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Thanks dr. SahabWah wah..
Raha fulo ki sangat me hamesha ..
Sangati me nirantar ki jagh ye likhe to flow aur achha banega.. just asking
Sujhaav acha laga.
Thanks dr. SahabWah wah..
Raha fulo ki sangat me hamesha ..
Sangati me nirantar ki jagh ye likhe to flow aur achha banega.. just asking
Wah kya tevar hai monde ke. Or ye bhosdi wala surajbhan isko abhimanu se bhida do sala bohot pitega.#48
मैं बस चंपा को देखता रहा मुझे इंतजार था सच सुनने का
चंपा- उस रात मैं दाई के पास गयी थी ,
मैं- तुझे दाई से क्या काम पड़ गया .
चंपा- क्योंकि मेरे पास और कोई चारा नहीं था . कबीर मैं पेट से हूँ.
चंपा ने जब ऐसा कहा तो मेरे कदमो के निचे से जमीन सरक गयी. मैंने अपना माथा पीट लिया . मैं सड़क किनारे धरती पर बैठ गया क्योंकि मेरे पैरो में शक्ति नहीं बची थी खड़ा होने की .
चंपा- उस रात मैं तीन लोगो से मिलना चाहती थी तुझसे, दाई से और अभिमानु से . मैं दाई के दरवाजे तक पहुँच तो गयी थी पर मेरी हिम्मत नहीं हुई की उसे बता सकू . फिर मैंने सोचा की तुझे बता दू पर एक बार फिर मैं हिम्मत नहीं कर पाई. तू मंगू वाली बात से वैसे ही नाराज था मेरे पास अब सिर्फ एक रास्ता था की मैं अभीमानु से मदद मांगू . मैं इसी कशमकश में उलझी थी की तभी उस कारीगर ने मुझ पर हमला कर दिया और किस्मत से तू वही आ गया .
मुझे बिलकुल समझ नही आ रहा था की मैं क्या कहूँ .
चंपा- बोल कुछ तो
मैं- कितने दिन का है ये
चंपा- शायद एक महीने का
मैं -तू नहीं जानती तूने क्या किया है . अरे मुर्ख किसी को भी अगर भनक हुई न तो तेरा क्या हाल होगा सोचा तूने.
चंपा- जानती हूँ इसीलिए मैंने सोचा की अभिमानु को सब सच बता दूंगी
मैं- तेरी खाल उतार देता वो .जानती है न अपने छोटो से कितना स्नेह है उसे . तेरी हरकत जान कर भैया मालूम नहीं क्या करते तब तो मरी ही मरी थी तू. पर तू फ़िक्र मत कर , करूँगा कुछ न कुछ . तुझे बच्चा गिराना होगा .
चंपा ने नजरे नीची कर ली.
मैं- अब क्या फायदा . मैंने तुझे कितना समझाया मुझे क्या तू बुरी लगती थी . ये गंद फैलाना होता तो मैं ही रगड़ लेता तुझे. और मंगू की तो मैं गांड ऐसी तोडूंगा याद रखेगा वो . तू जानती है मैं कितना परेशां हूँ भाभी ने मेरा जीना हराम किया हुआ है मेरे से मेरी उलझने नहीं सुलझ रही और तुम लोग रुक ही नहीं रहे रायता फ़ैलाने से.
चंपा- गलती हुई मुझसे . मैं तुझे वचन देती हूँ कबीर मैं आगे से ऐसा कुछ नहीं करुँगी.
मैं- तेरी गांड ना तोड़ दूँ मैं दुबारा ऐसा हुआ तो. बैठ अब मलिकपुर वाला काम निपटाके मैं ले चलूँगा शहर तुझे मेरा दिल तो नहीं कर रहा क्योंकि इस जीव का क्या दोष है . तेरे पापो की सजा इसे भुगतनि पड़ेगी . न जाने इस पाप की क्या सजा होगी.
