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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

kas1709

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#91. (मेगा अपडेट)

डायरी का राज

(9 जनवरी 2002, बुधवार, 13:30, मायावन, अराका द्वीप)


सुयश की नजर अब मोईन के काले बैग पर थी। सुयश ने ब्रेंडन से मोईन का बैग मांगा।

सुयश ने आसपास नजर दौड़ायी। सुयश को कुछ दूरी पर एक साफ क्षेत्र दिखाई दिया।

सुयश उधर आकर एक बड़े से पत्थर पर बैठ गया।

सभी लोग सुयश के चारो ओर बैठ गये। सभी के दिल में उस्मान अली की डायरी को लेकर उत्सुकता थी। वह जानना चाहते थे कि डायरी में आखर लिखा क्या है?

सुयश ने अब मोईन का काला बैग खोलकर, उसमें रखा सारा सामान वहीं पत्थर पर बिखेर दिया।

उस बैग में एक डायरी, एक पुराना नक्शा, एक छोटा सा गले में पहनने वाला लॉकेट व एक पेन रखा था।

सुयश ने पहले लॉकेट को उठा कर देखा। लॉकेट एक सुनहरी धातु की जंजीर से बना था, जिसके बीच
में एक काले रंग का गोल मोती लगा था।

“कैप्टन अंकल!" शैफाली ने कहा- “इस लॉकेट का मोती बिल्कुल वैसा ही है, जैसा कि देवी शलाका के हाथ में पकड़ा मोती था।"

सुयश ने धीरे से अपना सिर हिलाकर अपनी सहमित दी।

पता नहीं ऐसा उस मोती में क्या था कि जेनिथ लगातार उस मोती को देखे जा रही थी।

सुयश ने एक नजर लॉकेट को घूरते हुए जेनिथ पर डाली और कुछ सोच उसे जेनिथ की ओर बढ़ा दिया।

जेनिथ ने उस लॉकेट को सुयश के हाथ से ले लिया।

जेनिथ अभी भी बिल्कुल सम्मोहित तरीके से उस लॉकेट को देख रही थी।

अचानक वह लॉकेट आश्चर्यजनक तरीके से हवा में उछला और खुद बा खुद जेनिथ के गले में जाकर बंध गया।

यह घटना देख, सब आश्चर्य से कभी जेनिथ को तो कभी उसके गले में बंधे लॉकेट को देखने लगे।

जेनिथ भी अब सम्मोहन से बाहर आ गयी थी।

“यह क्या था प्रोफेसर?" सुयश ने आश्चर्य से अल्बर्ट की ओर देखते हुए कहा- “क्या यह लॉकेट चमत्कारी था? और अगर हां तो इसने जेनिथ को ही क्यों चुना?"

“देखिये कैप्टन। इस द्वीप पर बहुत अजीब-अजीब सी घटनाएं घट रही हैं।" अल्बर्ट ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा-

“मुझे तो यह घटना भी उसी विचित्र घटना का हिस्सा लग रही है। जैसा कि शैफाली ने उन पत्थरों पर बनी विचित्र आकृतियों को देख कर कहा था कि हमारा इस द्वीप पर आना हमारी नियति थी। तो उस हिसाब से मुझे लगता है कि शायद हम सब किसी बड़ी चमत्कारिक घटना का हिस्सा हैं या बनने जा रहे हैं और हम स्वयं यहां नहीं आये हैं, बल्की हमें यहां लाया गया है। मोईन तो मात्र एक कारक था हमें यहां लाने के लिये।

अगर आप ध्यान से देखें तो धीरे-धीरे हम सभी के साथ कुछ ना कुछ चमत्कारिक घट रहा है। पहले शैफाली की शक्तियों का जागना, फ़िर कैप्टन के टैटू में शक्तियों का समा जाना और अब जेनिथ के साथ भी कुछ ऐसा ही चमत्कारिक होना। यह सब बातें यह बताती हैं कि शायद हमारे किसी जन्म की घटनाएं इस क्षेत्र से जुड़ी हैं। हमारा ‘सुप्रीम’ की दुर्घटना में जिंदा बचना एक इत्तेफाक नहीं है। केवल वही लोग जिंदा बचे हैं, जो किसी ना किसी रूप से इस द्वीप से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं।"

“इसका मतलब मुझमें भी कुछ चमत्कारिक शक्तियां है?" जॉनी ने खुश होकर बोला।

“ऐसा जरूरी नहीं है।" जेनिथ ने जॉनी की ओर देखते हुए कहा-“कुछ लोग मर भी तो रहे हैं।"

जॉनी, जेनिथ का कटाक्ष समझ गया। उसने गुस्से से अपने दाँत पीसे, मगर जेनिथ को कोई जवाब नहीं दिया।

“तुम्हें इस लॉकेट को पहनने के बाद क्या महसूस हुआ जेनिथ?" क्रिस्टी ने जेनिथ की ओर देखते हुए पूछा।

“मैं इस लॉकेट को देखकर पहले सम्मोहित सी हो गयी थी।" जेनिथ ने लॉकेट के मोती को छूते हुए कहा-
“पर मुझे ऐसा नहीं लगा कि मेरा इस लॉकेट से कोई भी पुराना संबंध है? ना ही इसको पहनने के बाद मुझे कुछ भी अलग सा महसूस हुआ?"

“पर कैप्टन.... यह चमत्कारी लॉकेट मोईन के पास कहां से आया?" ब्रेंडन ने कहा।

अब सबका ध्यान फ़िर से काले बैग से निकले बाकी सामान पर गया।

अब सुयश ने वह पुराना नक्शा खोल लिया। नक्शे में कुछ पत्थर, पहाड़, नदियां, झरने और कुछ आड़ी-टेढ़ी रेखाएं बनी थी।

“इसको समझने में समय लगेगा।" सुयश ने नक्शे को वापस गोल लपेटते हुए कहा- “हमें पहले डायरी पर ध्यान देना होगा। उसमें जरूर कुछ काम की बातें होंगी।"

सुयश ने अब डायरी को उठा लिया।

पहला पन्ना खोलते ही उन्हें खूबसूरत अक्षरो में उस्मान अली लिखा हुआ दिखाई दिया।

आखिरकार सुयश ने तेज आवाज में डायरी पढ़ना शुरू कर दिया।

“मेरा नाम उस्मान अली है। मैं आपको एक ऐसे रहस्यमय द्वीप के बारे में बताने जा रहा हूं, जिसका अनुभव मैंने स्वयं किया है।

13 दिसंबर 1984 की ठंड भरी रात थी। मैं ‘ब्लैक-थंडर’ नामक पुर्तगाली जहाज से न्यूयॉर्क से प्यूट्रो-रिको जा रहा था। रात का समय था। मैं जहाज के डेक पर खड़ा अपनी दुनियां में कुछ सोच रहा था। तभी मुझे दूर कहीं आसमान में सिग्नल फ़्लेयर उड़ते दिखाई दिये। मैंने तुरंत डेक पर खड़े लोगो का ध्यान सिग्नल फ़्लेयर की ओर करवाया।

हमें लगा कि जरूर कोई दूसरा पानी का जहाज वहां मुसीबत मे है। मैंने तुरंत इस बात की सूचना एक गार्ड के माध्यम से अपने जहाज के कैप्टन को भिजवा दी। कुछ ही देर में कैप्टन सिहत बहुत सारे लोग डेक पर आ गये। सिग्नल फ़्लेयर अभी भी आसमान में फ़ेंके जा रहे थे। मैंने जहाज के कैप्टन को जहाज को उस दिशा में ले जाने को कहा।

पहले तो जहाज का कैप्टन जहाज को उस दिशा में मोड़ने को तैयार नहीं हुआ । पर बाद में यात्रियो की जिद्द के कारण कैप्टन को सभी की बात माननी पड़ी। ब्लैक थंडर सिग्नल फ़्लेयर की दिशा में आगे बढ़ गया। थोड़ी देर में सिग्नल फ़्लेयर दिखने बंद हो गये। हम अंदाजे से समुद्र में काफ़ी आगे तक आ गये, पर फ़िर भी हमें किसी भी शिप के डूबने का कोई निशान प्राप्त नहीं हुआ? तभी अचानक मौसम काफ़ी खराब हो गया और समुद्र की लहरें ऊंची-ऊची उठने लगी।

ब्लैक थंडर किसी तिनके की तरह समुद्र की लहरों पर डोल रहा था। तभी एक जोरदार झटके से शिप के सारे कन्ट्रोल खराब हो गये। अब ब्लैक थंडर रास्ता भटक चुका था। हमें वापसी के लिये कोई रास्ता समझ नहीं आ रहा था। तभी जाने कहां से एक विशालकाय ब्लू व्हेल मछली आ गयी और उसने शिप पर टक्कर मारना शुरू कर दिया।

ब्लू व्हेल से बचने के लिये कैप्टन ने ब्लैक थंडर को एक अंजान दिशा में मुड़वा दिया। ब्लू व्हेल से अब हमारा पीछा छूट चुका था। हम पुनः आगे बढ़े। अभी हम सब डेक पर ही थे कि तभी एक नीली रोशनी बिखेरती उड़नतस्तरी, आसमान से गोल-गोल नाचती हुई हमारे जहाज से कुछ आगे आकर पानी में गिरी।

जिस स्थान पर वह उड़नतस्तरी पानी में गिरी थी, उस स्थान पर समुद्र में एक विशालकाय भंवर बन गयी। भंवर की विशालता और उसकी तेज-गति देखकर कैप्टन ने ब्लैक थंडर को दूसरी दिशा में मोड़ लिया। कुछ आगे जाने पर ब्लैक थंडर अचानक समुद्र में अपने आप रुक गया। कैमरे द्वारा पानी के नीचे देखने पर हमें एक विशालकाय ‘प्लिसियोसारस’ (एक विलुप्तप्राय समुद्री डाइनोसोर) ब्लैक थंडर को पकड़े हुए दिखाई दिया।

कैप्टन ने प्लिसियोसारस पर तारपीडो से हमला कर दिया। प्लिसियोसारस ने डरकर शिप को छोड़ दिया और अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से शिप को घूरता हुआ समुद्र की गहराइयों में गायब हो गया।
ब्लैक थंडर को फ़िर से आगे बढ़ा लिया गया। उसी रात शिप पर सफर कर रहे 400 यात्रियो में से 275 यात्री शिप से अपने आप गायब हो गये।

बहुत ढूंढने पर भी उन यात्रियो का कुछ पता नहीं चला। शिप पर अब कुल 125 यात्री बचे थे। सुबह हमें एक द्वीप दिखाई दिया जो अजीब सी त्रिभुज जैसी आकृति वाला था। ब्लैक थंडर को उस द्वीप की ओर मोड़ लिया गया। हम द्वीप पर पहुंचने वाले ही थे कि तभी अचानक प्लिसियोसारस ने पुनः ब्लैक थंडर पर आक्रमण कर दिया।

इस बार का उसका आक्रमण बहुत खतरनाक था। उसने अपनी अजगर के समान विशालकाय पूंछ से पूरे ब्लैक थंडर को लपेट लिया। प्लिसियोसारस की ताकत के सामने ब्लैक थंडर कुछ भी नहीं था। आखिरकार उस समुद्री दानव ने ब्लैक थंडर को तोड़ डाला। शिप में सवार कुछ बचे यात्री पानी में छलांग लगाकर द्वीप की ओर बढ़ने लगे और अंततः कुल 28 यात्री उस द्वीप पर बचकर पहुंचने में सफल हो गये। उन्ही लोगो में मैं और मेरा दोस्त गिलफोर्ड भी था।

यहां से शुरू होता है उस रहस्यमय द्वीप का एक भयानक सफर। इस सफर में आती हैं खतरनाक मुसीबतें जैसे दलदल, जंगली गैंडा, गुरिल्ला, पागल हाथी, भयानक शेर, विशालकाय मच्छर, खतरनाक बीमारियां, जहरीली मकिड़यां, खूनी चमगादड़, तेजाबी बारिश और ना जाने कितनी ऐसी भयानक मुसीबतें, जिन्होने 24 यात्रियो को मौत के घाट उतार दिया।

बाकी बचे 4 लोग किसी तरह बचते-बचाते पहाड़ में शरण लेते हैं। इन बचे हुए 4 लोगो में मैं और गिलफोर्ड भी शामिल थे। तभी हम पर एक विशालकाय आग उगलने वाली ड्रैगन ने हमला बोल दिया। ड्रैगन से घबराकर मैं और गिलफोर्ड एक पहाड़ी गुफा में घुस गए। ड्रैगन ने एक बड़ी सी चट्टान लुढ़काकर गुफा का द्वार बंद कर दिया।

अब मेरे और गिलफोर्ड के बाहर निकलने के सभी रास्ते बंद हो चुके थे। हम दोनो गुफा में बुरी तरह से फंस चुके थे। 2 घंटे बाद हमें ऐसा महसूस हुआ कि जैसे गुफा में कहीं से ताजी हवा आ रही है। हम दोनो अंदाजे से अंधेरे में टटोलते हुए गुफा के अंदर की ओर चल दिये।

काफ़ी देर तक चलने के बाद हमें दूर गुफा में कहीं रोशनी सी प्रतीत हुई। हम अंदाज से लड़खड़ाते हुए उस दिशा में चल दिये। कई जगह पर हम गुफा में पत्थरों से टकराये। हमें बहुत सी चोट आ गयी थी। लगभग एक घंटे तक उस अंधेरी गुफा में चलने के बाद हम उस रोशनी वाले स्थान तक पहुंच गये।

वह गुफा के दूसरी ओर का द्वार था। गुफा से निकलने पर हमने अपने आप को एक खूबसूरत घाटी में पाया। चारो तरफ पहाड़ो से घिरी यह घाटी देखने में काफ़ी सुंदर लग रही थी। कई जगह से पहाड़ो से पानी के झरने गिर रहे थे। हमने घाटी के अंदर जाने के लिये पहाड़ो से उतरना शुरु कर दिया। पहाड़ो से उतरने के बाद हम एक बाग में पहुंचे। बाग में सैकड़ो फलों से लदे पेड़ थे। हमने पेडों से फल तोड़कर खाये और झरने का पानी पीया।

हममें एक नयी ताकत का संचार हो चुका था। रात होने वाली थी इसिलये हम वहीं एक पेड़ पर
चढ़कर सो गये। सुबह कुछ अजीब सी आवाज सुनकर हम दोनों की नींद खुल गयी। हमें एक स्थान पर जमीन से निकलते हुए कुछ इंसान दिखाई दिये। जो उस स्थान पर मौजूद एक देवी की मूर्ति के आगे नाच गा रहे थे। रात में अंधेरा होने की वजह से हम स्थान पर मौजूद देवी की मूर्ति को नहीं देख पाये थे।

तभी पूरी घाटी में एक बहुत ही सुगंधित खुशबू फैल गयी। यह विचित्र सुगंध सूंघकर हम दोनो बेहोश हो गये। होश में आने पर हमने अपने आप को एक विशालकाय मंदिर में खंभे से बंधा हुआ पाया। मंदिर में एक विशालकाय देवी की मूर्ति थी, जिनके गले में एक लॉकेट चमक रहा था। देवी के पैरों के पास हीरे, जवाहरात, रत्न, आभूषण असंख्य मात्रा में बिखरे पड़े हुए थे।

उन रत्नो की चमक इतनी ज़्यादा तेज थी कि शुरु में वहां पर आँख खोलकर रख पाना भी मुश्किल लग रहा था। हमने किताबों में भी कभी इतने बड़े खजाने के बारे में नहीं सुन रखा था। तभी मेरी नजर देवी के पैरों के पास रखी एक लाल रंग की जिल्द वाली पुरानी सी किताब पर पड़ी। वह पुरानी किताब एक रत्न जड़ित थाली में रखी थी, जो उसके विशेष होने की कहानी कह रही थी।
हमारे आसपास कुछ जंगली कबीले के लोग अजीब से धारदार हथियार लेकर खड़े थे। हम हैरानी से कभी मूर्ति की सुंदरता तो कभी उस खजाने को निहार रहे थे। तभी उन जंगलियों में से एक ने हमें खंभे से खोलकर देवी के चरणों में झुकने का इशारा किया। मैंने और गिलफोर्ड दोनों ने देवी के चरणों में झुककर प्रणाम किया। मैंने झुककर प्रणाम करते समय धीरे से उन जंगलियों से नजर बचाकर एक छोटा सा हीरा अपने हाथ में छिपा लिया। अब वह जंगली, देवी की पूजा करने लगे।

तभी मंदिर के बाहर से कहीं से शोर की आवाज सुनाई दी। कई जंगली यह आवाज सुन बाहर की ओर भागे। यह देख उनमें से एक जंगली हमारे पास आया और फ़िर से हमारे हाथ उस खंभे के साथ बांध दिया। हमारे हाथ बांधने के बाद वह भी मंदिर से बाहर की ओर भाग गया। अब मंदिर में मैंऔर गिलफोर्ड ही अकेले बचे थे। यह देख मैंने अपने हाथ में थमें हीरे से अपनी हाथ में बंधी रस्सी को काटने लगा।

लगभग 10 मिनट के अथक परिश्रम के बाद मैंने अपने हाथ की रस्सी को काटकर स्वयं को आजाद करा लिया। फ़िर मैंने गिलफोर्ड के हाथ की रस्सी काटी, जिसमें ज़्यादा समय नहीं लगा। हम दोनो देवी की मूर्ति के पास पहुंचे। मेरी नजर देवी की मूर्ति के गले में पहने लॉकेट पर थी। मैं तेजी से उस मूर्ति के ऊपर चढ़ा और देवी के गले में पड़ा लॉकेट निकालकर अपनी जेब में रख लिया। गिलफोर्ड ने वह लाल जिल्द वाली पौराणिक किताब उठा ली।

अब हम दोनों सावधानी से मंदिर के बाहर निकले। बाहर हमें कुछ हरे कीड़े उन जंगलियों को दौड़ाते हुए नजर आये। ऐसे मेढक जैसे विचित्र कीड़े हमने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखे थे। हम दोनों सबकी नजर बचाकर जंगल की ओर भाग गये। काफ़ी दूर आने के बाद हमने राहत की साँस ली। शाम फ़िर से गहराने लगी थी, इसिलये हमने पेडों के फल खाकर गुजारा कर लिया। हम दोनों वहीं पेड़ के नीचे एक साफ सुथरी जगह देखकर वहीं सो गये।

रात में अजीब सी ढम-ढम की आवाज सुनकर हमारी नींद खुल गयी। हम समझ गये कि जंगली रात के अंधेरे में हमें ढूंढ रहे हैं और वह आस-पास ही हैं। गिलफोर्ड तुरंत लाल किताब को कमर में फंसाकर वहीं एक पेड़ पर चढ़ गया। चूंकि पेड़ सपाट था और मैं इतनी तेजी से पेड़ पर नहीं चढ़ सकता था। इसिलये मैं वहां से पहाडों की ओर भाग गया।

इस तरह हम दोनों दोस्त अलग-अलग हो गये। मैंने भागकर एक पहाड़ी गुफा में शरण ली। मुझे नहीं पता चला कि उसके बाद गिलफोर्ड का क्या हुआ? गुफा में अंधेरा होने की वजह से हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहा था। अगर कुछ चमक रहा था तो वह था मेरे गले में पड़ा देवी का लॉकेट। तभी मेरी नजर अंधेरे में गुफा के अंदर चमक रहे 2 जुगनुओं पर पड़ी, जो धीरे-धीरे मेरे पास आ रहे थे।

