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Incest चोरी का माल

Lutgaya

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तीन पत्ती गुलाब

भाग- 10
सुबह के लगभग 8 बजे हैं। रात को थोड़ी बारिश हुई थी इस वजह से मौसम आज थोड़ा खुशगवार (सुहावना) सा लग रहा है। अक्सर ऐसे मौसम में मधुर नाश्ते में चाय के साथ पकोड़े बनाया करती है। पर आजकल तो मधुर के पास मेरे लिए जैसे समय ही नहीं है। मधुर तो कब की स्कूल जा चुकी है.

और गौरी रसोई में चाय बनाते हुए कोई गाना गुनगुना रही है…
“मेरे रश्के कमर तूने पहली नज़र…!
नज़र से मिलाई मज़ा आ गया…!!”

साली यह गौरी भी बात करते समय तो तुतला सी जाती है और शब्दों का उच्चारण ठीक से नहीं कर पाती पर गाना गाते समय तो कमाल करती है। अगर वह थोड़ी कोशिश और रियाज़ (अभ्यास) करे तो बहुत अच्छा गा सकती है।

थोड़ी देर में गौरी चाय लेकर आती दिखाई दी। आज कोई 7-8 दिनों बाद गौरी को देखा था।

आज उसने हल्के पिस्ता रंग की हाफ बाजू की शर्ट और पायजामा पहन रखा था। शर्ट के ऊपर के दो बटन खुले थे। लगता है आज उसने शर्ट के अन्दर ब्रा के बजाय समीज पहनी है। उसने अपने खुले बाल एक रिबन से बाँध कर चोटी के रूप में गर्दन के पास से होते हुए एक तरफ छाती पर डाल रखे थे। दोनों भोंहों के बीच एक छोटी सी बिंदी। लगता है आज उसने पहली बार सलीके से आई ब्रो बनाई है। मुझे तो लगता है यह सब मधुर का कमाल रहा होगा।

कुछ भी कहो, उसकी आँखें और भवें आज किसी कटार से कम नहीं लग रही है। मुझे लगता है आई ब्रो के साथ-साथ उसने अपनी सु-सु को भी जरूर चिकना बनाया होगा।
मेरा लड्डू (लंड) तो उसे देखते ही फड़फड़ाने लग गया है।

मैंने अपने पप्पू को पायजामें में सेट किया ताकि बेचारे को कम से कम अपनी गर्दन तो सीधी रखने में परेशानी ना हो। मैंने देखा गौरी ने तिरछी नज़रों से मेरी इस हरकत को नोटिस कर लिया था इसलिए वो मंद-मंद मुस्कुरा रही थी।

जैसे ही वह ट्रे रखने के लिए थोड़ा सा झुकी, खुले बटनों वाली शर्ट में कंगूरों के अलावा गोल गुलाबी नारंगियाँ पूरी दिखने लगी थी।
उसने चाय की ट्रे टेबल पर रख दी।

मुझे आश्चर्य हुआ आज गौरी चाय के लिए एक ही गिलास लाई थी।

“अरे गौरी आज एक ही गिलास क्यों? क्या तुम नहीं पिओगी?” मैंने पूछा।
“आज मैंने दीदी के साथ चाय पी ली थी।”
“ठीक है भई! तुम्हारे लिए तो तुम्हारी दीदी ही सर्वोपरि है।”
“आप ऐसा त्यों बोलते हैं?”
“तुम्हें तो पता है मैं अकेला चाय नहीं पीता?”
“ओह… पल मैंने तो एत ही तप चाय बनाई है?”
“तो क्या हुआ इसी में से आधी-आधी पीते हैं? जाओ एक खाली गिलास और ले आओ.”
“हओ”
गौरी रसोई से खाली गिलास ले आई और पास वाले सोफे पर बैठ गई।

मैं टूअर से आते समय गौरी के लिए सोनाटा की एक सुनहरे रंग की कलाई घड़ी और इम्पोर्टेड चोकलेट खरीद कर गिफ्ट पेपर में पैक करवा ली थी। मैंने जानकर इसे अपने बगल में सोफे पर रखा था ताकि इसपर गौरी की नज़र पहले ना पड़े।

अब मैंने वो दोनों पैकेट निकाल कर टेबल पर रखते हुए कहा- देखो तो गौरी यह क्या है?
“त्या है?” उसने हैरानी से मेरी ओर देखा।
“पता है … मैं यह गिफ्ट तुम्हारे लिए स्पेशल आगरा से लेकर आया हूँ.”
“सच्ची?” गौरी की आँखें ख़ुशी के मारे चमक उठी।
“त्या है इसमें?” गौरी ने दोनों गिफ्ट हाथ में पकड़ लिए।

उसे शायद विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैं उसके लिए गिफ्ट लेकर आउंगा।
“गिफ्ट कोई बता कर थोड़े ही दी जाती है। अभी तो तुम अंदाज़ा लगाओ बाद में खोल देख लेना और मुझे भी दिखा देना।” कहकर मैं हंसने लगा।
अब गौरी थोड़ा उलझन में थी।

“पहले इसे अपने कमरे में रखकर आओ फिर हम दोनों चाय पीते हैं।”
“हओ”
“गौरी, यह बात मधुर को मत बताना प्लीज.”
“हओ थीत है।” गौरी रहस्यमई मुस्कान के साथ फटाफट उन दोनों पैकेट्स को अपने कमरे की अलमारी रख आई और फिर से बगल वाले सोफे पर बैठ गई। आज तो उसकी आँखों की चमक और ख़ुशी देखने लायक थी।

“गौरी! आज तो चाय में चीनी मिलाई है या फिर से भूल गई?” मैंने थर्मस से थोड़ी-थोड़ी चाय दोनों गिलासों में डालते हुए पूछा।
“तोई लोज-लोज थोड़े ही भूलती हूँ?” उसने हँसते हुए कहा।
“अगर भूल भी जाओ तो कोई बात नहीं उस दिन की तरह अपने बस होंठ लगा देना? अपने आप मीठी हो जायेगी।” कह कर मैं जोर जोर से हंसने लगा।
“हट!” गौरी तो गुलज़ार ही हो गई।

हे भगवान्! आज तो उसके पतले-पतले गुलाबी होंठ बहुत ही कातिल लग रहे हैं। इन होंठों से अगर वह मेरा पप्पू चूस ले तो खुदा कसम मज़ा आ जाए। पप्पू मियाँ तो लगता है आज ख़ुदकुशी करने पर आमादा है। वह जोर-जोर से ठुमके लगा रहा है और उसने प्री-कम के कई तुपके छोड़ दिए हैं।

“अच्छा गौरी एक बात बताओ?” मैंने चाय का सुड़का लगाते हुए पूछा।
“हुम्?”
“वो उस दिन तुम्हें कैसा लगा था?”
“तब?” गौरी ने हैरानी से मेरी ओर देखा। या… अलाह… उसके कमान सी तनी भोंहों के नीचे किसी हिरनी जैसी चंचल आँखें ऐसे लग रही थी जैसे कामदेव ने अपने तरकस के सारे बाण एक साथ छोड़ दिए हों।
“अरे वो… हमारा खूबसूरत अधर मिलन?”
“अध…ल मिन…ल?” उसने कुछ याद करने की कोशिश करते हुए मेरे शब्द दोहराए।

“अरे बाबा मैं उस दिन के चुम्बन की बात कर रहा था?”
“ओह… वो… हट!” गौरी जिस प्रकार शरमाई थी मुझे लगा मैं गश खाकर गिर पडूंगा। शर्माते हुए जब वो अपनी मुंडी नीचे झुकाती है तो खुले बटनों वाली शर्ट में छिपे दोनों गुलाबी परिंदों की चहलकदमी देखकर मन फड़फड़ाने लगता है। पता नहीं इनकी नज़दीक से देखने, छूने, मसलने और इनका रस पीने का मौक़ा कब आएगा। मैं तो बस अपनी जीभ अपने होंठों पर फिरा कर ही रह जाता हूँ।

“क्या हट?”
“मुझे ऐसी बातों से शल्म आती है?”
“इसमें भला शर्माने वाली क्या बात हो गई?”
“शल्म तो आती ही है ना?”
“अच्छा शर्म की बात छोड़ो तुम्हें अच्छा तो लगा ना?”
“किच्च… मुझे नहीं मालूम!” कह कर गौरी ने फिर अपनी मुंडी नीचे झुका ली।

मैं गौरी के मन के भावों को अच्छी तरह समझ सकता था। उसकी साँसें बहुत तेज़ हो रही थी और दिल की धड़कन भी बढ़ गई थी। वो अपने चहरे पर आई रोमांचभरी मुस्कान को छिपाने की नाहक कोशिश कर रही थी। मैं जानता हूँ उसे यकीनन यह सब अच्छा तो जरूर लगा होगा पर वह जाहिर तौर पर (प्रकट रूप में) नारी सुलभ लज्जा के कारण इसे मुखर शब्दों में स्वीकारने में अपने आप को असमर्थ पा रही होगी। वह कुछ असहज सा महसूस कर रही थी इसलिए अब बातों का विषय बदलने की जरूरत थी।

“अरे गौरी! अब वो तुम्हारी मदर की तबियत कैसी हैं?”
“ह… हाँ.. अब ठीत है.”
“थैंक गोड! जल्दी ठीक हो गई वरना तुम्हारे तो दीदार ही मुश्किल हो जाते.”
“तैसे?”
“तुमने तो हमें याद ही नहीं किया इन 7-8 दिनों में?”
“मैंने तो आपको तित्ता याद किया मालूम?”
“हट! झूठी?”
“सच्ची?”
“तो फिर फ़ोन क्यों नहीं किया?”
“आपने भी तो नहीं तिया?”

साली कितनी स्मार्ट बन गई है आजकल झट से पलटकर जवाब दे देती है।
“हाँ…. पर मैं मधुर से जरूर तुम्हारे बारे में पूछता रहता था.”
“पल दीदी ने तो बताया ही नहीं?”
“हा … हा … हा … उसे मेरे से ज्यादा चिंता तुम्हारी रही होगी ना!”
फिर हम दोनों इस बात पर खिलखिला कर हंस पड़े।

“गौरी! वो… अनार या अंगूर नहीं आई क्या?”
“बस एत बाल (एक बार) अस्पताल में मिलने आई थी फिल चली गई।”
“कमाल है?”
“सब मेली ही जान ते दुश्मन बने हैं?”
“और वो तुम्हारी भाभी?”
“वो पेट फुलाए बैठी है.” उसने अपने दोनों हाथों को अपने पेट पर करते हुए भाभी के प्रेग्नेंट होने का इशारा किया।

“अच्छा है तुम बुआ बन जाओगी?” मैंने हँसते हुए कहा।
“हओ! नौवाँ महीना चल लहा है। शायद अगले महीने के शुरू में बच्चा हो जाए।
“गौरी वो… अनार के क्या हाल हैं?”
“उस बेचाली ते तो भाग ही फूट गए हैं?”
“अरे… क्यों? ऐसा क्या हुआ?”
“टीटू लोज दालू पीतल माल-पिटाई तलता है।” (टीटू रोज दारु पीकर मार-पिटाई करता है।)
“क… कौन टीटू?”
“अले वो नितम्मा जीजू?”
“ओह…”
“बेचाली ते तीन बच्चे हो गए हैं और अब चौथे ती तैयाली है।”
“ओह …”

ये अनपढ़ निम्नवर्गीय परिवारों में लोग बस बच्चे ही पैदा करने में लगे रहते हैं। औरतें बेचारी 4-4, 6-6 बच्चे पैदा करती हैं और बाहर घरों में काम या मजदूरी करके घर चलाती हैं। पति की मार भी खाती खाती हैं और उनको को दारु पीने के पैसे भी देती हैं। सच में अनार के बारे में जानकार बहुत दुःख हुआ।

“और अंगूर के क्या हाल हैं?”
“वो तो खाय-खाय ते गुम्बी होय गई है.” गौरी ने अपने दोनों हाथों की मुठ्ठियाँ भींचकर अपनी कोहनियाँ उठाते हुए मोटे आदमी के नक़ल उतारते हुए कहा और फिर हम दोनों हँसने लगे।
“हा… हा…”
“वो भी घरवालों से मिलने नहीं आती क्या?”
“अले उसते नखरे तो बस लहने ही दो?”
“क… क्यों?… कैसे?”
“पता है … आजतल वो चाय नहीं पेशल तोफी (कॉफ़ी) पीती है और खाने में लोज बल्गल, पिज़्ज़ा, विदेशी चोतलेट पता नहीं त्या-त्या खाती है। औल लोज नए-नए डिजाइन ते सूट पहनती है।”
शायद गौरी के मन में कहीं ना कहीं अंगूर के लिए कुछ खटास और ईर्ष्या जरूर रही होगी। मैं तो सोचता था गौरी के मन में अंगूर के लिए उसके प्रोढ़ और लंगड़े पति (मुन्ने लाल) को लेकर सहानुभूति होगी पर यहाँ तो मामला ही उलटा लग रहा है।

“अच्छा?” मैंने हैरानी जताई।
“औल पता है उसने नई एटीवा की फटफटी (एक्टिवा स्कूटर) ली है तिसी तो हाथ भी नहीं लगाने देती। मेमसाब बनी घूमती लहटी है।”
“गौरी तुम्हारा भी स्कूटी चलाने का मन करता है क्या?”
“हओ! मेला तो बहुत मन कलता है। दीदी बोलती हैं उनते व्रत ख़त्म होने ते बाद मुझे भी फटफटी चलाना सिखाएंगी.”
“हुम्म”

“अम्मीजॉन (अमेजोन) से उसने सोनाटा ती घड़ी औल म्यूजित सिस्टम भी मंगवाया है। उसके तो मज़े ही मज़े हैं। औल सोलह हजाल ता तो नया मोबाइल लिया है साले दिन फेस बुत और यू-ट्यूब देखती लहती है।”
“तो फिर घर का काम कौन करता है?”
“घल ता साला ताम तो उसती पहले वाली लड़तियाँ तलती है और वो महालानी ती तलह लाज तल लही है। तितनी बढ़िया तिस्मत पाई है।” (घर का काम तो उसकी पहले वाली लड़कियां करती हैं और वो महारानी की तरह राज कर रही है। कितनी बढ़िया किस्मत पाई है।)
“अच्छा?”
“हओ”

“अच्छा गौरी एक बात तो बताओ?”
“त्या?”
“वो… अंगूर के कोई बच्चा-वच्चा हुआ या नहीं?”
“वा हलामजादी जीजू तो देवेई नाई तो बच्चो खां से होगो? बोलो?” शायद उसने फैजाबाद की क्षेत्रीय भाषा में बोला था। लगता है आज गौरी को अंगूर पर बहुत गुस्सा आ रहा है।
“क… क्या मतलब? क्या नहीं देती? खाने को नहीं देती क्या?”
“अले… आप समझे नहीं… वो… वो…” कहते कहते गौरी रुक गई।
“बोलो ना? क्या नहीं देती?”

अब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ कि अनजाने गुस्से में कुछ अनचाहा बोल गई है। उसने मारे शर्म के अपनी मुंडी झुका ली थी। कोई और मौक़ा होता तो गौरी शर्म के मारे रसोई में भाग जाती पर आज वो शर्म से गडी अपनी मुंडी नीचे झुकाए बैठी रही।

ईईईस्स्स … हे लिंग देव! गौरी शर्माते हुए कितनी खूबसूरत लगती है तुम क्या जानो। शर्माने की यह अदा और उसके गालों पर पड़ने वाले गड्ढे तो किसी दिन मेरे कलेजे का चीरहरण ही कर डालेंगे। मेरा लड्डू तो अपना माथा ही फोड़ने लगा था। मन कर रहा था अभी गौरी को बांहों में लेकर 15-20 चुम्बन उसके गालों और होंठों पर ले लूं।

“हा… हा… इसमें शर्माने वाली क्या बात है?” मैंने हंसते हुए गौरी की ओर देखा।
“आप हल बाल मुझे बातों में फंसा लेते हो? अब मैं आपसे तोई बात नहीं तलूंगी.” गौरी ने मुंह फुलाते हुए उलाहना सा दिया।
“गौरी एक तरफ तुम मुझे अपना मित्र मानती हो और फिर बात-बात में शर्माती भी हो।”

“ऐसी बातों में शल्म नहीं आएगी क्या?”
“तो क्या हुआ? शर्म आएगी तो कौन सी यहाँ रुकने वाली है आकर अपने आप चली जायेगी तुम बेकार क्यों चिंता करती हो?”
फिर हम दोनों हंस पड़े।
अचानक गौरी ने नाक से कुछ सूंघने का सा उपक्रम किया। मैंने भी कुछ जलने की दुर्गन्ध सी महसूस की।
“हे भगवान् … मेला दूध…” कहते हुए गौरी रसोई की ओर भागी। शायद धीमी गैस पर उबलने के लिए रखा दूध किसी दिलजले आशिक की तरह जल गया था।

आज का सबक पूरा हो गया था।

अगले 2-3 दिन भरतपुर में बहुत जोरों की बारिश होती रही। बारिश इंतनी भयंकर थी कि प्रशासन को स्कूल बंद करने के आदेश देने पड़े। अब मधुर की घर रुकने की और मेरी गौरी से बात करने की प्रबल इच्छा होते हुए भी बात ना कर सकने की मजबूरी थी। अलबत्ता हम दोनों इशारों में जरूर एक दूसरे को अपनी मजबूरी दर्शाते रहे।

कई बार मन में आया गौरी से मोबाइल पर ही बात कर लूं पर फिर सोचा कहीं मधुर को इसकी भनक भी लग गई तो इस बार लौड़े नहीं लगेंगे अलबत्ता वो हम दोनों को काटकर कच्चा ही चबा जायेगी।

मेरा सामना जब भी गौरी से होता तो उसकी आँखों में आई चमक और नितम्बों की लचक से मैं इस बात का अंदाज़ा तो लगा ही सकता हूँ कि गौरी भी बात करने के लिए बहुत उत्सुक है पर मधुर के सामने वह ज्यादा बात करने से संकोच कर रही है।

आज 3-4 दिनों के बाद बच्चों के स्कूल दुबारा खुल गए हैं और मधुर स्कूल चली गई है। पिछले 3-4 दिनों में मधुर मुझे भी जल्दी उठा देती है।

सावन के महीने में सुबह-सुबह कितनी प्यारी नींद आती है और देर तक सोने में कितना मज़ा आता है आप समझ सकते हैं पर मधुर को कौन समझाए। वो कहती है ‘आप सुबह जल्दी उठकर योगा और प्राणायाम किया करो।’ साले इस योनिस्वरूपम (चुतिया) योग बाबा की तो माँ की…

आज भी मैं थोड़ा जल्दी उठ गया था। मधुर ने बेडरूम में ही चाय पकड़ा दी थी। आज मैंने कई दिनों बाद पप्पू का मुंडन किया था और तेल लगाकर मालिश भी की थी। बाथरूम से फारिग होकर जब तक मैं बाहर आया तब तक मधुर स्कूल जा चुकी थी।

गौरी तो जैसे मेरा इंतज़ार ही कर रही थी।

कहानी जारी रहेगी.
 
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Lutgaya

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तीन पत्ती गुलाब
भाग-11


आज भी मैं थोड़ा जल्दी उठ गया था। मधुर ने बेडरूम में ही चाय पकड़ा दी थी। आज मैंने कई दिनों बाद पप्पू का मुंडन किया था और तेल लगाकर मालिश भी की थी। बाथरूम से फारिग होकर जब तक मैं बाहर आया तब तक मधुर स्कूल जा चुकी थी।
गौरी तो जैसे मेरा इंतज़ार ही कर रही थी.
“गुड मोल्निंग सल” एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ गौरी ने गुड मोर्निंग की।
“वैरी गुड मोर्निंग डार्लिंग!” मैंने गौरी को अपनी पारखी नज़रों से ऊपर से नीचे तक देखा।

आज गौरी ने भूरे रंग की जीन पैंट और टॉप पहना था। शायद आज गौरी ने टॉप के नीचे समीज या ब्रा नहीं पहनी थी तो मेरी निगाहें तो बस उसकी गोल नारंगियों और जीन पैंट में फंसी जाँघों और नितम्बों से हट ही नहीं रही थी।
गौरी मंद-मंद मुस्कुराते हुए मेरी इन हरकतों को देख रही थी।

“गौरी! इस भूरी जीन पैंट में तो तुम पूरी क़यामत लग रही हो यार … खुदा खैर करे!”
“त्यों?” गौरी ने बड़ी अदा के साथ अपनी आँखें तरेरी।
“कोई देख लेगा तो नज़र लग जायेगी.”
“बस-बस झूठी तालीफ़ लहने दीजिये.”

“मैं सच कह रहा हूँ। अगर कोई इन कपड़ों में तुम बाज़ार चली जाओ तो लोग तुम्हारी खूबसूरती को देखकर गश खाकर गिर पड़ेंगे.”
“तो पड़ने दीजिये मुझे त्या?” गौरी ने हँसते हुए कहा।
सुबह-सुबह गौरी को अपनी सुन्दरता की तारीफ़ शायद बहुत अच्छी लगी थी।

“आपते लिए नाश्ता ले आऊँ?”
“अरे यार नाश्ते के अलावा भी तो बहुत से काम होते हैं?”
“वो… त्या होते हैं?”
“अरे बैठो तो सही कितने दिनों से तुम्हारे साथ बात ही नहीं हो पाई।” मैंने गौरी का हाथ पकड़ कर सोफे पर बैठा लिया।
या अल्लाह… कितना नाज़ुक और मुलायम स्पर्श था। मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था। कमोबेश गौरी की भी यही हालत थी।

“तुम्हारा तो मुझ से बात करने का मन ही नहीं होता?”
“मैं तो बहुत बातें तलना चाहती हूँ पल …”
“पर क्या?”
“वो … दीदी ते सामने तैसे करती? बोलो?”
“हाँ यह बात तो सही है।”
मैंने गौरी का एक हाथ अभी भी अपने हाथ में पकड़ रखा था।

“अरे गौरी?”
“हुम्म?”
“वो… गिफ्ट कैसी लगी तुमने तो बताया ही नहीं?”
“बहुत बढ़िया है। मेरी बहुत दिनों से ऐसी ही घड़ी ती इच्छा थी।”
“देखो मैंने तुम्हारी इच्छा पूरी कर दी और तुमने तो मुझे धन्यवाद भी नहीं दिया?” मैंने हंसते हुए उलाहना दिया।
“थैंत्यू?” गौरी ने थैंक यू की माँ चोद दी।

“कोई ऐसे बेमन से थैंक यू बोलता है क्या?”
“तो?”
मैंने उसके हाथ को पहले तो शेकहैण्ड की मुद्रा में दबाते हुए हिलाया और फिर उसके हाथ को अपने होंठों से चूम लिया।
“ऐसे करते हैं थैंक यू? समझी?” कह कर मैं हंसने लगा।

गौरी तो शर्मा कर गुलज़ार ही हो गई। उसने कुछ बोला तो नहीं पर उसकी तेज होती साँसों के साथ छाती का ऊपर नीचे होता उभार साफ़ महसूस किया जा सकता था। उसकी नारंगियों के कंगूरे तो भाले की नोक की तरह तीखे हो गए थे। मैं चाहता था वह इस चुम्बन को अभी साधारण रूप में ले और असहज महसूस ना करे … इसलिए बातों का सिलसिला अब बदलने की जरूरत थी।

“अरे गौरी! वो… तुम्हारी पढ़ाई लिखाई कैसी चल रही है?
“थीत चल लही है।”
“आजकल मैडम क्या पढ़ा रही हैं?”
“2 दिनों से तो हिंदी पढ़ा लही हैं”
“हिंदी में तो कबीर और रहीम आदि के दोहे वगैरह भी पढ़ाती होंगी?”
“हओ… ये दोहे भी बड़े अजीब से होते हैं पेली बाल (पहली बार) में तो समझ में ही नहीं आते?”
“कैसे?”
“कल दीदी ने मुझे तबील (कबीर) ता एक दोहा पढ़ाया। आपतो सुनाऊँ?”
“हाँ… हाँ… इरशाद!”
‘प्रेम-गली अति सांकरी, तामें दो न समाहिं।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहिं।’

मैं दोहा सुनकर हंसने लगा। और गौरी भी खिलखिला कर हंसने लगी।

हालांकि कबीर ने प्रेम और परमात्मा के बारे में कुछ कहा होगा पर मैं सोच रहा था कि अगर कबीर की जगह कोई प्रेमगुरु होता तो यही लिखता कि ‘एक चूत में दो-दो लंड नहीं समां सकते।’

“ये कबीरजी भी जरूर थोड़े आशिक मिजाज रहे होंगे? कितनी गन्दी बात सिखा रहे हैं.” कह कर मैं जोर जोर से हंसने लगा।
मेरा अंदाज़ा था गौरी फिर शर्मा जायेगी पर आज गौरी ने ना तो ‘हट’ कहा और ना ही शर्माने की कोशिश की।

“अले नहीं … पहले मैं भी यही समझी थी पल बाद में दीदी ने इसता सही अल्थ (अर्थ) समझाया।” अब वह भी हंसने लगी थी। उसे लगा कि मैं भी निरा लोल ही हूँ और शायद उसकी तरह पहली बार में मुझे भी इस दोहे का अर्थ समझ नहीं आया होगा।

“क्या समझाया?”
दीदी ने बताया कि ‘जब हम परमात्मा से सच्चा प्रेम करते हैं तो दोनों का अस्तित्व एक हो जाता है फिर वहाँ दूसरे की संभावना नहीं रहती और द्वेत का भाव (अपने से अलग अस्तित्व होने की अनुभूति) समाप्त हो जाती है।’

अब मैं सोच रहा था जब लंड चूत में जाता है तब भी तो यही होता है। दोनों शरीर और आत्मा एक हो जाते हैं। अब बकोल मधुर आप इसे प्रेम मिलन कहें, सम्भोग कहें या फिर चुदाई या प्रेम गली? क्या फर्क पड़ता है?

