111ramjain
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Bahut hi badhiya update diya hai Riky007 bhai....# अपडेट ११
अब तक आपने पढ़ा -
थोड़ी देर बाद मैं सो गया। अगले 2 दिन कुछ खास नहीं हुआ। मित्तल सर और करण दोनों ही नहीं थे, और करण के न रहने पर मैं और नेहा मिल कर आज पूरा काम देख रहे थे तो ज्यादा समय नहीं मिला हम दोनो को। तीसरे दिन करण मुंबई से आ चुका था, और मित्तल सर भी वापी पहुंच चुके थे, इसीलिए मैं कुछ रिलैक्स था, दोपहर में नेहा मेरे केबिन में आई और मेरी गोद में आ कर बैठ गई।
उसके बैठते ही मेरे केबिन का दरवाजा एकदम से खुल गया...
अब आगे -
दरवाजे पर मित्तल साहब खड़े थे, बस एक वही थे जो बिना नॉक किए मेरे केबिन में आ सकते थे। उनको देख नेहा उछल कर खड़ी हो गई और पीछे खिड़की की ओर मुंह छुपा कर खड़ी हो गई। मैं भी शौक के बस उनको ही देख रहा था। वो कुछ सेकंड दरवाजा पकड़ कर वैसे ही खड़े रहे, शायद उनको भी बहुत आश्चर्य हुआ होगा, फिर वो पलट कर निकल गए और जाते जाते बोले, "मनीष अपना काम निपटा कर मेरे केबिन में आओ, बहुत जरूरी बात है।"
मैंने नेहा को जाने का इशारा किया और कुछ देर बाद मैं भी मित्तल सर के केबिन की ओर निकल गया। भले ही अभी तक मैने अपने और नेहा के बारे में किसी को नहीं बताया था, मगर मैं सबसे पहले ये बात मित्तल सर को ही बताता, पर मुझे ये अच्छा नहीं लगा कि उनको इस तरीके से ये बात पता चली। खैर अब सामना तो करना ही था उनका।
मैं उनके केबिन के बाहर पहुंच कर धड़कते दिल से दरवाजा खटखटाया।
"कम इन।"
"सर वो..." मैं सर झुकते हुए अंदर गया और बिना देखे उनसे बोलने लगा।
"बैठो पहले।"
मेरे बैठते ही, "क्या था वो मनीष?"
"जी असल में हम... मतलब मैं और नेहा एक दूसरे से प्यार करते हैं।" मैं एक झटके में अपनी बात बोल गया।
कुछ देर की खामोशी के बाद, "क्या उसने अपने बारे में सब बताया तुम्हे?"
"जी अपनी तरफ से तो सब बता ही दिया है। और बस जैसे ही उसका डाइवोर्स फाइनल होता तो हम सबको बताने ही वाले थे।"
"चलो अब जब तुमने ये फैसला ले ही लिया है तो सही है, वैसे मैने तो कुछ और ही सोचा था तुम्हारे बारे में। फिर भी अगर जो तुम खुश हो तो मैं भी खुश हूं।"
दिल से मेरे बहुत बड़ा बोझ उतर गया था।
"वैसे मैं ये बोलने आया था कि वाल्ट का आधा अप्रूवल तो मिल गया है, बाकी आधा वाल्ट बनाने के बाद मिलेगा। तो अब तुमको इस काम में लग जाना होगा।"
"जी बिलकुल, मैं तो बस आपकी मंजूरी का वेट कर रहा था। फिलहाल एक दो लॉक के वेंडर से बात भी हो चुकी है। बस आप बोलिए तो उनको डेमो के लिए बुलवा लेता हूं, फिर शॉर्टलिस्ट करके आपसे मिलवा दूंगा।"
"ठीक है फिर कल से लग जाओ इसपर। और हां ये सब काम ऑफिस में तो मत किया करो भाई। और कम से कम, जब तक उसका डाइवोर्स फाइनल नहीं होता तब तक तो जरूर।" उन्होंने कुछ मूड हल्का करते हुए कहा।
मैं भी सर झुका कर सारी बोल कर निकल गया उनके केबिन से। नेहा मेरा इंतजार कर रही थी मेरे केबिन में।
"क्या बोला सर ने?"
"वो बहुत गुस्सा थे। उनको ये रिश्ता मंजूर नहीं, बोले कि एक दो दिन में तुमको दिल्ली भेज देंगे।" मैने सीरियस चेहरा बनाते हुए कहा।
ये सुन कर नेहा की आंखों में आंसु आ गए। "मुझे ऐसा ही लगा था मनीष, इसीलिए पहले मैने तुमसे कहा था कि डाइवोर्स हो जाने दो। लेकिन मैं खुद ही बहक गई, और अब?"
उसकी आंखों में आंसु मुझे अच्छे नहीं लगे। "सॉरी नेहा, मैने मजाक किया था। उनको हमारा रिश्ता मंजूर है।" मैने उसके कंधों को पकड़ कर कहा।
नेहा मुझे कुछ देर मुझे आश्चर्य से देखती रही, "क्या? सच में?"
"हां नेहा, बिलकुल सच।"
ये सुनते ही वो मेरे गले लग गई। मैने उसे दूर करते हुए कहा, "ये सब ऑफिस में करने से मना किया है सर ने।"
"ओह, हां सही है ऑफिस आखिर काम करने की जगह होती है।"
"हां, हमें ऑफिस में अपनी मर्यादा नहीं भूलनी चाहिए। अच्छा वो वाल्ट वाले प्रोजेक्ट के काम पर लगना है, अब तुम भी अपने केबिन में जाओ। हम शाम को मिलते हैं।"
नेहा चली गई और मैं काम में मशरुफ हो गया। शाम को मैने नेहा को कॉल किया तो वो ऑफिस से निकल चुकी थी। मैने उसे उसके घर से पिकअप किया। चूंकि आज हमारे रिश्ते को मित्तल सर की मंजूरी भी मिल गई थी, इसीलिए आज हमने साथ में डिनर का प्लान बनाया था।
डिनर से वापस लौटते समय नेहा का फोन बजा। उसने कॉल देख कर इग्नोर कर दिया, पर चेहरे पर कुछ टेंशन सी आ गई। काल कट कर वापस आने लगा, उसने फिर से इग्नोर किया।
"किसका कॉल है जो उठा नहीं रही, और टेंशन में क्यों हो तुम आखिर?"
"कुछ नहीं, ऐसा कोई इंपोर्टेंट कॉल नहीं है।"
"फिर परेशान क्यों हो?"
"व वो, कुछ दिन से देर शाम को मुझे पता नहीं किसकी कॉल आ रही है, कुछ बोलता नहीं कोई, लेकिन रोज कॉल आती है।"
"और ये कब बताने वाली थी मुझे तुम?" मैने थोड़े गुस्से वाले लहजे में पूछा।
"असल में बस कॉल ही आया है, कोई कुछ बोलता नहीं, इसीलिए तुमको नहीं बताया अब तक।"
"अच्छा किस नंबर से कॉल आता है? मुझे बताओ।"
"कोई fix नहीं है, लेकिन एक ही सीरीज से आ रहा है।"
"मुझे दिखाओ" ये बोल कर मैने उससे फोन ले लिया। कॉल अब भी बज रही थी।
नंबर मुझे जाना पहचाना लगा। तब तक कॉल कट गई। मैने थोड़ा दिमाग पर जोर डाला, ये नंबर तो शायद ऑफिस की बिल्डिंग का था। इंटरकॉम वाले सिस्टम में ये सीरीज का नंबर चलता है, लेकिन अब मोबाइल आ जाने से हम लोग सिर्फ इंटरकॉम का ही काम लेते थे उससे।
मैने देखा तो वैसी कॉल्स 5 6 अलग अलग नंबर से आई थी। मैने सबकी सीरीज चेक की तो पता चला कि ये नंबर मेरे ही फ्लोर के हैं, एक नंबर अलग फ्लोर का भी था।
मैने ऑफिस के रिसेप्शन पर कॉल लगाया। और पूछा कि मेरे फ्लोर पर अभी कौन कौन है तो वहां से बताया गया कि अभी अभी प्रिया और उसकी टीम निकली है, करण भी 10 मिनिट पहले ही निकला था। फिलहाल कोई नहीं है है उस फ्लोर पर।
"तुमको ऑफिस में सब कैसे लगते हैं?" मैने नेहा से पूछा।
"मतलब?"
"मतलब अपने वर्टिकल में जो साथ में हैं, वो सब कैसे लगते हैं तुमको, क्या कोई ऐसा भी लगता है जो तुमको नहीं चाहता हो या गलत निगाह रखता हो?"
"ऐसा तो कोई नहीं लगता, सब अपने काम से ही मिलते जुलते हैं मुझसे। हां कई बार मैने गौर किया है कि करण मीटिंग वगैरा में मुझे निहारता रहता है। पर अभी तक उसने कोई ऐसी हरकत नहीं की।"
अब मुझे लगने लगा कि उस दिन करण मुझे नेहा के खिलाफ इसीलिए भड़का रहा था क्योंकि वो शायद नेहा को सीक्रेटली चाहता हो। फिलहाल मैने उन सारे नंबर्स को ब्लॉक कर दिया नेहा के नंबर से, और उसको बोला कि फिर कभी कॉल आए तो मुझे जरूर बताए। मैने उसे घर छोड़ते हुए अपने फ्लैट पर वापस आ गया।
ये हफ्ता ऐसे ही बीत गया। शनिवार को नेहा ने कहा कि उसकी कोई मौसी जो मुंबई में रहती हैं, वो मिलने आने वाली है तो शनिवार और रविवार को मिलना संभव नहीं है। उसको अब वो ब्लैंक कॉल्स आने बंद हो गए थे।
मैं ऑफिस में ही बैठा था कि प्रिया का कॉल आया मेरे पास।
"हेलो मनीष, मैं आज एक मीटिंग के लिए निकली हूं, घर के सीसीटीवी में कोई दिक्कत है, तो क्या तुम टेक्नीशियंस से बात करके उसको सही करवा दोगे? पापा ने तुमसे बोलने को कहा है इसीलिए मैने तुमसे बोला"
"हां क्यों नहीं, वैसे क्या दिक्कत है उनमें?"
"कुछ कैमरा ऑनलाइन एक्सेस नहीं हो रहे, या फिर कई बार कनेक्शन कट जा रहा है। मैं टेक्निशियन का नंबर भेज रही हूं, तुम उनसे बात कर लेना।"
"ठीक है प्रिया, भेज दो। हां वो इंटरनेट प्रोवाइडर का भी भेज देना, शायद उसके साइड से कोई दिक्कत हो।"
"हां वो भी भेज देती हूं।"
वैसे एक दो बार पहले भी घर की कुछ काम को मैने करवाया है, तो प्रिया का ये फोन कोई पहली बार नहीं था। हां पर हर बार वो रिक्वेस्ट जरूर करती थी, और सर का नाम भी बोलती थी। खैर खाली ही बैठा था आज तो मैने सोचा ये काम भी करवा लिया जाय। 2 मिनिट बाद उसने दोनों नंबर भेज दिए थे। मैने पहले कैमरा वाले को कॉल लगाया और उससे प्रॉब्लम के बारे में पूछा और उसने कुछ अपडेट करने बोला। मैने उसे बोला कि वो अपनी तरफ से अपडेट कर दे तो कुछ समय मांग उसने। कोई एक घंटे बाद उसने कॉल करके बताया कि अपडेट्स कर दिया हैं उसने और चेक करने भी बोला। मेरे पास एक्सेस नहीं था तो मैने प्रिया को वापस कॉल लगाई और चेक करने बोला। उसने कहा कि अभी वो बिजी है तो एक्सेस पासवर्ड भेज दिया उसने कि मैं खुद ही चेक कर लूं सब ठीक है या नहीं।
मैने चेक किया तो सब सही था। और मैने टेक्निशियन और प्रिया दोनों को इनफॉर्म कर दिया इसके बारे में। शाम को मैं आज क्लब चला गया जहां समर से भी मुलाकात हो गई, और उसके साथ बैठ कर कुछ ड्रिंक्स भी लेली। फिर मैं ड्राइव करके वापस अपने फ्लैट की ओर निकल गया।
रास्ते में ट्रैफिक बहुत ज्यादा नहीं था, मगर फिर भी ड्रिंक किए होने के कारण मैं आराम आराम से ड्राइव कर रहा था। क्लब से थोड़ा आगे जाने पर दूसरे साइड से आगे से एक कार आती दिखी। ये कार मित्तल हाउस की थी, और ज्यादातर उसे श्रेय ही चलता था। मैंने उस कार की ओर देखा तो ड्राइविंग सीट पर एक आदमी था, जिसका चेहरा मुझे नहीं दिख पाया, और पैसेंजर सीट पर एक लड़की थी। कार पास होते ही स्ट्रीट लाइट की रोशनी में मुझे लगा कि वो लड़की नेहा थी....
