• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Non-Erotic नहीं हूँ मैं बेवफा!

161
834
94
माँ.........यानी लेखक जी की माँ जी की तबियत ठीक नहीं हैं..............कल रात से उनकी कमर में दर्द शुरू हो गया है...........कोहनी में दर्द है......हाथों की उँगलियों में दर्द है.........इसलिए अभी मैं दिल्ली जा रही हूँ..........इसलिए कुछ दिन अपडेट नहीं आएगा...........कोशिश है की वहीँ पर लिखूं और ज्यादा से ज्यादा लिखूं 🙏
 

Sanju@

Well-Known Member
5,103
20,490
188
माँ.........यानी लेखक जी की माँ जी की तबियत ठीक नहीं हैं..............कल रात से उनकी कमर में दर्द शुरू हो गया है...........कोहनी में दर्द है......हाथों की उँगलियों में दर्द है.........इसलिए अभी मैं दिल्ली जा रही हूँ..........इसलिए कुछ दिन अपडेट नहीं आएगा...........कोशिश है की वहीँ पर लिखूं और ज्यादा से ज्यादा लिखूं 🙏
अब कैसी है मां जी की तबीयत
 

king cobra

Well-Known Member
5,258
9,926
189
माँ.........यानी लेखक जी की माँ जी की तबियत ठीक नहीं हैं..............कल रात से उनकी कमर में दर्द शुरू हो गया है...........कोहनी में दर्द है......हाथों की उँगलियों में दर्द है.........इसलिए अभी मैं दिल्ली जा रही हूँ..........इसलिए कुछ दिन अपडेट नहीं आएगा...........कोशिश है की वहीँ पर लिखूं और ज्यादा से ज्यादा लिखूं 🙏
update ke bare me kuch sonchna time mile seva se agar manu bhai bhai se help lena index update kaise karte samjh lena
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
21,385
44,909
259
माँ.........यानी लेखक जी की माँ जी की तबियत ठीक नहीं हैं..............कल रात से उनकी कमर में दर्द शुरू हो गया है...........कोहनी में दर्द है......हाथों की उँगलियों में दर्द है.........इसलिए अभी मैं दिल्ली जा रही हूँ..........इसलिए कुछ दिन अपडेट नहीं आएगा...........कोशिश है की वहीँ पर लिखूं और ज्यादा से ज्यादा लिखूं 🙏
अपडेट मां जी की तबियत का दीजिएगा
 
161
834
94
माँ की तबियत अभी ठीक है.........बस उनकी टांग में जो दर्द था वो अभी भी है........... मौसम ठंडा होता है तो दर्द बढ़ जाता है| मैं आज सुबह गॉंव वापस पहुंची हूँ...........कल अपडेट दूँगी|
 

king cobra

Well-Known Member
5,258
9,926
189
माँ की तबियत अभी ठीक है.........बस उनकी टांग में जो दर्द था वो अभी भी है........... मौसम ठंडा होता है तो दर्द बढ़ जाता है| मैं आज सुबह गॉंव वापस पहुंची हूँ...........कल अपडेट दूँगी|
kal update ka intezar rahega
 
161
834
94
भाग ६

साल में जब गर्मियों की छुट्टियां होती थीं........या परीक्षाएं खत्म होने के बाद जब छुट्टी होती तो मैं अपने घर जाती| मेरे घर आने पर अम्मा को ख़ुशी होती थी परन्तु वो अपनी ये ख़ुशी हमेशा छुपाती थीं| सोनी मेरे घर आने से बहुत खुश होती थी और आ कर मुझसे लिपट जाती......मैं हमेशा गॉंव आते समय जानकी और सोनी के लिए २ दूध वाली टॉफ़ी लाती थी| दोनों को ये टॉफी बहुत पसंद थी.........मगर जहाँ एक तरफ सोनी मुझे गाल पर पप्पी दे कर इस टॉफी को लाने का शुक्रिया अदा करती थी वहीँ दूसरी तरफ जानकी टॉफी तो फट से खा लेती पर मुझे कुछ न कहती|