पास आने पर मैं समझ गया कि वह जुगनू नहीं बाल्की किसी जानवर की आँखें हैं। किसी विशालकाय जानवर का अहसास होते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गये। धीरे-धीरे वह विशालकाय आकृति मेरे बिल्कुल समीप आ गयी। उधर गुफा के बाहर से जंगलियों की आवाज आने के कारण मैं गुफा से बाहर भी नहीं जा सकता था।

अब उस विशालकाय जानवर की साँसे भी मुझे अपने शरीर पर महसूस होने लगी थी। धीरे-धीरे आती गुर्र-गुर्र की आवाज से मुझे ये अहसास हो गया कि वह एक पहाड़ी जंगली भालू था। भालू बेहद पास आ गया था और मेरे गले में पड़े उस चमकते लॉकेट को देख रहा था। तभी उस लॉकेट की चमक एकाएक बढ़ सी गयी। भालू हैरान होकर दो कदम पीछे हो गया। मेरे लिये यह बहुत अच्छा मौका था, मैंने अपनी पूरी ताकत से गुफा के अंदर की ओर दौड़ लगा दी।

लॉकेट से निकली रोशनी मेरा मार्गदर्शन कर रही थी। मैं भागते-भागते थककर चूर हो गया, परंतु उस गुफा का दूसरा सिरा मुझे नहीं मिला। गनीमत यही थी कि पता नहीं कहां से मुझे ऑक्सीजन मिल रही थी। कुछ देर आराम करने के बाद मैं पुनः आगे की ओर चल दिया। घड़ी पास में ना होने की वजह से मुझे समय का अहसास नहीं हो पा रहा था।

जाने कितने घंटे मैं इसी तरह से चलता रहा। प्यास, भूख और थकान से मैं पूरी तरह से थककर चूर हो गया था। अंततः बहुत दूर मुझे एक रोशनी सी दिखाई दी। रोशनी देख मुझ में नयी ताकत का संचार हो गया।

वैसे मेरे शरीर में जान तो नहीं बची थी, फिर भी मैं रोशनी को देख आगे बढ़ता रहा। आखिरकार मैं गुफा के मुहाने तक पहुंच गया। वह शायद द्वीप का कोई दूसरा किनारा था क्योंकी समुद्र अब मेरे सामने था। सबसे पहले मैंने वहां लगे पेडों से पेट भरकर फल खाये और एक तालाब का पानी पीया।

फ़िर वहीं एक पेड़ पर चढ़कर सो गया। थकान और पेट भर जाने के कारण मैं कितनी देर तक सोता रहा, मुझे नहीं पता चला। जब मैं जागा तो सूर्य निकल रहा था। शायद मैं 24 घंटे तक सोया था। लेकिन मैं अब अपने आप को काफ़ी ताज़ा महसूस कर रहा था। अब मुझे यहां से निकलने के बारे में सोचना था।

पर कैसे...? बिना बोट के मैं समुद्र में ज़्यादा दूर तक जा भी नहीं सकता था। पर यहां बोट कहां से मिलती? धीरे-धीरे उस जगह पर रहते हुए मुझे कई दिन बीत गये, पर मुझे उस द्वीप से निकलने का कोई रास्ता नहीं मिला। भला यही था कि द्वीप के उस किनारे पर किसी भी प्रकार की मुसीबत नहीं थी। मैं रोज पेड़ के फल खाता और तालाब का पानी पी रहा था।

मैं उस द्वीप की जिंदगी से बोर होने लगा। एक दिन मैंने एक बोट बनाने का सोचा। फिर क्या था मैंने वहां लगे बांस के पेडों से कुछ बांस तोड़ लिये और जंगली बेल व पेड़ की जडों से सबको आपस में बांध लिया। इसी तरह मैंने 2 लकड़ी के चप्पू बना लिये। अब मैं लकड़ी के उस बेड़े पर बैठकर समुद्र में कुछ दूर तक जाने लगा। अब मैं नुकिले काँटो को छोटी-छोटी लकडिय़ों में पिरो कर उसे तीर और भाले का रूप देने लगा और मछलिय़ों का शिकार करने लगा।

मछलिय़ों को कच्चा खाना मेरे लिये बहुत मुश्किल था, पर मुझे आग जलाना अभी आया नहीं था। इसिलये कच्ची मछलिय़ों से ही काम चलाना पड़ रहा था। कुछ दिन और बीत गये। अब मेरी बोट भी थोड़ी और बड़ी हो गयी थी। मैंने कुछ जडों को पेड़ की छाल से बांधकर 10-12 टोकरियां भी बना ली। अब मैं समुद्र में खाना भी लेकर जाने को तैयार था। अब परेशानी केवल पानी की रह गयी थी। क्यों कि समुद्र में ज़्यादा से ज़्यादा दिन जिंदा रहने के लिये पानी का होना सबसे ज़्यादा जरुरी था।

फिलहाल इसका मेरे पास कोई उपाय नहीं था। फिर दिन बीतने लगे। मुझे द्वीप के उस किनारे पर रहते हुए 55 दिन बीत गये। आखिरकार एक दिन मुझे पत्थरों से आग जलाना भी आ गया। फिर तो मुझे मजा ही आ गया। अब मैं मछलिय़ों को पकड़ कर उन्हें पका कर भी खाने लगा।

जब 2 दिन और बीत गये तो अचानक से मेरे दिमाग में मिट्टी के घड़े बनाने का प्लान आया। मैंने 1 दिन के अंदर 20 बड़े-बड़े मटके बना लिये और उन्हें आग में पकाकर पक्का भी कर लिया। अब समुद्र में पानी की समस्या भी ख़त्म हो गयी थी। अब फाइनली मैंने इस द्वीप से निजात पाने का सोचा। अब मैंने कुछ और बांस तोड़कर अपने बेड़े को बड़ा बनाया। फिर 12 टोकरियां में खाने के फल और 20 मटको में तालाब का साफ पानी भरके उन सबको पेड़ की जडों से अच्छी तरह से बांधकर निकल पड़ा उस विशालकाय समुद्र में एक अंतहीन सफर पर।

धीरे-धीरे समुद्र में दिन बीतने लगे। शार्क, बड़ी मछिलयां और तूफान, ना जाने कितनी ऐसी मुसीबतो का सामना करते हुए मुझे 25 दिन बीत गये। मेरे पास अब सारा खाना ख़त्म हो गया था। पानी भी केवल एक मटकी में ही बचा था। 2 दिन बाद वो भी ख़त्म हो गया। 2 दिन के बाद मेरे शरीर में इतनी भी जान नहीं बची थी कि मैं उठकर खड़ा भी हो सकूं।

आख़िर मैं बेहोश होकर अपने बेड़े पर गिर गया। मुझे जब होश आया तो मैंने अपने आपको अंजान जहाज पर पाया। उस जहाज के लोगो को रात के अंधेरे में मेरे गले में पड़े लॉकेट की रोशनी दिखाई दी थी। जिसके बाद उन्होंने मुझे जहाज पर खींच लिया था। उन्होंने मुझसे मेरे बारे में पूछा, पर मैंने पागल होने का नाटक कर उन्हें कुछ नहीं बताया।

जहाज वालों ने अमेरिका पहुंचकर मुझे पुलिस के हवाले कर दिया। बाद में पुलिस ने मेरा फोटो समाचार पत्र में प्रकाशित करवा दिया।
इस तरह मेरे घरवाले मुझे वहां लेने आ पहुंचे। जब पुलिस को यह पता चला कि मैं ब्लैक थंडर पर था, तो उन्होंने मुझसे जहाज के बारे में पूछने की बहुत किशिश की, पर मैं पहले के समान ही पागलो की तरह एक्टिंग करता रहा और मैंने उन्हें कुछ नहीं बताया।

धीरे-धीरे समय बीतता गया। मैंने अपने पूरे सफर को कलमबध्द कर अपनी डायरी में लिख लिया। उसके बाद मैंने अपनी याद के सहारे उस द्वीप का एक नक्शा भी बनाया। मेरा लड़का मोईन अभी छोटा है। मैंने यह सोच रखा है कि जब वह बड़ा हो जायेगा तो मैं ये सारी चीज़े उसके सुपुर्द कर दूंगा।"

इतना पढ़कर सुयश शांत हो गया और बारी-बारी सबका चेहरा देखने लगा। कुछ देर के लिये वहां पर एक सन्नाटा सा छा गया।



जारी रहेगा________✍️
Nice update....
 

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डायरी का राज

(9 जनवरी 2002, बुधवार, 13:30, मायावन, अराका द्वीप)


सुयश की नजर अब मोईन के काले बैग पर थी। सुयश ने ब्रेंडन से मोईन का बैग मांगा।

सुयश ने आसपास नजर दौड़ायी। सुयश को कुछ दूरी पर एक साफ क्षेत्र दिखाई दिया।

सुयश उधर आकर एक बड़े से पत्थर पर बैठ गया।

सभी लोग सुयश के चारो ओर बैठ गये। सभी के दिल में उस्मान अली की डायरी को लेकर उत्सुकता थी। वह जानना चाहते थे कि डायरी में आखर लिखा क्या है?

सुयश ने अब मोईन का काला बैग खोलकर, उसमें रखा सारा सामान वहीं पत्थर पर बिखेर दिया।

उस बैग में एक डायरी, एक पुराना नक्शा, एक छोटा सा गले में पहनने वाला लॉकेट व एक पेन रखा था।

सुयश ने पहले लॉकेट को उठा कर देखा। लॉकेट एक सुनहरी धातु की जंजीर से बना था, जिसके बीच
में एक काले रंग का गोल मोती लगा था।

“कैप्टन अंकल!" शैफाली ने कहा- “इस लॉकेट का मोती बिल्कुल वैसा ही है, जैसा कि देवी शलाका के हाथ में पकड़ा मोती था।"

सुयश ने धीरे से अपना सिर हिलाकर अपनी सहमित दी।

पता नहीं ऐसा उस मोती में क्या था कि जेनिथ लगातार उस मोती को देखे जा रही थी।

सुयश ने एक नजर लॉकेट को घूरते हुए जेनिथ पर डाली और कुछ सोच उसे जेनिथ की ओर बढ़ा दिया।

जेनिथ ने उस लॉकेट को सुयश के हाथ से ले लिया।

जेनिथ अभी भी बिल्कुल सम्मोहित तरीके से उस लॉकेट को देख रही थी।

अचानक वह लॉकेट आश्चर्यजनक तरीके से हवा में उछला और खुद बा खुद जेनिथ के गले में जाकर बंध गया।

यह घटना देख, सब आश्चर्य से कभी जेनिथ को तो कभी उसके गले में बंधे लॉकेट को देखने लगे।

जेनिथ भी अब सम्मोहन से बाहर आ गयी थी।

“यह क्या था प्रोफेसर?" सुयश ने आश्चर्य से अल्बर्ट की ओर देखते हुए कहा- “क्या यह लॉकेट चमत्कारी था? और अगर हां तो इसने जेनिथ को ही क्यों चुना?"

“देखिये कैप्टन। इस द्वीप पर बहुत अजीब-अजीब सी घटनाएं घट रही हैं।" अल्बर्ट ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा-

“मुझे तो यह घटना भी उसी विचित्र घटना का हिस्सा लग रही है। जैसा कि शैफाली ने उन पत्थरों पर बनी विचित्र आकृतियों को देख कर कहा था कि हमारा इस द्वीप पर आना हमारी नियति थी। तो उस हिसाब से मुझे लगता है कि शायद हम सब किसी बड़ी चमत्कारिक घटना का हिस्सा हैं या बनने जा रहे हैं और हम स्वयं यहां नहीं आये हैं, बल्की हमें यहां लाया गया है। मोईन तो मात्र एक कारक था हमें यहां लाने के लिये।

अगर आप ध्यान से देखें तो धीरे-धीरे हम सभी के साथ कुछ ना कुछ चमत्कारिक घट रहा है। पहले शैफाली की शक्तियों का जागना, फ़िर कैप्टन के टैटू में शक्तियों का समा जाना और अब जेनिथ के साथ भी कुछ ऐसा ही चमत्कारिक होना। यह सब बातें यह बताती हैं कि शायद हमारे किसी जन्म की घटनाएं इस क्षेत्र से जुड़ी हैं। हमारा ‘सुप्रीम’ की दुर्घटना में जिंदा बचना एक इत्तेफाक नहीं है। केवल वही लोग जिंदा बचे हैं, जो किसी ना किसी रूप से इस द्वीप से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं।"

“इसका मतलब मुझमें भी कुछ चमत्कारिक शक्तियां है?" जॉनी ने खुश होकर बोला।

“ऐसा जरूरी नहीं है।" जेनिथ ने जॉनी की ओर देखते हुए कहा-“कुछ लोग मर भी तो रहे हैं।"

जॉनी, जेनिथ का कटाक्ष समझ गया। उसने गुस्से से अपने दाँत पीसे, मगर जेनिथ को कोई जवाब नहीं दिया।

“तुम्हें इस लॉकेट को पहनने के बाद क्या महसूस हुआ जेनिथ?" क्रिस्टी ने जेनिथ की ओर देखते हुए पूछा।

“मैं इस लॉकेट को देखकर पहले सम्मोहित सी हो गयी थी।" जेनिथ ने लॉकेट के मोती को छूते हुए कहा-
“पर मुझे ऐसा नहीं लगा कि मेरा इस लॉकेट से कोई भी पुराना संबंध है? ना ही इसको पहनने के बाद मुझे कुछ भी अलग सा महसूस हुआ?"

“पर कैप्टन.... यह चमत्कारी लॉकेट मोईन के पास कहां से आया?" ब्रेंडन ने कहा।

अब सबका ध्यान फ़िर से काले बैग से निकले बाकी सामान पर गया।

अब सुयश ने वह पुराना नक्शा खोल लिया। नक्शे में कुछ पत्थर, पहाड़, नदियां, झरने और कुछ आड़ी-टेढ़ी रेखाएं बनी थी।

“इसको समझने में समय लगेगा।" सुयश ने नक्शे को वापस गोल लपेटते हुए कहा- “हमें पहले डायरी पर ध्यान देना होगा। उसमें जरूर कुछ काम की बातें होंगी।"

सुयश ने अब डायरी को उठा लिया।

पहला पन्ना खोलते ही उन्हें खूबसूरत अक्षरो में उस्मान अली लिखा हुआ दिखाई दिया।

आखिरकार सुयश ने तेज आवाज में डायरी पढ़ना शुरू कर दिया।

“मेरा नाम उस्मान अली है। मैं आपको एक ऐसे रहस्यमय द्वीप के बारे में बताने जा रहा हूं, जिसका अनुभव मैंने स्वयं किया है।

13 दिसंबर 1984 की ठंड भरी रात थी। मैं ‘ब्लैक-थंडर’ नामक पुर्तगाली जहाज से न्यूयॉर्क से प्यूट्रो-रिको जा रहा था। रात का समय था। मैं जहाज के डेक पर खड़ा अपनी दुनियां में कुछ सोच रहा था। तभी मुझे दूर कहीं आसमान में सिग्नल फ़्लेयर उड़ते दिखाई दिये। मैंने तुरंत डेक पर खड़े लोगो का ध्यान सिग्नल फ़्लेयर की ओर करवाया।

हमें लगा कि जरूर कोई दूसरा पानी का जहाज वहां मुसीबत मे है। मैंने तुरंत इस बात की सूचना एक गार्ड के माध्यम से अपने जहाज के कैप्टन को भिजवा दी। कुछ ही देर में कैप्टन सिहत बहुत सारे लोग डेक पर आ गये। सिग्नल फ़्लेयर अभी भी आसमान में फ़ेंके जा रहे थे। मैंने जहाज के कैप्टन को जहाज को उस दिशा में ले जाने को कहा।

पहले तो जहाज का कैप्टन जहाज को उस दिशा में मोड़ने को तैयार नहीं हुआ । पर बाद में यात्रियो की जिद्द के कारण कैप्टन को सभी की बात माननी पड़ी। ब्लैक थंडर सिग्नल फ़्लेयर की दिशा में आगे बढ़ गया। थोड़ी देर में सिग्नल फ़्लेयर दिखने बंद हो गये। हम अंदाजे से समुद्र में काफ़ी आगे तक आ गये, पर फ़िर भी हमें किसी भी शिप के डूबने का कोई निशान प्राप्त नहीं हुआ? तभी अचानक मौसम काफ़ी खराब हो गया और समुद्र की लहरें ऊंची-ऊची उठने लगी।

ब्लैक थंडर किसी तिनके की तरह समुद्र की लहरों पर डोल रहा था। तभी एक जोरदार झटके से शिप के सारे कन्ट्रोल खराब हो गये। अब ब्लैक थंडर रास्ता भटक चुका था। हमें वापसी के लिये कोई रास्ता समझ नहीं आ रहा था। तभी जाने कहां से एक विशालकाय ब्लू व्हेल मछली आ गयी और उसने शिप पर टक्कर मारना शुरू कर दिया।

ब्लू व्हेल से बचने के लिये कैप्टन ने ब्लैक थंडर को एक अंजान दिशा में मुड़वा दिया। ब्लू व्हेल से अब हमारा पीछा छूट चुका था। हम पुनः आगे बढ़े। अभी हम सब डेक पर ही थे कि तभी एक नीली रोशनी बिखेरती उड़नतस्तरी, आसमान से गोल-गोल नाचती हुई हमारे जहाज से कुछ आगे आकर पानी में गिरी।

जिस स्थान पर वह उड़नतस्तरी पानी में गिरी थी, उस स्थान पर समुद्र में एक विशालकाय भंवर बन गयी। भंवर की विशालता और उसकी तेज-गति देखकर कैप्टन ने ब्लैक थंडर को दूसरी दिशा में मोड़ लिया। कुछ आगे जाने पर ब्लैक थंडर अचानक समुद्र में अपने आप रुक गया। कैमरे द्वारा पानी के नीचे देखने पर हमें एक विशालकाय ‘प्लिसियोसारस’ (एक विलुप्तप्राय समुद्री डाइनोसोर) ब्लैक थंडर को पकड़े हुए दिखाई दिया।

कैप्टन ने प्लिसियोसारस पर तारपीडो से हमला कर दिया। प्लिसियोसारस ने डरकर शिप को छोड़ दिया और अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से शिप को घूरता हुआ समुद्र की गहराइयों में गायब हो गया।
ब्लैक थंडर को फ़िर से आगे बढ़ा लिया गया। उसी रात शिप पर सफर कर रहे 400 यात्रियो में से 275 यात्री शिप से अपने आप गायब हो गये।

बहुत ढूंढने पर भी उन यात्रियो का कुछ पता नहीं चला। शिप पर अब कुल 125 यात्री बचे थे। सुबह हमें एक द्वीप दिखाई दिया जो अजीब सी त्रिभुज जैसी आकृति वाला था। ब्लैक थंडर को उस द्वीप की ओर मोड़ लिया गया। हम द्वीप पर पहुंचने वाले ही थे कि तभी अचानक प्लिसियोसारस ने पुनः ब्लैक थंडर पर आक्रमण कर दिया।