Awesome update# अपडेट ११
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थोड़ी देर बाद मैं सो गया। अगले 2 दिन कुछ खास नहीं हुआ। मित्तल सर और करण दोनों ही नहीं थे, और करण के न रहने पर मैं और नेहा मिल कर आज पूरा काम देख रहे थे तो ज्यादा समय नहीं मिला हम दोनो को। तीसरे दिन करण मुंबई से आ चुका था, और मित्तल सर भी वापी पहुंच चुके थे, इसीलिए मैं कुछ रिलैक्स था, दोपहर में नेहा मेरे केबिन में आई और मेरी गोद में आ कर बैठ गई।
उसके बैठते ही मेरे केबिन का दरवाजा एकदम से खुल गया...
अब आगे -
दरवाजे पर मित्तल साहब खड़े थे, बस एक वही थे जो बिना नॉक किए मेरे केबिन में आ सकते थे। उनको देख नेहा उछल कर खड़ी हो गई और पीछे खिड़की की ओर मुंह छुपा कर खड़ी हो गई। मैं भी शौक के बस उनको ही देख रहा था। वो कुछ सेकंड दरवाजा पकड़ कर वैसे ही खड़े रहे, शायद उनको भी बहुत आश्चर्य हुआ होगा, फिर वो पलट कर निकल गए और जाते जाते बोले, "मनीष अपना काम निपटा कर मेरे केबिन में आओ, बहुत जरूरी बात है।"
मैंने नेहा को जाने का इशारा किया और कुछ देर बाद मैं भी मित्तल सर के केबिन की ओर निकल गया। भले ही अभी तक मैने अपने और नेहा के बारे में किसी को नहीं बताया था, मगर मैं सबसे पहले ये बात मित्तल सर को ही बताता, पर मुझे ये अच्छा नहीं लगा कि उनको इस तरीके से ये बात पता चली। खैर अब सामना तो करना ही था उनका।
मैं उनके केबिन के बाहर पहुंच कर धड़कते दिल से दरवाजा खटखटाया।
"कम इन।"
"सर वो..." मैं सर झुकते हुए अंदर गया और बिना देखे उनसे बोलने लगा।
"बैठो पहले।"
मेरे बैठते ही, "क्या था वो मनीष?"
"जी असल में हम... मतलब मैं और नेहा एक दूसरे से प्यार करते हैं।" मैं एक झटके में अपनी बात बोल गया।
कुछ देर की खामोशी के बाद, "क्या उसने अपने बारे में सब बताया तुम्हे?"
"जी अपनी तरफ से तो सब बता ही दिया है। और बस जैसे ही उसका डाइवोर्स फाइनल होता तो हम सबको बताने ही वाले थे।"
"चलो अब जब तुमने ये फैसला ले ही लिया है तो सही है, वैसे मैने तो कुछ और ही सोचा था तुम्हारे बारे में। फिर भी अगर जो तुम खुश हो तो मैं भी खुश हूं।"
दिल से मेरे बहुत बड़ा बोझ उतर गया था।
"वैसे मैं ये बोलने आया था कि वाल्ट का आधा अप्रूवल तो मिल गया है, बाकी आधा वाल्ट बनाने के बाद मिलेगा। तो अब तुमको इस काम में लग जाना होगा।"
"जी बिलकुल, मैं तो बस आपकी मंजूरी का वेट कर रहा था। फिलहाल एक दो लॉक के वेंडर से बात भी हो चुकी है। बस आप बोलिए तो उनको डेमो के लिए बुलवा लेता हूं, फिर शॉर्टलिस्ट करके आपसे मिलवा दूंगा।"
"ठीक है फिर कल से लग जाओ इसपर। और हां ये सब काम ऑफिस में तो मत किया करो भाई। और कम से कम, जब तक उसका डाइवोर्स फाइनल नहीं होता तब तक तो जरूर।" उन्होंने कुछ मूड हल्का करते हुए कहा।
मैं भी सर झुका कर सारी बोल कर निकल गया उनके केबिन से। नेहा मेरा इंतजार कर रही थी मेरे केबिन में।
"क्या बोला सर ने?"
"वो बहुत गुस्सा थे। उनको ये रिश्ता मंजूर नहीं, बोले कि एक दो दिन में तुमको दिल्ली भेज देंगे।" मैने सीरियस चेहरा बनाते हुए कहा।
ये सुन कर नेहा की आंखों में आंसु आ गए। "मुझे ऐसा ही लगा था मनीष, इसीलिए पहले मैने तुमसे कहा था कि डाइवोर्स हो जाने दो। लेकिन मैं खुद ही बहक गई, और अब?"
उसकी आंखों में आंसु मुझे अच्छे नहीं लगे। "सॉरी नेहा, मैने मजाक किया था। उनको हमारा रिश्ता मंजूर है।" मैने उसके कंधों को पकड़ कर कहा।
नेहा मुझे कुछ देर मुझे आश्चर्य से देखती रही, "क्या? सच में?"
"हां नेहा, बिलकुल सच।"
ये सुनते ही वो मेरे गले लग गई। मैने उसे दूर करते हुए कहा, "ये सब ऑफिस में करने से मना किया है सर ने।"
"ओह, हां सही है ऑफिस आखिर काम करने की जगह होती है।"
"हां, हमें ऑफिस में अपनी मर्यादा नहीं भूलनी चाहिए। अच्छा वो वाल्ट वाले प्रोजेक्ट के काम पर लगना है, अब तुम भी अपने केबिन में जाओ। हम शाम को मिलते हैं।"
नेहा चली गई और मैं काम में मशरुफ हो गया। शाम को मैने नेहा को कॉल किया तो वो ऑफिस से निकल चुकी थी। मैने उसे उसके घर से पिकअप किया। चूंकि आज हमारे रिश्ते को मित्तल सर की मंजूरी भी मिल गई थी, इसीलिए आज हमने साथ में डिनर का प्लान बनाया था।
डिनर से वापस लौटते समय नेहा का फोन बजा। उसने कॉल देख कर इग्नोर कर दिया, पर चेहरे पर कुछ टेंशन सी आ गई। काल कट कर वापस आने लगा, उसने फिर से इग्नोर किया।
"किसका कॉल है जो उठा नहीं रही, और टेंशन में क्यों हो तुम आखिर?"
"कुछ नहीं, ऐसा कोई इंपोर्टेंट कॉल नहीं है।"
"फिर परेशान क्यों हो?"
"व वो, कुछ दिन से देर शाम को मुझे पता नहीं किसकी कॉल आ रही है, कुछ बोलता नहीं कोई, लेकिन रोज कॉल आती है।"
"और ये कब बताने वाली थी मुझे तुम?" मैने थोड़े गुस्से वाले लहजे में पूछा।
"असल में बस कॉल ही आया है, कोई कुछ बोलता नहीं, इसीलिए तुमको नहीं बताया अब तक।"
"अच्छा किस नंबर से कॉल आता है? मुझे बताओ।"
"कोई fix नहीं है, लेकिन एक ही सीरीज से आ रहा है।"
"मुझे दिखाओ" ये बोल कर मैने उससे फोन ले लिया। कॉल अब भी बज रही थी।
नंबर मुझे जाना पहचाना लगा। तब तक कॉल कट गई। मैने थोड़ा दिमाग पर जोर डाला, ये नंबर तो शायद ऑफिस की बिल्डिंग का था। इंटरकॉम वाले सिस्टम में ये सीरीज का नंबर चलता है, लेकिन अब मोबाइल आ जाने से हम लोग सिर्फ इंटरकॉम का ही काम लेते थे उससे।
मैने देखा तो वैसी कॉल्स 5 6 अलग अलग नंबर से आई थी। मैने सबकी सीरीज चेक की तो पता चला कि ये नंबर मेरे ही फ्लोर के हैं, एक नंबर अलग फ्लोर का भी था।
मैने ऑफिस के रिसेप्शन पर कॉल लगाया। और पूछा कि मेरे फ्लोर पर अभी कौन कौन है तो वहां से बताया गया कि अभी अभी प्रिया और उसकी टीम निकली है, करण भी 10 मिनिट पहले ही निकला था। फिलहाल कोई नहीं है है उस फ्लोर पर।
"तुमको ऑफिस में सब कैसे लगते हैं?" मैने नेहा से पूछा।
"मतलब?"
"मतलब अपने वर्टिकल में जो साथ में हैं, वो सब कैसे लगते हैं तुमको, क्या कोई ऐसा भी लगता है जो तुमको नहीं चाहता हो या गलत निगाह रखता हो?"
"ऐसा तो कोई नहीं लगता, सब अपने काम से ही मिलते जुलते हैं मुझसे। हां कई बार मैने गौर किया है कि करण मीटिंग वगैरा में मुझे निहारता रहता है। पर अभी तक उसने कोई ऐसी हरकत नहीं की।"
अब मुझे लगने लगा कि उस दिन करण मुझे नेहा के खिलाफ इसीलिए भड़का रहा था क्योंकि वो शायद नेहा को सीक्रेटली चाहता हो। फिलहाल मैने उन सारे नंबर्स को ब्लॉक कर दिया नेहा के नंबर से, और उसको बोला कि फिर कभी कॉल आए तो मुझे जरूर बताए। मैने उसे घर छोड़ते हुए अपने फ्लैट पर वापस आ गया।
ये हफ्ता ऐसे ही बीत गया। शनिवार को नेहा ने कहा कि उसकी कोई मौसी जो मुंबई में रहती हैं, वो मिलने आने वाली है तो शनिवार और रविवार को मिलना संभव नहीं है। उसको अब वो ब्लैंक कॉल्स आने बंद हो गए थे।
मैं ऑफिस में ही बैठा था कि प्रिया का कॉल आया मेरे पास।
"हेलो मनीष, मैं आज एक मीटिंग के लिए निकली हूं, घर के सीसीटीवी में कोई दिक्कत है, तो क्या तुम टेक्नीशियंस से बात करके उसको सही करवा दोगे? पापा ने तुमसे बोलने को कहा है इसीलिए मैने तुमसे बोला"
"हां क्यों नहीं, वैसे क्या दिक्कत है उनमें?"