“हा… हा… हां… कमाल है। मैं तो कुछ और ही समझा था.” मैंने हंसते हुए यह दर्शाया कि मुझे भी गौरी की तरह इसका अर्थ पहली बार में समझ नहीं आया ताकि उसे हीन भावना की अनुभूति ना हो।
गौरी भी अब तो जोर-जोर से हंसने लगी थी।

दोस्तों अब अगले सबक (सोपान) का उपयुक्त समय आ गया था।

मैंने गौरी का हाथ अभी भी अपने हाथ में ले रखा था। हे भगवान्! उसकी नाजुक अंगुलियाँ कितनी लम्बी और पतली हैं अगर इन अँगुलियों से वह मेरे पप्पू को पकड़ कर हिलाए तो आसमान की बजाये जन्नत यहीं उतर आये।

“अरे गौरी!”
“हओ?”
“तुम्हारे हाथ पर तो तिल है?” मैंने उसकी दांयी कलाई गौर से देखते हुए कहा।
“तिल होने से त्या होया है?” गौरी ने हैरानी भरे अंदाज़ में पूछा।
“अरे भाग्यशाली व्यक्ति के हाथ पर या कलाई पर तिल होता है।”
“अच्छा?” उसने आश्चर्य से मेरी ओर देखा।

“हाँ… मैं सच कह रहा हूँ ऐसे जातक बहुत ही धनवान, साहसी और खूब खर्चीले होते हैं उनके सारे बिगड़े काम बन जाते हैं।”
“पल मेले पास पैसे और धन-दौलत तहां है?” उसने आश्चर्य से मेरी ओर देखते हुए कहा जैसे मेरी बात पर उसे यकीन ही नहीं हुआ हो।
“अरे! भगवान ने तुम्हें खूबसूरत हुश्न की कितनी बड़ी दौलत दी है और तुम बोलती हो मेरे पास धन और दौलत नहीं है?”
“प… ल…” उसे अब कुछ-कुछ विश्वास होने लगा था।

“एक और बात है… लड़कियों का भाग्य 18 साल के बाद बदल जाता है। अच्छा बताओ तुम्हारी जन्म तिथि क्या है?”
“जन्म तिथि तो पता नहीं पल मैं 18 ती हो गयी हूँ। मम्मी बताती हैं ति मेला जन्म नवलात्लों (नवरात्रों में गौरीपूजन के दिन) में हुआ था इसीलिए मेला नाम गौली लखा है।”
“यही तो मैं बोल रहा हूँ? देखो अब तुम्हारा भाग्य भी बदलने शुरुआत हो चुकी है।”

गौरी अब कुछ सोचने लग गई थी। शायद उसे अब लगने लगा था कि यहाँ आने के बाद उसकी तकदीर बदल जाने वाली है। यहाँ आने के बाद मैंने उसे जो सुनहरे सपने देखने सिखाए थे उन्हें अब वह हकीकत (मूर्त रूप) में देखने लगी है।
“आपको हाथ भी देखना आता है?”
“हओ, ज्यादा तो नहीं पर मोटी-मोटी बातें तो बता सकता हूँ.”

“मेला भी हाथ देखतल बताओ ना प्लीज?” गौरी अब अपने भविष्य जानने के लिए बहुत उत्सुक नज़र आने लगी थी।
“ऐसे नहीं, तुम दूर बैठी हो ऐसे में हाथ देखने में थोड़ी असुविधा होगी. तुम मेरे साथ ही सोफे पर इधर ही बैठ जाओ, फिर तसल्ली से हाथ देखता हूँ।”

गौरी कुछ सोचते और सकुचाते हुए मेरे पास बगल में सोफे पर बैठ गई। बाहर सावन की बारिश की हल्की फुहारे पड़ रही थी और यहाँ उसके कुंवारे बदन से आती खुशबू तो मुझे अन्दर तक हवा के शीतल झोंके की तरह मदहोश करती जा रही थी। उसकी एक जांघ मेरे पैर से छू रही थी। लंड तो चूत और गांड की खुशबू पाकर जैसे पाजामें में कोहराम ही मचाने लगा था और गौरी किसी हसीन सपने में जैसे खो सी गई थी।

“अरे वाह…” मैंने अँगुलियों से उसके हाथ को पकड़ते हुए उसके हाथ की लकीरों को बड़े गौर से देखते हुए कहा।
“त्या हुआ?”
“भई कमाल की रेखाएं हैं तुम्हारे हाथ में?” मैंने थोड़ा संशय बरकरार रखते हुए कहा।
अब तो गौरी की उत्सुकता और भी बढ़ गई।

मेरा अंदाजा है मधुर ने भी उसका हाथ और तिल देख कर उसे जरूर कुछ बताया होगा पर शायद गौरी अब उन बातों की तस्दीक (पुष्टि) कर लेना चाहती होगी।

वैसे गौरी के हाथ की रेखाएं ठीक-ठाक ही थी। शुक्र पर्वत उभरा हुआ था और कनिष्का अंगुली के नीचे दो स्पष्ट रेखाएं नज़र आ रही थी। इसका मतलब इसके जीवन में दो से अधिक पुरुषों का योग है और साथ ही चुदाई का खूब मज़ा मिलने वाला है। भाग्य रेखा भी ठीक-ठाक लग रही थी। विद्या की रेखा कुछ ख़ास नहीं थी पर मुझे तो उसे प्रभावित करना था।

“ओहो… बताओ ना प्लीज?” गौरी ने आजकल ‘प्लीज’ भी बोलना सीख लिया है।
“देखो यह जो अंगूठे के नीचे दो लाइनें बनी हैं उसका मतलब है तुम्हें दो संतान होंगी और पहली संतान लड़का ही होगा और बहुत सुन्दर।”
“औल…” गौरी थोड़ा शर्मा सी गई पर उसने ज्यादा कुछ नहीं बोला।

“और ये को अंगूठे के नीचे हथेली की ओर का उभरा हुआ सा भाग है ना?”
“हओ?”
मैं बोलने तो वाला था कि ‘अपने जीवन में तुम्हारी आगे और पीछे दोनों तरफ से खूब जमकर ठुकाई होने वाली है.’ पर प्रत्यक्षतः मैंने इसे घुमा फिरा कर कहना लाज़मी समझा “यह दर्शाता है कि तुम्हें बहुत प्रेम करने वाला पति या प्रेमी मिलेगा.”

ईईइस्स्स्स … अब तो गौरी मारे शर्म के दोहरी ही हो गई। उसके चहरे पर एक चमक सी आ गई थी।

“और हथेली पर यह जो रेखा है ना सबसे ऊपर वाली?”
“हओ?”
“इसे हृदय रेखा कहते हैं। यह बताती है कि तुम बहुत साहसी और मजबूत हृदय की हो। तुम बहुत सोच समझ कर अपना निर्णय लेने में सक्षम हो। और यह रेखा इस बात का भी इशारा करती है कि तुम किसी का दिल कभी नहीं दुखा सकती। तुम एकबार जिसे अपना बना लेती हो उसकी हर बात भी मानती हो और हर तरह से सहायता भी करती हो। बस एकबार सोच लिया कि यह काम करना है तो फिर तुम किसी की नहीं सुनती.” मुझे दबंग फिल्म वाला डायलाग (संवाद) ‘मैंने एक बार कमिटमेंट कर लिया तो फिर मैं अपने आप की भी नहीं सुनता’ चिपका दिया।

“हाँ यह बात तो सही है।” गौरी को अब मेरी बातों पर यकीन होना शुरू हो गया था।
उसकी आँखों की चमक से तो यही जाहिर हो रहा था। मेरा अंदाज़ा है शायद मधुर ने भी उसे थोड़ा बहुत इसी तरह का जरूर कुछ बताया होगा।

मेरी एक जांघ अब उसकी जांघ से बिलकुल सटी थी। हाथ देखने के बहाने मेरा हाथ कई बार उसकी जाँघों को भी छू जाता था। एक दो बार तो उसकी सु-सु के ऊपर भी लग गया था। मेरे ऐसा करने से गौरी ने अपनी एक जांघ को दूसरी के ऊपर रख लिया था। चूत गर्मी और खुशबू से पप्पू तो दहाड़ें ही मारने लगा था।

बार-बार मेरी नज़र उसके खुले बटनों वाली शर्ट के अन्दर छुपे उस खजाने की ओर बरबस खिंची चली जा रही थी जहां उसने दो कलसों में अमृत छिपा रखा था। जब वह थोड़ा सा झुकती है तो कंगूरों को छोड़कर पूरा खजाना ही नुमाया हो जाता है।
हे लिंग देव! इसके एक उरोज के ऊपर तो एक तिल भी है। याल्लाह… कितनी मादकता भरी है इन अमृत कलसों में। अगर एक बार इनका रस पीने मिल जाए तो आदमी मदहोश ही हो जाए। मैं तो उसकी गोलाइयों की घाटियों में जैसे डूब सा गया था।

“हुम्… ओल?”
मैं गौरी की आवाज से चौंका।
“और हाँ… गौरी ये जो तुम्हारी कलाई पर तिल है ना?”
“हओ?”
“इसका मतलब है धन-दौलत की तुम्हारे पास कभी कोई कमी नहीं आएगी और तुम जी भर के अपनी सारी इच्छाओं को पूरा करोगी। ऐसी स्त्री जातक पुत्रवान, सौभाग्यवती, धार्मिक व दयालु प्रवृति की होती हैं।”
“त्या पता?”
“अरे तुम्हें मेरी बातों पर यकीन नहीं हो रहा ना?”
“नहीं… वो… बात नहीं है?”
“तो…?”
“मैं सोच लही हूँ मैं इतनी भाग्यशाली तैसे हो सतती हूँ?”
“अच्छा तुम एक बात और बताओ?”
“त्या?”
तुम्हारे और कहाँ-कहाँ तिल हैं?”
“एक तो मेली ठोडी पल है.”

“वो तो दिख ही रहा है। इसीलिए तो तुम फ़िल्मी हिरोइन की तरह इतनी खूबसूरत हो। जिस स्त्री जातक की ठोड़ी पर तिल होता है वह खूबसूरत होने के साथ बहुत ही ईमानदार और स्पष्टवादी होती है और वह किसी का दिल तो तोड़ ही नहीं सकती। एक और बात है वह जातक बहुत शर्मीली होती है और उसे आम भाषा में लाजवंती स्त्री कहते हैं।” मैंने हंसते हुए कहा।

अब तो गौरी का रूप गर्विता बनना लाज़मी था।
“मेले पैल पल भी एक तिल है।”
“पैर पर कहाँ? निश्चित जगह बताओ?”
“वो… वो… घुटने से थोड़ा ऊपल”
“जांघ पर है क्या?”
“हओ” गौरी ने शर्माते हुए हामी भरी।
“मुझे पता था.”

“आपतो तैसे पता? दीदी ने बताया?” गौरी ने चौंकते हुए पूछा।
“अरे नहीं यार… जिन खूबसूरत लड़कियों की ठोड़ी या होंठों के ऊपर तिल होता है उनके गुप्तांगों के आस-पास या जांघ पर भी तिल जरूर होता है।” मैंने हंसते हुए कहा। कोई और मौक़ा होता तो गौरी जरूर शर्मा कर रसोई या अपने कमरे में भाग जाती पर आज वो थोड़ा शर्माते हुए भी वही बैठी रही।

मैंने अपनी बात चालू रखी- जिस स्त्री के गुप्तांगों के पास दायीं ओर तिल हो तो वह राजा अथवा उच्चाधिकारी की पत्नी होती हैं जिसका पुत्र भी आगे चलकर अच्छा पद प्राप्त करता है।
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Lutgaya

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तीन पत्ती गुलाब़
भाग -12

सच्ची? आप झूठ तो नहीं बोल रहे ना?”
“किच्च! तुम्हारी कसम मैं सच बोल रहा हूँ। अगर तुम्हें यकीन ना हो तो तुम यू ट्यूब पर देख लेना उसमें तो हर प्रश्न का सही उत्तर मिल जाता है।”
“अच्छा?”
“हाँ पर कोई ऐसे-वैसे सवाल मत सर्च कर लेना?” मैंने हँसते हुए कहा।
“हट!” गौरी फिर शर्मा गई।
“अच्छा और कहाँ हैं?”
“मेले दायें दूद्दू (उरोज) पर भी एक तिल है।” उसने शर्माते हुए बताया।
“हे भगवान्!”
“अब त्या हुआ?” गौरी ने चौंक कर पूछा।
“ऐसा लगता है भगवान् ने तुम्हारा भाग्य खुद फुर्सत में अपने हाथों से लिखा है। अब तुम यकीन करो या ना करो पर यह बात सोलह आने सच है।”
“हुम्म” गौरी को अब भी पूरा यकीन तो नहीं हो रहा था पर मेरी प्रस्तुति इस प्रकार की थी कि उसे ना चाहते हुए भी यकीन करना पड़ रहा था।

“अच्छा गौरी एक काम करो?”
“त्या?”
“पर… छोड़ो तुमसे नहीं हो सकेगा?”
“त्या? प्लीज बताओ ना?”
“भई मैं बता तो सकता हूँ पर तुम्हें शर्म बहुत आती है? इसीलिए कहता हूँ तुम नहीं कर पाओगी? रहने दो.” मैंने उसकी उत्सुकता और बढ़ा दी।
“नहीं मैं तल लुंगी आप बताओ”
“शरमाओगी तो नहीं ना?”
“किच्च”
“अच्छा खाओ मेरी कसम?”
“तिस बात ते लिए?”
“कि तुम शरमाओगी नहीं और जैसा मैं बोलूंगा करोगी?” मैंने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा।
“थीत है।”
“देखो अब शर्माना मत? तुमने मेरी कसम खाई है?”
“हओ”

“वो… जो… तुम्हारे दूद्दू पर तिल है ना?”
“हओ?”
“वो मुझे एक बार दिखाओ … ताकि मैं तिल की सही स्थिति सकूं और फिर तुम्हें उसका सटीक रहस्य बता सकूं।”
“हट!”
“देखो मैंने बोला था ना तुम से नहीं होगा.”
“ओह… पल उसमें तो मुझे बड़ी शल्म आयगी?”

“इसमें शर्म की क्या बात है? क्या तुम कपड़े बदलते समय या नहाते समय इनको नंगा नहीं करती?”
“पल बाथलूम में कोई देखने वाला थोड़े ही होता है?”
“क्यों? वहाँ मक्खी, मच्छर, छिपकली या तिलचट्टे तो देख ही लेते हैं?”
“हा… हां… वो… कोई आदमी थोड़े ही होते हैं?”
“अच्छा जी! दूसरे भले ही कोई देख लें पर दुश्मनी तो हमसे ही लगती है?”
“इसमें दुश्मनी ती त्या बात है?”
“और क्या? एक तरफ दोस्त कहती हो, दोस्त की कसम भी खाती हो और फिर बात भी नहीं मानती?

“वो… वो…” गौरी असमंजस में थी। उसे तिल का रहस्य भी जानना था पर शर्म भी महसूस कर रही थी। मेरा जाल इतना सटीक था कि अब उससे बचकर निकलना गौरी के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था।
“तुम यह सोच रही हो ना इसके लिए दूद्दू (बूब्स) को नंगा करना होगा?”
“हओ?”
“तुम एक काम करो?
“?” गौरी ने मेरी ओर प्रश्न वाचक दृष्टि से देखा।
“तुम यह टॉप उतार देना और अपने दूद्दू के कंगूरों को ढक लेना बस। फिर तो शर्म नहीं आएगी ना?”

गौरी कुछ सोचे जा रही थी। उसका का संशय अब भी बरकरार था।
“तुम शायद यह सोच रही हो कि कपड़े उतार कर नंगा होने से पाप भी लगेगा?”
“हओ” गौरी ने कातर (असहाय) नज़रों से मेरी ओर ताका।

“देखो! मधुर ने इसीलिए तो तुम्हारे पैर पर काला धागा बांधा है कि सारे कपड़े उतारने के बाद भी पाप ना लगे? और तुम्हें तो सिर्फ टॉप उतार कर केवल बूब्स पर बना तिल ही दिखाना है तो फिर पाप लगने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता.”
“पल…?” गौरी मेरे प्रस्ताव को स्वीकारने के बारे सोचने लगी थी।
“देखो कोई जबरदस्ती तो है नहीं। चलो… जाने दो। मैं जानता था तुम शर्म का बहाना जरूर बनाओगी?” मैंने ठंडी सांस लेते हुए मायूस लहजे में कहा।
“नहीं… बहाने वाली बात नहीं है?”
“और क्या बात हो सकती है?”
“वो… वो…?”

“ठीक है भई! हमारी किस्मत और औकात तो अब कीड़े, मकोड़े और मच्छरों से भी गई बीती हो गई है।”
“आप ऐसा त्यों बोलते हो?”
“हम तो चलो गैर ठहरे … पर तुम तो अपनी गुरु की बात भी नहीं मानती?”
“तौन गुलू?” (कौन गुरु?)
“तुम मधुर को अपनी दीदी और गुरु मानती हो ना?”
“हओ”

“मधुर ने भी तुम्हें कई बार समझाया है ना कि ज्यादा शर्म नहीं करनी चाहिए?”
“हओ”
“और तुम अपने गुरु की बात मानने से इनकार कर रही हो? पता है ऐसे आदमी के साथ क्या होता है?”
“त्या होता है?”
“वो मरने के बाद भूत बन जाता है।”
“नहीं… आप मज़ात तल लहे हैं?”
“नहीं मैं बिलकुल सच बोल रहा हूँ।”
“पल मैं तो आदमी थोड़े ही हूँ मैं तो लड़ती (लड़की) हूँ?”
“तो फिर तुम भूत की जगह भूतनी बन जाओगी या फिर उलटे पैरों वाली चुड़ैल!” मैंने हँसते हुए कहा।

“ओहो… आपने फिल मुझे फंसा लिया?”
“तुम्हारी मर्ज़ी। तुम्हें उलटे पैरों वाली भूतनी बनाना है तो कोई बात नहीं मत दिखाओ? मेरा क्या है तुम्हें भूतनी या चुड़ैल बनकर उलटे पाँव चलने में बहुत मज़ा आएगा?”
“हे माता रानी! … आपने मुझे तहां फंसा दिया।” गौरी अब हाँ… ना… के फेर में उलझ गई थी। अब उसके लिए मेरी बात मान लेने के अलावा कोई और रास्ता ही कहाँ बचा था।

“ओह … पल … आपतो ऑफिस में देल हो जायेगी मैं बाद में दिखा दूंगी … प्लीज!” गौरी बेबस (कातर) नज़रों से मेरी ओर ऐसे देख रही थी जैसे कोई मासूम हिरनी जाल में फंसने के बाद शिकारी को देख रही हो या फिर कोई निरीह जानवर हलाल होने से पहले कसाई की ओर देखता है।

“अरे तुम ऑफिस की चिंता मत करो. मैं आज वैसे भी ऑफिस में लेट जाऊँगा।”
“ओह… त्या आप बिना टॉप उतारे नहीं देख सतते? … प्लीज उपल से ही देख लो?” गौरी ने बचने का अंतिम प्रयास किया।
“बिना टॉप उतारे तिल दिखेगा कैसे और और बिना दिखे सही अंदाज़ा कैसे होगा?”
“ओह…” उसका चेहरा रोने जैसा हो गया था। उसकी कनपटियों और माथे पर हल्का पसीना सा आने लगा था। उसके साँसें भी बहुत तेज हो चली थी और छाती का ऊपर नीचे होता उभार किसी नदी में हिचकोले खाती नाव की तरह हो रहा था।

“गौरी! प्लीज दिखा दो ना बस एक बार… प्लीज… क्या तुम्हें ज़रा भी दया नहीं आती? कितनी कठोर हृदय बन गई हो?”
गौरी थोड़ी देर कुछ सोचती सी रही और फिर बाद में उसने एक लम्बी सांस लेते हुए कहा “अच्छा आप आँखें बंद कलो” गौरी ने आखिर हार मान ही ली।
मैंने किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह झट से अपनी दोनों आँखें बंद कर ली।

अथ श्री वक्षस्थल: दर्शनम् तृतीय सोपान शुभारंभ!!
दोस्तो! दिल थाम के रखिये अब आलिंगन और चुम्बन के बाद वक्षस्थल के दर्शन और चूसन का तीसरा सोपान शुरू होने वाला है…

गौरी ने धीरे-धीरे अपना टॉप उतारना शुरू किया।

मैंने अपनी आँख हल्की सी खोली…

सबसे पहले उसकी भूरी पैंट में कैद कमर और नितम्बों के ऊपर उसका पेट और नाभि नज़र आई। मेरा लंड तो जैसे बिगडैल बच्चे (उद्दंड बालक) की तरह बेकाबू ही हो गया था। बार-बार ठुमके लगा-लगा कर नाचने लगा था। इतना सख्त हो गया था कि मुझे लगने लगा कहीं इसका सुपारा फट ही ना जाए।

मेरी साँसें तो जैसे बेकाबू सी होने लगी, कानों में सांय सांय सी होने लगी और दिल इस कदर जो-जोर से धड़क रहा था कि मुझे तो वहम सा होने लगा कि कहीं मेरे दिल की धड़कनें मेरा साथ ही ना छोड़ दें।

हे भगवान्! क्या कमाल की कारीगरी की है तुमने? पतली कमर और उभरे से पेडू के ऊपर गोल गहरी नाभि और उसके ऊपर एक जोड़ी गुलाबी नारंगियाँ। दो रुपये के सिक्के जितना कत्थई रंग का एरोला और ठीक उनके बीच में किसमिस के दाने जितने गुलाबी कंगूरे। कंगूरे तो तनकर भाले की नोक की तरह ऐसे खड़े हो गए थे जैसे किसी खजाने का रक्षक किसी घुसपैठिये की आशंका में सतर्क हो जाता है। और दायें उरोज के कंगूरे के एक इंच के फासले पर किसी सौतन की तरह एक काला सा तिल जिसे तिल के बजाये कातिल कहना ज्यादा मुनासिब (उपयुक्त) होगा।

गौरी ने अपना टॉप उतार कर पास के सोफे पर रख दिया। उसके शर्म के मारे अपनी दोनों हथेलियाँ अपनी बंद आँखों पर रख ली। याल्लाह … उसकी कांख में तो बाल तो क्या एक रोयां भी नहीं था। साफ़ सुथरी मुलायम चिकनी रोम विहीन कांख। लगता है सरकार का ‘स्वच्छ भारत अभियान’ हर जगह सफलता पूर्वक काम कर रहा है।

उसके कुंवारे अनछुए कौमार्य की निकलती तीखी गंध किसी को भी मतवाला कर दे। उसकी साँसें बहुत तेज़ चल रही थी और मैं तो बस उसकी साँसों के साथ उसके उरोजों के उतार चढ़ाव में ही जैसे खो सा गया।
एक कमसिन अक्षत कौमार्य लगभग अर्धनग्न अवस्था में मेरे आगोश में बैठा जैसे मेरा ही इंतज़ार कर रहा हो।

उफ्फ… पसलियों पर से सुंदर गोल उठान लिए हुए एक जोड़ी सुडौल रस कूप जिनके अग्र भाग में गुलाबी रंग के पेंसिल की नोक की तरह कंगूरे ऐसे लग रहे थे जैसे गुस्से में नाक फुलाए हों। दोनों गोल पहाड़ियों के बीच की चौड़ी सुरम्य घाटी तो ऐसे लग रही थी जैसे कोई बलखाती नदी अभी इनके बीच से बाद निकलेगी।

मैं तो बस इसे मंत्रमुग्ध होकर देखता ही रह गया। मुझे तो अपनी किस्मत पर जैसे रश्क होने लगा। मैं सच कहता हूँ मुझे तो ऐसा लगने लगा था जैसे मेरी सिमरन ही साक्षात मेरे सामने आ गई है और कह रही है ‘ऐसे क्या देख रहे हो? इन्हें प्रेम नहीं करोगे?’