इस बार का उसका आक्रमण बहुत खतरनाक था। उसने अपनी अजगर के समान विशालकाय पूंछ से पूरे ब्लैक थंडर को लपेट लिया। प्लिसियोसारस की ताकत के सामने ब्लैक थंडर कुछ भी नहीं था। आखिरकार उस समुद्री दानव ने ब्लैक थंडर को तोड़ डाला। शिप में सवार कुछ बचे यात्री पानी में छलांग लगाकर द्वीप की ओर बढ़ने लगे और अंततः कुल 28 यात्री उस द्वीप पर बचकर पहुंचने में सफल हो गये। उन्ही लोगो में मैं और मेरा दोस्त गिलफोर्ड भी था।

यहां से शुरू होता है उस रहस्यमय द्वीप का एक भयानक सफर। इस सफर में आती हैं खतरनाक मुसीबतें जैसे दलदल, जंगली गैंडा, गुरिल्ला, पागल हाथी, भयानक शेर, विशालकाय मच्छर, खतरनाक बीमारियां, जहरीली मकिड़यां, खूनी चमगादड़, तेजाबी बारिश और ना जाने कितनी ऐसी भयानक मुसीबतें, जिन्होने 24 यात्रियो को मौत के घाट उतार दिया।

बाकी बचे 4 लोग किसी तरह बचते-बचाते पहाड़ में शरण लेते हैं। इन बचे हुए 4 लोगो में मैं और गिलफोर्ड भी शामिल थे। तभी हम पर एक विशालकाय आग उगलने वाली ड्रैगन ने हमला बोल दिया। ड्रैगन से घबराकर मैं और गिलफोर्ड एक पहाड़ी गुफा में घुस गए। ड्रैगन ने एक बड़ी सी चट्टान लुढ़काकर गुफा का द्वार बंद कर दिया।

अब मेरे और गिलफोर्ड के बाहर निकलने के सभी रास्ते बंद हो चुके थे। हम दोनो गुफा में बुरी तरह से फंस चुके थे। 2 घंटे बाद हमें ऐसा महसूस हुआ कि जैसे गुफा में कहीं से ताजी हवा आ रही है। हम दोनो अंदाजे से अंधेरे में टटोलते हुए गुफा के अंदर की ओर चल दिये।

काफ़ी देर तक चलने के बाद हमें दूर गुफा में कहीं रोशनी सी प्रतीत हुई। हम अंदाज से लड़खड़ाते हुए उस दिशा में चल दिये। कई जगह पर हम गुफा में पत्थरों से टकराये। हमें बहुत सी चोट आ गयी थी। लगभग एक घंटे तक उस अंधेरी गुफा में चलने के बाद हम उस रोशनी वाले स्थान तक पहुंच गये।

वह गुफा के दूसरी ओर का द्वार था। गुफा से निकलने पर हमने अपने आप को एक खूबसूरत घाटी में पाया। चारो तरफ पहाड़ो से घिरी यह घाटी देखने में काफ़ी सुंदर लग रही थी। कई जगह से पहाड़ो से पानी के झरने गिर रहे थे। हमने घाटी के अंदर जाने के लिये पहाड़ो से उतरना शुरु कर दिया। पहाड़ो से उतरने के बाद हम एक बाग में पहुंचे। बाग में सैकड़ो फलों से लदे पेड़ थे। हमने पेडों से फल तोड़कर खाये और झरने का पानी पीया।

हममें एक नयी ताकत का संचार हो चुका था। रात होने वाली थी इसिलये हम वहीं एक पेड़ पर
चढ़कर सो गये। सुबह कुछ अजीब सी आवाज सुनकर हम दोनों की नींद खुल गयी। हमें एक स्थान पर जमीन से निकलते हुए कुछ इंसान दिखाई दिये। जो उस स्थान पर मौजूद एक देवी की मूर्ति के आगे नाच गा रहे थे। रात में अंधेरा होने की वजह से हम स्थान पर मौजूद देवी की मूर्ति को नहीं देख पाये थे।

तभी पूरी घाटी में एक बहुत ही सुगंधित खुशबू फैल गयी। यह विचित्र सुगंध सूंघकर हम दोनो बेहोश हो गये। होश में आने पर हमने अपने आप को एक विशालकाय मंदिर में खंभे से बंधा हुआ पाया। मंदिर में एक विशालकाय देवी की मूर्ति थी, जिनके गले में एक लॉकेट चमक रहा था। देवी के पैरों के पास हीरे, जवाहरात, रत्न, आभूषण असंख्य मात्रा में बिखरे पड़े हुए थे।

उन रत्नो की चमक इतनी ज़्यादा तेज थी कि शुरु में वहां पर आँख खोलकर रख पाना भी मुश्किल लग रहा था। हमने किताबों में भी कभी इतने बड़े खजाने के बारे में नहीं सुन रखा था। तभी मेरी नजर देवी के पैरों के पास रखी एक लाल रंग की जिल्द वाली पुरानी सी किताब पर पड़ी। वह पुरानी किताब एक रत्न जड़ित थाली में रखी थी, जो उसके विशेष होने की कहानी कह रही थी।
हमारे आसपास कुछ जंगली कबीले के लोग अजीब से धारदार हथियार लेकर खड़े थे। हम हैरानी से कभी मूर्ति की सुंदरता तो कभी उस खजाने को निहार रहे थे। तभी उन जंगलियों में से एक ने हमें खंभे से खोलकर देवी के चरणों में झुकने का इशारा किया। मैंने और गिलफोर्ड दोनों ने देवी के चरणों में झुककर प्रणाम किया। मैंने झुककर प्रणाम करते समय धीरे से उन जंगलियों से नजर बचाकर एक छोटा सा हीरा अपने हाथ में छिपा लिया। अब वह जंगली, देवी की पूजा करने लगे।

तभी मंदिर के बाहर से कहीं से शोर की आवाज सुनाई दी। कई जंगली यह आवाज सुन बाहर की ओर भागे। यह देख उनमें से एक जंगली हमारे पास आया और फ़िर से हमारे हाथ उस खंभे के साथ बांध दिया। हमारे हाथ बांधने के बाद वह भी मंदिर से बाहर की ओर भाग गया। अब मंदिर में मैंऔर गिलफोर्ड ही अकेले बचे थे। यह देख मैंने अपने हाथ में थमें हीरे से अपनी हाथ में बंधी रस्सी को काटने लगा।

लगभग 10 मिनट के अथक परिश्रम के बाद मैंने अपने हाथ की रस्सी को काटकर स्वयं को आजाद करा लिया। फ़िर मैंने गिलफोर्ड के हाथ की रस्सी काटी, जिसमें ज़्यादा समय नहीं लगा। हम दोनो देवी की मूर्ति के पास पहुंचे। मेरी नजर देवी की मूर्ति के गले में पहने लॉकेट पर थी। मैं तेजी से उस मूर्ति के ऊपर चढ़ा और देवी के गले में पड़ा लॉकेट निकालकर अपनी जेब में रख लिया। गिलफोर्ड ने वह लाल जिल्द वाली पौराणिक किताब उठा ली।

अब हम दोनों सावधानी से मंदिर के बाहर निकले। बाहर हमें कुछ हरे कीड़े उन जंगलियों को दौड़ाते हुए नजर आये। ऐसे मेढक जैसे विचित्र कीड़े हमने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखे थे। हम दोनों सबकी नजर बचाकर जंगल की ओर भाग गये। काफ़ी दूर आने के बाद हमने राहत की साँस ली। शाम फ़िर से गहराने लगी थी, इसिलये हमने पेडों के फल खाकर गुजारा कर लिया। हम दोनों वहीं पेड़ के नीचे एक साफ सुथरी जगह देखकर वहीं सो गये।

रात में अजीब सी ढम-ढम की आवाज सुनकर हमारी नींद खुल गयी। हम समझ गये कि जंगली रात के अंधेरे में हमें ढूंढ रहे हैं और वह आस-पास ही हैं। गिलफोर्ड तुरंत लाल किताब को कमर में फंसाकर वहीं एक पेड़ पर चढ़ गया। चूंकि पेड़ सपाट था और मैं इतनी तेजी से पेड़ पर नहीं चढ़ सकता था। इसिलये मैं वहां से पहाडों की ओर भाग गया।

इस तरह हम दोनों दोस्त अलग-अलग हो गये। मैंने भागकर एक पहाड़ी गुफा में शरण ली। मुझे नहीं पता चला कि उसके बाद गिलफोर्ड का क्या हुआ? गुफा में अंधेरा होने की वजह से हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहा था। अगर कुछ चमक रहा था तो वह था मेरे गले में पड़ा देवी का लॉकेट। तभी मेरी नजर अंधेरे में गुफा के अंदर चमक रहे 2 जुगनुओं पर पड़ी, जो धीरे-धीरे मेरे पास आ रहे थे।

पास आने पर मैं समझ गया कि वह जुगनू नहीं बाल्की किसी जानवर की आँखें हैं। किसी विशालकाय जानवर का अहसास होते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गये। धीरे-धीरे वह विशालकाय आकृति मेरे बिल्कुल समीप आ गयी। उधर गुफा के बाहर से जंगलियों की आवाज आने के कारण मैं गुफा से बाहर भी नहीं जा सकता था।

अब उस विशालकाय जानवर की साँसे भी मुझे अपने शरीर पर महसूस होने लगी थी। धीरे-धीरे आती गुर्र-गुर्र की आवाज से मुझे ये अहसास हो गया कि वह एक पहाड़ी जंगली भालू था। भालू बेहद पास आ गया था और मेरे गले में पड़े उस चमकते लॉकेट को देख रहा था। तभी उस लॉकेट की चमक एकाएक बढ़ सी गयी। भालू हैरान होकर दो कदम पीछे हो गया। मेरे लिये यह बहुत अच्छा मौका था, मैंने अपनी पूरी ताकत से गुफा के अंदर की ओर दौड़ लगा दी।

लॉकेट से निकली रोशनी मेरा मार्गदर्शन कर रही थी। मैं भागते-भागते थककर चूर हो गया, परंतु उस गुफा का दूसरा सिरा मुझे नहीं मिला। गनीमत यही थी कि पता नहीं कहां से मुझे ऑक्सीजन मिल रही थी। कुछ देर आराम करने के बाद मैं पुनः आगे की ओर चल दिया। घड़ी पास में ना होने की वजह से मुझे समय का अहसास नहीं हो पा रहा था।

जाने कितने घंटे मैं इसी तरह से चलता रहा। प्यास, भूख और थकान से मैं पूरी तरह से थककर चूर हो गया था। अंततः बहुत दूर मुझे एक रोशनी सी दिखाई दी। रोशनी देख मुझ में नयी ताकत का संचार हो गया।

वैसे मेरे शरीर में जान तो नहीं बची थी, फिर भी मैं रोशनी को देख आगे बढ़ता रहा। आखिरकार मैं गुफा के मुहाने तक पहुंच गया। वह शायद द्वीप का कोई दूसरा किनारा था क्योंकी समुद्र अब मेरे सामने था। सबसे पहले मैंने वहां लगे पेडों से पेट भरकर फल खाये और एक तालाब का पानी पीया।

फ़िर वहीं एक पेड़ पर चढ़कर सो गया। थकान और पेट भर जाने के कारण मैं कितनी देर तक सोता रहा, मुझे नहीं पता चला। जब मैं जागा तो सूर्य निकल रहा था। शायद मैं 24 घंटे तक सोया था। लेकिन मैं अब अपने आप को काफ़ी ताज़ा महसूस कर रहा था। अब मुझे यहां से निकलने के बारे में सोचना था।

पर कैसे...? बिना बोट के मैं समुद्र में ज़्यादा दूर तक जा भी नहीं सकता था। पर यहां बोट कहां से मिलती? धीरे-धीरे उस जगह पर रहते हुए मुझे कई दिन बीत गये, पर मुझे उस द्वीप से निकलने का कोई रास्ता नहीं मिला। भला यही था कि द्वीप के उस किनारे पर किसी भी प्रकार की मुसीबत नहीं थी। मैं रोज पेड़ के फल खाता और तालाब का पानी पी रहा था।

मैं उस द्वीप की जिंदगी से बोर होने लगा। एक दिन मैंने एक बोट बनाने का सोचा। फिर क्या था मैंने वहां लगे बांस के पेडों से कुछ बांस तोड़ लिये और जंगली बेल व पेड़ की जडों से सबको आपस में बांध लिया। इसी तरह मैंने 2 लकड़ी के चप्पू बना लिये। अब मैं लकड़ी के उस बेड़े पर बैठकर समुद्र में कुछ दूर तक जाने लगा। अब मैं नुकिले काँटो को छोटी-छोटी लकडिय़ों में पिरो कर उसे तीर और भाले का रूप देने लगा और मछलिय़ों का शिकार करने लगा।

मछलिय़ों को कच्चा खाना मेरे लिये बहुत मुश्किल था, पर मुझे आग जलाना अभी आया नहीं था। इसिलये कच्ची मछलिय़ों से ही काम चलाना पड़ रहा था। कुछ दिन और बीत गये। अब मेरी बोट भी थोड़ी और बड़ी हो गयी थी। मैंने कुछ जडों को पेड़ की छाल से बांधकर 10-12 टोकरियां भी बना ली। अब मैं समुद्र में खाना भी लेकर जाने को तैयार था। अब परेशानी केवल पानी की रह गयी थी। क्यों कि समुद्र में ज़्यादा से ज़्यादा दिन जिंदा रहने के लिये पानी का होना सबसे ज़्यादा जरुरी था।

फिलहाल इसका मेरे पास कोई उपाय नहीं था। फिर दिन बीतने लगे। मुझे द्वीप के उस किनारे पर रहते हुए 55 दिन बीत गये। आखिरकार एक दिन मुझे पत्थरों से आग जलाना भी आ गया। फिर तो मुझे मजा ही आ गया। अब मैं मछलिय़ों को पकड़ कर उन्हें पका कर भी खाने लगा।

जब 2 दिन और बीत गये तो अचानक से मेरे दिमाग में मिट्टी के घड़े बनाने का प्लान आया। मैंने 1 दिन के अंदर 20 बड़े-बड़े मटके बना लिये और उन्हें आग में पकाकर पक्का भी कर लिया। अब समुद्र में पानी की समस्या भी ख़त्म हो गयी थी। अब फाइनली मैंने इस द्वीप से निजात पाने का सोचा। अब मैंने कुछ और बांस तोड़कर अपने बेड़े को बड़ा बनाया। फिर 12 टोकरियां में खाने के फल और 20 मटको में तालाब का साफ पानी भरके उन सबको पेड़ की जडों से अच्छी तरह से बांधकर निकल पड़ा उस विशालकाय समुद्र में एक अंतहीन सफर पर।

धीरे-धीरे समुद्र में दिन बीतने लगे। शार्क, बड़ी मछिलयां और तूफान, ना जाने कितनी ऐसी मुसीबतो का सामना करते हुए मुझे 25 दिन बीत गये। मेरे पास अब सारा खाना ख़त्म हो गया था। पानी भी केवल एक मटकी में ही बचा था। 2 दिन बाद वो भी ख़त्म हो गया। 2 दिन के बाद मेरे शरीर में इतनी भी जान नहीं बची थी कि मैं उठकर खड़ा भी हो सकूं।

आख़िर मैं बेहोश होकर अपने बेड़े पर गिर गया। मुझे जब होश आया तो मैंने अपने आपको अंजान जहाज पर पाया। उस जहाज के लोगो को रात के अंधेरे में मेरे गले में पड़े लॉकेट की रोशनी दिखाई दी थी। जिसके बाद उन्होंने मुझे जहाज पर खींच लिया था। उन्होंने मुझसे मेरे बारे में पूछा, पर मैंने पागल होने का नाटक कर उन्हें कुछ नहीं बताया।

जहाज वालों ने अमेरिका पहुंचकर मुझे पुलिस के हवाले कर दिया। बाद में पुलिस ने मेरा फोटो समाचार पत्र में प्रकाशित करवा दिया।
इस तरह मेरे घरवाले मुझे वहां लेने आ पहुंचे। जब पुलिस को यह पता चला कि मैं ब्लैक थंडर पर था, तो उन्होंने मुझसे जहाज के बारे में पूछने की बहुत किशिश की, पर मैं पहले के समान ही पागलो की तरह एक्टिंग करता रहा और मैंने उन्हें कुछ नहीं बताया।

धीरे-धीरे समय बीतता गया। मैंने अपने पूरे सफर को कलमबध्द कर अपनी डायरी में लिख लिया। उसके बाद मैंने अपनी याद के सहारे उस द्वीप का एक नक्शा भी बनाया। मेरा लड़का मोईन अभी छोटा है। मैंने यह सोच रखा है कि जब वह बड़ा हो जायेगा तो मैं ये सारी चीज़े उसके सुपुर्द कर दूंगा।"

इतना पढ़कर सुयश शांत हो गया और बारी-बारी सबका चेहरा देखने लगा। कुछ देर के लिये वहां पर एक सन्नाटा सा छा गया।



जारी रहेगा________✍️
बहुत ही सुंदर लाजवाब अद्भुत अविस्मरणीय और रोमांचक अपडेट है भाई मजा आ गया
असलम यानी मोईन के बॅग में मिले लाॅकेट और डायरी में क्या बात लिखी हैं उस पर से परदा उठ गया
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

parkas

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#91. (मेगा अपडेट)

डायरी का राज

(9 जनवरी 2002, बुधवार, 13:30, मायावन, अराका द्वीप)


सुयश की नजर अब मोईन के काले बैग पर थी। सुयश ने ब्रेंडन से मोईन का बैग मांगा।

सुयश ने आसपास नजर दौड़ायी। सुयश को कुछ दूरी पर एक साफ क्षेत्र दिखाई दिया।

सुयश उधर आकर एक बड़े से पत्थर पर बैठ गया।

सभी लोग सुयश के चारो ओर बैठ गये। सभी के दिल में उस्मान अली की डायरी को लेकर उत्सुकता थी। वह जानना चाहते थे कि डायरी में आखर लिखा क्या है?

सुयश ने अब मोईन का काला बैग खोलकर, उसमें रखा सारा सामान वहीं पत्थर पर बिखेर दिया।

उस बैग में एक डायरी, एक पुराना नक्शा, एक छोटा सा गले में पहनने वाला लॉकेट व एक पेन रखा था।

सुयश ने पहले लॉकेट को उठा कर देखा। लॉकेट एक सुनहरी धातु की जंजीर से बना था, जिसके बीच
में एक काले रंग का गोल मोती लगा था।

“कैप्टन अंकल!" शैफाली ने कहा- “इस लॉकेट का मोती बिल्कुल वैसा ही है, जैसा कि देवी शलाका के हाथ में पकड़ा मोती था।"

सुयश ने धीरे से अपना सिर हिलाकर अपनी सहमित दी।

पता नहीं ऐसा उस मोती में क्या था कि जेनिथ लगातार उस मोती को देखे जा रही थी।

सुयश ने एक नजर लॉकेट को घूरते हुए जेनिथ पर डाली और कुछ सोच उसे जेनिथ की ओर बढ़ा दिया।

जेनिथ ने उस लॉकेट को सुयश के हाथ से ले लिया।

जेनिथ अभी भी बिल्कुल सम्मोहित तरीके से उस लॉकेट को देख रही थी।

अचानक वह लॉकेट आश्चर्यजनक तरीके से हवा में उछला और खुद बा खुद जेनिथ के गले में जाकर बंध गया।

यह घटना देख, सब आश्चर्य से कभी जेनिथ को तो कभी उसके गले में बंधे लॉकेट को देखने लगे।

जेनिथ भी अब सम्मोहन से बाहर आ गयी थी।

“यह क्या था प्रोफेसर?" सुयश ने आश्चर्य से अल्बर्ट की ओर देखते हुए कहा- “क्या यह लॉकेट चमत्कारी था? और अगर हां तो इसने जेनिथ को ही क्यों चुना?"