"कुछ कैमरा ऑनलाइन एक्सेस नहीं हो रहे, या फिर कई बार कनेक्शन कट जा रहा है। मैं टेक्निशियन का नंबर भेज रही हूं, तुम उनसे बात कर लेना।"
"ठीक है प्रिया, भेज दो। हां वो इंटरनेट प्रोवाइडर का भी भेज देना, शायद उसके साइड से कोई दिक्कत हो।"
"हां वो भी भेज देती हूं।"
वैसे एक दो बार पहले भी घर की कुछ काम को मैने करवाया है, तो प्रिया का ये फोन कोई पहली बार नहीं था। हां पर हर बार वो रिक्वेस्ट जरूर करती थी, और सर का नाम भी बोलती थी। खैर खाली ही बैठा था आज तो मैने सोचा ये काम भी करवा लिया जाय। 2 मिनिट बाद उसने दोनों नंबर भेज दिए थे। मैने पहले कैमरा वाले को कॉल लगाया और उससे प्रॉब्लम के बारे में पूछा और उसने कुछ अपडेट करने बोला। मैने उसे बोला कि वो अपनी तरफ से अपडेट कर दे तो कुछ समय मांग उसने। कोई एक घंटे बाद उसने कॉल करके बताया कि अपडेट्स कर दिया हैं उसने और चेक करने भी बोला। मेरे पास एक्सेस नहीं था तो मैने प्रिया को वापस कॉल लगाई और चेक करने बोला। उसने कहा कि अभी वो बिजी है तो एक्सेस पासवर्ड भेज दिया उसने कि मैं खुद ही चेक कर लूं सब ठीक है या नहीं।
मैने चेक किया तो सब सही था। और मैने टेक्निशियन और प्रिया दोनों को इनफॉर्म कर दिया इसके बारे में। शाम को मैं आज क्लब चला गया जहां समर से भी मुलाकात हो गई, और उसके साथ बैठ कर कुछ ड्रिंक्स भी लेली। फिर मैं ड्राइव करके वापस अपने फ्लैट की ओर निकल गया।
रास्ते में ट्रैफिक बहुत ज्यादा नहीं था, मगर फिर भी ड्रिंक किए होने के कारण मैं आराम आराम से ड्राइव कर रहा था। क्लब से थोड़ा आगे जाने पर दूसरे साइड से आगे से एक कार आती दिखी। ये कार मित्तल हाउस की थी, और ज्यादातर उसे श्रेय ही चलता था। मैंने उस कार की ओर देखा तो ड्राइविंग सीट पर एक आदमी था, जिसका चेहरा मुझे नहीं दिख पाया, और पैसेंजर सीट पर एक लड़की थी। कार पास होते ही स्ट्रीट लाइट की रोशनी में मुझे लगा कि वो लड़की नेहा थी....
Neha Neha Neha...kya chati hai yeh aakhir# अपडेट ११
अब तक आपने पढ़ा -
थोड़ी देर बाद मैं सो गया। अगले 2 दिन कुछ खास नहीं हुआ। मित्तल सर और करण दोनों ही नहीं थे, और करण के न रहने पर मैं और नेहा मिल कर आज पूरा काम देख रहे थे तो ज्यादा समय नहीं मिला हम दोनो को। तीसरे दिन करण मुंबई से आ चुका था, और मित्तल सर भी वापी पहुंच चुके थे, इसीलिए मैं कुछ रिलैक्स था, दोपहर में नेहा मेरे केबिन में आई और मेरी गोद में आ कर बैठ गई।
उसके बैठते ही मेरे केबिन का दरवाजा एकदम से खुल गया...
अब आगे -
दरवाजे पर मित्तल साहब खड़े थे, बस एक वही थे जो बिना नॉक किए मेरे केबिन में आ सकते थे। उनको देख नेहा उछल कर खड़ी हो गई और पीछे खिड़की की ओर मुंह छुपा कर खड़ी हो गई। मैं भी शौक के बस उनको ही देख रहा था। वो कुछ सेकंड दरवाजा पकड़ कर वैसे ही खड़े रहे, शायद उनको भी बहुत आश्चर्य हुआ होगा, फिर वो पलट कर निकल गए और जाते जाते बोले, "मनीष अपना काम निपटा कर मेरे केबिन में आओ, बहुत जरूरी बात है।"
मैंने नेहा को जाने का इशारा किया और कुछ देर बाद मैं भी मित्तल सर के केबिन की ओर निकल गया। भले ही अभी तक मैने अपने और नेहा के बारे में किसी को नहीं बताया था, मगर मैं सबसे पहले ये बात मित्तल सर को ही बताता, पर मुझे ये अच्छा नहीं लगा कि उनको इस तरीके से ये बात पता चली। खैर अब सामना तो करना ही था उनका।
मैं उनके केबिन के बाहर पहुंच कर धड़कते दिल से दरवाजा खटखटाया।
"कम इन।"
"सर वो..." मैं सर झुकते हुए अंदर गया और बिना देखे उनसे बोलने लगा।
"बैठो पहले।"
मेरे बैठते ही, "क्या था वो मनीष?"
"जी असल में हम... मतलब मैं और नेहा एक दूसरे से प्यार करते हैं।" मैं एक झटके में अपनी बात बोल गया।
कुछ देर की खामोशी के बाद, "क्या उसने अपने बारे में सब बताया तुम्हे?"
"जी अपनी तरफ से तो सब बता ही दिया है। और बस जैसे ही उसका डाइवोर्स फाइनल होता तो हम सबको बताने ही वाले थे।"
"चलो अब जब तुमने ये फैसला ले ही लिया है तो सही है, वैसे मैने तो कुछ और ही सोचा था तुम्हारे बारे में। फिर भी अगर जो तुम खुश हो तो मैं भी खुश हूं।"
दिल से मेरे बहुत बड़ा बोझ उतर गया था।
"वैसे मैं ये बोलने आया था कि वाल्ट का आधा अप्रूवल तो मिल गया है, बाकी आधा वाल्ट बनाने के बाद मिलेगा। तो अब तुमको इस काम में लग जाना होगा।"
"जी बिलकुल, मैं तो बस आपकी मंजूरी का वेट कर रहा था। फिलहाल एक दो लॉक के वेंडर से बात भी हो चुकी है। बस आप बोलिए तो उनको डेमो के लिए बुलवा लेता हूं, फिर शॉर्टलिस्ट करके आपसे मिलवा दूंगा।"
"ठीक है फिर कल से लग जाओ इसपर। और हां ये सब काम ऑफिस में तो मत किया करो भाई। और कम से कम, जब तक उसका डाइवोर्स फाइनल नहीं होता तब तक तो जरूर।" उन्होंने कुछ मूड हल्का करते हुए कहा।
मैं भी सर झुका कर सारी बोल कर निकल गया उनके केबिन से। नेहा मेरा इंतजार कर रही थी मेरे केबिन में।
"क्या बोला सर ने?"
"वो बहुत गुस्सा थे। उनको ये रिश्ता मंजूर नहीं, बोले कि एक दो दिन में तुमको दिल्ली भेज देंगे।" मैने सीरियस चेहरा बनाते हुए कहा।
ये सुन कर नेहा की आंखों में आंसु आ गए। "मुझे ऐसा ही लगा था मनीष, इसीलिए पहले मैने तुमसे कहा था कि डाइवोर्स हो जाने दो। लेकिन मैं खुद ही बहक गई, और अब?"
उसकी आंखों में आंसु मुझे अच्छे नहीं लगे। "सॉरी नेहा, मैने मजाक किया था। उनको हमारा रिश्ता मंजूर है।" मैने उसके कंधों को पकड़ कर कहा।
नेहा मुझे कुछ देर मुझे आश्चर्य से देखती रही, "क्या? सच में?"
"हां नेहा, बिलकुल सच।"
ये सुनते ही वो मेरे गले लग गई। मैने उसे दूर करते हुए कहा, "ये सब ऑफिस में करने से मना किया है सर ने।"
"ओह, हां सही है ऑफिस आखिर काम करने की जगह होती है।"
"हां, हमें ऑफिस में अपनी मर्यादा नहीं भूलनी चाहिए। अच्छा वो वाल्ट वाले प्रोजेक्ट के काम पर लगना है, अब तुम भी अपने केबिन में जाओ। हम शाम को मिलते हैं।"
नेहा चली गई और मैं काम में मशरुफ हो गया। शाम को मैने नेहा को कॉल किया तो वो ऑफिस से निकल चुकी थी। मैने उसे उसके घर से पिकअप किया। चूंकि आज हमारे रिश्ते को मित्तल सर की मंजूरी भी मिल गई थी, इसीलिए आज हमने साथ में डिनर का प्लान बनाया था।
डिनर से वापस लौटते समय नेहा का फोन बजा। उसने कॉल देख कर इग्नोर कर दिया, पर चेहरे पर कुछ टेंशन सी आ गई। काल कट कर वापस आने लगा, उसने फिर से इग्नोर किया।
"किसका कॉल है जो उठा नहीं रही, और टेंशन में क्यों हो तुम आखिर?"
"कुछ नहीं, ऐसा कोई इंपोर्टेंट कॉल नहीं है।"
"फिर परेशान क्यों हो?"
"व वो, कुछ दिन से देर शाम को मुझे पता नहीं किसकी कॉल आ रही है, कुछ बोलता नहीं कोई, लेकिन रोज कॉल आती है।"
"और ये कब बताने वाली थी मुझे तुम?" मैने थोड़े गुस्से वाले लहजे में पूछा।
"असल में बस कॉल ही आया है, कोई कुछ बोलता नहीं, इसीलिए तुमको नहीं बताया अब तक।"
"अच्छा किस नंबर से कॉल आता है? मुझे बताओ।"
"कोई fix नहीं है, लेकिन एक ही सीरीज से आ रहा है।"
"मुझे दिखाओ" ये बोल कर मैने उससे फोन ले लिया। कॉल अब भी बज रही थी।
नंबर मुझे जाना पहचाना लगा। तब तक कॉल कट गई। मैने थोड़ा दिमाग पर जोर डाला, ये नंबर तो शायद ऑफिस की बिल्डिंग का था। इंटरकॉम वाले सिस्टम में ये सीरीज का नंबर चलता है, लेकिन अब मोबाइल आ जाने से हम लोग सिर्फ इंटरकॉम का ही काम लेते थे उससे।
मैने देखा तो वैसी कॉल्स 5 6 अलग अलग नंबर से आई थी। मैने सबकी सीरीज चेक की तो पता चला कि ये नंबर मेरे ही फ्लोर के हैं, एक नंबर अलग फ्लोर का भी था।
मैने ऑफिस के रिसेप्शन पर कॉल लगाया। और पूछा कि मेरे फ्लोर पर अभी कौन कौन है तो वहां से बताया गया कि अभी अभी प्रिया और उसकी टीम निकली है, करण भी 10 मिनिट पहले ही निकला था। फिलहाल कोई नहीं है है उस फ्लोर पर।
"तुमको ऑफिस में सब कैसे लगते हैं?" मैने नेहा से पूछा।
"मतलब?"
"मतलब अपने वर्टिकल में जो साथ में हैं, वो सब कैसे लगते हैं तुमको, क्या कोई ऐसा भी लगता है जो तुमको नहीं चाहता हो या गलत निगाह रखता हो?"
"ऐसा तो कोई नहीं लगता, सब अपने काम से ही मिलते जुलते हैं मुझसे। हां कई बार मैने गौर किया है कि करण मीटिंग वगैरा में मुझे निहारता रहता है। पर अभी तक उसने कोई ऐसी हरकत नहीं की।"
अब मुझे लगने लगा कि उस दिन करण मुझे नेहा के खिलाफ इसीलिए भड़का रहा था क्योंकि वो शायद नेहा को सीक्रेटली चाहता हो। फिलहाल मैने उन सारे नंबर्स को ब्लॉक कर दिया नेहा के नंबर से, और उसको बोला कि फिर कभी कॉल आए तो मुझे जरूर बताए। मैने उसे घर छोड़ते हुए अपने फ्लैट पर वापस आ गया।
ये हफ्ता ऐसे ही बीत गया। शनिवार को नेहा ने कहा कि उसकी कोई मौसी जो मुंबई में रहती हैं, वो मिलने आने वाली है तो शनिवार और रविवार को मिलना संभव नहीं है। उसको अब वो ब्लैंक कॉल्स आने बंद हो गए थे।
मैं ऑफिस में ही बैठा था कि प्रिया का कॉल आया मेरे पास।
"हेलो मनीष, मैं आज एक मीटिंग के लिए निकली हूं, घर के सीसीटीवी में कोई दिक्कत है, तो क्या तुम टेक्नीशियंस से बात करके उसको सही करवा दोगे? पापा ने तुमसे बोलने को कहा है इसीलिए मैने तुमसे बोला"
"हां क्यों नहीं, वैसे क्या दिक्कत है उनमें?"