छुट्टियों के समय में जब मैं गॉंव आती तो संजना मुझे चिट्ठी लिखती थी.......जब वो चिठ्ठी घर आती और डाकिया दादा चिट्ठी ले कर घर आते और मेरा नाम पुकारते तो मुझे बहुत ख़ुशी होती!!!! पहले पहल तो अम्मा बप्पा को हैरानी होती की भला उनके नाम के बजाए मेरे नाम की चिठ्ठी क्यों आई पर जब मैं उन्हें संजना की लिखी हुई चिठ्ठी पढ़ कर सुनाती............जिसमें वो मेरे अम्मा बप्पा के लिए आदर सहित 'चरण स्पर्श' लिखती थी.............तो मेरे अम्मा बप्पा के चेहरे पर मुस्कान आ ही जाती| अम्मा बप्पा के अलावा सोनी और जानकी के लिए भी संजना प्यार भेजती थी...........जिसे सोनी तो ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार कर लेती थी मगर जानकी चुप ही रहती| मुझे लगता था की शायद जानकी को संजना से जलन है इसलिए मैंने जानकी से प्यार से घुलने मिलने की कोशिश की..........उसे अम्बाला के बारे में सब बताने लगी........तथा अपने साथ अम्बाला चलने को प्रेरित करने लगी...........पर कुछ फायदा नहीं हुआ!!!!!!!!! "तू हीं जाओ........हमका कौनो जर्रूरत नाहीं कहूं जाए की!!!!!" ये कह जानकी मुँह बिदकते हुए चली जाती|





स्कूल में मेरी पढ़ाई अच्छी चल रही थी...............मेरी पढ़ने की चाह ने मुझे पढ़ाई में सबसे आगे रखा था| क्लास में सबसे पढ़ाकू मैं ही थी..........और मेरे बाद दूसरा स्थान था संजना का| तीसरी क्लस्स में मैंने पत्र लिखना सीखा...........मास्टर जी ने हमें अलग अलग विषय के पत्र लिखने सिखाये........उन्हीं में से एक था फीस माफ़ी के लिए पत्र| मेरी फीस मौसा जी या मामा जी दिया करते थे..........इसलिए मुझे नहीं पता था की मेरी कितनी फीस है..........मैंने कई बार पुछा मगर मेरे सवाल पर मौसा जी या मामा जी गुसा हो जाते थे...........तब मेरी मौसी जी मुझे समझातीं की मुझे पढ़ाई में ध्यान लगाना चाहिए............न की पैसों के बारे में सोचना चाहिए| मौसी माँ का ही रूप होती है ये मुझे तब पता चला था|



जब से मैं अम्बाला आई थी तभी से मैं घर के छोटे मोटे कामों में मौसी और मामी जी की मदद करती थी..........फिर चाहे घर में झाड़ू पोछा करना हो..........बर्तन धोने हों.........या कपडे धोने हों| मेरी मौसी और मामी जी को कभी मुझे कोई काम कहने की जर्रूरत नहीं पड़ती थी........बल्कि वो तो मुझे काम करने से रोकती थीं और पढ़ाई करने को कहतीं थीं........मगर मैं जिद्द कर के उनकी मदद करती थी| मेरी दोनों बहने...........यानी मेरी ममेरी बहन और मौसेरी बहन घर के कोई काम नहीं करती थीं........इसलिए मौसी जी और मामी जी हमेशा उन्हें मेरा उदहारण दे कर ताना मारती रहतीं थीं|



हाँ तो कहाँ थीं मैं............हाँ.......सॉरी.......पुरानी बातें याद करते हुए मैं यहाँ वहां निकल जाती हूँ……………. तो स्कूल में मैंने प्रधानाचार्या जी को पत्र लिखना सीख लिया था...........इसलिए एक दिन हिम्मत कर के मैंने अपनी फीस माफ़ी के लिए अपनी प्रधानाचार्या जी को पत्र लिख दिया| पत्र पढ़ कर मेरी प्रधानाचार्या जी ने मुझे अपने पास बुलाया............डरी सहमी सी मैं उनके पास पहुंची...........उस समय मैं मन ही मन खुद को कोस रही थी की मैंने क्यों ही पत्र लिखा???? क्या जर्रूरत थी ये फ़ालतू का पंगा लेने की????



