बलबीर और कोमल दोनों ही सोच मे पड़ गए. दाई माँ कैसे बता सकती है की वहां जो भी साया(आत्मा) थी. वो अक्षिडाँट से नहीं मरा होगा. उसकी बाली दी होंगी. कोमल ने तो तपाक से पूछ ही लिया.
कोमल : दाई माँ. ये कैसे पता लगा की वो एक्सीडेंट मे मरी होंगी या फिर बाली... मतलब मे समझी नहीं. बाली.....
दाई माँ शांत हो गई. कुछ पल वो कुछ नहीं बोली. पर जब दाई माँ ने इन विषयो पर अपने ज्ञान का पिटारा खोला तो दोनों ही हेरत मे पड़ गए.
दाई माँ : जे नई नई सड़के बनावे है..... नए नए पुल बनावे है.... तो जे ठेकादार हेना... चाहे कछु हे जाए... जे खुद पढ़े लिखें हे. पर जे बाली दे दे हे.
दाई माँ का कहने का मतलब था की बड़े बड़े बिल्डर कॉन्ट्रेक्टर कितने भी पढ़े लिखें हो. ये अंधश्रद्धा मे मानते हे. ये लोग ऐसा कोई कॉन्ट्रैक्सशन करते वक्त तांत्रिको से पूजा वगेरा करवाते हैं. और बाली दिलवाते हैं. जो गेरकानूनी और क्राइम होता हैं.
कोमल : पर इस से क्या होता है दाई माँ????
दाई माँ : जे कोई नई बड़ी चीज बनी. सडक हे गई. पुल हे गया. बांध हे गया. जे सच हे की जे सब खून मांगे. ऐसे मे तुमनेउ देखा होगा की कई जगहों पे खूब एक्सीडेंट हे जाते. पर जे सब गलत लकीरन की वजह से हेतोए.
दाई माँ का कहना था की कई जगाह नया रोड बनता हे. नया ब्रिज बनता हे. या नया डेम्प बनता हे. ऐसी जगाह पर मौत होती हे. ये जगाह खून मानती हे. पर ये सब का कारण गलत वस्तुशास्त्र होता हे. कोमल भी कुछ अपना एक्सॉयशंस सब के सामने पेश करती है.
कोमल : हा दाई माँ. ये बात तो सच है की कई जगाह ऐसी है. जहा बार बार एक्सीडेंट होते ही रहते है.
दाई माँ : जे जगाह गन्दी होती है. मतलब की ऐसी जगाह मौत को खिंचती है. तू हमेशा याद रखना री छोरी. हमेशा मौत मौत को खींचती है. जे कोई मारे भए आदमी की लाश तुम गाड़ी मे ले जाओ तब देखना. गाड़ी भरी है जाबेगी. गाड़ी खुद ही दूसरी गाड़ी की तरफ मुड़बे की कोसिस करेंगी.
दाई माँ का कहने का मतलब यही था की कोई जगाह का वास्तु ही ख़राब होता है. वहां नकारात्मक ऊर्जा होती है. जो मौत करवाती है. और एक मौत दूसरी मौत को खिंचती है. इसी लिए लाश लेजाने वाला वाहन खुद ही एक्सीडेंट होने की कोसिस करता है. सायद बलबीर को ऐसा एक्सपीरियंस हुआ होगा. वो बोल पड़ा. क्यों की गांव के ही कोई थे. जो दिल्ली मे नौकरी कर रहे थे. जिनका दिल्ली मे ही देहांत हो गया.
बलबीर : हा माई. जे तो सच है. मे जब बनवारी चाचा को दिल्ली से ला रहा था. तब ऐसा खूब हुआ. छोटी गाड़ी थी. कितना भगाउ. गाड़ी तेज़ चल ही नहीं रही थी. और कोई सामने से गाड़ी आए तब मेरी गाड़ी अपने आप ही उसमे घुसने की कोसिस करती. स्टेरिंग तो खूब भरी हो गया था.