गौरी लाज से सिमटी मेरी बगल में बैठी थी। उसकी आँखें अब भी बंद थी। उसके मासूम चेहरे को देख कर एक पल के लिए तो मेरे मन में ख्याल आया कहीं मैं यह सब गलत तो नहीं कर रहा? पर मेरे सभी साथी (आँखें, हाथ, नाक, होंठ, लंड, दिल, दिमाग) भला मेरी अब कहाँ सुनने वाले थे। और फिर दूसरे ही पल मेरा यह ख्याल हवा के झोंके की मानिंद फिजा में काफूर (गुम) हो गया।< मैंने एक हाथ उसके सिर के पीछे किया और दूसरे हाथ से उसके एक उरोज को बस हौले से स्पर्श कर दिया। एक नाज़ुक और रेशमी अहसास से मैं सराबोर हो गया। स्पंज की तरह कोमल गोल तरासे हुए उरोज... उफ्फ्फ्फ़... गौरी के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गयी। उसका शरीर हल्का सा कांपा और बंद होंठ लरजने से लगे। उसकी साँसें बहुत तेज हो गई और उसने अपनी जांघें जोर से भींच ली। उसके उरोजों के कंगूरे (घुन्डियाँ) किसी नादान और शरारती बच्चे की तरह कभी अपना सिर ऊपर उठाते कभी झुक से जाते। उसके दिल की धड़कन इतनी तेज थी कि पंखे की आवाज के बावजूद भी मैं साफ़ सुन सकता था। एक सरसों के दाने के बराबर वो कातिल तिल ठीक ऐसा ही था जैसा उसकी ठोड़ी पर बना था। याल्लाह ... उसकी सु-सु के गुलाबी पपोटों के पास भी ऐसा ही तिल कितना हसीन और कातिल होगा यह सोचकर ही मेरा लंड तो किलकारियाँ ही मारने लगा। मेरे कानों में सीटियाँ सी बजने लगी। यह उत्तेजना की चरम सीमा थी जिसे बर्दाश्त करना अब मेरे बस में नहीं था। मैंने इतनी उत्तेजना तो अपनी सुहागरात में भी अनुभव नहीं की थी। मैंने गौरी के दूसरे उरोज के कंगूरे पर अपनी अंगुलियाँ फिराई। गौरी के शरीर ने एक झटका सा खाया। मैंने धीरे से आगे बढ़ कर अपनी जीभ उसके दायें उरोज के कंगूरे पर रख दी। मेरी गीली नर्म जीभ का स्पर्श पाते ही उत्तेजना के मारे गौरी की हल्की चीख सी निकल गई- ईईईईईईई... यह चीख दर्द भरी नहीं थी बल्कि आनंद से भरी थी। गौरी का शरीर कुछ अकड़ सा गया और उसने मेरी तरफ घुमते हुए मेरा सिर अपनी छाती से भींच लिया। उसके बेकाबू होती साँसें मेरे सिर पर महसूस होने लगी थी। अब मैंने उसके एक उरोज को अपने मुंह में भर लिया और एक जोर की चुस्की लगाईं- सल ... मुझे कुछ हो लहा है ... आआईईई... मैं... मल जाउंगी सल! मैंने अपना दायाँ हाथ उसके नितम्बों पर फिराया। हे भगवान! पैंट में कसे हुए उसके नितम्ब तो लगता था आज और भी ज्यादा कठोर और भारी हो गए हैं। गौरी उत्तेजना के मारे उछलने सी लगी थी। वह लगभग मेरी गोद में आ गई थी। मैंने अपना हाथ उसकी नंगी पीठ और कमर पर फिराया और फिर दूसरे उरोज को अपने हाथ में पकड़कर हौले से दबाया। और फिर मैंने एक उरोज के चूचुक (कंगूरे) को अपने मुंह में लेकर पहले तो चूसा और फिर उसके अग्रभाग को हौले से अपने दांतों से दबाया। मेरे ऐसा करने से गौरी ने और जोर से मुझे भींच लिया। मेरे जीवन के ये स्वर्णिम पल थे। पिछले 1 महीने से जिस कमसिन सौंदर्य को पाने की मैंने कामना और कल्पना की थी आज वो हसीन ख्वाब जैसे हकीकत बनने जा रहा था। रुई के नर्म फोहे जैसे नर्म मुलायम गुदाज़ गोल नारंगियों जैसे रसकूपों के अहसास ने मेरी उत्तेजना को अपने चरम पर पहुंचा दिया था। मेरी उत्तेजना का आलम यह था कि मैं किसी भी तरह गौरी को आज ही और अभी पूर्णरूप से पा लेना चाहता था। गौरी के बदन ने एक झटका सा खाया और उसने अचानक मुझे अपनी बांहों से थोड़ा अलग किया और थोड़ा नीचे होकर मेरे होंठों को बेतहाशा चूमने लगी। संतरे की फांकों जैसे रसीले होंठों का यह रेशमी स्पर्श अब मेरे होंठों के लिए अनजाना कहाँ था। गौरी की साँसें उखड़ने सी लगी थी और उसके मुंह से पहले तो गूं ... गूं ... की आवाज सी निकली और फिर एक मीठी किलकारी के साथ वह मेरी बांहों में झूल गई और लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगी। शायद उसने अपने जीवन का प्रथम सुन्दरतम ओर्गस्म (परम कामोत्तेजना का आनंद) प्राप्त कर लिया था। मैंने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया और उसके होंठों, गालों, गले, उरोजों और उनके बीच की घाटी पर बेतहासा चुम्बन लेने शुरू कर दिए। और फिर ... जैसे ही मैंने उसके नितम्बों और जाँघों के संधि स्थल पर हाथ फिराने की कोशिश की ... अचानक मेरी आँखों के तारे से चमकने लगे और मुझे अपने लिंग में भारी तनाव और भारीपन सा महसूस होने लगा। जैसे एक लावे का सैलाब (गुबार) सा मेरे शरीर में उठने लगा है और फिर... पिछले 15 दिनों से आजादी की जंग लड़ता हिन्दुस्तान आजाद हो गया। मेरा बहादुर वीरगति को प्राप्त हो गया। गौरी अचानक मेरी बांहों से अलग होकर अपना टॉप उठाते हुए बाथरूम की ओर भाग गई। मेरी हालत राहुल गांधी की तरह हो गई थी जैसे मैं भी अमेठी की तरह चुनाव हार गया हूँ। इसे कहते हैं खड़े लंड पे धोखा। दोस्ती! आज तो लौड़े लगे नहीं बल्कि पूरे ही झड़ गए थे। पर मुझे अपनी इस हार का कोई गम नहीं था क्योंकि वायनाड तो अभी बाकी था। और फिर मैं भी अशांत और बुझे मन से नहीं बल्कि एक नई आशा और विश्वास के साथ कपड़े बदलने बाथरूम में चला गया। अथ श्री वक्षस्थल: दर्शनम् सोपान इति!! कहानी जारी रहेगी.
 

Lutgaya

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तीन पत्ती गुलाब
भाग-13

मेरे प्यारे पाठको और पाठिकाओ!
एक शेर मुलाहिजा फरमाएं:

वो हमारे सपनों में आये और स्वप्नदोष हो गया।
उनकी इज्जत रह गई और हमारा काम हो गया।

मैं जानता हूँ मेरे पप्पू के चुनाव हार जाने और शीघ्र वीरगति को प्राप्त होने का समाचार सुनकर आपको बहुत गहरा सदमा लगा होगा।

आप लोगों ने कामुक कहानियों में अक्सर पढ़ा होगा कि ऐसी स्थिति में नायिका या प्रेमिका सेक्स के लिए तुरंत राजी हो जाती है और फिर नायक अपनी प्रेमिका के साथ घंटों सम्भोग करता है। और दोनों की पूर्ण संतुष्टि के बाद ही सारा ड्रामा ख़त्म होता है।

पर दोस्तो! ये सब बातें केवल किस्से-कहानियों में ही संभव होती हैं। वास्तविक जीवन में यह सब इतना जल्दी और आसान नहीं होता।

खैर आप निराश ना हों। आप सभी तो बड़े अनुभवी और गुणी है और यह भी जानते हैं कि ‘मेरा पप्पू जब एक बार कमिटमेंट कर लेता है तो फिर वह अपने आप की भी नहीं सुनता।’
पर सयाने कहते हैं वक़्त से पहले और मुक्कदर से ज्यादा कभी नहीं मिलता। बस थोड़ा सा इंतजार और हौसला रखिये शीघ्र ही आपको खुशखबरी मिलेगी।

वैसे देखा जाए तो एक तरह से यह सब अच्छा ही हुआ। आप को हैरानी हो रही है ना? मैं समझाता हूँ। गौरी उस समय उत्तेजना के उच्चतम शिखर पर पहुंची अपना सब कुछ लुटाने के लिए मेरे आगोश में लिपटी थी।
यकीनन मेरी एक मनुहार पर वो सहर्ष अपना कौमार्य मुझे सौम्प देती। पर ज़रा सोचिये इतनी जल्दबाजी में क्या उसे कोई आनन्द की अनुभूति हो पाती?

पता नहीं उसने अपने प्रथम शारीरिक मिलन (सम्भोग) को लेकर कितने हसीन ख्वाब देखे होंगे? क्या वो इतनी जल्दबाजी में पूरे हो पाते? मैं चाहता था वो जिन्दगी के इस चिर प्रतीक्षित पल का इतना आनन्दमयी ढंग भोग करे कि उसे यह लम्हा ताउम्र एक रोमांच में डुबोये रखे।

निश्चित रूप से मैं यह चाहता था कि उसे अपने इस प्रथम मिलन और अपने कौमार्य खोने के ऊपर कोई शंका, गम, पश्चाताप, ग्लानि या अपराधबोध ना हो। उसके मन में रत्ती भर भी यह संभावना नहीं रहे कि उसके साथ कहीं कोई छल किया गया है। मैं तो चाहता हूँ वह भी इस नैसर्गिक क्रिया का उतना ही आनन्द उठाये जितना इस कायनात (सृष्टि) के बनने के बाद एक प्रेमी और प्रेमिका, एक पति और पत्नी और एक नर और मादा उठाते आ रहे हैं।

दोस्तो! सम्भोग या चुदाई तो प्रेम की अंतिम अभिव्यक्ति है? उसके बाद तो सब कुछ एक नित्यकर्म बन जाता है। और इस अंतिम सोपान से पहले अभी तो बहुत से सोपान (सबक) बाकी रह गए हैं। अभी तो केवल तीन सबक ही पूरे हुए हैं अभी तो लिंग और योनि दर्शन-चूषण बाकी हैं और बकोल मधुर प्रेम मिलन और स्वर्ग के दूसरे द्वार का उदघाटन समारोह को तो बाद में संपन्न किया जाता है ना?

तो आइए अब लिंग दर्शन और वीर्यपान अभियान का अगला सोपान शुरू करते हैं.

सयाने कहते हैं जीवन, मरण और परण भगवान् के हाथ होते हैं। पर साली यह जिन्दगी भी झांटों की तरह उलझी ही रहती है। साले इन पब्लिक स्कूल वालों के नाटक भी बड़े अजीब होते हैं। इनको तो बस छुट्टी का बहाना चाहिए होता है। अब मधुर के स्कूल के प्रिंसिपल की वृद्ध माता के देहांत का स्कूल के बच्चों की छुट्टी से क्या सम्बन्ध है? स्कूल ने एक दिन की छुट्टी कर दी थी और अगले दिन रविवार था।
गौरी से 2 दिन बात करना संभव ही नहीं हो पाया। मैंने महसूस किया गौरी कुछ चुप-चुप सी है और मुझ से नज़रें भी नहीं मिला रही है।

आज लिंग देव का दिन है। मेरा मतलब सोमवार है। अब आप इसे श्रद्धा कहें, आस्था कहें, भक्ति कहें या फिर मजबूरी कहें मैं भी सावन में सोमवार का व्रत जरूर रखता हूँ। और इस बार तो मधुर ने विशेष रूप से सोमवार के व्रत रखने के लिए मुझे कहा भी है। अब भला मधुर की हुक्मउदूली (अवज्ञा) करने की हिम्मत और जोखिम मैं कैसे उठा सकता हूँ?
एक और भी बात है … क्या पता इस बहाने लिंग देव प्रसन्न हो जाएँ और मुश्किल घड़ी में कभी कोई सहायता ही कर दें?

मैं आज लिंग देव के दर्शन करने तो नहीं गया पर स्नान के बाद घर में बने मंदिर में ही हाथ जोड़ लिए थे।

गौरी आज चाय के बजाय एक गिलास में गर्म दूध और केले ले आई थी। मैंने महसूस किया गौरी आज भी कुछ गंभीर सी लग रही है।
हे लिंग देव !!! कहीं फिर से लौड़े तो नहीं लगा दोगे?

मैं उससे बात करने का कोई उपयुक्त अवसर ढूंढ ही रहा था।
वह दूध का गिलास और प्लेट में रखे दो केले टेबल पर रखकर मुड़ने ही वाली थी तो मैंने उससे पूछा- गौरी! आज चाय नहीं बनाई क्या?
“आज सोमवाल है.”
“ओह… तुमने चाय पी या नहीं?”
“किच्च”
“क्यों? तुमने क्यों नहीं पी?”
“मैंने भी व्लत (व्रत) लखा है।”

“अच्छा बैठो तो सही?”
गौरी बिना कुछ बोले मुंह सा फुलाए पास वाले सोफे पर बैठ गई। माहौल थोड़ा संजीदा (गंभीर) सा लग रहा था।
“गौरी क्या बात है? आज तुम उदास सी लग रही हो?”
“किच्च” गौरी ने ना बोलने के चिर परिचित अंदाज़ में अपनी मुंडी हिलाई अलबत्ता उसने अपनी मुंडी झुकाए ही रखी।

“गौरी जरूर कोई बात तो है। अब अगर तुम इस तरह उदास रहोगी या बात नहीं करोगी तो मेरा भी मन ऑफिस में या किसी भी काम में नहीं मिलेगा। प्लीज बताओ ना?”
“आपने मेले साथ चीटिंग ती?”
“अरे … कब?” मैंने हैरानी से उसकी ओर देखा।
“वो पलसों?”

लग गए लौड़े!!! भेनचोद ये किस्मत भी लौड़े हाथ में ही लिए फिरती है। इतनी मुश्किल से चिड़िया जाल में फंसी थी अब लगता है उड़न छू हो जायेगी और मैं जिन्दगीभर इसकी याद में मुट्ठ मारता रह जाउंगा। अब किसी तरह हाथ में आई मछली को फिसलने से बचाना जरूरी था। अब तो किसी भी तरह स्थिति को संभालने के लिए आख़िरी कोशिश करना लाजमी था।

मैंने अपना गला खंखारते हुए कहा- ओह … वो … दरअसल गौरी मैं थोड़ा भावनाओं में बह गया था। मैं सच कहता हूँ गौरी तुम्हारे बदन की खूबसूरती देख कर मैं अपने होश ही खो बैठा था? पर देखो मैंने कोई बद्तमीजी (अभद्रता) तो की ही नहीं थी?
“आप तो बस मेले दूद्दू ही देखते लहे? तिल ते बाले में तो बताया ही नहीं?”
“ओह… स… सॉरी!”

हे भगवान् … लगता है मैं तो निरा नंदलाल या चिड़ीमार ही हूँ। इन 2-3 मिनटों में मैंने पता नहीं क्या-क्या बुरा सोच लिया था। मेरा तो जैसे अपने ऊपर से आत्मविश्वास ही उठ गया था। मैंने बहुत सी लड़कियों और भाभियों को बड़े आराम से अपने जाल में फंसाकर उसके साथ सब कुछ मनचाहा कर लिया था पर अब तो मुझे तो डर लग रहा था कि मेरे सपनों का महल एक ही झटके में तबाह होने वाला है। बुजुर्ग और सयाने लोग सच कहते हैं कि औरत के मन की बातों को तो भगवान् भी नहीं समझ सकता तो मेरी क्या बिसात थी।

ओह… हे लिंग देव! तेरा लाख-लाख शुक्र है लौड़े लगने से बचा लिया। आज तो मैं सच में ऑफिस में ना तो समोसे ही खाऊँगा और ना ही कोई और चीज … और तुम्हारी कसम चाय भी नहीं पीऊँगा। प्रॉमिस!!!

“अरे … वो दरअसल… तिल के बारे में बताने का समय ही कहाँ मिला? और फिर तुम भी तो बाथरूम में भाग गई थी? किसे बताता? बोलो?” मैंने उसे समझाते हुए कहा।
“पता है मेले तपड़े खलाब हो गए और मेला तो सु-सु निकलते-निकलते बचा.”

ओह … तो यह बात थी। मेरी तोते जान तो तिल का रहस्य ना बताने पर गुस्सा हो रही है। अब मेरी जान में जान आई। मैंने मन में कहा ‘मेरी जान अब तो मैं तिल क्या तुम्हारे एक-एक रोम का भी हिसाब और रहस्य बता दूंगा।’

आज तो गौरी सु-सु का नाम लेते हुए ज़रा भी नहीं शरमाई थी। शुरू-शुरू में मैं सोचता था इतना हसीन मुजस्समा अपना कौमार्य कहाँ बचा पाया होगा पर जिस प्रकार आज गौरी ने उस दिन अपना सु-सु के निकल जाने की बात की थी मुझे लगता है यह उसके जीवन का पहला ओर्गस्म (लैंगिक चरमसुख की प्राप्ति) था। और इसी ख्याल से मेरे लंड ने एक बार फिर से ठुमके लगाना शुरू कर दिया था।

“अरे तसल्ली से बैठो तो सही, सब विस्तार से बताता हूँ।”
गौरी पास वाले सोफे पर बैठ गई। मैंने आज उसे अपने बगल में सोफे पर बैठाने की जिद नहीं की।

अब मैंने तिल के रहस्य का वर्णन करना शुरू किया:
“देखो गौरी! वैसे तो हमारे शरीर पर बहुत सी जगहों पर तिल हो सकते हैं पर कुछ ख़ास जगहों पर अगर तिल हों तो उनका ख़ास अर्थ और महत्व होता है।”
“हम्म…”
“जिन स्त्री जातकों की छाती पर दायें स्तन पर तिल होता है वो बड़ी भाग्यशाली होती हैं। उनको पुत्र योग होता है। वे असाधारण रूप से बहुत सुन्दर और कामुक भी होती हैं और जिन स्त्री जातकों के बाएं स्तन पर तिल होता है उनको कन्या होने का प्रबल योग होता है। और हाँ एक और ख़ास बात है?” मैंने गौरी की उत्सुकता बढाने के लिए अपनी बात बीच में छोड़ कर एक लंबा सांस लिया।

“त्या?” गौरी ने बैचेनी से अपना पहलू बदला।
“और जानती हो जिस लड़की या स्त्री के दोनों उरोजों के बीच की घाटी थोड़ी चौड़ी होती है यानी दोनों स्तनों की दूरी ज्यादा होती है उनको एक बहुत बड़ी सौगात मिलती है?”
“अच्छा? वो त्या?” अब तो गौरी और भी अधिक उत्सुक नज़र आने लगी थी।
“दोनों उरोजों के चौड़ी घाटी के साथ दोनों कंगूरे अगर सामने के बजाय थोड़ा एक दूसरे के विपरीत दिशा में दिखाई देते हों तो उन स्त्री जातकों को एक साथ दो संतानों यानी जुड़वां बच्चों का योग होता है.”

