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Incest काला इश्क़ दूसरा अध्याय: एक बग़ावत

Abhi32

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भाग - 12

अब तक आपने पढ़ा:


"पगली....चुप हो जा अब...जब तेरी अच्छी नौकरी लगेगी न तब मेरे लिए अच्छा सा गिफ्ट ला दियो|" आदि भैया मुझे हँसाने के मकसद से बोले और मेरी पीठ थपथपा कर मुझे चुप कराया|


अब आगे:
कहते
हैं की अगर ज़िंदगी की ईमारत झूठ की बुनियाद पर तिकी हो तो कभी न कभी ये ईमारत अवश्य ढह जाती है|


शाम के समय पिताजी ने हमसे पूरे दिन का ब्यौरा माँगा तो भैया ने कमान सँभाली और बड़े तरीके से झूठ बोल दिया; "आजका सारा काम मैंने कीर्ति से करवाया है| बैंक में इसने (मैंने) ड्राफ्ट का फॉर्म भरा, फिर

यूनिवर्सिटी की लाइन में लग कर इसने अपना कॉलेज का फॉर्म जमा किया| फिर वहाँ से हम पहुंचे कंप्यूटर इंस्टिट्यूट और वहाँ मैंने इसका दाखिला करा दिया है| कल सुबह 9 बजे से 11 बजे तक इसकी क्लासेज होंगी| पूरे कंप्यूटर कोर्स की फीस 1,500/- थी तो मैंने 1000/- जमा करा दिए थे| ये रही उसकी रसीद|" भैया ने रसीद पिताजी को दी तो पिताजी ने बड़े गौर से रसीद पढ़ी और फिर अपने बटुए से 500/- निकाल कर माँ को देते हुए बोले; "कल जब तुम कीर्ति को क्लास छोड़ने जाओगी तब ये जमा करा देना और रसीद लेना भूलना मत|"

जैसे ही पिताजी ने माँ को मुझे क्लास छोड़ने जाने की बात कही वैसे ही आदि भैया की हवा टाइट हो गई क्योंकि अब माँ को सारा झूठ पता चलने का खतरा था! वहीं मुझे पता था की मुझे आगे क्या करना है!



दरअसल, मेरी माँ को इस तरह के काम करने का कोई अनुभव नहीं था| वो हमेशा भैया को ही आगे करती थीं, लेकिन चूँकि पिताजी ने इसबार उन्हें आगे किया था और भैया ने जाना था ड्यूटी तो मैंने सोच लिया की मैं ही इस काम की जिम्मेदारी ले लूँगी|

अगले दिन माँ मुझे छोड़ने इंस्टिट्यूट पहुँची और इतने सारे बच्चों को देख परेशान हो गईं की वो फीस कहाँ और कैसे जमा कराएँ?! "माँ, आप घर जाओ मैं फीस जमा करा दूँगी|" जैसे ही माँ ने ये सुना मेरी माँ का चेहरा एकदम से खिल गया| मुझे आशीर्वाद देते हुए माँ ने अपने 'स्त्रियों वाले बटुए' की ज़िप खोल कर मोड़ कर रखा हुआ 500/- का नोट निकाला और मुझे दे दिया| "वापस आ कर मैं आपको रसीद दे दूँगी तो आप पिताजी को दे कर कह देना की आपने ही फीस जमा कराई है|" मैंने माँ को मक्खन लगाने के इरादे से कहा तो माँ ने खुश होते हुए कहा की वो मेरे लिए मेरा मन पसंद खाना बना कर तैयार रखेंगी|



भैया ने रात को मुझे चुपके से फीस के बाकी पैसे दे दिए थे, तो मैंने माँ के दिए हुए पैसे उसमें मिलाये और दो रसीद बनवा ली|

चलो भई फीस तो जमा हो गई, लेकिन अब बारी थी क्लास में जाने की| शीशे के एक दरवाजे को खोल कर मैं अंदर पहुँची तो मुझे ठंडी हवा का ऐसा झोंका लगा मानो मैं हिल स्टेशन आ गई हूँ! अब मेरे सामने 4 कमरे थे जिनके दिवार और दरवाजे सब शीशे के थे| चारों कमरों में लगभग 30-40 कंप्यूटर रखे थे और इतने सारे कंप्यूटर देख कर मैं स्तब्ध थी! मेरे स्कूल में बस 10 कंप्यूटर थे और जब हमारा कंप्यूटर का पीरियड होता था तब टीचर एक कंप्यूटर पर 4-5 बच्चों का झुण्ड बैठा देती थीं| यही कारण था की कंप्यूटर कभी मेरे पल्ले पड़ा ही नहीं!



खैर, मुझे नहीं पता था की किस कमरे में जाऊँ इसलिए मैं बाहर खड़ी सोचने लगी| तभी पीछे से एक लड़की आई और उसने मुझे बताया की मुझे कौनसे कमरे में जाना है| मैं कमरे में दाखिल हुई तो वहाँ 4-5 बच्चों का झुण्ड था| मुझे एक अनजान चेहरे को देख सभी मेरी तरफ देख रहे थे| तभी उस झुण्ड से एक लड़की निकल कर आई और मेरा नाम पुछा|

हम लड़कियों की यही खासियत होती है, हम दूसरी लड़की को देखते ही समझ जाती हैं की उसे हमारी जर्रूरत है और हम बेझिझक उससे दोस्ती करने पहुँच जाती हैं| हमें लड़कों की तरह आइस ब्रेकर (ice breaker) की जरूरत नहीं होती!



इंट्रोडक्शन हुआ तो पता चला की जो लड़की मुझसे बात करने आई थी उसका नाम शशि है तथा उसने भी मेरी ही तरह ओपन यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया है| संयोग से हम दोनों का कॉलेज एक ही निकला, जिससे वो मेरी अच्छी सहेली बन गई|

कुछ देर बाद टीचर आये और उन्होंने सभी को बेसिक कंप्यूटर पढ़ना शुरू किया| कंप्यूटर के मामले में मैं थी निल-बटे सन्नाटा इसलिए शशि ने मेरी खूब मदद की| कंप्यूटर की इतनी सारी जानकारी पा कर मेरा दिमाग हैंग हो चूका था, उस पर टीचर जी ने हमें टाइपिंग सुधारने के लिए टाइप करने के लिए होमवर्क दे दिया!



घर पहुँच मैंने माँ को बताया की मुझे कंप्यूटर पर टाइपिंग सीखनी है, अब हमारे पास तो कंप्यूटर था नहीं इसलिए हम दोनों माँ-बेटी सोच में लग गए| हम सोच में पड़े थे की तभी अंजलि अपनी मम्मी के साथ मेरे घर पर टपक गई| उसका ये अनअपेक्षित आगमन मेरे लिए बड़ा फलदाई साबित होने वाला था|



तो हुआ कुछ यूँ था की अंजलि की मम्मी को ये समझ नहीं आ रहा था की बारहवीं पास करने के बाद वो अंजलि का क्या करें?! अंजलि के चचेरे भैया ने जो उसपर दिनरात मेहनत की थी उस कारण से अंजलि का बदन अब पूरी तरह से भर गया था! अब एक माँ जानती है की उसकी बेटी के जिस्म में जो बदलाव आ रहे हैं उनका कारण क्या है| आंटी जी ये तो समझ गई थीं की अंजलि के ऊपर कोई तो मेहनत कर रहा है मगर ये मेहनत कर कौन रहा है ये वो नहीं जानती थीं| आंटी जी तो अंजलि की शादी करवाना चाहती थीं ताकि कल को उनकी बेटी की जिस्म की आग के कारण उनका मुँह काला न हो मगर आजकल कौन शहर में पढ़ी बारहवीं पास लड़की को बहु बनाता है? इतनी जल्दी शादी करने वाले माँ-बाप को समाज शक की नज़र से देखता है, सबको लगता है की जर्रूर लड़की का कोई चक्कर चल रहा है तभी उसके माता-पिता जल्दी शादी करवा कर अपना पिंड छुड़वा रहे हैं|



"बहनजी, आपकी बेटी कितनी होनहार है देखो कितने अच्छे नम्बरों से पास हुई| वहीं मेरी ये नालायक लड़की (अंजलि) कितनी मुश्किल से नकल-व्क़्ल मारकर पास हुई है| मैं तो इसकी शादी करवाना चाहती थी मगर इसके पापा कह रहे हैं की लड़की को कम से कम कॉलेज करवा देते हैं| इसलिए मैं सोच रही थी की इस नालायक को कीर्ति बिटिया के साथ ही कॉलेज में डाल दें, कीर्ति के साथ रहेगी तो थोड़ा पढ़ लेगी वरना ये सारा दिन आवारा गर्दी करती रहेगी!" आंटी जी ने जैसे ही मेरा गुणगान किया वैसे ही मेरी माँ का सीना गर्व से फूल कर कुप्पा हो गया!

बस फिर क्या था मेरी माँ ने मेरी शान में कसीदे पढ़ने शुरू कर दिए; "आजकल बारहवीं पास लड़की की शादी होती कहाँ है? ऊपर से दहेज़ इतना माँगते हैं की क्या कहें?! ये सब सोचकर ही कीर्ति के पिताजी ने इसे ओपन कॉलेज में डाला है और थोड़ा बहुत कंप्यूटर सीखने के लिए एक इंस्टिट्यूट में दाखिला भी करवा दिया है| ताकि कल को शादी हो तो कम से कम इसे (मुझे) थोड़ा कंप्यूटर आता हो और ये ससुराल में हमारा नाम न खराब करे|"



अंततः ये निर्णय लिया गया की अंजलि भी मेरे साथ कॉलेज जाएगी पर उसकी मम्मी ने उसे कंप्यूटर कोर्स कराने से ये कह कर मना कर दिया की घर में रखे कंप्यूटर पर तो अंजलि बस फिल्म देखती है तो कंप्यूटर कोर्स कर के क्या करेगी?!

