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Horror किस्से अनहोनियों के

Shetan

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कहानी में मानवीय पक्ष, सस्पेंस, थ्रिल सब कुछ है। पढ़ने वालो को अंत तक बाँध कर रखती है, दाई माँ का चरित्र तो शुरू से ही जबरदस्त रहा है और लोक भाषा का इस्तेमाल उसे और जमीन के नजदीक ले जाता है । और जिस तरह आप पाठको को छोड़ती हैं, हम सब इन्तजार करेंगे की डायन का आखिरी मुकाबला कैसे हुआ।

Clap Applause GIF by Ananya Birla


एक बार फिर आभार, इस उत्कृष्ट लेखन के लिए।
बहोत बहोत धन्यवाद कोमलजी. इस स्टोरी को मेने टुकड़े टुकड़े कर के टाइम निकल निकल कर बड़ी मुश्किल से लिखा है. जब की रिस्पांस भी रेडर्स का बहोत कम है. लेकिन कुछ सॉलिड रिडर्स के लिए स्पेशल लिख रही हु.
 
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Shetan

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Bhai wah shetan maza aa gaya update me, or acha laga ki aapne wapas story start kar di h, best of luck 👍
बहोत बहोत धन्यवाद krishna. ये स्टोरी सच्ची घटनाओं पर आधारित है. हा ये नॉनसेक्सुअल है. पर मुजे इसके स्पेशल हॉरर लवर्स मिल ही जाएंगे.
 

Shetan

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Superb update lekhika ji🙏🙏
Aap ke update padkar to koi chote dil wala raat me bahar hi na niklega. Bahut hi sunder update tha.
Waiting for the next update
बहोत बहोत धन्यवाद Kingsingh. अगर मुजे स्पेशल हॉरर लवर्स मिल जाए तो मै इस से भी ज्यादा दरवानी स्टोरी लिख सकती हु. कल अपडेट दे दूंगी.
 

Krishna kumar

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बहोत बहोत धन्यवाद krishna. ये स्टोरी सच्ची घटनाओं पर आधारित है. हा ये नॉनसेक्सुअल है. पर मुजे इसके स्पेशल हॉरर लवर्स मिल ही जाएंगे.
Bilkul milenge shetan ji, hum bhi to horror lover h, fantasy stories bhi pasand h mujhe, or shetan ji meri police wali biwi story kab se start kar rahi ho
 
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Shetan

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Bilkul milenge shetan ji, hum bhi to horror lover h, fantasy stories bhi pasand h mujhe, or shetan ji meri police wali biwi story kab se start kar rahi ho
उसको सायद अभी भी टाइम लगेगा. उस स्टोरी का फ्लो आना मुश्किल होगा. पर इस स्टोरी पाए रेव्यू नहीं आ रहे. इस किस्से के बाद रिडर्स नहीं मिले यों स्टोरी रोक दूंगी.
 

Shetan

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Update : 36

डॉ सायब की जुबानी लगातार वो कहानी सुना रहे थे.


डॉ : सतीश माया के जाल मे फिर फस गया था. वो भूल गया था की उसने रात क्या देखा. सुबह भले ही उसने नाश्ता ना किया हो. मगर माया ने उसे जो चाय पिलाई. गड़बड़ वही हो चुकी थी. सतीश सब भूल कर माया को कोपरेट करने लगा था. माया ने उसे शाम एक पार्टी मे चलने को बोला था. और उसने भी हा कर दी थी.

वो ऑफिस के लिए निकल गया. उसे भूख लगी तो कैंटीन मे उसने बहोत जल्दी ही लंच कर लिया. वो हसीं ख़ुशी अपना क्लास एटेंट कर रहा था. की तभि ब्रेक होते सतीश ने देखा की उसके मोबइल पर सरोज उसकी माँ और परमजीत के कई सारे मिस्स्कॉल है. सतीश को गुस्सा आने लगा. क्यों की उसे याद आया की उसकी माँ कुछ रिचुअल्स करवाएगी. जिसे सतीश अंधश्रद्धा समझ रहा था.

पर पहले कभी भी सतीश को अपनी माँ के ऊपर गुस्सा नहीं आया था. ये सारी असर सतीश पर माया की थी. क्यों की सुबह की उस चाय मे माया ने बहोत ही स्ट्रांग समोहन तंत्र किया हुआ था. सतीश ने सरोज को खुद ही कॉल किया.