"कुछ कैमरा ऑनलाइन एक्सेस नहीं हो रहे, या फिर कई बार कनेक्शन कट जा रहा है। मैं टेक्निशियन का नंबर भेज रही हूं, तुम उनसे बात कर लेना।"
"ठीक है प्रिया, भेज दो। हां वो इंटरनेट प्रोवाइडर का भी भेज देना, शायद उसके साइड से कोई दिक्कत हो।"
"हां वो भी भेज देती हूं।"
वैसे एक दो बार पहले भी घर की कुछ काम को मैने करवाया है, तो प्रिया का ये फोन कोई पहली बार नहीं था। हां पर हर बार वो रिक्वेस्ट जरूर करती थी, और सर का नाम भी बोलती थी। खैर खाली ही बैठा था आज तो मैने सोचा ये काम भी करवा लिया जाय। 2 मिनिट बाद उसने दोनों नंबर भेज दिए थे। मैने पहले कैमरा वाले को कॉल लगाया और उससे प्रॉब्लम के बारे में पूछा और उसने कुछ अपडेट करने बोला। मैने उसे बोला कि वो अपनी तरफ से अपडेट कर दे तो कुछ समय मांग उसने। कोई एक घंटे बाद उसने कॉल करके बताया कि अपडेट्स कर दिया हैं उसने और चेक करने भी बोला। मेरे पास एक्सेस नहीं था तो मैने प्रिया को वापस कॉल लगाई और चेक करने बोला। उसने कहा कि अभी वो बिजी है तो एक्सेस पासवर्ड भेज दिया उसने कि मैं खुद ही चेक कर लूं सब ठीक है या नहीं।
मैने चेक किया तो सब सही था। और मैने टेक्निशियन और प्रिया दोनों को इनफॉर्म कर दिया इसके बारे में। शाम को मैं आज क्लब चला गया जहां समर से भी मुलाकात हो गई, और उसके साथ बैठ कर कुछ ड्रिंक्स भी लेली। फिर मैं ड्राइव करके वापस अपने फ्लैट की ओर निकल गया।
रास्ते में ट्रैफिक बहुत ज्यादा नहीं था, मगर फिर भी ड्रिंक किए होने के कारण मैं आराम आराम से ड्राइव कर रहा था। क्लब से थोड़ा आगे जाने पर दूसरे साइड से आगे से एक कार आती दिखी। ये कार मित्तल हाउस की थी, और ज्यादातर उसे श्रेय ही चलता था। मैंने उस कार की ओर देखा तो ड्राइविंग सीट पर एक आदमी था, जिसका चेहरा मुझे नहीं दिख पाया, और पैसेंजर सीट पर एक लड़की थी। कार पास होते ही स्ट्रीट लाइट की रोशनी में मुझे लगा कि वो लड़की नेहा थी....
हां, लगता तो ऐसा ही है कि कुछ बात के लिए आगाह करना चाह, मगर जैसे मनीष ने डाइवोर्स वाली बात बोली, शायद उससे उनको लगा कि सब पता है उनको।Awesome update
Mittal Sahab ne Manish और neha को केबिन में रोमांटिक हालत में देख लिया,
मनीष ने उनके सामने अपने प्यार का इजहार कर दिया और उन्होंने कुछ तस्दीक के साथ मंजूरी दे दी
हालांकि उनकी बातों से लगा कि नेहा के लिए उन्हें मनीष को आगाह किया है
और शायद मनीष की शादी के लिए उन्होंने भी कुछ सोचा था
शायद, या नहीं। देखते हैं आगे कौन है वो।लेकिन अब वो मनीष की खुशी में खुश है
अपडेट के एंड में फिर नेहा संदेहकी घेरे में आ गई है
अभी फ़िलहाल तो सुलझते नहीं दिखते। क्या पता आखिरी तक भी न सुलझेNeha Neha Neha...kya chati hai yeh aakhir
I'm waiting jab uske baare mein raz uljhane ke bajaaye sulajne lage...
क्या पता अब देख ले who knowsBtw Nice update...footage wala scene padhke laga tha ke Neha ke affair ke video dekh lega kahin Manish.
Dekhte hai aage kya hota hai...
Mai na kahta tha ki neha ki aank me suvar ka baal hai, ye srey ke sath milkar manish ka choitiya kaat rahi hai, but kis liye? Ye janna hai# अपडेट ११
अब तक आपने पढ़ा -
थोड़ी देर बाद मैं सो गया। अगले 2 दिन कुछ खास नहीं हुआ। मित्तल सर और करण दोनों ही नहीं थे, और करण के न रहने पर मैं और नेहा मिल कर आज पूरा काम देख रहे थे तो ज्यादा समय नहीं मिला हम दोनो को। तीसरे दिन करण मुंबई से आ चुका था, और मित्तल सर भी वापी पहुंच चुके थे, इसीलिए मैं कुछ रिलैक्स था, दोपहर में नेहा मेरे केबिन में आई और मेरी गोद में आ कर बैठ गई।
उसके बैठते ही मेरे केबिन का दरवाजा एकदम से खुल गया...
अब आगे -
दरवाजे पर मित्तल साहब खड़े थे, बस एक वही थे जो बिना नॉक किए मेरे केबिन में आ सकते थे। उनको देख नेहा उछल कर खड़ी हो गई और पीछे खिड़की की ओर मुंह छुपा कर खड़ी हो गई। मैं भी शौक के बस उनको ही देख रहा था। वो कुछ सेकंड दरवाजा पकड़ कर वैसे ही खड़े रहे, शायद उनको भी बहुत आश्चर्य हुआ होगा, फिर वो पलट कर निकल गए और जाते जाते बोले, "मनीष अपना काम निपटा कर मेरे केबिन में आओ, बहुत जरूरी बात है।"
मैंने नेहा को जाने का इशारा किया और कुछ देर बाद मैं भी मित्तल सर के केबिन की ओर निकल गया। भले ही अभी तक मैने अपने और नेहा के बारे में किसी को नहीं बताया था, मगर मैं सबसे पहले ये बात मित्तल सर को ही बताता, पर मुझे ये अच्छा नहीं लगा कि उनको इस तरीके से ये बात पता चली। खैर अब सामना तो करना ही था उनका।
मैं उनके केबिन के बाहर पहुंच कर धड़कते दिल से दरवाजा खटखटाया।
"कम इन।"
"सर वो..." मैं सर झुकते हुए अंदर गया और बिना देखे उनसे बोलने लगा।
"बैठो पहले।"
मेरे बैठते ही, "क्या था वो मनीष?"
"जी असल में हम... मतलब मैं और नेहा एक दूसरे से प्यार करते हैं।" मैं एक झटके में अपनी बात बोल गया।
कुछ देर की खामोशी के बाद, "क्या उसने अपने बारे में सब बताया तुम्हे?"
"जी अपनी तरफ से तो सब बता ही दिया है। और बस जैसे ही उसका डाइवोर्स फाइनल होता तो हम सबको बताने ही वाले थे।"
"चलो अब जब तुमने ये फैसला ले ही लिया है तो सही है, वैसे मैने तो कुछ और ही सोचा था तुम्हारे बारे में। फिर भी अगर जो तुम खुश हो तो मैं भी खुश हूं।"
दिल से मेरे बहुत बड़ा बोझ उतर गया था।
"वैसे मैं ये बोलने आया था कि वाल्ट का आधा अप्रूवल तो मिल गया है, बाकी आधा वाल्ट बनाने के बाद मिलेगा। तो अब तुमको इस काम में लग जाना होगा।"
"जी बिलकुल, मैं तो बस आपकी मंजूरी का वेट कर रहा था। फिलहाल एक दो लॉक के वेंडर से बात भी हो चुकी है। बस आप बोलिए तो उनको डेमो के लिए बुलवा लेता हूं, फिर शॉर्टलिस्ट करके आपसे मिलवा दूंगा।"
"ठीक है फिर कल से लग जाओ इसपर। और हां ये सब काम ऑफिस में तो मत किया करो भाई। और कम से कम, जब तक उसका डाइवोर्स फाइनल नहीं होता तब तक तो जरूर।" उन्होंने कुछ मूड हल्का करते हुए कहा।
मैं भी सर झुका कर सारी बोल कर निकल गया उनके केबिन से। नेहा मेरा इंतजार कर रही थी मेरे केबिन में।
"क्या बोला सर ने?"
"वो बहुत गुस्सा थे। उनको ये रिश्ता मंजूर नहीं, बोले कि एक दो दिन में तुमको दिल्ली भेज देंगे।" मैने सीरियस चेहरा बनाते हुए कहा।
ये सुन कर नेहा की आंखों में आंसु आ गए। "मुझे ऐसा ही लगा था मनीष, इसीलिए पहले मैने तुमसे कहा था कि डाइवोर्स हो जाने दो। लेकिन मैं खुद ही बहक गई, और अब?"
उसकी आंखों में आंसु मुझे अच्छे नहीं लगे। "सॉरी नेहा, मैने मजाक किया था। उनको हमारा रिश्ता मंजूर है।" मैने उसके कंधों को पकड़ कर कहा।
नेहा मुझे कुछ देर मुझे आश्चर्य से देखती रही, "क्या? सच में?"
"हां नेहा, बिलकुल सच।"
ये सुनते ही वो मेरे गले लग गई। मैने उसे दूर करते हुए कहा, "ये सब ऑफिस में करने से मना किया है सर ने।"
"ओह, हां सही है ऑफिस आखिर काम करने की जगह होती है।"
"हां, हमें ऑफिस में अपनी मर्यादा नहीं भूलनी चाहिए। अच्छा वो वाल्ट वाले प्रोजेक्ट के काम पर लगना है, अब तुम भी अपने केबिन में जाओ। हम शाम को मिलते हैं।"
नेहा चली गई और मैं काम में मशरुफ हो गया। शाम को मैने नेहा को कॉल किया तो वो ऑफिस से निकल चुकी थी। मैने उसे उसके घर से पिकअप किया। चूंकि आज हमारे रिश्ते को मित्तल सर की मंजूरी भी मिल गई थी, इसीलिए आज हमने साथ में डिनर का प्लान बनाया था।
डिनर से वापस लौटते समय नेहा का फोन बजा। उसने कॉल देख कर इग्नोर कर दिया, पर चेहरे पर कुछ टेंशन सी आ गई। काल कट कर वापस आने लगा, उसने फिर से इग्नोर किया।
"किसका कॉल है जो उठा नहीं रही, और टेंशन में क्यों हो तुम आखिर?"
"कुछ नहीं, ऐसा कोई इंपोर्टेंट कॉल नहीं है।"
"फिर परेशान क्यों हो?"
