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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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#59

ऐसा नहीं था की मैं पहले भी जिन्दगी से परेशां नहीं था , आज भी मैं उलझा था उन उलझनों में जो बस मेरे गले पड़ गयी थी. मैंने लाला के घर जाने का विचार त्यागा और कपडे उतार कर हौदी में घुस गया . ठंडा पानी जो बदन पर पड़ा तो कुछ देर के लिए आराम मिला. एक नजर आसमान पर डाली आज सितारे चमक रहे थे . मन में बेचैनी थी , करे तो क्या करे नंगे बदन हौदी पर बैठे मैं बहुत देर तक यही सोचता रहा . हर बार मेरे दिल ने बस यही कहा की हर सवाल का जवाब वहीँ पर है बस मेरी नजर उस कहानी की डोर को पकड़ नहीं पा रही है .



दूर शिवाले में............

रात बेशक गहरा गयी थी पर शिवाला जाग्रत था हजारो दियो की रौशनी में जगमगा रहा था .दींन दुनिया से बेखबर , उसकी पायल की झंकार शिवाले में ऐसे गूँज रही थी जैसे की सावन में कोई अल्हड झूला चढ़ रही हो . बिखरी जुल्फे, चेहरे पर बेताक्लुफ्फी पर आंखो में शांति, इतनी शांति की जो देखे वो आने वाले तूफ़ान को महसूस कर जाए. उसने मिटटी खोद कर एक दिया बनाया और फिर अंगुली पर घाव करके उस दिए को खून से भर दिया. जैसे वो दिया जगमगाया धरती में हलचल सी मच गयी . उसने अपने आस पास एक घेरा बनाया और जोर से जमीन पर थपकी मारी.

“मुझे लगता है ये सब करने की तुम्हे कोई जरुरत नहीं है ” ये मीता थी जो तेज तेज चलते हुए रीना की तरफ आ रही थी .

रीना ने घुर कर उसे देखा और बोली- तू मुझे समझाएगी की क्या करना है क्या नहीं

मीता अब तक रीना के बिलकुल पास आ चुकी थी .

मीता- रीना, बात को समझ मुझे तेरी परवाह है , तु नहीं जानती तू कितनी कीमती है

रीना- मेरी परवाह है तो चली जा यहाँ से , मुझे जो करना है करने दे.

मीता- मैं जानना चाहती हूँ तू क्या करना चाहती है , तूने शिवाले को कैसे जाग्रत किया .

रीना- बताने की जरुरत नहीं मुझे, देवो के देव सबको अपनाते है मुझे भी शरण दी है , उनका जो है अब मेरा है वो .

मीता-तेरा नहीं रीना, उस चीज का जो तुझे अपने इशारो पर नचा रही है .

रीना- मेरा दिमाग ख़राब मत कर चली जा यहाँ से .

मीता- मैं तुझे यहाँ मरने के लिए नहीं छोड़ सकती, तू चल मेरे साथ

मीता ने रीना का हाथ पकड़ा. पर रीना ने एक झटका दिया जिससे मीता का पूरा अस्तित्व हिल गया . रीना ने अपने होंठो को बुदबुदा कर न जाने क्या कहना शुरू किया , आसपास का माहौल बदलने लगा. एक बार फिर से वो कुछ अजीब कर रही थी की मीता ने उसको रोक लिया.

रीना- तू ऐसे नहीं मानेगी. पहले तेरा ही रोग काटती हूँ .

मीता- तेरी अगर यही मर्जी है तो ठीक है ,

रीना ने ताली बजाई और हवा में से बेतहाशा हथियार निकल कर दोनों के दरमियान गिर गए.

रीना- तेरे लहू की तपिश को महसूस किया था मैंने , उसे पीकर ही आज मेरी प्यास बुझेगी .

मीता- आ फिर देर किस बात की ये रही मैं और ये मेरी तलवार .

मीता ने एक तलवार उठाई और दूसरी रीना की तरफ फेंकी . रीना की आँखों का रंग एक बार फिर गहरा काला हो गया . इस से पहले की मीता कुछ करती बिजली की सी रफ़्तार से रीना ने उसकी पीठ चीर दी.

“बहुत बढ़िया ” चीखी मीता और उसने रीना के पैर पर वार किया पर रीना जिस पर रक्त का जूनून चढ़ने लगा था उसने फिर से बचाया और मीता के कंधे पर अपनी तलवार की मूठ दे मारी. मीता कुछ कदम पीछे हुई.

पानी की हौदी पर बैठे बैठे अचानक ही उदासी ने मुझे घेर लिया. अजीब सी बेचैनी हो रही थी दिमाग में बस उस अजनबी किसान की बाते घूम रही थी , उसने जो जो बात मुझे कही थी मैं उनके अर्थ समझने की कोशिश कर रहा था की अचानक से एक कोवा आकर मेरे सर से टकराया और मर गया . काले कौवे का अचानक से ऐसे सर पर आकर टकराना एक अपशकुन था, मेरा दिमाग घूम गया , दिल ने किसी अनिष्ट की आशंका से धडकनों की रफ़्तार शिथिल कर दी.