“मैं समझी नहीं?” शायद यह बात गौरी के पल्ले नहीं पड़ी थी।
“ओह … तुम इधर मेरे पास आकर बैठो मैं समझाता हूँ।”
गौरी कुछ सोचते हुए मेरी बगल में आकर बैठ गई।
“तुमने देखा होगा कुछ लड़कियों के दोनों बूब्स ऐसे लगते हैं जैसे एक दूसरे के बिलकुल पास और चिपके हुए हों।”
“हओ”
“और उन दोनों के बीच एक गहरी खाई सी (क्लीवेज) भी नज़र आती रहती है?”
“हओ… मेली भाभी के दूद्दू भी ऐसे ही हैं।”
“अच्छा?”
“ऐसा होने से त्या होता है?”
“ऐसी स्त्रियों की संतान कुछ कमजोर पैदा होती हैं। उनको माँ के दूध की ज्यादा आवश्यक्ता होती हैं तो प्रकृति या भगवान् उनके स्तनों को थोड़ा बड़ा और पास-पास बनाता है ताकि बच्चे को दोनों स्तनों का दूध आसानी से मिल सके।”

अब पता नहीं गौरी को मेरी बात समझ आई या नहीं या उसे विश्वास हुआ या नहीं वह तो बस गूंगी गुड़िया की तरह मेरी ओर देखती रही।

“और जिन स्त्रियों के दूद्दू थोड़ी दूरी पर होते हैं? पता है उनके लिए भगवान् ने क्या व्यवस्था की है?” इस बार मैंने स्तनों या उरोजों के स्थान पर दूद्दू शब्द का प्रयोग जानकार किया था ताकि गौरी अपने बारे में अनुमान लगा सके।

अब गौरी अपने दुद्दुओं की ओर गौर से देखकर कुछ अनुमान सा लगाने की कोशिश करती लग रही थी। गौरी के दूद्दू भी थोड़े दूर-दूर थे। उनका आकार बहुत बड़ा तो नहीं था पर उनका बेस जरूर नारंगियों जैसा था पर ऊपर से थोड़े उठे हुए से थे और तीखे कंगूरे बगलों की ओर थोड़े मुड़े हुए थे। और उरोजों के बीच की घाटी चौड़ी सी लग रही थी।
शायद गौरी अब कुछ सोचने लगी थी।

“गौरी तुम्हारे दूद्दू भी तो थोड़े दूर-दूर हैं ना?”
“हओ…” कहते हुए गौरी कुछ शरमा सा गई।
“गौरी मुझे लगता है तुम्हारे भी जुड़वां बच्चे होंगे।” कहकर मैं जोर जोर से हंसने लगा था।

गौरी ने इस बार ‘हट’ नहीं कहा। अलबत्ता वह अपनी मुंडी नीचे किये कुछ सोच जरूर रही थी और मंद मंद मुस्कुरा भी रही थी।
“गौरी अगर जुड़वा बच्चे हो गए तो मज़ा ही आ जाएगा? कितने प्यारे और खूबसूरत बच्चे होंगे?”
“हट!!!” गौरी तो शरमाकर इस समय लाजवंती ही बन गई थी।
“तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा ना?”

“पल मेली तो अभी शादी ही नहीं हुई मेले बच्चे खां से होंगे?” साली दिखने में लोल लगती है पर कई बार मुझे भी निरुत्तर कर देती है।
“तो क्या हुआ? कर लो शादी?”
“किच्च! मुझे अभी शादी-वादी नहीं तलानी। दीदी बोलती है पहले पढ़ लिख तल तुछ बन जाओ।”

“अरे गौरी!”
“हओ?”
“यार बातों-बातों में यह दूद्दू ठंडा हो गया। एक काम करो इसे थोड़ा गर्म कर लाओ फिर हम दोनों आधा-आधा दूद्दू पीते हैं? तुमने भी तो व्रत कर रखा है?”
अब यह तो पता नहीं कि गौरी दूद्दू का असली मतलब समझी या नहीं पर वह रसोई में जाते समय मुस्कुरा जरूर रही थी।

गौरी थोड़ी देर में दो गिलासों में इलायची डला गर्म दूध ले आई और फिर से बगल वाले सोफे पर बैठ गई। अब मैंने प्लेट में रखे दोनों केले उठाये। मैंने देखा दोनों केलों का सिरा आपस में जुड़ा हुआ था।
“देखो गौरी यह दोनों केले भी आपस में जुड़वां लगते हैं?” मैंने हँसते हुए उन केलों को गौरी को दिखाया तो वह भी हंसने लगी।
“फिर मैंने दोनों केलों को अलग-अलग करके एक केला गौरी की ओर बढ़ाया। गौरी ने थोड़ा झिझकते हुए केला ले लिया।

मैंने एक केले को आधा छीला और फिर उसे मुंह में लेकर पहले तो चूसते हुए 2-3 बार अन्दर-बाहर किया और फिर एक छोटा सा टुकड़ा दांतों से काटकर खाने लगा। गौरी मेरी इन सब हरकतों को ध्यान से देख रही थी। वह कुछ बोली तो नहीं पर मंद-मंद मुस्कुरा जरूर रही थी।

“गौरी मैं बचपन में वो लम्बी वाली चूसकी (आइसक्रीम) बड़े मजे से चूस-चूस कर खाया करता था।”
“बचपन में तो सभी ऐसे ही तलते हैं।”
“तुम भी ऐसे ही चूसती हो क्या? म … मेरा मतलब चूसती थी क्या?”
“हओ… बचपन में तो मुझे भी बड़ा मज़ा आता था।”
“अब नहीं चूसती क्या?”
“किच्च”

“इस केले को आइसक्रीम समझकर चूस कर देखो बड़ा मज़ा आएगा?”
“हट!”
और फिर हम दोनों ही हंसने लगे।
“गौरी एक बात पूछूं?”
“हओ”
“गौरी मान लो तुम्हारे जुड़वां बच्चे हो जाएँ तो क्या तुम उसमें से एक बच्चा हमें गोद दे दोगी?”
मेरा अंदाज़ा था गौरी शर्मा जायेगी और फिर ‘हट’ बोलेगी पर गौरी तो खिलखिला कर हंस पड़ी और फिर बोली- दीदी भी ऐसा ही बोलती हैं।

“क्या … मतलब? कब? तुमने मधुर से भी इस बारे में बात की थी क्या?”
“नहीं एतबाल दीदी ने मेला हाथ देखकर बताया था.” गौरी ने शर्माते हुए अपनी मुंडी फिर नीचे कर ली।
“फिर तुमने क्या जवाब दिया?”
“मैंने बोला कि दीदी आप चाहो तो दोनों ही रख लेना। सब कुछ आपका ही तो है। मेरे और मेरे परिवार पर आपके कितने अहसान हैं मैं तो आपके लिए अपनी जान भी दे सकती हूँ।”

ओहो … तो गौरी को यह सारा ज्ञान हमारी हनी डार्लिंग (मधुर) का दिया हुआ लगता है। तभी मैं सोचूं उस दिन गौरी ने अपना हाथ देखने की बात मुझ से क्यों की थी? शायद वह इन बातों को कन्फर्म करना चाहती होगी। मुझे डर लगा कहीं इस बावली सियार ने वो भूतनी या चुड़ैल वाली बात तो मधुर से नहीं पूछ ली होगी?
“अरे कहीं तुमने मधुर से वो भूतनी वाली बात तो नहीं पूछ ली?”
“किच्च …” गौरी ने मेरी ओर संदेहपूर्ण दृष्टि से देखते हुए कहा “दीदी से तो नहीं पूछा पल… तहीं आपने मुझे उल्लू तो नहीं बनाया था?”
“अरे नहीं… यार… इसमें उल्लू बनाने वाली कौन सी बात है? मैंने कई किताबों में इसके बारे में पढ़ा है।”
“मैंने इसते बाले में यू-ट्यूब पल सल्च तिया था। उसमें तो इसे सुपलस्टेशन… अंधों… ता विश्वास जैसा तुछ बताया? ये अंधों ता विश्वास त्या होता है मेली समझ में नहीं आया?”

एक तो यह साली मधुर किसी दिन मुझे मरवा ही देगी। इस लोल को अब यू-ट्यूब चलाना और सिखा दिया। गौरी शायद सुपरस्टिशन (अंधविश्वास) की बात कर रही थी। मुझे तो कोई जवाब सूझ ही नहीं रहा था।

“अरे नहीं … दरअसल अंधे व्यक्ति देख नहीं सकते तो उनको भूतनी या चुड़ैल पर विश्वास नहीं होता होगा इसलिए ऐसा बताया होगा?” मैंने गोलमोल सा जवाब देकर उसे समझाने की कोशिश की। अब पता नहीं मेरी बातों पर उसे विश्वास हुआ या नहीं भगवान जाने पर इतना तो तय था कि अब उसके मन की शंकाएं कुछ हद तक दूर जरूर हो गई थी।

बातों-बातों समय का पता ही नहीं चला 9:30 हो गए थे। गौरी बर्तन उठाकर रसोई में चली गई और मैं दफ्तर के लिए भागा।
जय हो लिंग देव !!!

कहानी जारी रहेगी.
 
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Lutgaya

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तीन पत्ती गुलाब
भाग -14

मुझे ध्यान आता है पिछले 15-20 दिनों में तो मधुर से ज्यादा कोई बात ही नहीं हो पाती है। ऐसा लगता है जैसे उसके पास मेरे लिए समय ही नहीं है। सुबह वह स्कूल में जल्दी चली जाती है और साम को या तो मंदिर में पूजा पाठ में लगी रहती है या फिर गौरी के साथ रसोई में लगी रहती है। और आप तो जानते ही हैं शुद्धता को लेकर रात को तो वह अलग सोने लगी है इसलिए रात वाली बातें तो आजकल वर्जित हैं।
अरे भई! मैं चुदाई की बात कर रहा हूँ।

आज रात को जब हम सोने का उपक्रम कर रहे थे तो मधुर ने कहा- प्रेम! ये गौरी है ना?
“हम्म?”
ये साली मधुर भी एकबार में सीधी तरह कोई बात करती ही नहीं। किसी छोटी सी बात को भी इतना घुमाफिरा कर सनसनी पूर्ण बनाकर करती है कि लगता है अभी कोई बम फोड़ देगी। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था।

“आजकल पता नहीं इसका ध्यान किधर रहता है।”
“क… कैसे… ऐसा क्या हुआ?” मैंने हकलाते हुए पूछा। हे लिंग देव ! प्लीज लौड़े मत लगा देना।
“पढ़ाई में इसका मन ही नहीं लगता और पहले दिन जो पढ़ाओ वो दूसरे दिन भूल जाती है। किसी विषय पर पकड़ ही नहीं है इसकी!”
“अच्छा?”
“अंग्रेजी तो इसके पल्ले ही नहीं पड़ती?”

“मुझे लगता है इसका ऊपर का माला खाली होगा?” मैंने हंसते हुए कहा।
“नहीं जी… और दूसरी बातें तो जी में आये उतनी किये जाओ बस पढ़ाई से जी चुराती रहती है।”
मैंने मन में सोचा ‘इस बेचारी की चूत और गांड अब एक अदद लंड माँगने लगी है पढ़ाई-लिखाई में अब इसका मन कहाँ लगेगा। इसे तो अब कलम-किताब के बजाय लंड पकड़ना और प्रेमग्रन्थ पढ़ना सिखाओ।’

“प्रेम, क्या तुम एक काम कर सकते हो?”
“हाँ कर दूंगा.” मेरे मुंह से अचानक निकल गया।
पता नहीं मधुर क्या सोच ले तो मैंने तुरंत बात को संवारते हुए कहा- हां … हाँ … बोलो क्या करना है?
“तुम इसे रोज थोड़ी देर अंग्रेजी पढ़ा दिया करो.”
“पर … मेरे पास कहाँ समय होता है? सुबह तो ऑफिस जाना होता है और …” मैंने जानबूझ कर बहाना बनाया।
मधुर मेरी बात को बीच में ही काटते हुए बोली- प्लीज रात को 9 के बाद पढ़ा दिया करो.
“लगता तो मुश्किल ही है पर मैं कोशिश करूँगा?”

अब मैं सोच रहा था अब तो रात में भी गौरी के साथ 2-3 घंटे का समय आराम से बिताया जा सकता है। सुबह तो ऑफिस जाने की जल्दी रहती है तो ज्यादा बातें नहीं हो पाती पर अब तो शाम को भी अच्छा समय मिल जाएगा। अब तो अंग्रेजी के साथ में इसे जोड़-घटा और गुणा-भाग भी सिखा दूंगा।

“और अगर यह पढ़ने में जी चुराए तो मास्टरजी की तरह इसके कान भी खींच देना!” कहकर मधुर हँसने लगी।
“अरे नहीं … अभी छोटी है … सीख लेगी धीरे धीरे।” मैंने मधुर को दिलासा दिलाया।
मैं सोच रहा था ‘मेरी जान तुम चिंता मत करो बस तुम देखती जाओ कान ही नहीं इसकी तो और भी बहुत सी चीजें पकड़नी और खींचनी हैं।’

आज सुबह भी जब तक मैं फ्रेश होकर बाहर हॉल में आया मधुर स्कूल जा चुकी थी।

मेरे बाहर आते ही गौरी रसोई से बाहर आ गई और मंद-मंद मुस्कुराते हुए बोली- गुड मोल्निंग सल!
“वेरी गुड मोर्निंग डार्लिंग!” मैंने उसे ऊपर से नीचे देखते और हंसते हुए जवाब दिया।
आजकल मेरे डार्लिंग बोलने पर गौरी ने शर्माना छोड़ दिया है।

गौरी ने आज काली पैंट और लाल रंग की चोखाने वाली डिजाइन की कमीज (शर्ट) पहन रखी थी जिसकी आस्तीन (बाहें) उसने फोल्ड कर रखी थी और ऊपर के दो बटन खुले थे। लगता है उसने आज भी ब्रा पैंटी नहीं पहनी है। अब पता नहीं उसे ब्रा पैंटी पहनना अच्छा नहीं लगता या वह जानकर ऐसा करती है?

उसके उरोजों के कंगूरे आगे से बहुत नुकीले लग रहे थे। मैं उस दिन तो जी भर कर इन्हें चूस ही नहीं पाया था। अब पता नहीं दुबारा कुच मर्दन और चूसन का मौक़ा कब मिलेगा? मैंने ध्यान दिया उसके गालों पर 2-3 छोटी-छोटी लाल रंग की फुंसियां सी हो रही थी जिनपर उसने कोई क्रीम सी लगा रखी थी। उसकी आँखें कुछ लाल सी लग रही थी अब यह नींद की खुमारी थी या उफनती, बलखाती, अल्हड़ जवानी का असर था या कोई और बात थी पता नहीं।

“आपते लिए चाय बनाऊं या तोफी?”
“अ… हाँ … चाय ही बना लो।” कहकर मैं अखबार पढ़ने लगा और गौरी चाय बनाने रसोई में चली गई।

थोड़ी देर में गौरी चाय बनाकर ले आई और अब हम दोनों सुड़का लगाकर चाय पीने लगे।
“आपतो एक पहेली पूछूं?” अचानक गौरी ने पूछा।
“हओ” आजकल मैंने भी गौरी के सामने उसी की तरह ‘किच्च’ औए ‘हओ’ बोलना शुरू कर दिया है।

“वो त्या चीज है जो हम एत हाथ से तो पतड़ सतते हैं पल दूसले हाथ से नहीं?”
“हम्म … कोशिश करता हूँ।”

मैंने पहले चाय का गिलास अपने दोनों हाथों से पकड़कर देखा और फिर अपनी नाक, कान, ठोड़ी, गला, पैर, पेट, घुटने और होंठ आदि सभी अंगों को पकड़ कर देखा। सभी तो दोनों हाथों से पकड़े जा सकते हैं फिर ऐसा क्या है जो एक हाथ से तो पकड़ा जा सकता है पर दूसरे हाथ से नहीं?

इसी दौरान मैंने एकबार गौरी के घुटनों और जाँघों पर भी दोनों हाथ लगा कर देख लिए थे पर बात बनती नज़र नहीं आई। मेरी इस हालत पर मंद-मंद मुस्कुरा रही थी। फिर मैंने अपने खड़े पप्पू को भी पायजामे के ऊपर से पकड़ ट्राई किया तो मेरी इस हरकत पर गौरी और जोर-जोर से हंसने लगी थी।
“यार कमाल है?… तुम बताओ?”
“आपने हाल मान ली?”
“हओ” मैंने अपनी हार की हामी भरी।

“अच्छा अब आप अपने एत हाथ से अपने दूसरे हाथ ता अंगूठा पतड़ो।”
मैंने गौरी के कहे अनुसार किया पर बात अभी भी पल्ले नहीं पड़ी।
“अच्छा अब इसी अंगूठे को इसी हाथ से पतड़ो?”
“ओह… कमाल है … मेरे दिमाग में तो यह बात आई ही नहीं?” मैंने हंसते हुए कहा।

गौरी तो अब हंस-हंस कर जैसे दोहरी ही होने लगी थी। आज तो वह अपनी विजय-पताका फहराकर बहुत खुश लग रही थी। हंसते हुए उसके गालों पर पड़ने वाले डिम्पल तो लगता है आज कलेजा ही चीर देंगे।
“लगता है तुमने यह सब यू ट्यूब पर देखा होगा?”
“हओ”
“अरे… गौरी!”
“हम?” गौरी ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा।

“ये तुम्हारे चहरे पर क्या हुआ है? कहीं किसी दिलजले आशिक मच्छर ने तो नहीं काट लिया?” मैंने हंसते हुए पूछा।
“नहीं… पिम्पल्स (मुंहासे) हो गए हैं?” गौरी अब थोड़ी गंभीर हो गयी थी।
“इन पर कुछ लगाया या नहीं?”
“दीदी ने पतंजलि फेसवाश बताया था पल फलक नहीं पड़ा.” गौरी अचानक उदास हो गई।
“ओह… अक्सर रात को देर से सोने पर या खाने-पीने में असावधानी रखने से भी ऐसा हो जाता है?”

मैंने एक बार गौरी से उसकी खाने-पीने की पसंद के बारे में पूछा था तो उसने बताया था कि उसे नूडल्स, डोसा, बर्गर, पेस्ट्री, पकोड़े आदि तैलीय चटपटी चीजें और मिठाई में रसमलाई और आइस-क्रीम बहुत पसंद है। फलों में उसे आम और लीची बहुत अच्छे लगते हैं। मुझे लगता है इस चौमासे (बारिश) की सीजन में यहाँ आने के बाद उसने यही सब खूब जी भर के खाया होगा उसके कारण भी और रात को देर से सोने के कारण भी पेट की गड़बड़ से यह मुंहासे हुए है। कई बार सेक्स का दमन करने से भी ऐसा हो सकता है।

“पता है दीदी त्या बोलती है?”
“क्या?” गौरी की बात संकर मैं चौंका।
“वो बोलती हैं- तुम्हारी जवानी फूट रही है? शादी के बाद ही ठीक होगी.”
“तो कर लो शादी?” मैंने हंसते हुए उसे छेड़ा।
“हट… आपतो मजात सूझ लहा है और मेली डल ते माले जान नितल लही है?”

“शादी में डरने वाली क्या बात है?”
“अले… शादी से नहीं?”
“तो?”
“मुझे डल है वो गुप्ताजी ती लड़ती ती तलह मेला चेहला तो खलाब नहीं हो जाएगा?”
“अरे हाँ… उसका तो मुहांसों के कारण पूरा चेहरा ही छेदवाली फटी बनियान जैसा हो गया है।” कह कर मैं हंसने लगा।

अलबत्ता गौरी की शक्ल रोने जैसी हो गयी थी।
“पर उसकी समस्या तो अब जल्दी ही ठीक हो जायेगी.”
“तैसे?”
“जल्दी ही उसकी शादी होने वाली है ना?” मैंने हंसते हुए कहा।
“हम्म …” गौरी उदास सी हो गई थी।

“गौरी, यह अक्सर हारमोंस में बदलाव के कारण होता है। और उभरती जवानी में तो खूबसूरत लड़कियों के साथ अक्सर ऐसा होता है। हमारे एक जानकार की लड़की थी। पता है उसकी सगाई हो चुकी थी और शादी होने वाली थी.”
“फिल?”
“फिर उसके चहरे पर मुंहासे हो गए जिसके कारण उसका चेहरा खराब हो गया तो उस बेचारी की तो सगाई ही टूट गई थी और फिर बहुत दिनों तक उसकी शादी नहीं हो पाई तो उस बेचारी ने आत्महत्या कर ली।”
“ओह… अब त्या होगा? मेला भी चेहला खलाब हो जाएगा त्या? हे मातालानी! मेले मुंहासे ठीक तल दो मैं आपतो नौमी ते दिन गुलगुले चढ़ाऊँगी” गौरी हाथ जोड़कर मन्नत सी माँगने लगी। उसे अपनी सुन्दरता खोने का डर सताने लगा था। मुझे लगा गौरी अब रोने ही लगेगी।

“गौरी इधर आओ! मैं देखता हूँ किस प्रकार के मुंहासे हैं? उभरती जवानी वाले या हारमोंस वाले?”

गौरी बिना किसी शर्म और हील-हुज्जत के मेरे बगल में सोफे पर आकर बैठ गई। उसकी जांघ अब मेरी जांघ से सट गयी थी। चूत की खुशबू से मेरा लंड एकबार फिर से किलकारी मारने लगा था। जैसे कह रहा था ‘गुरु आज मौक़ा भी है और बहाना भी अच्छा है साली का सोफे पर ही गेम बजा डालो।’

मैंने उसका चेहरा अपने हाथों में पकड़ लिया। आह… रेशम के फोहों जैसे स्पंजी और गुलाबी गाल तो ऐसे लग रहे थे जैसे कह रहे हों ‘हमें चूमोगे नहीं?’ उसके होंठ काँप से रहे थे और सांसें बहुत तेज़ चलने लगी थी। उसकी साँसों के साथ उरोजों का उतार-चढ़ाव उसकी घबराहट दिखा रहा था। गौरी की आँखें बंद थी। मेरा मन तो सब कुछ भूलकर उसके गालों और अधरों को फिर से चूम लेने को करने लगा था पर मैंने अपने आप को बड़ी मुश्किल से रोक रखा था। लंड तो साला फिर से ख़ुदकुशी की धमकी ही देने लगा था।

फिर मैंने उन मुहांसों पर अपनी अंगुली फिराई। राई के दाने जितने 2-3 मुंहासे किसी खलनायक की तरह वहाँ खड़े मेरी ‘तोते जान’ को जैसे डरा-धमका रहे थे।
“थीत हो जायेंगे ना?”
“ओह… हाँ…” गौरी की आवाज सुनकर मैं चोंका।
“गौरी यह सब हारमोंस की गड़बड़ी से हुए लगते हैं.”
“तैसे? मैं समझी नहीं?”

मेरा मन तो कर रहा था साफ़ साफ़ बता दूं कि ‘मेरी तोते जान अब तुम अपने आशिकों को चु…ग्गा (चूत-गांड) देना शुरू करो तुम्हारी चूत और गांड को मेरे जैसे एक अदद लंड की जरूरत है। दोनों तरफ से खूब चुदाई का मज़ा लो ये कील मुंहासे सब ख़त्म हो जायेंगे।’

पर मैंने कुछ सोचते हुए कहा- देखो! किशोरावस्था के बाद उभरती जवानी में अक्सर ऐसा होता है। वैसे तो एलोपेथी में बहुत सी दवाइयां हैं पर इनका दुष्प्रभाव (साइड इफ़ेक्ट) भी होता है। आयुर्वेद में भी इसका इलाज़ तो है।
“प्लीज बताओ ना?” गौरी को कुछ आशा बंधी।

“चरक संहिता में 8 घटकों के मिश्रण से अष्टावहेल (एक लेप) बनाया जाता है। जिसमें नीम गिलोय और गुलाब की पत्तियाँ, एलोविरा का रस, बबूल का गोंद, हल्दी, एक चम्मच ताज़ा कच्चा दूध और शहद शामिल हैं। फिर इस अष्टावहेल में एक और चीज भी मिलाकर चहरे पर लगाया जाता है.”
“वो त्या चीज होती है?” गौरी ने अधीरता से पूछा।
“ओह… कैसे समझाऊं?”
“त्या हुआ बताओ ना?”
“ओह… यार मुझे शर्म भी आ रही है और झिझक सी भी हो रही है.” मैंने शर्माने का नाटक किया।
“ओहो… प्लीज बताओ ना? इसमें शल्म ती त्या बात है?”