"व वो, कुछ दिन से देर शाम को मुझे पता नहीं किसकी कॉल आ रही है, कुछ बोलता नहीं कोई, लेकिन रोज कॉल आती है।"
"और ये कब बताने वाली थी मुझे तुम?" मैने थोड़े गुस्से वाले लहजे में पूछा।
"असल में बस कॉल ही आया है, कोई कुछ बोलता नहीं, इसीलिए तुमको नहीं बताया अब तक।"
"अच्छा किस नंबर से कॉल आता है? मुझे बताओ।"
"कोई fix नहीं है, लेकिन एक ही सीरीज से आ रहा है।"
"मुझे दिखाओ" ये बोल कर मैने उससे फोन ले लिया। कॉल अब भी बज रही थी।
नंबर मुझे जाना पहचाना लगा। तब तक कॉल कट गई। मैने थोड़ा दिमाग पर जोर डाला, ये नंबर तो शायद ऑफिस की बिल्डिंग का था। इंटरकॉम वाले सिस्टम में ये सीरीज का नंबर चलता है, लेकिन अब मोबाइल आ जाने से हम लोग सिर्फ इंटरकॉम का ही काम लेते थे उससे।
मैने देखा तो वैसी कॉल्स 5 6 अलग अलग नंबर से आई थी। मैने सबकी सीरीज चेक की तो पता चला कि ये नंबर मेरे ही फ्लोर के हैं, एक नंबर अलग फ्लोर का भी था।
मैने ऑफिस के रिसेप्शन पर कॉल लगाया। और पूछा कि मेरे फ्लोर पर अभी कौन कौन है तो वहां से बताया गया कि अभी अभी प्रिया और उसकी टीम निकली है, करण भी 10 मिनिट पहले ही निकला था। फिलहाल कोई नहीं है है उस फ्लोर पर।
"तुमको ऑफिस में सब कैसे लगते हैं?" मैने नेहा से पूछा।
"मतलब?"
"मतलब अपने वर्टिकल में जो साथ में हैं, वो सब कैसे लगते हैं तुमको, क्या कोई ऐसा भी लगता है जो तुमको नहीं चाहता हो या गलत निगाह रखता हो?"
"ऐसा तो कोई नहीं लगता, सब अपने काम से ही मिलते जुलते हैं मुझसे। हां कई बार मैने गौर किया है कि करण मीटिंग वगैरा में मुझे निहारता रहता है। पर अभी तक उसने कोई ऐसी हरकत नहीं की।"
अब मुझे लगने लगा कि उस दिन करण मुझे नेहा के खिलाफ इसीलिए भड़का रहा था क्योंकि वो शायद नेहा को सीक्रेटली चाहता हो। फिलहाल मैने उन सारे नंबर्स को ब्लॉक कर दिया नेहा के नंबर से, और उसको बोला कि फिर कभी कॉल आए तो मुझे जरूर बताए। मैने उसे घर छोड़ते हुए अपने फ्लैट पर वापस आ गया।
ये हफ्ता ऐसे ही बीत गया। शनिवार को नेहा ने कहा कि उसकी कोई मौसी जो मुंबई में रहती हैं, वो मिलने आने वाली है तो शनिवार और रविवार को मिलना संभव नहीं है। उसको अब वो ब्लैंक कॉल्स आने बंद हो गए थे।
मैं ऑफिस में ही बैठा था कि प्रिया का कॉल आया मेरे पास।
"हेलो मनीष, मैं आज एक मीटिंग के लिए निकली हूं, घर के सीसीटीवी में कोई दिक्कत है, तो क्या तुम टेक्नीशियंस से बात करके उसको सही करवा दोगे? पापा ने तुमसे बोलने को कहा है इसीलिए मैने तुमसे बोला"
"हां क्यों नहीं, वैसे क्या दिक्कत है उनमें?"
"कुछ कैमरा ऑनलाइन एक्सेस नहीं हो रहे, या फिर कई बार कनेक्शन कट जा रहा है। मैं टेक्निशियन का नंबर भेज रही हूं, तुम उनसे बात कर लेना।"
"ठीक है प्रिया, भेज दो। हां वो इंटरनेट प्रोवाइडर का भी भेज देना, शायद उसके साइड से कोई दिक्कत हो।"
"हां वो भी भेज देती हूं।"
वैसे एक दो बार पहले भी घर की कुछ काम को मैने करवाया है, तो प्रिया का ये फोन कोई पहली बार नहीं था। हां पर हर बार वो रिक्वेस्ट जरूर करती थी, और सर का नाम भी बोलती थी। खैर खाली ही बैठा था आज तो मैने सोचा ये काम भी करवा लिया जाय। 2 मिनिट बाद उसने दोनों नंबर भेज दिए थे। मैने पहले कैमरा वाले को कॉल लगाया और उससे प्रॉब्लम के बारे में पूछा और उसने कुछ अपडेट करने बोला। मैने उसे बोला कि वो अपनी तरफ से अपडेट कर दे तो कुछ समय मांग उसने। कोई एक घंटे बाद उसने कॉल करके बताया कि अपडेट्स कर दिया हैं उसने और चेक करने भी बोला। मेरे पास एक्सेस नहीं था तो मैने प्रिया को वापस कॉल लगाई और चेक करने बोला। उसने कहा कि अभी वो बिजी है तो एक्सेस पासवर्ड भेज दिया उसने कि मैं खुद ही चेक कर लूं सब ठीक है या नहीं।
मैने चेक किया तो सब सही था। और मैने टेक्निशियन और प्रिया दोनों को इनफॉर्म कर दिया इसके बारे में। शाम को मैं आज क्लब चला गया जहां समर से भी मुलाकात हो गई, और उसके साथ बैठ कर कुछ ड्रिंक्स भी लेली। फिर मैं ड्राइव करके वापस अपने फ्लैट की ओर निकल गया।
रास्ते में ट्रैफिक बहुत ज्यादा नहीं था, मगर फिर भी ड्रिंक किए होने के कारण मैं आराम आराम से ड्राइव कर रहा था। क्लब से थोड़ा आगे जाने पर दूसरे साइड से आगे से एक कार आती दिखी। ये कार मित्तल हाउस की थी, और ज्यादातर उसे श्रेय ही चलता था। मैंने उस कार की ओर देखा तो ड्राइविंग सीट पर एक आदमी था, जिसका चेहरा मुझे नहीं दिख पाया, और पैसेंजर सीट पर एक लड़की थी। कार पास होते ही स्ट्रीट लाइट की रोशनी में मुझे लगा कि वो लड़की नेहा थी....
किस्मत के पट कब किस तरह खुल जाए कोई नाही जानता, और मोनू की तो किस्मत ऐसे खुली के सब कुछ मिल गया लेकिन कही न कही मुझे कुछ तो खटक रहा है अब वो क्या है यह अभी तो नहीं पता लेकिन शायद आगे कहानी मे जवाब मिले, शानदार भाग है#अपडेट २
अब तक आपने पढ़ा -
अब आप सोच रहे होंगे कि कैसा नालायक बेटा हूं मैं जो अपने पिता को सर बोल रहा हूं और उनके साथ घर क्यों नही गया?
तो आपको बता दूं रजत जी मेरे पिता नही हैं....
अब आगे -
हां वो मुझे जन्म देने वाले पिता नही हैं, लेकिन पिता से कम भी नहीं हैं, ये नाम मनीष मित्तल भी उन्ही का दिया है, वरना जब से मैंने होश सम्हाल है, खुद को इस दुनिया में अकेला ही पाया है।
मुझे पता भी नही कि मेरे माता पिता कौन थे, कैसे थे। मैं उनकी ही औलाद था या नाजायज था, या उनकी किसी दुर्घटना में मौत हो गई।
होश आते ही मैंने खुद को दिल्ली की सड़कों पर भटकता पाया, पेट भरने के लिए कभी भीख मांगता, कभी कुछ छोटे मोटे काम, जैसे जूता पॉलिश करना, गाड़ी साफ करना, करते हुए गुजारा करने लगा। जब मैं कुछ बड़ा हुआ तो मुझे नई दिल्ली स्टेशन के पास एक ढाबे में काम मिल गया। वो ढाबा एक सरदार जी का था, जो उस वक्त करीब पैंतीस साल के होंगे, बड़े ही जिंदादिल इंसान और स्वभाव के बहुत ही अच्छे। उन्होंने पहले तो मुझे टेबल साफ करना का काम दिया, और बाद में मुझे पढ़ने के लिए भी उकसाया।
मुझे पढ़ाई बड़ी अच्छी लगने लगी, मैने कुछ ही साल में क्लास 5 तक की पढ़ाई पढ़ ली। पढ़ाई के साथ साथ मुझे नई चीजें सीखना का भी शौक था।
एक दिन स्टेशन के पास सौंदर्यीकरण के कारण सरदार जी को ढाबे की जगह खाली करने का आदेश आ गया, सरदार जी ने अपने ढाबे को राजेंद्र नगर में शिफ्ट कर दिया, और कई पुराने लोगों को भी वहीं काम पर बुला लिया, उनमें से मैं भी एक था, वो मुझे बहुत मानने लगे थे।
वहां ढाबे के पास ही जॉली की इलेक्ट्रॉनिक रिपेयरिंग की दुकान थी, वो समय था जब भारत में मोबाइल आया ही था, और हैप्पी भैया भी मोबाइल रिपेयरिंग का काम सीख कर अपनी दुकान में वो भी करने लगे थे। सरदार जी और मेरी उनसे बहुत बनने लगी। मैं तो अक्सर खाली समय में उनकी दुकान पर बैठा चीजों को रिपेयर होते देखता रहता था। कभी कभी हैप्पी भैया मुझे भी कुछ छोटी चीजों को रिपेयर करने देते थे।
एक दिन जब मैं उनकी दुकान पर बैठा था तो दुकान में 3 4 आदमी आए, उनमें से एक को छोड़ कर बाकी दुकान के बाहर रुक गए।
उनको देखते ही जॉली भैया अपनी सीट छोड़ कर खड़े हो गए, "अरे मित्तल साहब, नमस्ते। आइए आइए, बोलिए यहां आने की जहमत क्यों उठाई आपने, मुझे बुलवा लिया होता।"
जॉली भैया के इस तरह बोलते देख मैं समझ गया कि ये कोई बड़ी हस्ती हैं, और बाहर खड़े लोग उनके बॉडीगार्ड या मातहत हैं।
मित्तल साहब, "अरे जॉली बात ही कुछ ऐसी है, तुमको बुलाता तो आने जाने में समय बरबाद होता, इसीलिए खुद आ गया। अभी कुछ दिन पहले अमेरिका से आया हूं,वहां ये लेटेस्ट मॉडल का फोन लिया था, लेकिन आज सुबह से ये ऑन भी नही हो रहा। जरा देखो इसको, बहुत सारे जरूरी कॉन्टेक्ट इसी फोन में हैं।"
जॉली भैया तुरंत उस फोन को खोल कर देखने लगते हैं, कोई 15 20 मिनट के बाद, "मित्तल साहब ये तो कुछ समझ नही आ रहा मुझे, और ये फोन तो इतना लेटेस्ट है कि इसे फिलहाल तो अपने देश में कोई बना भी न पाए।"
मित्तल साहब जो ये सुन कर थोड़ा परेशान हो गए, "एक बार सही से कोशिश तो करो भाई, बहुत जरूरी है इस फोन का सही होना, वरना एक बहुत बड़ा कॉन्ट्रैक्ट हाथ से चला जायेगा।"
जॉली भैया फिर से कोशिश में लग जाते हैं, और फिर 10 मिनिट के बाद, "नही समझ आ रहा मित्तल साहब।"
ये सुन कर वो व्यक्ति थोड़ा निराश दिखने लगा।
तभी पता नही मुझे क्या हुआ, "जॉली भैया, एक बार मैं कोशिश करूं?"
मित्तल साहब ने सवालिया नजरें से जॉली को देखा।
जॉली, "अरे मोनू, आज तक तूने किसी फोन को हाथ भी नही लगाया, और ये तो इतना लेटेस्ट है कि मुझे भी नही समझ आ रहा, तू कैसे करेगा ये?"
