संगीता की original लेखनी:
नेहा और आयुष इनके पास बैठे थे और सारे लोग भी वहीँ बैठे थे... तो मुझे इनसे बात करने का समय नहीं मिल रहा था| इधर नहा जिद्द करने लगी की वो तीन दिन तक स्कूल नहीं जायेगी और अपने पापा के पास ही रहेगी| सबने उसे प्यार से समझाया अपर वो नहीं मान रही थी..... इन्होने भी कोशिश की पर नेहा जिद्द पर अड़ गई! पिताजी (नेहा के नाना जी) को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने उसे डाँट दिया| उनकी डाँट से वो सहम गई और अपने पापा के पास आके उनके गले लग गई और अपना मुँह उनके सीने में छुपा लिया| आखिर मुझे ही उसका पक्ष लेना पड़ा; "रहने दो ना पिताजी.... मेरी बेटी बहुत होशियार है! वो तीन दिन की पढ़ाई को बर्बाद नहीं जाने देगी! है ना नेहा?" तब जा कर नेहा ने मेरी तरफ देखा और हाँ में सर हिला के जवाब दिया| पर पिताजी के गुस्से का सामना मुझे करना पड़ा; "तू बहुत तरफदारी करने लगी है इसकी? सर पर चढ़ाती जा रही है इसे? मानु बेटा बीमार क्या पड़ा तुम दोनों ने अपनी मनमानी शुरू कर दी?" मेरी क्लास लगती देख इन्हें (मेरे पति) को भी बीच में आना पड़ा; "पिताजी........ ये मेरी लाड़ली है! " बस इतना सुन्ना था की पिताजी चुप हो गए और मैं भी हैरान उन्हें देखती रही की मेरी इतनी बड़ी दलील सुन्न के भी उन्हें संतोष नहीं मिला और इनके कहे सिर्फ पांच शब्द और पिताजी को तसल्ली हो गई? ऐसा प्रभाव था इनका पिताजी पर!
सबको इन पर बहुत प्यार आ रहा था... और ये सब देख के मुझे एक अजीब से सुख का आनंद मिल रहा था| अगले तीन दिन तक सब ने हमें एक पल का समय भी नहीं दिया की हम अकेले में कुछ बात कर सकें| अब तो रात को माँ (सासु माँ), मेरी माँ या बड़की अम्मा वहीँ रूकती| दिन में कभी पिताजी (ससुर जी) तो कभी मेरे पिताजी तो कभी अजय होता| अगले दिन तो अनिल भी आ गया था और उसेन आते ही इनके (मेरे पति के) पाँव छुए! हम दोनों (मैं और मेरे पति) अस एक दूसरे को देख के ही आहें भरते रहते थे... जब माँ (सासु माँ) होती तो मैं जा कर इनके सिराहने बैठ जाती और ये मेरा आठ पकड़ लेते और हम बिना कुछ बोले बस एक दूसरे की तरफ देखते रहते| जैसे मन ही मन एक दूसरे का हाल पूछ रहे हों! हम दोनों के मन ही मैं बहुत सी बातें थीं जो हम एक दूसरे से करना चाहते थे .... ओ मेरे मन में जो सबसे अदा सवाल था वो था की आखिर इन्होने मुझे "Sorry" क्यों बोला?
घर में ये सब से बात कर रहे थे .... जैसे सबसे बात करने के लिए इनके पास कोई न कोई topic हो! मेरे पिताजी (ससुर जी) से अपने काम के बारे में पूछते, माँ (सासु माँ) से उनके favorite serial C.I.D के बारे में पूछते, मेरे पिताजी से खेती-बाड़ी के बारे में पूछते, और मेरी माँ..... उन्हें तो इन्होने एक नै hobby की आदत डाल दी थी! वो थी "experimental cooking" ही..ही...ही... आय दिन माँ कुछ न कुछ अलग बनती रहती थी....!!! बड़की अम्मा और अजय से सबका हाल-चाल लेते रहते थे..... पर मुझसे ये सिर्फ और सिर्फ इशारों में ही बात करते थे|
अगले दिन की बात है नर्स करुणा इन्हें चेक करे आईं थी तब उन्हें देख कर इनके मुख पर मुस्कान फ़ैल गई| दोनों ने बड़े अच्छे से "Hi" "Hello" की..... हाँ जब ये हंस कर उनसे बात करते तो मुझे बड़ा अजीब सा लगता था| अचानक मेरी नजर पिताजी (मेरे ससुर जी) पर पड़ी तो देखा वो इन्हें घूर के देख रहे थे| थोड़ा बहुत गुस्सा और जलन तो मुझे भी हो रही थी.... पर मैंने अपने भावों को किसी तरह छुपा लिया था| उस समय वहां केवल माँ (सासु माँ) और पिताजी (ससुर जी) थे, नर्स के जाने के बाद पिताजी ने इन्हें टोका| "तू बड़ा हँस-हँस के बात कर रहा था? बहु सामने है फिर भी?" उन्होंने गुस्सा नहीं किया था बस टोका भर था!