कोमल को भी आदत थी. कई बार वो मुंबई से खुद कार चलाकर अहमदाबाद तक आ जाती. वो सडक पर ऐसी चीजों का ख्याल रखेगी. पर बली का सिस्टम उसे समझ नहीं आया.
कोमल : तो दाई माँ. ये बली का क्या चक्कर होता है.
दाई माँ एक बार फिर हलका सा मुश्कुराई. पर इस बार की मुश्कान मे ख़ुशी नहीं थी. जैसे अफ़सोस जाहिर हो रहा हो.
दाई माँ : (अफ़सोस) कितनेऊ पढ़ लिख जाओ. लोगन को डर है. काउ कुछ ख़राब ना हे जाए. लोगन ने अपने स्वार्थ मे दुसरान की जान ले लई. जे नयो नयो पुल बनाबे. नई सडक बनाबे. अब जे बर्बाद ना हे जा मारे काला जादू कर्वबए. अब बा मे चाइये बली. तो कोउ गरीब बिन के चकर मे फस जाए. कोउ भिखारी होय. कोउ गरीब होय. ज्या काउए बहला फुसला ले. कोई इंसान. या कवारी लड़की. या बालक. अलग अलग बली हेउतोए.
दाई माँ का कहने का मतलब ये था की बड़े बड़े कॉन्ट्रैक्टर कुछ कंस्ट्रक्शन करते हे. तब उन्हें डर होता हे की उनका कुछ फेल ना हो जाए. नुकशान ना हो जाए. इस लिए काला जादू की पूजा करवाते है. जिसमे बली की जरुरत होती है. कोई इंसान, कवारी लड़की/लड़का, या छोटे बच्चे इन सब की अलग अलग डिमांड पर बली होती है. जिसके कोई बहला फुसलाकार या मज़बूरी मे, या जरदस्ती फस जाते है. कोमल को क्राइम पढ़ने की भी आदत थी. अपने कानूनी किताबों मे और निजी जीवन मे ऐसे कई केस वो देख चुकी थी. क्योंकि कोमल एक वकील थी. बहोत सी ऐसी चीजों को कोमल देख भी चुकी थी.
कुछ पल के लिए माहौल शांत हो गया. दाई माँ ने सर हिलाकर बलबीर से बीड़ी माचिस माँगा. बलबीर ने भी हाथ आगे बढ़ा दिया. पर दाई माँ ने उसमे से तीन बीड़ी निकली. और एक साथ जब तीन बीड़ी जलाई तब कोमल समझ गई ki दाई माँ ने तीसरी बीड़ी किसके लिए जलाई. गांव और बड़ो की मर्यादा के चलते कोमल मुश्कुराती थोडा शर्माती दए बाए देखने लगी. पर जब दाई माँ ने बीड़ी का हाथ आगे बढ़ाया तो कोमल ने तुरंत ले लिया.
दए बाए देख देख कर कोमल ने भी बीड़ी पी. सिगरेट से थोडा टेस्ट भले अलग लगा. पर तलब तो मिट गई. कुछ पल शांत होने के बाद इस बार कोमल ने बलबीर की तरफ देखा.
कोमल : क्या और कोई ऐसा डरवाना किस्सा हुआ तुम्हारी जिंदगी मे????
बलबीर ने अपने हाथ मे जो बीड़ी बूझ गई थी. उसे फेका. अपने पाऊ को मोड़ कर थोडा पीछे हुआ. जैसे थोडा सोच कर बोल रहा हो.
बलबीर : अभी कुछ 6 महीने पहले ही हुआ. वो तो इतना भयानक था की उस से ज्यादा बुरा मेने अपनी जिंदगी मे कभी नहीं देखा.
दाई माँ भी हैरानी से बलबीर की तरफ देखने लगी. क्यों की ज्यादातर तो ऐसा कुछ होता तो बलबीर उसे बता देता. पिछला किस्सा भी बलबीर ने बताया हुआ था. सिर्फ कोमल के लिए दाई माँ वो किस्सा दोबारा सुन रही थी.
दाई माँ : का भओ??? (क्या हुआ??)