बुझे मन से हम लोग मलिकपुर की तरफ चल दिए एक बार फिर से. वहां जाकर मैंने सुनार को राय साहब की चिट्ठी दी और चंपा ने अपना नाप दिया. सुनार ने बहुत देर लगाई तरह तरह के गहने दिखाता रहा वो हमें. वापसी में मैंने देखा की हलवाई ताजा जलेबी उतार रहा था चंपा को जलेबी बहुत पसंद थी तो मैंने हलवाई से कहा की थोड़ी जलेबी हमें दे. मैंने सोचा की तब तक मैं साइकिल में हवा भर लेता हूँ .चंपा जलेबी खा ही रही थी की उधर से सूरजभान निकल आया.
“उफ़ आज तो शहद ने शहद को चख लिया ” सूरजभान ने चंपा के होंठो से लिपटी चाशनी देखते हुए फब्ती कसी.
चंपा- होश में रह कर बात कर तेरा मुह तोड़ दूंगी
सूरजभान- मुह का मेरा सब कुछ तोड़ दे. ऐसा फूल देख कर दिल कर रहा है की चख लू मैं . बोल क्या खुशामद करू मैं तेरी .
सूरजभान अपनी गाड़ी से उतर कर चंपा के पास गया और उसका हाथ पकड़ लिया
चंपा- हाथ छोड़ मेरा
सूरजभान- तू एक बार दे दे . हाथ क्या मैं जहाँ छोड़ दू.
सूरजभान ने अपनी पकड़ मजबूत कर दी चंपा की कलाई पर .
“माना की घी का कनस्तर खुले में है पर कुत्ते को अपनी औकात नहीं भूलनी चाहिए . हाथ पकड़ ने से पहले सोच तो लेता की इसके साथ कौन है ” मैंने उन दोनों की तरफ आते हुए कहा .
सूरजभान ने पलट कर मुझे देखा और उसके चेहरे का रंग बदल गया .
सूरजभान- तू, तू यहाँ
मैं- हाथ छोड़ इसका
सूरजभान- नहीं छोडूंगा, मेरा दिल आ गया है इस पर तू कही और जाकर अपना मुह मार.
मैं- मुझे दुबारा कहने की आदत नहीं है . मेरी बात ख़त्म होने से पहले अगर तूने इसका हाथ नहीं छोड़ा तो तेरा हाथ तेरा कंधा छोड़ देगा .
सूरजभान- एक बार क्या तू जीत गया खुद को खुदा समझ रहा है उस दिन मैं नशे में था वर्ना तेरी हेकड़ी तभी मिटा देता.
मैं- आज तो नशे में नहीं है न तू .
सूरजभान ने चंपा का हाथ छोड़ दिया पर नीचता कर ही दी उसने . उसने चंपा के सीने पर हाथ फेर दिया. और मैंने उसकी गर्दन पकड़ ली.
मैं- भोसड़ी के , तुझे समझ नहीं आया मैंने कहा न ये मेरे साथ है फिर भी बहन के लंड तू मान नहीं रहा . जानना चाहता है , देखना चाहता है मेरे अन्दर जलती आग को.
सूरजभान ने एक मुक्का मेरे पेट में मारा और बोला- अभिमानु आया था . माफ़ी मांग कर गया था वो . कह रहा था की गलती हो गयी उसके भाई से माफ़ करो. उस से जाकर पूछना की सूरजभान कौन है . फिर बात करना . मैं वो आग हूँ जिसमे तू झुलसेगा नहीं जलेगा.
मैं- इतने बुरे दिन नहीं आये है की मेरे जीते जी मेरा भाई किसी से माफ़ी मांगे. तूने तो औकात से बड़ी बात कह दी . शुक्र मना की मैंने भैया से वादा किया है की खून खराबा नहीं करूँगा वर्ना दारा की लाश तूने देखि तो जरुर होगी . सोच मैं तेरे साथ क्या करूँगा.
मेरी बात सुन कर सूरजभान के चेहरे पर हवाइया उड़ने लगी वो पीछे सरक गया . मैंने चंपा का हाथ थामा और दुसरे हाथ में साइकिल लेकर आगे बढ़ गया .
“ये दुश्मनी बड़ी शिद्दत से निभाई जाएगी कबीर. शुरुआत तूने की थी अंत मैं करूँगा. मुझे शक् तो था पर तूने आज मोहर लगा दी . मैं कसम खाता हूँ तू रोयेगा. तू भीख मांगेगा मौत की और मैं हसूंगा ” सूरजभान ने पीछे से कहा
मैं- इंतजार रहेगा मुझे उस दिन का
मैंने बिना उसकी तरफ देखे कहा .