लेकिन मैं बेकार ही घबरा रही थी..........क्योंकि प्रधानचर्या जी ने मुझसे बस मेरे माता पिता के बारे में पुछा| मैंने उन्हें सब सच बताया तो मेरी बात सुन प्रधानाचार्या जी ने मेरी पीठ थपथपाई और मेरी पूरे साल की फीस माफ़ कर दी| मैंने ये खबर घर आ कर दी तो मेरी मौसी जी ने मुझे अपने गले लगा लिया और मेरे माथे को चूमते हुए बोलीं "हमार मुन्नी बहुत होसियार है........हम तोहरे से कछु नाहीं कहीं फिर भी तू सब जान जावत हो|" उस दिन मुझे पता चल की मौसा जी के सर पर कितना कर्ज़ा था और वो कितने जतन से मुझे और मेरी मौसेरी बहन को पढ़ा रहे थे|



मौसी ने मेरी फीस माफ़ी की बात को सबसे छुपाया और मौसा जी से ये कहा की क्योंकि मैं पढ़ाई में अव्वल आती हूँ इसलिए स्कूल वालों ने मेरी पूरे साल की फीस माफ़ कर दी है| मौसा जी इस खबर से बहुत खुश हुए और उन्होंने बप्पा को चिठ्ठी लिख कर ये खबर दी............. मुझे नहीं पता की ये खबर पढ़कर पिताजी ने किया प्रतिक्रिया दी थी..............पर चरण काका कहते हैं की ये खबर पढ़ कर पिताजी के चेहरे पर मेरे लिए गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई थी!!!!





खैर.........अम्बाला में पढ़ते हुए मैं अपनी जिम्मेदारियां उठाने लग गई थी| संजना और मेरी दोस्ती बहुत गहरी हो गई थी.............एक दिन वो मुझे अपने घर ले गई..........उसका घर बहुत बड़ा था......मुझे हैरानी हुई ये जानकार की संजना का अपना अलग कमरा था!!!!! उसके पापा सरकारी नौकरी करते थे..........साथ ही उनकी अपनी एक दूकान भी थी| उसके मम्मी पापा ने बड़े प्यार से मुझसे बात की.........मेरे कपड़े बड़े साधारण से थे...........जो बताते थे की मैं एक गरीब घर से हूँ......... लेकिन फिर भी उन्होंने मुझसे कोई भेदभाव नहीं किया| उन्होंने मुझे बिलकुल अपनी बेटी की तरह लाड किया..........और खिला पिला कर घर भेजा| जितने हंसमुख संजना के मम्मी पापा थे...........मेरे अम्मा बप्पा उनके मुक़ाबले थोड़े साधारण थे!!! तब मुझे लगता था की शायद वो लोग बहुत अमीर हैं इसलिए ऐसे हैं...........अब हम सब थे गरीब.......इसलिए शायद...............



संजना ने कई बार कहा की मैं उसके साथ अम्बाला घूमने निकलूं मगर मैं जानती थी की बाहर आना जाना मतलब पैसे खर्चा होना और मैं अपने मौसा मौसी या मामा मम्मी से पैसे माँगना नहीं चाहती थी इसलिए मैं पढ़ाई का बहाना बना कर कहीं भी आने जाने से मना कर देती|



जैसे मैं संजना के घर आया जाया करती थी...........वैसे ही संजना मेरे घर आया जाया करती थी.......एक अंतर् हम दोनों में था वो था की मैं डरी सहमी रहती थी और उसके घर में मैं बस एक जगह बैठती थी..........जबकि संजना जब हमारे घर आती तो वो बिना डरे कहीं भी घुस जाती थी!!!! फिर चाहे मैं रसोई में ही चाय क्यों न बना रही हूँ......वो रसोई में घुस आती और मेरे साथ खड़े हो कर गप्पें लगा कर बात करने लगती| एक दिन हमारे स्कूल की छुट्टी थी..........हमें बनाना था साइंस का एक चार्ट (चार्ट पेपर)........लेकिन संजना को करनी थी मस्ती इसलिए वो सीधे मेरे घर आ गई बर्गर बन ले कर!!!!!! मैंने तब बर्गर नहीं खाया था............तो मैं इस गोल गोल ब्रेड को देख कर हैरान थी.........तभी संजना ने चौधरी बनते हुए कहा की वो मुझे बर्गर बनाना सिखाएगी|



