Update:-39 (B)
अपस्यु की कोई गलती नहीं थी। किसी लड़की ने अाकर उसे टोका, उसने अपस्यु को छलावा दिया और दे भी क्यों ना उसकी बात ही जुदा है। मेरी तरह कोई भी लड़की उसे पहली नजर में देख कर मर मिटे। किंतु मै जलन के मारे अपस्यु को ही उल्टा सीधा सुना दी।
जानती हो कमाल कि बात, इतना सुनने के बाद भी वो मुस्कुराता रहा और चंद शब्द के अलावा उसने बहुत ज्यादा कोशिश भी नहीं की सफाई देने की। वो मुकुरता रहा और मेरी बचपना को वो मेरा प्यार समझकर भूल गया। और एक मैं थी, मुंह फुलाकर बैठी थी इस उम्मीद में कि वो मुझसे माफी मांगे।
क्या करूं लड़की हूं ना दिल के किसी कोने में ऐसी भावना छिपी ही रहती है। ईर्ष्या जो किसी भी अनचाहे मामले में हो जाए और जान-बूझ कर रूठ जाना ताकि कोई हमे भी मानने आए, और बात यहीं से बिगड़ती चली गई। अपस्यु का पूरा फोकस शायद तुम पर था, इसलिए उसने मेहसूस तो किया मेरी भावनाओ को, लेकिन टाल सिर्फ इस वजह से दिया क्योंकि अभी उसे अपने परिवार की चिंता थी।
इसी क्रम में मेरी जलन और अंधी भावना, ये भी ना देख पाई कि अपस्यु किस के पीछे है। वो अपनी बहन को मानने आया था और मै कुछ और ही समझ बैठी। एक बार फिर उसे गलत समझी और अकेले ही फैसला कर लिया की वो मुझे धोका दे रहा है।
अब ये भी तो प्यार की ही भावना थी। उसे खोने के डर ने मुझे इस कदर पागल किया कि मैंने जिसे प्यार किया उसे है गलत समझ बैठी। लेकिन उसे गलत समझते - समझते कब मेरी सोच ही गलत हो गई मुझे खुद भी पता ना चला।
वो पूरी रात मै नफरत में जली, नफरत ने इतना अंधा किया कि मेरे एक दोस्त ने मेरे बताए कुछ तथ्यों के आधार पर अपस्यु को धोखेबाज साबित कर दिया। हालांकि वो भी गलत नहीं था क्योंकि उसे सारी बातें तो मैंने ही बताई थी और उसने अपनी जिम्मेदारी समझी और मुझे सच से अवगत करवाया। लेकिन मैं ही बेवकूफ थी जो केवल एकतरफा बात सोची, उसे सच माना। शायद अपस्यु से पहले बात करती तब उस दोस्त की बातें मेरे दिमाग में घर नहीं करती और ना ही मैं अपस्यु को ऐसा लड़का समझने कि भूल करती जो मेरा केवल इस्तमाल करना चाह रहा था।
लेकिन क्या ही कर सकते हैं, जब अपनी ही बुद्धि पर ताला लगा हो। अगले दिन उसी जली-बुझी भावना के साथ मै अपस्यु से मिली। मेरे दिल और दिमाग में उसकी धोखेबाज वाली छवि ऐसी छाई, की मेरे अंदर का प्यार कहीं मर सा गया और नफरत ही नफरत में, जो जी में आया कहती चली गई। ऐसा भी नहीं था कि उसे मैंने अकेले में सुनाया था। तुम और आरव भी तो थे वहां। उसके साथ-साथ कैंटीन में ना जाने कितने लोगों ने सुना होगा।
वो तब भी मुस्कुराता ही रहा। उसे अंदाजा था शायद मेरी पिरा और जलन का। वो तो यही मान कर चल रहा था कि सरप्राइज वाले दिन मुझे ना समय दे कर पूरा समय तुम्हारे पास लग गया तो कुछ गलतफहमियां मुझे हुई है। जबकि अभी तो बातें हम दोनों के दिल में ही थी, ना कोई इजहार हुआ था और ना ही कोई इनकार, फिर भी वो मुस्कुराता रहा। भरी महफ़िल की बेइज्जती झेलता रहा।