दूर शिवाले में दो बिजलिया एक दुसरे पर बरसने को बेताब हो रही थी . मीता की तलवार ने रीना की कोहनी से मांस का एक टुकड़ा उड़ा लिया था , रीना के चेहरे पर मुस्कान उभर आई . उसने मीता की पीठ पर लात मारी, मीता धडाम से जमीन पर गिर गयी. मौके का फायदा उठा कर रीना ने मीता की जांघ कर अपनी तलवार का निशाँ लगा दिया.

रीना ने तलवार पर लगे मीता के रक्त को अपने होंठो से चाटा और बोली- बरसो बाद इस लहू को चखा है , आज भी उतना ही ताजा और मजेदार है .

मीता- क्या बोल रही है तू रीना

रीना- अब क्या बोलना क्या सुनना अब तो बस तेरे लहू को पीना है शिवाले के कण कण को तेरे लहू से लीप दूंगी मैं.

उस कौवे को देखते हुए मैं ख्यालो में डूबा था की तभी मेरे दिमाग में बत्ती सी जली और मैं उसी पल शिवाले की तरफ दौड़ पड़ा. फूली हुई सांसो की बिना परवाह किये मैं बस दौड़ रहा था शिवाले की और. उस अजनबी की कही हुई बात का भेद शायद मैंने समझ लिया था . पर मैं कहाँ जानता था की वहां पर एक और तूफान मेरा इंतज़ार कर रहा है , शिवाले की रौशनी देखते ही मेरा दिल अनहोनी की आकांशा से घबराने लगा था और जब मैंने उस मैदान में उन दोनों को खून से लथपथ एक दुसरे पर वार करते हुए देखा तो मेरे दिल के दो टुकड़े हो गए.

“मीता, रीना ” चीखते हुए मैं दोनों की तरफ बढ़ा .

मैं- ये क्या कर रही हो तुम , पागल हुई हो क्या.

मीता- मनीष, पीछे हटो ये अपने होश में नहीं है , मैं संभाल लुंगी इसे.

मीता ने रीना को मारा पर उसे क्या पता था की चोट मेरे इड्ल पर लगी है .

मैं- नहीं मीता. नहीं, मैं संभाल लूँगा इसे. रीना होश में आओ देखो मेरी तरफ तुम्हारा मनीष तुमसे कह रहा है , छोड़ो इस हथियार को और पास आओ मेरे .

रीना- दूर हट जा , मैंने वादा किया है इस से की आज हम में से कोई एक ही रहेगा एक को जाना होगा.

मैं- कोइ नहीं जाएगा हम तीनो साथ है साथ ही रहेगे.

रीना मेरे पास आई बोली- कौन है तू , क्या तू भी मरना चाहता है इसके जैसे

मैं- अगर मेरे मरने से ही तेरा क्रोध शांत होता है तो मेरी जान , ये भी मंजूर है

रीना- आज की रात लगता है मेहरवान है , तू थोडा धैर्य रख इसके बाद तेरा ही नंबर है .

रीना ने मीता को मारने के लिए प्रहार किया पर मैंने उसकी तलवार पकड़ ली

मैं- शांत हो जा रीना , शांत हो जा. टाल दे इस घडी को . कही अनर्थ न हो जाये.

रीना ने मेरे पेट में लात मारी और मुझे फेंक दिए एक बार फिर से वो दोनों जुट गयी . अनिष्ट की शंका तो मुझे उसी पल हो गयी थी पर ऐसे होगा ये नहीं जानता था . मीता घायल थी , रीना पर जूनून शामिल था और इस से पहले की वो मीता पर उस जानलेवा वार को करती , मैंने अपने बदन को मीता की ढाल बना दिया.

रीना की तलवार मेरे बदन के आर पार हो गयी .

“नहीं ” चीखी मीता और मुझे अपने आप पर से हटाते हुए उसने रीना को धक्का दिया. रीना का सर चबूतरे से जा टकराया. मीता ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया

“क्यों, क्यों किया ऐसा तुमने ” सुबकते हुए बोली वो

मेरे बहते खून से धरती गीली होने लगी थी .

मीता- कुछ नहीं होने दूंगी तुझे

मैं- सहारा दे जरा मुझे

मीता ने मुझे खड़ा किया लड़खड़ाते कदमो से मीता का सहारा लिए कुछ कदम ही चल पाया था की एक बार फिर से मैं गिर गया .

“होश कर मनीष होश कर ” मीता ने मेरे गाल थपथपाते हुए कहा .

मैंने उसके हाथ को थामा और बोला- उसे कभी मालूम नहीं होना चाहिये, वादा कर मुझसे , चाहे कुछ भी हो जाये, मैं रहूँ न रहूँ तू उसका ध्यान रखेगी , उसे कभी मत बताना की ये उसके हाथो से हुआ है .