“देखिये कैप्टन। इस द्वीप पर बहुत अजीब-अजीब सी घटनाएं घट रही हैं।" अल्बर्ट ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा-

“मुझे तो यह घटना भी उसी विचित्र घटना का हिस्सा लग रही है। जैसा कि शैफाली ने उन पत्थरों पर बनी विचित्र आकृतियों को देख कर कहा था कि हमारा इस द्वीप पर आना हमारी नियति थी। तो उस हिसाब से मुझे लगता है कि शायद हम सब किसी बड़ी चमत्कारिक घटना का हिस्सा हैं या बनने जा रहे हैं और हम स्वयं यहां नहीं आये हैं, बल्की हमें यहां लाया गया है। मोईन तो मात्र एक कारक था हमें यहां लाने के लिये।

अगर आप ध्यान से देखें तो धीरे-धीरे हम सभी के साथ कुछ ना कुछ चमत्कारिक घट रहा है। पहले शैफाली की शक्तियों का जागना, फ़िर कैप्टन के टैटू में शक्तियों का समा जाना और अब जेनिथ के साथ भी कुछ ऐसा ही चमत्कारिक होना। यह सब बातें यह बताती हैं कि शायद हमारे किसी जन्म की घटनाएं इस क्षेत्र से जुड़ी हैं। हमारा ‘सुप्रीम’ की दुर्घटना में जिंदा बचना एक इत्तेफाक नहीं है। केवल वही लोग जिंदा बचे हैं, जो किसी ना किसी रूप से इस द्वीप से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं।"

“इसका मतलब मुझमें भी कुछ चमत्कारिक शक्तियां है?" जॉनी ने खुश होकर बोला।

“ऐसा जरूरी नहीं है।" जेनिथ ने जॉनी की ओर देखते हुए कहा-“कुछ लोग मर भी तो रहे हैं।"

जॉनी, जेनिथ का कटाक्ष समझ गया। उसने गुस्से से अपने दाँत पीसे, मगर जेनिथ को कोई जवाब नहीं दिया।

“तुम्हें इस लॉकेट को पहनने के बाद क्या महसूस हुआ जेनिथ?" क्रिस्टी ने जेनिथ की ओर देखते हुए पूछा।

“मैं इस लॉकेट को देखकर पहले सम्मोहित सी हो गयी थी।" जेनिथ ने लॉकेट के मोती को छूते हुए कहा-
“पर मुझे ऐसा नहीं लगा कि मेरा इस लॉकेट से कोई भी पुराना संबंध है? ना ही इसको पहनने के बाद मुझे कुछ भी अलग सा महसूस हुआ?"

“पर कैप्टन.... यह चमत्कारी लॉकेट मोईन के पास कहां से आया?" ब्रेंडन ने कहा।

अब सबका ध्यान फ़िर से काले बैग से निकले बाकी सामान पर गया।

अब सुयश ने वह पुराना नक्शा खोल लिया। नक्शे में कुछ पत्थर, पहाड़, नदियां, झरने और कुछ आड़ी-टेढ़ी रेखाएं बनी थी।

“इसको समझने में समय लगेगा।" सुयश ने नक्शे को वापस गोल लपेटते हुए कहा- “हमें पहले डायरी पर ध्यान देना होगा। उसमें जरूर कुछ काम की बातें होंगी।"

सुयश ने अब डायरी को उठा लिया।

पहला पन्ना खोलते ही उन्हें खूबसूरत अक्षरो में उस्मान अली लिखा हुआ दिखाई दिया।

आखिरकार सुयश ने तेज आवाज में डायरी पढ़ना शुरू कर दिया।

“मेरा नाम उस्मान अली है। मैं आपको एक ऐसे रहस्यमय द्वीप के बारे में बताने जा रहा हूं, जिसका अनुभव मैंने स्वयं किया है।

13 दिसंबर 1984 की ठंड भरी रात थी। मैं ‘ब्लैक-थंडर’ नामक पुर्तगाली जहाज से न्यूयॉर्क से प्यूट्रो-रिको जा रहा था। रात का समय था। मैं जहाज के डेक पर खड़ा अपनी दुनियां में कुछ सोच रहा था। तभी मुझे दूर कहीं आसमान में सिग्नल फ़्लेयर उड़ते दिखाई दिये। मैंने तुरंत डेक पर खड़े लोगो का ध्यान सिग्नल फ़्लेयर की ओर करवाया।

हमें लगा कि जरूर कोई दूसरा पानी का जहाज वहां मुसीबत मे है। मैंने तुरंत इस बात की सूचना एक गार्ड के माध्यम से अपने जहाज के कैप्टन को भिजवा दी। कुछ ही देर में कैप्टन सिहत बहुत सारे लोग डेक पर आ गये। सिग्नल फ़्लेयर अभी भी आसमान में फ़ेंके जा रहे थे। मैंने जहाज के कैप्टन को जहाज को उस दिशा में ले जाने को कहा।

पहले तो जहाज का कैप्टन जहाज को उस दिशा में मोड़ने को तैयार नहीं हुआ । पर बाद में यात्रियो की जिद्द के कारण कैप्टन को सभी की बात माननी पड़ी। ब्लैक थंडर सिग्नल फ़्लेयर की दिशा में आगे बढ़ गया। थोड़ी देर में सिग्नल फ़्लेयर दिखने बंद हो गये। हम अंदाजे से समुद्र में काफ़ी आगे तक आ गये, पर फ़िर भी हमें किसी भी शिप के डूबने का कोई निशान प्राप्त नहीं हुआ? तभी अचानक मौसम काफ़ी खराब हो गया और समुद्र की लहरें ऊंची-ऊची उठने लगी।

ब्लैक थंडर किसी तिनके की तरह समुद्र की लहरों पर डोल रहा था। तभी एक जोरदार झटके से शिप के सारे कन्ट्रोल खराब हो गये। अब ब्लैक थंडर रास्ता भटक चुका था। हमें वापसी के लिये कोई रास्ता समझ नहीं आ रहा था। तभी जाने कहां से एक विशालकाय ब्लू व्हेल मछली आ गयी और उसने शिप पर टक्कर मारना शुरू कर दिया।

ब्लू व्हेल से बचने के लिये कैप्टन ने ब्लैक थंडर को एक अंजान दिशा में मुड़वा दिया। ब्लू व्हेल से अब हमारा पीछा छूट चुका था। हम पुनः आगे बढ़े। अभी हम सब डेक पर ही थे कि तभी एक नीली रोशनी बिखेरती उड़नतस्तरी, आसमान से गोल-गोल नाचती हुई हमारे जहाज से कुछ आगे आकर पानी में गिरी।

जिस स्थान पर वह उड़नतस्तरी पानी में गिरी थी, उस स्थान पर समुद्र में एक विशालकाय भंवर बन गयी। भंवर की विशालता और उसकी तेज-गति देखकर कैप्टन ने ब्लैक थंडर को दूसरी दिशा में मोड़ लिया। कुछ आगे जाने पर ब्लैक थंडर अचानक समुद्र में अपने आप रुक गया। कैमरे द्वारा पानी के नीचे देखने पर हमें एक विशालकाय ‘प्लिसियोसारस’ (एक विलुप्तप्राय समुद्री डाइनोसोर) ब्लैक थंडर को पकड़े हुए दिखाई दिया।

कैप्टन ने प्लिसियोसारस पर तारपीडो से हमला कर दिया। प्लिसियोसारस ने डरकर शिप को छोड़ दिया और अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से शिप को घूरता हुआ समुद्र की गहराइयों में गायब हो गया।
ब्लैक थंडर को फ़िर से आगे बढ़ा लिया गया। उसी रात शिप पर सफर कर रहे 400 यात्रियो में से 275 यात्री शिप से अपने आप गायब हो गये।

बहुत ढूंढने पर भी उन यात्रियो का कुछ पता नहीं चला। शिप पर अब कुल 125 यात्री बचे थे। सुबह हमें एक द्वीप दिखाई दिया जो अजीब सी त्रिभुज जैसी आकृति वाला था। ब्लैक थंडर को उस द्वीप की ओर मोड़ लिया गया। हम द्वीप पर पहुंचने वाले ही थे कि तभी अचानक प्लिसियोसारस ने पुनः ब्लैक थंडर पर आक्रमण कर दिया।

इस बार का उसका आक्रमण बहुत खतरनाक था। उसने अपनी अजगर के समान विशालकाय पूंछ से पूरे ब्लैक थंडर को लपेट लिया। प्लिसियोसारस की ताकत के सामने ब्लैक थंडर कुछ भी नहीं था। आखिरकार उस समुद्री दानव ने ब्लैक थंडर को तोड़ डाला। शिप में सवार कुछ बचे यात्री पानी में छलांग लगाकर द्वीप की ओर बढ़ने लगे और अंततः कुल 28 यात्री उस द्वीप पर बचकर पहुंचने में सफल हो गये। उन्ही लोगो में मैं और मेरा दोस्त गिलफोर्ड भी था।

यहां से शुरू होता है उस रहस्यमय द्वीप का एक भयानक सफर। इस सफर में आती हैं खतरनाक मुसीबतें जैसे दलदल, जंगली गैंडा, गुरिल्ला, पागल हाथी, भयानक शेर, विशालकाय मच्छर, खतरनाक बीमारियां, जहरीली मकिड़यां, खूनी चमगादड़, तेजाबी बारिश और ना जाने कितनी ऐसी भयानक मुसीबतें, जिन्होने 24 यात्रियो को मौत के घाट उतार दिया।

बाकी बचे 4 लोग किसी तरह बचते-बचाते पहाड़ में शरण लेते हैं। इन बचे हुए 4 लोगो में मैं और गिलफोर्ड भी शामिल थे। तभी हम पर एक विशालकाय आग उगलने वाली ड्रैगन ने हमला बोल दिया। ड्रैगन से घबराकर मैं और गिलफोर्ड एक पहाड़ी गुफा में घुस गए। ड्रैगन ने एक बड़ी सी चट्टान लुढ़काकर गुफा का द्वार बंद कर दिया।

अब मेरे और गिलफोर्ड के बाहर निकलने के सभी रास्ते बंद हो चुके थे। हम दोनो गुफा में बुरी तरह से फंस चुके थे। 2 घंटे बाद हमें ऐसा महसूस हुआ कि जैसे गुफा में कहीं से ताजी हवा आ रही है। हम दोनो अंदाजे से अंधेरे में टटोलते हुए गुफा के अंदर की ओर चल दिये।

काफ़ी देर तक चलने के बाद हमें दूर गुफा में कहीं रोशनी सी प्रतीत हुई। हम अंदाज से लड़खड़ाते हुए उस दिशा में चल दिये। कई जगह पर हम गुफा में पत्थरों से टकराये। हमें बहुत सी चोट आ गयी थी। लगभग एक घंटे तक उस अंधेरी गुफा में चलने के बाद हम उस रोशनी वाले स्थान तक पहुंच गये।

वह गुफा के दूसरी ओर का द्वार था। गुफा से निकलने पर हमने अपने आप को एक खूबसूरत घाटी में पाया। चारो तरफ पहाड़ो से घिरी यह घाटी देखने में काफ़ी सुंदर लग रही थी। कई जगह से पहाड़ो से पानी के झरने गिर रहे थे। हमने घाटी के अंदर जाने के लिये पहाड़ो से उतरना शुरु कर दिया। पहाड़ो से उतरने के बाद हम एक बाग में पहुंचे। बाग में सैकड़ो फलों से लदे पेड़ थे। हमने पेडों से फल तोड़कर खाये और झरने का पानी पीया।

हममें एक नयी ताकत का संचार हो चुका था। रात होने वाली थी इसिलये हम वहीं एक पेड़ पर
चढ़कर सो गये। सुबह कुछ अजीब सी आवाज सुनकर हम दोनों की नींद खुल गयी। हमें एक स्थान पर जमीन से निकलते हुए कुछ इंसान दिखाई दिये। जो उस स्थान पर मौजूद एक देवी की मूर्ति के आगे नाच गा रहे थे। रात में अंधेरा होने की वजह से हम स्थान पर मौजूद देवी की मूर्ति को नहीं देख पाये थे।

तभी पूरी घाटी में एक बहुत ही सुगंधित खुशबू फैल गयी। यह विचित्र सुगंध सूंघकर हम दोनो बेहोश हो गये। होश में आने पर हमने अपने आप को एक विशालकाय मंदिर में खंभे से बंधा हुआ पाया। मंदिर में एक विशालकाय देवी की मूर्ति थी, जिनके गले में एक लॉकेट चमक रहा था। देवी के पैरों के पास हीरे, जवाहरात, रत्न, आभूषण असंख्य मात्रा में बिखरे पड़े हुए थे।

उन रत्नो की चमक इतनी ज़्यादा तेज थी कि शुरु में वहां पर आँख खोलकर रख पाना भी मुश्किल लग रहा था। हमने किताबों में भी कभी इतने बड़े खजाने के बारे में नहीं सुन रखा था। तभी मेरी नजर देवी के पैरों के पास रखी एक लाल रंग की जिल्द वाली पुरानी सी किताब पर पड़ी। वह पुरानी किताब एक रत्न जड़ित थाली में रखी थी, जो उसके विशेष होने की कहानी कह रही थी।
हमारे आसपास कुछ जंगली कबीले के लोग अजीब से धारदार हथियार लेकर खड़े थे। हम हैरानी से कभी मूर्ति की सुंदरता तो कभी उस खजाने को निहार रहे थे। तभी उन जंगलियों में से एक ने हमें खंभे से खोलकर देवी के चरणों में झुकने का इशारा किया। मैंने और गिलफोर्ड दोनों ने देवी के चरणों में झुककर प्रणाम किया। मैंने झुककर प्रणाम करते समय धीरे से उन जंगलियों से नजर बचाकर एक छोटा सा हीरा अपने हाथ में छिपा लिया। अब वह जंगली, देवी की पूजा करने लगे।

तभी मंदिर के बाहर से कहीं से शोर की आवाज सुनाई दी। कई जंगली यह आवाज सुन बाहर की ओर भागे। यह देख उनमें से एक जंगली हमारे पास आया और फ़िर से हमारे हाथ उस खंभे के साथ बांध दिया। हमारे हाथ बांधने के बाद वह भी मंदिर से बाहर की ओर भाग गया। अब मंदिर में मैंऔर गिलफोर्ड ही अकेले बचे थे। यह देख मैंने अपने हाथ में थमें हीरे से अपनी हाथ में बंधी रस्सी को काटने लगा।

लगभग 10 मिनट के अथक परिश्रम के बाद मैंने अपने हाथ की रस्सी को काटकर स्वयं को आजाद करा लिया। फ़िर मैंने गिलफोर्ड के हाथ की रस्सी काटी, जिसमें ज़्यादा समय नहीं लगा। हम दोनो देवी की मूर्ति के पास पहुंचे। मेरी नजर देवी की मूर्ति के गले में पहने लॉकेट पर थी। मैं तेजी से उस मूर्ति के ऊपर चढ़ा और देवी के गले में पड़ा लॉकेट निकालकर अपनी जेब में रख लिया। गिलफोर्ड ने वह लाल जिल्द वाली पौराणिक किताब उठा ली।

अब हम दोनों सावधानी से मंदिर के बाहर निकले। बाहर हमें कुछ हरे कीड़े उन जंगलियों को दौड़ाते हुए नजर आये। ऐसे मेढक जैसे विचित्र कीड़े हमने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखे थे। हम दोनों सबकी नजर बचाकर जंगल की ओर भाग गये। काफ़ी दूर आने के बाद हमने राहत की साँस ली। शाम फ़िर से गहराने लगी थी, इसिलये हमने पेडों के फल खाकर गुजारा कर लिया। हम दोनों वहीं पेड़ के नीचे एक साफ सुथरी जगह देखकर वहीं सो गये।

रात में अजीब सी ढम-ढम की आवाज सुनकर हमारी नींद खुल गयी। हम समझ गये कि जंगली रात के अंधेरे में हमें ढूंढ रहे हैं और वह आस-पास ही हैं। गिलफोर्ड तुरंत लाल किताब को कमर में फंसाकर वहीं एक पेड़ पर चढ़ गया। चूंकि पेड़ सपाट था और मैं इतनी तेजी से पेड़ पर नहीं चढ़ सकता था। इसिलये मैं वहां से पहाडों की ओर भाग गया।

इस तरह हम दोनों दोस्त अलग-अलग हो गये। मैंने भागकर एक पहाड़ी गुफा में शरण ली। मुझे नहीं पता चला कि उसके बाद गिलफोर्ड का क्या हुआ? गुफा में अंधेरा होने की वजह से हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहा था। अगर कुछ चमक रहा था तो वह था मेरे गले में पड़ा देवी का लॉकेट। तभी मेरी नजर अंधेरे में गुफा के अंदर चमक रहे 2 जुगनुओं पर पड़ी, जो धीरे-धीरे मेरे पास आ रहे थे।

पास आने पर मैं समझ गया कि वह जुगनू नहीं बाल्की किसी जानवर की आँखें हैं। किसी विशालकाय जानवर का अहसास होते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गये। धीरे-धीरे वह विशालकाय आकृति मेरे बिल्कुल समीप आ गयी। उधर गुफा के बाहर से जंगलियों की आवाज आने के कारण मैं गुफा से बाहर भी नहीं जा सकता था।

अब उस विशालकाय जानवर की साँसे भी मुझे अपने शरीर पर महसूस होने लगी थी। धीरे-धीरे आती गुर्र-गुर्र की आवाज से मुझे ये अहसास हो गया कि वह एक पहाड़ी जंगली भालू था। भालू बेहद पास आ गया था और मेरे गले में पड़े उस चमकते लॉकेट को देख रहा था। तभी उस लॉकेट की चमक एकाएक बढ़ सी गयी। भालू हैरान होकर दो कदम पीछे हो गया। मेरे लिये यह बहुत अच्छा मौका था, मैंने अपनी पूरी ताकत से गुफा के अंदर की ओर दौड़ लगा दी।

लॉकेट से निकली रोशनी मेरा मार्गदर्शन कर रही थी। मैं भागते-भागते थककर चूर हो गया, परंतु उस गुफा का दूसरा सिरा मुझे नहीं मिला। गनीमत यही थी कि पता नहीं कहां से मुझे ऑक्सीजन मिल रही थी। कुछ देर आराम करने के बाद मैं पुनः आगे की ओर चल दिया। घड़ी पास में ना होने की वजह से मुझे समय का अहसास नहीं हो पा रहा था।

