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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Rockstar_Rocky

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aham, aham... to hum aate hai sameeksha pe.......
sabse badi khushi baat ye hai ki kayi dino baad akhir kar maanu ko hosh aa gaya... :toohappy: .. hope pehle ki tarah ab aur koi galti na kare jiske chalte phir se koi anhoni na ho jaye.... hope wo sabak sikh chuka hai is anchahi ghatana se...
Actually subconscious mind ko ek trigger ki jarurat hoti hai kabhi kabhi.... to kabhi kabhi luck aur mentally will power ki bhi... yahan treatment ke sath sath us trigger ka kaam kiya bhouji ki aawaz aur pyar ne aur sath hi sabse badi baat dono had se zyada close hai.. isliye behoshi ki aalam mein bhi maanu bas bhouji ko hi yaad kar rahe the sath hi pukar bhi raha tha...
Khair.......
waise ye baat sabhi jaante hai ki neha apne pita ko leke kuch zyada protective aur possessive hai par jis tarah ki baatein sunayi hai apni hi mom ko.... ye to sarasar galat hai.... jo bhi ho wo uski mom ye baat bhoolni nahi chahiye ushe...
waise bhouji bhi kam nahi... lahparwahi ki murat :sigh:
Anil ne bhi bahot kuch suna diya usko par jo bhi ho bhouji pet se hai... ye baat bhool kyun gaya wo... aise condition aisi baatein... Totally unbelievable....
Shame on you Anil...
is mamle aur zyada review likhu to shayad Anil ki aisi ki taisi kar du... so is topic ko yahin chhod deti hoon...

bachhe mann ke sachhe hote hai.. Inka mann kode kagaz ki tarah hota hai.. bade log jo chap bachho k mann mastishka par daalenge uska chap har aajivan dikhega.. Bachho ko Sanskarwan, gunwan, saritravan ya yogyo nagarik banana na sirf mata pita ka hi nahi balki sabka aham daayitv hai..
Lekin yahan is story par neha ke mamle mein....
1) maanu aur uske mata pita ko chhod ke kabhi kisi ne uspe dhyan nahi diya, are pyar se do baatein karna dur ki baat hai...
2) jisne pyar mila unhi ke prati lahparwahi dikhayi bhouji ne..

ab inhi baaton ke chalte ek aag chingari banke dadi huyi thi uske dil mein ... aur ab jab aisi paristithiya samne aa rahi to wo gussa banke fut para bhouji ke upor..
I think.... Agar bhouji ki tarah agar thodi bahot lahparwahi badki amma ne bhi ki hoti to Neha unki bhi aisi ki taisi kar deti apni kadwi baaton se...

Khair badki amma ko ye baat bhali bhaanti samajh leni chahiye ki bachho ke bhavnao ko kadar karna shikhna chahiye.. na ki aise naraz andaz karni chahiye.. warna kahi unhipe bhari na par jaaye...

waise ek baat to tay hai, neha ki tarah bhouji ke mata pita ke sath sath uska bhai Anil bhi over possessive hai maanu ko leke.... :D
shayad isliye bhouji ko daant fatkar sunni par rahi hai.. kisi badi sararti chhoti bachhi ki tarah :D
Btw ab jab maanu hosh mein aa gaya hai to hope aage aisi lahparwahi ya galti nahi karegi...

waise aayush ka achha hai... samjhdaar bhi hai aur mast maula bhi hai... chhoti chhoti baaton pe khushi dhund leta hai aur sath hi apni baaton se dusro ko bhi Muskurane ke liye majboor kar deta hai :D
Khair......
Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills Rockstar_Rocky sahab :applause: :applause:
( ek revo Sangeeta Maurya ke liye bhi...
yeh bhi ek sach hai ki jarurat anushar har ek kirdaar ki mahattva purn hota har update ke liye, kahani ke liye .. I mean to say ek kirdaar bhi hata diya jaye toh kahani adhuri hai...kabhi to pure update ko leke dilchaspi kam ho jaati hai... Par aap aise likhti hai jaha har kirdaar kirdaar sathik jagah sathi bhumika nibhate hai .. yeh bhi ek plus point hai ki aap puri emotions ke sath update likhte hai... Kirdaaro aur shadbon ka jaadu jo dil ko chu jaye :bow:
Hum hamesha hero heroine pe hi zyada dhyaan Kendrit karte hain... lekin yeh yaad rakhna chahiye ki baaki kirdaaro bin mul kirdaar kuch bhi nahin.... aur aap update mein sabhi kirdaaro ke sath ek justify karte hain... Isliye aap ne jo update diye hai ab tak unsab ko padhke bas yahi khayal aaye ki... Brilliant update with awesome writing skills Sangeeta Maurya madam.... :applause: :applause:
aise hi likhte rahiye aur humari manoranjan karte rahiye :bow: :bow:...

.
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ek minute :D
Dekh lo main na bolti thi ki Great Great great sachhai aur achhai ki raah pe chalne wali rachika bhabhi ko bula lo Delhi... par meri thodi na sunegi... lo ab bhugto.. jo bhi aa raha hai khori khoti sunaye jaa raha hai... Agar aaj guru mata the great rachika bhabhi bhouji sang hoti to mazal hai kisi ki.... jo nazare uthake bhi dekhne ki himmat karte bhouji ko :D
... isike sath revo samapt ;) )

:thank_you: :love3:

दीदी,

इतने प्यारे review के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!

इस अस्पताल के चक्कर ने मुझे कई ज़रूरी सबक सीखा दिए थे|
अनहोनी तो होगी मगर अभी नहीं कुछ समय बाद!
आपकी कही बात की subconscious mind को संगीता के प्यार ने trigger कर दिया सही हो सकती है, मेरा भी ऐसा ही मानना है की संगीता के प्यार ने ही मुझे घर वापसी का रास्ता दिखाया था|
नेहा की possessiveness उसके मेरे प्रति प्यार से पैदा हुई थी| उसे मैंने कैसे समझाया ये आपको आगे आने वाली अपडेट में पढ़ने को मिलेगा|
बड़की अम्मा का बच्चों से ज्यादा लगाव नहीं रहा, वो बड़ी हैं और मेरे पैदा होने के बाद पैड हुए सभी बच्चों से उतना लगाव नहीं रहा| आप ये मान लो की मैं वो आखरी बच्चा था जिसे बड़की अम्मा ने गोद में ले कर खिलाया होगा| आयुष भी जब पैदा हुआ तो उससे बड़की अम्मा का वो मोह नहीं था जो मेरे साथ था|
अनिल और संगीता के माता-पिता से मेरा रिश्ता बहुत गहरा है| इसकी झलक आप आगे देखोगे ही!
एक बार फिर से इतने प्यारे review के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!
 

Rockstar_Rocky

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Lovely update
Excellent update
Manu bhai ko hos me aate hi ghar me khushiya aa gayi ye sab sab ki duaoo ka asar tha

बहुत-बहुत धन्यवाद मित्र! :thank_you: :dost: :hug: :love3:
आपने सही कहा मित्र, ये भगवान की कृपा और सबकी दुआओं का ही असर था|

Hum bhagwan se 🙏 prathna kare ki uncle jaldi thik ho jaye

मुझे आपको बताते हुए बहुत दुःख हो रहा है की अंकल जी अब नहीं रहे| जब उन्हें ventilator पर डाला गया था उसके कुछ देर बाद ही उनका निधन हो गया था|
 

Rockstar_Rocky

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चूंकि मानू अभी भी अस्पताल में है लेकिन स्तिथि पहले से अच्छी है तो क्या निम्नलिखित शीर्षक हो सकता है?

सुख की आहट

आशु

धन्यवाद मित्र जो आपने शीर्षक सुझाया, परन्तु अध्याय के अनुसार ये उपयुक्त शीर्षक नहीं है| फिलहाल के लिए मैंने एक शीर्षक सोचा है, उम्मीद है वो आप सभी को पसंद आएगा!
 

Rockstar_Rocky

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मैं इस वादे के लिए टिप्पणी मांग रहा था।

चलिए, जो भी है, भगवान आप सभी को खुश रखे।

आशु

She's not very good in keeping her promises! 🤐
 

Rockstar_Rocky

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Rockstar_Rocky

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सत्ताईसवाँ अध्याय: विपरीत - पति का प्यार और पत्नी की जलन!
भाग - 1
अब तक आपने पढ़ा:


एक परिवार जो लगभग 20 दिन से मेरे कारण दुःख भोग रहा था वो आज फिर से हँसने-खेलने लगा था और मुझे इससे ज्यादा और कुछ नहीं चाहिए था!


अब आगे:


नेहा और आयुष दोनों इनके अगल-बगल बैठे थे तथा मैं इनके पैरों के पास बैठी थी, बाकी सभी भी कमरे में बैठे हुए थे| अस्पताल के कमरे को हमने अपने घर की बैठक बना दिया था! सभी इनसे बात करने में लगे थे, बात करने का मतलब की सब बोल रहे थे और ये बस हाँ-न में जवाब दे रहे थे| सबके बात करने से मुझे इनसे बात करने का समय नहीं मिल रहा था| बातों ही बातों में नेहा ने जिद्द पकड़ते हुए कहा की वो तब तक स्कूल नहीं जाएगी जबतक ये घर नहीं आ जाते, तीन दिन तक नेहा 24 घंटे इनके पास रहना चाहती थी| सब ने नेहा को प्यार से समझाया मगर नेहा अपनी जिद्द पर क़ायम रही| इन्होने भी नेहा को प्यार से समझाया मगर कोई असर नहीं, दरअसल नेहा को डर था की कहीं मेरे कारण उसके पापा जी का गुस्सा फिर से न लौट आये जिससे उनकी तबियत खराब हो जाए| जब नेहा किसी के मनाने से नहीं मानी तो मेरे पिताजी को गुस्सा आ गया| मेरे पिताजी को जिद्दी बच्चे अच्छे नहीं लगते थे, पिताजी बस एक बार अपनी बात कहते थे और अगर न सुनो तो फिर बहुत डाँट पड़ती थी| आज जब पिताजी ने नेहा को डाँटा तो नेहा सहम गई और अपने पापा के गले लग अपना सर इनके सीने में छुपा लिया|

नेहा के स्कूल न जाने का कारन मैं जानती थी इसलिए मैं ही उसके बचाव में आ गई; "रहने दो पिताजी, मेरी बेटी बहुत होशियार है वो तीन दिन की पढ़ाई बर्बाद नहीं जाने देगी! है न नेहा?" मुझे अपना पक्ष लेता देख नेहा को हैरानी हुई और मेरे पूछे प्रश्न पर वो मेरी तरफ देखते हुए सर हाँ में हिलाने लगी| अब मेरे पिताजी मेरे ऊपर पहले ही खफ़ा थे ऐसे में जब मैंने नेहा की गलत जिद्द पर उसकी तरफदारी की तो पिताजी के गुस्से का सामना मुझे करना पड़ा; "तू बहुत तरफदारी करत हो नेहा की? सर चढ़ाये लिहो है! मानु तनिक बीमार का पड़िस तू दोनों माँ-बेटी आपन मन की करे लागयो!" अब जब मेरी क्लास लगी तो ये मेरे बचाव में आगे आये; "पिताजी........नेहा.....मेरी....लाड़ली है!" बस ये पाँच शब्द सुन पिताजी एकदम से ख़ामश हो गए और मुस्कुराने लगे! मैं आँखें फाड़े इन्हें देखने लगी की भला ये कैसा जादू चलाया इन्होने मेरे पिताजी पर की मेरी इतनी बड़ी दलील सुनने के बाद पिताजी को संतुष्टि नहीं मिली मगर इनके कहे पाँच शब्द सुन पिताजी एकदम से खामोश हो गए?! दरअसल ये इनका मेरे पिताजी पर प्रभाव था जो मेरे पिताजी इनका इतना मान करते थे!



खैर, अगले तीन दिन तक हम दोनों को बात करने का ज़रा सा भी समय नहीं मिला| इनके होश में आने के बाद से ही सभी के भीतर इनको ले कर बहुत सारा प्यार उमड़ आया था| इस वजह से कोई हम दोनों मियाँ-बीवी को अकेला छोड़ता ही नहीं था| दिन भर सभी कमरे में रहते थे और रात में मेरे साथ कभी सासु माँ, कभी बड़की अम्मा तो कभी मेरी माँ रहने लगीं थीं| धीरे-धीरे दिनभर सभी इनके नज़दीक बैठने लगे थे क्योंकि हर किसी को इनसे बात करनी थी, ये भी हर किसी से बात कर रहे थे सिवाए मेरे! जब इन्हें पता चला की अनिल बैंगलोर के लिए निकला है तो इन्होने फ़ौरन उसे फ़ोन करवा कर वापस बुलाया| अनिल सोलापुर पहुँचा था जब पिताजी ने उसे फ़ोन कर के इनके होश में आने की खबर दी और वापस बुलाया| अनिल उसी स्टेशन पर उतरा और अगली गाडी पकड़ कर दूसरे दिन दिल्ली पहुँचा| कमरे में आते ही वो इनके पाँव छू कर इनके गले लग गया| इनके चेहरे पर मुस्कान देख अनिल के दिल को चैन मिला, वहीं इन्होने अनिल को सारा काम संभालने और भागदौड़ करने के लिए धन्यवाद दिया|

होश में आने के बाद, सभी को अपने पास देख इनका मन सभी से बात करने का था| कभी पिताजी से खेती-बाड़ी के बारे में बात करने लगते तो कभी ससुर जी से काम की अपडेट लेने लगते| ससुर जी इन्हें कोई चिंता नहीं देना चाहते थे इसीलिए वो कामकाज की बातें गोलमोल करते थे और अनिल के ऊपर सब छोड़ देते थे| वहीं मेरी माँ के साथ तो इनकी गजब की जोड़ी बन गई थी, माँ को इन्होने experimental cooking का शौक चढ़ा दिया था तो इन्होने माँ से उसी को ले कर बातें करनी शुरू कर दी| जब मैं दोनों सास-दामाद को यूँ जुगलबंदी करते देखती तो मुझे बहुत हँसी आती थी| वहीं मेरी सासु माँ इनके आराम करने को ले कर पीछे पड़ जाती थीं मगर ये हैं की उनसे CID के बारे में पूछ कर व्यस्त कर लेते थे|

उधर आयुष, वो स्कूल से आते ही इनके पास चिपक कर बैठ जाता और बीच-बीच में दोनों बाप-बेटे खुसर-फुसर करने लगते| जानती तो मैं थी ही की दोनों बाप-बेटे क्या बात करते हैं और ये देख कर मुझे बहुत हँसी आती| वहीं दिषु भैया जब इनके होश में आने के बाद मिलने आये तो वो रो पड़े, इन्होने उन्हें प्यार से सँभाला और उनकी पीठ थपथपा कर चुप कराया| "साले, दुबारा ऐसे बीमार पड़ा न तो बहुत मारूँगा!" दिषु भैया इन्हें प्यार से हड़काते हुए बोले और ये दिषु भैया को देख हँसने लगे!

बड़की अम्मा के साथ ये और हम सब एक ही बात करते थे की जल्दी से बड़के दादा का गुस्सा ठंडा हो जाए ताकि दोनों परिवार फिर से एक हो जाएँ| लेकिन बात सुधरने की बजाए बिगड़ती जा रही थी, जिस दिन इन्हें होश आया उसी दिन बड़के दादा ने फ़ोन किया| बड़की अम्मा ने उन्हें फ़ोन पर खूब झाड़ा की उन्होंने उनके बेटे (ये) से इस कदर दुश्मनी निकाली| माँ-पिताजी और इन्होने मिलकर बड़की अम्मा को खूब समझाया की वो गाँव वापस चली जाएँ ताकि उनके और बड़के दादा के रिश्ते न बिगड़ें मगर बड़की अम्मा नहीं मानी| माँ-पिताजी को प्यार से डाँट कर और इनको प्यार से बहला कर वो बात बदल दिया करतीं थीं| वो कहतीं की मैं मानु को घर ले जा कर ही गाँव लौटूँगी!

इधर नेहा सारा दिन अस्पताल रूकती थी बस वो नहाने-धोने सुबह घर जाती और थोड़ी देर बाद वापस आ जाती| जब वो देखती की उसके पापा बहुत ज्यादा बात कर रहे हैं तो नेहा किसी डॉक्टर की तरह अपने पापा को आराम करने को कहती| ये नेहा की बात ऐसे मानते थे जैसे कोई छोटा बच्चा अपनी माँ की बात मानता हो, इनके लेटते ही नेहा इनके सिरहाने बैठ जाती और इनके बालों में हाथ फेरने लगती|

सबको इनसे बात करने का समय मिल रहा था सिवाए मेरे, जब नेहा सुबह नहाने घर जाती थी तब मैं इनके सिरहाने बैठ जाती और ये चुपके से मेरा हाथ थाम लेते मगर हमारी बात कमरे में किसी न किसी के मौजूद होने के कारण नहीं हो पाती! हम तो बस एक दूसरे को देख कर ठंडी आह भर कर रह जाते! इनका तो फिर भी ठीक था की इनसे बात करने को इतने सारे लोग थे मगर मेरे पास तो सिर्फ बात करने के लिए सासु माँ-ससुर जी और ये ही थे| उस पर जब ये होश में आये थे तो सॉरी शब्द बुदबुदा रहे थे और मुझे इनसे उस शब्द को बोलने को ले कर सवाल पूछना था, इसी सवाल ने मेरे भीतर बवंडर मचा रखा था! मैंने कई अटकलें लगाईं और सोचा की आखिर ये मुझे सॉरी क्यों बोल रहे हैं मगर कुछ फायदा नहीं हुआ!



दूसरे दिन की बात है, सुबह का समय था और कमरे में बस ये, मैं, सासु माँ और ससुर जी ही थे| मेरे माँ-पिताजी घर पर थे, नेहा नहाने के लिए घर गई हुई थी और मेरे पिताजी आयुष को स्कूल छोड़ने गए थे| बड़की अम्मा और अजय भैया दिल्ली में रह रहे गाँव के एक जानकार के घर मिलने गए हुए थे| तभी नर्स करुणा इनका चेकअप करने आई, जब से इन्हें होश आया था वो छुट्टी पर गई थी और आज ही वापस आई थी| मैं उस वक़्त इनके सामने एक कुर्सी कर के बैठी थी, तथा सासु माँ और ससुर जी सोफे पर बैठे थे| करुणा ने आ कर पहले सासु माँ और ससुर जी को नमस्ते कहा| उसके बाद जो हुआ वो देख कर मैं दंग रह गई! ये थोड़ा हैरानी से करुणा को देख रहे थे और इनकी ये हैरानी मुझे समझ नहीं आ रही थी! उधर करुणा मुस्कुराते हुए इन्हें देख रही थी, दो सेकंड बाद इनके चेहरे पर मुस्कान आ गई और दोनों ने मुस्कुराते हुए ही एक दूसरे को hi तथा hello कहा! "और कैसे हो?" करुणा ने मुस्कुराते हुए पुछा| ये अलफ़ाज़ सुन मैं आँखें बड़ी कर के उसे देखने लगी मगर तभी मुझे झटका लगा जब ये मुस्कुराते हुए '3 सेकंड का विराम' लेते हुए बोले; "मैं.........ठीक हूँ!" और फिर दोनों ने हँसते हुए बात शुरू की लेकिन सारी बात बस इनके बीमार होने से जुडी थी| ये दृश्य देख मुझे अजीब सा लगा, उस वक़्त मैं इस एहसास को समझ न पाई की ये एहसास और कुछ नहीं 'जलन' है! हाँ इतना ज़रूर था की थोड़ा बहुत गुस्सा मुझे भी आ रहा था मगर मैंने अपने ज़ज़्बात छुपा रखे थे!