ये सुन कर इन्हें (मेरे पति को) हंसी आ गई! और तब माँ इनके बचाव में आ गेन और उन्होंने सारी confusion दूर की! माँ नर्स करुणा को जानती थीं .... और मैंने कभी ध्यान नहं दिया पर जब भी नर्स माँ के सामने आती तो माँ उनसे बात करती| उस वक़्त मेरा ध्यान तो केवल इन पर था इसलिए मैंने कभी ध्यान नहीं दिया| दरअसल करुणा इन्हीं की दोस्त थी! कुछ साल पहले पिताजी को कुछ काम से गाँव जाना पड़ा था| उन दिनों माँ की तबियत ठीक न होने के कारन नर्स करुणा ने माँ की देखभाल की थी| पिताजी को ये बात पता नहीं थी क्योंकि लड़कियों के मामले में पिताजी ने इन पर (मेरे पति पर) हमेशा से लगाम राखी थी| उन्हें ये सब जरा भी पसंद नहीं था और वैसे में मेरे पति इतने सीधे थे की आजतक मेरे आलावा कभी किसी लड़की के चक्कर में पड़े ही नहीं| वैसे ये सब उस समय तो मैं हजम कर गई थी..... क्योंकि मेरी चिंता बस इन्हें घर ले जाने की थी! शाम तक अनिल site से आ गया था और आते ही उसने इनके पाँव छुए और फिर ये दोनों भी बातों में लग गए|
इधर इनकी आवाज सुनने के लिए मैं मरी जा रही थी| बस इनके मुंह से "जान" ही तो सुन्ना चाहती थी! खेर discharge होने से पहले डॉक्टर इ सभी को हिदायत दी की इन्हें कोई भी mental shock नही दिया जाए| घर में ख़ुशी का माहोल हो और कोई भी टेंशन ना दी जाए| दवाइयों के बारे में मुझे और नेहा को सब कुछ समझा दिया गया था| शाम को सात बजे हम सब घर पहुंचे| घर पहुँच के माँ ने इनकी आरती उतारी और सब ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की| इनका शरीर अब भी कमजोर था तो मैं इन्हें अपने कमरे में ले आई और ये bedpost का सहारा ले कर बैठ गए| सब ने इन्हें घेर लिया और आस पड़ोस के लोग भी मिलने आये| मेरे पास टी चैन से बैठ कर इनके पास बातें करने का जरा भी मौका नहीं था| रात को खाना खाने के बाद सब अपने कमरे में चले गए| मेरे माँ-पिताजी आयुष और नेहा के कमरे में सोये थे और आयुष उन्ही के पास सोने वाला था| सोने में इन्हें कोई तकलीफ ना हो इसलिए नेहा आज माँ-पिताजी (सास-ससुर जी) के पास सोई थी| बड़की अम्मा और जय घर नहीं ठहरे थे वो हमारे किसी रिश्तेदार के यहाँ सोये थे| कारन ये था की दरअसल वो इसी बहाने से यहाँ आये थे की किसी रिश्तेदार से मिलने जा रहे हैं|
सब को अपने कमरे में जाते-जाते रात के दस बज गए थे| जब मैं कमरे में आई और मैंने लाइट जलाई तो देखा ये अभी भी जाग रहे थे| मेरे कुछ कहने से पहले ही ये बोल पड़े; "Sorry !!!" इनका Sorry सुन कर मन में जो सवाल था वो बाहर आ ही गया; "जब से आप को होश आया है तब से कई बार आप दबे होठों से मुझे Sorry बोल रहे हो? आखिर क्यों? गलती....." मेरे आगे कुछ बोलने से पहले ही ये बोल पड़े; "जान....Sorry इसलिए बोल रहा हूँ की उस दिन मैं उस कमीने बदजात की जान नहीं ले पाया! Sorry इसलिए बोल रहा हूँ की तुम्हारी वो दर्द भरी लेखनी पढ़ कर तुम्हारे दर्द को महसूस तो किया पर उस दर्द को कम करने के लिए कुछ नहीं कर पाया! Sorry इसलिए बोल रहा हूँ की इतने दिन तुमसे कोई बात नहीं की और तुम्हें तड़पाता रहा, वो भी ये जानते हुए की तुम माँ बनने वाली हो! Sorry इसलिए ............." उनके आगे बोलने से पहले मैंने उनकी बात काट दी! "पर आप की कोई गलती नहीं थी.... आप तो जी तोड़ कोशिश कर रहे थे की मैं हँसूँ-बोलूं पर एक मैं थी जो आपसे ....