जैसे ही आंटी जी ने उनके घर में कंप्यूटर का जिक्र किया मैंने अपनी माँ की तरफ देखा और इशारों ही इशारों में उनसे पूछ लिया की क्यों न मैं अंजलि के घर के कंप्यूटर पर ही टाइपिंग सीख लूँ? माँ ने भी इस मौके का फायदा उठाते हुए फौरन हाँ कर दी|



मैं अंजलि के घर उससे मिलने के बहाने जाने लगी और उसी के कंप्यूटर पर अपनी टाइपिंग की प्रैक्टिस करने लगी|



कुछ दिनों बाद आखिर मेरा कॉलेज खुल गया| रविवार का दिन था और मैं कॉलेज जाने के लिए बहुत उत्साहित थी|



मैंने फिल्मों में देखा था की कॉलेज का पहला दिन बड़ा रोमांचकारी होता है| कॉलेज में लड़कियाँ सुन्दर-सुन्दर कपड़े पहनती हैं जैसे की टॉप, जीन्स, स्कर्ट्स आदि| कॉलेज में कुछ मनचले लड़कोण का गैंग होताहै जो लड़कियों को छेड़ते हैं, सीटी बजाते हैं, नए बच्चों की रैगिंग करते हैं| लड़कियों को कैंटीन में रैगिंग के नाम पर नचाते हैं, भोले-भाले लड़कों को रैगिंग के नाम पर दूसरी लड़कियों को प्रोपोज़ करने को कहते हैं|

रैगिंग होगी इससे मैं बहुत डरती थी इसलिए मैंने अपनी चतुराई दिखाई और जैसे 'प्यार किया तो डरना क्या फिल्म' में अरबाज़ खान अपनी बहन की ढाल बन कर कॉलेज के पहले दिन उसके साथ गया था, वैसे ही मैं अपने आदि भैया को अपने साथ कॉलेज छोड़ने के बहाने से ले गई|



बॉलीवुड की फिल्में देख कर ये फितूर मेरे मन में भरा हुआ था लेकिन हुआ इसके बिलकुल उल्ट!



जब मैं भैया के साथ अपने कॉलेज पहुँची तो वहाँ मेरी उम्र के बच्चे कम और भैया की उम्र के बच्चे...या ये कहूँ की वयस्क ज्यादा थे| एक लड़की तो ऐसी थी जिसने लाल चूड़ा पहना हुआ था, मानो कल ही उसकी शादी हुई हो और वो हनीमून पर न जा कर कॉलेज पढ़ने आई हो| एक पल के लिए तो मन किया की मैं उसके पढ़ाई के प्रति इस कर्तव्यनिष्ठ होने पर उसे सलाम करूँ मगर बाद में मुझे पता चला की वो भी अंजलि के जैसी थी!

कॉलेज के मैं गेट पर मैंने अपना एनरोलमेंट नंबर लिख कर दस्तखत किया| तभी पीछे से अंजलि आ गई और हमें छोड़ भैया घर वापस चले गए| मैंने जब अंजलि से अपने कॉलेज के सुहाने ख्वाब साझा किये तो वो पेट पकड़ कर हँसने लगी|



अब बारी थी हमारी क्लास ढूँढने की इसलिए हमने दूसरे बच्चों से क्लास के बारे में पुछा| ज्यादातर बच्चे नए थे इसलिए उन्हें भी कुछ नहीं पता था| तभी हमें एक सेकंड ईयर की लड़की यानी की हमारी सीनियर मिली| जब अंजलि ने उससे क्लास के बारे में पुछा तो वो हमें देखकर हँसने लगी! "यहाँ पढ़ाई-वढ़ाई नहीं होती! बस अपने असाइनमेंट पूरे करो और एग्जाम में नकल कर पास हो जाओ|" ये कह कर वो हँसती हुई चली गई|

अपने सीनियर की बात सुन हम दोनों स्तब्ध थीं| हमने फिल्मों में देखा था की कॉलेज में बच्चे क्लास बंक करते हैं मगर यहाँ तो सारे नियम-कानून ही टेढ़े हैं! अंजलि तो कॉलेज बंक करने को कह रही थी मगर मुझे ये सुनिश्चित करना था की वो सीनियर लड़की सच कह रही है वरना पता चला की पहले दिन कॉलेज बंक किया और प्रिंसिपल ने सीधा हमारे घर फ़ोन घुमा दिया!



ढूँढ़ते-ढूँढ़ते हमें आखिर एकाउंट्स की क्लास मिल ही गई मगर वहाँ कोई बच्चा था ही नहीं! पूरी क्लास में बस हम दोनों ही थे, अंजलि वापस चलने को कह रही थी मगर मैं ढीठ बनकर क्लास में बैठ ही गई| कुछ देर बाद मुझे बाहर से साक्षी गुजरती हुई नज़र आई, मैंने उसे आवाज़ दे कर अंदर बुलाया और उसका तार्रुफ़ अंजलि से करवाया| शशि ने मुझे बताया की सब बच्चे यहाँ सुबह-सुबह गेट पर अपनी अटेंडेंस लगाते हैं और फिर घूमने-फिरने चले जाते हैं| फिर शशि ने हमें अपने दोस्तों से मिलवाया और सभी ने फिल्म देखने जाने का प्लान बना लिया| फिल्म देखने की बात सुन अंजलि ने फ़ट से हाँ कर दी, जबकि मैं पिताजी द्वारा पकड़े जाने के डर से घबराई हुई थी|



जब हम अपने जीवन में कुछ गलत करने जाते हैं तो दिल में डर की एक धुक-धुक होती है जो हमें रोकती है| जो इस धुक-धुक से डर कर कदम पीछे हटा लेता है वो बच जाता है मगर जो इस धुक-धुक से लड़ कर आगे बढ़ जाता है वो फिर आगे कभी नहीं डरता|



मैं अपने डर के कारण खामोश थी, तभी मेरे सारे नए दोस्तों ने मुझ फूँक दे कर चने के झाड़ पर चढ़ा दिया और अपने साथ फिल्म दिखाने ले गए| हमारे ग्रुप में 7 लोग थे, जिसमें 6 लड़कियाँ और एक लड़का था| हमारे ग्रुप का नेतृत्व वो लड़का ही कर रहा था| बातों-बातों में अंजलि ने सबसे कह दिया था की मैं बड़ी पढ़ाकू हूँ और आज अपनी ज़िंदगी में पहली बार क्लास बंक कर रही हूँ इसलिए मैं थोड़ी डरी हुई हूँ| "कोई नहीं, दो हफ्ते हमारे साथ रहेगी तो सब सीख जाएगी!" शशि मुझे बिगाड़ने का बीड़ा उठाते हुए बोली|

शशि का मेरे जीवन पर प्रभाव कुछ अधिक ही पड़ा, उसकी सौबत में मैं झूठ बोलना, चालाकी करना और थोड़ा बहुत फैशन सेंस सीख गई थी|



हम सातों पहुँचे बस स्टैंड, चूँकि मैं इस ग्रुप की सबसे नाज़ुक लड़की थी जिसने ऐसा कोई एडवेंचर पहले नहीं किया था इसलिए वो लड़का मेरा कुछ अधिक ही ध्यान रख रहा था| बस आई और बस में उसने सबसे पहले मुझे चढ़ने दिया| फिर उसने अपना रुआब दिखाते हुए हम सभी लड़कियों को सीट दिलवाई| एक दो लड़कों को तो उसने सीट पर से उठा कर सीट दिलवाई| वो लड़के उम्र में छोटे थे इसलिए कुछ कह न पाए और चुपचाप खड़े हो गए|

जब कंडक्टर टिकट देने के लिए आया तो वो लड़का अकड़ कर उस कंडक्टर से बोला; "स्टाफ है!" ये सुनकर कंडक्टर ने भोयें सिकोड़ कर उस लड़के को देखा और अकड़ते हुए पुछा; "काहे का स्टाफ?"

"स्टूडेंट!!!" वो लड़का और चौड़ा होते हुए बोला| उस बस में काफी स्टूटडेंट थे, कहीं सारे स्टूडेंट मिलकर कंडक्टर को पीट न दें इस कर के कंडक्टर आगे बढ़ गया| अब मैंने आजतक पिताजी के साथ जब भी सफर किया है, टिकट ले कर सफर किया है इसलिए मैंने अपनी किताब से पैसे निकालकर कंडक्टर को दिए और टिकट ले ली| जैसे ही मैंने कंडक्टर को पैसे दिए वैसे ही उस लड़के समेत बाकी 6 लड़कियों ने अपना माथा पीट लिया!



जब कंडक्टर चला गया तो सभी रासन-पानी ले कर मुझ पर चढ़ गए; "तुझे क्या जर्रूरत थी अपनी टिकट लेने की? रवि ने सब सेट कर तो दिया था?!" शशि मुझे डाँटते हुए बोली| ओह...मैं तो आपको बताना ही भूल गई की उस लड़के का नाम रवि था|

"ये राजा हरीश चंद्र की पोती है!" अंजलि मुझे ताना मारते हुए बोली|



"तुम सब के लिए ये छोटी सी बात है मगर मेरे लिए नहीं! मस्ती मज़ा करना अलग बात है मगर मुफ्तखोरी मुझे पसंद नहीं| अगर हमारे पास टिकट के पैसे नहीं होते तब ये अकड़ना चलता मगर जब हम पैसे दे सकते हैं तो क्यों उस कंडक्टर का नुक्सान करना? वो बेचारा भी तो नौकरी करता है, उसे भी आगे जवाब देना होता है|

और कल को अगले स्टॉप पर टिकट चेकर चढ़ जाता तो? हम सब को इस टिकट का दस गुना जुरमाना भरना पड़ता! नहीं भरते तो सीधा घर फ़ोन जाता और फिर अगलीबार घर से बाहर निकलने को नहीं मिलता!" मैंने बड़े सख्त लहजे में अपनी बात रखी| मेरी बात सुन अभी के मुँह बंद हो गए थे, वहीं रवि मेरी बातों से बहुत हैरान था|



जब हमारा स्टॉप आया तो हम सब चुपचाप उतर गए| मुझे लगा की मेरी तीखी बातें सुन अब इन सबको मुझसे दोस्ती नहीं करनी होगी इसलिए मैं अकेली पैदल पारपथ की ओर चलने लगी ताकि दूसरी तरफ पहुँच कर घर के लिए बस पकड़ूँ| लेकिन मुझे अकेले जाते देख रवि बोला; "आप कहाँ जा रहे हो कीर्ति मैडम? मॉल इस तरफ है?"

रवि के टोकने से मैं थोड़ी हैरान थी इसलिए मैं मुड़ कर उसे देखने लगी| तभी शशि मेरे पास आई और मेरा हतः पकड़ कर अपने दोस्तों की तरफ खींच लाई| "ये जो रवि है न इसके परिवार के रूलिंग पार्टी से बहुत अच्छे ताल्लुकात हैं इसलिए ये हर जगह अपनी धौंस दिखाता है| कोई भी काम हो, हर जगह इसकी रंगबाजी चलती है| लेकिन आज से ये सब बंद! आज से हम सब वही कहेंगे जो तू कहेगी!" शशि ने मुझे...एक नई लड़की को अपने ग्रुप की कमान दे दी थी| फिर उसने अपने सभी दोस्ती की तरफ देखा और सभी को चेताते हुए बोली; "और तुम सब भी सुन लो, आज से कोई भी ऐसी लफंडारगिरी नहीं करेगा! आज से बीएस में बिना टिकट लिए ट्रेवल करना बंद!" शशि का आदेश सभी ने राज़ी-ख़ुशी माना और मुझे ग्रुप लीडर की उपाधि दे दी|

उस दिन से 'मेरे दोस्तों' ने कभी बिना टिकट के बस यात्रा नहीं की| ग्रुप में घूमने-घामने के प्लान हम सब आपसी सहमति से बनाते थे मगर मस्तीबाज़ किस हद्द तक करनी है ये बस मैं डिसाइड करती थी!