अचानक मेरी नजर मेरे ससुर जी पर पड़ी तो मैंने पाया की वो इन्हें करुणा से हँस-हँस कर बात करते देख घूर रहे हैं! पिताजी ने शुरू से ही इनकी लगाम लड़कियों के मामले में खींच कर रखी है, जब ये आज मेरे ही सामने करुणा से इतना हँस कर बात कर रहे थे तो ससुर जी को गुस्सा आना जायज़ था| जैसे ही करुणा इनका चेकअप कर के गई ससुर जी ने इन्हें एकदम से थोड़ा गुस्से में टोका; "क्यों रे, बहु सामने बैठी है फिर भी तू उस नर्स से बड़ा हँस-हँस कर बात कर रहा था?" ससुर जी के टोकने से मुझे लगा था की ये नाराज होंगें या रूठ जायेंगे मगर ये तो हँसने लगे! इन्हें हँसता देख मुझे बड़ा अचरज हुआ और तभी सासु माँ ने बीच में बोल कर सारी उलझन सुलझाई; "अजी, ये नर्स कोई और नहीं करुणा है! उसी ने तो मेरी देखभाल की थी!" जब माँ ने ये कहा तब मुझे बात समझ आई की माँ करुणा को जानती थीं| दरअसल कुछ साल पहले जब ससुर जी गाँव आये हुए थे तब माँ के बीमार पड़ने पर करुणा ने ही माँ की देखभाल की थी और उन्हीं दिनों इनकी दोस्ती करुणा से हो गई थी| "फिर उस दिन जब आपने पूजा रखवाई थी तब करुणा और उसकी बहन आये थे और हमसे मिले भी थे|" माँ ने पिताजी को और एक बात याद दिलाई| पिताजी याद करने लगे और तब उन्हें करुणा याद आई और उनके चेहरे पर भी थोड़ी मुस्कान आ गई| "तभी मैं कहूँ की जब से मानु एडमिट हुआ है ये लड़की हमें नमस्ते क्यों कह रही है?!" पिताजी अपना माथा पीटते हुए मुस्कुरा कर बोले| इधर मैं ये सब बातें सुन कर हैरान थी की भला मुझे ये सब बातें क्यों नहीं पता? ये सब बातें जान कर मुझे जलन महसूस होने लगी थी, वैसे देखा जाए तो मुझे जलन करने की कोई ज़रुरत नहीं थी क्योंकि मेरे पति इतना सीधे हैं की आजतक मेरे अलावा ये कभी किसी दूसरी लड़की के चक्कर में नहीं पड़े! लेकिन औरत ज़ात हूँ जलन कैसे न करूँ?! बहरहाल, फिलहाल के लिए तो मैं ये बात हज़म कर गई क्योंकि मेरी चिंता इन्हें बस घर ले कर जाने की थी! शाम को अनिल साइट से लौटा और इनके पाँव छू कर इनके पास बैठ गया, इन्होने अनिल से सारी अपडेट ली तथा अपनी तरफ से कुछ बातें बताने लगे|



अब मेरे सब्र की इंतेहा होने लगी थी, मेरा मन इनके मुँह से अपने लिए 'जान' सुनने को तरस रहा था! मैं इनके सामने बड़ी आस ले कर बैठती थी की ये कम से कम मुझे 'जान' कहें मगर इनकी ये मजबूरी की सब परिवार वालों के सामने ये मुझे जान कहें कैसे?! मरते क्या न करते, मैं इंतज़ार करने लगी की कब इन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज मिले और हम घर पहुँचे|

अगले दिन इन्हें डिस्चार्ज मिला और डिस्चार्ज से पहले डॉक्टर रूचि तथा सरिता जी ने सभी परिवार जनों को इनको ले कर हिदायतें दी| उनका कहना था की हमें घर का माहौल खुशनुमा बनाये रखना है तथा इन्हें किसी भी तरह के मानसिक आघात और तनाव से बचा कर रखना है| खाने की जिम्मेदारी मुझे दी गई की खाने में फिलहाल हल्का देना है, जिससे इनको कोई अपच न हो| दवाइयों की जिम्मेदारी मुझे और नेहा को दी गई, जिसे नेहा ने बाकायदा एक कागज़ पर फिर से लिख लिया|



शाम 7 बजे हम इन्हें ले कर घर लौटे, माँ ने आरती उतार कर इन्हें घर में आने दिया और फिर सब ने खड़े हो कर भगवान को धन्यवाद दिया| इनका शरीर बहुत कमजोर हो चूका था और इनसे ज्यादा खड़ा रहना मुश्किल हो रहा था इसलिए हम सब हमारे कमरे में आ गए| दिवार से टेक लगाए ये बैठ गए और आस-पडोसी सभी इनसे मिलने आने लगे, मेरे पास तो चैन से बैठ कर इनसे बात करने का समय ही नहीं मिला| रात को सब ने खाना खाया, बाकी सब तो बाहर बैठक में बैठे थे बस ये और बच्चे कमरे में बैठे थे| इनके खाने के लिए मैंने खिचड़ी बनाई थी और खिचड़ी खिलाने का काम दोनों बच्चों ने किया| दोनों बच्चों ने एक-एक कर चम्मच से इन्हें पूरी खिचड़ी खिलाई, अस्पताल में इन्हें खिलाने का मौका मुझे मिलता था मगर घर में मुझसे ये काम बच्चों ने छीन लिया था| खान खा कर सब सोने के लिए चले गए| मेरे माँ-पिताजी बच्चों के कमरे में सोये और आयुष उन्हें के साथ सोने वाला था| नेहा अपने वादे अनुसार अपने दादा-दादी जी के साथ सोने वाली थी| बड़की अम्मा और अजय भैया जगह की कमी होने के कारण किसी रिश्तेदार के पास रात रुक गए तथा अनिल बैठक में सोफे पर सो गया|

घडी में बजे थे दस और नेहा ने इन्हें दवाई दे कर सुला दिया था| रसोई समेट कर जब मैंने कमरे की लाइट जलाई तो देखा ये अभी भी जाग रहे हैं| इस वक़्त हमें बात करने से रोकने वाला कोई नहीं था मगर मैं इनसे कुछ कहती उससे पहले ही ये बोल पड़े; "सॉरी!' इतने दिनों बाद आज मुझे इनके मुँह से सबसे पहले अपने लिए 'जान' शब्द सुनना था ना की 'सॉरी'! इनक सॉरी सुनते ही मन में जो सवाल था की होश में आते समय ये सॉरी क्यों बड़बड़ा रहे थे, वो एकदम से बाहर आ गया; "जानू जब से आपको होश आया है तब से आप मुझे सॉरी क्यों बोले जा रहे हो? क्यों? गलती तो..."मैं आगे कुछ कहती उससे पहले ही ये बोल पड़े; "जान, सॉरी इसलिए बोल रहा हूँ की उस दिन उस कमीने बद्ज़ात की जान नहीं ले पाया! सॉरी इसलिए बोल रहा हूँ की तुम्हारी वो दर्दभरी लेखनी पढ़ कर तुम्हारे दिल के दर्द को महसूस तो किया मगर तुम्हें उस दर्द से बाहर न निकाल पाया! सॉरी इसलिए बोल रहा हूँ की इतने दिन बेहोश पड़ा रह कर तुमसे बात न कर के तुम्हें इतना तड़पाया और वो भी तब जब तुम माँ बनने वाली हो जबकि इस समय तो मुझे तुम्हें सबसे ज्यादा प्यार करना चाहिए था! सॉरी इसलिए..." ये आगे कुछ बोलते उससे पहले ही मैंने इनकी बात काट दी; "लेकिन आपकी कोई गलती नहीं थी! आप तो मुझे हँसाने-बुलाने के लिए जी तोड़ कोशिश किये जा रहे थे और मैं बुद्धू आप ही से अपना ग़म छुपाने में लगी थी! उस इंसान से अपना दर्द छुपा रही थी जो बिना मेरे बोले मेरे दिल का दर्द भाँप जाता है! सारी गलती मेरी थी, न मैं आप पर इस बच्चे के लिए दबाव डालती और न..." इससे आगे मैं कुछ बोलती उससे पहले ही ये मुझ पर गुस्से से बरस पड़े; "For god’s sake stop blaming yourself for everything!” इनका गुस्सा जायज़ था, मैंने जब हमारे बच्चे को एक ‘दबाव’ का नाम दिया तो इनका मुझ पर चिल्लाना जाहिर था!

खैर, इनका ये गुस्सा देख मैं दहल गई थी! मुझे डर लग रहा था की कहीं मेरे कारण आये गुस्से से इनकी तबियत फिर न खराब हो जाए| इतने में नेहा दरवाज़ा खोलते हुए मुझ पर बरस पड़ी; "मम्मी, फिर से?" नेहा गुस्से और नफ़रत से मुझे घूर रही थी! फिर उसने अपने पापा को देखा और इनके चेहरे पर गुस्सा देख नेहा डर गई, उसे लगा की कहीं उसके पापा फिर से न बीमार हो जाएँ इसलिए वो दौड़ती हुई इनके पास आई तथा इनके सीने से लिपट कर रोने लगी! अपनी बेटी को यूँ रोते हुए देख इनका दिल पसीज गया और मेरे ऊपर आया गुस्सा अब नेहा पर प्यार बन कर बरसने लगा| इन्होने ने नेहा को अपनी बाहों में भरे हुए लाड करना शुरू किया, उसके सर को बार-बार चूम कर उसे चुप कराया और अंत में दोनों बाप-बेटी लेट गए| मैंने लाइट बुझाई और मैं भी इनकी बगल में लेट गई, नेहा हम दोनों के बीच में थी और इनकी तरफ करवट कर के इनसे लिपटी हुई थी| मैंने भी इनकी तरफ करवट ली और अपना हाथ नेहा की कमर पर रख दिया| नेहा ने एकदम से मेरा हाथ दूर झटक दिया और फिर से अपने पापा से लिपट गई| उसके यूँ मेरा हाथ झटकने से मुझे दुःख तो बहुत हुआ मगर मैं फिर भी चुप रही क्योंकि मुझे इस वक़्त एक इत्मीनान था की मेरे पति घर आ चुके हैं और एक उम्मीद थी की ये जल्दी से ठीक हो जाएंगे, इसी उम्मीद के साथ मेरी कब आँख लगी और कब सुबह हुई पता ही नहीं चला|



सुबह के पाँच बजे थे और पूरे घर में ये ही सबसे पहले उठे थे| दिवार से टेक लगा कर बैठे हुए, नेहा का सर अपनी गोदी में रखे और मेरे सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए ये मुस्कुराये जा रहे थे| इनके सर पर हाथ फेरने से मेरी नींद खुली, वो सुखद एहसास ऐसा था की इससे बेहतर सुबह की मैं कल्पना नहीं कर सकती थी| मैं उठने लगी तो इन्होने मुझे समय का वास्ता दे कर सोते रहने को कहा, उधर मेरा मन इन्हें आज कई दिनों बाद सुबह की गुड मॉर्निंग वाली kissi देने का था मगर तभी मेरी 'माँ' नेहा जाग गई क्योंकि उसके स्कूल जाने का समय होने वाला था| नेहा अपनी पढ़ाई को ले कर पहले ही संजीदा थी उस पर जब ये बीमार पड़े तो उसने सुबह जल्दी उठने की आदत बना ली थी|

अपनी लाड़ली को जागा हुआ देख इनका ध्यान मुझ पर से हट कर नेहा पर चला गया| "गुड मॉर्निंग मेरा बच्चा!" इन्होने नेहा के माथे को चूमते हुए कहा, जवाब में नेहा ने इनके दोनों गालों पर अपनी सुबह की गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दी तथा इनसे कस कर लिपट गई| अपने वादे अनुसार नेहा को आज स्कूल जाना था इसलिए जब इन्होने नेहा के स्कूल के जाने को ले कर बात शुरू की तो नेहा न-नुकुर करने लगी| मैं जानती थी की नेहा क्यों स्कूल नहीं जा रही, उसे डर था की उसकी गैरहाजरी में मैं कल रात की ही तरह कोई न कोई ऐसी गलती करूँगी जिससे इन्हें गुस्सा आएगा और इनकी तबियत फिर से खराब हो जाएगी| नेहा ये बात इनसे नहीं कह सकती थी क्योंकि वो जानती थी की उसके पापा उसकी मम्मी के खिलाफ ऐसा नहीं सोचते इसी डर से नेहा खामोश थी|



लेकिन इनका भी एक अलग अंदाज है जिसके आगे किसी की नहीं चलती! इन्होने नेहा को लाड-प्यार करते हुए उसे कहा; "मेरा बच्चा अगर स्कूल नहीं जाएगा तो बड़ा कैसे होगा? डॉक्टर, इंजीनियर कैसे बनेगा? मेरा प्यारा-प्यारा बच्चा है न, तो पापा की बात मानेगा न?" ये सब सुन नेहा का दिल पिघल गया और वो स्कूल जाने के लिए राज़ी हो गई मगर उसने स्कूल जाने से पहले एक शर्त रखी; "आप मुझे वादा कीजिये की आप समय से खाना खाओगे, समय पर दवाई लोगे, सिर्फ आराम करोगे..." इतना कह नेहा गुस्से से मेरी ओर देखने लगी और अपनी बात पूरी की; "...और चाहे कोई भी आपको कितना भी गुस्सा दिलाये, आपको 'provoke' करे आप बिलकुल गुस्सा नहीं करोगे!" नेहा ने जिस तरह इन्हें हिदायतें दी थीं उसे सुन कर एक पल को इनके चेहरे पर मुस्कान आ गई और उन्हें मुस्कुराते देख मैं भी मुस्कुराने लगी! "मेरी मम्मी जी, आप बस स्कूल जा रहे हो दूसरे continent नहीं जा रहे जो इतनी सारी हिदायतें मुझे दे रहे हो! यहाँ घर पर इतने सारे लोग हैं, आपकी मम्मी हैं, आपके दादा-दादी जी हैं, आपके नाना-नानी जी हैं, आपके अनिल मामा जी हैं और अजय चाचा हैं तो फिर आपको किस बात की चिंता? और कौन हैं यहाँ जो मुझे provoke करे या गुस्सा दिलाये?" इनके पूछे अंतिम सवाल का जवाब देने के लिए नेहा ने मुँह खोला ही था की मैंने इस विषय पर बाप-बेटी की बात शुरू होने से पहले ही बदल दी क्योंकि मैं जानती थी की नेहा का मुझ पर गुस्सा देख ये नाराज़ होंगें और नेहा को डाँट देंगे! "नेहा बेटा, जल्दी से तैयार हो जाओ वरना स्कूल के लिए लेट हो जाओगे!" अब ये कोई बुद्धू तो थे नहीं जो मेरी होशियारी न पकड़ पाएँ, इन्होने घडी देखते हुए मुझे नजरों ही नजरों से उल्हाना दिया की; 'अभी बस साढ़े पाँच ही हुए हैं!' अब मैं क्या कहती मैं बस शैतानी मुस्कान हँस कर इन्हें भी हँसा दिया!

नेहा उठ कर तैयार होने लगी और थोड़ी देर बाद आयुष आ कर इनकी गोदी में सो गया| उसे भी बड़ी मुश्किल से इन्होने लाड-प्यार करते हुए स्कूल जाने के लिए मनाया| आयुष तैयार हो रहा था जबकि नेहा तैयार हो कर इनके पास बैठ गई थी| तभी सासु माँ इनका हाल-चाल पूछने आईं और नेहा से प्यार से शिकायत करते हुए बोलीं; "नेहा, बेटा तू तो अपने पापा को गुड नाइट वाली पप्पी देने आई थी फिर यहीं सो गई? ये सुन नेहा शर्माने लगी और इनसे लिपट गई! नेहा को शरमाते देख हम तीनों हँस पड़े, तभी आयुष तैयार हो कर आ गया और नेहा ने अपनी दादी जी की ड्यूटी लगाते हुए कहा; "दादी जी, जब तक मैं स्कूल से न आऊँ, तबतक आप पापा जी के पास रहना| उन्हें नाश्ता और दवाई आप दोगे और आराम करने को बोलते रहना|" नेहा की बात सुन माँ हँस पड़ीं और बोलीं; "बेटा ड्यूटी तो तूने मेरी लगा दी मगर मुझे इस ड्यूटी के बदले में क्या मिलेगा?" माँ ने हँसते हुए सवाल पुछा, नेहा जवाब दे उससे पहले ही आयुष बोल पड़ा; "दादी जी, मैं है न आपके लिए चॉकलेट लाऊँगा!" ये सुन कर तो माँ बड़ी जोर से हँसी और मैं आयुष की टाँग खींचते हुए बोली; "लेकिन ये चॉक्लेट तू खायेगा या फिर तेरी दादी जी?" ये सुनते ही आयुष ने फ़ट से अपना हाथ उठाया और उसके इस भोलेपन पर हम सभी हँस पड़े!



खैर बच्चे स्कूल के लिए निकले और जाते-जाते अपने पापा के दोनों गाल अपनी पप्पी से भीगा गए! बच्चों के जाते ही इन्होने हमारे कमरे में सभा का ऐलान कर दिया| बड़की अम्मा और अजय के आते ही सब लोग अपनी चाय का गिलास/कप थामे कमरे में इनको घेर कर बैठ गए| कमरे में हीटर चालु था जिससे कमरे में गर्माहट बनी हुई थी और कमरे का माहौल आरामदायक बना हुआ था| ये दिवार से टेक लगा कर बैठे थे तथा बाकी सभी इनके सामने या अगल-बगल कुर्सी पर बैठे हुए थे| देखने पर ऐसा लगता था मानो अमरीका के राष्ट्रपति अपनी कैबिनेट के लोगों को सम्बोधित करते हुए बजट की चर्चा कर रहे हों! इधर मैं थोड़ी जिज्ञासु थी ये जानने के लिए की भला इनको सभी से एक साथ क्या बात करनी है?!



