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Romance Ek Duje ke Vaaste..

only_me

I ÂM LÕSÉR ẞŪT.....
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Update 15



“मैंने उसे 1.5 साल पहले एक मॉल के बाहर कीसी से बात करते देखा था, इन्फैक्ट वो बात करते हुए रो रही थी” अमर ने कहा और एकांश को देखा

“कौन था वो?” एकांश ने पूछा और अब जो अमर बताने वाला था उसे सुन शायद एकांश को एक काफी बड़ा झटका मिलने वाला था

“तुम्हारी मा.....”

“तू समझ रहा है ना तू क्या बोल रहा है तो?” एकांश को अमर की बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था जो स्वाभाविक भी था, अक्षिता के उससे दूर जाने के पीछे उसकी मा होगी ये उसने सोचा भी नहीं था

“मैं जानता हु यकीन करना मुश्किल है लेकिन मैं बहुत सोच के बोल रहा हु एकांश, करीब डेढ़ साल पहले की बात है मैं सिटी मॉल जा रहा था तब मैंने वहा आंटी को देखा था जो शायद कीसी को ढूंढ रही थी, आंटी को वहा देख मैंने गाड़ी पार्क की और उनके पास जाने लगा लेकिन तब तक मैंने देखा के वहा एक लड़की भी आ गई थी जिसे लेकर आंटी थोड़ा साइड मे एक कॉर्नर मे चली गई, वो लड़की उनसे बात कर रही थी और बात करते करते वो लड़की रोने लगी थी और फिर उसने आंटी से कुछ कहा और वहा से चली गई,” अमर ने एकांश को पूरी बात बताई और ये सब सुन के एकांश के चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था, अमर ने आगे बोलना शुरू किया

“एकांश सुन, मैं बस वो बता रहा हु जो मैंने उस दिन देखा था और पूरा सच क्या है मुझे भी नहीं पता, बात कुछ और भी जो सकती है और यही जानने के लिए मैं अक्षिता का पीछा कर रहा था, सिम्पल लड़की है यार और उसके मा बाप भी ऐसे नहीं है के वो उसे कीसी बात के लिए रोकते हो, उसे शायद पता चल गया था के मैं उसका पीछा कर रहा हु इसीलिए सतर्क हो गई वो, वो बाते छिपाने मे माहिर है भाई इसीलिए असल सच पता ही नहीं चल पाया” अमर ने एकांश के कंधे पे हाथ रखते हुए कहा

“क्या अक्षिता का मुझे धोका देने के पीछे मा का हाथ हो सकता है?” एकांश ने अमर से पूछा और पूछते हुए उसकी आवाज कांप रही थी

“शायद, या शायद नहीं भी लेकिन अब यही तो हमे पता लगाना है” अमर ने कहा

“पता क्या लगाना है मैं अभी सीधा जाकर मॉम से इस बारे मे बात करता हु” एकांश ने अपनी जगह से उठते हुए कहा

“नहीं!! फिलहाल तो ऐसा बिल्कुल नहीं करना है, अगर इस सब मे उनकी कोई गलती नहीं हुई तो उन्हे हर्ट होगा और अगर उनकी गलती रही तो वो शायद इस बात से अभी अग्री ही नहीं करेंगी” अमर ने एकांश को रोका

“तो अब क्या करे तू ही बता?” एकांश ने चिल्ला के पूछा

“देखा आंटी से पुछ के भी तुझे पूरा सच पता चलेगा इसकी कोई गारेंटि नहीं है, हम तो ये भी नहीं जानते के हमारे अनुमान कितने सही है और इतने गलत है और इस सब की वजह से कीसी अपने को हर्ट हो खास कर आंटी को तो ये बिल्कुल सही नहीं होगा” अमर ने अपनी बात आराम से कही

“हम्म, पहले अक्षिता के बारे अपने मे जो अपने अनुमान है उनको देखते है सही है या गलत, कल रात के बाद मैं इतना तो शुवर हु के कनेक्शन तो अब भी है” एकांश ने शांत होते हुए कहा, वो वापिस अपनी जगह पर बैठ गया था

"करेक्ट, और कुछ तो बड़ा रीजन है जो हमको पता लगाना है" अमर ने कहा

"हम्म, लेकिन कैसे पता करेंगे?"

"पहले तो ये देखते है उसके मन में तेरे लिए फीलिंग्स है या नही इस और से कन्फर्म होना सही रहेगा"

"और ये कैसे करेंगे?"

"अबे तू ढक्कन है क्या, इतनी बड़ी कंपनी संभालता है और इतनी समझ नही है, तूने प्यार किया है उससे भाई, तुझे तो अच्छे से पता होना चाहिए उसके बारे में उसके नेचर के बारे में कौनसी बात उसे सबसे ज्यादा एफेक्ट करती है इस बारे में"

"हा हा पता है"

"पता है तो बता फिर"

"अक्षिता न सिंपल लड़की है, वो बस दिखने मे सरल है लेकिन है काफी चुलबुली, छोटी छोटी बातों मे खुश हो जाती है और छोटी छोटी बातों मे नाराज भी, हम जब रीलेशनशीप मे थे तब उसका पोस्ट ग्रैजवैशन चल रहा था फिर भी हम लगातार मिलते है, पार्क हमारे मिलने का ठिकाना था, अगर कभी मुझे देर हो जाए या मैं कीसी काम मे हु और उसका फोन ना उठाऊ तो पैनिक कर देती थी वो, और अगर कभी मेरी तबीयत खराब हो जाए तो आँसू उसकी आँखों से निकलते थे, वो मुझे तकलीफ मे नहीं देख सकती थी और अगर गलती से कोई लड़की मेरे से बात कर ले या आसपास भी आ जाए तो उसे जलन भी होने लगती थी, मैंने उसको कई गिफ्ट दिए थे लेकिन उसके बर्थडे पर मैंने उसे एक लॉकेट दिया था जो उसे बेहद पसंद था और वो जहा भी रहे कुछ भी करे वो लॉकेट हमेशा उसके गले मे रहता था, कहती थी मुझपर ब्लू कलर सूट करता है इसीलिए उसने मुझे ब्लू शर्ट भी गिफ्ट किया था....” एकांश बोल रहा था पुरानी यादे अमर को बता रहा था और अमर सब सुन रहा था

एकांश के चेहरे पर इस वक्त कई सारे ईमोशन बह रहे थे और अमर चुप चाप उसे देख रहा था, अक्षिता के बारे मे बात करते हुए एकांश की आँखों मे एक अलग ही चमक थी जो अमर से छिपी हुई नहीं थी, एकांश ने अमर को देखा जो उसे ही देख रहा था

“तू अब भी उसे उतना ही चाहता है, हैना?” अमर ने एकांश के चेहरे पर आते भावों को देख पूछा

“क.. क्या... नहीं!! पुरानी बाते है अब वो” एकांश ने कहा लेकिन अमर उसकी बात कहा मानने वाला था

“जब कुछ है ही नहीं भोसडीके तो हम यहा पापड़ बना रहे है क्या,”

“नहीं, मैं बस ये जानना चाहता हु के उसने मुझे क्यू छोड़ा, बस।“

“ठीक है मत बता, लेकिन अब पुरानी बातों मे घूम के समझ आया आगे क्या करना है या वो भी मैं ही बताऊ?”

“समझ गया, देखते है उसके मन मे मेरे लिए क्या है तो”

“गुड, कल की तयारी करो फिर चल मैं निकलता हु” इतना बोल के अमर वहा से निकल गया

--

अगले दिन

अक्षिता अगले दिन हमेशा को तरह ऑफिस पहुंच चुकी थी लेकिन हमेशा वाले जॉली मूड में नहीं थी बल्कि उसके चेहरे पर एक उदासी थी, पार्टी को बात तो उसके दिमाग से एकदम ही निकल गई थी, उसके जगह कई और खयाल इसके दिमाग में घूम रहे थे

अक्षिता ने एक लंबी सास छोड़ी और हाथ में एकांश को कॉफी का कप लिए उसके केबिन का दरवाजा खटखटाया

"कम इन"

अंदर से आवाज आया जिसे सुन अक्षिता थोड़ा चौकी, आज एकानशंका आवाज कुछ अलग था, उसका आवाज हमेशा को तरह सर्द नहीं था बल्कि उसके आवाज में थोड़ी एक्साइटमेंट थी

अक्षिता ने दरवाजा खोला और अंदर आई

"सर आपकी कॉफी" अक्षिता ने कॉफी टेबल पर रखते हुए कहा

"थैंक यू" एकांश ने कॉफी का कप उठाते हुए मुस्कुराते हुए कहा और अब तो अक्षिता काफी हैरान थी एक तो एकांश उसे थैंक यू बोला था ऊपर से उसको देख मुस्कुराया भी था

"Take your seat miss Pandey" एकांश ने कहा और अब ये अक्षिता के लिए दूसरा झटका था के काम के बीच एकांश उसे बैठने के लिए कहे, वो जब बेहोश हुई थी तब के अलावा एकांश ने उसे कभी ऐसे बैठने नहीं कहा था बल्कि वो तो हमेशा उसका काम बढ़ाता था, खैर अक्षिता वहा बैठ गई

"तो, अब कैसी है आप?" एकांश ने पूछा एकांश ने और अक्षिता थोड़ी हैरत के साथ उसे देखने लगी

‘इसको क्या हो गया अचानक, ये आज पुराना एकांश कैसे बन गया’

"सर आप ठीक है ना?" अक्षिता के मुंह से अचानक निकला

"हा, हा मैं एकदम ठीक हु, थैंक यू फॉर आस्किंग" एकांश ने वापिस मुस्कुराते हुए जवाब दिया

और अब बस अक्षिता ने एक पल उसे देखा और फिर सीधा उसके केबिन से बाहर निकल गई और बाहर जाकर सीधा सीढ़ियों के पास रुकी और एकांश के केबिन के बंद दरवाजे को देख सोचने लगी

‘इसको अचानक क्या हो गया? ये इतनी मीठी तरह से बात क्यू कर रहा है? ये डेफ़िनटेली एकांश नहीं है, ये वो खडूस है हि नहीं’

और यही सब सोचते हुए अक्षिता वहा से निकल कर अपने फ्लोर पर अपनी डेस्क कर आकार अपने काम मे लग गई वही एकांश अपने केबिन मे बैठा अक्षिता को वहा से जाते देखता रहा

‘इसको क्या हो गया अचानक?’

‘ये ऐसे भाग क्यू गई?’

‘शीट! कही मेरे बदले हुए बिहैव्यर ने डरा तो नहीं दिया इसको?”

‘लेकिन मैं भी क्या करू जब से पता चला है के शायद अक्षिता ने मुझे धोका नहीं दिया है मैं खुद को रोक ही नहीं पाया’


एकांश के मन मे यही सब खयाल चल रहे थे का तभी उसने दरवाले पर नॉक सुना और अमर अंदर आया

“यो एकांश क्या हुआ? बात बनी?” अमर ने आते साथ ही पूछा

“वो भाग गई”

“क्या?? कैसे?? क्या किया तूने?” अमर ने एकांश के सामने की खुर्ची पर बैठते हुए पूछा

“मैंने बस उसको कॉफी के लिए शुक्रिया बोला था और थोड़ा हस के बात कर ली थी और कुछ नहीं और वो ऐसे भागी जैसे कोई भूत देखा हो” एकांश ने कहा और अमर उसकी बात सुन हसने लगा

“तूने उसको हस के देखा फिर थैंक यू बोला और तू कह रहा है तूने कुछ नहीं किया, अबे चूतिये एकांश रघुवंशी है तू, ऐरगन्ट है अकड़ू है अपने खुद का बत्राव याद कर पिछले कुछ समय का खासतौर पर कंपनी टेकओवर के बाद का और फिर तुम अक्षिता से उम्मीद करते हो के वो डरे ना, वाह बीसी” अमर ने हसते हुए कहा

“सही मे ऐसा है क्या”

“हा, अब लगता है उसकी फीलिंगस बाहर लाने कोई तिकड़म लगाना पड़ेगा”

“तो क्या करे?”

“उसको बुला यह”

जिसके बाद तुरंत ही एकांश ने अक्षिता को अपने केबिन मे आने को कहा

“गुड अब मैं बताता हु वैसा करना”

वही दूसरी तरह अक्षिता एकांश के केबिन मे नहीं जाना चाहती थी फिर भी बॉस का हुकूम था तो करना ही था उसने केबिन का दरवाजा खटखटाया और कम इन का आवाज आते ही अंदर गई उसने देखा के एकांश अपनी खुर्ची पर बैठा था और उसके पास एक बंदा खड़ा था

“सर आपने बुलाया मुझे?’ अक्षिता ने अंदर आते कहा

और फिर अक्षिता ने देखा के वो बंदा अमर था और वो एकांश के पास से दूर हट रहा था और अक्षिता ने जैसे ही एकांश को देखा उसके चेहरे पर डर की लकिरे उभर आई

“अंश” अक्षिता चिल्लाई और दौड़ के एकांश के पास पहुची

एकांश के हाथ से खून बह रहा था और अक्षिता ने उसका वो हाथ अपने हाथ मे लिया और अपने दुपट्टे से उसके हाथ से बहता खून सायद कर खून रोकने की कोशिश करने लगी, वही एकांश तो अपने लिए अक्षिता के मुह से अंश सुन कर ही खुश हो रहा था, बस वही थी जो उसे अंश कह कर बुलाती थी और ये हक कीसी के पास नहीं था

“ये खून, ये कैसे हुआ?” अकसीता ने पूछा, उसकी आँख से आँसू की एक बंद टपकी

“टेबल पर रखा पानी का ग्लास टूट गया और टूटे कांच से चोट लगी है” अमर ने अक्षिता के रोते चेहरे को देख कहा, एकांश ने सही कहा था वो उसे दर्द मे नहीं देख सकती थी

“तो तुम यह बुत की तरह क्या खड़े को देख नहीं रहे अंश को चोट लगी है जाओ जाकर फर्स्ट ऐड लेकर आओ, वो वहा कैबिनेट मे रखा है” अक्षिता ने अमर से चीखते हुए कहा वही एकांश के चेहरे पर स्माइल थी

“और तुम, तुम क्यू मुस्कुरा रहे हो, चोट लगी है और तुमको हसी आ रही है, मैंने कोई जोक सुनाया क्या? तुम इतने लापरवाह क्यू हो देखा चोट लग गई ना” अक्षिता ने लगे हाथ एकांश को भी चार बाते सुना दी

अमर ने फर्स्ट ऐड लाकर अक्षिता को थमाया और वो एकांश की पट्टी करने लगी वही एकांश बस उसे देख रहा था, अक्षिता की नजर जब उसपर पड़ी तो एकांश की आखों मे उमड़ते भाव उसे डराने लगे थे

अक्षिता ने वहा खड़े अमर को देखा जो उन दोनों को देख मुस्कुरा रहा था

“सुनो” अक्षिता ने अपनी आंखे पोंछते हुए अमर से कहा

“मैं?”

