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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

agmr66608

Member
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भयानक और रोमांच से भरा हुआ अनुच्छेद। मस्त है। एक बदमाश का तो पता चला की वो साहूकार परिबर से है। बाकी दोनों कौन है ये तो आगे मे ही पता चलेगा। बहुत बढ़िया अनुच्छेद। धीरे धीरे पर्दा उठना शुरू हो गया है। बहुत धन्यबाद इतना मस्त अनुच्छेद के लिए।
 

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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अध्याय - 58
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



अब तक....

शेरा को लगा काला नकाबपोश बेवजह ही सफ़ेदपोश का गुणगान कर रहा है इस लिए समय को बर्बाद न करते हुए उसने उसकी कनपटी के ख़ास हिस्से पर वार किया जिसका नतीजा ये हुआ कि काला नकाबपोश जल्द ही बेहोशी की गर्त में डूबता चला गया। उसके बाद शेरा ने उसे उठा कर कंधे पर लादा और एक तरफ को बढ़ता चला गया।

अब आगे....

रूपा अपने कमरे में पलंग पर लेटी गहरी सोच में डूबी हुई थी। बार बार उसके कानों में बाग़ में मौजूद उस पहले साए की बातें गूंज उठती थीं जिसकी वजह से वो गहन सोच के साथ साथ गहन चिंता में भी पड़ गई थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस आवाज़ को उसने सुना था वो उसका कोई अपना था। वो अच्छी तरह जान गई थी कि वो आवाज़ किसकी थी लेकिन उसने जो कुछ कहा था उस पर उसे यकीन नहीं हो रहा था। उसे तो अब यही लगता था कि दादा ठाकुर से हमारे रिश्ते अच्छे हो गए हैं और इस वजह से वो वैभव के सपने फिर से देखने लगी थी। वो वैभव से बेहद प्रेम करती थी और इसका सबूत यही था कि उसने अपना सब कुछ वैभव को सौंप दिया था।

रूपा को पता चल गया था कि उसके प्रियतम वैभव की जान को ख़तरा है। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो अपने प्रियतम की जान को कैसे महफूज़ करे? उसका बस चलता तो वो इसी वक्त चंदनपुर जा कर वैभव को इस बारे में सब कुछ बता देती और उससे कहती कि वो अपनी सुरक्षा का हर तरह से ख़्याल करे। सहसा उसे वैभव की वो बातें याद आईं जो उसने पिछली मुलाक़ात में उससे मंदिर में कही थीं। उस वक्त रूपा को उसकी बातों पर ज़रा भी यकीन नहीं हुआ था और यही वजह थी कि उसने कभी ये जानने और समझने की कोशिश नहीं की थी कि उसके घर वाले संबंध सुधार लेने के बाद भी दादा ठाकुर और उनके परिवार के बारे में कैसे ख़्याल रखते हैं? आज जब उसने बाग़ में वो सब सुना तो जैसे उसके पैरों तले से ज़मीन ही खिसक गई थी। वो सोचने पर मजबूर हो गई कि क्या सच में उसके घर वाले कुत्ते की दुम ही हैं जो कभी सीधे नहीं हो सकते?

जब से दोनों खानदान के बीच संबंधों में सुधार हुआ था तब से वो वैभव के साथ अपने जीवन के हसीन सपने देखने लगी थी। वो जानती थी कि उसकी तरह वैभव के दिल में उसके प्रति प्रेम के जज़्बात नहीं हैं लेकिन वो ये भी जानती थी कि बाकी लड़कियों की तरह वैभव उसके बारे में नहीं सोचता। अगर वो उसे प्रेम नहीं करता है तो उसे बाकी लड़कियों की तरह अपनी हवस मिटाने का साधन भी नहीं समझता है। कहने का मतलब ये कि कहीं न कहीं वैभव के दिल में उसके प्रति एक सम्मान की भावना ज़रूर है।

अभी रूपा ये सब सोच ही रही थी कि सहसा उसे किसी के आने का आभास हुआ। वो फ़ौरन ही पलंग पर सीधा लेट गई और अपने चेहरे के भावों को छुपाने का प्रयास करने लगी। कुछ ही पलों में उसके कमरे में उसकी एकमात्र भाभी कुमुद दाखिल हुई। कुमुद उसके ताऊ मणि शंकर की बहू और चंद्रभान की बीवी थी।

"अब कैसी तबियत है मेरी प्यारी ननदरानी की?" कुमुद ने पलंग के किनारे बैठ कर उससे मुस्कुरा कर पूछा____"चूर्ण का कोई फ़ायदा हुआ कि नहीं?"
"अभी तो एक बार दिशा मैदान हो के आई हूं भौजी।" रूपा ने कहा____"देखती हूं अब क्या समझ में आता है।"

"फ़िक्र मत करो।" कुमुद ने रूपा के हाथ को अपने हाथ में ले कर कहा____"चूर्ण का ज़रूर फ़ायदा होगा और मुझे यकीन है अब तुम्हें शौच के लिए नहीं जाना पड़ेगा।"

"यही बेहतर होगा भौजी।" रूपा ने कहा____"वरना रात में आपको भी मेरे साथ तकलीफ़ उठानी पड़ जाएगी। अगर ऐसा हुआ तो आपका मज़ा भी ख़राब हो जाएगा।"
"कोई बात नहीं।" रूपा के कहने का मतलब समझते ही कुमुद ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"अपनी प्यारी ननदरानी के लिए आज के मज़े की कुर्बानी दे दूंगी मैं। तुम्हारे भैया कहीं भागे थोड़े न जा रहे हैं।"

कुमुद की बात सुन कर रूपा के होठों पर मुस्कान उभर आई। इस घर में कुमुद का सबसे ज़्यादा रूपा से ही गहरा दोस्ताना था। दोनों ननद भाभी कम और सहेलियां ज़्यादा थीं। अपनी हर बात एक दूसरे से साझा करतीं थीं दोनों। कुमुद को रूपा और वैभव के संबंधों का पहले शक हुआ था और फिर जब उसने ज़ोर दे कर रूपा से इस बारे में पूछा तो रूपा ने कबूल कर लिया था कि हां वो वैभव से प्रेम करती है और वो अपना सब कुछ वैभव को सौंप चुकी है। कुमुद को ये जान कर बेहद आश्चर्य हुआ था लेकिन वो उसके प्रेम भाव को भी बखूबी समझती थी। एक अच्छी सहेली की तरह वो उसे सलाह भी देती थी कि वैभव जैसे लड़के से प्रेम करना तो ठीक है लेकिन वो उस लड़के के सपने न देखे क्योंकि उसके घर वाले कभी भी उसका रिश्ता उस लड़के से नहीं करना चाहेंगे। दूर दूर तक के लोग जानते हैं कि दादा ठाकुर का छोटा बेटा कैसे चरित्र का लड़का है। कुमुद के समझाने पर रूपा को अक्सर थोड़ा तकलीफ़ होती थी। वो जानती थी कि कुमुद ग़लत नहीं कहती थी, वो खुद भी वैभव के चरित्र से परिचित थी लेकिन अब इसका क्या किया जाए कि इसके बावजूद वो वैभव से प्रेम करती थी और उसी के सपने देखने पर मजबूर थी।

"क्या हुआ?" रूपा को कहीं खोया हुआ देख कुमुद ने कहा____"क्या फिर से उस लड़के के ख़्यालों में खो गई?"
"मुझे आपसे एक सहायता चाहिए भौजी।" रूपा ने सहसा गंभीर भाव से कहा____"कृपया मना मत कीजिएगा।"

"बात क्या है रूपा?" कुमुद ने उसकी गंभीरता को भांपते हुए पूछा____"कोई परेशानी है क्या?"
"हां भौजी।" रूपा एकदम से उठ कर बैठ गई, फिर गंभीर भाव से बोली____"बहुत बड़ी परेशानी और चिंता की बात हो गई है। इसी लिए तो कह रही हूं कि मुझे आपसे एक सहायता चाहिए।"

"आख़िर बात क्या है?" कुमुद के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं____"ऐसी क्या बात हो गई है जिसकी वजह से तुम मुझसे सहायता मांग रही हो? मुझे सब कुछ बताओ रूपा। आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसके चलते अचानक से तुम इतना चिंतित हो गई हो?"

"पहले मेरी क़सम खाइए भौजी।" रूपा ने झट से कुमुद का हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया, फिर बोली____"पहले मेरी क़सम खाइए कि मैं आपको जो कुछ भी बताऊंगी उसके बारे में आप इस घर में किसी को कुछ भी नहीं बताएंगी।"

"तुम मेरी ननद ही नहीं बल्कि सहेली भी हो रूपा।" कुमुद ने कहा____"तुम अच्छी तरह जानती हो कि हम कभी भी एक दूसरे के राज़ किसी से नहीं बताते। फिर क़सम देने की क्या ज़रूरत है तुम्हें? क्या तुम्हें अपनी भौजी पर यकीन नहीं है?"

"खुद से भी ज़्यादा यकीन है भौजी।" रूपा ने बेचैन भाव से कहा____"लेकिन फिर भी आप एक बार मेरी क़सम खा लीजिए। मेरी बात को अन्यथा मत लीजिए भौजी।"

"अच्छा ठीक है।" कुमुद ने कहा____"मैं अपनी सबसे प्यारी ननद और सबसे प्यारी सहेली की क़सम खा कर कहती हूं कि तुम मुझे जो कुछ भी बताओगी उसके बारे में मैं कभी भी किसी से ज़िक्र नहीं करूंगी। तुम्हारा हर राज़ मेरे सीने में मरते दम तक दफ़न रहेगा। अब बताओ कि आख़िर बात क्या है?"

"वैभव की जान को ख़तरा है भौजी।" रूपा ने दुखी भाव से कहा____"अभी कुछ देर पहले जब मैं दिशा मैदान के लिए गई थी तब मैंने बाग़ में कुछ लोगों से इस बारे में सुना था।"

"य...ये क्या कह रही हो तुम?" कुमुद ने हैरत से आंखें फैला कर कहा____"भला बाग़ में ऐसे वो कौन लोग थे जो वैभव के बारे में ऐसी बातें कर रहे थे?"
"आप सुनेंगी तो आपको यकीन नहीं होगा भौजी।" रूपा ने आहत भाव से कहा____"मुझे ख़ुद अभी तक यकीन नहीं हो रहा है।"

"पर वो लोग थे कौन रूपा?" कुमुद ने उलझनपूर्ण भाव से पूछा____"जिन्होंने वैभव के बारे में ऐसा कुछ कहा जिसे सुन कर तुम ये सब कह रही हो। मुझे पूरी बात बताओ।"

रूपा ने कुमुद को सब कुछ बता दिया। जिसे सुन कर कुमुद भी गहरे ख़्यालों में खोई हुई नज़र आने लगी। उधर सब कुछ बताने के बाद रूपा ने कहा_____"आपको पता है वैभव को ख़त्म करने के लिए कहने वाला कौन था? वो व्यक्ति कोई और नहीं आपके ही ससुर थे यानि मेरे ताऊ जी। मैंने अच्छी तरह उनकी आवाज़ को सुना था भौजी। वो ताऊ जी ही थे।"

कुमुद को रूपा के मुख से अपने ससुर के बारे में ये जान कर ज़बरदस्त झटका लगा। एकदम से उससे कुछ कहते न बन पड़ा था। चेहरे पर ऐसे भाव उभर आए थे जैसे वो इस बात को यकीन करने की कोशिश कर रही हो।

"बाकी दो लोग कौन थे मैं नहीं जानती भौजी।" कुमुद को गहरी सोच में डूबा देख रूपा ने कहा____"उन दोनों की आवाज़ मेरे लिए बिल्कुल ही अंजानी थी लेकिन ताऊ जी की आवाज़ को पहचानने में मुझसे कोई ग़लती नहीं हुई है।"

"ऐसा कैसे हो सकता है रूपा?" कुमुद ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"अब तो हवेली वालों से हमारे संबंध अच्छे हो गए हैं ना? ससुर जी ने तो खुद ही अच्छे संबंध बनाने की पहल की थी तो फिर वो खुद ही ऐसा कैसे कर सकते हैं?"

"यही तो समझ में नहीं आ रहा भौजी।" रूपा ने चिंतित भाव से कहा____"अगर ताऊ जी ने खुद पहल कर के हवेली वालों से अपने संबंध सुधारे थे तो अब वो ऐसा क्यों कर रहे हैं? इसका तो यही मतलब हो सकता है ना कि संबंध सुधारने का उन्होंने सिर्फ़ दिखावा किया था जबकि आज भी वो हवेली वालों को अपना दुश्मन समझते हैं। यही बात कुछ समय पहले वैभव ने भी मुझसे कही थी भौजी।"

"क्या मतलब?" कुमुद ने चौंकते हुए पूछा____"क्या कहा था वैभव ने?"
"उसे भी यही लगता है कि हमारे घर वालों ने उससे संबंध सुधार लेने का सिर्फ़ दिखावा किया है जबकि ऐसा करने के पीछे यकीनन हमारी कोई चाल है।" रूपा ने कहा____"वैभव ने मुझसे कहा भी था कि अगर वो ग़लत कह रहा है तो मैं खुद इस बारे में पता कर सकती हूं। उस दिन मुझे उसकी बातों पर यकीन नहीं हुआ था इस लिए मैंने कभी इसके बारे में पता लगाने का नहीं सोचा था लेकिन अभी शाम को जो कुछ मैंने सुना उससे मैं सोचने पर मजबूर हो गई हूं।"

"अगर सच यही है।" कुमुद ने गंभीरता से कहा____"तो यकीनन ये बहुत ही गंभीर बात है रूपा। मुझे समझ नहीं आ रहा कि ससुर जी ऐसा क्यों कर रहे हैं? आख़िर हवेली वालों से उनकी क्या दुश्मनी है जिसकी वजह से वो ऐसा कर रहे हैं? इस घर में मुझे आए हुए डेढ़ दो साल हो गए हैं लेकिन मैंने कभी किसी के मुख से दोनों खानदानों के बीच की दुश्मनी का असल कारण नहीं सुना। ये ज़रूर सुनती आई हूं कि तुम्हारे भाई लोगों का उस लड़के से कभी न कभी लड़ाई झगड़ा होता ही रहता है। जब संबंध अच्छे बने तो ससुर जी खुद ही उस लड़के को हमारे घर ले कर आए थे। मैंने सुना था कि वो घर बुला कर उस लड़के का सम्मान करना चाहते थे। उस दिन जब वैभव आया था तो मैंने देखा था कि वो सबसे कितने अच्छे तरीके से मिल रहा था और अपने से बड़ों के पैर छू कर आशीर्वाद ले रहा था। मेरी गुड़िया को तो वो अपने साथ हवेली ही ले गया था। अब सोचने वाली बात है कि अगर ससुर जी खुद उस लड़के को सम्मान देने के लिए यहां ले कर आए थे तो अब उसी लड़के को ख़त्म करने का कैसे सोच सकते हैं?"

"ज़ाहिर है वैभव को अपने घर ला कर उसे सम्मान देना महज दिखावा ही था।" रूपा ने कहा____"जबकि उनके मन में तो वैभव के प्रति नफ़रत की ही भावना थी। ये भी निश्चित ही समझिए कि अगर ताऊजी ऐसी मानसिकता रखते हैं तो ऐसी ही मानसिकता उनके सभी भाई भी रखते ही होंगे। भला वो अपने बड़े भाई साहब के खिलाफ़ कैसे जा सकते हैं? कहने का मतलब ये कि वो सब हवेली वालों से नफ़रत करते हैं और उन सबका एक ही मकसद होगा____'हवेली के हर सदस्य का खात्मा कर देना।"

रूपा की बातें सुन कर कुमुद हैरत से देखती रह गई उसे। उसके ज़हन में विचारों की आंधियां सी चलने लगीं थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके घर वालों का सच ऐसा भी हो सकता है।

"मुझे आपकी सहायता चाहिए भौजी।" रूपा ने चिंतित भाव से कहा____"मुझे किसी भी तरह वैभव को इस संकट से बचाना है।"
"पर तुम कर भी क्या सकोगी रूपा?" कुमुद ने बेचैन भाव से कहा____"तुमने बताया कि वैभव अपनी भाभी को ले कर चंदनपुर गया हुआ है तो तुम भला कैसे उसे इस संकट से बचाओगी? क्या तुम रातों रात चंदनपुर जाने का सोच रही हो?"

"नहीं भौजी।" रूपा ने कहा____"चंदनपुर तो मैं किसी भी कीमत पर नहीं जा सकती क्योंकि ये मेरे लिए संभव ही नहीं हो सकेगा लेकिन हवेली तो जा ही सकती हूं।"

"ह...हवेली??" कुमुद ने हैरानी से रूपा को देखा।
"हां भौजी।" रूपा ने कहा____"आपकी सहायता से मैं हवेली ज़रूर जा सकती हूं और वहां पर दादा ठाकुर को इस बारे में सब कुछ बता सकती हूं। वो ज़रूर वैभव को इस संकट से बचाने के लिए कुछ न कुछ कर लेंगे।"

"बात तो तुम्हारी ठीक है।" कुमुद ने सोचने वाले भाव से कहा____"लेकिन तुम हवेली कैसे जा पाओगी? सबसे पहले तो तुम्हारा इस घर से बाहर निकलना ही मुश्किल है और अगर मान लो किसी तरह हवेली पहुंच भी गई तो वहां रात के इस वक्त कैसे हवेली में प्रवेश कर पाओगी?"

"मेरे पास एक उपाय है भौजी।" रूपा के चेहरे पर सहसा चमक उभर आई थी, बोली____"घर में सबको पता है कि मेरा पेट ख़राब है जिसके चलते मुझे बार बार दिशा मैदान के लिए जाना पड़ता है। तो उपाय ये है कि मैं आपके साथ दिशा मैदान जाने के लिए घर से बाहर जाऊंगी। उसके बाद बाहर से सीधा हवेली चली जाऊंगी। वैसे भी घर में कोई ये कल्पना ही नहीं कर सकता कि मैं ऐसे किसी काम के लिए सबकी चोरी से हवेली जा सकती हूं।"

"वाह! रूपा क्या मस्त उपाय खोजा है तुमने।" कुमुद के चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई, अतः मुस्कुराते हुए बोली____"आज मैं पूरी तरह से मान गई कि तुम सच में वैभव से बेहद प्रेम करती हो वरना अपने ही परिवार के खिलाफ़ जा कर ऐसी बात हवेली में जा कर बताने का कभी न सोचती।"

"मुझे इस बात को बताने की कोई खुशी नहीं है भौजी।" रूपा ने उदास भाव से कहा____"क्योंकि हवेली में दादा ठाकुर को जब मेरे द्वारा इस बात का पता चलेगा तो ज़ाहिर है कि उसके बाद मेरे अपने घर वाले भी संकट में घिर जाएंगे। वैभव की जान बचाने के चक्कर में मैं अपनों को ही संकट में डाल दूंगी और ये बात सोच कर ही मुझे अपने आपसे घृणा हो रही है।"

"मैं मानती हूं कि ऐसा करने से तुम अपने ही घर वालों को संकट में डाल दोगी।" कुमुद ने कहा____"लेकिन इसका भी एक सटीक उपाय है मेरी प्यारी ननदरानी।"
"क्या सच में?" रूपा के मुरझाए चेहरे पर सहसा खुशी की चमक फिर से उभर आई____"क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे मेरे ऐसा करने के बाद भी मेरे घर वालों पर कोई संकट न आए?"