यूँ घर में बिना बताये दोस्तों के साथ घूमने का ये पहला अनुभव मेरे लिए बड़ा रोमांचकारी था| जहाँ एक तरफ पिताजी द्वारा पकड़े जाने का डर था, तो वहीं दूसरी तरफ थोड़ी देर के लिए ही सही अपनी ज़िंदगी को अपने अनुसार जीने की ख़ुशी भी शामिल थी| इन चंद घंटों के लिए मैं एक आजाद परिंदा थी, जो अपने घर से निकल खुली हवा में साँस ले रहा था|



खैर, मॉल में घुमते हुए हम पहुँचे फिल्म देखने| रवि सबकी टिकट लेने अकेला लाइन में लगा था और बाकी की सभी लड़कियाँ झुण्ड बनाकर गप्पें लगाने में लगी थीं| जब रवि टिकट ले कर आया तो मैंने अपने पर्स से पैसे निकाल कर उसकी ओर बढ़ाये|

बजाए पैसे लेने के वो थोड़ा नाराज़ हो गया और बोला; "देख कीर्ति, जैसे बस में 5 रुपये की टिकट के लिए चिन्दीपना तुझे पसंद नहीं उसी तरह ये खाने-पीने और मौज-मस्ती के लिए पैसे लेना मुझे पसंद नहीं! जब मैं पैसे लाना भूल जाऊँ या फिर हम कोई बड़ी पार्टी करेंगे तब सब की तरह तू भी कॉन्ट्री कर दियो| लेकिन जब तक मैं पैसे न माँगूँ तब तक मुझे पैसे ऑफर मत करियो|" रवि ने थोड़ी सख्ती से अपनी बात रखी थी और उसकी ये सख्ती देख कर मैं थोड़ी डर गई थी|



दरअसल, मैं जिस घर के भीतर पली-बढ़ी थी वहाँ हम किसी के पैसे अपने ऊपर खर्च नहीं करवाते| पिताजी की दिए हुए ये संस्कार मैंने अपने पल्ले बाँधे थे इसीलिए मैं रवि को पैसे दे रही थी|



"ये राजा हरिश्चंद्र स्कूल से ही खुद्दार है!" अंजलि मेरी टाँग खींचते हुए बोली और सभी ने खिलखिलाना शुरू कर दिया|



"सॉरी!" मैंने सबसे कान पकड़ कर माफ़ी माँगी और सभी ने मुझे माफ़ कर बारी-बारी गला लगा लिया| सारी लड़कियाँ मुझसे गले लगीं परन्तु रवि में हिम्मत नहीं थी की वो मेरे गले लगे इसलिए उसने अपनी शराफत दिखाते हुए मुझसे हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया| मैंने बिना कोई शर्म किये रवि से हाथ मिलाया और उसे एक बार फिर "सॉरी" कहा जिसके जवाब में रवि मुस्कुरा दिया|



मानु के बाद ये दूसरा लड़का था जिसे मैंने स्पर्श किया हो| ये ख्याल मन में आते ही मानु की याद ताज़ा हो गई|

जारी रहेगा अगले भाग में!
Bahut shandar update diya hai bhai apne maja agaya . Keerthi ke dwara apne dosto ko sachha gyana dena bahut achha laga .Ab keerti lagta hai keerti asli college life jee rahi hai.
 

Sanjuhsr

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Awesome story, ye kahani bhi pahali wali kahani ki tarah bdiya teyar ho rahi hai, kala ishaq ke partham adhyay jaise isme bhi ishaq ke kayi rang dekhne ko milenge,
Abhi kirti ke life ke alag alag rang dikh rahe hai,
Ek medhavi chhatra , ek dost ki sangat me bighati alhad navyouvna , ek bachpan ke dost ke viyog me bechain dost, ek bahan jiske liye uska bada bhai sab kuchh hai , ek beti jo apne pariwar ke liye kuchh karna chahti hai, ek beti jo apne pita ke sansakro me dabi huyi hai, ek college going yuvti jisne abhi abhi naye duniya me kadam rakha hai aur apne asoolo par tikane ke prayas me hai lekin kuchh dost chune hai usne , dekhna ab ye hai ki wo unko apne rang me dlti hai ya khud unke rang me dal. Jati hai,
Ek suspense bhi aapne creat kiya hai story ke plot ko lekar, teg incest, love story bachpan ke dost ki aur ab college me naye dost,
Aakhir kala ishaq ka adhyay kiske sath likhegi kirti?
 

drx prince

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भाग - 12

अब तक आपने पढ़ा:


"पगली....चुप हो जा अब...जब तेरी अच्छी नौकरी लगेगी न तब मेरे लिए अच्छा सा गिफ्ट ला दियो|" आदि भैया मुझे हँसाने के मकसद से बोले और मेरी पीठ थपथपा कर मुझे चुप कराया|


अब आगे:
कहते
हैं की अगर ज़िंदगी की ईमारत झूठ की बुनियाद पर तिकी हो तो कभी न कभी ये ईमारत अवश्य ढह जाती है|


शाम के समय पिताजी ने हमसे पूरे दिन का ब्यौरा माँगा तो भैया ने कमान सँभाली और बड़े तरीके से झूठ बोल दिया; "आजका सारा काम मैंने कीर्ति से करवाया है| बैंक में इसने (मैंने) ड्राफ्ट का फॉर्म भरा, फिर

यूनिवर्सिटी की लाइन में लग कर इसने अपना कॉलेज का फॉर्म जमा किया| फिर वहाँ से हम पहुंचे कंप्यूटर इंस्टिट्यूट और वहाँ मैंने इसका दाखिला करा दिया है| कल सुबह 9 बजे से 11 बजे तक इसकी क्लासेज होंगी| पूरे कंप्यूटर कोर्स की फीस 1,500/- थी तो मैंने 1000/- जमा करा दिए थे| ये रही उसकी रसीद|" भैया ने रसीद पिताजी को दी तो पिताजी ने बड़े गौर से रसीद पढ़ी और फिर अपने बटुए से 500/- निकाल कर माँ को देते हुए बोले; "कल जब तुम कीर्ति को क्लास छोड़ने जाओगी तब ये जमा करा देना और रसीद लेना भूलना मत|"

जैसे ही पिताजी ने माँ को मुझे क्लास छोड़ने जाने की बात कही वैसे ही आदि भैया की हवा टाइट हो गई क्योंकि अब माँ को सारा झूठ पता चलने का खतरा था! वहीं मुझे पता था की मुझे आगे क्या करना है!



दरअसल, मेरी माँ को इस तरह के काम करने का कोई अनुभव नहीं था| वो हमेशा भैया को ही आगे करती थीं, लेकिन चूँकि पिताजी ने इसबार उन्हें आगे किया था और भैया ने जाना था ड्यूटी तो मैंने सोच लिया की मैं ही इस काम की जिम्मेदारी ले लूँगी|

अगले दिन माँ मुझे छोड़ने इंस्टिट्यूट पहुँची और इतने सारे बच्चों को देख परेशान हो गईं की वो फीस कहाँ और कैसे जमा कराएँ?! "माँ, आप घर जाओ मैं फीस जमा करा दूँगी|" जैसे ही माँ ने ये सुना मेरी माँ का चेहरा एकदम से खिल गया| मुझे आशीर्वाद देते हुए माँ ने अपने 'स्त्रियों वाले बटुए' की ज़िप खोल कर मोड़ कर रखा हुआ 500/- का नोट निकाला और मुझे दे दिया| "वापस आ कर मैं आपको रसीद दे दूँगी तो आप पिताजी को दे कर कह देना की आपने ही फीस जमा कराई है|" मैंने माँ को मक्खन लगाने के इरादे से कहा तो माँ ने खुश होते हुए कहा की वो मेरे लिए मेरा मन पसंद खाना बना कर तैयार रखेंगी|



भैया ने रात को मुझे चुपके से फीस के बाकी पैसे दे दिए थे, तो मैंने माँ के दिए हुए पैसे उसमें मिलाये और दो रसीद बनवा ली|

चलो भई फीस तो जमा हो गई, लेकिन अब बारी थी क्लास में जाने की| शीशे के एक दरवाजे को खोल कर मैं अंदर पहुँची तो मुझे ठंडी हवा का ऐसा झोंका लगा मानो मैं हिल स्टेशन आ गई हूँ! अब मेरे सामने 4 कमरे थे जिनके दिवार और दरवाजे सब शीशे के थे| चारों कमरों में लगभग 30-40 कंप्यूटर रखे थे और इतने सारे कंप्यूटर देख कर मैं स्तब्ध थी! मेरे स्कूल में बस 10 कंप्यूटर थे और जब हमारा कंप्यूटर का पीरियड होता था तब टीचर एक कंप्यूटर पर 4-5 बच्चों का झुण्ड बैठा देती थीं| यही कारण था की कंप्यूटर कभी मेरे पल्ले पड़ा ही नहीं!



खैर, मुझे नहीं पता था की किस कमरे में जाऊँ इसलिए मैं बाहर खड़ी सोचने लगी| तभी पीछे से एक लड़की आई और उसने मुझे बताया की मुझे कौनसे कमरे में जाना है| मैं कमरे में दाखिल हुई तो वहाँ 4-5 बच्चों का झुण्ड था| मुझे एक अनजान चेहरे को देख सभी मेरी तरफ देख रहे थे| तभी उस झुण्ड से एक लड़की निकल कर आई और मेरा नाम पुछा|

हम लड़कियों की यही खासियत होती है, हम दूसरी लड़की को देखते ही समझ जाती हैं की उसे हमारी जर्रूरत है और हम बेझिझक उससे दोस्ती करने पहुँच जाती हैं| हमें लड़कों की तरह आइस ब्रेकर (ice breaker) की जरूरत नहीं होती!