फुदकते हुए संजना पहुंची मौसी जी के पास और बोली "आंटी मैं और संगीता यहाँ बर्गर बना सकते हैं?" पता नहीं कैसे मौसी जी मान गईं और मुस्कुराते हुए बोलीं "ठीक है बेटा!!!" उसके बाद शुरू हुआ हम दोनों सहेलियों का रसोई बनाना............दोनों ने मिलकर ४ बर्गर बनाये........चूँकि घर पर मैं, मेरी मौसी जी, मेरी मौसेरी बहन और संजना थे तो हम चारों ने मज़े से बर्गर खाया| मौसी जी ने कभी बर्गर नहीं खाया था.........पर आज उन्होंने संजना के ज़ोर देने पर खा लिया और खूब तारीफ भी की|





एक दिन गॉंव से खबर आई की मेरा एक छोटा भाई.........यानी अनिल पैदा हो गया है| अपने छोटे भाई को देखने की मेरी लालसा चरम पर थी.............मैंने जब ये खबर संजना को दी तो वो भी बहुत खुश हुई!!!! संजना का कोई भाई नहीं था इसलिए मैंने उससे कहा की मेरी तरह वो भी अनिल को राखी बांधेगी.........ये सुनकर संजना बहुत खुश हुई और अगले दिन मुझे अपने हाथों से बनाई हुई एक राखी ला कर देते हुए बोली की जब मैं घर जाऊं तो अनिल को उसकी तरफ से बाँध दूँ| छुट्टियों में जब मैं घर पहुंची तो मुझे अनिल को पहलीबार देखने का मौका मिला..........झूठ नहीं कहूँगी........लेकिन जैसे ही मैंने अनिल को पहलीबार गोदी में लिया तो मुझे खुद माँ बनने वाला एहसास हुआ!!!!! जैसे एक माँ अपने बच्चों के लिए रक्षात्मक होती है.........वैसे ही मैं अनिल को ले कर एकदम सचेत हो गई थी| जब भी सोनी फुदकती हुई अनिल को छेड़ने आती तो मैं उसे भगा देती..........जानकी और मेरे बीच अब अनिल को प्यार करने के लिए लड़ाई होने लगी थी| संजना ने जो राखी मुझे अनिल को बाँधने को दी थी.........उसे अनिल की छोटी सी कलाई में देख जानकी चिढ जाती और राखी नोचने आ जाती............पर मैं बड़ी बहन होते हुए चप्पल मारने के डर से भगा देती| जब तक मैं गॉंव में रहती तब तक अनिल बस मेरे पास रहता............और अगर जानकी या सोनी उसे लेने आते तो मैं उन्हें बड़ी बहन होने का डर दिखा कर भगा देती!



अनिल था गॉंव में और मैं थी अम्बाला में..........मगर फिर भी राखी पर संजना गॉंव अनिल के लिए राखी भेजती थी|





मैं नौवीं कक्षा में थी.........और हम दोनों सहेलियां अब बड़ी हो गई थीं| मेरा संजना के घर आना जाना बहुत साधारण सा था..........एक दिन मैं उसके घर पहुंची तो उसकी मम्मी घर से निकल रहीं थीं| उन्होंने मुझे बताया की वो थोड़ी देर में आएँगी.......और मैं घर का दरवाजा अंदर से बंद कर लूँ| मैंने दरवाजा बंद किया और संजना को आवाज़ लगाते हुए ढूंढने लगी............ढूंढते ढूंढते मैं छत पर पहुंची और वहां मैंने देखा की संजना के लड़के साथ टंकी के पीछे बैठी हुई किस कर रही है!!!! वो दोनों सिर्फ किस ही नहीं बल्कि थोड़ा आपत्तिजनक स्थति में भी थे...........ये नज़ारा देख कर मुझे पता नहीं क्या हुआ...........मैं अचानक घबरा गई.........और डरके मारे चिलाते हुए घर भाग आई!!!