आपसे अपना दर्द छुपा रही थी| उनसे जो बिना किसी के बोले उसके दिल के दर्द को भांप जाते हैं..... आपने कुछ भी गलत नहीं किया| सब मेरी गलती है..... ना मैं आपको इस बच्चे के लिए force करती और ना..........” इतना सुन कर ही इन्हें बहुत गुस्सा आया और ये बड़े जोर से मुझ पर चिल्लाये; "For God sake stop blaming yourself for everything!” उनका गुस्सा देख कर तो मैं दहल गई और मुझे डर लगने लगा की कहीं इनकी तबियत फिर ख़राब न हो जाए! तभी नेहा जो की दरवाजे के पास कड़ी थी बोल पड़ी; "मम्मी....फिर से?" बस इतना कह कर वो अपने पापा के पास आई और उनसे लिपट गई और रोने लगी| इन्होने बहुत प्यार से उसे चुप कराया और फिर दोनों बाप-बेटी लेट गए| मैंने दरवाजा बंद किया, बत्ती बुझाई और मैं भी आ कर लेट गई| मैंने भी नेहा की कमर पर हाथ रखा पर कुछ देर बाद उसने मेरा हाथ हटा दिया....दुःख हुआ... पर चुप रही बस एक इत्मीनान था की कम से कम ये घर आ चुके हैं .... एक उम्मीद थी की ये अब जल्द से जल्द ठीक हो जायेंगे! इसी उम्मीद के साथ कब आँखें बंद हुई पता ही नहीं चला!
सुबह पाँच बजे मेरी आँख खुली तो महसूस किया की ये (मेरे पति) Bedpost का सहारा ले कर बैठे हैं, नेहा का सर इनकी गोद में है और ये मेरे सर पर हाथ फेर रहे थे| क्या सुखद एहसास था वो मेरे लिए..... मैं उठी तो इन्होने मुझे लेटे रहने के लिए बोला पर मैं नहीं मानी| मेरा मन किया की आज इन्हें सुबह वाली Good Morning Kiss दूँ पर मेरी 'माँ' नेहा जो वहाँ थी, वो भी एकदम से उठ गई, आखिर उसके स्कूल जाने का टाइम जो हो रहा था|
“Good Morning बेटा!" इन्होने उसके माथे को चूमते हुए कहा| जवाब में नेहा ने इनके गाल को चूमते हुए Good Morning कहा! पर जब इन्होने नेहा को तैयार होने के लिए कहा तो वो ना नुकुर करने लगी| मैं उसकी इस न-नुकुर का कारन जानती थी .... दरअसल उसे मुझपर भरोसा नहीं था| उसे लग रहा था की मैं कुछ न कुछ ऐसा करुँगी की इनकी तबियत फिर से ख़राब हो जाएगी|
पर इनका भी अपना स्टाइल है! जिसके आगे बच्चों और मेरी कतई नही चलती! इन्होने बहुत लाड-दुलार के बाद नेहा को स्कूल जाने के लिए मना लिया| पर उसने एक शर्त राखी; "Promise me पापा की आप किसी को गुस्सा नही करोगे फिर चाहे कोई आप को कितना भी provoke करे (ये उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा|), आप टाइम से खाना खाओगे और टाइम से दवाई लोगे और हाँ proper rest करोगे|" ये सब सुनने के बाद मेरे और इनके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई और इन्होने हँसते हुए जवाब दिया; "मेरी माँ! आप बस स्कूल जा रहे हो.... दूसरे continent नही जो इतनी साड़ी हिदायतें देकर जा रहे हो| और फिर यहाँ आपकी मम्मी हैं .... आपके दादा-दादी हैं...नाना-नानी हैं ... सब तो हैं यहाँ फिर आपको किस बात की चिंता? यहन कौन है जो मझे PROVOKE करेगा?" अब मुझे किसी भी हालत पर ये टॉपिक शुरू होने से बचाना था वरना मुझे पता था की नेहा की डाँट जर्रूर पड़ेगी तो मैंने कहा; "नेहा बीटा.... जल्दी से तैयार हो जाओ ...लेट हो रहा है|" जबकि उस समय सिर्फ साढ़े पाँच ही बजे थे!| बच्चे तो तैयार हो कर स्कूल चले गए इधर इन्होने मुझे बुला कर 'सभा' का फरमान दिया| जब बड़की अम्मा और अजय आ गए तो सबजने अपनी-अपनी चाय का कप थामे हमारे कमरे में आ गए और सब घेर कर बैठ गए| कमरे में हीटर की गर्माहट ने माहोल आरामदायक बना दिया था| ऐसा लग रहा था जैसे President of America Parliament को Address कर रहे हों| सब बड़ी उत्सुकता से इन्हें देख रहे थे| मैं भी हैरान थी की आखिर इन्हें कौन सी बात करनी है|
(आगे इन्होने जो बोला उसका एक-एक शब्द मैं जैसा का तैसा लिख रही हूँ!)