सतीश : हेलो माँ. क्या बात हो गई.


अपने बेटे की जान बचाने के लिए एक माँ किसी भी हद तक जा सकती है. वो अपने बेटे से जैसे मिन्नतें कर रही हो. सरोज गिड़गिड़ाते हुए बोली.


सरोज : अरे बेटा. तू कैसा है??


सतीश : (गुस्सा) मै ठीक हु माँ. आप काम बताओ. क्यों फोन कर रही थी मुजे???


एक माँ को कितना दुख हुआ होगा. जिस माँ ने अपने बेटे को महेनत मजदूरी कर के पाला हो. मगर वो बेटा अपनी माँ से इस तरह अकड़ के बात करें तब. बेचारी सरोज की आँखों मे अंशू बहेने लगे. मगर सरोज ने अपनी आवाज मे बिलकुल भी रोने की आवाज शामिल नहीं होने दी.


सरोज : (गिड़गिड़ाना) बेटा वो तेरी बहन के लिए बताया था ना.... बेटा बेटा मेने तेरे लिए प्रसाद भेजा था. तेरे ऑफिस के पते पर...


गुस्से मे सतीश ने अपनी माँ को खरी खोटी सुना दिया.


सतीश : (गुस्सा) माँ प्लीज.. आप मे दिमाग़ तो है नहीं. बस इन फालतू जादू टोन मे पड़ी रहती हो. मै फालतू चीजों को नहीं मानता. मुजे कोई प्रसाद व्रसाद नहीं खाना. अब मेरा दिमाग़ मत खाओ. रखो फ़ोन.


सरोज : बेटा तू बस मेरे लिए इतना नहीं करेगा?? बस प्रसाद ही तो खाना है. और और और वो तो तेरा मन पसंद हलवा है.


सतीश कुछ बोल नहीं पाया. वो चुप हो गया. वो अपनी माँ को मना नहीं कर सकता था. उसने जैसे ही फोन कटा सरोज सिसक सिसक कर रोने लगी. उसे दाई माँ ने चुप कराया.


दाई माँ : मत रोवे री. या वाके अपने बोल ना है.
(मत रो. या उसके खुद के बोल नहीं है)


एक बार फिर कोमल अपना शक दूर करने के लिए बिच मे बोल पड़ी.


कोमल : ये बात मुजे समझ नहीं आई. सतीश को हिप्नोटाइज किया हुआ था. पर उसे माया ने ऐसा तो नहीं कहा था की अपनी माँ से बात ना करो. या फिर बदतमीजी करो. और कितना कुछ उसने अपनी माँ से कहा. पर वो सायद बात भी मान गया.


डॉ : क्यों की ये उसका गुन है. जो बचपन से चले आ रहा है. और एक वशीकरण का शिकार व्यक्ति अपना गुस्सा नहीं कारन भूलता है. ये वशीकरण के अलग अलग प्रकार है.


बोल कर डॉ रुस्तम कोमल की तरफ देखने लगे. और एकदम खामोश हो गए. वो कोमल के अगले सवाल का इंतजार कर रहे थे. पर उसने आगे कुछ नहीं पूछा तो कहानी आगे बढ़ाते है.


डॉ : तक़रीबन शाम के 4 बज रहे थे. सतीश समझ नहीं पा रहा था की उसे क्या हो गया है. उसे कुछ अच्छा क्यों नहीं लग रहा है. वो ये सब सोच ही रहा था की तभि पियोन एक पार्सल लेकर आया. और सतीश को दे देता है. सतीश बड़ी हैरानी से उस पार्सल को देख रहा था. उसे जब सतीश ने खोला तो अंदर एक टिफिन था.

सतीश ने देर नहीं की. और टिफिन खोला तो उसके माँ के हाथ का बनाया हुआ देशी घी का हलवा. सतीश के फेस पर स्माइल आ गई. उसने तुरंत ही हलवा चख लिया. सायद माँ के हाथ मे वो जादू ही होता है. जो सारी बुरी बालाओ से बचा ही लेता है. दरसल दाई माँ ने भी वही खेल खेला. जो उस डायन माया ने खेला था.

ठीक वैसा ही वशीकरण दाई माँ ने भी उस हलवे के जरिये किया था. लेकिन वशीकरण तत्त्व जो था वो परमजीत थी. दाई माँ जानती थी की परमजीत सतीश से शादी करेंगी. इसी लिए उन्होंने परमजीत को चुना. वहां फोन रखते ही दुख से सरोज इतना रोइ की उसे बुखार आ गया. अब परमजीत और दाई माँ आगे की प्लानिंग करने लगी.