मुझे तब न तो सेक्स के बारे में कोई जानकारी थी और न ही मैंने कभी किसी को किस करते हुए देखा था...................ऊपर से उस लड़के के हाथ संजना के जिस्म के ऊपर थे.........ये सब मेरे लिए नया और घिनोना था.........एक आदमी एक औरत के शरीर को ऐसे छू सकता है इसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी.......यही कारन था की मैं इतना घबराई हुई थी!!!!!!!





अगले दिन जब मैं स्कूल पहुंची तो संजना स्कूल के गेट पर मेरा ही इंतज़ार कर रहे थी.....मुझे देखते ही उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खींच कर बाथरूम के पास ले गई और मेरे आगे हाथ जोड़कर रोने लगी!!! "संगीता.......प्लीज ये बात किसी को मत बताना.......वरना मेरी बहुत बदनामी होगी!!!" संजना बिलख बिलख कर रो रही थी और मुझसे पानी सहेली के आंसूं बर्दाश्त नहीं हो रहे थे| मैंने संजना के आंसूं पोछे और उससे बोली की मैं ये बात किसी को नहीं बताउंगी लेकिन उसे आज के बाद ये घिनोना काम कभी नहीं करना है| अगर उसने फिर ऐसी गलती की तो मैं उसे चप्पल से दौड़ा दौड़ा कर मरूंगी!!!!
 
Last edited:

king cobra

Well-Known Member
5,258
9,926
189
भाग ६

साल में जब गर्मियों की छुट्टियां होती थीं........या परीक्षाएं खत्म होने के बाद जब छुट्टी होती तो मैं अपने घर जाती| मेरे घर आने पर अम्मा को ख़ुशी होती थी परन्तु वो अपनी ये ख़ुशी हमेशा छुपाती थीं| सोनी मेरे घर आने से बहुत खुश होती थी और आ कर मुझसे लिपट जाती......मैं हमेशा गॉंव आते समय जानकी और सोनी के लिए २ दूध वाली टॉफ़ी लाती थी| दोनों को ये टॉफी बहुत पसंद थी.........मगर जहाँ एक तरफ सोनी मुझे गाल पर पप्पी दे कर इस टॉफी को लाने का शुक्रिया अदा करती थी वहीँ दूसरी तरफ जानकी टॉफी तो फट से खा लेती पर मुझे कुछ न कहती|



छुट्टियों के समय में जब मैं गॉंव आती तो संजना मुझे चिट्ठी लिखती थी.......जब वो चिठ्ठी घर आती और डाकिया दादा चिट्ठी ले कर घर आते और मेरा नाम पुकारते तो मुझे बहुत ख़ुशी होती!!!! पहले पहल तो अम्मा बप्पा को हैरानी होती की भला उनके नाम के बजाए मेरे नाम की चिठ्ठी क्यों आई पर जब मैं उन्हें संजना की लिखी हुई चिठ्ठी पढ़ कर सुनाती............जिसमें वो मेरे अम्मा बप्पा के लिए आदर सहित 'चरण स्पर्श' लिखती थी.............तो मेरे अम्मा बप्पा के चेहरे पर मुस्कान आ ही जाती| अम्मा बप्पा के अलावा सोनी और जानकी के लिए भी संजना प्यार भेजती थी...........जिसे सोनी तो ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार कर लेती थी मगर जानकी चुप ही रहती| मुझे लगता था की शायद जानकी को संजना से जलन है इसलिए मैंने जानकी से प्यार से घुलने मिलने की कोशिश की..........उसे अम्बाला के बारे में सब बताने लगी........तथा अपने साथ अम्बाला चलने को प्रेरित करने लगी...........पर कुछ फायदा नहीं हुआ!!!!!!!!! "तू हीं जाओ........हमका कौनो जर्रूरत नाहीं कहूं जाए की!!!!!" ये कह जानकी मुँह बिदकते हुए चली जाती|





