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Update 37
डॉ रुस्तम लगातार सतीश की कहानी सुना रहे थे. और कोमल बलबीर और दाई माँ सुन रहे थे.
डॉ : सतीश पैदल चलते हुए माया के घर की तरफ जा रहा था. वो बहोत खुश था. लेकिन अब उसे अपनी ख़ुशी का कारन पता थी. परमजीत. परमजीत से बात कर के उसे बहोत अच्छा लग रहा था. वो माया के घर पहोच गया. उसने डोर नॉक किया. कुछ देर बाद माया ने दरवाजा खोला. पर माया सतीश का चहेरा देख कर थोड़ी हैरान रहे गई. क्यों की सतीश के चहेरे पर ख़ुशी झलक रही थी.
जब की माया के हिसाब से वो इतना खुश नहीं होना चाहिये था. माया तुरंत समझ गई की सतीश पर अब उसके वशीकरण का असर नहीं है. पर उसे ये नहीं पता चला की सतीश पर अब किसी और यानि की परमजीत के वशीकरण का असर है.
माया : (स्माइल) आओ... जल्दी से फ्रेश होकर तैयार हो जाओ. वरना हमें देर हो जाएगी.
सतीश अंदर आया तो उसे कुछ घुटन सी होने लगी. उसे ऐसा लगने लगा की चूहें या कोई और जीव के मरने की बदबू रूम मे हो.
सतीश : उफ्फ्फ भाभी ससस ये बदबू.....
यही बदबू सतीश को जिस दिन आया था. उस दिन के बाद आज महसूस हुई. जबकि रोज वो उसी घर मे रहे रहा था.
माया : कहा बदबू है. मुजे तो नहीं आ रही. तुम जाओ. फ्रेस हो जाओ.
सतीश बाथरूम चले गया. सतीश जब भी बाथरूम जाता तो माया सतीश का समान टटोलती. जैसे ही सतीश अपने रूम मे गया. और चेंज करने के बाद बाथरूम मे घुसा माया तुरंत उसके वाले रूम मे घुस गई. उसने देखा की सतीश ने बैग वही बेड पर ही छोड़ दिया.
वो आगे बढ़ी पर बेग को टच ही नहीं कर पाई. उल्टा माया को ही उस बैग के पास घुटन होने लगी. माया उस रूम से निकल गई. कुछ देर बाद सतीश बाथरूम से निकल कर अपने रूम मे घुस गया. और तैयार होकर बहार आ गया. माया उसे देख कर मुश्कुराई.
माया : (स्माइल) बहोत अच्छे लग रहे हो. अब चले.
सतीश भी मुश्कुराया. और उसके साथ घर के बहार निकला. उसने देखा की माया अपना घर लॉक तो क्या क्लोज तक नहीं कर रही.
सतीश : अरे भाभी लॉक तो कर दो.
माया : फिकर मत करो. मेरे घर मे मेरी मर्जी के बिना कोई नहीं आ सकता.
वो कुछ नहीं बोला. और माया के साथ चल दिया. बहार अंधेरा हो चूका था.
वही जब सतीश जब ऑफिस से निकल कर माया के घर जाने के लिए निकला था. तब उसका पीछा दाई माँ और परमजीत कर रही थी. उसकी ऑफिस मे प्योन को जो हलवा सतीश को देने के लिए दिया था. वो परमजीत ही लेकर आई थी. परमजीत और दाई माँ दोनों ही माया के घर से दूर उस घर पर नजर रखे हुए थी.
जैसे ही माया सतीश को लेकर निकली वो दोनों माया के घर के करीब आ गई. घर का दरवाजा खुला हुआ देख कर परमजीत भी हैरान रहे गई.
परमजीत : माई दरवाजा तो खुला है. कही कोई घर मे तो नहीं है??
दाई माँ : कोउ ना हते. डायन काउ की सगी ना भई. बे सबसे पहले अपने परिवारन की बलिउ देते.
(कोई नहीं है. डायन किसी की सगी नहीं होती. वो सबसे पहले अपने परिवार की ही बली दे देती है.)
परमजीत : तो फिर माई अंदर चले???
दाई माँ : डट जा बाबाड़चोदी. मोए देखन दे.
(रुक जा. मुजे देखने दे )
मगर बोलते हुए दाई माँ ने बड़ी अजीब अपनी भाषा की गाली दी. जो परमजीत को समझ आ गई. मगर वो बुरा नहीं मानती. दाई माँ उसके घर के दरवाजे के बहार खड़ी हो गई. दाई माँ अंदर देख रही थी. दाई माँ माया के घर के अंदर जाने लगी. मगर वो उलटे पाऊ घर के अंदर घुसी.
दाई : उलटे पाऊ अंदर आइयो लाली. सुलटे पाऊ मत आइयो. नई तो बाए पतों लग जा गो.
(उलटे पाऊ आना. सुलटे पाऊ मत आना. वरना उसे पता लग जाएगा.)
दाई माँ माया के घर मे घुस चुकी थी. दाई माँ के कदम एड़ी आगे और पंजे पीछे चुड़ैलों के जैसे कदमो से वो अंदर घुसी. उन्हें देख कर माया भी उनके जैसे ही अंदर घुसी. दाई माँ गर्दन घुमाए उल्टा देखते हुए आगे बढ़ी और एक लोहे के दरवाजे को खोल आगे बढ़ी. पर जब दरवाजा खोला तो उसके से बहोत गन्दी बंदबु आने लगी.