बलबीर : ये किस्सा बीकानेर के पास हुआ था. बीकानेर के अंदर ही अनाज मंडी मे मेरी गाड़ी खड़ी थी. माल उनलोड हो रहा था.
तब तो अपना मुन्ना भी गाड़ी चलना सिख गया था. मै मुन्ना के भुरोसे गाड़ी छोड़ कर मंडी से बाहर निकाल गया. सोचा चाय पीलू. मंडी के बाहर की तरफ ही दुकान थी. वहां रंडिया भी बहोत घूमती है. ज़्यादातर ट्रक वाले के चलते ही वहां आती है. खुलेआम घूमती है. कोई कुछ नहीं बोलता. वैसे तो मे कभी गलत काम नहीं करता. पर एक लड़की पर मेरी नजर गई. वो रोड पर सबसे अलग खड़ी थी. बड़ी सुन्दर थी. रोड के खम्बे के सहारे खड़ी थी. वो मुझे देखने से ही रंडी तो नहीं लग रही थी.
क्यों की उसने बहोत ही बढ़िया कपडे पहेन रखे थे. उसने सोने के जेवर भी पहेन रखे थे. मुझे वो देखने से ही अशली लग रहे थे. वो अकेली खड़ी थी. मोटरसाइकिल पर तो कई मनचले आए. पर कोई उसके पास नहीं जा रहा था. जब की जितनी लड़किया घूम रही थी. उन लड़कियों मे वो सब से सुन्दर थी. बल्कि ये कहु की उस से सुन्दर लड़की तो मेने आज तक नहीं देखि. मेरा भी दिल किया की एक बार जाकर उस से बात करू. भले ही मै गलत काम ना करू. पर मै उसूलो का पक्का हु.
उस लड़की के बाल भी खुले थे. और इतने बड़े की कुलहो के भी निचे तक थे. मै उस लड़की को लगातार देखता रहा. मै सोचता रहे गया की वो वहां क्यों खड़ी है. क्यों की वहां रंडिया खड़ी रहती है. और उसके पास कोई जा क्यों नहीं रहा. उस से कोई पूछने भी नहीं जा रहा था. तभी एक लड़का मोटरसाइकिल पर आया. और उसके पास आकर खड़ा हो गया. वो लड़की भी थोडा आगे उसके करीब हुई. दोनों पता नहीं क्या बात कर रहे होंगे. वो लड़की उस लड़के के पूछे बैठ गई.
वो लड़की बाए तरफ पाऊ लटकाए अपने दोनों हाथो को उस लड़के के कंधो पर रखे बैठ गई. वो मोटरसाइकिल चली गई. तभी मै भी अंदर मंडी मै चले गया. मेरी गाड़ी खाली हो चुकी थी. मुन्ना बिल्टी देख रहा था. मै इसके पास गया.
मुन्ना : दद्दा अभी निकाल जाते है. जल्दी जयपुर पहोच जाएंगे.
मुझे उसकी बात सही लगी. मेने गाड़ी चलाने को उसे कहा.
मै : चल ठीक है. निकाल गाड़ी.
उसने गाड़ी निकली. मै साइड मै बैठ गया. रोटी हम आगे कोई ढाबे पर खाने वाले थे. बोतल मेने ले रखी थी. चालू गाड़ी मे ही मेने पेग बना ना शुरू किया. पर सामने मुझे वही मोटरसाइकिल दिखी. मै हेरत मे पड़ गया. वो मोटरसाइकिल बहोत धीरे चल रही थी. हाईवे पर तो अंधेरा ही होता है. सिर्फ गाड़ियों की लाइट ही होती है. हमारी गाड़ी की लाइट से मुझे उनकी मोटरसाइकिल दिख गई. मुझे वो लड़का तो नहीं दिख रहा था.
बस उस लड़की की पिठ ही दिख रही थी. वही उसके लम्बे बाल. मुन्ना को मेरे हाथ से गिलास लेना था. इस लिए हमरी गाड़ी की पीकप भी थोड़ी धीरे हो गई.