इंट्रोडक्शन हुआ तो पता चला की जो लड़की मुझसे बात करने आई थी उसका नाम शशि है तथा उसने भी मेरी ही तरह ओपन यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया है| संयोग से हम दोनों का कॉलेज एक ही निकला, जिससे वो मेरी अच्छी सहेली बन गई|

कुछ देर बाद टीचर आये और उन्होंने सभी को बेसिक कंप्यूटर पढ़ना शुरू किया| कंप्यूटर के मामले में मैं थी निल-बटे सन्नाटा इसलिए शशि ने मेरी खूब मदद की| कंप्यूटर की इतनी सारी जानकारी पा कर मेरा दिमाग हैंग हो चूका था, उस पर टीचर जी ने हमें टाइपिंग सुधारने के लिए टाइप करने के लिए होमवर्क दे दिया!



घर पहुँच मैंने माँ को बताया की मुझे कंप्यूटर पर टाइपिंग सीखनी है, अब हमारे पास तो कंप्यूटर था नहीं इसलिए हम दोनों माँ-बेटी सोच में लग गए| हम सोच में पड़े थे की तभी अंजलि अपनी मम्मी के साथ मेरे घर पर टपक गई| उसका ये अनअपेक्षित आगमन मेरे लिए बड़ा फलदाई साबित होने वाला था|



तो हुआ कुछ यूँ था की अंजलि की मम्मी को ये समझ नहीं आ रहा था की बारहवीं पास करने के बाद वो अंजलि का क्या करें?! अंजलि के चचेरे भैया ने जो उसपर दिनरात मेहनत की थी उस कारण से अंजलि का बदन अब पूरी तरह से भर गया था! अब एक माँ जानती है की उसकी बेटी के जिस्म में जो बदलाव आ रहे हैं उनका कारण क्या है| आंटी जी ये तो समझ गई थीं की अंजलि के ऊपर कोई तो मेहनत कर रहा है मगर ये मेहनत कर कौन रहा है ये वो नहीं जानती थीं| आंटी जी तो अंजलि की शादी करवाना चाहती थीं ताकि कल को उनकी बेटी की जिस्म की आग के कारण उनका मुँह काला न हो मगर आजकल कौन शहर में पढ़ी बारहवीं पास लड़की को बहु बनाता है? इतनी जल्दी शादी करने वाले माँ-बाप को समाज शक की नज़र से देखता है, सबको लगता है की जर्रूर लड़की का कोई चक्कर चल रहा है तभी उसके माता-पिता जल्दी शादी करवा कर अपना पिंड छुड़वा रहे हैं|



"बहनजी, आपकी बेटी कितनी होनहार है देखो कितने अच्छे नम्बरों से पास हुई| वहीं मेरी ये नालायक लड़की (अंजलि) कितनी मुश्किल से नकल-व्क़्ल मारकर पास हुई है| मैं तो इसकी शादी करवाना चाहती थी मगर इसके पापा कह रहे हैं की लड़की को कम से कम कॉलेज करवा देते हैं| इसलिए मैं सोच रही थी की इस नालायक को कीर्ति बिटिया के साथ ही कॉलेज में डाल दें, कीर्ति के साथ रहेगी तो थोड़ा पढ़ लेगी वरना ये सारा दिन आवारा गर्दी करती रहेगी!" आंटी जी ने जैसे ही मेरा गुणगान किया वैसे ही मेरी माँ का सीना गर्व से फूल कर कुप्पा हो गया!

बस फिर क्या था मेरी माँ ने मेरी शान में कसीदे पढ़ने शुरू कर दिए; "आजकल बारहवीं पास लड़की की शादी होती कहाँ है? ऊपर से दहेज़ इतना माँगते हैं की क्या कहें?! ये सब सोचकर ही कीर्ति के पिताजी ने इसे ओपन कॉलेज में डाला है और थोड़ा बहुत कंप्यूटर सीखने के लिए एक इंस्टिट्यूट में दाखिला भी करवा दिया है| ताकि कल को शादी हो तो कम से कम इसे (मुझे) थोड़ा कंप्यूटर आता हो और ये ससुराल में हमारा नाम न खराब करे|"



अंततः ये निर्णय लिया गया की अंजलि भी मेरे साथ कॉलेज जाएगी पर उसकी मम्मी ने उसे कंप्यूटर कोर्स कराने से ये कह कर मना कर दिया की घर में रखे कंप्यूटर पर तो अंजलि बस फिल्म देखती है तो कंप्यूटर कोर्स कर के क्या करेगी?!

जैसे ही आंटी जी ने उनके घर में कंप्यूटर का जिक्र किया मैंने अपनी माँ की तरफ देखा और इशारों ही इशारों में उनसे पूछ लिया की क्यों न मैं अंजलि के घर के कंप्यूटर पर ही टाइपिंग सीख लूँ? माँ ने भी इस मौके का फायदा उठाते हुए फौरन हाँ कर दी|



मैं अंजलि के घर उससे मिलने के बहाने जाने लगी और उसी के कंप्यूटर पर अपनी टाइपिंग की प्रैक्टिस करने लगी|



कुछ दिनों बाद आखिर मेरा कॉलेज खुल गया| रविवार का दिन था और मैं कॉलेज जाने के लिए बहुत उत्साहित थी|



मैंने फिल्मों में देखा था की कॉलेज का पहला दिन बड़ा रोमांचकारी होता है| कॉलेज में लड़कियाँ सुन्दर-सुन्दर कपड़े पहनती हैं जैसे की टॉप, जीन्स, स्कर्ट्स आदि| कॉलेज में कुछ मनचले लड़कोण का गैंग होताहै जो लड़कियों को छेड़ते हैं, सीटी बजाते हैं, नए बच्चों की रैगिंग करते हैं| लड़कियों को कैंटीन में रैगिंग के नाम पर नचाते हैं, भोले-भाले लड़कों को रैगिंग के नाम पर दूसरी लड़कियों को प्रोपोज़ करने को कहते हैं|

रैगिंग होगी इससे मैं बहुत डरती थी इसलिए मैंने अपनी चतुराई दिखाई और जैसे 'प्यार किया तो डरना क्या फिल्म' में अरबाज़ खान अपनी बहन की ढाल बन कर कॉलेज के पहले दिन उसके साथ गया था, वैसे ही मैं अपने आदि भैया को अपने साथ कॉलेज छोड़ने के बहाने से ले गई|



बॉलीवुड की फिल्में देख कर ये फितूर मेरे मन में भरा हुआ था लेकिन हुआ इसके बिलकुल उल्ट!



जब मैं भैया के साथ अपने कॉलेज पहुँची तो वहाँ मेरी उम्र के बच्चे कम और भैया की उम्र के बच्चे...या ये कहूँ की वयस्क ज्यादा थे| एक लड़की तो ऐसी थी जिसने लाल चूड़ा पहना हुआ था, मानो कल ही उसकी शादी हुई हो और वो हनीमून पर न जा कर कॉलेज पढ़ने आई हो| एक पल के लिए तो मन किया की मैं उसके पढ़ाई के प्रति इस कर्तव्यनिष्ठ होने पर उसे सलाम करूँ मगर बाद में मुझे पता चला की वो भी अंजलि के जैसी थी!

कॉलेज के मैं गेट पर मैंने अपना एनरोलमेंट नंबर लिख कर दस्तखत किया| तभी पीछे से अंजलि आ गई और हमें छोड़ भैया घर वापस चले गए| मैंने जब अंजलि से अपने कॉलेज के सुहाने ख्वाब साझा किये तो वो पेट पकड़ कर हँसने लगी|



अब बारी थी हमारी क्लास ढूँढने की इसलिए हमने दूसरे बच्चों से क्लास के बारे में पुछा| ज्यादातर बच्चे नए थे इसलिए उन्हें भी कुछ नहीं पता था| तभी हमें एक सेकंड ईयर की लड़की यानी की हमारी सीनियर मिली| जब अंजलि ने उससे क्लास के बारे में पुछा तो वो हमें देखकर हँसने लगी! "यहाँ पढ़ाई-वढ़ाई नहीं होती! बस अपने असाइनमेंट पूरे करो और एग्जाम में नकल कर पास हो जाओ|" ये कह कर वो हँसती हुई चली गई|

अपने सीनियर की बात सुन हम दोनों स्तब्ध थीं| हमने फिल्मों में देखा था की कॉलेज में बच्चे क्लास बंक करते हैं मगर यहाँ तो सारे नियम-कानून ही टेढ़े हैं! अंजलि तो कॉलेज बंक करने को कह रही थी मगर मुझे ये सुनिश्चित करना था की वो सीनियर लड़की सच कह रही है वरना पता चला की पहले दिन कॉलेज बंक किया और प्रिंसिपल ने सीधा हमारे घर फ़ोन घुमा दिया!



ढूँढ़ते-ढूँढ़ते हमें आखिर एकाउंट्स की क्लास मिल ही गई मगर वहाँ कोई बच्चा था ही नहीं! पूरी क्लास में बस हम दोनों ही थे, अंजलि वापस चलने को कह रही थी मगर मैं ढीठ बनकर क्लास में बैठ ही गई| कुछ देर बाद मुझे बाहर से साक्षी गुजरती हुई नज़र आई, मैंने उसे आवाज़ दे कर अंदर बुलाया और उसका तार्रुफ़ अंजलि से करवाया| शशि ने मुझे बताया की सब बच्चे यहाँ सुबह-सुबह गेट पर अपनी अटेंडेंस लगाते हैं और फिर घूमने-फिरने चले जाते हैं| फिर शशि ने हमें अपने दोस्तों से मिलवाया और सभी ने फिल्म देखने जाने का प्लान बना लिया| फिल्म देखने की बात सुन अंजलि ने फ़ट से हाँ कर दी, जबकि मैं पिताजी द्वारा पकड़े जाने के डर से घबराई हुई थी|



जब हम अपने जीवन में कुछ गलत करने जाते हैं तो दिल में डर की एक धुक-धुक होती है जो हमें रोकती है| जो इस धुक-धुक से डर कर कदम पीछे हटा लेता है वो बच जाता है मगर जो इस धुक-धुक से लड़ कर आगे बढ़ जाता है वो फिर आगे कभी नहीं डरता|



मैं अपने डर के कारण खामोश थी, तभी मेरे सारे नए दोस्तों ने मुझ फूँक दे कर चने के झाड़ पर चढ़ा दिया और अपने साथ फिल्म दिखाने ले गए| हमारे ग्रुप में 7 लोग थे, जिसमें 6 लड़कियाँ और एक लड़का था| हमारे ग्रुप का नेतृत्व वो लड़का ही कर रहा था| बातों-बातों में अंजलि ने सबसे कह दिया था की मैं बड़ी पढ़ाकू हूँ और आज अपनी ज़िंदगी में पहली बार क्लास बंक कर रही हूँ इसलिए मैं थोड़ी डरी हुई हूँ| "कोई नहीं, दो हफ्ते हमारे साथ रहेगी तो सब सीख जाएगी!" शशि मुझे बिगाड़ने का बीड़ा उठाते हुए बोली|

शशि का मेरे जीवन पर प्रभाव कुछ अधिक ही पड़ा, उसकी सौबत में मैं झूठ बोलना, चालाकी करना और थोड़ा बहुत फैशन सेंस सीख गई थी|



हम सातों पहुँचे बस स्टैंड, चूँकि मैं इस ग्रुप की सबसे नाज़ुक लड़की थी जिसने ऐसा कोई एडवेंचर पहले नहीं किया था इसलिए वो लड़का मेरा कुछ अधिक ही ध्यान रख रहा था| बस आई और बस में उसने सबसे पहले मुझे चढ़ने दिया| फिर उसने अपना रुआब दिखाते हुए हम सभी लड़कियों को सीट दिलवाई| एक दो लड़कों को तो उसने सीट पर से उठा कर सीट दिलवाई| वो लड़के उम्र में छोटे थे इसलिए कुछ कह न पाए और चुपचाप खड़े हो गए|

जब कंडक्टर टिकट देने के लिए आया तो वो लड़का अकड़ कर उस कंडक्टर से बोला; "स्टाफ है!" ये सुनकर कंडक्टर ने भोयें सिकोड़ कर उस लड़के को देखा और अकड़ते हुए पुछा; "काहे का स्टाफ?"