दाई माँ उस रूम मे घुस चुकी थी. परमजीत ने अपने मोबाइल की लाइट जलाई और वो भी दाई माँ के जैसे ही उस रूम मे घुसी. घुसते हुए परमजीत को इतनी ज्यादा बदबू आ रही थी की उसने अपने दुपट्टे से अपनी नाक ढक ली थी. पर जब परमजीत अंदर पहोची तो उसके होश उड़ गए. वहां कई लाशें थी.
कई लाशें जानवरो की तो कई इंसानो की. हर लाश का सर अलग और गर्दन अलग. बकरा मुर्गा, बटेर कबूतर और खास तोर पर इंसान की लाशें थी. जिनमे कई तो लड़कियों की तो कई जवान मर्दो की. किसी किसी लाश को देख कर पता चल रहा था की वो नवजात और कम उम्र के बच्चे की लाशें थी.
दाई माँ : जे सबन की बली वा ने दी भई है.
(ये सब लाशें उस डायन ने बली देकर मारा हुआ है.)
परमजीत हैरान रहे गई. जनवार, पशु पक्षी के साथ इंसानो की भी बली दी गई थी. जिनमे लड़किया बच्चे और जवान मर्द तक शामिल थे.
परमजीत : इसससससस... ससससस दाई माँ जल्दी करो. वो सतीश को लेकर पहोच गई होंगी.
दाई माँ : डट जा बावड़ी. वा ने रास्तो लम्बो चाइये. वाए आज सतीश की बली लेनी हते.
(रुक जा. उसे रस्ता लम्बा चाहिये. वो सतीश की बली आज लेना चाहती है.)
परमजीत : पर आप ढूढ़ क्या रही हो??
दाई माँ : बड़ो सो पत्थर ढूढ़. जे सारो की गर्दन वाने वाइप कटी होय.
(बड़ा सा पत्थर ढूढ़. ये सब की गर्दन उसने उसी पत्थर पर कटी हो वैसा ही.)
परमजीत ने मोबाइल के कैमरा की फ्लेस लाइट को उस रूम मे चारो तरफ घुमाया. वहां एक बड़ा पत्थर था. जिसपर खून लगा हुआ था. दाई माँ आगे बढ़ी और उस पत्थर के पास जाकर उलटी दिशा मे ही मुँह कर के बैठी.
दाई माँ : री.. तू एक काम कर. मेऱ जैसे उलटे पाम आजा. और मेरी झा झागन पर बैठ कर जे पत्थरन ने हटा.
(तू एक काम कर. मेरे जैसे उलटे पाऊ आजा. और मेरी गोद मे खड़ी होकर ये पत्थर हटा.
परमजीत सोच मे पड़ गई. पर वैसे ही पीछे देखते उलटे पाऊ आगे बढ़ी. वो दाई माँ के पास पहोच तो गई. पर फिर सोचने लगी की दाई माँ बूढी है. वो उसका वजन कैसे झेलेगी.
दाई माँ : री जल्दी कर. बखत(टाइम) ना है.
परमजीत ने उलटे ही दाई माँ की zang पर पाऊ रखा. लेकिन वो हैरान रहे गई की दाई माँ ने उफ् तक नहीं की. धीरे परमजीत ने दूसरा पाऊ भी उनकी गोद मे रखा.
दाई माँ : इब सुधी हेजा. (अब सीधी होजा.)
परमजीत दाई माँ की गोद मे ही सीधी हो गई. वो दाई माँ की गोद मे ही निचे बैठी और दाई माँ के कंधे पर झूक के उस पत्थर को हटाती है. वो पत्थर थोड़ा भारी था. पर एक हाथ से परमजीत ने उसे थोड़ा उठा दिया. लेकिन उस पत्थर के निचे जो था. उसे देख कर परमजीत हैरान हो गई. उस पत्थर के निचे एक गुड्डा था. एक डॉल. जो किसी मेल(नर)(male) का था.
परमजीत : (सॉक) माई माई माई. यहाँ पर तो कोई गुड़िया है.
दाई माँ : हा मोए पतों है. वाए आराम से निकार.
(हा मुजे पता है. उसे आराम से निकल)
परमजीत ने एक हाथ से पत्थर को पकड़ा और दूसरे हाथ से उस गुड़िया को खींच कर निकला. उसने दाई माँ को वो गुड़िया दी. जैसा की पहले ही बताया वो गुड़िया नहीं गुड्डा था. और उसपर किसी के बालो को काट कर लाल धागे से लपेटा भी हुआ था. साथ अलापिन भी उस गुड्डे मे घोप रखी थी.
दाई माँ : बस अब ऐसेई उलटे पामन ते बेकार निकार जा.
(बस अब ऐसे ही उलटे पाऊ से बहार निकल जा.)
परमजीत ऐसे ही उलटे पाऊ बहार निकली. दाई माँ को खड़े होने मे थोड़ी तकलीफ हुई. पर उस समय दाई माँ इतनी भी ज्यादा बूढी नहीं थी. वो भी बड़ी सावधानी से उलटे पाऊ बहार आ गई.