सूरजभान- पहला झटका तो तूने देख ही लिया अपनी बर्बाद फसलो को देखना तुझे मेरी याद आयेगी
उसकी ये बात सुनकर मैं बुरी तरह चौंक गया तो क्या नहर टूटने में इस मादरचोद का हाथ था. पर मैंने सब्र किया क्योंकि मेरे साथ चंपा थी . दो पल मैं रुका और बोला- तेरे बाप ने मर्द पैदा किया है तुझे तो ये रांड वाली हरकते मत करना . शेर का शिकार करने के लिए शेर का कलेजा ही चाहिए चूहे का नहीं . जिस दिन तुझे लगे की तू इस काबिल है की कबीर को टक्कर दे सकता है मिलना मुझसे . तेरी एक एक हड्डी को तेरे बंद से निकाल लूँगा.
सूरजभान- वो दिन जल्दी ही आएगा.
मैंने उस को अनसुना किया और आगे बढ़ गया.
Ohh my god to kabir ko katil mil hi gaya. Per ant. Me kya gajab ho gaya?#49
चंपा- कौन था ये और तुझे कैसे जानता है
मैं- लम्बी कहानी है तू सुन नहीं पायेगी मैं बता नहीं पाउँगा
चंपा- तेरे सामने उसने मुझे पकड़ा तेरा खून नहीं खौला इतना निर्मोही हो गया तू
मैं- खून तो मेरा उस दिन से खौल रहा है . खून तो मेरा तब से उबल रहा है जब से मुझे मालूम हुआ की तेरे पेट में बच्चा है . ये तेरी खुशकिस्मती है जो मैं शांत हूँ, रही बात उस सूरजभान की तो मैं जानता हु मैं क्या कर सकता हूँ इसलिए खुद को रोका है .एक बार बेकाबू हुआ था आज तक पछतावा है मुझे. मेरे मन में बहुत सवाल है चंपा इतने की मैं पूछता रहूँगा तू जवाब देते देते थक जाएगी. फ़िलहाल मेरी इच्छा है की किसी तरह तेरा ब्याह हो जाये और तू यहाँ से राजी ख़ुशी निकल जाये मैं नहीं चाहता की एक और लाली की लाश पेड़ पर टंगी मिले.
चंपा फिर कुछ नहीं बोली. तनहा दिल लिए हम दोनों वापिस घर आये. मैंने उस से चाय बनाने को कहा और हाथ मुह धोनेचला गया . चबूतरे पर बैठ कर मैं चुसकिया ले रहा था की भैया आ गए.
मैं- आपसे मिलने की ही सोच रहा था मैं .
भैया- हाँ छोटे बता क्या कहना था .
मैं- मुझे कुछ पैसे चाहिए थे .
भैया ने दस दस के नोटों की गद्दी निकाली और मुझे दे दी .
मैं- पचास वाली की जरूरत है भाई
भैया ने एक बार मेरी तरफ देखा और बोले- हाँ क्यों नहीं
भैया ने बड़े नोटों की गद्दी मुझे दी.
मैं- एक बात पूछनी थी
भैया- पहेलियाँ क्यों बुझा रहा है जो मन में है सीधा कह न
मैं- सूरजभान से माफ़ी मांगने की क्या जरुरत आन पड़ी थी आपको . आप जानते है की मेरा भाई मेरा गुरुर है और मेरी वजह से मेरे भाई को झुकना पड़े ये बर्दाश्त नहीं होगा मुझे
भैया- तू भी न छोटी छोटी बातो को दिल से लगा लेता है . हम व्यापारी आदमी है . हमें अपना रसूख देखना है हम लोग समय आने पर लोगो को झुकाते है . एक बार बात आई गयी करने के हमें भविष्य में फायदे मिलेंगे.
भैया झूठ बोल रहे थे मैं एक पल में जान गया था . मेरा भाई , मेरा बाप जिनके आगे दुनिया झुकती थी वो किसी के आगे हाथ जोड़ दे. मामला कुछ और ही था . पर मैं भैया के आगे कुछ नहीं बोला.