“हा तुम ही और कोई है क्या यहा, इसे अस्पताल ले जाओ और अच्छे से पट्टी करवा देना और वो दवाईया डॉक्टर दे वो देना” अक्षिता ने अमर को ऑर्डर दे डाला लेकिन अमर वैसे ही खड़ा रहा

“अब खड़े खड़े क्या देख रहे हो... जाओ” जब अमर अपनी जगह से नहीं हिला तब अक्षिता ने वापिस कहा

जिसके बाद अक्षिता एकांश को ओर मुड़ी

"और तुम हॉस्पिटल से सीधा घर जाकर आराम करोगे, तब तक मैं यहा का देखती हु" अक्षिता ने कहा और एकांश ने बगैर कुछ बोले हा में गर्दन हिला दी

अमर एकांश को लेकर हॉस्पिटल के लिए निकल गया था

"साले तेरी वजह से उसने मुझे भी डाटा" अमर बोला

"हा तो चोट भी तो तूने ही दी गई"

"वाह बेटे एक तो मदद करो और फिर बाते भी सुनो, चल अब"

"वैसे इस सब में मुझे एक बात तो पता चल ही गई है, फीलिंग तो अब भी है वो मेरी केयर तो अब भी करती है" एकांश बोला

"केयर, अंधा है क्या, जैसे वो रो रही थी मुझे ऑर्डर दे रही थी के बस केयर नही है भाई ये उससे कुछ ज्यादा है, और अब तो मैं श्योर हु के सच्चाई कुछ और ही है"



क्रमश:
Super update💯
 

parkas

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Update 15



“मैंने उसे 1.5 साल पहले एक मॉल के बाहर कीसी से बात करते देखा था, इन्फैक्ट वो बात करते हुए रो रही थी” अमर ने कहा और एकांश को देखा

“कौन था वो?” एकांश ने पूछा और अब जो अमर बताने वाला था उसे सुन शायद एकांश को एक काफी बड़ा झटका मिलने वाला था

“तुम्हारी मा.....”

“तू समझ रहा है ना तू क्या बोल रहा है तो?” एकांश को अमर की बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था जो स्वाभाविक भी था, अक्षिता के उससे दूर जाने के पीछे उसकी मा होगी ये उसने सोचा भी नहीं था

“मैं जानता हु यकीन करना मुश्किल है लेकिन मैं बहुत सोच के बोल रहा हु एकांश, करीब डेढ़ साल पहले की बात है मैं सिटी मॉल जा रहा था तब मैंने वहा आंटी को देखा था जो शायद कीसी को ढूंढ रही थी, आंटी को वहा देख मैंने गाड़ी पार्क की और उनके पास जाने लगा लेकिन तब तक मैंने देखा के वहा एक लड़की भी आ गई थी जिसे लेकर आंटी थोड़ा साइड मे एक कॉर्नर मे चली गई, वो लड़की उनसे बात कर रही थी और बात करते करते वो लड़की रोने लगी थी और फिर उसने आंटी से कुछ कहा और वहा से चली गई,” अमर ने एकांश को पूरी बात बताई और ये सब सुन के एकांश के चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था, अमर ने आगे बोलना शुरू किया

“एकांश सुन, मैं बस वो बता रहा हु जो मैंने उस दिन देखा था और पूरा सच क्या है मुझे भी नहीं पता, बात कुछ और भी जो सकती है और यही जानने के लिए मैं अक्षिता का पीछा कर रहा था, सिम्पल लड़की है यार और उसके मा बाप भी ऐसे नहीं है के वो उसे कीसी बात के लिए रोकते हो, उसे शायद पता चल गया था के मैं उसका पीछा कर रहा हु इसीलिए सतर्क हो गई वो, वो बाते छिपाने मे माहिर है भाई इसीलिए असल सच पता ही नहीं चल पाया” अमर ने एकांश के कंधे पे हाथ रखते हुए कहा

“क्या अक्षिता का मुझे धोका देने के पीछे मा का हाथ हो सकता है?” एकांश ने अमर से पूछा और पूछते हुए उसकी आवाज कांप रही थी

“शायद, या शायद नहीं भी लेकिन अब यही तो हमे पता लगाना है” अमर ने कहा

“पता क्या लगाना है मैं अभी सीधा जाकर मॉम से इस बारे मे बात करता हु” एकांश ने अपनी जगह से उठते हुए कहा

“नहीं!! फिलहाल तो ऐसा बिल्कुल नहीं करना है, अगर इस सब मे उनकी कोई गलती नहीं हुई तो उन्हे हर्ट होगा और अगर उनकी गलती रही तो वो शायद इस बात से अभी अग्री ही नहीं करेंगी” अमर ने एकांश को रोका

“तो अब क्या करे तू ही बता?” एकांश ने चिल्ला के पूछा

“देखा आंटी से पुछ के भी तुझे पूरा सच पता चलेगा इसकी कोई गारेंटि नहीं है, हम तो ये भी नहीं जानते के हमारे अनुमान कितने सही है और इतने गलत है और इस सब की वजह से कीसी अपने को हर्ट हो खास कर आंटी को तो ये बिल्कुल सही नहीं होगा” अमर ने अपनी बात आराम से कही

“हम्म, पहले अक्षिता के बारे अपने मे जो अपने अनुमान है उनको देखते है सही है या गलत, कल रात के बाद मैं इतना तो शुवर हु के कनेक्शन तो अब भी है” एकांश ने शांत होते हुए कहा, वो वापिस अपनी जगह पर बैठ गया था

"करेक्ट, और कुछ तो बड़ा रीजन है जो हमको पता लगाना है" अमर ने कहा

"हम्म, लेकिन कैसे पता करेंगे?"

"पहले तो ये देखते है उसके मन में तेरे लिए फीलिंग्स है या नही इस और से कन्फर्म होना सही रहेगा"

"और ये कैसे करेंगे?"

"अबे तू ढक्कन है क्या, इतनी बड़ी कंपनी संभालता है और इतनी समझ नही है, तूने प्यार किया है उससे भाई, तुझे तो अच्छे से पता होना चाहिए उसके बारे में उसके नेचर के बारे में कौनसी बात उसे सबसे ज्यादा एफेक्ट करती है इस बारे में"

"हा हा पता है"

"पता है तो बता फिर"

"अक्षिता न सिंपल लड़की है, वो बस दिखने मे सरल है लेकिन है काफी चुलबुली, छोटी छोटी बातों मे खुश हो जाती है और छोटी छोटी बातों मे नाराज भी, हम जब रीलेशनशीप मे थे तब उसका पोस्ट ग्रैजवैशन चल रहा था फिर भी हम लगातार मिलते है, पार्क हमारे मिलने का ठिकाना था, अगर कभी मुझे देर हो जाए या मैं कीसी काम मे हु और उसका फोन ना उठाऊ तो पैनिक कर देती थी वो, और अगर कभी मेरी तबीयत खराब हो जाए तो आँसू उसकी आँखों से निकलते थे, वो मुझे तकलीफ मे नहीं देख सकती थी और अगर गलती से कोई लड़की मेरे से बात कर ले या आसपास भी आ जाए तो उसे जलन भी होने लगती थी, मैंने उसको कई गिफ्ट दिए थे लेकिन उसके बर्थडे पर मैंने उसे एक लॉकेट दिया था जो उसे बेहद पसंद था और वो जहा भी रहे कुछ भी करे वो लॉकेट हमेशा उसके गले मे रहता था, कहती थी मुझपर ब्लू कलर सूट करता है इसीलिए उसने मुझे ब्लू शर्ट भी गिफ्ट किया था....” एकांश बोल रहा था पुरानी यादे अमर को बता रहा था और अमर सब सुन रहा था

एकांश के चेहरे पर इस वक्त कई सारे ईमोशन बह रहे थे और अमर चुप चाप उसे देख रहा था, अक्षिता के बारे मे बात करते हुए एकांश की आँखों मे एक अलग ही चमक थी जो अमर से छिपी हुई नहीं थी, एकांश ने अमर को देखा जो उसे ही देख रहा था

“तू अब भी उसे उतना ही चाहता है, हैना?” अमर ने एकांश के चेहरे पर आते भावों को देख पूछा

“क.. क्या... नहीं!! पुरानी बाते है अब वो” एकांश ने कहा लेकिन अमर उसकी बात कहा मानने वाला था

“जब कुछ है ही नहीं भोसडीके तो हम यहा पापड़ बना रहे है क्या,”

“नहीं, मैं बस ये जानना चाहता हु के उसने मुझे क्यू छोड़ा, बस।“

“ठीक है मत बता, लेकिन अब पुरानी बातों मे घूम के समझ आया आगे क्या करना है या वो भी मैं ही बताऊ?”

“समझ गया, देखते है उसके मन मे मेरे लिए क्या है तो”

“गुड, कल की तयारी करो फिर चल मैं निकलता हु” इतना बोल के अमर वहा से निकल गया

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अगले दिन

अक्षिता अगले दिन हमेशा को तरह ऑफिस पहुंच चुकी थी लेकिन हमेशा वाले जॉली मूड में नहीं थी बल्कि उसके चेहरे पर एक उदासी थी, पार्टी को बात तो उसके दिमाग से एकदम ही निकल गई थी, उसके जगह कई और खयाल इसके दिमाग में घूम रहे थे

अक्षिता ने एक लंबी सास छोड़ी और हाथ में एकांश को कॉफी का कप लिए उसके केबिन का दरवाजा खटखटाया

"कम इन"

अंदर से आवाज आया जिसे सुन अक्षिता थोड़ा चौकी, आज एकानशंका आवाज कुछ अलग था, उसका आवाज हमेशा को तरह सर्द नहीं था बल्कि उसके आवाज में थोड़ी एक्साइटमेंट थी

अक्षिता ने दरवाजा खोला और अंदर आई

"सर आपकी कॉफी" अक्षिता ने कॉफी टेबल पर रखते हुए कहा

"थैंक यू" एकांश ने कॉफी का कप उठाते हुए मुस्कुराते हुए कहा और अब तो अक्षिता काफी हैरान थी एक तो एकांश उसे थैंक यू बोला था ऊपर से उसको देख मुस्कुराया भी था

"Take your seat miss Pandey" एकांश ने कहा और अब ये अक्षिता के लिए दूसरा झटका था के काम के बीच एकांश उसे बैठने के लिए कहे, वो जब बेहोश हुई थी तब के अलावा एकांश ने उसे कभी ऐसे बैठने नहीं कहा था बल्कि वो तो हमेशा उसका काम बढ़ाता था, खैर अक्षिता वहा बैठ गई

"तो, अब कैसी है आप?" एकांश ने पूछा एकांश ने और अक्षिता थोड़ी हैरत के साथ उसे देखने लगी

‘इसको क्या हो गया अचानक, ये आज पुराना एकांश कैसे बन गया’

"सर आप ठीक है ना?" अक्षिता के मुंह से अचानक निकला

"हा, हा मैं एकदम ठीक हु, थैंक यू फॉर आस्किंग" एकांश ने वापिस मुस्कुराते हुए जवाब दिया

और अब बस अक्षिता ने एक पल उसे देखा और फिर सीधा उसके केबिन से बाहर निकल गई और बाहर जाकर सीधा सीढ़ियों के पास रुकी और एकांश के केबिन के बंद दरवाजे को देख सोचने लगी

‘इसको अचानक क्या हो गया? ये इतनी मीठी तरह से बात क्यू कर रहा है? ये डेफ़िनटेली एकांश नहीं है, ये वो खडूस है हि नहीं’

और यही सब सोचते हुए अक्षिता वहा से निकल कर अपने फ्लोर पर अपनी डेस्क कर आकार अपने काम मे लग गई वही एकांश अपने केबिन मे बैठा अक्षिता को वहा से जाते देखता रहा

‘इसको क्या हो गया अचानक?’

‘ये ऐसे भाग क्यू गई?’

‘शीट! कही मेरे बदले हुए बिहैव्यर ने डरा तो नहीं दिया इसको?”

‘लेकिन मैं भी क्या करू जब से पता चला है के शायद अक्षिता ने मुझे धोका नहीं दिया है मैं खुद को रोक ही नहीं पाया’


एकांश के मन मे यही सब खयाल चल रहे थे का तभी उसने दरवाले पर नॉक सुना और अमर अंदर आया

“यो एकांश क्या हुआ? बात बनी?” अमर ने आते साथ ही पूछा

“वो भाग गई”

“क्या?? कैसे?? क्या किया तूने?” अमर ने एकांश के सामने की खुर्ची पर बैठते हुए पूछा

“मैंने बस उसको कॉफी के लिए शुक्रिया बोला था और थोड़ा हस के बात कर ली थी और कुछ नहीं और वो ऐसे भागी जैसे कोई भूत देखा हो” एकांश ने कहा और अमर उसकी बात सुन हसने लगा

“तूने उसको हस के देखा फिर थैंक यू बोला और तू कह रहा है तूने कुछ नहीं किया, अबे चूतिये एकांश रघुवंशी है तू, ऐरगन्ट है अकड़ू है अपने खुद का बत्राव याद कर पिछले कुछ समय का खासतौर पर कंपनी टेकओवर के बाद का और फिर तुम अक्षिता से उम्मीद करते हो के वो डरे ना, वाह बीसी” अमर ने हसते हुए कहा

“सही मे ऐसा है क्या”

“हा, अब लगता है उसकी फीलिंगस बाहर लाने कोई तिकड़म लगाना पड़ेगा”

“तो क्या करे?”