"हां रूपा।" कुमुद ने कहा____"उपाय ये है कि तुम दादा ठाकुर से इस बारे में बताने से पहले ये आश्वासन ले लो कि वो हमारे घर वालों पर किसी भी तरह का कोई संकट नहीं आने देंगे। अगर वो आश्वासन दे देते हैं तो ज़ाहिर है कि तुम्हारे द्वारा ये सब बताने पर भी वो हमारे घर वालों के लिए ख़तरा नहीं बनेंगे।"

"और अगर वो न माने तो?" रूपा ने संदिग्ध भाव से पूछा____"अगर वो गुस्से में आ कर सच में हमारे घर वालों के लिए ख़तरा बन गए तो?"

"नहीं, ऐसा नहीं होगा।" कुमुद ने मानों पूरे विश्वास के साथ कहा____"डेढ़ दो सालों में इतना तो मैं भी जान गई हूं कि दादा ठाकुर किस तरह के इंसान हैं। मुझे यकीन है कि जब तुम सब कुछ बताने के बाद हमारे परिवार पर संकट न आने के लिए उनसे कहोगी तो वो तुम्हें निराश नहीं करेंगे। आख़िर वो ये कैसे भूल जाएंगे कि तुमने अपने परिवार के खिलाफ़ जा कर उनके बेटे के जीवन को बचाने का प्रयास किया है? मुझे पूरा यकीन है रूपा कि वो हमारे लिए कोई भी ख़तरा नहीं बनेंगे।"

"अगर आपको उन पर यकीन है।" रूपा ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"तो फिर हम दोनों दिशा मैदान के लिए चलते हैं। अब एक पल का भी देर करना ठीक नहीं है।"

"रुको, एक उपाय और है रूपा।" कुमुद ने कुछ सोचते हुए कहा____"एक ऐसा उपाय जिससे किसी बात की चिंता करने की ज़रूरत ही नहीं रहेगी।"
"क्या मतलब??" रूपा के माथे पर उलझन के भाव उभर____"भला इस तरह का क्या उपाय हो सकता है भौजी?"

"बड़ा सीधा सा उपाय है मेरी प्यारी लाडो।" कुमुद ने मुस्कुराते हुए कहा____"और वो ये कि हम दादा ठाकुर को ये नहीं बताएंगे कि वैभव को ख़त्म करने के लिए किसने कहा है। कहने का मतलब ये कि तुम उनसे सिर्फ यही बताना कि तुमने हमारे बाग में कुछ लोगों को ऐसी बातें करते सुना था जिसमें वो लोग चंदनपुर जा कर वैभव को जान से मारने को कह रहे थे। दादा ठाकुर अगर ये पूछेंगे कि तुम उस वक्त बाग में क्या कर रही थी तो बोल देना कि तुम्हारा पेट ख़राब था इस लिए तुम वहां पर दिशा मैदान के लिए गई थी और उसी समय तुमने ये सब सुना था।"

"ये उपाय तो सच में कमाल का है भौजी।" रूपा के चेहरे पर खुशी के भाव उभर आए____"यानि मुझे ताऊ जी के बारे में दादा ठाकुर से बताने की ज़रूरत ही नहीं है और जब ताऊ जी का ज़िक्र ही नहीं होगा तो दादा ठाकुर से हमारे परिवार को कोई ख़तरा भी नहीं होगा। वाह! भौजी क्या उपाय बताया है आपने।"

"ऐसा करने से एक तरह से हम अपने परिवार वालों के साथ गद्दारी भी नहीं करेंगे रूपा।" कुमुद ने कहा____"और उन्हें दादा ठाकुर के क़हर से भी बचा लेंगे। वैभव से तुम प्रेम करती हो तो उसके लिए ऐसा कर के तुम उसके प्रति अपनी वफ़ा भी साबित कर लोगी। इससे कम से कम तुम्हारे दिलो दिमाग़ में कोई अपराध बोझ तो नहीं रहेगा।"

"सही कहा भौजी।" रूपा एकदम कुमुद के लिपट कर बोली____"आप ने सच में मुझे एक बड़े धर्म संकट से बचा लिया है। आप मेरी सबसे अच्छी भौजी हैं।"
"सिर्फ़ भौजी नहीं मेरी प्यारी ननदरानी।" कुमुद ने प्यार से रूपा की पीठ को सहलाते हुए कहा___"बल्कि तुम्हारी सहेली भी। तुम्हें मैं ननद से ज़्यादा अपनी सहेली मानती हूं।"

"हां मेरी प्यारी सहेली।" रूपा ने हल्के से हंसते हुए कहा____"अब चलिए, हमें जल्द से जल्द ये काम करना है। देर करना ठीक नहीं है।"

रूपा की बात सुन कर कुमुद मुस्कुराई और फिर रूपा के दाएं गाल को प्यार से सहला कर पलंग से उठ गई। उसके बाद उसने रूपा को चलने का इशारा किया और खुद कमरे से बाहर निकल गई। रूपा को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके दिलो दिमाग़ में जो अब तक भारी बोझ पड़ा हुआ था वो पलक झपकते ही गायब हो गया है। हवेली जाने के ख़्याल ने उसे एकदम से रोमांचित सा कर दिया था। आज पहली बार वो हवेली जाने वाली थी और पहली बार वो कोई ऐसा काम करने वाली थी जिसके बारे में उसके घर वाले कल्पना भी नहीं कर सकते थे।


✮✮✮✮

"क्या बात है?" बैठक में बैठे दादा ठाकुर ने हैरानी भरे भाव से अभिनव को देखते हुए कहा____"उनसे कुछ पता चला है क्या?"

"अभी तो कुछ पता नहीं चला है पिता जी।" अभिनव ने कहा____"हमारे आदमी वैभव के दोनों दोस्तों और जगन पर बराबर नज़र रखे हुए हैं। अभी मैं उनसे ही मिल कर आ रहा हूं। हमारे आदमियों के अनुसार वो तीनों सामान्य दिनों की तरह ही अपने अपने काम में लगे हुए थे। सुबह से अब तक वो लोग अपने अपने घरों से बाहर तो गए थे लेकिन किसी ऐसे आदमी से नहीं मिले जिसे सफ़ेदपोश अथवा काला नकाबपोश कहा जा सके। वैसे भी सफ़ेदपोश और काला नकाबपोश उन लोगों से रात के अंधेरे में ही मिलता है। दिन में शायद इस लिए नहीं मिलता होगा क्योंकि इससे उनका भेद खुल जाने का ख़तरा रहता होगा।"

"मेरा खयाल तो ये है भैया कि हम सीधे उन तीनों को पकड़ लेते हैं।" जगताप ने कहा____"माना कि वो लोग सफ़ेदपोश अथवा काले नकाबपोश के बारे में कुछ न बता पाएंगे लेकिन इतना तो ज़रूर बता सकते हैं कि उन लोगों ने आख़िर किस वजह से हमारे खिलाफ़ जा कर सफ़ेदपोश से मिल गए और उसके इशारे पर चलने लगे?"

"जगन का तो समझ में आता है चाचा जी कि उसने अपने बड़े भाई की ज़मीन हड़पने के लिए ये सब किया होगा।" अभिनव ने कहा____"लेकिन सुनील और चेतन किस वजह से उस सफेदपोश के सुर में चलने लगे ये सोचने वाली बात है। संभव है कि इसके पीछे उनकी कोई मजबूरी रही होगी लेकिन ये पता करना ज़रूरी है कि दोनों ने सफ़ेदपोश के कहने पर क्या किया है? रही बात उन लोगों को सीधे पकड़ लेने की तो ऐसा करना ख़तरनाक भी हो सकता है क्योंकि अगर वो लोग किसी मजबूरी में सफ़ेदपोश का साथ दे रहे हैं तो ज़ाहिर है कि हमारे द्वारा उन्हें पकड़ लेने से उनकी या उनके परिवार वालों की जान को ख़तरा हो जाएगा।"

"हम अभिनव की बातों से सहमत हैं जगताप।" दादा ठाकुर ने कहा____"हम किसी भी मामले को जानने के लिए किसी निर्दोष की जान को ख़तरे में नहीं डाल सकते। बेशक हमारा उनसे बहुत कुछ जानना ज़रूरी है लेकिन इस तरीके से नहीं कि हमारी किसी ग़लती की वजह से उन पर या उनके परिवार पर संकट आ जाए। जहां अब तक हमने इंतज़ार किया है वहीं थोड़ा इंतज़ार और सही।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर जगताप अभी कुछ बोलने ही वाला था कि तभी एक दरबान अंदर आया और उसने दादा ठाकुर से कहा कि एक आदमी आया है और उनसे शीघ्र मिलना चाहता है। दरबान की बात सुन कर दादा ठाकुर ने कुछ पल सोचा और फिर दरबान से कहा ठीक है उसे अंदर भेज दो। दरबान के जाने के कुछ ही देर बाद जो शख़्स बैठक में आया। उसे देख दादा ठाकुर हल्के से चौंके। आने वाला शख़्स कोई और नहीं बल्कि शेरा था। दादा ठाकुर को समझते देर न लगी कि शेरा को उन्होंने जो काम दिया था उसमें वो कामयाब हो कर ही लौटा है। अगर वो कामयाब न हुआ होता तो वो अपनी शक्ल न दिखाता। दादा ठाकुर इस बात से अंदर ही अंदर खुश हो गए और साथ ही उनकी धड़कनें भी थोड़ा तेज़ हो गईं।

"प्रणाम मालिक।" शेरा ने हाथ जोड़ कर दादा ठाकुर को प्रणाम किया और फिर जगताप को भी।
"क्या बात है?" दादा ठाकुर ने शेरा की तरफ देखते हुए कहा____"इस वक्त तुम यहां? सब ठीक तो है न?"

"जी मालिक सब ठीक है।" शेरा ने अदब से कहा____"आपको एक ख़बर देने आया हूं। अगर आप मुनासिब समझें तो अर्ज़ करूं?"
"ज़रूरत नहीं है।" दादा ठाकुर कहने के साथ ही एक झटके में अपने सिंहासन से उठे, फिर बोले____"हम जानते हैं तुम क्या कहना चाहते हो। बस ये बताओ कहां हैं वो?"

शेरा ने जवाब देने से पहले बैठक में बैठे अभिनव और जगताप को देखा और फिर कहा____"माफ़ कीजिए मालिक लेकिन एक ही हाथ लगा है। मैं उसे अपने साथ ही ले कर आया हूं।"

शेरा की बात सुन कर दादा ठाकुर मन ही मन थोड़ा चौंके और फिर पलट कर बारी बारी से अपने बेटे अभिनव और छोटे भाई जगताप को देखा। उसके बाद कुछ सोचते हुए उन्होंने जगताप से कहा____"एक अच्छी ख़बर है जगताप।"

"कैसी ख़बर भैया?" जगताप ने उलझन भरे भाव से कहा____"और ये शेरा किसके हाथ लगने की बात कर रहा है?"
"हमने शेरा को एक बेहद ही महत्वपूर्ण काम सौंपा था" दादा ठाकुर ने कहा____"हमें ये तो उम्मीद थी कि ये हमारे द्वारा दिए गए काम को यकीनन सफलतापूर्वक अंजाम देगा लेकिन ये उम्मीद नहीं थी कि ये इतना जल्दी अपना काम कर लेगा। ख़ैर बात ये है कि शेरा के हाथ सफ़ेदपोश अथवा काले नकाबपोश में से कोई एक लग गया है और ये उसे अपने साथ ही ले कर आया है।"

"क...क्या??" जगताप से पहले अभिनव आश्चर्य से बोल पड़ा____"मेरा मतलब है कि क्या आप सच कह रहे हैं पिता जी?"
"बिलकुल।" दादा ठाकुर ने ख़ास भाव से कहा____"शेरा ने उनमें से किसी एक को पकड़ लिया है और उसे अपने साथ यहां ले आया है।" कहने के साथ ही दादा ठाकुर शेरा से मुखातिब हुए____"तुमने बहुत अच्छा काम किया है शेरा। तुम हमारी उम्मीद पर बिलकुल खरे उतरे। ख़ैर ये बताओ कि उनमें से कौन तुम्हारे हाथ लगा है?"

"मैं तो सफ़ेदपोश को ही पकड़ने के लिए उसके पीछे गया था मालिक।" शेरा ने कहा___"लेकिन बाग़ में अचानक से वो गायब हो गया। मैंने उसे बहुत खोजा लेकिन उसका कहीं पता नहीं चल सका। उसके बाद मैं काले नकाबपोश को खोजने लगा और आख़िर वो मुझे मिल ही गया। उसको अपने कब्जे में लेने के लिए मुझे उसके साथ काफी ज़ोरदार मुकाबला करना पड़ा जिसका नतीजा ये निकला कि आख़िर में मैंने उसे अपने कब्जे में ले ही लिया।"

"ये तो सच में बड़े आश्चर्य और कमाल की बात हुई भैया।" जगताप ने खुशी से कहा____"शेरा के हाथ उस सफ़ेदपोश का खास आदमी लग गया है। अब हम उसके द्वारा पलक झपकते ही सफ़ेदपोश तक पहुंच सकते हैं। उसके बाद हमें ये जानने में देर नहीं लगेगी कि हमारे साथ इस तरह का खेल खेलने वाला वो सफ़ेदपोश कौन है? बस एक बार वो मेरे हाथ लग जाए उसके बाद तो मैं उसकी वो हालत करूंगा कि दुबारा जन्म लेने से भी इंकार करेगा।"

"बेशक ऐसा ही होगा जगताप।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन तब तक हमें पूरे होशो हवास में रहना होगा। ख़ैर तुम शेरा के साथ जाओ और उस काले नकाबपोश को हवेली के किसी कमरे में बंद कर दो। हम सुबह उससे पूछताछ करेंगे।"

"सुबह क्यों भैया?" जगताप ने कहा____"हमें तो अभी उससे पूछताछ करनी चाहिए। उससे सफ़ेदपोश के बारे में सब कुछ जान कर जल्द से जल्द उस सफ़ेदपोश को खोजना चाहिए।"

"इतना बेसब्र मत हो जगताप।" दादा ठाकुर ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"धीरज से काम लो। हम जानते हैं कि तुम जल्द से जल्द हमारे दुश्मन को खोज कर उसको नेस्तनाबूत कर देना चाहते हो लेकिन इतना बेसब्र होना ठीक नहीं है। अब तो वो काला नकाबपोश हमारे हाथ लग ही गया है इस लिए सुबह हम सब उससे तसल्ली से पूछताछ करेंगे।"

"ठीक है भैया।" जगताप ने कहा____"जैसा आपको ठीक लगे।"
"हम तुम्हारे इस काम से बेहद खुश हैं शेरा।" दादा ठाकुर ने शेरा से कहा____"इसका इनाम ज़रूर मिलेगा तुम्हें?"
"माफ़ कीजिए मालिक।" शेरा ने हाथ जोड़ कर कहा____"आपके द्वारा इनाम लेने में मुझे तभी खुशी होगी जब उस सफ़ेदपोश को भी पकड़ कर आपके सामने ले आऊंगा।"

शेरा की बात सुन कर दादा ठाकुर मुस्कुराए और आगे बढ़ कर शेरा के बाएं कंधे पर अपना हाथ रख कर हल्के से दबाया। उसके बाद उन्होंने जगताप को शेरा के साथ जाने को कहा। जगताप और शेरा बैठक से बाहर आए। हवेली के एक तरफ दीवार के सहारे और दो दरबानों की निगरानी में काला नकाबपोश बेहोश पड़ा हुआ था। जगताप के कहने पर शेरा ने उसे उठा कर कंधे पर लाद लिया और फिर वो जगताप के पीछे पीछे हवेली के उत्तर दिशा की तरफ बढ़ता चला गया। जल्दी ही वो हवेली के एक तरफ बने एक सीलनयुक्त कमरे में पहुंच गया।

जगताप के कहने पर शेरा ने उस काले नकाबपोश को उस खाली कमरे में एक तरफ डाल दिया। काले नकाबपोश के चेहरे पर अभी भी काला नक़ाब था जिसे जगताप ने एक झटके से उतार दिया। कमरे में एक तरफ लालटेन का प्रकाश था इस लिए उस प्रकाश में जगताप ने उस आदमी को देखा। काला नकाबपोश उसे इस गांव का नहीं लग रहा था। जगताप की नज़र उसके एक हाथ पर पड़ी जो टूटा हुआ था। उसने पलट कर शेरा की तरफ देखा तो शेरा ने बताया कि मुकाबले में उसी ने उसका हाथ तोड़ा है, तभी तो वो उसके हाथ लगा था। ख़ैर, जगताप और शेरा कमरे से बाहर आ गए। जगताप के कहने पर एक दरबान ने उस कमरे के दरवाज़े की कुंडी बंद कर उसमें ताला लगा दिया।


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Bhai bas yahi kahunga ki baar baar wala heart attack mat diya karo aap....

Is baar aaye ho to story pura karke hi jana...

Agar koi majburi me fas gaye to story thodi fast karke khatam kar dena...

Magar bhai is baar adhuri mat chhodana....

Aur update to bhai hamesha ki tarah lajwab hi h....
Bs waiting for your next update....
 

Thakur

असला हम भी रखते है पहलवान 😼
Prime
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Paristhitiya to badalni hi thi aaj nahi to kal, well ab bahut kuch hone wala hai...so let's see
Muze mera he reply yaad aaya is story wala :D like,
Dada Thakur : Gham e Ulfat ye jo jindagi gujri he hamari ,
Apna time aane do gaxd maarenge tumhari :y:
 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
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अध्याय - 57
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अब तक....

"सही सुना था आपके बारे में।" जमुना ने कहा____"आप तो सच में कमाल के हैं जीजा जी। मन करता है एक बार और आपसे चुदवा लूं लेकिन घर जाना भी ज़रूरी है। अगर देर हो गई तो आफ़त हो जाएगी।"

हम दोनों ने जल्दी जल्दी अपने बचे हुए कपड़े पहने। जमुना को एक बार और चोदने का मन था मेरा लेकिन उसका घर जाना ज़रूरी था इस लिए उसकी चूचियों को जी भर के मसलने के बाद मैंने उसे जाने दिया। उसके जाने के कुछ देर बाद मैं भी घर की तरफ चल पड़ा। आज काफ़ी समय बाद किसी लड़की को पेलने का मौका मिला था। जमुना को चोदने के बाद मैं काफी खुश था।


अब आगे....