"मुझे आप सभी से कुछ कहना है................ मैं आप सभी से हाथ जोड़ कर क्षमा चाहता हूँ की मेरे कारन आप सभी को ये तकलीफ उठानी पड़ी!"
ये सुन कर सभी एक साथ बोल पड़े; "नहीं...नहीं... बेटा....ये तू क्या बोला रहा है ....." पर इन्होने ने अपनी बात जारी रखी ......
"मैं जानता हूँ की मेरी इस हालत का जिम्मेदार इन्होने (मेरी तरफ इशारा करते हुए) खुद को ही ठहराया होगा! ये इनकी आदत है...मेरी हर गलती का जिमेदार ये खुद को मानती हैं और मेरे सारे गम अपने सर लाद लेती हैं| जानता हूँ की ये हर जीवन साथी का ये फ़र्ज़ पर मैं नहीं चाहता की मेरी वजह से आप संगीता से नफरत करें....और उसे मेरी गलतियों की सजा दें! उस हादसे के बारे में सोच-सोच कर मेरा खून खौल ने लगा था.... दिल में आग लगी हुई थी.... बहुत गुस्सा आ रहा था मुझे| अपनी गुस्से की आग में मैं खुद ही जल रहा था| पता नहीं क्या ऊल-जुलूल हरकतें कर रहा था .... कभी दुबै जाने के बारे में सोच रहा था तो कभी कुछ... ऐसा लगा जैसे दिमाग ने सोचने समझने की ताकत ही खो दी थी| दवाइयाँ खाना बंद कर दिया और अपनी ये हालत बना ली! इसलिए मैं आप सभी से हाथ जोड़ के माफ़ी माँगता हूँ| और पिताजी (मेरे पिताजी) इन्होने मुझसे आपकी या किसी की भी शिकायत नहीं की! मैं जानता हूँ की सबसे ज्यादा आप मुझे प्यार करते हो तो सबसे ज्यादा डाँटा भी आपने ही होगा!"
ये सुन कर पिताजी कुछ नहीं बोले बस मुस्कुरा दिए| तभी इन्होने (मेरे पति) मुझे उनके (मेरे पिताजी) के पाँव छूने को कहा| मैंने उनके पाँव छुए और उन्होंने मुझे माफ़ करते हुए कहा; "खुश रहो बेटी!" मैं ने आगे बढ़ कर माँ (अपनी माँ) के पाँव छुए तो उन्होंने भी मुझे प्यार से आशीर्वाद दिया| जब मैं बड़की अम्मा के पास पहुंची और उनके पाँव छूने लगी तब ये बोले; "अम्मा....मैं जानता हूँ आपने संगीता को कुछ नहीं बोला होगा है ना?" अम्मा ने मुस्कुराते हुए मुझे आशीर्वाद दिया और कहा; "बेटा तू तो जानता ही है सब....मैं इसे कुछ कहती भी तो किस हक़ से!"