स्कूल में मेरी पढ़ाई अच्छी चल रही थी...............मेरी पढ़ने की चाह ने मुझे पढ़ाई में सबसे आगे रखा था| क्लास में सबसे पढ़ाकू मैं ही थी..........और मेरे बाद दूसरा स्थान था संजना का| तीसरी क्लस्स में मैंने पत्र लिखना सीखा...........मास्टर जी ने हमें अलग अलग विषय के पत्र लिखने सिखाये........उन्हीं में से एक था फीस माफ़ी के लिए पत्र| मेरी फीस मौसा जी या मामा जी दिया करते थे..........इसलिए मुझे नहीं पता था की मेरी कितनी फीस है..........मैंने कई बार पुछा मगर मेरे सवाल पर मौसा जी या मामा जी गुसा हो जाते थे...........तब मेरी मौसी जी मुझे समझातीं की मुझे पढ़ाई में ध्यान लगाना चाहिए............न की पैसों के बारे में सोचना चाहिए| मौसी माँ का ही रूप होती है ये मुझे तब पता चला था|



जब से मैं अम्बाला आई थी तभी से मैं घर के छोटे मोटे कामों में मौसी और मामी जी की मदद करती थी..........फिर चाहे घर में झाड़ू पोछा करना हो..........बर्तन धोने हों.........या कपडे धोने हों| मेरी मौसी और मामी जी को कभी मुझे कोई काम कहने की जर्रूरत नहीं पड़ती थी........बल्कि वो तो मुझे काम करने से रोकती थीं और पढ़ाई करने को कहतीं थीं........मगर मैं जिद्द कर के उनकी मदद करती थी| मेरी दोनों बहने...........यानी मेरी ममेरी बहन और मौसेरी बहन घर के कोई काम नहीं करती थीं........इसलिए मौसी जी और मामी जी हमेशा उन्हें मेरा उदहारण दे कर ताना मारती रहतीं थीं|



हाँ तो कहाँ थीं मैं............हाँ.......सॉरी.......पुरानी बातें याद करते हुए मैं यहाँ वहां निकल जाती हूँ……………. तो स्कूल में मैंने प्रधानाचार्या जी को पत्र लिखना सीख लिया था...........इसलिए एक दिन हिम्मत कर के मैंने अपनी फीस माफ़ी के लिए अपनी प्रधानाचार्या जी को पत्र लिख दिया| पत्र पढ़ कर मेरी प्रधानाचार्या जी ने मुझे अपने पास बुलाया............डरी सहमी सी मैं उनके पास पहुंची...........उस समय मैं मन ही मन खुद को कोस रही थी की मैंने क्यों ही पत्र लिखा???? क्या जर्रूरत थी ये फ़ालतू का पंगा लेने की????



लेकिन मैं बेकार ही घबरा रही थी..........क्योंकि प्रधानचर्या जी ने मुझसे बस मेरे माता पिता के बारे में पुछा| मैंने उन्हें सब सच बताया तो मेरी बात सुन प्रधानाचार्या जी ने मेरी पीठ थपथपाई और मेरी पूरे साल की फीस माफ़ कर दी| मैंने ये खबर घर आ कर दी तो मेरी मौसी जी ने मुझे अपने गले लगा लिया और मेरे माथे को चूमते हुए बोलीं "हमार मुन्नी बहुत होसियार है........हम तोहरे से कछु नाहीं कहीं फिर भी तू सब जान जावत हो|" उस दिन मुझे पता चल की मौसा जी के सर पर कितना कर्ज़ा था और वो कितने जतन से मुझे और मेरी मौसेरी बहन को पढ़ा रहे थे|



मौसी ने मेरी फीस माफ़ी की बात को सबसे छुपाया और मौसा जी से ये कहा की क्योंकि मैं पढ़ाई में अव्वल आती हूँ इसलिए स्कूल वालों ने मेरी पूरे साल की फीस माफ़ कर दी है| मौसा जी इस खबर से बहुत खुश हुए और उन्होंने बप्पा को चिठ्ठी लिख कर ये खबर दी............. मुझे नहीं पता की ये खबर पढ़कर पिताजी ने किया प्रतिक्रिया दी थी..............पर चरण काका कहते हैं की ये खबर पढ़ कर पिताजी के चेहरे पर मेरे लिए गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई थी!!!!