शाम का अंधेरा फ़ैल चुका था। मणि शंकर की बेटी रूपा अपने पुराने आमों के बाग़ में नित्य क्रिया करने के लिए आई हुई थी। बाग़ से क़रीब दो सौ मीटर की दूरी पर ही उसका घर था। बाग़ के किनारे ही वो बैठ गई थी क्योंकि अंदर घने पेड़ों की वजह से अंधेरा ज़्यादा था और उसे अंदर जाने में डर भी लग रहा था। आम तौर पर वो अपनी बाकी बहनों के साथ ही आती थी लेकिन आज उसे कई बार यहां आना पड़ा था और इसकी वजह ये थी कि उसका पेट ख़राब था। उसके एक तरफ खाली खेत थे जिसके पार उसका घर चांद की हल्की रोशनी में नज़र आ रहा था। वो बैठी ही हुई थी कि सहसा उसे कुछ आवाज़ें सुनाई देने लगीं जिससे रूपा की धड़कनें तेज़ हो गईं। उसके अंदर ये सोच कर घबराहट भर गई कि कौन हो सकता है? आवाज़ें लगातार आने लगीं थी। ऐसा लगता था जैसे एक से ज़्यादा लोग ज़मीन पर चल रहे हों। बाग़ की ज़मीन पर क्योंकि पेड़ों के सूखे पत्ते पड़े हुए थे इस लिए चलने से आवाज़ हो रही थी। रूपा ने महसूस किया कि चलने की आवाज़ें उससे थोड़ी ही दूरी पर अचानक से बंद हो गईं हैं।

रूपा जो नित्य क्रिया करने के लिए बैठी हुई थी उसका डर के मारे सब कुछ अपनी जगह पर रुक गया। आवाज़ों से साफ़ था कि कई लोग थे इस लिए रूपा को समझ ना आया कि इस वक्त कौन आया होगा यहां? उसने बड़ी सावधानी से पानी के द्वारा शौच किया और अपनी कच्छी को ऊपर सरका कर कुर्ते को नीचे कर लिया। सलवार उसने पहना ही नहीं था, कदाचित इस लिए कि अंधेरे में कौन देखेगा और वैसे भी उसे हगने के लिए अपने बाग़ में ही तो आना था।

खाली हो गए लोटे को उसने उठाया और दबे पांव उस तरफ़ बढ़ी जिस तरफ से आवाज़ें आनी बंद हो गईं थी। उसे डर भी लग रहा था लेकिन उत्सुकतावश वो बड़ी सावधानी से उस तरफ़ बढ़ती ही चली गई। इस बात का उसने ख़ास ख़्याल रखा कि सूखे पत्तों पर पांव रखने से ज़्यादा तेज़ आवाज़ न होने पाए। अभी वो क़रीब पांच सात क़दम ही आगे गई थी कि सहसा उसके कानों में किसी की आवाज़ सुनाई दी। रूपा एक दो क़दम और आगे बढ़ी और एक पेड़ के पीछे छिप गई। पेड़ की ओट से उसने देखा कि उससे क़रीब आठ दस क़दम की दूरी पर अंधेरे में तीन इंसानी साए खड़े थे। तीनों एक दूसरे से दूरी बना कर खड़े हुए थे किंतु तीनों का ही मुंह एक दूसरे की तरफ था। रूपा को समझ ना आया कि वो तीनों कौन हैं और उसके आमों के बाग़ में क्या करने आए हैं?

"मामला हद से ज़्यादा बिगड़ गया है।" उन तीनों में से एक की आवाज़ रूपा के कानों तक पहुंची____"जो सोचा था वो नहीं हुआ बल्कि सब कुछ उल्टा पुल्टा हो गया है।"

पेड़ के पीछे छुपी रूपा एकदम से चौंकी। उसके दिल की धड़कनें एकदम ज़ोरों से चलने लगीं थी। उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ, इस लिए उसने फिर से अपने कान खड़े कर आवाज़ को सुनने की कोशिश करने लगी।

"अगर यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब हम सबका भेद खुल जाएगा।" एक दूसरे साए की आवाज़ रूपा के कानों में पड़ी____"और हमारी गर्दनें दादा ठाकुर की मुट्ठी में क़ैद हो जाएंगी।"

"मेरा ख़्याल ये है कि अब हमें खुल कर अपने काम को अंजाम देना चाहिए।" तीसरे साए की आवाज़____"और कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे हवेली में रहने वालों का कलेजा दहल जाए।"

"मेरे एक आदमी ने बताया कि दादा ठाकुर ने अपने बेटे वैभव को अपनी बहू के साथ उसके मायके भेज दिया है।" पहले साए की आवाज़____"ये हमारे लिए एक सुनहरा अवसर है दादा ठाकुर के उस सपूत को अपने रास्ते से हटाने का और दादा ठाकुर की कमर को तोड़ देने का भी।"

"ये तो एकदम सही कहा आपने।" तीसरे साए की आवाज़ में खुशी झलक रही थी, बोला____"चंदनपुर में जा कर बड़ी आसानी से उस पर प्राण घातक हमला किया जा सकता है। अगर हमने सच में उस हरामजादे को ख़त्म कर दिया तो समझो दादा ठाकुर गहरे सदमे में चला जाएगा और ये भी सच ही जानिए कि अपने बेटे के मौत के ग़म में वो बुरी तरह से टूट जाएगा। उस सूरत में उसको बर्बाद करना और हवेली को नेस्तनाबूत करना बेहद आसान हो जाएगा।"

"बात तो ठीक है तुम्हारी।" पहले साए की भारी आवाज़____"लेकिन ये मत भूलो कि उस हवेली में जगताप भी है जो दादा ठाकुर से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक है। उसके दोनों बेटे तो नकारा और निकम्मे ही हैं लेकिन सुना है कि वैभव का बड़ा भाई भी आज कल अपने छोटे भाई के नक्शे क़दम पर चलने लगा है। कमबख़्त तंत्र मंत्र के प्रभाव से जल्दी मर जाता तो आज कहानी ही अलग होती।"

"जो नहीं हो पाया उसके बारे में हम क्या ही कर सकते हैं।" दूसरे साए ने कहा____"दादा ठाकुर के मन में जगताप के लिए जो शक के बीज हमने डाले थे उसका भी कुछ ख़ास असर नहीं हुआ। लगता है दादा ठाकुर को कुछ ज़्यादा ही अपने भाई पर भरोसा है।"

"किसी पर अगर एक बार शक हो जाए।" पहले वाले साए ने कहा____"तो वो धीरे धीरे भरोसे की जड़ों को खोखला करना शुरू कर देता है। दादा ठाकुर को भले ही अपने भाई पर लाख भरोसा होगा लेकिन मौजूदा समय में जो हालात हैं उससे कहीं न कहीं उसके मन में अपने भाई के बारे में शक तो हो ही गया होगा। अब देखना ये है कि इसका कब और क्या असर दिखता है?"

"हमारे पास इंतज़ार करने का ही तो समय नहीं है।" दूसरे साए ने कहा____"अब तक की अपनी नाकामियों के बाद अब हमें कोई ऐसा क़दम उठाना होगा जिससे हमारे दुश्मन का कलेजा दहल जाए। मैं उसके उस सपोले को अब और ज़्यादा दिनों तक ज़िंदा नहीं देखना चाहता।"

"फ़िक्र मत करो।" पहले साए ने कहा____"अगर हम यहां कामयाब नहीं हुए तो चंदनपुर में उसके उस सपोले को ख़त्म करने में ज़रूर कामयाब होंगे। कल ही मैं अपने कुछ आदमियों को उसका खात्मा करने के लिए चंदनपुर भेजूंगा।"

"मैं भी आपके आदमियों के साथ जाऊंगा।" तीसरे साए ने कहा____"मैं उस हरामजादे को अपने हाथों बद से बदतर मौत देना चाहता हूं। तभी मेरे कलेजे को ठंडक मिलेगी।"

"नहीं, तुम वहां नहीं जाओगे।" पहले साए ने सख़्ती से कहा____"वो बहुत ख़तरनाक लड़का है। अगर ज़रा भी बात बिगड़ गई तो अंजाम अच्छा नहीं हो सकता। इस लिए तुम यहीं रहोगे और उसके बदले दादा ठाकुर के बड़े लड़के का शिकार करोगे। मुझे पूरी उम्मीद है कि उसे तुम बड़ी आसानी से काबू में कर लोगे और उसका राम नाम भी सत्य कर दोगे।"

"ये इतना आसान नहीं है।" दूसरे साए ने कहा____"दादा ठाकुर ने आज कल अपने परिवार के हर सदस्य पर शख़्त निगरानी और पहरा लगा दिया है। जिस दिन गांव वाले रेखा और शीला की मौत का इंसाफ़ मांगने हवेली गए थे और जो कुछ दादा ठाकुर से कहा था उससे दादा ठाकुर तो शान्त है लेकिन उसका भाई जगताप बुरी तरह खार खाया हुआ है। इस लिए मेरी सलाह यही है कि यहां पर अभी किसी पर भी हाथ डालना सही नहीं होगा लेकिन हां चंदनपुर जा कर वैभव को ख़त्म करने का विचार ज़्यादा बेहतर है।"

वैभव को ख़त्म करने वाली बातें सुन कर रूपा का दिमाग़ मानों सुन्न सा पड़ गया था। दिलो दिमाग़ में आंधियां सी चलने लगीं थी। उसके बाद उसे कुछ भी सुनने का होश नहीं रह गया था। उसे पता ही नहीं चला कि कब वो तीनों साए वहां से चले गए। किसी पक्षी की आवाज़ से उसे होश आया तो वो चौंकी और हड़बड़ा कर उसने उस तरफ देखा जहां वो तीनों साए खड़े थे किंतु अब वहां किसी को न देख वो एकदम से घबरा गई। चारो तरफ अंधेरे में उसने निगाह घुमाई मगर कहीं कोई नज़र न आया। बाग़ में हर तरफ सन्नाटा फ़ैला हुआ था।

रूपा पलट कर वहां से दबे पांव चल पड़ी। खेतों में बनी पगडंडी पर आ कर वो तेज़ क़दमों से अपने घर की तरफ बढ़ चली थी। पहले वाले साए की आवाज़ अभी भी उसके कानों में गूंज रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा भी कुछ हो सकता है। उसके दिल में जहां एक तरफ हल्का दर्द सा जाग उठा था वहीं दूसरी तरफ ज़हन में एक द्वंद सा भी छिड़ गया था।


✮✮✮✮

धनंजय नाम का दरोगा अपने कमरे में रखी चारपाई पर बैठा गहरी सोच में डूबा हुआ था। उसे ये सोच कर पछतावा हो रहा था कि उसने दादा ठाकुर को अपनी मां के अपहरण हो जाने की बात बता दी थी जोकि उसे किसी भी कीमत पर नहीं बताना चाहिए था। ऐसे में अगर उस सफ़ेदपोश ने गुस्से में आ कर उसकी मां के साथ बुरा कर दिया तो वो खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाएगा। धनंजय को समझ नहीं आ रहा था कि अब वो क्या करे? अभी वो ये सब सोच ही रहा था कि तभी बाहर हुई अजीब सी आवाज़ और आहट से वो चौंका। ज़हन में बिजली की तरह ख़्याल उभरा कि क्या सफ़ेदपोश आया होगा? ये सोच कर वो फ़ौरन ही चारपाई से उठा और तेज़ी से दरवाज़े की तरफ बढ़ा।

दरवाज़ा खोल कर उसने बाहर देखा। बाहर अंधेरा था किंतु चांद की हल्की रोशनी भी थी जिससे धुंधला धुंधला दिख रहा था। धनंजय ने इधर उधर नज़र घुमाई और फिर एकदम से उसकी निगाह एक जगह पर ठहर गई। बाएं तरफ कुछ ही दूरी पर उसे कुछ पड़ा हुआ नज़र आया। एक अंजानी आशंका से धनंजय की धड़कनें तेज़ हो गईं। वो फ़ौरन ही उस तरफ बढ़ा। कुछ पलों में जब वो उस पड़ी हुई चीज़ के पास पहुंचा तो देखा कोई औरत औंधे मुंह ज़मीन पर पड़ी हुई थी।

धनंजय के आशंकित ज़हन में बिजली की तरह सवाल उभरा कहीं ये उसकी मां तो नहीं? उसने झट से उस औरत को पलटा और जैसे ही नज़र औरत के चेहरे पर पड़ी तो उसके सिर पर एक झटके में आसमान गिर पड़ा। वो उसकी मां ही थी। धनंजय एकदम पागलों की तरह अपनी मां को हिलाते डुलाते हुए आवाज़ लगाने लगा लेकिन उसकी मां के द्वारा उसे कोई प्रतिक्रिया होती महसूस नहीं हुई। उसने जल्दी से नब्ज़ टटोली और अगले कुछ ही पलों में उसे ये जान कर ज़बरदस्त झटका लगा कि उसकी मां की नब्ज़ का कहीं पता नहीं है। दरोगा एकदम से बौखला गया, वो कभी अपनी मां की नब्ज़ को टटोलता तो कभी उसकी धड़कनें सुनने की कोशिश करता। जल्द ही उसे पता चल गया कि उसकी मां अब इस दुनिया में नहीं है। धनंजय का जी चाहा कि वो पूरी शक्ति से दहाड़ें मार कर रोना शुरू कर दे। आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। अपनी मां के बेजान जिस्म से लिपट कर वो फूट फूट कर रो पड़ा।

जाने कितनी ही देर तक धनंजय अपनी मां को सीने से लगाए रोता रहा और उससे कहता रहा कि वो उसे छोड़ कर न जाए लेकिन दुनिया से जाने वाला भला कहां उसे कोई जवाब देता? दिलो दिमाग़ में आंधियां चल रहीं थी। तभी एक तरफ उसे किसी चीज़ की आहट सुनाई दी तो उसने गर्दन घुमा कर उस तरफ देखा। उसके मकान के पास ही अंधेरे में सफ़ेदपोश खड़ा था। धनंजय उसे देख कर पहले तो हड़बड़ाया किंतु अगले ही पल गुस्से से आग बबूला हो गया। अपनी मां को ज़मीन पर लेटा कर वो एक झटके से खड़ा हुआ और फिर किसी आंधी तूफ़ान की तरह उस सफ़ेदपोश की तरफ लपका। सफ़ेदपोश को शायद उससे ऐसे किसी कृत्य की उम्मीद नहीं थी इस लिए इससे पहले कि वो सम्हल पाता धनंजय उस पर जंप लगा कर उसे लिए ज़मीन पर गिरा। सफ़ेदपोश के सीने में सवार हो कर उसने दोनों हाथों से उसकी गर्दन को दबोच लिया।

"हरामजादे तूने मेरी मां को जान से ही मार डाला।" धनंजय गुस्से में मानों चीखते हुए बोला____"अब मैं तुझे भी जान से मार दूंगा।"

सफ़ेदपोश बुरी तरह छटपटाते हुए उससे अपनी गर्दन छुड़ाने का प्रयास कर रहा था लेकिन धनंजय की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वो उसके हाथों को हिला भी नहीं पा रहा था। प्रतिपल उसकी सांसें लुप्त होती जा रहीं थी। सफ़ेद नक़ाब में छुपा उसका चेहरा पसीने से तरबतर हो गया था। नक़ाब से झांकती उसकी आंखें बाहर को निकली आ रहीं थी।

"आज मैं तुझे ज़िंदा नहीं छोडूंगा कमीने।" धनंजय गुस्से में पगलाया हुआ गुर्राया____"तूने मेरी मां की जान ले कर अच्छा नहीं किया है। तुझे इसका हिसाब अपनी जान दे कर ही चुकाना होगा। बहुत खेल खेल रहा था न तू, अब तेरा किस्सा ही ख़त्म कर दूंगा मैं।"

दरोगा प्रतिपल अपना दबाव उसकी गर्दन पर बढ़ाता जा रहा था और उधर सफ़ेदपोश को सांस लेने में मुश्किल होने लगी थी। उसका दम घुटने लगा था, जिसकी वजह से वो बुरी तरह अपने हाथ पांव पटक रहा था। तभी सहसा चमत्कार हुआ। वातावरण में दरोगा की घुटी घुटी सी चीख गूंजी और उसका जिस्म हवा में लहराते हुए दूर जा कर गिरा। वो जल्दी ही सम्हल कर उठा तो देखा नीम अंधेरे में उसे काला नकाबपोश नज़र आया। वो समझ गया कि उसी ने अपने पांव की ठोकर से उसे दूर उछाला था। सफ़ेदपोश अब तक खड़ा हो चुका था और बुरी तरह खांस रहा था।

काले नकाबपोश को देख कर धनंजय का गुस्सा और भी बढ़ गया। वो तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ा किंतु जल्दी ही उसे ठिठक जाना पड़ा क्योंकि काले नकाबपोश के हाथ में एकदम से उसे लट्ठ नज़र आ गया था। लट्ठ को देख कर धनंजय कुछ पलों के लिए ही रुका था लेकिन अगले ही पल वो फिर से उसकी तरफ तेज़ क़दमों से बढ़ चला।

"अगर अपनी बहन को भी अपनी मां की तरह बेजान लाश के रूप में देखना चाहता है तो बेशक आ कर मुझसे मुकाबला कर।" काले नकाबपोश ने शख़्त भाव से कहा तो दरोगा एकदम से अपनी जगह पर रुक गया।

"अगर मेरी बहन को तुम दोनों ने हाथ भी लगाया तो ये तुम दोनों के लिए अच्छा नहीं होगा।" धनंजय ने गुस्से से गुर्राते हुए कहा____"अगर असली मर्द की औलाद है तो मर्द की तरह अपने दम पर मुझसे मुकाबला कर।"

"अच्छा ऐसा है क्या?" काले नकाबपोश ने इस बार अजीब भाव से कहा____"लगता है दो दो हाथ करने के लिए कुछ ज़्यादा ही मरे जा रहे हो तुम।" काले नकाबपोश ने कहने के साथ ही सहसा सफेदपोश की तरफ देखा____"आपका हुकुम हो तो इसकी ख़्वाइश पूरी कर दूं?"