परमजीत : माई अब क्या करें??? वो सतीश के साथ क्या करेंगी???


दाई माँ : बे वाने डायन की दावत मे ले जावेगी. वाह कछु खाबे मे जादूते वाने वशीकरण कर के वाको खून पिबेगी. पर मारेगी ना. वा मारेगी तो लोट ते बखत.
(वो उसे डायानो की दावत मे लेजाएगी. वहां खाने मे कुछ मिलाकर वशीकरण करेंगी. उसके बाद सारी डायन उसका खून पिएगी. लेकिन मारेगी जब सतीश उसके साथ लोट रहा होगा.)


परमजीत : तो बचने का कोई रस्ता???


दाई माँ : जे वाने बचानो होय. बे कछु खाए पिए नहीं. अगर नई खाबेगो पिबेगो तो वाको खून कोई ना पिबे. और लोट ते बखत सतीश डायन के पीछे चले तो एक दिन वाई की जिंदगी और बच जावेगी.
( अगर बचाना हो तो सतीश वहां कुछ भी खाए पिए नहीं. अगर वो कुछ नहीं खाएगा तो कोई डायन उसका खून नहीं पिएगी. और लोट ते वक्त अगर वो डायन सतीश के आगे चले तो सतीश को वो एक रात के लिए नहीं मारेगी. उसे एक दिन की जिंदगी और मिल जाएगी.)


परमजीत अच्छी तरह से समझ गई. वहां सतीश भले ही अब भी पिछली कोई बात सोच नहीं पा रहा था. मगर अब उसके जहन मे माया नहीं उसकी प्रेमिका परमजीत थी. सतीश शाम होते ही वापस माया के उसी ठिकाने की तरफ चल दिया. वो नहीं जानता था क्यों. पर वो खुश था.

जब वो ऑटो से घर के पास पहोंचा ही की तभि उसके मोबाइल पर एक कॉल आया. सतीश ने मोबाइल की स्क्रीन पर देखा तो उसके फेस पर स्माइल आ गई. वो कॉल परमजीत का था. सतीश ने तुरंत कॉल पिक किया.


सतीश : (स्माइल) हेलो???


परमजीत : (स्माइल) कैसे हो??


सतीश : (स्माइल) बस पहोचने ही वाला हु. आज भाभी के साथ बहार एक पार्टी मे जाना है.


परमजीत : (स्माइल) ओह्ह्ह फिर तो दावत उड़ाओगे??


सतीश : हा पार्टी मे तो दावत ही होती है.


परमजीत : वाह. मै यहाँ भूखी मरूंगी. और तुम दावत उड़ाओगे?? कोई जरुरत नहीं है. वहां का तुम पानी भी नहीं पिओगे जब तक मै ना कहु.


सतीश ये मान ना ही था. वो परमजीत से वाशिकृत जो हो चूका था.


सतीश : ठीक है. पर भाभी से क्या कहूंगा??


परमजीत : बोल देना माँ बीमार है. इस लिए मन्नत मांगी है. जब तक माँ का बुखार नहीं उतरेगा. कुछ नहीं खाऊंगा. मेरे लिए खाना पैक करदो.


सतीश : हा ये सही है. रात घर आकर खा लूंगा.


परमजीत : (गुस्सा) मेने कहा ना. कुछ नहीं खाना है. मेने सिर्फ तुम्हे झूठ बोलने के लिए कहा है. समझे.


सतीश : ठीक है.


परमजीत : और ध्यान रखना. जब पार्टी से लोटोगे तो तुम भाभी को बोलना की आप आगे चलो. मै पीछे परमजीत से फोन पर बाते करते हुए आता हु.


सतीश : ठीक है. (स्माइल) हा ये ठीक रहेगा.


परमजीत : अच्छा तो ठीक है. मै रखती हु.


परमजीत ने कॉल कट कर दिया. सतीश ऑटो से उतर कर माया के घर की तरफ चलने लगा. सतीश के बैग मे अब भी वो हलवा था. वो पूरा नहीं खा पाया था. सतीश पैदल चलते एक बार फिर माया के घर तक पहोच गया.