"स्टूडेंट!!!" वो लड़का और चौड़ा होते हुए बोला| उस बस में काफी स्टूटडेंट थे, कहीं सारे स्टूडेंट मिलकर कंडक्टर को पीट न दें इस कर के कंडक्टर आगे बढ़ गया| अब मैंने आजतक पिताजी के साथ जब भी सफर किया है, टिकट ले कर सफर किया है इसलिए मैंने अपनी किताब से पैसे निकालकर कंडक्टर को दिए और टिकट ले ली| जैसे ही मैंने कंडक्टर को पैसे दिए वैसे ही उस लड़के समेत बाकी 6 लड़कियों ने अपना माथा पीट लिया!



जब कंडक्टर चला गया तो सभी रासन-पानी ले कर मुझ पर चढ़ गए; "तुझे क्या जर्रूरत थी अपनी टिकट लेने की? रवि ने सब सेट कर तो दिया था?!" शशि मुझे डाँटते हुए बोली| ओह...मैं तो आपको बताना ही भूल गई की उस लड़के का नाम रवि था|

"ये राजा हरीश चंद्र की पोती है!" अंजलि मुझे ताना मारते हुए बोली|



"तुम सब के लिए ये छोटी सी बात है मगर मेरे लिए नहीं! मस्ती मज़ा करना अलग बात है मगर मुफ्तखोरी मुझे पसंद नहीं| अगर हमारे पास टिकट के पैसे नहीं होते तब ये अकड़ना चलता मगर जब हम पैसे दे सकते हैं तो क्यों उस कंडक्टर का नुक्सान करना? वो बेचारा भी तो नौकरी करता है, उसे भी आगे जवाब देना होता है|

और कल को अगले स्टॉप पर टिकट चेकर चढ़ जाता तो? हम सब को इस टिकट का दस गुना जुरमाना भरना पड़ता! नहीं भरते तो सीधा घर फ़ोन जाता और फिर अगलीबार घर से बाहर निकलने को नहीं मिलता!" मैंने बड़े सख्त लहजे में अपनी बात रखी| मेरी बात सुन अभी के मुँह बंद हो गए थे, वहीं रवि मेरी बातों से बहुत हैरान था|



जब हमारा स्टॉप आया तो हम सब चुपचाप उतर गए| मुझे लगा की मेरी तीखी बातें सुन अब इन सबको मुझसे दोस्ती नहीं करनी होगी इसलिए मैं अकेली पैदल पारपथ की ओर चलने लगी ताकि दूसरी तरफ पहुँच कर घर के लिए बस पकड़ूँ| लेकिन मुझे अकेले जाते देख रवि बोला; "आप कहाँ जा रहे हो कीर्ति मैडम? मॉल इस तरफ है?"

रवि के टोकने से मैं थोड़ी हैरान थी इसलिए मैं मुड़ कर उसे देखने लगी| तभी शशि मेरे पास आई और मेरा हतः पकड़ कर अपने दोस्तों की तरफ खींच लाई| "ये जो रवि है न इसके परिवार के रूलिंग पार्टी से बहुत अच्छे ताल्लुकात हैं इसलिए ये हर जगह अपनी धौंस दिखाता है| कोई भी काम हो, हर जगह इसकी रंगबाजी चलती है| लेकिन आज से ये सब बंद! आज से हम सब वही कहेंगे जो तू कहेगी!" शशि ने मुझे...एक नई लड़की को अपने ग्रुप की कमान दे दी थी| फिर उसने अपने सभी दोस्ती की तरफ देखा और सभी को चेताते हुए बोली; "और तुम सब भी सुन लो, आज से कोई भी ऐसी लफंडारगिरी नहीं करेगा! आज से बीएस में बिना टिकट लिए ट्रेवल करना बंद!" शशि का आदेश सभी ने राज़ी-ख़ुशी माना और मुझे ग्रुप लीडर की उपाधि दे दी|

उस दिन से 'मेरे दोस्तों' ने कभी बिना टिकट के बस यात्रा नहीं की| ग्रुप में घूमने-घामने के प्लान हम सब आपसी सहमति से बनाते थे मगर मस्तीबाज़ किस हद्द तक करनी है ये बस मैं डिसाइड करती थी!





यूँ घर में बिना बताये दोस्तों के साथ घूमने का ये पहला अनुभव मेरे लिए बड़ा रोमांचकारी था| जहाँ एक तरफ पिताजी द्वारा पकड़े जाने का डर था, तो वहीं दूसरी तरफ थोड़ी देर के लिए ही सही अपनी ज़िंदगी को अपने अनुसार जीने की ख़ुशी भी शामिल थी| इन चंद घंटों के लिए मैं एक आजाद परिंदा थी, जो अपने घर से निकल खुली हवा में साँस ले रहा था|



खैर, मॉल में घुमते हुए हम पहुँचे फिल्म देखने| रवि सबकी टिकट लेने अकेला लाइन में लगा था और बाकी की सभी लड़कियाँ झुण्ड बनाकर गप्पें लगाने में लगी थीं| जब रवि टिकट ले कर आया तो मैंने अपने पर्स से पैसे निकाल कर उसकी ओर बढ़ाये|

बजाए पैसे लेने के वो थोड़ा नाराज़ हो गया और बोला; "देख कीर्ति, जैसे बस में 5 रुपये की टिकट के लिए चिन्दीपना तुझे पसंद नहीं उसी तरह ये खाने-पीने और मौज-मस्ती के लिए पैसे लेना मुझे पसंद नहीं! जब मैं पैसे लाना भूल जाऊँ या फिर हम कोई बड़ी पार्टी करेंगे तब सब की तरह तू भी कॉन्ट्री कर दियो| लेकिन जब तक मैं पैसे न माँगूँ तब तक मुझे पैसे ऑफर मत करियो|" रवि ने थोड़ी सख्ती से अपनी बात रखी थी और उसकी ये सख्ती देख कर मैं थोड़ी डर गई थी|



दरअसल, मैं जिस घर के भीतर पली-बढ़ी थी वहाँ हम किसी के पैसे अपने ऊपर खर्च नहीं करवाते| पिताजी की दिए हुए ये संस्कार मैंने अपने पल्ले बाँधे थे इसीलिए मैं रवि को पैसे दे रही थी|



"ये राजा हरिश्चंद्र स्कूल से ही खुद्दार है!" अंजलि मेरी टाँग खींचते हुए बोली और सभी ने खिलखिलाना शुरू कर दिया|



"सॉरी!" मैंने सबसे कान पकड़ कर माफ़ी माँगी और सभी ने मुझे माफ़ कर बारी-बारी गला लगा लिया| सारी लड़कियाँ मुझसे गले लगीं परन्तु रवि में हिम्मत नहीं थी की वो मेरे गले लगे इसलिए उसने अपनी शराफत दिखाते हुए मुझसे हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया| मैंने बिना कोई शर्म किये रवि से हाथ मिलाया और उसे एक बार फिर "सॉरी" कहा जिसके जवाब में रवि मुस्कुरा दिया|



मानु के बाद ये दूसरा लड़का था जिसे मैंने स्पर्श किया हो| ये ख्याल मन में आते ही मानु की याद ताज़ा हो गई|

V



भाग - 12

अब तक आपने पढ़ा:


"पगली....चुप हो जा अब...जब तेरी अच्छी नौकरी लगेगी न तब मेरे लिए अच्छा सा गिफ्ट ला दियो|" आदि भैया मुझे हँसाने के मकसद से बोले और मेरी पीठ थपथपा कर मुझे चुप कराया|


अब आगे:
कहते
हैं की अगर ज़िंदगी की ईमारत झूठ की बुनियाद पर तिकी हो तो कभी न कभी ये ईमारत अवश्य ढह जाती है|


शाम के समय पिताजी ने हमसे पूरे दिन का ब्यौरा माँगा तो भैया ने कमान सँभाली और बड़े तरीके से झूठ बोल दिया; "आजका सारा काम मैंने कीर्ति से करवाया है| बैंक में इसने (मैंने) ड्राफ्ट का फॉर्म भरा, फिर

यूनिवर्सिटी की लाइन में लग कर इसने अपना कॉलेज का फॉर्म जमा किया| फिर वहाँ से हम पहुंचे कंप्यूटर इंस्टिट्यूट और वहाँ मैंने इसका दाखिला करा दिया है| कल सुबह 9 बजे से 11 बजे तक इसकी क्लासेज होंगी| पूरे कंप्यूटर कोर्स की फीस 1,500/- थी तो मैंने 1000/- जमा करा दिए थे| ये रही उसकी रसीद|" भैया ने रसीद पिताजी को दी तो पिताजी ने बड़े गौर से रसीद पढ़ी और फिर अपने बटुए से 500/- निकाल कर माँ को देते हुए बोले; "कल जब तुम कीर्ति को क्लास छोड़ने जाओगी तब ये जमा करा देना और रसीद लेना भूलना मत|"

जैसे ही पिताजी ने माँ को मुझे क्लास छोड़ने जाने की बात कही वैसे ही आदि भैया की हवा टाइट हो गई क्योंकि अब माँ को सारा झूठ पता चलने का खतरा था! वहीं मुझे पता था की मुझे आगे क्या करना है!