सफ़ेदपोश ने उसे सिर हिला कर इजाज़त दे दी। इजाज़त मिलते ही काले नकाबपोश ने लट्ठ को एक तरफ रखा और फिर दरोगा को मुकाबला करने का इशारा किया। दरोगा उसका इशारा पा कर गुस्से में तिलमिला उठा। वो तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ा। इससे पहले कि वो उस नकाबपोश पर कोई प्रहार कर पाता काले नकाबपोश ने झुक कर उसे दोनों हाथों से सिर से ऊपर तक उठा लिया और कच्ची ज़मीन पर पूरी ताक़त से पटक दिया। वातावरण में दरोगा की दर्द में डूबी चीख गूंज उठी। ज़मीन पर शायद छोटे छोटे कुछ पत्थर पड़े हुए थे जो उसके गिरते ही उसकी पीठ पर गड़ गए थे और उसे भारी दर्द हुआ था। वो दर्द को बर्दास्त करते हुए जल्दी ही उठा लेकिन तभी उसकी पीठ पर काले नकाबपोश की लात का ज़ोरदार प्रहार हुआ जिसके चलते वो एक बार फिर से ज़मीन की धूल को चाटता नज़र आया।

उसके बाद तो दरोगा को सम्हलने तक का मौका न मिला। काला नकाबपोश लात घूंसों से उसको मारता ही चला गया और फिज़ा में दरोगा की दर्द में डूबी चीखें ही गूंजती रही। उसकी नाक और मुंह से खून निकलने लगा था। पूरा जिस्म पके हुए फोड़े की तरह दर्द करने लगा था। उसमें अब कुछ भी करने की हिम्मत न रह गई थी।

"रुक जाओ।" सहसा सफ़ेदपोश की अजीब सी आवाज़ गूंजी____"इतना काफ़ी है इसे ये समझने के लिए कि तुम असली मर्द ही हो जो अपने दम पर इससे बखूबी मुकाबला कर सकता है।"

सफ़ेदपोश के कहने पर काला नकाबपोश रुक गया। सफ़ेदपोश चल कर दरोगा के पास आया। दरोगा ज़मीन में पड़ा हुआ था इस लिए वो उसके समीप ही ज़मीन पर उकडू हो कर बैठा और फिर अपनी अजीब सी आवाज़ में बोला____"अपनी मां की मौत के तुम खुद ज़िम्मेदार हो दरोगा। हमने तुम्हें दादा ठाकुर से सच बताने से मना किया था लेकिन फिर भी तुमने उसे सब कुछ बता दिया। इसका अंजाम तो तुम्हें अपनी मां की मौत के रूप में भुगतना ही था। ख़ैर, अब अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारी बहन सही सलामत रहे तो यहां से गधे के सींग की तरह गायब हो जाओ।"

सफ़ेदपोश की ये बात सुन कर दरोगा कुछ न बोला। दर्द को सहते हुए वो बस गहरी गहरी सांसें ले रहा था। इधर सफ़ेदपोश कुछ पलों तक उसे देखता रहा और फिर बोला_____"अगर दादा ठाकुर दुबारा तुमसे मिलने आए तो उससे यही कहना कि तुम्हारी मां तुम्हें सही सलामत मिल गई है और अब तुम यहां से इस मामले से खुद को अलग कर के जा रहे हो। अपनी मां की लाश को या तो कहीं दफना दो या फिर रातों रात इसे ले कर शहर चले जाओ और वहीं उसका अंतिम संस्कार कर देना। अगर हमें पता चला कि इसके बावजूद तुम इस मामले में दिलचस्पी ले रहे हो तो इसके अंजाम में जो होगा उसके ज़िम्मेदार तुम खुद ही होगे।"

सफ़ेदपोश इतना कहने बाद उठा और काले नकाबपोश को कुछ इशारा कर एक तरफ को बढ़ गया। जल्दी ही वो दोनों नीम अंधेरे में कहीं गायब हो गए। ज़मीन पर पड़ा दरोगा कुछ देर तक इस सबके बारे में सोचता रहा और फिर किसी तरह उठ कर अपनी मां की लाश के पास आया। मां की बेजान लाश को देख कर सहसा उसकी आंखें फिर से छलक पड़ीं। उसने फिर से मां को अपने सीने से लगा लिया और फूट फूट कर रोने लगा।


✮✮✮✮

शेरा काफी देर से सफ़ेदपोश और काले नकाबपोश का पीछा कर रह था। इस वक्त वो सादे कपड़ों में तो था लेकिन उसके कपड़े ऐसे बिलकुल भी नहीं थे कि रात के हल्के अंधेरे में आसानी से किसी की नज़र उस पर पड़ जाए। हथियार के नाम पर उसके हाथ में एक बड़ा सा लट्ठ था। धनंजय दरोगा के मकान के बाहर जो कुछ हुआ था उसे उसने अपनी आंखों से देखा था। उसके बाद जब दोनों नकाबपोश वहां से चल दिए तो वो भी उनके पीछे लग गया था। पीछा करते हुए वो दादा ठाकुर के बाग़ में आ गया था। बाग में घने पेड़ पौधे थे जिसकी वजह से वहां पर अंधेरा ज़्यादा था। फिर भी वो एक निश्चित फांसला बना कर उन दोनों के पीछे लगा हुआ था। सहसा उसने देखा दोनों नकाबपोश अलग अलग दिशा में मुड़ कर चल दिए।

शेरा को समझ ना आया कि सबसे पहले वो किसके पीछे जाए। वो जानता था कि सफ़ेदपोश इसके पहले भी एक बार उसकी आंखों के सामने से गायब हो चुका था और यही हाल काले नकाबपोश का भी हुआ था। नकाबपोश का उसने दो तीन बार पीछा किया था लेकिन पता नहीं कैसे वो उसे चकमा दे जाता था या फिर उसकी आंखों से ओझल हो जाता था?

शेरा ने फ़ौरन ही फ़ैसला किया और सफ़ेदपोश के पीछे लग गया। आज वो हर हाल में उसे पकड़ लेना चाहता था। उसने देखा था कि दरोगा ने बड़ी आसानी से उसे दबोच लिया था। ज़ाहिर था कि सफ़ेदपोश कोई ऐसा आदमी था जो काले नकाबपोश से कम ताक़तवर और लड़ने के दांव पेंच जानता था। शेरा ने देखा सफ़ेदपोश बाग़ के अंदर की तरफ तेज़ी से बढ़ा चला जा रहा था। कभी कभी वो किसी न किसी पेड़ की ओट में हो जाता था जिसकी वजह से वो उसे दिखाई देना बंद हो जाता था। सहसा वो शेरा की आंखों से ओझल हो गया।

शेरा ने साफ़ देखा था कि वो एक पेड़ की ओट में हुआ था और फिर उसके बाद वो उसे दुबारा नज़र नहीं आया। शेरा एकदम से बौखला गया और तेज़ी से आगे बढ़ते हुए उस पेड़ के पास पहुंचा लेकिन सफ़ेदपोश उसे दूर दूर तक कहीं नज़र न आया। शेरा को बड़ी हैरानी हुई कि आख़िर वो अचानक से गायब कैसे हो गया? क्या वो कोई जादू जानता था या फिर वो कोई भूत था जो एकदम से गायब हो गया? शेरा ने काफी देर तक आस पास का मुआयना किया लेकिन सफ़ेदपोश की कहीं झलक तक न मिली उसे। हताश हो कर वो वापस उस दिशा की तरफ तेज़ी से बढ़ चला जिधर काला नकाबपोश गया था।

कुछ ही देर में शेरा बाग़ से निकल कर उस जगह पर आ गया जहां दादा ठाकुर का बाग़ वाला मकान बना हुआ था। शेरा के ज़हन में ख़्याल उभरा कि क्या काला नकाबपोश इस मकान में आया होगा? क्या वो रात के अंधेरे में इस मकान में ही छुपता होगा? उसे याद आया कि पिछली बार उससे यहीं पर उसका सामना हुआ था और फिर अचानक से वो बाग़ की तरफ भाग गया था। उसके बाद कुछ ही देर में उसे बाग़ के अंदर किसी नारी की चीख सुनाई दी थी। जब उसने वहां जा कर देखा था तो वैभव किसी औरत के पास बैठा था। शीला नाम की औरत को उस काले नकाबपोश ने गला रेत कर मार डाला था।

शेरा ने ये सब सोच कर पूरी सतर्कता से मकान की छानबीन करने का सोचा। पहले उसने मकान के चारो तरफ का अच्छे से मुआयना किया, उसके बाद वो मकान के मुख्य दरवाज़े पर आया तो देखा दरवाज़े की कुंडी खुली हुई थी। शेरा समझ गया कि काला नकाबपोश अंदर ही गया होगा। उसने बड़ी सावधानी से दरवाज़े को अंदर की तरफ धकेला। दरवाज़ा आधा खोल कर उसने अंदर देखा, अंदर सियाह अंधेरा था।

शेरा अंदर दाखिल हुआ और ख़ामोशी से बारीक से बारीक आहट या आवाज़ को सुनने की कोशिश करने लगा मगर काफी देर की कोशिश में भी उसे कोई आहट अथवा आवाज़ सुनाई नहीं दी। उसने पलट कर दरवाज़ा बंद किया और फिर अपने काले कुर्ते की जेब से माचिस निकाल कर उसे जलाया। माचिस की तीली जैसे ही जली तो हर तरफ रोशनी फेल गई। उस रोशनी में उसे आस पास कोई नज़र ना आया। हाथ में जलती तीली लिए वो आगे बढ़ा और एक कमरे के पास पहुंचा। तीली जल कर बुझने लगी तो उसने फ़ौरन ही उसे फेंक कर दूसरी तीली जलाई और कमरे का दरवाज़ा खोल कर अंदर देखा। कमरे में कुछ समान के अलावा कुछ न दिखा उसे। उसने कई तीलियां जला जला कर सभी कमरों में देखा मगर उसे काला नकाबपोश कहीं नज़र ना आया। उसे समझ ना आया कि अगर नकाबपोश यहां नहीं आया तो गया कहां?

शेरा मकान से बाहर आ कर सोचने लगा कि अब वो उस काले नकाबपोश को कहां खोजे? सहसा उसे कुछ याद आया तो वो मकान के पीछे की तरफ बढ़ चला। जल्दी ही वो मकान के पिछले हिस्से में पहुंच गया। मकान के पिछले हिस्से में ट्रैक्टर की एक पुरानी और टूटी हुई ट्रॉली खड़ी हुई थी जिसके दोनों पहिए ज़मीन पर क़रीब आधा फुट धंसे हुए थे। ट्राली खस्ता हालत में थी और उसका उपयोग कई सालों से नहीं हुआ था। उसकी ऊपर की दीवारें जंग लगने से कुछ टूटी हुई भी थीं। शेरा ने धड़कते दिल से ट्राली में देखने का सोच कर अपने हाथ को ट्राली की दीवार पर रखा और अपना एक पैर ट्राली के पहिए पर रख कर उस पर चढ़ कर खड़ा हो गया।

अभी वो ट्राली के अंदर देखने ही वाला था कि अचानक उसके जबड़े पर किसी का ज़बरदस्त घूंसा पड़ा जिससे दर्द से चीखते हुए वो नीचे कच्ची ज़मीन पर जा गिरा। पीठ के बल गिरने से उसे दर्द तो हुआ लेकिन वो फ़ौरन ही उठा। तभी ट्राली से उसके पास ही कोई कूद कर आया। उसने फ़ौरन ही पास पड़े अपने लट्ठ को उठाया और नज़र उठा कर देखा। उससे क़रीब चार क़दम की दूरी पर काला नकाबपोश हाथ में लट्ठ लिए खड़ा था।

"कौन हो तुम?" काला नकाबपोश गुर्राया____"और यहां मरने के लिए क्यों आए हो?"
"कमाल है दोस्त।" शेरा ने मुस्कुरा कर कहा____"अपनी बिरादरी वाले को ही नहीं पहचान पाए तुम?"

"क्या मतलब??" काला नकाबपोश उसकी बात सुन कर चौंका।
"तुम्हारी तरह इस वक्त अगर मैं भी काले नक़ाब में होता।" शेरा ने कहा____"तो शायद तुम्हें मुझको पहचानने में देर न लगती।"

"अच्छा तो तुम वही हो?" काला नकाबपोश हैरानी भरे भाव से बोला____"जिससे मेरा पहले कई बार आमना सामना हो चुका है।"
"हां, और हर बार तुम मुझे अपनी पीठ दिखा कर भाग खड़े हुए हो।" शेरा ने मुस्कुराते हुए कहा____"ऐसा शायद इस लिए कि तुम मेरा सामना कर पाने में खुद को कमज़ोर समझते हो।"

"बहुत बड़ी ग़लतफहमी के शिकार हो तुम।" काले नकाबपोश ने शख़्त भाव से उसे घूरते हुए कहा____"जो ये समझते हो कि मैं तुम्हारा सामना करने से कतराता हूं और तुम्हें पीठ दिखा कर भाग जाता हूं।"

"तो फिर देर किस बात की दोस्त?" शेरा ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"अगर सच में तुम मेरा सामना करने की कूवत रखते हो तो इस बार तरीके से मुकाबला हो ही जाए। शायद मुझे भी पता चल जाए कि तुम्हारे बारे में मेरे ख़्याल सही हैं या फिर मेरा ऐसा सोचना महज एक भ्रम है।"

नीम अंधेरे में काले नकाबपोश के होठों पर मुस्कान उभर आई, बोला____"अगर तुम्हें मरने का कुछ ज़्यादा ही शौक चढ़ गया है तो आज तुम्हें विधाता भी मुझसे नहीं बचा सकेगा। अभी तक तो मैं तुम्हें इस लिए छोड़ कर चला जाता था क्योंकि मेरा मकसद तुम्हें मारना नहीं बल्कि कुछ और ही होता था।"

कहने के साथ ही काला नकाबपोश हमला करने के लिए तैयार होता नज़र आया। शेरा उससे कई बार मुकाबला कर चुका था इस लिए उसे अच्छी तरह पता था कि वो किसी भी मामले में उससे कमज़ोर नहीं है। जल्दी ही दोनों आमने सामने लट्ठ लिए भिड़ने को तैयार हो गए।

काले नकाबपोश ने लट्ठ को तेज़ी से घुमा कर शेरा पर वार किया किंतु शेरा पहले से ही उसके किसी भी हमले के लिए तैयार था इस लिए फौरन ही लट्ठ से उसके वार को रोका और उसी पल उसने अपनी दाहिनी लात चला दी। लात का ज़बरदस्त प्रहार काले नकाबपोश के पेट में लगा जिससे उसके हलक से हिचकी सी निकली और वो दर्द से झुक गया। उधर वो जैसे ही झुका शेरा ने लट्ठ का वार उसकी पीठ पर किया। प्रहार तेज़ था जिसके चलते काला नकाबपोश चीखते हुए भरभरा कर मुंह के बल ज़मीन पर गिरा। इससे पहले कि वो संभल पाता शेरा ने उसकी पीठ पर पूरी ताक़त से लात जमा दी। वातावरण में काले नकाबपोश की घुटी घुटी चीख गूंज उठी। शेरा ने उसे सम्हलने का मौका नहीं दिया और लात घूंसों की बरसात कर दी उस पर।

काले नकाबपोश के हाथ में सहसा शेरा की टांग आ गई जिसे पकड़ कर उसने पूरी ताक़त से उछाल दिया। शेरा उछलते हुए दूर ज़मीन पर गिरा। इधर काला नकाबपोश फ़ौरन लट्ठ ले कर उठा। इससे पहले कि शेरा सम्हल पाता उसने अपनी टांग चला दी जो शेरा के पेट के बगल से लगी। शेरा बुरी तरह दर्द से बिलबिला उठा। बात अगर सिर्फ़ इतनी ही होती तो शायद वो सम्हल भी जाता लेकिन काला नकाबपोश रुका ही नहीं बल्कि एक के बाद एक लातों का वार शेरा के पेट और छाती पर करता ही चला गया। कुछ देर पहले यही हाल शेरा कर रहा था और काला नकाबपोश दर्द से बिलबिला रहा था। शेरा ने सहसा काले नकाबपोश का पांव पकड़ लिया और उसके जैसे ही उसे उछाल कर दूर गिरा दिया। पेट और छाती में उसे बड़ा तेज़ दर्द हो रहा था जिसे सहते हुए वो तेज़ी से उठा। पास ही पड़े लट्ठ को ले कर वो तेज़ी से काले नकाबपोश के पास पहुंचा।

काला नकाबपोश सम्हल कर खड़ा हो चुका था। शेरा ने जैसे ही लट्ठ का वॉर किया उसने अपने लट्ठ से उसके वार को रोका। उसके बाद वातावरण में लट्ठ के टकराने की आवाज़ें गूंजनें लगीं। दोनों बड़ी दक्षता से एक दूसरे पर वार करते जा रहे थे और उसी दक्षता से एक दूसरे का वार रोकते भी जा रहे थे। अचानक शेरा की लट्ठ बीच से टूट गई और साथ ही काले नकाबपोश का अगला वार उसके बाजू में लगा। शेरा दर्द से बिलबिलाया किंतु जल्द ही सम्हला। काले नकाबपोश ने घुमा कर लट्ठ कर वार शेरा के सिर पर किया। शुक्र था शेरा ने ऐन वक्त पर देख लिया था वर्ना उसकी खोपड़ी लट्ठ लगने से निश्चित ही फूट जाती। शेरा ने झुक कर उसके वार को रोका और साथ ही एक लात काले नकाबपोश की कमर पर लगा दी जिससे नकाबपोश लहरा कर ज़मीन पर गिर गया। उसके हाथ से लट्ठ निकल गया था। शेरा ने उछल कर अपनी कोहनी का वार नकाबपोश की छाती पर किया जिससे नकाबपोश की चीख निकल गई। एकदम से उसकी आंखों के सामने अंधेरा सा छा गया। शेरा ने उसे सम्हलने का मौका नहीं दिया। उसने काले नकाबपोश का दाहिना हाथ पकड़ा और पूरी ताक़त से उल्टा कर के अपनी तरफ खींच लिया। फिज़ा में कड़कड़ की आवाज़ हुई और साथ ही नकाबपोश की दर्दनाक चीख भी गूंज उठी। शेरा ने उसका दाहिना हाथ तोड़ दिया था।

काला नकाबपोश ज़मीन पर पड़ा दर्द से छटपटा रहा था। अपने टूटे हाथ को दूसरे हाथ से पकड़े वो तड़प रहा था। ये देख शेरा ने उसका कालर पकड़ा और गुर्राते हुए कहा____"मैं चाहूं तो इसी वक्त तेरी जीवन लीला समाप्त कर दूं लेकिन तुझे ज़िंदा रहना होगा और फिर बताना होगा कि जिस सफ़ेदपोश के इशारे पर तू ये सब कर रहा है वो असल में है कौन?"

