतरंगी सितारे से जगमगाने लगे थे।
मेरे हर धक्के साथ गौरी के पैरों में पहनी पायल तो किसी कोयलिया की तरह रुनझुन ही करने लगी थी। लयबद्ध धक्कों के साथ पायल झंकार सुनकर मैं उसे जोर-जोर से चूमने और धक्के लगाने लगा था।
मेरे ऐसा करने से गौरी का रोमांच और स्पंदन अब अपने चरम पर पहुँच गया था। मुझे लगा उसकी साँसें एक बार फिर से तेज होने लगी हैं और फिर से पूरी देह अकड़ने लगी है। मुझे लगा एक बार फिर से गौरी को ओर्गाश्म होने वाला है। मैं चाहता था इस बार हम दोनों एक साथ स्खलित होकर इस आनद को भोगें।
मैंने गौरी के होंठों को अपने मुंह में कस लिया और जोर जोर से धक्के लगाने लगा। मेरी साँसें भी तेज हो गई थी और पूरे बदन में पसीना सा आने लगा था।
“गौरी मेरी जान … मेरा भी अब निकलने वाला है … मेरी प्रियतमा … आज मैं तुम्हें अपनी पूर्ण समर्पिता बनाकर धन्य हो जाऊँगा … आह … मेरी सिमरन … मेरी गौरी …”
“हाँ मेले साजन … मेले प्रेम … मैं तो कब की आपके इस प्रेम की प्यासी थी … आह … मेले शलील में उबाल सा आ रहा है मेरे … सा … जा … न्नन्न … आह … ईईईईई …”
प्रेम रस में डूबी गौरी की मीठी सीत्कार निकले लगी थी और फिर से उसने मेरी कमर को कस कर पकड़ लिया।
और फिर मेरे लंड ने पता नहीं कितनी फुहारें उसकी सु-सु में निकाल दी।
अब मैं उसे हर धक्के के साथ जोर-जोर से चूमे जा रहा था और गौरी भी आँखें बंद किये तरंगित हुई इस आनन्द को भोग रही थी। सच है इस प्रेम मिलन से बड़ा कोई सुख और आनन्द तो हो ही नहीं सकता। मैं ही नहीं शायद गौरी भी यही चाह रही होगी कि हम दोनों इस असीम आनन्द को आयुपर्यंत इसी प्रकार भोगते ही चले जाएँ।
“मेरी प्रियतमा … मेरी सिमरन … मेरी गौरी … आह … मैं तुम्हें बहुत प्रेम करता हूँ!”
“मेरी जान आह … या …” कहते हुए गौरी ने मुझे अपनी बांहों में भींच लिया। वह कितनी देर प्रकृति से लड़ती, उसका भी एक बार फिर से रति रस छूट गया। और उसी के साथ ही बरसों की तपती प्यासी धरती को जैसे बारिस की पहली फुहार मिल जाए, कोई सरिता किसी सागर से मिल जाए, किसी चातक को पूनम का चाँद मिल जाए या फिर किसी पपिहरे को पी मिल जाए मेरा वीर्य और गौरी का कमरज एक साथ निकल गया।
गौरी ने अपनी सु-सु का संकोचन करना शुरू कर दिया था जैसे इस अमृत की हर बूँद को ही सोख लेगी। अचानक उसकी सारी देह हल्की हो उठी और उसके पैर धड़ाम से नीचे गिर पड़े।
मैंने 2-3 अंतिम धक्के लगाए और फिर गौरी को कस कर अपनी बांहों में भर कर उसके ऊपर ऊपर लेट गया।
गौरी की आंखें अब भी बंद थी। मेरी बांहों में लिपटी पूर्ण तृप्ति के साथ जोर-जोर से साँसें ले रही थी।
3-4 मिनट इसी प्रकार मैं उसके ऊपर लेटा रहा। अब मेरा लंड सिकुड़ कर बाहर निकलने लगा।
“उईईईईइ … मेला सु-सु निकल रहा है … प्लीज …”
मुझे हंसी सी आ गई।
लगता है गौरी जिसे सु-सु (पेशाब) समझ रही थी वह मेरे वीर्य, उसके कामरज और कौमार्य झिल्ली के फटने से निकला रक्त का मिश्रण बाहर निकालने लगा होगा।
मैं गौरी के ऊपर से हट गया। अब गौरी उठकर बैठ गई और अपनी सु-सु को देखने लगी। उसमें से तो प्रेम रस बह निकला था और गौरी की जाँघों और महारानी के छेद तक फ़ैल गया था।
अब गौरी की नज़र उस सफ़ेद तौलिये पर गई जिसे उसने अपने नितम्बों के नीचे लगा लिया था। वह तो 5-6 इंच के व्यास में पूरा गीला हो गया था और वीर्य और उसकी योनि से निकले रक्त से सराबोर हो गया था।
गौरी ने हैरानी से उस तौलिये को देखा और फिर अपनी सु-सु की फांकों को देखा। फांकें तो अब सूजकर और भी मोटी-मोटी लगने लगी थी।
मैं टकटकी लगाए उसकी सु-सु को ही देखे जा रहा था जिसमें अब भी प्रेम रस निकल रहा था।
मुझे अपनी ओर निहारते हुए देख कर गौरी ने झट से वह तौलिया उठाया और अपनी जाँघों और सु-सु पर डाल लिया।
मैंने एक बार फिर से उसे अपनी बांहों में भर लेना चाहा तो गौरी ने मुझे हल्का सा धक्का दिया और वह तौलिया और अपनी नाइटी उठाकर बाथरूम में भाग गई।
अथ श्री योनि भेदन सोपान इति!!!
 
Last edited:

Lutgaya

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Nice erotic story
bahut hi mast update diya hai
kya ye madhur ka koi chaal hai?
बहुत ही जबरदस्त अपडेट है । अगले अपडेट ( सुहाग रात ) का बहुत ही बेसब्री से इंतजार रहेगा
अपडेट हाजिर है मित्रो
पढकर कमेन्ट अवश्य करे
 
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