“वो… वो… शादी के बाद ठीक हो जायंगे तुम चिंता मत करो.” मैंने एक बार फिर से उसे टालने का नाटक किया।
“नहीं… नहीं … मुझे अभी 5-7 साल शादी-वादी बिलतुल नहीं तलानी? आप इलाज़ बताओ ना?”
“यार… आज तो तुमने मुझे ही फंसा लिया… कैसे बताऊँ?”
“अच्छाजी… जब मुझे शल्म आती है तो आप मजात समझते हैं अब अपनी बाली (टर्न) आई तो जनाब तो शल्म आती है? मुझे पता है आप जानतल नहीं बताना चाहते?”

“ओह… अच्छा… रुको मैं बताने की कोशिश करता हूँ…” मैंने एक बार फिर से शर्माने और झिझकने का नाटक किया ताकि अब मैं उसे जो भी बताऊँ गौरी को सौ फ़ीसदी (प्रतिशत) यकीन हो जाए कि मैं जो भी बता रहा हूँ बिलकुल सच है और उसे ज़रा भी यह नहीं लगे कि मैं उसके साथ कोई छल कपट कर रहा हूँ।

फिर मैंने अपना गला खंखारते हुए कहा- दरअसल शादी होने के बाद दोनों पति पत्नी सेक्स का खूब आनन्द लेते हैं। इससे उनके शरीर में रक्त का संचार बहुत तेजी से होने लगता है जिसके कारण हारमोंस में बदलाव आ जाता है।
इतना कहकर मैं थोड़ी देर रुक गया।

मैं देखना चाहता था कि मेरी बात पर गौरी की क्या प्रतिक्रया होती है। वह ध्यानपूर्वक मेरी बात सुन रही थी और कुछ सोचे भी जा रही थी। शायद उसे थोड़ी शर्म तो जरूर आ रही थी पर उसने कुछ बोला नहीं अलबत्ता उसके चहरे से लग रहा था वो आगे जानने की उत्सुक जरूर है। लगता है चिड़िया अब सब कुछ सुनने, समझने और करने के लिए अपने आप को तैयार कर रही है।

“और… एक और बात है?”
“त्या?” उसने अपनी मुंडी ऊपर करते हुए पूछा।
“देखो गौरी ! सेक्स ईश्वर द्वारा मानव को प्रदत्त आनन्दायक क्रिया है यह कोई पाप कर्म नहीं है। इसमें पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका को जिन क्रियाओं में आनन्द मिले वो सब प्राकृतिक और निष्पाप होती हैं। अब चाहे वो आलिंगन हो, चुम्बन हो, सम्भोग हो या फिर अपने साथी के कामांगों को चूमना हो या चूसना हो।”

मैंने अपनी भाषा पर पूरा नियंत्रण रखा था। मेरी कोशिश थी कि किसी भी प्रकार का कोई अभद्र या अश्लील शब्द अभी मेरे मुंह से नहीं निकले। बाद में तो इसे चूत, गांड, लंड और चुदाई सब स्पष्ट शब्दों में बता भी दूंगा और सिखा भी दूंगा।

“गौरी एक बात तुम्हें और भी बताता हूँ?”
“त्या?”
“जब मधुर की शादी हुई थी तब मधुर को भी पिम्पल्स हो रहे थे.”
“अच्छा? फिल तैसे थीत हुए?” गौरी की आँखें जैसे चमक ही उठी। उसे लगने लगा था अब तो उसकी समस्या का समाधान अवश्य ही मिल जाएगा।
“यार प्राइवेट बात है.” मैंने फिर से थोड़ा शर्माने की एक्टिंग की।
“मैं भी तो अपनी साली बातें आपतो बताती हूँ आप त्यों नहीं बता लहे?”
“पता नहीं तुम क्या सोचोगी और विश्वास करोगी या नहीं?”
“तलुंगी… प्लीज बताओ?”

“मधुर ने अपने मुंहासों के लिए मेरे वीर्य का पान किया था? और तुम्हें विश्वास नहीं होगा उसके मुहांसे तो 15-20 दिनों में ही बिलकुल ठीक हो गए थे।”
“अच्छा?” गौरी आश्चर्य से मेरी ओर देखने लगी। वह कुछ सोचने लगी थी मुझे लगा उसके मन में अभी थोड़ा संशय है।
“वो… आप दवाई ते बाले में बता रहे थे ना?” साली दिखने में लोल लगती है पर कितनी सफाई से बात का रुख मोड़ दिया है।

“वो दरअसल उस लेप (मिश्रण) में चिकनाई के लिए अपने पति का ताज़ा वीर्य मिलाया जाता है। अगर शादी नहीं हुई हो तो फिर अपने प्रेमी या किसी नजदीकी मित्र से सहायता ली जा सकती है।”
“ओह…”
“गौरी ! दरअसल दवाई तीन तरह से प्रयोग में लाई जाती है?”
“?” गौरी ने फिर आश्चर्य से मेरी ओर देखा।
“एक तो लगाई जाती है दूसरी खाई या पी जाती है और तीसरी इंजेक्ट (सुई लगाना) की जाती है। मधुर ने लेप-वेप का झमेला ही नहीं किया उसने तो सीधे ही वीर्य-पान करके अपनी समस्या से छुटकारा पा लिया था।” कहकर मैं हंसने लगा।

गौरी भी थोड़ा शर्मा तो जरूर रही थी पर कुछ गंभीरतापूर्वक सोचती भी जा रही थी। मुझे लगता है उसे भी यह आईडिया जच तो रहा था। हे लिंग देव… बस थोड़ी सी मदद कर दे। मेरा लंड तो अब डंडे की तरह खड़ा हो गया था। उसे भी अब चुग्गे की उम्मीद और स्वाद की खुशबु नज़र आने लगी थी।

मैंने अपना प्रवचन जारी रखते हुए उसे आगे बताया-
“गौरी सुनने और देखने में यह थोड़ा गंदा सा काम लगता है पर विदेशों में तो वीर्यपान आम बात हैं। बहुत सी विदेशी फिल्म हिरोइनें तो ताज़ा वीर्य को अपने चेहरे पर लगाती भी हैं और शहद के साथ पीती भी हैं इससे उनकी सुन्दरता बढ़ती है और चहरे पर निखार आने लगता है। जानकारों के अनुसार चेहरे पर वीर्य लगाने से यह किसी एंटी-एजिंग (Anti-aging) उत्पाद की तरह काम करता है। 40 साल की औरत भी 25-26 की लगती है। वीर्य में एंटीऑक्सीडेंट गुण मौजूद रहते हैं जो त्वचा की झुर्री और त्वीचा के लचीनेपन जैसे विकारों को दूर करने में मदद करता है। चेहरे के लिए वीर्य बहुत ही फायदेमंद होता है इसलिए इसे आजकल अंतरराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा बेचा भी जा रहा है।

वीर्य का सेवन करने से तंत्रिका विकास फैक्टर, ऑक्सीटोसिन, प्रोजेस्टेरोन, टेस्टोस्टेरोन, कोर्टिसोल और कुछ प्रोस्टाग्लैंडिन जैसे इंफ्लेमेटरी गुण प्राप्त होते हैं। वीर्य हमारे शरीर में मौजूद टीजीएफ-बीटा प्रोटीन की सहनशीलता को बढ़ाने में मदद करता है। यह चिंता और तनाव को दूर करने में मदद कर सकते हैं। यह प्रोटीन और विटामिन से भरपूर होता है। अब कोई इसे पीने के लिए तैयार हैं या नहीं इसका निर्णय उसे खुद लेना होता है।

आज तो मैंने भारी भरकम ज्ञान गौरी को दे डाला था। अब पता नहीं उसे क्या और कितना समझ आया पर वह लोटन कबूतरी की तरह मुंह बाए बस सुनती ही रही।
“गौरी शायद तुम्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं हो तो तुम यू ट्यूब पर भी वीर्यपान के लाभ देख सकती हो.” मैंने गौरी फ़तेह अभियान के ताबूत में एक और कील ठोक दी।

“पल… एत बात मेली समझ में नहीं आई?”
“क्या?”
“यह लेप वाली बात मुझे दीदी ने त्यों नहीं बताई?” गौरी ने कुछ सोचते हुए कहा।
“भई! अब यह मियाँ-बीवी की निजी बातें होती हैं। खूबसूरत औरतों को तुम्हारी तरह शर्म बहुत आती है ना? इसलिए नहीं बताई होगी.” कहकर मैं हंसने लगा। अब तो गौरी के चेहरे पर भी मुस्कराहट ऐसे फ़ैल गई जैसे रात को चांदनी फ़ैल जाती है।

प्यारे पाठको और पाठिकाओ! आज का सबक मैंने जानबूझ कर अधूरा छोड़ा था। बस थोड़ा सा इंतज़ार कीजिये हमारी तोतेजान खुद ही वीर्यपान की इच्छा जाहिर करने वाली है।

कहानी जारी रहेगी.
 
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तीन पत्ती गुलाब
भाग-15

रात्रि भोजन (डिनर) निपटाने के बाद मधुर ने मेरी ओर इशारा करते हुए गौरी को समझाया- आज से सर तुम्हें नियमित रूप से रात को अंग्रेजी पढ़ाया करेंगे। मैं रसोई में तुम्हारी मदद कर दिया करुँगी. काम को जल्दी निपटा लिया करना ताकि ठीक से पढ़ाई हो सके।
“हओ …” अब बेचारी तोतेजान ‘हओ’ के अलावा और क्या बोल सकती थी।

“और प्रेम, अगर यह पढ़ाई में कोई कोताही बरते (आनाकानी करे) तो एक डंडा रख लो चाहो तो उससे इसकी अच्छी तरह पिटाई भी कर देना।”
डंडे वाली बात पर हम तीनों ही हंस पड़े। मेरा डंडा तो वैसे ही आजकल अटेंशन रहता है अब तो मधुर ने भी इजाजत दे दी है। अब डंडे का इस्तेमाल कहाँ, कब और कैसे करना है मैं सही समय पर अपने आप कर लूंगा। लिंग देव इस पढ़ाकू कबूतरी का भला करे।

“मैं सोने जा रही हूँ। आज से ही पढ़ाई शुरू कर दो। और गर्मी के सीजन में ये क्या पैंट-कमीज पहन रखी है वो शॉर्ट्स क्यों नहीं पहनती?” और फिर मेरी ओर मुस्कुराते हुए ‘गुड नाईट’ कहकर मधुर बेड रूम की ओर चली गई।

मेरी तोतेजान तो बेचारी सकपका कर रह गई।
“ग … गौरी तुम अपनी बुक्स वगैरह ले आओ.”
“हओ …” कहकर गौरी सुस्त कदमों से चलकर स्टडी रूम अपने कमरे में चली गई।

अब मैं सोच रहा था यह साली मधुर मेरे साथ कोई गेम तो नहीं खेल रही? जिस प्रकार उसने गौरी को शॉर्ट्स पहनने के लिए कहा था और बाद में मेरी ओर मुस्कुराते हुए देखा था, मुझे कुछ थोड़ी शंका भी होती है और डर भी लगता है। औरतों के बारे में एक बात जो जग जाहिर है कि वे अपनी पति को दूसरी लड़की या औरत के पास फटकने भी नहीं देती तो मधुर इस प्रकार मुझे और गौरी को खुली छूट कैसे दे रही है? पता नहीं इसके दिमाग में क्या खिचड़ी पक रही है?

प्रिय पाठको और पाठिकाओ! आप सभी तो बहुत ही अनुभवी और गुणी हैं आपको क्या लगता है मधुर के ऐसा करने के पीछे कोई प्लान या साज़िश तो नहीं? कहीं वह मेरी परीक्षा तो नहीं ले रही? मुझे गौरी के साथ अपने सम्बन्धों को आगे विस्तार देना चाहिए या यहीं विराम दे देना चाहिए? मैं आपकी अनमोल राय का मुन्तजिर और आभारी रहूंगा।

गौरी ने अपने कपड़े बदल लिए थे अब वह छोटी वाली निक्कर और सफ़ेद रंग का स्लीवलेस टॉप (जिसपर फूलों वाली डिजाईन बनी थी) पहन कर आ गई।
हे भगवान् … पतली कमर में बंधे निक्कर के ऊपर गोल गहरी नाभि तो किसी योगी की तपस्या भी भंग कर दे। उसने अपने बालों की दो चोटी बना रखी थी और इन शॉर्ट्स में तो वह टेनिस की खिलाड़ी जैसी लग रही थी।

आप सोच सकते हैं मुझे उस समय सिमरन की कितनी याद आयी होगी? पुष्ट और गुलाबी रंग की मादक जांघें देखकर तो मेरा पप्पू उछलने ही लगा। मैं तो उसे अपलक देखता ही रह गया। मेरे मुंह से ‘वाओ’ निकलते-निकलते बचा।

उसने अपनी 2-3 किताबें और कापियां अपनी छाती से चिपका रखी थी। साली इन किताबों की किस्मत भी कितनी बढ़िया है, गौरी की छाती से चिपकी हुई हैं। गौरी अपनी कॉपी-किताबें टेबल पर रखकर वहीं खड़ी हो गई।

“ब… बैठो गौरी! और अब यह बताओ तुम्हें अंग्रेजी में क्या-क्या आता है?”
“एत मिनट लुतो?” (एक मिनट रुको)

और फिर गौरी झुककर मेरे पैरों को छूने की कोशिश करने लगी। मुझे कुछ समझ नहीं आया कि गौरी ये क्या कर रही है? मैं तो उसके कुंवारे बदन और स्लीवलेस टॉप में उसकी रोम विहीन कांख से आती मदहोश करने वाली खुशबू में ही खोया था। याल्लाह… अगर कांख इतनी कोमल और साफ़ सुथरी है तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इसने अपनी बुर (सॉरी… सु-सु) को कितनी चिकनी चमेली बनाया होगा?

मेरा ख्याल है उसने अपनी केशर क्यारी को रेज़र या हेयर रिमूविंग (बालसफा) क्रीम के बजाय वैक्सिंग से साफ़ किया होगा। अब तो उसके पपोटे मोटे-मोटे और गुलाबी नज़र आने लगे होंगे और दोनों पपोटों के बीच की दरार (झिर्री) तो कामरस में भीगी होगी। हे भगवान् उसके पपोटों को अगर थोड़ा सा खोल कर उसकी झिर्री पर जीभ फिराई जाए तो जन्नत यहीं यही उतर आये।

बस इन मुंहासों को ठीक करने वाला मेरा आईडिया उसे जम जाए तो अब मंजिले मक़सूद ज्यादा दूर नहीं रहेगी। हे लिंग देव ! अब इस वीर्य पान वाले सोपान को निर्विघ्न पूरा करवा देना अब अंतिम समय में लौड़े मत लगा देना प्लीज…!!!

“आप मुझे आशिल्वाद दो?”
“ओह… हाँ…” गौरी की आवाज सुनकर मैं अपने ख्यालों से वापस आया।
मैंने कहा- सदा प्रसन्न रहो और तुम्हारे मुंहासे जल्दी ठीक हो जाए।
मुझे लगा गौरी मुंहासे ठीक होने के लिए आशीर्वाद मांग रही है।

“अले… नहीं… अच्छी पढ़ाई ता आशिल्वाद?”
“ओह.. हाँ …” पता नहीं आजकल मेरा तो जैसे दिमाग ही काम नहीं करता मैं तो सुबह से इसके मुंहासों का इलाज करने के बारे में बहुत ही गंभीरता पूर्वक विचार किये जा रहा था।
“खूब पढ़ो। मेरा आशीर्वाद और प्रेम सदा तुम्हारे साथ रहेगा। मैं आज से तुम्हें अपनी प्रिय शिष्या के रूप में स्वीकार करता हूँ। कबूल है, कबूल है, कबूल है।”

अब हम दोनों ही हंसने लगे। गौरी मेरे दोनों पैर छूकर अपना हाथ अपने सिर पर लगाया और सोफे पर बैठ गई।
“गौरी तुमने तो कबूल है बोला ही नहीं?”
“हां… तबूल है.” गौरी ने मुस्कुराते हुए मेरी ओर देखकर कहा।
“तीन बार बोलो.” मैंने हंसते हुए उसे टोका।
“ऐसा तो शादी में बोला जाता है?” कहते हुए गौरी रहस्यमई ढंग से मुस्कुराई और फिर उसने बड़ी अदा से (सलाम बजाने के अंदाज़ में) तीन बार ‘कबूल है’ कहा।

“देखो तुमने मुझे गुरु स्वीकार किया है अब मेरी हर बात और आज्ञा तुम्हें माननी पड़ेगी और कुछ बताने में शर्म भी छोड़नी पड़ेगी.”
“हओ… ठीत है गुलुजी।” गौरी ने हंसते हुए कहा।
“गौरी एक काम तो आज से करो?”
“त्या?”
“एक तो ‘हओ’ और ‘किच्च’ की जगह अब ‘यस’ और ‘नो’ बोलना शुरू करो। और अंग्रेजी के छोटे-छोटे वाक्य बोलना शुरू करो जैसे थैंक यू, सॉरी, प्लीज, ओके, वेलकम, स्योअर … आदि।”
“हओ… सोल्ली… इ..यस” गौरी के मुंह से फिर हओ निकल गया।
“शुरू-शुरू में थोड़ा गड़बड़ होगा पर धीरे धीरे तुम्हें अंग्रेजी आने लगेगी। अब यस सर बोलो?” मैंने हंसते हुए कहा।
“यस सल” इस बार गौरी ने पूरे विश्वास के साथ बोला।

“अच्छा अब बताओ तुम्हें अंग्रेजी में क्या-क्या आता है?”
“मुझे तल्लस (कलर्स), वेजिटेबल ओल दिनों ते नेम, थ्लस्टी त्रो ती स्टोली, माय फ्लेंड ओल दिवाली का एस्से भी याद है ओल लीव एप्लीतेशन भी आती है।”
“अरे वाह … तुम्हें तो बहुत कुछ आने लगा है।”
“सब दीदी … सोल्ली मैडम ने पढ़ाया है? मुझे बस मीनिंग याद नहीं लहते।”

“गौरी, तुम्हें पार्ट्स ऑफ़ बॉडीज के नाम आते हैं क्या?”
“यस … आपतो सुनाऊं?”
“हाँ… हाँ सुनाओ.”
“नोज, टीथ, हैण्ड, फिन्गल, लिप्स, चिन, हेड, लेग, इअल, आइज, एब्डोमेन साले याद हैं.” गौरी ने अपनी अंगुली इन सभी अंगों पर लगाते हुए बताया।
बाकी सब तो ठीक था पर साली ने चूत, गांड, बोबे और नितम्बों के नाम नहीं बताये।

“वाह… बहुत बढ़िया!”
“अच्छा… घुटनों को क्या कहते हैं?”
“नीज”
“और… जीभ को?”
“टोंग”
“अंगूठे को?”
“हाथ वाले तो थंब ओल पैल वाले तो टो बोलते हैं।”

“वाह … शाबास तुम्हें तो सारे याद हैं. गौरी अगर तुम शरमाओ नहीं तो एक-दो मीनिंग और पूछूं?”
“हम?” उसने मेरी ओर आश्चर्य मिश्रित मुस्कान के साथ देखा।
“वो… दूद्दू को क्या बोलते हैं?”
“मिल्त” (मिल्क)
“अरे उस मिल्क की नहीं मैं तुम्हारे वाले दूद्दू की बात कर रहा हूँ?”
“ओह…” गौरी ने अपने दुद्दुओं को देखते हुए थोड़ा शर्माते हुए जवाब दिया- इनतो ब्लेस्ट बोलते हैं।
“हम्म… और प्राइवेट पार्ट को क्या बोलते हैं?”

गौरी कुछ सोचने लगी थी। मुझे लगा इस बार वह ‘हट’ बोलते हुए जरूर शर्मा जायेगी।
“प्लाइवेट पाल्ट तो प्लाइवेट पाल्ट ही होता है?” उसने बिना झिझके जवाब दिया।
“अरे नहीं … स्त्री के प्राइवेट पार्ट को वजिना और पुरुष के प्राइवेट पार्ट को पेनिस बोलते हैं।”
“पल… मैडम ने यही समझाया था?”
“ओके…”

“तल मैडम ने मुझे 20 मीनिंग याद तरने दिए थे?”
“फिर?”
“मैंने याद तल लिए.”
“अरे वाह… तुम सब काम मन लगाकर करती हो ना इसीलिए जल्दी याद हो जाते हैं।”
गौरी अपनी बड़ाई सुनकर मंद-मंद मुस्कुने लगी थी।
“गौरी मैं आज तुम्हें सेल्फ इंट्रोडक्शन देना सिखाता हूँ?”
“सेल्फ… इंट्लो…” शायद गौरी को समझ नहीं आया था।
“सेल्फ इंट्रोडक्शन माने अपने बारे में किसी को बताना?”
“ओके”

और फिर मैंने उसे अगले आधे घंटे तक सेल्फ इंट्रोडक्शन के बारे में 8-10 वाक्य अंग्रेजी में रटा दिए। गौरी अभी भी आँखें बंद किये मेरे बताये वाक्यों को रट्टा लगा रही थी। मेरी निगाहें बार-बार उसकी जाँघों के संधि स्थल के उभरे हुए भाग चली जा रही थी। एक-दो बार गौरी ने भी इसे नोटिस तो किया पर वह अपनी पढ़ाई में लगी रही।

उसकी जांघें इतनी चिकनी और गोरी थी कि उन पर नीले से रंग की हल्की-हल्की शिरायें सी नज़र आ रही थी। और घुटनों के ऊपर का भाग तो मक्खन जैसा लग रहा था। आज उसने जो फूलों वाली डिजाईन का स्लीवलेस टॉप पहना था वह पीछे से डोरी से बंधा था। उसमें कसे हुए उरोज किसी हठी बच्चे की मानिंद लग रहे थे जैसे जिद कर रहे हों हमें आजाद कर दो। जब वह पढ़ते समय थोड़ा झुकती है तो कई बार उसके नन्हे परिंदे अपनी गर्दन बाहर निकालने की कोशिश में लगे दिखते हैं।

मैंने एक बात नोटिस की है। आजकल गौरी ब्रा और पैंटी नहीं पहनती है। हो सकता है मधुर ने रात में सोते समय ब्रा पैंटी पहनने के लिए मना किया हो पर गौरी तो आजकल दिन में भी इन्हें कहाँ पहनती है। कच्छीनुमा निक्कर में इसके नितम्ब इतने कसे हुए लगते हैं कि किक मारने का मन करने लगता है।

अब तक लगभग 11 बज गए थे। गौरी को भी उबासी (जम्हाई) सी आने लगी थी। अब आज के सबक की एक और आहुति देनी बाकी थी।
“अरे गौरी!”
“यस?”
“एक बात तो बताओ?”
“त्या?”
“वो तुमने अपने मुंहासों का कोई इलाज़ किया या नहीं?”
“किच्च… नहीं” गौरी ने एक बार मेरी ओर देखा फिर अपनी मुंडी झुका ली।

“कोई दिक्कत?”
“मेली तिस्मत ही खलाब है?”
“क्यों? ऐसा क्या हुआ है?”
“वो आपने जो बताया मैं खां से लाऊँ?”
“ओह… गौरी यार अजीब समस्या है?”
गौरी ने प्रश्नवाचक निगाहों से मेरी ओर देखा।

“यार मैं तुम्हारी हेल्प तो कर सकता हूँ… पर…”
“पल… त्या?” गौरी ने मेरी ओर आशा भरी नज़रों से ताका।
“अब पता नहीं तुम मुझे गलत ना समझ लो?” मैंने जानबूझ कर बात अधूरी छोड़ दी।
“नहीं … आप बोलो?”
“गौरी तुम कल बाकी चीजों का इंतजाम कर लेना फिर मैं उस 8वीं चीज के लिए कुछ करता हूँ।”

मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था। पता नहीं क्यों गौरी से सीधे नज़रें मिलाने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। क्या पता गौरी क्या सोच रही होगी या क्या प्रतिक्रिया करेगी.
“हओ”
“अच्छा गौरी! सवा ग्यारह हो गए हैं अब बाकी कल पढ़ेंगे। आज जो पढ़ाया उसे दिन में अच्छे से याद कर लेना।”
“ओके सल … गुड नाईट.”
“ओके डीअर शुभ रात्रि.”