"मुझे आप सभी से कुछ कहना है|" इतना कह इन्होने सब के आगे हाथ जोड़े और माफ़ी माँगते हुए बोले; "मैं आप सभी से हाथ जोड़ कर माफ़ी माँगता हूँ की मेरे कारण आप सभी को इतनी तकलीफ उठानी पड़ी|" इन्हें हाथ जोड़े हुए देख सभी लोग एक साथ बोलने लगे; 'बेटा, ये तू क्या कह रहा है?!' लेकिन इन्होने अपनी बात आगे जारी रखी; "दो बच्चों का बाप होने के बावजूद मुझे इस तरह की लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए थी!" इतना कह ये मेरी तरफ देखने लगे और बोले; "मैं जानता हूँ की मेरी इस हालत का दोषी संगीता ने खुद को ही माना होगा, क्योंकि ये संगीता की बहुत बुरी आदत है! मेरी हर गलती का जिम्मेदार संगीता खुद को मानती है और मेरे सारे ग़म और बेवकूफियाँ ये अपने सर लाद लेती है!” ये सुन मेरे पिताजी कहने वाले हुए थे की ये तो हर पत्नी का धर्म होता है की वो अपने पति के दुःख-दर्द बाटें मगर इन्होने पिताजी को कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया तथा अपनी बात जारी रखी; "मैं जानता हूँ की ये हर पत्नी की जिम्मेदारी होती है की वो अपने पति के दुःख बाटें मगर ये कहीं नहीं लिखा की पति दवाई न खाये और खुद अपनी तबियत खराब कर ले और पत्नी इसका ठीकरा अपने सर फोड़ ले!" इनकी ये बात सुन पिताजी कुछ नहीं बोल पाए और अब जा कर मुझे इनकी सारी बात समझ आने लगी, दरअसल जब से ये होश में आये थे इन्होने गौर किया की मेरे माँ-पिताजी और अनिल मुझसे ठीक से बात नहीं कर रहे थे इसलिए मेरी इज़्ज़त सब के सामने रखने के लिए ये मेरी तरफदारी करते हुए ये मेरा बचाव कर रहे थे|

"देखिये, जो हुआ उसमें संगीता की कोई गलती नहीं थी और मैं नहीं चाहता की आप मेरी गलतियों की सजा संगीता को दें और उससे नफरत करें या उससे नाराज़ रहे|” ये बात इन्होने मेरे माँ-पिताजी की ओर देखते हुए कही| “दरअसल उस हादसे के बारे में सोच-सोच कर मेरा खून खौलने लगा था, दिल में आग लगी हुई थी और गुस्से से मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था| अपने गुस्से की आग में खुद जलते हुए मैं पता नहीं क्या-क्या ऊल-जुलूल हरकतें कर रहा था| कभी दुबई जा कर बसने की तैयारी कर रहा था तो कभी संगीता को हँसने के लिए जबरदस्ती पीछे पड़ रहा था, खाना-पीना बंद कर दवाइयाँ बंद कर मैंने अपनी ये दुर्गति कर ली! ऐसा लगता था जैसे मेरे दिमाग ने सोचने समझने की ताक़त खो दी हो! इसलिए आज आप सभी से मैं आज हाथ जोड़ कर अपनी की इन बेवकूफियों की क्षमा माँगता हूँ|" इन्होने आज मेरा मान-सम्मान बचाने के लिए बड़ी आसानी से मेरी सारी गलतियों का बोझ अपने ऊपर ले लिया था| इनकी ये बातें सुन मेरे माँ-पिताजी और अनिल को लगा की मैंने शायद उनकी शिकायत इनसे की है तभी ये इस कदर मुझे बचाने के लिए इतनी सफाई दे रहे हैं मगर इन्होने आगे जो कहा उससे उनके मन में कोई संशय नहीं रहा; "पिताजी, संगीता ने मुझसे किसी की कोई शिकायत नहीं की है, मैं जानता हूँ की आप मुझे ज्यादा प्यार करते हो इसलिए संगीता को सबसे ज्यादा आपने ही डाँटा होगा|" इन्होने मुस्कुराते हुए मेरे पिताजी यानी अपने ससुर जी से कहा| इनकी बात सुन मेरे पिताजी संग सभी मुस्कुराने लगे! तभी इन्होने मुझे मेरे पिताजी के पाँव छूने को कहा, मैंने फ़ौरन अपने पिताजी के पाँव छू कर माफ़ी माँगी और उन्होंने मुझे माफ़ करते हुए कहा; "खुश रहो मुन्नी!" पिताजी की माफ़ी पा कर मुझे बहुत ख़ुशी हुई, फिर मैं अपनी माँ के पास पहुँची और उनके पाँव छुए तो माँ ने भी मुस्कुराते हुए मुझे माफ़ किया तथा आशीर्वाद दिया| बड़की अम्मा मेरी माँ के बगल में ही बैठीं थीं, जब मैं उनके पाँव छू कर आशीर्वाद लेने लगी तो इन्होने मुस्कुराते हुए बड़की अम्मा से कहा; "मुझे यक़ीन हैं की एक बस मेरी बड़की अम्मा हैं जिन्होंने संगीता को मेरे बीमार होने के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया होगा| हैं न अम्मा?" जिस यक़ीन से इन्होने अपनी बात कही थी उससे बड़की अम्मा के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और वो बोलीं; "मुन्ना (ये) तू तो जानत हो, हम अगर बहु का कछु कहित भी तो कउन हक़ से?" बड़की अम्मा अपने खून (चन्दर) के कारण लज्जित महसूस कर रहीं थीं और उन्हें लग रहा था की शायद उनका अब हमारे परिवार पर कोई हक़ नहीं रहा| "ये क्या कह रहे हो अम्मा, आप तो हमारी (मेरी और इनकी) बड़की अम्मा हो! आपका पूरा हक़ है हमें डाँटने का और चाहो तो मार भी लेना|" मैंने इनकी और अपनी ओर से दिल से बात कही| "नहीं बहु, हमार आपन खून का किया धरा है ई सब! हमका तो कछु भी कहे का कउनो हक़ नाहीं!" ये कहते हुए बड़की अम्मा भावुक हो गईं और रो पड़ीं| मैंने फ़ौरन आगे बढ़ कर अम्मा को अपने गले लगाया और उन्हें रोने से रोकते हुए बोली; "अम्मा, रोओ मत! आप रोओगे तो ये भी रो पड़ेंगे और डॉक्टर ने कहा है की इन्हें हमें खुश रखना है|" मैंने खुसफुसाते हुए अम्मा को बात समझाई| अम्मा ने फ़ौरन अपने आँसूँ पोछे और खुद को संभाल लिया जिससे ये इस बात को ले कर चिंतित नहीं हो पाए| मैं जानती थी की अम्मा की बात इन्हें कहीं न कहीं इन्हें लग चुकी है, परन्तु इन्होने खुद को इस बात पर सोचने से रोका तथा बात बनाते हुए माँ-पिताजी (मेरे सास-ससुर जी) से बोले; "और माँ-पिताजी, आपने तो संगीता को कुछ कहा नहीं होगा?!" ये जानते थे की माँ-पिताजी मुझसे इतना प्यार करते हैं की वो मुझे कभी कुछ नहीं कहेंगे इसलिए इन्होने ये सवाल माँ-पिताजी को उल्हना देते हुए पुछा था| "भई गलती तेरी तो हम भला अपनी बहु को क्यों कुछ कहेंगे? हमें तो पहले से पता था की ये सब किया-धरा तेरा है, हमारी बहु तो सीधी-साधी है और तेरे कर्मों की सजा ख़ुद को दे रही है|" सासु माँ इन्हें सुनाते हुए बोलीं| इधर मेरे पिताजी इनका पक्ष लेते हुए बोले; "अरे वाह समधन जी, ई सही कहेऊ! सब खोट हमार मुन्ना में ही हैं?!" पिताजी मेरी सासु माँ को उल्हाना देते हुए मज़ाकिया अंदाज में बोले जिस पर सभी ने हँसी का ठहाका लगाया!



नाश्ते का समय हो रहा था इसलिए सभी बाहर बैठक में बैठ गए, बस एक ये ही कमरे के भीतर रह गए थे क्योंकि बाहर का तापमान कम था और इन्हें सर्दी होने का खतरा था इसलिए ये अंदर कमरे में ही बैठे थे| तभी मेरे पिताजी आ कर इनकी बगल में बैठ गए और इनके कँधे पर हाथ रख कर मेरी ओर देखते हुए बोले; "मुन्नी, तू है नसीब वाली जउन तोहका मानु जइसन पति मिला, जो तोहार सारी गलतियाँ आपन सर ले लेथ है!" पिताजी मुस्कुराते हुए बोले| इतने में मेरी माँ भी आ कर वहीं खड़ी हो गईं, ये फिर मेरा बचाव करते हुए बोले; "पिताजी, ऐसा कुछ नहीं है| सारी गलती मेरी थी!" इन्होने अपनी बात फिर दोहराई, लेकिन इस समय पिताजी इनके साथ तर्क करते हुए बोले; "अच्छा मुन्ना एक बात बतावा, अइसन कौन पत्नी होवत है जउन आपन दुःख-दर्द आपन पति से कहे का डरात है?" पिताजी का ये तर्कपूर्ण सवाल सुन मुझे लगा की इनके पास कोई जवाब नहीं होगा मगर इन्होने बड़े तपाक से पिताजी के सवाल का जवाब मेरी माँ यानी अपनी सासु माँ की तरफ देखते हुए दिया; "वही पत्नी जो ये जानती हो की उसका दुःख-दर्द जान कर उसके पति की तबियत खराब हो जाएगी|" इनका ये जवाब माँ के लिए एक इशारा था की उन्होंने अनिल के हर्निया के ऑपरेशन की बात पिताजी से छुपा कर कोई पाप नहीं किया|

उधर इनका जवाब सुन पिताजी खामोश हो गए थे, वो अनिल के हर्निया के बारे में तो नहीं जान पाए थे मगर उन्हें इनकी बात अच्छी लगी ओर अंततः वो मुस्कुराने लगे| "मुन्ना, तोहसे बतिया करे म कउनो नाहीं जीत सकत, काहे से की तोहरे लगे हर सवाल का जवाब है|" इतना कह पिताजी ने इनके सर पर हाथ रख इन्हें आशीर्वाद दिया और माँ के साथ बाहर बैठक में आ कर बैठ गए| आजतक ऐसा नहीं हुआ की मेरे पिताजी किसी की बात सुन कर निरुत्तर हो गए हों या किसी ने उन्हें यूँ प्यार से चुप करा दिया हो, कम से कम मेरे सामने तो ऐसा नहीं हुआ! दरअसल ये इनका गहन प्रभाव था जो मेरे पिताजी को बहुत प्रभावित कर गया था| इनके इसी प्रभाव के कारण आज माँ और मेरी सासु माँ खुल कर अपनी बात सामने रख पा रहीं थीं!

इधर जिस तरह इन्होने पिताजी के सामने मेरा पक्ष लिया था और मेरी इज़्ज़त, मेरा मान मुझे वापस लौटाया था उससे मेरा दिल भर आया था| मन किया की इनके सीने से लग कर रो पडूँ लेकिन फिर मुझे रोता हुआ देख इनका दिल दुखता इसलिए मैंने खुद को सँभाल लिया| इतने में अनिल कमरे में आया और मुझसे बोला; "दी, नाश्ते के लिए आपको बाहर बुला रहे हैं|" इतना कह अनिल वापस बाहर चला गया| अनिल ने आज मुझे फिर दीदी की जगह 'दी' कह कर बुलाया था जो मेरे दिल को बहुत चुभा था मगर मैं फिर भी चुप रही और अपना दर्द इनसे छुपाने लगी| दरअसल इनकी दी गई मेरे बचाव में दलील सुन कर भी अनिल का मन मेरे प्रति नहीं पिघला था, उसके लिए मैं ही इनके बीमार होने की कसूर वार थी जो की सही भी था| इधर अनिल की बातों से इनको शक हो गया था, शायद ये मेरे दिल का दर्द भाँप चुके थे; "मैं देख रहा हूँ की अनिल तुम्हें दीदी की जगह 'दी' कहने लगा है, क्या ये आज कल कोई नया ट्रेंड है?" इन्होने थोड़ा चिंतित होते हुए पुछा| मुझे इनको चिंता करने से रोकना था इसलिए मैंने इनकी बात को मज़ाकिया मोड़ दे दिया; "हाँ जी, आज कल की नई पीढ़ी है शब्दों को छोटा करने में इन्हें बड़ा कूल लगता है| मैं तो शुक्र मनाती हूँ की इसने दीदी का सिर्फ 'दी' बनाया वरना मुझे तो लगा था की कहीं मुझे दीदी की जगह 'dude' न कहने लगे! ही...ही...ही!!!" मैंने नकली हँसी हँसते हुए कहा| लेकिन इन्हें मुझ पर शक हो चूका था की मैं ज़रूर कोई बात छुपा रही हूँ, लेकिन फिलहाल ये थोड़ा थक गए थे इसलिए मुझसे शिकायती अंदाज़ में बोले; "अच्छा जी? ज़माना इतना बदल चूका है? हम तो जैसे बूढ़े हो गए?!" मैंने अनिल को नई पीढ़ी का कह कर इन्हें बुजुर्ग होने का एहसास करा दिया था इसीलिए ये थोड़ा नाराज़ थे|



मैं नाश्ते बनाने बाहर आई और ये लेट कर आराम करने लगे| नाश्ता बना, मैंने सबको नाश्ता परोसा और हम दोनों मियाँ-बीवी का नाश्ता ले कर मैं अंदर आ गई| बाकी सब के लिए मैंने पोहा बनाया था मगर अपने और इनके लिए मैंने दलिया बनाया था, जो हमने एक अरसे बाद एक दूसरे को खिलाते हुए खाया| मैंने इन्हें कमरे के भीतर ही रोका हुआ था क्योंकि बाहर का कमरा ठंडा था और इनका साइनस इन्हें तंग करने लौट सकता था, यदि एक बार साइनस का अटैक शुरू हो जाता तो इनकी तबियत बहुत खराब हो जाती|

जारी रहेगा भाग - 2 में...
 

Rockstar_Rocky

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संगीता की original लेखनी:

नेहा और आयुष इनके पास बैठे थे और सारे लोग भी वहीँ बैठे थे... तो मुझे इनसे बात करने का समय नहीं मिल रहा था| इधर नहा जिद्द करने लगी की वो तीन दिन तक स्कूल नहीं जायेगी और अपने पापा के पास ही रहेगी| सबने उसे प्यार से समझाया अपर वो नहीं मान रही थी..... इन्होने भी कोशिश की पर नेहा जिद्द पर अड़ गई! पिताजी (नेहा के नाना जी) को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने उसे डाँट दिया| उनकी डाँट से वो सहम गई और अपने पापा के पास आके उनके गले लग गई और अपना मुँह उनके सीने में छुपा लिया| आखिर मुझे ही उसका पक्ष लेना पड़ा; "रहने दो ना पिताजी.... मेरी बेटी बहुत होशियार है! वो तीन दिन की पढ़ाई को बर्बाद नहीं जाने देगी! है ना नेहा?" तब जा कर नेहा ने मेरी तरफ देखा और हाँ में सर हिला के जवाब दिया| पर पिताजी के गुस्से का सामना मुझे करना पड़ा; "तू बहुत तरफदारी करने लगी है इसकी? सर पर चढ़ाती जा रही है इसे? मानु बेटा बीमार क्या पड़ा तुम दोनों ने अपनी मनमानी शुरू कर दी?" मेरी क्लास लगती देख इन्हें (मेरे पति) को भी बीच में आना पड़ा; "पिताजी........ ये मेरी लाड़ली है! " बस इतना सुन्ना था की पिताजी चुप हो गए और मैं भी हैरान उन्हें देखती रही की मेरी इतनी बड़ी दलील सुन्न के भी उन्हें संतोष नहीं मिला और इनके कहे सिर्फ पांच शब्द और पिताजी को तसल्ली हो गई? ऐसा प्रभाव था इनका पिताजी पर!



सबको इन पर बहुत प्यार आ रहा था... और ये सब देख के मुझे एक अजीब से सुख का आनंद मिल रहा था| अगले तीन दिन तक सब ने हमें एक पल का समय भी नहीं दिया की हम अकेले में कुछ बात कर सकें| अब तो रात को माँ (सासु माँ), मेरी माँ या बड़की अम्मा वहीँ रूकती| दिन में कभी पिताजी (ससुर जी) तो कभी मेरे पिताजी तो कभी अजय होता| अगले दिन तो अनिल भी आ गया था और उसेन आते ही इनके (मेरे पति के) पाँव छुए! हम दोनों (मैं और मेरे पति) अस एक दूसरे को देख के ही आहें भरते रहते थे... जब माँ (सासु माँ) होती तो मैं जा कर इनके सिराहने बैठ जाती और ये मेरा आठ पकड़ लेते और हम बिना कुछ बोले बस एक दूसरे की तरफ देखते रहते| जैसे मन ही मन एक दूसरे का हाल पूछ रहे हों! हम दोनों के मन ही मैं बहुत सी बातें थीं जो हम एक दूसरे से करना चाहते थे .... ओ मेरे मन में जो सबसे अदा सवाल था वो था की आखिर इन्होने मुझे "Sorry" क्यों बोला?



घर में ये सब से बात कर रहे थे .... जैसे सबसे बात करने के लिए इनके पास कोई न कोई topic हो! मेरे पिताजी (ससुर जी) से अपने काम के बारे में पूछते, माँ (सासु माँ) से उनके favorite serial C.I.D के बारे में पूछते, मेरे पिताजी से खेती-बाड़ी के बारे में पूछते, और मेरी माँ..... उन्हें तो इन्होने एक नै hobby की आदत डाल दी थी! वो थी "experimental cooking" ही..ही...ही... आय दिन माँ कुछ न कुछ अलग बनती रहती थी....!!! बड़की अम्मा और अजय से सबका हाल-चाल लेते रहते थे..... पर मुझसे ये सिर्फ और सिर्फ इशारों में ही बात करते थे|



अगले दिन की बात है नर्स करुणा इन्हें चेक करे आईं थी तब उन्हें देख कर इनके मुख पर मुस्कान फ़ैल गई| दोनों ने बड़े अच्छे से "Hi" "Hello" की..... हाँ जब ये हंस कर उनसे बात करते तो मुझे बड़ा अजीब सा लगता था| अचानक मेरी नजर पिताजी (मेरे ससुर जी) पर पड़ी तो देखा वो इन्हें घूर के देख रहे थे| थोड़ा बहुत गुस्सा और जलन तो मुझे भी हो रही थी.... पर मैंने अपने भावों को किसी तरह छुपा लिया था| उस समय वहां केवल माँ (सासु माँ) और पिताजी (ससुर जी) थे, नर्स के जाने के बाद पिताजी ने इन्हें टोका| "तू बड़ा हँस-हँस के बात कर रहा था? बहु सामने है फिर भी?" उन्होंने गुस्सा नहीं किया था बस टोका भर था!

ये सुन कर इन्हें (मेरे पति को) हंसी आ गई! और तब माँ इनके बचाव में आ गेन और उन्होंने सारी confusion दूर की! माँ नर्स करुणा को जानती थीं .... और मैंने कभी ध्यान नहं दिया पर जब भी नर्स माँ के सामने आती तो माँ उनसे बात करती| उस वक़्त मेरा ध्यान तो केवल इन पर था इसलिए मैंने कभी ध्यान नहीं दिया| दरअसल करुणा इन्हीं की दोस्त थी! कुछ साल पहले पिताजी को कुछ काम से गाँव जाना पड़ा था| उन दिनों माँ की तबियत ठीक न होने के कारन नर्स करुणा ने माँ की देखभाल की थी| पिताजी को ये बात पता नहीं थी क्योंकि लड़कियों के मामले में पिताजी ने इन पर (मेरे पति पर) हमेशा से लगाम राखी थी| उन्हें ये सब जरा भी पसंद नहीं था और वैसे में मेरे पति इतने सीधे थे की आजतक मेरे आलावा कभी किसी लड़की के चक्कर में पड़े ही नहीं| वैसे ये सब उस समय तो मैं हजम कर गई थी..... क्योंकि मेरी चिंता बस इन्हें घर ले जाने की थी! शाम तक अनिल site से आ गया था और आते ही उसने इनके पाँव छुए और फिर ये दोनों भी बातों में लग गए|



इधर इनकी आवाज सुनने के लिए मैं मरी जा रही थी| बस इनके मुंह से "जान" ही तो सुन्ना चाहती थी! खेर discharge होने से पहले डॉक्टर इ सभी को हिदायत दी की इन्हें कोई भी mental shock नही दिया जाए| घर में ख़ुशी का माहोल हो और कोई भी टेंशन ना दी जाए| दवाइयों के बारे में मुझे और नेहा को सब कुछ समझा दिया गया था| शाम को सात बजे हम सब घर पहुंचे| घर पहुँच के माँ ने इनकी आरती उतारी और सब ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की| इनका शरीर अब भी कमजोर था तो मैं इन्हें अपने कमरे में ले आई और ये bedpost का सहारा ले कर बैठ गए| सब ने इन्हें घेर लिया और आस पड़ोस के लोग भी मिलने आये| मेरे पास टी चैन से बैठ कर इनके पास बातें करने का जरा भी मौका नहीं था| रात को खाना खाने के बाद सब अपने कमरे में चले गए| मेरे माँ-पिताजी आयुष और नेहा के कमरे में सोये थे और आयुष उन्ही के पास सोने वाला था| सोने में इन्हें कोई तकलीफ ना हो इसलिए नेहा आज माँ-पिताजी (सास-ससुर जी) के पास सोई थी| बड़की अम्मा और जय घर नहीं ठहरे थे वो हमारे किसी रिश्तेदार के यहाँ सोये थे| कारन ये था की दरअसल वो इसी बहाने से यहाँ आये थे की किसी रिश्तेदार से मिलने जा रहे हैं|

सब को अपने कमरे में जाते-जाते रात के दस बज गए थे| जब मैं कमरे में आई और मैंने लाइट जलाई तो देखा ये अभी भी जाग रहे थे| मेरे कुछ कहने से पहले ही ये बोल पड़े; "Sorry !!!" इनका Sorry सुन कर मन में जो सवाल था वो बाहर आ ही गया; "जब से आप को होश आया है तब से कई बार आप दबे होठों से मुझे Sorry बोल रहे हो? आखिर क्यों? गलती....." मेरे आगे कुछ बोलने से पहले ही ये बोल पड़े; "जान....Sorry इसलिए बोल रहा हूँ की उस दिन मैं उस कमीने बदजात की जान नहीं ले पाया! Sorry इसलिए बोल रहा हूँ की तुम्हारी वो दर्द भरी लेखनी पढ़ कर तुम्हारे दर्द को महसूस तो किया पर उस दर्द को कम करने के लिए कुछ नहीं कर पाया! Sorry इसलिए बोल रहा हूँ की इतने दिन तुमसे कोई बात नहीं की और तुम्हें तड़पाता रहा, वो भी ये जानते हुए की तुम माँ बनने वाली हो! Sorry इसलिए ............." उनके आगे बोलने से पहले मैंने उनकी बात काट दी! "पर आप की कोई गलती नहीं थी.... आप तो जी तोड़ कोशिश कर रहे थे की मैं हँसूँ-बोलूं पर एक मैं थी जो आपसे ....आपसे अपना दर्द छुपा रही थी| उनसे जो बिना किसी के बोले उसके दिल के दर्द को भांप जाते हैं..... आपने कुछ भी गलत नहीं किया| सब मेरी गलती है..... ना मैं आपको इस बच्चे के लिए force करती और ना..........” इतना सुन कर ही इन्हें बहुत गुस्सा आया और ये बड़े जोर से मुझ पर चिल्लाये; "For God sake stop blaming yourself for everything!” उनका गुस्सा देख कर तो मैं दहल गई और मुझे डर लगने लगा की कहीं इनकी तबियत फिर ख़राब न हो जाए! तभी नेहा जो की दरवाजे के पास कड़ी थी बोल पड़ी; "मम्मी....फिर से?" बस इतना कह कर वो अपने पापा के पास आई और उनसे लिपट गई और रोने लगी| इन्होने बहुत प्यार से उसे चुप कराया और फिर दोनों बाप-बेटी लेट गए| मैंने दरवाजा बंद किया, बत्ती बुझाई और मैं भी आ कर लेट गई| मैंने भी नेहा की कमर पर हाथ रखा पर कुछ देर बाद उसने मेरा हाथ हटा दिया....दुःख हुआ... पर चुप रही बस एक इत्मीनान था की कम से कम ये घर आ चुके हैं .... एक उम्मीद थी की ये अब जल्द से जल्द ठीक हो जायेंगे! इसी उम्मीद के साथ कब आँखें बंद हुई पता ही नहीं चला!