"मुझसे कुछ नहीं जान पाओगे तुम।" काले नकाबपोश ने दर्द से कराहते हुए कहा____"क्योंकि मुझे उसके बारे में कुछ भी पता नहीं है। मैंने उसका चेहरा कभी नहीं देखा।"

"इसके बावजूद तुझे उसके बारे में बहुत कुछ पता है।" शेरा ने कहा____"तेरे द्वारा ही उसे पकडूंगा मैं।"
"मेरा मुकाबला तो कर लिया तुमने।" काले नकाबपोश ने दर्द में भी मुस्कुरा कर कहा____"लेकिन उसका मुकाबला नहीं कर पाओगे। वो तुम जैसों को एक पल में धूल में मिला देने की क्षमता रखता है।"

"हां देखा है मैंने।" शेरा ने कहा____"कुछ देर पहले अपनी आंखों से देखा था कि कैसे उस दरोगा ने उसे दबोच रखा था और वो उससे खुद को छुड़ाने के लिए छटपटा रहा था। अगर तूने दरोगा को ठोकर नहीं मारी होती तो जल्द ही तेरे उस सफ़ेदपोश का काम तमाम हो जाना था।"

"अच्छा तो तुमने वो सब देखा है?" काला नकाबपोश बुरी तरह चौंका था फिर बोला____"ख़ैर उस वक्त तो मैं भी उसको उस हालत में देख कर आश्चर्य चकित हुआ था लेकिन फिर मुझे याद आया कि वो वही था जिसने पहली मुलाक़ात में मुझे बड़ी आसानी से हरा दिया था। उसके बाद ही मैंने उसके लिए काम करना मंजूर किया था।"

शेरा को लगा काला नकाबपोश बेवजह ही सफ़ेदपोश का गुणगान कर रहा है इस लिए समय को बर्बाद न करते हुए उसने उसकी कनपटी के ख़ास हिस्से पर वार किया जिसका नतीजा ये हुआ कि काला नकाबपोश जल्द ही बेहोशी की गर्त में डूबता चला गया। उसके बाद शेरा ने उसे उठा कर कंधे पर लादा और एक तरफ को बढ़ता चला गया।


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Wellcome back bro, superb update
दोस्तो, कहानी का अगला अध्याय - 57 & 58 पोस्ट कर दिया है। आशा है आप सभी को पसंद आएगा। आप सबकी समीक्षा अथवा विचारों का इंतज़ार रहेगा... :love:
Behtareen updates
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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रूपा ने वैभव के लिए अपने प्यार का सबूत तो दे दिया ............अपने ताऊ की साजिश को नाकाम करने की सोच कर....... लेकिन क्या रूपा की ये कोशिश कामयाब होगी
इधर शेरा ने जब सफ़ेद नकाबपोश का पीछा किया तो वो बाग में एक पेड़ के पीछे जाकर गायब हो गया.............उस पेड़ के ताने का पोस्टमोर्टम करना होगा.... वहाँ से कोई गुप्त रास्ता हो सकता है
शायद मुनीम के घर के लिए

काले नकाबपोश से कुछ खास जानकारी मिलने की मुझे उम्मीद नहीं लग रही........... वो साजिश रचने वालों में से नहीं............सिर्फ भाड़े का टट्टू है

देखते हैं आगे क्या होता है.....................
 

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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अध्याय - 58
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अब तक....

शेरा को लगा काला नकाबपोश बेवजह ही सफ़ेदपोश का गुणगान कर रहा है इस लिए समय को बर्बाद न करते हुए उसने उसकी कनपटी के ख़ास हिस्से पर वार किया जिसका नतीजा ये हुआ कि काला नकाबपोश जल्द ही बेहोशी की गर्त में डूबता चला गया। उसके बाद शेरा ने उसे उठा कर कंधे पर लादा और एक तरफ को बढ़ता चला गया।

अब आगे....

रूपा अपने कमरे में पलंग पर लेटी गहरी सोच में डूबी हुई थी। बार बार उसके कानों में बाग़ में मौजूद उस पहले साए की बातें गूंज उठती थीं जिसकी वजह से वो गहन सोच के साथ साथ गहन चिंता में भी पड़ गई थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस आवाज़ को उसने सुना था वो उसका कोई अपना था। वो अच्छी तरह जान गई थी कि वो आवाज़ किसकी थी लेकिन उसने जो कुछ कहा था उस पर उसे यकीन नहीं हो रहा था। उसे तो अब यही लगता था कि दादा ठाकुर से हमारे रिश्ते अच्छे हो गए हैं और इस वजह से वो वैभव के सपने फिर से देखने लगी थी। वो वैभव से बेहद प्रेम करती थी और इसका सबूत यही था कि उसने अपना सब कुछ वैभव को सौंप दिया था।

रूपा को पता चल गया था कि उसके प्रियतम वैभव की जान को ख़तरा है। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो अपने प्रियतम की जान को कैसे महफूज़ करे? उसका बस चलता तो वो इसी वक्त चंदनपुर जा कर वैभव को इस बारे में सब कुछ बता देती और उससे कहती कि वो अपनी सुरक्षा का हर तरह से ख़्याल करे। सहसा उसे वैभव की वो बातें याद आईं जो उसने पिछली मुलाक़ात में उससे मंदिर में कही थीं। उस वक्त रूपा को उसकी बातों पर ज़रा भी यकीन नहीं हुआ था और यही वजह थी कि उसने कभी ये जानने और समझने की कोशिश नहीं की थी कि उसके घर वाले संबंध सुधार लेने के बाद भी दादा ठाकुर और उनके परिवार के बारे में कैसे ख़्याल रखते हैं? आज जब उसने बाग़ में वो सब सुना तो जैसे उसके पैरों तले से ज़मीन ही खिसक गई थी। वो सोचने पर मजबूर हो गई कि क्या सच में उसके घर वाले कुत्ते की दुम ही हैं जो कभी सीधे नहीं हो सकते?

जब से दोनों खानदान के बीच संबंधों में सुधार हुआ था तब से वो वैभव के साथ अपने जीवन के हसीन सपने देखने लगी थी। वो जानती थी कि उसकी तरह वैभव के दिल में उसके प्रति प्रेम के जज़्बात नहीं हैं लेकिन वो ये भी जानती थी कि बाकी लड़कियों की तरह वैभव उसके बारे में नहीं सोचता। अगर वो उसे प्रेम नहीं करता है तो उसे बाकी लड़कियों की तरह अपनी हवस मिटाने का साधन भी नहीं समझता है। कहने का मतलब ये कि कहीं न कहीं वैभव के दिल में उसके प्रति एक सम्मान की भावना ज़रूर है।

अभी रूपा ये सब सोच ही रही थी कि सहसा उसे किसी के आने का आभास हुआ। वो फ़ौरन ही पलंग पर सीधा लेट गई और अपने चेहरे के भावों को छुपाने का प्रयास करने लगी। कुछ ही पलों में उसके कमरे में उसकी एकमात्र भाभी कुमुद दाखिल हुई। कुमुद उसके ताऊ मणि शंकर की बहू और चंद्रभान की बीवी थी।

"अब कैसी तबियत है मेरी प्यारी ननदरानी की?" कुमुद ने पलंग के किनारे बैठ कर उससे मुस्कुरा कर पूछा____"चूर्ण का कोई फ़ायदा हुआ कि नहीं?"
"अभी तो एक बार दिशा मैदान हो के आई हूं भौजी।" रूपा ने कहा____"देखती हूं अब क्या समझ में आता है।"

"फ़िक्र मत करो।" कुमुद ने रूपा के हाथ को अपने हाथ में ले कर कहा____"चूर्ण का ज़रूर फ़ायदा होगा और मुझे यकीन है अब तुम्हें शौच के लिए नहीं जाना पड़ेगा।"

"यही बेहतर होगा भौजी।" रूपा ने कहा____"वरना रात में आपको भी मेरे साथ तकलीफ़ उठानी पड़ जाएगी। अगर ऐसा हुआ तो आपका मज़ा भी ख़राब हो जाएगा।"
"कोई बात नहीं।" रूपा के कहने का मतलब समझते ही कुमुद ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"अपनी प्यारी ननदरानी के लिए आज के मज़े की कुर्बानी दे दूंगी मैं। तुम्हारे भैया कहीं भागे थोड़े न जा रहे हैं।"

कुमुद की बात सुन कर रूपा के होठों पर मुस्कान उभर आई। इस घर में कुमुद का सबसे ज़्यादा रूपा से ही गहरा दोस्ताना था। दोनों ननद भाभी कम और सहेलियां ज़्यादा थीं। अपनी हर बात एक दूसरे से साझा करतीं थीं दोनों। कुमुद को रूपा और वैभव के संबंधों का पहले शक हुआ था और फिर जब उसने ज़ोर दे कर रूपा से इस बारे में पूछा तो रूपा ने कबूल कर लिया था कि हां वो वैभव से प्रेम करती है और वो अपना सब कुछ वैभव को सौंप चुकी है। कुमुद को ये जान कर बेहद आश्चर्य हुआ था लेकिन वो उसके प्रेम भाव को भी बखूबी समझती थी। एक अच्छी सहेली की तरह वो उसे सलाह भी देती थी कि वैभव जैसे लड़के से प्रेम करना तो ठीक है लेकिन वो उस लड़के के सपने न देखे क्योंकि उसके घर वाले कभी भी उसका रिश्ता उस लड़के से नहीं करना चाहेंगे। दूर दूर तक के लोग जानते हैं कि दादा ठाकुर का छोटा बेटा कैसे चरित्र का लड़का है। कुमुद के समझाने पर रूपा को अक्सर थोड़ा तकलीफ़ होती थी। वो जानती थी कि कुमुद ग़लत नहीं कहती थी, वो खुद भी वैभव के चरित्र से परिचित थी लेकिन अब इसका क्या किया जाए कि इसके बावजूद वो वैभव से प्रेम करती थी और उसी के सपने देखने पर मजबूर थी।

"क्या हुआ?" रूपा को कहीं खोया हुआ देख कुमुद ने कहा____"क्या फिर से उस लड़के के ख़्यालों में खो गई?"
"मुझे आपसे एक सहायता चाहिए भौजी।" रूपा ने सहसा गंभीर भाव से कहा____"कृपया मना मत कीजिएगा।"

"बात क्या है रूपा?" कुमुद ने उसकी गंभीरता को भांपते हुए पूछा____"कोई परेशानी है क्या?"
"हां भौजी।" रूपा एकदम से उठ कर बैठ गई, फिर गंभीर भाव से बोली____"बहुत बड़ी परेशानी और चिंता की बात हो गई है। इसी लिए तो कह रही हूं कि मुझे आपसे एक सहायता चाहिए।"

"आख़िर बात क्या है?" कुमुद के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं____"ऐसी क्या बात हो गई है जिसकी वजह से तुम मुझसे सहायता मांग रही हो? मुझे सब कुछ बताओ रूपा। आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसके चलते अचानक से तुम इतना चिंतित हो गई हो?"

"पहले मेरी क़सम खाइए भौजी।" रूपा ने झट से कुमुद का हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया, फिर बोली____"पहले मेरी क़सम खाइए कि मैं आपको जो कुछ भी बताऊंगी उसके बारे में आप इस घर में किसी को कुछ भी नहीं बताएंगी।"

"तुम मेरी ननद ही नहीं बल्कि सहेली भी हो रूपा।" कुमुद ने कहा____"तुम अच्छी तरह जानती हो कि हम कभी भी एक दूसरे के राज़ किसी से नहीं बताते। फिर क़सम देने की क्या ज़रूरत है तुम्हें? क्या तुम्हें अपनी भौजी पर यकीन नहीं है?"

"खुद से भी ज़्यादा यकीन है भौजी।" रूपा ने बेचैन भाव से कहा____"लेकिन फिर भी आप एक बार मेरी क़सम खा लीजिए। मेरी बात को अन्यथा मत लीजिए भौजी।"

"अच्छा ठीक है।" कुमुद ने कहा____"मैं अपनी सबसे प्यारी ननद और सबसे प्यारी सहेली की क़सम खा कर कहती हूं कि तुम मुझे जो कुछ भी बताओगी उसके बारे में मैं कभी भी किसी से ज़िक्र नहीं करूंगी। तुम्हारा हर राज़ मेरे सीने में मरते दम तक दफ़न रहेगा। अब बताओ कि आख़िर बात क्या है?"

"वैभव की जान को ख़तरा है भौजी।" रूपा ने दुखी भाव से कहा____"अभी कुछ देर पहले जब मैं दिशा मैदान के लिए गई थी तब मैंने बाग़ में कुछ लोगों से इस बारे में सुना था।"

"य...ये क्या कह रही हो तुम?" कुमुद ने हैरत से आंखें फैला कर कहा____"भला बाग़ में ऐसे वो कौन लोग थे जो वैभव के बारे में ऐसी बातें कर रहे थे?"
"आप सुनेंगी तो आपको यकीन नहीं होगा भौजी।" रूपा ने आहत भाव से कहा____"मुझे ख़ुद अभी तक यकीन नहीं हो रहा है।"

"पर वो लोग थे कौन रूपा?" कुमुद ने उलझनपूर्ण भाव से पूछा____"जिन्होंने वैभव के बारे में ऐसा कुछ कहा जिसे सुन कर तुम ये सब कह रही हो। मुझे पूरी बात बताओ।"

रूपा ने कुमुद को सब कुछ बता दिया। जिसे सुन कर कुमुद भी गहरे ख़्यालों में खोई हुई नज़र आने लगी। उधर सब कुछ बताने के बाद रूपा ने कहा_____"आपको पता है वैभव को ख़त्म करने के लिए कहने वाला कौन था? वो व्यक्ति कोई और नहीं आपके ही ससुर थे यानि मेरे ताऊ जी। मैंने अच्छी तरह उनकी आवाज़ को सुना था भौजी। वो ताऊ जी ही थे।"

कुमुद को रूपा के मुख से अपने ससुर के बारे में ये जान कर ज़बरदस्त झटका लगा। एकदम से उससे कुछ कहते न बन पड़ा था। चेहरे पर ऐसे भाव उभर आए थे जैसे वो इस बात को यकीन करने की कोशिश कर रही हो।

"बाकी दो लोग कौन थे मैं नहीं जानती भौजी।" कुमुद को गहरी सोच में डूबा देख रूपा ने कहा____"उन दोनों की आवाज़ मेरे लिए बिल्कुल ही अंजानी थी लेकिन ताऊ जी की आवाज़ को पहचानने में मुझसे कोई ग़लती नहीं हुई है।"

"ऐसा कैसे हो सकता है रूपा?" कुमुद ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"अब तो हवेली वालों से हमारे संबंध अच्छे हो गए हैं ना? ससुर जी ने तो खुद ही अच्छे संबंध बनाने की पहल की थी तो फिर वो खुद ही ऐसा कैसे कर सकते हैं?"

"यही तो समझ में नहीं आ रहा भौजी।" रूपा ने चिंतित भाव से कहा____"अगर ताऊ जी ने खुद पहल कर के हवेली वालों से अपने संबंध सुधारे थे तो अब वो ऐसा क्यों कर रहे हैं? इसका तो यही मतलब हो सकता है ना कि संबंध सुधारने का उन्होंने सिर्फ़ दिखावा किया था जबकि आज भी वो हवेली वालों को अपना दुश्मन समझते हैं। यही बात कुछ समय पहले वैभव ने भी मुझसे कही थी भौजी।"

"क्या मतलब?" कुमुद ने चौंकते हुए पूछा____"क्या कहा था वैभव ने?"
"उसे भी यही लगता है कि हमारे घर वालों ने उससे संबंध सुधार लेने का सिर्फ़ दिखावा किया है जबकि ऐसा करने के पीछे यकीनन हमारी कोई चाल है।" रूपा ने कहा____"वैभव ने मुझसे कहा भी था कि अगर वो ग़लत कह रहा है तो मैं खुद इस बारे में पता कर सकती हूं। उस दिन मुझे उसकी बातों पर यकीन नहीं हुआ था इस लिए मैंने कभी इसके बारे में पता लगाने का नहीं सोचा था लेकिन अभी शाम को जो कुछ मैंने सुना उससे मैं सोचने पर मजबूर हो गई हूं।"

"अगर सच यही है।" कुमुद ने गंभीरता से कहा____"तो यकीनन ये बहुत ही गंभीर बात है रूपा। मुझे समझ नहीं आ रहा कि ससुर जी ऐसा क्यों कर रहे हैं? आख़िर हवेली वालों से उनकी क्या दुश्मनी है जिसकी वजह से वो ऐसा कर रहे हैं? इस घर में मुझे आए हुए डेढ़ दो साल हो गए हैं लेकिन मैंने कभी किसी के मुख से दोनों खानदानों के बीच की दुश्मनी का असल कारण नहीं सुना। ये ज़रूर सुनती आई हूं कि तुम्हारे भाई लोगों का उस लड़के से कभी न कभी लड़ाई झगड़ा होता ही रहता है। जब संबंध अच्छे बने तो ससुर जी खुद ही उस लड़के को हमारे घर ले कर आए थे। मैंने सुना था कि वो घर बुला कर उस लड़के का सम्मान करना चाहते थे। उस दिन जब वैभव आया था तो मैंने देखा था कि वो सबसे कितने अच्छे तरीके से मिल रहा था और अपने से बड़ों के पैर छू कर आशीर्वाद ले रहा था। मेरी गुड़िया को तो वो अपने साथ हवेली ही ले गया था। अब सोचने वाली बात है कि अगर ससुर जी खुद उस लड़के को सम्मान देने के लिए यहां ले कर आए थे तो अब उसी लड़के को ख़त्म करने का कैसे सोच सकते हैं?"

"ज़ाहिर है वैभव को अपने घर ला कर उसे सम्मान देना महज दिखावा ही था।" रूपा ने कहा____"जबकि उनके मन में तो वैभव के प्रति नफ़रत की ही भावना थी। ये भी निश्चित ही समझिए कि अगर ताऊजी ऐसी मानसिकता रखते हैं तो ऐसी ही मानसिकता उनके सभी भाई भी रखते ही होंगे। भला वो अपने बड़े भाई साहब के खिलाफ़ कैसे जा सकते हैं? कहने का मतलब ये कि वो सब हवेली वालों से नफ़रत करते हैं और उन सबका एक ही मकसद होगा____'हवेली के हर सदस्य का खात्मा कर देना।"

रूपा की बातें सुन कर कुमुद हैरत से देखती रह गई उसे। उसके ज़हन में विचारों की आंधियां सी चलने लगीं थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके घर वालों का सच ऐसा भी हो सकता है।

"मुझे आपकी सहायता चाहिए भौजी।" रूपा ने चिंतित भाव से कहा____"मुझे किसी भी तरह वैभव को इस संकट से बचाना है।"
"पर तुम कर भी क्या सकोगी रूपा?" कुमुद ने बेचैन भाव से कहा____"तुमने बताया कि वैभव अपनी भाभी को ले कर चंदनपुर गया हुआ है तो तुम भला कैसे उसे इस संकट से बचाओगी? क्या तुम रातों रात चंदनपुर जाने का सोच रही हो?"