कमाल की बात पता है क्या है। जब उसने परिवार को पा लिया ना तब बीती सारी बातों को, मेरी सारी गलतियों को नज़रंदाज़ करते, मुझे मनाने भी पहुंचा अपस्यु। मेरे पास बैठा, मुझ से बातें करने की कोशिश भी किया। और मैंने क्या किया उसकी कोशिश पर पहला तमाचा मैंने अपने हाथों से मेरा।
इतनी अंधी हो गई की उसको थप्पड मारा। मैंने अपने अपस्यु पर हाथ उठाया। तुम्हे पता है उसका लेवेल हम लोगों जैसा नहीं है, बिल्कुल भी नहीं। वो तो अपने आप में प्रतिष्ठावान है, जिसकी ना तो किसी के साथ तुलना की जा सकती है और ना ही समानता। उसको थप्पड मारना मतलब उसकी आत्मा पर हाथ उठाना है क्योंकि उसका कैरेक्टर ही इतना ऊंचा है। मैंने उसके गाल पर नहीं बल्कि उसके आत्मसम्मान पर थप्पड मारा था।
और जानती हो कुंजल उसने क्या किया, अपने चारो ओर देखा कि कहीं किसी ने देखा तो नहीं और अपमान का ये घूंट पीकर मुस्कुराता रहा। और मैं पागल, मुझे अब भी एहसास नहीं हुआ की मैं ये क्या कर चुकी थी। काश यहां पर भी रुक जाति तो भी वो इतने समझदार है कि मेरे लिए प्यार भी रहता और मुझे एहसास भी करवा जाते की मैंने क्या गलती किया था।
पर मैं रुकने को तैयार कहां थी। भरी महफिल में उनके चेहरे पर काफी फेकी मैंने। ये मेरा गुस्सा नहीं था, ये मेरा अपस्यु को गलत समझकर उठाया गया कदम भी नहीं था। ये मेरा अहंकार था, बस मैं सही हूं और वो धोखेबाज, और धोखेबाज के साथ कुछ भी किया जा सकता है। बस इसी अहंकार ने मुझे बाजारू बनने पर मजबूर कर दिया।
हां सही सुना कुंजल, बाजारू हरकतें। रील लाइफ में चलने वाले नजारे जिसका सभ्य समाज में दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं वो हरकत मै अपस्यु के साथ कर बैठी। मैंने पूरे कैंटीन के सामने उसके मुंह पर कॉफी से भरा कप उड़ेल दिया। इतनी घटिया हरकत।
और मज़े कि बात जानती हो क्या है, ये मेरा वहीं अपस्यु है जो मुझे दिन रात अपने बालकनी से खड़ा देखा करता था। मैं बेवकूफ, अपनी होशियारी दिखाने के लिए एक दिन जानबुझ कर अपस्यु के साथ बाइक में बैठी थी, पता है क्यों। क्योंकि मुझे लगा ये मुझ पर फिदा है तो मैं इसे अपने झासे में फसा कर अपना काम निकलवा लूंगी।
मै बेवकूफ उसे किस कैटिगरी का आंक रही थी और ये भी एक सबूत है मेरे निचले स्तर के सोच का। मैं कितना घटिया सोच रखती थी। और उस दिन भी हुआ क्या था। मैं उसे रिझाने के लिए बातो का जाल बुन रही थी और उसने सीधा पूछ लिया काम क्या है। वो जान रहा था कि मैं बस नखरे कर रही हूं कि, कोई काम नहीं, लेकिन फिर भी जोड़ डालकर पूछता रहा।