हे लिंग देव तेरी जय हो। मैं तो इस सावन में सोमवार के बाकी बचे सभी व्रत बड़ी ही श्रद्धापूर्वक करूंगा और तुम कहोगे तो भादों महीने में भी व्रत रख लूंगा बस… तुम अपनी कृपा दृष्टि मेरे और इस तोतापरी के ऊपर इसी प्रकार बनाए रखना।

कहानी जारी रहेगी.
 
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तीन पत्ती गुलाब
भाग -16

प्रिय पाठको और पाठिकाओ! आइए अब लिंग दर्शन और चूसन के इस सोपान की अंतिम आहुति डालते हैं…

आज सुबह-सुबह मधुर ने नया फरमान जारी कर दिया। आज प्रेम आश्रम में हरियाली तीज महोत्सव मनाया जाने वाला है तो हमारी हनी डार्लिंग (मधुर) अपनी सभी सहेलियों के साथ आश्रम में जाने वाली है।
मधुर ने लाल रंग की सांगानेरी प्रिंट की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज पहना है और कलाइयों में लाल रंग की चूड़ियाँ। हाथों में मेहंदी, पैरों पर महावर, मांग में सिन्दूर और होंठों पर गहरी लाल लिपस्टिक लगाई है।

लगभग 8 बजे सभी सहेलियां आश्रम जाने वाली हैं। स्कूल से आज उसने छुट्टी ले रखी है। आज का पूरा दिन आश्रम में बिताने वाली है। मधुर ने बताया कि वहाँ सभी सुहागन स्त्रियाँ हरियाली तीज महोत्सव मनाएंगी जिसमें मेहंदी प्रतियोगिता और गुरूजी के साथ झूला झूलने की प्रतियोगिता होगी। मुझे तो कई बार डर भी लगता है। आजकल इन बाबाओं के दिन खराब चल रहे हैं। किसी दिन साले किसी बाबा ने सच में झूला झुला दिया तो फिर मेरा क्या होगा? हे लिंग देव! कृपा करना।

मधुर के आश्रम कूच करने के बाद गौरी ने मेन गेट बंद कर दिया और रसोई में चाय बनाने चली गई और मैं हाल में सोफे पर बैठा अखबार पढ़ने लगा।

थोड़ी देर में गौरी चाय बनाकर ले आई। जब वह थर्मोस से गिलास में चाय डालने लगी तो मैंने कहा- गौरी, मुझे लगता है यह जिन्दगी तो चाय या कॉफ़ी में बीत जायेगी.
और फिर मैं अपनी बात पर हंसने लगा।
“वो तैसे?” गौरी ने आँखें नचाते हुए पूछा।
“अरे यार! क्या जिन्दगी है? सारे दिन भाग दौड़ और ऑफिस की मगजमारी? किसी के पास मेरे लिए समय ही नहीं है और ना ही कोई परवाह।”
“हम्म”

“जी में आता है मधुर और तुम्हें लेकर किसी हिल स्टेशन पर जाकर बस जाऊं.”
“ना बाबा ना … वहाँ तो बड़ी बालिश होती है.” गौरी ने हंसते हुए कहा।
“तो क्या हुआ रोज बारिश में खूब नहाया करेंगे. तुम्हें बारिश में नहाना अच्छा नहीं लगता है क्या?”
“बचपन के दिनों में जब बालिश होती थी तो मैं मोहल्ले के सभी बच्चों के साथ खूब नहाया कलती थी।” कह कर गौरी हंसने लगी।

“पता है मुझे भी बचपन में बारिश में नंगे होकर नहाने में बड़ा मज़ा आता था और सारे बच्चे कपड़े भीगने के डर से नंगे होकर नहाते थे ताकि घरवाले नाराज़ ना हों।”
गौरी अब खिलखिला कर हंसने लगी।
“अच्छा गौरी तुम भी सारे कपड़े निकाल कर नहाती थी क्या?”
“हट …” गौरी शर्मा गई।
“काश मैं भी उस समय तुम्हें नंगी नहाते देख सकता!”
“हट… ऐसी बातों से मुझे बहुत शल्म आती है।”

“गौरी पता है कई बार मैं क्या सोचता हूँ?”
“त्या?”
“मैं मरने के बाद अगले जन्म में मक्खी, मच्छर या कोक्रोच ही बन जाऊं?”
“आप मलने ती बात त्यों तलते हैं?”
“अरे यार, तुम्हारे लिए तो मैं सौ जन्म भी ले लूं?”
“तैसे? त्यों? मैं समझी नहीं?”
“अरे बड़ा मज़ा आएगा?”
“इसमें मज़े वाली त्या बात है?”
“हाय… तुम क्या जानो?”
“अच्छा आप बताओ?”
“मक्खी या मच्छर बनकर मैं बाथरूम में छिपकर बैठ जाऊंगा और मर्जी आये उसी खूबसूरत लड़की को नहाते समय मज़े ले-ले कर देखता रहूँगा? आह… तुम नहाते समय कितनी खूबसूरत लगती होगी?”
“हट!”
“सच्ची … गौरी मैं सच कहता हूँ तुम बहुत खूबसूरत हो।”

गौरी शरमाकर एक बार फिर से लाजवंती बन गई। अब वह छिपाने की चाहे लाख कोशिश करे पर उसकी झुकी हुई मुंडी और मंद-मंद मुस्कान से साफ़ पता चलता है कि वह इस समय वह रूपगर्विता बनकर अपने आप को बड़ी खुशनशीब समझ रही है।

“अरे गौरी?”
“हओ?”
“ये तुम्हारे मुंहासे तो बढ़ते ही जा रहे हैं?”
“हओ… मेली तिस्मत खलाब है। पता है आजतल इन मुंहासों ती चिंता में मुझे लात को नींद ही नहीं आती.” गौरी की शक्ल रोने जैसी हो गयी थी।

“हाँ… यार यह बात तो सच है। अगर चेहरा खराब हो गया तो बड़ी परेशानी होगी। अब देखो ना गुप्ताजी की लड़की का कितनी मुश्किल के बाद अब जाकर रिश्ता हुआ है और वो भी 40-45 साल का बुढ़ऊ के साथ।” मैंने जानकार गौरी को थोड़ा और डराया।
“हे भगवान्…” गौरी ने आह सी भरी।
मुझे लगा गौरी अब सुबकने लगेगी।

“अच्छा गौरी?”
“हओ?”
“तुमने वो बाकी चीजों का जुगाड़ किया या नहीं?”
“गुलाब ती पत्तियाँ, शहद, दूध ओल हल्दी ही मिली.”
“और बाकी चीजें?”
“किच्च… नहीं मिली?”
“ओह…?” मैंने एक लम्बी सांस छोड़ते हुए कहा।
“गौरी ये लेप वाला भी झमेले का काम है। एक काम तो हो सकता है पर …” मैंने अपनी बात जानबूझ कर अधूरी छोड़ दी।
“पल… त्या?” गौरी ने कातर दृष्टि से मेरी ओर ताका।
“तुम से नहीं हो पायेगा.”
“आप बताओ… प्लीज?”
“शरमाओगी तो नहीं?”
“किच्च?”
“ओ.के. … चलो एक काम करो वो शहद, कच्चा दूध और गुलाब की पत्तियाँ आदि जो भी मिला वो सब एक कटोरी में डाल कर लाओ फिर कुछ करते हैं।”

मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। लगता है अब मंजिल बस दो कदम दूर रह गई है। सच कहूं तो इस समय मेरी हालत यह थी कि जैसे मुझे कैरूँ का खजाना ही मिलने जा रहा है और अब उत्तेजना और रोमांच में मुझे इस खजाने को कैसे संभालना है? कुछ सूझ ही नहीं रहा था। एक बात की मुझे और हैरानी हो रही थी? अभी तक मेरा पप्पू बिलकुल अटेंशन की मुद्रा में सलाम बजा रहा था पर अचानक वह कुछ ढीला सा पड़ गया था। कहीं आज भी उसकी मनसा धोखा देने की तो नहीं है?

हे लिंग देव! गच्छामी तव शरणम्!!!

थोड़ी देर में गौरी दो कटोरियों में शहद और कच्चा दूध और एक प्लेट में गुलाब और नीम की पत्तियाँ डालकर ले आई।
“गौरी बाथरूम में चलते हैं यहाँ सोफे पर शहद वगेरह गिर गया तो गंदा हो जाएगा और फिर मधुर तुम्हें डांटेगी.”

“हओ” गौरी ने मरियल सी आवाज में कहा।
गौरी अपनी मुंडी झुकाए मेरे पीछे पीछे ऐसे चल रही थी जैसे जिबह होने के समय कोई जानवर चलता है।

और फिर हम दोनों बेडरूम में बने बाथरूम में आ गए। मैंने बाथरूम की लाइट जला दी और पंखा और एग्जॉस्ट फैन भी चला दिया। गौरी ने दोनों कटोरियाँ और प्लेट वाशिंग मशीन पर रख दी।

“गौरी! देखो तुम मेरी प्यारी शिष्या हो। मैं यह सब केवल तुम्हारे हित के लिए ही कर रहा हूँ। मेरे मन में किंचित मात्र भी यह भावना नहीं है कि मैं तुम्हारा कोई नाजायज फायदा उठा रहा हूँ और ना ही मेरी मनसा और नियत में कोई खोट है। मैं तुम्हारे साथ कोई भी छल-कपट या फरेब जैसा कुछ नहीं कर रहा हूँ और ना ही कोई शोषण कर रहा हूँ। मैं जो भी कुछ कर रहा हूँ सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी बेहतरी और भलाई के लिए कर रहा हूँ। और हाँ… एक और बात है.”
“त्या?”

“देखो गुरु और डॉक्टर के सामने कोई शर्म नहीं की जाती। इस समय तुम मेरे लिए केवल एक मरीज हो और मेरा फ़र्ज़ है कि मैं अपनी प्रिय शिष्या की हर संभव सहायता करूँ ताकि तुम्हें इन मुंहासों से छुटकारा मिल जाए। अब तुम्हें भी अपने इस मर्ज़ (मुंहासों की बीमारी) के लिए कुछ त्याग और तपस्या तो करनी ही होगी। अपने भले के लिए और मर्ज़ को ठीक करने के लिए कई बार ना चाहते हुए भी शर्म छोड़कर कड़वी दवा पीनी पड़ती है। और तुम तो जानती हो कुछ पाने के लिए कुछ त्याग भी करना पड़ता है। तुम समझ रही हो ना?”
“हओ” गौरी ने मिमियाते हुए कहा।

मैं गौरी की मन:स्थिति अच्छी तरह समझ रहा था। इस समय वह एक दोराहे पर खड़ी थी। एक तरफ उसकी नारी सुलभ लज्जा एवं उसके संस्कार और दूसरी तरफ उसके चहरे के खराब हो जाने का भय। वह अंतिम फैसला लेने में कुछ हिचकिचा सी रही थी।

एक पल के लिए मेरे मन में यह ख्याल जरूर आया कि मैं कहीं इस मासूम का शोषण तो नहीं कर रहा? कहीं इसके साथ यह ज्यादाती तो नहीं है? पर दूसरे ही पल मेरा यह ख्याल जेहन से गायब हो गया। अब मेरा जाल इतना पुख्ता था कि अब किसी भी प्रकार से उसमें से निकल पाना गौरी के मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था।

“गौरी अगर अब भी तुम्हें लगता है कि यह तुमसे नहीं हो पायेगा तो कोई बात नहीं … तुम्हारी मर्ज़ी!” मैंने अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था अब वो चिर-प्रतीक्षित लम्हा आने वाला था जिसका इंतज़ार मैं पिछले एक महीने से कर रहा था।

“थीत है आप बताओ त्या तरना है?”
“गौरी कुछ भी करने से पहले तुम्हें मुझे एक वचन देना होगा?”
“त्या?”
“तुम्हें अब शर्म बिलकुल नहीं करनी है और जैसा मैं कहूं तुम्हें करना है.”
“हओ… थीत है।”

“सबसे पहले तो तुम हाथ जोड़कर भगवान जी से या मातारानी से यह प्रार्थना करो कि इस दवाई से तुम्हारे मुंहासे जल्दी से जल्दी ख़त्म हो जाएँ।”
गौरी ने मेरे कहे मुताबिक़ हाथ जोड़कर प्रार्थना की। मैंने भी हाथ जोड़कर प्रार्थना करने का सफल अभिनय किया। एक बात आपको बता दूं ज्यादातर हम भारतीय लोग धर्मभीरु होते हैं और किसी बात पर अगर धर्म या भगवान् का मुलम्मा (चासनी) चढ़ा दिया जाए तो सब कुछ आसानी से किया और करवाया जा सकता है।

प्यारे पाठको और पाठिकाओ! आपके दिलों की धड़कनें भी अब बढ़ गयी हैं ना? आप सोच रहे होंगे कि यार प्रेम क्यों अपना बेहूदा ज्ञान बखार कर हमारे लंडों और चूतों को तड़फा रहे हो? जाल में फंसी इस कबूतरी को अब हलाल कर दो। ठोक दो साली को।

चलो आपकी राय सिर माथे पर, आज मैं आपकी बात मान लेता हूँ…

“गौरी मुझे भी थोड़ी शर्म तो आ रही है पर अपनी प्रिय शिष्या की परेशानी के लिए मुझे अपनी शर्म पर काबू करना ही होगा।” मेरे ऐसा कहने पर गौरी ने मेरी ओर देखा।

उसकी साँसें बहुत तेज चल रही थी। इतने खुशनुमा मौसम में भी उसके माथे और कनपटी पर हल्की हल्की पसीने की बूँदें झलकने लगी थी।

“देखो, मैं अपना निक्कर उतारता हूँ। तुम्हें मेरे लिंग को पकड़कर बस थोड़ी देर हिलाना है और उसके बाद उसमें से वीर्य निकलने लगेगा। तुम्हें थोड़ी जल्दी करनी होगी, वीर्य नीचे नहीं गिरना चाहिए तुरंत कटोरी में डाल लेना। वीर्य ताज़ा हो तो जल्दी असर करता है। समझ रही हो ना?”
गौरी ने अपनी मुंडी झुकाए हुए सुस्त आवाज में ‘हओ’ कहा।

मैंने अपने बरमूडा (निक्कर) का नाड़ा खोल दिया। पप्पू महाराज जो अब तक सुस्त पड़ा था अब थोड़ा कसमसाने लगा है। अभी तो इसकी लम्बाई केवल 3-4 इंच ही लग रही है। पूर्ण उत्तेजित अवस्था में तो यह लगभग 7 इंच के आस पास हो जाता है। हे लिंग देव तेरा शुक्र है अभी इस पर अभी पूरा जलाल नहीं आया है वरना गौरी इसे देख कर डर ही जाती और हो सकता है अपना इरादा ही बदल लेती।

कहानी जारी रहेगी.
 
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Lutgaya

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तीन पत्ती गुलाब
भाग-17

गौरी ने एक नज़र मेरे अर्ध उत्तेजित लंड पर डाली और फिर अपनी मुंडी झुका ली। अब मैंने अपने लंड को एक हाथ की मुट्ठी में पकड़ा और उसे थोड़ा हिलाते हुए ऊपर नीचे किया। पप्पू महाराज अब अपनी निद्रा से जागने लगे थे।
“गौरी अब तुम इसे अपने हाथों में पकड़ कर इसी तरह थोड़ा हिलाओ।”
मेरे ऐसा कहने पर गौरी ने थोड़ा डरते-डरते और झिझकते हुए मेरे लंड को अपने एक हाथ से छुआ।
“डरो नहीं … ठीक से पकड़कर हिलाओ।”

गौरी अब नीचे उकड़ू होकर बैठ गई और उसने अपनी मुंडी झुकाए हुए धीरे-धीरे मेरे लिंग को अपनी अँगुलियों से पकड़ा और फिर मुट्ठी में लेकर थोड़ा सा हिलाने की कोशिश की। पप्पू महाराज ने अंगड़ाई सी लेनी शुरू कर दी। गौरी की पतली, नाजुक और लम्बी अँगुलियों के बीच दबे पप्पू का आकार अब बढ़ने लगा था। आह … क्या नाज़ुक सा अहसास था।
“शाबश गौरी! इसी तरह ऊपर नीचे करो … हाँ थोड़ा जल्दी जल्दी करो … रुको मत!”

गौरी थोड़ा झिझक जरूर रही थी पर उसने मेरे पप्पू को अब पूरी तरह से अपनी मुट्ठी में पकड़ कर ऊपर नीचे करना चालू कर दिया। जिस प्रकार गौरी इसे मुठिया रही थी मुझे लगा वह कतई अनाड़ी तो नहीं लगती। मेरा अनुभव कहता है उसने किसी का लंड भले ही ना पकड़ा हो पर इसने किसी को ऐसा करते देखा तो जरूर होगा।

पप्पू तो अब अपने पूरे जलाल पर आ गया था, बार-बार ठुमके लगा रहा था। एक-दो बार तो गौरी के हाथ से फिसल गया तो गौरी ने दोनों हाथों से उसे पकड़ लिया और फिर उसे हिलाने लगी।

मेरा मन तो कर रहा था हाथों का झंझट छोड़कर सीधा ही इसके मुखश्री में डाल दूं पर इस समय जल्दबाजी ठीक नहीं थी। चिड़िया अब पूरी तरह जाल में कैद है भाग कर कहाँ जायेगी। अंत: इसे मुंह में लेकर चूसना तो पड़ेगा ही वरना ऐसे हिलाने से तो इसकी मलाई इतना जल्दी नहीं निकलने वाली।

“वो तब नितलेगा?”
“थोड़ा समय तो लगेगा पर तुम जरा जल्दी-जल्दी और प्यार से हाथ चलाओ तो जल्दी ही निकल जाएगा।”
मैंने उसे दिलासा दिलाया। आज मेरे पप्पू का इम्तिहान था। मैंने आपको बताया था ना कि कल रात को गौरी को पढ़ाने के चक्कर में देरी हो गयी थी तो नींद नहीं आ रही थी तो मैंने पप्पू महाराज की तेल मालिश करके सेवा की थी तो आज यह इतना जल्दी झड़ने वाला नहीं लगता।

“शाबाश गौरी बहुत बढ़िया कर रही हो।”
“नितले तब बता देना प्लीज?”
“हाँ … हाँ … तुम चिंता मत करो मैं बता दूंगा तुम मुंह में … मेरा मतलब कटोरी में डाल लेना।”
गौरी ने बोला तो कुछ नहीं पर उसकी लंड हिलाने की रफ़्तार जरूर बढ़ गई।

जब हमारी नई-नई शादी हुई थी तो माहवारी के दिनों में कई बार मधुर इसी प्रकार अपने हाथों से मेरे लंड को हिला-हिला कर इसका जूस निकाला करती थी। बाद में तो उसने चूसना शुरू कर दिया था और जिस प्रकार वह लंड चूसती है मुझे लगता है अगर इस विषय में कोई ऑफिशियल डिग्री होती तो मधुर को जरूर पीएचडी की डिग्री मिलती।

“गौरी मेरी जान तुम बहुत अच्छा कर रही हो … आह … शाबाश … इसी तरह करती जाओ … गुरुकृपा से तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जायेंगे।”
गौरी अब दुगने उत्साह के साथ लंड महाराज की सेवा करने लगी। वह अपने दोनों हाथ बदल-बदल कर लंड हिला रही थी और अब तो उसने उसकी चमड़ी को ऊपर नीचे करना भी शुरू कर दिया था। जब भी वह अपनी मुट्ठी को ऊपर करती तो सुपारा चमड़ी से ऐसे बंद हो जाता जैसे किसी दुल्हन ने शर्माकर घूँघट निकाल लिया हो। और फिर जब वह मुट्ठी को नीचे करती तो लाल रंग का सुपारा किसी लाल टमाटर की तरह खिल उठता।

गौरी अब बड़े ध्यान से मेरे उफनते लंड और सुपारे को देखती जा रही थी। तनाव के कारण वह बहुत कठोर और लाल हो गया था। मेरी आँखें बंद थी और मैं हौले-हौले उसके सिर पर अपना हाथ फिरा रहा था। आज उसने पतली पजामी और हाफ बाजू का शर्ट पहना था। ऊपर के बटन खुले थे और उनमें से उसकी नारंगियाँ झाँक सी रही थी मानो कह रही हो हमें भूल गए क्या? कंगूरे तो तनकर भाले की नोक की तरह हो चले थे।

गौरी को मेरा लंड मुठियाते हुए कोई 8-10 मिनट तो हो ही गए थे पर पप्पू महाराज अपनी अकड़ खोने को तैयार ही नहीं हो रहे थे। वो तो ऐसे अकड़ा था जैसे शादी में दुल्हा किसी नाजायज़ मांग को लेकर मुंह फुलाए हुए बैठा हो।

“ये तो नितल ही नहीं रहा?” गौरी ने अपना हाथ रोकते हुए मेरी ओर देखा।
“ओहो … पता नहीं आज इसे क्या हो गया है? मधुर तो बहुत जल्दी इसका रस निकाल दिया करती है.”
“उनतो तो इसता अनुभव है।”
“गौरी एक काम करो?”
“त्या?” गौरी ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा।
“वो थोड़ा सा नारियल का तेल इसके सुपारे पर लगा कर करो फिर निकल जाएगा?”

गौरी ने हाथ बढ़ाकर तेल की शीशी पकड़ी और थोड़ा सा तेल निकाल कर मेरे लंड के सुपारे पर लगा दिया। और फिर से पप्पू महाराज की पूजा शुरू कर दी।
“गौरी?”
“हम?”
“आज तो यह साला पप्पू लिंग देव बना है बेचारी इतनी खूबसूरत अक्षत यौवना कन्या इतनी देर से पूजा में लगी है और यह प्रसन्न होकर उसे प्रसाद ही नहीं दे रहा। इसे ज़रा भी दया नहीं आती.” कह कर मैं हंसने लगा।
“हट!”