“उसको बुला यह”

जिसके बाद तुरंत ही एकांश ने अक्षिता को अपने केबिन मे आने को कहा

“गुड अब मैं बताता हु वैसा करना”

वही दूसरी तरह अक्षिता एकांश के केबिन मे नहीं जाना चाहती थी फिर भी बॉस का हुकूम था तो करना ही था उसने केबिन का दरवाजा खटखटाया और कम इन का आवाज आते ही अंदर गई उसने देखा के एकांश अपनी खुर्ची पर बैठा था और उसके पास एक बंदा खड़ा था

“सर आपने बुलाया मुझे?’ अक्षिता ने अंदर आते कहा

और फिर अक्षिता ने देखा के वो बंदा अमर था और वो एकांश के पास से दूर हट रहा था और अक्षिता ने जैसे ही एकांश को देखा उसके चेहरे पर डर की लकिरे उभर आई

“अंश” अक्षिता चिल्लाई और दौड़ के एकांश के पास पहुची

एकांश के हाथ से खून बह रहा था और अक्षिता ने उसका वो हाथ अपने हाथ मे लिया और अपने दुपट्टे से उसके हाथ से बहता खून सायद कर खून रोकने की कोशिश करने लगी, वही एकांश तो अपने लिए अक्षिता के मुह से अंश सुन कर ही खुश हो रहा था, बस वही थी जो उसे अंश कह कर बुलाती थी और ये हक कीसी के पास नहीं था

“ये खून, ये कैसे हुआ?” अकसीता ने पूछा, उसकी आँख से आँसू की एक बंद टपकी

“टेबल पर रखा पानी का ग्लास टूट गया और टूटे कांच से चोट लगी है” अमर ने अक्षिता के रोते चेहरे को देख कहा, एकांश ने सही कहा था वो उसे दर्द मे नहीं देख सकती थी

“तो तुम यह बुत की तरह क्या खड़े को देख नहीं रहे अंश को चोट लगी है जाओ जाकर फर्स्ट ऐड लेकर आओ, वो वहा कैबिनेट मे रखा है” अक्षिता ने अमर से चीखते हुए कहा वही एकांश के चेहरे पर स्माइल थी

“और तुम, तुम क्यू मुस्कुरा रहे हो, चोट लगी है और तुमको हसी आ रही है, मैंने कोई जोक सुनाया क्या? तुम इतने लापरवाह क्यू हो देखा चोट लग गई ना” अक्षिता ने लगे हाथ एकांश को भी चार बाते सुना दी

अमर ने फर्स्ट ऐड लाकर अक्षिता को थमाया और वो एकांश की पट्टी करने लगी वही एकांश बस उसे देख रहा था, अक्षिता की नजर जब उसपर पड़ी तो एकांश की आखों मे उमड़ते भाव उसे डराने लगे थे

अक्षिता ने वहा खड़े अमर को देखा जो उन दोनों को देख मुस्कुरा रहा था

“सुनो” अक्षिता ने अपनी आंखे पोंछते हुए अमर से कहा

“मैं?”

“हा तुम ही और कोई है क्या यहा, इसे अस्पताल ले जाओ और अच्छे से पट्टी करवा देना और वो दवाईया डॉक्टर दे वो देना” अक्षिता ने अमर को ऑर्डर दे डाला लेकिन अमर वैसे ही खड़ा रहा

“अब खड़े खड़े क्या देख रहे हो... जाओ” जब अमर अपनी जगह से नहीं हिला तब अक्षिता ने वापिस कहा

जिसके बाद अक्षिता एकांश को ओर मुड़ी

"और तुम हॉस्पिटल से सीधा घर जाकर आराम करोगे, तब तक मैं यहा का देखती हु" अक्षिता ने कहा और एकांश ने बगैर कुछ बोले हा में गर्दन हिला दी

अमर एकांश को लेकर हॉस्पिटल के लिए निकल गया था

"साले तेरी वजह से उसने मुझे भी डाटा" अमर बोला

"हा तो चोट भी तो तूने ही दी गई"

"वाह बेटे एक तो मदद करो और फिर बाते भी सुनो, चल अब"

"वैसे इस सब में मुझे एक बात तो पता चल ही गई है, फीलिंग तो अब भी है वो मेरी केयर तो अब भी करती है" एकांश बोला

"केयर, अंधा है क्या, जैसे वो रो रही थी मुझे ऑर्डर दे रही थी के बस केयर नही है भाई ये उससे कुछ ज्यादा है, और अब तो मैं श्योर हु के सच्चाई कुछ और ही है"



क्रमश:
Bahut hi badhiya update diya hai Adirshi bhai...
Nice and beautiful update....
 

kas1709

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Update 15



“मैंने उसे 1.5 साल पहले एक मॉल के बाहर कीसी से बात करते देखा था, इन्फैक्ट वो बात करते हुए रो रही थी” अमर ने कहा और एकांश को देखा

“कौन था वो?” एकांश ने पूछा और अब जो अमर बताने वाला था उसे सुन शायद एकांश को एक काफी बड़ा झटका मिलने वाला था

“तुम्हारी मा.....”

“तू समझ रहा है ना तू क्या बोल रहा है तो?” एकांश को अमर की बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था जो स्वाभाविक भी था, अक्षिता के उससे दूर जाने के पीछे उसकी मा होगी ये उसने सोचा भी नहीं था

“मैं जानता हु यकीन करना मुश्किल है लेकिन मैं बहुत सोच के बोल रहा हु एकांश, करीब डेढ़ साल पहले की बात है मैं सिटी मॉल जा रहा था तब मैंने वहा आंटी को देखा था जो शायद कीसी को ढूंढ रही थी, आंटी को वहा देख मैंने गाड़ी पार्क की और उनके पास जाने लगा लेकिन तब तक मैंने देखा के वहा एक लड़की भी आ गई थी जिसे लेकर आंटी थोड़ा साइड मे एक कॉर्नर मे चली गई, वो लड़की उनसे बात कर रही थी और बात करते करते वो लड़की रोने लगी थी और फिर उसने आंटी से कुछ कहा और वहा से चली गई,” अमर ने एकांश को पूरी बात बताई और ये सब सुन के एकांश के चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था, अमर ने आगे बोलना शुरू किया

“एकांश सुन, मैं बस वो बता रहा हु जो मैंने उस दिन देखा था और पूरा सच क्या है मुझे भी नहीं पता, बात कुछ और भी जो सकती है और यही जानने के लिए मैं अक्षिता का पीछा कर रहा था, सिम्पल लड़की है यार और उसके मा बाप भी ऐसे नहीं है के वो उसे कीसी बात के लिए रोकते हो, उसे शायद पता चल गया था के मैं उसका पीछा कर रहा हु इसीलिए सतर्क हो गई वो, वो बाते छिपाने मे माहिर है भाई इसीलिए असल सच पता ही नहीं चल पाया” अमर ने एकांश के कंधे पे हाथ रखते हुए कहा

“क्या अक्षिता का मुझे धोका देने के पीछे मा का हाथ हो सकता है?” एकांश ने अमर से पूछा और पूछते हुए उसकी आवाज कांप रही थी

“शायद, या शायद नहीं भी लेकिन अब यही तो हमे पता लगाना है” अमर ने कहा

“पता क्या लगाना है मैं अभी सीधा जाकर मॉम से इस बारे मे बात करता हु” एकांश ने अपनी जगह से उठते हुए कहा

“नहीं!! फिलहाल तो ऐसा बिल्कुल नहीं करना है, अगर इस सब मे उनकी कोई गलती नहीं हुई तो उन्हे हर्ट होगा और अगर उनकी गलती रही तो वो शायद इस बात से अभी अग्री ही नहीं करेंगी” अमर ने एकांश को रोका

“तो अब क्या करे तू ही बता?” एकांश ने चिल्ला के पूछा

“देखा आंटी से पुछ के भी तुझे पूरा सच पता चलेगा इसकी कोई गारेंटि नहीं है, हम तो ये भी नहीं जानते के हमारे अनुमान कितने सही है और इतने गलत है और इस सब की वजह से कीसी अपने को हर्ट हो खास कर आंटी को तो ये बिल्कुल सही नहीं होगा” अमर ने अपनी बात आराम से कही

“हम्म, पहले अक्षिता के बारे अपने मे जो अपने अनुमान है उनको देखते है सही है या गलत, कल रात के बाद मैं इतना तो शुवर हु के कनेक्शन तो अब भी है” एकांश ने शांत होते हुए कहा, वो वापिस अपनी जगह पर बैठ गया था

"करेक्ट, और कुछ तो बड़ा रीजन है जो हमको पता लगाना है" अमर ने कहा

"हम्म, लेकिन कैसे पता करेंगे?"

"पहले तो ये देखते है उसके मन में तेरे लिए फीलिंग्स है या नही इस और से कन्फर्म होना सही रहेगा"

"और ये कैसे करेंगे?"

"अबे तू ढक्कन है क्या, इतनी बड़ी कंपनी संभालता है और इतनी समझ नही है, तूने प्यार किया है उससे भाई, तुझे तो अच्छे से पता होना चाहिए उसके बारे में उसके नेचर के बारे में कौनसी बात उसे सबसे ज्यादा एफेक्ट करती है इस बारे में"

"हा हा पता है"

"पता है तो बता फिर"

"अक्षिता न सिंपल लड़की है, वो बस दिखने मे सरल है लेकिन है काफी चुलबुली, छोटी छोटी बातों मे खुश हो जाती है और छोटी छोटी बातों मे नाराज भी, हम जब रीलेशनशीप मे थे तब उसका पोस्ट ग्रैजवैशन चल रहा था फिर भी हम लगातार मिलते है, पार्क हमारे मिलने का ठिकाना था, अगर कभी मुझे देर हो जाए या मैं कीसी काम मे हु और उसका फोन ना उठाऊ तो पैनिक कर देती थी वो, और अगर कभी मेरी तबीयत खराब हो जाए तो आँसू उसकी आँखों से निकलते थे, वो मुझे तकलीफ मे नहीं देख सकती थी और अगर गलती से कोई लड़की मेरे से बात कर ले या आसपास भी आ जाए तो उसे जलन भी होने लगती थी, मैंने उसको कई गिफ्ट दिए थे लेकिन उसके बर्थडे पर मैंने उसे एक लॉकेट दिया था जो उसे बेहद पसंद था और वो जहा भी रहे कुछ भी करे वो लॉकेट हमेशा उसके गले मे रहता था, कहती थी मुझपर ब्लू कलर सूट करता है इसीलिए उसने मुझे ब्लू शर्ट भी गिफ्ट किया था....” एकांश बोल रहा था पुरानी यादे अमर को बता रहा था और अमर सब सुन रहा था

एकांश के चेहरे पर इस वक्त कई सारे ईमोशन बह रहे थे और अमर चुप चाप उसे देख रहा था, अक्षिता के बारे मे बात करते हुए एकांश की आँखों मे एक अलग ही चमक थी जो अमर से छिपी हुई नहीं थी, एकांश ने अमर को देखा जो उसे ही देख रहा था

“तू अब भी उसे उतना ही चाहता है, हैना?” अमर ने एकांश के चेहरे पर आते भावों को देख पूछा

“क.. क्या... नहीं!! पुरानी बाते है अब वो” एकांश ने कहा लेकिन अमर उसकी बात कहा मानने वाला था

“जब कुछ है ही नहीं भोसडीके तो हम यहा पापड़ बना रहे है क्या,”

“नहीं, मैं बस ये जानना चाहता हु के उसने मुझे क्यू छोड़ा, बस।“

“ठीक है मत बता, लेकिन अब पुरानी बातों मे घूम के समझ आया आगे क्या करना है या वो भी मैं ही बताऊ?”

“समझ गया, देखते है उसके मन मे मेरे लिए क्या है तो”

“गुड, कल की तयारी करो फिर चल मैं निकलता हु” इतना बोल के अमर वहा से निकल गया

--

अगले दिन

अक्षिता अगले दिन हमेशा को तरह ऑफिस पहुंच चुकी थी लेकिन हमेशा वाले जॉली मूड में नहीं थी बल्कि उसके चेहरे पर एक उदासी थी, पार्टी को बात तो उसके दिमाग से एकदम ही निकल गई थी, उसके जगह कई और खयाल इसके दिमाग में घूम रहे थे

अक्षिता ने एक लंबी सास छोड़ी और हाथ में एकांश को कॉफी का कप लिए उसके केबिन का दरवाजा खटखटाया

"कम इन"

अंदर से आवाज आया जिसे सुन अक्षिता थोड़ा चौकी, आज एकानशंका आवाज कुछ अलग था, उसका आवाज हमेशा को तरह सर्द नहीं था बल्कि उसके आवाज में थोड़ी एक्साइटमेंट थी

अक्षिता ने दरवाजा खोला और अंदर आई

"सर आपकी कॉफी" अक्षिता ने कॉफी टेबल पर रखते हुए कहा

"थैंक यू" एकांश ने कॉफी का कप उठाते हुए मुस्कुराते हुए कहा और अब तो अक्षिता काफी हैरान थी एक तो एकांश उसे थैंक यू बोला था ऊपर से उसको देख मुस्कुराया भी था

"Take your seat miss Pandey" एकांश ने कहा और अब ये अक्षिता के लिए दूसरा झटका था के काम के बीच एकांश उसे बैठने के लिए कहे, वो जब बेहोश हुई थी तब के अलावा एकांश ने उसे कभी ऐसे बैठने नहीं कहा था बल्कि वो तो हमेशा उसका काम बढ़ाता था, खैर अक्षिता वहा बैठ गई

"तो, अब कैसी है आप?" एकांश ने पूछा एकांश ने और अक्षिता थोड़ी हैरत के साथ उसे देखने लगी

‘इसको क्या हो गया अचानक, ये आज पुराना एकांश कैसे बन गया’

"सर आप ठीक है ना?" अक्षिता के मुंह से अचानक निकला

"हा, हा मैं एकदम ठीक हु, थैंक यू फॉर आस्किंग" एकांश ने वापिस मुस्कुराते हुए जवाब दिया

और अब बस अक्षिता ने एक पल उसे देखा और फिर सीधा उसके केबिन से बाहर निकल गई और बाहर जाकर सीधा सीढ़ियों के पास रुकी और एकांश के केबिन के बंद दरवाजे को देख सोचने लगी

‘इसको अचानक क्या हो गया? ये इतनी मीठी तरह से बात क्यू कर रहा है? ये डेफ़िनटेली एकांश नहीं है, ये वो खडूस है हि नहीं’

और यही सब सोचते हुए अक्षिता वहा से निकल कर अपने फ्लोर पर अपनी डेस्क कर आकार अपने काम मे लग गई वही एकांश अपने केबिन मे बैठा अक्षिता को वहा से जाते देखता रहा

‘इसको क्या हो गया अचानक?’

‘ये ऐसे भाग क्यू गई?’

‘शीट! कही मेरे बदले हुए बिहैव्यर ने डरा तो नहीं दिया इसको?”

‘लेकिन मैं भी क्या करू जब से पता चला है के शायद अक्षिता ने मुझे धोका नहीं दिया है मैं खुद को रोक ही नहीं पाया’


एकांश के मन मे यही सब खयाल चल रहे थे का तभी उसने दरवाले पर नॉक सुना और अमर अंदर आया

“यो एकांश क्या हुआ? बात बनी?” अमर ने आते साथ ही पूछा

“वो भाग गई”

“क्या?? कैसे?? क्या किया तूने?” अमर ने एकांश के सामने की खुर्ची पर बैठते हुए पूछा

“मैंने बस उसको कॉफी के लिए शुक्रिया बोला था और थोड़ा हस के बात कर ली थी और कुछ नहीं और वो ऐसे भागी जैसे कोई भूत देखा हो” एकांश ने कहा और अमर उसकी बात सुन हसने लगा

“तूने उसको हस के देखा फिर थैंक यू बोला और तू कह रहा है तूने कुछ नहीं किया, अबे चूतिये एकांश रघुवंशी है तू, ऐरगन्ट है अकड़ू है अपने खुद का बत्राव याद कर पिछले कुछ समय का खासतौर पर कंपनी टेकओवर के बाद का और फिर तुम अक्षिता से उम्मीद करते हो के वो डरे ना, वाह बीसी” अमर ने हसते हुए कहा

“सही मे ऐसा है क्या”

“हा, अब लगता है उसकी फीलिंगस बाहर लाने कोई तिकड़म लगाना पड़ेगा”

“तो क्या करे?”