मेरे पापा और मेरे चाचा दोनों बहुत बड़े सरकारी अधिकारी हैं। लेकिन मेरे चचा ने जब होम मिनिस्टर के बेटे का नाम सुना तो उनकी कपकपी निकल गई। उन्हें अपने बच्चों के साथ क्या बुरा सुलूक हुआ, वो जानने की कोशिश भी नहीं किए। बस ये चिंता थी कि होम मिनिस्टर से उलझे, तो वो क्या-क्या कर सकता है और इसी डर कि वजह से उन्होंने यहां तक कह दिया कि कॉलेज बदल लो।
वो अपस्यु ही था जिसे मै झांसा देकर होम मिनिस्टर से उलझाने कि कोशिश कर रही थी। ताकि प्यार में पागल एक अंधा मेरे जाल में फसकर बस उससे उलझ जाए और उसका सारा फोकस फिर अपस्यु पर हो और मैं निकल जाऊं। बात एक लड़की के स्वाभिमान की थी इसलिए अपस्यु को इसमें कोई बुराई नहीं लगी जबकि उसे पता था वो किस से भिड़ने को सोच रहा है।
एक ही दिन में सरा मामला सुलझा भी दिया और मुझ से कभी इस बारे में सवाल तक नहीं किया, "की मैं खुद की जान बचाने के लिए किसी को कैसे फसा सकती हूं।" इतना स्वार्थी कोई कैसे हो सकता है। लेकिन उसका जवाब है ना .. वो मैं हूं। जिसने मेरे आत्मसम्मान की रक्षा की उसके है आत्मसम्मान हनन मैंने कर दिया।
थोड़ी अक्ल तब ठिकाने अाई, जब उसने मुझसे कहा…. "कभी कभी हम गलत जगह दिल लगा लेते है।" वो चाहता तो वो मेरे इस बाजारू हरकत पर अच्छे से जवाब दे देता लेकिन उसने इस गम को भी पी लिया।
जानती हो कुंजल जब अपस्यु ने कहा ना "कभी कभी हम गलत जगह दिल लगा लेते हैं।" तब मै इसका मतलब नहीं समझ पाई। मै अब भी अपने ही अहंकार में थी। लेकिन कोई अपने कर्मा से कब तक भाग पाया है, अपस्यु नहीं तमाचा मरेगा तो वो ऊपरवाला तो तमाचा मरेगा ही। और विश्वास मानो कुंजल, वो जब तमाचा मारता है ना तो गाल पर नहीं बल्कि सीधा रूह पर पड़ती है।
पहला तमाचा वहीं के वहीं पड़ा, जब अपस्यु पर मैंने कॉफी फेकी और वो चुपचाप जा रहा था। वहां वो एक लड़की से मिला। काफी खूबसूरत और कुछ खुले गले के कपड़े भी पहन कर अाई थी। अपस्यु की ना तो नजरें बेईमान और ना ही उसकी नज़रों में खोंट। उसकी आंख से आंख मिला कर अपस्यु काम की बात करता रहा। दूसरा तमाचा भी उसी वक़्त पड़ा जब पता चला कि मशहूर वकील सिन्हा अपस्यु को उसके 1 केस का मेहनताना 40 लाख रुपया देते है।
ना तो सिन्हा के पास कोई केस की कमी है और अपस्यु जैसे फोकस इंसान के लिए काम आने कभी कम नहीं वाले। वो एक महंगी कार क्या अपने दम पर 10 मंहगी कर खरीद सकता था।
अब तो जैसे मेरी रूह सिहर रही थी। वहीं पीछे मुड़ कर मैंने कैंटीन को देखा जहां पर सभी स्टूडेंट हमारी वीडियो बना रहे थे… पहली बार पूरा एहसास हुआ, ये मैंने क्या कर दिया। मेरी रूह सिहर गईं। माफी मांगने की कोशिश में लग गई पर किस मुंह से माफी मांगती। हिम्मत ही टूट गई थी।
पछतावा हो रहा था पर पश्चाताप करना अभी बाकी था। इसलिए मैंने सोच लिया था, आज जब कॉलेज जाऊंगी और अपस्यु से बातें करूंगी तो खुद में संयम रखकर, बिना किसी भाव के ये जानने की कोशिश करूंगी, कि अपस्यु मुझसे कितना नाराज हैं? उससे एक बार बात करने के लिए भले ही उसके पीछे मुझे लगना क्यों ना पड़े, लेकिन बात करना ही है।