मैं- भैया , वो चंपा की तबियत कुछ ठीक नहीं है आप की आज्ञा हो तो मैं उसे शहर के डॉक्टर को दिखा लाऊ
भैया- ये कोई पूछने की बात है . जायेगा तो तेरा कन्धा भी दिखा आना
मैंने हाँ में सर हिलाया . तभी भाभी ने भैया को आवाज दी तो वो चले गए .
मेरा दिल कर रहा था की मैं मंगू से पुछु पर चाह कर भी हिम्मत नहीं कर पाया. अँधेरा घिरने लगा था मैंने शाल ओढा और अलाव जला कर बैठ गया . सामने बहुत सी समस्या थी सूरजभान ने मेरी फासले डुबाने को नहर तोड़ दी. मेरे साथ और भी गाँव वालो का नुकसान हुआ था . मैंने सोचा की इस मामले को पांच गाँवो की महापंचायत में उठाऊ पर सूरजभान धूर्त था वो साला साफ़ मुकर जाता और मेरे पास सबूत नहीं था .
जमीनों की रखवाली के लिए मजदुर लगा नहीं सकता था क्योंकि उस हमलावर के खौफ से कोई तैयार नहीं था जान सबको प्यारी थी. आज से चांदनी राते शुरू हो रही थी जितने भी हमले हुए थे इन चांदनी रातो में हुए थे . क्या ये सिलसिला फिर से शुरू होगा ये सोच कर मेरी झुरझुरी छूट गयी .
“खाने में क्या बनाऊ कबीर ” चंपा ने मुझसे पूछा तो मेरी तन्द्रा टूटी.
मैं- भूख नहीं है
चंपा मेरे पास बैठी और बोली- जानती हु तू मेरी वजह से परेशां है .
मैं- तेरी वजह से क्यों परेशां होने लगा मैं. मुझे और भी बहुत समस्या है .
चंपा- तेरा हक़ बनता है मुझसे नाराज होने का .
मैं- मेरे हक़ की बात करती है तू . मेरा हक़ था तेरी दोस्ती का मैं अपनी दोस्ती निभा रहा हूँ. मरते दम तक निभाऊंगा .
सर में दर्द हो रहा था तो मैं बिस्तर में घुस गया . न जाने कितनी देर बाद मेरी आँख खुली . कमरे में घुप्प अँधेरा था . प्यास के मारे गला सूख रहा था . मैं पानी के लिए मटके के पास गया . पानी पी ही रहा था की मुझे लगा खिड़की पर कोई है . इतनी रात में हमारी खिड़की पर कौन हो सकता है . मैंने चुपचाप दबे पाँव दरवाजा खोला और खिड़की के पास गया . वहां कोई नहीं था सिवाय सन सनाती सर्द हवा के.
मैं अच्छी तरह से जानता था की मेरा वहम तो कतई नहीं था . चूँकि आज बिजली नही थी तो मुझे दिक्कत हो रही थी अँधेरे में देखने के लिए. तभी भैंसों की चिंघाड़ से मेरे कान सतर्क हो गए. मैं तुरंत उस तरफ भागा ये हमारे पड़ोसियों का तबेला था . मैंने देखा की तबेले का दरवाजा खुला हुआ था और अन्दर एक भैंस दर्द से बिलख रही थी उस पर कोई झुका हुआ था .
“बस बहुत हुआ . बहुत खून पी लिया तूने अब और नहीं ” मैंने कहा
वो जो भी था उसने पलट कर मुझे देखा और उसकी लाल आँखे मुझे ऊपर से निचे तक देखने लगी.
“तू जो भी है जैसा भी है . मैं उम्मीद करता हूँ की तू मेरी बात समझ रहा होगा. आज मैं तुझे जाने नहीं दूंगा. आज की रात तू मुझसे मुकाबला कर या तो तू नहीं या मैं नहीं ” मैंने जोर देकर कहा.
वो शक्श दो पल मेरे करीब आकर मुझे देखता रहा और फिर उसने दूसरी तरफ छलांग लगा ही दी थी की मैंने उसका हाथ पकड़ लिया
मैं- नहीं . बिलकुल नहीं .