"एक बार कोशिश तो करने दो मुझे भैया।"
जॉली भैया बड़े पसोपेश में पड़ गए
मित्तल साहब मेरे पास आ कर मेरी आंखो में झांकते हुए बोले, "क्या तुम कर लोगे।"
पता नही किस शक्ति के वशीभूत हो कर मैने भी वैसे ही उनकी आंखों में देखते हुए जवाब दिया, "मुझे लगता है कि मैं इसको सही कर सकता हूं।"
"जॉली, एक बार इसे कोशिश करने दो।"
"पर मित्तल साहब?"
"जॉली फोन तो वैसे भी अब शायद ही बने यहां, एक बार इसको दो तो।"
जॉली भैया अपनी सीट छोड़ कर खड़े हो गए और मुझे इशारा किया। मैं उनकी सीट पर जा कर बैठ गया, जहां वो फोन रखा था। मैने उसे खोला और गौर से उसे देखने लगा। मित्तल साहब और जॉली भैया बाहर जा कर बैठ गए और कुछ बातें करने लगे।
मैं उस फोन को गौर से देख रहा था और समझने की कोशिश कर रहा था, पता नही मैने किस भावना में बह कर मित्तल साहब की आंखों में झांकते हुए फोन को सही करने की बात कर दी थी, अब मेरी हालत खराब हो रही थी।
खैर कुछ समय बाद मुझे लगा की कुछ है जो शायद टूटा है, वो एक बहुत ही महीन सा तार था जो बैटरी के कनेक्शन को मेन यूनिट से जोड़ रहा था, पतली वाली चिमटी से उसे निकलने पर वो टूटा ही मिला मुझे, और मैने एक और तार से वैसे ही महीन सा तार निकल कर लगा दिया, और फोन को वापस से पैक करके धड़कते दिल से ऑन का स्विच दबा दिया। कुछ सेकंड बाद फोन में लाइट आने लगी और वो ऑन हो गया।
आवाज सुनते ही जॉली भैया और मित्तल जी अंदर आए, और आते ही जॉली भैया ने मुझे गले लगा लिया, मित्तल जी फोन के ऑन होने से बहुत खुश थे।
जॉली, "कैसे किया तूने?"
मैने फिर सारी बात बताई, जिसे सुन कर मित्तल साहब के चेहरे पर कई तरह के भाव आते जाते रहे। सारी बात सुन कर मित्तल साहब ने अपना कार्ड मुझे देते हुए कहा, "बेटा ये मेरा कार्ड रखो, और अभी मैं किसी काम से मुंबई जा रहा हूं, 2 3 दिन के बाद लौटूंगा, तुम आ कर मुझसे जरूर से मिलना।"
इसके बाद वो बाहर निकल गए। जॉली भैया बहुत खुश थे और उन्होंने ये बात तुरंत ही सरदार जी को बताई। ये सुन कर सरदार जी भी खुश हो कर मेरी पीठ थपथपाने लगे।
खैर उसके बाद में ढाबे के काम में व्यस्त हो गया और मित्तल साहब के कार्ड के बारे में लगभग भूल ही गया।
6 7 दिन बाद दोपहर के बाद मैं ढाबे की सफाई कर रहा था, तभी एक ड्राइवर की वर्दी में ढाबे पर आया और मुझे सामने देख मुझसे पूछा, "ये मोनू कहां मिलेगा?"
"बोलिए, में ही मोनू हूं।"
"चलो, तुम्हे साहब ने बुलाया है।"
"कौन साहब?"
"मित्तल साहब का ड्राइवर हूं मैं, उन्होंने ही मुझे तुम्हे लाने भेजा है।"
तब तक सरदार जी भी पास आ चुके थे और मित्तल साहब का नाम सुनते ही मुझसे बोले, "जा पुत्तर, मिल कर आ मित्तल साहब से।"
मैं ड्राइवर के साथ निकल गया, वो एक बहुत ही बड़ी गाड़ी में आया था, जो दिल्ली जैसे शहर में ही बहुत कम दिखती थी। कोई एक घंटे बाद ड्राइवर ने गाड़ी एक इमारत के अंदर ले जा कर लगाई, और मुझे ले कर गाड़ी से बाहर आ कर लिफ्ट से इमारत के सबसे ऊपर वाली मंजिल पर ले गया।
वहां पहुंच कर ड्राइवर ने सामने काउंटर पर बैठी लड़की से कुछ बात की और उस लड़की ने उसे इशारे से अंदर जाने को कहा। ड्राइवर मुझे ले कर एक दरवाजे के पास ले गया और दरवाजे को खटखटाने लगा, अंदर से "आ जाओ" की आवाज आई, और ड्राइवर ने दरवाजा खोल कर मुझे अंदर जाने का इशारा किया।
अंदर जाते ही मैंने देखा, ये एक बहुत ही बड़ा और शानदार ऑफिस था, और सामने मित्तल साहब अपनी डेस्क के पीछे बैठे कोई फाइल पढ़ रहे थे। वो कमरा बहुत ही बड़ा था, इतना बड़ा की कई लोग का पूरा घर ही उतने में आ जाय।
मित्तल साहब ने मुझे देख कर साइड में रखे सोफे पर बैठने का इशारा किया, और फिर से फाइल पढ़ने लगे। मैं चुपचाप जा कर उस सोफे पर बैठने गया, और धड़कते दिल से चारों ओर देखने लगा। मुझे समझ नही आ रहा था कि आखिर इतने बड़े आदमी को मुझमें इतनी दिलचस्पी क्यों है कि मुझे लेने अपनी कार तक को भेज दिया। कोई पांच मिनट बाद मित्तल साहब अपनी कुर्सी से उठा कर मेरे सामने वाले सोफे पर आ कर बैठ गए।
"कैसे हो मोनू?"
"जी अच्छा हूं।" मैने अटकते हुए कहा।
"मैने तुमको उस दिन ही कहा था कि आ कर मुझसे मिलना, कर तुम आए नही?"
मैं निरूतर था, इसीलिए मैंने अपनी गर्दन झुका ली।
"समझ सकता हूं कि तुम सोच रहे होगे आखिर एक मामूली से तार को जोड़ कर तुमने ऐसा क्या कर दिया कि मुझ जैसा आदमी तुमको अपनी गाड़ी भेज कर अपने पास क्यों बुलाया है?"
मैं आश्चर्य से उनकी ओर देखने लगा।
" देखो मोनू, तुमने मेरा फोन बनाया, ये कोई बड़ी बात नहीं थी। उसकी खराबी शायद जॉली भी एक बार और देख कर समझा जाता। मगर जिस कॉन्फिडेंस से तुमने मेरे आंखो में आंखे डाल कर बोला कि तुमको लगता है कि तुम इस फोन को बना सकते हो, मुझे वो बहुत ही अच्छा लगा। तुम्हारी इस बात से पता लगता है कि तुम कोई साधारण लड़के नही हो, और जॉली ने भी मुझे बताया कि तुम्हारा दिमाग बहुत तेज है, और तुम्हारा पढ़ने लिखने में भी बहुत मन लगता है। इसीलिए, बस मैं तुम्हे आगे पढ़ना चाहता हूं।"
"पर मैं तो पढ़ ही रहा हूं अभी।"
"वो कोई पढ़ाई है भला, मैं चाहता हूं की तुम अपना ध्यान बस पढ़ने में लगाओ, और बस पढ़ो, और एक काबिल इंसान बनो।"
मैं आश्चर्य से उनकी ओर देखने लगा।
"देखो मोनू, मैं बस अच्छे लोगों की मदद करना चाहता हूं, मुझे लगता है कि तुम कुछ बन गए तो तुम इस समाज, इस देख के बहुत काम आ सकते हो, शायद मेरे भी।"
मैं अभी भी आंखे फाड़े उन्हें ही देखे जा रहा था। मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई मुझसे ऐसी बातें भी कर सकता है।
"ऐसा नहीं है कि तुम पहले हो जिसके साथ मैं ऐसा कर रहा हूं, मैने कई बच्चों को शिक्षा दिलाई है, हां तुम मुझे उनसे अलग लगे, इसीलिए मैंने खुद तुम्हे यहां बुलवा कर तुमसे बात कर रहा हूं। और मैं ये भी नही कह रहा कि तुम अभी ही कोई फैसला लो। अभी तुम वापस जाओ, और आराम से 2 3 दिन सोच विचार करके अपना फैसला लो। बस अपने भले की ही सोचना।"
ये बोल कर उन्होंने अपने सामने रखे फोन को उठा कर ड्राइवर को अंदर बुलाया। ड्राइवर के आते ही उन्होंने ड्राइवर को मुझे वापस छोड़ने को कहा। और मैं ड्राइवर के साथ वापस आ गया। रास्ते भर में पसोपेश में था कि क्या करूं और क्या नहीं। ऐसा नहीं था की मित्तल साहब मुझे कोई गलत आदमी लगे, लेकिन सब कुछ पीछे छोड़ कर मुझ जैसे बच्चे का ऐसा फैसला लेना...
खैर ये सब सोचते सोचते मैं ढाबे पर वापस पहुंच चुका था, शाम ढल चुकी थी, और ढाबा ग्राहकों से भरा हुआ था। पहुंचते ही मैं अपने काम में लग गया, और सरदार जी भी व्यस्त थे तो उन्होंने भी मुझे नही टोका। देर रात तक फ्री हो कर मैं सोने चला गया, और सुबह जब उठा तो सरदार जी अपने घर से वापस आ चुके थे।
उन्होंने मुझे अपने केबिन में बुलवाया, मैं अंदर गया तो उन्होंने मुझे कुर्सी पर बैठा कर मित्तल साहब से हुई मुलाकात के बारे में पूछा। मैने उन्हे सारी बात बताने लगा, जिसे सुन कर सरदार जी के आंखों की चमक बढ़ती चली गई।
"बेटा किस्मत किसी किसी को ही ऐसा मौका देती है, ज्यादा सोच मत, मित्तल साहब के साथ लग जा, जिंदगी बन जायेगी तेरी।"
" पर दार जी, आपके सात इतने दिन से रह रहा हूं, आप मुझे पढ़ने देते ही हैं, फिर?"
"बेटा, मित्तल साहब जो शिक्षा तुम्हे दे सकते हैं, वो तो शायद मैं खुद के बच्चों भी न दिलवा पाऊं, इसीलिए ज्यादा सोच मत, बस भगवान का भरोसा कर चला जा।"
मैं अभी भी पसोपेश में था। कुछ देर बाद जॉली भैया भी आ गए और सारी बात जानने के बाद वो भी मुझे मित्तल साहब के प्रस्ताव को मानने के लिए बोलने लगे।
अगले दिन मैं, सरदारजी और जॉली भैया, मित्तल साहब के ऑफिस में बैठे थे, उन दोनो ने कई तरीके की बात की मित्तल साहब से, और आखिरी में मुझे मित्तल साहब के ऑफिस में छोड़ कर दोनो वहां से चले गए।
मित्तल साहब मुझे ले कर एक बोर्डिंग स्कूल में ले गए, को LN Group का ही कोई चैरिटेबल स्कूल था, वहां मेरी बाकी बची 4 5 साल की पढ़ाई को एक साल में ही पूरा करवा दिया गया। फिर एक साल बाद मित्तल साहब मुझे ले कर पुणे गए, और एक दूसरे बोर्डिंग स्कूल में मेरा एडमिशन सीधे 10वीं में करवा दिया गया, ये स्कूल वही था जहां मित्तल साहब के घर के बच्चे भी पढ़ते थे। वहीं उन्होंने मेरा नाम मोनू से मनीष मित्तल करवा दिया, और सरकारी दस्तावेज में मेरे पिता भी वही बन गए। मैने भी उनके इस अहसान को माना और अपने आपको पूरी तरह से पढ़ाई में झोंक दिया।
तभी एक झटका लगने से मैं अतीत से बाहर आ गया। मेरी गाड़ी मेरे अपार्टमेंट में आ चुकी थी....