दरअसल, मेरी माँ को इस तरह के काम करने का कोई अनुभव नहीं था| वो हमेशा भैया को ही आगे करती थीं, लेकिन चूँकि पिताजी ने इसबार उन्हें आगे किया था और भैया ने जाना था ड्यूटी तो मैंने सोच लिया की मैं ही इस काम की जिम्मेदारी ले लूँगी|

अगले दिन माँ मुझे छोड़ने इंस्टिट्यूट पहुँची और इतने सारे बच्चों को देख परेशान हो गईं की वो फीस कहाँ और कैसे जमा कराएँ?! "माँ, आप घर जाओ मैं फीस जमा करा दूँगी|" जैसे ही माँ ने ये सुना मेरी माँ का चेहरा एकदम से खिल गया| मुझे आशीर्वाद देते हुए माँ ने अपने 'स्त्रियों वाले बटुए' की ज़िप खोल कर मोड़ कर रखा हुआ 500/- का नोट निकाला और मुझे दे दिया| "वापस आ कर मैं आपको रसीद दे दूँगी तो आप पिताजी को दे कर कह देना की आपने ही फीस जमा कराई है|" मैंने माँ को मक्खन लगाने के इरादे से कहा तो माँ ने खुश होते हुए कहा की वो मेरे लिए मेरा मन पसंद खाना बना कर तैयार रखेंगी|



भैया ने रात को मुझे चुपके से फीस के बाकी पैसे दे दिए थे, तो मैंने माँ के दिए हुए पैसे उसमें मिलाये और दो रसीद बनवा ली|

चलो भई फीस तो जमा हो गई, लेकिन अब बारी थी क्लास में जाने की| शीशे के एक दरवाजे को खोल कर मैं अंदर पहुँची तो मुझे ठंडी हवा का ऐसा झोंका लगा मानो मैं हिल स्टेशन आ गई हूँ! अब मेरे सामने 4 कमरे थे जिनके दिवार और दरवाजे सब शीशे के थे| चारों कमरों में लगभग 30-40 कंप्यूटर रखे थे और इतने सारे कंप्यूटर देख कर मैं स्तब्ध थी! मेरे स्कूल में बस 10 कंप्यूटर थे और जब हमारा कंप्यूटर का पीरियड होता था तब टीचर एक कंप्यूटर पर 4-5 बच्चों का झुण्ड बैठा देती थीं| यही कारण था की कंप्यूटर कभी मेरे पल्ले पड़ा ही नहीं!



खैर, मुझे नहीं पता था की किस कमरे में जाऊँ इसलिए मैं बाहर खड़ी सोचने लगी| तभी पीछे से एक लड़की आई और उसने मुझे बताया की मुझे कौनसे कमरे में जाना है| मैं कमरे में दाखिल हुई तो वहाँ 4-5 बच्चों का झुण्ड था| मुझे एक अनजान चेहरे को देख सभी मेरी तरफ देख रहे थे| तभी उस झुण्ड से एक लड़की निकल कर आई और मेरा नाम पुछा|

हम लड़कियों की यही खासियत होती है, हम दूसरी लड़की को देखते ही समझ जाती हैं की उसे हमारी जर्रूरत है और हम बेझिझक उससे दोस्ती करने पहुँच जाती हैं| हमें लड़कों की तरह आइस ब्रेकर (ice breaker) की जरूरत नहीं होती!



इंट्रोडक्शन हुआ तो पता चला की जो लड़की मुझसे बात करने आई थी उसका नाम शशि है तथा उसने भी मेरी ही तरह ओपन यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया है| संयोग से हम दोनों का कॉलेज एक ही निकला, जिससे वो मेरी अच्छी सहेली बन गई|

कुछ देर बाद टीचर आये और उन्होंने सभी को बेसिक कंप्यूटर पढ़ना शुरू किया| कंप्यूटर के मामले में मैं थी निल-बटे सन्नाटा इसलिए शशि ने मेरी खूब मदद की| कंप्यूटर की इतनी सारी जानकारी पा कर मेरा दिमाग हैंग हो चूका था, उस पर टीचर जी ने हमें टाइपिंग सुधारने के लिए टाइप करने के लिए होमवर्क दे दिया!



घर पहुँच मैंने माँ को बताया की मुझे कंप्यूटर पर टाइपिंग सीखनी है, अब हमारे पास तो कंप्यूटर था नहीं इसलिए हम दोनों माँ-बेटी सोच में लग गए| हम सोच में पड़े थे की तभी अंजलि अपनी मम्मी के साथ मेरे घर पर टपक गई| उसका ये अनअपेक्षित आगमन मेरे लिए बड़ा फलदाई साबित होने वाला था|



तो हुआ कुछ यूँ था की अंजलि की मम्मी को ये समझ नहीं आ रहा था की बारहवीं पास करने के बाद वो अंजलि का क्या करें?! अंजलि के चचेरे भैया ने जो उसपर दिनरात मेहनत की थी उस कारण से अंजलि का बदन अब पूरी तरह से भर गया था! अब एक माँ जानती है की उसकी बेटी के जिस्म में जो बदलाव आ रहे हैं उनका कारण क्या है| आंटी जी ये तो समझ गई थीं की अंजलि के ऊपर कोई तो मेहनत कर रहा है मगर ये मेहनत कर कौन रहा है ये वो नहीं जानती थीं| आंटी जी तो अंजलि की शादी करवाना चाहती थीं ताकि कल को उनकी बेटी की जिस्म की आग के कारण उनका मुँह काला न हो मगर आजकल कौन शहर में पढ़ी बारहवीं पास लड़की को बहु बनाता है? इतनी जल्दी शादी करने वाले माँ-बाप को समाज शक की नज़र से देखता है, सबको लगता है की जर्रूर लड़की का कोई चक्कर चल रहा है तभी उसके माता-पिता जल्दी शादी करवा कर अपना पिंड छुड़वा रहे हैं|



"बहनजी, आपकी बेटी कितनी होनहार है देखो कितने अच्छे नम्बरों से पास हुई| वहीं मेरी ये नालायक लड़की (अंजलि) कितनी मुश्किल से नकल-व्क़्ल मारकर पास हुई है| मैं तो इसकी शादी करवाना चाहती थी मगर इसके पापा कह रहे हैं की लड़की को कम से कम कॉलेज करवा देते हैं| इसलिए मैं सोच रही थी की इस नालायक को कीर्ति बिटिया के साथ ही कॉलेज में डाल दें, कीर्ति के साथ रहेगी तो थोड़ा पढ़ लेगी वरना ये सारा दिन आवारा गर्दी करती रहेगी!" आंटी जी ने जैसे ही मेरा गुणगान किया वैसे ही मेरी माँ का सीना गर्व से फूल कर कुप्पा हो गया!

बस फिर क्या था मेरी माँ ने मेरी शान में कसीदे पढ़ने शुरू कर दिए; "आजकल बारहवीं पास लड़की की शादी होती कहाँ है? ऊपर से दहेज़ इतना माँगते हैं की क्या कहें?! ये सब सोचकर ही कीर्ति के पिताजी ने इसे ओपन कॉलेज में डाला है और थोड़ा बहुत कंप्यूटर सीखने के लिए एक इंस्टिट्यूट में दाखिला भी करवा दिया है| ताकि कल को शादी हो तो कम से कम इसे (मुझे) थोड़ा कंप्यूटर आता हो और ये ससुराल में हमारा नाम न खराब करे|"



अंततः ये निर्णय लिया गया की अंजलि भी मेरे साथ कॉलेज जाएगी पर उसकी मम्मी ने उसे कंप्यूटर कोर्स कराने से ये कह कर मना कर दिया की घर में रखे कंप्यूटर पर तो अंजलि बस फिल्म देखती है तो कंप्यूटर कोर्स कर के क्या करेगी?!

जैसे ही आंटी जी ने उनके घर में कंप्यूटर का जिक्र किया मैंने अपनी माँ की तरफ देखा और इशारों ही इशारों में उनसे पूछ लिया की क्यों न मैं अंजलि के घर के कंप्यूटर पर ही टाइपिंग सीख लूँ? माँ ने भी इस मौके का फायदा उठाते हुए फौरन हाँ कर दी|



मैं अंजलि के घर उससे मिलने के बहाने जाने लगी और उसी के कंप्यूटर पर अपनी टाइपिंग की प्रैक्टिस करने लगी|



कुछ दिनों बाद आखिर मेरा कॉलेज खुल गया| रविवार का दिन था और मैं कॉलेज जाने के लिए बहुत उत्साहित थी|



मैंने फिल्मों में देखा था की कॉलेज का पहला दिन बड़ा रोमांचकारी होता है| कॉलेज में लड़कियाँ सुन्दर-सुन्दर कपड़े पहनती हैं जैसे की टॉप, जीन्स, स्कर्ट्स आदि| कॉलेज में कुछ मनचले लड़कोण का गैंग होताहै जो लड़कियों को छेड़ते हैं, सीटी बजाते हैं, नए बच्चों की रैगिंग करते हैं| लड़कियों को कैंटीन में रैगिंग के नाम पर नचाते हैं, भोले-भाले लड़कों को रैगिंग के नाम पर दूसरी लड़कियों को प्रोपोज़ करने को कहते हैं|

रैगिंग होगी इससे मैं बहुत डरती थी इसलिए मैंने अपनी चतुराई दिखाई और जैसे 'प्यार किया तो डरना क्या फिल्म' में अरबाज़ खान अपनी बहन की ढाल बन कर कॉलेज के पहले दिन उसके साथ गया था, वैसे ही मैं अपने आदि भैया को अपने साथ कॉलेज छोड़ने के बहाने से ले गई|



बॉलीवुड की फिल्में देख कर ये फितूर मेरे मन में भरा हुआ था लेकिन हुआ इसके बिलकुल उल्ट!



जब मैं भैया के साथ अपने कॉलेज पहुँची तो वहाँ मेरी उम्र के बच्चे कम और भैया की उम्र के बच्चे...या ये कहूँ की वयस्क ज्यादा थे| एक लड़की तो ऐसी थी जिसने लाल चूड़ा पहना हुआ था, मानो कल ही उसकी शादी हुई हो और वो हनीमून पर न जा कर कॉलेज पढ़ने आई हो| एक पल के लिए तो मन किया की मैं उसके पढ़ाई के प्रति इस कर्तव्यनिष्ठ होने पर उसे सलाम करूँ मगर बाद में मुझे पता चला की वो भी अंजलि के जैसी थी!