मै पहले ही गुस्से से भरा था ऊपर से इसकी ही तो तलाश थी मुझे . इसे अगर आज जाने देता तो फिर ये किसी न किसी को मारता . मैंने खीच कर मुक्का उसकी नाक पर मारा . वो कुछ कदम पीछे सरका और अगले ही पल उसने मेरी गर्दन पकड़ ली. उसकी मजबूत पकड़ मेरी सांसो को रोकने लगी. मैं छुटने की भरपूर कोशिश कर रहा था पर नाकामी ही मिली मैंने उसके पेट पर लात मारी उसने मुझे हवा में फेंक दिया.
पर आज मैं कोई मौका उसे नहीं देना चाहता था . मैंने उसका पैर पकड़ा और उसे पीछे की तरफ खींचा . इसी बीच उसके नाखून मेरी शर्ट को फाड़ गए. वो भागता इस से पहले ही मैंने उसे पटक दिया. तबेले का दरवाजा जोर की आवाज करते हुए टूट कर बिखर गया. हम दोनों गली में आ गए. वो उठ खड़ा हुआ उसने अपने कंधे चटकाए और दो तीन मुक्के मारे मेरे सीने पर. मुझे महसूस हुई उसकी ताकत .
पर आज कबीर ने ठान लिया था की इस किस्से को यही ख़त्म करना है .
मैं- चाहे जितनी कोशिश कर ले आज या तो तू नहीं या मैं नहीं.
इस बार मैंने उसे उठा कर फेंका तो वो बैलगाड़ी के पहिये में लगे लोहे के टुकड़े से जा टकराया. जोर से चीखा वो .
मैं- जिनको तूने मारा वो भी ऐसे ही चीखे होंगे न.
मैं उसके पास गया और उसके पाँव को मरोड़ने लगा. पर तभी साला गजब ही हो गया.
बहुत खूब लिखा है भाई ...एक बात तो मुझे भी खटक रही कि कहीं चंपा को अभिमानु तो नहीं पेल दिया...
या हो सकता है मंगू ही हो ... लेकिन कोई सीधा मामला तो ये कतई नहीं लग रहा... लेकिन जिस तरह से सूरजभान ने कबूला है कि उसने उसकी फसल बर्बाद की उसकी गान्ड तो टूटनी है ....
मुझे भी यही शक है
साला अब कौन है ये तो हर बार अपनी मां बहन कराने आ जाता है कहीं ये अभिमानु तो नहीं जिस पर किसी तरह का साया हो .... जहां तक है मुझे तो यही लग रहा है जिस तरह की शक्तियों का वर्णन हो रहा है जिस तरह से अभिमानु की शक्तियों वृद्धि हुई है वो इस ओर इशारा करते हुए नजर आ रहे हैं बाकी ये कौन है जो अंधेरे में निकल कर बाहर आता है
are wahh ek or update maza gya lekin fir suspense pe chhod diya very bad Bhai ji. Bechara kabir har angle ko smjhne ki koshish kr rha hai. Akhir kabir kii hi kyo nind khulti hai rat me jab bhi koi kaand hone wala hota hai. OR mauka -e-wardat pe pahunch jata hai. Ab Kya gajab Ho Gya. Murderer ko pehchan Liya gya.? Kon Ho Skta hai ye bhaiya hai? Ya mangu.? Qki bhaiya ka power badhna shq hone ka sanket deta hai. Rhi baat mangu ki to jo fattu tha woh diler nikla behan se hi sharirik smbandh bana Kr usne bataya ki woh lallu nahi hai. Ek baat OR kehna chahunga ke ray sahab jb tk gaon se bahar the koi ata pta nahi tha murderer ka unke ate hi murderer active Ho gya. Sachaai Kya hai ye To ane wala update hi btayega.#49
चंपा- कौन था ये और तुझे कैसे जानता है
मैं- लम्बी कहानी है तू सुन नहीं पायेगी मैं बता नहीं पाउँगा
चंपा- तेरे सामने उसने मुझे पकड़ा तेरा खून नहीं खौला इतना निर्मोही हो गया तू
मैं- खून तो मेरा उस दिन से खौल रहा है . खून तो मेरा तब से उबल रहा है जब से मुझे मालूम हुआ की तेरे पेट में बच्चा है . ये तेरी खुशकिस्मती है जो मैं शांत हूँ, रही बात उस सूरजभान की तो मैं जानता हु मैं क्या कर सकता हूँ इसलिए खुद को रोका है .एक बार बेकाबू हुआ था आज तक पछतावा है मुझे. मेरे मन में बहुत सवाल है चंपा इतने की मैं पूछता रहूँगा तू जवाब देते देते थक जाएगी. फ़िलहाल मेरी इच्छा है की किसी तरह तेरा ब्याह हो जाये और तू यहाँ से राजी ख़ुशी निकल जाये मैं नहीं चाहता की एक और लाली की लाश पेड़ पर टंगी मिले.