मीता- वादा मेरे सनम वादा

मीता के मुह से ये सुनते ही मैंने अपनी आँखे मूँद ली और खुद को उसके हवाले कर दिया...............................
Waah kya yuddh tha. Reena Reena nahi rah gayi thi wo to kisi ke vash me thi. Koi anjaani shakti usse ye sab karwa rahi thi lekin kyo?? Reena aur meeta ki is bhayankar ladaayi me Manish ab maut ke muh me chala gaya hai. Dhadkane ruk gayi hain, waqt apni jagah par thahar gaya hai. Dekhte hain aage Manish ke sath kya hota hai, bahut hi shandaar update tha fauji bhai. Ab aage ka intzaar hai :waiting:
 
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यह तो स्पष्ट है कि रीना जब से उस रहस्यमय ताबीज को अपने गले में धारण की है तब से वो कुछ अजीब सा बर्ताव करने लगी है । लेकिन वह बर्ताव एक खास समय पर ही होता है ।
इसके अलावा यह भी क्लियर हो गया कि सालों से बंद पड़े शिवाले को जागृत भी उसी ने ही किया और वह भी उस ताबीज के वशीकरण हेतु ।
कुछ और बातें समझ में आ रहा है कि यह पुरी घटना किसी अलौकिक शक्ति से जुड़ा हुआ है । तंत्र मंत्र , साधक , सिद्धि , अश्व मानव , नहारवीर , जल का अचानक से रेत में तब्दील होना , रीना का पौराणिक कथाओं की तरह अस्त्र शस्त्र का आवाहन करना ........ यह सब अलौकिक ही प्रतीत होता है ।

ऐसा लगता है जैसे रीना के अन्दर किसी और की आत्मा समा गई है और वो शख्स कोई ऐसा है जिसने अपने जमाने में अगणित लोगों का नर संहार किया है । बिल्कुल ही खलनायक की तरह व्यवहार करने लगी थी रीना । अगर ऐसा नहीं होता तो वो गलती से भी मनीष को चोट पहुंचाने की कोशिश नहीं करती ।

लेकिन सवाल यह है कि ऐसे अलौकिक शक्तियों को आवाहन करने की जरूरत किसे और क्योंकर हुई ?

बहुत खुबसूरत अपडेट्स था फौजी भाई । हमेशा की तरह.... आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड ब्रिलिएंट ।
 

Naik

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#58

सुनार की घरवाली तेज तेज चलते हुए हमारी तरफ ही आ रही थी , पर किसलिए ये देखना था .

काकी- पिछले कुछ दिनों से मैं तुमसे मिलना चाह रही थी .

मैं- कुछ काम था क्या

काकी ने एक नजर डाली मीता पर और बोली- अकेले में बात हो सकती है

मैं- सब अपने ही है खुल कर कहो जो कहना है

काकी- लालाजी के जाने के बाद मैं ऐसे कुछ पुराणी चीजे जो जरुरत की नहीं थी उन्हें देख रही थी की मुझे कुछ ऐसा मिला जिसे मैं समझ नहीं पायी.

मैं- तो इसमें मेरा क्या लेना देना है .

काकी-मुझे एक चिट्ठी मिली जिसमे लिखा है अर्जुन के वारिस को दे देना, वो समझ जायेगा

मैं- क्या समझ जायेगा

काकी- यही तो उलझन है मेरी, चिट्ठी में बस इतना ही लिखा है ये नहीं लिखा की क्या दे देना .

काकी ने चिट्ठी मेरे हाथ पर रख दी. चमड़े के ऊपर लाल स्याही से लिखे गए शब्द थे . मीता ने भी पढ़ा उसे. एक तो जीवन में कम स्यापे थे ऊपर से ये चुतिया सुनार भी मरते मरते एक पहेली छोड़ गया .

मैं- काकी, जब्बर लाला और मेरे पिता किसी ज़माने में बड़े गहरे दोस्त थे पर उनकी दुश्मनी का क्या कारण था .

काकी- इसका जवाब उन तीनो में से ही कोई दे सकता है .

मैं- लालाजी के सामान को मैं देखना चाहूँगा अगर आपको कोई ऐतराज़ न हो तो .

काकी- मुझे भला क्या दिक्कत होगी, बस तुम अपना जो कुछ भी है वो ले जाओ .

मैं- ठीक है रात को आता हूँ मैं

काकी के जाने के बाद मैं और मीता उस चिट्ठी को देखने लगे.

मीता- अजीब सा चमड़ा है . ऐसी खाल मैंने देखि नहीं कभी

मैं- छोड़ अपने को क्या लेना देना. अपन रात को लाला के घर चलेंगे. तू ही जाना मेरा मन नहीं है .

मैं- क्या हुआ तेरे मन को

मीता- तेरी बातो ने उलझन में डाल दिया है मुझे, तूने कहा की रीना को अश्व मानव याद नहीं उसके घाव याद नहीं पर उसे ये याद थी मैं.