कॉलेज के मैं गेट पर मैंने अपना एनरोलमेंट नंबर लिख कर दस्तखत किया| तभी पीछे से अंजलि आ गई और हमें छोड़ भैया घर वापस चले गए| मैंने जब अंजलि से अपने कॉलेज के सुहाने ख्वाब साझा किये तो वो पेट पकड़ कर हँसने लगी|



अब बारी थी हमारी क्लास ढूँढने की इसलिए हमने दूसरे बच्चों से क्लास के बारे में पुछा| ज्यादातर बच्चे नए थे इसलिए उन्हें भी कुछ नहीं पता था| तभी हमें एक सेकंड ईयर की लड़की यानी की हमारी सीनियर मिली| जब अंजलि ने उससे क्लास के बारे में पुछा तो वो हमें देखकर हँसने लगी! "यहाँ पढ़ाई-वढ़ाई नहीं होती! बस अपने असाइनमेंट पूरे करो और एग्जाम में नकल कर पास हो जाओ|" ये कह कर वो हँसती हुई चली गई|

अपने सीनियर की बात सुन हम दोनों स्तब्ध थीं| हमने फिल्मों में देखा था की कॉलेज में बच्चे क्लास बंक करते हैं मगर यहाँ तो सारे नियम-कानून ही टेढ़े हैं! अंजलि तो कॉलेज बंक करने को कह रही थी मगर मुझे ये सुनिश्चित करना था की वो सीनियर लड़की सच कह रही है वरना पता चला की पहले दिन कॉलेज बंक किया और प्रिंसिपल ने सीधा हमारे घर फ़ोन घुमा दिया!



ढूँढ़ते-ढूँढ़ते हमें आखिर एकाउंट्स की क्लास मिल ही गई मगर वहाँ कोई बच्चा था ही नहीं! पूरी क्लास में बस हम दोनों ही थे, अंजलि वापस चलने को कह रही थी मगर मैं ढीठ बनकर क्लास में बैठ ही गई| कुछ देर बाद मुझे बाहर से साक्षी गुजरती हुई नज़र आई, मैंने उसे आवाज़ दे कर अंदर बुलाया और उसका तार्रुफ़ अंजलि से करवाया| शशि ने मुझे बताया की सब बच्चे यहाँ सुबह-सुबह गेट पर अपनी अटेंडेंस लगाते हैं और फिर घूमने-फिरने चले जाते हैं| फिर शशि ने हमें अपने दोस्तों से मिलवाया और सभी ने फिल्म देखने जाने का प्लान बना लिया| फिल्म देखने की बात सुन अंजलि ने फ़ट से हाँ कर दी, जबकि मैं पिताजी द्वारा पकड़े जाने के डर से घबराई हुई थी|



जब हम अपने जीवन में कुछ गलत करने जाते हैं तो दिल में डर की एक धुक-धुक होती है जो हमें रोकती है| जो इस धुक-धुक से डर कर कदम पीछे हटा लेता है वो बच जाता है मगर जो इस धुक-धुक से लड़ कर आगे बढ़ जाता है वो फिर आगे कभी नहीं डरता|



मैं अपने डर के कारण खामोश थी, तभी मेरे सारे नए दोस्तों ने मुझ फूँक दे कर चने के झाड़ पर चढ़ा दिया और अपने साथ फिल्म दिखाने ले गए| हमारे ग्रुप में 7 लोग थे, जिसमें 6 लड़कियाँ और एक लड़का था| हमारे ग्रुप का नेतृत्व वो लड़का ही कर रहा था| बातों-बातों में अंजलि ने सबसे कह दिया था की मैं बड़ी पढ़ाकू हूँ और आज अपनी ज़िंदगी में पहली बार क्लास बंक कर रही हूँ इसलिए मैं थोड़ी डरी हुई हूँ| "कोई नहीं, दो हफ्ते हमारे साथ रहेगी तो सब सीख जाएगी!" शशि मुझे बिगाड़ने का बीड़ा उठाते हुए बोली|

शशि का मेरे जीवन पर प्रभाव कुछ अधिक ही पड़ा, उसकी सौबत में मैं झूठ बोलना, चालाकी करना और थोड़ा बहुत फैशन सेंस सीख गई थी|



हम सातों पहुँचे बस स्टैंड, चूँकि मैं इस ग्रुप की सबसे नाज़ुक लड़की थी जिसने ऐसा कोई एडवेंचर पहले नहीं किया था इसलिए वो लड़का मेरा कुछ अधिक ही ध्यान रख रहा था| बस आई और बस में उसने सबसे पहले मुझे चढ़ने दिया| फिर उसने अपना रुआब दिखाते हुए हम सभी लड़कियों को सीट दिलवाई| एक दो लड़कों को तो उसने सीट पर से उठा कर सीट दिलवाई| वो लड़के उम्र में छोटे थे इसलिए कुछ कह न पाए और चुपचाप खड़े हो गए|

जब कंडक्टर टिकट देने के लिए आया तो वो लड़का अकड़ कर उस कंडक्टर से बोला; "स्टाफ है!" ये सुनकर कंडक्टर ने भोयें सिकोड़ कर उस लड़के को देखा और अकड़ते हुए पुछा; "काहे का स्टाफ?"

"स्टूडेंट!!!" वो लड़का और चौड़ा होते हुए बोला| उस बस में काफी स्टूटडेंट थे, कहीं सारे स्टूडेंट मिलकर कंडक्टर को पीट न दें इस कर के कंडक्टर आगे बढ़ गया| अब मैंने आजतक पिताजी के साथ जब भी सफर किया है, टिकट ले कर सफर किया है इसलिए मैंने अपनी किताब से पैसे निकालकर कंडक्टर को दिए और टिकट ले ली| जैसे ही मैंने कंडक्टर को पैसे दिए वैसे ही उस लड़के समेत बाकी 6 लड़कियों ने अपना माथा पीट लिया!



जब कंडक्टर चला गया तो सभी रासन-पानी ले कर मुझ पर चढ़ गए; "तुझे क्या जर्रूरत थी अपनी टिकट लेने की? रवि ने सब सेट कर तो दिया था?!" शशि मुझे डाँटते हुए बोली| ओह...मैं तो आपको बताना ही भूल गई की उस लड़के का नाम रवि था|

"ये राजा हरीश चंद्र की पोती है!" अंजलि मुझे ताना मारते हुए बोली|



"तुम सब के लिए ये छोटी सी बात है मगर मेरे लिए नहीं! मस्ती मज़ा करना अलग बात है मगर मुफ्तखोरी मुझे पसंद नहीं| अगर हमारे पास टिकट के पैसे नहीं होते तब ये अकड़ना चलता मगर जब हम पैसे दे सकते हैं तो क्यों उस कंडक्टर का नुक्सान करना? वो बेचारा भी तो नौकरी करता है, उसे भी आगे जवाब देना होता है|

और कल को अगले स्टॉप पर टिकट चेकर चढ़ जाता तो? हम सब को इस टिकट का दस गुना जुरमाना भरना पड़ता! नहीं भरते तो सीधा घर फ़ोन जाता और फिर अगलीबार घर से बाहर निकलने को नहीं मिलता!" मैंने बड़े सख्त लहजे में अपनी बात रखी| मेरी बात सुन अभी के मुँह बंद हो गए थे, वहीं रवि मेरी बातों से बहुत हैरान था|



जब हमारा स्टॉप आया तो हम सब चुपचाप उतर गए| मुझे लगा की मेरी तीखी बातें सुन अब इन सबको मुझसे दोस्ती नहीं करनी होगी इसलिए मैं अकेली पैदल पारपथ की ओर चलने लगी ताकि दूसरी तरफ पहुँच कर घर के लिए बस पकड़ूँ| लेकिन मुझे अकेले जाते देख रवि बोला; "आप कहाँ जा रहे हो कीर्ति मैडम? मॉल इस तरफ है?"

रवि के टोकने से मैं थोड़ी हैरान थी इसलिए मैं मुड़ कर उसे देखने लगी| तभी शशि मेरे पास आई और मेरा हतः पकड़ कर अपने दोस्तों की तरफ खींच लाई| "ये जो रवि है न इसके परिवार के रूलिंग पार्टी से बहुत अच्छे ताल्लुकात हैं इसलिए ये हर जगह अपनी धौंस दिखाता है| कोई भी काम हो, हर जगह इसकी रंगबाजी चलती है| लेकिन आज से ये सब बंद! आज से हम सब वही कहेंगे जो तू कहेगी!" शशि ने मुझे...एक नई लड़की को अपने ग्रुप की कमान दे दी थी| फिर उसने अपने सभी दोस्ती की तरफ देखा और सभी को चेताते हुए बोली; "और तुम सब भी सुन लो, आज से कोई भी ऐसी लफंडारगिरी नहीं करेगा! आज से बीएस में बिना टिकट लिए ट्रेवल करना बंद!" शशि का आदेश सभी ने राज़ी-ख़ुशी माना और मुझे ग्रुप लीडर की उपाधि दे दी|

उस दिन से 'मेरे दोस्तों' ने कभी बिना टिकट के बस यात्रा नहीं की| ग्रुप में घूमने-घामने के प्लान हम सब आपसी सहमति से बनाते थे मगर मस्तीबाज़ किस हद्द तक करनी है ये बस मैं डिसाइड करती थी!





यूँ घर में बिना बताये दोस्तों के साथ घूमने का ये पहला अनुभव मेरे लिए बड़ा रोमांचकारी था| जहाँ एक तरफ पिताजी द्वारा पकड़े जाने का डर था, तो वहीं दूसरी तरफ थोड़ी देर के लिए ही सही अपनी ज़िंदगी को अपने अनुसार जीने की ख़ुशी भी शामिल थी| इन चंद घंटों के लिए मैं एक आजाद परिंदा थी, जो अपने घर से निकल खुली हवा में साँस ले रहा था|



खैर, मॉल में घुमते हुए हम पहुँचे फिल्म देखने| रवि सबकी टिकट लेने अकेला लाइन में लगा था और बाकी की सभी लड़कियाँ झुण्ड बनाकर गप्पें लगाने में लगी थीं| जब रवि टिकट ले कर आया तो मैंने अपने पर्स से पैसे निकाल कर उसकी ओर बढ़ाये|

बजाए पैसे लेने के वो थोड़ा नाराज़ हो गया और बोला; "देख कीर्ति, जैसे बस में 5 रुपये की टिकट के लिए चिन्दीपना तुझे पसंद नहीं उसी तरह ये खाने-पीने और मौज-मस्ती के लिए पैसे लेना मुझे पसंद नहीं! जब मैं पैसे लाना भूल जाऊँ या फिर हम कोई बड़ी पार्टी करेंगे तब सब की तरह तू भी कॉन्ट्री कर दियो| लेकिन जब तक मैं पैसे न माँगूँ तब तक मुझे पैसे ऑफर मत करियो|" रवि ने थोड़ी सख्ती से अपनी बात रखी थी और उसकी ये सख्ती देख कर मैं थोड़ी डर गई थी|