जाने कितने घंटे मैं इसी तरह से चलता रहा। प्यास, भूख और थकान से मैं पूरी तरह से थककर चूर हो गया था। अंततः बहुत दूर मुझे एक रोशनी सी दिखाई दी। रोशनी देख मुझ में नयी ताकत का संचार हो गया।

वैसे मेरे शरीर में जान तो नहीं बची थी, फिर भी मैं रोशनी को देख आगे बढ़ता रहा। आखिरकार मैं गुफा के मुहाने तक पहुंच गया। वह शायद द्वीप का कोई दूसरा किनारा था क्योंकी समुद्र अब मेरे सामने था। सबसे पहले मैंने वहां लगे पेडों से पेट भरकर फल खाये और एक तालाब का पानी पीया।

फ़िर वहीं एक पेड़ पर चढ़कर सो गया। थकान और पेट भर जाने के कारण मैं कितनी देर तक सोता रहा, मुझे नहीं पता चला। जब मैं जागा तो सूर्य निकल रहा था। शायद मैं 24 घंटे तक सोया था। लेकिन मैं अब अपने आप को काफ़ी ताज़ा महसूस कर रहा था। अब मुझे यहां से निकलने के बारे में सोचना था।

पर कैसे...? बिना बोट के मैं समुद्र में ज़्यादा दूर तक जा भी नहीं सकता था। पर यहां बोट कहां से मिलती? धीरे-धीरे उस जगह पर रहते हुए मुझे कई दिन बीत गये, पर मुझे उस द्वीप से निकलने का कोई रास्ता नहीं मिला। भला यही था कि द्वीप के उस किनारे पर किसी भी प्रकार की मुसीबत नहीं थी। मैं रोज पेड़ के फल खाता और तालाब का पानी पी रहा था।

मैं उस द्वीप की जिंदगी से बोर होने लगा। एक दिन मैंने एक बोट बनाने का सोचा। फिर क्या था मैंने वहां लगे बांस के पेडों से कुछ बांस तोड़ लिये और जंगली बेल व पेड़ की जडों से सबको आपस में बांध लिया। इसी तरह मैंने 2 लकड़ी के चप्पू बना लिये। अब मैं लकड़ी के उस बेड़े पर बैठकर समुद्र में कुछ दूर तक जाने लगा। अब मैं नुकिले काँटो को छोटी-छोटी लकडिय़ों में पिरो कर उसे तीर और भाले का रूप देने लगा और मछलिय़ों का शिकार करने लगा।

मछलिय़ों को कच्चा खाना मेरे लिये बहुत मुश्किल था, पर मुझे आग जलाना अभी आया नहीं था। इसिलये कच्ची मछलिय़ों से ही काम चलाना पड़ रहा था। कुछ दिन और बीत गये। अब मेरी बोट भी थोड़ी और बड़ी हो गयी थी। मैंने कुछ जडों को पेड़ की छाल से बांधकर 10-12 टोकरियां भी बना ली। अब मैं समुद्र में खाना भी लेकर जाने को तैयार था। अब परेशानी केवल पानी की रह गयी थी। क्यों कि समुद्र में ज़्यादा से ज़्यादा दिन जिंदा रहने के लिये पानी का होना सबसे ज़्यादा जरुरी था।

फिलहाल इसका मेरे पास कोई उपाय नहीं था। फिर दिन बीतने लगे। मुझे द्वीप के उस किनारे पर रहते हुए 55 दिन बीत गये। आखिरकार एक दिन मुझे पत्थरों से आग जलाना भी आ गया। फिर तो मुझे मजा ही आ गया। अब मैं मछलिय़ों को पकड़ कर उन्हें पका कर भी खाने लगा।

जब 2 दिन और बीत गये तो अचानक से मेरे दिमाग में मिट्टी के घड़े बनाने का प्लान आया। मैंने 1 दिन के अंदर 20 बड़े-बड़े मटके बना लिये और उन्हें आग में पकाकर पक्का भी कर लिया। अब समुद्र में पानी की समस्या भी ख़त्म हो गयी थी। अब फाइनली मैंने इस द्वीप से निजात पाने का सोचा। अब मैंने कुछ और बांस तोड़कर अपने बेड़े को बड़ा बनाया। फिर 12 टोकरियां में खाने के फल और 20 मटको में तालाब का साफ पानी भरके उन सबको पेड़ की जडों से अच्छी तरह से बांधकर निकल पड़ा उस विशालकाय समुद्र में एक अंतहीन सफर पर।

धीरे-धीरे समुद्र में दिन बीतने लगे। शार्क, बड़ी मछिलयां और तूफान, ना जाने कितनी ऐसी मुसीबतो का सामना करते हुए मुझे 25 दिन बीत गये। मेरे पास अब सारा खाना ख़त्म हो गया था। पानी भी केवल एक मटकी में ही बचा था। 2 दिन बाद वो भी ख़त्म हो गया। 2 दिन के बाद मेरे शरीर में इतनी भी जान नहीं बची थी कि मैं उठकर खड़ा भी हो सकूं।

आख़िर मैं बेहोश होकर अपने बेड़े पर गिर गया। मुझे जब होश आया तो मैंने अपने आपको अंजान जहाज पर पाया। उस जहाज के लोगो को रात के अंधेरे में मेरे गले में पड़े लॉकेट की रोशनी दिखाई दी थी। जिसके बाद उन्होंने मुझे जहाज पर खींच लिया था। उन्होंने मुझसे मेरे बारे में पूछा, पर मैंने पागल होने का नाटक कर उन्हें कुछ नहीं बताया।

जहाज वालों ने अमेरिका पहुंचकर मुझे पुलिस के हवाले कर दिया। बाद में पुलिस ने मेरा फोटो समाचार पत्र में प्रकाशित करवा दिया।
इस तरह मेरे घरवाले मुझे वहां लेने आ पहुंचे। जब पुलिस को यह पता चला कि मैं ब्लैक थंडर पर था, तो उन्होंने मुझसे जहाज के बारे में पूछने की बहुत किशिश की, पर मैं पहले के समान ही पागलो की तरह एक्टिंग करता रहा और मैंने उन्हें कुछ नहीं बताया।

धीरे-धीरे समय बीतता गया। मैंने अपने पूरे सफर को कलमबध्द कर अपनी डायरी में लिख लिया। उसके बाद मैंने अपनी याद के सहारे उस द्वीप का एक नक्शा भी बनाया। मेरा लड़का मोईन अभी छोटा है। मैंने यह सोच रखा है कि जब वह बड़ा हो जायेगा तो मैं ये सारी चीज़े उसके सुपुर्द कर दूंगा।"

इतना पढ़कर सुयश शांत हो गया और बारी-बारी सबका चेहरा देखने लगा। कुछ देर के लिये वहां पर एक सन्नाटा सा छा गया।



जारी रहेगा________✍️
Bahut hi badhiya update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and beautiful update....
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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lovely update. Usman ali ko jo locket mila tha usne jenith ko apna liya aur uske gale me apne aap chala gaya .par wo locket to devi ke gale me tha to jenith ko kyu chuna ye raaz shayad aage pata chale .
Bilkul aage pata chal jayega :shhhh: wo koi saadharan locket to bilkul nahi hai :nope: Uski shakti ka jab pata chalega to hairaan ho jaaoge👍
usman ali ki diary me wo sab likha hai ki kaise wo rahasy mayi dweep par pahucha aur bachke nikal aaya .
jahaj ke saare log maare gaye par uske dost ka kya hua ye pata nahi chala ,shayad jungli logo ne usko maar daala ho ya shayad wo ab bhi jinda ho us dweep par .
Kya pata ho bhi sakta hai ki wo jinda ho, ya fir mar gaya ho? Kon jaane:dontknow:
usman ali ne jo dekha wo alag tha ,usne rahsymayi shahar nahi dekha jo super computer dwara banaya jaa raha hai .jisko Vyom ne dekha hai .

jis janwar ne jahaj par attack kiya tha wo wahi hoga roop badalnewala .
Vyom ne jo dekha wo alag tha aur usman ne dekha wo alag, per wo saari cheeje isi dweep ka hissa hain:approve:
Thank you very much for your wonderful review and support bhai :hug:
 

Raj_sharma

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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
असलम को उसके किये की सजा मिल गयी पर मरतें मरतें उसने सुप्रीम को बर्मुडा त्रिकोण में उसने लाया यह राज बता दिया और उसके पिता व्दारा खोजे खजाने के बारें में भी बता दिया और डायरी भी
ये युगाका सुयश और टीम को क्यो मरते देख मुस्कुराता हैं
खैर देखते हैं आगे
Aslam ka raaj khul gaya hai bhai, aur yugaka ka kissa bhi ek din nipta hi dene wala hu:chop:Dekhta hu ki shefaali se milne ke baad wo kya karega (waise ye mujhe nahi bolna tha:shhhh: Aap bhi kisi ko batana mat)
Thanks for your valuable review and support bhai :hug:
 

dhalchandarun

[Death is the most beautiful thing.]
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#91. (मेगा अपडेट)

डायरी का राज

(9 जनवरी 2002, बुधवार, 13:30, मायावन, अराका द्वीप)


सुयश की नजर अब मोईन के काले बैग पर थी। सुयश ने ब्रेंडन से मोईन का बैग मांगा।

सुयश ने आसपास नजर दौड़ायी। सुयश को कुछ दूरी पर एक साफ क्षेत्र दिखाई दिया।

सुयश उधर आकर एक बड़े से पत्थर पर बैठ गया।

सभी लोग सुयश के चारो ओर बैठ गये। सभी के दिल में उस्मान अली की डायरी को लेकर उत्सुकता थी। वह जानना चाहते थे कि डायरी में आखर लिखा क्या है?

सुयश ने अब मोईन का काला बैग खोलकर, उसमें रखा सारा सामान वहीं पत्थर पर बिखेर दिया।

उस बैग में एक डायरी, एक पुराना नक्शा, एक छोटा सा गले में पहनने वाला लॉकेट व एक पेन रखा था।

सुयश ने पहले लॉकेट को उठा कर देखा। लॉकेट एक सुनहरी धातु की जंजीर से बना था, जिसके बीच
में एक काले रंग का गोल मोती लगा था।

“कैप्टन अंकल!" शैफाली ने कहा- “इस लॉकेट का मोती बिल्कुल वैसा ही है, जैसा कि देवी शलाका के हाथ में पकड़ा मोती था।"

सुयश ने धीरे से अपना सिर हिलाकर अपनी सहमित दी।

पता नहीं ऐसा उस मोती में क्या था कि जेनिथ लगातार उस मोती को देखे जा रही थी।

सुयश ने एक नजर लॉकेट को घूरते हुए जेनिथ पर डाली और कुछ सोच उसे जेनिथ की ओर बढ़ा दिया।

जेनिथ ने उस लॉकेट को सुयश के हाथ से ले लिया।

जेनिथ अभी भी बिल्कुल सम्मोहित तरीके से उस लॉकेट को देख रही थी।

अचानक वह लॉकेट आश्चर्यजनक तरीके से हवा में उछला और खुद बा खुद जेनिथ के गले में जाकर बंध गया।

यह घटना देख, सब आश्चर्य से कभी जेनिथ को तो कभी उसके गले में बंधे लॉकेट को देखने लगे।

जेनिथ भी अब सम्मोहन से बाहर आ गयी थी।

“यह क्या था प्रोफेसर?" सुयश ने आश्चर्य से अल्बर्ट की ओर देखते हुए कहा- “क्या यह लॉकेट चमत्कारी था? और अगर हां तो इसने जेनिथ को ही क्यों चुना?"

“देखिये कैप्टन। इस द्वीप पर बहुत अजीब-अजीब सी घटनाएं घट रही हैं।" अल्बर्ट ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा-

“मुझे तो यह घटना भी उसी विचित्र घटना का हिस्सा लग रही है। जैसा कि शैफाली ने उन पत्थरों पर बनी विचित्र आकृतियों को देख कर कहा था कि हमारा इस द्वीप पर आना हमारी नियति थी। तो उस हिसाब से मुझे लगता है कि शायद हम सब किसी बड़ी चमत्कारिक घटना का हिस्सा हैं या बनने जा रहे हैं और हम स्वयं यहां नहीं आये हैं, बल्की हमें यहां लाया गया है। मोईन तो मात्र एक कारक था हमें यहां लाने के लिये।

अगर आप ध्यान से देखें तो धीरे-धीरे हम सभी के साथ कुछ ना कुछ चमत्कारिक घट रहा है। पहले शैफाली की शक्तियों का जागना, फ़िर कैप्टन के टैटू में शक्तियों का समा जाना और अब जेनिथ के साथ भी कुछ ऐसा ही चमत्कारिक होना। यह सब बातें यह बताती हैं कि शायद हमारे किसी जन्म की घटनाएं इस क्षेत्र से जुड़ी हैं। हमारा ‘सुप्रीम’ की दुर्घटना में जिंदा बचना एक इत्तेफाक नहीं है। केवल वही लोग जिंदा बचे हैं, जो किसी ना किसी रूप से इस द्वीप से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं।"

“इसका मतलब मुझमें भी कुछ चमत्कारिक शक्तियां है?" जॉनी ने खुश होकर बोला।

“ऐसा जरूरी नहीं है।" जेनिथ ने जॉनी की ओर देखते हुए कहा-“कुछ लोग मर भी तो रहे हैं।"

जॉनी, जेनिथ का कटाक्ष समझ गया। उसने गुस्से से अपने दाँत पीसे, मगर जेनिथ को कोई जवाब नहीं दिया।

“तुम्हें इस लॉकेट को पहनने के बाद क्या महसूस हुआ जेनिथ?" क्रिस्टी ने जेनिथ की ओर देखते हुए पूछा।

“मैं इस लॉकेट को देखकर पहले सम्मोहित सी हो गयी थी।" जेनिथ ने लॉकेट के मोती को छूते हुए कहा-
“पर मुझे ऐसा नहीं लगा कि मेरा इस लॉकेट से कोई भी पुराना संबंध है? ना ही इसको पहनने के बाद मुझे कुछ भी अलग सा महसूस हुआ?"

“पर कैप्टन.... यह चमत्कारी लॉकेट मोईन के पास कहां से आया?" ब्रेंडन ने कहा।

अब सबका ध्यान फ़िर से काले बैग से निकले बाकी सामान पर गया।

अब सुयश ने वह पुराना नक्शा खोल लिया। नक्शे में कुछ पत्थर, पहाड़, नदियां, झरने और कुछ आड़ी-टेढ़ी रेखाएं बनी थी।

“इसको समझने में समय लगेगा।" सुयश ने नक्शे को वापस गोल लपेटते हुए कहा- “हमें पहले डायरी पर ध्यान देना होगा। उसमें जरूर कुछ काम की बातें होंगी।"

सुयश ने अब डायरी को उठा लिया।

पहला पन्ना खोलते ही उन्हें खूबसूरत अक्षरो में उस्मान अली लिखा हुआ दिखाई दिया।

आखिरकार सुयश ने तेज आवाज में डायरी पढ़ना शुरू कर दिया।

“मेरा नाम उस्मान अली है। मैं आपको एक ऐसे रहस्यमय द्वीप के बारे में बताने जा रहा हूं, जिसका अनुभव मैंने स्वयं किया है।

13 दिसंबर 1984 की ठंड भरी रात थी। मैं ‘ब्लैक-थंडर’ नामक पुर्तगाली जहाज से न्यूयॉर्क से प्यूट्रो-रिको जा रहा था। रात का समय था। मैं जहाज के डेक पर खड़ा अपनी दुनियां में कुछ सोच रहा था। तभी मुझे दूर कहीं आसमान में सिग्नल फ़्लेयर उड़ते दिखाई दिये। मैंने तुरंत डेक पर खड़े लोगो का ध्यान सिग्नल फ़्लेयर की ओर करवाया।

हमें लगा कि जरूर कोई दूसरा पानी का जहाज वहां मुसीबत मे है। मैंने तुरंत इस बात की सूचना एक गार्ड के माध्यम से अपने जहाज के कैप्टन को भिजवा दी। कुछ ही देर में कैप्टन सिहत बहुत सारे लोग डेक पर आ गये। सिग्नल फ़्लेयर अभी भी आसमान में फ़ेंके जा रहे थे। मैंने जहाज के कैप्टन को जहाज को उस दिशा में ले जाने को कहा।

पहले तो जहाज का कैप्टन जहाज को उस दिशा में मोड़ने को तैयार नहीं हुआ । पर बाद में यात्रियो की जिद्द के कारण कैप्टन को सभी की बात माननी पड़ी। ब्लैक थंडर सिग्नल फ़्लेयर की दिशा में आगे बढ़ गया। थोड़ी देर में सिग्नल फ़्लेयर दिखने बंद हो गये। हम अंदाजे से समुद्र में काफ़ी आगे तक आ गये, पर फ़िर भी हमें किसी भी शिप के डूबने का कोई निशान प्राप्त नहीं हुआ? तभी अचानक मौसम काफ़ी खराब हो गया और समुद्र की लहरें ऊंची-ऊची उठने लगी।

ब्लैक थंडर किसी तिनके की तरह समुद्र की लहरों पर डोल रहा था। तभी एक जोरदार झटके से शिप के सारे कन्ट्रोल खराब हो गये। अब ब्लैक थंडर रास्ता भटक चुका था। हमें वापसी के लिये कोई रास्ता समझ नहीं आ रहा था। तभी जाने कहां से एक विशालकाय ब्लू व्हेल मछली आ गयी और उसने शिप पर टक्कर मारना शुरू कर दिया।

ब्लू व्हेल से बचने के लिये कैप्टन ने ब्लैक थंडर को एक अंजान दिशा में मुड़वा दिया। ब्लू व्हेल से अब हमारा पीछा छूट चुका था। हम पुनः आगे बढ़े। अभी हम सब डेक पर ही थे कि तभी एक नीली रोशनी बिखेरती उड़नतस्तरी, आसमान से गोल-गोल नाचती हुई हमारे जहाज से कुछ आगे आकर पानी में गिरी।

जिस स्थान पर वह उड़नतस्तरी पानी में गिरी थी, उस स्थान पर समुद्र में एक विशालकाय भंवर बन गयी। भंवर की विशालता और उसकी तेज-गति देखकर कैप्टन ने ब्लैक थंडर को दूसरी दिशा में मोड़ लिया। कुछ आगे जाने पर ब्लैक थंडर अचानक समुद्र में अपने आप रुक गया। कैमरे द्वारा पानी के नीचे देखने पर हमें एक विशालकाय ‘प्लिसियोसारस’ (एक विलुप्तप्राय समुद्री डाइनोसोर) ब्लैक थंडर को पकड़े हुए दिखाई दिया।

कैप्टन ने प्लिसियोसारस पर तारपीडो से हमला कर दिया। प्लिसियोसारस ने डरकर शिप को छोड़ दिया और अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से शिप को घूरता हुआ समुद्र की गहराइयों में गायब हो गया।
ब्लैक थंडर को फ़िर से आगे बढ़ा लिया गया। उसी रात शिप पर सफर कर रहे 400 यात्रियो में से 275 यात्री शिप से अपने आप गायब हो गये।