मैं- तू रीना पर शक कर रही है

मीता- नहीं, मैं बस सम्भावना तलाश रही हूँ . मुझे भी परवाह है रीना की . मुझे लगता है की वो बार बार रुद्रपुर जाएगी. उसे तलाश है किसी चीज की , उसकी आँखों में अजीब शिद्दत दिखी थी मुझे. मैं नहीं चल पाऊँगी तेरे साथ .

मैं- ठीक है . मैं ही जाऊँगा.

मीता- कल दोपहर को मिलेंगे फिर हम

मैं- कुछ देर तो रुक साथ मेरे

मीता- मुझे आदत होने लगी है तेरी, और ये आदत ठीक नहीं

मैं- मीता और मनीष एक ही तो है

मीता- ये तू कहता है तेरा दिल नहीं , वो किसी और के लिए धडकता है

मैं-इन धडकनों से अब डरने लगा हूँ मैं

मीता- समझा के रख इनको,

मीता ने अपना झोला उठाया और जाने लगी. कुछ कदम उसके साथ चला और फिर बावड़ी पे जाके बैठ गया .ये शाम ये डूबता सूरज . ये तन्हाई और मैं , मीता का कहना बिलकुल सही था मैं दो नावो की सवारी कर रहा था मेरे लिए रीना सबकुछ थी और मीता जिन्दगी थी . मुझे दोनों से बेपनाह प्यार था . ये जानते हुए भी की वो लम्हा मेरी जान ही ले जायेगा जब ये दोनों आमने सामने आएँगी जब किसी एक का साथ पकड़ना होगा , किसी एक का साथ छोड़ना होगा. सीने पर हाथ रखे मैं पत्थर पर लेटे हुए इसी कशमकश में डूबा था की एक आवाज ने मुझे धरातल पर ला पटका .

“चौधरी ओ चौधरी , तेरी मर्जी हो तो थोडा पानी पी लू ”

मैंने देखा ये वो ही आदमी था जो उस दिन मुझे कुवे पर मिला था . मैं लगभग दौड़ते हुए उसके पास गया .

मैं- तुम यहाँ

आदमी- इधर से गुजर रहा था प्यास लग आई. और आज मैंने पूछा भी है तुमसे

मैंने आँखों से इशारा किया तो उसने अंजुल भरी हौदी से और पीने लगा. उसकी दाढ़ी, मूंछे भीगने लगी पानी से.

“जी भर गया चौधरी , खूब असीश तुमको ” उसने कहा

मैं- जल्दी में नहीं हो तो आओ बैठते है थोड़ी देर.

उसने एक नजर आस पास डाली और बोला- जो तुम्हारी इच्छा चौधरी.

मैं उस से सीधा सीधा नहीं पूछ सकता था मैंने भूमिका बनानी शुरू की .

मैं- तुम किसान हो , मुझे बताओ ये कुवा मीठे पानी का है , पास में नहर है . आसपास का हर खेत फसल उगाता है पर मेरी जमीन ही बंजर क्यों .

आदमी-धरती हमारी माँ होती है चौधरी,और माँ भी संतान को तब तक दूध नहीं पिलाती जब तक की संतान रो रो कर उसे बताती नहीं की भूक्ख लगी है , तुम्हारे पास सब कुछ है , धरती माँ को बताओ की तुम उस पर आश्रित हो अपने पसीने से सींच दो उसके कलेजे को , वो किरपा करेगी तुम पर .

मैं- तुम मेरी मदद करोगे यहाँ खेती करने में, मैं तुम्हे मनचाही रकम दूंगा.

उस आदमी ने मेरी तरफ देख कर मुस्कुराया और बोला- चौधरी, लालच दे रहे हो मुझे, मैंने तुम्हे बताया था की मैं खुद किसान हूँ व्यापारी हूँ मुझे भला किसका मोह, पेट भरने लायक अनाज ये धरती माँ दे देती है .

मैं- उस रात जब तुम यहाँ से गए. इस हौदी का पानी मिटटी हो गया . मेर्रे किसी अपने की जान पर बन आई.

आदमी- खेद की बात है पर मेरा ऐसा कुछ प्रयोजन नहीं था . मैं बस पानी पीने रुका था .

मैं- हैरानी की बात जिस रात ये घटना हुई उसी रात किसी ने मेरे गाँव में एक आदमी को मार कर उसका दिल निकाल लिया और उसे शिवाले में भोग दे आया .

मेरी बात का उस आदमी पर जरा भी फर्क नहीं पड़ा , जरा भी भाव नहीं बदले उसके .

आदमी- मैं देखना चाहता हूँ की तुम कैसे मेहनत करते हो इस जमीन पर हल चला कर दिखाओ जरा .

मैं- मेरे पास बैल कहाँ है .

आदमी- ये भुजाये किसी बल से कम है क्या . उठाओ हल दिखाओ मुझे तुम काबिल बी हो या नहीं.