 

Shetan

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Update 37


डॉ रुस्तम लगातार सतीश की कहानी सुना रहे थे. और कोमल बलबीर और दाई माँ सुन रहे थे.


डॉ : सतीश पैदल चलते हुए माया के घर की तरफ जा रहा था. वो बहोत खुश था. लेकिन अब उसे अपनी ख़ुशी का कारन पता थी. परमजीत. परमजीत से बात कर के उसे बहोत अच्छा लग रहा था. वो माया के घर पहोच गया. उसने डोर नॉक किया. कुछ देर बाद माया ने दरवाजा खोला. पर माया सतीश का चहेरा देख कर थोड़ी हैरान रहे गई. क्यों की सतीश के चहेरे पर ख़ुशी झलक रही थी.

जब की माया के हिसाब से वो इतना खुश नहीं होना चाहिये था. माया तुरंत समझ गई की सतीश पर अब उसके वशीकरण का असर नहीं है. पर उसे ये नहीं पता चला की सतीश पर अब किसी और यानि की परमजीत के वशीकरण का असर है.


माया : (स्माइल) आओ... जल्दी से फ्रेश होकर तैयार हो जाओ. वरना हमें देर हो जाएगी.


सतीश अंदर आया तो उसे कुछ घुटन सी होने लगी. उसे ऐसा लगने लगा की चूहें या कोई और जीव के मरने की बदबू रूम मे हो.


सतीश : उफ्फ्फ भाभी ससस ये बदबू.....


यही बदबू सतीश को जिस दिन आया था. उस दिन के बाद आज महसूस हुई. जबकि रोज वो उसी घर मे रहे रहा था.


माया : कहा बदबू है. मुजे तो नहीं आ रही. तुम जाओ. फ्रेस हो जाओ.


सतीश बाथरूम चले गया. सतीश जब भी बाथरूम जाता तो माया सतीश का समान टटोलती. जैसे ही सतीश अपने रूम मे गया. और चेंज करने के बाद बाथरूम मे घुसा माया तुरंत उसके वाले रूम मे घुस गई. उसने देखा की सतीश ने बैग वही बेड पर ही छोड़ दिया.

वो आगे बढ़ी पर बेग को टच ही नहीं कर पाई. उल्टा माया को ही उस बैग के पास घुटन होने लगी. माया उस रूम से निकल गई. कुछ देर बाद सतीश बाथरूम से निकल कर अपने रूम मे घुस गया. और तैयार होकर बहार आ गया. माया उसे देख कर मुश्कुराई.


माया : (स्माइल) बहोत अच्छे लग रहे हो. अब चले.


सतीश भी मुश्कुराया. और उसके साथ घर के बहार निकला. उसने देखा की माया अपना घर लॉक तो क्या क्लोज तक नहीं कर रही.


सतीश : अरे भाभी लॉक तो कर दो.


माया : फिकर मत करो. मेरे घर मे मेरी मर्जी के बिना कोई नहीं आ सकता.


वो कुछ नहीं बोला. और माया के साथ चल दिया. बहार अंधेरा हो चूका था.


वही जब सतीश जब ऑफिस से निकल कर माया के घर जाने के लिए निकला था. तब उसका पीछा दाई माँ और परमजीत कर रही थी. उसकी ऑफिस मे प्योन को जो हलवा सतीश को देने के लिए दिया था. वो परमजीत ही लेकर आई थी. परमजीत और दाई माँ दोनों ही माया के घर से दूर उस घर पर नजर रखे हुए थी.

जैसे ही माया सतीश को लेकर निकली वो दोनों माया के घर के करीब आ गई. घर का दरवाजा खुला हुआ देख कर परमजीत भी हैरान रहे गई.


परमजीत : माई दरवाजा तो खुला है. कही कोई घर मे तो नहीं है??


दाई माँ : कोउ ना हते. डायन काउ की सगी ना भई. बे सबसे पहले अपने परिवारन की बलिउ देते.
(कोई नहीं है. डायन किसी की सगी नहीं होती. वो सबसे पहले अपने परिवार की ही बली दे देती है.)


परमजीत : तो फिर माई अंदर चले???


दाई माँ : डट जा बाबाड़चोदी. मोए देखन दे.
(रुक जा. मुजे देखने दे )


मगर बोलते हुए दाई माँ ने बड़ी अजीब अपनी भाषा की गाली दी. जो परमजीत को समझ आ गई. मगर वो बुरा नहीं मानती. दाई माँ उसके घर के दरवाजे के बहार खड़ी हो गई. दाई माँ अंदर देख रही थी. दाई माँ माया के घर के अंदर जाने लगी. मगर वो उलटे पाऊ घर के अंदर घुसी.