मै क्लास में थी और अपस्यु को डरती हुई पूछने लगी "हम कहीं बात कर सकते है क्या?" मुझे लगा नाराज है तो घुरेगा थोड़ा चिल्लाएगा और माना कर देगा बात करने से। लेकिन मै फिर गलत थी। बिना किसी भी किंतु-परन्तु के वो राजी हो गया।
अपस्यु और मै बात करने के लिए कॉलेज के बाहर वाले कैंटीन में गए। मेरी विडम्बना देखो कुंजल जिस कॉलेज के कैंटीन में मैंने अपस्यु को इतना अपमानित किया, मुझे डर था कहीं अपस्यु का गुस्सा फूटा तो मुझे वहां कैसा मेहसूस होगा। वाह री इंसानी फितरत और कमाल की सोच। मुझे माफी मांगनी थी, अपनी भूल का पश्चाताप करना था और दिल में ये ख्याल भी साथ चल रहा था कि कहीं अपस्यु वहां बेईज्जत ना कर दे।
मेरी एकतरफा सोच मुझे एक बार फिर झटका देने वाली थी। उस कैंटीन के मुलाकात के बाद तो जैसे लगा की मेरी दुनिया ही उजड़ गई है। अपस्यु के दिल में मेरे लिए ना तो नफरत थी और ना ही प्यार। कोई भावना ही नहीं बची उसके पास मेरे लिए जो वो मुझे नफरत में या प्यार में याद कर सके। मैं बस उसकी एक क्लासमेट बन कर रह गई। बात करती हूं तो बात कर लेता है और मज़ाक करती हूं तो हंस लेता है। उसके बाद वो अपने रास्ते चल देता है।
उस दिन में बाद जब भी कॉलेज में वो मुझे दिखा, हमेशा हंसते हुए ही दिखा। मैं उसके दिल, दिमाग और जिंदगी से गायब हो चुकी थी। यूं तो वो हंस के ही बात करता है मुझसे, और ना ही कभी भी मुझे घुमा-फिरा कर कभी तना मारा । बस उसके बात करने का ढंग ही बदल गया। पहले जब बात करता तो लगता मैं क्लोज हूं उसके अब सिर्फ अनजान बनकर रह गई हूं।
पिछले 13-14 दिनों में मैं जिस दौड़ से गुजरी हूं शायद वहीं मेरी सजा है। अपने प्यार को अपने नजरों के सामने देखना और उसकी नज़रों में एक मामूली लड़की बनकर रह जाना, जैस कॉलेज की अन्य लड़कियां जिससे वो वैसे ही बात करता है जैसा कि मुझसे।
अभी जो तुम मेरा खिला रूप देख रही थी और अपस्यु के साथ जोड़-जबरदस्ती करना, वो मात्र एक छलावा था। 3-4 दिन पहले भी मैंने ऐसा किया था। अपने रूप से उसे मोहने की कोशिश की थी, हां कुछ पल के लिए अपस्यु भी फिसला था, लेकिन वो प्यार नहीं बल्कि उकसाती भावना की एक वासना थी जिसके मद में वो थोड़ा बहका और मै तो गई ही थी उसी इरादे से।
आज भी मै उसे उकसा ही रही थी। मामला ये नहीं की शारीरिक सुख भोग कर मै आंतरिक प्यार की उम्मीद रख रही हूं। या तो वो मेरे छलावे को समझ कर मुझे बाजारू ही समझ ले और एक थप्पड मार कर निकाल जाए। नहीं तो मुझसे कुछ सूख ही भोग ले, मेरे द्वारा किए गए उसके आत्मसम्मान के ठेस पहुंचने की एक छोटी सी कीमत… फिर मै आराम से कहीं दूर जा सकती हूं । फिर ना तो कोई सिकवा रहेगा और ना ही कोई मलाल।