मैंने हल काँधे पर लगाया और चलाने लगा. बेशक मिटटी ने खूब पानी पीया था पर फिर भी जल्दी ही मेरी हिम्मत जवाब दे गयी. उस आदमी के चेहरे पर मुस्कराहट थी .

उसने हल मेरे काँधे से लेकर खुद पर लगाया और मैं देखता रह गया. कितना शक्तिशाली था वो . धरती ने जैसे खुद रास्ता दे दिया था उसको .. मैंने आगे होकर हल की दूसरी तरफ अपना कन्धा लगा दिया. वो मुस्कुराया. और हल छोड़ दिया.

आदमी- मैंने कहा था न ये धरती हमारी माँ है इसे दिल से पुकारो . माँ संतान के लिए जरुर आती है .

उसने अपना गमछा सही किया और जाने लगा.

मैं- रुको जरा मुझे बहुत बाते करनी है तुमसे

पर वो नहीं रुका, उसने सुना ही नहीं मुझे बस चलता रहा .


“मैं जानता हूँ तुम कौन हो . रुक जाओ मत जाओ ” मैंने चिल्ला कर कहा पर उसके कदम नहीं रुके ........................ हलके अँधेरे में मैं उसके पीछे दौड़ा और जब तक मैं मुंडेर पर पहुंचा वहां पर कोई नहीं था कोई भी नहीं था .............
Badhiya shaandaar update bhai
 

Naik

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ऐसा नहीं था की मैं पहले भी जिन्दगी से परेशां नहीं था , आज भी मैं उलझा था उन उलझनों में जो बस मेरे गले पड़ गयी थी. मैंने लाला के घर जाने का विचार त्यागा और कपडे उतार कर हौदी में घुस गया . ठंडा पानी जो बदन पर पड़ा तो कुछ देर के लिए आराम मिला. एक नजर आसमान पर डाली आज सितारे चमक रहे थे . मन में बेचैनी थी , करे तो क्या करे नंगे बदन हौदी पर बैठे मैं बहुत देर तक यही सोचता रहा . हर बार मेरे दिल ने बस यही कहा की हर सवाल का जवाब वहीँ पर है बस मेरी नजर उस कहानी की डोर को पकड़ नहीं पा रही है .



दूर शिवाले में............

रात बेशक गहरा गयी थी पर शिवाला जाग्रत था हजारो दियो की रौशनी में जगमगा रहा था .दींन दुनिया से बेखबर , उसकी पायल की झंकार शिवाले में ऐसे गूँज रही थी जैसे की सावन में कोई अल्हड झूला चढ़ रही हो . बिखरी जुल्फे, चेहरे पर बेताक्लुफ्फी पर आंखो में शांति, इतनी शांति की जो देखे वो आने वाले तूफ़ान को महसूस कर जाए. उसने मिटटी खोद कर एक दिया बनाया और फिर अंगुली पर घाव करके उस दिए को खून से भर दिया. जैसे वो दिया जगमगाया धरती में हलचल सी मच गयी . उसने अपने आस पास एक घेरा बनाया और जोर से जमीन पर थपकी मारी.

“मुझे लगता है ये सब करने की तुम्हे कोई जरुरत नहीं है ” ये मीता थी जो तेज तेज चलते हुए रीना की तरफ आ रही थी .

रीना ने घुर कर उसे देखा और बोली- तू मुझे समझाएगी की क्या करना है क्या नहीं

मीता अब तक रीना के बिलकुल पास आ चुकी थी .

मीता- रीना, बात को समझ मुझे तेरी परवाह है , तु नहीं जानती तू कितनी कीमती है

रीना- मेरी परवाह है तो चली जा यहाँ से , मुझे जो करना है करने दे.

मीता- मैं जानना चाहती हूँ तू क्या करना चाहती है , तूने शिवाले को कैसे जाग्रत किया .

रीना- बताने की जरुरत नहीं मुझे, देवो के देव सबको अपनाते है मुझे भी शरण दी है , उनका जो है अब मेरा है वो .

मीता-तेरा नहीं रीना, उस चीज का जो तुझे अपने इशारो पर नचा रही है .

रीना- मेरा दिमाग ख़राब मत कर चली जा यहाँ से .

मीता- मैं तुझे यहाँ मरने के लिए नहीं छोड़ सकती, तू चल मेरे साथ

मीता ने रीना का हाथ पकड़ा. पर रीना ने एक झटका दिया जिससे मीता का पूरा अस्तित्व हिल गया . रीना ने अपने होंठो को बुदबुदा कर न जाने क्या कहना शुरू किया , आसपास का माहौल बदलने लगा. एक बार फिर से वो कुछ अजीब कर रही थी की मीता ने उसको रोक लिया.

रीना- तू ऐसे नहीं मानेगी. पहले तेरा ही रोग काटती हूँ .

मीता- तेरी अगर यही मर्जी है तो ठीक है ,

रीना ने ताली बजाई और हवा में से बेतहाशा हथियार निकल कर दोनों के दरमियान गिर गए.