"नहीं भौजी।" रूपा ने कहा____"चंदनपुर तो मैं किसी भी कीमत पर नहीं जा सकती क्योंकि ये मेरे लिए संभव ही नहीं हो सकेगा लेकिन हवेली तो जा ही सकती हूं।"

"ह...हवेली??" कुमुद ने हैरानी से रूपा को देखा।
"हां भौजी।" रूपा ने कहा____"आपकी सहायता से मैं हवेली ज़रूर जा सकती हूं और वहां पर दादा ठाकुर को इस बारे में सब कुछ बता सकती हूं। वो ज़रूर वैभव को इस संकट से बचाने के लिए कुछ न कुछ कर लेंगे।"

"बात तो तुम्हारी ठीक है।" कुमुद ने सोचने वाले भाव से कहा____"लेकिन तुम हवेली कैसे जा पाओगी? सबसे पहले तो तुम्हारा इस घर से बाहर निकलना ही मुश्किल है और अगर मान लो किसी तरह हवेली पहुंच भी गई तो वहां रात के इस वक्त कैसे हवेली में प्रवेश कर पाओगी?"

"मेरे पास एक उपाय है भौजी।" रूपा के चेहरे पर सहसा चमक उभर आई थी, बोली____"घर में सबको पता है कि मेरा पेट ख़राब है जिसके चलते मुझे बार बार दिशा मैदान के लिए जाना पड़ता है। तो उपाय ये है कि मैं आपके साथ दिशा मैदान जाने के लिए घर से बाहर जाऊंगी। उसके बाद बाहर से सीधा हवेली चली जाऊंगी। वैसे भी घर में कोई ये कल्पना ही नहीं कर सकता कि मैं ऐसे किसी काम के लिए सबकी चोरी से हवेली जा सकती हूं।"

"वाह! रूपा क्या मस्त उपाय खोजा है तुमने।" कुमुद के चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई, अतः मुस्कुराते हुए बोली____"आज मैं पूरी तरह से मान गई कि तुम सच में वैभव से बेहद प्रेम करती हो वरना अपने ही परिवार के खिलाफ़ जा कर ऐसी बात हवेली में जा कर बताने का कभी न सोचती।"

"मुझे इस बात को बताने की कोई खुशी नहीं है भौजी।" रूपा ने उदास भाव से कहा____"क्योंकि हवेली में दादा ठाकुर को जब मेरे द्वारा इस बात का पता चलेगा तो ज़ाहिर है कि उसके बाद मेरे अपने घर वाले भी संकट में घिर जाएंगे। वैभव की जान बचाने के चक्कर में मैं अपनों को ही संकट में डाल दूंगी और ये बात सोच कर ही मुझे अपने आपसे घृणा हो रही है।"

"मैं मानती हूं कि ऐसा करने से तुम अपने ही घर वालों को संकट में डाल दोगी।" कुमुद ने कहा____"लेकिन इसका भी एक सटीक उपाय है मेरी प्यारी ननदरानी।"
"क्या सच में?" रूपा के मुरझाए चेहरे पर सहसा खुशी की चमक फिर से उभर आई____"क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे मेरे ऐसा करने के बाद भी मेरे घर वालों पर कोई संकट न आए?"

"हां रूपा।" कुमुद ने कहा____"उपाय ये है कि तुम दादा ठाकुर से इस बारे में बताने से पहले ये आश्वासन ले लो कि वो हमारे घर वालों पर किसी भी तरह का कोई संकट नहीं आने देंगे। अगर वो आश्वासन दे देते हैं तो ज़ाहिर है कि तुम्हारे द्वारा ये सब बताने पर भी वो हमारे घर वालों के लिए ख़तरा नहीं बनेंगे।"

"और अगर वो न माने तो?" रूपा ने संदिग्ध भाव से पूछा____"अगर वो गुस्से में आ कर सच में हमारे घर वालों के लिए ख़तरा बन गए तो?"

"नहीं, ऐसा नहीं होगा।" कुमुद ने मानों पूरे विश्वास के साथ कहा____"डेढ़ दो सालों में इतना तो मैं भी जान गई हूं कि दादा ठाकुर किस तरह के इंसान हैं। मुझे यकीन है कि जब तुम सब कुछ बताने के बाद हमारे परिवार पर संकट न आने के लिए उनसे कहोगी तो वो तुम्हें निराश नहीं करेंगे। आख़िर वो ये कैसे भूल जाएंगे कि तुमने अपने परिवार के खिलाफ़ जा कर उनके बेटे के जीवन को बचाने का प्रयास किया है? मुझे पूरा यकीन है रूपा कि वो हमारे लिए कोई भी ख़तरा नहीं बनेंगे।"

"अगर आपको उन पर यकीन है।" रूपा ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"तो फिर हम दोनों दिशा मैदान के लिए चलते हैं। अब एक पल का भी देर करना ठीक नहीं है।"

"रुको, एक उपाय और है रूपा।" कुमुद ने कुछ सोचते हुए कहा____"एक ऐसा उपाय जिससे किसी बात की चिंता करने की ज़रूरत ही नहीं रहेगी।"
"क्या मतलब??" रूपा के माथे पर उलझन के भाव उभर____"भला इस तरह का क्या उपाय हो सकता है भौजी?"

"बड़ा सीधा सा उपाय है मेरी प्यारी लाडो।" कुमुद ने मुस्कुराते हुए कहा____"और वो ये कि हम दादा ठाकुर को ये नहीं बताएंगे कि वैभव को ख़त्म करने के लिए किसने कहा है। कहने का मतलब ये कि तुम उनसे सिर्फ यही बताना कि तुमने हमारे बाग में कुछ लोगों को ऐसी बातें करते सुना था जिसमें वो लोग चंदनपुर जा कर वैभव को जान से मारने को कह रहे थे। दादा ठाकुर अगर ये पूछेंगे कि तुम उस वक्त बाग में क्या कर रही थी तो बोल देना कि तुम्हारा पेट ख़राब था इस लिए तुम वहां पर दिशा मैदान के लिए गई थी और उसी समय तुमने ये सब सुना था।"

"ये उपाय तो सच में कमाल का है भौजी।" रूपा के चेहरे पर खुशी के भाव उभर आए____"यानि मुझे ताऊ जी के बारे में दादा ठाकुर से बताने की ज़रूरत ही नहीं है और जब ताऊ जी का ज़िक्र ही नहीं होगा तो दादा ठाकुर से हमारे परिवार को कोई ख़तरा भी नहीं होगा। वाह! भौजी क्या उपाय बताया है आपने।"

"ऐसा करने से एक तरह से हम अपने परिवार वालों के साथ गद्दारी भी नहीं करेंगे रूपा।" कुमुद ने कहा____"और उन्हें दादा ठाकुर के क़हर से भी बचा लेंगे। वैभव से तुम प्रेम करती हो तो उसके लिए ऐसा कर के तुम उसके प्रति अपनी वफ़ा भी साबित कर लोगी। इससे कम से कम तुम्हारे दिलो दिमाग़ में कोई अपराध बोझ तो नहीं रहेगा।"

"सही कहा भौजी।" रूपा एकदम कुमुद के लिपट कर बोली____"आप ने सच में मुझे एक बड़े धर्म संकट से बचा लिया है। आप मेरी सबसे अच्छी भौजी हैं।"
"सिर्फ़ भौजी नहीं मेरी प्यारी ननदरानी।" कुमुद ने प्यार से रूपा की पीठ को सहलाते हुए कहा___"बल्कि तुम्हारी सहेली भी। तुम्हें मैं ननद से ज़्यादा अपनी सहेली मानती हूं।"

"हां मेरी प्यारी सहेली।" रूपा ने हल्के से हंसते हुए कहा____"अब चलिए, हमें जल्द से जल्द ये काम करना है। देर करना ठीक नहीं है।"

रूपा की बात सुन कर कुमुद मुस्कुराई और फिर रूपा के दाएं गाल को प्यार से सहला कर पलंग से उठ गई। उसके बाद उसने रूपा को चलने का इशारा किया और खुद कमरे से बाहर निकल गई। रूपा को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके दिलो दिमाग़ में जो अब तक भारी बोझ पड़ा हुआ था वो पलक झपकते ही गायब हो गया है। हवेली जाने के ख़्याल ने उसे एकदम से रोमांचित सा कर दिया था। आज पहली बार वो हवेली जाने वाली थी और पहली बार वो कोई ऐसा काम करने वाली थी जिसके बारे में उसके घर वाले कल्पना भी नहीं कर सकते थे।


✮✮✮✮

"क्या बात है?" बैठक में बैठे दादा ठाकुर ने हैरानी भरे भाव से अभिनव को देखते हुए कहा____"उनसे कुछ पता चला है क्या?"

"अभी तो कुछ पता नहीं चला है पिता जी।" अभिनव ने कहा____"हमारे आदमी वैभव के दोनों दोस्तों और जगन पर बराबर नज़र रखे हुए हैं। अभी मैं उनसे ही मिल कर आ रहा हूं। हमारे आदमियों के अनुसार वो तीनों सामान्य दिनों की तरह ही अपने अपने काम में लगे हुए थे। सुबह से अब तक वो लोग अपने अपने घरों से बाहर तो गए थे लेकिन किसी ऐसे आदमी से नहीं मिले जिसे सफ़ेदपोश अथवा काला नकाबपोश कहा जा सके। वैसे भी सफ़ेदपोश और काला नकाबपोश उन लोगों से रात के अंधेरे में ही मिलता है। दिन में शायद इस लिए नहीं मिलता होगा क्योंकि इससे उनका भेद खुल जाने का ख़तरा रहता होगा।"

"मेरा खयाल तो ये है भैया कि हम सीधे उन तीनों को पकड़ लेते हैं।" जगताप ने कहा____"माना कि वो लोग सफ़ेदपोश अथवा काले नकाबपोश के बारे में कुछ न बता पाएंगे लेकिन इतना तो ज़रूर बता सकते हैं कि उन लोगों ने आख़िर किस वजह से हमारे खिलाफ़ जा कर सफ़ेदपोश से मिल गए और उसके इशारे पर चलने लगे?"

"जगन का तो समझ में आता है चाचा जी कि उसने अपने बड़े भाई की ज़मीन हड़पने के लिए ये सब किया होगा।" अभिनव ने कहा____"लेकिन सुनील और चेतन किस वजह से उस सफेदपोश के सुर में चलने लगे ये सोचने वाली बात है। संभव है कि इसके पीछे उनकी कोई मजबूरी रही होगी लेकिन ये पता करना ज़रूरी है कि दोनों ने सफ़ेदपोश के कहने पर क्या किया है? रही बात उन लोगों को सीधे पकड़ लेने की तो ऐसा करना ख़तरनाक भी हो सकता है क्योंकि अगर वो लोग किसी मजबूरी में सफ़ेदपोश का साथ दे रहे हैं तो ज़ाहिर है कि हमारे द्वारा उन्हें पकड़ लेने से उनकी या उनके परिवार वालों की जान को ख़तरा हो जाएगा।"

"हम अभिनव की बातों से सहमत हैं जगताप।" दादा ठाकुर ने कहा____"हम किसी भी मामले को जानने के लिए किसी निर्दोष की जान को ख़तरे में नहीं डाल सकते। बेशक हमारा उनसे बहुत कुछ जानना ज़रूरी है लेकिन इस तरीके से नहीं कि हमारी किसी ग़लती की वजह से उन पर या उनके परिवार पर संकट आ जाए। जहां अब तक हमने इंतज़ार किया है वहीं थोड़ा इंतज़ार और सही।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर जगताप अभी कुछ बोलने ही वाला था कि तभी एक दरबान अंदर आया और उसने दादा ठाकुर से कहा कि एक आदमी आया है और उनसे शीघ्र मिलना चाहता है। दरबान की बात सुन कर दादा ठाकुर ने कुछ पल सोचा और फिर दरबान से कहा ठीक है उसे अंदर भेज दो। दरबान के जाने के कुछ ही देर बाद जो शख़्स बैठक में आया। उसे देख दादा ठाकुर हल्के से चौंके। आने वाला शख़्स कोई और नहीं बल्कि शेरा था। दादा ठाकुर को समझते देर न लगी कि शेरा को उन्होंने जो काम दिया था उसमें वो कामयाब हो कर ही लौटा है। अगर वो कामयाब न हुआ होता तो वो अपनी शक्ल न दिखाता। दादा ठाकुर इस बात से अंदर ही अंदर खुश हो गए और साथ ही उनकी धड़कनें भी थोड़ा तेज़ हो गईं।

"प्रणाम मालिक।" शेरा ने हाथ जोड़ कर दादा ठाकुर को प्रणाम किया और फिर जगताप को भी।
"क्या बात है?" दादा ठाकुर ने शेरा की तरफ देखते हुए कहा____"इस वक्त तुम यहां? सब ठीक तो है न?"

"जी मालिक सब ठीक है।" शेरा ने अदब से कहा____"आपको एक ख़बर देने आया हूं। अगर आप मुनासिब समझें तो अर्ज़ करूं?"
"ज़रूरत नहीं है।" दादा ठाकुर कहने के साथ ही एक झटके में अपने सिंहासन से उठे, फिर बोले____"हम जानते हैं तुम क्या कहना चाहते हो। बस ये बताओ कहां हैं वो?"

शेरा ने जवाब देने से पहले बैठक में बैठे अभिनव और जगताप को देखा और फिर कहा____"माफ़ कीजिए मालिक लेकिन एक ही हाथ लगा है। मैं उसे अपने साथ ही ले कर आया हूं।"

शेरा की बात सुन कर दादा ठाकुर मन ही मन थोड़ा चौंके और फिर पलट कर बारी बारी से अपने बेटे अभिनव और छोटे भाई जगताप को देखा। उसके बाद कुछ सोचते हुए उन्होंने जगताप से कहा____"एक अच्छी ख़बर है जगताप।"

"कैसी ख़बर भैया?" जगताप ने उलझन भरे भाव से कहा____"और ये शेरा किसके हाथ लगने की बात कर रहा है?"
"हमने शेरा को एक बेहद ही महत्वपूर्ण काम सौंपा था" दादा ठाकुर ने कहा____"हमें ये तो उम्मीद थी कि ये हमारे द्वारा दिए गए काम को यकीनन सफलतापूर्वक अंजाम देगा लेकिन ये उम्मीद नहीं थी कि ये इतना जल्दी अपना काम कर लेगा। ख़ैर बात ये है कि शेरा के हाथ सफ़ेदपोश अथवा काले नकाबपोश में से कोई एक लग गया है और ये उसे अपने साथ ही ले कर आया है।"

"क...क्या??" जगताप से पहले अभिनव आश्चर्य से बोल पड़ा____"मेरा मतलब है कि क्या आप सच कह रहे हैं पिता जी?"
"बिलकुल।" दादा ठाकुर ने ख़ास भाव से कहा____"शेरा ने उनमें से किसी एक को पकड़ लिया है और उसे अपने साथ यहां ले आया है।" कहने के साथ ही दादा ठाकुर शेरा से मुखातिब हुए____"तुमने बहुत अच्छा काम किया है शेरा। तुम हमारी उम्मीद पर बिलकुल खरे उतरे। ख़ैर ये बताओ कि उनमें से कौन तुम्हारे हाथ लगा है?"

"मैं तो सफ़ेदपोश को ही पकड़ने के लिए उसके पीछे गया था मालिक।" शेरा ने कहा___"लेकिन बाग़ में अचानक से वो गायब हो गया। मैंने उसे बहुत खोजा लेकिन उसका कहीं पता नहीं चल सका। उसके बाद मैं काले नकाबपोश को खोजने लगा और आख़िर वो मुझे मिल ही गया। उसको अपने कब्जे में लेने के लिए मुझे उसके साथ काफी ज़ोरदार मुकाबला करना पड़ा जिसका नतीजा ये निकला कि आख़िर में मैंने उसे अपने कब्जे में ले ही लिया।"

"ये तो सच में बड़े आश्चर्य और कमाल की बात हुई भैया।" जगताप ने खुशी से कहा____"शेरा के हाथ उस सफ़ेदपोश का खास आदमी लग गया है। अब हम उसके द्वारा पलक झपकते ही सफ़ेदपोश तक पहुंच सकते हैं। उसके बाद हमें ये जानने में देर नहीं लगेगी कि हमारे साथ इस तरह का खेल खेलने वाला वो सफ़ेदपोश कौन है? बस एक बार वो मेरे हाथ लग जाए उसके बाद तो मैं उसकी वो हालत करूंगा कि दुबारा जन्म लेने से भी इंकार करेगा।"

"बेशक ऐसा ही होगा जगताप।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन तब तक हमें पूरे होशो हवास में रहना होगा। ख़ैर तुम शेरा के साथ जाओ और उस काले नकाबपोश को हवेली के किसी कमरे में बंद कर दो। हम सुबह उससे पूछताछ करेंगे।"

"सुबह क्यों भैया?" जगताप ने कहा____"हमें तो अभी उससे पूछताछ करनी चाहिए। उससे सफ़ेदपोश के बारे में सब कुछ जान कर जल्द से जल्द उस सफ़ेदपोश को खोजना चाहिए।"

"इतना बेसब्र मत हो जगताप।" दादा ठाकुर ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"धीरज से काम लो। हम जानते हैं कि तुम जल्द से जल्द हमारे दुश्मन को खोज कर उसको नेस्तनाबूत कर देना चाहते हो लेकिन इतना बेसब्र होना ठीक नहीं है। अब तो वो काला नकाबपोश हमारे हाथ लग ही गया है इस लिए सुबह हम सब उससे तसल्ली से पूछताछ करेंगे।"

"ठीक है भैया।" जगताप ने कहा____"जैसा आपको ठीक लगे।"
"हम तुम्हारे इस काम से बेहद खुश हैं शेरा।" दादा ठाकुर ने शेरा से कहा____"इसका इनाम ज़रूर मिलेगा तुम्हें?"
"माफ़ कीजिए मालिक।" शेरा ने हाथ जोड़ कर कहा____"आपके द्वारा इनाम लेने में मुझे तभी खुशी होगी जब उस सफ़ेदपोश को भी पकड़ कर आपके सामने ले आऊंगा।"

शेरा की बात सुन कर दादा ठाकुर मुस्कुराए और आगे बढ़ कर शेरा के बाएं कंधे पर अपना हाथ रख कर हल्के से दबाया। उसके बाद उन्होंने जगताप को शेरा के साथ जाने को कहा। जगताप और शेरा बैठक से बाहर आए। हवेली के एक तरफ दीवार के सहारे और दो दरबानों की निगरानी में काला नकाबपोश बेहोश पड़ा हुआ था। जगताप के कहने पर शेरा ने उसे उठा कर कंधे पर लाद लिया और फिर वो जगताप के पीछे पीछे हवेली के उत्तर दिशा की तरफ बढ़ता चला गया। जल्दी ही वो हवेली के एक तरफ बने एक सीलनयुक्त कमरे में पहुंच गया।

जगताप के कहने पर शेरा ने उस काले नकाबपोश को उस खाली कमरे में एक तरफ डाल दिया। काले नकाबपोश के चेहरे पर अभी भी काला नक़ाब था जिसे जगताप ने एक झटके से उतार दिया। कमरे में एक तरफ लालटेन का प्रकाश था इस लिए उस प्रकाश में जगताप ने उस आदमी को देखा। काला नकाबपोश उसे इस गांव का नहीं लग रहा था। जगताप की नज़र उसके एक हाथ पर पड़ी जो टूटा हुआ था। उसने पलट कर शेरा की तरफ देखा तो शेरा ने बताया कि मुकाबले में उसी ने उसका हाथ तोड़ा है, तभी तो वो उसके हाथ लगा था। ख़ैर, जगताप और शेरा कमरे से बाहर आ गए। जगताप के कहने पर एक दरबान ने उस कमरे के दरवाज़े की कुंडी बंद कर उसमें ताला लगा दिया।


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Bhai bas yahi kahunga ki baar baar wala heart attack mat diya karo aap....