सुबह पाँच बजे मेरी आँख खुली तो महसूस किया की ये (मेरे पति) Bedpost का सहारा ले कर बैठे हैं, नेहा का सर इनकी गोद में है और ये मेरे सर पर हाथ फेर रहे थे| क्या सुखद एहसास था वो मेरे लिए..... मैं उठी तो इन्होने मुझे लेटे रहने के लिए बोला पर मैं नहीं मानी| मेरा मन किया की आज इन्हें सुबह वाली Good Morning Kiss दूँ पर मेरी 'माँ' नेहा जो वहाँ थी, वो भी एकदम से उठ गई, आखिर उसके स्कूल जाने का टाइम जो हो रहा था|

“Good Morning बेटा!" इन्होने उसके माथे को चूमते हुए कहा| जवाब में नेहा ने इनके गाल को चूमते हुए Good Morning कहा! पर जब इन्होने नेहा को तैयार होने के लिए कहा तो वो ना नुकुर करने लगी| मैं उसकी इस न-नुकुर का कारन जानती थी .... दरअसल उसे मुझपर भरोसा नहीं था| उसे लग रहा था की मैं कुछ न कुछ ऐसा करुँगी की इनकी तबियत फिर से ख़राब हो जाएगी|

पर इनका भी अपना स्टाइल है! जिसके आगे बच्चों और मेरी कतई नही चलती! इन्होने बहुत लाड-दुलार के बाद नेहा को स्कूल जाने के लिए मना लिया| पर उसने एक शर्त राखी; "Promise me पापा की आप किसी को गुस्सा नही करोगे फिर चाहे कोई आप को कितना भी provoke करे (ये उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा|), आप टाइम से खाना खाओगे और टाइम से दवाई लोगे और हाँ proper rest करोगे|" ये सब सुनने के बाद मेरे और इनके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई और इन्होने हँसते हुए जवाब दिया; "मेरी माँ! आप बस स्कूल जा रहे हो.... दूसरे continent नही जो इतनी साड़ी हिदायतें देकर जा रहे हो| और फिर यहाँ आपकी मम्मी हैं .... आपके दादा-दादी हैं...नाना-नानी हैं ... सब तो हैं यहाँ फिर आपको किस बात की चिंता? यहन कौन है जो मझे PROVOKE करेगा?" अब मुझे किसी भी हालत पर ये टॉपिक शुरू होने से बचाना था वरना मुझे पता था की नेहा की डाँट जर्रूर पड़ेगी तो मैंने कहा; "नेहा बीटा.... जल्दी से तैयार हो जाओ ...लेट हो रहा है|" जबकि उस समय सिर्फ साढ़े पाँच ही बजे थे!| बच्चे तो तैयार हो कर स्कूल चले गए इधर इन्होने मुझे बुला कर 'सभा' का फरमान दिया| जब बड़की अम्मा और अजय आ गए तो सबजने अपनी-अपनी चाय का कप थामे हमारे कमरे में आ गए और सब घेर कर बैठ गए| कमरे में हीटर की गर्माहट ने माहोल आरामदायक बना दिया था| ऐसा लग रहा था जैसे President of America Parliament को Address कर रहे हों| सब बड़ी उत्सुकता से इन्हें देख रहे थे| मैं भी हैरान थी की आखिर इन्हें कौन सी बात करनी है|



(आगे इन्होने जो बोला उसका एक-एक शब्द मैं जैसा का तैसा लिख रही हूँ!)



"मुझे आप सभी से कुछ कहना है................ मैं आप सभी से हाथ जोड़ कर क्षमा चाहता हूँ की मेरे कारन आप सभी को ये तकलीफ उठानी पड़ी!"



ये सुन कर सभी एक साथ बोल पड़े; "नहीं...नहीं... बेटा....ये तू क्या बोला रहा है ....." पर इन्होने ने अपनी बात जारी रखी ......



"मैं जानता हूँ की मेरी इस हालत का जिम्मेदार इन्होने (मेरी तरफ इशारा करते हुए) खुद को ही ठहराया होगा! ये इनकी आदत है...मेरी हर गलती का जिमेदार ये खुद को मानती हैं और मेरे सारे गम अपने सर लाद लेती हैं| जानता हूँ की ये हर जीवन साथी का ये फ़र्ज़ पर मैं नहीं चाहता की मेरी वजह से आप संगीता से नफरत करें....और उसे मेरी गलतियों की सजा दें! उस हादसे के बारे में सोच-सोच कर मेरा खून खौल ने लगा था.... दिल में आग लगी हुई थी.... बहुत गुस्सा आ रहा था मुझे| अपनी गुस्से की आग में मैं खुद ही जल रहा था| पता नहीं क्या ऊल-जुलूल हरकतें कर रहा था .... कभी दुबै जाने के बारे में सोच रहा था तो कभी कुछ... ऐसा लगा जैसे दिमाग ने सोचने समझने की ताकत ही खो दी थी| दवाइयाँ खाना बंद कर दिया और अपनी ये हालत बना ली! इसलिए मैं आप सभी से हाथ जोड़ के माफ़ी माँगता हूँ| और पिताजी (मेरे पिताजी) इन्होने मुझसे आपकी या किसी की भी शिकायत नहीं की! मैं जानता हूँ की सबसे ज्यादा आप मुझे प्यार करते हो तो सबसे ज्यादा डाँटा भी आपने ही होगा!"

ये सुन कर पिताजी कुछ नहीं बोले बस मुस्कुरा दिए| तभी इन्होने (मेरे पति) मुझे उनके (मेरे पिताजी) के पाँव छूने को कहा| मैंने उनके पाँव छुए और उन्होंने मुझे माफ़ करते हुए कहा; "खुश रहो बेटी!" मैं ने आगे बढ़ कर माँ (अपनी माँ) के पाँव छुए तो उन्होंने भी मुझे प्यार से आशीर्वाद दिया| जब मैं बड़की अम्मा के पास पहुंची और उनके पाँव छूने लगी तब ये बोले; "अम्मा....मैं जानता हूँ आपने संगीता को कुछ नहीं बोला होगा है ना?" अम्मा ने मुस्कुराते हुए मुझे आशीर्वाद दिया और कहा; "बेटा तू तो जानता ही है सब....मैं इसे कुछ कहती भी तो किस हक़ से!"



"क्यों अम्मा... आप मेरी बड़ी माँ हो आपका पूरा हक़ बनता है की आप हमें डांटें चाहे तो मार भी लो!" मैंने कहा|



"नहीं बेटी..... मेरे अपने खून की गलतियों के आगे मैं कुछ नहीं कह सकती|" अम्मा कहते हुए रो पड़ी तो माइन आगे बढ़ के उन्हें संभाला और कान में खुस-फुसा के कहा; "आप अगर रोओगे तो ये भी रो पड़ेंगे|" अम्मा ने अपने आँसूं पोछे और खुद को संभाला| मैं जानती थी की अम्मा की बात इन्हें कहीं न कहीं लगी अवश्य होगी.... आर मुझे कैसे भी अभी सब कुछ सम्भालना था|



"और माँ-पिताजी..... आप ने तो संगीता को नहीं कोसा ना?" इन्होने पूछा|

इसपर माँ (सासु माँ) बोली; "भई गलती तेरी..... तो भला हम अपनी बेटी को क्यों कोसेंगे? मुझे पता था की ये तेरी ही करतूत है और इल्जाम हमारी बेटी अपने सर ले रही है|" इस पर मेरे पिताजी ने इनका पक्ष लेते हुए मुस्कुरा कर कहा; "समधन जी ये आपने सही कही! हमारे ही लड़के में खोट है?" ये सुन कर सब हँसने लगे.....!!!



नाश्ते का समय हुआ तो सब बाहर बैठक में आ रहे थे तभी मेरे पिताजी आकर इनके पास बैठ गए और इनके कंधे पर हाथ रख कर बोले; "संगीता....तू सच में बहुत नसीब वाली है की तुझे ऐसा पति मिला जो तेरी साड़ी गलतियां अपने सर ले लेता है!"



"पर पिताजी...ऐसा कुछ नहीं है...गलती मेरी ही थी!" इन्होने फिर से अपनी बात दोहराई और तब तक मेरी माँ भी वहीँ आ कर कड़ी हो गईं|



"बेटा मेरे एक सवाल का जवाब दे, ऐसी कौन सी पत्नी होती है जो अपना दुःख-दर्द अपने ही पति से छुपाये?" पिताजी का सवाल सुनकर मुझे पता था की इनके पास कोई जवाब नहीं होगा पर हुआ इसका ठीक उल्टा ही! इन्होने बड़े तपाक से जवाब दिया; "वही पत्नी जो ये जानती है की उसका दुःख-दर्द सुन उसके पति की तबियत ख़राब हो जायेगी!" और ये कहते हुए उन्होंने मेरी माँ की तरफ देखा जैसे कह रहे हों की माँ आपने पिताजी से अनिल के हर्निया की बात छुपा कर कोई पाप नही किया| इस बार इनका जवाब सुन पिताजी चुप हो गए... और मुस्कुरा दिए और बोले; "बेटा तुझसे बातों में कोई नही जीत सकता! तेरे पास हर बात का जवाब है|" इतना कह कर पिताजी ने इनको आशीर्वाद दिया और बाहर बैठक में आ गए| आजतक ऐसे नहीं हुआ...कम से कम मेरे सामने तो कतई नही हुआ की कोई पिताजी को इस तरह चुप करा दे| पर मैं जानती थी की इनका प्रभाव पिताजी पर बहुत ज्यादा है! शायद ये इन्हीं का प्रभाव था की अब दोनों घरों में औरतें यानी मेरी माँ और सासु माँ बोलने लगीं थी!



ये सब देख मेरा दिल भर आया था ... मन तो किया की इनके सीने से लग कर रो पडूँ पर किसी तरह खुद को संभाला| इतने में अनिल आ गया और बोला; "दी... वो नाश्ते के लिए आपको बाहर बुला रहे हैं|" इतना कह कर वो बाहर चला गया| उसने आज भी मुझे दीदी की जगह 'दी....' कह के बुलाया था| मुझे बुरा तो लगा था पर मैं चुप यही पर इन्हें कुह शक हो गया| इन्होने मुझसे पूछा; "जब से अनिल आया है....तब से ये 'दी...' कह रहा है? ये का आजकल का trend है?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा; "हाँ जी.... अब नई पीढ़ी है... शुक्र है दीदी का इसने 'दी...' कर दिया वरना मुझे तो लगा था की ये उसका कहीं 'DUDE' न बना दे...ही..ही..ही..ही.."



"अच्छा जी...ज़माना इतना बदल गया है? हम तो जैसे बूढ़े हो गए हैं!" इन्होने शिकायत की...शायद इन्हें शक हो गया था की मैं कुह बात छुपा रही हूँ| मैं बाहर आ कर नाश्ता बनाने में लग गई.... मैंने और इन्होने नाश्ता कमरे में ही किया क्योंकि वो कमरा काफी गर्म था और इनको exposure से खतरा था वरना जरा सी ठंडी हवा इन्हें लगी और हो गया इनका Sinus शुरू!
 

Ashurocket

एक औसत भारतीय गृहस्थ।
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सत्ताईसवाँ अध्याय: विपरीत - पति का प्यार और पत्नी की जलन!
भाग - 1
अब तक आपने पढ़ा:


एक परिवार जो लगभग 20 दिन से मेरे कारण दुःख भोग रहा था वो आज फिर से हँसने-खेलने लगा था और मुझे इससे ज्यादा और कुछ नहीं चाहिए था!


अब आगे:


नेहा और आयुष दोनों इनके अगल-बगल बैठे थे तथा मैं इनके पैरों के पास बैठी थी, बाकी सभी भी कमरे में बैठे हुए थे| अस्पताल के कमरे को हमने अपने घर की बैठक बना दिया था! सभी इनसे बात करने में लगे थे, बात करने का मतलब की सब बोल रहे थे और ये बस हाँ-न में जवाब दे रहे थे| सबके बात करने से मुझे इनसे बात करने का समय नहीं मिल रहा था| बातों ही बातों में नेहा ने जिद्द पकड़ते हुए कहा की वो तब तक स्कूल नहीं जाएगी जबतक ये घर नहीं आ जाते, तीन दिन तक नेहा 24 घंटे इनके पास रहना चाहती थी| सब ने नेहा को प्यार से समझाया मगर नेहा अपनी जिद्द पर क़ायम रही| इन्होने भी नेहा को प्यार से समझाया मगर कोई असर नहीं, दरअसल नेहा को डर था की कहीं मेरे कारण उसके पापा जी का गुस्सा फिर से न लौट आये जिससे उनकी तबियत खराब हो जाए| जब नेहा किसी के मनाने से नहीं मानी तो मेरे पिताजी को गुस्सा आ गया| मेरे पिताजी को जिद्दी बच्चे अच्छे नहीं लगते थे, पिताजी बस एक बार अपनी बात कहते थे और अगर न सुनो तो फिर बहुत डाँट पड़ती थी| आज जब पिताजी ने नेहा को डाँटा तो नेहा सहम गई और अपने पापा के गले लग अपना सर इनके सीने में छुपा लिया|

नेहा के स्कूल न जाने का कारन मैं जानती थी इसलिए मैं ही उसके बचाव में आ गई; "रहने दो पिताजी, मेरी बेटी बहुत होशियार है वो तीन दिन की पढ़ाई बर्बाद नहीं जाने देगी! है न नेहा?" मुझे अपना पक्ष लेता देख नेहा को हैरानी हुई और मेरे पूछे प्रश्न पर वो मेरी तरफ देखते हुए सर हाँ में हिलाने लगी| अब मेरे पिताजी मेरे ऊपर पहले ही खफ़ा थे ऐसे में जब मैंने नेहा की गलत जिद्द पर उसकी तरफदारी की तो पिताजी के गुस्से का सामना मुझे करना पड़ा; "तू बहुत तरफदारी करत हो नेहा की? सर चढ़ाये लिहो है! मानु तनिक बीमार का पड़िस तू दोनों माँ-बेटी आपन मन की करे लागयो!" अब जब मेरी क्लास लगी तो ये मेरे बचाव में आगे आये; "पिताजी........नेहा.....मेरी....लाड़ली है!" बस ये पाँच शब्द सुन पिताजी एकदम से ख़ामश हो गए और मुस्कुराने लगे! मैं आँखें फाड़े इन्हें देखने लगी की भला ये कैसा जादू चलाया इन्होने मेरे पिताजी पर की मेरी इतनी बड़ी दलील सुनने के बाद पिताजी को संतुष्टि नहीं मिली मगर इनके कहे पाँच शब्द सुन पिताजी एकदम से खामोश हो गए?! दरअसल ये इनका मेरे पिताजी पर प्रभाव था जो मेरे पिताजी इनका इतना मान करते थे!



खैर, अगले तीन दिन तक हम दोनों को बात करने का ज़रा सा भी समय नहीं मिला| इनके होश में आने के बाद से ही सभी के भीतर इनको ले कर बहुत सारा प्यार उमड़ आया था| इस वजह से कोई हम दोनों मियाँ-बीवी को अकेला छोड़ता ही नहीं था| दिन भर सभी कमरे में रहते थे और रात में मेरे साथ कभी सासु माँ, कभी बड़की अम्मा तो कभी मेरी माँ रहने लगीं थीं| धीरे-धीरे दिनभर सभी इनके नज़दीक बैठने लगे थे क्योंकि हर किसी को इनसे बात करनी थी, ये भी हर किसी से बात कर रहे थे सिवाए मेरे! जब इन्हें पता चला की अनिल बैंगलोर के लिए निकला है तो इन्होने फ़ौरन उसे फ़ोन करवा कर वापस बुलाया| अनिल सोलापुर पहुँचा था जब पिताजी ने उसे फ़ोन कर के इनके होश में आने की खबर दी और वापस बुलाया| अनिल उसी स्टेशन पर उतरा और अगली गाडी पकड़ कर दूसरे दिन दिल्ली पहुँचा| कमरे में आते ही वो इनके पाँव छू कर इनके गले लग गया| इनके चेहरे पर मुस्कान देख अनिल के दिल को चैन मिला, वहीं इन्होने अनिल को सारा काम संभालने और भागदौड़ करने के लिए धन्यवाद दिया|

होश में आने के बाद, सभी को अपने पास देख इनका मन सभी से बात करने का था| कभी पिताजी से खेती-बाड़ी के बारे में बात करने लगते तो कभी ससुर जी से काम की अपडेट लेने लगते| ससुर जी इन्हें कोई चिंता नहीं देना चाहते थे इसीलिए वो कामकाज की बातें गोलमोल करते थे और अनिल के ऊपर सब छोड़ देते थे| वहीं मेरी माँ के साथ तो इनकी गजब की जोड़ी बन गई थी, माँ को इन्होने experimental cooking का शौक चढ़ा दिया था तो इन्होने माँ से उसी को ले कर बातें करनी शुरू कर दी| जब मैं दोनों सास-दामाद को यूँ जुगलबंदी करते देखती तो मुझे बहुत हँसी आती थी| वहीं मेरी सासु माँ इनके आराम करने को ले कर पीछे पड़ जाती थीं मगर ये हैं की उनसे CID के बारे में पूछ कर व्यस्त कर लेते थे|

उधर आयुष, वो स्कूल से आते ही इनके पास चिपक कर बैठ जाता और बीच-बीच में दोनों बाप-बेटे खुसर-फुसर करने लगते| जानती तो मैं थी ही की दोनों बाप-बेटे क्या बात करते हैं और ये देख कर मुझे बहुत हँसी आती| वहीं दिषु भैया जब इनके होश में आने के बाद मिलने आये तो वो रो पड़े, इन्होने उन्हें प्यार से सँभाला और उनकी पीठ थपथपा कर चुप कराया| "साले, दुबारा ऐसे बीमार पड़ा न तो बहुत मारूँगा!" दिषु भैया इन्हें प्यार से हड़काते हुए बोले और ये दिषु भैया को देख हँसने लगे!

बड़की अम्मा के साथ ये और हम सब एक ही बात करते थे की जल्दी से बड़के दादा का गुस्सा ठंडा हो जाए ताकि दोनों परिवार फिर से एक हो जाएँ| लेकिन बात सुधरने की बजाए बिगड़ती जा रही थी, जिस दिन इन्हें होश आया उसी दिन बड़के दादा ने फ़ोन किया| बड़की अम्मा ने उन्हें फ़ोन पर खूब झाड़ा की उन्होंने उनके बेटे (ये) से इस कदर दुश्मनी निकाली| माँ-पिताजी और इन्होने मिलकर बड़की अम्मा को खूब समझाया की वो गाँव वापस चली जाएँ ताकि उनके और बड़के दादा के रिश्ते न बिगड़ें मगर बड़की अम्मा नहीं मानी| माँ-पिताजी को प्यार से डाँट कर और इनको प्यार से बहला कर वो बात बदल दिया करतीं थीं| वो कहतीं की मैं मानु को घर ले जा कर ही गाँव लौटूँगी!