बहुत ढूंढने पर भी उन यात्रियो का कुछ पता नहीं चला। शिप पर अब कुल 125 यात्री बचे थे। सुबह हमें एक द्वीप दिखाई दिया जो अजीब सी त्रिभुज जैसी आकृति वाला था। ब्लैक थंडर को उस द्वीप की ओर मोड़ लिया गया। हम द्वीप पर पहुंचने वाले ही थे कि तभी अचानक प्लिसियोसारस ने पुनः ब्लैक थंडर पर आक्रमण कर दिया।

इस बार का उसका आक्रमण बहुत खतरनाक था। उसने अपनी अजगर के समान विशालकाय पूंछ से पूरे ब्लैक थंडर को लपेट लिया। प्लिसियोसारस की ताकत के सामने ब्लैक थंडर कुछ भी नहीं था। आखिरकार उस समुद्री दानव ने ब्लैक थंडर को तोड़ डाला। शिप में सवार कुछ बचे यात्री पानी में छलांग लगाकर द्वीप की ओर बढ़ने लगे और अंततः कुल 28 यात्री उस द्वीप पर बचकर पहुंचने में सफल हो गये। उन्ही लोगो में मैं और मेरा दोस्त गिलफोर्ड भी था।

यहां से शुरू होता है उस रहस्यमय द्वीप का एक भयानक सफर। इस सफर में आती हैं खतरनाक मुसीबतें जैसे दलदल, जंगली गैंडा, गुरिल्ला, पागल हाथी, भयानक शेर, विशालकाय मच्छर, खतरनाक बीमारियां, जहरीली मकिड़यां, खूनी चमगादड़, तेजाबी बारिश और ना जाने कितनी ऐसी भयानक मुसीबतें, जिन्होने 24 यात्रियो को मौत के घाट उतार दिया।

बाकी बचे 4 लोग किसी तरह बचते-बचाते पहाड़ में शरण लेते हैं। इन बचे हुए 4 लोगो में मैं और गिलफोर्ड भी शामिल थे। तभी हम पर एक विशालकाय आग उगलने वाली ड्रैगन ने हमला बोल दिया। ड्रैगन से घबराकर मैं और गिलफोर्ड एक पहाड़ी गुफा में घुस गए। ड्रैगन ने एक बड़ी सी चट्टान लुढ़काकर गुफा का द्वार बंद कर दिया।

अब मेरे और गिलफोर्ड के बाहर निकलने के सभी रास्ते बंद हो चुके थे। हम दोनो गुफा में बुरी तरह से फंस चुके थे। 2 घंटे बाद हमें ऐसा महसूस हुआ कि जैसे गुफा में कहीं से ताजी हवा आ रही है। हम दोनो अंदाजे से अंधेरे में टटोलते हुए गुफा के अंदर की ओर चल दिये।

काफ़ी देर तक चलने के बाद हमें दूर गुफा में कहीं रोशनी सी प्रतीत हुई। हम अंदाज से लड़खड़ाते हुए उस दिशा में चल दिये। कई जगह पर हम गुफा में पत्थरों से टकराये। हमें बहुत सी चोट आ गयी थी। लगभग एक घंटे तक उस अंधेरी गुफा में चलने के बाद हम उस रोशनी वाले स्थान तक पहुंच गये।

वह गुफा के दूसरी ओर का द्वार था। गुफा से निकलने पर हमने अपने आप को एक खूबसूरत घाटी में पाया। चारो तरफ पहाड़ो से घिरी यह घाटी देखने में काफ़ी सुंदर लग रही थी। कई जगह से पहाड़ो से पानी के झरने गिर रहे थे। हमने घाटी के अंदर जाने के लिये पहाड़ो से उतरना शुरु कर दिया। पहाड़ो से उतरने के बाद हम एक बाग में पहुंचे। बाग में सैकड़ो फलों से लदे पेड़ थे। हमने पेडों से फल तोड़कर खाये और झरने का पानी पीया।

हममें एक नयी ताकत का संचार हो चुका था। रात होने वाली थी इसिलये हम वहीं एक पेड़ पर
चढ़कर सो गये। सुबह कुछ अजीब सी आवाज सुनकर हम दोनों की नींद खुल गयी। हमें एक स्थान पर जमीन से निकलते हुए कुछ इंसान दिखाई दिये। जो उस स्थान पर मौजूद एक देवी की मूर्ति के आगे नाच गा रहे थे। रात में अंधेरा होने की वजह से हम स्थान पर मौजूद देवी की मूर्ति को नहीं देख पाये थे।

तभी पूरी घाटी में एक बहुत ही सुगंधित खुशबू फैल गयी। यह विचित्र सुगंध सूंघकर हम दोनो बेहोश हो गये। होश में आने पर हमने अपने आप को एक विशालकाय मंदिर में खंभे से बंधा हुआ पाया। मंदिर में एक विशालकाय देवी की मूर्ति थी, जिनके गले में एक लॉकेट चमक रहा था। देवी के पैरों के पास हीरे, जवाहरात, रत्न, आभूषण असंख्य मात्रा में बिखरे पड़े हुए थे।

उन रत्नो की चमक इतनी ज़्यादा तेज थी कि शुरु में वहां पर आँख खोलकर रख पाना भी मुश्किल लग रहा था। हमने किताबों में भी कभी इतने बड़े खजाने के बारे में नहीं सुन रखा था। तभी मेरी नजर देवी के पैरों के पास रखी एक लाल रंग की जिल्द वाली पुरानी सी किताब पर पड़ी। वह पुरानी किताब एक रत्न जड़ित थाली में रखी थी, जो उसके विशेष होने की कहानी कह रही थी।
हमारे आसपास कुछ जंगली कबीले के लोग अजीब से धारदार हथियार लेकर खड़े थे। हम हैरानी से कभी मूर्ति की सुंदरता तो कभी उस खजाने को निहार रहे थे। तभी उन जंगलियों में से एक ने हमें खंभे से खोलकर देवी के चरणों में झुकने का इशारा किया। मैंने और गिलफोर्ड दोनों ने देवी के चरणों में झुककर प्रणाम किया। मैंने झुककर प्रणाम करते समय धीरे से उन जंगलियों से नजर बचाकर एक छोटा सा हीरा अपने हाथ में छिपा लिया। अब वह जंगली, देवी की पूजा करने लगे।

तभी मंदिर के बाहर से कहीं से शोर की आवाज सुनाई दी। कई जंगली यह आवाज सुन बाहर की ओर भागे। यह देख उनमें से एक जंगली हमारे पास आया और फ़िर से हमारे हाथ उस खंभे के साथ बांध दिया। हमारे हाथ बांधने के बाद वह भी मंदिर से बाहर की ओर भाग गया। अब मंदिर में मैंऔर गिलफोर्ड ही अकेले बचे थे। यह देख मैंने अपने हाथ में थमें हीरे से अपनी हाथ में बंधी रस्सी को काटने लगा।

लगभग 10 मिनट के अथक परिश्रम के बाद मैंने अपने हाथ की रस्सी को काटकर स्वयं को आजाद करा लिया। फ़िर मैंने गिलफोर्ड के हाथ की रस्सी काटी, जिसमें ज़्यादा समय नहीं लगा। हम दोनो देवी की मूर्ति के पास पहुंचे। मेरी नजर देवी की मूर्ति के गले में पहने लॉकेट पर थी। मैं तेजी से उस मूर्ति के ऊपर चढ़ा और देवी के गले में पड़ा लॉकेट निकालकर अपनी जेब में रख लिया। गिलफोर्ड ने वह लाल जिल्द वाली पौराणिक किताब उठा ली।

अब हम दोनों सावधानी से मंदिर के बाहर निकले। बाहर हमें कुछ हरे कीड़े उन जंगलियों को दौड़ाते हुए नजर आये। ऐसे मेढक जैसे विचित्र कीड़े हमने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखे थे। हम दोनों सबकी नजर बचाकर जंगल की ओर भाग गये। काफ़ी दूर आने के बाद हमने राहत की साँस ली। शाम फ़िर से गहराने लगी थी, इसिलये हमने पेडों के फल खाकर गुजारा कर लिया। हम दोनों वहीं पेड़ के नीचे एक साफ सुथरी जगह देखकर वहीं सो गये।

रात में अजीब सी ढम-ढम की आवाज सुनकर हमारी नींद खुल गयी। हम समझ गये कि जंगली रात के अंधेरे में हमें ढूंढ रहे हैं और वह आस-पास ही हैं। गिलफोर्ड तुरंत लाल किताब को कमर में फंसाकर वहीं एक पेड़ पर चढ़ गया। चूंकि पेड़ सपाट था और मैं इतनी तेजी से पेड़ पर नहीं चढ़ सकता था। इसिलये मैं वहां से पहाडों की ओर भाग गया।

इस तरह हम दोनों दोस्त अलग-अलग हो गये। मैंने भागकर एक पहाड़ी गुफा में शरण ली। मुझे नहीं पता चला कि उसके बाद गिलफोर्ड का क्या हुआ? गुफा में अंधेरा होने की वजह से हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहा था। अगर कुछ चमक रहा था तो वह था मेरे गले में पड़ा देवी का लॉकेट। तभी मेरी नजर अंधेरे में गुफा के अंदर चमक रहे 2 जुगनुओं पर पड़ी, जो धीरे-धीरे मेरे पास आ रहे थे।

पास आने पर मैं समझ गया कि वह जुगनू नहीं बाल्की किसी जानवर की आँखें हैं। किसी विशालकाय जानवर का अहसास होते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गये। धीरे-धीरे वह विशालकाय आकृति मेरे बिल्कुल समीप आ गयी। उधर गुफा के बाहर से जंगलियों की आवाज आने के कारण मैं गुफा से बाहर भी नहीं जा सकता था।

अब उस विशालकाय जानवर की साँसे भी मुझे अपने शरीर पर महसूस होने लगी थी। धीरे-धीरे आती गुर्र-गुर्र की आवाज से मुझे ये अहसास हो गया कि वह एक पहाड़ी जंगली भालू था। भालू बेहद पास आ गया था और मेरे गले में पड़े उस चमकते लॉकेट को देख रहा था। तभी उस लॉकेट की चमक एकाएक बढ़ सी गयी। भालू हैरान होकर दो कदम पीछे हो गया। मेरे लिये यह बहुत अच्छा मौका था, मैंने अपनी पूरी ताकत से गुफा के अंदर की ओर दौड़ लगा दी।

लॉकेट से निकली रोशनी मेरा मार्गदर्शन कर रही थी। मैं भागते-भागते थककर चूर हो गया, परंतु उस गुफा का दूसरा सिरा मुझे नहीं मिला। गनीमत यही थी कि पता नहीं कहां से मुझे ऑक्सीजन मिल रही थी। कुछ देर आराम करने के बाद मैं पुनः आगे की ओर चल दिया। घड़ी पास में ना होने की वजह से मुझे समय का अहसास नहीं हो पा रहा था।

जाने कितने घंटे मैं इसी तरह से चलता रहा। प्यास, भूख और थकान से मैं पूरी तरह से थककर चूर हो गया था। अंततः बहुत दूर मुझे एक रोशनी सी दिखाई दी। रोशनी देख मुझ में नयी ताकत का संचार हो गया।

वैसे मेरे शरीर में जान तो नहीं बची थी, फिर भी मैं रोशनी को देख आगे बढ़ता रहा। आखिरकार मैं गुफा के मुहाने तक पहुंच गया। वह शायद द्वीप का कोई दूसरा किनारा था क्योंकी समुद्र अब मेरे सामने था। सबसे पहले मैंने वहां लगे पेडों से पेट भरकर फल खाये और एक तालाब का पानी पीया।

फ़िर वहीं एक पेड़ पर चढ़कर सो गया। थकान और पेट भर जाने के कारण मैं कितनी देर तक सोता रहा, मुझे नहीं पता चला। जब मैं जागा तो सूर्य निकल रहा था। शायद मैं 24 घंटे तक सोया था। लेकिन मैं अब अपने आप को काफ़ी ताज़ा महसूस कर रहा था। अब मुझे यहां से निकलने के बारे में सोचना था।

पर कैसे...? बिना बोट के मैं समुद्र में ज़्यादा दूर तक जा भी नहीं सकता था। पर यहां बोट कहां से मिलती? धीरे-धीरे उस जगह पर रहते हुए मुझे कई दिन बीत गये, पर मुझे उस द्वीप से निकलने का कोई रास्ता नहीं मिला। भला यही था कि द्वीप के उस किनारे पर किसी भी प्रकार की मुसीबत नहीं थी। मैं रोज पेड़ के फल खाता और तालाब का पानी पी रहा था।

मैं उस द्वीप की जिंदगी से बोर होने लगा। एक दिन मैंने एक बोट बनाने का सोचा। फिर क्या था मैंने वहां लगे बांस के पेडों से कुछ बांस तोड़ लिये और जंगली बेल व पेड़ की जडों से सबको आपस में बांध लिया। इसी तरह मैंने 2 लकड़ी के चप्पू बना लिये। अब मैं लकड़ी के उस बेड़े पर बैठकर समुद्र में कुछ दूर तक जाने लगा। अब मैं नुकिले काँटो को छोटी-छोटी लकडिय़ों में पिरो कर उसे तीर और भाले का रूप देने लगा और मछलिय़ों का शिकार करने लगा।

मछलिय़ों को कच्चा खाना मेरे लिये बहुत मुश्किल था, पर मुझे आग जलाना अभी आया नहीं था। इसिलये कच्ची मछलिय़ों से ही काम चलाना पड़ रहा था। कुछ दिन और बीत गये। अब मेरी बोट भी थोड़ी और बड़ी हो गयी थी। मैंने कुछ जडों को पेड़ की छाल से बांधकर 10-12 टोकरियां भी बना ली। अब मैं समुद्र में खाना भी लेकर जाने को तैयार था। अब परेशानी केवल पानी की रह गयी थी। क्यों कि समुद्र में ज़्यादा से ज़्यादा दिन जिंदा रहने के लिये पानी का होना सबसे ज़्यादा जरुरी था।

फिलहाल इसका मेरे पास कोई उपाय नहीं था। फिर दिन बीतने लगे। मुझे द्वीप के उस किनारे पर रहते हुए 55 दिन बीत गये। आखिरकार एक दिन मुझे पत्थरों से आग जलाना भी आ गया। फिर तो मुझे मजा ही आ गया। अब मैं मछलिय़ों को पकड़ कर उन्हें पका कर भी खाने लगा।

जब 2 दिन और बीत गये तो अचानक से मेरे दिमाग में मिट्टी के घड़े बनाने का प्लान आया। मैंने 1 दिन के अंदर 20 बड़े-बड़े मटके बना लिये और उन्हें आग में पकाकर पक्का भी कर लिया। अब समुद्र में पानी की समस्या भी ख़त्म हो गयी थी। अब फाइनली मैंने इस द्वीप से निजात पाने का सोचा। अब मैंने कुछ और बांस तोड़कर अपने बेड़े को बड़ा बनाया। फिर 12 टोकरियां में खाने के फल और 20 मटको में तालाब का साफ पानी भरके उन सबको पेड़ की जडों से अच्छी तरह से बांधकर निकल पड़ा उस विशालकाय समुद्र में एक अंतहीन सफर पर।

धीरे-धीरे समुद्र में दिन बीतने लगे। शार्क, बड़ी मछिलयां और तूफान, ना जाने कितनी ऐसी मुसीबतो का सामना करते हुए मुझे 25 दिन बीत गये। मेरे पास अब सारा खाना ख़त्म हो गया था। पानी भी केवल एक मटकी में ही बचा था। 2 दिन बाद वो भी ख़त्म हो गया। 2 दिन के बाद मेरे शरीर में इतनी भी जान नहीं बची थी कि मैं उठकर खड़ा भी हो सकूं।

आख़िर मैं बेहोश होकर अपने बेड़े पर गिर गया। मुझे जब होश आया तो मैंने अपने आपको अंजान जहाज पर पाया। उस जहाज के लोगो को रात के अंधेरे में मेरे गले में पड़े लॉकेट की रोशनी दिखाई दी थी। जिसके बाद उन्होंने मुझे जहाज पर खींच लिया था। उन्होंने मुझसे मेरे बारे में पूछा, पर मैंने पागल होने का नाटक कर उन्हें कुछ नहीं बताया।

जहाज वालों ने अमेरिका पहुंचकर मुझे पुलिस के हवाले कर दिया। बाद में पुलिस ने मेरा फोटो समाचार पत्र में प्रकाशित करवा दिया।
इस तरह मेरे घरवाले मुझे वहां लेने आ पहुंचे। जब पुलिस को यह पता चला कि मैं ब्लैक थंडर पर था, तो उन्होंने मुझसे जहाज के बारे में पूछने की बहुत किशिश की, पर मैं पहले के समान ही पागलो की तरह एक्टिंग करता रहा और मैंने उन्हें कुछ नहीं बताया।

धीरे-धीरे समय बीतता गया। मैंने अपने पूरे सफर को कलमबध्द कर अपनी डायरी में लिख लिया। उसके बाद मैंने अपनी याद के सहारे उस द्वीप का एक नक्शा भी बनाया। मेरा लड़का मोईन अभी छोटा है। मैंने यह सोच रखा है कि जब वह बड़ा हो जायेगा तो मैं ये सारी चीज़े उसके सुपुर्द कर दूंगा।"

इतना पढ़कर सुयश शांत हो गया और बारी-बारी सबका चेहरा देखने लगा। कुछ देर के लिये वहां पर एक सन्नाटा सा छा गया।



जारी रहेगा________✍️
Nice! Nice!! Very very nice update brother.

Usman Ali ki journey ko aapne bahut achhe se show kiya hai.

Lekin lekin lekin sabse majedar baat ye hai ki jitne bhi musibat ko Usman Ali ne bataya hai usme se jyada abhi Suyash aur uske sathiyon ke sath aaya hi nahi hai.

Matlab ki abhi aur bhi kuchh logo ki jaan jane ki pura possibility hai.

Your story is one of best stories of this forum brother.

Keep rocking and keep writing.

You will always get my support, I am always with you. 💕 🌹 💓
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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लुफासा को भी अपने अराका द्वीप के कई रहस्यों के बारे में नहीं पता है।
वैसे यह कोई अनहोनी नहीं है - हमको भी अपने शहर / कस्बों / गाँव के बारे में सब कुछ पता नहीं होता।
युगाका इस ग्रुप का यूँ चोरी-छुपे पीछा क्यों कर रहा है? और समूह के किसी भी सदस्य को नुक़सान होने से उसको क्या लाभ?