“उसको बुला यह”

जिसके बाद तुरंत ही एकांश ने अक्षिता को अपने केबिन मे आने को कहा

“गुड अब मैं बताता हु वैसा करना”

वही दूसरी तरह अक्षिता एकांश के केबिन मे नहीं जाना चाहती थी फिर भी बॉस का हुकूम था तो करना ही था उसने केबिन का दरवाजा खटखटाया और कम इन का आवाज आते ही अंदर गई उसने देखा के एकांश अपनी खुर्ची पर बैठा था और उसके पास एक बंदा खड़ा था

“सर आपने बुलाया मुझे?’ अक्षिता ने अंदर आते कहा

और फिर अक्षिता ने देखा के वो बंदा अमर था और वो एकांश के पास से दूर हट रहा था और अक्षिता ने जैसे ही एकांश को देखा उसके चेहरे पर डर की लकिरे उभर आई

“अंश” अक्षिता चिल्लाई और दौड़ के एकांश के पास पहुची

एकांश के हाथ से खून बह रहा था और अक्षिता ने उसका वो हाथ अपने हाथ मे लिया और अपने दुपट्टे से उसके हाथ से बहता खून सायद कर खून रोकने की कोशिश करने लगी, वही एकांश तो अपने लिए अक्षिता के मुह से अंश सुन कर ही खुश हो रहा था, बस वही थी जो उसे अंश कह कर बुलाती थी और ये हक कीसी के पास नहीं था

“ये खून, ये कैसे हुआ?” अकसीता ने पूछा, उसकी आँख से आँसू की एक बंद टपकी

“टेबल पर रखा पानी का ग्लास टूट गया और टूटे कांच से चोट लगी है” अमर ने अक्षिता के रोते चेहरे को देख कहा, एकांश ने सही कहा था वो उसे दर्द मे नहीं देख सकती थी

“तो तुम यह बुत की तरह क्या खड़े को देख नहीं रहे अंश को चोट लगी है जाओ जाकर फर्स्ट ऐड लेकर आओ, वो वहा कैबिनेट मे रखा है” अक्षिता ने अमर से चीखते हुए कहा वही एकांश के चेहरे पर स्माइल थी

“और तुम, तुम क्यू मुस्कुरा रहे हो, चोट लगी है और तुमको हसी आ रही है, मैंने कोई जोक सुनाया क्या? तुम इतने लापरवाह क्यू हो देखा चोट लग गई ना” अक्षिता ने लगे हाथ एकांश को भी चार बाते सुना दी

अमर ने फर्स्ट ऐड लाकर अक्षिता को थमाया और वो एकांश की पट्टी करने लगी वही एकांश बस उसे देख रहा था, अक्षिता की नजर जब उसपर पड़ी तो एकांश की आखों मे उमड़ते भाव उसे डराने लगे थे

अक्षिता ने वहा खड़े अमर को देखा जो उन दोनों को देख मुस्कुरा रहा था

“सुनो” अक्षिता ने अपनी आंखे पोंछते हुए अमर से कहा

“मैं?”

“हा तुम ही और कोई है क्या यहा, इसे अस्पताल ले जाओ और अच्छे से पट्टी करवा देना और वो दवाईया डॉक्टर दे वो देना” अक्षिता ने अमर को ऑर्डर दे डाला लेकिन अमर वैसे ही खड़ा रहा

“अब खड़े खड़े क्या देख रहे हो... जाओ” जब अमर अपनी जगह से नहीं हिला तब अक्षिता ने वापिस कहा

जिसके बाद अक्षिता एकांश को ओर मुड़ी

"और तुम हॉस्पिटल से सीधा घर जाकर आराम करोगे, तब तक मैं यहा का देखती हु" अक्षिता ने कहा और एकांश ने बगैर कुछ बोले हा में गर्दन हिला दी

अमर एकांश को लेकर हॉस्पिटल के लिए निकल गया था

"साले तेरी वजह से उसने मुझे भी डाटा" अमर बोला

"हा तो चोट भी तो तूने ही दी गई"

"वाह बेटे एक तो मदद करो और फिर बाते भी सुनो, चल अब"

"वैसे इस सब में मुझे एक बात तो पता चल ही गई है, फीलिंग तो अब भी है वो मेरी केयर तो अब भी करती है" एकांश बोला

"केयर, अंधा है क्या, जैसे वो रो रही थी मुझे ऑर्डर दे रही थी के बस केयर नही है भाई ये उससे कुछ ज्यादा है, और अब तो मैं श्योर हु के सच्चाई कुछ और ही है"



क्रमश:
Nice update....
 
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एक अंधा भी स्पष्ट महसूस कर सकता है अक्षिता की भावनाओं को । और जहां तक मुझे पता है कि एकांश साहब के दोनो आंख टन टनाटन है ।
एक अपना ही आप के दर्द को समझ सकता है , महसूस कर सकता है , आप की गलती पर आप को फटकार सकता है , आप के दर्द और पीड़ा से दुखित हो सकता है और आपके लिए रो सकता है ।
अगर अब भी एकांश साहब को किसी प्रकार का भ्रम है तो फिर कोई क्या कर सकता है !

लेकिन अमर भाई साहब की सलाह मुझे बिल्कुल ही समझ नही आई । यह दो लोग की जिंदगी से जुड़ा हुआ सवाल है । यह किसी के लिए जीवन मरण का सवाल हो सकता है ।
एकांश साहब की माता जी बुरा मान जायेगी , उनके ह्रदय को आघात लगेगा , उनकी भावनाएं आहत होंगी इसलिए अक्षिता के बारे मे उनसे किसी भी तरह की बात नही की जायेगी । यह बिल्कुल वाहियात और तथ्य से परे की बात है ।
हंड्रेड पर्सेंट एकांश की माता श्री से बात होनी चाहिए । अगर उन्होने कुछ गलत किया भी हो तो वह सबके सामने आना चाहिए । और अगर कुछ गलत किया ही नही है तो फिर किस बात का डर !

बहुत खुबसूरत अपडेट आदि भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।
 
Last edited:

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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लेकिन अमर भाई साहब की सलाह मुझे बिल्कुल ही समझ नही आई । यह दो लोग की जिंदगी से जुड़ा हुआ सवाल है । यह किसी के लिए जीवन मरण का सवाल हो सकता है ।
एकांश साहब की माता जी बुरा मान जायेगी , उनके ह्रदय को आघात लगेगा , उनकी भावनाएं आहत होंगी इसलिए अक्षिता के बारे मे उनसे किसी भी तरह की बात नही की जायेगी । यह बिल्कुल वाहियात और तथ्य से परे की बात है ।
हंड्रेड पर्सेंट एकांश की माता श्री से बात होनी चाहिए । अगर उन्होने कुछ गलत किया भी हो तो वह सबके सामने आना चाहिए । और अगर कुछ गलत किया ही नही है तो फिर किस बात का डर !
Bilkul sahmat

वैसे भी जगजीत सिंह जी कह गए हैं

बात करने से ही बात बनती है
 

Tiger 786

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Update 15



“मैंने उसे 1.5 साल पहले एक मॉल के बाहर कीसी से बात करते देखा था, इन्फैक्ट वो बात करते हुए रो रही थी” अमर ने कहा और एकांश को देखा

“कौन था वो?” एकांश ने पूछा और अब जो अमर बताने वाला था उसे सुन शायद एकांश को एक काफी बड़ा झटका मिलने वाला था

“तुम्हारी मा.....”

“तू समझ रहा है ना तू क्या बोल रहा है तो?” एकांश को अमर की बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था जो स्वाभाविक भी था, अक्षिता के उससे दूर जाने के पीछे उसकी मा होगी ये उसने सोचा भी नहीं था

“मैं जानता हु यकीन करना मुश्किल है लेकिन मैं बहुत सोच के बोल रहा हु एकांश, करीब डेढ़ साल पहले की बात है मैं सिटी मॉल जा रहा था तब मैंने वहा आंटी को देखा था जो शायद कीसी को ढूंढ रही थी, आंटी को वहा देख मैंने गाड़ी पार्क की और उनके पास जाने लगा लेकिन तब तक मैंने देखा के वहा एक लड़की भी आ गई थी जिसे लेकर आंटी थोड़ा साइड मे एक कॉर्नर मे चली गई, वो लड़की उनसे बात कर रही थी और बात करते करते वो लड़की रोने लगी थी और फिर उसने आंटी से कुछ कहा और वहा से चली गई,” अमर ने एकांश को पूरी बात बताई और ये सब सुन के एकांश के चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था, अमर ने आगे बोलना शुरू किया

“एकांश सुन, मैं बस वो बता रहा हु जो मैंने उस दिन देखा था और पूरा सच क्या है मुझे भी नहीं पता, बात कुछ और भी जो सकती है और यही जानने के लिए मैं अक्षिता का पीछा कर रहा था, सिम्पल लड़की है यार और उसके मा बाप भी ऐसे नहीं है के वो उसे कीसी बात के लिए रोकते हो, उसे शायद पता चल गया था के मैं उसका पीछा कर रहा हु इसीलिए सतर्क हो गई वो, वो बाते छिपाने मे माहिर है भाई इसीलिए असल सच पता ही नहीं चल पाया” अमर ने एकांश के कंधे पे हाथ रखते हुए कहा

“क्या अक्षिता का मुझे धोका देने के पीछे मा का हाथ हो सकता है?” एकांश ने अमर से पूछा और पूछते हुए उसकी आवाज कांप रही थी

“शायद, या शायद नहीं भी लेकिन अब यही तो हमे पता लगाना है” अमर ने कहा

“पता क्या लगाना है मैं अभी सीधा जाकर मॉम से इस बारे मे बात करता हु” एकांश ने अपनी जगह से उठते हुए कहा

“नहीं!! फिलहाल तो ऐसा बिल्कुल नहीं करना है, अगर इस सब मे उनकी कोई गलती नहीं हुई तो उन्हे हर्ट होगा और अगर उनकी गलती रही तो वो शायद इस बात से अभी अग्री ही नहीं करेंगी” अमर ने एकांश को रोका

“तो अब क्या करे तू ही बता?” एकांश ने चिल्ला के पूछा

“देखा आंटी से पुछ के भी तुझे पूरा सच पता चलेगा इसकी कोई गारेंटि नहीं है, हम तो ये भी नहीं जानते के हमारे अनुमान कितने सही है और इतने गलत है और इस सब की वजह से कीसी अपने को हर्ट हो खास कर आंटी को तो ये बिल्कुल सही नहीं होगा” अमर ने अपनी बात आराम से कही

“हम्म, पहले अक्षिता के बारे अपने मे जो अपने अनुमान है उनको देखते है सही है या गलत, कल रात के बाद मैं इतना तो शुवर हु के कनेक्शन तो अब भी है” एकांश ने शांत होते हुए कहा, वो वापिस अपनी जगह पर बैठ गया था

"करेक्ट, और कुछ तो बड़ा रीजन है जो हमको पता लगाना है" अमर ने कहा

"हम्म, लेकिन कैसे पता करेंगे?"

"पहले तो ये देखते है उसके मन में तेरे लिए फीलिंग्स है या नही इस और से कन्फर्म होना सही रहेगा"

"और ये कैसे करेंगे?"

"अबे तू ढक्कन है क्या, इतनी बड़ी कंपनी संभालता है और इतनी समझ नही है, तूने प्यार किया है उससे भाई, तुझे तो अच्छे से पता होना चाहिए उसके बारे में उसके नेचर के बारे में कौनसी बात उसे सबसे ज्यादा एफेक्ट करती है इस बारे में"

"हा हा पता है"

"पता है तो बता फिर"

"अक्षिता न सिंपल लड़की है, वो बस दिखने मे सरल है लेकिन है काफी चुलबुली, छोटी छोटी बातों मे खुश हो जाती है और छोटी छोटी बातों मे नाराज भी, हम जब रीलेशनशीप मे थे तब उसका पोस्ट ग्रैजवैशन चल रहा था फिर भी हम लगातार मिलते है, पार्क हमारे मिलने का ठिकाना था, अगर कभी मुझे देर हो जाए या मैं कीसी काम मे हु और उसका फोन ना उठाऊ तो पैनिक कर देती थी वो, और अगर कभी मेरी तबीयत खराब हो जाए तो आँसू उसकी आँखों से निकलते थे, वो मुझे तकलीफ मे नहीं देख सकती थी और अगर गलती से कोई लड़की मेरे से बात कर ले या आसपास भी आ जाए तो उसे जलन भी होने लगती थी, मैंने उसको कई गिफ्ट दिए थे लेकिन उसके बर्थडे पर मैंने उसे एक लॉकेट दिया था जो उसे बेहद पसंद था और वो जहा भी रहे कुछ भी करे वो लॉकेट हमेशा उसके गले मे रहता था, कहती थी मुझपर ब्लू कलर सूट करता है इसीलिए उसने मुझे ब्लू शर्ट भी गिफ्ट किया था....” एकांश बोल रहा था पुरानी यादे अमर को बता रहा था और अमर सब सुन रहा था

एकांश के चेहरे पर इस वक्त कई सारे ईमोशन बह रहे थे और अमर चुप चाप उसे देख रहा था, अक्षिता के बारे मे बात करते हुए एकांश की आँखों मे एक अलग ही चमक थी जो अमर से छिपी हुई नहीं थी, एकांश ने अमर को देखा जो उसे ही देख रहा था

“तू अब भी उसे उतना ही चाहता है, हैना?” अमर ने एकांश के चेहरे पर आते भावों को देख पूछा

“क.. क्या... नहीं!! पुरानी बाते है अब वो” एकांश ने कहा लेकिन अमर उसकी बात कहा मानने वाला था

“जब कुछ है ही नहीं भोसडीके तो हम यहा पापड़ बना रहे है क्या,”

“नहीं, मैं बस ये जानना चाहता हु के उसने मुझे क्यू छोड़ा, बस।“

“ठीक है मत बता, लेकिन अब पुरानी बातों मे घूम के समझ आया आगे क्या करना है या वो भी मैं ही बताऊ?”