इधर नेहा सारा दिन अस्पताल रूकती थी बस वो नहाने-धोने सुबह घर जाती और थोड़ी देर बाद वापस आ जाती| जब वो देखती की उसके पापा बहुत ज्यादा बात कर रहे हैं तो नेहा किसी डॉक्टर की तरह अपने पापा को आराम करने को कहती| ये नेहा की बात ऐसे मानते थे जैसे कोई छोटा बच्चा अपनी माँ की बात मानता हो, इनके लेटते ही नेहा इनके सिरहाने बैठ जाती और इनके बालों में हाथ फेरने लगती|

सबको इनसे बात करने का समय मिल रहा था सिवाए मेरे, जब नेहा सुबह नहाने घर जाती थी तब मैं इनके सिरहाने बैठ जाती और ये चुपके से मेरा हाथ थाम लेते मगर हमारी बात कमरे में किसी न किसी के मौजूद होने के कारण नहीं हो पाती! हम तो बस एक दूसरे को देख कर ठंडी आह भर कर रह जाते! इनका तो फिर भी ठीक था की इनसे बात करने को इतने सारे लोग थे मगर मेरे पास तो सिर्फ बात करने के लिए सासु माँ-ससुर जी और ये ही थे| उस पर जब ये होश में आये थे तो सॉरी शब्द बुदबुदा रहे थे और मुझे इनसे उस शब्द को बोलने को ले कर सवाल पूछना था, इसी सवाल ने मेरे भीतर बवंडर मचा रखा था! मैंने कई अटकलें लगाईं और सोचा की आखिर ये मुझे सॉरी क्यों बोल रहे हैं मगर कुछ फायदा नहीं हुआ!



दूसरे दिन की बात है, सुबह का समय था और कमरे में बस ये, मैं, सासु माँ और ससुर जी ही थे| मेरे माँ-पिताजी घर पर थे, नेहा नहाने के लिए घर गई हुई थी और मेरे पिताजी आयुष को स्कूल छोड़ने गए थे| बड़की अम्मा और अजय भैया दिल्ली में रह रहे गाँव के एक जानकार के घर मिलने गए हुए थे| तभी नर्स करुणा इनका चेकअप करने आई, जब से इन्हें होश आया था वो छुट्टी पर गई थी और आज ही वापस आई थी| मैं उस वक़्त इनके सामने एक कुर्सी कर के बैठी थी, तथा सासु माँ और ससुर जी सोफे पर बैठे थे| करुणा ने आ कर पहले सासु माँ और ससुर जी को नमस्ते कहा| उसके बाद जो हुआ वो देख कर मैं दंग रह गई! ये थोड़ा हैरानी से करुणा को देख रहे थे और इनकी ये हैरानी मुझे समझ नहीं आ रही थी! उधर करुणा मुस्कुराते हुए इन्हें देख रही थी, दो सेकंड बाद इनके चेहरे पर मुस्कान आ गई और दोनों ने मुस्कुराते हुए ही एक दूसरे को hi तथा hello कहा! "और कैसे हो?" करुणा ने मुस्कुराते हुए पुछा| ये अलफ़ाज़ सुन मैं आँखें बड़ी कर के उसे देखने लगी मगर तभी मुझे झटका लगा जब ये मुस्कुराते हुए '3 सेकंड का विराम' लेते हुए बोले; "मैं.........ठीक हूँ!" और फिर दोनों ने हँसते हुए बात शुरू की लेकिन सारी बात बस इनके बीमार होने से जुडी थी| ये दृश्य देख मुझे अजीब सा लगा, उस वक़्त मैं इस एहसास को समझ न पाई की ये एहसास और कुछ नहीं 'जलन' है! हाँ इतना ज़रूर था की थोड़ा बहुत गुस्सा मुझे भी आ रहा था मगर मैंने अपने ज़ज़्बात छुपा रखे थे!

अचानक मेरी नजर मेरे ससुर जी पर पड़ी तो मैंने पाया की वो इन्हें करुणा से हँस-हँस कर बात करते देख घूर रहे हैं! पिताजी ने शुरू से ही इनकी लगाम लड़कियों के मामले में खींच कर रखी है, जब ये आज मेरे ही सामने करुणा से इतना हँस कर बात कर रहे थे तो ससुर जी को गुस्सा आना जायज़ था| जैसे ही करुणा इनका चेकअप कर के गई ससुर जी ने इन्हें एकदम से थोड़ा गुस्से में टोका; "क्यों रे, बहु सामने बैठी है फिर भी तू उस नर्स से बड़ा हँस-हँस कर बात कर रहा था?" ससुर जी के टोकने से मुझे लगा था की ये नाराज होंगें या रूठ जायेंगे मगर ये तो हँसने लगे! इन्हें हँसता देख मुझे बड़ा अचरज हुआ और तभी सासु माँ ने बीच में बोल कर सारी उलझन सुलझाई; "अजी, ये नर्स कोई और नहीं करुणा है! उसी ने तो मेरी देखभाल की थी!" जब माँ ने ये कहा तब मुझे बात समझ आई की माँ करुणा को जानती थीं| दरअसल कुछ साल पहले जब ससुर जी गाँव आये हुए थे तब माँ के बीमार पड़ने पर करुणा ने ही माँ की देखभाल की थी और उन्हीं दिनों इनकी दोस्ती करुणा से हो गई थी| "फिर उस दिन जब आपने पूजा रखवाई थी तब करुणा और उसकी बहन आये थे और हमसे मिले भी थे|" माँ ने पिताजी को और एक बात याद दिलाई| पिताजी याद करने लगे और तब उन्हें करुणा याद आई और उनके चेहरे पर भी थोड़ी मुस्कान आ गई| "तभी मैं कहूँ की जब से मानु एडमिट हुआ है ये लड़की हमें नमस्ते क्यों कह रही है?!" पिताजी अपना माथा पीटते हुए मुस्कुरा कर बोले| इधर मैं ये सब बातें सुन कर हैरान थी की भला मुझे ये सब बातें क्यों नहीं पता? ये सब बातें जान कर मुझे जलन महसूस होने लगी थी, वैसे देखा जाए तो मुझे जलन करने की कोई ज़रुरत नहीं थी क्योंकि मेरे पति इतना सीधे हैं की आजतक मेरे अलावा ये कभी किसी दूसरी लड़की के चक्कर में नहीं पड़े! लेकिन औरत ज़ात हूँ जलन कैसे न करूँ?! बहरहाल, फिलहाल के लिए तो मैं ये बात हज़म कर गई क्योंकि मेरी चिंता इन्हें बस घर ले कर जाने की थी! शाम को अनिल साइट से लौटा और इनके पाँव छू कर इनके पास बैठ गया, इन्होने अनिल से सारी अपडेट ली तथा अपनी तरफ से कुछ बातें बताने लगे|



अब मेरे सब्र की इंतेहा होने लगी थी, मेरा मन इनके मुँह से अपने लिए 'जान' सुनने को तरस रहा था! मैं इनके सामने बड़ी आस ले कर बैठती थी की ये कम से कम मुझे 'जान' कहें मगर इनकी ये मजबूरी की सब परिवार वालों के सामने ये मुझे जान कहें कैसे?! मरते क्या न करते, मैं इंतज़ार करने लगी की कब इन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज मिले और हम घर पहुँचे|

अगले दिन इन्हें डिस्चार्ज मिला और डिस्चार्ज से पहले डॉक्टर रूचि तथा सरिता जी ने सभी परिवार जनों को इनको ले कर हिदायतें दी| उनका कहना था की हमें घर का माहौल खुशनुमा बनाये रखना है तथा इन्हें किसी भी तरह के मानसिक आघात और तनाव से बचा कर रखना है| खाने की जिम्मेदारी मुझे दी गई की खाने में फिलहाल हल्का देना है, जिससे इनको कोई अपच न हो| दवाइयों की जिम्मेदारी मुझे और नेहा को दी गई, जिसे नेहा ने बाकायदा एक कागज़ पर फिर से लिख लिया|



शाम 7 बजे हम इन्हें ले कर घर लौटे, माँ ने आरती उतार कर इन्हें घर में आने दिया और फिर सब ने खड़े हो कर भगवान को धन्यवाद दिया| इनका शरीर बहुत कमजोर हो चूका था और इनसे ज्यादा खड़ा रहना मुश्किल हो रहा था इसलिए हम सब हमारे कमरे में आ गए| दिवार से टेक लगाए ये बैठ गए और आस-पडोसी सभी इनसे मिलने आने लगे, मेरे पास तो चैन से बैठ कर इनसे बात करने का समय ही नहीं मिला| रात को सब ने खाना खाया, बाकी सब तो बाहर बैठक में बैठे थे बस ये और बच्चे कमरे में बैठे थे| इनके खाने के लिए मैंने खिचड़ी बनाई थी और खिचड़ी खिलाने का काम दोनों बच्चों ने किया| दोनों बच्चों ने एक-एक कर चम्मच से इन्हें पूरी खिचड़ी खिलाई, अस्पताल में इन्हें खिलाने का मौका मुझे मिलता था मगर घर में मुझसे ये काम बच्चों ने छीन लिया था| खान खा कर सब सोने के लिए चले गए| मेरे माँ-पिताजी बच्चों के कमरे में सोये और आयुष उन्हें के साथ सोने वाला था| नेहा अपने वादे अनुसार अपने दादा-दादी जी के साथ सोने वाली थी| बड़की अम्मा और अजय भैया जगह की कमी होने के कारण किसी रिश्तेदार के पास रात रुक गए तथा अनिल बैठक में सोफे पर सो गया|

घडी में बजे थे दस और नेहा ने इन्हें दवाई दे कर सुला दिया था| रसोई समेट कर जब मैंने कमरे की लाइट जलाई तो देखा ये अभी भी जाग रहे हैं| इस वक़्त हमें बात करने से रोकने वाला कोई नहीं था मगर मैं इनसे कुछ कहती उससे पहले ही ये बोल पड़े; "सॉरी!' इतने दिनों बाद आज मुझे इनके मुँह से सबसे पहले अपने लिए 'जान' शब्द सुनना था ना की 'सॉरी'! इनक सॉरी सुनते ही मन में जो सवाल था की होश में आते समय ये सॉरी क्यों बड़बड़ा रहे थे, वो एकदम से बाहर आ गया; "जानू जब से आपको होश आया है तब से आप मुझे सॉरी क्यों बोले जा रहे हो? क्यों? गलती तो..."मैं आगे कुछ कहती उससे पहले ही ये बोल पड़े; "जान, सॉरी इसलिए बोल रहा हूँ की उस दिन उस कमीने बद्ज़ात की जान नहीं ले पाया! सॉरी इसलिए बोल रहा हूँ की तुम्हारी वो दर्दभरी लेखनी पढ़ कर तुम्हारे दिल के दर्द को महसूस तो किया मगर तुम्हें उस दर्द से बाहर न निकाल पाया! सॉरी इसलिए बोल रहा हूँ की इतने दिन बेहोश पड़ा रह कर तुमसे बात न कर के तुम्हें इतना तड़पाया और वो भी तब जब तुम माँ बनने वाली हो जबकि इस समय तो मुझे तुम्हें सबसे ज्यादा प्यार करना चाहिए था! सॉरी इसलिए..." ये आगे कुछ बोलते उससे पहले ही मैंने इनकी बात काट दी; "लेकिन आपकी कोई गलती नहीं थी! आप तो मुझे हँसाने-बुलाने के लिए जी तोड़ कोशिश किये जा रहे थे और मैं बुद्धू आप ही से अपना ग़म छुपाने में लगी थी! उस इंसान से अपना दर्द छुपा रही थी जो बिना मेरे बोले मेरे दिल का दर्द भाँप जाता है! सारी गलती मेरी थी, न मैं आप पर इस बच्चे के लिए दबाव डालती और न..." इससे आगे मैं कुछ बोलती उससे पहले ही ये मुझ पर गुस्से से बरस पड़े; "For god’s sake stop blaming yourself for everything!” इनका गुस्सा जायज़ था, मैंने जब हमारे बच्चे को एक ‘दबाव’ का नाम दिया तो इनका मुझ पर चिल्लाना जाहिर था!

खैर, इनका ये गुस्सा देख मैं दहल गई थी! मुझे डर लग रहा था की कहीं मेरे कारण आये गुस्से से इनकी तबियत फिर न खराब हो जाए| इतने में नेहा दरवाज़ा खोलते हुए मुझ पर बरस पड़ी; "मम्मी, फिर से?" नेहा गुस्से और नफ़रत से मुझे घूर रही थी! फिर उसने अपने पापा को देखा और इनके चेहरे पर गुस्सा देख नेहा डर गई, उसे लगा की कहीं उसके पापा फिर से न बीमार हो जाएँ इसलिए वो दौड़ती हुई इनके पास आई तथा इनके सीने से लिपट कर रोने लगी! अपनी बेटी को यूँ रोते हुए देख इनका दिल पसीज गया और मेरे ऊपर आया गुस्सा अब नेहा पर प्यार बन कर बरसने लगा| इन्होने ने नेहा को अपनी बाहों में भरे हुए लाड करना शुरू किया, उसके सर को बार-बार चूम कर उसे चुप कराया और अंत में दोनों बाप-बेटी लेट गए| मैंने लाइट बुझाई और मैं भी इनकी बगल में लेट गई, नेहा हम दोनों के बीच में थी और इनकी तरफ करवट कर के इनसे लिपटी हुई थी| मैंने भी इनकी तरफ करवट ली और अपना हाथ नेहा की कमर पर रख दिया| नेहा ने एकदम से मेरा हाथ दूर झटक दिया और फिर से अपने पापा से लिपट गई| उसके यूँ मेरा हाथ झटकने से मुझे दुःख तो बहुत हुआ मगर मैं फिर भी चुप रही क्योंकि मुझे इस वक़्त एक इत्मीनान था की मेरे पति घर आ चुके हैं और एक उम्मीद थी की ये जल्दी से ठीक हो जाएंगे, इसी उम्मीद के साथ मेरी कब आँख लगी और कब सुबह हुई पता ही नहीं चला|



सुबह के पाँच बजे थे और पूरे घर में ये ही सबसे पहले उठे थे| दिवार से टेक लगा कर बैठे हुए, नेहा का सर अपनी गोदी में रखे और मेरे सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए ये मुस्कुराये जा रहे थे| इनके सर पर हाथ फेरने से मेरी नींद खुली, वो सुखद एहसास ऐसा था की इससे बेहतर सुबह की मैं कल्पना नहीं कर सकती थी| मैं उठने लगी तो इन्होने मुझे समय का वास्ता दे कर सोते रहने को कहा, उधर मेरा मन इन्हें आज कई दिनों बाद सुबह की गुड मॉर्निंग वाली kissi देने का था मगर तभी मेरी 'माँ' नेहा जाग गई क्योंकि उसके स्कूल जाने का समय होने वाला था| नेहा अपनी पढ़ाई को ले कर पहले ही संजीदा थी उस पर जब ये बीमार पड़े तो उसने सुबह जल्दी उठने की आदत बना ली थी|

अपनी लाड़ली को जागा हुआ देख इनका ध्यान मुझ पर से हट कर नेहा पर चला गया| "गुड मॉर्निंग मेरा बच्चा!" इन्होने नेहा के माथे को चूमते हुए कहा, जवाब में नेहा ने इनके दोनों गालों पर अपनी सुबह की गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दी तथा इनसे कस कर लिपट गई| अपने वादे अनुसार नेहा को आज स्कूल जाना था इसलिए जब इन्होने नेहा के स्कूल के जाने को ले कर बात शुरू की तो नेहा न-नुकुर करने लगी| मैं जानती थी की नेहा क्यों स्कूल नहीं जा रही, उसे डर था की उसकी गैरहाजरी में मैं कल रात की ही तरह कोई न कोई ऐसी गलती करूँगी जिससे इन्हें गुस्सा आएगा और इनकी तबियत फिर से खराब हो जाएगी| नेहा ये बात इनसे नहीं कह सकती थी क्योंकि वो जानती थी की उसके पापा उसकी मम्मी के खिलाफ ऐसा नहीं सोचते इसी डर से नेहा खामोश थी|



लेकिन इनका भी एक अलग अंदाज है जिसके आगे किसी की नहीं चलती! इन्होने नेहा को लाड-प्यार करते हुए उसे कहा; "मेरा बच्चा अगर स्कूल नहीं जाएगा तो बड़ा कैसे होगा? डॉक्टर, इंजीनियर कैसे बनेगा? मेरा प्यारा-प्यारा बच्चा है न, तो पापा की बात मानेगा न?" ये सब सुन नेहा का दिल पिघल गया और वो स्कूल जाने के लिए राज़ी हो गई मगर उसने स्कूल जाने से पहले एक शर्त रखी; "आप मुझे वादा कीजिये की आप समय से खाना खाओगे, समय पर दवाई लोगे, सिर्फ आराम करोगे..." इतना कह नेहा गुस्से से मेरी ओर देखने लगी और अपनी बात पूरी की; "...और चाहे कोई भी आपको कितना भी गुस्सा दिलाये, आपको 'provoke' करे आप बिलकुल गुस्सा नहीं करोगे!" नेहा ने जिस तरह इन्हें हिदायतें दी थीं उसे सुन कर एक पल को इनके चेहरे पर मुस्कान आ गई और उन्हें मुस्कुराते देख मैं भी मुस्कुराने लगी! "मेरी मम्मी जी, आप बस स्कूल जा रहे हो दूसरे continent नहीं जा रहे जो इतनी सारी हिदायतें मुझे दे रहे हो! यहाँ घर पर इतने सारे लोग हैं, आपकी मम्मी हैं, आपके दादा-दादी जी हैं, आपके नाना-नानी जी हैं, आपके अनिल मामा जी हैं और अजय चाचा हैं तो फिर आपको किस बात की चिंता? और कौन हैं यहाँ जो मुझे provoke करे या गुस्सा दिलाये?" इनके पूछे अंतिम सवाल का जवाब देने के लिए नेहा ने मुँह खोला ही था की मैंने इस विषय पर बाप-बेटी की बात शुरू होने से पहले ही बदल दी क्योंकि मैं जानती थी की नेहा का मुझ पर गुस्सा देख ये नाराज़ होंगें और नेहा को डाँट देंगे! "नेहा बेटा, जल्दी से तैयार हो जाओ वरना स्कूल के लिए लेट हो जाओगे!" अब ये कोई बुद्धू तो थे नहीं जो मेरी होशियारी न पकड़ पाएँ, इन्होने घडी देखते हुए मुझे नजरों ही नजरों से उल्हाना दिया की; 'अभी बस साढ़े पाँच ही हुए हैं!' अब मैं क्या कहती मैं बस शैतानी मुस्कान हँस कर इन्हें भी हँसा दिया!

नेहा उठ कर तैयार होने लगी और थोड़ी देर बाद आयुष आ कर इनकी गोदी में सो गया| उसे भी बड़ी मुश्किल से इन्होने लाड-प्यार करते हुए स्कूल जाने के लिए मनाया| आयुष तैयार हो रहा था जबकि नेहा तैयार हो कर इनके पास बैठ गई थी| तभी सासु माँ इनका हाल-चाल पूछने आईं और नेहा से प्यार से शिकायत करते हुए बोलीं; "नेहा, बेटा तू तो अपने पापा को गुड नाइट वाली पप्पी देने आई थी फिर यहीं सो गई? ये सुन नेहा शर्माने लगी और इनसे लिपट गई! नेहा को शरमाते देख हम तीनों हँस पड़े, तभी आयुष तैयार हो कर आ गया और नेहा ने अपनी दादी जी की ड्यूटी लगाते हुए कहा; "दादी जी, जब तक मैं स्कूल से न आऊँ, तबतक आप पापा जी के पास रहना| उन्हें नाश्ता और दवाई आप दोगे और आराम करने को बोलते रहना|" नेहा की बात सुन माँ हँस पड़ीं और बोलीं; "बेटा ड्यूटी तो तूने मेरी लगा दी मगर मुझे इस ड्यूटी के बदले में क्या मिलेगा?" माँ ने हँसते हुए सवाल पुछा, नेहा जवाब दे उससे पहले ही आयुष बोल पड़ा; "दादी जी, मैं है न आपके लिए चॉकलेट लाऊँगा!" ये सुन कर तो माँ बड़ी जोर से हँसी और मैं आयुष की टाँग खींचते हुए बोली; "लेकिन ये चॉक्लेट तू खायेगा या फिर तेरी दादी जी?" ये सुनते ही आयुष ने फ़ट से अपना हाथ उठाया और उसके इस भोलेपन पर हम सभी हँस पड़े!