दाई : उलटे पाऊ अंदर आइयो लाली. सुलटे पाऊ मत आइयो. नई तो बाए पतों लग जा गो.
(उलटे पाऊ आना. सुलटे पाऊ मत आना. वरना उसे पता लग जाएगा.)


दाई माँ माया के घर मे घुस चुकी थी. दाई माँ के कदम एड़ी आगे और पंजे पीछे चुड़ैलों के जैसे कदमो से वो अंदर घुसी. उन्हें देख कर माया भी उनके जैसे ही अंदर घुसी. दाई माँ गर्दन घुमाए उल्टा देखते हुए आगे बढ़ी और एक लोहे के दरवाजे को खोल आगे बढ़ी. पर जब दरवाजा खोला तो उसके से बहोत गन्दी बंदबु आने लगी.

दाई माँ उस रूम मे घुस चुकी थी. परमजीत ने अपने मोबाइल की लाइट जलाई और वो भी दाई माँ के जैसे ही उस रूम मे घुसी. घुसते हुए परमजीत को इतनी ज्यादा बदबू आ रही थी की उसने अपने दुपट्टे से अपनी नाक ढक ली थी. पर जब परमजीत अंदर पहोची तो उसके होश उड़ गए. वहां कई लाशें थी.

कई लाशें जानवरो की तो कई इंसानो की. हर लाश का सर अलग और गर्दन अलग. बकरा मुर्गा, बटेर कबूतर और खास तोर पर इंसान की लाशें थी. जिनमे कई तो लड़कियों की तो कई जवान मर्दो की. किसी किसी लाश को देख कर पता चल रहा था की वो नवजात और कम उम्र के बच्चे की लाशें थी.


दाई माँ : जे सबन की बली वा ने दी भई है.
(ये सब लाशें उस डायन ने बली देकर मारा हुआ है.)


परमजीत हैरान रहे गई. जनवार, पशु पक्षी के साथ इंसानो की भी बली दी गई थी. जिनमे लड़किया बच्चे और जवान मर्द तक शामिल थे.


परमजीत : इसससससस... ससससस दाई माँ जल्दी करो. वो सतीश को लेकर पहोच गई होंगी.


दाई माँ : डट जा बावड़ी. वा ने रास्तो लम्बो चाइये. वाए आज सतीश की बली लेनी हते.
(रुक जा. उसे रस्ता लम्बा चाहिये. वो सतीश की बली आज लेना चाहती है.)


परमजीत : पर आप ढूढ़ क्या रही हो??


दाई माँ : बड़ो सो पत्थर ढूढ़. जे सारो की गर्दन वाने वाइप कटी होय.
(बड़ा सा पत्थर ढूढ़. ये सब की गर्दन उसने उसी पत्थर पर कटी हो वैसा ही.)


परमजीत ने मोबाइल के कैमरा की फ्लेस लाइट को उस रूम मे चारो तरफ घुमाया. वहां एक बड़ा पत्थर था. जिसपर खून लगा हुआ था. दाई माँ आगे बढ़ी और उस पत्थर के पास जाकर उलटी दिशा मे ही मुँह कर के बैठी.


दाई माँ : री.. तू एक काम कर. मेऱ जैसे उलटे पाम आजा. और मेरी झा झागन पर बैठ कर जे पत्थरन ने हटा.
(तू एक काम कर. मेरे जैसे उलटे पाऊ आजा. और मेरी गोद मे खड़ी होकर ये पत्थर हटा.


परमजीत सोच मे पड़ गई. पर वैसे ही पीछे देखते उलटे पाऊ आगे बढ़ी. वो दाई माँ के पास पहोच तो गई. पर फिर सोचने लगी की दाई माँ बूढी है. वो उसका वजन कैसे झेलेगी.


दाई माँ : री जल्दी कर. बखत(टाइम) ना है.


परमजीत ने उलटे ही दाई माँ की zang पर पाऊ रखा. लेकिन वो हैरान रहे गई की दाई माँ ने उफ् तक नहीं की. धीरे परमजीत ने दूसरा पाऊ भी उनकी गोद मे रखा.


दाई माँ : इब सुधी हेजा. (अब सीधी होजा.)