खैर.........अम्बाला में पढ़ते हुए मैं अपनी जिम्मेदारियां उठाने लग गई थी| संजना और मेरी दोस्ती बहुत गहरी हो गई थी.............एक दिन वो मुझे अपने घर ले गई..........उसका घर बहुत बड़ा था......मुझे हैरानी हुई ये जानकार की संजना का अपना अलग कमरा था!!!!! उसके पापा सरकारी नौकरी करते थे..........साथ ही उनकी अपनी एक दूकान भी थी| उसके मम्मी पापा ने बड़े प्यार से मुझसे बात की.........मेरे कपड़े बड़े साधारण से थे...........जो बताते थे की मैं एक गरीब घर से हूँ......... लेकिन फिर भी उन्होंने मुझसे कोई भेदभाव नहीं किया| उन्होंने मुझे बिलकुल अपनी बेटी की तरह लाड किया..........और खिला पिला कर घर भेजा| जितने हंसमुख संजना के मम्मी पापा थे...........मेरे अम्मा बप्पा उनके मुक़ाबले थोड़े साधारण थे!!! तब मुझे लगता था की शायद वो लोग बहुत अमीर हैं इसलिए ऐसे हैं...........अब हम सब थे गरीब.......इसलिए शायद...............



संजना ने कई बार कहा की मैं उसके साथ अम्बाला घूमने निकलूं मगर मैं जानती थी की बाहर आना जाना मतलब पैसे खर्चा होना और मैं अपने मौसा मौसी या मामा मम्मी से पैसे माँगना नहीं चाहती थी इसलिए मैं पढ़ाई का बहाना बना कर कहीं भी आने जाने से मना कर देती|



जैसे मैं संजना के घर आया जाया करती थी...........वैसे ही संजना मेरे घर आया जाया करती थी.......एक अंतर् हम दोनों में था वो था की मैं डरी सहमी रहती थी और उसके घर में मैं बस एक जगह बैठती थी..........जबकि संजना जब हमारे घर आती तो वो बिना डरे कहीं भी घुस जाती थी!!!! फिर चाहे मैं रसोई में ही चाय क्यों न बना रही हूँ......वो रसोई में घुस आती और मेरे साथ खड़े हो कर गप्पें लगा कर बात करने लगती| एक दिन हमारे स्कूल की छुट्टी थी..........हमें बनाना था साइंस का एक चार्ट (चार्ट पेपर)........लेकिन संजना को करनी थी मस्ती इसलिए वो सीधे मेरे घर आ गई बर्गर बन ले कर!!!!!! मैंने तब बर्गर नहीं खाया था............तो मैं इस गोल गोल ब्रेड को देख कर हैरान थी.........तभी संजना ने चौधरी बनते हुए कहा की वो मुझे बर्गर बनाना सिखाएगी|



फुदकते हुए संजना पहुंची मौसी जी के पास और बोली "आंटी मैं और संगीता यहाँ बर्गर बना सकते हैं?" पता नहीं कैसे मौसी जी मान गईं और मुस्कुराते हुए बोलीं "ठीक है बेटा!!!" उसके बाद शुरू हुआ हम दोनों सहेलियों का रसोई बनाना............दोनों ने मिलकर ४ बर्गर बनाये........चूँकि घर पर मैं, मेरी मौसी जी, मेरी मौसेरी बहन और संजना थे तो हम चारों ने मज़े से बर्गर खाया| मौसी जी ने कभी बर्गर नहीं खाया था.........पर आज उन्होंने संजना के ज़ोर देने पर खा लिया और खूब तारीफ भी की|