"क्यों अम्मा... आप मेरी बड़ी माँ हो आपका पूरा हक़ बनता है की आप हमें डांटें चाहे तो मार भी लो!" मैंने कहा|
"नहीं बेटी..... मेरे अपने खून की गलतियों के आगे मैं कुछ नहीं कह सकती|" अम्मा कहते हुए रो पड़ी तो माइन आगे बढ़ के उन्हें संभाला और कान में खुस-फुसा के कहा; "आप अगर रोओगे तो ये भी रो पड़ेंगे|" अम्मा ने अपने आँसूं पोछे और खुद को संभाला| मैं जानती थी की अम्मा की बात इन्हें कहीं न कहीं लगी अवश्य होगी.... आर मुझे कैसे भी अभी सब कुछ सम्भालना था|
"और माँ-पिताजी..... आप ने तो संगीता को नहीं कोसा ना?" इन्होने पूछा|
इसपर माँ (सासु माँ) बोली; "भई गलती तेरी..... तो भला हम अपनी बेटी को क्यों कोसेंगे? मुझे पता था की ये तेरी ही करतूत है और इल्जाम हमारी बेटी अपने सर ले रही है|" इस पर मेरे पिताजी ने इनका पक्ष लेते हुए मुस्कुरा कर कहा; "समधन जी ये आपने सही कही! हमारे ही लड़के में खोट है?" ये सुन कर सब हँसने लगे.....!!!
नाश्ते का समय हुआ तो सब बाहर बैठक में आ रहे थे तभी मेरे पिताजी आकर इनके पास बैठ गए और इनके कंधे पर हाथ रख कर बोले; "संगीता....तू सच में बहुत नसीब वाली है की तुझे ऐसा पति मिला जो तेरी साड़ी गलतियां अपने सर ले लेता है!"
"पर पिताजी...ऐसा कुछ नहीं है...गलती मेरी ही थी!" इन्होने फिर से अपनी बात दोहराई और तब तक मेरी माँ भी वहीँ आ कर कड़ी हो गईं|
"बेटा मेरे एक सवाल का जवाब दे, ऐसी कौन सी पत्नी होती है जो अपना दुःख-दर्द अपने ही पति से छुपाये?" पिताजी का सवाल सुनकर मुझे पता था की इनके पास कोई जवाब नहीं होगा पर हुआ इसका ठीक उल्टा ही! इन्होने बड़े तपाक से जवाब दिया; "वही पत्नी जो ये जानती है की उसका दुःख-दर्द सुन उसके पति की तबियत ख़राब हो जायेगी!" और ये कहते हुए उन्होंने मेरी माँ की तरफ देखा जैसे कह रहे हों की माँ आपने पिताजी से अनिल के हर्निया की बात छुपा कर कोई पाप नही किया| इस बार इनका जवाब सुन पिताजी चुप हो गए... और मुस्कुरा दिए और बोले; "बेटा तुझसे बातों में कोई नही जीत सकता! तेरे पास हर बात का जवाब है|" इतना कह कर पिताजी ने इनको आशीर्वाद दिया और बाहर बैठक में आ गए| आजतक ऐसे नहीं हुआ...कम से कम मेरे सामने तो कतई नही हुआ की कोई पिताजी को इस तरह चुप करा दे| पर मैं जानती थी की इनका प्रभाव पिताजी पर बहुत ज्यादा है! शायद ये इन्हीं का प्रभाव था की अब दोनों घरों में औरतें यानी मेरी माँ और सासु माँ बोलने लगीं थी!
ये सब देख मेरा दिल भर आया था ... मन तो किया की इनके सीने से लग कर रो पडूँ पर किसी तरह खुद को संभाला| इतने में अनिल आ गया और बोला; "दी... वो नाश्ते के लिए आपको बाहर बुला रहे हैं|" इतना कह कर वो बाहर चला गया| उसने आज भी मुझे दीदी की जगह 'दी....' कह के बुलाया था| मुझे बुरा तो लगा था पर मैं चुप यही पर इन्हें कुह शक हो गया| इन्होने मुझसे पूछा; "जब से अनिल आया है....तब से ये 'दी...' कह रहा है? ये का आजकल का trend है?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा; "हाँ जी.... अब नई पीढ़ी है... शुक्र है दीदी का इसने 'दी...' कर दिया वरना मुझे तो लगा था की ये उसका कहीं 'DUDE' न बना दे...ही..ही..ही..ही.."
"अच्छा जी...ज़माना इतना बदल गया है? हम तो जैसे बूढ़े हो गए हैं!" इन्होने शिकायत की...शायद इन्हें शक हो गया था की मैं कुह बात छुपा रही हूँ| मैं बाहर आ कर नाश्ता बनाने में लग गई.... मैंने और इन्होने नाश्ता कमरे में ही किया क्योंकि वो कमरा काफी गर्म था और इनको exposure से खतरा था वरना जरा सी ठंडी हवा इन्हें लगी और हो गया इनका Sinus शुरू!