परमजीत दाई माँ की गोद मे ही सीधी हो गई. वो दाई माँ की गोद मे ही निचे बैठी और दाई माँ के कंधे पर झूक के उस पत्थर को हटाती है. वो पत्थर थोड़ा भारी था. पर एक हाथ से परमजीत ने उसे थोड़ा उठा दिया. लेकिन उस पत्थर के निचे जो था. उसे देख कर परमजीत हैरान हो गई. उस पत्थर के निचे एक गुड्डा था. एक डॉल. जो किसी मेल(नर)(male) का था.


परमजीत : (सॉक) माई माई माई. यहाँ पर तो कोई गुड़िया है.


दाई माँ : हा मोए पतों है. वाए आराम से निकार.
(हा मुजे पता है. उसे आराम से निकल)


परमजीत ने एक हाथ से पत्थर को पकड़ा और दूसरे हाथ से उस गुड़िया को खींच कर निकला. उसने दाई माँ को वो गुड़िया दी. जैसा की पहले ही बताया वो गुड़िया नहीं गुड्डा था. और उसपर किसी के बालो को काट कर लाल धागे से लपेटा भी हुआ था. साथ अलापिन भी उस गुड्डे मे घोप रखी थी.


दाई माँ : बस अब ऐसेई उलटे पामन ते बेकार निकार जा.
(बस अब ऐसे ही उलटे पाऊ से बहार निकल जा.)


परमजीत ऐसे ही उलटे पाऊ बहार निकली. दाई माँ को खड़े होने मे थोड़ी तकलीफ हुई. पर उस समय दाई माँ इतनी भी ज्यादा बूढी नहीं थी. वो भी बड़ी सावधानी से उलटे पाऊ बहार आ गई.
 

komaalrani

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Update 37


डॉ रुस्तम लगातार सतीश की कहानी सुना रहे थे. और कोमल बलबीर और दाई माँ सुन रहे थे.


डॉ : सतीश पैदल चलते हुए माया के घर की तरफ जा रहा था. वो बहोत खुश था. लेकिन अब उसे अपनी ख़ुशी का कारन पता थी. परमजीत. परमजीत से बात कर के उसे बहोत अच्छा लग रहा था. वो माया के घर पहोच गया. उसने डोर नॉक किया. कुछ देर बाद माया ने दरवाजा खोला. पर माया सतीश का चहेरा देख कर थोड़ी हैरान रहे गई. क्यों की सतीश के चहेरे पर ख़ुशी झलक रही थी.

जब की माया के हिसाब से वो इतना खुश नहीं होना चाहिये था. माया तुरंत समझ गई की सतीश पर अब उसके वशीकरण का असर नहीं है. पर उसे ये नहीं पता चला की सतीश पर अब किसी और यानि की परमजीत के वशीकरण का असर है.


माया : (स्माइल) आओ... जल्दी से फ्रेश होकर तैयार हो जाओ. वरना हमें देर हो जाएगी.


सतीश अंदर आया तो उसे कुछ घुटन सी होने लगी. उसे ऐसा लगने लगा की चूहें या कोई और जीव के मरने की बदबू रूम मे हो.


सतीश : उफ्फ्फ भाभी ससस ये बदबू.....


यही बदबू सतीश को जिस दिन आया था. उस दिन के बाद आज महसूस हुई. जबकि रोज वो उसी घर मे रहे रहा था.


माया : कहा बदबू है. मुजे तो नहीं आ रही. तुम जाओ. फ्रेस हो जाओ.


सतीश बाथरूम चले गया. सतीश जब भी बाथरूम जाता तो माया सतीश का समान टटोलती. जैसे ही सतीश अपने रूम मे गया. और चेंज करने के बाद बाथरूम मे घुसा माया तुरंत उसके वाले रूम मे घुस गई. उसने देखा की सतीश ने बैग वही बेड पर ही छोड़ दिया.

वो आगे बढ़ी पर बेग को टच ही नहीं कर पाई. उल्टा माया को ही उस बैग के पास घुटन होने लगी. माया उस रूम से निकल गई. कुछ देर बाद सतीश बाथरूम से निकल कर अपने रूम मे घुस गया. और तैयार होकर बहार आ गया. माया उसे देख कर मुश्कुराई.


माया : (स्माइल) बहोत अच्छे लग रहे हो. अब चले.