खैर बच्चे स्कूल के लिए निकले और जाते-जाते अपने पापा के दोनों गाल अपनी पप्पी से भीगा गए! बच्चों के जाते ही इन्होने हमारे कमरे में सभा का ऐलान कर दिया| बड़की अम्मा और अजय के आते ही सब लोग अपनी चाय का गिलास/कप थामे कमरे में इनको घेर कर बैठ गए| कमरे में हीटर चालु था जिससे कमरे में गर्माहट बनी हुई थी और कमरे का माहौल आरामदायक बना हुआ था| ये दिवार से टेक लगा कर बैठे थे तथा बाकी सभी इनके सामने या अगल-बगल कुर्सी पर बैठे हुए थे| देखने पर ऐसा लगता था मानो अमरीका के राष्ट्रपति अपनी कैबिनेट के लोगों को सम्बोधित करते हुए बजट की चर्चा कर रहे हों! इधर मैं थोड़ी जिज्ञासु थी ये जानने के लिए की भला इनको सभी से एक साथ क्या बात करनी है?!



"मुझे आप सभी से कुछ कहना है|" इतना कह इन्होने सब के आगे हाथ जोड़े और माफ़ी माँगते हुए बोले; "मैं आप सभी से हाथ जोड़ कर माफ़ी माँगता हूँ की मेरे कारण आप सभी को इतनी तकलीफ उठानी पड़ी|" इन्हें हाथ जोड़े हुए देख सभी लोग एक साथ बोलने लगे; 'बेटा, ये तू क्या कह रहा है?!' लेकिन इन्होने अपनी बात आगे जारी रखी; "दो बच्चों का बाप होने के बावजूद मुझे इस तरह की लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए थी!" इतना कह ये मेरी तरफ देखने लगे और बोले; "मैं जानता हूँ की मेरी इस हालत का दोषी संगीता ने खुद को ही माना होगा, क्योंकि ये संगीता की बहुत बुरी आदत है! मेरी हर गलती का जिम्मेदार संगीता खुद को मानती है और मेरे सारे ग़म और बेवकूफियाँ ये अपने सर लाद लेती है!” ये सुन मेरे पिताजी कहने वाले हुए थे की ये तो हर पत्नी का धर्म होता है की वो अपने पति के दुःख-दर्द बाटें मगर इन्होने पिताजी को कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया तथा अपनी बात जारी रखी; "मैं जानता हूँ की ये हर पत्नी की जिम्मेदारी होती है की वो अपने पति के दुःख बाटें मगर ये कहीं नहीं लिखा की पति दवाई न खाये और खुद अपनी तबियत खराब कर ले और पत्नी इसका ठीकरा अपने सर फोड़ ले!" इनकी ये बात सुन पिताजी कुछ नहीं बोल पाए और अब जा कर मुझे इनकी सारी बात समझ आने लगी, दरअसल जब से ये होश में आये थे इन्होने गौर किया की मेरे माँ-पिताजी और अनिल मुझसे ठीक से बात नहीं कर रहे थे इसलिए मेरी इज़्ज़त सब के सामने रखने के लिए ये मेरी तरफदारी करते हुए ये मेरा बचाव कर रहे थे|

"देखिये, जो हुआ उसमें संगीता की कोई गलती नहीं थी और मैं नहीं चाहता की आप मेरी गलतियों की सजा संगीता को दें और उससे नफरत करें या उससे नाराज़ रहे|” ये बात इन्होने मेरे माँ-पिताजी की ओर देखते हुए कही| “दरअसल उस हादसे के बारे में सोच-सोच कर मेरा खून खौलने लगा था, दिल में आग लगी हुई थी और गुस्से से मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था| अपने गुस्से की आग में खुद जलते हुए मैं पता नहीं क्या-क्या ऊल-जुलूल हरकतें कर रहा था| कभी दुबई जा कर बसने की तैयारी कर रहा था तो कभी संगीता को हँसने के लिए जबरदस्ती पीछे पड़ रहा था, खाना-पीना बंद कर दवाइयाँ बंद कर मैंने अपनी ये दुर्गति कर ली! ऐसा लगता था जैसे मेरे दिमाग ने सोचने समझने की ताक़त खो दी हो! इसलिए आज आप सभी से मैं आज हाथ जोड़ कर अपनी की इन बेवकूफियों की क्षमा माँगता हूँ|" इन्होने आज मेरा मान-सम्मान बचाने के लिए बड़ी आसानी से मेरी सारी गलतियों का बोझ अपने ऊपर ले लिया था| इनकी ये बातें सुन मेरे माँ-पिताजी और अनिल को लगा की मैंने शायद उनकी शिकायत इनसे की है तभी ये इस कदर मुझे बचाने के लिए इतनी सफाई दे रहे हैं मगर इन्होने आगे जो कहा उससे उनके मन में कोई संशय नहीं रहा; "पिताजी, संगीता ने मुझसे किसी की कोई शिकायत नहीं की है, मैं जानता हूँ की आप मुझे ज्यादा प्यार करते हो इसलिए संगीता को सबसे ज्यादा आपने ही डाँटा होगा|" इन्होने मुस्कुराते हुए मेरे पिताजी यानी अपने ससुर जी से कहा| इनकी बात सुन मेरे पिताजी संग सभी मुस्कुराने लगे! तभी इन्होने मुझे मेरे पिताजी के पाँव छूने को कहा, मैंने फ़ौरन अपने पिताजी के पाँव छू कर माफ़ी माँगी और उन्होंने मुझे माफ़ करते हुए कहा; "खुश रहो मुन्नी!" पिताजी की माफ़ी पा कर मुझे बहुत ख़ुशी हुई, फिर मैं अपनी माँ के पास पहुँची और उनके पाँव छुए तो माँ ने भी मुस्कुराते हुए मुझे माफ़ किया तथा आशीर्वाद दिया| बड़की अम्मा मेरी माँ के बगल में ही बैठीं थीं, जब मैं उनके पाँव छू कर आशीर्वाद लेने लगी तो इन्होने मुस्कुराते हुए बड़की अम्मा से कहा; "मुझे यक़ीन हैं की एक बस मेरी बड़की अम्मा हैं जिन्होंने संगीता को मेरे बीमार होने के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया होगा| हैं न अम्मा?" जिस यक़ीन से इन्होने अपनी बात कही थी उससे बड़की अम्मा के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और वो बोलीं; "मुन्ना (ये) तू तो जानत हो, हम अगर बहु का कछु कहित भी तो कउन हक़ से?" बड़की अम्मा अपने खून (चन्दर) के कारण लज्जित महसूस कर रहीं थीं और उन्हें लग रहा था की शायद उनका अब हमारे परिवार पर कोई हक़ नहीं रहा| "ये क्या कह रहे हो अम्मा, आप तो हमारी (मेरी और इनकी) बड़की अम्मा हो! आपका पूरा हक़ है हमें डाँटने का और चाहो तो मार भी लेना|" मैंने इनकी और अपनी ओर से दिल से बात कही| "नहीं बहु, हमार आपन खून का किया धरा है ई सब! हमका तो कछु भी कहे का कउनो हक़ नाहीं!" ये कहते हुए बड़की अम्मा भावुक हो गईं और रो पड़ीं| मैंने फ़ौरन आगे बढ़ कर अम्मा को अपने गले लगाया और उन्हें रोने से रोकते हुए बोली; "अम्मा, रोओ मत! आप रोओगे तो ये भी रो पड़ेंगे और डॉक्टर ने कहा है की इन्हें हमें खुश रखना है|" मैंने खुसफुसाते हुए अम्मा को बात समझाई| अम्मा ने फ़ौरन अपने आँसूँ पोछे और खुद को संभाल लिया जिससे ये इस बात को ले कर चिंतित नहीं हो पाए| मैं जानती थी की अम्मा की बात इन्हें कहीं न कहीं इन्हें लग चुकी है, परन्तु इन्होने खुद को इस बात पर सोचने से रोका तथा बात बनाते हुए माँ-पिताजी (मेरे सास-ससुर जी) से बोले; "और माँ-पिताजी, आपने तो संगीता को कुछ कहा नहीं होगा?!" ये जानते थे की माँ-पिताजी मुझसे इतना प्यार करते हैं की वो मुझे कभी कुछ नहीं कहेंगे इसलिए इन्होने ये सवाल माँ-पिताजी को उल्हना देते हुए पुछा था| "भई गलती तेरी तो हम भला अपनी बहु को क्यों कुछ कहेंगे? हमें तो पहले से पता था की ये सब किया-धरा तेरा है, हमारी बहु तो सीधी-साधी है और तेरे कर्मों की सजा ख़ुद को दे रही है|" सासु माँ इन्हें सुनाते हुए बोलीं| इधर मेरे पिताजी इनका पक्ष लेते हुए बोले; "अरे वाह समधन जी, ई सही कहेऊ! सब खोट हमार मुन्ना में ही हैं?!" पिताजी मेरी सासु माँ को उल्हाना देते हुए मज़ाकिया अंदाज में बोले जिस पर सभी ने हँसी का ठहाका लगाया!



नाश्ते का समय हो रहा था इसलिए सभी बाहर बैठक में बैठ गए, बस एक ये ही कमरे के भीतर रह गए थे क्योंकि बाहर का तापमान कम था और इन्हें सर्दी होने का खतरा था इसलिए ये अंदर कमरे में ही बैठे थे| तभी मेरे पिताजी आ कर इनकी बगल में बैठ गए और इनके कँधे पर हाथ रख कर मेरी ओर देखते हुए बोले; "मुन्नी, तू है नसीब वाली जउन तोहका मानु जइसन पति मिला, जो तोहार सारी गलतियाँ आपन सर ले लेथ है!" पिताजी मुस्कुराते हुए बोले| इतने में मेरी माँ भी आ कर वहीं खड़ी हो गईं, ये फिर मेरा बचाव करते हुए बोले; "पिताजी, ऐसा कुछ नहीं है| सारी गलती मेरी थी!" इन्होने अपनी बात फिर दोहराई, लेकिन इस समय पिताजी इनके साथ तर्क करते हुए बोले; "अच्छा मुन्ना एक बात बतावा, अइसन कौन पत्नी होवत है जउन आपन दुःख-दर्द आपन पति से कहे का डरात है?" पिताजी का ये तर्कपूर्ण सवाल सुन मुझे लगा की इनके पास कोई जवाब नहीं होगा मगर इन्होने बड़े तपाक से पिताजी के सवाल का जवाब मेरी माँ यानी अपनी सासु माँ की तरफ देखते हुए दिया; "वही पत्नी जो ये जानती हो की उसका दुःख-दर्द जान कर उसके पति की तबियत खराब हो जाएगी|" इनका ये जवाब माँ के लिए एक इशारा था की उन्होंने अनिल के हर्निया के ऑपरेशन की बात पिताजी से छुपा कर कोई पाप नहीं किया|

उधर इनका जवाब सुन पिताजी खामोश हो गए थे, वो अनिल के हर्निया के बारे में तो नहीं जान पाए थे मगर उन्हें इनकी बात अच्छी लगी ओर अंततः वो मुस्कुराने लगे| "मुन्ना, तोहसे बतिया करे म कउनो नाहीं जीत सकत, काहे से की तोहरे लगे हर सवाल का जवाब है|" इतना कह पिताजी ने इनके सर पर हाथ रख इन्हें आशीर्वाद दिया और माँ के साथ बाहर बैठक में आ कर बैठ गए| आजतक ऐसा नहीं हुआ की मेरे पिताजी किसी की बात सुन कर निरुत्तर हो गए हों या किसी ने उन्हें यूँ प्यार से चुप करा दिया हो, कम से कम मेरे सामने तो ऐसा नहीं हुआ! दरअसल ये इनका गहन प्रभाव था जो मेरे पिताजी को बहुत प्रभावित कर गया था| इनके इसी प्रभाव के कारण आज माँ और मेरी सासु माँ खुल कर अपनी बात सामने रख पा रहीं थीं!

इधर जिस तरह इन्होने पिताजी के सामने मेरा पक्ष लिया था और मेरी इज़्ज़त, मेरा मान मुझे वापस लौटाया था उससे मेरा दिल भर आया था| मन किया की इनके सीने से लग कर रो पडूँ लेकिन फिर मुझे रोता हुआ देख इनका दिल दुखता इसलिए मैंने खुद को सँभाल लिया| इतने में अनिल कमरे में आया और मुझसे बोला; "दी, नाश्ते के लिए आपको बाहर बुला रहे हैं|" इतना कह अनिल वापस बाहर चला गया| अनिल ने आज मुझे फिर दीदी की जगह 'दी' कह कर बुलाया था जो मेरे दिल को बहुत चुभा था मगर मैं फिर भी चुप रही और अपना दर्द इनसे छुपाने लगी| दरअसल इनकी दी गई मेरे बचाव में दलील सुन कर भी अनिल का मन मेरे प्रति नहीं पिघला था, उसके लिए मैं ही इनके बीमार होने की कसूर वार थी जो की सही भी था| इधर अनिल की बातों से इनको शक हो गया था, शायद ये मेरे दिल का दर्द भाँप चुके थे; "मैं देख रहा हूँ की अनिल तुम्हें दीदी की जगह 'दी' कहने लगा है, क्या ये आज कल कोई नया ट्रेंड है?" इन्होने थोड़ा चिंतित होते हुए पुछा| मुझे इनको चिंता करने से रोकना था इसलिए मैंने इनकी बात को मज़ाकिया मोड़ दे दिया; "हाँ जी, आज कल की नई पीढ़ी है शब्दों को छोटा करने में इन्हें बड़ा कूल लगता है| मैं तो शुक्र मनाती हूँ की इसने दीदी का सिर्फ 'दी' बनाया वरना मुझे तो लगा था की कहीं मुझे दीदी की जगह 'dude' न कहने लगे! ही...ही...ही!!!" मैंने नकली हँसी हँसते हुए कहा| लेकिन इन्हें मुझ पर शक हो चूका था की मैं ज़रूर कोई बात छुपा रही हूँ, लेकिन फिलहाल ये थोड़ा थक गए थे इसलिए मुझसे शिकायती अंदाज़ में बोले; "अच्छा जी? ज़माना इतना बदल चूका है? हम तो जैसे बूढ़े हो गए?!" मैंने अनिल को नई पीढ़ी का कह कर इन्हें बुजुर्ग होने का एहसास करा दिया था इसीलिए ये थोड़ा नाराज़ थे|



मैं नाश्ते बनाने बाहर आई और ये लेट कर आराम करने लगे| नाश्ता बना, मैंने सबको नाश्ता परोसा और हम दोनों मियाँ-बीवी का नाश्ता ले कर मैं अंदर आ गई| बाकी सब के लिए मैंने पोहा बनाया था मगर अपने और इनके लिए मैंने दलिया बनाया था, जो हमने एक अरसे बाद एक दूसरे को खिलाते हुए खाया| मैंने इन्हें कमरे के भीतर ही रोका हुआ था क्योंकि बाहर का कमरा ठंडा था और इनका साइनस इन्हें तंग करने लौट सकता था, यदि एक बार साइनस का अटैक शुरू हो जाता तो इनकी तबियत बहुत खराब हो जाती|


जारी रहेगा भाग - 2 में...

मजाक के तौर पे

जान बची सो लाखों पाए, लौट के बुद्धू घर को आए।

मानू घर वापिस आ गया। 😜😜😜

अपने मित्र से कहिएगा की स्वयं का और अपने परिवार का ध्यान रखें।

करुणा को लेकर क्या कुछ नया होने वाला है या बात खत्म हो गई है?

अंत में इतना ही _ लगे रहो बहादुरों।

आशु
 

Ashurocket

एक औसत भारतीय गृहस्थ।
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धन्यवाद मित्र जो आपने शीर्षक सुझाया, परन्तु अध्याय के अनुसार ये उपयुक्त शीर्षक नहीं है| फिलहाल के लिए मैंने एक शीर्षक सोचा है, उम्मीद है वो आप सभी को पसंद आएगा!

शीर्षक कुछ भी रहे, मुझे तो बस कहानी से मतलब है।

चूंकि वर्तमान अपडेट सुखकारी है, तो मैं भी अच्छा महसूस कर रहा हूं।

भगवान आप सभी पर अपना आशीर्वाद बनाए रखे।
 

Ajay

Well-Known Member
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सत्ताईसवाँ अध्याय: विपरीत - पति का प्यार और पत्नी की जलन!
भाग - 1
अब तक आपने पढ़ा:


एक परिवार जो लगभग 20 दिन से मेरे कारण दुःख भोग रहा था वो आज फिर से हँसने-खेलने लगा था और मुझे इससे ज्यादा और कुछ नहीं चाहिए था!


अब आगे:


नेहा और आयुष दोनों इनके अगल-बगल बैठे थे तथा मैं इनके पैरों के पास बैठी थी, बाकी सभी भी कमरे में बैठे हुए थे| अस्पताल के कमरे को हमने अपने घर की बैठक बना दिया था! सभी इनसे बात करने में लगे थे, बात करने का मतलब की सब बोल रहे थे और ये बस हाँ-न में जवाब दे रहे थे| सबके बात करने से मुझे इनसे बात करने का समय नहीं मिल रहा था| बातों ही बातों में नेहा ने जिद्द पकड़ते हुए कहा की वो तब तक स्कूल नहीं जाएगी जबतक ये घर नहीं आ जाते, तीन दिन तक नेहा 24 घंटे इनके पास रहना चाहती थी| सब ने नेहा को प्यार से समझाया मगर नेहा अपनी जिद्द पर क़ायम रही| इन्होने भी नेहा को प्यार से समझाया मगर कोई असर नहीं, दरअसल नेहा को डर था की कहीं मेरे कारण उसके पापा जी का गुस्सा फिर से न लौट आये जिससे उनकी तबियत खराब हो जाए| जब नेहा किसी के मनाने से नहीं मानी तो मेरे पिताजी को गुस्सा आ गया| मेरे पिताजी को जिद्दी बच्चे अच्छे नहीं लगते थे, पिताजी बस एक बार अपनी बात कहते थे और अगर न सुनो तो फिर बहुत डाँट पड़ती थी| आज जब पिताजी ने नेहा को डाँटा तो नेहा सहम गई और अपने पापा के गले लग अपना सर इनके सीने में छुपा लिया|

नेहा के स्कूल न जाने का कारन मैं जानती थी इसलिए मैं ही उसके बचाव में आ गई; "रहने दो पिताजी, मेरी बेटी बहुत होशियार है वो तीन दिन की पढ़ाई बर्बाद नहीं जाने देगी! है न नेहा?" मुझे अपना पक्ष लेता देख नेहा को हैरानी हुई और मेरे पूछे प्रश्न पर वो मेरी तरफ देखते हुए सर हाँ में हिलाने लगी| अब मेरे पिताजी मेरे ऊपर पहले ही खफ़ा थे ऐसे में जब मैंने नेहा की गलत जिद्द पर उसकी तरफदारी की तो पिताजी के गुस्से का सामना मुझे करना पड़ा; "तू बहुत तरफदारी करत हो नेहा की? सर चढ़ाये लिहो है! मानु तनिक बीमार का पड़िस तू दोनों माँ-बेटी आपन मन की करे लागयो!" अब जब मेरी क्लास लगी तो ये मेरे बचाव में आगे आये; "पिताजी........नेहा.....मेरी....लाड़ली है!" बस ये पाँच शब्द सुन पिताजी एकदम से ख़ामश हो गए और मुस्कुराने लगे! मैं आँखें फाड़े इन्हें देखने लगी की भला ये कैसा जादू चलाया इन्होने मेरे पिताजी पर की मेरी इतनी बड़ी दलील सुनने के बाद पिताजी को संतुष्टि नहीं मिली मगर इनके कहे पाँच शब्द सुन पिताजी एकदम से खामोश हो गए?! दरअसल ये इनका मेरे पिताजी पर प्रभाव था जो मेरे पिताजी इनका इतना मान करते थे!