बढ़िया भाग है, आगे को आगे की ओर बढ़ाता हुआ और मनीष के अब तक के सफर को दर्शाता हुआ साथ ही जिन जिन किरदारों का नाम आया है जो इस मित्तल परिवार की नई पीढ़ी है वही इस शतरंज की बिसात पर बिछे मोहरे है अब क्या चाल चली जाएगी देखते है और लगता है अब एक नए अहम किरदार की एंट्री होने वाली है,#अपडेट ३
अब तक आपने पढ़ा -
वहीं उन्होंने मेरा नाम मोनू से मनीष मित्तल करवा दिया, और सरकारी दस्तावेज में मेरे पिता भी वही बन गए। मैने भी उनके इस अहसान को माना और अपने आपको पूरी तरह से पढ़ाई में झोंक दिया।
तभी एक झटका लगने से मैं अतीत से बाहर आ गया। मेरी गाड़ी मेरे अपार्टमेंट में आ चुकी थी....
अब आगे -
मैं गाड़ी से निकल कर, ऊपर अपने फ्लैट में चला गया। वहां अपनी आदत अनुसार पहले मैंने शावर लिया और बाहर आ कर किचन में चाय बना कर टीवी चला दिया।
थोड़ी देर न्यूज सुनने के बाद मैंने अपना फोन उठा कर खाने का ऑर्डर कर दिया और बाहर आ कर बालकनी में बैठ कर शहर के नजारे को देखने लगा। मन धीरे धीरे फिर से यादों में खो गया।
पुणे के स्कूल में दसवीं में ही मैंने राज्य में टॉप 5 में अपना नाम दर्ज करवा लिया था। मित्तल साहब, जिन्हे अब मैं सर बोलने लगा था, मेरी इस उपलब्धि से बहुत खुश थे। आगे मैने उनके ही कहने पर मैथ और फिजिक्स से 12वीं की, और उसी साल मेहनत से, और सर के भरोसे मैं इंजीनियरिंग करने यूएस चला गया। अगले 5 साल भी मैने अपने को पढ़ाई में पूरी तरह से झोंक दिया, मेरे दिमाग में बस मित्तल सर की हर कसौटी पर खरा उतरने का जुनून था। इन सारे दिनों में मेरा पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई में था, कोई दोस्त नही बनाया मैने अपनी जिंदगी में, ना लड़का न लड़की, हां खेल में थोड़ा अच्छा था, खास कर बैडमिंटन और स्विमिंग में, तो लोगों से जान पहचान बनी रहती थी।
इंजीनियरिंग में मैने मित्तल सर के कहने पर आईटी ली हुई थी। वहां जाने के बाद भी हर महीने एक तयशुदा रकम मेरे खाते में हर महीने बराबर आती रही। लेकिन यहां मुझे स्कॉलरशिप मिलने लगी थी, इसी कारण मैने उस रकम को ज्यादातर छुआ ही नही।
पढ़ाई खत्म करने के बाद में वापस भारत आ गया। अब LN group का हेडक्वार्टर भारत के पश्चिमी तट पर स्थित वापी में जा चुका था, और दिल्ली वाले ऑफिस को नॉर्थ डिवीजन का डिविजनल ऑफिस बना दिया गया था। सर भी अपनी पूरी फैमिली के साथ वहीं शिफ्ट हो गए थे। मैं भारत में सीधे दिल्ली उतरा और कुछ समय वहां बिता कर मित्तल साहब से मिलने वापी पहुंच गया।
वहां पहुंचते ही मित्तल साहब ने मुझे इस फ्लैट में शिफ्ट करवा दिया। और मुझसे मिलने आए।
"तो बेटे, अब तो पढ़ाई खत्म। आगे क्या इरादा है तुम्हारा?"
"सर, अब बस आपके साथ रह कर आपके साथ ही आगे बढ़ना है, आपके ही सपनों को पूरा करना है।"
"बहुत अच्छा, चलो फिर कल से ऑफिस ज्वॉइन करना फिर।"
मित्तल सर कम बोलने वाले व्यक्ति थे, ज्यादातर वो काम की ही बातें करते थे। औसत कद के सांवले रंग के शरीर से चुस्त व्यक्ति थे वो, नजर पर चढ़ा चश्मा उनको एक अच्छे बिजनेसमैन जैसा ही दिखाता था।
मैने पूछा, " सर, एक बात पूछना चाहता हूं।"
"पूछो।"
"आपका कोई ऐसा सपना जो अभी न पूरा हुआ हो, में उसे पूरा करना चाहता हूं।"
मित्तल साहब मेरी ओर मुस्कुराते हुए देखने लगे।
"मेरा एक सपना है की मैं एक ऐसी बैंक बनाऊं जो पूरी दुनिया में यूनिक हो!"
"मगर आप तो पहले से बैंकिंग में हैं न?"
"हां, लेकिन वो एक रेगुलर बैंक है, मुझे कुछ ऐसा चाहिए जिसे देख लोग सालों तक याद करें कि ये रजत मित्तल की देन है।"
फिर कुछ देर हम दोनो इस मुद्दे पर बात करते रहे, और कुछ बातें मुझे समझ आई।मैने उनके इस सपने पर कई दिन तक विचार किया और फिर मुझे कुछ समझ आने लगा, मैं कुछ दिनों तक उसकी रूप रेखा पर काम किया और एक ब्लूप्रिंट जैसा बना कर मित्तल सर को दिखाया।
ब्लूप्रिंट देखते ही उनके चेहरे पर एक खुशी की लहर दौड़ गई और उन्होंने मुझे तुरंत अपने गले से लगा लिया।
"मनीष, कुछ ऐसे ही बैंक का सपना मैने देखा था।"
"उम्मीद है ये आपको पसंद आया।"
"बिलकुल, और मैं ये भी चाहता हूं कि इस पर तुम काम भी शुरू कर दो।"
फिर उन्होंने मुझे जो भी चाहिए था, उसका इंतजाम करके दे दिया और मैं जी जान से उसकी साकार करने में जुट गया। 2 साल की मेहनत के बाद मैने और मेरी टीम ने एक ऐसी बैंक ब्रांच को खड़ा कर दिया जो लगभग फुल्ली ऑटोमेटेड थी।
एंट्री गेट से ही बायोमैट्रिक सिस्टम लगा था, और अंदर जाते ही पैसे जमा करने और निकलने की अलग अलग मशीनें थी, जिनमे ग्राहक का बायोमेट्रिक कार्ड ही काम आता, लोन लेने के लिए भी पूरा ऑटोमेटेड सिस्टम था जिसमे ग्राहक के सारे डॉक्यूमेंट्स अकाउंट खोलते समय ले लेते और बाकी कामों के लिए भी कोई पर्सनल इंट्रैक्शन नही होता, जो भी होना था वो बस अकाउंट खोलते समय होता, जिसके लिए बैंक के बाहर ही एक छोटा सा ऑफिस था, जिसमे 3 4 स्टाफ बैठने की जगह थी। और वहीं पर बायोमैट्रिक कार्ड देने के बाद ही ग्राहक अंदर जा कर सारा काम खुद से करते थे। अंदर बस कुछ सहायता और साफ सफाई के लिए स्टाफ थे।
अपनी समय का सबसे एडवांस सिक्योरिटी सिस्टम से युक्त ब्रांच थी वो, बिना बायोमैट्रिक के किसी का भी न सिर्फ अंदर जाना, बल्कि बाहर निकलना भी संभव नहीं था। अंदर का भी पूरा सिस्टम हाई टेक सिक्योरिटी था और जरा भी गड़बड़ी की आशंका के लिए अलार्म बटन कई जगह लगे हुए थे। और उनके बजते ही पुलिस 10 मिनिट में ही वहां पहुंच जाती।
मित्तल साहब सारा इंतजाम देख कर बहुत खुश हुए, और इसकी खूबियां के बल पर वापी शहर के कई बड़े व्यापारी अपना बड़ा अकाउंट वहां खोलने के लिए राजी हो गया। जल्दी ही वो ब्रांच न सिर्फ वापी, बल्कि देश की लीड ब्रांच में शामिल हो गई। और इसी उपलब्धि के कारण मुझे न सिर्फ वाइस प्रेसिडेंट बनाया गया, बल्कि बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में भी जगह मिल गई। और ग्रुप के बैंकिंग का GM भी बन गया।
तभी डोर बेल की आवाज से मैं वापस वर्तमान में आ गया, और गेट खोल कर देखा तो मेरा खाना आ चुका था।
खाना खा कर, मैं सो गया। अगले दिन अपने समय से उठ कर दिनचर्या के काम निपटा कर में ऑफिस चला गया।
अपने केबिन में बैठे अभी कुछ ही देर हुई थी कि इंटरकॉम बजा।
"हेलो?"
"हां, मनीष, अभी कुछ देर में मीटिंग है तैयार रहना।" ये मित्तल सर थे।
"जी सर, कितनी देर में आना है?"
"मीटिंग 1 घंटे में शुरू करेंगे, लेकिन तुम एक बार मेरे पास 15 मिनिट पहले आ जाना।"
"जी, आता हूं।"
मेरे इतना बोलते ही उन्होंने फोन रख दिया, वो वैसे भी बस काम भर ही बात करते थे। कुछ देर बाद मैं उठ कर उनके केबिन की ओर चल दिया। 5 फ्लोर की इस बिल्डिंग में मेरा केबिन टॉप फ्लोर पर था, जिसमे बैंकिंग और रियल एस्टेट डिवीजन के GM बैठते थे। मित्तल साहब का 3rd फ्लोर पर था, और उसी फ्लोर पर मीटिंग रूम भी था।
मै उनके केबिन के बाहर पहुंच कर दरवाजे को खटखटाया, "कम इन"
ये सुन कर मैं दरवाजा खोल कर अंदर गया। सर अपने डेस्क के पीछे बैठे कोई फाइल देख रहे थे, मुझे देखते ही उन्होंने आंख से बैठने का इशारा किया। मैं उनके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया। 2 मिनिट के बाद उन्होंने वो फाइल अपने सामने से हटा कर रखी, और मुझे देख कर बोले, "ये मीटिंग मैने ऑटोमेटेड ब्रांच के लिए बुलाई है, तो तुम एक बार उसकी प्रेजेंटेशन भी इसमें दिखा देना। अब जाओ मैं आता हूं।"
मैं वहां से उठ कर मीटिंग रूम में जा कर बैठ गया, वहां पर लगभग सारे लोग आ चुके थे। मैं अपनी सीट पर जा कर बैठ गया।
मेरी सीट के बगल में मेरा असिस्टेंट और बैंकिंग का एजीएम कारण बैठा था, वो 28 29 साल का एक मेहनती और तेज दिमाग का इंसान था। मेरे LN group को ज्वाइन करने से पहले से ही वो यहां पर काम कर रहा था। मेरे सामने सर की इकलौती बेटी और रियल एस्टेट की GM, प्रिया बैठी थी। वो एक दरमायन कद की 27 साल के करीब तीखे नैन नक्श वाली लड़की थी, अपने पिता की तरह ही वो भी स्वभाव की अच्छी थी, और मुझसे हमेशा अच्छे से ही पेश आई थी अब तक।
उसके दाएं तरफ रजत मित्तल के बड़े भाई, और LN group के MD महेश मित्तल बैठे थे। मेरी बाएं ओर शिविका मित्तल, महेश मित्तल की बेटी और फाइनेंस की GM बैठी थी, वो भी प्रिया की तरह ही दिखती थी, बस उसका रंग प्रिया से ज्यादा साफ था। मित्तल परिवार के सारे बच्चों में वो सबसे ज्यादा चुलबुली थी, उसकी चेहरे पर हमेशा मुस्कान बनी रहती थी, मेरे साथ वो हमेशा एक दोस्त के जैसा व्यवहार करती, और कई बार मजाक भी करती रहती थी। उसके बगल में श्रेयन मित्तल, महेश जी का बेटा, जो केमिकल और टेक्सटाइल का GM था और हम सब में सबसे बड़ा, व्यवहार में वो भी अपने पापा और चाचा जैसा था, पर पता नही क्यों मुझसे थोड़ा खींचा खींचा रहता था।
कुछ देर बाद दरवाजा खुला और जो भी अंदर आया उसे देख कर मेरे दिल में एक हलचल सी होने लगी....