सतीश भी मुश्कुराया. और उसके साथ घर के बहार निकला. उसने देखा की माया अपना घर लॉक तो क्या क्लोज तक नहीं कर रही.


सतीश : अरे भाभी लॉक तो कर दो.


माया : फिकर मत करो. मेरे घर मे मेरी मर्जी के बिना कोई नहीं आ सकता.


वो कुछ नहीं बोला. और माया के साथ चल दिया. बहार अंधेरा हो चूका था.


वही जब सतीश जब ऑफिस से निकल कर माया के घर जाने के लिए निकला था. तब उसका पीछा दाई माँ और परमजीत कर रही थी. उसकी ऑफिस मे प्योन को जो हलवा सतीश को देने के लिए दिया था. वो परमजीत ही लेकर आई थी. परमजीत और दाई माँ दोनों ही माया के घर से दूर उस घर पर नजर रखे हुए थी.

जैसे ही माया सतीश को लेकर निकली वो दोनों माया के घर के करीब आ गई. घर का दरवाजा खुला हुआ देख कर परमजीत भी हैरान रहे गई.


परमजीत : माई दरवाजा तो खुला है. कही कोई घर मे तो नहीं है??


दाई माँ : कोउ ना हते. डायन काउ की सगी ना भई. बे सबसे पहले अपने परिवारन की बलिउ देते.
(कोई नहीं है. डायन किसी की सगी नहीं होती. वो सबसे पहले अपने परिवार की ही बली दे देती है.)


परमजीत : तो फिर माई अंदर चले???


दाई माँ : डट जा बाबाड़चोदी. मोए देखन दे.
(रुक जा. मुजे देखने दे )


मगर बोलते हुए दाई माँ ने बड़ी अजीब अपनी भाषा की गाली दी. जो परमजीत को समझ आ गई. मगर वो बुरा नहीं मानती. दाई माँ उसके घर के दरवाजे के बहार खड़ी हो गई. दाई माँ अंदर देख रही थी. दाई माँ माया के घर के अंदर जाने लगी. मगर वो उलटे पाऊ घर के अंदर घुसी.


दाई : उलटे पाऊ अंदर आइयो लाली. सुलटे पाऊ मत आइयो. नई तो बाए पतों लग जा गो.
(उलटे पाऊ आना. सुलटे पाऊ मत आना. वरना उसे पता लग जाएगा.)


दाई माँ माया के घर मे घुस चुकी थी. दाई माँ के कदम एड़ी आगे और पंजे पीछे चुड़ैलों के जैसे कदमो से वो अंदर घुसी. उन्हें देख कर माया भी उनके जैसे ही अंदर घुसी. दाई माँ गर्दन घुमाए उल्टा देखते हुए आगे बढ़ी और एक लोहे के दरवाजे को खोल आगे बढ़ी. पर जब दरवाजा खोला तो उसके से बहोत गन्दी बंदबु आने लगी.

दाई माँ उस रूम मे घुस चुकी थी. परमजीत ने अपने मोबाइल की लाइट जलाई और वो भी दाई माँ के जैसे ही उस रूम मे घुसी. घुसते हुए परमजीत को इतनी ज्यादा बदबू आ रही थी की उसने अपने दुपट्टे से अपनी नाक ढक ली थी. पर जब परमजीत अंदर पहोची तो उसके होश उड़ गए. वहां कई लाशें थी.

कई लाशें जानवरो की तो कई इंसानो की. हर लाश का सर अलग और गर्दन अलग. बकरा मुर्गा, बटेर कबूतर और खास तोर पर इंसान की लाशें थी. जिनमे कई तो लड़कियों की तो कई जवान मर्दो की. किसी किसी लाश को देख कर पता चल रहा था की वो नवजात और कम उम्र के बच्चे की लाशें थी.


दाई माँ : जे सबन की बली वा ने दी भई है.
(ये सब लाशें उस डायन ने बली देकर मारा हुआ है.)


परमजीत हैरान रहे गई. जनवार, पशु पक्षी के साथ इंसानो की भी बली दी गई थी. जिनमे लड़किया बच्चे और जवान मर्द तक शामिल थे.


परमजीत : इसससससस... ससससस दाई माँ जल्दी करो. वो सतीश को लेकर पहोच गई होंगी.


दाई माँ : डट जा बावड़ी. वा ने रास्तो लम्बो चाइये. वाए आज सतीश की बली लेनी हते.
(रुक जा. उसे रस्ता लम्बा चाहिये. वो सतीश की बली आज लेना चाहती है.)