रीना- तेरे लहू की तपिश को महसूस किया था मैंने , उसे पीकर ही आज मेरी प्यास बुझेगी .

मीता- आ फिर देर किस बात की ये रही मैं और ये मेरी तलवार .

मीता ने एक तलवार उठाई और दूसरी रीना की तरफ फेंकी . रीना की आँखों का रंग एक बार फिर गहरा काला हो गया . इस से पहले की मीता कुछ करती बिजली की सी रफ़्तार से रीना ने उसकी पीठ चीर दी.

“बहुत बढ़िया ” चीखी मीता और उसने रीना के पैर पर वार किया पर रीना जिस पर रक्त का जूनून चढ़ने लगा था उसने फिर से बचाया और मीता के कंधे पर अपनी तलवार की मूठ दे मारी. मीता कुछ कदम पीछे हुई.

पानी की हौदी पर बैठे बैठे अचानक ही उदासी ने मुझे घेर लिया. अजीब सी बेचैनी हो रही थी दिमाग में बस उस अजनबी किसान की बाते घूम रही थी , उसने जो जो बात मुझे कही थी मैं उनके अर्थ समझने की कोशिश कर रहा था की अचानक से एक कोवा आकर मेरे सर से टकराया और मर गया . काले कौवे का अचानक से ऐसे सर पर आकर टकराना एक अपशकुन था, मेरा दिमाग घूम गया , दिल ने किसी अनिष्ट की आशंका से धडकनों की रफ़्तार शिथिल कर दी.

दूर शिवाले में दो बिजलिया एक दुसरे पर बरसने को बेताब हो रही थी . मीता की तलवार ने रीना की कोहनी से मांस का एक टुकड़ा उड़ा लिया था , रीना के चेहरे पर मुस्कान उभर आई . उसने मीता की पीठ पर लात मारी, मीता धडाम से जमीन पर गिर गयी. मौके का फायदा उठा कर रीना ने मीता की जांघ कर अपनी तलवार का निशाँ लगा दिया.

रीना ने तलवार पर लगे मीता के रक्त को अपने होंठो से चाटा और बोली- बरसो बाद इस लहू को चखा है , आज भी उतना ही ताजा और मजेदार है .

मीता- क्या बोल रही है तू रीना

रीना- अब क्या बोलना क्या सुनना अब तो बस तेरे लहू को पीना है शिवाले के कण कण को तेरे लहू से लीप दूंगी मैं.

उस कौवे को देखते हुए मैं ख्यालो में डूबा था की तभी मेरे दिमाग में बत्ती सी जली और मैं उसी पल शिवाले की तरफ दौड़ पड़ा. फूली हुई सांसो की बिना परवाह किये मैं बस दौड़ रहा था शिवाले की और. उस अजनबी की कही हुई बात का भेद शायद मैंने समझ लिया था . पर मैं कहाँ जानता था की वहां पर एक और तूफान मेरा इंतज़ार कर रहा है , शिवाले की रौशनी देखते ही मेरा दिल अनहोनी की आकांशा से घबराने लगा था और जब मैंने उस मैदान में उन दोनों को खून से लथपथ एक दुसरे पर वार करते हुए देखा तो मेरे दिल के दो टुकड़े हो गए.

“मीता, रीना ” चीखते हुए मैं दोनों की तरफ बढ़ा .

मैं- ये क्या कर रही हो तुम , पागल हुई हो क्या.

मीता- मनीष, पीछे हटो ये अपने होश में नहीं है , मैं संभाल लुंगी इसे.

मीता ने रीना को मारा पर उसे क्या पता था की चोट मेरे इड्ल पर लगी है .

मैं- नहीं मीता. नहीं, मैं संभाल लूँगा इसे. रीना होश में आओ देखो मेरी तरफ तुम्हारा मनीष तुमसे कह रहा है , छोड़ो इस हथियार को और पास आओ मेरे .

रीना- दूर हट जा , मैंने वादा किया है इस से की आज हम में से कोई एक ही रहेगा एक को जाना होगा.

मैं- कोइ नहीं जाएगा हम तीनो साथ है साथ ही रहेगे.

रीना मेरे पास आई बोली- कौन है तू , क्या तू भी मरना चाहता है इसके जैसे

मैं- अगर मेरे मरने से ही तेरा क्रोध शांत होता है तो मेरी जान , ये भी मंजूर है

रीना- आज की रात लगता है मेहरवान है , तू थोडा धैर्य रख इसके बाद तेरा ही नंबर है .

रीना ने मीता को मारने के लिए प्रहार किया पर मैंने उसकी तलवार पकड़ ली

मैं- शांत हो जा रीना , शांत हो जा. टाल दे इस घडी को . कही अनर्थ न हो जाये.

रीना ने मेरे पेट में लात मारी और मुझे फेंक दिए एक बार फिर से वो दोनों जुट गयी . अनिष्ट की शंका तो मुझे उसी पल हो गयी थी पर ऐसे होगा ये नहीं जानता था . मीता घायल थी , रीना पर जूनून शामिल था और इस से पहले की वो मीता पर उस जानलेवा वार को करती , मैंने अपने बदन को मीता की ढाल बना दिया.