कहीं वो ब्रूनो को ही कुछ न कर दे। ये लो - यह ऑब्ज़र्वेशन लिखते लिखते ब्रूनो का नुक़सान तो कर दिया युगाका ने! 😲
भाई युगाका को लाभ है, या नुकसान? ये तो आपको आगे ही पता लगेगा। लुफासा ही क्या ऐसे बोहोत से लोग हैं वहां जिनको वहां की बोहोत सी चीजों का नहीं पता। :nope: जैसा आपने बताया, वैसे ही कुछ मेरे साथ भी हुआ है। मुझे भी मेरे घर से कुछ दूर पर के एक शिवालय का पता 2साल पहले चला है, जो की सैकड़ो वर्ष पूर्व का है।:declare: ब्रूनो को इन सबसे दूर किया गया है, ताकी वो इनकी सहायता ना कर पाए।
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लेकिन बहुत ही अलग तरीक़े से! ब्रूनो अब श्वान नहीं रह गया - वो कुछ और हो गया!
और तो और, वो तो शेफ़ाली के से डिकपल (विमुख) हो गया। कुत्ता वफ़ादार रह सकता है, लेकिन अब तो वो कोई और ही जीव बन गया है।

एक और बात पता चली -- अराका-वासी भी अपना जन्मदिन मनाते हैं और उसको ख़ुशी का अवसर मानते हैं। हा हा हा! 😂

वैसे जनवरी में वाशिंगटन डी सी में बाहर जाने में सामान्य आदमी के वृषण शार्ट हो जाएँ! 😂😂😂


लेकिन वेगा अराका-वासी है। कुछ भी कर सकता है - जैसे, पोटोमैक नदी में खुले में कायाकिंग! 😯

अपनी वीनस भी कम नहीं है। वो खुद भी जियाला लड़की है। हॉट 🥵 होगी - इसीलिए ठंडक का असर नहीं है उस पर।

टुंड्रा स्वान वाक़ई बहुत सुन्दर पक्षी होता है - काली-पीली चोंच और शफ़्फ़ाक़ सफ़ेद पंख।
लेकिन अबे! इस स्वान को क्या हो गया!?
हैं तो अराका वासी भी इंसान ही, चाहे उनका जन्म दैवीय शक्ति की सहायता से हुआ हो।, तो जन्म दिन.... :D टुंड्रा हंस शांत जीव ही होते है। पर उस का हमला किसी ओर कारण से ही था भाई।
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पक्षी को हथियार किसने बनाया? कौन चाहता है कि वेगा की क्षति हो?

ये ज़ोडिएक घड़ी कमाल की है! यहाँ तो राशियाँ ही मिल कर पहनने वाले की रक्षा कर रही हैं। इतने समय के बाद इस घड़ी का उपयोग दिखाई दिया! बढ़िया!!

वेगा वीनस का किस्सा भी जमता हुआ दिख रहा है। अच्छी बात है - लेकिन, युगाका क्या वीनस (एक मानव) को स्वीकार करेगा?
हमने देखा है कि कैसे वो सुप्रीम के यात्रियों को ‘नापने’ में कोई गुरेज नहीं रख रहा है। ऐसा व्यक्ति सही नहीं है।

हाँ हाँ - बहुत आगे की सोच रहा हूँ, लेकिन वाजिब प्रश्न है।
जोडियाक वॉच वाकई मे कमाल की है, इसमे कोई शक नहीं, हंस को हमलावर बनाया गया है।:approve: वेगा और वीनस का किस्सा फिलहाल भविष्य पर ही छोड़कर चलना उचित होगा।
युगाका वेगा का तो कुछ बिगाड नही सकता:nope:
राजकुमार जो ठहरा।😂

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एक बेहद उन्नत विज्ञान और तकनीक का एक और प्रस्तुतिकरण!
व्योम इस चक्रव्यूह में प्रविष्ट हो ही गया।
व्योम के माध्यम से बोहोत कुछ पता लगेगा भाई।
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“एलियन भी ऑक्सीजन लेते हैं?” -- यह एक बढ़िया कन्क्लूसन निकाला व्योम ने! हा हा हा हा!

“क्या तुम अपना प्रोग्राम डिलीट कर बैठे हो?” -- ओ तेरी! हा हा! 😂😂
:Dक्या पता वो एलियन है, या ओर कुछ?

कैस्पर और व्योम के वार्तालाप से मुझे एक फिल्म, A.I. Artificial Intelligence (2001) याद आ गई। उसमें भी एक ऐसा ही प्रोग्राम था, जो उस रोबोट बच्चे, डेविड, से बात करता है और उसको इनफार्मेशन देता है।

किसी AI के लिए स्वयं का निर्माण करना -- मतलब वो बहुत ही उन्नत किस्म का AGI होगा। हम्म्म!
वो फिल्म मैने भी देखी थी, शानदार थी भाई।
वाकई मे काफी उन्नत है।
सप्त-मुखी योद्धा? हम्म? अगर सनातनी माइथोलॉजी देखें, तो हनुमान भगवान का एक रूप है जिसके पाँच मुख होते हैं - हनुमान स्वयं, नरसिंह, गरुड़, वाराह, और ह्यग्रीव (घोड़े का शीश)। प्रत्येक शीश अलग अलग शक्तियों का प्रतीक है। (आपने लाल रंग की बात लिखी, तो यह रूप अनायास ही स्मरण हो आया)! परमज्ञानी रावण के दस सर थे - दशानन! सप्त-मुखी तो एक ही याद है -- शेषनाग।

वैसे आपके अराका के योद्धा पंचमुखी हनुमान जी + गज + मकर + गाय - वाराह हैं! :)

“भागवत पुराण” में ‘गजेंद्र मोक्ष’ की कथा है। गज और मकर का मेरा ज़िक्र एक उद्देश्य से किया गया था।
जिन पाठकों को रूचि हो, पढ़ें। यहाँ अब क्या ही लिखें ये सब! न जाने कौन शिकायत कर दे।
इस विषय में जानता तो बोहोत कुछ हॅ, पर यह जगह सही ना है उसके लिए :shhhh: कोई डन्डा कर देगा:D
“उस रोशनी के गिरते ही व्योम को अपना शरीर लाखों टुकडो में बंटता हुआ सा महसूस हुआ। उसे ऐसा लगा जैसे उसका शरीर किसी अंधे कुएं में गिर रहा हो।” -- ई ल्यो! 😢

बहुरूपिए असलम की ख़ैर नहीं अब!
असलम तो निपट गया:D व्योम कहीं और ही पहुंचेगा।
90

वो कहते हैं न, कर्मों के अनुरूप ही कर्म-फल मिलता है
(हाँलाकि यह बात भारत देश के नेताओं, बाबुओं, पुलिसियों, और न्यायाधीशों पर नहीं बैठती है - वो एक अलग बात है… लेकिन मान लेते हैं)!

मोईन अली, उर्फ़, असलम के जीवन का भी पटाक्षेप हो गया। और उसी तरह हुआ जिस तरह सहस्त्रों मनुष्यों के जीवन का असमय अंत करने वाले का होना चाहिए।

अल्बर्ट के माध्यम से आपने दलदल के फिजिक्स का बढ़िया ज्ञान दिया। 👏👏👏
असलम को बस किए की सजा मिली है, लेकिन संतोष नही मिला:sad:
दलदल का नोलेज अल्बर्ट को था, सो बता दिया:D
91

अबे स्साला! अपडेट की शुरुवात में ही अचम्भा! लॉकेट खुद ही जेनिथ के गले से जा लगा। क्यों?
राज़ पे राज़! क्या राज भाई! हा हा हा! 😂

लॉकेट ने फिलहाल जेनिथ को चुना है जैसे The Lord of the Rings में One Ring ने स्मिगेल / गोल्लम को चुना था, safe-keeping के लिए। लेकिन गोल्लम के विपरीत, जेनिथ को उस लॉकेट को पहन कर फिलहाल कुछ भी नहीं महसूस हो रहा है। वो सम्मोहन भी क्षणिक ही था।

माना कि मोईन अली सुप्रीम को यहाँ लाने का निमित्त था, लेकिन उसने वो एक तुच्छ स्वार्थ के कारण किया और उसके कारण हज़ारों की जान चली गई। वो इस पाप से मुक्त तो नहीं हो सकता। उसकी आत्मा पर यह बोझ रहेगा अवश्य।

“ब्लैक थंडर” को भी सुप्रीम की ही तरह यहाँ के मायाजाल में फंसाया गया था। इतना तो स्पष्ट है।
कम से कम अट्ठारह साल से युगाका का मानवों पर आतंक जारी है। बेचारे ब्लैक थंडर वालों ने तो न जाने क्या क्या झेला है। स्साला युगाका मानवजाति का दुश्मन है! इसको सज़ा-ए-मौत ही देनी उचित है। ‘मैंने ये सब मजबूरी में किया’ - यह वाला बचाव-आसन मानना नहीं चाहिए।

जंगली कबीला-वासी फिलहाल तो नहीं दिखे इनको।

लॉकेट का विवरण पढ़ के ऐसा लग रहा है जैसे ये The Lord of the Rings के One Ring जैसा दुष्ट यंत्र नहीं, बल्कि Evenstar जैसा सुन्दर लॉकेट था, जिसको आरवेन ने अरागोर्न को दिया था - अपने प्रेम की निशानी... या फिर Phial of Galadriel (light of Earendil) जैसी वस्तु! ख़ैर!

उस्मान अली जी की आत्मकथा से यह तो पता चलता है कि इस द्वीप से मनुष्य का बच के निकल पाना संभव तो है। लेकिन वो एक मनुष्य थे। शायद इसलिए बच गए होंगे।

ये ‘मेगा अपडेट’ बेहतरीन था। पहले के अपडेट्स वाकई छोटे छोटे थे।


****

लेकिन भाई - क्या समां बाँधा है आपने।
गज़ब की कल्पनाशक्ति है और क्या सम्मोहक लेखनी है आपकी! 😲😲 मान गए आपके दोनों ही हुनर को!
लोगों को समझता नहीं होगा - लेकिन आपने ये कहानी लिखने के लिए न जाने कितना शोध किया होगा। मुझको दिखाई देता है वो श्रम! बहुत बहुत साधुवाद! 🙏


लीजिए - अब हम भी संग हो लिए। जो सब छूटा था, सब पूरा हो गया।
अब चलेंगे - साथ साथ 😊
लोर्ड आफ रिंग मैने भी देखी थी, बोहोत बढीया थी, पर ये लॉकेट उससे अलग है।, ओर इसका राज भी 5-6 अपडेट मे सामने आ जायेगा।

आपके इस शानदार रिव्यू के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद भाई जी🙏🏼:bow:
 

Chutiyadr

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Ajju Landwalia

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#91. (मेगा अपडेट)

डायरी का राज

(9 जनवरी 2002, बुधवार, 13:30, मायावन, अराका द्वीप)


सुयश की नजर अब मोईन के काले बैग पर थी। सुयश ने ब्रेंडन से मोईन का बैग मांगा।

सुयश ने आसपास नजर दौड़ायी। सुयश को कुछ दूरी पर एक साफ क्षेत्र दिखाई दिया।

सुयश उधर आकर एक बड़े से पत्थर पर बैठ गया।

सभी लोग सुयश के चारो ओर बैठ गये। सभी के दिल में उस्मान अली की डायरी को लेकर उत्सुकता थी। वह जानना चाहते थे कि डायरी में आखर लिखा क्या है?

सुयश ने अब मोईन का काला बैग खोलकर, उसमें रखा सारा सामान वहीं पत्थर पर बिखेर दिया।

उस बैग में एक डायरी, एक पुराना नक्शा, एक छोटा सा गले में पहनने वाला लॉकेट व एक पेन रखा था।

सुयश ने पहले लॉकेट को उठा कर देखा। लॉकेट एक सुनहरी धातु की जंजीर से बना था, जिसके बीच
में एक काले रंग का गोल मोती लगा था।

“कैप्टन अंकल!" शैफाली ने कहा- “इस लॉकेट का मोती बिल्कुल वैसा ही है, जैसा कि देवी शलाका के हाथ में पकड़ा मोती था।"

सुयश ने धीरे से अपना सिर हिलाकर अपनी सहमित दी।

पता नहीं ऐसा उस मोती में क्या था कि जेनिथ लगातार उस मोती को देखे जा रही थी।

सुयश ने एक नजर लॉकेट को घूरते हुए जेनिथ पर डाली और कुछ सोच उसे जेनिथ की ओर बढ़ा दिया।

जेनिथ ने उस लॉकेट को सुयश के हाथ से ले लिया।

जेनिथ अभी भी बिल्कुल सम्मोहित तरीके से उस लॉकेट को देख रही थी।

अचानक वह लॉकेट आश्चर्यजनक तरीके से हवा में उछला और खुद बा खुद जेनिथ के गले में जाकर बंध गया।

यह घटना देख, सब आश्चर्य से कभी जेनिथ को तो कभी उसके गले में बंधे लॉकेट को देखने लगे।

जेनिथ भी अब सम्मोहन से बाहर आ गयी थी।

“यह क्या था प्रोफेसर?" सुयश ने आश्चर्य से अल्बर्ट की ओर देखते हुए कहा- “क्या यह लॉकेट चमत्कारी था? और अगर हां तो इसने जेनिथ को ही क्यों चुना?"

“देखिये कैप्टन। इस द्वीप पर बहुत अजीब-अजीब सी घटनाएं घट रही हैं।" अल्बर्ट ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा-

“मुझे तो यह घटना भी उसी विचित्र घटना का हिस्सा लग रही है। जैसा कि शैफाली ने उन पत्थरों पर बनी विचित्र आकृतियों को देख कर कहा था कि हमारा इस द्वीप पर आना हमारी नियति थी। तो उस हिसाब से मुझे लगता है कि शायद हम सब किसी बड़ी चमत्कारिक घटना का हिस्सा हैं या बनने जा रहे हैं और हम स्वयं यहां नहीं आये हैं, बल्की हमें यहां लाया गया है। मोईन तो मात्र एक कारक था हमें यहां लाने के लिये।

अगर आप ध्यान से देखें तो धीरे-धीरे हम सभी के साथ कुछ ना कुछ चमत्कारिक घट रहा है। पहले शैफाली की शक्तियों का जागना, फ़िर कैप्टन के टैटू में शक्तियों का समा जाना और अब जेनिथ के साथ भी कुछ ऐसा ही चमत्कारिक होना। यह सब बातें यह बताती हैं कि शायद हमारे किसी जन्म की घटनाएं इस क्षेत्र से जुड़ी हैं। हमारा ‘सुप्रीम’ की दुर्घटना में जिंदा बचना एक इत्तेफाक नहीं है। केवल वही लोग जिंदा बचे हैं, जो किसी ना किसी रूप से इस द्वीप से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं।"

“इसका मतलब मुझमें भी कुछ चमत्कारिक शक्तियां है?" जॉनी ने खुश होकर बोला।

“ऐसा जरूरी नहीं है।" जेनिथ ने जॉनी की ओर देखते हुए कहा-“कुछ लोग मर भी तो रहे हैं।"

जॉनी, जेनिथ का कटाक्ष समझ गया। उसने गुस्से से अपने दाँत पीसे, मगर जेनिथ को कोई जवाब नहीं दिया।

“तुम्हें इस लॉकेट को पहनने के बाद क्या महसूस हुआ जेनिथ?" क्रिस्टी ने जेनिथ की ओर देखते हुए पूछा।

“मैं इस लॉकेट को देखकर पहले सम्मोहित सी हो गयी थी।" जेनिथ ने लॉकेट के मोती को छूते हुए कहा-
“पर मुझे ऐसा नहीं लगा कि मेरा इस लॉकेट से कोई भी पुराना संबंध है? ना ही इसको पहनने के बाद मुझे कुछ भी अलग सा महसूस हुआ?"

“पर कैप्टन.... यह चमत्कारी लॉकेट मोईन के पास कहां से आया?" ब्रेंडन ने कहा।

अब सबका ध्यान फ़िर से काले बैग से निकले बाकी सामान पर गया।

अब सुयश ने वह पुराना नक्शा खोल लिया। नक्शे में कुछ पत्थर, पहाड़, नदियां, झरने और कुछ आड़ी-टेढ़ी रेखाएं बनी थी।

“इसको समझने में समय लगेगा।" सुयश ने नक्शे को वापस गोल लपेटते हुए कहा- “हमें पहले डायरी पर ध्यान देना होगा। उसमें जरूर कुछ काम की बातें होंगी।"

सुयश ने अब डायरी को उठा लिया।

पहला पन्ना खोलते ही उन्हें खूबसूरत अक्षरो में उस्मान अली लिखा हुआ दिखाई दिया।

आखिरकार सुयश ने तेज आवाज में डायरी पढ़ना शुरू कर दिया।

“मेरा नाम उस्मान अली है। मैं आपको एक ऐसे रहस्यमय द्वीप के बारे में बताने जा रहा हूं, जिसका अनुभव मैंने स्वयं किया है।

13 दिसंबर 1984 की ठंड भरी रात थी। मैं ‘ब्लैक-थंडर’ नामक पुर्तगाली जहाज से न्यूयॉर्क से प्यूट्रो-रिको जा रहा था। रात का समय था। मैं जहाज के डेक पर खड़ा अपनी दुनियां में कुछ सोच रहा था। तभी मुझे दूर कहीं आसमान में सिग्नल फ़्लेयर उड़ते दिखाई दिये। मैंने तुरंत डेक पर खड़े लोगो का ध्यान सिग्नल फ़्लेयर की ओर करवाया।

हमें लगा कि जरूर कोई दूसरा पानी का जहाज वहां मुसीबत मे है। मैंने तुरंत इस बात की सूचना एक गार्ड के माध्यम से अपने जहाज के कैप्टन को भिजवा दी। कुछ ही देर में कैप्टन सिहत बहुत सारे लोग डेक पर आ गये। सिग्नल फ़्लेयर अभी भी आसमान में फ़ेंके जा रहे थे। मैंने जहाज के कैप्टन को जहाज को उस दिशा में ले जाने को कहा।

पहले तो जहाज का कैप्टन जहाज को उस दिशा में मोड़ने को तैयार नहीं हुआ । पर बाद में यात्रियो की जिद्द के कारण कैप्टन को सभी की बात माननी पड़ी। ब्लैक थंडर सिग्नल फ़्लेयर की दिशा में आगे बढ़ गया। थोड़ी देर में सिग्नल फ़्लेयर दिखने बंद हो गये। हम अंदाजे से समुद्र में काफ़ी आगे तक आ गये, पर फ़िर भी हमें किसी भी शिप के डूबने का कोई निशान प्राप्त नहीं हुआ? तभी अचानक मौसम काफ़ी खराब हो गया और समुद्र की लहरें ऊंची-ऊची उठने लगी।

ब्लैक थंडर किसी तिनके की तरह समुद्र की लहरों पर डोल रहा था। तभी एक जोरदार झटके से शिप के सारे कन्ट्रोल खराब हो गये। अब ब्लैक थंडर रास्ता भटक चुका था। हमें वापसी के लिये कोई रास्ता समझ नहीं आ रहा था। तभी जाने कहां से एक विशालकाय ब्लू व्हेल मछली आ गयी और उसने शिप पर टक्कर मारना शुरू कर दिया।

ब्लू व्हेल से बचने के लिये कैप्टन ने ब्लैक थंडर को एक अंजान दिशा में मुड़वा दिया। ब्लू व्हेल से अब हमारा पीछा छूट चुका था। हम पुनः आगे बढ़े। अभी हम सब डेक पर ही थे कि तभी एक नीली रोशनी बिखेरती उड़नतस्तरी, आसमान से गोल-गोल नाचती हुई हमारे जहाज से कुछ आगे आकर पानी में गिरी।

जिस स्थान पर वह उड़नतस्तरी पानी में गिरी थी, उस स्थान पर समुद्र में एक विशालकाय भंवर बन गयी। भंवर की विशालता और उसकी तेज-गति देखकर कैप्टन ने ब्लैक थंडर को दूसरी दिशा में मोड़ लिया। कुछ आगे जाने पर ब्लैक थंडर अचानक समुद्र में अपने आप रुक गया। कैमरे द्वारा पानी के नीचे देखने पर हमें एक विशालकाय ‘प्लिसियोसारस’ (एक विलुप्तप्राय समुद्री डाइनोसोर) ब्लैक थंडर को पकड़े हुए दिखाई दिया।