दरअसल, मैं जिस घर के भीतर पली-बढ़ी थी वहाँ हम किसी के पैसे अपने ऊपर खर्च नहीं करवाते| पिताजी की दिए हुए ये संस्कार मैंने अपने पल्ले बाँधे थे इसीलिए मैं रवि को पैसे दे रही थी|



"ये राजा हरिश्चंद्र स्कूल से ही खुद्दार है!" अंजलि मेरी टाँग खींचते हुए बोली और सभी ने खिलखिलाना शुरू कर दिया|



"सॉरी!" मैंने सबसे कान पकड़ कर माफ़ी माँगी और सभी ने मुझे माफ़ कर बारी-बारी गला लगा लिया| सारी लड़कियाँ मुझसे गले लगीं परन्तु रवि में हिम्मत नहीं थी की वो मेरे गले लगे इसलिए उसने अपनी शराफत दिखाते हुए मुझसे हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया| मैंने बिना कोई शर्म किये रवि से हाथ मिलाया और उसे एक बार फिर "सॉरी" कहा जिसके जवाब में रवि मुस्कुरा दिया|



मानु के बाद ये दूसरा लड़का था जिसे मैंने स्पर्श किया हो| ये ख्याल मन में आते ही मानु की याद ताज़ा हो गई|

जारी रहेगा अगले भाग
जारी रहेगा अगले भाग
Very nice Update manu bhai
 
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Rockstar_Rocky

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हैकिंंग सीखने-समझने की कोशिश कभी फुर्सत होती है तो कर लेता हूँ......... वैसे ये डिपार्टमेंट मेरे बेटे का है, वो टेक्नालजी में रुचि रखता है, जैसे मैं रखता था शुरू में
लेकिन अब मैं पूर्ण रूप से सांसरिक समस्याओं के तार्किक समाधान देने में ज्यादा रुचि रखता हूँ..... business solutions और personal solutions ...... इसमें ही दिमाग बहुत बिज़ि रहता है

सही गलत का अंतर आपका मन बहुत अच्छी तरह जानता है......... इसीलिए डर लगता है...... कितना भी अभ्यस्त अपराधी हो
और डर के आगे जीत शायद ही किसी को मिली हो, बकवास ऍड से कबाड़ बेचने के अलावा.......... जीतने के लिए पहले अपना नज़रिया बदलना होता है -वो काम क्यों करना जिसका डर आपके मन में हो..... वो करो जो निडर होकर कर सको

सर जी,

वो हैकिंग वाला सवाल मैंने मज़ाक में ही किया था| जानकार अच्छा लगा की आपके पुत्र इस क्षेत्र में निपुण हैं|

सही गलत का अंतर आपका मन बहुत अच्छी तरह जानता है......... इसीलिए डर लगता है...... कितना भी अभ्यस्त अपराधी हो
और डर के आगे जीत शायद ही किसी को मिली हो, बकवास ऍड से कबाड़ बेचने के अलावा.......... जीतने के लिए पहले अपना नज़रिया बदलना होता है -वो काम क्यों करना जिसका डर आपके मन में हो..... वो करो जो निडर होकर कर सको

दरअसल ये हमारी यानी 90s वाले बच्चों और आजकल की पीढ़ी के लिए एक थ्रिल होता है| कभी ड्राइव करते हुए आपके हाथ में फ़ोन हो और आप कोई बहाना दे कर बच निकलें, माँ-बाप से छुप कर बाहर दोस्तों के साथ दारु पीना आदि हमारे लिए एक adventure होता है जिससे हमें thrill मिलता है| छोटे-मोटे खतरे उठा कर मिली उपलब्धि हमारे लिए ऐसा adventure होती है जो हम मजे ले कर अपने यारों-दोस्तों को बताते हैं|

आपने मेरी आप बीती 'एक अनोखा बंधन' में पढ़ा होगा की मैंने और करुणा ने क्या-क्या काण्ड किये थे, उन्हें सबके साथ साझा करने में बड़ा आनंद आया था|

बाकी Mountain dew की ad की जो बता है, वो तो बस एक marketing gimmick है| जैसे AXE spray लगाने से लड़कियाँ आपसे लिपट जाती हैं वाला marketing gimmick! ऐसा होता है तो मेरी तरह लौंडे सिंगल नहीं होते! :lol1:
 

kamdev99008

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आपने मेरी आप बीती 'एक अनोखा बंधन' में पढ़ा होगा की मैंने और करुणा ने क्या-क्या काण्ड किये थे, उन्हें सबके साथ साझा करने में बड़ा आनंद आया था|

बाकी Mountain dew की ad की जो बता है, वो तो बस एक marketing gimmick है| जैसे AXE spray लगाने से लड़कियाँ आपसे लिपट जाती हैं वाला marketing gimmick! ऐसा होता है तो मेरी तरह लौंडे सिंगल नहीं होते! :lol1:
:hehe: :lol: sahi baat hai.........
AXE Spray kab se try karte aa rahe ho :lol1:
 

Rockstar_Rocky

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:hehe: :lol: sahi baat hai.........
AXE Spray kab se try karte aa rahe ho :lol1:

सर जी,

मेरे स्कूल के दिनों में ही आकाशवाणी हो चुकी थी की 'वत्स भले ही तू axe spray के टैंक में कूद जा मगर तू सिंगल ही मरेगा!! :rofl:

वैसे ईमानदारी से कहूँ तो मेरे बचपन के दिनों में AXE spray 200/- रुपये से भी ज्यादा का आता था और पिताजी इतने पैसे सिर्फ एक "फुस्स-फुस्स" पर खर्चने से रहे| उन्हें ये भी डर था की कहीं उनका लड़का शो बाजी और लफंडरगिरी में फँस गया तो हाथ से निकल जाएगा इसलिए वो हमेशा अपने गुस्से और डर से मुझे काबू में रखते थे|
बड़ी मुश्किल से मैंने पैसे जोड़ कर 80/- का एक local hair gel लिया था जो मैं पिताजी से छुपा कर रखता था और स्कूल जाते समय लगाता था| मुझे लगता था की नारियल तेल की जगह जेल की खुशबु से लड़कियाँ मेरी तरफ आकर्षित होंगी और मुझसे स्वयं बात करेंगी क्योंकि मुझ में लड़कियों से खुद बात करने की हिम्मत नहीं होती थी! ये जेल लगा कर तुक्का एक बार चला तो सही जब टीचर ने मुझे एक पीरियड के लिए मेरी crush के साथ बिठाया और उसने मुझसे बात की| या फिर ये मेरा भरम था?!
 

Rockstar_Rocky

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Awesome update
कीर्ति की कॉलेज लाइफ का विवरण बहुत ही शानदार और लाज़वाब था कीर्ति के कॉलेज में नए दोस्त बन गए हैं साथ ही उसकी सेक्स गुरु भी उसके साथ कॉलेज और कंप्यूटर क्लास दोनो में है कीर्ति के फ्रेंड बहुत ही advansh है देखते हैं कीर्ति इनके बीच अपने संस्कारों का पालन करती है या फिर हवा में उड़ती है लगता है ये रवि मानू की जगह ले सकता है देखते हैं आगे क्या होगा

मानू भाई एक बात पूछनी थी sunday को कॉलेज कोन से disstrict में चलता है हमारे यहां तो सभी कॉलेज sunday को off रहते हैं

तारीफ के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद संजू भाई! :thank_you: :dost: :hug: :love3:

आपके दिए गए रिव्यु में मैं कुछ सुधार करना चाहूँगा;

1.कीर्ति की सेक्स गुरु यानी अंजलि उसके साथ कॉलेज में जाती है परन्तु कंप्यूटर क्लास में नहीं!

2.संडे को open college जैसे की IGNOU की classes होती हैं| मेरा दोस्त दिषु IGNOU से पढ़ा है और हर संडे वो कॉलेज के गेट पर अपनी attendance लगा देता था और फिर हम गेड़ी मारने निकल जाते थे|

कीर्ति कॉलेज में नकाउन्स 'डिप्लोमा' करती है ये आपको आज की update में पता चलेगा|
 

Rockstar_Rocky

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कीर्ति के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ है यह। स्कूल लाइफ और कालेज लाइफ किसी भी लड़के या लड़की के लिए सबसे महत्वपूर्ण समय होता है।
यह ऐसा दौर होता है जहां नए नए फ्रैंड बनते है। नए नए साथी मिलते है। फ्रैंड सर्किल अगर बुरे लड़कों का बना तो उस संगति का असर उसके फ्यूचर पर पड़ना ही पड़ना है और अगर संगति अच्छे लड़कों का रहा तो उसके परिणाम प्रायः अच्छे ही दिखने को मिलते है।
कीर्ति के स्कूल लाइफ की फ्रैंड अंजली थी । अंजली के संगति से उसे सेक्स के बारे मे प्राथमिक जानकारी मिली पर यह उसकी किस्मत थी कि उन दिनों वो किसी लड़के के साथ रिलेशनशिप मे नही थी , अन्यथा वो अपना कौमार्य शर्तिया गवां चुकी होती।
अब वह कालेज मे है , कम्प्यूटर के एजुकेशन सेंटर मे भी है , अच्छे - बुरे सभी प्रकार के लड़कों से उसका पाला पड़ना है । अगर यहां वो फिसली तो फिर वह फिसलती ही चली जायेगी ।
जैसा कि आप ने कहा शशी उसकी सेकेंड बेस्ट फ्रैंड बनने वाली है और शशी की योग्यता थोड़ा-बहुत देख ही चुके है हम।
स्कूल - कालेज से भागकर मूवी देखना , अपने गार्डियन से मूवीज देखने की बात छुपाना , पार्टी वगैरह करना , वगैर पैसे दिए बस - ट्रेन मे सफर करना पतन की प्रारम्भिक सीढी ही है।
वैसे झूठ बोलने और बहाने बनाने मे वो माहिर हो ही गई है। देखते है उसकी अपर एजुकेशन की पढ़ाई क्या गुल खिलाती है !

बहुत खुबसूरत अपडेट मानु भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।

तारीफ के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद संजू भाई! :thank_you: :dost: :hug: :love3:

बहुत बढ़िया review दिया आपने| :bow:
ऐसा रिव्यु पढ़ कर आगे कुछ लिखने की हिम्मत नहीं होती|
बहुत-बहुत धन्यवाद भाई जी!

स्कूल-कलगे के समय बने दोस्त हमारे जीवन पर गहरी छाप छोड़ते हैं| अब अंजलि और शशि अपनी दोस्त करती को किस मार्ग पर ले जाएंगे ये आपको आगे पता चलेगा|

नई update आज रात तक!
 
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