Is baar aaye ho to story pura karke hi jana...

Agar koi majburi me fas gaye to story thodi fast karke khatam kar dena...

Magar bhai is baar adhuri mat chhodana....

Aur update to bhai hamesha ki tarah lajwab hi h....
 

@09vk

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अध्याय - 58
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अब तक....

शेरा को लगा काला नकाबपोश बेवजह ही सफ़ेदपोश का गुणगान कर रहा है इस लिए समय को बर्बाद न करते हुए उसने उसकी कनपटी के ख़ास हिस्से पर वार किया जिसका नतीजा ये हुआ कि काला नकाबपोश जल्द ही बेहोशी की गर्त में डूबता चला गया। उसके बाद शेरा ने उसे उठा कर कंधे पर लादा और एक तरफ को बढ़ता चला गया।

अब आगे....

रूपा अपने कमरे में पलंग पर लेटी गहरी सोच में डूबी हुई थी। बार बार उसके कानों में बाग़ में मौजूद उस पहले साए की बातें गूंज उठती थीं जिसकी वजह से वो गहन सोच के साथ साथ गहन चिंता में भी पड़ गई थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस आवाज़ को उसने सुना था वो उसका कोई अपना था। वो अच्छी तरह जान गई थी कि वो आवाज़ किसकी थी लेकिन उसने जो कुछ कहा था उस पर उसे यकीन नहीं हो रहा था। उसे तो अब यही लगता था कि दादा ठाकुर से हमारे रिश्ते अच्छे हो गए हैं और इस वजह से वो वैभव के सपने फिर से देखने लगी थी। वो वैभव से बेहद प्रेम करती थी और इसका सबूत यही था कि उसने अपना सब कुछ वैभव को सौंप दिया था।

रूपा को पता चल गया था कि उसके प्रियतम वैभव की जान को ख़तरा है। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो अपने प्रियतम की जान को कैसे महफूज़ करे? उसका बस चलता तो वो इसी वक्त चंदनपुर जा कर वैभव को इस बारे में सब कुछ बता देती और उससे कहती कि वो अपनी सुरक्षा का हर तरह से ख़्याल करे। सहसा उसे वैभव की वो बातें याद आईं जो उसने पिछली मुलाक़ात में उससे मंदिर में कही थीं। उस वक्त रूपा को उसकी बातों पर ज़रा भी यकीन नहीं हुआ था और यही वजह थी कि उसने कभी ये जानने और समझने की कोशिश नहीं की थी कि उसके घर वाले संबंध सुधार लेने के बाद भी दादा ठाकुर और उनके परिवार के बारे में कैसे ख़्याल रखते हैं? आज जब उसने बाग़ में वो सब सुना तो जैसे उसके पैरों तले से ज़मीन ही खिसक गई थी। वो सोचने पर मजबूर हो गई कि क्या सच में उसके घर वाले कुत्ते की दुम ही हैं जो कभी सीधे नहीं हो सकते?

जब से दोनों खानदान के बीच संबंधों में सुधार हुआ था तब से वो वैभव के साथ अपने जीवन के हसीन सपने देखने लगी थी। वो जानती थी कि उसकी तरह वैभव के दिल में उसके प्रति प्रेम के जज़्बात नहीं हैं लेकिन वो ये भी जानती थी कि बाकी लड़कियों की तरह वैभव उसके बारे में नहीं सोचता। अगर वो उसे प्रेम नहीं करता है तो उसे बाकी लड़कियों की तरह अपनी हवस मिटाने का साधन भी नहीं समझता है। कहने का मतलब ये कि कहीं न कहीं वैभव के दिल में उसके प्रति एक सम्मान की भावना ज़रूर है।

अभी रूपा ये सब सोच ही रही थी कि सहसा उसे किसी के आने का आभास हुआ। वो फ़ौरन ही पलंग पर सीधा लेट गई और अपने चेहरे के भावों को छुपाने का प्रयास करने लगी। कुछ ही पलों में उसके कमरे में उसकी एकमात्र भाभी कुमुद दाखिल हुई। कुमुद उसके ताऊ मणि शंकर की बहू और चंद्रभान की बीवी थी।

"अब कैसी तबियत है मेरी प्यारी ननदरानी की?" कुमुद ने पलंग के किनारे बैठ कर उससे मुस्कुरा कर पूछा____"चूर्ण का कोई फ़ायदा हुआ कि नहीं?"
"अभी तो एक बार दिशा मैदान हो के आई हूं भौजी।" रूपा ने कहा____"देखती हूं अब क्या समझ में आता है।"

"फ़िक्र मत करो।" कुमुद ने रूपा के हाथ को अपने हाथ में ले कर कहा____"चूर्ण का ज़रूर फ़ायदा होगा और मुझे यकीन है अब तुम्हें शौच के लिए नहीं जाना पड़ेगा।"

"यही बेहतर होगा भौजी।" रूपा ने कहा____"वरना रात में आपको भी मेरे साथ तकलीफ़ उठानी पड़ जाएगी। अगर ऐसा हुआ तो आपका मज़ा भी ख़राब हो जाएगा।"
"कोई बात नहीं।" रूपा के कहने का मतलब समझते ही कुमुद ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"अपनी प्यारी ननदरानी के लिए आज के मज़े की कुर्बानी दे दूंगी मैं। तुम्हारे भैया कहीं भागे थोड़े न जा रहे हैं।"

कुमुद की बात सुन कर रूपा के होठों पर मुस्कान उभर आई। इस घर में कुमुद का सबसे ज़्यादा रूपा से ही गहरा दोस्ताना था। दोनों ननद भाभी कम और सहेलियां ज़्यादा थीं। अपनी हर बात एक दूसरे से साझा करतीं थीं दोनों। कुमुद को रूपा और वैभव के संबंधों का पहले शक हुआ था और फिर जब उसने ज़ोर दे कर रूपा से इस बारे में पूछा तो रूपा ने कबूल कर लिया था कि हां वो वैभव से प्रेम करती है और वो अपना सब कुछ वैभव को सौंप चुकी है। कुमुद को ये जान कर बेहद आश्चर्य हुआ था लेकिन वो उसके प्रेम भाव को भी बखूबी समझती थी। एक अच्छी सहेली की तरह वो उसे सलाह भी देती थी कि वैभव जैसे लड़के से प्रेम करना तो ठीक है लेकिन वो उस लड़के के सपने न देखे क्योंकि उसके घर वाले कभी भी उसका रिश्ता उस लड़के से नहीं करना चाहेंगे। दूर दूर तक के लोग जानते हैं कि दादा ठाकुर का छोटा बेटा कैसे चरित्र का लड़का है। कुमुद के समझाने पर रूपा को अक्सर थोड़ा तकलीफ़ होती थी। वो जानती थी कि कुमुद ग़लत नहीं कहती थी, वो खुद भी वैभव के चरित्र से परिचित थी लेकिन अब इसका क्या किया जाए कि इसके बावजूद वो वैभव से प्रेम करती थी और उसी के सपने देखने पर मजबूर थी।

"क्या हुआ?" रूपा को कहीं खोया हुआ देख कुमुद ने कहा____"क्या फिर से उस लड़के के ख़्यालों में खो गई?"
"मुझे आपसे एक सहायता चाहिए भौजी।" रूपा ने सहसा गंभीर भाव से कहा____"कृपया मना मत कीजिएगा।"

"बात क्या है रूपा?" कुमुद ने उसकी गंभीरता को भांपते हुए पूछा____"कोई परेशानी है क्या?"
"हां भौजी।" रूपा एकदम से उठ कर बैठ गई, फिर गंभीर भाव से बोली____"बहुत बड़ी परेशानी और चिंता की बात हो गई है। इसी लिए तो कह रही हूं कि मुझे आपसे एक सहायता चाहिए।"

"आख़िर बात क्या है?" कुमुद के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं____"ऐसी क्या बात हो गई है जिसकी वजह से तुम मुझसे सहायता मांग रही हो? मुझे सब कुछ बताओ रूपा। आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसके चलते अचानक से तुम इतना चिंतित हो गई हो?"

"पहले मेरी क़सम खाइए भौजी।" रूपा ने झट से कुमुद का हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया, फिर बोली____"पहले मेरी क़सम खाइए कि मैं आपको जो कुछ भी बताऊंगी उसके बारे में आप इस घर में किसी को कुछ भी नहीं बताएंगी।"

"तुम मेरी ननद ही नहीं बल्कि सहेली भी हो रूपा।" कुमुद ने कहा____"तुम अच्छी तरह जानती हो कि हम कभी भी एक दूसरे के राज़ किसी से नहीं बताते। फिर क़सम देने की क्या ज़रूरत है तुम्हें? क्या तुम्हें अपनी भौजी पर यकीन नहीं है?"

"खुद से भी ज़्यादा यकीन है भौजी।" रूपा ने बेचैन भाव से कहा____"लेकिन फिर भी आप एक बार मेरी क़सम खा लीजिए। मेरी बात को अन्यथा मत लीजिए भौजी।"

"अच्छा ठीक है।" कुमुद ने कहा____"मैं अपनी सबसे प्यारी ननद और सबसे प्यारी सहेली की क़सम खा कर कहती हूं कि तुम मुझे जो कुछ भी बताओगी उसके बारे में मैं कभी भी किसी से ज़िक्र नहीं करूंगी। तुम्हारा हर राज़ मेरे सीने में मरते दम तक दफ़न रहेगा। अब बताओ कि आख़िर बात क्या है?"

"वैभव की जान को ख़तरा है भौजी।" रूपा ने दुखी भाव से कहा____"अभी कुछ देर पहले जब मैं दिशा मैदान के लिए गई थी तब मैंने बाग़ में कुछ लोगों से इस बारे में सुना था।"

"य...ये क्या कह रही हो तुम?" कुमुद ने हैरत से आंखें फैला कर कहा____"भला बाग़ में ऐसे वो कौन लोग थे जो वैभव के बारे में ऐसी बातें कर रहे थे?"
"आप सुनेंगी तो आपको यकीन नहीं होगा भौजी।" रूपा ने आहत भाव से कहा____"मुझे ख़ुद अभी तक यकीन नहीं हो रहा है।"

"पर वो लोग थे कौन रूपा?" कुमुद ने उलझनपूर्ण भाव से पूछा____"जिन्होंने वैभव के बारे में ऐसा कुछ कहा जिसे सुन कर तुम ये सब कह रही हो। मुझे पूरी बात बताओ।"

रूपा ने कुमुद को सब कुछ बता दिया। जिसे सुन कर कुमुद भी गहरे ख़्यालों में खोई हुई नज़र आने लगी। उधर सब कुछ बताने के बाद रूपा ने कहा_____"आपको पता है वैभव को ख़त्म करने के लिए कहने वाला कौन था? वो व्यक्ति कोई और नहीं आपके ही ससुर थे यानि मेरे ताऊ जी। मैंने अच्छी तरह उनकी आवाज़ को सुना था भौजी। वो ताऊ जी ही थे।"

कुमुद को रूपा के मुख से अपने ससुर के बारे में ये जान कर ज़बरदस्त झटका लगा। एकदम से उससे कुछ कहते न बन पड़ा था। चेहरे पर ऐसे भाव उभर आए थे जैसे वो इस बात को यकीन करने की कोशिश कर रही हो।

"बाकी दो लोग कौन थे मैं नहीं जानती भौजी।" कुमुद को गहरी सोच में डूबा देख रूपा ने कहा____"उन दोनों की आवाज़ मेरे लिए बिल्कुल ही अंजानी थी लेकिन ताऊ जी की आवाज़ को पहचानने में मुझसे कोई ग़लती नहीं हुई है।"

"ऐसा कैसे हो सकता है रूपा?" कुमुद ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"अब तो हवेली वालों से हमारे संबंध अच्छे हो गए हैं ना? ससुर जी ने तो खुद ही अच्छे संबंध बनाने की पहल की थी तो फिर वो खुद ही ऐसा कैसे कर सकते हैं?"

"यही तो समझ में नहीं आ रहा भौजी।" रूपा ने चिंतित भाव से कहा____"अगर ताऊ जी ने खुद पहल कर के हवेली वालों से अपने संबंध सुधारे थे तो अब वो ऐसा क्यों कर रहे हैं? इसका तो यही मतलब हो सकता है ना कि संबंध सुधारने का उन्होंने सिर्फ़ दिखावा किया था जबकि आज भी वो हवेली वालों को अपना दुश्मन समझते हैं। यही बात कुछ समय पहले वैभव ने भी मुझसे कही थी भौजी।"

"क्या मतलब?" कुमुद ने चौंकते हुए पूछा____"क्या कहा था वैभव ने?"
"उसे भी यही लगता है कि हमारे घर वालों ने उससे संबंध सुधार लेने का सिर्फ़ दिखावा किया है जबकि ऐसा करने के पीछे यकीनन हमारी कोई चाल है।" रूपा ने कहा____"वैभव ने मुझसे कहा भी था कि अगर वो ग़लत कह रहा है तो मैं खुद इस बारे में पता कर सकती हूं। उस दिन मुझे उसकी बातों पर यकीन नहीं हुआ था इस लिए मैंने कभी इसके बारे में पता लगाने का नहीं सोचा था लेकिन अभी शाम को जो कुछ मैंने सुना उससे मैं सोचने पर मजबूर हो गई हूं।"

"अगर सच यही है।" कुमुद ने गंभीरता से कहा____"तो यकीनन ये बहुत ही गंभीर बात है रूपा। मुझे समझ नहीं आ रहा कि ससुर जी ऐसा क्यों कर रहे हैं? आख़िर हवेली वालों से उनकी क्या दुश्मनी है जिसकी वजह से वो ऐसा कर रहे हैं? इस घर में मुझे आए हुए डेढ़ दो साल हो गए हैं लेकिन मैंने कभी किसी के मुख से दोनों खानदानों के बीच की दुश्मनी का असल कारण नहीं सुना। ये ज़रूर सुनती आई हूं कि तुम्हारे भाई लोगों का उस लड़के से कभी न कभी लड़ाई झगड़ा होता ही रहता है। जब संबंध अच्छे बने तो ससुर जी खुद ही उस लड़के को हमारे घर ले कर आए थे। मैंने सुना था कि वो घर बुला कर उस लड़के का सम्मान करना चाहते थे। उस दिन जब वैभव आया था तो मैंने देखा था कि वो सबसे कितने अच्छे तरीके से मिल रहा था और अपने से बड़ों के पैर छू कर आशीर्वाद ले रहा था। मेरी गुड़िया को तो वो अपने साथ हवेली ही ले गया था। अब सोचने वाली बात है कि अगर ससुर जी खुद उस लड़के को सम्मान देने के लिए यहां ले कर आए थे तो अब उसी लड़के को ख़त्म करने का कैसे सोच सकते हैं?"

"ज़ाहिर है वैभव को अपने घर ला कर उसे सम्मान देना महज दिखावा ही था।" रूपा ने कहा____"जबकि उनके मन में तो वैभव के प्रति नफ़रत की ही भावना थी। ये भी निश्चित ही समझिए कि अगर ताऊजी ऐसी मानसिकता रखते हैं तो ऐसी ही मानसिकता उनके सभी भाई भी रखते ही होंगे। भला वो अपने बड़े भाई साहब के खिलाफ़ कैसे जा सकते हैं? कहने का मतलब ये कि वो सब हवेली वालों से नफ़रत करते हैं और उन सबका एक ही मकसद होगा____'हवेली के हर सदस्य का खात्मा कर देना।"

रूपा की बातें सुन कर कुमुद हैरत से देखती रह गई उसे। उसके ज़हन में विचारों की आंधियां सी चलने लगीं थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके घर वालों का सच ऐसा भी हो सकता है।

"मुझे आपकी सहायता चाहिए भौजी।" रूपा ने चिंतित भाव से कहा____"मुझे किसी भी तरह वैभव को इस संकट से बचाना है।"
"पर तुम कर भी क्या सकोगी रूपा?" कुमुद ने बेचैन भाव से कहा____"तुमने बताया कि वैभव अपनी भाभी को ले कर चंदनपुर गया हुआ है तो तुम भला कैसे उसे इस संकट से बचाओगी? क्या तुम रातों रात चंदनपुर जाने का सोच रही हो?"

"नहीं भौजी।" रूपा ने कहा____"चंदनपुर तो मैं किसी भी कीमत पर नहीं जा सकती क्योंकि ये मेरे लिए संभव ही नहीं हो सकेगा लेकिन हवेली तो जा ही सकती हूं।"

"ह...हवेली??" कुमुद ने हैरानी से रूपा को देखा।
"हां भौजी।" रूपा ने कहा____"आपकी सहायता से मैं हवेली ज़रूर जा सकती हूं और वहां पर दादा ठाकुर को इस बारे में सब कुछ बता सकती हूं। वो ज़रूर वैभव को इस संकट से बचाने के लिए कुछ न कुछ कर लेंगे।"

"बात तो तुम्हारी ठीक है।" कुमुद ने सोचने वाले भाव से कहा____"लेकिन तुम हवेली कैसे जा पाओगी? सबसे पहले तो तुम्हारा इस घर से बाहर निकलना ही मुश्किल है और अगर मान लो किसी तरह हवेली पहुंच भी गई तो वहां रात के इस वक्त कैसे हवेली में प्रवेश कर पाओगी?"