कितनी देर बार गौरी सामान्य हुई थी। लंड तो अब ठुमके पर ठुमके लगा रहा था। और सुपारे पर प्री कम की कुछ बूँदें चमकने लगी थी। गौरी को लगा अब जरूर प्रसाद मिलने वाला है तो इसी आशा में उसने दुगने जोश के साथ पप्पू को उमेठना शुरू कर दिया।

कोई 5 मिनट तक गौरी ने हाथ बदल-बदल कर पप्पू को हिलाया, मरोड़ा और उसकी गर्दन को कसकर मुट्ठी में भींचते हुए ऊपर नीचे किया पर हठी लिंग देव प्रसन्न नहीं हुए अलबत्ता उन्होंने तो रोद्र रूप धारण कर लिया और रंग ऐसा हो गया जैसे क्रोध में धधक रहा हो।
“ये तो नितल ही नहीं लहा? अजीब मुशीबत है?” गौरी ने थक कर हाथ रोक दिए।

“गौरी हो सकता है तुम्हें थोड़ा अजीब सा लगे?”
“त्या?”
“यार … वो पता नहीं तुम मुझे गलत ना समझ बैठो?”
“नहीं … बोलो … ।”
“वो … इसे अपने मुंह में लेकर … अगर थोड़ा सा चूस लो तो … मुंह की गर्मी से 2 मिनट में ही निकल जाएगा।”

मैंने गौरी की ओर आशा भरी नज़रो से देखा। मुझे लगा गौरी ‘हट’ बोलते हुए मना कर देगी।
“पल … वो तो शहद ते साथ मिलातर मुंहासों पर लगाना है ना?”
“हाँ वही तो कह रहा हूँ मुंह में लेने से बहुत जल्दी निकल जाएगा और जब निकलेगा तब मैं बता दूंगा तुम तुरंत उसे पास रखी कटोरी में डाल लेना.”
“हओ …” गौरी को हर बात में हओ बोलने की आदत ने मेरा काम आसान कर दिया।

“एक और बात है?”
गौरी ने मेरी ओर सवालिया निगाहों से देखा।
“इसे कटोरी में डालने की कोई हड़बड़ी या जल्दबाजी मत करना वरना यह नीचे गिर जाएगा तो किसी काम नहीं आएगा। अगर गलती से थोड़ा बहुत तुम्हारे मुंह में भी चला जाए तो उसे थूकना मत। क्योंकि यह तो एक तरह की दवाई है लगाने से ज्यादा पीने पर असर करती है। तुम समझ रही हो ना?”
गौरी ने इस बार ‘हओ’ तो नहीं बोला पर सहमति में अपनी मुंडी जरूर हिला दी।

“गौरी, अब एक काम करो?”
“त्या?”
“तुम थोड़ा शहद अपनी जीभ पर भी लगा लो और थोड़ा मुझे दो मैं इसपर लगा देता हूँ फिर तुम्हें और भी आसानी हो जायेगी।”

अब गौरी कुछ सोचने लगी थी। मेरी उत्तेजना बहुत बढ़ गई थी। पप्पू महाराज जोर-जोर से उछल रहा था। जिस प्रकार गौरी सोचती जा रही थी मुझे लगा ज्यादा देर की तो साला पप्पू इस बार भी चुनाव हार जाएगा। मेरा दिल इतनी जोर से धड़कने लगा था कि मुझे तो डर लगने लगा कहीं यह बीच रास्ते में ही शहीद ना हो जाए। पप्पू तो लोहे के सरिये की तरह कठोर हो गया था।

गौरी ने एक चम्मच शहद अपने मुखश्री के हवाले किया और बाकी से मैंने अपने पप्पू का अभिषेक कर दिया।

गौरी ने पप्पू को अपने एक हाथ में पकड़ लिया। पप्पू ने जोर का ठुमका लगाया तो गौरी ने उसकी गर्दन कसकर पकड़ ली और फिर सुपारे की ओर पहले तो गौर से देखा। ओह्ह्ह … उसने इतने चिकने, मांसल और कठोर लण्ड के अधखुले सुपारे की चमड़ी ऊपर खींच कर उसे पूरा खोल दिया। गुलाबी सुर्ख सुपारा जिसके बीच में छोटा छेद और उस पर प्री कम की बूँद।

और फिर उसने अपनी जीभ उस पर लगा दी। एक गुनगुना सा लरजता गुलाबी अहसास मेरे सारे शरीर में दौड़ गया। गौरी ने पहले तो मेरे सुपारे पर अपनी जीभ फिराई और फिर पूरे सुपारे हो मुंह में भर लिया। और फिर दोनों होंठों को बंद करते हुए उसे लॉलीपॉप की तरह बाहर निकाला।

प्यारे पाठको और पाठिकाओ! मेरी जिन्दगी का यह सबसे हसीन लम्हा था। मैं सच कहता हूँ मैंने लगभग अपनी सभी प्रेमिकाओं को अपना लिंगपान जरूर करवाया है पर जो आगाज (शुरुआत) गौरी ने किया है मुझे लगता है उसका अंजाम बहुत ही अनूठा, रोमांचकारी, हसीन और अविस्मरणीय होने वाला है।

गौरी ने दो-तीन बार सुपारे पर अपनी जीभ फिराई और फिर उसे अपने मुंह में लेकर अन्दर बाहर किया। फिर उसने चूसकी (लम्बी गोल आइस कैंडी) की तरह मेरे लंड को चुसना शुरू कर दिया। मैंने उसका सिर अपने हाथों में पकड़ लिया। जिस प्रकार वह मेरे लंड को चूस रही थी मुझे शक सा होने लगा कहीं इसने ऐसा अनुभव पहले तो किसी के साथ नहीं ले रखा है?

आप सभी तो बड़े गुणी और अनुभवी हैं। आप तो जानते ही हैं लंड चूसना भी एक कला है। होठों के बीच दबा कर जीभ से दुलारना या हौले से दांत गड़ाने में बड़ा मजा आता है। या वेक्यूम क्लीनर की तरह पूरा का पूरा लंड मुंह में लपेट गले की गहराई में उतार मलाईदार दूध चखने का अपना ही मज़ा है।

पहले जमाने में तो लड़कियां अपनी नव विवाहित सहेलियों या भाभियों से उनके अनुभव सुनकर ही यह सब सीखती थी पर आजकल तो पोर्न फ़िल्में देख कर सभी लड़कियां शादी से पहले ही इस कला में माहिर हो जाती हैं। अब यह मात्र एक संयोग है या कोई दीगर बात है साली इस तोतापरी ने यह कमाल और कला कहाँ से सीखी होगी पता नहीं।

गौरी की चुस्कियों की लज्जत से मेरा लंड तो जैसे निहाल ही हो गया। मैंने उसका सिर अपने हाथों में पकड़ रखा था और मेरी कमर अपने आप थोड़ी-थोड़ी चलने लगी। इससे मेरा लंड आसानी से गौरी में मुखश्री में अन्दर बाहर होने लगा था। इस मुख चोदन का अहसास और रोमांच के मारे मेरी सीत्कार सी निकलने लगी थी।

गौरी ने अपना मुंह थोड़ा सा ऊपर करके मेरी ओर देखा था। शायद वह मेरी प्रतिक्रया देखना चाहती थी कि मुझे यह सब कितना अच्छा लग रहा है और वह ठीक से कर पा रही है या नहीं।

“गौरी मेरी जान! बहुत अच्छा कर रही हो बस थोड़ी देर और ऐसे ही सुपारे पर अपनी जीभ घुमाओ और अन्दर बाहर करो तो निकल जाएगा। नीचे गोटियों को भी दबाओ तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा। आह … यू आर डूइंग ग्रेट!”

गौरी अपनी प्रशंसा सुनकर अब इस क्रिया को और बेहतर करने की कोशिश करने लगी थी। पहले तो वह सुपारा ही अपने मुंह में ले रही थी अब तो उसने गले तक मेरा लंड लेना शुरू कर दिया था। धीरे धीरे वो मेरे लंड को इतनी तेज़ी से चूसने और चाटने लगी कि उसका चेहरा इस तरह से नशीला नज़र आने लगा जैसे उसने दारू पी रखी हो।

उसके पतले और मखमली होंठों का स्वाद चख कर तो मेरा लंड जैसे धन्य ही हो गया। मैं सच कहता हूँ लंड चुसाई में जो लज्जत है वह चूत और गांड में भी नहीं है। इस नैसर्गिक आनन्दमयी क्रिया का कोई विकल्प तो हो ही नहीं सकता। काश वक़्त रुक जाए और गौरी इसी प्रकार मेरे लंड का चूषण और मर्दन करती रहे।

मेरे कंजूस पाठको और पाठिकाओ, आमीन तो बोल दो।

गौरी अब कुछ ज्यादा ही जोश में आ गई थी। उसने मेरे लंड को पूरा जड़ तक अपने मुंह में लेने की कोशिश कि तो सुपरा उसके हल्क तक चला गया इससे उसे थोड़ी खांसी आने लगी और फिर उसने मेरा लंड अपने मुंह से बाहर निकाल दिया।

“मेला तो गला दुखने लग गया?” गौरी ने अपना गला मसलते हुए कहा।
“गौरी जल्दबाजी मत करो धीरे-धीरे जितना आसानी से अन्दर ले सको उतना ही लो। गौरी तुम लाजवाब हो … बहुत अच्छा कर रही हो। बस निकलने ही वाला था कि तुमने बाहर निकाल दिया। अबकी बार निकल जाएगा शाबाश … इसी तरह कोशिश करो। मैं सच कहता हूँ इतना अच्छा तो मधुर भी नहीं करती।”

गौरी ने अपनी तुलना मधुर से होती देख एकबार फिर से पप्पू को दुगने जोश के साथ चूसना चालू कर दिया। मुझे लगने लगा अब मैं ज्यादा तनाव सहन नहीं कर पाऊंगा और जल्दी ही झड़ जाउंगा। मेरा मन तो कर रहा था जोर-जोर से अपने लंड को उसके मुंह में अन्दर बाहर करूं पर मुझे डर था कहीं गौरी बिदक ना जाए या उसे फिर से खांसी ना जाए। और अगर इस कारण उसे असुविधा हुई और उसने फिर आगे लंड चूसने से मना कर दिया तो आज लौड़े लगेंगे नहीं अलबत्ता झड़ जरूर जायंगे।

गौरी अपनी लपलपाती जीभ से मेरे लंड को कभी चाटती कभी चूसती कभी पूरा अन्दर लेकर बाहर तक खींचती। इस लज्जत को शब्दों में बयान करना कहाँ संभव है।
मेरे शरीर में वीर्य स्खलन से पहले होने वाले रोमांच की एक लहर सी दौड़ने लगी। मुझे लगा अब वीर्य निकलने का आखिरी पायदान नजदीक आ गया है। मैंने गौरी को कहा तो था कि जब निकलेगा मैं बता दूंगा और तुम इसका रस कटोरी में डाल लेना पर मैं अब इस लज्जत को इस प्रकार खोना नहीं चाहता था। मैं चाहता था गौरी मेरे सारे वीर्य को पूरा निचोड़कर चूस ले और इसे अपने हल्क के रास्ते उदर (पेट) में उतार ले।

दोस्तो! प्रकृति बड़ी रहस्यमयी है। हर नर अपना वीर्य मादा की कोख में ही डालना चाहता है। और वीर्य स्खलन के समय उसका हर संभव प्रयास यही रहता है कि वीर्य का एक भी कतरा व्यर्थ ना जाए और किसी भी छेद के माध्यम सीधा उसके शरीर के अन्दर चला जाए अब वह छेद चाहे चूत का हो, गांड का हो या फिर मुंह का हो क्या फर्क पड़ता है। इसीलिए स्खलन के समय नर अपनी मादा को कसकर भींच लेता है और अपने लिंग को उसके गर्भाशय के अन्दर तक डालने का प्रयास करता है।

और मेरी प्रिय पाठिकाओ और पाठको! मैं भी तो आखिर एक इंसान ही तो हूँ मैं भला प्रकृति के नियमों के विरुद्ध के जा सकता था? मुझे लगा मेरा तोता अब उड़ने वाला है तो मैंने गौरी का सिर अपने हाथों में कसकर पकड़ लिया और अपने लंड को उसके कंठ के आखिरी छोर तक ठेल दिया।

गौरी के हल्क से गूं-गूं की आवाज निकलने लगी और थोड़ा कसमसाने लगी थी। मुझे लगा वह मेरे लंड को बाहर निकाल देगी और मैं प्रकृति के इस अनूठे आनन्द को भोगने से महरूम (वंचित) हो जाऊंगा। मैं कतई ऐसा नहीं होने देना चाहता था। मैंने उसका सिर अपने हाथों में और जोर से जकड़ लिया।

“गौरी मेरी जान … प्लीज हिलो मत … प्लीज गौरी आह … मेरी जान गौरी … आह … मेरा निकलने वाला है … इसे बाहर मत निकलने देना … तुम्हें मेरी कसम … प्लीज … तुम इसे दवाई या लिंग देव का प्रसाद समझ कर पी जाओ … मेरी जान … आई लोव यू गौ …र.. र … रीईईईई … आईईईईइ …!!!

और फिर मेरे लंड ने पिचकारी मारनी शुरू कर दी। गौरी ने अपने हाथों को मेरी कमर और जाँघों पर लगाकर मुझे थोड़ा धकलते हुए अपना सिर मेरी गिरफ्त से छुड़ाने की भरसक कोशिश की पर वह इसमें सफल नहीं हो पाई। और मेरा गाढ़ा और ताज़ा वीर्य उसके कंठ में समाता चला गया। अब उसके पास इसे पी जाने के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं बचा था। गौरी गटा-गट सारा वीर्य पी गई।

मेरा लंड 5-6 पिचकारियाँ मारकर अब फूल और पिचक रहा था। मेरी साँसें बहुत तेज़ हो गयी थी। मुझे लगा गौरी का को शायद सांस लेने में परेशानी हो रही है। उसके मुंह से अब भी गूं-गूं की आवाज निकल रही थी।
“गौरी आज तुमने मेरी शिष्या होने का अपना फ़र्ज़ पूरा कर दिया। मैं तुम्हारा बहुत आभारी हूँ मेरी जान … तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद। गौरी यू आर ग्रेट।”

मेरा लंड अब थोड़ा ढीला पड़ने लगा था और मेरी गिरफ्त भी ढीली हो गई थी। गौरी ने इसका फ़ायदा उठाया और उसने मेरा लंड अपने मुंह से बाहर निकाल दिया। और अब वह खड़ी होकर जोर-जोर से खांसने लगी और तेज़-तेज सांस लेने लगी।

मुझे लगा गौरी अब जरूर यह शिकायत करेगी कि मैंने जबरदस्ती अपना वीर्य उसके मुंह में निकाल दिया। इससे पहले कि वह संयत हो मैंने उसका सिर अपने हाथों में पकड़ कर उसके होंठों को चूमने लगा। एक शहद भरी मिठास और गुलाब की पंखुड़ियों जैसा अहसास के एकबार फिर से पुनरावृति होने लगी। फिर मैंने कई चुम्बन उसके होंठों गालों और माथे पर ले लिए।

फिर मैंने उसे अपने बाहुपाश में भरकर अपने सीने से लगा लिया। और धीरे-धीरे उसके सिर और पीठ पर हाथ फिराने लगा। उसके दूद्दू मेरे सीने से लगे थे और उसके दिल की धड़कन मैं साफ़ सुन सकता था। आह … उस दिन सुहाना के उरोज भी तो ऐसे ही मेरे सीने से लगे थे। दोनों में कितनी समानता है।

गौरी कुछ बोलने का प्रयास कर रही थी पर इससे पहले कि वह कुछ बोले या शिकायत करे मैंने कहा- गौरी, आज तुमने अपने गुरु की लाज रख ली। मैं तुम्हारा यह उपकार जीवन भर नहीं भूलूंगा। सच में गौरी आज तुमने मुझे वह सुख दिया है जो एक पूर्ण समर्पिता प्रेयसी या शिष्या ही दे सकती है। इसके बदले तुम कभी मेरी जान भी मांगोगी तो मैं सहर्ष दे दूंगा।

अब बेचारी के पास तो बोलने के लिए कुछ बचा ही नहीं था। वह तो बस बुत बनी जोर-जोर से सांस लेती मेरे सीने से लगी बहुत कुछ सोचती ही रह गई। मैंने उसके सिर, कन्धों, पीठ और नितम्बों पर ऐसे हाथ फिराया जैसे मैं उसके इस ऐतिहासिक और साहसिक कार्य पर उसे सांत्वना और बधाई दे रहा हूँ।

मेरा मन तो आज उसके साथ नहाने का भी कर रहा था। मौक़ा भी था और दस्तूर भी था पर मैंने इसे अगले सोपान में शामिल करने के लिए छोड़ दिया।
“गौरी … एक बार तुम्हारा फिर से धन्यवाद … अगर भगवान् ने चाहा तो इस दवा से बस दो दिनों में ही तुम्हारे सारे मुंहासे ठीक हो जायेंगे। मैं बाहर जा रहा हूँ पहले तुम फ्रेश हो लो, फिर मैं भी नहा लेता हूँ फिर दोनों तुम्हारी पसंद का नाश्ता करते हैं।”

आज तो बेचारी गौरी ‘हओ’ बोलना भी भूल गई थी।

मैं अपना बरमूडा पहन कर बाहर आ गया।

अथ श्री लिंग दर्शन एव वीर्यपान सोपान इति !!!

मेरे प्रिय कंजूस पाठको! आप मुझे अष्टावलेह (वायनाड) फ़तेह की बधाई भी नहीं देंगे क्या?
 

Lutgaya

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तीन पत्ती गुलाब
भाग18
आइए अब योनि दर्शन और चूषण सोपान शुरू करते हैं…
लोग सच कहते हैं भगवान जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है। आज सुबह-सुबह गौरी ने लिंगपान किया और ऑफिस जाते ही एक और खुशखबर मिली।
मैंने आपको बताया था ना कि मेरे प्रमोशन की बात चल रही थी। इस सम्बन्ध में मेल तो पहले ही आ गया था पर भोंसले ने अभी किसी को बताने को मना किया था तो मैंने अभी यह बात किसी को नहीं बताई थी।

आज मोर्निंग मीटिंग में भोंसले ने घोषणा कर दी कि उसका पुणे ट्रान्सफर हो गया है और अब उनकी जगह अभी भरतपुर ऑफिस का काम मि. प्रेम माथुर संभालेंगे।
उन्होंने मुझे प्रमोशन की बधाई देते हुए अच्छे भविष्य की कामना की।
उसके बाद सभी ने मुझे ओपचारिक तौर पर बधाई और शुभकामनाएं दी।

मैंने आपको ऑफिस में आये उस नताशा नामक नए विस्फोटक पदार्थ के बारे में भी बताया था ना? लगता है खुदा ने भी खूब मन लगाकर इस मुजसम्मे की नक्काशी की होगी। पतले गुलाबी होंठों पर लाल लिपस्टिक के बीच चमकती दंतावली देखकर तो लगता है इसका नाम नताशा की जगह चंद्रावल होना चाहिए था।

चुस्त पजामी और पतली कुर्ती में ऐसा लग रहा था जैसे उसकी जवानी का बोझ इन कपड़ों में कहाँ संभल पायेगा? वह तो फूटकर बाहर ही आ जाएगा। वह मीटिंग हॉल में मेरे बगल वाली कुर्सी पर बैठी थी। उसने इम्पोर्टेड परफ्यूम लगा रखा था पर उसके बदन से आने वाली खुशबू ने तो मेरे दिल और दिमाग को हवा हवाई ही कर दिया था। क्या मस्त गांड है साली की। मैं सच कहता हूँ अगर मैं भरतपुर का राजा होता तो इसको अपने महल में पटरानी ही बना देता।

सबसे पहले हाथ मिलाकर उसी ने मुझे बधाई दी थी। वाह … क्या नाजुक सी हथेली और कलाइयां हैं। लाल रंग की चूड़ियों से सजी कलाइयां अगर खनकाने और चटकाने का कभी अवसर मिल जाए तो भला फिर कोई मरने की जल्दी क्यों करे, जन्नत यहीं नसीब हो जाए।
काश! कभी इस 36-24-36 की परफेक्ट फिगर (संतुलित देहयष्टि) को पटरानी बनाकर (पट लिटाकर) सारी रात उसके ऊपर लेटने का मौक़ा मिल जाए तो खुदा कसम मज़ा ही आ जाए।

मीटिंग के बाद चाय नाश्ते का प्रबंध भी किया गया था।

बाद में भोंसले ने बताया कि मुझे अगले 2-3 दिन में चार्ज लेकर हेड ऑफिस कन्फर्म करना होगा। सितम्बर माह के अंत में मुझे बंगलुरु ट्रेनिंग पर जाने के समय कोई और व्यक्ति अस्थायी रूप से ज्वाइन करेगा।
साली यह जिन्दगी भी झांटों के जंगल की तरह उलझी ही रहेगी।

दिन में मैंने मधुर को यह खुशखबरी सुनाई। शाम को घर पर इसे सेलिब्रेट करने का जिम्मा अब मधुर के ऊपर था। वैसे मधुर ज्यादा तामझाम पसंद नहीं करती है। बाहर से तो किसी को बुलाना ही नहीं था। मैं, मधुर और गौरी फकत तीन जीव थे।

जब मैं घर पहुंचा तो मधुर और गौरी दोनों हाल में खड़ी मेरा ही इंतज़ार कर रही थी। मधुर ने वही लाल साड़ी पहन रखी थी जो आज सुबह हरियाली तीज उत्सव मनाने के लिए आश्रम जाते समय पहनी थी।

और बड़ी हैरानी की बात तो यह थी कि आज गौरी ने भी मधुर जैसी ही लाल रंग की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज पहन रखा था। आज गौरी का जलाल तो जैसे सातवें आसमान पर था। पतली कमर में बंधी साड़ी के ऊपर उभरा हुआ सा पेडू और गोल नाभि … और गोल खरबूजे जैसे कसे हुए नितम्ब… उफ्फ्फ… क्या क़यामत लगती है।
मन करता है साली को अभी पटरानी ही बना दूं।

मैं हाथ मुंह धोकर बाहर आया तो हम तीनों हॉल के कोने में बने छोटे मंदिर के सामने खड़े हो गए और दीपक जलाकर भगवान से आशीर्वाद लिया। मधुर ने मुझे कुमकुम का टीका लगाया और फिर थोड़ी सी कुमकुम मेरे गालों पर भी लगा दी।

आज मधुर बड़ी खुश और चुलबुली सी हो रही थी। उसके बाद हम डाइनिंग टेबल के पास आ गए जहां मिठाइयाँ, केक और अन्य सामान रखा था। फिर मधुर ने मेरे गले से लगकर मुझे बधाई दी। मैंने भी उसके गालों पर एक चुम्बन लेकर उसे थैंक यू कहा। फिर मधुर ने भी मेरे होंठों पर चुम्बन लिया और फिर मेरे गालों को जोर से चिकौटी सी काटते हुए मसल दिया।

गौरी यह सब देख रही थी। फिर गौरी ने भी मुस्कुराते हुए मुझे बधाई दी- सल! आपतो प्लमोशन ती बहुत-बहुत बधाई।
“अरे … पागल लड़की?” मधुर ने बीच में ही उसे डांटते हुए कहा।
“त्या हुआ?” गौरी ने डरते-डरते पूछा।
“बधाई कोई ऐसे दी जाती है?”
“तो?” गौरी ने हैरानी से मधुर की ओर देखा।
“आज कितना ख़ुशी का दिन है गले लगकर बधाई दी जाती है।” कह कर मधुर ठहाका लगा कर हंस पड़ी।

मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी मधुर आज तो बहुत ही मॉडर्न बनी हुई है। गौरी तो बेचारी शर्मा ही गई।
“एक तो तुम्हें शर्म बहुत आती है?” मधुर ने एक झिड़की और लगाई तो गौरी धीरे-धीरे मेरी ओर आई और फिर पास आकर अपनी मुंडी नीचे करके खड़ी हो गयी जैसे उसे अभी हलाल किया जाने वाला है।
“अरे … ठ … ठीक है … कोई बात नहीं …” मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। भेनचोद ये क्या नया नाटक है? हे लिंग महादेव! कहीं लौड़े मत लगा देना प्लीज।
गौरी अपनी मुंडी झुकाए कातर नज़रों से मधुर की ओर देखे जा रही थी।