“समझ गया, देखते है उसके मन मे मेरे लिए क्या है तो”

“गुड, कल की तयारी करो फिर चल मैं निकलता हु” इतना बोल के अमर वहा से निकल गया

--

अगले दिन

अक्षिता अगले दिन हमेशा को तरह ऑफिस पहुंच चुकी थी लेकिन हमेशा वाले जॉली मूड में नहीं थी बल्कि उसके चेहरे पर एक उदासी थी, पार्टी को बात तो उसके दिमाग से एकदम ही निकल गई थी, उसके जगह कई और खयाल इसके दिमाग में घूम रहे थे

अक्षिता ने एक लंबी सास छोड़ी और हाथ में एकांश को कॉफी का कप लिए उसके केबिन का दरवाजा खटखटाया

"कम इन"

अंदर से आवाज आया जिसे सुन अक्षिता थोड़ा चौकी, आज एकानशंका आवाज कुछ अलग था, उसका आवाज हमेशा को तरह सर्द नहीं था बल्कि उसके आवाज में थोड़ी एक्साइटमेंट थी

अक्षिता ने दरवाजा खोला और अंदर आई

"सर आपकी कॉफी" अक्षिता ने कॉफी टेबल पर रखते हुए कहा

"थैंक यू" एकांश ने कॉफी का कप उठाते हुए मुस्कुराते हुए कहा और अब तो अक्षिता काफी हैरान थी एक तो एकांश उसे थैंक यू बोला था ऊपर से उसको देख मुस्कुराया भी था

"Take your seat miss Pandey" एकांश ने कहा और अब ये अक्षिता के लिए दूसरा झटका था के काम के बीच एकांश उसे बैठने के लिए कहे, वो जब बेहोश हुई थी तब के अलावा एकांश ने उसे कभी ऐसे बैठने नहीं कहा था बल्कि वो तो हमेशा उसका काम बढ़ाता था, खैर अक्षिता वहा बैठ गई

"तो, अब कैसी है आप?" एकांश ने पूछा एकांश ने और अक्षिता थोड़ी हैरत के साथ उसे देखने लगी

‘इसको क्या हो गया अचानक, ये आज पुराना एकांश कैसे बन गया’

"सर आप ठीक है ना?" अक्षिता के मुंह से अचानक निकला

"हा, हा मैं एकदम ठीक हु, थैंक यू फॉर आस्किंग" एकांश ने वापिस मुस्कुराते हुए जवाब दिया

और अब बस अक्षिता ने एक पल उसे देखा और फिर सीधा उसके केबिन से बाहर निकल गई और बाहर जाकर सीधा सीढ़ियों के पास रुकी और एकांश के केबिन के बंद दरवाजे को देख सोचने लगी

‘इसको अचानक क्या हो गया? ये इतनी मीठी तरह से बात क्यू कर रहा है? ये डेफ़िनटेली एकांश नहीं है, ये वो खडूस है हि नहीं’

और यही सब सोचते हुए अक्षिता वहा से निकल कर अपने फ्लोर पर अपनी डेस्क कर आकार अपने काम मे लग गई वही एकांश अपने केबिन मे बैठा अक्षिता को वहा से जाते देखता रहा

‘इसको क्या हो गया अचानक?’

‘ये ऐसे भाग क्यू गई?’

‘शीट! कही मेरे बदले हुए बिहैव्यर ने डरा तो नहीं दिया इसको?”

‘लेकिन मैं भी क्या करू जब से पता चला है के शायद अक्षिता ने मुझे धोका नहीं दिया है मैं खुद को रोक ही नहीं पाया’


एकांश के मन मे यही सब खयाल चल रहे थे का तभी उसने दरवाले पर नॉक सुना और अमर अंदर आया

“यो एकांश क्या हुआ? बात बनी?” अमर ने आते साथ ही पूछा

“वो भाग गई”

“क्या?? कैसे?? क्या किया तूने?” अमर ने एकांश के सामने की खुर्ची पर बैठते हुए पूछा

“मैंने बस उसको कॉफी के लिए शुक्रिया बोला था और थोड़ा हस के बात कर ली थी और कुछ नहीं और वो ऐसे भागी जैसे कोई भूत देखा हो” एकांश ने कहा और अमर उसकी बात सुन हसने लगा

“तूने उसको हस के देखा फिर थैंक यू बोला और तू कह रहा है तूने कुछ नहीं किया, अबे चूतिये एकांश रघुवंशी है तू, ऐरगन्ट है अकड़ू है अपने खुद का बत्राव याद कर पिछले कुछ समय का खासतौर पर कंपनी टेकओवर के बाद का और फिर तुम अक्षिता से उम्मीद करते हो के वो डरे ना, वाह बीसी” अमर ने हसते हुए कहा

“सही मे ऐसा है क्या”

“हा, अब लगता है उसकी फीलिंगस बाहर लाने कोई तिकड़म लगाना पड़ेगा”

“तो क्या करे?”

“उसको बुला यह”

जिसके बाद तुरंत ही एकांश ने अक्षिता को अपने केबिन मे आने को कहा

“गुड अब मैं बताता हु वैसा करना”

वही दूसरी तरह अक्षिता एकांश के केबिन मे नहीं जाना चाहती थी फिर भी बॉस का हुकूम था तो करना ही था उसने केबिन का दरवाजा खटखटाया और कम इन का आवाज आते ही अंदर गई उसने देखा के एकांश अपनी खुर्ची पर बैठा था और उसके पास एक बंदा खड़ा था

“सर आपने बुलाया मुझे?’ अक्षिता ने अंदर आते कहा

और फिर अक्षिता ने देखा के वो बंदा अमर था और वो एकांश के पास से दूर हट रहा था और अक्षिता ने जैसे ही एकांश को देखा उसके चेहरे पर डर की लकिरे उभर आई

“अंश” अक्षिता चिल्लाई और दौड़ के एकांश के पास पहुची

एकांश के हाथ से खून बह रहा था और अक्षिता ने उसका वो हाथ अपने हाथ मे लिया और अपने दुपट्टे से उसके हाथ से बहता खून सायद कर खून रोकने की कोशिश करने लगी, वही एकांश तो अपने लिए अक्षिता के मुह से अंश सुन कर ही खुश हो रहा था, बस वही थी जो उसे अंश कह कर बुलाती थी और ये हक कीसी के पास नहीं था

“ये खून, ये कैसे हुआ?” अकसीता ने पूछा, उसकी आँख से आँसू की एक बंद टपकी

“टेबल पर रखा पानी का ग्लास टूट गया और टूटे कांच से चोट लगी है” अमर ने अक्षिता के रोते चेहरे को देख कहा, एकांश ने सही कहा था वो उसे दर्द मे नहीं देख सकती थी

“तो तुम यह बुत की तरह क्या खड़े को देख नहीं रहे अंश को चोट लगी है जाओ जाकर फर्स्ट ऐड लेकर आओ, वो वहा कैबिनेट मे रखा है” अक्षिता ने अमर से चीखते हुए कहा वही एकांश के चेहरे पर स्माइल थी

“और तुम, तुम क्यू मुस्कुरा रहे हो, चोट लगी है और तुमको हसी आ रही है, मैंने कोई जोक सुनाया क्या? तुम इतने लापरवाह क्यू हो देखा चोट लग गई ना” अक्षिता ने लगे हाथ एकांश को भी चार बाते सुना दी

अमर ने फर्स्ट ऐड लाकर अक्षिता को थमाया और वो एकांश की पट्टी करने लगी वही एकांश बस उसे देख रहा था, अक्षिता की नजर जब उसपर पड़ी तो एकांश की आखों मे उमड़ते भाव उसे डराने लगे थे

अक्षिता ने वहा खड़े अमर को देखा जो उन दोनों को देख मुस्कुरा रहा था

“सुनो” अक्षिता ने अपनी आंखे पोंछते हुए अमर से कहा

“मैं?”

“हा तुम ही और कोई है क्या यहा, इसे अस्पताल ले जाओ और अच्छे से पट्टी करवा देना और वो दवाईया डॉक्टर दे वो देना” अक्षिता ने अमर को ऑर्डर दे डाला लेकिन अमर वैसे ही खड़ा रहा

“अब खड़े खड़े क्या देख रहे हो... जाओ” जब अमर अपनी जगह से नहीं हिला तब अक्षिता ने वापिस कहा

जिसके बाद अक्षिता एकांश को ओर मुड़ी

"और तुम हॉस्पिटल से सीधा घर जाकर आराम करोगे, तब तक मैं यहा का देखती हु" अक्षिता ने कहा और एकांश ने बगैर कुछ बोले हा में गर्दन हिला दी

अमर एकांश को लेकर हॉस्पिटल के लिए निकल गया था

"साले तेरी वजह से उसने मुझे भी डाटा" अमर बोला

"हा तो चोट भी तो तूने ही दी गई"

"वाह बेटे एक तो मदद करो और फिर बाते भी सुनो, चल अब"

"वैसे इस सब में मुझे एक बात तो पता चल ही गई है, फीलिंग तो अब भी है वो मेरी केयर तो अब भी करती है" एकांश बोला

"केयर, अंधा है क्या, जैसे वो रो रही थी मुझे ऑर्डर दे रही थी के बस केयर नही है भाई ये उससे कुछ ज्यादा है, और अब तो मैं श्योर हु के सच्चाई कुछ और ही है"



क्रमश:
Wow superb update
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Update 15



“मैंने उसे 1.5 साल पहले एक मॉल के बाहर कीसी से बात करते देखा था, इन्फैक्ट वो बात करते हुए रो रही थी” अमर ने कहा और एकांश को देखा

“कौन था वो?” एकांश ने पूछा और अब जो अमर बताने वाला था उसे सुन शायद एकांश को एक काफी बड़ा झटका मिलने वाला था

“तुम्हारी मा.....”

“तू समझ रहा है ना तू क्या बोल रहा है तो?” एकांश को अमर की बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था जो स्वाभाविक भी था, अक्षिता के उससे दूर जाने के पीछे उसकी मा होगी ये उसने सोचा भी नहीं था

“मैं जानता हु यकीन करना मुश्किल है लेकिन मैं बहुत सोच के बोल रहा हु एकांश, करीब डेढ़ साल पहले की बात है मैं सिटी मॉल जा रहा था तब मैंने वहा आंटी को देखा था जो शायद कीसी को ढूंढ रही थी, आंटी को वहा देख मैंने गाड़ी पार्क की और उनके पास जाने लगा लेकिन तब तक मैंने देखा के वहा एक लड़की भी आ गई थी जिसे लेकर आंटी थोड़ा साइड मे एक कॉर्नर मे चली गई, वो लड़की उनसे बात कर रही थी और बात करते करते वो लड़की रोने लगी थी और फिर उसने आंटी से कुछ कहा और वहा से चली गई,” अमर ने एकांश को पूरी बात बताई और ये सब सुन के एकांश के चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था, अमर ने आगे बोलना शुरू किया

“एकांश सुन, मैं बस वो बता रहा हु जो मैंने उस दिन देखा था और पूरा सच क्या है मुझे भी नहीं पता, बात कुछ और भी जो सकती है और यही जानने के लिए मैं अक्षिता का पीछा कर रहा था, सिम्पल लड़की है यार और उसके मा बाप भी ऐसे नहीं है के वो उसे कीसी बात के लिए रोकते हो, उसे शायद पता चल गया था के मैं उसका पीछा कर रहा हु इसीलिए सतर्क हो गई वो, वो बाते छिपाने मे माहिर है भाई इसीलिए असल सच पता ही नहीं चल पाया” अमर ने एकांश के कंधे पे हाथ रखते हुए कहा

“क्या अक्षिता का मुझे धोका देने के पीछे मा का हाथ हो सकता है?” एकांश ने अमर से पूछा और पूछते हुए उसकी आवाज कांप रही थी

“शायद, या शायद नहीं भी लेकिन अब यही तो हमे पता लगाना है” अमर ने कहा

“पता क्या लगाना है मैं अभी सीधा जाकर मॉम से इस बारे मे बात करता हु” एकांश ने अपनी जगह से उठते हुए कहा

“नहीं!! फिलहाल तो ऐसा बिल्कुल नहीं करना है, अगर इस सब मे उनकी कोई गलती नहीं हुई तो उन्हे हर्ट होगा और अगर उनकी गलती रही तो वो शायद इस बात से अभी अग्री ही नहीं करेंगी” अमर ने एकांश को रोका

“तो अब क्या करे तू ही बता?” एकांश ने चिल्ला के पूछा

“देखा आंटी से पुछ के भी तुझे पूरा सच पता चलेगा इसकी कोई गारेंटि नहीं है, हम तो ये भी नहीं जानते के हमारे अनुमान कितने सही है और इतने गलत है और इस सब की वजह से कीसी अपने को हर्ट हो खास कर आंटी को तो ये बिल्कुल सही नहीं होगा” अमर ने अपनी बात आराम से कही

“हम्म, पहले अक्षिता के बारे अपने मे जो अपने अनुमान है उनको देखते है सही है या गलत, कल रात के बाद मैं इतना तो शुवर हु के कनेक्शन तो अब भी है” एकांश ने शांत होते हुए कहा, वो वापिस अपनी जगह पर बैठ गया था

"करेक्ट, और कुछ तो बड़ा रीजन है जो हमको पता लगाना है" अमर ने कहा

"हम्म, लेकिन कैसे पता करेंगे?"

"पहले तो ये देखते है उसके मन में तेरे लिए फीलिंग्स है या नही इस और से कन्फर्म होना सही रहेगा"

"और ये कैसे करेंगे?"