रीना की तलवार मेरे बदन के आर पार हो गयी .

“नहीं ” चीखी मीता और मुझे अपने आप पर से हटाते हुए उसने रीना को धक्का दिया. रीना का सर चबूतरे से जा टकराया. मीता ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया

“क्यों, क्यों किया ऐसा तुमने ” सुबकते हुए बोली वो

मेरे बहते खून से धरती गीली होने लगी थी .

मीता- कुछ नहीं होने दूंगी तुझे

मैं- सहारा दे जरा मुझे

मीता ने मुझे खड़ा किया लड़खड़ाते कदमो से मीता का सहारा लिए कुछ कदम ही चल पाया था की एक बार फिर से मैं गिर गया .

“होश कर मनीष होश कर ” मीता ने मेरे गाल थपथपाते हुए कहा .

मैंने उसके हाथ को थामा और बोला- उसे कभी मालूम नहीं होना चाहिये, वादा कर मुझसे , चाहे कुछ भी हो जाये, मैं रहूँ न रहूँ तू उसका ध्यान रखेगी , उसे कभी मत बताना की ये उसके हाथो से हुआ है .

मीता- वादा मेरे सनम वादा

मीता के मुह से ये सुनते ही मैंने अपनी आँखे मूँद ली और खुद को उसके हवाले कर दिया...............................
Badhiya shaandaar update bhai
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#60

“आँखे खोल मनीष, मैं तुझे कुछ नहीं होने दूंगी . जब तक मैं हूँ ये साथ नहीं छुटेगा ” मीता ने मुझे थपथपाते हुए कहा.

मैंने उसके हाथ को थाम लिया. तलवार आर पार थी , खून लबालब बह रहा था . हलकी सी आंखे खोल कर मैंने मीता को इशारा दिया की थोड़ी जान बाकी है . आहिस्ता आहिस्ता मीता ने वो तलवार मेरे सीने से खींची और अपनी चुनरिया को इस तरह से बाँध दिया की वो खून को रोक सके.

आंसुओ से भरा चेहरे लिए मुझे अपनी गोद में लिए बैठी मीता सुबक रही थी . सहला रही थी मेरे तन को . सब कुछ शांत था सिवाय उसकी सुबकियो और मेरी सांसो के .

“क्या कहते है तेरे सितारे , पूछ कर बता जरा ” मैंने खांसते हुए कहा

मीता- सितारे जो भी कहे , आज मैं उनकी एक नहीं सुनने वाली.

मैं- सहारा दे जरा मुझे .

मीता ने मुझे अपने कंधे का सहारा देकर खड़ा किया. शिवाला अब भी रोशन था. जिसका मतलब था की अभी ये रात अभी और रोशन थी , कहानी अभी और बाकी थी .

“थोडा पानी पिला दे ” मैंने कहा

मीता तुरंत ही एक घड़ा उठा लाइ . ठन्डे पानी ने बदन को जैसे आराम दिया.

मीता- हमें डाक्टर के पास जाना चाहिए.

मैं- ये डॉक्टर के बस का रोग नहीं है मीता

मीता- तो क्या ऐसे ही तडपता रहेगा तू

इस से पहले की मैं मीता को जवाब दे पाता , शिवाले के सरे दिए एक झटके में बुझ गए . काले मनहूस अँधेरे ने सब कुछ अपने कब्ज़े में ले लिया. आसमान कडकने लगा. एकाएक ही घटा चढ़ आई मौसम में .

“मनीष उधर देख जरा ” मीता ने उस तरफ इशारा किया जहाँ देवता का कमरा था . बस वही पर ही उजाला था , मीता का सहारा लिए मैं वहां पर पहुंचा . अन्दर का सारा नजारा बदल गया था , इतना बदला की मीता और मैं दोनों ही हैरत में रह गए. अन्दर की दीवारे चांदी के तेज से जगमगा रही थी . देवता की मिटटी की मूर्ति काले सफ्तिक में बदल गयी थी जिस पर चन्दन का त्रिपुंड बना था . ये को शक्ति थी जो हमें वहां पर अपने होने का अहसास करवा रही थी .

मैंने अपने हाथो से सफ्टीक को छुआ, और माथे से लगाया , मीता ने भी वैसा ही किया जैसे ही हम दोनों का खून उस मूर्ति को अर्पण हुआ वहां पर आग लग गयी . शायद देवता क्रोधित हो गया था . दीवारों की चांदी पिघल कर बहने लगी. मेरे घाव में तपिश बढ़ने लगी थी . मीता की खाल जलने लगी . और फिर सब शांत हो गया जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो. पर ये सब हुआ था इसका सबूत थी दिवार पर पिघली चांदी से बनी वो आकृति .

वो आकृति जिसका वहां होना हमारे लिए कोई पहेली थी या फिर कोई सन्देश था .