चंपा फिर कुछ नहीं बोली. तनहा दिल लिए हम दोनों वापिस घर आये. मैंने उस से चाय बनाने को कहा और हाथ मुह धोनेचला गया . चबूतरे पर बैठ कर मैं चुसकिया ले रहा था की भैया आ गए.
मैं- आपसे मिलने की ही सोच रहा था मैं .
भैया- हाँ छोटे बता क्या कहना था .
मैं- मुझे कुछ पैसे चाहिए थे .
भैया ने दस दस के नोटों की गद्दी निकाली और मुझे दे दी .
मैं- पचास वाली की जरूरत है भाई
भैया ने एक बार मेरी तरफ देखा और बोले- हाँ क्यों नहीं
भैया ने बड़े नोटों की गद्दी मुझे दी.
मैं- एक बात पूछनी थी
भैया- पहेलियाँ क्यों बुझा रहा है जो मन में है सीधा कह न
मैं- सूरजभान से माफ़ी मांगने की क्या जरुरत आन पड़ी थी आपको . आप जानते है की मेरा भाई मेरा गुरुर है और मेरी वजह से मेरे भाई को झुकना पड़े ये बर्दाश्त नहीं होगा मुझे
भैया- तू भी न छोटी छोटी बातो को दिल से लगा लेता है . हम व्यापारी आदमी है . हमें अपना रसूख देखना है हम लोग समय आने पर लोगो को झुकाते है . एक बार बात आई गयी करने के हमें भविष्य में फायदे मिलेंगे.
भैया झूठ बोल रहे थे मैं एक पल में जान गया था . मेरा भाई , मेरा बाप जिनके आगे दुनिया झुकती थी वो किसी के आगे हाथ जोड़ दे. मामला कुछ और ही था . पर मैं भैया के आगे कुछ नहीं बोला.
मैं- भैया , वो चंपा की तबियत कुछ ठीक नहीं है आप की आज्ञा हो तो मैं उसे शहर के डॉक्टर को दिखा लाऊ
भैया- ये कोई पूछने की बात है . जायेगा तो तेरा कन्धा भी दिखा आना
मैंने हाँ में सर हिलाया . तभी भाभी ने भैया को आवाज दी तो वो चले गए .
मेरा दिल कर रहा था की मैं मंगू से पुछु पर चाह कर भी हिम्मत नहीं कर पाया. अँधेरा घिरने लगा था मैंने शाल ओढा और अलाव जला कर बैठ गया . सामने बहुत सी समस्या थी सूरजभान ने मेरी फासले डुबाने को नहर तोड़ दी. मेरे साथ और भी गाँव वालो का नुकसान हुआ था . मैंने सोचा की इस मामले को पांच गाँवो की महापंचायत में उठाऊ पर सूरजभान धूर्त था वो साला साफ़ मुकर जाता और मेरे पास सबूत नहीं था .
जमीनों की रखवाली के लिए मजदुर लगा नहीं सकता था क्योंकि उस हमलावर के खौफ से कोई तैयार नहीं था जान सबको प्यारी थी. आज से चांदनी राते शुरू हो रही थी जितने भी हमले हुए थे इन चांदनी रातो में हुए थे . क्या ये सिलसिला फिर से शुरू होगा ये सोच कर मेरी झुरझुरी छूट गयी .
“खाने में क्या बनाऊ कबीर ” चंपा ने मुझसे पूछा तो मेरी तन्द्रा टूटी.
मैं- भूख नहीं है
चंपा मेरे पास बैठी और बोली- जानती हु तू मेरी वजह से परेशां है .