कैप्टन ने प्लिसियोसारस पर तारपीडो से हमला कर दिया। प्लिसियोसारस ने डरकर शिप को छोड़ दिया और अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से शिप को घूरता हुआ समुद्र की गहराइयों में गायब हो गया।
ब्लैक थंडर को फ़िर से आगे बढ़ा लिया गया। उसी रात शिप पर सफर कर रहे 400 यात्रियो में से 275 यात्री शिप से अपने आप गायब हो गये।

बहुत ढूंढने पर भी उन यात्रियो का कुछ पता नहीं चला। शिप पर अब कुल 125 यात्री बचे थे। सुबह हमें एक द्वीप दिखाई दिया जो अजीब सी त्रिभुज जैसी आकृति वाला था। ब्लैक थंडर को उस द्वीप की ओर मोड़ लिया गया। हम द्वीप पर पहुंचने वाले ही थे कि तभी अचानक प्लिसियोसारस ने पुनः ब्लैक थंडर पर आक्रमण कर दिया।

इस बार का उसका आक्रमण बहुत खतरनाक था। उसने अपनी अजगर के समान विशालकाय पूंछ से पूरे ब्लैक थंडर को लपेट लिया। प्लिसियोसारस की ताकत के सामने ब्लैक थंडर कुछ भी नहीं था। आखिरकार उस समुद्री दानव ने ब्लैक थंडर को तोड़ डाला। शिप में सवार कुछ बचे यात्री पानी में छलांग लगाकर द्वीप की ओर बढ़ने लगे और अंततः कुल 28 यात्री उस द्वीप पर बचकर पहुंचने में सफल हो गये। उन्ही लोगो में मैं और मेरा दोस्त गिलफोर्ड भी था।

यहां से शुरू होता है उस रहस्यमय द्वीप का एक भयानक सफर। इस सफर में आती हैं खतरनाक मुसीबतें जैसे दलदल, जंगली गैंडा, गुरिल्ला, पागल हाथी, भयानक शेर, विशालकाय मच्छर, खतरनाक बीमारियां, जहरीली मकिड़यां, खूनी चमगादड़, तेजाबी बारिश और ना जाने कितनी ऐसी भयानक मुसीबतें, जिन्होने 24 यात्रियो को मौत के घाट उतार दिया।

बाकी बचे 4 लोग किसी तरह बचते-बचाते पहाड़ में शरण लेते हैं। इन बचे हुए 4 लोगो में मैं और गिलफोर्ड भी शामिल थे। तभी हम पर एक विशालकाय आग उगलने वाली ड्रैगन ने हमला बोल दिया। ड्रैगन से घबराकर मैं और गिलफोर्ड एक पहाड़ी गुफा में घुस गए। ड्रैगन ने एक बड़ी सी चट्टान लुढ़काकर गुफा का द्वार बंद कर दिया।

अब मेरे और गिलफोर्ड के बाहर निकलने के सभी रास्ते बंद हो चुके थे। हम दोनो गुफा में बुरी तरह से फंस चुके थे। 2 घंटे बाद हमें ऐसा महसूस हुआ कि जैसे गुफा में कहीं से ताजी हवा आ रही है। हम दोनो अंदाजे से अंधेरे में टटोलते हुए गुफा के अंदर की ओर चल दिये।

काफ़ी देर तक चलने के बाद हमें दूर गुफा में कहीं रोशनी सी प्रतीत हुई। हम अंदाज से लड़खड़ाते हुए उस दिशा में चल दिये। कई जगह पर हम गुफा में पत्थरों से टकराये। हमें बहुत सी चोट आ गयी थी। लगभग एक घंटे तक उस अंधेरी गुफा में चलने के बाद हम उस रोशनी वाले स्थान तक पहुंच गये।

वह गुफा के दूसरी ओर का द्वार था। गुफा से निकलने पर हमने अपने आप को एक खूबसूरत घाटी में पाया। चारो तरफ पहाड़ो से घिरी यह घाटी देखने में काफ़ी सुंदर लग रही थी। कई जगह से पहाड़ो से पानी के झरने गिर रहे थे। हमने घाटी के अंदर जाने के लिये पहाड़ो से उतरना शुरु कर दिया। पहाड़ो से उतरने के बाद हम एक बाग में पहुंचे। बाग में सैकड़ो फलों से लदे पेड़ थे। हमने पेडों से फल तोड़कर खाये और झरने का पानी पीया।

हममें एक नयी ताकत का संचार हो चुका था। रात होने वाली थी इसिलये हम वहीं एक पेड़ पर
चढ़कर सो गये। सुबह कुछ अजीब सी आवाज सुनकर हम दोनों की नींद खुल गयी। हमें एक स्थान पर जमीन से निकलते हुए कुछ इंसान दिखाई दिये। जो उस स्थान पर मौजूद एक देवी की मूर्ति के आगे नाच गा रहे थे। रात में अंधेरा होने की वजह से हम स्थान पर मौजूद देवी की मूर्ति को नहीं देख पाये थे।

तभी पूरी घाटी में एक बहुत ही सुगंधित खुशबू फैल गयी। यह विचित्र सुगंध सूंघकर हम दोनो बेहोश हो गये। होश में आने पर हमने अपने आप को एक विशालकाय मंदिर में खंभे से बंधा हुआ पाया। मंदिर में एक विशालकाय देवी की मूर्ति थी, जिनके गले में एक लॉकेट चमक रहा था। देवी के पैरों के पास हीरे, जवाहरात, रत्न, आभूषण असंख्य मात्रा में बिखरे पड़े हुए थे।

उन रत्नो की चमक इतनी ज़्यादा तेज थी कि शुरु में वहां पर आँख खोलकर रख पाना भी मुश्किल लग रहा था। हमने किताबों में भी कभी इतने बड़े खजाने के बारे में नहीं सुन रखा था। तभी मेरी नजर देवी के पैरों के पास रखी एक लाल रंग की जिल्द वाली पुरानी सी किताब पर पड़ी। वह पुरानी किताब एक रत्न जड़ित थाली में रखी थी, जो उसके विशेष होने की कहानी कह रही थी।
हमारे आसपास कुछ जंगली कबीले के लोग अजीब से धारदार हथियार लेकर खड़े थे। हम हैरानी से कभी मूर्ति की सुंदरता तो कभी उस खजाने को निहार रहे थे। तभी उन जंगलियों में से एक ने हमें खंभे से खोलकर देवी के चरणों में झुकने का इशारा किया। मैंने और गिलफोर्ड दोनों ने देवी के चरणों में झुककर प्रणाम किया। मैंने झुककर प्रणाम करते समय धीरे से उन जंगलियों से नजर बचाकर एक छोटा सा हीरा अपने हाथ में छिपा लिया। अब वह जंगली, देवी की पूजा करने लगे।

तभी मंदिर के बाहर से कहीं से शोर की आवाज सुनाई दी। कई जंगली यह आवाज सुन बाहर की ओर भागे। यह देख उनमें से एक जंगली हमारे पास आया और फ़िर से हमारे हाथ उस खंभे के साथ बांध दिया। हमारे हाथ बांधने के बाद वह भी मंदिर से बाहर की ओर भाग गया। अब मंदिर में मैंऔर गिलफोर्ड ही अकेले बचे थे। यह देख मैंने अपने हाथ में थमें हीरे से अपनी हाथ में बंधी रस्सी को काटने लगा।

लगभग 10 मिनट के अथक परिश्रम के बाद मैंने अपने हाथ की रस्सी को काटकर स्वयं को आजाद करा लिया। फ़िर मैंने गिलफोर्ड के हाथ की रस्सी काटी, जिसमें ज़्यादा समय नहीं लगा। हम दोनो देवी की मूर्ति के पास पहुंचे। मेरी नजर देवी की मूर्ति के गले में पहने लॉकेट पर थी। मैं तेजी से उस मूर्ति के ऊपर चढ़ा और देवी के गले में पड़ा लॉकेट निकालकर अपनी जेब में रख लिया। गिलफोर्ड ने वह लाल जिल्द वाली पौराणिक किताब उठा ली।

अब हम दोनों सावधानी से मंदिर के बाहर निकले। बाहर हमें कुछ हरे कीड़े उन जंगलियों को दौड़ाते हुए नजर आये। ऐसे मेढक जैसे विचित्र कीड़े हमने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखे थे। हम दोनों सबकी नजर बचाकर जंगल की ओर भाग गये। काफ़ी दूर आने के बाद हमने राहत की साँस ली। शाम फ़िर से गहराने लगी थी, इसिलये हमने पेडों के फल खाकर गुजारा कर लिया। हम दोनों वहीं पेड़ के नीचे एक साफ सुथरी जगह देखकर वहीं सो गये।

रात में अजीब सी ढम-ढम की आवाज सुनकर हमारी नींद खुल गयी। हम समझ गये कि जंगली रात के अंधेरे में हमें ढूंढ रहे हैं और वह आस-पास ही हैं। गिलफोर्ड तुरंत लाल किताब को कमर में फंसाकर वहीं एक पेड़ पर चढ़ गया। चूंकि पेड़ सपाट था और मैं इतनी तेजी से पेड़ पर नहीं चढ़ सकता था। इसिलये मैं वहां से पहाडों की ओर भाग गया।

इस तरह हम दोनों दोस्त अलग-अलग हो गये। मैंने भागकर एक पहाड़ी गुफा में शरण ली। मुझे नहीं पता चला कि उसके बाद गिलफोर्ड का क्या हुआ? गुफा में अंधेरा होने की वजह से हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहा था। अगर कुछ चमक रहा था तो वह था मेरे गले में पड़ा देवी का लॉकेट। तभी मेरी नजर अंधेरे में गुफा के अंदर चमक रहे 2 जुगनुओं पर पड़ी, जो धीरे-धीरे मेरे पास आ रहे थे।

पास आने पर मैं समझ गया कि वह जुगनू नहीं बाल्की किसी जानवर की आँखें हैं। किसी विशालकाय जानवर का अहसास होते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गये। धीरे-धीरे वह विशालकाय आकृति मेरे बिल्कुल समीप आ गयी। उधर गुफा के बाहर से जंगलियों की आवाज आने के कारण मैं गुफा से बाहर भी नहीं जा सकता था।

अब उस विशालकाय जानवर की साँसे भी मुझे अपने शरीर पर महसूस होने लगी थी। धीरे-धीरे आती गुर्र-गुर्र की आवाज से मुझे ये अहसास हो गया कि वह एक पहाड़ी जंगली भालू था। भालू बेहद पास आ गया था और मेरे गले में पड़े उस चमकते लॉकेट को देख रहा था। तभी उस लॉकेट की चमक एकाएक बढ़ सी गयी। भालू हैरान होकर दो कदम पीछे हो गया। मेरे लिये यह बहुत अच्छा मौका था, मैंने अपनी पूरी ताकत से गुफा के अंदर की ओर दौड़ लगा दी।

लॉकेट से निकली रोशनी मेरा मार्गदर्शन कर रही थी। मैं भागते-भागते थककर चूर हो गया, परंतु उस गुफा का दूसरा सिरा मुझे नहीं मिला। गनीमत यही थी कि पता नहीं कहां से मुझे ऑक्सीजन मिल रही थी। कुछ देर आराम करने के बाद मैं पुनः आगे की ओर चल दिया। घड़ी पास में ना होने की वजह से मुझे समय का अहसास नहीं हो पा रहा था।

जाने कितने घंटे मैं इसी तरह से चलता रहा। प्यास, भूख और थकान से मैं पूरी तरह से थककर चूर हो गया था। अंततः बहुत दूर मुझे एक रोशनी सी दिखाई दी। रोशनी देख मुझ में नयी ताकत का संचार हो गया।

वैसे मेरे शरीर में जान तो नहीं बची थी, फिर भी मैं रोशनी को देख आगे बढ़ता रहा। आखिरकार मैं गुफा के मुहाने तक पहुंच गया। वह शायद द्वीप का कोई दूसरा किनारा था क्योंकी समुद्र अब मेरे सामने था। सबसे पहले मैंने वहां लगे पेडों से पेट भरकर फल खाये और एक तालाब का पानी पीया।

फ़िर वहीं एक पेड़ पर चढ़कर सो गया। थकान और पेट भर जाने के कारण मैं कितनी देर तक सोता रहा, मुझे नहीं पता चला। जब मैं जागा तो सूर्य निकल रहा था। शायद मैं 24 घंटे तक सोया था। लेकिन मैं अब अपने आप को काफ़ी ताज़ा महसूस कर रहा था। अब मुझे यहां से निकलने के बारे में सोचना था।

पर कैसे...? बिना बोट के मैं समुद्र में ज़्यादा दूर तक जा भी नहीं सकता था। पर यहां बोट कहां से मिलती? धीरे-धीरे उस जगह पर रहते हुए मुझे कई दिन बीत गये, पर मुझे उस द्वीप से निकलने का कोई रास्ता नहीं मिला। भला यही था कि द्वीप के उस किनारे पर किसी भी प्रकार की मुसीबत नहीं थी। मैं रोज पेड़ के फल खाता और तालाब का पानी पी रहा था।

मैं उस द्वीप की जिंदगी से बोर होने लगा। एक दिन मैंने एक बोट बनाने का सोचा। फिर क्या था मैंने वहां लगे बांस के पेडों से कुछ बांस तोड़ लिये और जंगली बेल व पेड़ की जडों से सबको आपस में बांध लिया। इसी तरह मैंने 2 लकड़ी के चप्पू बना लिये। अब मैं लकड़ी के उस बेड़े पर बैठकर समुद्र में कुछ दूर तक जाने लगा। अब मैं नुकिले काँटो को छोटी-छोटी लकडिय़ों में पिरो कर उसे तीर और भाले का रूप देने लगा और मछलिय़ों का शिकार करने लगा।

मछलिय़ों को कच्चा खाना मेरे लिये बहुत मुश्किल था, पर मुझे आग जलाना अभी आया नहीं था। इसिलये कच्ची मछलिय़ों से ही काम चलाना पड़ रहा था। कुछ दिन और बीत गये। अब मेरी बोट भी थोड़ी और बड़ी हो गयी थी। मैंने कुछ जडों को पेड़ की छाल से बांधकर 10-12 टोकरियां भी बना ली। अब मैं समुद्र में खाना भी लेकर जाने को तैयार था। अब परेशानी केवल पानी की रह गयी थी। क्यों कि समुद्र में ज़्यादा से ज़्यादा दिन जिंदा रहने के लिये पानी का होना सबसे ज़्यादा जरुरी था।

फिलहाल इसका मेरे पास कोई उपाय नहीं था। फिर दिन बीतने लगे। मुझे द्वीप के उस किनारे पर रहते हुए 55 दिन बीत गये। आखिरकार एक दिन मुझे पत्थरों से आग जलाना भी आ गया। फिर तो मुझे मजा ही आ गया। अब मैं मछलिय़ों को पकड़ कर उन्हें पका कर भी खाने लगा।

जब 2 दिन और बीत गये तो अचानक से मेरे दिमाग में मिट्टी के घड़े बनाने का प्लान आया। मैंने 1 दिन के अंदर 20 बड़े-बड़े मटके बना लिये और उन्हें आग में पकाकर पक्का भी कर लिया। अब समुद्र में पानी की समस्या भी ख़त्म हो गयी थी। अब फाइनली मैंने इस द्वीप से निजात पाने का सोचा। अब मैंने कुछ और बांस तोड़कर अपने बेड़े को बड़ा बनाया। फिर 12 टोकरियां में खाने के फल और 20 मटको में तालाब का साफ पानी भरके उन सबको पेड़ की जडों से अच्छी तरह से बांधकर निकल पड़ा उस विशालकाय समुद्र में एक अंतहीन सफर पर।

धीरे-धीरे समुद्र में दिन बीतने लगे। शार्क, बड़ी मछिलयां और तूफान, ना जाने कितनी ऐसी मुसीबतो का सामना करते हुए मुझे 25 दिन बीत गये। मेरे पास अब सारा खाना ख़त्म हो गया था। पानी भी केवल एक मटकी में ही बचा था। 2 दिन बाद वो भी ख़त्म हो गया। 2 दिन के बाद मेरे शरीर में इतनी भी जान नहीं बची थी कि मैं उठकर खड़ा भी हो सकूं।

आख़िर मैं बेहोश होकर अपने बेड़े पर गिर गया। मुझे जब होश आया तो मैंने अपने आपको अंजान जहाज पर पाया। उस जहाज के लोगो को रात के अंधेरे में मेरे गले में पड़े लॉकेट की रोशनी दिखाई दी थी। जिसके बाद उन्होंने मुझे जहाज पर खींच लिया था। उन्होंने मुझसे मेरे बारे में पूछा, पर मैंने पागल होने का नाटक कर उन्हें कुछ नहीं बताया।

जहाज वालों ने अमेरिका पहुंचकर मुझे पुलिस के हवाले कर दिया। बाद में पुलिस ने मेरा फोटो समाचार पत्र में प्रकाशित करवा दिया।
इस तरह मेरे घरवाले मुझे वहां लेने आ पहुंचे। जब पुलिस को यह पता चला कि मैं ब्लैक थंडर पर था, तो उन्होंने मुझसे जहाज के बारे में पूछने की बहुत किशिश की, पर मैं पहले के समान ही पागलो की तरह एक्टिंग करता रहा और मैंने उन्हें कुछ नहीं बताया।

धीरे-धीरे समय बीतता गया। मैंने अपने पूरे सफर को कलमबध्द कर अपनी डायरी में लिख लिया। उसके बाद मैंने अपनी याद के सहारे उस द्वीप का एक नक्शा भी बनाया। मेरा लड़का मोईन अभी छोटा है। मैंने यह सोच रखा है कि जब वह बड़ा हो जायेगा तो मैं ये सारी चीज़े उसके सुपुर्द कर दूंगा।"

इतना पढ़कर सुयश शांत हो गया और बारी-बारी सबका चेहरा देखने लगा। कुछ देर के लिये वहां पर एक सन्नाटा सा छा गया।



जारी रहेगा________✍️

Moin aka Aslam ka raaj to khul gaya...........

Moin ke baap pehle se hi yaha aa chuka tha aur jinda wapis bhi chala gaya......

Ye Shalaka vala locket Zenith ke gale me kyun chala gaya???

Kya uska bhi koi past he???

Keep rocking Bro
 

dev61901

" Never let an old flame burn you twice "
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Badhiya update ha bhai

Moeen ali ne to kafi kuchh pata laga liya tha lekin ek bat ha gilford ka kya hua kya wo bach gaya tha ya fir use mar diya gaya ya fir abhi bhi wo jinda ha

Or jaisa ki vyom ke time hamne dekha tha ki pure araka dwip per camere lage hue han to kya kisi ne moeen ali ko dekha nahi bhagte hue ya fir wo wahan ek kone me rah raha tha uska bhi pata nahi chala kya ya fir use jan bujhakar hi bhagne diya

Locket bhi devi shalaka ki murti ka hi ha leki usne jenith ko kyun chuna kya uska bhi is safar me ya devi shalaka se koi sambandh ha
 
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