"मेरे पास एक उपाय है भौजी।" रूपा के चेहरे पर सहसा चमक उभर आई थी, बोली____"घर में सबको पता है कि मेरा पेट ख़राब है जिसके चलते मुझे बार बार दिशा मैदान के लिए जाना पड़ता है। तो उपाय ये है कि मैं आपके साथ दिशा मैदान जाने के लिए घर से बाहर जाऊंगी। उसके बाद बाहर से सीधा हवेली चली जाऊंगी। वैसे भी घर में कोई ये कल्पना ही नहीं कर सकता कि मैं ऐसे किसी काम के लिए सबकी चोरी से हवेली जा सकती हूं।"

"वाह! रूपा क्या मस्त उपाय खोजा है तुमने।" कुमुद के चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई, अतः मुस्कुराते हुए बोली____"आज मैं पूरी तरह से मान गई कि तुम सच में वैभव से बेहद प्रेम करती हो वरना अपने ही परिवार के खिलाफ़ जा कर ऐसी बात हवेली में जा कर बताने का कभी न सोचती।"

"मुझे इस बात को बताने की कोई खुशी नहीं है भौजी।" रूपा ने उदास भाव से कहा____"क्योंकि हवेली में दादा ठाकुर को जब मेरे द्वारा इस बात का पता चलेगा तो ज़ाहिर है कि उसके बाद मेरे अपने घर वाले भी संकट में घिर जाएंगे। वैभव की जान बचाने के चक्कर में मैं अपनों को ही संकट में डाल दूंगी और ये बात सोच कर ही मुझे अपने आपसे घृणा हो रही है।"

"मैं मानती हूं कि ऐसा करने से तुम अपने ही घर वालों को संकट में डाल दोगी।" कुमुद ने कहा____"लेकिन इसका भी एक सटीक उपाय है मेरी प्यारी ननदरानी।"
"क्या सच में?" रूपा के मुरझाए चेहरे पर सहसा खुशी की चमक फिर से उभर आई____"क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे मेरे ऐसा करने के बाद भी मेरे घर वालों पर कोई संकट न आए?"

"हां रूपा।" कुमुद ने कहा____"उपाय ये है कि तुम दादा ठाकुर से इस बारे में बताने से पहले ये आश्वासन ले लो कि वो हमारे घर वालों पर किसी भी तरह का कोई संकट नहीं आने देंगे। अगर वो आश्वासन दे देते हैं तो ज़ाहिर है कि तुम्हारे द्वारा ये सब बताने पर भी वो हमारे घर वालों के लिए ख़तरा नहीं बनेंगे।"

"और अगर वो न माने तो?" रूपा ने संदिग्ध भाव से पूछा____"अगर वो गुस्से में आ कर सच में हमारे घर वालों के लिए ख़तरा बन गए तो?"

"नहीं, ऐसा नहीं होगा।" कुमुद ने मानों पूरे विश्वास के साथ कहा____"डेढ़ दो सालों में इतना तो मैं भी जान गई हूं कि दादा ठाकुर किस तरह के इंसान हैं। मुझे यकीन है कि जब तुम सब कुछ बताने के बाद हमारे परिवार पर संकट न आने के लिए उनसे कहोगी तो वो तुम्हें निराश नहीं करेंगे। आख़िर वो ये कैसे भूल जाएंगे कि तुमने अपने परिवार के खिलाफ़ जा कर उनके बेटे के जीवन को बचाने का प्रयास किया है? मुझे पूरा यकीन है रूपा कि वो हमारे लिए कोई भी ख़तरा नहीं बनेंगे।"

"अगर आपको उन पर यकीन है।" रूपा ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"तो फिर हम दोनों दिशा मैदान के लिए चलते हैं। अब एक पल का भी देर करना ठीक नहीं है।"

"रुको, एक उपाय और है रूपा।" कुमुद ने कुछ सोचते हुए कहा____"एक ऐसा उपाय जिससे किसी बात की चिंता करने की ज़रूरत ही नहीं रहेगी।"
"क्या मतलब??" रूपा के माथे पर उलझन के भाव उभर____"भला इस तरह का क्या उपाय हो सकता है भौजी?"

"बड़ा सीधा सा उपाय है मेरी प्यारी लाडो।" कुमुद ने मुस्कुराते हुए कहा____"और वो ये कि हम दादा ठाकुर को ये नहीं बताएंगे कि वैभव को ख़त्म करने के लिए किसने कहा है। कहने का मतलब ये कि तुम उनसे सिर्फ यही बताना कि तुमने हमारे बाग में कुछ लोगों को ऐसी बातें करते सुना था जिसमें वो लोग चंदनपुर जा कर वैभव को जान से मारने को कह रहे थे। दादा ठाकुर अगर ये पूछेंगे कि तुम उस वक्त बाग में क्या कर रही थी तो बोल देना कि तुम्हारा पेट ख़राब था इस लिए तुम वहां पर दिशा मैदान के लिए गई थी और उसी समय तुमने ये सब सुना था।"

"ये उपाय तो सच में कमाल का है भौजी।" रूपा के चेहरे पर खुशी के भाव उभर आए____"यानि मुझे ताऊ जी के बारे में दादा ठाकुर से बताने की ज़रूरत ही नहीं है और जब ताऊ जी का ज़िक्र ही नहीं होगा तो दादा ठाकुर से हमारे परिवार को कोई ख़तरा भी नहीं होगा। वाह! भौजी क्या उपाय बताया है आपने।"

"ऐसा करने से एक तरह से हम अपने परिवार वालों के साथ गद्दारी भी नहीं करेंगे रूपा।" कुमुद ने कहा____"और उन्हें दादा ठाकुर के क़हर से भी बचा लेंगे। वैभव से तुम प्रेम करती हो तो उसके लिए ऐसा कर के तुम उसके प्रति अपनी वफ़ा भी साबित कर लोगी। इससे कम से कम तुम्हारे दिलो दिमाग़ में कोई अपराध बोझ तो नहीं रहेगा।"

"सही कहा भौजी।" रूपा एकदम कुमुद के लिपट कर बोली____"आप ने सच में मुझे एक बड़े धर्म संकट से बचा लिया है। आप मेरी सबसे अच्छी भौजी हैं।"
"सिर्फ़ भौजी नहीं मेरी प्यारी ननदरानी।" कुमुद ने प्यार से रूपा की पीठ को सहलाते हुए कहा___"बल्कि तुम्हारी सहेली भी। तुम्हें मैं ननद से ज़्यादा अपनी सहेली मानती हूं।"

"हां मेरी प्यारी सहेली।" रूपा ने हल्के से हंसते हुए कहा____"अब चलिए, हमें जल्द से जल्द ये काम करना है। देर करना ठीक नहीं है।"

रूपा की बात सुन कर कुमुद मुस्कुराई और फिर रूपा के दाएं गाल को प्यार से सहला कर पलंग से उठ गई। उसके बाद उसने रूपा को चलने का इशारा किया और खुद कमरे से बाहर निकल गई। रूपा को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके दिलो दिमाग़ में जो अब तक भारी बोझ पड़ा हुआ था वो पलक झपकते ही गायब हो गया है। हवेली जाने के ख़्याल ने उसे एकदम से रोमांचित सा कर दिया था। आज पहली बार वो हवेली जाने वाली थी और पहली बार वो कोई ऐसा काम करने वाली थी जिसके बारे में उसके घर वाले कल्पना भी नहीं कर सकते थे।


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"क्या बात है?" बैठक में बैठे दादा ठाकुर ने हैरानी भरे भाव से अभिनव को देखते हुए कहा____"उनसे कुछ पता चला है क्या?"

"अभी तो कुछ पता नहीं चला है पिता जी।" अभिनव ने कहा____"हमारे आदमी वैभव के दोनों दोस्तों और जगन पर बराबर नज़र रखे हुए हैं। अभी मैं उनसे ही मिल कर आ रहा हूं। हमारे आदमियों के अनुसार वो तीनों सामान्य दिनों की तरह ही अपने अपने काम में लगे हुए थे। सुबह से अब तक वो लोग अपने अपने घरों से बाहर तो गए थे लेकिन किसी ऐसे आदमी से नहीं मिले जिसे सफ़ेदपोश अथवा काला नकाबपोश कहा जा सके। वैसे भी सफ़ेदपोश और काला नकाबपोश उन लोगों से रात के अंधेरे में ही मिलता है। दिन में शायद इस लिए नहीं मिलता होगा क्योंकि इससे उनका भेद खुल जाने का ख़तरा रहता होगा।"

"मेरा खयाल तो ये है भैया कि हम सीधे उन तीनों को पकड़ लेते हैं।" जगताप ने कहा____"माना कि वो लोग सफ़ेदपोश अथवा काले नकाबपोश के बारे में कुछ न बता पाएंगे लेकिन इतना तो ज़रूर बता सकते हैं कि उन लोगों ने आख़िर किस वजह से हमारे खिलाफ़ जा कर सफ़ेदपोश से मिल गए और उसके इशारे पर चलने लगे?"

"जगन का तो समझ में आता है चाचा जी कि उसने अपने बड़े भाई की ज़मीन हड़पने के लिए ये सब किया होगा।" अभिनव ने कहा____"लेकिन सुनील और चेतन किस वजह से उस सफेदपोश के सुर में चलने लगे ये सोचने वाली बात है। संभव है कि इसके पीछे उनकी कोई मजबूरी रही होगी लेकिन ये पता करना ज़रूरी है कि दोनों ने सफ़ेदपोश के कहने पर क्या किया है? रही बात उन लोगों को सीधे पकड़ लेने की तो ऐसा करना ख़तरनाक भी हो सकता है क्योंकि अगर वो लोग किसी मजबूरी में सफ़ेदपोश का साथ दे रहे हैं तो ज़ाहिर है कि हमारे द्वारा उन्हें पकड़ लेने से उनकी या उनके परिवार वालों की जान को ख़तरा हो जाएगा।"

"हम अभिनव की बातों से सहमत हैं जगताप।" दादा ठाकुर ने कहा____"हम किसी भी मामले को जानने के लिए किसी निर्दोष की जान को ख़तरे में नहीं डाल सकते। बेशक हमारा उनसे बहुत कुछ जानना ज़रूरी है लेकिन इस तरीके से नहीं कि हमारी किसी ग़लती की वजह से उन पर या उनके परिवार पर संकट आ जाए। जहां अब तक हमने इंतज़ार किया है वहीं थोड़ा इंतज़ार और सही।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर जगताप अभी कुछ बोलने ही वाला था कि तभी एक दरबान अंदर आया और उसने दादा ठाकुर से कहा कि एक आदमी आया है और उनसे शीघ्र मिलना चाहता है। दरबान की बात सुन कर दादा ठाकुर ने कुछ पल सोचा और फिर दरबान से कहा ठीक है उसे अंदर भेज दो। दरबान के जाने के कुछ ही देर बाद जो शख़्स बैठक में आया। उसे देख दादा ठाकुर हल्के से चौंके। आने वाला शख़्स कोई और नहीं बल्कि शेरा था। दादा ठाकुर को समझते देर न लगी कि शेरा को उन्होंने जो काम दिया था उसमें वो कामयाब हो कर ही लौटा है। अगर वो कामयाब न हुआ होता तो वो अपनी शक्ल न दिखाता। दादा ठाकुर इस बात से अंदर ही अंदर खुश हो गए और साथ ही उनकी धड़कनें भी थोड़ा तेज़ हो गईं।

"प्रणाम मालिक।" शेरा ने हाथ जोड़ कर दादा ठाकुर को प्रणाम किया और फिर जगताप को भी।
"क्या बात है?" दादा ठाकुर ने शेरा की तरफ देखते हुए कहा____"इस वक्त तुम यहां? सब ठीक तो है न?"

"जी मालिक सब ठीक है।" शेरा ने अदब से कहा____"आपको एक ख़बर देने आया हूं। अगर आप मुनासिब समझें तो अर्ज़ करूं?"
"ज़रूरत नहीं है।" दादा ठाकुर कहने के साथ ही एक झटके में अपने सिंहासन से उठे, फिर बोले____"हम जानते हैं तुम क्या कहना चाहते हो। बस ये बताओ कहां हैं वो?"

शेरा ने जवाब देने से पहले बैठक में बैठे अभिनव और जगताप को देखा और फिर कहा____"माफ़ कीजिए मालिक लेकिन एक ही हाथ लगा है। मैं उसे अपने साथ ही ले कर आया हूं।"

शेरा की बात सुन कर दादा ठाकुर मन ही मन थोड़ा चौंके और फिर पलट कर बारी बारी से अपने बेटे अभिनव और छोटे भाई जगताप को देखा। उसके बाद कुछ सोचते हुए उन्होंने जगताप से कहा____"एक अच्छी ख़बर है जगताप।"

"कैसी ख़बर भैया?" जगताप ने उलझन भरे भाव से कहा____"और ये शेरा किसके हाथ लगने की बात कर रहा है?"
"हमने शेरा को एक बेहद ही महत्वपूर्ण काम सौंपा था" दादा ठाकुर ने कहा____"हमें ये तो उम्मीद थी कि ये हमारे द्वारा दिए गए काम को यकीनन सफलतापूर्वक अंजाम देगा लेकिन ये उम्मीद नहीं थी कि ये इतना जल्दी अपना काम कर लेगा। ख़ैर बात ये है कि शेरा के हाथ सफ़ेदपोश अथवा काले नकाबपोश में से कोई एक लग गया है और ये उसे अपने साथ ही ले कर आया है।"

"क...क्या??" जगताप से पहले अभिनव आश्चर्य से बोल पड़ा____"मेरा मतलब है कि क्या आप सच कह रहे हैं पिता जी?"
"बिलकुल।" दादा ठाकुर ने ख़ास भाव से कहा____"शेरा ने उनमें से किसी एक को पकड़ लिया है और उसे अपने साथ यहां ले आया है।" कहने के साथ ही दादा ठाकुर शेरा से मुखातिब हुए____"तुमने बहुत अच्छा काम किया है शेरा। तुम हमारी उम्मीद पर बिलकुल खरे उतरे। ख़ैर ये बताओ कि उनमें से कौन तुम्हारे हाथ लगा है?"

"मैं तो सफ़ेदपोश को ही पकड़ने के लिए उसके पीछे गया था मालिक।" शेरा ने कहा___"लेकिन बाग़ में अचानक से वो गायब हो गया। मैंने उसे बहुत खोजा लेकिन उसका कहीं पता नहीं चल सका। उसके बाद मैं काले नकाबपोश को खोजने लगा और आख़िर वो मुझे मिल ही गया। उसको अपने कब्जे में लेने के लिए मुझे उसके साथ काफी ज़ोरदार मुकाबला करना पड़ा जिसका नतीजा ये निकला कि आख़िर में मैंने उसे अपने कब्जे में ले ही लिया।"

"ये तो सच में बड़े आश्चर्य और कमाल की बात हुई भैया।" जगताप ने खुशी से कहा____"शेरा के हाथ उस सफ़ेदपोश का खास आदमी लग गया है। अब हम उसके द्वारा पलक झपकते ही सफ़ेदपोश तक पहुंच सकते हैं। उसके बाद हमें ये जानने में देर नहीं लगेगी कि हमारे साथ इस तरह का खेल खेलने वाला वो सफ़ेदपोश कौन है? बस एक बार वो मेरे हाथ लग जाए उसके बाद तो मैं उसकी वो हालत करूंगा कि दुबारा जन्म लेने से भी इंकार करेगा।"

"बेशक ऐसा ही होगा जगताप।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन तब तक हमें पूरे होशो हवास में रहना होगा। ख़ैर तुम शेरा के साथ जाओ और उस काले नकाबपोश को हवेली के किसी कमरे में बंद कर दो। हम सुबह उससे पूछताछ करेंगे।"

"सुबह क्यों भैया?" जगताप ने कहा____"हमें तो अभी उससे पूछताछ करनी चाहिए। उससे सफ़ेदपोश के बारे में सब कुछ जान कर जल्द से जल्द उस सफ़ेदपोश को खोजना चाहिए।"

"इतना बेसब्र मत हो जगताप।" दादा ठाकुर ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"धीरज से काम लो। हम जानते हैं कि तुम जल्द से जल्द हमारे दुश्मन को खोज कर उसको नेस्तनाबूत कर देना चाहते हो लेकिन इतना बेसब्र होना ठीक नहीं है। अब तो वो काला नकाबपोश हमारे हाथ लग ही गया है इस लिए सुबह हम सब उससे तसल्ली से पूछताछ करेंगे।"

"ठीक है भैया।" जगताप ने कहा____"जैसा आपको ठीक लगे।"
"हम तुम्हारे इस काम से बेहद खुश हैं शेरा।" दादा ठाकुर ने शेरा से कहा____"इसका इनाम ज़रूर मिलेगा तुम्हें?"
"माफ़ कीजिए मालिक।" शेरा ने हाथ जोड़ कर कहा____"आपके द्वारा इनाम लेने में मुझे तभी खुशी होगी जब उस सफ़ेदपोश को भी पकड़ कर आपके सामने ले आऊंगा।"

शेरा की बात सुन कर दादा ठाकुर मुस्कुराए और आगे बढ़ कर शेरा के बाएं कंधे पर अपना हाथ रख कर हल्के से दबाया। उसके बाद उन्होंने जगताप को शेरा के साथ जाने को कहा। जगताप और शेरा बैठक से बाहर आए। हवेली के एक तरफ दीवार के सहारे और दो दरबानों की निगरानी में काला नकाबपोश बेहोश पड़ा हुआ था। जगताप के कहने पर शेरा ने उसे उठा कर कंधे पर लाद लिया और फिर वो जगताप के पीछे पीछे हवेली के उत्तर दिशा की तरफ बढ़ता चला गया। जल्दी ही वो हवेली के एक तरफ बने एक सीलनयुक्त कमरे में पहुंच गया।

जगताप के कहने पर शेरा ने उस काले नकाबपोश को उस खाली कमरे में एक तरफ डाल दिया। काले नकाबपोश के चेहरे पर अभी भी काला नक़ाब था जिसे जगताप ने एक झटके से उतार दिया। कमरे में एक तरफ लालटेन का प्रकाश था इस लिए उस प्रकाश में जगताप ने उस आदमी को देखा। काला नकाबपोश उसे इस गांव का नहीं लग रहा था। जगताप की नज़र उसके एक हाथ पर पड़ी जो टूटा हुआ था। उसने पलट कर शेरा की तरफ देखा तो शेरा ने बताया कि मुकाबले में उसी ने उसका हाथ तोड़ा है, तभी तो वो उसके हाथ लगा था। ख़ैर, जगताप और शेरा कमरे से बाहर आ गए। जगताप के कहने पर एक दरबान ने उस कमरे के दरवाज़े की कुंडी बंद कर उसमें ताला लगा दिया।


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Nice update
 
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