मैं- तेरी वजह से क्यों परेशां होने लगा मैं. मुझे और भी बहुत समस्या है .
चंपा- तेरा हक़ बनता है मुझसे नाराज होने का .
मैं- मेरे हक़ की बात करती है तू . मेरा हक़ था तेरी दोस्ती का मैं अपनी दोस्ती निभा रहा हूँ. मरते दम तक निभाऊंगा .
सर में दर्द हो रहा था तो मैं बिस्तर में घुस गया . न जाने कितनी देर बाद मेरी आँख खुली . कमरे में घुप्प अँधेरा था . प्यास के मारे गला सूख रहा था . मैं पानी के लिए मटके के पास गया . पानी पी ही रहा था की मुझे लगा खिड़की पर कोई है . इतनी रात में हमारी खिड़की पर कौन हो सकता है . मैंने चुपचाप दबे पाँव दरवाजा खोला और खिड़की के पास गया . वहां कोई नहीं था सिवाय सन सनाती सर्द हवा के.
मैं अच्छी तरह से जानता था की मेरा वहम तो कतई नहीं था . चूँकि आज बिजली नही थी तो मुझे दिक्कत हो रही थी अँधेरे में देखने के लिए. तभी भैंसों की चिंघाड़ से मेरे कान सतर्क हो गए. मैं तुरंत उस तरफ भागा ये हमारे पड़ोसियों का तबेला था . मैंने देखा की तबेले का दरवाजा खुला हुआ था और अन्दर एक भैंस दर्द से बिलख रही थी उस पर कोई झुका हुआ था .
“बस बहुत हुआ . बहुत खून पी लिया तूने अब और नहीं ” मैंने कहा
वो जो भी था उसने पलट कर मुझे देखा और उसकी लाल आँखे मुझे ऊपर से निचे तक देखने लगी.
“तू जो भी है जैसा भी है . मैं उम्मीद करता हूँ की तू मेरी बात समझ रहा होगा. आज मैं तुझे जाने नहीं दूंगा. आज की रात तू मुझसे मुकाबला कर या तो तू नहीं या मैं नहीं ” मैंने जोर देकर कहा.
वो शक्श दो पल मेरे करीब आकर मुझे देखता रहा और फिर उसने दूसरी तरफ छलांग लगा ही दी थी की मैंने उसका हाथ पकड़ लिया
मैं- नहीं . बिलकुल नहीं .
मै पहले ही गुस्से से भरा था ऊपर से इसकी ही तो तलाश थी मुझे . इसे अगर आज जाने देता तो फिर ये किसी न किसी को मारता . मैंने खीच कर मुक्का उसकी नाक पर मारा . वो कुछ कदम पीछे सरका और अगले ही पल उसने मेरी गर्दन पकड़ ली. उसकी मजबूत पकड़ मेरी सांसो को रोकने लगी. मैं छुटने की भरपूर कोशिश कर रहा था पर नाकामी ही मिली मैंने उसके पेट पर लात मारी उसने मुझे हवा में फेंक दिया.
पर आज मैं कोई मौका उसे नहीं देना चाहता था . मैंने उसका पैर पकड़ा और उसे पीछे की तरफ खींचा . इसी बीच उसके नाखून मेरी शर्ट को फाड़ गए. वो भागता इस से पहले ही मैंने उसे पटक दिया. तबेले का दरवाजा जोर की आवाज करते हुए टूट कर बिखर गया. हम दोनों गली में आ गए. वो उठ खड़ा हुआ उसने अपने कंधे चटकाए और दो तीन मुक्के मारे मेरे सीने पर. मुझे महसूस हुई उसकी ताकत .
पर आज कबीर ने ठान लिया था की इस किस्से को यही ख़त्म करना है .
मैं- चाहे जितनी कोशिश कर ले आज या तो तू नहीं या मैं नहीं.
इस बार मैंने उसे उठा कर फेंका तो वो बैलगाड़ी के पहिये में लगे लोहे के टुकड़े से जा टकराया. जोर से चीखा वो .
मैं- जिनको तूने मारा वो भी ऐसे ही चीखे होंगे न.
मैं उसके पास गया और उसके पाँव को मरोड़ने लगा. पर तभी साला गजब ही हो गया