जैसा मुझे लगा था, नायिका की एंट्री हो चुकी है और नायक महोदय को उन्हे साथ ट्रिप पर जाने का मौका भी मिल चुका है, नेहा को देख मनीष पहली नजर मे घायल भी हो चुका है और शायद उसे ही अब टेनिस खेलता देख अपना बैडमिंटन का मैच हारने वाला है, बेहतरीन#अपडेट ४
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कुछ देर बाद दरवाजा खुला और जो भी अंदर आया उसे देख कर मेरे दिल में एक हलचल सी होने लगी....
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काली साड़ी में लिपटी वो...
दूध में केसर घोल दी गई हो जैसे, वैसा रंग, जो काली साड़ी में और कहर ढा रहा था, छरहरा बदन, जो हर उस हिस्से पर सुडौल था, जहां होना चाहिए था, दरम्याना कद और चेहरे पर मासूमियत और आकर्षक मुस्कान लिए वो मीटिंगरूम में आई, और मुझे लगा जैसे एक सेकंड के लिए मेरे दिल की धड़कन रुक गई हो।
अंदर आते ही उसने चारों ओर देखा और मेरी तरफ ही देख कर आने लगी, मेरी नजरें उस बला से हट ही नहीं रही थी। ये क्या हो गया मुझे?
वो मेरी तरफ आ कर करण के पास वाली सीट पर बैठ गई और उसे सर झुका कर अभिवादन किया। मैं ये देख कर सोच में पड़ गया कि क्या ये मेरे ही डिपार्टमेंट में है? तो पहले देखा क्यों नहीं कभी इसे?
तभी मीटिंग रूम का दरवाजा फिर से एक बात खुला और मित्तल सर अंदर आए, सारे लोग अपनी कुर्सी छोड़ कर खड़े हो गए। ये हलचल देख मेरे भी होश वापस आए और मैने अभी फिलहाल उसकी ओर देखने लगभग बंद ही कर दिया।
सर ने आते ही मीटिंग चालू कर दी।
"गुड मॉर्निंग ऑल, सबसे पहले आइए मिलते हैं अपनी टीम में नई ज्वाइन हुई नेहा वर्मा से, ये HFC बैंक से आई हैं और वहां क्लाइंट रिलेशन की सीनियर मैनेजर थी, अभी 15 दिन पहले ही ज्वाइन किया है। यहां पर ये AGM बैंकिंग होंगी, करण अब से DGM बैंकिंग का कार्यभार संभालेगा।"
सब लोग नेहा को ग्रीट करते हैं। मेरे मन में तो लड्डू फूटने लगा कि ये तो मेरे ही डिपार्टमेंट में हैं।
"जैसा आप सब जानते हैं कि ये मीटिंग नई ऑटोमेटेड ब्रांच के भविष्य को देश के अन्य शहरों में देखने के बारे में है। तो इसके लिए श्रेयन ने कुछ योजनाएं बनाई है। श्रेयन इस बारे में आप बताइए।"
श्रेयन, "मैने इस बारे में 2 तरह का प्लान सोचा है, पहला एक प्रिंट और टीवी विज्ञापन जो पूरे देश में चलेगा। और दूसरा, हम कुछ ग्राउंड लेवल पर संपर्क करके इसके भविष्य को देखें कि देश के किन शहरों में इसे पहले खोला जा सकता है। हालांकि मुझे लगता है कि पहले हमें दूसरे प्लान से शुरू करना चाहिए, जिससे हमें एक आइडिया लग जाय, और उसके बाद ही हम प्रिंट और टीवी विज्ञापन पर खर्च करें।"
मित्तल सर, "बढ़िया, मैं भी यही कहने वाला था कि पहले हमें ग्राउंड वर्क ही करना चाहिए, मेरे खयाल से इसमें भी तुमने कोई प्लान बनाया होगा?"
"जी बिलकुल, मेरे खयाल से हमे 2 2 के ग्रुप में देश के हर हिस्से में अपनी एक टीम भेजनी चाहिए जो देश के लगभग हर बड़े शहर में इसके पोटेंशियल को देखे जाने। चूंकि अपनी ब्रांचेस लगभग हर शहर में हैं तो वहां पर संपर्क साधने में दिक्कत नहीं आएगी। इसके लिए मेरे खयाल से प्रिया और करण साउथ में, शिविका और महेंद्र, DGM real estate को पूर्वी भारत में, मनीष और राघव, DGM finance को नॉर्थ में, और मैं और नेहा पश्चिम में जा कर कुछ शहरों में मीटिंग रखे, और वहां के लोगों को इसके कॉन्सेप्ट से परिचित करवाएं, जिससे पता चले कि वह लोग किस हद तक इसे पसंद करते हैं।"
मित्तल सर, "परफेक्ट प्लान है श्रेयन, बस मनीष के साथ नेहा को भेजो और राघव को तुम अपने साथ रखो, क्योंकि मनीष और राघव दोनों का कस्टमर रिलेशन में ज्यादा experience नहीं है, वहीं नेहा का एक्सपीरियंस इसी फील्ड में है।"
श्रेयन, "जी ये सही रहेगा, इस बारे में मैने ध्यान नहीं दिया। मनीष के साथ नेहा और मेरे साथ राघव जाएंगे फिर।"
मित्तल सर, "चलो फिर हर जोन में कुछ शहरों को भी चुन लेते हैं कि कहां कहां इसके टारगेट कस्टमर्स मिल सकते हैं।"
फिर सारे लोगों ने देश के कई शहरों की लिस्ट बनानी शुरू कर दी, और अंत में हर जोन से 5 शहरों को चुना गया। मेरे हिस्से में लखनऊ, दिल्ली, चंडीगढ़, देहरादून और शिमला आए।
सारी टीम को हर शहर में 2 से 3 दिन दिए गए और लगभग 15 दिन का टूर बना।
श्रेयन, "आज 15 दिसंबर है और हम सब यहां से 22 दिसंबर को निकलेंगे। शिविका सारी टीम का अरेंजमेंट कर दो।"
शिविका ने फौरन अपने डिपार्टमेंट में इसकी सूचना दे दी।
मित्तल सर, "मनीष, अब तुम अपनी प्रेजेंटेशन एक बार दे कर सबको बता दो कि वहां क्या क्या बताना है, और आप लोग इस पर जितने भी सवाल हो सकते हैं वो पूछ लीजिए, ताकि वहां प्रेजेंटेशन देते समय आपको की दिक्कत न आए।"
फिर मैने बैंक के बारे में प्रेजेंटेशन दी, और सबने कई तरह के सवाल किए और मैने उनका जवाब दिया, जिसे सब लोगों ने नोट कर लिया।
अब मीटिंग खत्म हो गई थी और सब लोग धीरे धीरे बाहर निकलने लगे थे।
नेहा ने मेरे पास आ कर, "गुड मॉर्निंग सर, मुझे लगा मनीष मित्तल कोई मिडिल एज के होंगे, मैने नहीं सोचा था कि इस उम्र में आप इतना बड़ा अचीवमेंट कर लेंगे।"
मैने भी मुस्कुराते हुए कहा, "ये कोई इतनी बड़ी बात भी नहीं है, वैसे भी पूरी टीम ही young और energetic है साथ ही साथ मित्तल सर और महेश सर का एक्सपीरियंस भी है हम सबके साथ।" ये बोलते हुए मेरी दिल की धड़कन तेज हुई जा रही थी। आज हो क्या रहा था मेरे साथ ये?
नेहा, "अच्छा सर मैं अब चलती हूं।"
मैं उसे जाता देख रहा था।
"वैसे दिखने में तो बढ़िया है न?"
मैने हड़बड़ा कर पीछे देखा, ये शिविका थी, अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ उसने मुझे आंख भी मारी।
"क्या प्लान बना है! खास कर तुम्हारा मनीष, ये उत्तर भारत की ठंड का मौसम, और ऐसी लोकेशंस, ऐसा लग रहा है ये बिजनेस टूर नहीं अंकल ने तुम्हे हनीमून टूर दिया है।"
मैने उसे आंख दिखाई।
"वैसे मजे करना।"
ये बोल कर वो भी निकल गई। और मैं भी अपने केबिन में आ गया। अब कुछ काम नहीं था मुझे तो मैने इंटरकॉम पर सर से बात की
"सर, क्या आज मैं जल्दी चला जाऊं?"
"बिलकुल मनीष, चाहो तो कल भी मत आना, वैसे भी पिछले 3 महीनों से आराम नहीं किया है तुमने।"
मैं ऑफिस से घर आ गया, शाम हो चली थी, फ्रेश हो कर मैं क्लब चला गया।
ये वापी का सबसे अच्छा क्लब था, जहां लगभग सारे इनडोर गेम्स के लिए एक बड़ा हॉल था, जिसे नेट लगा कर अलग अलग सेक्शन में बांटा गया था। हाल ऐसा था कि एक कोने से दूसरे कोने तक सब दिखाता था, उसी हाल के एक साइड स्विमिंग पूल और बार एंड रेस्टुरेंट थे। बिल्डिंग के पीछे समुद्र की तरफ गोल्फ कोर्स था।
मैं सीधे बैडमिंटन कोर्ट में पहुंचा जहां २ लोग पहले से ही खेल रहे थे। मैं बैठ कर मैच देखने लगा।
अभी बैठे कुछ देर ही हुई थी कि एक हाथ मेरे कंधे पर पड़ा, "आज फुर्सत मिल ही गई जीएम साहब को यहां आने की।"
ये समर सिंह था, वापी का ASP और कंपनी के बाहर मेरा इकलौता दोस्त।
"तुझे पता ही है कि मैं कहां बिजी था।"
"मुझे तो लगा कि मेरी भाभी ढूंढ ली है तुमने, और अब मुझे खुद ही मिलने आना पड़ेगा।"
हम ऐसे ही कुछ इधर उधर की बाते करते रहे, तब तक उन दिनों का मैच भी पूरा हो गया था। फिर हम चारों ने एक डबल खेल, जिसमे मैं और समर एक तरफ और वो दोनों दूसरी तरफ थे। ये मैच हमने 21-10 से जीता। उसके बाद वो दोनों चले गए।
समर,"देखा कैसे हराया मैने दोनों को।"
"तुमने? या मैने?"
"हाहाहा, चलो पता करते हैं। बेस्ट ऑफ थ्री।"
और इसी के साथ हम दोनो ने अपना मैच स्टार्ट कर दिया, और पहला मैच मैने बड़ी आसानी से 21-8 से जीता।
"देखा ASP साहब, किसने वो मैच जितवाया था!"
"बेस्ट ऑफ थ्री की बात हुई है GM साहब।"
और फिर दूसरा मैच शुरू हुआ और पहले 5 पॉइंट मैने आसानी से बनाए। फिर मेरी नजर समर के पीछे टेनिस कोर्ट पर पड़ी और....