"अबे तू ढक्कन है क्या, इतनी बड़ी कंपनी संभालता है और इतनी समझ नही है, तूने प्यार किया है उससे भाई, तुझे तो अच्छे से पता होना चाहिए उसके बारे में उसके नेचर के बारे में कौनसी बात उसे सबसे ज्यादा एफेक्ट करती है इस बारे में"

"हा हा पता है"

"पता है तो बता फिर"

"अक्षिता न सिंपल लड़की है, वो बस दिखने मे सरल है लेकिन है काफी चुलबुली, छोटी छोटी बातों मे खुश हो जाती है और छोटी छोटी बातों मे नाराज भी, हम जब रीलेशनशीप मे थे तब उसका पोस्ट ग्रैजवैशन चल रहा था फिर भी हम लगातार मिलते है, पार्क हमारे मिलने का ठिकाना था, अगर कभी मुझे देर हो जाए या मैं कीसी काम मे हु और उसका फोन ना उठाऊ तो पैनिक कर देती थी वो, और अगर कभी मेरी तबीयत खराब हो जाए तो आँसू उसकी आँखों से निकलते थे, वो मुझे तकलीफ मे नहीं देख सकती थी और अगर गलती से कोई लड़की मेरे से बात कर ले या आसपास भी आ जाए तो उसे जलन भी होने लगती थी, मैंने उसको कई गिफ्ट दिए थे लेकिन उसके बर्थडे पर मैंने उसे एक लॉकेट दिया था जो उसे बेहद पसंद था और वो जहा भी रहे कुछ भी करे वो लॉकेट हमेशा उसके गले मे रहता था, कहती थी मुझपर ब्लू कलर सूट करता है इसीलिए उसने मुझे ब्लू शर्ट भी गिफ्ट किया था....” एकांश बोल रहा था पुरानी यादे अमर को बता रहा था और अमर सब सुन रहा था

एकांश के चेहरे पर इस वक्त कई सारे ईमोशन बह रहे थे और अमर चुप चाप उसे देख रहा था, अक्षिता के बारे मे बात करते हुए एकांश की आँखों मे एक अलग ही चमक थी जो अमर से छिपी हुई नहीं थी, एकांश ने अमर को देखा जो उसे ही देख रहा था

“तू अब भी उसे उतना ही चाहता है, हैना?” अमर ने एकांश के चेहरे पर आते भावों को देख पूछा

“क.. क्या... नहीं!! पुरानी बाते है अब वो” एकांश ने कहा लेकिन अमर उसकी बात कहा मानने वाला था

“जब कुछ है ही नहीं भोसडीके तो हम यहा पापड़ बना रहे है क्या,”

“नहीं, मैं बस ये जानना चाहता हु के उसने मुझे क्यू छोड़ा, बस।“

“ठीक है मत बता, लेकिन अब पुरानी बातों मे घूम के समझ आया आगे क्या करना है या वो भी मैं ही बताऊ?”

“समझ गया, देखते है उसके मन मे मेरे लिए क्या है तो”

“गुड, कल की तयारी करो फिर चल मैं निकलता हु” इतना बोल के अमर वहा से निकल गया

--

अगले दिन

अक्षिता अगले दिन हमेशा को तरह ऑफिस पहुंच चुकी थी लेकिन हमेशा वाले जॉली मूड में नहीं थी बल्कि उसके चेहरे पर एक उदासी थी, पार्टी को बात तो उसके दिमाग से एकदम ही निकल गई थी, उसके जगह कई और खयाल इसके दिमाग में घूम रहे थे

अक्षिता ने एक लंबी सास छोड़ी और हाथ में एकांश को कॉफी का कप लिए उसके केबिन का दरवाजा खटखटाया

"कम इन"

अंदर से आवाज आया जिसे सुन अक्षिता थोड़ा चौकी, आज एकानशंका आवाज कुछ अलग था, उसका आवाज हमेशा को तरह सर्द नहीं था बल्कि उसके आवाज में थोड़ी एक्साइटमेंट थी

अक्षिता ने दरवाजा खोला और अंदर आई

"सर आपकी कॉफी" अक्षिता ने कॉफी टेबल पर रखते हुए कहा

"थैंक यू" एकांश ने कॉफी का कप उठाते हुए मुस्कुराते हुए कहा और अब तो अक्षिता काफी हैरान थी एक तो एकांश उसे थैंक यू बोला था ऊपर से उसको देख मुस्कुराया भी था

"Take your seat miss Pandey" एकांश ने कहा और अब ये अक्षिता के लिए दूसरा झटका था के काम के बीच एकांश उसे बैठने के लिए कहे, वो जब बेहोश हुई थी तब के अलावा एकांश ने उसे कभी ऐसे बैठने नहीं कहा था बल्कि वो तो हमेशा उसका काम बढ़ाता था, खैर अक्षिता वहा बैठ गई

"तो, अब कैसी है आप?" एकांश ने पूछा एकांश ने और अक्षिता थोड़ी हैरत के साथ उसे देखने लगी

‘इसको क्या हो गया अचानक, ये आज पुराना एकांश कैसे बन गया’

"सर आप ठीक है ना?" अक्षिता के मुंह से अचानक निकला

"हा, हा मैं एकदम ठीक हु, थैंक यू फॉर आस्किंग" एकांश ने वापिस मुस्कुराते हुए जवाब दिया

और अब बस अक्षिता ने एक पल उसे देखा और फिर सीधा उसके केबिन से बाहर निकल गई और बाहर जाकर सीधा सीढ़ियों के पास रुकी और एकांश के केबिन के बंद दरवाजे को देख सोचने लगी

‘इसको अचानक क्या हो गया? ये इतनी मीठी तरह से बात क्यू कर रहा है? ये डेफ़िनटेली एकांश नहीं है, ये वो खडूस है हि नहीं’

और यही सब सोचते हुए अक्षिता वहा से निकल कर अपने फ्लोर पर अपनी डेस्क कर आकार अपने काम मे लग गई वही एकांश अपने केबिन मे बैठा अक्षिता को वहा से जाते देखता रहा

‘इसको क्या हो गया अचानक?’

‘ये ऐसे भाग क्यू गई?’

‘शीट! कही मेरे बदले हुए बिहैव्यर ने डरा तो नहीं दिया इसको?”

‘लेकिन मैं भी क्या करू जब से पता चला है के शायद अक्षिता ने मुझे धोका नहीं दिया है मैं खुद को रोक ही नहीं पाया’


एकांश के मन मे यही सब खयाल चल रहे थे का तभी उसने दरवाले पर नॉक सुना और अमर अंदर आया

“यो एकांश क्या हुआ? बात बनी?” अमर ने आते साथ ही पूछा

“वो भाग गई”

“क्या?? कैसे?? क्या किया तूने?” अमर ने एकांश के सामने की खुर्ची पर बैठते हुए पूछा

“मैंने बस उसको कॉफी के लिए शुक्रिया बोला था और थोड़ा हस के बात कर ली थी और कुछ नहीं और वो ऐसे भागी जैसे कोई भूत देखा हो” एकांश ने कहा और अमर उसकी बात सुन हसने लगा

“तूने उसको हस के देखा फिर थैंक यू बोला और तू कह रहा है तूने कुछ नहीं किया, अबे चूतिये एकांश रघुवंशी है तू, ऐरगन्ट है अकड़ू है अपने खुद का बत्राव याद कर पिछले कुछ समय का खासतौर पर कंपनी टेकओवर के बाद का और फिर तुम अक्षिता से उम्मीद करते हो के वो डरे ना, वाह बीसी” अमर ने हसते हुए कहा

“सही मे ऐसा है क्या”

“हा, अब लगता है उसकी फीलिंगस बाहर लाने कोई तिकड़म लगाना पड़ेगा”

“तो क्या करे?”

“उसको बुला यह”

जिसके बाद तुरंत ही एकांश ने अक्षिता को अपने केबिन मे आने को कहा

“गुड अब मैं बताता हु वैसा करना”

वही दूसरी तरह अक्षिता एकांश के केबिन मे नहीं जाना चाहती थी फिर भी बॉस का हुकूम था तो करना ही था उसने केबिन का दरवाजा खटखटाया और कम इन का आवाज आते ही अंदर गई उसने देखा के एकांश अपनी खुर्ची पर बैठा था और उसके पास एक बंदा खड़ा था

“सर आपने बुलाया मुझे?’ अक्षिता ने अंदर आते कहा

और फिर अक्षिता ने देखा के वो बंदा अमर था और वो एकांश के पास से दूर हट रहा था और अक्षिता ने जैसे ही एकांश को देखा उसके चेहरे पर डर की लकिरे उभर आई

“अंश” अक्षिता चिल्लाई और दौड़ के एकांश के पास पहुची

एकांश के हाथ से खून बह रहा था और अक्षिता ने उसका वो हाथ अपने हाथ मे लिया और अपने दुपट्टे से उसके हाथ से बहता खून सायद कर खून रोकने की कोशिश करने लगी, वही एकांश तो अपने लिए अक्षिता के मुह से अंश सुन कर ही खुश हो रहा था, बस वही थी जो उसे अंश कह कर बुलाती थी और ये हक कीसी के पास नहीं था

“ये खून, ये कैसे हुआ?” अकसीता ने पूछा, उसकी आँख से आँसू की एक बंद टपकी

“टेबल पर रखा पानी का ग्लास टूट गया और टूटे कांच से चोट लगी है” अमर ने अक्षिता के रोते चेहरे को देख कहा, एकांश ने सही कहा था वो उसे दर्द मे नहीं देख सकती थी

“तो तुम यह बुत की तरह क्या खड़े को देख नहीं रहे अंश को चोट लगी है जाओ जाकर फर्स्ट ऐड लेकर आओ, वो वहा कैबिनेट मे रखा है” अक्षिता ने अमर से चीखते हुए कहा वही एकांश के चेहरे पर स्माइल थी

“और तुम, तुम क्यू मुस्कुरा रहे हो, चोट लगी है और तुमको हसी आ रही है, मैंने कोई जोक सुनाया क्या? तुम इतने लापरवाह क्यू हो देखा चोट लग गई ना” अक्षिता ने लगे हाथ एकांश को भी चार बाते सुना दी

अमर ने फर्स्ट ऐड लाकर अक्षिता को थमाया और वो एकांश की पट्टी करने लगी वही एकांश बस उसे देख रहा था, अक्षिता की नजर जब उसपर पड़ी तो एकांश की आखों मे उमड़ते भाव उसे डराने लगे थे

अक्षिता ने वहा खड़े अमर को देखा जो उन दोनों को देख मुस्कुरा रहा था

“सुनो” अक्षिता ने अपनी आंखे पोंछते हुए अमर से कहा

“मैं?”

“हा तुम ही और कोई है क्या यहा, इसे अस्पताल ले जाओ और अच्छे से पट्टी करवा देना और वो दवाईया डॉक्टर दे वो देना” अक्षिता ने अमर को ऑर्डर दे डाला लेकिन अमर वैसे ही खड़ा रहा

“अब खड़े खड़े क्या देख रहे हो... जाओ” जब अमर अपनी जगह से नहीं हिला तब अक्षिता ने वापिस कहा

जिसके बाद अक्षिता एकांश को ओर मुड़ी

"और तुम हॉस्पिटल से सीधा घर जाकर आराम करोगे, तब तक मैं यहा का देखती हु" अक्षिता ने कहा और एकांश ने बगैर कुछ बोले हा में गर्दन हिला दी

अमर एकांश को लेकर हॉस्पिटल के लिए निकल गया था

"साले तेरी वजह से उसने मुझे भी डाटा" अमर बोला

"हा तो चोट भी तो तूने ही दी गई"

"वाह बेटे एक तो मदद करो और फिर बाते भी सुनो, चल अब"

"वैसे इस सब में मुझे एक बात तो पता चल ही गई है, फीलिंग तो अब भी है वो मेरी केयर तो अब भी करती है" एकांश बोला

"केयर, अंधा है क्या, जैसे वो रो रही थी मुझे ऑर्डर दे रही थी के बस केयर नही है भाई ये उससे कुछ ज्यादा है, और अब तो मैं श्योर हु के सच्चाई कुछ और ही है"



क्रमश:
Wo maara papad wale ko :laughclap: Choor aakhir pakda gaya, haath me chhot wale kisse se ye sabit ho gaya ki akshita ekansh ko ab bhi behad chahti hai👍 bad use dikha nahi rahi thi, baat kuch or hai, or ho sakta hai ki ekansh maa ka hath ho isme, maybe hasiyat ka lafda👍?
Superb update and mind blowing writing ✍️ by adirshi bhai👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
👌🏻👌🏻🔥🔥🔥🔥🔥💥💥💥💥💥💥💥
 

dhparikh

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“मैंने उसे 1.5 साल पहले एक मॉल के बाहर कीसी से बात करते देखा था, इन्फैक्ट वो बात करते हुए रो रही थी” अमर ने कहा और एकांश को देखा

“कौन था वो?” एकांश ने पूछा और अब जो अमर बताने वाला था उसे सुन शायद एकांश को एक काफी बड़ा झटका मिलने वाला था

“तुम्हारी मा.....”

“तू समझ रहा है ना तू क्या बोल रहा है तो?” एकांश को अमर की बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था जो स्वाभाविक भी था, अक्षिता के उससे दूर जाने के पीछे उसकी मा होगी ये उसने सोचा भी नहीं था

“मैं जानता हु यकीन करना मुश्किल है लेकिन मैं बहुत सोच के बोल रहा हु एकांश, करीब डेढ़ साल पहले की बात है मैं सिटी मॉल जा रहा था तब मैंने वहा आंटी को देखा था जो शायद कीसी को ढूंढ रही थी, आंटी को वहा देख मैंने गाड़ी पार्क की और उनके पास जाने लगा लेकिन तब तक मैंने देखा के वहा एक लड़की भी आ गई थी जिसे लेकर आंटी थोड़ा साइड मे एक कॉर्नर मे चली गई, वो लड़की उनसे बात कर रही थी और बात करते करते वो लड़की रोने लगी थी और फिर उसने आंटी से कुछ कहा और वहा से चली गई,” अमर ने एकांश को पूरी बात बताई और ये सब सुन के एकांश के चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था, अमर ने आगे बोलना शुरू किया

“एकांश सुन, मैं बस वो बता रहा हु जो मैंने उस दिन देखा था और पूरा सच क्या है मुझे भी नहीं पता, बात कुछ और भी जो सकती है और यही जानने के लिए मैं अक्षिता का पीछा कर रहा था, सिम्पल लड़की है यार और उसके मा बाप भी ऐसे नहीं है के वो उसे कीसी बात के लिए रोकते हो, उसे शायद पता चल गया था के मैं उसका पीछा कर रहा हु इसीलिए सतर्क हो गई वो, वो बाते छिपाने मे माहिर है भाई इसीलिए असल सच पता ही नहीं चल पाया” अमर ने एकांश के कंधे पे हाथ रखते हुए कहा

“क्या अक्षिता का मुझे धोका देने के पीछे मा का हाथ हो सकता है?” एकांश ने अमर से पूछा और पूछते हुए उसकी आवाज कांप रही थी

“शायद, या शायद नहीं भी लेकिन अब यही तो हमे पता लगाना है” अमर ने कहा

“पता क्या लगाना है मैं अभी सीधा जाकर मॉम से इस बारे मे बात करता हु” एकांश ने अपनी जगह से उठते हुए कहा

“नहीं!! फिलहाल तो ऐसा बिल्कुल नहीं करना है, अगर इस सब मे उनकी कोई गलती नहीं हुई तो उन्हे हर्ट होगा और अगर उनकी गलती रही तो वो शायद इस बात से अभी अग्री ही नहीं करेंगी” अमर ने एकांश को रोका

“तो अब क्या करे तू ही बता?” एकांश ने चिल्ला के पूछा

“देखा आंटी से पुछ के भी तुझे पूरा सच पता चलेगा इसकी कोई गारेंटि नहीं है, हम तो ये भी नहीं जानते के हमारे अनुमान कितने सही है और इतने गलत है और इस सब की वजह से कीसी अपने को हर्ट हो खास कर आंटी को तो ये बिल्कुल सही नहीं होगा” अमर ने अपनी बात आराम से कही

“हम्म, पहले अक्षिता के बारे अपने मे जो अपने अनुमान है उनको देखते है सही है या गलत, कल रात के बाद मैं इतना तो शुवर हु के कनेक्शन तो अब भी है” एकांश ने शांत होते हुए कहा, वो वापिस अपनी जगह पर बैठ गया था

"करेक्ट, और कुछ तो बड़ा रीजन है जो हमको पता लगाना है" अमर ने कहा

"हम्म, लेकिन कैसे पता करेंगे?"