एक दिन गॉंव से खबर आई की मेरा एक छोटा भाई.........यानी अनिल पैदा हो गया है| अपने छोटे भाई को देखने की मेरी लालसा चरम पर थी.............मैंने जब ये खबर संजना को दी तो वो भी बहुत खुश हुई!!!! संजना का कोई भाई नहीं था इसलिए मैंने उससे कहा की मेरी तरह वो भी अनिल को राखी बांधेगी.........ये सुनकर संजना बहुत खुश हुई और अगले दिन मुझे अपने हाथों से बनाई हुई एक राखी ला कर देते हुए बोली की जब मैं घर जाऊं तो अनिल को उसकी तरफ से बाँध दूँ| छुट्टियों में जब मैं घर पहुंची तो मुझे अनिल को पहलीबार देखने का मौका मिला..........झूठ नहीं कहूँगी........लेकिन जैसे ही मैंने अनिल को पहलीबार गोदी में लिया तो मुझे खुद माँ बनने वाला एहसास हुआ!!!!! जैसे एक माँ अपने बच्चों के लिए रक्षात्मक होती है.........वैसे ही मैं अनिल को ले कर एकदम सचेत हो गई थी| जब भी सोनी फुदकती हुई अनिल को छेड़ने आती तो मैं उसे भगा देती..........जानकी और मेरे बीच अब अनिल को प्यार करने के लिए लड़ाई होने लगी थी| संजना ने जो राखी मुझे अनिल को बाँधने को दी थी.........उसे अनिल की छोटी सी कलाई में देख जानकी चिढ जाती और राखी नोचने आ जाती............पर मैं बड़ी बहन होते हुए चप्पल मारने के डर से भगा देती| जब तक मैं गॉंव में रहती तब तक अनिल बस मेरे पास रहता............और अगर जानकी या सोनी उसे लेने आते तो मैं उन्हें बड़ी बहन होने का डर दिखा कर भगा देती!



अनिल था गॉंव में और मैं थी अम्बाला में..........मगर फिर भी राखी पर संजना गॉंव अनिल के लिए राखी भेजती थी|





मैं नौवीं कक्षा में थी.........और हम दोनों सहेलियां अब बड़ी हो गई थीं| मेरा संजना के घर आना जाना बहुत साधारण सा था..........एक दिन मैं उसके घर पहुंची तो उसकी मम्मी घर से निकल रहीं थीं| उन्होंने मुझे बताया की वो थोड़ी देर में आएँगी.......और मैं घर का दरवाजा अंदर से बंद कर लूँ| मैंने दरवाजा बंद किया और संजना को आवाज़ लगाते हुए ढूंढने लगी............ढूंढते ढूंढते मैं छत पर पहुंची और वहां मैंने देखा की संजना के लड़के साथ टंकी के पीछे बैठी हुई किस कर रही है!!!! वो दोनों सिर्फ किस ही नहीं बल्कि थोड़ा आपत्तिजनक स्थति में भी थे...........ये नज़ारा देख कर मुझे पता नहीं क्या हुआ...........मैं अचानक घबरा गई.........और डरके मारे चिलाते हुए घर भाग आई!!!



मुझे तब न तो सेक्स के बारे में कोई जानकारी थी और न ही मैंने कभी किसी को किस करते हुए देखा था...................ऊपर से उस लड़के के हाथ संजना के जिस्म के ऊपर थे.........ये सब मेरे लिए नया और घिनोना था.........एक आदमी एक औरत के शरीर को ऐसे छू सकता है इसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी.......यही कारन था की मैं इतना घबराई हुई थी!!!!!!!





अगले दिन जब मैं स्कूल पहुंची तो संजना स्कूल के गेट पर मेरा ही इंतज़ार कर रहे थी.....मुझे देखते ही उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खींच कर बाथरूम के पास ले गई और मेरे आगे हाथ जोड़कर रोने लगी!!! "संगीता.......प्लीज ये बात किसी को मत बताना.......वरना मेरी बहुत बदनामी होगी!!!" संजना बिलख बिलख कर रो रही थी और मुझसे पानी सहेली के आंसूं बर्दाश्त नहीं हो रहे थे| मैंने संजना के आंसूं पोछे और उससे बोली की मैं ये बात किसी को नहीं बताउंगी लेकिन उसे आज के बाद ये घिनोना काम कभी नहीं करना है| अगर उसने फिर ऐसी गलती की तो मैं उसे चप्पल से दौड़ा दौड़ा कर मरूंगी!!!!
bahut badhiya update bachpan se samjhdari thi aapme koi sak noi raha hamko hamne bhi fee mafi wala application diya tha to principal bhadak gawa tha mere upar bola agar toka fee maafi diya to pura school free karna hoga kyuki sabse bada aadmi mai hi tha school me principal paidal aur me bike se jata tha :cry2: uske baad bhai bahen ka pyaar awesome aur saheli ko achcha sabak sikhaya hai bole to ek dam mast update
 
Last edited:
Top