“अरे?” मधुर ने फिर थोड़ा गुस्से से उसकी ओर देखा तो बेचारी गौरी के पास अब मेरी ओर बढ़ने के सिवा और क्या चारा बचा था? बेचारी छुईमुई बनी थोड़ा सा मेरे और नजदीक आ गई।
“ओह … बस … बस … ठीक है … ठीक है!” कहते हुए मैंने उसे अपनी बांहों में भरते हुए कहा।

मेरा एक हाथ उसके नितम्बों पर चला गया। आह … क्या गुदाज़ कसी हुई गोलाइयां हैं। मेरी अंगुलियाँ उसके दोनों नितम्बों की दरार में चली गयी। गौरी तो चिंहुक सी उठी। शुक्र था मेरी पीठ मधुर की ओर थी और गौरी मेरे सामने थी तो मधुर मेरी इस हरकत को शायद नहीं देख पाई। अब मैंने गौरी के गालों पर एक चुम्बन लिया और उसे थैंक यू भी कहा।
बेचारी गौरी तो मारे शर्म के लाजवंती ही बन गई।

“ये गौरी भी एक नंबर की लाजो घसियारी ही है.” कह कर मधुर एक बार फिर हंस पड़ी।
“चलो आओ अब केक काटते हैं।”

फिर हम तीनों ने मिलकर केक काटा और एक दूसरे को भी खिलाया। यह बात जरूर गौर करने वाली थी कि मधुर ने मेरे गालों पर भी थोड़ा केक लगा दिया और फिर उसे चाट भी लिया।
मेरा दिल जोर से धड़का कहीं वह गौरी को भी ऐसा करने के ना कह दे!
मेरे तो मज़े हो जायेंगे पर बेचारी गौरी तो मारे शर्म के मर ही जायेगी।
पर भगवान् का शुक्र है गौरी का मरना इस बार टल गया था।

मधुर ने मुझे अपने और गौरी के बीच में करके बहुत सी सेल्फी भी ली और हैंडीकैम को एक जगह सेट करके इस उत्सव की पूरी विडियो भी बनाई। फिर हम सभी ने मिलकर नाश्ता किया। हालांकि मधुर के तो व्रत चल रहे थे तो उसने केवल एक रसगुल्ला ही खाया पर मैंने और गौरी ने तो आज जी भर रसगुल्ले उड़ाये।

उसके बाद मधुर ने मेरे साथ गले में बाहें डाल कर सालसा डांस किया और फिर बद्रीनाथ की दुल्हनिया वाले गाने पर तो दोनों खूब ठुमके लगाए।

गौरी अब जरा भी नहीं शर्मा रही थी। उसने पहले तो किसी गाने पर बेले डांस किया और बाद में एक राजस्थानी लोक गीत “म्हारे काजलीये री कोर … थानै नैणा मैं बसाल्यूं” जबरदस्त डांस किया। मधुर तो उसका डांस देखकर हैरान सी रह गई थी। मैं तो बस गौरी की इस नागिन डांस पर बल खाती कमर के लटके झटके ही देखता रह गया। एक दो बार गौरी के साथ डांस करते समय मेरा लंड उसके नितम्बों से भी टकरा गया था। गौरी ने मेरे खड़े लंड को महसूस तो जरूर कर लिया था पर बोली कुछ नहीं।

और फिर यह धूम-धड़ाका रात 11 बजे तक चला। सच कहूं तो ऐसा उत्सव तो मधुर मेरे या अपने जन्म दिन पर भी कभी नहीं मनाया था।

और फिर अगले दिन सुबह…
आज शनिवार था। थोड़ी बारिश तो हो रही थी पर मधुर स्कूल चली गई थी और गौरी रसोई में रात के जमा बर्तन साफ़ कर करने में लगी थी।

मैं रसोई में चला आया।

गौरी ने आज वही पायजामा और कमीज पहन रखा था जो पहले दिन पहना था। मेरा मन तो आज फिर से उसे उसी प्रकार बांहों में दबोच लेने को कर रहा था पर बड़ी मुश्किल से मैंने अपने आप को तसल्ली देकर रोके रखा।
“गुड मोर्निंग … इंडिया!”
“गुड मोल्निंग सल … ”

“ओह … गौरी! तुम तो बर्तनों में लगी हो तो चलो आज की चाय मैं बनाकर पिलाता हूँ।”
“अले … नहीं.. आप लहने दो … बस हो गया मैं बना दूँगी.” गौरी ने मना करते हुए कहा।
“जानी … कभी हमारे हाथ की भी चाय पी लिया करो … हम भी बहुत कमाल की चाय बनाते हैं.” मैंने फिल्म स्टार राजकुमार की आवाज की नक़ल उतारते हुए कहा तो गौरी हंस पड़ी।

और फिर मैंने चाय बनाई अलबत्ता मैं जानबूझ कर बीच-बीच में गौरी से दूध, चाय पत्ती, अदरक आदि की मात्रा के बारे में जरूर पूछता रहा।
चाय थर्मोस में डाल कर मैंने कहा- अरे गौरी!
“हओ?”
“थोड़ी सी फिटकरी मिल जायेगी क्या?”
“फिटतड़ी … ता त्या तरना है?” कुछ सोचते हुए गौरी ने पूछा।
“अरे तुम लाओ तो सही?”
गौरी ने फिटकरी ढूंड कर मुझे दे दी।

“इसे तवे पर रखकर भूनना है और फिर इसे पीस कर उस पाउडर में थोड़ा कच्चा दूध, हल्दी पाउडर, नीबू का रस और गुलाब जल मिलाकर लेप बनेगा।”
“अच्छा?” गौरी ने कुछ सोचते हुए मेरे कहे मुताबिक सभी चीजें निकाल कर रसोई के प्लेटफोर्म पर रख दी।

मैंने पहले तो फिटकरी को भूनकर उसका चूर्ण बनाया और फिर एक प्लेट में ऊपर बताई सारी चीजें और चाय वाला थर्मोस कप आदि लेकर हम दोनों बाहर हॉल में आ गए।

“गौरी उस अष्टावलेह में तो बड़ा झमेला था, आज वाला मिश्रण भी बहुत बढ़िया है.” मैंने उसे समझाते हुए कहा तो अब गौरी के पास सिवाय ‘हओ’ बोलने के और क्या बचा था।

फिर मैंने एक कटोरी में पहले तो आधा चम्मच शहद डाला और फिर उचित मात्रा में अन्य चीजें डाल कर उनका लेप सा तैयार कर लिया।
गौरी साथ वाले सोफे पर बैठी यह सब देख रही थी। मैंने उसे अपने पास आने को कहा तो वह बिना किसी ना-नुकर के मेरी बगल में आकर बैठ गई।

“गौरी तुम्हें तो इन मुंहासों की कोई परवाह और चिंता ही नहीं है. पता है मैंने कल बड़ी मुस्किल से सारे दिन नेट पर इस दूसरे नुस्खे के बारे में पता किया है.”
गौरी ने हओ के अंदाज़ में मुंडी हिलाई।

अब मैंने एक अंगुली पर थोड़ा सा लेप को लगाया और फिर गौरी के चहरे पर हुई फुन्सियों पर लगाना शुरू कर दिया। बीच-बीच में मैं उसके गालों पर भी हाथ फिराता रहा। रेशम के नर्म फोहों और गुलाब की पंखुड़ियों की तरह नाजुक गाल देख कर मेरा मन तो उन्हें चूमने को करने लगा।
“गौरी देखो एक ही दिन में ये मुंहासे थोड़े नर्म पड़ने लग गए हैं।”
“सच्ची?” गौरी ने हैरानी से मेरी ओर देखा।
“और नहीं तो क्या? तुम अगर शर्माना छोड़ दो बस दो या तीन दिन में मेरी गारंटी है यह मुंहासे जड़ से ख़त्म हो जायेंगे.”

“अच्छा? इस लेप से?”
“हाँ यह लेप तो असर करेगा ही पर … वीर्यपान का असर तो पक्का ही होता है।”
“हट!” गौरी एक बार फिर शर्मा गई। उसने अपनी मुंडी झुका ली थी।
“पता है तल मुझे तो उबताई सी आने लगी थी. मेला तो गला ही दुखने लगा था.” गौरी का इतना लंबा चौड़ा उलाहना तो लाज़मी था। उसे सुनकर मैं हंसने लगा।

“अब दवाई है तो थोड़ी कड़वी और कष्टकारक तो होगी ही!”
“पता है तित्ता दर्द हुआ … मालूम?” गौरी ने अपने गले पर हाथ फिराते हुए हुए कहा।
“सॉरी! जान पर तुम्हारे भले के लिए यह सब मुझे करना पड़ा था। पता है मुझे भी कितनी शर्म आई थी.”

और फिर हम दोनों हंसने लगे। माहौल अब खुशनुमा हो गया था।
“चलो गला तो थोड़ा दर्द किया होगा पर यह बताओ उसका स्वाद कैसा लगा?”
“थोड़ा खट्टा सा और लिजलिजा सा था.” गौरी ने मुंह बनाते हुए कहा।
“गौरी! अगर मुंहासे जल्दी ठीक करने हैं तो आज एक बार और कर लो!” मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। मुझे लगता था गौरी जरूर मना कर देगी।
“ना … बाबा ना … मुझे नहीं तरना … आप पूला गले ते अन्दल डाल देते हो मुझे तो फिल सांस ही नहीं आता.”
“अरे यार कल पहला दिन था ना? इसलिए थोड़ा ज्यादा अन्दर चला गया होगा पर आज मैं बिलकुल सावधानी रखूंगा? तुम्हारी कसम?”

गौरी ने शर्मा कर अपनी आँखों पर हाथ रख लिए।
इस्स्स्स …
याल्लाह … सॉरी … हे लिंग महादेव तेरी ऊपर से भी जय हो और नीचे से भी। आज तो मैं ऑफिस जाने से पहले जरूर तुम्हारा जलाभिषेक भी करूंगा और सवा ग्यारह रुपये का प्रसाद भी चढ़ाउंगा।
अब मैंने गौरी को अपनी बांहों में भींच लिया। गौरी छुईमुई बनी मेरे सीने से लग गयी।
“गौरी तुम बहुत खूबसूरत हो। और पता है भगवान यह खूबसूरती क्यों देता है?”
“किच्च” गौरी ने आँखें बंद किये किये ही अपने चिर परिचित अंदाज़ में इससे अनभिज्ञता प्रकट कर दी।

“गौरी! प्रकृति या भगवान ने इस कायनात (संसार) को कितना सुन्दर बनाया है और विशेष रूप से स्त्री जाति को तो भगवान ने सौन्दर्य की यह अनुपम देन प्रदान करने के पीछे एक बहुत बड़ा रहस्य है। इसके पीछे एक कारण तो यह है कि सभी इस सुन्दरता को देखकर अपने सारे दुःख और कष्टों भूल जाए और आनंदित होते रहें। यह भगवान की एक धरोहर की तरह है इसलिए हर सुन्दर लड़की और स्त्री का धर्म होता है कि प्रकृति की इस सुन्दरता को बनाए रखे और किसी भी अवस्था में इसे कोई हानि नहीं पहुंचे और कोशिश की जाए कि यह लम्बे समय तक इसी प्रकार बनी रहे।”

आज गौरी ने बोला तो कुछ नहीं पर मुझे लगता है वह अपनी सुन्दरता को मुंहासों से बचाए रखने के लिए कल मेरे द्वारा किये गए प्रयोग पर और भी गंभीरता से विचार करने लगी थी।

कहानी जारी रहेगी.
 
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Lutgaya

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तीन पत्ती गुलाब
भाग-19

“वो … चाय … ठंडी हो जायेगी?” गौरी ने अस्फुट से शब्दों में कहा तो सही पर उसने मेरे बाहुपाश से हटने की बिलकुल भी कोशिश नहीं की थी। उसकी साँसें बहुत तेज़ चल रही थी और आँखें अभी भी बंद थी। मैं उसके सिर, पीठ, कमर और नितम्बों पर हाथ फिराता जा रहा था और साथ में प्रवचन भी देता जा रहा था।

दोस्तो! आप सोच रहे होंगे गुरु … ठोक दो साली को … क्यों बेचारी को तड़फा रहे हो … लौंडिया तुम्हारी बांहों में लिपटी तुम्हें चु … ग्गा (चूत.. गांड) देने के लिए तैयार बैठी है तुम्हें प्रवचन झाड़ने की लगी है। आप सही सोच रहे हैं। इस समय गौरी अपना सर्वस्व लुटाने को तैयार है बस मेरे एक इशारे की देरी है वह झट से मेरा प्रणय निवेदन स्वीकार कर लेगी।

मेरे प्रिय पाठको और पाठिकाओ! मज़ा तो तब आये जब गौरी खुद कहे कि ‘मेरे प्रियतम … आज मुझे अपनी पूर्ण समर्पिता बना लो!!’
हाँ दोस्तो! मैं भी उसी लम्हे का इंतज़ार कर रहा हूँ। बस थोड़ा सा इंतज़ार!

मैंने अपना प्रवचन जारी रखा- गौरी! नारी सौन्दर्य भगवान या प्रकृति का ऐसा उपहार है जो हर किसी के भाग्य में नहीं होता। जड़ हो या चेतन भगवान ने हर जगह अपना सौन्दर्य बिखेरा है। इनमें से बहुत कम लोग भाग्यशाली होते हैं जिन्हें यह रूप और यौवन मिलता है इसलिए इसे सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी भी उसी पर आती है। भगवान ने तुम्हें इतना सुन्दर रूप और यौवन देकर तुम्हारे ऊपर कितना बड़ा उपकार किया है तुम समझ रही हो ना?

अब पता नहीं यह प्रवचन गौरी के कितना पल्ले पड़ा पर उसने अपनी आँखें बंद किये-किये ही ‘हओ’ जरूर बोल दिया था।

मैंने गौरी का सिर अपने दोनों हाथों में पकड़ लिया और हौले से अपने होंठों को उसके लरजते (कांपते) अधरों पर रख दिए।
आह … जैसे गुलाब की पंखुड़ियां शहद में डूबी हुई हों।

धीरे-धीरे मैंने उसके अधरों को चूमना और चूसना शुरू कर दिया। गौरी ने कोई आनाकानी नहीं की। उसकी साँसें बहुत तेज होने लगी थी और अब तो उसने अपनी एक बांह को मेरी गर्दन के पीछे भी कर लिया था। उसकी एक जांघ मेरी जांघ से सट गयी थी। मेरा एक हाथ उसके नितम्बों से होता हुआ उसकी जाँघों के संधिस्थल की ओर सरकने लगा। योनि प्रदेश की गर्माहट पाकर मेरा पप्पू तो छलांगें ही लगाने लगा था।

मेरी अंगुलियाँ जैसे ही उसकी सु-सु को टटोलने की कोशिश करने लगी मुझे लगा कि गौरी का शरीर कुछ अकड़ने सा लगा है।
“सल … मुझे तुच्छ हो लहा है … मेले तानों में सीटी सी बजने लगी है … सल … मेला शलील तलंगित सा हो लहा है … ओह … मा … म … मेला सु-सु … आह … लुको … ईईईईईइ …”
उसके शरीर ने दो-तीन झटके से खाए और फिर वह मेरी बांहों में झूल सी गयी।

हे भगवान … यह तो बहुत ही कच्ची गिरी निकली … लगता है आज एक बार फिर उसने ओर्गस्म (यौन उत्तेजना की चरम स्थिति) को पा लिया है।

गौरी कुछ देर इसी तरह मेरी बांहों में लिपटी पड़ी रही। थोड़ी देर बाद वह कुछ संयत सी होकर सोफे पर बैठ गई। उसने अपनी मुंडी झुका रखी थी और अब वह अपनी नज़रें मुझ से नहीं मिला रही थी। शायद उसे लगा उसका सु-सु निकल गया होगा।

पर यह तो प्रकृति का वह सुन्दरतम उपहार और परम आनंदमयी क्रिया थी जिसे पाने और भोगने के लिए सारे जीव मात्र कामना करते हैं। इसी क्रिया से तो यह संसार-चक्र चल रहा है और यही तो इस संसार को अमृत्व (अमरता) प्रदान करता है। वरना प्रकृति इस क्रिया में इतना रोमांच और आनंद क्यों भरती।

मेरे कानों में भी सांय-सांय सी होने लगी थी। लंड तो जैसे बेकाबू होने लगा था। एक बार अगर यह चश्का लग गया तो अब वह नहीं मानने वाला।

“गौरी मैं मानता हूँ तुम्हें थोड़ा कष्ट तो जरूर होगा पर मैं सच कहता हूँ अगर तुम दो-तीन दिन और इसी तरह वीर्यपान कर लो तो फिर यह लेप-वेप का झमेला भी नहीं रहेगा और मुंहासे भी जड़ से ख़त्म हो जायेंगे.”
गौरी ने अपने गले पर हाथ फिराते हुए कहा- आप गले ते अन्दल तत डाल देते हो तो बड़ी असुविधा होती है।
“ओह … सॉरी इस बार मैं कुछ नहीं करूंगा तुम जिस प्रकार करना चाहो करना … गुड बॉय प्रोमिस!”
गौरी ने मेरी ओर देखा शायद वह बाथरूम में चलने का सोच रही थी।

“गौरी आज तो कुछ गिरने या गंदा होने का डर तो है नहीं, यहीं सोफे पर ही आसानी से हो जाएगा।” बेचारी गौरी जड़ बनी वही बैठी रही। मैंने हॉल का दरवाजा और खिड़की ठीक से बंद कर दी।
और फिर वापस सोफे पर आकर मैंने अपने पायजामे का नाड़ा खोल दिया.

गौरी ने थोड़ा झिझकते हुए मेरे पप्पू को अपने नाज़ुक हाथों में पकड़ लिया। पप्पू ने बेकाबू होते हुए एक जोर का ठुमका सा लगाया तो गौरी ने कसकर उसकी गर्दन पकड़ी और फिर उसे हिलाना चालू कर दिया।
मैंने पास रखी शहद की शीशी खोल कर गौरी को पकड़ा दी। गौरी ने थोड़ा शहद पप्पू के सुपारे पर लगाया और थोड़ा अपने मुख श्री में भी डाल लिया और फिर सुपारे को मुंह में भरकर चूसने लगी।

गौरी भी सोफे पर बैठी तो बार-बार मेरा लंड उसके मुंह से फिसल रहा था तो अब वह नीचे फर्श पर उकड़ू होकर मेरे पैरों के बीच में आकर लंड को चूसने लगी। मेरी दोनों टांगों के बीच उसका ऊपर नीचे होता सिर ऐसे लग रहा था जैसे वह यस-नो बोल रहा हो।

मैंने उसके गालों, होंठों, सिर और पीठ पर हाथ फिराना चालू कर दिया। अब मेरा ध्यान उसके उरोजों पर चला गया। आज उसने कमीज और पायजामा पहना था। कमीज के आगे के दो बटन खुले थे। लंड चूसते हुए जब गौरी अपने मुंह को ऊपर करती तो लगता जैसे दोनों कबूतर गुटर गूं कर रहे हैं। कंगूरे तो आज अकड़कर पेंसिल की नोक जैसे तीखे हो चले थे। मैंने हाथ बढ़ाकर उन्हें अपनी चिमटी में लेकर धीरे धीरे मसलना चालू कर दिया। गौरी अब और भी ज्यादा जोश में आ गयी और मेरे लंड को किसी चुस्की (आइस कैंडी) की तरह चूसने लगी थी।

दोस्तो! इस लज्जत को शब्दों में बयान करना आसान नहीं है। इसे तो बस आँखें बंद करके महसूस ही किया जा सकता है। मैं अगर कोई बहुत बड़ा लेखक या कवि होता तो इस लज्जत का बहुत खूबसूरती के साथ वर्णन कर सकता था पर मैं लेखक कहाँ हूँ।

पर यह तो सच है कि गौरी जिस प्रकार लंड चूस रही है उसका कोई जवाब ही नहीं है। मेरा लंड तो जैसे धन्य ही हो गया। पता नहीं यह सब उसने कहाँ से सीखा है? लगता है उसने जरूर किसी साईट पर यह सब तसल्ली से देखा और सीखा होगा।

कोई 10 मिनट तक गौरी ने लंड चूसा होगा। फिर वह सांस लेने के लिए थोड़ी देर रुकी।
“गौरी मेरी जान! यू आर ग्रेट ! तुम बहुत अच्छा चूसती हो।”

गौरी अपनी प्रशंसा सुनकर मुस्कुराने लगी थी। आज उसने ना तो गला दुखने की बात की और ना ही वीर्य जल्दी नहीं निकलने की कोई शिकायत की। एकबार फिर से उसने थोड़ा शहद मेरे लिंगमुंड पर लगाया और थोड़ा शहद अपनी जीभ पर लगा कर फिर से चूसना चालू कर दिया।

अब वह अलग-अलग तरीकों से लंड चूसने लगी थी कभी-कभी मेरी प्रतिक्रया जानने के लिए मेरी ओर भी देखती और मेरे चेहरे पर आई मुस्कान देखकर वह इस क्रिया को और भी बेहतर ढंग से करने का प्रयाश करने लगी। कभी सुपारे को चाटना, कभी उसपर जीभ फिराना, कभी लंड को जड़ तक मुंह में लेकर चूसते हुए धीरे धीरे बाहर निकालना, कभी उसे दांतों से काटना और फिर दुलारना … कभी गोटियों को सहलाना … आह … गौरी तो आज कमाल कर रही थी।

मैं आँखें बंद किये अपने भाग्य की सराहना करता रहा।

गौरी की 8-10 मिनट की कड़ी मेहनत के बाद लिंग महादेव प्रसन्न हुए और फिर उन्होंने अपना अमृत गौरी को भेंट कर दिया। गौरी तो कब से इस अमृत की प्रतीक्षा कर रही थी। वह इस हलाहल को गटागट पीती चली गयी। उसने वीर्य रूपी प्रसाद का एक भी कतरा बाहर नहीं आने दिया।

जब मेरा लंड कुछ ढीला पड़ गया तो गौरी ने उसे अपने मुंह से बाहर निकाल दिया। फिर उसे एक हाथ में पकड़कर उस पर हल्की सी चपत लगाकर हंसने लगी। साली ये जवान लड़कियां नखरे और अदाएं तो अपने आप सीख लेती हैं।
अब मैंने उसे अपनी बांहों में भरकर अपने पास फिर से सोफे पर बैठा लिया। फिर टेबल पर रखी मीठी इलायची और सुपारी की पुड़िया खोल कर आधी गौरी के मुख श्री में डाल दी और बाकी अपने मुंह में डाल ली। गौरी को अब उबकाई वाली समस्या भी नहीं होगी।

“गौरी! मेरी जान तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद। गौरी तुम सच में इस क्रिया को बहुत अच्छे से करती हो। मधुर भी कई बार करती तो है पर इतना सुन्दर ढंग से नहीं कर पाती।” मैंने उसके सिर पर हाथ फिराते हुए कहा।

अब बेचारी गौरी क्या बोलती वह तो मेरे आगोश में सिमटी बहुत कुछ सोचती ही रह गई।
“वो … चाय नहीं पीनी त्या?”
“गोली मारो चाय को … आज तो तुम अपनी पसंद के पकोड़े बनाओ तब तक मैं नहा लेता हूँ।”
“हओ” गौरी हंसते हुए रसोई में चली गई।

कहानी जारी रहेगी.
 
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