"पहले तो ये देखते है उसके मन में तेरे लिए फीलिंग्स है या नही इस और से कन्फर्म होना सही रहेगा"

"और ये कैसे करेंगे?"

"अबे तू ढक्कन है क्या, इतनी बड़ी कंपनी संभालता है और इतनी समझ नही है, तूने प्यार किया है उससे भाई, तुझे तो अच्छे से पता होना चाहिए उसके बारे में उसके नेचर के बारे में कौनसी बात उसे सबसे ज्यादा एफेक्ट करती है इस बारे में"

"हा हा पता है"

"पता है तो बता फिर"

"अक्षिता न सिंपल लड़की है, वो बस दिखने मे सरल है लेकिन है काफी चुलबुली, छोटी छोटी बातों मे खुश हो जाती है और छोटी छोटी बातों मे नाराज भी, हम जब रीलेशनशीप मे थे तब उसका पोस्ट ग्रैजवैशन चल रहा था फिर भी हम लगातार मिलते है, पार्क हमारे मिलने का ठिकाना था, अगर कभी मुझे देर हो जाए या मैं कीसी काम मे हु और उसका फोन ना उठाऊ तो पैनिक कर देती थी वो, और अगर कभी मेरी तबीयत खराब हो जाए तो आँसू उसकी आँखों से निकलते थे, वो मुझे तकलीफ मे नहीं देख सकती थी और अगर गलती से कोई लड़की मेरे से बात कर ले या आसपास भी आ जाए तो उसे जलन भी होने लगती थी, मैंने उसको कई गिफ्ट दिए थे लेकिन उसके बर्थडे पर मैंने उसे एक लॉकेट दिया था जो उसे बेहद पसंद था और वो जहा भी रहे कुछ भी करे वो लॉकेट हमेशा उसके गले मे रहता था, कहती थी मुझपर ब्लू कलर सूट करता है इसीलिए उसने मुझे ब्लू शर्ट भी गिफ्ट किया था....” एकांश बोल रहा था पुरानी यादे अमर को बता रहा था और अमर सब सुन रहा था

एकांश के चेहरे पर इस वक्त कई सारे ईमोशन बह रहे थे और अमर चुप चाप उसे देख रहा था, अक्षिता के बारे मे बात करते हुए एकांश की आँखों मे एक अलग ही चमक थी जो अमर से छिपी हुई नहीं थी, एकांश ने अमर को देखा जो उसे ही देख रहा था

“तू अब भी उसे उतना ही चाहता है, हैना?” अमर ने एकांश के चेहरे पर आते भावों को देख पूछा

“क.. क्या... नहीं!! पुरानी बाते है अब वो” एकांश ने कहा लेकिन अमर उसकी बात कहा मानने वाला था

“जब कुछ है ही नहीं भोसडीके तो हम यहा पापड़ बना रहे है क्या,”

“नहीं, मैं बस ये जानना चाहता हु के उसने मुझे क्यू छोड़ा, बस।“

“ठीक है मत बता, लेकिन अब पुरानी बातों मे घूम के समझ आया आगे क्या करना है या वो भी मैं ही बताऊ?”

“समझ गया, देखते है उसके मन मे मेरे लिए क्या है तो”

“गुड, कल की तयारी करो फिर चल मैं निकलता हु” इतना बोल के अमर वहा से निकल गया

--

अगले दिन

अक्षिता अगले दिन हमेशा को तरह ऑफिस पहुंच चुकी थी लेकिन हमेशा वाले जॉली मूड में नहीं थी बल्कि उसके चेहरे पर एक उदासी थी, पार्टी को बात तो उसके दिमाग से एकदम ही निकल गई थी, उसके जगह कई और खयाल इसके दिमाग में घूम रहे थे

अक्षिता ने एक लंबी सास छोड़ी और हाथ में एकांश को कॉफी का कप लिए उसके केबिन का दरवाजा खटखटाया

"कम इन"

अंदर से आवाज आया जिसे सुन अक्षिता थोड़ा चौकी, आज एकानशंका आवाज कुछ अलग था, उसका आवाज हमेशा को तरह सर्द नहीं था बल्कि उसके आवाज में थोड़ी एक्साइटमेंट थी

अक्षिता ने दरवाजा खोला और अंदर आई

"सर आपकी कॉफी" अक्षिता ने कॉफी टेबल पर रखते हुए कहा

"थैंक यू" एकांश ने कॉफी का कप उठाते हुए मुस्कुराते हुए कहा और अब तो अक्षिता काफी हैरान थी एक तो एकांश उसे थैंक यू बोला था ऊपर से उसको देख मुस्कुराया भी था

"Take your seat miss Pandey" एकांश ने कहा और अब ये अक्षिता के लिए दूसरा झटका था के काम के बीच एकांश उसे बैठने के लिए कहे, वो जब बेहोश हुई थी तब के अलावा एकांश ने उसे कभी ऐसे बैठने नहीं कहा था बल्कि वो तो हमेशा उसका काम बढ़ाता था, खैर अक्षिता वहा बैठ गई

"तो, अब कैसी है आप?" एकांश ने पूछा एकांश ने और अक्षिता थोड़ी हैरत के साथ उसे देखने लगी

‘इसको क्या हो गया अचानक, ये आज पुराना एकांश कैसे बन गया’

"सर आप ठीक है ना?" अक्षिता के मुंह से अचानक निकला

"हा, हा मैं एकदम ठीक हु, थैंक यू फॉर आस्किंग" एकांश ने वापिस मुस्कुराते हुए जवाब दिया

और अब बस अक्षिता ने एक पल उसे देखा और फिर सीधा उसके केबिन से बाहर निकल गई और बाहर जाकर सीधा सीढ़ियों के पास रुकी और एकांश के केबिन के बंद दरवाजे को देख सोचने लगी

‘इसको अचानक क्या हो गया? ये इतनी मीठी तरह से बात क्यू कर रहा है? ये डेफ़िनटेली एकांश नहीं है, ये वो खडूस है हि नहीं’

और यही सब सोचते हुए अक्षिता वहा से निकल कर अपने फ्लोर पर अपनी डेस्क कर आकार अपने काम मे लग गई वही एकांश अपने केबिन मे बैठा अक्षिता को वहा से जाते देखता रहा

‘इसको क्या हो गया अचानक?’

‘ये ऐसे भाग क्यू गई?’

‘शीट! कही मेरे बदले हुए बिहैव्यर ने डरा तो नहीं दिया इसको?”

‘लेकिन मैं भी क्या करू जब से पता चला है के शायद अक्षिता ने मुझे धोका नहीं दिया है मैं खुद को रोक ही नहीं पाया’


एकांश के मन मे यही सब खयाल चल रहे थे का तभी उसने दरवाले पर नॉक सुना और अमर अंदर आया

“यो एकांश क्या हुआ? बात बनी?” अमर ने आते साथ ही पूछा

“वो भाग गई”

“क्या?? कैसे?? क्या किया तूने?” अमर ने एकांश के सामने की खुर्ची पर बैठते हुए पूछा

“मैंने बस उसको कॉफी के लिए शुक्रिया बोला था और थोड़ा हस के बात कर ली थी और कुछ नहीं और वो ऐसे भागी जैसे कोई भूत देखा हो” एकांश ने कहा और अमर उसकी बात सुन हसने लगा

“तूने उसको हस के देखा फिर थैंक यू बोला और तू कह रहा है तूने कुछ नहीं किया, अबे चूतिये एकांश रघुवंशी है तू, ऐरगन्ट है अकड़ू है अपने खुद का बत्राव याद कर पिछले कुछ समय का खासतौर पर कंपनी टेकओवर के बाद का और फिर तुम अक्षिता से उम्मीद करते हो के वो डरे ना, वाह बीसी” अमर ने हसते हुए कहा

“सही मे ऐसा है क्या”

“हा, अब लगता है उसकी फीलिंगस बाहर लाने कोई तिकड़म लगाना पड़ेगा”

“तो क्या करे?”

“उसको बुला यह”

जिसके बाद तुरंत ही एकांश ने अक्षिता को अपने केबिन मे आने को कहा

“गुड अब मैं बताता हु वैसा करना”

वही दूसरी तरह अक्षिता एकांश के केबिन मे नहीं जाना चाहती थी फिर भी बॉस का हुकूम था तो करना ही था उसने केबिन का दरवाजा खटखटाया और कम इन का आवाज आते ही अंदर गई उसने देखा के एकांश अपनी खुर्ची पर बैठा था और उसके पास एक बंदा खड़ा था

“सर आपने बुलाया मुझे?’ अक्षिता ने अंदर आते कहा

और फिर अक्षिता ने देखा के वो बंदा अमर था और वो एकांश के पास से दूर हट रहा था और अक्षिता ने जैसे ही एकांश को देखा उसके चेहरे पर डर की लकिरे उभर आई

“अंश” अक्षिता चिल्लाई और दौड़ के एकांश के पास पहुची

एकांश के हाथ से खून बह रहा था और अक्षिता ने उसका वो हाथ अपने हाथ मे लिया और अपने दुपट्टे से उसके हाथ से बहता खून सायद कर खून रोकने की कोशिश करने लगी, वही एकांश तो अपने लिए अक्षिता के मुह से अंश सुन कर ही खुश हो रहा था, बस वही थी जो उसे अंश कह कर बुलाती थी और ये हक कीसी के पास नहीं था

“ये खून, ये कैसे हुआ?” अकसीता ने पूछा, उसकी आँख से आँसू की एक बंद टपकी

“टेबल पर रखा पानी का ग्लास टूट गया और टूटे कांच से चोट लगी है” अमर ने अक्षिता के रोते चेहरे को देख कहा, एकांश ने सही कहा था वो उसे दर्द मे नहीं देख सकती थी

“तो तुम यह बुत की तरह क्या खड़े को देख नहीं रहे अंश को चोट लगी है जाओ जाकर फर्स्ट ऐड लेकर आओ, वो वहा कैबिनेट मे रखा है” अक्षिता ने अमर से चीखते हुए कहा वही एकांश के चेहरे पर स्माइल थी

“और तुम, तुम क्यू मुस्कुरा रहे हो, चोट लगी है और तुमको हसी आ रही है, मैंने कोई जोक सुनाया क्या? तुम इतने लापरवाह क्यू हो देखा चोट लग गई ना” अक्षिता ने लगे हाथ एकांश को भी चार बाते सुना दी

अमर ने फर्स्ट ऐड लाकर अक्षिता को थमाया और वो एकांश की पट्टी करने लगी वही एकांश बस उसे देख रहा था, अक्षिता की नजर जब उसपर पड़ी तो एकांश की आखों मे उमड़ते भाव उसे डराने लगे थे

अक्षिता ने वहा खड़े अमर को देखा जो उन दोनों को देख मुस्कुरा रहा था

“सुनो” अक्षिता ने अपनी आंखे पोंछते हुए अमर से कहा

“मैं?”

“हा तुम ही और कोई है क्या यहा, इसे अस्पताल ले जाओ और अच्छे से पट्टी करवा देना और वो दवाईया डॉक्टर दे वो देना” अक्षिता ने अमर को ऑर्डर दे डाला लेकिन अमर वैसे ही खड़ा रहा

“अब खड़े खड़े क्या देख रहे हो... जाओ” जब अमर अपनी जगह से नहीं हिला तब अक्षिता ने वापिस कहा

जिसके बाद अक्षिता एकांश को ओर मुड़ी

"और तुम हॉस्पिटल से सीधा घर जाकर आराम करोगे, तब तक मैं यहा का देखती हु" अक्षिता ने कहा और एकांश ने बगैर कुछ बोले हा में गर्दन हिला दी

अमर एकांश को लेकर हॉस्पिटल के लिए निकल गया था

"साले तेरी वजह से उसने मुझे भी डाटा" अमर बोला

"हा तो चोट भी तो तूने ही दी गई"

"वाह बेटे एक तो मदद करो और फिर बाते भी सुनो, चल अब"

"वैसे इस सब में मुझे एक बात तो पता चल ही गई है, फीलिंग तो अब भी है वो मेरी केयर तो अब भी करती है" एकांश बोला

"केयर, अंधा है क्या, जैसे वो रो रही थी मुझे ऑर्डर दे रही थी के बस केयर नही है भाई ये उससे कुछ ज्यादा है, और अब तो मैं श्योर हु के सच्चाई कुछ और ही है"



क्रमश:
Nice update....
 

Yasasvi3

😈Devil queen 👑
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Update 15



“मैंने उसे 1.5 साल पहले एक मॉल के बाहर कीसी से बात करते देखा था, इन्फैक्ट वो बात करते हुए रो रही थी” अमर ने कहा और एकांश को देखा

“कौन था वो?” एकांश ने पूछा और अब जो अमर बताने वाला था उसे सुन शायद एकांश को एक काफी बड़ा झटका मिलने वाला था

“तुम्हारी मा.....”