खैर, अगले तीन दिन तक हम दोनों को बात करने का ज़रा सा भी समय नहीं मिला| इनके होश में आने के बाद से ही सभी के भीतर इनको ले कर बहुत सारा प्यार उमड़ आया था| इस वजह से कोई हम दोनों मियाँ-बीवी को अकेला छोड़ता ही नहीं था| दिन भर सभी कमरे में रहते थे और रात में मेरे साथ कभी सासु माँ, कभी बड़की अम्मा तो कभी मेरी माँ रहने लगीं थीं| धीरे-धीरे दिनभर सभी इनके नज़दीक बैठने लगे थे क्योंकि हर किसी को इनसे बात करनी थी, ये भी हर किसी से बात कर रहे थे सिवाए मेरे! जब इन्हें पता चला की अनिल बैंगलोर के लिए निकला है तो इन्होने फ़ौरन उसे फ़ोन करवा कर वापस बुलाया| अनिल सोलापुर पहुँचा था जब पिताजी ने उसे फ़ोन कर के इनके होश में आने की खबर दी और वापस बुलाया| अनिल उसी स्टेशन पर उतरा और अगली गाडी पकड़ कर दूसरे दिन दिल्ली पहुँचा| कमरे में आते ही वो इनके पाँव छू कर इनके गले लग गया| इनके चेहरे पर मुस्कान देख अनिल के दिल को चैन मिला, वहीं इन्होने अनिल को सारा काम संभालने और भागदौड़ करने के लिए धन्यवाद दिया|

होश में आने के बाद, सभी को अपने पास देख इनका मन सभी से बात करने का था| कभी पिताजी से खेती-बाड़ी के बारे में बात करने लगते तो कभी ससुर जी से काम की अपडेट लेने लगते| ससुर जी इन्हें कोई चिंता नहीं देना चाहते थे इसीलिए वो कामकाज की बातें गोलमोल करते थे और अनिल के ऊपर सब छोड़ देते थे| वहीं मेरी माँ के साथ तो इनकी गजब की जोड़ी बन गई थी, माँ को इन्होने experimental cooking का शौक चढ़ा दिया था तो इन्होने माँ से उसी को ले कर बातें करनी शुरू कर दी| जब मैं दोनों सास-दामाद को यूँ जुगलबंदी करते देखती तो मुझे बहुत हँसी आती थी| वहीं मेरी सासु माँ इनके आराम करने को ले कर पीछे पड़ जाती थीं मगर ये हैं की उनसे CID के बारे में पूछ कर व्यस्त कर लेते थे|

उधर आयुष, वो स्कूल से आते ही इनके पास चिपक कर बैठ जाता और बीच-बीच में दोनों बाप-बेटे खुसर-फुसर करने लगते| जानती तो मैं थी ही की दोनों बाप-बेटे क्या बात करते हैं और ये देख कर मुझे बहुत हँसी आती| वहीं दिषु भैया जब इनके होश में आने के बाद मिलने आये तो वो रो पड़े, इन्होने उन्हें प्यार से सँभाला और उनकी पीठ थपथपा कर चुप कराया| "साले, दुबारा ऐसे बीमार पड़ा न तो बहुत मारूँगा!" दिषु भैया इन्हें प्यार से हड़काते हुए बोले और ये दिषु भैया को देख हँसने लगे!

बड़की अम्मा के साथ ये और हम सब एक ही बात करते थे की जल्दी से बड़के दादा का गुस्सा ठंडा हो जाए ताकि दोनों परिवार फिर से एक हो जाएँ| लेकिन बात सुधरने की बजाए बिगड़ती जा रही थी, जिस दिन इन्हें होश आया उसी दिन बड़के दादा ने फ़ोन किया| बड़की अम्मा ने उन्हें फ़ोन पर खूब झाड़ा की उन्होंने उनके बेटे (ये) से इस कदर दुश्मनी निकाली| माँ-पिताजी और इन्होने मिलकर बड़की अम्मा को खूब समझाया की वो गाँव वापस चली जाएँ ताकि उनके और बड़के दादा के रिश्ते न बिगड़ें मगर बड़की अम्मा नहीं मानी| माँ-पिताजी को प्यार से डाँट कर और इनको प्यार से बहला कर वो बात बदल दिया करतीं थीं| वो कहतीं की मैं मानु को घर ले जा कर ही गाँव लौटूँगी!

इधर नेहा सारा दिन अस्पताल रूकती थी बस वो नहाने-धोने सुबह घर जाती और थोड़ी देर बाद वापस आ जाती| जब वो देखती की उसके पापा बहुत ज्यादा बात कर रहे हैं तो नेहा किसी डॉक्टर की तरह अपने पापा को आराम करने को कहती| ये नेहा की बात ऐसे मानते थे जैसे कोई छोटा बच्चा अपनी माँ की बात मानता हो, इनके लेटते ही नेहा इनके सिरहाने बैठ जाती और इनके बालों में हाथ फेरने लगती|

सबको इनसे बात करने का समय मिल रहा था सिवाए मेरे, जब नेहा सुबह नहाने घर जाती थी तब मैं इनके सिरहाने बैठ जाती और ये चुपके से मेरा हाथ थाम लेते मगर हमारी बात कमरे में किसी न किसी के मौजूद होने के कारण नहीं हो पाती! हम तो बस एक दूसरे को देख कर ठंडी आह भर कर रह जाते! इनका तो फिर भी ठीक था की इनसे बात करने को इतने सारे लोग थे मगर मेरे पास तो सिर्फ बात करने के लिए सासु माँ-ससुर जी और ये ही थे| उस पर जब ये होश में आये थे तो सॉरी शब्द बुदबुदा रहे थे और मुझे इनसे उस शब्द को बोलने को ले कर सवाल पूछना था, इसी सवाल ने मेरे भीतर बवंडर मचा रखा था! मैंने कई अटकलें लगाईं और सोचा की आखिर ये मुझे सॉरी क्यों बोल रहे हैं मगर कुछ फायदा नहीं हुआ!



दूसरे दिन की बात है, सुबह का समय था और कमरे में बस ये, मैं, सासु माँ और ससुर जी ही थे| मेरे माँ-पिताजी घर पर थे, नेहा नहाने के लिए घर गई हुई थी और मेरे पिताजी आयुष को स्कूल छोड़ने गए थे| बड़की अम्मा और अजय भैया दिल्ली में रह रहे गाँव के एक जानकार के घर मिलने गए हुए थे| तभी नर्स करुणा इनका चेकअप करने आई, जब से इन्हें होश आया था वो छुट्टी पर गई थी और आज ही वापस आई थी| मैं उस वक़्त इनके सामने एक कुर्सी कर के बैठी थी, तथा सासु माँ और ससुर जी सोफे पर बैठे थे| करुणा ने आ कर पहले सासु माँ और ससुर जी को नमस्ते कहा| उसके बाद जो हुआ वो देख कर मैं दंग रह गई! ये थोड़ा हैरानी से करुणा को देख रहे थे और इनकी ये हैरानी मुझे समझ नहीं आ रही थी! उधर करुणा मुस्कुराते हुए इन्हें देख रही थी, दो सेकंड बाद इनके चेहरे पर मुस्कान आ गई और दोनों ने मुस्कुराते हुए ही एक दूसरे को hi तथा hello कहा! "और कैसे हो?" करुणा ने मुस्कुराते हुए पुछा| ये अलफ़ाज़ सुन मैं आँखें बड़ी कर के उसे देखने लगी मगर तभी मुझे झटका लगा जब ये मुस्कुराते हुए '3 सेकंड का विराम' लेते हुए बोले; "मैं.........ठीक हूँ!" और फिर दोनों ने हँसते हुए बात शुरू की लेकिन सारी बात बस इनके बीमार होने से जुडी थी| ये दृश्य देख मुझे अजीब सा लगा, उस वक़्त मैं इस एहसास को समझ न पाई की ये एहसास और कुछ नहीं 'जलन' है! हाँ इतना ज़रूर था की थोड़ा बहुत गुस्सा मुझे भी आ रहा था मगर मैंने अपने ज़ज़्बात छुपा रखे थे!

अचानक मेरी नजर मेरे ससुर जी पर पड़ी तो मैंने पाया की वो इन्हें करुणा से हँस-हँस कर बात करते देख घूर रहे हैं! पिताजी ने शुरू से ही इनकी लगाम लड़कियों के मामले में खींच कर रखी है, जब ये आज मेरे ही सामने करुणा से इतना हँस कर बात कर रहे थे तो ससुर जी को गुस्सा आना जायज़ था| जैसे ही करुणा इनका चेकअप कर के गई ससुर जी ने इन्हें एकदम से थोड़ा गुस्से में टोका; "क्यों रे, बहु सामने बैठी है फिर भी तू उस नर्स से बड़ा हँस-हँस कर बात कर रहा था?" ससुर जी के टोकने से मुझे लगा था की ये नाराज होंगें या रूठ जायेंगे मगर ये तो हँसने लगे! इन्हें हँसता देख मुझे बड़ा अचरज हुआ और तभी सासु माँ ने बीच में बोल कर सारी उलझन सुलझाई; "अजी, ये नर्स कोई और नहीं करुणा है! उसी ने तो मेरी देखभाल की थी!" जब माँ ने ये कहा तब मुझे बात समझ आई की माँ करुणा को जानती थीं| दरअसल कुछ साल पहले जब ससुर जी गाँव आये हुए थे तब माँ के बीमार पड़ने पर करुणा ने ही माँ की देखभाल की थी और उन्हीं दिनों इनकी दोस्ती करुणा से हो गई थी| "फिर उस दिन जब आपने पूजा रखवाई थी तब करुणा और उसकी बहन आये थे और हमसे मिले भी थे|" माँ ने पिताजी को और एक बात याद दिलाई| पिताजी याद करने लगे और तब उन्हें करुणा याद आई और उनके चेहरे पर भी थोड़ी मुस्कान आ गई| "तभी मैं कहूँ की जब से मानु एडमिट हुआ है ये लड़की हमें नमस्ते क्यों कह रही है?!" पिताजी अपना माथा पीटते हुए मुस्कुरा कर बोले| इधर मैं ये सब बातें सुन कर हैरान थी की भला मुझे ये सब बातें क्यों नहीं पता? ये सब बातें जान कर मुझे जलन महसूस होने लगी थी, वैसे देखा जाए तो मुझे जलन करने की कोई ज़रुरत नहीं थी क्योंकि मेरे पति इतना सीधे हैं की आजतक मेरे अलावा ये कभी किसी दूसरी लड़की के चक्कर में नहीं पड़े! लेकिन औरत ज़ात हूँ जलन कैसे न करूँ?! बहरहाल, फिलहाल के लिए तो मैं ये बात हज़म कर गई क्योंकि मेरी चिंता इन्हें बस घर ले कर जाने की थी! शाम को अनिल साइट से लौटा और इनके पाँव छू कर इनके पास बैठ गया, इन्होने अनिल से सारी अपडेट ली तथा अपनी तरफ से कुछ बातें बताने लगे|



अब मेरे सब्र की इंतेहा होने लगी थी, मेरा मन इनके मुँह से अपने लिए 'जान' सुनने को तरस रहा था! मैं इनके सामने बड़ी आस ले कर बैठती थी की ये कम से कम मुझे 'जान' कहें मगर इनकी ये मजबूरी की सब परिवार वालों के सामने ये मुझे जान कहें कैसे?! मरते क्या न करते, मैं इंतज़ार करने लगी की कब इन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज मिले और हम घर पहुँचे|

अगले दिन इन्हें डिस्चार्ज मिला और डिस्चार्ज से पहले डॉक्टर रूचि तथा सरिता जी ने सभी परिवार जनों को इनको ले कर हिदायतें दी| उनका कहना था की हमें घर का माहौल खुशनुमा बनाये रखना है तथा इन्हें किसी भी तरह के मानसिक आघात और तनाव से बचा कर रखना है| खाने की जिम्मेदारी मुझे दी गई की खाने में फिलहाल हल्का देना है, जिससे इनको कोई अपच न हो| दवाइयों की जिम्मेदारी मुझे और नेहा को दी गई, जिसे नेहा ने बाकायदा एक कागज़ पर फिर से लिख लिया|



शाम 7 बजे हम इन्हें ले कर घर लौटे, माँ ने आरती उतार कर इन्हें घर में आने दिया और फिर सब ने खड़े हो कर भगवान को धन्यवाद दिया| इनका शरीर बहुत कमजोर हो चूका था और इनसे ज्यादा खड़ा रहना मुश्किल हो रहा था इसलिए हम सब हमारे कमरे में आ गए| दिवार से टेक लगाए ये बैठ गए और आस-पडोसी सभी इनसे मिलने आने लगे, मेरे पास तो चैन से बैठ कर इनसे बात करने का समय ही नहीं मिला| रात को सब ने खाना खाया, बाकी सब तो बाहर बैठक में बैठे थे बस ये और बच्चे कमरे में बैठे थे| इनके खाने के लिए मैंने खिचड़ी बनाई थी और खिचड़ी खिलाने का काम दोनों बच्चों ने किया| दोनों बच्चों ने एक-एक कर चम्मच से इन्हें पूरी खिचड़ी खिलाई, अस्पताल में इन्हें खिलाने का मौका मुझे मिलता था मगर घर में मुझसे ये काम बच्चों ने छीन लिया था| खान खा कर सब सोने के लिए चले गए| मेरे माँ-पिताजी बच्चों के कमरे में सोये और आयुष उन्हें के साथ सोने वाला था| नेहा अपने वादे अनुसार अपने दादा-दादी जी के साथ सोने वाली थी| बड़की अम्मा और अजय भैया जगह की कमी होने के कारण किसी रिश्तेदार के पास रात रुक गए तथा अनिल बैठक में सोफे पर सो गया|

घडी में बजे थे दस और नेहा ने इन्हें दवाई दे कर सुला दिया था| रसोई समेट कर जब मैंने कमरे की लाइट जलाई तो देखा ये अभी भी जाग रहे हैं| इस वक़्त हमें बात करने से रोकने वाला कोई नहीं था मगर मैं इनसे कुछ कहती उससे पहले ही ये बोल पड़े; "सॉरी!' इतने दिनों बाद आज मुझे इनके मुँह से सबसे पहले अपने लिए 'जान' शब्द सुनना था ना की 'सॉरी'! इनक सॉरी सुनते ही मन में जो सवाल था की होश में आते समय ये सॉरी क्यों बड़बड़ा रहे थे, वो एकदम से बाहर आ गया; "जानू जब से आपको होश आया है तब से आप मुझे सॉरी क्यों बोले जा रहे हो? क्यों? गलती तो..."मैं आगे कुछ कहती उससे पहले ही ये बोल पड़े; "जान, सॉरी इसलिए बोल रहा हूँ की उस दिन उस कमीने बद्ज़ात की जान नहीं ले पाया! सॉरी इसलिए बोल रहा हूँ की तुम्हारी वो दर्दभरी लेखनी पढ़ कर तुम्हारे दिल के दर्द को महसूस तो किया मगर तुम्हें उस दर्द से बाहर न निकाल पाया! सॉरी इसलिए बोल रहा हूँ की इतने दिन बेहोश पड़ा रह कर तुमसे बात न कर के तुम्हें इतना तड़पाया और वो भी तब जब तुम माँ बनने वाली हो जबकि इस समय तो मुझे तुम्हें सबसे ज्यादा प्यार करना चाहिए था! सॉरी इसलिए..." ये आगे कुछ बोलते उससे पहले ही मैंने इनकी बात काट दी; "लेकिन आपकी कोई गलती नहीं थी! आप तो मुझे हँसाने-बुलाने के लिए जी तोड़ कोशिश किये जा रहे थे और मैं बुद्धू आप ही से अपना ग़म छुपाने में लगी थी! उस इंसान से अपना दर्द छुपा रही थी जो बिना मेरे बोले मेरे दिल का दर्द भाँप जाता है! सारी गलती मेरी थी, न मैं आप पर इस बच्चे के लिए दबाव डालती और न..." इससे आगे मैं कुछ बोलती उससे पहले ही ये मुझ पर गुस्से से बरस पड़े; "For god’s sake stop blaming yourself for everything!” इनका गुस्सा जायज़ था, मैंने जब हमारे बच्चे को एक ‘दबाव’ का नाम दिया तो इनका मुझ पर चिल्लाना जाहिर था!

खैर, इनका ये गुस्सा देख मैं दहल गई थी! मुझे डर लग रहा था की कहीं मेरे कारण आये गुस्से से इनकी तबियत फिर न खराब हो जाए| इतने में नेहा दरवाज़ा खोलते हुए मुझ पर बरस पड़ी; "मम्मी, फिर से?" नेहा गुस्से और नफ़रत से मुझे घूर रही थी! फिर उसने अपने पापा को देखा और इनके चेहरे पर गुस्सा देख नेहा डर गई, उसे लगा की कहीं उसके पापा फिर से न बीमार हो जाएँ इसलिए वो दौड़ती हुई इनके पास आई तथा इनके सीने से लिपट कर रोने लगी! अपनी बेटी को यूँ रोते हुए देख इनका दिल पसीज गया और मेरे ऊपर आया गुस्सा अब नेहा पर प्यार बन कर बरसने लगा| इन्होने ने नेहा को अपनी बाहों में भरे हुए लाड करना शुरू किया, उसके सर को बार-बार चूम कर उसे चुप कराया और अंत में दोनों बाप-बेटी लेट गए| मैंने लाइट बुझाई और मैं भी इनकी बगल में लेट गई, नेहा हम दोनों के बीच में थी और इनकी तरफ करवट कर के इनसे लिपटी हुई थी| मैंने भी इनकी तरफ करवट ली और अपना हाथ नेहा की कमर पर रख दिया| नेहा ने एकदम से मेरा हाथ दूर झटक दिया और फिर से अपने पापा से लिपट गई| उसके यूँ मेरा हाथ झटकने से मुझे दुःख तो बहुत हुआ मगर मैं फिर भी चुप रही क्योंकि मुझे इस वक़्त एक इत्मीनान था की मेरे पति घर आ चुके हैं और एक उम्मीद थी की ये जल्दी से ठीक हो जाएंगे, इसी उम्मीद के साथ मेरी कब आँख लगी और कब सुबह हुई पता ही नहीं चला|



सुबह के पाँच बजे थे और पूरे घर में ये ही सबसे पहले उठे थे| दिवार से टेक लगा कर बैठे हुए, नेहा का सर अपनी गोदी में रखे और मेरे सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए ये मुस्कुराये जा रहे थे| इनके सर पर हाथ फेरने से मेरी नींद खुली, वो सुखद एहसास ऐसा था की इससे बेहतर सुबह की मैं कल्पना नहीं कर सकती थी| मैं उठने लगी तो इन्होने मुझे समय का वास्ता दे कर सोते रहने को कहा, उधर मेरा मन इन्हें आज कई दिनों बाद सुबह की गुड मॉर्निंग वाली kissi देने का था मगर तभी मेरी 'माँ' नेहा जाग गई क्योंकि उसके स्कूल जाने का समय होने वाला था| नेहा अपनी पढ़ाई को ले कर पहले ही संजीदा थी उस पर जब ये बीमार पड़े तो उसने सुबह जल्दी उठने की आदत बना ली थी|