परमजीत : पर आप ढूढ़ क्या रही हो??


दाई माँ : बड़ो सो पत्थर ढूढ़. जे सारो की गर्दन वाने वाइप कटी होय.
(बड़ा सा पत्थर ढूढ़. ये सब की गर्दन उसने उसी पत्थर पर कटी हो वैसा ही.)


परमजीत ने मोबाइल के कैमरा की फ्लेस लाइट को उस रूम मे चारो तरफ घुमाया. वहां एक बड़ा पत्थर था. जिसपर खून लगा हुआ था. दाई माँ आगे बढ़ी और उस पत्थर के पास जाकर उलटी दिशा मे ही मुँह कर के बैठी.


दाई माँ : री.. तू एक काम कर. मेऱ जैसे उलटे पाम आजा. और मेरी झा झागन पर बैठ कर जे पत्थरन ने हटा.
(तू एक काम कर. मेरे जैसे उलटे पाऊ आजा. और मेरी गोद मे खड़ी होकर ये पत्थर हटा.


परमजीत सोच मे पड़ गई. पर वैसे ही पीछे देखते उलटे पाऊ आगे बढ़ी. वो दाई माँ के पास पहोच तो गई. पर फिर सोचने लगी की दाई माँ बूढी है. वो उसका वजन कैसे झेलेगी.


दाई माँ : री जल्दी कर. बखत(टाइम) ना है.


परमजीत ने उलटे ही दाई माँ की zang पर पाऊ रखा. लेकिन वो हैरान रहे गई की दाई माँ ने उफ् तक नहीं की. धीरे परमजीत ने दूसरा पाऊ भी उनकी गोद मे रखा.


दाई माँ : इब सुधी हेजा. (अब सीधी होजा.)


परमजीत दाई माँ की गोद मे ही सीधी हो गई. वो दाई माँ की गोद मे ही निचे बैठी और दाई माँ के कंधे पर झूक के उस पत्थर को हटाती है. वो पत्थर थोड़ा भारी था. पर एक हाथ से परमजीत ने उसे थोड़ा उठा दिया. लेकिन उस पत्थर के निचे जो था. उसे देख कर परमजीत हैरान हो गई. उस पत्थर के निचे एक गुड्डा था. एक डॉल. जो किसी मेल(नर)(male) का था.


परमजीत : (सॉक) माई माई माई. यहाँ पर तो कोई गुड़िया है.


दाई माँ : हा मोए पतों है. वाए आराम से निकार.
(हा मुजे पता है. उसे आराम से निकल)


परमजीत ने एक हाथ से पत्थर को पकड़ा और दूसरे हाथ से उस गुड़िया को खींच कर निकला. उसने दाई माँ को वो गुड़िया दी. जैसा की पहले ही बताया वो गुड़िया नहीं गुड्डा था. और उसपर किसी के बालो को काट कर लाल धागे से लपेटा भी हुआ था. साथ अलापिन भी उस गुड्डे मे घोप रखी थी.


दाई माँ : बस अब ऐसेई उलटे पामन ते बेकार निकार जा.
(बस अब ऐसे ही उलटे पाऊ से बहार निकल जा.)


परमजीत ऐसे ही उलटे पाऊ बहार निकली. दाई माँ को खड़े होने मे थोड़ी तकलीफ हुई. पर उस समय दाई माँ इतनी भी ज्यादा बूढी नहीं थी. वो भी बड़ी सावधानी से उलटे पाऊ बहार आ गई
हर पोस्ट जबरदस्त, दोनों ओर से दावं चले जा रहे हैं

पर कहते हैं न मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है और अगर दाई माँ साथ हों फिर तो, आप कहानी जिस तरह बुनती हैं, गति के साथ रोमांच, स्प्पेंस और सबसे बढ़कर मानवीय पहलु,

आप अपना उदाहरण स्वयं हैं, इस विधा में आप जैसा कोई नहीं


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पर कहते हैं न मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है और अगर दाई माँ साथ हों फिर तो, आप कहानी जिस तरह बुनती हैं, गति के साथ रोमांच, स्प्पेंस और सबसे बढ़कर मानवीय पहलु,

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मेरी पूरी कोसिस रही है की किस्से को रोमांचक बना सकू. बहोत बहोत धन्यवाद कोमलजी.
 
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