“तू समझ रहा है ना तू क्या बोल रहा है तो?” एकांश को अमर की बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था जो स्वाभाविक भी था, अक्षिता के उससे दूर जाने के पीछे उसकी मा होगी ये उसने सोचा भी नहीं था

“मैं जानता हु यकीन करना मुश्किल है लेकिन मैं बहुत सोच के बोल रहा हु एकांश, करीब डेढ़ साल पहले की बात है मैं सिटी मॉल जा रहा था तब मैंने वहा आंटी को देखा था जो शायद कीसी को ढूंढ रही थी, आंटी को वहा देख मैंने गाड़ी पार्क की और उनके पास जाने लगा लेकिन तब तक मैंने देखा के वहा एक लड़की भी आ गई थी जिसे लेकर आंटी थोड़ा साइड मे एक कॉर्नर मे चली गई, वो लड़की उनसे बात कर रही थी और बात करते करते वो लड़की रोने लगी थी और फिर उसने आंटी से कुछ कहा और वहा से चली गई,” अमर ने एकांश को पूरी बात बताई और ये सब सुन के एकांश के चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था, अमर ने आगे बोलना शुरू किया

“एकांश सुन, मैं बस वो बता रहा हु जो मैंने उस दिन देखा था और पूरा सच क्या है मुझे भी नहीं पता, बात कुछ और भी जो सकती है और यही जानने के लिए मैं अक्षिता का पीछा कर रहा था, सिम्पल लड़की है यार और उसके मा बाप भी ऐसे नहीं है के वो उसे कीसी बात के लिए रोकते हो, उसे शायद पता चल गया था के मैं उसका पीछा कर रहा हु इसीलिए सतर्क हो गई वो, वो बाते छिपाने मे माहिर है भाई इसीलिए असल सच पता ही नहीं चल पाया” अमर ने एकांश के कंधे पे हाथ रखते हुए कहा

“क्या अक्षिता का मुझे धोका देने के पीछे मा का हाथ हो सकता है?” एकांश ने अमर से पूछा और पूछते हुए उसकी आवाज कांप रही थी

“शायद, या शायद नहीं भी लेकिन अब यही तो हमे पता लगाना है” अमर ने कहा

“पता क्या लगाना है मैं अभी सीधा जाकर मॉम से इस बारे मे बात करता हु” एकांश ने अपनी जगह से उठते हुए कहा

“नहीं!! फिलहाल तो ऐसा बिल्कुल नहीं करना है, अगर इस सब मे उनकी कोई गलती नहीं हुई तो उन्हे हर्ट होगा और अगर उनकी गलती रही तो वो शायद इस बात से अभी अग्री ही नहीं करेंगी” अमर ने एकांश को रोका

“तो अब क्या करे तू ही बता?” एकांश ने चिल्ला के पूछा

“देखा आंटी से पुछ के भी तुझे पूरा सच पता चलेगा इसकी कोई गारेंटि नहीं है, हम तो ये भी नहीं जानते के हमारे अनुमान कितने सही है और इतने गलत है और इस सब की वजह से कीसी अपने को हर्ट हो खास कर आंटी को तो ये बिल्कुल सही नहीं होगा” अमर ने अपनी बात आराम से कही

“हम्म, पहले अक्षिता के बारे अपने मे जो अपने अनुमान है उनको देखते है सही है या गलत, कल रात के बाद मैं इतना तो शुवर हु के कनेक्शन तो अब भी है” एकांश ने शांत होते हुए कहा, वो वापिस अपनी जगह पर बैठ गया था

"करेक्ट, और कुछ तो बड़ा रीजन है जो हमको पता लगाना है" अमर ने कहा

"हम्म, लेकिन कैसे पता करेंगे?"

"पहले तो ये देखते है उसके मन में तेरे लिए फीलिंग्स है या नही इस और से कन्फर्म होना सही रहेगा"

"और ये कैसे करेंगे?"

"अबे तू ढक्कन है क्या, इतनी बड़ी कंपनी संभालता है और इतनी समझ नही है, तूने प्यार किया है उससे भाई, तुझे तो अच्छे से पता होना चाहिए उसके बारे में उसके नेचर के बारे में कौनसी बात उसे सबसे ज्यादा एफेक्ट करती है इस बारे में"

"हा हा पता है"

"पता है तो बता फिर"

"अक्षिता न सिंपल लड़की है, वो बस दिखने मे सरल है लेकिन है काफी चुलबुली, छोटी छोटी बातों मे खुश हो जाती है और छोटी छोटी बातों मे नाराज भी, हम जब रीलेशनशीप मे थे तब उसका पोस्ट ग्रैजवैशन चल रहा था फिर भी हम लगातार मिलते है, पार्क हमारे मिलने का ठिकाना था, अगर कभी मुझे देर हो जाए या मैं कीसी काम मे हु और उसका फोन ना उठाऊ तो पैनिक कर देती थी वो, और अगर कभी मेरी तबीयत खराब हो जाए तो आँसू उसकी आँखों से निकलते थे, वो मुझे तकलीफ मे नहीं देख सकती थी और अगर गलती से कोई लड़की मेरे से बात कर ले या आसपास भी आ जाए तो उसे जलन भी होने लगती थी, मैंने उसको कई गिफ्ट दिए थे लेकिन उसके बर्थडे पर मैंने उसे एक लॉकेट दिया था जो उसे बेहद पसंद था और वो जहा भी रहे कुछ भी करे वो लॉकेट हमेशा उसके गले मे रहता था, कहती थी मुझपर ब्लू कलर सूट करता है इसीलिए उसने मुझे ब्लू शर्ट भी गिफ्ट किया था....” एकांश बोल रहा था पुरानी यादे अमर को बता रहा था और अमर सब सुन रहा था

एकांश के चेहरे पर इस वक्त कई सारे ईमोशन बह रहे थे और अमर चुप चाप उसे देख रहा था, अक्षिता के बारे मे बात करते हुए एकांश की आँखों मे एक अलग ही चमक थी जो अमर से छिपी हुई नहीं थी, एकांश ने अमर को देखा जो उसे ही देख रहा था

“तू अब भी उसे उतना ही चाहता है, हैना?” अमर ने एकांश के चेहरे पर आते भावों को देख पूछा

“क.. क्या... नहीं!! पुरानी बाते है अब वो” एकांश ने कहा लेकिन अमर उसकी बात कहा मानने वाला था

“जब कुछ है ही नहीं भोसडीके तो हम यहा पापड़ बना रहे है क्या,”

“नहीं, मैं बस ये जानना चाहता हु के उसने मुझे क्यू छोड़ा, बस।“

“ठीक है मत बता, लेकिन अब पुरानी बातों मे घूम के समझ आया आगे क्या करना है या वो भी मैं ही बताऊ?”

“समझ गया, देखते है उसके मन मे मेरे लिए क्या है तो”

“गुड, कल की तयारी करो फिर चल मैं निकलता हु” इतना बोल के अमर वहा से निकल गया

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अगले दिन

अक्षिता अगले दिन हमेशा को तरह ऑफिस पहुंच चुकी थी लेकिन हमेशा वाले जॉली मूड में नहीं थी बल्कि उसके चेहरे पर एक उदासी थी, पार्टी को बात तो उसके दिमाग से एकदम ही निकल गई थी, उसके जगह कई और खयाल इसके दिमाग में घूम रहे थे

अक्षिता ने एक लंबी सास छोड़ी और हाथ में एकांश को कॉफी का कप लिए उसके केबिन का दरवाजा खटखटाया

"कम इन"

अंदर से आवाज आया जिसे सुन अक्षिता थोड़ा चौकी, आज एकानशंका आवाज कुछ अलग था, उसका आवाज हमेशा को तरह सर्द नहीं था बल्कि उसके आवाज में थोड़ी एक्साइटमेंट थी

अक्षिता ने दरवाजा खोला और अंदर आई

"सर आपकी कॉफी" अक्षिता ने कॉफी टेबल पर रखते हुए कहा

"थैंक यू" एकांश ने कॉफी का कप उठाते हुए मुस्कुराते हुए कहा और अब तो अक्षिता काफी हैरान थी एक तो एकांश उसे थैंक यू बोला था ऊपर से उसको देख मुस्कुराया भी था

"Take your seat miss Pandey" एकांश ने कहा और अब ये अक्षिता के लिए दूसरा झटका था के काम के बीच एकांश उसे बैठने के लिए कहे, वो जब बेहोश हुई थी तब के अलावा एकांश ने उसे कभी ऐसे बैठने नहीं कहा था बल्कि वो तो हमेशा उसका काम बढ़ाता था, खैर अक्षिता वहा बैठ गई

"तो, अब कैसी है आप?" एकांश ने पूछा एकांश ने और अक्षिता थोड़ी हैरत के साथ उसे देखने लगी

‘इसको क्या हो गया अचानक, ये आज पुराना एकांश कैसे बन गया’

"सर आप ठीक है ना?" अक्षिता के मुंह से अचानक निकला

"हा, हा मैं एकदम ठीक हु, थैंक यू फॉर आस्किंग" एकांश ने वापिस मुस्कुराते हुए जवाब दिया

और अब बस अक्षिता ने एक पल उसे देखा और फिर सीधा उसके केबिन से बाहर निकल गई और बाहर जाकर सीधा सीढ़ियों के पास रुकी और एकांश के केबिन के बंद दरवाजे को देख सोचने लगी

‘इसको अचानक क्या हो गया? ये इतनी मीठी तरह से बात क्यू कर रहा है? ये डेफ़िनटेली एकांश नहीं है, ये वो खडूस है हि नहीं’

और यही सब सोचते हुए अक्षिता वहा से निकल कर अपने फ्लोर पर अपनी डेस्क कर आकार अपने काम मे लग गई वही एकांश अपने केबिन मे बैठा अक्षिता को वहा से जाते देखता रहा

‘इसको क्या हो गया अचानक?’

‘ये ऐसे भाग क्यू गई?’

‘शीट! कही मेरे बदले हुए बिहैव्यर ने डरा तो नहीं दिया इसको?”

‘लेकिन मैं भी क्या करू जब से पता चला है के शायद अक्षिता ने मुझे धोका नहीं दिया है मैं खुद को रोक ही नहीं पाया’


एकांश के मन मे यही सब खयाल चल रहे थे का तभी उसने दरवाले पर नॉक सुना और अमर अंदर आया

“यो एकांश क्या हुआ? बात बनी?” अमर ने आते साथ ही पूछा

“वो भाग गई”

“क्या?? कैसे?? क्या किया तूने?” अमर ने एकांश के सामने की खुर्ची पर बैठते हुए पूछा

“मैंने बस उसको कॉफी के लिए शुक्रिया बोला था और थोड़ा हस के बात कर ली थी और कुछ नहीं और वो ऐसे भागी जैसे कोई भूत देखा हो” एकांश ने कहा और अमर उसकी बात सुन हसने लगा

“तूने उसको हस के देखा फिर थैंक यू बोला और तू कह रहा है तूने कुछ नहीं किया, अबे चूतिये एकांश रघुवंशी है तू, ऐरगन्ट है अकड़ू है अपने खुद का बत्राव याद कर पिछले कुछ समय का खासतौर पर कंपनी टेकओवर के बाद का और फिर तुम अक्षिता से उम्मीद करते हो के वो डरे ना, वाह बीसी” अमर ने हसते हुए कहा

“सही मे ऐसा है क्या”

“हा, अब लगता है उसकी फीलिंगस बाहर लाने कोई तिकड़म लगाना पड़ेगा”

“तो क्या करे?”

“उसको बुला यह”

जिसके बाद तुरंत ही एकांश ने अक्षिता को अपने केबिन मे आने को कहा

“गुड अब मैं बताता हु वैसा करना”

वही दूसरी तरह अक्षिता एकांश के केबिन मे नहीं जाना चाहती थी फिर भी बॉस का हुकूम था तो करना ही था उसने केबिन का दरवाजा खटखटाया और कम इन का आवाज आते ही अंदर गई उसने देखा के एकांश अपनी खुर्ची पर बैठा था और उसके पास एक बंदा खड़ा था

“सर आपने बुलाया मुझे?’ अक्षिता ने अंदर आते कहा

और फिर अक्षिता ने देखा के वो बंदा अमर था और वो एकांश के पास से दूर हट रहा था और अक्षिता ने जैसे ही एकांश को देखा उसके चेहरे पर डर की लकिरे उभर आई

“अंश” अक्षिता चिल्लाई और दौड़ के एकांश के पास पहुची

एकांश के हाथ से खून बह रहा था और अक्षिता ने उसका वो हाथ अपने हाथ मे लिया और अपने दुपट्टे से उसके हाथ से बहता खून सायद कर खून रोकने की कोशिश करने लगी, वही एकांश तो अपने लिए अक्षिता के मुह से अंश सुन कर ही खुश हो रहा था, बस वही थी जो उसे अंश कह कर बुलाती थी और ये हक कीसी के पास नहीं था

“ये खून, ये कैसे हुआ?” अकसीता ने पूछा, उसकी आँख से आँसू की एक बंद टपकी

“टेबल पर रखा पानी का ग्लास टूट गया और टूटे कांच से चोट लगी है” अमर ने अक्षिता के रोते चेहरे को देख कहा, एकांश ने सही कहा था वो उसे दर्द मे नहीं देख सकती थी

“तो तुम यह बुत की तरह क्या खड़े को देख नहीं रहे अंश को चोट लगी है जाओ जाकर फर्स्ट ऐड लेकर आओ, वो वहा कैबिनेट मे रखा है” अक्षिता ने अमर से चीखते हुए कहा वही एकांश के चेहरे पर स्माइल थी

“और तुम, तुम क्यू मुस्कुरा रहे हो, चोट लगी है और तुमको हसी आ रही है, मैंने कोई जोक सुनाया क्या? तुम इतने लापरवाह क्यू हो देखा चोट लग गई ना” अक्षिता ने लगे हाथ एकांश को भी चार बाते सुना दी

अमर ने फर्स्ट ऐड लाकर अक्षिता को थमाया और वो एकांश की पट्टी करने लगी वही एकांश बस उसे देख रहा था, अक्षिता की नजर जब उसपर पड़ी तो एकांश की आखों मे उमड़ते भाव उसे डराने लगे थे

अक्षिता ने वहा खड़े अमर को देखा जो उन दोनों को देख मुस्कुरा रहा था

“सुनो” अक्षिता ने अपनी आंखे पोंछते हुए अमर से कहा

“मैं?”

“हा तुम ही और कोई है क्या यहा, इसे अस्पताल ले जाओ और अच्छे से पट्टी करवा देना और वो दवाईया डॉक्टर दे वो देना” अक्षिता ने अमर को ऑर्डर दे डाला लेकिन अमर वैसे ही खड़ा रहा

“अब खड़े खड़े क्या देख रहे हो... जाओ” जब अमर अपनी जगह से नहीं हिला तब अक्षिता ने वापिस कहा

जिसके बाद अक्षिता एकांश को ओर मुड़ी

"और तुम हॉस्पिटल से सीधा घर जाकर आराम करोगे, तब तक मैं यहा का देखती हु" अक्षिता ने कहा और एकांश ने बगैर कुछ बोले हा में गर्दन हिला दी

अमर एकांश को लेकर हॉस्पिटल के लिए निकल गया था

"साले तेरी वजह से उसने मुझे भी डाटा" अमर बोला

"हा तो चोट भी तो तूने ही दी गई"

"वाह बेटे एक तो मदद करो और फिर बाते भी सुनो, चल अब"

"वैसे इस सब में मुझे एक बात तो पता चल ही गई है, फीलिंग तो अब भी है वो मेरी केयर तो अब भी करती है" एकांश बोला

"केयर, अंधा है क्या, जैसे वो रो रही थी मुझे ऑर्डर दे रही थी के बस केयर नही है भाई ये उससे कुछ ज्यादा है, और अब तो मैं श्योर हु के सच्चाई कुछ और ही है"



क्रमश:
Very nicely updated.... Appki lekhni itni jaberdast h ki khane ko sabd nahi h........
 
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