अपनी लाड़ली को जागा हुआ देख इनका ध्यान मुझ पर से हट कर नेहा पर चला गया| "गुड मॉर्निंग मेरा बच्चा!" इन्होने नेहा के माथे को चूमते हुए कहा, जवाब में नेहा ने इनके दोनों गालों पर अपनी सुबह की गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दी तथा इनसे कस कर लिपट गई| अपने वादे अनुसार नेहा को आज स्कूल जाना था इसलिए जब इन्होने नेहा के स्कूल के जाने को ले कर बात शुरू की तो नेहा न-नुकुर करने लगी| मैं जानती थी की नेहा क्यों स्कूल नहीं जा रही, उसे डर था की उसकी गैरहाजरी में मैं कल रात की ही तरह कोई न कोई ऐसी गलती करूँगी जिससे इन्हें गुस्सा आएगा और इनकी तबियत फिर से खराब हो जाएगी| नेहा ये बात इनसे नहीं कह सकती थी क्योंकि वो जानती थी की उसके पापा उसकी मम्मी के खिलाफ ऐसा नहीं सोचते इसी डर से नेहा खामोश थी|



लेकिन इनका भी एक अलग अंदाज है जिसके आगे किसी की नहीं चलती! इन्होने नेहा को लाड-प्यार करते हुए उसे कहा; "मेरा बच्चा अगर स्कूल नहीं जाएगा तो बड़ा कैसे होगा? डॉक्टर, इंजीनियर कैसे बनेगा? मेरा प्यारा-प्यारा बच्चा है न, तो पापा की बात मानेगा न?" ये सब सुन नेहा का दिल पिघल गया और वो स्कूल जाने के लिए राज़ी हो गई मगर उसने स्कूल जाने से पहले एक शर्त रखी; "आप मुझे वादा कीजिये की आप समय से खाना खाओगे, समय पर दवाई लोगे, सिर्फ आराम करोगे..." इतना कह नेहा गुस्से से मेरी ओर देखने लगी और अपनी बात पूरी की; "...और चाहे कोई भी आपको कितना भी गुस्सा दिलाये, आपको 'provoke' करे आप बिलकुल गुस्सा नहीं करोगे!" नेहा ने जिस तरह इन्हें हिदायतें दी थीं उसे सुन कर एक पल को इनके चेहरे पर मुस्कान आ गई और उन्हें मुस्कुराते देख मैं भी मुस्कुराने लगी! "मेरी मम्मी जी, आप बस स्कूल जा रहे हो दूसरे continent नहीं जा रहे जो इतनी सारी हिदायतें मुझे दे रहे हो! यहाँ घर पर इतने सारे लोग हैं, आपकी मम्मी हैं, आपके दादा-दादी जी हैं, आपके नाना-नानी जी हैं, आपके अनिल मामा जी हैं और अजय चाचा हैं तो फिर आपको किस बात की चिंता? और कौन हैं यहाँ जो मुझे provoke करे या गुस्सा दिलाये?" इनके पूछे अंतिम सवाल का जवाब देने के लिए नेहा ने मुँह खोला ही था की मैंने इस विषय पर बाप-बेटी की बात शुरू होने से पहले ही बदल दी क्योंकि मैं जानती थी की नेहा का मुझ पर गुस्सा देख ये नाराज़ होंगें और नेहा को डाँट देंगे! "नेहा बेटा, जल्दी से तैयार हो जाओ वरना स्कूल के लिए लेट हो जाओगे!" अब ये कोई बुद्धू तो थे नहीं जो मेरी होशियारी न पकड़ पाएँ, इन्होने घडी देखते हुए मुझे नजरों ही नजरों से उल्हाना दिया की; 'अभी बस साढ़े पाँच ही हुए हैं!' अब मैं क्या कहती मैं बस शैतानी मुस्कान हँस कर इन्हें भी हँसा दिया!

नेहा उठ कर तैयार होने लगी और थोड़ी देर बाद आयुष आ कर इनकी गोदी में सो गया| उसे भी बड़ी मुश्किल से इन्होने लाड-प्यार करते हुए स्कूल जाने के लिए मनाया| आयुष तैयार हो रहा था जबकि नेहा तैयार हो कर इनके पास बैठ गई थी| तभी सासु माँ इनका हाल-चाल पूछने आईं और नेहा से प्यार से शिकायत करते हुए बोलीं; "नेहा, बेटा तू तो अपने पापा को गुड नाइट वाली पप्पी देने आई थी फिर यहीं सो गई? ये सुन नेहा शर्माने लगी और इनसे लिपट गई! नेहा को शरमाते देख हम तीनों हँस पड़े, तभी आयुष तैयार हो कर आ गया और नेहा ने अपनी दादी जी की ड्यूटी लगाते हुए कहा; "दादी जी, जब तक मैं स्कूल से न आऊँ, तबतक आप पापा जी के पास रहना| उन्हें नाश्ता और दवाई आप दोगे और आराम करने को बोलते रहना|" नेहा की बात सुन माँ हँस पड़ीं और बोलीं; "बेटा ड्यूटी तो तूने मेरी लगा दी मगर मुझे इस ड्यूटी के बदले में क्या मिलेगा?" माँ ने हँसते हुए सवाल पुछा, नेहा जवाब दे उससे पहले ही आयुष बोल पड़ा; "दादी जी, मैं है न आपके लिए चॉकलेट लाऊँगा!" ये सुन कर तो माँ बड़ी जोर से हँसी और मैं आयुष की टाँग खींचते हुए बोली; "लेकिन ये चॉक्लेट तू खायेगा या फिर तेरी दादी जी?" ये सुनते ही आयुष ने फ़ट से अपना हाथ उठाया और उसके इस भोलेपन पर हम सभी हँस पड़े!



खैर बच्चे स्कूल के लिए निकले और जाते-जाते अपने पापा के दोनों गाल अपनी पप्पी से भीगा गए! बच्चों के जाते ही इन्होने हमारे कमरे में सभा का ऐलान कर दिया| बड़की अम्मा और अजय के आते ही सब लोग अपनी चाय का गिलास/कप थामे कमरे में इनको घेर कर बैठ गए| कमरे में हीटर चालु था जिससे कमरे में गर्माहट बनी हुई थी और कमरे का माहौल आरामदायक बना हुआ था| ये दिवार से टेक लगा कर बैठे थे तथा बाकी सभी इनके सामने या अगल-बगल कुर्सी पर बैठे हुए थे| देखने पर ऐसा लगता था मानो अमरीका के राष्ट्रपति अपनी कैबिनेट के लोगों को सम्बोधित करते हुए बजट की चर्चा कर रहे हों! इधर मैं थोड़ी जिज्ञासु थी ये जानने के लिए की भला इनको सभी से एक साथ क्या बात करनी है?!



"मुझे आप सभी से कुछ कहना है|" इतना कह इन्होने सब के आगे हाथ जोड़े और माफ़ी माँगते हुए बोले; "मैं आप सभी से हाथ जोड़ कर माफ़ी माँगता हूँ की मेरे कारण आप सभी को इतनी तकलीफ उठानी पड़ी|" इन्हें हाथ जोड़े हुए देख सभी लोग एक साथ बोलने लगे; 'बेटा, ये तू क्या कह रहा है?!' लेकिन इन्होने अपनी बात आगे जारी रखी; "दो बच्चों का बाप होने के बावजूद मुझे इस तरह की लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए थी!" इतना कह ये मेरी तरफ देखने लगे और बोले; "मैं जानता हूँ की मेरी इस हालत का दोषी संगीता ने खुद को ही माना होगा, क्योंकि ये संगीता की बहुत बुरी आदत है! मेरी हर गलती का जिम्मेदार संगीता खुद को मानती है और मेरे सारे ग़म और बेवकूफियाँ ये अपने सर लाद लेती है!” ये सुन मेरे पिताजी कहने वाले हुए थे की ये तो हर पत्नी का धर्म होता है की वो अपने पति के दुःख-दर्द बाटें मगर इन्होने पिताजी को कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया तथा अपनी बात जारी रखी; "मैं जानता हूँ की ये हर पत्नी की जिम्मेदारी होती है की वो अपने पति के दुःख बाटें मगर ये कहीं नहीं लिखा की पति दवाई न खाये और खुद अपनी तबियत खराब कर ले और पत्नी इसका ठीकरा अपने सर फोड़ ले!" इनकी ये बात सुन पिताजी कुछ नहीं बोल पाए और अब जा कर मुझे इनकी सारी बात समझ आने लगी, दरअसल जब से ये होश में आये थे इन्होने गौर किया की मेरे माँ-पिताजी और अनिल मुझसे ठीक से बात नहीं कर रहे थे इसलिए मेरी इज़्ज़त सब के सामने रखने के लिए ये मेरी तरफदारी करते हुए ये मेरा बचाव कर रहे थे|

"देखिये, जो हुआ उसमें संगीता की कोई गलती नहीं थी और मैं नहीं चाहता की आप मेरी गलतियों की सजा संगीता को दें और उससे नफरत करें या उससे नाराज़ रहे|” ये बात इन्होने मेरे माँ-पिताजी की ओर देखते हुए कही| “दरअसल उस हादसे के बारे में सोच-सोच कर मेरा खून खौलने लगा था, दिल में आग लगी हुई थी और गुस्से से मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था| अपने गुस्से की आग में खुद जलते हुए मैं पता नहीं क्या-क्या ऊल-जुलूल हरकतें कर रहा था| कभी दुबई जा कर बसने की तैयारी कर रहा था तो कभी संगीता को हँसने के लिए जबरदस्ती पीछे पड़ रहा था, खाना-पीना बंद कर दवाइयाँ बंद कर मैंने अपनी ये दुर्गति कर ली! ऐसा लगता था जैसे मेरे दिमाग ने सोचने समझने की ताक़त खो दी हो! इसलिए आज आप सभी से मैं आज हाथ जोड़ कर अपनी की इन बेवकूफियों की क्षमा माँगता हूँ|" इन्होने आज मेरा मान-सम्मान बचाने के लिए बड़ी आसानी से मेरी सारी गलतियों का बोझ अपने ऊपर ले लिया था| इनकी ये बातें सुन मेरे माँ-पिताजी और अनिल को लगा की मैंने शायद उनकी शिकायत इनसे की है तभी ये इस कदर मुझे बचाने के लिए इतनी सफाई दे रहे हैं मगर इन्होने आगे जो कहा उससे उनके मन में कोई संशय नहीं रहा; "पिताजी, संगीता ने मुझसे किसी की कोई शिकायत नहीं की है, मैं जानता हूँ की आप मुझे ज्यादा प्यार करते हो इसलिए संगीता को सबसे ज्यादा आपने ही डाँटा होगा|" इन्होने मुस्कुराते हुए मेरे पिताजी यानी अपने ससुर जी से कहा| इनकी बात सुन मेरे पिताजी संग सभी मुस्कुराने लगे! तभी इन्होने मुझे मेरे पिताजी के पाँव छूने को कहा, मैंने फ़ौरन अपने पिताजी के पाँव छू कर माफ़ी माँगी और उन्होंने मुझे माफ़ करते हुए कहा; "खुश रहो मुन्नी!" पिताजी की माफ़ी पा कर मुझे बहुत ख़ुशी हुई, फिर मैं अपनी माँ के पास पहुँची और उनके पाँव छुए तो माँ ने भी मुस्कुराते हुए मुझे माफ़ किया तथा आशीर्वाद दिया| बड़की अम्मा मेरी माँ के बगल में ही बैठीं थीं, जब मैं उनके पाँव छू कर आशीर्वाद लेने लगी तो इन्होने मुस्कुराते हुए बड़की अम्मा से कहा; "मुझे यक़ीन हैं की एक बस मेरी बड़की अम्मा हैं जिन्होंने संगीता को मेरे बीमार होने के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया होगा| हैं न अम्मा?" जिस यक़ीन से इन्होने अपनी बात कही थी उससे बड़की अम्मा के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और वो बोलीं; "मुन्ना (ये) तू तो जानत हो, हम अगर बहु का कछु कहित भी तो कउन हक़ से?" बड़की अम्मा अपने खून (चन्दर) के कारण लज्जित महसूस कर रहीं थीं और उन्हें लग रहा था की शायद उनका अब हमारे परिवार पर कोई हक़ नहीं रहा| "ये क्या कह रहे हो अम्मा, आप तो हमारी (मेरी और इनकी) बड़की अम्मा हो! आपका पूरा हक़ है हमें डाँटने का और चाहो तो मार भी लेना|" मैंने इनकी और अपनी ओर से दिल से बात कही| "नहीं बहु, हमार आपन खून का किया धरा है ई सब! हमका तो कछु भी कहे का कउनो हक़ नाहीं!" ये कहते हुए बड़की अम्मा भावुक हो गईं और रो पड़ीं| मैंने फ़ौरन आगे बढ़ कर अम्मा को अपने गले लगाया और उन्हें रोने से रोकते हुए बोली; "अम्मा, रोओ मत! आप रोओगे तो ये भी रो पड़ेंगे और डॉक्टर ने कहा है की इन्हें हमें खुश रखना है|" मैंने खुसफुसाते हुए अम्मा को बात समझाई| अम्मा ने फ़ौरन अपने आँसूँ पोछे और खुद को संभाल लिया जिससे ये इस बात को ले कर चिंतित नहीं हो पाए| मैं जानती थी की अम्मा की बात इन्हें कहीं न कहीं इन्हें लग चुकी है, परन्तु इन्होने खुद को इस बात पर सोचने से रोका तथा बात बनाते हुए माँ-पिताजी (मेरे सास-ससुर जी) से बोले; "और माँ-पिताजी, आपने तो संगीता को कुछ कहा नहीं होगा?!" ये जानते थे की माँ-पिताजी मुझसे इतना प्यार करते हैं की वो मुझे कभी कुछ नहीं कहेंगे इसलिए इन्होने ये सवाल माँ-पिताजी को उल्हना देते हुए पुछा था| "भई गलती तेरी तो हम भला अपनी बहु को क्यों कुछ कहेंगे? हमें तो पहले से पता था की ये सब किया-धरा तेरा है, हमारी बहु तो सीधी-साधी है और तेरे कर्मों की सजा ख़ुद को दे रही है|" सासु माँ इन्हें सुनाते हुए बोलीं| इधर मेरे पिताजी इनका पक्ष लेते हुए बोले; "अरे वाह समधन जी, ई सही कहेऊ! सब खोट हमार मुन्ना में ही हैं?!" पिताजी मेरी सासु माँ को उल्हाना देते हुए मज़ाकिया अंदाज में बोले जिस पर सभी ने हँसी का ठहाका लगाया!



नाश्ते का समय हो रहा था इसलिए सभी बाहर बैठक में बैठ गए, बस एक ये ही कमरे के भीतर रह गए थे क्योंकि बाहर का तापमान कम था और इन्हें सर्दी होने का खतरा था इसलिए ये अंदर कमरे में ही बैठे थे| तभी मेरे पिताजी आ कर इनकी बगल में बैठ गए और इनके कँधे पर हाथ रख कर मेरी ओर देखते हुए बोले; "मुन्नी, तू है नसीब वाली जउन तोहका मानु जइसन पति मिला, जो तोहार सारी गलतियाँ आपन सर ले लेथ है!" पिताजी मुस्कुराते हुए बोले| इतने में मेरी माँ भी आ कर वहीं खड़ी हो गईं, ये फिर मेरा बचाव करते हुए बोले; "पिताजी, ऐसा कुछ नहीं है| सारी गलती मेरी थी!" इन्होने अपनी बात फिर दोहराई, लेकिन इस समय पिताजी इनके साथ तर्क करते हुए बोले; "अच्छा मुन्ना एक बात बतावा, अइसन कौन पत्नी होवत है जउन आपन दुःख-दर्द आपन पति से कहे का डरात है?" पिताजी का ये तर्कपूर्ण सवाल सुन मुझे लगा की इनके पास कोई जवाब नहीं होगा मगर इन्होने बड़े तपाक से पिताजी के सवाल का जवाब मेरी माँ यानी अपनी सासु माँ की तरफ देखते हुए दिया; "वही पत्नी जो ये जानती हो की उसका दुःख-दर्द जान कर उसके पति की तबियत खराब हो जाएगी|" इनका ये जवाब माँ के लिए एक इशारा था की उन्होंने अनिल के हर्निया के ऑपरेशन की बात पिताजी से छुपा कर कोई पाप नहीं किया|

उधर इनका जवाब सुन पिताजी खामोश हो गए थे, वो अनिल के हर्निया के बारे में तो नहीं जान पाए थे मगर उन्हें इनकी बात अच्छी लगी ओर अंततः वो मुस्कुराने लगे| "मुन्ना, तोहसे बतिया करे म कउनो नाहीं जीत सकत, काहे से की तोहरे लगे हर सवाल का जवाब है|" इतना कह पिताजी ने इनके सर पर हाथ रख इन्हें आशीर्वाद दिया और माँ के साथ बाहर बैठक में आ कर बैठ गए| आजतक ऐसा नहीं हुआ की मेरे पिताजी किसी की बात सुन कर निरुत्तर हो गए हों या किसी ने उन्हें यूँ प्यार से चुप करा दिया हो, कम से कम मेरे सामने तो ऐसा नहीं हुआ! दरअसल ये इनका गहन प्रभाव था जो मेरे पिताजी को बहुत प्रभावित कर गया था| इनके इसी प्रभाव के कारण आज माँ और मेरी सासु माँ खुल कर अपनी बात सामने रख पा रहीं थीं!

इधर जिस तरह इन्होने पिताजी के सामने मेरा पक्ष लिया था और मेरी इज़्ज़त, मेरा मान मुझे वापस लौटाया था उससे मेरा दिल भर आया था| मन किया की इनके सीने से लग कर रो पडूँ लेकिन फिर मुझे रोता हुआ देख इनका दिल दुखता इसलिए मैंने खुद को सँभाल लिया| इतने में अनिल कमरे में आया और मुझसे बोला; "दी, नाश्ते के लिए आपको बाहर बुला रहे हैं|" इतना कह अनिल वापस बाहर चला गया| अनिल ने आज मुझे फिर दीदी की जगह 'दी' कह कर बुलाया था जो मेरे दिल को बहुत चुभा था मगर मैं फिर भी चुप रही और अपना दर्द इनसे छुपाने लगी| दरअसल इनकी दी गई मेरे बचाव में दलील सुन कर भी अनिल का मन मेरे प्रति नहीं पिघला था, उसके लिए मैं ही इनके बीमार होने की कसूर वार थी जो की सही भी था| इधर अनिल की बातों से इनको शक हो गया था, शायद ये मेरे दिल का दर्द भाँप चुके थे; "मैं देख रहा हूँ की अनिल तुम्हें दीदी की जगह 'दी' कहने लगा है, क्या ये आज कल कोई नया ट्रेंड है?" इन्होने थोड़ा चिंतित होते हुए पुछा| मुझे इनको चिंता करने से रोकना था इसलिए मैंने इनकी बात को मज़ाकिया मोड़ दे दिया; "हाँ जी, आज कल की नई पीढ़ी है शब्दों को छोटा करने में इन्हें बड़ा कूल लगता है| मैं तो शुक्र मनाती हूँ की इसने दीदी का सिर्फ 'दी' बनाया वरना मुझे तो लगा था की कहीं मुझे दीदी की जगह 'dude' न कहने लगे! ही...ही...ही!!!" मैंने नकली हँसी हँसते हुए कहा| लेकिन इन्हें मुझ पर शक हो चूका था की मैं ज़रूर कोई बात छुपा रही हूँ, लेकिन फिलहाल ये थोड़ा थक गए थे इसलिए मुझसे शिकायती अंदाज़ में बोले; "अच्छा जी? ज़माना इतना बदल चूका है? हम तो जैसे बूढ़े हो गए?!" मैंने अनिल को नई पीढ़ी का कह कर इन्हें बुजुर्ग होने का एहसास करा दिया था इसीलिए ये थोड़ा नाराज़ थे|



मैं नाश्ते बनाने बाहर आई और ये लेट कर आराम करने लगे| नाश्ता बना, मैंने सबको नाश्ता परोसा और हम दोनों मियाँ-बीवी का नाश्ता ले कर मैं अंदर आ गई| बाकी सब के लिए मैंने पोहा बनाया था मगर अपने और इनके लिए मैंने दलिया बनाया था, जो हमने एक अरसे बाद एक दूसरे को खिलाते हुए खाया| मैंने इन्हें कमरे के भीतर ही रोका हुआ था क्योंकि बाहर का कमरा ठंडा था और इनका साइनस इन्हें तंग करने लौट सकता था, यदि एक बार साइनस का अटैक शुरू हो जाता तो इनकी तबियत बहुत खराब हो जाती|


जारी रहेगा भाग - 2 में...
Mast update bhai
 
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