“कौन होगी ये ” मीता ने पूछा

मैं- अभी तो नहीं मालूम पर पता कर लेंगे हम

मैंने अपने हाथ से उस आक्रति को छुआ ही था की एक बार फिर से हमारे कदम लडखडा गए. ऐसे लगा की भूकंप ने दस्तक दी हो .

मैं- इस से मेरा कोई तो रिश्ता है मीता , ये पहचान रही है मुझे

मैंने फिर से अपनी हथेली आक्रति पर रखी. आकृति से पानी रिसने लगा.

“पानी ” मैंने कहा

मीता- नहीं पानी नहीं आंसू .

मीता ने इशारा किया , मैंने देखा उस छाया की आँखों से आंसू बह रहे थे . पर बस दो पल के लिए फिर वो आकृति राख बन कर मिट गयी . मैंने उस राख को मुट्ठी में भर लिया. जैसे ही राख में मेरे बदन को महूसस किया मुझे अलग ही ताजगी, स्फूर्ति लगने लगी. थोड़ी देर पहले मैं दर्द में था पर अब ठीक लग रहा था . बस मेरा जख्म भरा नहीं था . जितनी भी वो राख थी मैंने अपने बदन पर लगा ली. शक्ति का संचार तो हुआ पर जख्म ताज्जा ही रहा ये अजीब बात थी .

मैं और मीता वापिस आये तब तक रीना का वहां कोई नामो निशान नहीं था . ख़ामोशी से चलते हुए मैं और मीता कुवे पर पहुंचे . मीता कमरे में गई और पट्टियों वाली थैली ले आई ,

मीता- पट्टी से काम नहीं चलेगा. डॉक्टर से तो दिखाना ही पड़ेगा

मैं- ठीक है बाबा . अब ये हुलिया बदल ले कोई देखेगा तो भूतनी समझ के खौफ से मर जाएगा.

जब मीता अपना हुलिया ठीक कर रही थी तो मैंने देखा उसको भी बहुत चोट लगी थी . कुछ देर बाद वो और मैं बिस्तर पर लेटे थे.

मैं- तो किस बात पर आपस में तकरार कर बैठी तुम लोग

मीता- तेरी जानेमन मौत का आह्वान कर रही थी मैं उसे रोक रही थी .

मैं- और वो तुझसे उलझ पड़ी

मीता- मुझसे चाहे लाख बार उलझ पड़े कोई दिक्कत नहीं है . दिक्कत बस ये है की वो जो कर रही है उसका मकसद क्या है , नाहरविरो से लड़ना चाहती है पर किसलिए ,

मैं- शायद नाहर वीर को साधना चाहती है रीना

मीता- मनीष, मैं घुमा फिरा कर नहीं कहूँगी पर मुझे लगता है की उस जमीन में कुछ है , नाहर वीर को बेहतरीन सुरक्षा करने वाले माना जाता है तो इतना तो तय है की किसी बेहद कीमती चीज की रक्षा कर रहे है वो .

मीता की बात से मुझे वो द्रश्य याद आया जब संध्या चाची ने अपना मांस जमीन पर फेंक कर कुछ किया था तो जमीन से सोना चांदी निकले थे .

मैं- उस जमीन में खजाना है

मीता- मुझे संदेह था , पर रीना क्या करेगी सोने-चांदी का

मैं- यही तो मेरे भी समझ में नहीं आ रहा , बात इतनी सरल नहीं है . संध्या चाची को भी सोने से जयादा किसी और चीज में दिलचस्पी थी . उसने कहा था मुझे नहीं चाहिए ये सब .

मीता- और हम इस काबिल नहीं है की संध्या का मुह खुलवा सके. इन सबका अतीत हमारे आज पर भारी पड़ रहा है , संध्या के अतीत को तलाश कर ही हम कुछ सुराग तलाश कर पाएंगे.

मैं- हम जरुर कामयाब होंगे.

मैंने मीता के कंधे पर सर रखा और सोने की कोशिश करने लगा. शिवाले की उस राख ने मुझे काफी राहत दे दी थी पर फिर भी अगले दिन मैं डॉक्टर के पास चला गया . उसने जैसे तैसे करके टाँके लगाये और कुछ दवाइयां भी दी. मैं वहां से ताई के पास चला गया जो घर पर ही थी .

ताई- आजकल कहाँ गायब है तू

मैं- बस ऐसे ही कुछ कामो में उलझा था .

ताई- सब ठीक है न

मैं- हाँ सब बढ़िया है .

ताई- सुन खाना खा लेना अभी बना कर ही रखा है , तेरा ताऊ आज आने वाला है तो घर पर ही रहना मैं रीना के घर पर जा रही हूँ , कुछ मेहमान आने वाले है आज कोई काम हो तो बुला लेना मुझे

मैं- कौन मेहमान आने वाले है ताई

ताई- तुझे नहीं मालूम क्या , रीना के लिए रिश्ता आया है .....
 
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